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लूट का मायाजाल

सन् 2014 में जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव जीतकर देश की सत्ता में प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए, तो उन्होंने शुरुआती उड़ान ऑस्ट्रेलिया के लिए भरी। यह हवाई जहाज़ सीधे ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन हवाई अड्डे पर उतरा। यह उड़ान देश की सत्ता द्वारा किसी प्रधानमंत्री के लिए मुहैया कराये जाने वाले हवाई जहाज़ या वायु सेना के किसी अति सुरक्षित हवाई जहाज़ की नहीं थी, बल्कि अडाणी के निजी हवाई जहाज़ की थी। देश के किसी प्रधानमंत्री ने पहली बार किसी उद्योगपति के निजी हवाई जहाज़ से विदेश यात्रा की पहली उड़ान भरी थी। इस हवाई जहाज़ में अकेले प्रधानमंत्री मोदी नहीं थे, बल्कि उनके परम् मित्र गौतम अडाणी और कुछ विश्वसनीय लोग थे। हालाँकि नरेंद्र मोदी ने सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में गौतम अडाणी के निजी हवाई जहाज़ से ही प्रचार प्रसार के लिए हवाई यात्राएँ की थीं। हालाँकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा गौतम अडाणी के निजी जहाज़ का इस्तेमाल करने को लेकर जब सवाल उठे, तो अडाणी ने पत्रकारों को स्पष्टीकरण दिया कि उनके चार्टर्ड प्लेन के इस्तेमाल के बदले भाजपा ने उनकी कम्पनी को किराया दिया था। अब उनकी यह बात कितनी सच थी? इसकी कोई जाँच तो हुई नहीं; लेकिन बात कुछ हज़म नहीं हुई।

ख़ैर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया गये क्यों थे? यह सवाल अभी तक अनसुलझा है। लेकिन इसके जवाब में कुछ तथ्य उजागर हुए, जिनमें सबसे पहला और ठोस तथ्य ऑस्ट्रेलिया की कोयला खदानों का ठेका गौतम अडाणी को दिलाने की कोशिश थी, जिसका ऑस्ट्रेलिया में लंबे समय तक विरोध भी हुआ। भारत में सवाल उठे कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने गौतम अडाणी के निजी हवाई जहाज़ का इस्तेमाल क्यों किया? वह अपनी ऑस्ट्रेलिया की यात्रा पर गौतम अडाणी को लेकर क्यों गये? मोदी देश के कामकाज समझने-सँभालने की बजाय ऑस्ट्रेलिया में अडाणी को कोयला खदानों के ठेके दिलाने क्यों गये?

पिछले दिनों अडाणी पर जिस प्रकार से रिश्वत देकर अमेरिका में ठेके लेने के आरोप के बाद एफआईआर हुई और उसके बाद आस्ट्रेलिया में भी कार्रवाई शुरू हुई है, उसे भारत की केंद्र सरकार ने दबाने का भरसक प्रयास किया है। इससे साफ़ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भ्रष्ट दोस्तों को सिर्फ़ पनपने में ही मदद नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन्हें बचा भी रहे हैं। ऐसे में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आरोप कुछ हद तक तथ्यपरक लगने लगते हैं कि अडाणी के कारोबार में मोदी की हिस्सेदारी है। संसद में जब भी कोई विपक्षी सासंद केंद्र सरकार की कमियों को लेकर कोई टिप्पणी करता है अथवा सवाल पूछता है, तो प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से लेकर सभी भाजपा सांसदों, मंत्रियों, यहाँ तक कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और राज्यसभा के सभापति एवं उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का चेहरा ही तमतमा उठता है।

विपक्षियों के घेराव पर जो बौखलाहट भाजपाइयों के चेहरे पर दिखती है, वह यूँ ही तो नहीं आ सकती। यह सब स्वाभाविक है। जब किसी ग़लत व्यक्ति को ग़लत कहो अथवा उसके सामने सच बोलो, तो उसे अच्छा नहीं लगता। बिना आग के धुआँ नहीं उठता। विपक्षियों से लेकर ज़्यादातर लोग लगभग हर योजना में घोटालों का आरोप हवा में नहीं लगा सकते। अभी हाल ही में पीएम केयर्स फंड में भी घपले उजागर हो रहे हैं, जिसका हिसाब देने में प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ने लगातार आनाकानी की है। अब पता चला है कि जिस उद्देश्य से इस फंड में चंदा देने के लिए लोगों से भावनात्मक रूप से मदद करने की अपील गयी थी, उसमें चंदा लेने के लिए दबाव भी बनाया गया। इस फंड में अरबों रुपये जमा हुए। लेकिन इसे पूरा ख़र्च नहीं किया गया। केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में पहले ही कह दिया कि यह सरकारी फंड नहीं है। लेकिन ख़ुलासा हुआ है कि सरकारी कम्पनियों से चंदा लिया गया। इतना ही नहीं, इस फंड के प्रमुख प्रधानमंत्री मोदी हैं और अन्य पदाधिकारियों में गृहमंत्री, रक्षामंत्री और वित्तमंत्री हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार में संवैधानिक पदों पर बैठकर भी निजी तौर पर अरबों रुपये का चंदा लेने का खेल किया गया।

देश में तमाम तरह की समस्याएँ पैदा हो चुकी हैं। क़र्ज़ बढ़ता जा रहा है। रुपया डॉलर के मुक़ाबले गिरता जा रहा है। लेकिन अमृत-काल का सुख भोगा जा रहा है। जनता को विष-काल में धकेलकर भ्रष्टाचारियों का अमृत-काल सुनिश्चित किया जा रहा है। क्यों न किया जाए? जिन लोगों ने सिंहासन पर चढ़ाने के लिए राजनीतिक शतरंज की बिसात पर मनचाहे तरीक़े से गोटियाँ फेंकी थीं, उनका अहसान उतारना भी तो राज-धर्म है। भले ही उसके लिए देश को ही बर्बाद करना पड़े। यही हो भी रहा है। इसलिए देश और जनहित की चिन्ता करने वाले किसी भी व्यक्ति की बात नहीं सुनी जा रही है। पीड़ितों की पीड़ा का अहसास भी किया जा सकता है। उन पर टैक्स का बोझ बढ़ाया जा रहा है, जिससे उन्हें देशभक्ति का सही अर्थ समझ में आ सके। लूट का मायाजाल इसी को कहते हैं, जिसमें लुटने वाले को कुछ भी पता न चले।

महाराष्ट्र में शाह और भाजपा के ख़िलाफ़ उबाल

के. रवि (दादा)

महाराष्ट्र में इन दिनों गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के ख़िलाफ़ लोगों में ग़ुस्से का उबाल है। इससे महाराष्ट्र की राजनीति में भी उबाल देखने को मिल रहा है। लोगों के इस ग़ुस्से की दो बड़ी वजह बन चुकी हैं। पहली वजह है महाराष्ट्र के बीड के मसाजोग गाँव के सरपंच संतोष देशमुख का हत्याकांड और दूसरी वजह है गृहमंत्री अमित शाह के बाबा साहेब अंबेडकर के बारे में बोले गये शब्द, जो संसद में उन्होंने बोले थे। अब दोनों ही घटनाओं ने महाराष्ट्र की जनता को देश के गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के ख़िलाफ़ तो कर दिया है, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणनीव की अगुवाई में नवगठित महायुति सरकार के ख़िलाफ़ भी एक माहौल खड़ा कर दिया है।

दोनों मामले इतने तूल पकड़ चुके हैं। गृह मंत्री अमित शाह के ख़िलाफ़ तो मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस कुछ कर नहीं सकते, पर बीड के मसाजोग गाँव के सरपंच संतोष देशमुख के हत्याकांड के आरोपियों के ख़िलाफ़ तो कर ही सकते हैं। पर ऐसा आरोप है कि मुख्यमंत्री इस मामले में लकीर पीटने के अलावा कुछ नहीं कर रहे हैं। उन्होंने सरंपच संतोष देशमुख हत्याकांड मामले में फ़रार आरोपियों की संपत्ति ज़ब्त करने का आदेश सीआईडी के अतिरिक्त महानिदेशक को दिये; पर आरोपियों को पुलिस पकड़ भी नहीं पायी। बाद में राजनीतिक दबाव में आरोपी वाल्मिक कराड ने सरेंडर किया। मुख्यमंत्री फडणवीस ने तो बीड के पुलिस अधीक्षक को सिर्फ़ उन आरोपियों की बंदूकों के लाइसेंस जाँच में पुष्टि होने पर रद्द करने के आदेश दिये थे, जिनके हाथों में वायरल फोटो में बंदूक दिख रही है। होती है, तो उन बंदूकधारियों के बंदूक के लाइसेंस रद्द कर दिये जाएँ। आरोपियों को सज़ा देना और उन्हें दोषी ठहराना पुलिस और न्यायालय का काम है, इसमें मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करके जनता की नज़रों में हीरो बनने की ज़रूरत नहीं है। न्यायालय और पुलिस का यह काम है कि वो मिलकर निष्पक्ष रूप से अपराधियों को सज़ा देने का काम करें। क्योंकि नेताओं के फ़ैसले तो पक्षपात वाले होते हैं। जैसे कि कोई उनकी पार्टी का बंदा ग़लत करता है, तो उसके किये पर पर्दा डालते हैं और कोई दूसरा बंदा ग़लत काम करता है, तो उसका कहीं एनकाउंटर करवा देते हैं और कहीं उसके घर पर बुलडोज़र चलवा देते हैं। अगर वो ऐसा करना भी चाहते हैं, तो उन्हें सभी ग़लत बंदों पर एक जैसी ही कार्रवाई करनी चाहिए। पर इसमें किसी अपराधी के घर वालों को सज़ा भी नहीं दी जा सकती, जब तक कि उसके परिवार वाले उस अपराध में शामिल न हों।

महाराष्ट्र के बीड के मसाजोग गाँव के सरपंच संतोष देशमुख की जो निर्मम हत्या हुई है, वो बहुत ग़लत हुई है, क्योंकि देशमुख के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत-ही नेकदिल इंसान थे और सबकी मदद करते थे। उनके अच्छे व्यवहार और मददगार होने के चलते आज लोग उनके हत्यारों को सज़ा दिलाने की माँग कर रहे हैं। विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी के साथ ही कुछ छोटी पार्टियों और स्थानीय लोगों ने भी सरपंच संतोष देशमुख के हत्यारों को सज़ा दिलाने की माँग करते हुए 28 दिसंबर को बीड में एक बड़ी रैली निकाली थी। विपक्ष का आरोप है कि संतोष देशमुख हत्याकांड में ख़ुद भाजपा की अगुवाई वाले महायुति गठबंधन के नेता धनंजय मुंडे के लोग शामिल हैं। इसलिए धनंजय मुंडे, उसके बंदों और महायुति के उन नेताओं के ख़िलाफ़ भी जाँच और कार्रवाई होनी चाहिए, जिन पर आपराधिक मामले हैं। हैरानी की बात है कि सरपंच संतोष देशमुख की हत्या को कुछ ही दिनों में एक महीना हो जाएगा; पर सभी आरोपी पुलिस की गिर$फ्त से बाहर हैं। बीड के लोग लगातार आरोपियों को सज़ा दिलाने की माँग कर रहे हैं।

