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अंधविश्वास में हत्याओं का खेल बदस्तूर जारी

हाल ही में छत्तीसगढ़ सूबे के सुकमा ज़िले के इतकाल गाँव में लोगों ने जादू-टोने के शक में पाँच लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी। मरने वालों में तीन महिलाएँ भी हैं और सभी मृतक एक ही परिवार के थे। यह ख़बर विकसित भारत, स्मार्ट सिटी की घोषणाओं, देश में हवाई अड्डे बनाने की होड़ और अब भारत को दुनिया का चिप हब बनाने की दिशा में जनता के सामने रखी जाने वाली सरकारी तस्वीरों के बीच उस भारत की तस्वीर है, जो अभी तक डायन प्रथा का दंश झेल रहा है। हैरत होती है कि देश में स्कूलों, विश्वविघालयों की संख्या में वृद्धि, साक्षरता दर बढ़ने, बेहतर संचार-व्यवस्था, प्राथमिक अस्पतालों की संख्या में इज़ाफ़ा होने के बावजूद डायन-प्रथा आज भी ज़िन्दा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड शाखा के अनुसार, वर्ष 2022 में देश में 85 लोगों की हत्या डायन मानकर कर दी गयी इनमें से ज़्यादातर मामले छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखण्ड और ओडिशा राज्यों के थे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड शाखा के आँकड़ों के अनुसार, देश में वर्ष 2015 से वर्ष 2021 के दरमियान डायन-प्रथा के तहत 663 हत्याएँ हुईं, जो मामले दर्ज किये गये यानी सालाना औसतन 95 मामले ऐसे दर्ज किये गये, जिनमें लोगों की हत्या उन्हें डायन कहकर कर दी गयी ऐसी हत्याओं में 65 फ़ीसदी मामले झारखण्ड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और ओडिशा राज्यों से थे।

ग़ौरतलब है कि डायन बिसाही सरीखी क्रूर कुप्रथा भारत के 12 राज्यों में अधिक है, इसमें झारखण्ड, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र और असम शामिल हैं। यह क्रूर प्रथा कम आय वाले इलाक़ों और ऐसे समुदायों में जहाँ सामाजिक, आर्थिक असमानता के अलावा लैंगिक असमानता हावी है, में ज़िन्दा है। इसके साथ ही अशिक्षा, जागरूकता का अभाव, स्वास्थ्य सेवाओं तक लोगों की पहुँच कम होने जैसे कारण भी इन प्रथाओं को बढ़ावा देते हैं। पर ध्यान देने वाली बात यह है कि इस कुप्रथा की शिकार अधिकतर महिलाओं को ही बनाया जाता है।

सवाल यह है कि इस पुरुष प्रधान समाज, व्यवस्था में अक्सर महिलाएँ ही इसकी गिरफ़्त में क्यों? वो भी ज़्यादातर मौक़ों पर ऐसी महिलाओं को डायन कहकर प्रताड़ना दी जाती है या उनकी हत्या कर दी जाती है, जो उम्रदराज़, अकेली, नि:संतान या विधवा होती हैं। इसके पीछे एक मुख्य मंशा महिलाओं को कमतर आँकना, उनकी संपत्ति हड़पना, किसी रंज़िश के तहत समाज में उन्हें बदनाम करना, एक ख़ास उम्र (प्रजनन-अवस्था) के बाद उन्हें बेकार समझना आदि होते हैं। पीड़ित लोगों में अधिकतर ग़रीब, आदिवासी और दलित होते हैं। डायन घोषित करने के लिए जादू-टोना और काला जादू करने जैसे शक भी करके या आरोप लगाकर लोग, समुदाय पीड़ित और उसके परिवार को कई-कई तरह की यातनाएँ देते हैं। कई बार तो यातनाएँ देने वालों में परिवार के लोग भी शामिल होते हैं।

ऐसी कुप्रथाओं के तहत किसी की हत्या की घटनाएँ हैरत में डालती हैं; क्योंकि कई राज्यों में इस कुप्रथा के ख़िलाफ़ क़ानून भी बने हुए हैं। बिहार देश का ऐसा पहला राज्य है, जिसने 1993 में ऐसा क़ानून बनाया था। इस क़ानून के तहत किसी को प्रताड़ित करने वालों को छ:-छ: माह तक की क़ैद की सज़ा या 2,000 रुपये तक के आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया था। आज बिहार के अलावा झारखण्ड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, असम में भी इस तरह की प्रताड़ना के ख़िलाफ़ क़ानून बने हुए हैं। ये क़ानून राज्य सरकारों ने बनाये हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि अभी तक इस कुप्रथा के ख़िलाफ़ कोई केंद्रीय क़ानून नहीं बना है। वहीं जिन राज्यों ने पहल करके क़ानून बनाये हैं, वहाँ किसी की हत्या या उसे प्रताड़ित करने वालों के लिए सज़ा बहुत कम है। इसके साथ ही यह भी चलन है कि ऐसा कोई मामला सरकारी दस्तावेज़ में दर्ज हो, ज़रूरी नहीं। कई मर्तबा पुलिस ऐसे मामलों में निष्क्रिय रहती है, तो कई मर्तबा पीड़ित परिवार के लोग दबंग लोगों से डरकर ख़ामोश रहना ही बेहतर समझते हैं। उन्हें यह डर सताता है कि अगर रिपोर्ट दर्ज करायी, तो उनके परिवार के बच्चों को कहीं सामाजिक बहिष्कार न झेलना पड़े। गाँव में उनके लिए रोज़गार, खाने-पीने, समाज में उठने-बैठने के रास्ते बंद हो सकते हैं।

दरअसल इस कुप्रथा के कई सामाजिक, जातीय, आर्थिक व मनोवैज्ञानिक पहलू भी हैं। यह कुप्रथा विकास की गढ़ी गयी परिभाषा पर भी सवाल उठाती है। देश में जन कल्याण, महिलाओं के उत्थान, सशक्तिकरण के लिए चालू महत्त्वाकांक्षी योजनाओं पर भी सोचने को मजबूर करती है। दलित, आदिवासी कल्याण, उत्थान के नाम पर सियासत कभी थमती नहीं दिखती, हर राजनीतिक पार्टी उनका सबसे अधिक हितैषी होने का दावा करता है; लेकिन हक़ीक़त कुछ और ही होती है। 21वीं सदी के दो दशक बीत चुके हैं। इसरो भारत को स्पेस के क्षेत्र में बहुत आगे ले जाने के लिए प्रयासरत है। वैज्ञानिक और डॉक्टर भी रोगियों के इलाज को सुलभ बनाने की दिशा में शोध करने में जुटे हैं। शेयर बाज़ार भी रिकॉर्ड बनाता रहता है। पर इसके बीच छत्तीसगढ़ में अंधविश्वास के कारण पाँच लोगों की हत्या हमें लोगों की घटिया मानसिकता को दूर करने के लिए ठोस क़दम उठाने के लिए आईना दिखाती है।

योगी से भी नहीं डर रहे मेरठ के भू-माफ़िया!

 -बेच दी करोड़ों की सरकारी ज़मीन, किसानों की ज़मीनों पर भी करते जा रहे क़ब्ज़ा, कुछ नहीं कर पा रहे अधिकारी

एक तरफ़ जहाँ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश से गुंडों का एनकाउंटर और भू-माफ़ियाओं का बुलडोज़र से सफ़ाया करने में लगे हैं, वहीं कुछ गुंडे और भू-माफ़िया ऐसे भी हैं, जिनके आगे योगी का बुलडोज़र और प्रशासन, दोनों ही पस्त दिखायी देते हैं। क्योंकि उनके सिर पर कुछ भाजपा नेताओं का हाथ है, इसलिए योगी का प्रशासन उनका कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा है। मेरठ में भी ऐसे कई भू-माफ़िया हैं, जो अपनी गुंडागर्दी के दम पर न सिर्फ़ योगी सरकार को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि उनके सुशासन और गुंडाराज मुक्त उनकी सोच पर भारी पड़े हुए हैं। कुछ भाजपा नेताओं की बदौलत ये भू-माफ़िया मेरठ प्रशासन को भी नाच नचाते और मनमानी करते नज़र आ रहे हैं।

स्थानीय लोग और कुछ पीड़ित बताते हैं कि प्रशासन इन भू-माफ़ियाओं के आगे पानी भरता है। पीड़ित किसानों का कहना है कि मेरठ में भू-माफ़ियाओं ने कई किसानों और सरकार की ज़मीनों को भी हड़प लिया है, जिसकी वजह से एक किसान ने पाँच साल पहले आत्महत्या तक कर ली थी। इन भू-माफ़ियाओं ने गुंडागर्दी के दम पर न सिर्फ़ किसानों की ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर लिया है, बल्कि धमकी देते हैं कि उनका कुछ बिगाड़ने वाला कोई माई का लाल पैदा नहीं हुआ है। तो क्या माना जाए? क्या भू-माफ़ियाओं की यह धमकी सीधे-सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उनकी शून्य अपराध की गारंटी, सुशासन के दावे वाली व्यवस्था और उनके प्रशासन के लिए है?

दरअसल, मेरठ के कंकरखेड़ा थाना क्षेत्र के रहने वाले कथित बिल्डर और भू-माफ़िया अखिलेश, भू-माफ़िया रमेश यादव ने स्थानीय किसान सुशील, विरेंद्र, जगत सिंह और बलजीत सिंह गाँव नंगला ताशी, थाना कंकरखेड़ा, ज़िला मेरठ की खसरा संख्या-616 वाली ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने की नीयत से उनकी न्यायालय के निर्देश पर बनायी गयी दीवार तोड़कर किसानों की खेती-बाड़ी ख़राब करते हुए उनका खेती का सामान और कृषि यंत्रों को फेंक दिया और किसानों की ज़मीन में ग़लत तरीक़े से रास्ता बना लिया, जबकि भू-माफ़ियाओं का अपना रास्ता दूसरी दिशा में अलग से मौज़ूद है। फिर भी भू-माफ़िया जबरन तीर्थ कुंज का रास्ता शामली हाईवे की तरफ़ निकालने पर आमादा हैं। इसकी शिकायत पीड़ित किसानों ने कंकरखेड़ा थाने के अलावा ज़िले के तमाम अधिकारियों से भी की; लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि ज़िला प्रशासन दबाव में कार्रवाई करने में नाकाम है। इसके बाद पीड़ित किसानों ने मजबूरन प्रदेश के मुख्य सचिव को 24 जून, 2024 को भी अपनी पीड़ा एक पत्र लिखकर बतायी, जिस पर मुख्य सचिव ने मेरठ के ज़िलाधिकारी, मेरठ मंडल के अपर आयुक्त को उक्त मामले पर संज्ञान लेने के लिए निर्देशित किया; लेकिन इसके बावजूद भी कोई कार्रवाई भू-माफ़ियाओं के ख़िलाफ़ नहीं हुई।

पीड़ित किसानों ने बताया कि उनकी ज़मीन की तारबंदी और दीवार मेरठ मंडल के कमिश्नर द्वारा आदेश के बाद पुलिस सुरक्षा में कई साल पहले करायी गयी थी; लेकिन भू-माफ़िया अखिलेश और भू-माफ़िया रमेश यादव ने अपने गिरोह के साथ मिलकर ने दीवार को जबरन तोड़ दिया। पीड़ित किसानों ने पुलिस और स्थानीय प्रशासन से इस मामले की बार-बार शिकायत की और पुन: दीवार बनवाने की गुहार लगायी; लेकिन न दीवार बनने दी गयी और न ही भू-माफ़िया के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई हुई। जब किसान परिवार ने दीवार बनाने की कोशिश की, तो भू-माफ़ियाओं ने गुंडागर्दी और पुलिस से मिलीभगत के दम पर उन्हें उलटा खदेड़ दिया। तंग आकर किसान रूपेश पवार ने साल 2021 में वाद संख्या 1293/2021 न्यायालय सिविल जज (सीडी), मेरठ में दर्ज किया; जिसके आधार पर 27 अक्टूबर, 2021 को न्यायालय ने भू-माफ़ियाओं को उक्त किसान परिवार की ज़मीन पर क़ब्ज़ा और हस्तक्षेप न करने का आदेश पारित किया था। लेकिन माननीय न्यायालय की बात को भू-माफ़िया ने मानने से इनकार कर ही दिया, स्थानीय प्रशासन ने भी इसकी अवहेलना की। फिर भू-माफ़ियाओं ने भी न्यायालय से इस मामले में हस्तक्षेप के लिए याचिका दायर की, तो न्यायालय ने उनकी याचिका को निरस्त कर दिया। इसके बावजूद भू-माफ़ियाओं ने किसान परिवार की ज़मीन में से जबरन रास्ता बनाये रखा है और ज़मीन के एक बड़े हिस्से पर अपना क़ब्ज़ा जमाने के लिए ज़ोर-जबरदस्ती कर रहे हैं। इस मामले में उप ज़िलाधिकारी के पत्रांक-667/एसटी/एसडीएम ने 01 अगस्त 2024 को ज़िलाधिकारी को पत्र लिखकर भी बताया कि उक्त ज़मीन किसान परिवार की है; लेकिन इसके बावजूद भू-माफ़ियाओं के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई और न ही किसान परिवार की ज़मीन भू-माफ़िया के क़ब्ज़े से मुक्त करायी गयी। किसान परिवार का कहना है कि वे न्याय के लिए दर-ब-दर भटक रहे हैं और उन्हें भू-माफ़ियाओं से जान-माल का ख़तरा भी है।

