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अब बंफर लगे वाहनों का कटेगा मोटा चालान

अब उत्तर प्रदेश की ट्रैफिक पुलिस उन वाहनों के भी बंपर तरीके से चालान काटेगी, जिन वाहनों में बंफर लगे होंगे। जी हाँ, यह हिदायत अपने वाहनों में क्रैश गार्ड अथवा बुल बार अथवा बंफर लगवाकर चलने वालों के लिए है। क्योंकि अब ऐसा करने पर एक-दो हज़ार नहीं, बल्कि पूरे 5,000 रुपये तक का चालान कट सकता है। उत्तर परिवहन सूत्रों की मानें तो यह नियम 01 फरवरी, 2021 से लागू हो गया है। नये फरमान में कहा गया है कि अगर 31 जनवरी के बाद वाहनों में बंफर अथवा क्रैश गार्ड अथवा बुल बार लगे मिले, तो आपको 5,000 रुपये का ज़ुर्माना देना होगा। इस बारे में परिवहन आयुक्त धीरज साहू ने एक बयान जारी करके नया आदेश जारी किया है। यह आदेश प्रदेश के सभी सहायक और संभागीय परिवहन अधिकारियों को जारी किया गया है। आदेश में कहा गया है कि लोग 31 जनवरी, 2021 तक हर हाल में वाहनों के आगे लगे बंफर हटवा लें अन्यथा गाड़ी मालिकों को काफी दिक्कत होगी; क्योंकि इसके बाद अगर वाहनों में बंफर लगे मिले, तो सख्त कार्रवाई करते हुए भारी ज़ुर्माना वसूला जाएगा। परिवहन आयुक्त ने मोटरयान अधिनियम की धारा-52 का हवाला देते हुए विभागीय आदेश में कहा है कि वाहनों में बंफर लगाना अपराध की श्रेणी में आता है, क्योंकि इससे दुर्घटना के वक्त जान-माल का गम्भीर नुकसान होता है। इसलिए वाहनों में बंफर लगवाना पूरी तरह परिवहन नियमों के खिलाफ है।

युवाओं में शौक बन चुका है बंफर लगवाना

पूरे उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ साल से युवाओं में बंफर लगावाने का शौक पनप चुका है। अधिकतर युवा अपने वाहनों, खासकर बड़े वाहनों में बाद में भारी से भारी बंफर लगवाने के शौकीन हो चुके हैं। कुछ युवा अपने को ताकतवर और रॉयल दिखाने के लिए वाहनों में बंफर लगवाते हैं। जितना भारी दिखने का शौक, जितना भारी बंफर। लेकिन यह शौक केवल युवाओं में ही नहीं है, दिन-रात सड़कों पर चलने वाले वाहनों, खासकर जीप, थ्री-व्हीलर, और दूसरे यात्री वाहनों में बंफर आमतौर पर दिख जाते हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लेकर, कानपुर, बाराबंकी, सीतापुर, शाहजहांपुर, बरेली, पीलीभीत, मुरादाबाद, रामपुर, बदायँूं जैसे लगभग सभी छोटे-बड़े शहरों में बंफर लगे वाहन आमतौर पर देखने को मिल जाते हैं। ये बंफर सवारी और माल ढोने वाले वाहनों में तो जैसे आम हो चले हैं। आमतौर पर बंफर और क्रैश गार्ड वाहनों में बाद में वाहनों की सजावट, एसेसीरीज और रिपेरिंग वाली दुकानों पर लगाये जाते हैं।

पहले भी दी जा चुकी है चेतावनी

उत्तर प्रदेश में वाहनों में क्रैश गार्ड और बंफर हटाने को लेकर पहले भी उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग कई बार चेतावनी जारी कर चुका है। विभाग ने पहले इस पर अंकुश लगाने को लेकर ऐसे वाहनों पर कड़ी कार्रवाई भी की है; लेकिन आज तक इस पर पूरी तरह रोक नहीं लग सकी है। मगर अब माना जा रहा है कि इस बार परिवहन विभाग कड़ी कार्रवाई के मूड में है। क्योंकि इस बार ज़ुर्माने की राशि पहले की अपेक्षा बहुत भारी है और जब ट्रैफिक पुलिस पर भारी ज़ुर्माना वसूलने का दबाव ऊपर से होता है, तो चालान काटने के लिए पुलिस और भी खूब सक्रिय हो जाती है। देखना यह है कि वाहन मालिकों से पहले से ही तरह-तरह से भारी ज़ुर्माना वसूल चुका उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग अब बंफर के नाम पर कितनी बंपर कमायी करता है? क्योंकि पहले भी कई बार जारी हो चुके ऐसे आदेशों से रिकॉर्ड वसूली तो नहीं हुई, जिसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब 10 में से 6-7 वाहनों में बंफर लगे मिल जाते हैं, जो कि परिवहन विभाग की तरफ से ठोस पहल न करने का नतीजा ही लगता है। अगर बंफर, क्रैश गार्ड और बुल बार लगाने वाले बाज़ारों में जाकर देखें, तो यह धन्धा खूब फल-फूल रहा है। इस धन्धे के फलने-फूलने की एक वजह यह भी है कि इस धन्धे में लगे लोगों को किसी तरह का लाइसेंस नहीं लेना पड़ता है।

जातिसूचक शब्द लिखने पर भी कट रहे चालान

पिछले ही साल दिसंबर में वाहनों पर जातिसूचक शब्द लिखने पर पाबंदी लगाने के लिए सरकार ने कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिये थे। इसे जातिवाद को खत्म करने की बड़ी पहल के रूप में देखा गया। इस मामले में महाराष्ट्र के शिक्षक हर्षल प्रभु ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आईजीआरएस पर एक शिकायत लिखते हुए वाहनों पर से जातिसूचक शब्दों को हटवाने की अपील की थी। खासतौर पर उन्होंने उत्तर प्रदेश की सड़कों पर दौडऩे वाले वाहनों की नंबर प्लेटों पर जातिसूचक शब्द लिखे होने की शिकायत करते हुए कहा था कि इससे समाज को बड़ा खतरा है।