दूसरी ओर बाबा साहेब आंबेडकर को लेकर गृहमंत्री अमित शाह के संसदीय भाषण में की गयी निंदा टिप्पणी से महाराष्ट्र के साथ साथ दुनिया भर के लोग नाराज़ हैं और यहाँ लगातार जगह-जगह प्रदर्शन करके लोग जुलूस निकाल रहे हैं। गृहमंत्री अमित शाह के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी करके उनसे इस्तीफ़ा माँग रहे हैं। इसी का फ़ायदा उठाते हुए महाअघाड़ी गठबंधन ने महायुति सरकार और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर हमले तेज़ तक कर दिये हैं। अभी कुछ दिन पहले ही नांदेड़ के लोहा विधानसभा क्षेत्र और हिंगोली के कलमनुरी में सार्वजनिक रैलियों में शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र की महायुति सरकार पर जमकर हमला बोला। उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का नाम लिए बिना उन पर पाखंड और भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए कहा कि वे हमारे ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं। क्या मोदी और शाह के साथ संत हैं? मोदी और शाह की गाड़ी में भ्रष्टाचार के पहिये लगे हुए हैं।

गोल्ड और डॉलर के तस्कर

भारत में जमकर हो रही सोने और विदेशी मुद्रा की तस्करी

भारत में नशीले पदार्थों और इंसानों से लेकर महँगी चीज़ों की तस्करी करने वाले गिरोहों और उनसे जुड़े तस्करों पर रोक नहीं लग पा रही है। आये दिन तस्करी की चौंकाने वाली ख़बरों के बावजूद अवैध धंधों के ख़िलाफ़ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती। ‘तहलका’ ने इस बार भारत में अवैध तरीक़े से सोने और डॉलर (यूएस की विदेशी मुद्रा) के व्यापार से जुड़े तस्करों का पर्दाफ़ाश किया है। ‘तहलका’ की इस पड़ताल में ख़ुलासा हुआ है कि तस्कर कैरियर और अज्ञात संसाधनों से सैकड़ों करोड़ रुपये के सोने और विदेशी मुद्रा (डॉलर) की तस्करी करके उसे एक ग़ैर-क़ानूनी धंधे में बदल रहे हैं। पढ़िए, तहलका एसआईटी की विशेष पड़ताल रिपोर्ट :-

05 जुलाई, 2020 को केरल के तिरुवनंतपुरम में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सीमा शुल्क अधिकारियों ने लगभग 15 करोड़ रुपये की क़ीमत के 30 किलोग्राम से अधिक सोने और सामान से भरे एक बड़े बैग को ज़ब्त किया। यह सोना संयुक्त अरब अमीरात के वाणिज्य दूतावास को भेजे गये राजनयिक सामान में था। सीमा शुल्क अधिकारियों ने एक गुप्त सूचना के आधार पर कार्रवाई की थी कि यह सामान एक तस्करी गिरोह का हिस्सा है, जो राजनयिक प्रतिरक्षा प्राप्त व्यक्ति के नाम का दुरुपयोग कर रहा था। सोने की ज़ब्ती ने एक बड़े राजनीतिक विवाद को जन्म दिया, जिसने राज्य में सत्तारूढ़ वामपंथी सरकार की नींव हिला दी, ख़ासकर जब शीर्ष नौकरशाह एम. शिवशंकर का नाम इस संदिग्ध मामले में सामने आया। केरल के मुख्यमंत्री के पूर्व प्रधान सचिव विजयन को मुख्य आरोपी स्वप्ना सुरेश के साथ सम्बन्ध सामने आने के बाद सेवा से निलंबित कर दिया गया था। बाद में गिर$फ्तारी के बाद उन्हें जमानत मिल गयी। यूएई वाणिज्य दूतावास की पूर्व कर्मचारी स्वप्ना सुरेश को केरल आईटी विभाग के लिए एक परियोजना पर काम करने के लिए एक निजी फर्म द्वारा काम पर रखा गया था, जो मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के अधीन है। मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव एम. शिवशंकर इस विभाग के प्रमुख हुआ करते थे।

सोने की तस्करी की इस जाँच के दौरान तिरुवनंतपुरम में यूएई वाणिज्य दूतावास के पूर्व वित्त प्रमुख द्वारा ओमान के मस्कट में 1,90,000 अमेरिकी डॉलर की कथित तस्करी से सम्बन्धित एक और मामला सामने आया। सीमा शुल्क आयुक्त (निवारक) राजेंद्र कुमार ने जारी आदेश में यूएई वाणिज्य दूतावास के पूर्व वित्त प्रमुख ख़ालिद मोहम्मद अली शौकरी पर देश से बाहर विदेशी मुद्रा की तस्करी करने के लिए 13 करोड़ रुपये का ज़ुर्माना लगाया। आदेश में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि विदेशी मुद्रा को सीमा शुल्क अधिकारियों को सूचित किये बिना ही भारत से बाहर ले जाया गया, जो नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। केरल में सोने और डॉलर की तस्करी के इन मामलों ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। केरल सोना तस्करी मामले में आरोपियों द्वारा कुछ बड़े लोगों की संलिप्तता का ख़ुलासा होने के बाद विपक्षी कांग्रेस नीत यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट और भाजपा नीत एनडीए ने पिनाराई विजयन सरकार के ख़िलाफ़ अपना हमला तेज़ कर दिया है।

हालाँकि यह सोने और डॉलर की तस्करी के कई मामले भारतीय मीडिया में बार-बार सुर्ख़ियाँ बने हैं। लेकिन इसकी कार्यप्रणाली क्या है? इसमें कौन लोग शामिल हैं? तस्करी में कौन-कौन से देश शामिल हैं? ये वो सवाल हैं, जो हर भारतीय पूछता है; इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए ‘तहलका’ ने भारत में सोने और डॉलर की तस्करी पर पड़ताल की और अपने गुप्त कैमरे के सामने एक ऐसे व्यक्ति से क़ुबूलनामा लिया, जो वर्षों से भारत में सोने और डॉलर की तस्करी में लिप्त होने के बावजूद अधिकारियों की पकड़ में नहीं आया है। ‘तहलका’ की एसआईटी ने स्टिंग ऑपरेशन के ज़रिये मामले की तह तक पहुँचने का फ़ैसला किया, तो हमारे अंडरकवर रिपोर्टर की मुलाक़ात कोलकाता के डॉलर और सोने के तस्कर प्रशांत सिंह से हुई।

‘सभी xxxx अधिकारियों को मेरी फोटो, मेरी पासपोर्ट कॉपी, मेरा बोर्डिंग पास और मेरे बैग का रंग पहले से ही मिल जाता है; ताकि वे बैंकॉक की मेरी डॉलर और सोने की तस्करी-यात्रा के दौरान मुझे न रोकें।’ -यह बात अलीगढ़, उत्तर प्रदेश निवासी प्रशांत सिंह ने हमारे नक़ली ग्राहक बनकर उससे मिले अंडरकवर रिपोर्टर से कही। प्रशांत कुछ वर्ष पहले दिल्ली में रहा, फिर एक रिश्तेदार के माध्यम से कोलकाता में बस गया, तबसे वहीं है।

‘हमारी xxxx हवाई अड्डे पर कुछ xxxx अधिकारियों के साथ सेटिंग है। हम उनकी मदद के बिना अवैध सोना और डॉलर का कारोबार नहीं कर सकते। आपातकालीन स्थिति में हम उन पर भरोसा करते हैं, ताकि अगर हम फँस जाएँ, तो वे हमें बचा सकें। इसके लिए हम उन्हें पैसे देते हैं।’ – प्रशांत ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया। प्रशांत ने यह भी बताया कि उसने कोलकाता में बसने के बाद सोने और डॉलर की तस्करी से पहले किसी और के लिए काम करके इस अवैध धंधे को करने की सारी कारगुज़ारियाँ सीखीं।

प्रशांत सिंह ने ख़ुलासा किया कि वह बिना कोई दस्तावेज़ दिखाये ब्लैक मार्केट से डॉलर ख़रीद रहा है। वह प्रतिदिन 25,000 अमेरिकी डॉलर ख़रीदता है, जो स्वीकार्य सीमा से काफ़ी ज़्यादा हैं। इसमें वह टैक्स और जीएसटी की चोरी भी करता है। उसने यह भी बताया कि वह तस्करी का सोना और डॉलर ऐसी जगह छिपाता है, जहाँ हवाई अड्डे का एक्स-रे भी इन चीज़ों का पता नहीं लगा पाता। उसने ख़ुलासा किया कि थाईलैंड से सोने और डॉलर की तस्करी के लिए xxxx हवाई अड्डा उसके लिए सबसे अच्छी जगह है। उसने कहा- ‘हालाँकि सोने और डॉलर का अवैध व्यापार सभी प्रमुख हवाई अड्डों पर होता है; लेकिन xxxx हवाई अड्डा मेरे लिए सस्ता है। वहीं xxxx हवाई अड्डे पर केवल 50 लाख रुपये के बजट वाला व्यक्ति ही इस अवैध व्यापार में शामिल हो सकता है।’

प्रशांत सिंह अपने अवैध सोने और डॉलर की तस्करी के अवैध धंधे के लिए निवेशक की तलाश में है। उसने ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर को इस अवैध धंधे में इच्छुक निवेशक समझकर दिल्ली के एक पाँच सितारा होटल में मुलाक़ात की, जो कि फ़र्ज़ी निवेशक बनकर वहाँ प्रशांत से उसकी तस्करी के राज़ उगलवाने पहुँचे थे। प्रशांत ने ख़ुलासा किया कि उसका नेटवर्क xxxx हवाई अड्डे से संचालित होता है। उसने अपने लाभ और इस अवैध धंधे में अपनी तस्करी की कार्यप्रणाली को उजागर किया।

प्रशांत : हम काम करते हैं डॉलर और गोल्ड (सोने) में। …और दोनों के प्रॉफिट (लाभ) अलग-अलग हैं। अगर हम 100 ग्राम लेते हैं, 50 हज़ार रुपये बचता है। 100 ग्राम की वैल्यू (क़ीमत) हुई 5-5.5 लाख रुपये। और डॉलर में भेजते हैं 8.5 लाख। …एक पूरा बंडल आता है। उसमें हमें 2.25 रुपये बचते हैं, तो वो उसमें 25,000 रुपये अप्रॉक्स (लगभग) बचते हैं।

रिपोर्टर : ये लाते कहाँ से हो आप, गोल्ड और डॉलर?

प्रशांत : ये थाइलैंड से लाते हैं। गोल्ड थाइलैंड से लाते हैं और डॉलर इंडिया से लेकर जाते हैं।

रिपोर्टर : कहाँ जाते हो?

प्रशांत : बैंकॉक में।

इसके बाद प्रशांत सिंह ने डॉलर तस्करी के अपने धंधे का ख़ुलासा किया। उसने बताया कि किस प्रकार अमेरिकी डॉलर को अवैध रूप से भारत से थाईलैंड ले जाकर उसे थाई मुद्रा में परिवर्तित कराकर हवाला के माध्यम से वापस भारत भेज देता है। इसके बाद प्राप्त धनराशि को पुन: निवेशित किया जाता है, तथा परिचालन के प्रत्येक चरण के लिए अनेक कैरियर का उपयोग किया जाता है। प्रशांत ने बताया कि किस प्रकार वह अवैध तरीक़े से पैसे को इधर-से-उधर घुमाकर ज़्यादा-से-ज़्यादा लाभ कमाता है और यात्रा के दौरान साथ लाये गये कपड़ों, इलेक्ट्रॉनिक्स और सामानों को लाकर उनकी कमायी से अपने किराये और दूसरे ख़र्चे निकालता है।

रिपोर्टर : डॉलर इंडिया से लेकर जाते हो, वहाँ उसे इंडियन करेंसी में चेंज करवाते हो?