कुछ ग्राम वासियों और पीड़ित किसानों ने बताया कि भू-माफ़िया अखिलेश और भू-माफ़िया रमेश यादव समेत कई अन्य भू-माफ़ियाओं पर क़रीब 47 यानी चार दज़र्न मुक़दमे दर्ज हैं। इन मुक़दमों में से रेलवे समेत कई सरकारी महकमों की क़रीब 500 करोड़ रुपये की ज़मीन क़ब्ज़ा करके बेचने के मुक़दमे भी हैं। सरकारी ज़मीन बेचने के मामले में इन भू-माफ़ियाओं के ख़िलाफ़ साल 2022 में मेरठ में कई एफआईआर भी दर्ज हुईं, जिसमें ज़मीन की पूरी खसरा खतौनी सहित पूरी जानकारी देने बावजूद इन भू-माफ़ियाओं के ख़िलाफ़ अब तक न तो कोई गुंडा एक्ट लगी, न इनके किसी निर्माण पर बुलडोज़र की कार्रवाई हुई, न कोई चार्जशीट दाख़िल हुई है और न ही इनके ख़िलाफ़ कोई अन्य कार्रवाई हुई।

दरअसल एफआईआर, दूसरे मुक़दमों और जाँच आदेशों के मुताबिक, दो साल पहले भू-माफ़िया अखिलेश, भू-माफ़िया रमेश यादव, भू-माफ़िया सचिन, देवेंद्र निवासी दायमपुर, अशोक मारवाड़ी, नरेश, सुखपाल और अन्य भू-माफ़िया ने एक भाजपा नेता, जो कि स्वयं भी भू-माफ़िया है; के साथ मिलकर मेरठ नगर निगम, मेरठ विकास प्राधिकरण, भारतीय रेलवे और ग्राम समाज की ज़मीन हड़पकर क़रीब 500 करोड़ रुपये से ज़्यादा में बेच दी। इस मामले में इन सभी भू-माफ़ियाओं के ख़िलाफ़ आपराधिक धाराओं- 420, 447, 467, 468, 471 और 120बी के तहत मुक़दमा भी दर्ज हुआ। लेकिन इसके बावजूद उनके ख़िलाफ़ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी। इसी तरह साल 2019 में एक किसान ने इन भू-माफ़ियाओं के द्वारा ज़मीन हड़पे जाने पर ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली थी; लेकिन इन भू-माफ़ियाओं का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका। इस मामले में मेरठ के गाँव नंगला ताशी निवासी दलित किसान कमल सिंह ने अपनी खेती की ज़मीन भू-माफ़िया अखिलेश, सचिन गुप्ता और नीरज को बेची थी। इसमें मुख्य ख़रीदार भू-माफ़िया अखिलेश था। आरोप है कि इन भू-माफ़ियाओं ने किसान की ज़मीन पर चालाकी से क़ब्ज़ा लेकर कूट रचित दस्तावेज़ तैयार कर ज़मीन बेच दी, जिससे तंग आकर किसान ने आत्महत्या कर ली। इन सभी भू-माफ़ियाओं के ख़िलाफ़ रिपोर्ट भी दर्ज हुई थी; लेकिन किसान की मौत के ज़िम्मेदार होने और योगी सरकार के माफ़िया को मिट्टी में मिलाने वाले दावे के बावजूद इन माफ़ियाओं का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका। कंकरखेड़ा निवासी कुछ लोगों से जब इस बारे में पूछताछ की गयी, तो उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मेरठ में इन भू-माफ़ियाओं की तूती बोलती है। इन सभी की गुंडागर्दी चरम पर है। कुछ लोगों ने बताया कि ये भू-माफ़िया ही नहीं हैं, बल्कि छटे हुए बदमाश भी हैं, जो अपनी गुंडागर्दी के दम पर कई काले कारनामे मेरठ में कर रहे हैं। मेरठ के कुछ भाजपा नेताओं की मिलीभगत के चलते इन पर पुलिस प्रशासन तो क्या, डीएम, एसडीएम और एसपी भी कोई कार्रवाई करने से डरते हैं। एक व्यक्ति ने बताया कि एक भू-माफ़िया पीड़ितों को धमकी देता है और सरकार को भी ठेंगे पर रखने की बात कहता है। हालाँकि ये लोगों के दावे हैं, जिन पर हम कोई दावा नहीं कर सकते; लेकिन जो तथ्य और काग़ज़ात हमारे हाथ इस ख़बर की पड़ताल करने में लगे हैं, वो साबित करते हैं कि मेरठ में इन भू-माफ़ियाओं के ख़िलाफ़ तक़रीबन 47 से ज़्यादा एफआईआर, प्रशासनिक शिकायतें और मुक़दमे दर्ज हैं। लेकिन इन भू-माफ़ियाओं का आज तक कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका है और ये सब मिलकर आज भी बेधड़क होकर योगी के सख़्त प्रशासन और भू-माफ़िया व गुंडों के ख़िलाफ़ हो रही कड़ी कार्रवाई के बावजूद अपने अवैध धंधे बेधड़क होकर कर रहे हैं। गाँव नंगला ताशी की एक दलित महिला पूजा पत्नी स्वर्गीय सत्यवान ने बताया कि उसकी ज़मीन पर भू-माफ़िया अखिलेश ने क़ब्ज़ा किया हुआ है। एफआईआर होने और अदालत के क़ब्ज़ा मुक्त आदेश के बावजूद प्रशासन दलित महिला की ज़मीन दिलाने में भू-माफ़िया के सामने बेबस नज़र आता है।

स्थानीय नागरिकों और किसानों का यह भी कहना है कि कुछ सरकारी ज़मीन को तो बेचे हुए दो साल से ज़्यादा का समय हो गया, जाँच के भी आदेश पारित हुए, क़रीब दो दज़र्न रिमाइंडर और नक़्शा-8 के बावजूद इन भू-माफ़ियाओं का कोई बाल भी बाँका नहीं कर सका है। पीड़ित किसानों ने बताया कि सभी भू-माफ़ियाओं की नज़र अभी भी अन्य किसानों और ख़ाली पड़ी सरकार की ज़मीनों पर है, जिसे मौक़ा लगते ही क़ब्ज़ा करके वे बेचने में लगे हैं। मेरठ के भू-माफ़िया अखिलेश के बारे में कहा जाता है कि वह कभी कपड़े सिलने वाला एक मामूली-सा दर्जी था; लेकिन उसने अपराध की दुनिया में क़दम रखने के बाद आज करोड़ों का साम्राज्य खड़ा कर लिया है। इसी प्रकार से दूसरे भू-माफ़िया भी गुंडागर्दी के दम पर पनपे हैं। सवाल यह है कि मुख्यमंत्री योगी के सात वर्षों के शासनकाल में भी इन भू-माफ़ियाओं के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? जबकि इन भू-माफ़ियाओं के ख़िलाफ़ कोई एकाध सुबूत नहीं है, बल्कि रेलवे से लेकर नगर निगम, मेरठ विकास प्राधिकरण, ग्राम समाज और कई किसानों की रिपोर्टों और मुक़दमों से पता चलता है कि प्रशासनिक कार्रवाई इन अपराधियों के ख़िलाफ़ न होने के पीछे कोई बड़ी ताक़त काम कर रही है, जो योगी के सुशासन को भी धत्ता बता रही है। इन भू-माफ़ियाओं के ख़िलाफ़ किसानों की ज़मीनें हड़पने, सरकारी ज़मीनों को क़ब्ज़ा करके बेचने, हत्या, हत्या की धमकी, मारपीट के अलावा दूसरी कई आपराधिक धाराओं के तहत मुक़दमे दर्ज हैं। इनमें रमेश यादव का बेटा अंकुर यादव तो अंतरिक्ष नाम के एक पुलिस सब इंस्पेक्टर के बेटे की हत्या भी कर चुका है। इस मामले में अंकुर यादव को उम्रक़ैद की सज़ा भी हुई थी। लेकिन पैसे, दबंगई और भाजपा नेताओं की शह के चलते उसे जमानत मिल गयी और आज अंकुर यादव उसी रौब और गुंडागर्दी के साथ भू-माफ़ियाओं के साथ मिलकर अपने अवैध धंधे करके ज़िला प्रशासन और मुख्यमंत्री योगी की न्यायिक क़ानून व्यवस्था को पलीता लगाने का काम बख़ूबी कर रहा है। उत्तर प्रदेश की भाजपा इकाई और मुख्यमंत्री योगी आगामी उपचुनाव में सभी 10 सीटें जीतने का दावा तो कर रहे हैं। लेकिन इधर कमज़ोर पड़ती क़ानून व्यवस्था और पक्षपात करता बुलडोज़र कई माफ़ियाओं और गुंडों के हौसले बुलंद कर रहा है। क्या योगी का बुलडोज़र सिर्फ़ दूसरे शहरों के ही भू-माफ़ियाओं और गुण्डों के घरों पर ही चलेगा? मेरठ के भू-माफ़ियाओं और गुंडों पर कब कार्रवाई होगी?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

गाँधी का सपना और खादी का ताना-बाना

महात्मा गाँधी के स्वदेशी आन्दोलन से जुड़ी खादी का सफ़र सादा कपड़ों से शुरू हुआ और 21वीं शताब्दी आते-आते फैशन ट्रेंड बन गया। स्वतंत्रता सेनानियों और राजनेताओं द्वारा पहने जाने वाली खादी अब कई रंगों में उपलब्ध है। लेकिन पहले की अपेक्षा अब खादी पहनना शान माना जाता है। खादी के कपड़ों में अब पहले से ज़्यादा विकल्प भी उपलब्ध हैं। खादी के कपड़ों से लेकर अन्य उत्पादों के व्यापार (टर्नओवर) वित्त वर्ष 2023-24 में 1.55 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच चुका है। इस बढ़त को देखते हुए वित्त वर्ष 2024-25 के लिए खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग ने 1.75 लाख करोड़ रुपये की बिक्री का लक्ष्य रखा है। केवीआईसी के अध्यक्ष मनोज कुमार के अनुसार, खादी में उत्पादन, बिक्री और रोज़गार सृजन के रिकॉर्ड बन रहे हैं। वित्त वर्ष 2013-14 में खादी कपड़ों का उत्पादन 811.08 करोड़ रुपये का था। वित्त वर्ष 2022-23 में यह आँकड़ा 2,915.83 करोड़ रुपये, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 में 3,206 करोड़ रुपये तक पहुँच गया। खादी के कपड़ों की माँग तेज़ी से बढ़ रही है। वित्त वर्ष 2013-14 में खादी फैब्रिक की बिक्री 1,081.04 करोड़ रुपये की हुई, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 में 6,496 करोड़ रुपये तक पहुँच गयी। जी-20 समिट के दौरान भारत मण्डपम् ने विश्व के लोगों को ख़ूब आकर्षित किया। इससे रोज़गार के बड़े अवसर पैदा हुए हैं, ख़ासकर ग्रामीण भारत में। 10 वर्षों में रोज़गार का आँकड़ा 1.30 करोड़ से 1.87 करोड़ तक पहुँच गया। वित्त वर्ष 2013-14 में खादी क्षेत्र में 5.62 लाख नौकरियाँ निकाली गयी थीं, जो वित्त वर्ष 2023-24 में 10.17 लाख हो गयीं। खादी ग्रामोद्योग भवन नई दिल्ली का व्यवसाय 10 वर्षो में 51.13 करोड़ रुपये से 95.74 करोड़ रुपये तक पहुँच गया।

खादी अब एक फैशन स्टेटमेंट यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी एंड वोकेशनल डेवलपमेंट पंजाब यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर अनु गुप्ता का कहना है कि सस्टेनेबिलिटी की चर्चा के बीच खादी का कपड़ा फैशन में आ चुका है। खादी हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है। यह कपड़ा पहले जैसा खुरदरा, मोटा, सूती नहीं रहा, बल्कि अब नरम और बढ़िया सूती और सिल्क कपड़े में बदल गया है। इससे पहनने से लेकर घरों में इस्तेमाल होने वाले कपड़ों के सामान बन रहे हैं। बाज़ार में खादी अपनी बड़ी पैठ बना रहा है। गाँधियन एंड पीस स्टडीज डिपार्टमेंट पंजाब यूनिवर्सिटी की विभाग अध्यक्ष डॉक्टर आशु पसरीचा का कहना है कि उस व$क्त महात्मा गाँधी का खादी के लिए जो सपना था, वो हमें आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने का था। गाँधी चाहते थे कि युवा वर्ग, ख़ासतौर पर गांव के युवा सशक्त बनें। हमारे अपने ही संसाधनों का इस्तेमाल हो। लोग स्वदेशी कपड़े पहनें और हमारी अर्थव्यवस्था मज़बूत हो। हमें विदेशों से कपड़ा न मँगवाना पड़े। पहले महीनों की मेहनत के बाद तैयार होता था; लेकिन अब मशीनों से उतनी मेहनत नहीं लगती है।