प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह शिकायत उत्तर प्रदेश सरकार को भेजी और उत्तर प्रदेश सरकार ने इस पर तत्काल प्रभाव से संज्ञान लेते हुए जातिसूचक शब्द लिखे वाहनों के चालान काटने का आदेश उत्तर प्रदेश परिवहन निगम को दिया और अपर परिवहन आयुक्त (प्रशासन) ने नंबर प्लेटों पर जाति लिखाने वाले वाहनों के खिलाफ मुहिम चलाकर वाहन मालिकों से ज़ुर्माना वसूलने के आदेश जारी कर दिये। इस मुहिम के अंतर्गत जातिसूचक शब्द लिखाने वालों के पकड़े जाने पर उनके खिलाफ धारा-177 के तहत कार्रवाई की जा रही है। ऐसे वाहनों पर पहली बार पकड़े जाने पर 500 रुपये और दोबारा पकड़े जाने पर 1,500 रुपये का ज़ुर्माना लगाया जा रहा है। हालाँकि अब भी ऐसे वाहन नज़र आ ही जाते हैं, जिन पर जातिसूचक शब्द लिखे होते हैं; लेकिन फिर भी बहुत-से लोगों ने जाति लिखी नंबर प्लेटों को या तो हटवाकर उनकी जगह दूसरी प्लेट लगवा ली है या फिर जातिसूचक शब्दों को ही हटा लिया है। इस मुहिम के साथ-साथ परिवहन विभाग ने नंबर प्लेट के गलत साइज, प्लेट पर नंबर न होने और नंबरों की आड़ी-तिरछी या छोटी या दिखायी न देने वाली लिखावट को लेकर भी चालान काटने शुरू कर दिये हैं। इस मुहिम से काफी सुधार हो रहा है।

पहले से काटे जा रहे चालानों पर ज़ुर्माने की राशि

बता दें कि उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग पहले से ही कई कमियों को लेकर वाहनों के चालान करवा रहा है। ये चालान वाहनों में पायी जाने वाली हर कमी और ड्राइविंग के गलत तरीकों को लेकर किये जा रहे हैं। सभी तरह के चालानों की ज़ुर्माना राशि भी अलग-अलग है। इनमें ज़्यादातर नियमों में फेरबदल करके पिछले साल ही उत्तर प्रदेश मोटर वाहन नियमावली के तहत ज़ुर्माने की राशि बढ़ाई गयी है। इसके तहत राज्य में दो पहिया और चार पहिया वाहनों को चलाते समय मोबाइल पर बात करने से लेकर हेलमेट के न होने तक पर चालान है। नये आदेश में चालान को दो रूपों में लागू किया गया था, पहली बार में कम ज़ुर्माना और दूसरी बार में अधिक ज़ुर्माना। लेकिन पहली बार में ही काफी मोटा चालान कटने और दोबारा में और भारी-भरकम चालान कटने का प्रावधान है। मसलन वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करने पर पहली बार में 1,000 रुपये का चालान और दोबारा या उसके बाद हर बार मोबाइल पर बात करते पाये जाने पर 10,000 रुपये तक का चालान काटे जाने की मुहिम चल रही है।

इसी प्रकार ड्राइविंग लाइसेंस में गलत जानकारी देने पर भी 10 हज़ार रुपये तक का चालान भरना होगा। बिना हेलमेट पहले वाहन चलाने पर 1,000 रुपये का चालान कट रहा है। नो पार्किंग में वाहन खड़ा करने पर पहली बार में 500 रुपये और दूसरी बार में 1,500 रुपये का चालान होगा। एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड की गाड़ी रोकने या इनके रास्ते में अड़चन डालने पर 10,000 रुपये का चालान होगा। वहीं बिना लाइसेंस या 14 साल से कम उम्र के बच्चों द्वारा वाहन चलाने पर वाहन मालिक को 5,000 रुपये का चालान भरना होगा। सीट बेल्ट न बाँधने पर 1,000 रुपये का चालान और ट्रैफिक अधिकारी की बात न मानने पर या उसके काम में बाधा डालने पर 2,000 रुपये का चालान भरना होगा। इसी तरह तेज़ गति वाहन चालकों को भी भारी ज़ुर्माना देना होगा, इसमें कार वालों को 2,000 रुपये और कॉमर्शियल वाहन वालों को 4,000 रुपये का चालान भरना होगा। इसी तरह दो पहिया वाहनों पर तीन या इससे अधिक सवारी होने पर 1,000 रुपये का चालान भरने का प्रावधान हो चुका है।

नहीं सुधर रहे लोग

उत्तर प्रदेश परिवहन निगम द्वारा भारी ज़ुर्माना वसूले जाने पर भी सुधार हो रहा है, पर उतना नहीं। यहाँ की सड़कों पर बहुत-से लोग नियमों का उल्लंघन करते दिख जाते हैं। क्योंकि परिवहन अधिकारी या ट्रैफिक पुलिस के जवान हर जगह तो खड़े होते नहीं हैं। ऐसे में लोग अपनी मनमानी खूब करते हैं और जहाँ भी कोई अधिकारी या पुलिस वाला नज़र आता है, वहाँ नियमों का पालन कर लेते हैं। इस मामले में ट्रैफिक पुलिस के एक जवान रघुवीर ने बताया कि सभी नियम लोगों की सुरक्षा के लिए ही बनाये जाते हैं, लेकिन लोग समझते नहीं हैं। जब लोग नियमों का पालन नहीं करते, तब सरकार को मजबूरन चालान का डर दिखाना पड़ता है; ताकि उनमें सुधार हो सके और सड़कों पर दुर्घटना न हो।

वक्त के निशान

लेखक वेद मेहता के निधन के साथ, मैं केवल यह कह सकती हूँ कि हमने एक महान् लेखक ही नहीं, बल्कि एक दृढ़ व्यक्तित्व वाले इंसान को भी खो दिया है। मैं उनसे दो बार मिली थी और सन् 2009 की शरद ऋतु के दौरान एक बार उनका साक्षात्कार किया था; जब वह अपनी पत्नी लिन कैरी (19वीं सदी के अमेरिकी लेखक जेम्स फेनिमोर कूपर के वंशज के साथ) नई दिल्ली आये थे।

