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राष्ट्रीय स्तर पर भूमि सुपोषण एंव संरक्षण अभियान का आयोजन

कृषि और पर्यावरण क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं द्वारा ‘भूमि सुपोषण एंव संरक्षण’ हेतु राष्ट्र स्तरीय एक जन अभियान का प्रारंभ किया जा रहा है। इस अभियान का मूल उद्देश्य भारतीय कृषि पध्द्ति उपज और गैर-रासायनिक खेती का सफलतापूर्वक अभ्यास करना है। जो कि देशभर में चैत्र नवरात्रि यानि 13 अप्रैल 2021 की सुबह 10 बजे से शुरू किया जाएगा। और संपूर्ण देश के अलग-अलग राज्यों, जिलों, ग्रामों, एंव नगरों में विभिन्न चरणों में आयोजित किया जाएगा।

सभी जगहों पर विधिवत भूमि पूजन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के पावन अवसर पर किया जाएगा। इस अभियान की मुख्य संकल्पना यही है कि, भूमि का सुपोषण करना यह मात्र कृषकों का उत्तरदायित्व नहीं अन्यथा भूमि का सुपोषण एंव संरक्षण प्रत्येक भारतीयों का उत्तरदायित्व है।

बहुआयामी जन अभियान में समग्र भूमि सुपोषण अवधारणा को फिर से स्थापित करने के लिए कार्यवार्इ, जन जागरण जागरूकता सृजन, भारतीय कृषि चिंतन एंव भूमि सुपोषण को बढ़ावा देने संबंधित कार्यक्रम शामिल है।

साथ ही इस अभियान के प्रथम चरण की गतिविधियों में भूमि सुपोषण को प्रत्यक्ष साकार करने वाले कृषकों को सम्मानित करना, भूमि सुपोषण की विविध पध्दतियों के प्रयोग आयोजित करना, व जो कृषक इस दिशा में बढ़ना चाहे उन सभी को प्रोत्साहित करना, नगरों में विधिवत हाउसिंग कालोनी में जैविक-अजैविक अपशिष्ट को अलग रखना और कालोनी के जैविक अपशिष्ट से कंपोस्ट (जैविक खाद) बनाना इत्यादि शामिल है।

आधुनिक कृषि में भूमि का स्थान मात्र एक आर्थिक स्त्रोत है। परतुं हमने पिछले 200 वर्षों से भी अधिक समय तक भूमिपूजन की अनदेखी की और अपनी भूमि का अनंत आर्थिक संसाधन के रूप में दोहन भी किया है। व हम न्यूनतम पारस्परिकता के साथ अपनी भूमि से पोषक तत्व निकाल रहे है। जिसके चलते भूमि की जल धारण क्षमता कम हो रही है, जल स्तर अधिकांश स्थानों में लगातार घट रहा है, जैविक कार्बन की मात्रा का निरंतर घटना रहा है, जिससे भूमि लगातार कुपोषित हो रही है साथ-साथ मानव भी विभिन्न रोगों का शिकार हो रहा है।

वर्तमान में हमारे भौगोलिक क्षेत्र का 30% भाग गंभीर रूप से क्षरण से पीड़ित हो चुका है। और किसानों के अनुभव के अनुसार कृषि में इनपुट लागत लगातार बढ़ रही है, और उत्पादकता लगातार घट रही है। उत्पादन में कमी के परिणामस्वारूप जैविक कार्बन में कमी हो रही है। जो की बेहद हानिकारक है।

यह जन अभियान पिछले चार वर्षों में लागू किए गए एक व्यापक परामर्श प्रक्रिया का परिणाम है। जनवरी 2018 में किसानों और कृषि वैज्ञानिकों के साथ बैठके और भूमि सुपोषण पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन, क्षेत्रीय बैठकें बैठके कर परामर्श लिया गया। व इस अभियान में 33 संगठनों का एक संयुक्त प्रयास शमिल है।