हालाँकि महात्मा गाँधी की इस सोच के फलीभूत होने के बीच आम आदमी की पहुँच से खादी दूर होती जा रही है। महात्मा गाँधी ने कहा था कि यदि हमारे अंदर खादी की भावना होगी, तो हम जीवन के हर क्षेत्र में सादगी अपनाएँगे। सबसे अच्छे कपड़े में भी कोई सुंदरता नहीं है, अगर वह भूख और दु:ख पैदा करता है। यह स्थिति आज दिख रही है। क्योंकि भले ही सरकार रोज़गार बढ़ने के दावे कर रही है; लेकिन धरातल पर देखें, तो बेरोज़गारों की संख्या काफ़ी ज़्यादा है। सवाल यह है कि सन् 1918 में स्वदेशी आंदोलन के महत्त्वपूर्ण हिस्से के रूप में गाँधी ने जिस उद्देश्य से खादी का सपना सँजोया, क्या वह आज पूरा हो पा रहा है? गाँधी के सपने में ब्रिटेन से आयातित सामग्री और उत्पादों के उपयोग का बहिष्कार, स्थानीय स्तर पर उद्योग और रोज़गार पैदा करना, अपनी उपज और कौशल का इस्तेमाल करना आदि था। उस समय उनकी इस देशव्यापी पहल ने श्रम के ज़रिये एकता लाने और देश को आत्मनिर्भर बनाने में बहुत मदद की। लेकिन आज घटिया विदेशी कपड़ा 80 फ़ीसदी भारतीयों के तन ढकने का साधन है, या कहें कि मजबूरी। खादी का कपड़ा आरामदायक और पर्यावरण के अनुकूल है। इसमें कार्बन उत्सर्जन की गुंजाइश नहीं है। लेकिन अब यह कपड़ा ग़रीबों के हाथ से निकलकर अमीरों की शान बन गया है, जिसकी एक वजह इसका महँगा होना भी है। इसके साथ ही नक़ली खादी का चलन बहुत बढ़ चुका है।

पीआईबी की रिपोर्ट के अनुसार, खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) खादी के नाम पर उत्पाद बेचने वाली नक़ली या ग़ैर-खादी दुकानों, कम्पनियों और संस्थाओं को जनवरी, 2022 तक 2,172 नोटिस जारी कर चुका था। लगभग 500 संस्थाओं ने अनजाने में ही खादी ट्रेडमार्क का उपयोग करने के लिए माफ़ी माँगी। केवीआईसी इसे गंभीरता से ले रहा है। हालाँकि नक़ली खादी उत्पादों के निर्माण और बिक्री के प्रभाव के संबंध में उसकी तरफ़ से कोई अध्ययन नहीं कराया गया है। खादी के दुरुपयोग के ख़िलाफ़ केवीआईसी द्वारा जो मुक़दमे दायर किये गये हैं, उनमें दिल्ली हाईकोर्ट में खादी एसेंशियल (दिल्ली), इवेरखाडी (उत्तर प्रदेश), भारतीय खादी डिजाइन परिषद (उत्तर प्रदेश), जेबीएमआर एंटरप्राइजेज, खादी प्राकृतिक पेंट (उत्तर प्रदेश),  गिरधर खादी (हरियाणा), खादी बाय हेरिटेज (दिल्ली) आदि मुक़दमे दर्ज हैं। जबकि मुंबई हाईकोर्ट में दायर मुक़दमों में फैब इंडिया (मुंबई), भारत खादी फैशन (महाराष्ट्र), खादी भंडार, पहनावा (महाराष्ट्र-राजस्थान) आदि में नक़ली खादी उत्पादों के निर्माण और बिक्री की जाँच के लिए कुछ सख़्त क़दम भी उठाये गये हैं। जैसे खादी शब्द के लिए ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन लिया गया है। सात ट्रेडमार्क सलाहकार नियुक्त किये गये हैं, जो अनाधिकृत व्यापारियों के ख़िलाफ़ सख़्ती कर रहे हैं। ई-कॉमर्स प्लेटफार्म और सोशल मीडिया से नक़ली खादी उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री से संबंधित लिंक भी हटाये जा रहे हैं। इनमें अमेजॅन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, व्हाट्सएप, यूट्यूब से 2,487 लिंक हटाये गये थे।

किसकी शह पर बढ़े हुए हैं दरिंदों के हौसले

के. रवि (दादा)

हाल ही में ओडिशा के बालासोर में एक 46 साल के दरिंदे ने नौ साल की आदिवासी बच्ची की रेप के बाद ख़ौफ़नाक तरीक़े से हत्या कर दी। पुलिस ने इस 46 साल के दरिंदे को गिरफ़्तार करके बीएनएस की दफ़ा-103, 165, 4(2) और पॉक्सो एक्ट की संबंधित दफ़ाओं के तहत केस दर्ज करके गिरफ़्तार कर लिया है। अब वह दरिंदा 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में है।

उड़ीसा के रेमुना पुलिस के मुताबिक, मामले का पता तब चला, जब आदिवासी लड़की की 30 अगस्त को सड़ी-गली लाश मिली और उसका पोस्टमार्टम कराया गया। ओडिशा में ही सेना के एक अधिकारी और उनकी मंगेतर के साथ थाने में जिस तरह का दुर्व्यवहार हुआ, उसकी जितनी निन्दा की जाए, कम है। इन घटनाओं ने ओडिशा के साथ-साथ समस्त देश को झकझोर दिया। पर वहाँ की मौज़ूदा भाजपा सरकार इस मामले पर ख़ामोश बैठी है और विपक्ष के नेता बीजद अध्यक्ष नवीन पटनायक ने विधानसभा में इसे लेकर सरकार की घेराबंदी की। ओडिशा विधानसभा में पेश किये गये श्वेत पत्र के मुताबिक, ओडिशा में 2023 में हर दिन सात से ज़्यादा रेप और तीन हत्याएँ हुईं। पूरे साल में 2,826 रेप और 1,362 हत्याओं के केस विभिन्न पुलिस थानों में दर्ज हुए। यह हाल तब है, जब वहाँ 619 पुलिस थानों में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए पुलिस हेल्प डेस्क स्थापित हैं। ओडिशा में हुई इस दरिंदगी को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी को फोन करके उनके शासन में आदिवासियों और मज़दूरों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार रोकने की अपील की। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने ओडिशा के मुख्यमंत्री माझी से यह भी कहा कि पश्चिम बंगाल के जो लोग ओडिशा में रहकर काम करते हैं, उन्हें वहाँ बांग्लादेशी कहकर मारा-पीटा जा रहा है और परेशान किया जा रहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने ओडिशा में काम करने वाले अपने राज्य के मज़दूरों से भी वापस लौटने की अपील की है। सवाल ये उठता है कि कोलकाता के आरजी मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर के साथ गैंगरेप और उसकी हत्या के मामले में भाजपा के लोग जिस तरह उछल रहे है और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस्तीफ़े की माँग कर रहे हैं, वे उनकी पार्टी की सरकारों वाले राज्यों में महिलाओं के साथ होने वाली दरिंदगी पर ख़ामोश क्यों हो जाते हैं?

यह माना कि आज के समय में महिलाएँ किसी भी राज्य में सुरक्षित नहीं हैं, पर ये भाजपा वाले वहाँ कोई कांड होने पर क्यों चिल्लाते हैं, जहाँ इनकी पार्टी की सरकार नहीं होती और वहाँ कोई कांड होने पर ख़ामोश क्यों हो जाते हैं, जहाँ इनकी सरकार होती है? उत्तर प्रदेश में राम राज्य का दावा करते हुए भाजपा के लोग महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित इस राज्य को मानते हैं, जहाँ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी यह दावा करते हैं कि उन्होंने गुंडागर्दी ख़त्म कर दी है; पर वहाँ महिलाओं के साथ दरिंदगी के एक से बढ़कर एक मामले बिना नागा सामने आते ही रहते हैं। यही हाल मध्य प्रदेश का भी है।

असल में दरिंदों और उनको बचाने वालों को यह एहसास ही नहीं होता कि जिस महिला या युवती या बच्ची के साथ दरिंदगी होती है, उनका पूरा जीवन नरक बन जाता है। मुंबई में साल 27 नवंबर, 1973 को किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल में अरुणा शानबाग नाम की एक नर्स के साथ ज़ोर-जबरस्ती के साथ दरिंदगी करने वाले बार्ड ब्वाय सोहनलाल वाल्मीकि ने पीड़िता का गला दबाये रखा, जिससे पीड़िता क़रीबन 36 साल ज़िन्दा लाश बनकर रह गयी। बड़ी दर्दनाक ज़िन्दगी गुज़ारने की वजह से अरुणा शानबाग के लिए उनके परिजनों ने इच्छा मृत्यु की माँग की, जिसमें पीड़िता की भी सहमति थी; पर 07 मार्च, 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इस अपील को ठुकराते हुए कहा कि अरुणा को जीना होगा, उन्हें इच्छा मृत्यु की इज़ाज़त नहीं दी जा सकती। क्योंकि यह कहना मुश्किल है कि अरुणा क्या चाहती हैं? उनके हाव-भाव बताते हैं कि उन्हें ज़िन्दगी से अब भी लगाव है। दरिंदगी के 42 साल बाद अरुणा शानबाग को निमोनिया हुआ और वो इस दरिंदगी की दुनिया से हमेशा के लिए अपने सबके लिए एक सवाल छोड़कर चली गयीं कि क्या इस देश में दरिंदों के लिए कोई कड़ी सज़ा नहीं है? क्योंकि अरुणा शानबाग से दरिंदगी करके उन्हें जीते-जी मार देने वाले दरिंदे को सन् 1980 में रहा कर दिया गया। और बेचारी अरुणा को 18 मई, 2015 को मिली तड़प-तड़पकर मौत की सज़ा!

महँगे हुए खाद्य तेल, किसानों को क्या फ़ायदा ?

– पाम ऑयल पर आयात शुल्क लगना अच्छी बात, लेकिन खाद्य तेलों में इसकी मिलावट रुके

योगेश

पाम ऑयल पर केंद्र सरकार ने आयात शुल्क शून्य से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया है। किसान लंबे समय से पाम ऑयल पर आयात शुल्क लगाने और खाद्य तेलों में पाम ऑयल की मिलावट रोकने की माँग कर रहे थे। इसी महीने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि लंबे समय से किसानों की माँग पर निर्णय लेते हुए केंद्र सरकार ने खाद्य तेलों के आयात शुल्क को ज़ीरो (0) फ़ीसदी से बढ़ाकर 20 फ़ीसदी कर दिया है। लेकिन पाम ऑयल पर ही आयात शुल्क 20 प्रतिशत नहीं हुआ है, बल्कि पाम ऑयल से ज़्यादा आयात शुल्क रिफाइंड ऑयल पर 13.75 प्रतिशत बढ़कर 35.75 प्रतिशत हो गया है। पाम ऑयल पर आयात शुल्क लगने से इसका कुल प्रभावी शुल्क 27.5 प्रतिशत हो गया। हालाँकि केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार ने सन् 2023 में पाम ऑयल का आयात शुल्क घटाया था, जो सन् 2021 में 17.5 प्रतिशत था।

अब आयात शुल्क बढ़ने से रिफाइंड ऑयल और दूसरे खाद्य तेल महँगे होने लगे हैं। अभी तक जो सरसों का तेल 130 रुपये से लेकर 140 रुपये किलो था, उसका भाव बढ़कर 150 रुपये से 170 रुपये किलो हो चुका है। इसके अलावा सोयाबीन, मूँगफली, तिल और दूसरे खाद्य तेलों का भाव भी 15 रुपये लीटर से 25 रुपये लीटर तक बढ़ गया है। त्योहारी सीजन में खाद्य तेलों के महँगे होने से कम कमायी वाले लोगों को तकलीफ़ हो रही है। गाँवों में जिन लोगों के पास सरसों हैं, उन्हें छोड़कर तेलों की महँगाई से सब परेशान हैं। पाम ऑयल और रिफाइंड ऑयल पर आयात शुल्क बढ़ने से किसानों को लाभ तब हो सकता है, जब उनकी तिलहन वाली फ़सलों के दाम अच्छे मिलें। हालाँकि अभी तक किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के हिसाब से भी भाव नहीं मिल पा रहा है। केंद्र सरकार द्वारा तय सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,650 रुपये प्रति कुंतल है; लेकिन किसानों को सरसों का भाव 5,000 रुपये प्रति कुंतल से ज़्यादा नहीं मिल पा रहा है। मूँगफली का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6,783 रुपये प्रति कुंतल है। लेकिन किसानों को मूँगफली का भाव 6,000 रुपये प्रति कुंतल भी नहीं मिल पा रहा है। तिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 9,267 रुपये प्रति कुंतल है; लेकिन किसानों को तिल का भाव 8,500 रुपये प्रति कुंतल के आसपास ही मिल पा रहा है। सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,892 रुपये है; लेकिन इसका भाव भी सोयाबीन उगाने वाले किसानों को सरकारी भाव के हिसाब से नहीं मिल पा रहा है। सूरजमुखी का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी 7,280 रुपये प्रति कुंतल है; लेकिन सूरजमुखी उगाने वाले किसान भी कम भाव मिलने को लेकर पिछले कई वर्षों से सरकार से शिकायत कर रहे हैं। किसानों के अधिकार का न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ आड़तियों को मिलता है, जो किसानों की फ़सलें मंडी पहुँचने से पहले ही सस्ते भाव में नक़द ख़रीद लेते हैं। मंडी तक जो मध्यम और बड़े किसान पहुँच जाते हैं, उनकी फ़सलों में मंडी विभाग के अधिकारी और फ़सलों को ख़रीदने वाले मुंशी कमी बताकर भाव गिराने की कोशिश करते हैं। लेबी पर कई अन्य तरह की अड़चनें फ़सलों की ख़रीदारी को लेकर पैदा कि जाती हैं। किसानों की शिकायत रहती है कि उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य पहले ही नहीं मिल पाता है और अगर कुछ फ़सलों का मिलता भी है, तो उसका भुगतान तुरंत नहीं मिलता। किसानों की ये समस्याएँ कोई आज की नहीं हैं; उन्हें कई स्तरों पर हमेशा से तंग किया जाता है।