वह न केवल एक स्पष्टवादी के रूप में सामने आये बल्कि अपने विचारों में भी वे बहुत साफ थे। हालाँकि एक मेनिन्जाइटिस अटैक ने उन्हें 4 साल की उम्र में नेत्रहीन बना दिया था, फिर भी वह बहुत आत्मविश्वास से भरे थे, जीवन से भरपूर। उल्लेखनीय रूप से, अपनी दृष्टिहीनता को उन्होंने अपने लेखन के आड़े नहीं आने दिया। कई बड़ी और लघु कहानियों के साथ 30 से अधिक पुस्तकों के लेखक थे और इस तथ्य को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि यह सब उन्होंने तीन दशकों, 1961 से 1994,  के बीच किया। वह ‘द न्यू योर्कर’ में एक स्टाफ लेखक थे।

इन सबसे ऊपर, उन्होंने जीवन तो पूरी तरह से जिया। उनके पेशेवर जीवन के असाधारण आदान-प्रदान के साथ, उनकी अपरम्परागत और रंगीन जीवन शैली में पर्याप्त दिलचस्प मोड़ थे; निश्चित रूप से जब उन्होंने बसने का फैसला किया। सन् 1983 में 49 वर्ष की आयु में विवाह, जैसा कि अरस्तू के दर्शन में है कि शादी में प्रसन्न रहने के लिए एक व्यक्ति को अवश्य ही अपने से कहीं युवा महिला से शादी करनी चाहिए।

मेरे साथ साक्षात्कार के दौरान उन्होंने विस्तार से कहा- ‘जब मैं 49 साल का था, तब मैंने शादी की। और लिन मुझसे लगभग 20 साल छोटी हैं। वास्तव में लिन एक दोस्त की भतीजी हैं और मैं उनसे पहली बार तब मिला था, जब वह 11 साल की थीं। और कुछ साल बाद मैं उन्हें फिर से एक पार्टी में मिला। उस समय मैं नशे में था और उन्हें चूम लिया था। अगली सुबह मैंने उन्हें एक माफीनामा भेजा, जिसके जवाब में उन्होंने मुझसे कहा कि यह उनकी तरफ से मेरी भावनाएँ थीं। फिर हमने शादी करने का फैसला किया और सन् 1983 में शादी कर ली। आज वह मेरी इकलौती पत्नी हैं और हमारी दो बेटियाँ हैं।’

उन्होंने इस तथ्य पर ज़ोर दिया था कि हमारे ऐतिहासिक अतीत का ज्ञान बहुत महत्त्वपूर्ण है। उसे उद्धृत करने के लिए मुझे लगता है कि हमारा इतिहास आज की पीढ़ी के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। जो लोग इतिहास के बिना रहते हैं, वे जानवरों से बेहतर नहीं हैं। इतिहास महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि यह जीवन में एक आयाम जोड़ता है, जैसे बच्चे और पत्नी एक व्यक्ति के जीवन में अतिरिक्त आयाम जोड़ते हैं।

हालाँकि वह अमेरिका में बसे थे। वह अफगानिस्तान और उसके बाहर अमेरिका की घुसपैठ के सख्त विरोधी थे। खुद उनके शब्दों में- ‘अमेरिका को अफगानिस्तान से बाहर निकलना चाहिए। और ईराक एक बड़ी आपदा थी, पूरी तरह से एक तरह की कल्पना; वैसे ही जैसी अमेरिका से वियतनाम और कोरिया में हुई थी। मैं अहिंसा और सहनशीलता की नीति के साथ हूँ। और मेरा मानना है कि अरस्तू के दर्शन (लोकतंत्र) में आप केवल तभी लोकतांत्रिक कहला सकते हैं, जब बहुसंख्यक आबादी मध्यम वर्ग की हो।’

वेद मेहता भारत में दक्षिणपंथ के सत्ता में आने से भी बेहद आशंकित थे। उन्हें इस बात की चिन्ता थी कि समुदायों के बीच विभाजन और साम्प्रदायिक बदलाव लाये जाएँगे, और यह अपने आप में इस देश की जनता के लिए आपदाओं को बढ़ायेगा।

कहाँ हैं बॉलीवुड सितारे

कहाँ हैं वो बॉलीवुड सितारे और तारिकाएँ, जिन्होंने फिल्मों में किसानों की भूमिका निभायी! मुझे लगता है, वे महज़ एक चित्रण कर रहे थे; परी कथा जैसे चरित्र के साथ। उनके साथ हरे-भरे खेतों और घास के मैदानों और जंगलों में और आसपास गाते और नाचते हुए; भले विभिन्न धाराओं और नदियों और गाँव के तालाबों में नहाते हुए नहीं!

मेरा तर्क सरल और सीधा है। चँूकि उन अनगिनत फिल्मी िकरदारों को उनकी किसान भूमिकाओं के कारण लोकप्रियता हासिल हुई, इसलिए उन्हें आज के किसानों और उनकी दुर्दशा पर एक-दो शब्द कहने चाहिए। अगर गाँव के इलाकों में गाकर और नाचकर मनोज कुमारों और दिलीप कुमारों की पसन्द उनके ग्राफ को ऊपर ले जा सकती है, तो यह समय किसानों के साथ एकजुटता कायम करने का है। हो सकता है कि उनके स्वास्थ्य की स्थिति उन्हें प्रदर्शन करने वाले किसानों तक पूरी शिद्दत के साथ जाने की अनुमति न दे; लेकिन उनके परिवार निश्चित रूप से ऐसा कर सकते थे।

वास्तव में यह निराशाजनक से अधिक है कि बॉलीवुड के जाने-माने पुरुषों और महिलाओं में से कोई भी आगे नहीं आया है और बोल रहा है। क्यों? क्या ऐसा इसलिए है? क्योंकि उनके पास बहुत कम समय या कोई निश्चित वैचारिक झुकाव है या वे वर्तमान राजनीतिक शासकों और उनके नियंत्रण में मशीनरी की प्रतिक्रियाओं को लेकर चिन्तित हैं।