झटका : डीएपी खाद की बोरी अब 1200 की बजाय 1900 रुपये की हुई

कोरोना से जूझ रहे किसानों के लिए सरकार ने बड़ा झटका दिया है। किसानी के लिए अति महत्वपूर्ण रासायनिक खाद डाई अमोनियम फास्फेट यानी डीएपी की कीमत में बेतहाशा इजाफा कर दिया गया है। सरकार के अंतर्गत आने वाली कंपनी इफको ने डीएपी खाद की कीमत 58.33 फीसदी बढ़ा दी है। यानी अब डीएपी की 38 किलोग्राम की बोरी 1200 रुपये की बजाय 1900 रुपये में मिलेगी। जबकि निजी क्षेत्र की कंपनियां पहले ही 50 किलोग्राम की बोरी की कीमत 300 रुपये बढ़ा चुकी हैं।

सहकारी क्षेत्र के इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव के इस कदम से चार महीने से आंदोलन कर रहे किसानों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। सरकार पहले ही किसानों की बात नहीं सुन रही है और अब खेती के लिए बेहद जरूरी खाद की कीमत में बेतहाशा बढ़ोतरी से छोटे किसानों पर कहीं ज्यादा बोझ बढ़ गया है।

बता दें कि इफको तो सहकारी क्षेत्र की कंपनी है, जिस पर काफी हद तक सरकार की मर्जी चलती है। निजी क्षेत्र की पारादीप फॉस्फेट लिमिटेड और गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर्स कॉर्पोरेशन ने इसका प्रिंट रेट 1,500 रुपये कर दिया था। अब जबकि इफको ने ही इसका दाम 1,900 रुपये कर दिया है तो अन्य कंपनियां भी यही कदम उठाएंगी।

कीमत बढ़ाए जाने को सही साबित करने के लिए इफको के अधिकारी अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी में इस्तेमाल होने वाले फॉस्फोरिक एसिड और रॉक फॉस्फेट की कीमत में इजाऊा को वजह बता रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि देश में इसकी उपलब्धता काफी कम है। इसलिए ये दोनों उत्पाद विदेशों से मंगाए जाते हैं।

डीएपी की सबसे ज्यादा मांग बुवाई के समय होती है। खरीफ की फसल के लिए जून-जुलाई में इसकी बेहद जरूरत होगी। इस समय गन्ना, मूंग, मेंथा और सब्जियों की फसलों में ही डीएपी की जरूरत है, जोकि बहुत अधिक नहीं होती है। पर खरीफ की बुवाई शुरू होते ही हाहाकार मचेगा। अकेले उत्तर प्रदेश में ही खरीफ सीजन में डीएपी की आपूर्ति का लक्ष्य औसतन 12 लाख टन का रहता है।

कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति के संपर्क में आने के बावजूद सीएम योगी जा रहे चुनाव सभाओं में : प्रियंका गांधी  