तिलहन वाली फ़सलों का भाव अच्छा न मिलने के चलते किसानों ने इन फ़सलों को उगाना कम कर दिया है, जिससे देश की बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्य तेलों की आपूर्ति पूरी नहीं हो पाती। केंद्र सरकार खाद्य तेलों की आपूर्ति पूरी करने के लिए पाम ऑयल और रिफाइंड ऑयल को बाहर से मँगाती है। जब सन् 2023 में केंद्र सरकार ने पाम ऑयल पर से आयात शुल्क घटाया, तो खाद्य तेलों में इसका आयात बढ़ने के साथ-साथ इसकी मिलावट भी बढ़ गयी और इसका बुरा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा। हमारे देश में पाम ऑयल का आयात शुल्क बढ़ने से खाद्य तेलों में इसकी मिलावट कम नहीं होगी। क्योंकि व्यापारियों ने आयात शुल्क का ख़र्च निकालने के लिए खाद्य तेलों को महँगा कर दिया है। इसके लिए मिलावटी लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी होगी। किसान आन्दोलन से लेकर आज तक किसान लगातार अपनी माँगों को केंद्र सरकार के सामने रख रहे हैं। किसानों की इन माँगों में न्यूनतम समर्थन मूल्य का गारंटी क़ानून बनाने की माँग भी शामिल है। लेकिन केंद्र सरकार किसानों की हर माँग को अनसुना कर रही है। देशवासियों के बिगड़ते स्वास्थ्य और किसानों को तिलहनी फ़सलों का अच्छा भाव न मिलने के चलते पाम ऑयल के निर्यात पर 90 प्रतिशत निर्यात शुल्क बढ़ाने और खाद्य तेलों में पाम ऑयल की मिलावट को पूरी तरह प्रतिबंधित करने के लिए किसान महापंचायत ने 11 सितंबर, 2024 को देश के प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखकर प्रार्थना की थी। इससे पहले भी किसान महापंचायत ने कई बार खाद्य एवं विपणन मंत्रालय से लेकर प्रधानमंत्री से पाम ऑयल की खाद्य तेलों में हो रही मिलावट को रोकने और पाम ऑयल पर आयात शुल्क बढ़ाने को लेकर माँग की थी।

पाम ऑयल के बारे में डॉक्टर बताते हैं कि यह खाने लायक नहीं होता है और न ही जल्दी पचता है। पाम ऑयल ताड़ के पेड़ के फलों से निकलता है, जो उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में उगते हैं। इस तेल को पचाने के लिए गर्म स्थानों पर रहने लोगों की क्षमता ज़्यादा होती है। इसका उपयोग डिटर्जेंट पाउडर, साबुन और लिपस्टिक, ब्लीच आदि सौंदर्य प्रसाधन बनाने में किया जाता है। पाम ऑयल का उपयोग जैव ईंधन के रूप में भी किया जाता है। लेकिन हमारे देश में इसे खाद्य तेल के रूप में उपयोग किया जाने लगा है, जिससे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। मिलावट करने वाले इसका व्यापार करके अंधाधुंध कमायी कर रहे हैं; क्योंकि यह खाद्य तेलों से काफ़ी सस्ता पड़ता है। हमारे देश के अलावा इसका व्यापार कई एशियाई देशों में होता है; लेकिन विकसित देशों में इसे नहीं खाया जाता है। इस तेल का उपयोग पैकिंग वाले फूड में ज़्यादा होता है, जिससे लंबे समय तक खाने की चीज़ें ख़राब नहीं होती हैं। आइसक्रीम बनाने में पाम ऑयल का उपयोग होने लगा है, जो बहुत नुक़सान पहुँचाने वाला होता है। शरीर में विटामिन-ए की कमी को दूर करने वाली दवाओं में भी पाम ऑयल का उपयोग होता है। इसके अलावा मलेरिया, दिल के रोगों, कैंसर और दूसरी कई बीमारियों को ठीक करने वाली दवाओं में भी पाम ऑयल का उपयोग किया जाता है। लेकिन पाम ऑयल के अच्छे खाद्य तेल के रूप में खाने की सलाह कभी डॉक्टर नहीं देते हैं। पाम ऑयल को अगर खाना ही पड़े, तो इसकी मात्रा दो से 10 प्रतिशत से ज़्यादा खाद्य तेलों में नहीं होनी चाहिए।

हमारे देश में भी ताड़ की खेती हो रही है। हमारे देश में पाम ऑयल उत्पादन 4,00,000 टन है। वित्त वर्ष 2030-2031 तक पाम ऑयल का उत्पादन बड़कर 1.2 मिलियन से 1.5 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुँचने की उम्मीद है। हमारे देश मे अभी ताड़ की खेती 3,75,000 हेक्टेयर तक फैली है। अगले साल तक ताड़ की खेती बढ़कर 4,55,000 हेक्टेयर से ज़्यादा होने की संभावना है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी साल 1990 के दशक से ताड़ की खेती होती रही है। साल 2016 से अब तक अकेले नागालैंड में ताड़ की खेती में 3,000 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। लेकिन हमारे देश में खाद्य तेलों की बढ़ती माँग के कारण केंद्र सरकार ने 1990 के दशक से आयात पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश की थी; लेकिन पिछले कुछ वर्षों से पाम ऑयल पर आयात शुल्क शून्य होने से इसका आयात बढ़ गया और आयात बढ़ने से ही इसकी मिलावट खाद्य तेलों में बढ़कर 40 प्रतिशत से 74 प्रतिशत तक पहुँच गयी, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत घातक है। हमारे देश में पिछले दो दशकों में पाम ऑयल की खपत में लगभग 230 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। आज हमारा देश पाम ऑयल का विश्व में सबसे बड़ा आयातक है। आज हमारी रसोइयों में खाद्य तेलों में मिलावट के रूप में लगभग 56 प्रतिशत से ज़्यादा पाम ऑयल पहुँच चुका है, जो हमारे स्वास्थ्य को बिगाड़ रहा है।

वित्त वर्ष 2015-16 से केंद्र सरकार ने तिलहन और पाम ऑयल को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय मिशन की शुरुआत की। राष्ट्रीय मिशन – पाम तेल (एनएम ईओ-ओपी) नीति-2021 के साथ केंद्र सरकार अब पाम ऑयल और तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने पर ज़ोर दे रही है। हमारे देश में 90 प्रतिशत से ज़्यादा पाम ऑयल इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड से आता है।

वन विभागों ने राष्ट्रीय वन सर्वेक्षणों की रिपोर्ट में भ्रामक रिपोर्ट में ताड़ की खेती से हमारे पर्यावरण को होने वाले नुक़सान को छुपाया है, तो डॉक्टरों ने पाम ऑयल के खाने से होने वाले स्वास्थ्य नुक़सान नहीं बताये हैं। खाद्य तेलों को बेचने वाली कम्पनियों ने भी अपने तेल की बोतल पर उसी तेल के बारे में शुद्ध या 100 प्रतिशत शुद्ध लिख रखा है, जिससे उपभोक्ता भी पाम ऑयल को बिंदास होकर खा रहे हैं।

पाम ऑयल पर आयात शुल्क लगाने और खाद्य तेलों में पाम ऑयल की मिलावट रोकने के लिए किसानों ने केंद्र सरकार तक कई बार अपनी आवाज़ पहुँचाने की कोशिश की; लेकिन किसान सफल नहीं हुए। किसानों की सरसों की फ़सल सस्ती ख़रीदारी जाने के कारण 06 अप्रैल, 2023 को पूरे देश के किसानों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर सरसों सत्याग्रह के नाम से प्रदर्शन करके उपवास किया था। लेकिन केंद्र सरकार ने उनकी माँगों को अनसुना कर दिया। अब पाम ऑयल का आयात शुल्क 20 प्रतिशत करके केंद्र सरकार ने अपना राजस्व बढ़ाने का इंतज़ाम किया है। इसका पाम ऑयल की मिलावट पर कोई असर नहीं पड़ेगा। पाम ऑयल की मिलावट रोकने के लिए पूरे देश की जनता को इसका विरोध करना पड़ेगा।

मरने के लिए तत्पर

पंडित प्रेम बरेलवी

मनुष्य से उपद्रवी दुनिया में कोई दूसरा जीव नहीं है। हर काल में लड़ाई-झगड़ा और दूसरी तरह की मुसीबतें खड़ी करने पर आमादा मनुष्य मौत से बचने की कोशिशों में मरने के लिए हमेशा तत्पर रहा है। छोटी-मोटी बस्तियों के गली-मोहल्लों से लेकर देशों के टकराव, मुनाफ़ा कमाने की अंधी दौड़, एक-दूसरे को तबाह करने, पीछे धकेलने की साज़िशें और ख़ुद आगे बढ़ने की कोशिशों में हर दिन मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य को नुक़सान पहुँचाने या उसे समाप्त करने में लगा है।

हाल के युद्धों और साज़िशन रचे जा रहे दूसरे चक्रव्हूयों को देखकर लगता है कि दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी है। ऐसे समय में भारत के ही कुछ नेता इस गौरवशाली देश की शाख को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। उन्हें न विदेश नीति की समझ है और न ही देश की भौगौलिक और सामाजिक परिस्थितियों की कोई जानकारी है। स्थिति यह हो चुकी है कि भारत के सभी पड़ोसी देश तो आज भारत के दुश्मन हो ही गये हैं, रूस जैसे मित्र देश भी अब विरोधियों की क़तार में खड़े हैं। अमेरिका, जिस पर हम कभी भरोसा नहीं कर सकते; उसकी चरण-वंदना से आख़िर क्या मिला और आगे भी क्या मिलेगा? यह सवाल देश को अपनी बपौती समझकर मन-मुताबिक चलाने वालों से पूछा जाना चाहिए।

रूस-यूक्रेन के बाद इजरायल और फिलस्तीन के बीच छिड़ा युद्ध इजरायल-ईरान से होते हुए इजरायल और बेरूत के युद्ध तक पहुँच चुका है। यानी इजरायल ने अपनी तकनीक और हथियारों के अहंकार में कई देशों से दुश्मनी ले ली है। हाल ही में बेरूत पर उसके हमले में हिजबुल्‍लाह प्रमुख हसन नसरल्‍लाह और उनकी बेटी जैनब की मौत हो गयी, जिसकी वजह से तनाव इतना बढ़ गया है कि अब इस युद्ध में कई और देश भी कूद सकते हैं। भारत की युद्ध विराम और विश्व शान्ति की अपील भले ही एक अच्छा क़दम है। लेकिन इजराइल और यूक्रेन के साथ भारत सरकार के खड़े होने से कई समस्याएँ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को आ सकती हैं। हालाँकि भारत वैश्विक ताक़तों में से एक है, भले ही यहाँ की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा में कुछ लोग इसे कमज़ोर करने की कोशिश में लगे हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं कि देश में हर छोटा-बड़ा चुनाव जीतने की कोशिशों के लिए किसी भी हद को पार करने की चाल ने भारतीय राजनीतिज्ञों को देशद्रोहियों क़तार में खड़ा कर दिया है, भले ही वे देशभक्ति दिखाने का नाटक कर रहे हैं। यहाँ तक की देश की जनता के साथ कई तरह से खिलवाड़ कर रहे हैं। चाहे वह कोरोना टीका लगाने की जबरदस्ती रही हो या फिर खाद्यान्नों में मिलावट से लेकर टैक्स के नाम पर लोगों की जेब से ज़्यादा-से-ज़्यादा पैसा निकालने की कोशिश; हर तरह से आम लोगों को तबाह किया जाना उन्हें मारने की कोशिश ही कही जाएगी। यह खेल दुनिया के हर देश में चल रहा है; कहीं ज़्यादा, तो कहीं कम। लेकिन दूसरों को मारने की कोशिश करने वाले यह भूल चुके हैं कि एक दिन उन्हें भी मरना है। हो सकता है कि मारने वाले और भी बुरी दुर्दशा से मरें। फिर भी इन हत्यारों को किसी का डर नहीं है। यह जानते हुए भी कि वे कितना भी उपद्रव कर लें, मरेंगे तब भी।