प्रशांत : नहीं, थाई करेंसी में चेंज करवाते हैं। उसके बाद हम इसको हवाला लगवाकर इंडिया में लाते हैं। इंडिया में पैसा रिटर्न (वापस) आ जाता है, इंडियन करेंसी (रुपये) में। तो हमें सब मिलाकर 20-22 हज़ार बचते हैं।

रिपोर्टर : 20-22 हज़ार रुपये कितने पर बचते हैं?

प्रशांत : आठ लाख रुपये पर ट्रिप (प्रति चक्कर)। जैसे मैं आज गया वहाँ पर, एक्सचेंज करवाया और मैंने रिटर्न मारे पैसे, इंडिया में आ गये। अब इंडिया में वो बंदे रिटर्न में फिर गया; …तो साइकिलिंग सिस्टम है।

रिपोर्टर : नहीं, जो पैसे हवाला से इंडिया में आये, वो फिर बाहर जाते हैं?

प्रशांत : फिर हमारा दूसरा लड़का, …हम अकेले काम तो करते नहीं हैं; …तो वो पैसे वापस आ गये; तो आज जीतू भाई वापस जाएगा, वो पैसे लेकर। तो आज 25,000 का प्रॉफिट (लाभ) आया; …कल भी 25,000 रुपये का प्रॉफिट आएगा।

रिपोर्टर : कितने पर 25,000 का बताया आपने?

प्रशांत : 8.5 लाख पर।

रिपोर्टर : 8.5 लाख पर 25,000 रुपये का प्रॉफिट आपका?

प्रशांत : आएगा, और हम साइकिलिंग में इसको 20-25 दिन में 2.5 लाख कर देते हैं। ये प्रॉफिट है।

रिपोर्टर : मतलब, एक चक्कर में रुपये 25 थाउजेंड, तो 10 चक्कर में 2.5 लाख?

प्रशांत : हाँ; ये प्रॉफिट है और टिकट का जो निकलता है, हम साथ में कपड़ा भी लाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम भी लाते हैं, और भी बहुत सारा सामान तो हम टिकट और कस्टम यूएस में कर लेते हैं।

रिपोर्टर : मतलब, आप आने-जाने का ख़र्चा यूएस से निकाल लेते हो?

प्रशांत : हाँ।

रिपोर्टर : तो आप ये किसके लिए करते हो?

प्रशांत : अभी मैं अपने लिए करता हूँ। पहले मैं किसी के लिए करता था। लेकिन अभी मेरा अपना अमाउंट (पैसा) हो गया, तो मैं ख़ुद का लगाया, थोड़ा दूसरे का लगाया था। कोविड में मेरा बहुत नुक़सान हुआ। …फिर लास्ट टाइम मैंने काम नहीं किया।

अब प्रशांत ने ‘तहलका’ रिपोर्टर के समक्ष स्वीकार किया कि चूँकि xxxx हवाई अड्डे पर उसका कनेक्शन है, इसलिए वह कोलकाता के खुले बाज़ार से अमेरिकी डॉलर ख़रीद रहा है; वह भी स्वीकार्य सीमा से कहीं ज़्यादा। वह इन डॉलर्स को अवैध रूप से xxxx हवाई अड्डे से थाईलैंड भेजता है और हवाला के ज़रिये वापस भारत लाता है। प्रशांत ने बताया कि हवाला ऑपरेटर तभी पैसा जारी करता है, जब वह अपनी पहचान साबित करने के लिए एक पर्ची दिखाता है।

रिपोर्टर : नहीं, आप ये कह रहे हो- डॉलर की एक लिमिट है, इंडिया से बाहर ले जाने की?

प्रशांत : इंडिया से बाहर ले जाने की सिर्फ़ इंडिया में ही लिमिट (सीमा) है, विदेश वालों की नहीं।

रिपोर्टर : एक बंदे की क्या लिमिट है?

प्रशांत : एक बंदे की 1,500-2,000 रुपये तक यूएस डॉलर…।

रिपोर्टर : आप कितना ले जाते हो?

प्रशांत : 15,000-20,000…।

रिपोर्टर : ये डॉलर आपके पास कहाँ से आते हैं?

प्रशांत : हम ख़रीदते हैं, लोकल मार्केट से।

रिपोर्टर : यहाँ पर करोल बाग़ से? आप किस रेट पर ख़रीदते हो?

प्रशांत : हम ख़रीदते हैं, जैसे यहाँ का रेट है… रुपये 86 प्वाइंट कुछ चल रहा है। कुछ ऊपर-नीचे होता रहता है, वहाँ का अलग है। स्टेट का फ़र्क़ पड़ता है। 10 पैसा यहाँ कम हो सकता है, या वहाँ बढ़ सकता है। …सब ऑनलाइन ही होता है।

रिपोर्टर : आप करोल बाग़ से ख़रीदते हो डॉलर?

प्रशांत : नहीं, मैं कोलकाता से, क्यूँकि xxxx  एयरपोर्ट (हवाई अड्डे) में ही हमारी सब सेटिंग है।

रिपोर्टर : मतलब, कोलकाता ओपेन मार्केट से आप डॉलर लेते हो?

प्रशांत : जी।

रिपोर्टर : उसे लेकर बैंकॉक चले जाते हो, वाया xxxx एयरपोर्ट?

प्रशांत : हाँ।

रिपोर्टर : और कितने दिन रहते हो वहाँ?

प्रशांत : बैंकॉक में देखो आज गये, एक दिन का स्टे किया, दूसरे दिन रिटर्न (वापस)।

रिपोर्टर : अच्छा; वो जो पैसा आता है हवाला से…; मान लीजिए 10,000 डॉलर ले गये आप, …इंडियन करेंसी में कितना हुआ?

प्रशांत : 8.5 लाख्स हुआ।

रिपोर्टर : 8.5 हवाला से आप इंडिया भेज देते हो, इंडियन करेंसी में! …वो किसके पास आता है?

प्रशांत : वो आता है हवाला वाले के पास। तो उसके बाद हमें एक पर्ची देनी पड़ती है। तो वो दिखाकर ही हमें पैसे मिलते हैं। जैसे हमने जीतू भाई के नाम से लगाया, तो जीतू भाई जाएगा, वो कार्ड दिखाएगा, उसको पैसे मिल जाएँगे।

रिपोर्टर : बंदे जेनुइन हैं?

प्रशांत : हमारे जान-पहचान के हैं। आज से नहीं, कई वर्षों से। …ऐसा है, मैं तो ये कहता हूँ, अगर आप इंट्रेस्टेड हो, आप हमारे साथ कोलकाता चलिए, पूरा सिस्टम देखिए; …अगर आपके पास पासपोर्ट है, कोई दिक़्क़त नहीं है, बिलकुल ओपेन (खुला) काम है।

प्रशांत सिंह ने अब हवाला ऑपरेटरों द्वारा उसके तस्करी नेटवर्क को सुविधाजनक बनाने से प्राप्त वित्तीय लाभ का ख़ुलासा किया है। उसने बताया कि ये ऑपरेटर मुद्रा विनिमय के दौरान दरें बढ़ाकर प्रति लेन-देन 4,000-5,000 रुपये कमाते हैं। प्रशांत ने यह भी स्वीकार किया कि उसने पहले सनी नामक किसी व्यक्ति के अधीन काम किया था; और अंतत: अपना स्वतंत्र व्यवसाय स्थापित किया था।

रिपोर्टर : अच्छा; आपने ये पैसा दे दिया, 8.5 लाख रुपये; लेकिन हवाला वाले को क्या फ़ायदा हुआ?

प्रशांत : हवाला वाले का भी फ़ायदा है इसमें, …हवाला वाला अपने रेट में बेचता है।

रिपोर्टर : वो कितने कमा लेता है 8.5 लाख में?

प्रशांत : कमा लेता होगा 2-4 हज़ार…, 5,000 तक।

रिपोर्टर : एक ट्रिप में?

प्रशांत : हाँ। वन टाइम अगर हम हवाला लगाते हैं, तो उसको 4-5 हज़ार का फ़ायदा हो जाता है।

रिपोर्टर : पहले आप किसके लिए काम कर रहे थे?

प्रशांत : पहले मैं कर रहा था एक हमारे सन्नी जी हैं, उनके लिए। …थोड़ी फंडिंग मेरी भी थी उसमें।

प्रशांत ने स्पष्ट रूप से बताया कि डॉलरों के हस्तांतरण के लिए वह अवैध माध्यमों का सहारा लेता है, जिससे टैक्स बचता है। उसने तर्क दिया कि क़ानूनी रास्ता अपनाने पर जीएसटी सहित उस पर भारी कर बोझ पड़ेगा।

रिपोर्टर : ये बताइए, इसमें टैक्स किसका बचा?

प्रशांत : टैक्स देखो, अगर हम प्रॉपर तरीक़े से जाएँगे, तो पूरा बिल बनेगा। तो जो चीज़ हमें 8.5 लाख की पड़ रही है, वो फिर हमें 8.7 की पड़ेगी; ज़्यादा ही पड़ेगी। जीएसटी मिलाकर… तो जो हमारी बचत है, वो सारी उसमें चली जाएगी।

प्रशांत ने डॉलर के अवैध हस्तांतरण के लिए कुछ xxxx हवाई अड्डा अधिकारियों को रिश्वत देने की बात स्वीकार की। उसने बताया कि किस प्रकार धन को छुपाया जाता है, ताकि हवाई अड्डे की एक्स-रे प्रणाली से भी उसका पता न चल सके।

प्रशांत : वो वहाँ जाकर कुछ भी करें, वो पैसे हमें इक्वल हो गया। अगर हम यहाँ से कस्टम को कुछ कट दे देते हैं, 5,000-3,000 रुपये, …3,000-4,000 पर बंदा चला जाता है। उसको पता होता है। मगर फिर भी हम उस पैसे को बहुत मैनिपुलेट करके (होशियारी से) ले जाते हैं। ऐसा नहीं कि जेब में डाला और चल दिये। क्यूँकि रिस्क (जोखिम) होता है। कल को वो मुकर गया, कह दिया- मेरा सीनियर आ गया था। मैं क्या कर सकता हूँ। इसलिए बहुत मैनिपुलेट करके ले जाते हैं।

रिपोर्टर : जैसे 10,000 डॉलर हैं, उसे आप अलग-अलग रखते हैं?

प्रशांत : ऐसे सिस्टम में रखते हैं कि वो एक्स-रे में भी नहीं आता।

रिपोर्टर : ऐसा भी है, वो एक्स-रे में आएगा भी नहीं?