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने गुरुवार को गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति के संपर्क में आने के बावजूद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी चुनाव सभाओं में जा रहे हैं। कांग्रेस नेता ने कहा कि संकट के समय मुख्यमंत्री योगी का यह रवैया बहुत गैरजिम्मेदाराना है।
देश के कोरोना के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। यह देखा गया है कि बंगाल, असम आदि चुनावों में देश के बड़े नेता भी बिना मास्क के दिख रहे हैं या सभाओं में खूब भीड़ दिख रही है। अब प्रियंका गांधी ने ट्वीट करके योगी पर गंभीर आरोप लगाया है। बता दें कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने के बाद खुद प्रियंका गांधी ने खुद को आईसोलेट कर लिया है और वे चुनाव प्रचार में नहीं गईं।
अब प्रियंका ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कोरोना वायरस से संक्रमित एक व्यक्ति के संपर्क में आने के बावजूद चुनावी सभाएं कर रहे हैं। प्रियंका ने कहा कि यह सीएम योगी की लापरवाही का सबूत है। प्रियंका ने ट्वीट में कहा कि सीएम योगी का गैरजिम्मेदार रवैया साफ नजर आ रहा है। कांग्रेस नेता ने कहा कि संकट के समय नेताओं को अपने आचरण से उदाहरण पेश करना चाहिए ताकि लोग उन पर भरोसा कर सकें।
प्रियंका गांधी ने ट्वीट में कहा – ‘मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यूपी के मुख्यमंत्री कोविड पॉजिटिव व्यक्ति के संपर्क में आने के बाद भी रैलियों में जा रहे हैं। उनका कार्यालय कोविड से होने वाली मौतों के गलत आंकड़ें दे रहा है। खबरों के अनुसार लखनऊ के शवदाहगृह और अस्पतालों में लंबी वेटिंग है। लोगों में दहशत है।’
कांग्रेस नेता ने कहा कि ‘जिनका कार्य जवाबदेही और पारदर्शिता का है, वो खुद गैरज़िम्मेदार साबित हो रहे हैं। संकट के समय नेताओं को सत्यता और सही आचरण का उदाहरण पेश करना चाहिए ताकि लोग उन पर भरोसा कर सकें।’
प्रियंका गांधी ने एक अन्य ट्वीट में कहा – ‘अगर चुनावों में घोषणा पत्र में सबके लिए फ्री वैक्सीन की घोषणा की जा सकती है तो ये सही समय है कि सरकार प्राथमिकता से सबके लिए वैक्सीन की व्यवस्था करे। हमारे देश की जनता के लिए सबसे हितकारी कदम यही है कि सबको वैक्सीन मिले।’
प्रियंका गांधी का ट्वीट –
Priyanka Gandhi Vadra
@priyankagandhi
8 अप्रैल 2021
मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक यूपी के मुख्यमंत्री Covid+ व्यक्ति के संपर्क में आने के बाद भी रैलियों में जा रहे हैं। उनका कार्यालय कोविड से होने वाली मौतों के गलत आंकड़ें दे रहा है। खबरों के अनुसार लखनऊ के शवदाहगृह एवं अस्पतालों में लंबी वेटिंग है। लोगों में दहशत है।

आर्थिक और मानसिक समस्या बना रात का कर्फ्यू

कोरोना के बढ़ते मामलों को देखकर लोगों में अजीब सी बैचेनी देखने को मिल रही है। लोगों का कहना है कि महामारी अगर ऐसे ही बढ़ती रही तो वो दिन दूर नहीं जब धंधा-पानी छोड़ अपनी जान बचाने के लिये सोचने को मजबूर होना पड़ेगा। तहलका संवाददाता को दिल्ली और गाजियाबाद – नोएडा के लोगों ने बताया कि रात 10 बजे से लगने वाले दिल्ली के कर्फ्यू ने लोगों को बैचेन करके रख दिया है, अफरा-तफरी वाला माहौल है।

चलों-चलों जल्दी घर चलों की स्थिति बनी हुई है। राधेश्याम पांचाल जो एक सामाजिक कार्यकर्ता के साथ –साथ कोरोना काल में लोगों के बीच हर संभव सहायता के लिये तैयार रहे है। लेकिन अब वो सरकार की कोरोना की आड़ में जनविरोधी नीतियों का विरोध कर रहे है। उनका कहना है कि आधा-अधूरा ज्ञान और सुविधायें लोगों को भ्रमित करती है। जैसा कि आजकल नोएडा और गाजियाबाद की दिल्ली की सीमाओं में देखा जा रहा है। लोग आने-जाने में डर रहे है। कोई कहीं किसी की सुनने का तैयार नहीं है। मास्क ना लगाने से लेकर 10 बजते ही रात में पुलिस का खौंप लोग को बैचेन कर रहा है। डरा रहा है।