आज दुनिया में जिस तरह से लोगों को स्वस्थ रखने की सलाह देकर, उनके स्वास्थ्य पर चिन्ता जताकर उन्हें हर रोज़ नयी-नयी बीमारियों का शिकार बनाया जा रहा है, उसी तरह तरह भलाई का स्वप्न दिखाकर लोगों को मौत के कुएँ में फेंका जा रहा है। और यह मानव-सेवा का नाम लेकर दुनिया भर के देशों को चलाने वाले सफ़ेदपोश कर कर रहे हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। कोरोना-टीका लगने के बाद जिस तरह से हृदयाघात के मामलों के बढ़ रहे हैं, उससे हैरानी होती है कि कैसे कोई इतना निर्मम हो सकता है? क्या ये लोग मनुष्य हैं भी? राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के चौंकाने वाले आँकड़े बताते हैं कि 2022 में देश भर में 56,653 लोगों की अचानक मौत हुई, जिसमें से 57 प्रतिशत मौतें हृदयाघात से हुईं। मरने वालों में से एक-तिहाई से ज़्यादा लोग 45 से 60 वर्ष की आयु वर्ग के थे। कैसे कोई अपने क्षणभंगुर स्वार्थों के लिए किसी की जान ले सकता है? यह सवाल मनुष्यों के लिए है, दुष्टों के लिए नहीं। क्योंकि दुष्टों का कोई धर्म अथवा ईमान नहीं होता।

हालाँकि इस बीच अच्छी ख़बर यह है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा की बैठक में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ बौखलाये हुए दिखे, जिसकी वजह पाकिस्तान के दोस्‍त तुर्की के कश्मीर के मुद्दे पर ख़ुद को किनारे कर लेना है, जिससे कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्‍तान अब वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ चुका है। 21 अप्रैल, 1948 को अपनाये गये सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव-47 और सीमा सुरक्षा नियमों के तहत पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ नहीं कर सकता। लेकिन पाकिस्तान की तरफ़ से न आज तक सैन्य घुसपैठ रुकी है और न ही आतंकवादियों की घुसपैठ रुकी है। आये दिन हो वाले आतंकी हले और कारगिल युद्ध इसके जीते-जागते उदाहरण हैं। पाकिस्तान की इसी घुसपैठ को लेकर तनाव चलता रहता है।

आस्था से खिलवाड़

– तिरुपति मंदिर के प्रसाद में मांसाहार मिलना सदियों की सनातन परंपरा को बर्बाद करने की साज़िश !

धर्म के नाम पर लोगों की आस्था से खिलवाड़ या फिर ठगी हो, तो बहुत धक्का लगता है। लेकिन अब धर्म के नाम पर लोगों की आस्था से खिलवाड़ और उनके साथ ठगी ही नहीं होती है, बल्कि लोग भगवान को भी धोखा देने से बाज़ नहीं आते हैं। आंध्र प्रदेश में तिरुमला पर्वत पर स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद वाले लड्डुओं में जिस तरह से पशुओं चर्बी और मछली के तेल का इस्तेमाल किया जा रहा था, वो न सिर्फ़ श्रद्धालुओं की आस्था से खिलवाड़ है, बल्कि भगवान को भी धोखा देने जैसा है।

दुनिया के सबसे अमीर मंदिरों में आने वाले तिरुपति बालाजी मंदिर में आस्था से खिलवाड़ करने के इस मामले ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। इससे संत समाज और श्रद्धालुओं में आक्रोश है। लेकिन ज़्यादातर ब्राह्मण समाज और भाजपा सरकारें इस मामले पर ख़ामोशी साधे हुए हैं। इसकी वजह यह है कि आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी, भाजपा और जनसेना पार्टी की मिली-जुली सरकार है। हाल ही में केंद्र में तीसरी बार प्रधानमंत्री मोदी को अपनी सरकार बनाने के लिए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने अपने 16 सांसदों का समर्थन दिया हुआ है। इसलिए मंदिर के प्रसाद में गाय और सूअर जैसे पशुओं की चर्बी और मछली का तेल होने के बाद भी किसी दोषी के ख़िलाफ़ भाजपा नेता और कार्यकर्ता हंगामा करते नज़र नहीं आये। लेकिन ऐसा कोई मामला किसी विपक्षी पार्टी की सरकार वाले राज्य में हुआ होता, तो अब तक प्रदर्शन, तोड़फोड़, एफआईआर, गिरफ़्तारियाँ और न जाने क्या-क्या हो गया होता। उस राज्य में उपद्रव हो रहा होता और सरकार गिराने की माँग की जा रही होती। लेकिन तिरुपति मंदिर में इतनी बड़ी गड़बड़ी होने के बाद भी भाजपा में कहीं से चूं तक की आवाज़ नहीं आ रही है। हालाँकि कुछ अराजक तत्त्वों ने आंध्र प्रदेश के अनंतपुर ज़िले में एक मंदिर में खड़े राम-रथ को जला दिया, जिसकी ख़बर को दबाने के आरोप लगे।

ग़ौरतलब है कि हाल ही में गुजरात के आणंद में स्थापित राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी), सेंटर फॉर एनॉलिसिस एंड लर्निंग इन लाइव स्टॉक एंड फूड (सीएएलएफ) की तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद के बारे में सामने आयी रिपोर्ट ने पूरे देश को चौंका दिया है। इस रिपोर्ट में एनडीडीबी-सीएएलएफ ने दावा किया है कि तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद वाले लड्डुओं में सूअर और गाय की चर्बी और मछली के तेल का इस्तेमाल हो रहा है। एनडीडीबी-सीएएलएफ की मंदिर के प्रसाद में पशुओं की चर्बी और मछली के तेल की पुष्टि के बाद इस पर विवाद उठ खड़ा हुआ। आंध्र सरकार पर हिंदू धर्म की आस्था को प्रभावित करने के आरोप लगने लगे। संतों-महंतों ने इसे गंभीर और श्रद्धालुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ मानते हुए कहा कि ये मंदिरों की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का कुत्सित प्रयास है, जिसमें प्रसाद को दूषित करने वाले हर दोषी के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। बता दें कि साल 2009 में स्थापित हुई एनडीडीबी-सीएएलएफ लेबोरेटरी में दूध, दूध उत्पादों से बनी सभी खाद्य सामग्रियों और पशुओं के आहार की गुणवत्ता के मापदंडों का परीक्षण किया जाता है। हालाँकि एआर डेयरी फूड्स ने कहा है कि कम्पनी ने बिना मिलावट का शुद्ध घी ही मंदिर को दिया है। जुलाई में ही कम्पनी ने टीटीडी को 16 टन घी की आपूर्ति की थी।

जो जानकारी सामने आयी है, उसमें कहा जा रहा है कि मंदिर के प्रसाद में मांसाहार की मिलावट की ख़बर से तिरुपति मंदिर में श्रद्धालुओं का आना कम हुआ है, जिससे मंदिर में आने वाला चढ़ावा काफ़ी कम हो गया है। हालाँकि अब कुछ लोग चर्बी को पशुओं से मिलने वाली वसा बता रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि फिर मंदिर की शुद्धि क्यों करायी गयी? तिरुपति बालाजी मंदिर के ट्रस्ट तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के कार्यकारी अधिकारी श्यामला राव ने भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मंदिर के प्रसाद में पशुओं की चर्बी और मछली के तेल की मिलावट की बात की पुष्टि की थी। 23 जुलाई को भी श्यामला राव ने मीडिया से कहा था कि कार्यभार सँभालने के बाद मुख्यमंत्री ने प्रसाद की गुणवत्ता के बारे में उन्हें बताया, तो उन्होंने इस पर ध्यान दिया। उन्होंने कहा कि उस समय पाँच कम्पनियाँ मंदिर में घी की आपूर्ति करती थीं। घी की गुणवत्ता को लेकर उन्होंने कम्पनियों को चेतावनी भी दी थी, जिसके बाद चार कम्पनियों ने आपूर्ति में सुधार किया; लेकिन एक कम्पनी ने ऐसा नहीं किया, जिसे हमने ब्लैकलिस्ट करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले तमिलनाडु की एआर डेयरी फूड्स कम्पनी से घी के 10 टैंकर आये थे, जिनमें से छ: टैंकर घी का इस्तेमाल पशुओं की चर्बी और मछली के तेल की मिलावट की बात सामने आने तक हो चुका था। लेकिन संदेह होने पर बचे हुए चार टैंकरों के नमूनों को जाँच के लिए भेजा गया, जिसकी रिपोर्ट में घी में मिलावट की बात का पता चली। बता दें कि चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली नयी सरकार के गठन के बाद ही श्यामला राव को टीटीडी का कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया था।

बता दें कि मंदिर में हर रोज़ क़रीब 3,00,000 से ज़्यादा लड्डू बनाये जाते हैं, जिन्हें साइज के हिसाब से 100 रुपये से लेकर 500 रुपये तक में बेचा जाता है। इस प्रसाद को बेचकर ही मंदिर को क़रीब 500 करोड़ रुपये की सालाना कमायी होती है। पूर्व सांसद और अयोध्या हिंदू धाम वशिष्ठ भवन के वेदांती डॉ. राम विलास वेदांती ने भी प्रसाद में पशुओं की चर्बी और मछली का तेल मिलाये जाने की घटना की निंदा की। उन्होंने इस घटना को संतों को आक्रोशित करने वाला बताते हुए कहा कि यह केवल भक्तों के साथ ही नहीं, बल्कि भगवान के साथ भी विश्वासघात है। इस कुकृत्य के पीछे जो साज़िश है, उसका पर्दाफ़ाश होना चाहिए। और जो भी इस कुकृत्य का दोषी है, उसे ऐसी सज़ा दी जानी चाहिए कि कोई भी आगे से ऐसा घिनौना काम करने की हिम्मत न जुटा सके। बता दें कि अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा के समय प्रसाद के लिए तिरुपति बालाजी से ही एक लाख लड्डू आये थे।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक, मंदिर कमेटी ने 12 मार्च, 2024 को एक टेंडर जारी किया था, जिसके लिए घी और अन्य सामग्री की आपूर्ति के लिए 08 मई तक अंतिम रूप दिया गया। 15 मई से घी और दूसरी सामग्री की आपूर्ति शुरू कर दी गयी। कम्पनी ने मंदिर को बाज़ार से बहुत ही सस्ता सिर्फ़ 319 रुपये किलो के हिसाब से गाय के घी की आपूर्ति की। लेकिन जाँच करने वाली कम्पनी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 17 जुलाई को नमूने मिले और 23 जुलाई को जाँच पूरी करने के बाद प्रसाद में मांसाहार की मिलावट पायी गयी। जबकि तिरुपति बालाजी मंदिर जाने वाले श्रद्धालु शुद्ध शाकाहारी होते हैं, जिनमें से ज़्यादातर भक्त लहसुन-प्याज तक नहीं खाते हैं।

जाँच रिपोर्ट में कहा गया है कि घी में एस वैल्यू में सभी नमूने सभी पाँच पैमानों पर फेल रहे। घी में पशुओं की चर्बी, मछली के तेल के अलावा सोयाबीन, सूरजमुखी, रेपसीड, जैतून, नारियल, काटन सीड्स और पाम के बीजों की भी मिलावट हो रही थी। हालाँकि अभी तक साफ़ नहीं हुआ है कि मंदिर के प्रसाद में पशुओं की चर्बी और मछली के तेल की मिलावट के अलावा पाम तेलों की मिलावट भी हो रही थी या नहीं।

एनडीडीबी ने नमूनों की जानकारी को गोपनीय बताते हुए कहा कि नमूने भेजने वाले की जानकारी और शहर का नाम नहीं दिया गया है। नमूने कहाँ से आये हैं, इसकी जानकारी लैब के पास नहीं है। लेकिन उसने जाँच में घी में मिलावट का दावा किया है। एनडीडीबी ने तर्क दिया है कि 15 टन देशी घी के लिए गाय का क़रीब छ: लाख लीटर दूध चाहिए, जिसकी आपूर्ति को लेकर संदेह है कि कम्पनी के पास इतना ज़्यादा गाय का दूध कहाँ से आया? क्योंकि कम्पनी के पास दूध इकट्ठा करने की कोई व्यवस्था नहीं है। टीटीडी गवर्निंग काउंसिल के अध्यक्ष और कई सदस्यों ने कहा है कि वाईसीपी और टीडीपी की सरकारों में कई बार घी की ख़राब गुणवत्ता के चलते घी के टैंकर वापस किये गये थे। कुछ लोगों का कहना है कि 319 रुपये किलो के हिसाब से गाय का घी कहीं भी नहीं मिलता है। इसलिए इसमें मिलावट करने वाली कम्पनी के साथ-साथ मंदिर ट्रस्ट की भी ग़लती है कि वह सस्ते घी के चक्कर में श्रद्धालुओं की आस्था से खिलवाड़ कर रहा था।