प्रशांत : ले जाने वाले तो 30-40 हज़ार तक ले जाते हैं; मगर हमारा इतना काम नहीं है।

बातचीत जारी रखते हुए प्रशांत ने बताया। उसने xxxx हवाई अड्डे के अधिकारियों को रिश्वत देने की बात स्वीकार की, जिससे उसे सोना और डॉलर की तस्करी के काम में मदद मिली। जबकि अन्य हवाई अड्डों पर भी ऐसी ही गतिविधियाँ होती हैं; लेकिन कम वित्तीय आवश्यकताओं के कारण वह xxxx को प्राथमिकता देते हैं। प्रशांत ने बताया कि वह मुख्य रूप से थाईलैंड के साथ व्यापार करता है। हालाँकि एक बार उसने दुबई से भारत में सोने की तस्करी करने का प्रयास किया था, जो काफ़ी महँगा साबित हुआ।

रिपोर्टर : तो ये सब आप xxxx से ही कर रहे हैं?

प्रशांत : काम मैं xxxx से कर रहा हूँ।

रिपोर्टर : दिल्ली से xxxx?

प्रशांत : दिल्ली से सर बहुत बड़ी फर्म काम करती है। …और अच्छे लेवल (स्तर) पर काम करते हैं।

रिपोर्टर : मतलब, दिल्ली से भी हो रहा है ये काम? …आप क्यूँ नहीं कर पा रहे दिल्ली से?

प्रशांत : सर! इतनी फंडिंग नहीं है। …देखो सर! बिना ऑफिसर के काम करना तो बेवक़ूफ़ी है। कल को कोई बात होती है, तो मैं बोल भी सकता हूँ- सर थोड़ा-सा देख लीजिए। …अगर आप लेते हैं, तो कहीं-न-कहीं रियायत भी करेंगे। वो भी ज़रूरी है। दिल्ली xxxx में कोई 10 लाख, 50 लाख से नीचे बात ही नहीं करता। जितना पैसे, उतना ही काम होता है; और सीधा-सीधा होता है।

रिपोर्टर : यहाँ से भी, दिल्ली xxxx से काम हो रहा है मतलब?

प्रशांत : xxxx, xxxxङ्ग, xxxx, xxxx; ऐसा कोई एयरपोर्ट नहीं है, जहाँ से ये काम न हो रहा हो।

रिपोर्टर : यही काम डॉलर का?

प्रशांत : डॉलर का, गोल्ड का; …गोल्ड में रिस्क बहुत है।

रिपोर्टर : आप सिर्फ़ बैंकॉक से ही कर रहे हो?

प्रशांत : हाँ; बीच में मैंने दुबई से किया था, सेकेंड लॉकडाउन के समय। ….दुबई बहुत एक्सपेंसिव (महँगा) है, तो हमारा नहीं बन पाया था।

अब प्रशांत ने ख़ुलासा किया कि वह न केवल डॉलर की तस्करी में शामिल है, बल्कि कई कैरियर पर निर्भर होकर xxxx हवाई अड्डे से बैंकॉक तक अवैध सोने के व्यापार में भी शामिल है। उसने इस कार्य की लाभप्रदता का विस्तृत विवरण दिया तथा बताया कि किस प्रकार वह डॉलर का उपयोग करके बैंकॉक में सोना ख़रीदता है तथा उसे भारत में बेचता है।

प्रशांत : जैसे कि हम गोल्ड में काम करते हैं। मैं आपको मार्केट रेट से पूरा समझा सकता हूँ। जैसे कि हमने छोटी-सी इन्वेस्टमेंट से पाँच लाख रुपये लगा दिये। पाँच लाख का हमने गोल्ड लिया। डॉलर लेकर बैंकॉक गये; …पर हम हवाला नहीं करा रहे, क्यूँकि हम आगे माल ख़रीद रहे हैं। उस पैसे को गोल्ड में कन्वर्ट किया, पाँच लाख को 5.5 लाख लगभग…।

रिपोर्टर : यहाँ से डॉलर लेकर गये आप?

प्रशांत : हाँ; लगभग 5.5 लाख्स, 100 ग्राम का रेट बता रहा हूँ आपको।

रिपोर्टर : डॉलर लेकर गये, वहाँ से गोल्ड ख़रीदा, बैंकॉक में?

प्रशांत : वहाँ से हम गोल्ड लेकर आएँगे, इंडिया में बेचेंगे। 60 हज़ार रुपये में बेचेंगे, जो आज का रेट है। 60 हज़ार रुपये 100 ग्राम के, …हमें 50 हज़ार रुपये 100 ग्राम में बचते हैं। यही 50 हज़ार को अगर हम 10 बार में मल्टीप्लाई (गुणा) करते हैं, तो हमें पूरी पाँच लाख रुपये की इनकम (आमदनी) है, पूरी-पूरी। पाँच लाख में से अगर एक लाख हम काट भी लेते हैं, तो हमें चार लाख रुपये का प्रॉफिट है महीने का। ये है सिस्टम। और भी सामान हम मैनिपुलेट करके लाते हैं।

रिपोर्टर : कैसे?

प्रशांत : कभी आप चलो, मैं आपको पूरा समझाता हूँ।

प्रशांत ने बताया कि वह किस प्रकार बैंकॉक से कैरियर के माध्यम से सोने की तस्करी करता है। उसने बताया कि हालाँकि लोग क़ानूनी तौर पर 50 हज़ार रुपये तक का सोना भारत में ला सकते हैं; लेकिन उनका परिचालन वाणिज्यिक विभाग से होता है। वह बैंकॉक और भारत के बीच यात्रा करता है और न केवल सोना, बल्कि कपड़े, स्पेयर पार्ट्स और लैपटॉप भी लाता है।

रिपोर्टर : गोल्ड अलाउड कितना है, इंडिया में लाना?

प्रशांत : जेनुअन (वास्तविक) तो 50 हज़ार तक है। आप हसबैंड-वाइफ गये, चेन ख़रीद ली, एट्च (इत्यादि)। जेनुअन तरीक़े से इंडिया में 50 हज़ार तक का ला सकते हैं। जैसे 50 हज़ार का आपकी वाइफ पहनकर आ गयी। तो वो आपसे ड्यूटी भरवाएँगे या बिल माँगेंगे। और जो भी आपकी ड्यूटी बनती है टैक्स की, वो आपको देना पड़ेगा। पर हमारे साथ क्या है, हम कॉमर्शियल हैं। हम बैक-टू-बैक बैंकॉक जाते हैं। अगर हम आज बैंकॉक से आये, तो हम एक दिन रुककर फिर दोबारा बैंकॉक जाएँगे। तो हम बिजनेस कर रहे हैं; …ठीक है। हम वहाँ से कपड़ा भी लाते हैं। बहुत सारी चीज़ें भी लाते हैं। स्पेयर पार्ट्स लाते हैं। लैपटॉप लाते हैं।

प्रशांत ने ख़ुलासा किया कि वह कभी भी सोने और डॉलर की तस्करी करते हुए नहीं पकड़ा गया; क्योंकि वह xxxx हवाई अड्डे पर कुछ अधिकारियों को पैसे देता है। उसने बताया कि रिश्वत से कामकाज सुचारू रूप से चलता है और अधिकारी उसकी गतिविधियों पर आँखें मूँद लेते हैं। प्रशांत ने बताया कि भुगतान की जाने वाली राशि अलग-अलग हो सकती है, कभी-कभी यह छोटी राशि या शराब की एक बोतल भी हो सकती है; लेकिन अधिकारी के आधार पर यह बड़ी राशि तक भी हो सकती है।

रिपोर्टर : 100 ग्राम गोल्ड लाते हो, कभी पकड़े नहीं गये आप?

प्रशांत : देखो सर! श्योर (ज़रूरी) तो हर बार नहीं होते, काफ़ी दिन हमारे होते हैं, काफ़ी ऑफिसर्स के भी होते हैं। तो वो मडवाली हो जाती है बीच में। क्यूँकि उनको भी मालूम है, इनके हाथ काट देंगे, तो क्या करेंगे ये लोग। क्यूँकि हम डेली कस्टमर को देकर निकालते हैं। अगर मैं आपको 3,000 रुपये दे रहा हूँ, पर चक्कर; …तो आपको 3,000 रुपये तो आ ही रहा है ना! अब आपको पता है मैं इतना ला रहा हूँ। अब कोई ऑफिसर आ रहा है, वो देख रहा है, इसका इतना माल शो हो रहा है; …तो वहाँ पर क्या होगा जमा होने के चांस नहीं होते। पैसा देना पड़ता है। अब हो सकता है, वो ऑफिसर एक बोतल माँग ले, दारू की। हो सकता है 50 हज़ार माँग ले। हो सकता है 50-60 हज़ार या एक लाख तक माँग ले। उससे ऊपर कुछ नहीं हो सकता।

प्रशांत ने स्वीकार किया कि कुछ xxxx अधिकारी, उससे नियमित भुगतान प्राप्त करके उसके विवरण- पासपोर्ट, फोटो, बोर्डिंग पास और बैग का विवरण अपनी टीम को बता देते हैं।

प्रशांत : पहले ही पासपोर्ट, फोटो पहुँच जाती है।

रिपोर्टर : कहाँ?

प्रशांत : कस्टम से, ये शर्ट पहनी हुई है। ये बोर्डिंग है। ये बैग है। ये आ रहा है। पूरी टीम में फैल जाती है, इसको रोकना नहीं है।

अब प्रशांत ने ‘तहलका’ रिपोर्टर के समक्ष कई चौंकाने वाले ख़ुलासे किये, जिनमें से एक भारत में अवैध रूप से अमेरिकी डॉलर ख़रीदने के बारे में था। उसने बताया कि वह बिना किसी पासपोर्ट या दस्तावेज़ के काले बाज़ार से प्रतिदिन 25,000 डॉलर की ख़रीदारी करता है, और इस प्रक्रिया में वह सरकार को दिये जाने वाले सभी करों की चोरी करता है।

रिपोर्टर : अच्छा; डॉलर कैसे सकता है कोई? उसमें कोई डॉक्यूमेंट्स की ज़रूरत तो नहीं होती?

प्रशांत : बिल के संग चाहिए, तो बहुत कुछ है। …इंडिया में न आप साल में बस एक बार 10,000 डॉलर भेज सकते हो; …अपने पासपोर्ट में। उसके बाद आप दोबारा जाओगे, तो वो नहीं देंगे। क्यूँकि आपने एक ही बार में भेज दिया।

रिपोर्टर : अच्छा; साल में एक पासपोर्ट पर 10,000 रुपये आ सकते हैं?

प्रशांत : सिर्फ़ 5,000…।

रिपोर्टर : और आप कितना लाते हो?

प्रशांत : सर! हमें पेपर चाहिए ही नहीं। वो कच्चे में देते हैं। हमें कच्चे में ही चाहिए। जीएसटी नहीं कटवाना, अगर पक्के में चाहिए पैसे अकाउंट से काटेंगे।

रिपोर्टर : आप पासपोर्ट भी नहीं दिखाते होंगे?

प्रशांत : मैं कुछ नहीं दिखाता।

रिपोर्टर : आप कितने ले लेते हो, साल में?

प्रशांत : साल में…! मैं डेली के 25,000 डॉलर ले लेता हूँ।

रिपोर्टर : तो बहुत आगे निकल गये आप तो…!