नोएडा निवासी नरेन्द्र सिंह का कहना है अजीब सरकारें है। चाहे केन्द्र की  हो या राज्य सरकारें लोगों की परेशानी समझें बिना तुगलकी फरमान जारी कर कोरोना महामारी के नाम पर लोगों को परेशान करने में लगी है। व्यापारिक संस्थायें कमजोर पड़ रही है। व्यापारी सहमें हुये है कि लाँकडाउन की कब सरकार घोषणा ना कर दें। ऐसे में संशय , आशंका और भय लोगों को आर्थिक दृष्टि के साथ-साथ मानसिक दृष्टि से लोगों को कमजोर कर रही है। जो किसी तरह से सही नहीं है।

बतातें चलें कि गाजियाबाद –नोएडा दिल्ली एनसीआर में आता है। ऐसे में लोगों को दिल्ली में आना- जाना एक प्रक्रिया है।कोरोना महामारी के दौर में ज्यादातर बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर दिल्ली में इलाज कराने को आते है। तो उनको दिल्ली में रात 10 बजते ही अपने घरों में जाने के लिये एक कठिन दौर का सामना करना पड़ रहा है।

 

 

मुंबई के बाद दिल्ली से लोग करने लगे पलायन

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के बाद राजधानी दिल्ली में भी कोरोना संक्रमण को लेकर दहशत का माहौल है। दिल्ली में मंगलवार को कोरोना के 5100 मामले सामने आए और नाइट कफ्र्यू भी लगा दिया गया है। इन सबके बाद लोगों के दिल में एक बार फिर लॉकडाउन का खौफ घर करता जा रहा है। शायद यही वजह है कि स्टेशनों पर बड़ी संख्या में लोग अपने होमटाउन के लिए लौटने लगे हैं। स्टेशनों परभारी भीड़ देखी जा रही है। इससे कोरोना संक्रमण के फैलने का खतरा होने के साथ ही लोगों मे फिर से बेकाम होने की आशंका बढ़ती जा रही है।
रोजमर्रा या कामकाजी लोग नहीं चाहते कि देश में कहीं भी फिर लॉकडाउन लगे वरना उन्हें फिर से बुरे वक्त से गुजरने को मजबूर होना पड़ेगा। शायद यही वजह है कि बड़ी तादाद में लोग रेलवे स्टेशन पर देखे जा रहे हैं। एक-दो हफ्ते पहले ऐसे ही हालात मुंबई में भी देखे जा रहे थे। हालांकि वहां की स्थिति कहीं ज्यादा भयावह हो गई है। गनीमत यह है कि कोरोना का टीकाकरण भी तेजी से बढ़ रहा है। इसके बावजूद संक्रमण में कमी आती नहीं दिख रही है। इससे लोगों में कई तरह की शंकाएं पैदा हो गई हैं।
24 घंटे में रिकॉर्ड एक लाख से ज्यादा मरीजों की जांच
पिछले चौबीस घंटे में रिकॉर्ड एक लाख से ज्यादा कोरोना जांच अकेले दिल्ली में की गईं, जिनमें संक्रमण के 5100 मामले सामने आए।
वहीं, 17 लोगों की मौत हुई। इस दौरान 2300 लोग स्वस्थ भी हुए। कोरोना की शुरूआत के बाद ऐसा पहली बार है जब एक ही दिन में एक लाख से ज्यादा लोगों की जांच की गई है।

मुठभेड़ में लापता जवान कब्जे में होने का नक्सलियों का दावा, मांग की कि सरकार मध्यस्थ नियुक्त करे