हालाँकि विवाद रोकने की कोशिशों के बाद भी इस मामले पर राजनीति शुरू हो गयी है। विपक्षियों ने मंदिर के प्रसाद में मिलावट को हिंदुओं की आस्था से खिलवाड़ और गहरी साज़िश बताते हुए कार्रवाई की माँग की है। तिरुमला की ट्रेड यूनियन के नेता सैद मुरली ने कहा है कि विरोधियों को सरकार और मंदिर प्रशासन को निशाना बनाने के लिए राजनीति नहीं करनी चाहिए। अगर इस मामले में वाक़ई ग़लती की गयी है, तो बिना किसी भेदभाव के कार्रवाई होनी चाहिए। तेलुगु देशम पार्टी के नेता ओ.वी. रमन ने कहा है कि कर्नाटक में दूसरे राज्यों से ज़्यादा गायें मौज़ूद हैं। लेकिन मंदिर ट्रस्ट ने कर्नाटक डेयरी नंदिनी से महँगा बताकर घी लेना बंद कर दिया और निजी कम्पनियों से कम मूल्य पर घी की ख़रीदारी करनी शुरू कर दी। अभी भी घी की आपूर्ति का 35 प्रतिशत घी नंदिनी डेयरी से ही मँगाया जाता है और बाक़ी 65 प्रतिशत घी की आपूर्ति निजी कम्पनियाँ करती हैं। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने कहा है कि चंद्रबाबू नायडू का 100 दिन का शासन अच्छा नहीं रहा और इससे ध्यान भटकाने के लिए उन्होंने यह मुद्दा उठाया है। हिंदू साधुओं में बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने आंध्र प्रदेश सरकार से दोषियों को फाँसी की सज़ा देने की माँग की है। तिरुपति मंदिर के बाद उत्तर प्रदेश के वृंदावन की प्रसाद की दुकानों और राजस्थान के डोंगरगढ़ के एक देवी के मंदिर परिसर की दुकानों में छापेमारी हुई, जिससे दोनों जगह के प्रसाद विक्रेताओं में हड़कंप मच गया।

इस मामले में 30 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने पाँच याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि रिपोर्ट को देखकर प्रथम दृष्टया लग रहा है कि प्रसाद में मिलावटी सामग्री का उपयोग नहीं हुआ। हम उम्मीद करते हैं कि भगवान को तो राजनीति से दूर रखो, भक्तों की आस्था का सवाल है ये। जब आरोपों की जाँच के लिए एसआईटी बनायी गयी, तो बिना नतीजे के मीडिया में बयान देने की क्या ज़रूरत थी?

बता दें कि तिरुपति बालाजी मंदिर की अनुमानित संपत्ति क़रीब 3,00,000 करोड़ रुपये की है, जो देश की कई बड़ी कम्पनियों की कुल संपत्ति से भी कई गुना ज़्यादा है। मंदिर का क़रीब 8,496 करोड़ रुपये की क़ीमत का 11,329 किलो सोना बैंकों में जमा है। इसके अलावा बैंकों में 12,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा की एफडी भी मंदिर की है। पूरे भारत में मंदिर की कुल 960 संपत्तियाँ हैं, जिनमें से 7,123 एकड़ ज़मीन है। इस एक मंदिर में हर साल क़रीब 650 करोड़ रुपये से ज़्यादा का चढ़ावा आता है। तिरुपति बालाजी मंदिर सदियों की सनातन परंपरा का जीवंत रूप है। इसके बाद भी मंदिर में आस्था के साथ खिलवाड़ क्यों हो रहा था? और कौन लोग यह सब कर रहे थे? इसका पता लगाकर उन्हें सज़ा देने की ज़रूरत है।

मौत बिकाऊ है

– चीन का खतरनाक मांझा भारत में प्रतिबंधित होने के बाद भी धड़ल्ले से बिक रहा है!

इंट्रो- चीन में बना सामान न सिर्फ घटिया है, बल्कि उससे मानव-जीवन को खतरा पैदा हो चुका है। भारत में आयातित चीन के सामान को हम मौत का सामान कहें, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। चीन से आयातित सामान में से पतंग उड़ाने वाली डोर, जिसे मांझा कहा जाता है; भी एक ऐसा ही जानलेवा प्लास्टिक का सिंथेटिक धागा है। अब तक चीन के मांझे की वजह से सैकड़ों लोगों, छोटे पशुओं, पक्षियों और समुद्री जीवों की जान जा चुकी है। चीन का यह जानलेवा मांझा भारत में प्रतिबंधित होने के बावजूद आज भी देश की राजधानी दिल्ली से लेकर आगरा, कोलकाता और दूसरे कई शहरों के बाजारों में कथित रूप से बिक रहा है। इस मांझे की उपलब्धता को लेकर ‘तहलका’ एसआईटी की पड़ताल पर आधारित यह खुलासा एक परेशान करने वाली वास्तविकता को देश के सामने लेकर आया है कि चीन के मांझे पर प्रतिबंध का बहुत कम या कहें कि कोई प्रभाव नहीं पड़ा है और यह धड़ल्ले से बिक रहा है। पढ़िए, तहलका एसआईटी की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट :-

‘मुझे लगता है कि आप हमारी बातचीत रिकॉर्ड कर रहे हैं। स्टिंग कर रहते हो क्या? अगर आप मुझसे चाइनीज मांझा खरीदना चाहते हैं, तो खरीद लीजिए। आप इतने सारे सवाल क्यों पूछ रहे हैं? ऐसा लगता है, जैसे आप मुझे रिकॉर्ड कर रहे हैं! कृपया सुनिश्चित करें कि मैं परेशानी में न पड़ूँ।’ -उत्तर प्रदेश के आगरा के एक पतंग विक्रेता नासिर खान उर्फ मुन्ना ने यह बात ग्राहक बनकर उसकी दुकान पर गये ‘तहलका’ रिपोर्टर को प्रतिबंधित चीन का मांझा बेचने की पेशकश करते हुए जोर देकर शक करते हुए कही।

‘मैंने अपने कूरियर के माध्यम से कोलकाता से बैंगलोर तक पांच किलोग्राम गांजा (मारिजुआना- एक प्रतिबंधित ड्रग) की आपूर्ति की है। मैंने पैकेट पर दवा लिखा और यह बिना किसी जांच के पास हो गया। इसी तरह मैं कूरियर सेवा का उपयोग करके कोलकाता से दिल्ली तक चाइनीज मांझा भेजूँगा। कोलकाता में भी चाइनीज मांझे पर प्रतिबंध है; लेकिन इसे चुनिंदा ग्राहकों को चोरी-छिपे बेचा जाता है। मैं नियमित रूप से दिल्ली को इसकी आपूर्ति कर सकता हूं।’ यह दावा कोलकाता के एक अन्य प्रतिबंधित चाइनीज मांझा विक्रेता राजेश सिंह (बदला हुआ नाम) ने ‘तहलका’ रिपोर्टर के सामने किया।

‘शाहदरा, दिल्ली का एक मांझा विक्रेता श्याम कुमार 500 रुपए प्रति रोल (मांझे का एक लच्छा) चाइनीज मांझे की आपूर्ति करने के लिए तैयार है। हालांकि श्याम अनजान लोगों से मिलने से सावधान रहता है और फोन पर बात नहीं करना चाहता। वह मेरे माध्यम से सौदा करने को तैयार है।’ -यह बात दिल्ली के जावेद खान (बदला हुआ नाम) ने ‘तहलका’ के रिपोर्टर से कही।

भारत में पतंग उड़ाने का महत्त्वपूर्ण पुरातन और भावनात्मक महत्त्व है। हालांकि पतंग उड़ाने के लिए अवैध चीन के प्लास्टिक के खतरनाक केमिकल और कांच के लेप से बनाये हुए मांझे का अनियंत्रित उपयोग भारत के निवासियों के लिए घातक साबित हुआ है। प्लास्टिक जैसा महसूस होने वाले नायलॉन के धागे से बना चाइनीज मांझा पतला होता है और आसानी से पतंग उड़ाने में मदद करता है। यद्यपि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थानीय क्षेत्रों में भी निर्मित होता है, जिसका प्राथमिक घटक (सिंथेटिक पॉलीप्रोपाइलीन) चीन से प्राप्त किया जाता है।

भारत में हर साल चाइनीज मांझे से कई मौतें होती हैं और बहुत लोग इससे घायल भी होते हैं। ऐसे मामले आमतौर पर स्वतंत्रता दिवस और मकर संक्रांति से पहले के हफ़्तों में बढ़ जाते हैं, जब राजधानी से लेकर दूसरे शहरों में अधिकांश लोग अपनी-अपनी छतों से या खुले मैदानों में जाकर पतंग उड़ाते हैं। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, कई लोगों की डोर से गला कटने से मौत हो चुकी है। यह नुकसान केवल इंसानों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पशु-पक्षी भी इसके शिकार हो रहे हैं और इस मांझे से पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है। दशकों से चाइनीज मांझे से जुड़ी घटनाएं एक बढ़ता खतरा बन गयी हैं। परिणामस्वरूप, सन् 2017 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने देश भर में ग्लास-कोटेड धागों की बिक्री, निर्माण और आपूर्ति पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन प्रतिबंध के बावजूद चाइनीज मांझे की भारत में भारी मांग बनी हुई है। भारतीय मांझे की तुलना में यह सस्ता और प्रतिस्पर्धियों की पतंग काटने में अधिक प्रभावी है। प्रतिबंधित और संभावित घातक डोर को बेचने के आरोप में देश भर में कई गिरफ्तारियां की गयी हैं; लेकिन पुलिस की सख्त कार्रवाई के दावों के बावजूद बिक्री जारी है।

‘तहलका’ ने आगरा, कोलकाता और दिल्ली में प्रतिबंधित चाइनीज मांझे की कथित बिक्री की गहन पड़ताल की। जांच में पाया गया कि प्रतिबंध काफी हद तक काग़ज़ों तक ही सीमित है। इन शहरों में पतंग आपूर्तिकर्ता प्रतिबंधित डोर बेचते हुए कैमरे में क़ैद हुए। जांच के पहले पड़ाव में ‘तहलका’ रिपोर्टर ने नकली ग्राहक बनकर आगरा के दुकानदार नासिर से बात की। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने इस बारे में गहन जानकारी जुटाने के लिए दिल्ली में अपने मनगढ़ंत पतंग व्यवसाय बताकर नासिर से चाइनीज मांझे की नियमित आपूर्ति की मांग की। रिपोर्टर ने अवैध रूप से चाइनीज मांझा बेचने वालों की तलाश करते हुए आगरा के नासिर से संपर्क किया।

रिपोर्टर : मांझा कौन-सा है आपके पास?

नासिर : वही है, जो आपने मंगाया है।

रिपोर्टर : चीन का?

नासिर : प्लास्टिक का बोलते हैं, चीन का।

रिपोर्टर : बोलते तो चाइना का ही हैं; नायलॉन वाला, प्लास्टिक वाला, वही शीशे वाला।

नासिर : हां; वही वाला।

‘तहलका’ रिपोर्टर ने नासिर से कहा कि हम आगरा से दिल्ली तक चाइनीज मांझे की नियमित आपूर्ति चाहते हैं; क्योंकि आगरा की तुलना में दिल्ली में चाइनीज मांझे पर प्रतिबंध बहुत सख्त है। नासिर ने जवाब दिया कि वह जयपुर (राजस्थान) में एक सप्लायर को जानता है, जो प्रतिबंधित मांझे की नियमित आपूर्ति कर सकता है। उसने कहा कि वह उनके (रिपोर्टर के) लिए चाइनीज मांझे का एक नमूना लाया है; और चूंकि उसके पास हमारा (रिपोर्टर का) संपर्क नंबर है, इसलिए जब भी उसे और मांझा मिलेगा, तो वह उन्हें (रिपोर्टर को) सूचित करेगा।

रिपोर्टर : देखो ऐसा है, दिल्ली में तो है नहीं ये।

नासिर : बैन (प्रतिबंधित) है।

रिपोर्टर : पूरे इंडिया में बैन है, इसकी सप्लाई चाहिए ज़्यादा।

नासिर : देखिए, मैं तो छोटा-मोटा दुकानदार हूं। अभी आप ये ले जाइए। अभी ऐसा एक डिस्ट्रीब्यूटर है जयपुर में।

रिपोर्टर : कौन है जयपुर में?

नासिर : ये मुझे मालूम करना पड़ेगा।

रिपोर्टर : डिस्ट्रीब्यूटर है जयपुर में? …चाइना मांझे का?

नासिर : हां। …हम तो छोटे-मोटे दुकानदार हैं। 1-2 लेकर बेचते हैं। आप चाहें इसे ले लीजिए। आगे से आपका नंबर मेरे पास है ही; जैसे मालूम पड़ेगा, आपको बता दूंगा।

इस आदान-प्रदान में ‘तहलका’ रिपोर्टर ने नासिर की पहचान और एक प्रमुख बाजार में उसकी दुकान के स्थान की पुष्टि करने का प्रयास किया। जैसे ही नासिर ने अपना उपनाम ‘मुन्ना’ साझा किया, उससे यह भी पता चल गया कि वह कैसे एक घनिष्ठ अनौपचारिक नेटवर्क में काम करता है।

रिपोर्टर : आपकी दुकान वहीं है ना! मॉल के बाजार में?