भारत में मुद्रा और सोने की तस्करी 1,000 करोड़ रुपये का आँकड़ा पार करने को तैयार है, और यह एक फलता-फूलता भूमिगत कारोबार बन गया है। यह जटिल नेटवर्क, जिसमें अक्सर भ्रष्ट अधिकारी शामिल होते हैं, राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए गंभीर ख़तरा पैदा करता है। व्यक्तिगत विमानन कम्पनियाँ, एनआरआई और अंतरराष्ट्रीय एयरलाइन कर्मचारी खाड़ी और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में डॉलर, पाउंड और सोना पहुँचाने के लिए पसंदीदा साधन बन गये हैं। प्रशांत सिंह अपने कैरियर के साथ ‘तहलका’ के कैमरे पर अपने तस्करी के कारोबार के बारे में चौंकाने वाले ख़ुलासे करते हुए रिकॉर्ड किया गया एक ऐसा ही व्यक्ति है। उसके ख़ुलासे से भानुमति का पिटारा खुल गया है, तथा क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों से तत्काल कार्रवाई की माँग की जा रही है।

मॉडर्न हो चुका है आगरा का सेक्स मार्केट

कॉल गर्ल नेटवर्क्स ने आगरा की रेड लाइट बस्तियों को उजाड़ दिया है

बृज खंडेलवाल

आगरा शहर के बीचों बीच माल का बाजार, कश्मीरी बाजार, सेव का बाजार, और किसी वक्त की बदनाम बस्ती बसई ग्राम,  अंधेरा होते ही संगीत की महफिलों से गुलजार रहते थे। ऊंची बालकनियों से ज्यादातर नेपाली सेक्स वर्करस अश्लील इशारे करके राहगीरों को बुलाती थीं। गंदी तंग गलियों से होकर दल्ले ग्राहकों को कोठे तक पहुंचाते थे। आए दिन पुलिसिया रेड्स होती थीं, कोतवाली में वेश्याओं की पहचान परेड होती थी।

अब परिदृश्य बदल चुका है। फतेहाबाद रोड हाइ प्रोफाइल टूरिस्ट एरिया बनने से बसई  में होटल और एंपोरियम्स खुल चुके हैं। उधर सैकड़ों सालों से मुगल कालीन बाजार भी अब व्यावसायिक केंद्रों में तब्दील हो चुके हैं। समय के साथ देह व्यापार में भी डिमांड सप्लाई का खेल काफी बदल चुका है।

जानकार लोग बताते हैं कि ताजमहल और अन्य आकर्षणों के कारण आगरा की वैश्विक पर्यटन केंद्र के रूप में बढ़ती स्थिति ने कथित तौर पर देह व्यापार में वृद्धि की है, अब शहर में देश के विभिन्न हिस्सों से यौनकर्मियों की आमद देखी जाती है। दिल्ली क्षेत्र के काफी लोग वीकेंड या छुट्टियों में प्राइवेट वाहनों से अपने “इंतजामों” के साथ ही विचरण करने आते हैं। टूरिस्ट गाइड्स कहते है कि आगरा में नाइटलाइफ़ तेज़ी से “रंगीन” होती जा रही है, जिसमें एस्कॉर्ट सेवाएँ और हाई-प्रोफ़ाइल पार्टियाँ जैसी गतिविधियाँ पर्यटकों और स्थानीय लोगों दोनों के लिए हैं।   सेवाओं के आयोजन और विज्ञापन के लिए ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म और सोशल मीडिया के उपयोग ने सुविधाओं को और विस्तार दिया है।  स्थानीय सोशल एक्टिविस्टों  का तर्क है कि उचित कानून प्रवर्तन और सार्वजनिक जागरूकता की कमी ने ऐसी गतिविधियों को पनपने दिया है।

एक सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं “आगरा के देह व्यापार में पिछले  वर्षों में  काफी परिवर्तन हुए हैं। पारंपरिक रेड-लाइट एरियाज, जो कभी लोकप्रिय अड्डे थे, लगभग गायब हो गए हैं, जिससे सेक्स व्यापार का फैलाव नए क्षेत्रों में विकेंद्रित हुआ है।  होटलों, स्पा, बार और क्लबों के माध्यम से भी संचालित होता है, जो अब आमतौर पर पॉश इलाकों में पाए जाते हैं। पूर्व में आर्थिक और सामाजिक मजबूरियों से चलता था सेक्स बाजार, अब शौकिया पार्ट टाइमरस और गोरी विदेशी बालाएं भी मैदान में हैं।”

फरवरी 2020 की एक घटना को याद करते हुए एक टूरिस्ट गाइड ने बताया कि पुलिस ने ताजगंज इलाके के एक होटल से उज्बेकिस्तान की तीन और दिल्ली की दो महिलाओं समेत पांच लोगों को गिरफ्तार किया था। तत्कालीन एसपी सिटी रोहन बोत्रे प्रमोद ने कहा था कि इलाके के कुछ होटल पुलिस के रडार पर हैं  और करीब 37 छोटे मोटे होटलों की पहचान ऐसे नेटवर्क के तौर पर की गई है जो विभिन्न स्तरों पर सेक्स रैकेट संचालित करते हैं। एक स्थानीय टूर ऑपरेटर ने कहा कि कुछ साल पहले बीमा नाम का एक शख्स “विदेशी ग्राहकों में विशेषज्ञता रखने वाला एक बिग सेक्स रैकेट ऑपरेटर था जिसके बारे में कहा जाता था कि वह दिल्ली और आगरा के होटलों में रूसी लड़कियों को सप्लाई करता था। एक पुलिस सूत्र ने बताया कि गिरफ्तार किए गए गिरोह के सदस्य स्थानीय फाइव स्टार होटलों से ग्राहकों को लुभाकर सेक्स रैकेट चला रहे थे।”

ऐतिहासिक रूप से, आगरा में सेक्स वर्क में अक्सर कुछ समुदायों की महिलाएँ शामिल होती थीं, जो जीवित रहने के साधन के रूप में इस व्यापार में शामिल होने के लिए जाने जाते थे। उनके साथ, नेपाल की महिलाएँ भी इस परिदृश्य में प्रमुखता से शामिल थीं। फिर पूर्वी राज्यों और बांग्लादेशी भी आए। 20वीं सदी के उत्तरार्ध के दौरान, ये समूह स्थानीय सेक्स वर्क परिदृश्य पर हावी थे, जो पारंपरिक रेड-लाइट क्षेत्रों से जुड़े थे जहाँ लेन-देन सार्वजनिक और स्थानीय थे। इन बस्तियों के पतन के कारण सेक्स व्यापार का विखंडन हुआ है। पिछले दो से तीन दशकों में, विभिन्न सामाजिक परिवर्तनों और आर्थिक बदलावों के आगमन ने देह व्यापार की गतिशीलता को फिर से परिभाषित किया है। बढ़ते पर्यटन द्वारा प्रेरित कॉल-गर्ल बाजार के उदय ने स्थानीय और विदेशी संरक्षकों की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है। यह बदलाव प्रौद्योगिकी और गोपनीयता पर निर्भरता की विशेषता है, जिसमें ग्राहक अक्सर सुरक्षित, सुलभ और आरामदायक  व्यवस्था चाहते हैं। छोटे होटलों ने घंटे के आधार पर कमरे किराए पर देकर इस प्रवृत्ति का लाभ उठाया है।  पूर्व में सेक्स वर्क को अक्सर हाशिए पर रहने वाली महिलाओं के लिए अंतिम उपाय के रूप में देखा जाता था, आज के देह व्यापार में फ्रीलांसर और अंशकालिक खिलाड़ी शामिल हैं। जागरूकता और कंट्रासेप्टिव्स की व्यापक उपलब्धि से कई घरेलू महिलाएँ,  छात्राएँ या युवा पेशेवर  भी शामिल हो चुकी हैं, या हॉस्टलर्स जो अतिरिक्त आय या लचीले कार्य शेड्यूल की तलाश में हैं। यह बदलाव  व्यापक सामाजिक परिवर्तनों को दर्शाता है, जिसमें कार्यबल में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और कामुकता और आर्थिक एजेंसी की बदलती धारणाएँ शामिल हैं। 

जबकि पारंपरिक रेड-लाइट क्षेत्र कम हो गए हैं, सेक्स वर्क के भूमिगत और अधिक परिष्कृत रूप में तस्करी, शोषण और असुरक्षित स्थितियों सहित खतरे और भी अधिक हो सकते हैं। इसके अलावा, नाइटलाइफ़ और आधुनिक अवकाश गतिविधियों के साथ इसके जुड़ाव के माध्यम से सेक्स उद्योग का ग्लैमराइजेशन – बार और क्लबों के उदय में देखा गया – स्टूडेंट्स और युवा पेशेवरों की भागीदारी उन परिस्थितियों के बारे में नैतिक चिंताएँ पैदा करती है जो उन्हें ऐसे विकल्पों के लिए प्रेरित करती हैं। आर्थिक दबाव, बढ़ती जीवन लागत और जीवनशैली में सुधार की चाहत अक्सर व्यक्तियों को इस अनिश्चित पेशे में धकेलती है।

जैसे-जैसे आगरा विकसित होता जाएगा, वैसे-वैसे इसके देह व्यापार की गतिशीलता और व्यापकता बढ़ती जाएगी।

भारत के लिए उदाहरण बनेगा भिखारी-मुक्त इंदौर !

मध्य प्रदेश का मिनी मुंबई यानी इंदौर की एक प्रमुख पहचान उसकी साफ़-सुथरी सड़कें, गली-मोहल्ले हैं। खुली गाय-भैंस-सांड वाला दृष्य भी यहाँ नज़र नहीं आता। इंदौर को लगातार सातवीं बार सबसे स्वच्छ शहर का पुरस्कार मिला है। 01 जनवरी, 2025 से इंदौर अपनी सबसे स्वच्छ शहर वाली राष्ट्रीय पहचान में एक और पहचान जोड़ने जा रहा है- भारत का पहला भिखारी मुक्त शहर।

नगर प्रशासन ने घोषणा की है कि अगर कोई व्यक्ति 01 जनवरी से भीख माँगता हुआ पाया जाता है, तो उसके ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की जाएगी। यही नहीं, अगर कोई व्यक्ति भीख देते हुए पकड़ा गया, तो उसके ख़िलाफ़ भी एफआईआर दर्ज की जाएगी। ज़िला कलेक्टर आशीष सिंह ने लोगों से भिखारियों से पैसे देना बंद करने की अपील की। उन्होंने कहा-‘ मैं इंदौर के सभी निवासियों से अपील करता हूँ कि वे लोगों को भीख देकर पाप के भागीदार न बनें।’

दरअसल इंदौर की भिक्षावृत्ति मुक्त उप योजना केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की फरवरी, 2022 से शुरू की गयी ‘स्माइल-आजीविका और उद्यम के लिए हाशिये पर पड़े व्यक्तियों के लिए सहायता’ नामक योजना के तहत आती है। इस योजना में भीख माँगने के कार्य में लगे व्यक्तियों के व्यापक पुनर्वास के लिए प्रयास शामिल हैं। इस कार्यक्रम का उद्देश्य दीर्घकालिक समाधान प्रदान करके शहरों को भिक्षावृत्ति मुक्त बनाना है। लोगों को सड़कों से हटाने की बजाय, स्माइल उनका पुनर्वास करने पर ध्यान केंद्रित करता है। यह भीख माँगने में फँसे लोगों को उनके जीवन को फिर से बनाने में मदद करने के लिए चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण और नौकरी के अवसर प्रदान करता है।