मैं ऐसा इसलिए कह रही हूँ, क्योंकि सन् 2002 के गुजरात दंगों के चेहरों के खिलाफ हममें से कई लोगों ने बात की थी; लेकिन बॉलीवुड ने तब भी निराश किया था। कुछ लोगों ने हत्याओं और नरसंहार के खिलाफ बोलने की हिम्मत दिखायी। लेकिन गुजरात के राजनीतिक शासकों पर बॉलीवुड के बड़े नाम और बैनर क्यों खामोश रहे। उनका जवाब कुछ इतना चौंकाने वाला था- ‘अगर हम आन्दोलन में जान गँवाने वालों या उस हालत में पहुँचने वालों के करीब पहुँच गये होते, तो हम सरकार की कुदृष्टि में आ जाते और हमारी फिल्में निशाना बन जातीं, और इसके साथ ही हम बर्बाद हो गये होते। सच में? नतीजे का इतना खौफ!’

और अब जबकि बॉलीवुड, करीना-सैफ अली खान के दूसरे बच्चे के जन्म की खबर सुनने का इंतज़ार कर रहा है कि वे नये बच्चे को क्या नाम देते हैं? आश्चर्यजनक है। करीना और सैफ अली खान ने अपने बेटे का नाम तैमूर रखा था। तब बहुत हल्के दर्जे की टिप्पणियाँ की गयी थीं। इनमें से बहुत-सी हिन्दु संगठनों की तरफ से।

वास्तव में किसी ने भी बात करने की कोशिश नहीं की। यहाँ तक कि तैमूर के नाम से जुड़ा एक और आयाम है, एक विजेता का।  सन् 1398 में उत्तर भारत में तैमूर के आक्रमण के बाद 1,700 से अधिक लकड़ी नक्काश, वास्तुकार, हस्तलिपि लेखक और अत्यधिक-विशिष्ट रसोइयों (वाज) ने समरकंद से कश्मीर की तरफ पलायन कर दिया था। आज भी कश्मीर घाटी में वाज परिवारों का एक बड़ा हिस्सा समरकंद में अपनी उत्पत्ति की बात करता है और इनकी वाजवान दावतों में बहुत माँग है। इस तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए कि दावतों की दावत कश्मीर के दोनों प्रमुख समुदायों, कश्मीरी पंडितों और कश्मीरी मुसलामनों द्वारा की जाती हैं।

शहरयार की नौवीं बरसी पर

शायर, गीतकार, लेखक शहरयार की अगली पुण्यतिथि (उनका निधन 13 फरवरी, 2012 को हुआ था) पर मैं उनके कोई कविता में नहीं डाल रही हूँ। हालाँकि उमराव जान और गमन में उनके गीत सदाबहार हैं।

हाँ, उनकी कविता के बजाय मैं उनके अवलोकन, सह-हास्य की भावना को उजागर कर रही हूँ…। वह मेरे पिता के पैतृक कस्बे  आँवला (उत्तर प्रदेश) से थे और वह जानते थे कि मेरी छोटी बहन, हबीबा, अलीगढ़ में बस गयी थी। उनके आँवला और अलीगढ़ कनेक्शन के बारे में मुझे तब पता चला, जब मैं पहली बार लगभग दो दशक पहले उनसे मिली थी। एक कॉमन मित्र ने हमें इस विभूति से परिचित कराया- ‘वह हबीबा की बहन हैं।’

इस पर उनकी प्रतिक्रिया थी- ‘आप हबीबा की बहन!’

‘हाँ, मैं हूँ…, वह मेरी छोटी बहन है।’

लेकिन आप अलग दिखती हैं! बहुत अलग! आप दो सगी बहनें हैं! वह अपने सिर को ढककर रखती है; लेकिन आप…!’ इसके साथ ही उन्होंने मेरी स्लीव-लेस शर्ट की तरफ लगभग अस्वीकार्य निगाह डाली।

‘हाँ, हम सगी बहनें हैं।’

‘एक ही पिता से?’

‘हाँ, बिल्कुल।’

‘एक ही पिता?’

‘हाँ, हाँ।’

‘एक ही पिता!’

‘कम-से-कम अम्मा ने तो हमें यही बताया है!’

इसके साथ ही हम दिल खोलकर हँसे…।

चींटी के बराबर भी नहीं हमारी हैसियत

बचपन में कबूतरों और आखेटक यानी शिकारी की कहानी पढ़ी थी। अपनी चतुराई और चूहे की मित्रता के दम पर कबूतर न केवल खुद आज़ाद हो गये, बल्कि आखेटक का जाल भी ले उड़े। आज हम इंसान आपस में इतने बिखर गये हैं कि एक-एक करके आखेटकों के जाल में फँसते जा रहे हैं और आखेट होते जा रहे हैं। ताज्जुब इस बात का है कि हम एक-दूसरे के फँसने और फडफ़ड़ाने पर खुश हैं और उछल रहे हैं। हम खुश इस बात पर भी हैं कि फँसने वाले दूसरे- हिन्दू हैं, मुसलमान हैं, सिख हैं, ईसाई हैं, पारसियन हैं, बौद्ध हैं, जैन हैं, फलाँ हैं-फलाँ हैं। सच तो यह है कि हम सब कुछ हैं, लेकिन इंसान नहीं हैं। क्योंकि हममें एकता नहीं है। अगर कोई ईमानदारी और सच की बात कह दे, तो उसके लाखों दुश्मन! किसी दूसरे मज़हब को मानने वालों से ही नहीं, बल्कि अपने ही मज़हब के मानने वालों से भी। हैरत की बात है न! पहले हम दूसरे मज़हब वालों से लड़ें और अगर कोई यह कह दे कि यह गलत है, हमें मज़हबी होने की बजाय इंसान होना चाहिए, तो अपने ही मज़हब वाले को भी दुश्मन साबित कर दें और उसका जीना हराम कर दें कि आखिर उसने अखलाक और मोहब्बत की बात की कैसे?