नासिर : हां।

रिपोर्टर : किसके नाम से है?

नासिर : मेरे ही नाम से है। …नासिर भाई के नाम से पूछ लेना।

रिपोर्टर : पूरा नाम क्या है?

नासिर : नासिर भाई।

रिपोर्टर : खान, अली, …कुछ नहीं?

नासिर : हां; खान लगा लेना। …आपका शुभ नाम क्या है?

रिपोर्टर : मेरा नाम आमिर अली, …और आपका मुन्ना? …मुन्ना के नाम से पतंग की दुकान है ना?

नासिर : जी।

‘तहलका’ रिपोर्टर ने नासिर से इस बारे में पूछताछ जारी रखी कि वह किस प्रकार के चाइनीज मांझे की आपूर्ति करता है? नासिर ने खुद का छोटा प्रोफाइल बनाये रखते हुए इस बात पर जोर दिया कि उनका स्टॉक एक ही प्रकार- गोल्डन के रंग तक ही सीमित है; जो ग्राहकों के साथ व्यवहार करने में उनके सतर्क दृष्टिकोण को सूक्ष्मता से दर्शाता है।

रिपोर्टर : फिलहाल बताओ मांझे कौन-कौन से हैं?

नासिर : इसमें तो गोल्ड ही है बस।

रिपोर्टर : गोल्ड की एक ही वैरायटी है बस! …और कुछ नहीं है?

नासिर : हम तो एक-एक, दो-दो लेकर ही बेचते हैं भाई!

जब नासिर से पूछा गया कि वह हमें नियमित आधार पर कितनी मात्रा में चाइनीज मांझे की आपूर्ति कर सकता है, तो उसने कहा कि वह अपने आपूर्तिकर्ता से पूछेगा, तब उन्हें (नकली ग्राहक बने रिपोर्टर को) बताएगा। उसने बताया कि फिलहाल उसके पास चाइनीज मांझे का सिर्फ एक ही रोल है।

रिपोर्टर : तो ये बताओ, हमें कितना माल मिल सकता है?

नासिर : अब ये तो पूछकर बताऊंगा, ऐसे कैसे बता सकता हूं।

रिपोर्टर : आप कितना दे सकते हो?

नासिर : एक ही है मेरे पास तो।

रिपोर्टर : अभी नहीं आगे?

नासिर : मैं आपको पूछकर बता दूंगा।

नासिर को तब संदेह हुआ, जब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने उससे चाइनीज मांझे के बारे में कई सवाल पूछे। उसने दलील दी कि चूंकि उसके बच्चे बहुत छोटे हैं, इसलिए वह किसी परेशानी में नहीं पड़ना चाहता। रिपोर्टर से अपनी सुरक्षा के बारे में आश्वासन मिलने के बाद नासिर ने बताया कि वह उनके (रिपोर्टर के) लिए चाइनीज मांझे का एक नमूना लाया है, और उसके लिए पैसे की मांग की। एक स्पष्ट बातचीत में हमारे रिपोर्टर ने प्रतिबंधित चाइनीज मांझे की क़ीमत पर सवाल उठाया और पड़ताल की, कि क्या एक रोल के 600 रुपये ज़्यादा हैं?

रिपोर्टर : फिलहाल दिखा दो, कैसा है माल?

नासिर : अब ऐसी बात तो नहीं है सर! …ये लाये हैं।

रिपोर्टर : क्या बात कर रहे हो?

नासिर : मेरे भी छोटे-छोटे दो बच्चे हैं। ऐसी बात तो नहीं, कोई डरने वाली बात?

रिपोर्टर : कोई बात नहीं है, आप क्यूं परेशान हो रहे हो। सुनो, मांझा यहीं दिखाओगे या कहां दिखाओगे?

नासिर : यहां देख लो आप, पैसे दे दो।

रिपोर्टर : मुझे पैसे बता दो कितने हुए?

नासिर : 600 रुपये दे दो मुझे आप।

रिपोर्टर : 600 रुपीज ज्यादा नहीं है?

नासिर : तुम्हारे लिए आया हूं मैं यहां पे, अब मेरा पेट्रोल दे देना। …50 रुपीज और दे देना भाई! दूसरे की गाड़ी लेकर आया हूं।

इस बातचीत में ‘तहलका’ रिपोर्टर ने नासिर से चाइनीज मांझे की तत्काल उपलब्धता और लगातार आपूर्ति सुनिश्चित करने की संभावना को दर्शाया। फिलहाल सीमित स्टॉक के साथ नासिर ने एक ग्राहक मानते हुए रिपोर्टर को आश्वस्त किया कि वह भविष्य में मांझे की आपूर्ति की व्यवस्था कर सकता है और अपडेट के लिए संपर्क में रह सकता है।

रिपोर्टर : मुझे ये बताओ, मुझे कितना माल मिल जाएगा आपसे अभी?

नासिर : सर! मेरे पास तो अभी एक ही है; …आगे होगा, तो आपको दे दूंगा।

रिपोर्टर : मुझे चाहिए लगातार सप्लाई।

नासिर : मेरे पास नंबर तो है ही, …मैं आपको पूछकर बता दूंगा।

अब नासिर ने रिपोर्टर से दिल्ली का पता पूछा और दिल्ली के जाफराबाद या नांगलोई से एक पतंग आपूर्तिकर्ता से संपर्क करने की सिफारिश की, जो उन्हें (रिपोर्टर को) दिल्ली में ही चाइनीज मांझे की आपूर्ति करने में उसने सक्षम बताया।

रिपोर्टर : अच्छा, पतंगें कौन-कौन सी हैं आपके पास?

नासिर : पतंगें सब मिलेंगी। …पन्नी की, काग़ज की, सब मिलेंगी। दिल्ली में कहां है आपकी दुकान?

रिपोर्टर : दिल्ली में मयूर विहार, जमना पार।

नासिर : अच्छा, वहां जाफराबाद में भी तो है। तो जाफराबाद में आप उससे ले लेना, …राज से, लालू से; उन पर मिल जाएगा सब।

रिपोर्टर : चाइनीज मांझा है उनके पास?

नासिर : होगा, शायद…।

रिपोर्टर : आपके जानकार हैं?

नासिर : मेरे खयाल में नांगलोई में हो शायद।

रिपोर्टर के कई सवालों के बाद नासिर को फिर से शक हुआ और उसने रिपोर्टर से पूछा कि क्या वह (रिपोर्टर) उनकी रिकॉर्डिंग कर रहे हैं? यह आश्वासन देने के बाद कि उसकी रिकॉर्डिंग नहीं की जा रही है; नासिर ने रिपोर्टर को बताया कि वह एक सप्लायर से चाइनीज मांझा ले रहा है।

रिपोर्टर : ये बताओ, आपकी सप्लाई कहां है? कौन-से एरिया से है?

नासिर : हम तो लोकल हैं। 10-20 रुपीज खोल के बेचते हैं।

रिपोर्टर : आपकी सप्लाई कहां से है? कहां से आता है आपके पास?

नासिर : एक डिस्ट्रीब्यूटर देने आता है। अरे आप अभी रिकॉर्डिंग क्यूं कर रहे हो?

रिपोर्टर : अरे नहीं।

नासिर : देखो, मेरी बात सुनो; मैं अभी दुकान से उठकर आया हूं। आप मुझे रिकॉर्ड कर रहे हो?

रिपोर्टर : देखो डरो मत, ये देखो मैंने अंदर कर लिया।

नासिर : नहीं, आप इतना क्यूं पूछ रहे हो? …आपने कहा पतंग का, …बालूगंज से आया हूं।

रिपोर्टर : चलो छोड़ो।

तीसरी बार फिर नासिर ने सवाल उठाया कि क्या ‘तहलका’ रिपोर्टर के द्वारा उसकी रिकॉर्डिंग की जा रही है? इस बार उसने रिपोर्टर से धर्म के अनुसार उनके ईश्वर की कसम खाने को कहा कि अगर वह (रिपोर्टर) उसकी रिकॉर्डिंग नहीं कर रहे हैं, तो कसम खाएं। कसम खाने के बाद उसने मांझा देने की पेशकश की; लेकिन रिपोर्टर के उसे टालने के हाव-भाव से नासिर को फिर शक हुआ कि वह (रिपोर्टर) चाइनीज मांझा खरीदने में सिर्फ टालमटोल कर रहे हैं और उसे खरीदने के लिए गंभीर नहीं हैं। नासिर को रिपोर्टर पर काफी शक हो गया; क्योंकि रिपोर्टर ने उससे बहुत सारे सवाल पूछे।

नासिर : अब सर! ये तो आप फॉर्मेलिटी पूरी कर रहे हैं, आपको लेना-वेना कुछ नहीं है।

रिपोर्टर : ऐसी बात नहीं।

नासिर : तो आप इतनी चीजें क्यूं पूछ रहे हो? ये बताइए आप, …आप मुझे अपना एड्रेस दे दो। मैं आपके पास खुद आऊंगा मयूर विहार, पूरा एड्रेस दे दो।

रिपोर्टर : अच्छा लिखो।

नासिर : आप लिखकर दे दो, आपके पास पेन तो होगा।

रिपोर्टर : व्हाट्सएप पर लिख लो, मोबाइल कौन-सा है आपके पास?

नासिर : आप लिखकर सेंड कर दो मुझे। …अरे नहीं भाई!

रिपोर्टर : अरे लो-लो, पैसे लो।

नासिर : आप देखिए, पहले अल्लाह-पाक की कसम खाइए। …आप कुछ कर तो नहीं रहे हैं?

रिपोर्टर : अल्लाह-पाक की कसम।

नासिर : सर पे हाथ रखो मेरे, छोटा भाई हूं।

रिपोर्टर : हां; लो पैसे लो।

‘तहलका’ रिपोर्टर ने नासिर को उसके द्वारा लाये गये मांझे के लिए 700 रुपए देने के बाद चाइनीज मांझा लिए बिना ही यह कहकर छोड़ दिया कि अभी इसे रखे रहो, बाद में ले लेंगे। रिपोर्टर ने उससे चाइनीज मांझा नहीं लिया; क्योंकि यह भारत में प्रतिबंधित है। नासिर के बाद ‘तहलका’ रिपोर्टर ने दिल्ली में राजेश सिंह से मुलाकात की। कोलकाता का मूल निवासी राजेश सिंह के साथ बातचीत में रिपोर्टर ने शहर में प्रतिबंधित चाइनीज मांझे की उपलब्धता की पड़ताल की। राजेश ने स्पष्ट रूप से बताया कि कैसे दुकानदार पुलिस की जांच के बाद भी खुद को इसे बेचने में दूसरे तरीके (रिश्वत आदि) से अभ्यस्त कर लेते हैं या फिर पुलिस की गाड़ी आने पर अक्सर अपने स्टॉक को छुपाते लेते हैं। लेकिन रास्ता साफ होने पर आसानी से ग्राहकों को चाइनीज मांझा बेच देते हैं, जो भूमिगत बाजारों में चल रही कालाबाजारी और पुलिस प्रशासन के लचीलेपन को दर्शाता है।

रिपोर्टर : अब बता, चाइनीज मांझा; …कि कहां-कहां मिल रहा है? …कोलकाता में?

राजेश : चाइनीज मांझे कोलकाता में हर जगह मिलता है। बैन है; पर पुलिस आता है, तो सब छुपा देता है।

इस बातचीत में राजेश सिंह ने प्रतिबंधित चाइनीज मांझे के लिए कोलकाता के एक भूमिगत बाजार के बारे में स्पष्ट रूप से बताया। राजेश ने बताया कि कैसे दुकानदार चतुराई से पुलिस गश्त से अपना स्टॉक छुपाते हैं, और पुलिस के जाते ही इस अवैध उत्पाद की बिक्री फिर से शुरू कर देते हैं, जबकि प्रदर्शन यह करते हैं कि वे कॉटन का मांझा बेच रहे हैं।

रिपोर्टर : कौन-कौन सा मार्केट है?

राजेश : कोलकाता पूरा ही मार्केट है। …कोलकाता में आप कहीं पर भी छोटा-सा दुकान ले लो, बड़ा-सा दुकान ले लो; जब गाड़ी दिखता है, सब छुपा जाता है। धागे वाला सामने चालू हो जाता है। फिर जब गाड़ी गया, फिर चाइनीज वाला शुरू हो जाता है।

इस गहन बातचीत में राजेश सिंह ने कोलकाता के उन खास इलाक़ों का नाम उजागर किया, जहां प्रतिबंधित चाइनीज मांझा बिकता है। उसने कोलकाता के दो बाजारों- टीटागढ़ और बड़ा बाजार का नाम लिया, जहां चाइनीज मांझा मिलता है। उसने कहा कि बड़ा बाजार में चाइनीज मांझा 24 घंटे उपलब्ध रहता है।

रिपोर्टर : कौन-कौन से इलाके हैं कोलकाता के? …जहां चाइनीज मांझा मिलता है?

राजेश : वहां हमको चाइनीज मांझा का नाम नहीं पता, वो लोग लेकर आता है रंग-बिरंगी।

रिपोर्टर : लेकिन इलाका कौन-कौन सा है?