इसका लक्ष्य उन्हें सम्मान और स्वतंत्रता के साथ जीने में सक्षम बनाना है। सामाजिक न्याय मंत्रालय भीख माँगने को ग़रीबी का सबसे चरम रूप बताता है। मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है कि अधिकांश लोगों के लिए भीख माँगना कोई विकल्प नहीं है, यह जीवनयापन का साधन है। इसलिए उनके पुनर्वास पर केंद्रित कार्यक्रम पर फोकस करना बहुत ज़रूरी है।

ग़ौरतलब है कि स्माइल योजना के तहत देश के 30 ऐसे शहरों का चयन किया गया है, जो ऐतिहासिक, धार्मिक व पर्यटन शामिल हैं। इन्हें 2026 तक भिक्षावृत्ति मुक्त बनाना है। 10 शहर पायलट परियोजना में दिल्ली, लखनऊ, हैदराबाद, चेन्नई, अहमदाबाद, हैदराबाद, मुंबई, नागपुर, पटना, बेंगलूरु आदि शहरों को शामिल किया गया है। ताज़ा अनुमान के अनुसार, देश में क़रीब 6.20 लाख भिखारी हैं। सन् 2011 की जनसंख्या के आँकड़ों के अनुसार, उस समय देश भर में 3.72 लाख से अधिक भिखारी थे। सबसे अधिक भिखारी पश्चिम बंगाल में बताये जाते हैं। उसके बाद भिखारियों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है।

दरअसल, भारत में भीख माँगने से रोकने को लेकर कोई केंद्रीय क़ानून नहीं है। जुलाई, 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने भीख माँगने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और कहा था कि यह सामाजिक-आर्थिक समस्या है। पढ़ाई-लिखाई न होने और नौकरी नहीं मिल पाने के कारण लोग भीख माँगने को मजबूर होते हैं। लेकिन इंदौर प्रशासन ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा-163 के प्रावधान के तहत 01 जनवरी, 2025 से भिखारियों को भीख और पैसे देना और भीख माँगना एक अपराध बना दिया है। ऐसा करने वालों के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई शुरू की जाएगी। इस धारा के तहत जारी आदेशों का उल्लंघन करने वाले को अधिकतम छ: महीने की जेल और 1,000 रुपये तक का ज़ुर्माना हो सकता है।

ग़ौरतलब है कि इंदौर ज़िला प्रशासन ने फरवरी, 2024 में शहर में भिक्षावृत्ति अभियान के तहत पड़ताल शुरू की थी। इस अभियान के दौरान पता चला कि कुछ भिखारियों के पास पक्के मकान हैं। कुछ भिखारी पैसा ब्याज पर देते हैं। पड़ताल में अनुमान लगाया गया कि एक संगठित गिरोह इंदौर में सक्रिय है, जो भिक्षावृत्ति को ख़ास संरक्षण प्रदान करता है। मध्य प्रदेश के सामाजिक कल्याण मंत्री नारायण सिंह कुशवाहा ने कहा कि इंदौर का एक संगठन सरकार के इस प्रयास के लिए आगे आया है। यह संगठन उन्हें छ: महीने तक आश्रय प्रदान करेगा और उनके लिए काम खोजने का प्रयास करेगा।

यह एक सराहनीय पहल है, जो इंदौर को वास्तव में भिखारी मुक्त शहर बनाने में मदद कर सकती है। लेकिन इस योजना की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि लोग प्रशासन का कितना सहयोग करते हैं।’ इसमें कोई दो-राय नहीं कि ऐसी योजनाओं को सफल बनाने में जन सहयोग बहुत ज़रूरी है।

लेकिन जानना अहम हो जाता है कि पुनर्वास और रोज़गार किस स्तर का मुहैया कराये जा रहे हैं? ये कितने टिकाऊ हैं? क्या भिक्षावृत्ति को दंडात्मक कार्रवाई घोषित करना इससे मुक्ति पाने का सही और सफल समाधान है? इन सवाल के जवाब में इंदौर की कल्पना जैन का अभी तक यही जवाब है कि ‘यह उल्लेखनीय पहल है। उम्मीद है कि यहाँ की जनता इस प्रयास में अपना सहयोग उसी प्रकार देगी, जैसे कि स्वच्छता अभियान में दे रही है।’

धर्म के पर्दे में छिपे ख़ूँख़्वार चेहरे

हिन्दुस्तान में धर्म का व्यापार क्यों फलता-फूलता है और किसकी शह पर फलता-फूलता है? इससे भी बड़ा सवाल है कि धर्म की आड़ में अवैध व्यापार किसकी शह पर फलता-फूलता है? क्योंकि पिछले 10-11 वर्षों से जिस प्रकार से न सिर्फ़ अवैध व्यापार फले-फूले हैं, बल्कि अवैध व्यापारी भी तेज़ी से हिन्दुस्तान में पनपे हैं, जो कि दूसरों के नाम से अपने काले धंधे करके अनाप-शनाप पैसा कमाने वाले ख़ूँख़्वार लोग कौन हैं? ऐसे लोगों का जब मीडिया में पर्दाफ़ाश होता है, तो उनकी ख़बरों को दबाने के लिए गोदी मीडिया से लेकर सत्ताएँ और उनका फालोवर एक बड़ा तबक़ा सामने आ जाता है। मसलन, गोतस्करी और गोमांस की तस्करी करने वालों में आज के तथाकथित संस्कारी वर्ग से आने वाले जैन, धनपति और कथित ब्राह्मणों में ही अनेक व्यापारी-बनियों के चेहरे ही अब तक सामने आये हैं। इन लोगों ने मुसलमानों की आड़ लेकर अपने क़त्लख़ानों के नाम अरबी और उर्दू में रखकर किसानों द्वारा सबसे ज़्यादा पाले जाने वाले पूज्य पशु गाय को टारगेट किया है। गोरक्षा के नाम पर पिछले कुछ वर्षों से जो ड्रामेबाज़ी इस देश में हुई, उससे पूरा देश वाक़िफ़ है।

आँकड़ों की मानें, तो गोमांस और गोवंश की तस्करी में दुनिया में जितने गोमांस का निर्यात होता है, उसका 27.5 फ़ीसदी से ज़्यादा हर साल क़रीब 24 लाख मीट्रिक टन गोमांस निर्यात अकेले हिन्दुस्तान करता है। एफएओ की रिपोर्ट के मुताबिक, हिन्दुस्तान ने साल 2016 में कुल 1.09 करोड़ टन गोमांस का निर्यात किया था, और इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है। एफएओ की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2026 तक हिन्दुस्तान क़रीब 1.24 करोड़ टन गोमांस बढ़ाकर निर्यात करने की तरफ़ बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी के सत्ता में आने के बाद गोमांस की तस्करी और निर्यात दूसरे पशु-पक्षियों के मांस की तस्करी और निर्यात के अनुपात में सबसे तेज़ी से बढ़ा है। एक तरफ़ मोदी सरकार गोरक्षा का ड्रामा करती है, तो दूसरी तरफ़ वो बूचड़ख़ाने खोलने और उनके आधुनिकीकरण के लिए 15 करोड़ रुपये की सब्सिडी दे रही है।

देश में सत्ता सँभालने से पहले नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब वहाँ भी गोमांस निर्यात में गुजरात ने रिकॉर्ड तोड़ा था। मसलन, मोदी के गुजरात की सत्ता में आने से पहले साल 2001-02 में गुजरात का गोमांस निर्यात 10,600 टन था; लेकिन अगले ही 10 वर्षों में मोदी के वहाँ की सत्ता सँभालने के बाद 2011-12 में गोमांस का निर्यात 22,000 टन गुजरात में हो गया था। हाल यह है कि साल 2013 तक हिन्दुस्तान मांस निर्यात में ब्राजील से भी पीछे था, लेकिन साल 2014 में ही मोदी के सत्ता में आने के बाद ब्राजील से ज़्यादा मांस निर्यात हिन्दुस्तान करने लगा था। आज हिन्दुस्तान दुनिया का सबसे बड़ा मांस निर्यातक देश बन गया है। आँकड़े बताते हैं कि हिन्दुस्तान में गोमांस निर्यात हर साल तक़रीबन 12 फ़ीसदी बढ़ोतरी हो रही है। यानी केंद्र की मोदी सरकार ने गोमांस की तस्करी से गोरक्षा का ड्रामा करके बढ़ायी है। इतना ही नहीं, गोवंश की दुर्दशा भी गोरक्षा अभियान के बाद ही ज़्यादा होती दिख रही है। आज सड़कों पर मारी-मारी गायें भूखी-प्यासी गंदगी खाते हुए हर जगह दिख जाती हैं। दरअसल, आज़ाद हिन्दुस्तान में किसानों को गाय में 36 करोड़ देवी-देवता होने की धार्मिक किताब छापकर और ब्राह्मणों को गोदान की बात लिखकर गाँवों में युद्ध स्तर पर बँटवाकर ग्रामीणों में गायों के प्रति जो आस्था जगाने का ड्रामा किया गया, उससे गोमांस के निर्यात और तस्करी, गोवंश की तस्करी करने वालों को शह दी गयी। भाजपा ने सत्ता में आते ही इसका सबसे ज़्यादा फ़ायदा उठाया। हिन्दुओं में गाय को पूजने के साथ कई और भी बनावटी और झूठे प्रचार पहले ही थे। इससे किसान परिवार ख़ुद ग़रीबी में जीते हुए और क़ज़र्दार होते हुए भी अपने पशुधन, ख़ासतौर पर गायों को खिला-पिलाकर बढ़ा करके उनसे दूध-दही-घी-छाछ, खाद के लिए ज़्यादा गोबर और बछड़े मिलने के समय हाथ जोड़कर उन नयी दुधारू गायों को दान करते थे। इसी धार्मिक भावना का फ़ायदा कांग्रेस के बाद भाजपा ने ख़ूब उठाया और कांग्रेस की केंद्र सरकारों से भी 10 क़दम आगे बढ़कर गोमांस और गोवंश की तस्करी में अपने हाथ रंग लिये; लेकिन बड़ी चालाकी के साथ। अभी हाल ही में नोएडा में एक एसपीजी कोल्ड स्टोरेज से 185 टन से ज़्यादा गोमांस बरामद हुआ था, जिसका मालिक कोई पूरन जोशी निकला। इसी प्रकार से केंद्र सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के तहत काम करने वाले कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (अपेडा) द्वारा पंजीकृत 74 बूचड़ख़ानों में से कम-से-कम 9 बूचड़ख़ानों के मालिक हिन्दू हैं। जानकारी करने पर पता चला है कि यह सारी क़सरत सरकारी अनुदान लेने के लिए की जाती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