कुछ रोज पहले छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ के बाद लापता हुए सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन के एक जवान को लेकर दावा किया गया है कि वह नक्सलियों के कब्जे में है और नक्सलियों ने उसे छुड़ाने के लिए मध्यस्थों की मांग रखी है। इस जवान के परिजन पहले से ही केंद्र सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उसकी जान बचाने के लिए सरकार आगे आये।
अब खबर आई है कि नक्सलियों ने सुकमा और बीजापुर सीमा पर मुठभेड़ के दौरान  लापता हुए सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन के इस जवान राकेश्वर सिंह मनहास को लेकर दावा किया है कि वह उनके कब्जे में है। साथ ही नक्सलियों ने जवान की रिहाई के लिए सरकार से मध्यस्थ नियुक्त करने की मांग की है। नक्सलियों ने अपना यह संदेश फोन करके इलाके के एक पत्रकार के जरिये सरकार को भेजा है।
पत्रकार के जरिये भेजे सन्देश में नक्सलियों ने स्वीकार किया कि मुठभेड़ में उनके चार साथी मारे गए हैं। नक्सलियों ने कहा कि 3 अप्रैल को सुरक्षा बल के दो हजार जवान हमला करने जीरागुडेम इलाके में पहुंचे थे जिसे रोकने के लिए पीएलजीए (नक्सलियों के गुट) ने हमला किया। इस कार्रवाई में 24 जवान मारे गए और 31 घायल हो गए। नक्सलियों ने बयान में आवा किया है कि एक जवान को बंदी बनाया गया है जबकि अन्य जवान वहां से भाग गए। नक्सलियों ने मांग की है कि सरकार पहले मध्यस्थों के नाम की घोषणा करे इसके बाद बंदी जवान को दो दिन के भीतर सरकार को सौंप दिया जाएगा।
इसके अलावा नक्सलियों के प्रवक्ता विकल्प के नाम से जारी दो पेज के बयान में नक्सलियों ने स्वीकार किया है कि इस मुठभेड़ में उनके चार साथी ओड़ी सन्नी, पदाम लखमा, कोवासी बदरू और नूपा सुरेश मारे गए हैं। उन्होंने कहा है कि वह महिला नक्सली सन्नी के शव को नहीं ले जा सके। नक्सलियों ने बयान में कहा है कि मुठभेड़ के दौरान उन्होंने 14 हथियार, दो हजार से अधिक कारतूस और कुछ अन्य सामान जब्त किया है। बयान के साथ एक फोटो भी जारी की है जिसे लूटे गए हथियारों की फोटो बताया गया है।
इस बीच पुलिस ने कहा कि मुठभेड़ के दौरान सुरक्षा बलों ने कम से कम 12 नक्सलियों को मार दिया था। एक महिला नक्सली का शव भी पुलिस ने बरामद किया है। बता दें इस घटना के तुरंत बाद असम में चुनाव प्रचार के लिए गए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल घटनास्थल पर गए थे उधर गृह मंत्री अमित शाह भी छत्तीसगढ़ आ चुके हैं।

दिल्ली उच्च न्यायालय: निजी वाहन अकेले चलाते समय मास्क पहनना हुआ अनिवार्य

दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को वाहन चलाते समय फेस मास्क पहनने अनिवार्य किया। उच्च न्यायालय ने कहा कि कोरोना वायरस के बढ़ते प्रसार को रोकने के लिए यह अनिवार्य है कि यदि कोई व्यक्ति अकेले भी अपनी गाड़ी मे सफर करता है तो उसके लिए मास्क पहनना अनिवार्य है। क्योंकि वाहन एक सार्वजनिक स्थान की तरह ही है। और मास्क सुरक्षा कवच का कार्य करता है। यदि किसी व्यक्ति को मास्क के बगैर पाया गया तो उसे चालान देना होगा।

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, अंतराष्ट्रीय संगठन और कोरोना महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए सभी देशों की सरकारों ने फेस मास्क पहनना अनिवार्य किया है। क्योंकि मास्क पहनना या चेहरे को ढ़कना ना केवल उस व्यक्ति के लिए आवश्यक है बल्कि यह दूसरे व्यक्ति की सुरक्षा के लिए भी बेहद लाभदायक है।