राजेश : अच्छा; इलाका हो गया टीटागढ़।

रिपोर्टर : ये कोलकाता में है?

राजेश : हां; कोलकाता में।

रिपोर्टर : साउथ-ईस्ट या नॉर्थ-वेस्ट? …कौन-सी जगह?

राजेश : साउथ में। …सब जगह में हैं। हद से आधा-एक घंटे का रास्ता है। सब कुछ मिलेगा, टीटागढ़ हो गया। बड़ा बाजार हो गया। …बड़ा बाजार में तो 24 घंटे मिलेगा।

रिपोर्टर : चाइनीज मांझा?

राजेश : 24 घंटा।

इस बातचीत में ‘तहलका’ रिपोर्टर ने राजेश से व्हाट्सएप पर भेजी गयी चरखी के स्रोत के बारे में सवाल किया। राजेश ने खुलासा किया कि इसे टीटागढ़ से प्राप्त किया गया था, जिससे क्षेत्र के बारे में उनके स्थानीय ज्ञान का संकेत मिलता है, जबकि उन्होंने बताया कि वह हवाई अड्डे से सिर्फ 15 मिनट की दूरी पर रहते हैं।

रिपोर्टर : तूने कहां से लिया था, जो मुझे चरखी भेजी थी?

राजेश : टीटागढ़, लोकल है।

रिपोर्टर : लोकल है, मतलब तू वहीं रहता है?

राजेश : हम तो एयरपोर्ट साइड में रहता, वो 15 मिन्ट का रास्ता है।

इस बातचीत में रिपोर्टर ने राजेश से दिल्ली में चाइनीज मांझे की आपूर्ति करने के बारे में पूछताछ की। राजेश ने अवैध व्यापार के लिए अपनी संलिप्तता का इजहार करते हुए कुछ दिनों के भीतर सड़क मार्ग से सामान भेजने की एक सीधी योजना के बारे में आत्मविश्वास से रिपोर्टर को आश्वास्त किया कि वह कई अवैध चीज़ों को मँगाने का प्रबंधन कर सकता है।

रिपोर्टर : तो अगर चाइनीज मांझे का तुझे ठेका दे दिया जाए, दिल्ली सप्लाई करने का, तो तू कर लेगा?

राजेश : कर लूंगा।

रिपोर्टर : कैसे करेगा?

राजेश : वही सेम xxxx वाई रोड 3-4 दिन में, …के अंदर माल।

इस चौंकाने वाली बातचीत में राजेश ने मादक पदार्थों की तस्करी के रहस्य का खुलासा किया। यह पूछे जाने पर कि क्या वह कूरियर के माध्यम से दिल्ली में चाइनीज मांझा की आपूर्ति कर पाएगा? राजेश ने हमें आश्वस्त करने के लिए बताया कि उसने अपनी कूरियर कम्पनी के माध्यम से कोलकाता से बैंगलोर तक प्रतिबंधित ड्रग्स गांजा (मारिजुआना) की आपूर्ति की थी; वह भी पांच-छ: किलोग्राम की मात्रा में।

राजेश : हम लोग, जैसा क्या करते, बैंगलोर हम भेजे वीड (गांजा)।

रिपोर्टर : हैं! वीड? …वीड मतलब चरस?

राजेश : नहीं, गांजा। …वो भेजा बैंगलोर, कोलकाता से xxxx से।

रिपोर्टर : कूरियर से भेजा?

राजेश : कूरियर से भेजा, कब भेजा, वो मेरे इस फोन में नहीं है, उस फोन में है। …एक-दो महीना नहीं, दो-तीन महीने पहले। …पांच-पांच, छ:-छ: केजी (किलोग्राम) गांजा भेजा।

रिपोर्टर : पांच-छ: केजी गांजा भेजा!

राजेश : हां; आराम से ले लिया।

रिपोर्टर : आपने xxxx कूरियर से कोलकाता से बैंगलोर भेजा?

राजेश : हां; हम आपको स्लिप भी दिखा देंगे। पर हम लोग को पता है ना! क्या लिखना चाहिए, क्या चेकिंग होता है, क्या नाम लिखना चाहिए। …अब जैसे ये प्याज है। हम इस प्याज को पैक किया और इसको कोई मेडिसिन का नाम दे दिया. …काग़ज पे मेडिसिन लिखा दिया; गाड़ी में रख दिया और वो निकल गया।

इस अचंभित करने वाली बातचीत में राजेश का दावा है कि अवैध आग्नेयास्त्रों और हथियारों को भी कूरियर किया जा सकता है। राजेश के दावे रेडार के तहत चल रहे अवैध बाजारों की चिंताजनक वास्तविकता को रेखांकित करते हैं, और ऐसी गतिविधियों पर अंकुश लगाने में कानून प्रवर्तन के सामने आने वाली चुनौतियों को भी उजागर करते हैं।

रिपोर्टर : हथियार वग़ैहर सब, रिवॉल्वर एट्च. (इत्यादि)?

राजेश : हां; छोटा सामान होगा, निकल जाएगा।

रिपोर्टर : रिवॉल्वर वग़ैरह निकल जाएगी?

राजेश : हां।

रिपोर्टर : कौन-कौन से आइटम?

राजेश : कोई भी आइटम।

रिपोर्टर : जो भी बैन, इल्लीगल हैं; …सारे?

राजेश : हां; वो हम भिजवा देंगे।

इस बातचीत में राजेश ने आगे चाइनीज मांझे के उपयोग से जुड़े खतरों के बारे में, विशेष रूप से इससे लगने वाली गंभीर चोटों और मौतों की संभावना की बात स्वीकार की। उसने कुबूल किया कि उसने अपनी आंखों से चाइनीज मांझे से लोगों को मरते हुए और घायल होते हुए देखा है। लेकिन इसके बावजूद वह कोलकाता से दिल्ली तक इस अवैध उत्पाद की आपूर्ति करने की बात स्वीकार करते हुए नकली ग्राहक बने हमारे रिपोर्टर के लिए भी आपूर्ति करने को तैयार है।

रिपोर्टर : बड़ा खतरनाक होता है; …उससे लोग भी मर गये हैं। चाइनीज मांझे से।

राजेश : एक्सीडेंट भी होते हैं। जो हेलमेट लेकर चला रहा है, नजदीक जिसके नहीं होता कांच, उसका यहां से लेकर यहां तक (गर्दन की ओर इशारा करते हुए) कटके निकल गया।

रिपोर्टर : गर्दन कट जाती है।

राजेश : आंख के सामने देखा है मैंने ये सब।

अब राजेश ने चाइनीज मांझे के व्यापार के काले रहस्यों पर प्रकाश डालते हुए इसके प्रसार में स्थानीय कानून व्यवस्था की भूमिका पर आरोप लगाया। जब राजेश से रिपोर्टर ने पूछा कि क्या आप पर कभी चाइनीज मांझा बेचने के लिए कोलकाता पुलिस ने छापा मारा है? इसके जवाब में राजेश ने कहा कि पुलिस आरोपियों से 500 रुपये रिश्वत लेती है और उन्हें छोड़ देती है।

रिपोर्टर : कभी पकड़े नहीं गये? …पुलिस ने रेड नहीं की चाइनीज मांझे की?

राजेश : पकड़ने की क्या? …पुलिस तो खुद खाती है। बाई चांस अगर होता भी है, तो वो सेल नहीं

बिहार में बाढ़ की स्थिति गंभीर, 16 जिलों के 4 लाख लोग प्रभावित

बिहार में कोसी और गंडक सहित सभी प्रमुख नदियां उफान पर हैं। हालांकि, राहत वाली बात है कि वीरपुर के कोसी बैराज, वाल्मीकिनगर के गंडक बैराज पर जलस्राव में कमी आयी है। प्रदेश के 16 जिलों के 31 प्रखंड के चार लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हैं।

जल संसाधन विभाग के मुताबिक, वीरपुर बैराज में कोसी का जलस्राव सोमवार को सुबह छह बजे 2,65,530 क्यूसेक था जबकि 10 बजे यह घटकर 2,54,385 क्यूसेक हो गया है। इसी तरह वाल्मीकिनगर बैराज में सुबह 10 बजे गंडक का जलस्राव भी 1,55,600 लाख क्यूसेक है। इस बीच, प्रदेश की सभी प्रमुख नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं।

आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार, गंडक, कोसी, बागमती, महानंदा एवं अन्य नदियों के जलस्तर में हुई वृद्धि के कारण 16 जिलों पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, अररिया, किशनगंज, गोपालगंज, शिवहर, सीतामढ़ी, सुपौल, सिवान, मधेपुरा, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया, मधुबनी, दरभंगा, सारण एवं सहरसा के 31 प्रखंडों में 152 ग्राम पंचायतों के अंतर्गत लगभग 4 लाख से अधिक की आबादी बाढ़ से प्रभावित हुई है।

बाढ़ से प्रभावित आबादी को सुरक्षित निष्क्रमित करने के लिए एनडीआरएफ की कुल 12 टीम एवं एसडीआरएफ की कुल 12 टीमों को तैनात किया गया है। इसके अतिरिक्त वाराणसी से एनडीआरएफ की तीन टीमों को बुलाया गया है।

बताया गया कि लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने एवं आवागमन के लिए 630 नावों का परिचालन कराया जा रहा है। इसके अतिरिक्त बाढ़ पीड़ितों के लिए 43 राहत शिविरों का संचालन किया जा रहा है, जिसमे 11 हजार से अधिक लोग शरण लिये हुए हैं।

उल्लेखनीय है कि नेपाल में भारी वर्षा के कारण रविवार की सुबह पांच बजे कोसी बैराज, वीरपुर से 6,61,295 क्यूसेक जलस्राव हुआ था, जो 1968 के बाद सर्वाधिक है।

जल संसाधन विभाग का दावा है कि तटबंधों की सुरक्षा के लिए जल संसाधन विभाग की टीमें दिन-रात तत्पर हैं। हालांकि कई तटबंधों के क्षतिग्रस्त होने के कारण कई जिलों में बाढ़ की स्थिति भयावह हो गई है।

पीएम मोदी ने मिथुन चक्रवर्ती को दादासाहेब फाल्के पुरस्कार दिए जाने पर दी बधाई

नई दिल्ली : इस साल का दादासाहेब फाल्के पुरस्कार मशहूर अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती को दिया जाएगा। सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सोमवार को इसकी जानकारी दी। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दिग्गज अभिनेता को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं।

मिथुन चक्रवर्ती को यह पुरस्कार देने की घोषणा करते हुए केंद्रीय मंत्री वैष्णव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा, “कोलकाता की गलियों से लेकर सिनेमा की ऊंचाइयों तक, मिथुन दा की अद्भुत सिने यात्रा ने पीढ़ियों को प्रेरित किया है। दादासाहेब फाल्के चयन समिति ने भारतीय सिनेमा में उनके ऐतिहासिक योगदान के लिए उन्हें इस सम्मान से नवाजने का निर्णय लिया है।”

मंत्री ने बताया कि यह पुरस्कार 70वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में 8 अक्टूबर को मिथुन चक्रवर्ती को प्रदान किया जाएगा। पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव की पोस्ट पर रिप्लाई करते हुए लिखा, “मुझे खुशी है कि मिथुन चक्रवर्ती जी को भारतीय सिनेमा में उनके अद्वितीय योगदान को मान्यता देते हुए प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वह एक कल्चरल आइकन हैं, जिनको अपने बहुमुखी प्रदर्शन के लिए पीढ़ियों से सराहना मिली हैं। उन्हें बधाई एवं शुभकामनाएं।”

दूसरी ओर, इस अवार्ड पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस नेता पवन खेड़ा का कहना है, “हमें बड़ा अफसोस है कि इस बार का पुरस्कार पीएम नरेंद्र मोदी को नहीं मिला। वह इसके हकदार थे। पूरे देश में अगर कोई कलाकार है, तो वह पीएम मोदी हैं।”

उल्लेखनीय है कि मिथुन चक्रवर्ती ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत मृणाल सेन की फिल्म मृगया (1976) से की थी, जिसके लिए उन्हें पहला राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। यह फिल्म भारत और उस समय के सोवियत संघ में भी बड़ी हिट रही थी। इसके बाद 1982 में आई फिल्म ‘डिस्को डांसर’ के जरिए मिथुन दा पूरी दुनिया में मशहूर हो गए।

ज्ञात हो कि, दादासाहेब फाल्के पुरस्कार भारत का सबसे बड़ा सिनेमा पुरस्कार है, जो हर साल राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा दिया जाता है। यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा के विकास में असाधारण योगदान देने वाले व्यक्ति को प्रदान किया जाता है।

मिथुन चक्रवर्ती को हाल ही में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था। अप्रैल में हुए इस समारोह में उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से यह सम्मान प्राप्त किया। इस बारे में उन्होंने कहा था, “मैं बहुत खुश हूं। मैंने कभी भी अपने लिए किसी से कुछ नहीं मांगा। जब मुझे गृह मंत्रालय से फोन आया कि मुझे पद्म भूषण दिया जा रहा है, तो मैं एक मिनट के लिए चुप हो गया, क्योंकि मैंने इसकी उम्मीद नहीं की थी।”