नहीं चली मनमानी

यह आश्चर्य की बात है कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के जिस विधेयक को लोकसभा में पेश करने से पहले भाजपा प्रधानमंत्री मोदी का सपना बता रही थी, उस विधेयक की वोटिंग में भाजपा के ही एक-दो नहीं, 20 सांसद अनुपस्थित थे; व्हिप जारी होने की बावजूद। इनमें प्रधानमंत्री पद के दावेदार माने जाते रहे वरिष्ठ भाजपा नेता, मंत्री नितिन गडकरी और कभी कांग्रेस में रहते हुए राहुल गाँधी के सखा माने जाने वाले मोदी सरकार में मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हैं। भाजपा के एक राष्ट्र, एक चुनाव को देश के हित में बताने के दावों के विपरीत कांग्रेस और विपक्ष का बड़ा हिस्सा इसे भाजपा की कॉन्सपिरेसी के रूप में देख रहा है। लोकसभा में प्रस्तुत करने के बाद इसके हक़ में 269 वोट पड़े, जो विरोध में पड़े 198 मतों से ज़्यादा ज़रूर थे; लेकिन सरकार बचाने के लिए ज़रूरी बहुमत के 272 के आँकड़े से भी कम थे। मोदी सरकार के लिए यह इसलिए चिन्ता का सबब हो सकता है कि इसके संवैधानिक विधेयक होने के कारण इसे पास करने के लिए दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन चाहिए, जो सम्भव दिख नहीं रहा।

फ़िलहाल इस विधेयक के विरोध को देखते हुए इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया, जहाँ इस पर चर्चा होने और इसके संशोधित रूप (यदि ऐसा हुआ) में वापस लोकसभा के सदन में प्रस्तुत किये जाने में आधा साल तो गुज़र ही जाएगा। विपक्ष इसे आसानी से स्वीकार नहीं करेगा, क्योंकि जो जेपीसी गठित हुई है, उसमें विपक्ष के तेज़-तर्रार सांसद शामिल हैं। इनमें प्रियंका गाँधी भी शामिल हैं, जो कुछ महीने पहले ही सांसद बनी हैं। भाजपा एक राष्ट्र, एक चुनाव वाले इस विधेयक को प्रधानमंत्री मोदी का महत्त्वाकांक्षी विधेयक बता रही है। लेकिन 2014 से लेकर दिसंबर, 2024 के 10 वर्षों में मोदी सरकार के ही रहते जितने भी चुनाव हुए हैं, कमोवेश सभी एक से ज़्यादा चरणों में हुए हैं। हाल में महाराष्ट्र और झारखण्ड के विधानसभा चुनावों में मतदान जितने चरणों में हुआ, उसमें एक महीना खप गया।

यहाँ सवाल यह है कि कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष एक सुर में एक राष्ट्र, एक चुनाव का विरोध क्यों कर रहा है? उसकी आशंकाओं को क्यों गंभीरता से लेने की ज़रूरत है। कोई क़ानून सिर्फ़ इसलिए नहीं बनाया जाना चाहिए कि एक साथ चुनाव होने से देश का धन बचेगा। देश का धन तो सरकारें अपने व्यापारी मित्रों के लाखों करोड़ रुपये उनके क़ज़ेर् माफ़ करने में क़ुर्बान कर देती हैं। लिहाज़ा यह बहुत ज़रूरी है कि इतने महत्त्व का क़ानून पास करने से पहले उस पर देशव्यापी बहस हो। विपक्ष के विरोध को ध्यान में रखा जाए।

देश में आज संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर और ख़ुद संविधान बहस का बहुत गम्भीरता से बड़ा मुद्दा बन गये हैं। सच यह है कि यह मुद्दे देश की राजनीति के केंद्र में आ गये हैं। गृह मंत्री अमित शाह के लोकसभा में आंबेडकर को लेकर विवादित तरीक़े के बयान के बाद संसद के बाहर जिस तरह कांग्रेस और विपक्ष ने विरोध-प्रदर्शन किया है, उससे भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के कुछ घटक दल भी राजनीतिक नुक़सान की चिन्ता में घिर गये हैं। राहुल गाँधी लगातार दलितों-पिछड़ों के अधिकार की बात कर रहे हैं, उससे भाजपा के भीतर भी बेचैनी है। राहुल गाँधी ने बहुत चतुराई से इसमें संविधान और आंबेडकर को भी जोड़ दिया है। चूँकि एक राष्ट्र, एक चुनाव को कांग्रेस और विपक्ष संविधान से जोड़ रहे हैं; यह मुद्दा भी विपक्ष के विरोध का हिस्सा बन गया है। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा संविधान और इससे जुड़ी हर चीज़ को नष्ट करने पर तुली है।

यहाँ सवाल यह भी है कि क्या भाजपा के भीतर भी एक राष्ट्र एक विधेयक और शाह के संसद में आंबेडकर पर विवादित बयान को लेकर चिन्ता है? ऐसा लगता है कि हाँ है। इस विधेयक पर वोटिंग के समय 20 पार्टी सांसदों का अनुपस्थित रहना इसका संकेत है। कुछ हलक़ों में जो यह कहा जा रहा है कि यह भाजपा की ही रणनीति का हिस्सा था, यह सच नहीं लगता है। सच यह है कि ख़ुद पर संविधान के ख़िलाफ़ होने के विपक्ष के आरोपों से भाजपा में बेचैनी है। ऊपर से शाह के आंबेडकर को लेकर लोकसभा में कहे गये शब्द उसे और चिन्ता में डाल गये हैं। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता महसूस करते हैं कि संविधान, आंबेडकर और एक राष्ट्र एक चुनाव पर विपक्ष का विरोध भाजपा को राजनीतिक नुक़सान पहुँचा सकता है। यदि इस पत्रकार को मिली जानकारी सही है, तो भाजपा भी अब इस विधेयक को फ़िलहाल ठंडे बस्ते में रखने की कोशिश में है।

हाल के दिनों में जो कुछ हुआ है, उसमें भाजपा अपने सहयोगियों को लेकर आशंका में घिरी है। उसे लगता है कि चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार और ऐसे सहयोगी दल, जिनका आधार ही दलित-पिछड़े वर्ग की राजनीति पर निर्भर है; बिगड़े तो उसके लिए केंद्र में अपनी सरकार बचाना भी मुश्किल हो जाएगा। ऊपर से भाजपा के माई-बाप माने जाने वाले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मस्जिद-मंदिर पर जो बयान दिया है, उससे भाजपा का शीर्ष नेतृत्व विचलित है। भागवत के हिन्दुओं का नेता बनने वाले बयान को भी मोदी-शाह पर कटाक्ष माना जा रहा है। आरएसएस प्रमुख की सद्भावना की वकालत से उन कट्टर हिन्दूवादी और भाजपावादी तत्त्वों को झटका लगा है, जो मस्जिद के नीचे मंदिर ढूँढने की मुहिम को हवा दे रहे हैं।

शाह के लोकसभा में कांग्रेस को निशाना बनाकर यह कहने कि ‘आजकल आंबेडकर का नाम लेना एक फैशन बन गया है। आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर….। इतना नाम अगर भगवान का लेते, तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता’ ने देश की राजनीति में तूफ़ान ला दिया है। कांग्रेस इसे लेकर देश भर में प्रदर्शन कर रही है, तो दूसरी और बहती गंगा में हाथ धोते हुए आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के चुनाव से ऐन पहले आंबेडकर के नाम पर दलित छात्रों को विदेश की पढ़ाई में आर्थिक मदद की घोषणा कर दी है। इस सारे मामले का असर मोदी के महत्त्वाकांक्षी विधेयक- एक राष्ट्र, एक चुनाव पर पड़ा है; और बहुत ज़्यादा सम्भावना है कि यह फ़िलहाल लटक जाएगा।

यदि गहराई से देखा जाए, तो कांग्रेस बहुत चतुराई से कुछ मुद्दों को एक साथ करने में सफल हो गयी है। इनके केंद्र में संविधान है। इन मुद्दों में 70 फ़ीसदी से ज़्यादा दलितों, पिछड़ों और आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को सामाजिक न्याय दिलाने से लेकर आंबेडकर और एक राष्ट्र एक चुनाव आदि मुद्दे शामिल हैं। कांग्रेस एक राष्ट्र एक चुनाव का विरोध ऐसे ही नहीं कर रही है, बल्कि वह इसके लिए भाजपा की मंशा को भी कटघरे में खड़ा कर रही है। वह तर्क दे रही है कि यह विधेयक संविधान की भावना के ख़िलाफ़ है। आंबेडकर पर शाह के बयान को लेकर देश भर में विरोध-प्रदर्शन और प्रेस कॉन्फ्रेंस करके गृह मंत्री अमित शाह के इस्तीफ़े की माँग इसी रणनीति का हिस्सा है। शाह का बयान कांग्रेस को (विपक्ष को भी) बैठे-बिठाये मिल गया है, जिसका व्यापक असर हो सकता है। कांग्रेस कह रही है कि आंबेडकर ने देश को संविधान दिया और भाजपा उन आंबेडकर के प्रति अच्छे विचार नहीं रखती है।

जानना ज़रूरी है कि देश भर में लोकसभा और विधानसभाओं के एक साथ चुनाव संविधान से जुड़ा मुद्दा क्यों है? दरअसल, यह विधेयक संघीय ढाँचे के ख़िलाफ़ है। क्योंकि संविधान में इसका प्रावधान नहीं है। देश में एक साथ चुनाव के लिए संविधान के अनुच्छेद-83, 89, 172, 275, 376 में सशोधन करना पड़ेगा, जिसके लिए दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन चाहिए। इसके लिए जन-प्रतिनिधि क़ानून-1951 में संशोधन करके धारा-2 में एक साथ चुनाव की परिभाषा जोड़नी पड़ेगी। बीच में लोकसभा या विधानसभा भंग होने की स्थिति में सारे देश में फिर से मध्यावधि चुनाव करना संभव नहीं होगा। इसके अलावा देश में एक साथ चुनाव के लिए बड़े पैमाने पर ईवीएम, कर्मचारियों और सुरक्षा की ज़रूरत पड़ेगी। कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष, जिसमें 30 से ज़्यादा राजनीतिक दल हैं; इसके विरोध में हैं। उधर क्षेत्रीय दलों को डर है कि यह विधेयक उनके अस्तित्व को ख़त्म कर देगा।

पत्नी के भरण-पोषण में बेरोज़गारी का रोना

– पति बेरोज़गार हो, तो पत्नी को भरण-पोषण मिलेगा या नहीं ?