क्या अजीब िकस्म है हम इंसानों की? हम सच का ढिंढोरा तो पीटते फिरते हैं, लेकिन हममें से अधिकतर को सच हज़म नहीं होता। शायद हम सब अपने झूठ को सच साबित करने की होड़ कर रहे हैं। और जैसे ही हमारा सामना सच से होता है, हम तिलमिला उठते हैं। ठीक वैसे ही जैसे एक बिगड़ी औलाद को माँ-बाप सुधरने के लिए कह दें, तो उसे बेहद बुरा लगता है।

आज ईश्वर भी हम इंसानों को देखता होगा, तो सोचता होगा कि काश उसने हम इंसानों को भी जानवर ही रखा होता। सच ही है! कम-से-कम जानवरों ने अपनी प्रवृत्ति और प्रकृति तो नहीं खोयी है। हम तो दिमागदार हैं, अक्लमंद हैं, पढ़े-लिखे हैं; तो पढ़-लिखकर हमने आखिर हासिल किया भी क्या है? हमने अपने-अपने अस्तित्व को बचाने के लिए न केवल पृथ्वी के समस्त प्राणियों को, वरन् खुद को भी संकट में डाल रखा है। इसकी जगह अगर हमने सम्पूर्ण मानव जाति के साथ-साथ पृथ्वी के समस्त जीवों की रक्षा की होती, तो शायद आज हम कहीं ज़्यादा स्वस्थ, सुखी और समृद्ध होते। कह सकते हैं कि हमने पढ़-लिखकर खुद को इतना आधुनिक बना डाला है कि हम एक-दूसरे के अस्तित्व को नकारने लगे हैं। और खुद को इतना बड़ा सिद्ध करना चाहते हैं कि कई बार तो ईश्वर को भी छोटा सिद्ध करने की भूल कर बैठते हैं। सच तो यह है कि बड़ा बनने के चक्कर में हमारी हालत उस पागल या शराबी जैसी हो चुकी है, जिसके जिस्म में जान नहीं है; लेकिन वह अपने जुनून में किसी को भी नहीं गिनता है।

कभी छोटा बनकर देखिए। कभी दूसरों में ज्ञान की खोज करके देखिए। दूसरों को समझाने से पहले खुद इस बात को भली-भाँति समझ लीजिए कि इस पृथ्वी पर हमारा अस्तित्व एक चींटी के बराबर भी नहीं। और अगर फिर भी भरोसा न हो और अपने ज्ञान तथा बल पर घमण्ड हो, तो समुद्र को देखिए, उसकी लहरों के भयंकर शोर को सुनिए; आकाश की ऊँचाई को देखिए, उसमें रूई के फाये की तरह उड़ रहे बादलों की गर्जना को सुनिए; कड़कड़ाती बिजली की ज़मीन पर उतरती भयंकर चमक को देखिए; हिमालय की उलटती-पलटती, मौत की तरह तांडव करती कंदराओं को देखिए; ज़मीन के अन्दर की गहराई को देखिए; आग की प्रचण्डता को महसूस कीजिए और वायु के वेग का आभास कीजिए। आपको आपकी तुच्छता का अहसास स्वत: ही हो जाएगा। फिर सोचिए कि ईश्वर ने इतनी भयंकर ताकतों के बीच हम सबको एक ही तरह का जीवन दिया है। वही पैदा होने की प्रक्रिया, वही साँस लेने का तरीका, वही खाने का तरीका, वही जीने का तरीका और अन्त में मर जाने की मजबूरी। सभी को बराबर हवा, बराबर पानी, बराबर जीने का अधिकार और एक ही तरह से देखने, सुनने, सूँघने तथा, महसूस करने की क्षमता दी है। एक ही तरह का शरीर और रक्त दिया है। तब भी हम यह क्यों नहीं मानते कि हम सबका ईश्वर एक है और वह हम सबका परम् पिता है। फिर हमारे मज़हब अलग-अलग कैसे हुए? हम सब एक-दूसरे से जुदा कैसे हुए? हम एक-दूसरे के दुश्मन कैसे हुए? क्यों हमने मज़हब और ज़ात-पात की दीवारें खड़ी कर ली हैं एक-दूसरे के दरमियान? क्यों हम पाप के भागीदार बनते जा रहे हैं? क्यों हम उन्हीं धर्म-ग्रन्थों की बात नहीं मानते, जिनके लिए हम आपस में लड़-मर जाते हैं। हम सबको मरकर उसी ईश्वर के दरबार में जाना है, जिसके लिए हम सब आपस में लड़ रहे हैं। उसी ईश्वर को भाषाओं के अन्तर और बदले हुए नामों के चलते गालियाँ दे रहे हैं! कैसे मूर्ख हैं हम? इतनी बड़ी मूर्खता तो पशु भी नहीं करते। हैरत होती है कि हम उस ईश्वर की रक्षा का दम्भ भरते हैं, जिसने हम जैसे अरबों जीवन्त प्राणियों को जन्म दिया है और उसी की मर्ज़ी से, उसी के रहम-ओ-करम पर सब ज़िन्दा हैं। हैरत होती है कि हम प्यार बाँटने या प्यार करने वालों को अपराधी मान लेते हैं, उन्हें सज़ा देने तक से नहीं झिझकते; जबकि अपराधियों के पैरों में दण्डवत् हो जाते हैं। शायद यही वजह है कि हमारे अपने बच्चे भी अब हमारा सम्मान नहीं करते। हमने संस्कार खो दिये हैं और अपने बच्चों को भी वाहियात बनाते जा रहे हैं। ऐसे में हमारी यह अपेक्षा कि हमारे बच्चे हमारी इ•ज़त करें; बेईमानी नहीं, तो और क्या है? क्या अपने ही बच्चों को संस्कारहीन बनाकर हम उनके साथ अन्याय नहीं कर रहे हैं? क्या यह हमारा अक्षम्य अपराध नहीं है? क्या ऐसा करके हम अपने बच्चों और आने वाली पीढिय़ों को खुशहाल जीवन दे पाएँगे? इन सवालों का जवाब अपने ही अन्दर खोजना। शायद आपको जवाब मिल जाए।

राहुल को फिर कांग्रेस अध्यक्ष बनाने को दिल्ली इकाई ने पारित किया प्रस्ताव

कांग्रेस में राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष पद संभालने की मांग जोर पकड़ने लगी है। पिछले दिनों पार्टी की कार्यकारिणी में 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद नया अध्यक्ष चुनने की बात कही गई थी। इस बीच, दिल्ली इकाई ने रविवार को प्रस्ताव पारित कर राहुल गांधी को तत्काल प्रभाव से दोबारा पार्टी अध्यक्ष बनाने की मांग की है। इसके बाद अन्य राज्यों से भी कांग्रेस इकाइयां ऐसे प्रस्ताव पारित कर राहुल की ताजपोशी की मांग कर सकती हैं।
राहुल गांधी ने वर्ष 2019 के आम चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। राहुल दोबारा अध्यक्ष न बनने की बात कहते आ रहे हैं। कांग्रेस कार्यसमिति की पिछले हफ्ते की बैठक के बाद नए पार्टी प्रमुख के चुनाव की घोषणा की गई।
बैठक में गुलाम नबी आज़ाद, आनंद शर्मा, मुकुल वासनिक और पी चिदंबरम जैसे वरिष्ठ नेता शामिल थे जिन्होंने पार्टी के नेतृत्व और प्रबंधन को लेकर नेतृत्व को असहज करने वाले सवाल उठाए गए थे। उन्होंने संगठनात्मक चुनाव तुरंत कराने की बात कही थी। राहुल ने भी कहा था कि पार्टी जो जिम्मेदारी सौंपेगी, उसे पूरी करने के लिए तैयार हैं। बैठक में गांधी परिवार से अध्यक्ष को लेकर आनंद शर्मा और अशोक गहलोत के बीच तीखी बहस भी हुई थी।

2021 का आईपीएल भारत में होगा, खिलाड़ियों को लगेगा कोरोना टीका

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की ओर से बताया गया है कि 2021 आईपीएल का आयोजन भारत में ही होगा। गत वर्ष कोरोना काल में 13वें संस्करण का आयोजन संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में किया गया था।
बीसीसीआई के कोषाध्यक्ष अरुण सिंह धूमल ने कहा कि भारत समेत ज़्यादातर देशों में कोरोना महामारी के बाद हालात अब बेहतर हो रहे हैं। क्रिकेट प्रेमी भी यही चाहते है कि देश में ही इस टी-20 फॉर्मेट का आयोजन किया जाए।
उन्होंने कहा, हमें उम्मीद है कि इस बार इसका आयोजन देश में ही मुमकिन होगा, हम किसी विकल्प के बारे में नहीं सोच रहे हैं। आईपीएल की संचालन परिषद के सदस्य ने कहा, कोरोना के मामले में इस समय भारत यूएई से अधिक सुरक्षित है।
उन्होंने कहा, हम खिलाड़ियों के टीकाकरण की दिशा में काम कर रहे हैं। सरकारी निर्देशों के अनुसार मोर्चे पर काम कर रहे लोगों और वरिष्ठ नागरिकों को पहले टीके लगेंगे। हम सरकार के संपर्क में हैं ताकि खिलाड़ियों को टीके लगाये जा सकें।
बता दें कि पिछले साल यूएई में 19 सितंबर को आईपीएल शुरू होने के समय एक सप्ताह में कोरोना संक्रमण के औसत 770 मामले थे, जो अब 3,743 हो गए हैं। वहीं, भारत में अधिक आबादी और क्षेत्रफल के बावजूद अब एक दिन में 10 हजार से कम मामले आ रहे हैं, जो पिछले साल सितंबर में 90 हजार प्रतिदिन थे।

राहुल बोले-किसान ही नहीं, लाखों बेरोज़गार खफा हैं मोदी सरकार से

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसान आंदोलन को लेकर फिर मोदी सरकार पर हमला बोला। शुक्रवार को एक प्रेस वार्ता कर केंद्र के तीनों नए कृषि कानूनों को रद्द किए जाने की मांग करते हुए राहुल ने कहा कि अगर सरकार ने इन कानूनों को वापस नहीं लिया तो किसानों का यह आंदोलन शहर से गांवों तक जाएगा।
राहुल गांधी ने कहा कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में लोगों को कानूनों के पीछे की कहानी समझ में आ गई है। प्रधानमंत्री को ये नहीं समझना चाहिए कि ये आंदोलन यहीं रुक जाएगा। ये आंदोलन शहरों, किसानों से लेकर शहरों के अंदर जाएगा। देश में अब केवल किसान ही गुस्सा में नहीं है। बल्कि हिंदुस्तान में लाखों युवा हैं, जिनसे इन्हीं पांच-दस लोगों और पीएम ने रोजगार छीना है। अब लोगों का गुस्सा सड़क पर आने लगा है।
राहुल ने कहा, हम सब ये जानते हैं कि किसानों के 70 दिनों से चल रहे आंदोलन को लेकर क्या हो रहा है। पहला कानून मंडी व्यवस्था खत्म करता है। दूसरा कानून खाद्यान्न के असीमित भंडारण की अनुमति देता है और तीसरा कानून कहता है कि अगर किसानों को कोई समस्या है तो वह अदालत तक नहीं जा सकते। इससे साफ है कि किसान क्यों आंदोलनरत हैं।
दरअसल, सीधे शब्दों में कहें तो केंद्र सरकार किसानों की समस्या का समाधान करने के बजाय उन्हें धमका रही है, पीट रही है और दबाव डाल रही है।  यहाँ तक कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) का भी इस्तेमाल कर रही है।
गणतंत्र दिवस पर लाल किले समेत दिल्ली के कई हिस्सों में किसानों के कथित हिंसक प्रदर्शन को लेकर राहुल गांधी ने सवाल किया कि आखिर किसानों को लाल किले में किसने जाने दिया? अंदर किसने और क्यों जाने दिया?
उन्होंने सवाल उठाया कि क्या गृह मंत्रालय का यह काम नहीं है कि उन्हें लाल किले पर जाने नहीं देना चाहिए था, रोकना चाहिए था। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? उन्होंने कहा कि सिंघु बॉर्डर समेत तीनों सीमाओं पर केंद्र सरकार किसानों पर आक्रमण कर रही है, जो गलत है। हम किसानों के साथ हैं।
पूर्व कॉंग्रेस अध्यक्ष ने बताया कि तीनों कृषि कानून किसानों को और गरीब बनाएंगे साथ ही अमीरों को और अमीर बनाएंगे।  कोविड के दौरान आप लोग देख ही चुके हैं क्या हुआ। गरीब और गरीब हुए, पांच-छह अमीर और अमीर होते गए। प्रधानमंत्री इन पांच लोगों के लिए काम करते हैं, उनके लिए नोटबंदी की, जीएसटी लाए और अब किसानों की आजीविका छीनने पर तुले हैं।

गलती से पाकिस्तान चली गई जरीना को पांच माह बाद लौटाया

करीब पांच महीने पहले गलती से एलओसी पार कर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर यानी पीओके पहुंची 36 वर्षीय जरीना बी को पड़ाेसी मुल्क ने लौटा दिया है। पाकिस्तानी सेना ने चक्कां दा बाग की राह-ए-मिलन के रास्ते जरीना को सेना के हवाले किया। इसके बाद जरीना को स्थानीय पुलिस को सौंप दिया गया।

अब जरूरी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद जरीना को परिजनों के हवाले कर दिया जाएगा। वीरवार दोपहर करीब 1.10 बजे भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा पर स्थित चक्कां दा बाग की राह-ए-मिलन के गेट खोले गए। यहां भारत और पाकिस्तानी सेना व प्रशासन के अधिकारियों की मुलाकात हुई। इसके बाद पीओके की तरफ से जरीना बी निवासी गांव छेला ढांगरी तहसील मंडी जिला पुंछ को नियंत्रण रेखा के इस पार हमवतन भेजा गया।

पुलिस ने बताया कि जरीना बी मानसिक रूप से बीमार थीं। गलती से वह 22 सितंबर 2020 को एलओसी पर करके पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पहुंच गई थीं। बताया गया कि जरीना बी के पति की कुछ साल पहले मौत हो गई थी। इसके बाद उनका इकलौता बेटे की भी मौत हो गई। इसके बाद जरीना की मानसिक हालत बिगड़ गई।

व्हाट्सऐप वेब की प्राइवेसी होगी और मजबूत

व्हाट्सऐप ने हाल ही में ऐप प्राइवेसी को लेकर एक नया बदलाव लाने का एलान किया है। व्हाट्सऐप वेब और डेस्कटॉप में लॉग-इन व ऐप लिंक करने के लिए कंपनी ने एक और सिक्योरिटी लेयर जोड़ दी है। जिसके बाद कम्प्यूटर में व्हाट्सऐप अकाउंट जोड़ने से पहले यूज़र से फिंगरप्रिंट या फिर फेस आइडी मांगी जाएगी।  इस  सिक्योरिटी लेयर के जुड़ने के बाद आपकी प्राइवेसी और मजबूत हो जायेगी और कोई भी आपकी गैरमौजूदगी में आपके व्हाट्सऐप अकाउंट को कम्प्यूटर पर एक्सेस नहीं कर सकेग।

व्हाट्सऐप का कहना है कि फेस और फिंगरप्रिंट ऑथेंटीकेशन प्रक्रिया यूज़र के मोबाइल फोन पर होती है और व्हाट्सऐप हैंडसेट के ऑपरेटिंग सिस्टम में स्टोर बायोमैट्रिक इंफोर्मेंशन को एक्सेस नहीं कर सकता। मोबाइल ऐप में इस नई एक्सट्रा सिक्योरिटी लेयर के जोड़े जाने का मकसद डेस्कटॉप पर गलत तरीके से व्हाट्सऐप के इस्तेमाल को रोकना है।

व्हाट्सऐप वेब या फिर डेस्कटॉप ऐप में व्हाट्सऐप अकाउंट लिंक करने से पहले यूज़र्स से उनके फोन पर फेस आइडी या फिर फिंगरप्रिंट अनलॉक का विकल्प option आएगा और जैसे ही Done पर क्लिक किया जाएगा यूज़र्स अपने फोन से QR कोड को एक्सेस कर सकेंगे, जो कि डेस्कटॉप में व कम्प्यूटर में उनके व्हाट्सऐप अकाउंट को लिंक करने की प्रक्रिया को पूरा करेगा।

व्हाट्सऐप की माने तो ये नई सिक्योरिटी लेयर को आने वाले हफ्ते में रोलआउट कर दिया जाएगा। साथ ही साथ जल्दी ही फोन पर व्हाट्सऐप वेब पेज पर एक विज़ुअल रिडिजाइन को भी पेश किया जाएगा।

लाल किले के भीतर व्यापक नुक्सान, हिंसा के लिए 22 एफआईआर दर्ज, केंद्रीय मंत्री पटेल ने किया दौरा, टिकैत ने कहा हिंसा करने वालों पर कार्रवाई करे सरकार

किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान 26 जनवरी को किसानों का जो एक गुट लाल किले के भीतर चला गया था, उसे लेकर पुलिस ने 22 एफआईआर दर्ज की हैं। केंद्रीय संस्कृति मंत्री प्रह्लाद पटेल ने अधिकारियों की टीम के साथ लाल क़िले का दौरा किया जिसके बाद आरोप लगाया गया है कि उपद्रवियों की तरफ से ऐतिहासिक धरोहर लाल किले के भीतर व्यापक स्तर पर तोड़फोड़ की गयी है, जहाँ अब सीआरपीएफ की 15 कंपनियां तैनात कर दी गयी हैं। कल के घटनाक्रम में 300 पुलिसवालों के घायल होने की बात भी कही गयी है। पुलिस ने कुछ देर पहले 200 लोगों को हिंसा के सिसिले में गिरफ्तार किया है।

सभी किसान संगठनों ने इस हिंसा से खुद को अलग कर लिया है और इसे ‘सरकार की शह पर पन्नू गुट का कुकृत्य’ बताया है। किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि पुलिस को उन लोगों पर कार्रवाई करनी चाहिए जिन्होंने हिंसा की है। इस बीच  किसानों की एक बड़ी संख्या वापस आंदोलन स्थल सिंघु बार्डर पर लोटनी शुरू हो गयी है। किसान संगठन भी बैठक कर आगे की रणनीति पर विचार कर रहे हैं। संभावना है कि किसान मोर्चा कल लाल किले पर हिंसा करने वाले संगठन से खुद को अलग करने की घोषणा कर सकता है।

दिल्ली में हिंसा पर गृह मंत्रालय को शाम तक रिपोर्ट सौंपी जानी है।  संस्कृति मंत्रालय की नुकसान की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस और एफ़आईआर दर्ज करेगी। पांच अधिकारियों की टीम रिपोर्ट तैयार कर रही है। संस्कृति मंत्री प्रह्लाद पटेल ने अधिकारियों की टीम के साथ आज सुबह लाल क़िले का दौरा किया था।

उधर दिल्ली पुलिस ने आपराधिक साजिश के साथ लाल किले में डकैती का मामला भी दर्ज किया है। राजधानी के कोतवाली थाने में 10 से ज्यादा विभिन्न आपराधिक धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज हुआ है जिनमें धारा 395, धारा 397, धारा 120बी  जैसी गंभीर आपराधिक धाराएं शामिल हैं। आरोप के मुताबिक लाल किले के अंदर आपराधिक साजिश के तहत डकैती डाली गई और वहां से कथित तौर पर कुछ सामान भी ले जाया गया।

जिन लोगों के खिलाफ आज एफआईआर दर्ज की गयी है उनमें पांच किसान नेताओं के नाम भी शामिल हैं। गृहमंत्री अमित शाह गृहसचिव, इंटेलिजेंस के अधिकारियों और दिल्ली पुलिस कमिश्नर के साथ गृह मंत्रालय में बैठक कर रहे हैं। दिल्ली में कल हुई हिंसा पर अब तक की कार्रवाई पर जानकारी ले रहे हैं। हिंसा में 300 से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हुए हैं जिनमें से कुछ की हालत गंभीर बताई गयी है।

दिल्ली के सीमाओं के सटे इलाकों में इंटरनेट सेवा पर शाम 5 बजे तक के लिए इंटरनेट पर रोक लगा दी गई है। हरियाणा में भी यह पाबंदी लागू है जबकि पंजाब और हरियाणा में हाइ अलर्ट घोषित किया गया है। सिंघु बॉर्डर, लाल किले पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। दो मेट्रो स्टेशनों पर आज भी सेवाओं को बंद रखा गया है जिनमें लाल किला और जामा मस्जिद शामिल हैं।

इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने प्रदर्शनकारी किसानों के एक समूह द्वारा लाल किले में अपने संगठन का झंडा फहराने को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा – ‘मैंने शुरुआत से ही किसान आंदोलन का समर्थन किया है। लेकिन इस अराजकता को मैं स्वीकार नहीं कर सकता। गणतंत्र दिवस पर कोई दूसरा ध्वज नहीं, बल्कि सिर्फ पवित्र तिरंगा लाल किले पर फहराया जाना चाहिए।’

उधर लाल किले की कुछ तस्वीरें और वीडियो सामने आई हैं इसमें दिखाया गया है कि कैसे वहां चीजों के साथ तोड़फोड़ की गई।

इस बीच अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव मुल्ला हन्नान ने कहा है कि किसानों के आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश लगातार चल रही थी। ‘हमें डर था कि कोई साजिश कामयाब न हो जाए लेकिन आखिर में साजिश कामयाब हो गई।  लाल किले में बिना किसी सांठगांठ के कोई नहीं पहुंच सकता। इसके लिए किसानों को बदनाम करना ठीक नहीं है।’

तिरंगा फहरा और पौधरोपण करके रखी गई धन्नीपुर मस्जिद की नींव

उत्तर प्रदेश सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष जुफर फारूकी व अन्य सदस्यों ने गणतंत्र दिवस पर झंडा फहरा और पौधरोपण कर सांकेतिक रूप से धन्नीपुर मस्जिद का शिलान्यास किया। मिट्टी की जांच की रिपोर्ट आने के बाद शुरू होगा मस्जिद का निर्माण। यह मस्जिद अयोध्या में राम मंदिर से लगभग 25 किलोमीटर दूर नेशनल हाइवे 28 पर स्थित धन्नीपुर गांव में है। इस मस्जिद को इंसानियत की मिसाल के तौर पर तैयार किया जा रहा है।
इस मस्जिद का निर्माण इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन की तरफ से किया जा रहा है। इसके लिए सोमवार को मिट्टी की जांच करने का काम शुरू हो गया। दोपहर बाद पहुंची गुंजन स्वायल कंपनी द्वारा निर्धारित पांच एकड़ में तीन स्थानों पर स्वायल टेस्टिंग के लिए जगह चिह्नित की गई है। इसमें एक स्थान से मिट्टी निकाली गई है साथ ही अन्य दो स्थानों से मिट्टी निकाली जाएगी। यह काम तीन दिन तक चलेगा। मस्जिद के साथ ही एक इंस्टीट्यूट और अस्पताल व सांस्कृतिक केंद्र भी बनाया जाएगा। जिसका नक़्शा पिछले दिनों जारी किया गया था।
गौरतलब है कि बाबरी मस्जिद और राममंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अयोध्या के धन्नीपुर के पांच एकड़ जमीन दी थी। इस जमीन पर इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन की तरफ से मस्जिद सहित हॉस्पिटल व कल्चरल काम्पलेस की स्थापना की जानी है। इन सभी के निर्माण की तैयारी शुरू हो चुकी है। मिट्टी के परीक्षण की जिम्मेदारी गुंजन स्वायल कंपनी को दी गई है।