यह फैसला अदालत ने दिल्ली पुलिस द्वारा वाहन के अंदर अकेले व्यक्ति से लिए गए जुर्माने के खिलाफ दायर याचिकाओं के दौरान सुनाया है। दायर की गर्इ याचिकाकर्ताओं में से एक याचिकाकर्ता ने कहा था कि यह एक अन्यायपूर्ण और गैरकानूनी है क्योंकि वाहन में अकेले यात्रा करते समय व्यक्ति विशेष को सार्वजनिक स्थान में नहीं कहा जा सकता है। वहीं दूसरे, याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील सौरभ शर्मा ने 500 रूपये का जुर्माना लगाने के बाद मानसिक उत्पीडन के लिए 10 लाक रूपये का मुआवजा भी मांगा था।

न्यायमूर्ति प्रथिबा एम सिंह की एकल न्यायधीश की पीठ ने उन सभी याचिकाओं को खारिज भी कर दिया जिसमें लोगों के उनके वाहन में अकेले होने पर मास्क नहीं पहनने पर हुए जुर्माने को चुनौती दी थी। और कहा दिल्ली में सभी के लिए मास्क पहनना अनिवार्य है।

तो कोरोना के नए स्ट्रेन पर कारगर साबित नहीं हो रहा टीकाकरण!

देश और दुनिया में कोरोना टीकाकरण के बावजूद संक्रमण के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं। महामारी के खिलाफ टीकाकरण अभियान के बीच बिहार की राजधानी पटना में चौंकाने वाली खबर आई है। यहां वैक्सीन की दोनों खुराक ले चुके 187 स्वास्थ्यकर्मी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं।
इन मामलों के सामने आने के बाद टीका लगवाने वालों से सावधानी बरतने को कहा गया है। इसके साथ ही ज़रूरी कोरोना गाइडलाइन का पालन करने की ताकीद की गई है। पटना के जिन 187 स्वास्थ्यकर्मियों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है उन्होंने टीकाकरण के पहले चरण में पहली खुराक ली थी और इसके करीब एक महीने बाद इन्हें टीके की दूसरी खुराक लगाई गई थी। नियमानुसार टीकाकरण करवाने के बाद भी इन स्वास्थ्यकर्मियों की कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में आ जाने से स्वास्थ्य विभाग के साथ टीकाकरण अभियान को चोंट में डाल दिया है। इससे अंदाज़ा लगाया जा रहा कि कहीं नए स्ट्रेन के आगे टीका अप्रभावी साबित तो नहीं हो रहा।
देशभर में तेज़ी से बढ़ते मामलों के बीच, पटना मेडिकल कॉलेज के साथ नालंदा मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के तीन डॉक्टरों और दो नर्सों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। इससे पहले भी नालंदा मेडिकल कॉलेज के दो छात्र कोरोना संक्रमित पाए गए थे। इसके अलावा जिला स्वास्थ्य समिति की एक महिला कर्मचारी भी पॉजिटिव पाई गई है। ये सभी लोग कोरोना की ज़रूरी गैप के बाद कोरोना टीके की दोनों खुराक ले चुके थे।

रात के कर्फ्यू से नहीं बनेगी बात

दिल्ली में रात 10 बजे से सुबह 5 बजे तक कर्फ्यू लगाये जाने पर दिल्ली के व्यापारियों और स्थानीय लोगों ने दिल्ली सरकार के फैसले का विरोध किया है। लोगों का कहना है कि दिल्ली सरकार लोगों के साथ मजाक कर रही है। वैसे ही दिल्ली में कोरोना का कहर है। लोगों में डर है। लोग मास्क लगाकर निकल रहे है। ऐसे में अगर रात 10 बजे ही दुकान बंद करनी पड़े तो इसका मतलब है कि रात 9 बजे ही दुकान बंद करने की तैयारी करनी होगी।

व्यापार एसोसिएशन से जुड़े पीयूष जैन का कहना कि क्या रात को ही कोरोना होता है, दिन में नहीं होता है। यानि सुबह 5 बजकर 1 मिनट के बाद कोरोना नहीं होगा। व्यापारी मनोज गुप्ता का कहना है कि दिल्ली सरकार की आप पार्टी की सरकार से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वो भी देश की अन्य पार्टियों की तरह कोरोना के नाम पर सियासत करेगी। क्योंकि रात को कर्फ्यू लगने से दुकानदार मजबूरी में लोगों को औने –पौने दामों में सामान बेचेंगी खासतौर पर वो लोग जिनकी दुकानें घरों में है। ।

मनोज का कहना है कि अगर  दिल्ली सरकार सही मायने में कोरोना को लेकर गंभीर है तो उसे रात को कर्फ्यू को लेकर और कोई विकल्प देखना होगा। अन्यथा  बेवजह माहौल अफरा-तफरी वाला होगा। स्थानीय लोगों ने तहलका संवाददाता को बताया कि देश में कोरोना को लेकर वैसी ही हालात गड़वड़ है। ऐसे में कोरोना को रोकने के साथ-साथ लोगों को कोरोना के प्रति सचेत करते तो बेहत्तर होता। अन्यथा रात के कर्फ्यू से बात नहीं बनेगी।

जस्टिस रमना के नाम पर राष्ट्रपति की मुहर, 24 को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पद की शपथ लेंगे

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को एनवी रमना के देश के अगले प्रधान न्यायाधीश होने पर अपनी सहमति दे दी। जस्टिस रमना के नाम की सिफारिश 24 मार्च को सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने देश के 48वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में सरकार को भेजी थी जिसके बाद सरकार ने उनका नाम राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेजा था। बोबडे  24 अप्रैल को सेवानिवृत्त होंगे और उसी दिन जस्टिस रमना को राष्ट्रपति शपथ दिलाएंगे।
जस्टिस रमना का 45 साल से ज्यादा का न्यायिक अनुभव है। उन्हें संवैधानिक मामलों का जानकार माना जाता है और उनका कार्यकाल 26 अगस्त, 2022 तक का होगा। जस्टिस रमना का जन्म 27 अगस्त, 1957 को आंध्र प्रदेश के कृष्ण जिले के पोन्नवरम गाँव में एक कृषि परिवार में हुआ था। वह 10 फरवरी, 1983 को वकील बने और उन्होंने आंध्र प्रदेश, मध्य और आंध्र प्रदेश प्रशासनिक न्यायाधिकरणों और भारत के सर्वोच्च न्यायालय में सिविल, आपराधिक, संवैधानिक, श्रम, सेवा और चुनाव मामलों में उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस की है। उन्हें संवैधानिक, आपराधिक, सेवा और अंतर-राज्यीय नदी कानूनों में विशेषज्ञता हासिल है।
बता दें जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट बहाली का फैसला जस्टिस रमना ने ही दिया था। चीफ जस्टिस के कार्यालय को सूचना अधिकार कानून के दायरे में लाने का फैसला देने वाली बेंच के भी जस्टिस रमन्ना सदस्य रह चुके हैं।
रमना पहले, दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश भी थे। उन्होंने आंध्र प्रदेश न्यायिक अकादमी के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया है। वह 26 अगस्त, 2022 को सेवानिवृत्त होंगे। उन्होंने विभिन्न सरकारी संगठनों के लिए पैनल काउंसल के रूप में भी काम किया है। वह केंद्र सरकार के लिए अतिरिक्त स्थायी वकील और हैदराबाद में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण में  रेलवे के लिए स्थायी वकील के रूप में कार्य कर चुके हैं।
उन्होंने आंध्र प्रदेश के एडिशनल एडवोकेट जनरल  के रूप में भी कार्य किया। उन्हें 27 जून, 2000 को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। रमना 10 मार्च 2013 से 20 मई 2013 तक आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रहे। वे कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में हिस्सा ले चुके हैं।