आशा गुटगुटिया

कल्याण चौधरी बनाम रीता चौधरी केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण हमेशा मामले की तथ्यात्मक स्थिति पर निर्भर करता है और विभिन्न कारणों के आधार पर ही न्यायालय भरण-पोषण के दावे को आकार देगी। हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए महिला की भरण-पोषण की राशि को कम पाया और इसलिए इसे 2,500 से बढ़ाकर 5,000 रुपये कर दिया। न्यायालय ने कहा- ‘ऐसा प्रतीत होता है कि वह पत्नी को दिये जाने वाले अंतरिम भरण-पोषण में किसी भी वृद्धि से बचने के लिए अपने वर्तमान रोज़गार को छिपा रहा है। पति द्वारा अतीत में किये गये भारी ख़र्च, उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, उसके त्याग-पत्र से पहले इंजीनियर के रूप में उसकी व्यावसायिक योग्यता, पत्नी को दिये जाने वाले भरण-पोषण की राशि को निर्धारित करने में मदद करते हैं। आज की स्थितियों में एक साधारण जीवन जीने के लिए 2,500 रुपये प्रति महीने बहुत कम है। एक मध्यम वर्गीय महिला के लिए 2,500 रुपये की मामूली राशि से पेट भर भोजन भी जुटा पाना लगभग असंभव है। भले ही पति के अब बेरोज़गार हो गया है पर एक कुशल, योग्य और सक्षम व्यक्ति होने के नाते अपनी पत्नी के भरण-पोषण के लिए राशि का भुगतान करने के लिए ज़िम्मेदार है।’

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धारा-125 सीआरपीसी के तहत पारिवारिक न्यायालय द्वारा पारित आदेश के ख़िलाफ़ पति द्वारा दी गयी अपील पर विचार कर रहा था, जिसके तहत पति को 2,500 रुपये प्रति माह का अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया गया था।

महिला व्यक्तिगत रूप से पेश हुई, जबकि पति का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता ने किया। उसने राशि में पर्याप्त वृद्धि की माँग की, ताकि वह उसी स्थिति में रह सके, जिस स्थिति में वह अपने पति के साथ रहती थी। पति के वकील ने तर्क दिया कि उसके पास आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है।

आगे यह भी कहा गया कि पति ने न्यायालय के समक्ष अपने वेतन के बारे में अलग-अलग बयान दिये; लेकिन वह एक अच्छा वेतन प्राप्त कर रहा था और उसके पास आय के अन्य स्रोत भी थे। उसकी मासिक आय 4,00,000 रुपये प्रति माह से अधिक थी। परिवार न्यायालय पति की आय के विवरण और तलाक़ के मुक़दमे में उसके द्वारा प्रस्तुत किये गये काग़ज़ात पर विचार करने में विफल रही। उसका यह भी कहना था कि उसका पति अन्य महिलाओं के साथ सम्बन्ध बनाने में रुचि रखता था और एक शानदार जीवन जी रहा था। उसने ख़ुद अपने ख़र्चों को विभिन्न मदों में दिखाया था, जो कि 12,000 रुपये प्रति माह से कम वेतन प्राप्त करे, उस व्यक्ति द्वारा वहन करना संभव नहीं है।

इसके विपरीत पति के वकील ने तर्क दिया कि मामले में पत्नी ने उसकी मासिक आय बहुत अधिक दिखायी है, जिसका कोई आधार नहीं है और पत्नी स्वयं एक उच्च शिक्षित महिला है, जो वर्ष 2017 में अपने स्वयं के आय के स्रोतों से 15,000 रुपये प्रति माह कमा रही थी, और सात वर्षों में उक्त राशि में वर्तमान में वृद्धि हुई होगी। उसने बिना किसी पर्याप्त कारण के पति के साथ रहने से इनकार कर दिया। इसलिए वह धारा-125 सीआरपीसी के प्रावधान (4) के अनुसार, किसी भी रखरखाव के लिए हक़दार नहीं थी। यह प्रस्तुत किया गया कि पति अब एक बेरोज़गार व्यक्ति है और इसलिए भी पत्नी को उतना भरण-पोषण देने का कोई सवाल ही नहीं उठता है, जिस स्तर में वे विवाह के समय रह रहे थे।

(लेखिका वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।)

डॉ. मनमोहन सिंह : एक सच्चे राजनेता

यह बड़े खेद की बात है कि भारत में कई लोगों ने प्रधानमंत्री के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान उनकी निंदा की है। जनवरी, 2014 में अपनी अंतिम प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने आलोचनाओं का जवाब उल्लेखनीय शालीनता के साथ दिया और कहा- ‘समकालीन मीडिया की तुलना में इतिहास मेरे प्रति अधिक दयालु होगा।’ डॉ. सिंह, जिनका 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया; अपने पीछे भारत के आर्थिक परिवर्तन के मूक वास्तुकार के रूप में एक विरासत छोड़ गये हैं। एक ऐसा परिवर्तन, जिसने उदारीकरण के बाद के भारत में लाखों युवाओं के जीवन को नया आकार दिया। हालाँकि उनके योगदान को अक्सर राजनीतिक-विमर्श में दबा दिया गया।

एक पत्रकार के रूप में मुझे डॉ. सिंह का दो बार साक्षात्कार करने का सौभाग्य मिला। पहला- इंडियन एक्सप्रेस में रिपोर्टर के रूप में, जब उन्हें अमृतसर में ‘एफई इकोनॉमिस्ट ऑफ द ईयर अवॉर्ड’ मिला था; और उसके बाद सन् 2016 में भारत के आर्थिक सुधारों की रजत जयंती के अवसर पर ‘तहलका’ में संपादक के रूप में। डॉ. सिंह बौद्धिक क़द और शान्त गरिमा के व्यक्ति थे। उच्च पदों पर आसीन होने के बावजूद उन्होंने हमेशा अपनी सफलता को विनम्रता के साथ स्वीकार किया। संभवत: विभाजन के दर्दनाक अनुभवों से प्रभावित होकर जिसने उनके विश्व दृष्टिकोण को गहरे अवचेतन स्तर पर आकार दिया।

डॉ. सिंह एक अलग ही श्रेणी के राजनेता थे, जिन्होंने भारतीय राजनीति की उथल-पुथल के बीच भी अपनी सौम्यता बनाये रखी। 17 मई, 2014 को प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्र के नाम अपने अंतिम संबोधन में उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा कि सार्वजनिक पद पर उनका कार्यकाल एक खुली किताब है। उन्होंने अपने सामने आने वाली चुनौतियों को स्वीकार किया तथा परिश्रम को अपना साधन और सत्य को अपना प्रकाश-स्तंभ मानकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध रहे।

उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम का अधिनियमन था। इस ऐतिहासिक क़ानून ने नागरिकों को सशक्त बनाकर और सरकारी कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करके भारतीय लोकतंत्र को बदल दिया। इसके साथ ही उसी वर्ष लागू किये गये महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम ने लाखों लोगों को आजीविका की सुरक्षा प्रदान करके ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल दी।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी डॉ. सिंह का नेतृत्व समान रूप से परिवर्तनकारी था। उनके दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता हुआ, जिसने दोनों देशों के बीच रणनीतिक सम्बन्धों को पुन: परिभाषित किया। इसके अलावा सन् 2008 के मुंबई हमलों के बाद पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जवाबी सैन्य कार्रवाई से बचने के उनके फ़ैसले ने बुद्धिमत्ता और संयम के एक दुर्लभ समन्वय को प्रदर्शित किया, जिससे परमाणु हथियार सम्पन्न पड़ोसियों के बीच एक और युद्ध को रोका जा सका। डॉ. सिंह की राजनीतिक यात्रा का सबसे अच्छा वर्णन 24 जुलाई 1991 को वित्त मंत्री के रूप में उनके प्रसिद्ध भाषण में मिलता है, जब उन्होंने विक्टर ह्यूगो को उद्धृत किया था- ‘पृथ्वी पर कोई भी शक्ति उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसका समय आ गया है।’ तीस साल बाद भारत के आर्थिक उदारीकरण की वर्षगाँठ पर विचार करते हुए उन्होंने रॉबर्ट फ्रॉस्ट को उद्धृत किया- ‘लेकिन मुझे वादे निभाने हैं, और सोने से पहले मुझे बहुत लंबा सफ़र तय करना है।’ और उनकी विरासत अभी ख़त्म नहीं हुई है।

चूँकि भारत बढ़ती चुनौतियों का सामना कर रहा है। जैसे कि ‘तहलका’ एसआईटी द्वारा की गयी हालिया पड़ताल रिपोर्ट- ‘गोल्ड और डॉलर के तस्कर’ में उजागर किये गये तस्करी के मकड़जाल का विस्तार एक बार फिर अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और समावेशी भारत बनाने वाले डॉ. सिंह के नेतृत्व को याद करने योग्य है। उनके योगदान को हमेशा सराहा नहीं गया। लेकिन इतिहास निश्चित रूप से उन्हें भारत के महानतम राजनेताओं में से एक के रूप में पहचानेगा।

साल के आखिरी दिन शेयर बाजार में भारी गिरावट

मुंबई: घरेलू बेंचमार्क सूचकांक मंगलवार को गिरावट के साथ खुले। शुरुआती कारोबार में निफ्टी पर आईटी, रियलिटी, ऑटो, फाइनेंशियल सर्विस, एफएमसीजी, मीडिया और प्राइवेट बैंक सेक्टर में बिकवाली देखी गई। सुबह करीब 9:25 बजे सेंसेक्स 434.64 अंक या 0.56 प्रतिशत की गिरावट के साथ 77,813.49 पर कारोबार कर रहा था, जबकि निफ्टी 108.90 अंक या 0.46 प्रतिशत की गिरावट के साथ 23,536 पर कारोबार कर रहा था।

बाजार का रुख मिलाजुला रहा। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) पर 1,096 शेयर हरे निशान में कारोबार कर रहे थे, जबकि 1,040 शेयर लाल निशान में कारोबार कर रहे थे। बाजार के जानकारों के अनुसार, “दिसंबर का महीना वैश्विक स्तर पर इक्विटी बाजारों के लिए कमजोर रहा है। एसएंडपी 500 में 2.34 प्रतिशत और निफ्टी में 2.6 प्रतिशत की गिरावट आई है।” उन्होंने कहा, “बाजार नए साल में सावधानी के साथ आगे बढ़ने की तैयारी कर रहे हैं क्योंकि अनिश्चितता अधिक है और मूल्यांकन बढ़ा हुआ है।”

निफ्टी बैंक 191.50 अंक या 0.38 प्रतिशत की गिरावट के साथ 50,761.25 पर था। निफ्टी मिडकैप 100 इंडेक्स 244.95 अंक या 0.43 प्रतिशत की गिरावट के साथ 56,944.80 पर कारोबार कर रहा था। निफ्टी स्मॉलकैप 100 इंडेक्स 21 अंक या 0.11 प्रतिशत की गिरावट के साथ 18,618.95 पर था। सेक्टोरल फ्रंट पर पीएसयू बैंक, फार्मा, मेटल, एनर्जी, कमोडिटीज, पीएसई और हेल्थकेयर सेक्टर में खरीदारी देखी गई। सेंसेक्स पैक में टेक महिंद्रा, एचसीएल टेक, टीसीएस, इंफोसिस, जोमैटो और एनटीपीसी टॉप लूजर्स थे। जबकि टाटा मोटर्स, आईटीसी, टाटा स्टील, एसबीआई, कोटक महिंद्रा बैंक और नेस्ले इंडिया टॉप गेनर्स थे। पिछले कारोबारी सत्र में डॉव जोंस 0.97 प्रतिशत की गिरावट के साथ 42,573.73 पर बंद हुआ। एसएंडपी 500 इंडेक्स 1.07 प्रतिशत गिरकर 5,906.94 पर और नैस्डैक 1.19 प्रतिशत गिरकर 19,486.79 पर बंद हुआ।

एशियाई बाजारों में चीन लाल निशान पर कारोबार कर रहा था, जबकि हांगकांग हरे निशान पर कारोबार कर रहा था। जानकारों ने कहा, “उच्च अमेरिकी बॉन्ड यील्ड और मजबूत डॉलर यह सुनिश्चित करेंगे कि एफआईआई हर तेजी पर बिकवाली जारी रखेंगे। डीआईआई की खरीदारी इतनी मजबूत नहीं होगी कि बाजार को ज्यादा ऊपर ले जा सके।” विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने 30 दिसंबर को 1,893.16 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जबकि घरेलू संस्थागत निवेशकों ने उसी दिन 2,173.86 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे।