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फर्ज़ी खबरों का हब बनता सोशल मीडिया

सोशल मीडिया की बहुत-सी साइट्स पर आजकल फर्ज़ी खबरों की भरमार देखी जा सकती है। ऐसी खबरों पर लगाम इसलिए भी नहीं लग पा रही है, क्योंकि इन्हें लोग व्यक्तिगत रूप से जारी करते हैं या फिर बिना सोचे-समझे इन्हें दूसरों को फॉरवर्ड कर देते हैं। लेकिन अगर सरकार चाहे, तो देश में ऐसी सोशल साइट्स पर लगाम लगा सकती है, जो लोगों के बीच माहौल बिगाडऩे का काम कर रही हैं या माहौल बिगाडऩे के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं। अप्रैल 2020 की एक सर्वे रिपोर्ट में कहा गया था कि सोशल मीडिया पर 50 से 80 फीसदी जानकारी झूठी होती है। हालाँकि यह सर्वे फर्ज़ी खबरों के सवाल पर उत्तर आने के आधार पर किया गया था, लेकिन इसमें कोई दो-राय भी नहीं कि सोशल मीडिया पर झूठी खबरों की भरमार काफी है। इस बारे में भारत सरकार की ओर से सोशल साइट्स को पहले भी दिशा-निर्देश दिये जा चुके हैं कि वे अपने प्लेटफार्म पर फर्ज़ी और भड़काऊ खबरों पर रोक लगाएँ।

जानकारों की मानें तो सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों की संख्या बहुत है, जो असली खबरों से काफी दूर होते हैं और व्हाट्स ऐप व फेसबुक की खबरों के आधार पर एक-दूसरे को सूचना देते हैं, ज्ञान देते हैं और भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल करते हैं। लॉकडाउन के दौरान सोशल मीडिया के बढ़े उपयोग ने इसमें और भी इज़ाफा किया था। हैरत की बात है कि सोशल साइट्स की कमायी की होड़, सरकारों की अनदेखी और सोशल साइट्स में युवाओं तथा बच्चों की बढ़ती दिलचस्पी आज की पीढ़ी को बर्बादी की ओर ले जाने का भी काम कर रही है। एक अनुमान के मुताबिक, सोशल मीडिया पर मौज़ूद 80 फीसदी लोग अपने समय का काफी हद तक दुरुपयोग करते हैं। कुछ जानकार तो यहाँ तक कहते हैं कि तकरीबन 30 फीसदी लोग आजकल सोशल मीडिया पर अपना कीमती समय बर्बाद करते हैं। इनमें अधिकतर लोग ऐसे हैं, जो रात को देर तक जागते हैं और बीमारियों को दावत दे रहे हैं। वहीं कुछ जानकार कहते हैं कि सोशल मीडिया लोगों की मौत का कारण भी बन रहा है। इसके कई उदाहरण भी वह गिनाते हैं। कई बार समाचारों में इस तरह की खबरें आती भी रहती हैं, भले ही मौत की वजहें अलग-अलग हों।

सन् 2017 में यूनेस्को द्वारा 2012 से 2016 के बीच पूरी दुनिया में सोशल मीडिया और इंटरनेट के इस्तेमाल से युवाओं में फैलते हिंसात्मक विचारों और अतिवादिता को लेकर एक अध्ययन किया गया था। इस अध्ययन में कहा गया था कि सोशल मीडिया और इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल ने सामाजिक हिंसा को तेज़ी से बढ़ावा दिया है। साथ ही अध्ययन में यह भी सलाह दी गयी थी कि सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स और इंटरनेट पर फैली जानकारियों का तेज़ी से फिल्टर करना जरूरी है, क्योंकि सोशल साइट्स पर धार्मिक और सामाजिक विभाजनकारी सामग्री लिखी जा रही है, जिसका असर बहुत तेज़ होता है। इस रिपोर्ट के अध्ययनकर्ताओं ने समाज में सोशल मीडिया और वेबसाइट्स से फैलने वाली बुराइयों को रोकने के लिए 16 सुझाव दिये थे।

माइक्रोसॉफ्ट की 22 देशों में किये गये एक सर्वे की रिपोर्ट में कहा गया है कि सोशल मीडिया और इंटरनेट उपभोक्ताओं को फर्ज़ी खबरों का सबसे अधिक सामना भारतीयों को करना पड़ता है, जिनकी संख्या तकरीबन 64 फीसदी है। रिपोर्ट बताती है कि इन फर्ज़ी खबरों का प्रसार वैश्विक औसत से कहीं ज़्यादा भारत में होता है।

क्यों नहीं लग पा रही रोक

सवाल यह है कि सोशल साइट्स पर रोक लगे या फर्ज़ी खबरों पर? इस सवाल के जवाब में भी लोग दो मत ही मिलते हैं। कोई कहता है कि समस्या को जड़ से खत्म किया जाना चाहिए अर्थात् सोशल साइट्स पर ही रोक लगनी चाहिए, तो कोई कहता है कि फर्ज़ी खबरों पर ही रोक लगनी चाहिए। कुल मिलाकर समस्या तो फर्ज़ी खबरों की है, भले ही उसकी जड़ सोशल मीडिया है। ऐसे में कम से कम फर्ज़ी खबरों पर रोक लगनी ही चाहिए, अन्यथा इससे समाज में बिगाड़ ही पैदा होता जाएगा। वैसे अगर सोशस साइट्स चाहें, तो वे अपने प्लेटफार्म पर ऐसी खबरों के प्रसार को रोक सकती हैं। लेकिन वे ऐसा क्यों नहीं करतीं? इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। कुछ समाज सुधारकों की मानें तो सोशल मीडिया का दुरुपयोग अब सरकारों द्वारा भी किया जाता है, यही वजह है कि सरकारें इन सोशल साइट्स को बन्द करने के लिए पहल नहीं करतीं। हालाँकि यह एक तरह का तथाकथित आरोप है, जिसकी पुष्टि कोई व्यक्ति निजी तौर पर नहीं करेगा। लेकिन यह बात सही है कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग कई ऐसे कामों के लिए किया जाता है, जिनके चलते समाज में तनाव, बिखराव और अलगाव की स्थिति बनती है।

फर्ज़ी अकाउंट सबसे बड़ी सिरदर्दी

सोशल मीडिया के प्लेटफॉम्र्स पर सबसे बड़ी सिरदर्दी फर्ज़ी अकाउंट्स (जाली खातों) की है। इस बारे में किसी प्रकार के ठोस आँकड़ें तो उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन कई बार फर्ज़ी अकाउंट के खुलासे हो चुके हैं। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉम्र्स पर फर्ज़ी अकाउंट के ज़रिये साइबर क्रिमिनल लोगों को तरह-तरह के जाल में फंसाने का काम करते हैं। फेसबुक पर अक्सर कई ऐसी शिकायतें देखने को मिलती हैं, जिनमें किसी फर्ज़ी अकाउंट बनाकर असली अकाउंट होल्डर के जानकारों से पैसा मांगने की बात सामने आई है। इतना ही नहीं सोशल मीडिया पर फर्ज़ी अकाउंट के ज़रिये महिलाओं को फँसाने की कोशिशों और अपराध की खबरें तक सामने आ चुकी हैं।

हालाँकि साइबर क्राइम (अपराध) से निपटने के लिए कानून भी बन चुका है, लेकिन यह रुकने की जगह और बढ़ रहा है। बड़ी बात यह है कि साइबर क्राइम की सबसे ज़्यादा शिकार महिलाएँ होती हैं। महिलाओं को फँसाने के लिए कुछ अपराधी अपनी प्रोफाइल महिलाओं के नाम से ही बनाते हैं। फेसबुक और ट्विटर पर ऐसी प्रोफाइल काफी संख्या में देखी जा सकती हैं। महिलाओं को अपनी पोस्ट पर अधिक लाइक्स की चाह क्राइम का शिकार बनाने के जाल में जल्दी फँसा देती है। फेसबुक जैसी सोशल साइट्स पर इससे बचने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि फ्रेंड रिक्वेस्ट (मित्रता निवेदन) भेजने वाले की प्रोफाइल की अच्छी तरह जाँच कर लें, तब उसे मित्र बनाएँ। अगर फर्ज़ी प्रोफाइल का पता चले, तो ऐसे व्यक्ति को ब्लॉक कर दें और अगर कोई फेसबुक पर दोस्त बनने के बाद असहज बात या टिप्पणी करे, तो भी उसे ब्लॉक कर दें; अन्यथा उससे दूरी बना लें।

कैसे बढ़ रही अराजकता

बहुत से समाज सुधारकों और अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि सोशल मीडिया और इंटरनेट के ज़रिये बहुत लोग अराजकता फैलाने का काम कर रहे हैं। इनमें कुछ असामाजिक तत्त्वों और हिंसक प्रवृत्ति के संगठनों का भी हाथ है। पिछले कुछ वर्षों में कई दंगों में सोशल साइट्स का इस्तेमाल किये जाने के आरोप लगते रहे हैं। यह अलग बात है कि दंगे भड़काने या अराजकता फैलाने के बयान खाली आरोप-प्रत्यारोप के रूप में ही इस्तेमाल होकर रह गये हैं, उनकी कोई ठोस जाँच नहीं हुई है; खासकर भारत में। हाल ही में कुछ रिपोर्ट ऐसी भी आयी हैं, जिनमें कहा गया है कि बीते कुछ वर्षों से दुनिया के अधिकतर देशों में सोशल मीडिया का इस्तेमाल राजनीतिक ध्रुवीकरण और धार्मिक कट्टरता को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। इससे सामाजिक संघर्ष के साथ-साथ तनाव और झगड़ों की वजहें बढ़ी हैं। यहाँ तक कि इससे आंतकवाद की घटनाएँ तेज़ी के साथ बढ़ी हैं।

श्रीलंका में हो चुकी है बड़ी हिंसा

सन् 2019 में न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सन् 2018 में श्रीलंका में हुई भयंकर साम्प्रदायिक हिंसा सोशल मीडिया के दुरुपयोग की वजह से फैली थी। रिपोर्ट बताती है कि फेसबुक पर गलत सूचनाओं और झूठी खबरों के प्रसार के सहारे हिंसा को भड़काया गया था। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि सन् 2018 में श्रीलंका में फेसबुक को हेट स्पीच (घृणित बयानबाज़ी) और मिसइन्फॉर्मेशन (गलत सूचना) के लिए इस्तेमाल किया गया, जिसका नतीजा भयंकर हिंसा के रूप में सामने आया। आखिरकार श्रीलंका सरकार को पूरे देश में इमरजेंसी लगानी पड़ी और फेसबुक पर भी प्रतिबन्ध लगाना पड़ा। भारत में भी इसी तरह कई जगहों पर दंगों के दौरान सोशल साइट्स के दुरुपयोग की खबरें सामने आ चुकी हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले राजधानी में फैले साम्प्रदायिक दंगे इसका बड़ा उदाहरण हैं।

कहाँ-कहाँ है प्रतिबन्ध

दुनिया के ऐसे कई देश हैं, जहाँ कई सोशल साइट्स पर प्रतिबन्ध है। श्रीलंका सरकार द्वारा सन् 2018 में फेसबुक पर रोक के अलावा हाल ही में म्यांमार के प्रभारी सैन्य अधिकारियों ने तख्तापलट के बाद सोशल मीडिया की कई साइट्स पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। यहाँ के अधिकारियों ने देश में ट्वीटर और इंस्टाग्राम के इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। बता दें कि म्यांमार में फेसबुक और अन्य कई सोशल साइट्स पर पहले ही प्रतिबन्ध लगाया जा चुका है। म्यांमार की सैन्य सरकार का कहना है कि सोशल मीडिया का उपयोग फर्ज़ी और अराजक खबरों के लिए किया जा रहा था। यहाँ फेसबुक और अन्य ऐप्स पर पाबन्दी लगाने के अलावा संचार ऑपरेटरों और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को ट्विटर और इंस्टाग्राम के इस्तेमाल पर भी रोक लगाने का आदेश दिया है। सेना द्वारा जारी किये गये एक बयान में कहा गया है कि कुछ लोग फर्ज़ी खबरें फैलाने के लिए इन दोनों प्लेटफॉम्र्स का इस्तेमाल कर रहे हैं।

भारत में फर्ज़ी खबरों पर कैसे लगे रोक

दुनिया के कई देशों की तरह भारत सरकार भी यदि चाहे, तो सोशल साइट्स पर रोक लगा सकती है। इसके अलावा सरकार फर्ज़ी खबरों को रोकने के लिए भी ठोस कदम उठा सकती है। कुछ देशों ने ऐसे ही कदम उठाये हैं। इनमें मलेशिया और आस्ट्रेलिया की सरकारों ने फर्ज़ी खबरें रोकने के लिए एंटी फर्ज़ी खबरें लॉ जैसा सख्त कानून बनाया है। वहीं रूस, फ्रांस, चीन, जर्मनी, सिंगापुर और यूरोपियन यूनियन ने भी फर्ज़ी खबरें रोकने के लिए कानून बना रखे हैं। यदि भारत सरकार चाहे तो यहाँ भी फर्ज़ी खबरें रोकने के लिए कानून बना सकती है, लेकिन अभी तक सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।

साइबर लॉ के जानकार बताते हैं कि भारत में आईटी एक्ट है, जिसके तहत फर्ज़ी खबरों पर रोक लगाने के प्रावधान हैं; लेकिन ये कानून बहुत स्पष्ट और सख्त नहीं है, इसलिए ऐसा नहीं हो पा रहा है। हालाँकि फर्ज़ी खबर फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।

पूँछ पकड़कर बैठे लोग

यह बड़ी ही दिलचस्प बात है कि हम इंसान पूँछ पकड़कर बैठे हैं। यानी सही मायने में न तो हमें धर्म का मतलब पता है और न ही हम ईश्वर को समझ पाये हैं। हँसी आती है कि लोग मज़हबी पूँछों के सहारे भवसागर को पार करने की चाहत रखते हैं। कई सन्तों ने इसेमूर्खता कहा है।

सन्त कबीर कहते हैं :-

कबीर इस संसार को समझाऊ कितनी बार

पूँछ तो पकड़े भेड़ की, उतरा चाहवे पार

सन्त कबीर ने मज़हबों की तुलना भेड़ की पूँछ से की है और यह समझाने का प्रयास किया है कि जिस तरह भेड़ की पूँछ पकड़कर समुद्र पार नहीं हो सकता, उसी तरह मज़हबों के सहारे, वह भी उनको समझे या उन पर पूरी तरह अमल किये बगैर ईश्वर तक पहुँचना नामुमकिन है।

इतना ही नहीं, वह तो यहाँ तक कहते हैं :-

 आये एको देश ते, उतरे एको घाट

समझो का मत एक है, मूरख बाराबाट

सन्त कबीर अलग-अलग मज़हबों में बँटे संसार के लोगों को समझाने का प्रयास करते हैं कि एक ही जगह से सब आये हैं और एक ही घाट सबको उतरना है अर्थात् सभी को मौत के मुँह में समाकर उसी एक ईश्वर तक जाना है, इस बात को समझें तो सब एक ही मत यानी मज़हब के लोग हैं, लेकिन मूर्खों ने बाराबाँट कर रखा है। अर्थात् आपस में कई हिस्सों में बँट गये हैं।

गुरु नानक देव कहते हैं :-

अवर अल्लाह नूर ओ पाया, कुदरत के सब बन्दे

एक नूर ते सब जग उपजा, कोउन भले को मन्दे

हमने-आपने सबने एक ही अल्लाह का नूर (तेज़) पाया है, इसलिए हम सब उस एक ही परमात्मा के बन्दे (संतान) हैं। यहाँ कोई बड़ा या छोटा नहीं है। लेकिन हम फिर भी एक-दूसरे से बैर पालते हैं, एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते रहते हैं, एक-दूसरे की ज़िन्दगी छीनने, एक-दूसरे का सुख-चन छीनने में भरोसा करते हैं और इसी के चलते एक-दूसरे से इतनी नफरत करते हैं कि हमेशा एक-दूसरे के खून के प्यासे रहते हैं। इसीलिए तो सन्त कबीर दास ने अपनी खीझ कुछ इस तरह से उतारी है :-

 उधर से अन्धा आवता, इधर से अन्धा जाय

अन्धे को अन्धा मिला, तो रस्ता कौन बताय

अर्थात् कबीर दास जी ने मज़हबी दायरों में बँटे हम सब लोगों को अन्धा बताते हुए कहा है कि इधर से एक अन्धा (अज्ञानी अर्थात् एक मज़हब को मानने वाला) जा रहा है और उधर से एक अन्धा (अज्ञानी अर्थात् दूसरे मज़हब को मानने वाला) आ रहा है। दोनों ही तो अन्धे (अज्ञानी) हैं, तो रास्ता कौन किसे बताए?

वास्तव में बड़े ही आश्चर्य की बात है कि हम सब संसार से पुण्य कमाकर स्वर्ग जाने की चाहत मज़हबों को मान लेने भर से रखते हैं। जबकि यह बात जानते हुए भी स्वीकार नहीं करते कि केवल मज़हब के सहारे हमारा कल्याण नहीं हो सकता, क्योंकि अगर मज़हबों के सहारे हमें ईश्वर की प्राप्ति हो जाती, तो हमें कर्मों और मज़हबी बातों पर अमल करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। मज़हब तो पौष्टिक आहार से भरी वह थाली है, जिसे सिर पर ढोने से कोई फायदा नहीं होने वाला। इस थाली में रखे भोजन को हमें अंगीकार करके खाना होगा यानी मज़हबी बातों को अमल में लाना होगा, तभी उनका फायदा हमें मिलेगा। इसके लिए सबसे पहली चीज़ हमें यही स्वीकार करनी पड़ेगी कि ईश्वर केवल और केवल एक है। मुझे ऐसी ही एक कहानी याद आती है, जो हमें यह सीख देती है कि किताब चाहे विद्यालय के कोर्स की हो या मज़हब की, उनका फायदा तभी हो सकता है, जब हम उनमें दिये ज्ञान को आत्मसात् करते हैं, अन्यथा वे सामने रखे उस थाली के भोजन की ही तरह बेकार साबित होंगी, जिसकी पौष्टिकता और स्वाद दूर से देखने पर हमारे किसी काम नहीं आ सकता। कहानी कुछ इस प्रकार  है:- एक सरकारी विद्यालय में एक बच्चा अपनी किताबों को बहुत सहेजकर रखता था। उसे किताबों से इतना प्यार था कि वह उनका पन्ना भी पलटना पसन्द नहीं करता था कि कहीं पन्ने मैले न हो जाएँ। इसी तरह वह किताबों का सम्मान भी इतना करता था कि उन्हें बार-बार चूमता था और अगर गलती से भी उसकी किताबें कोई दूसरा छू लेता, तो वह उससे झगड़ा करता, अगर किताबें पैरों में लग जातीं तो वह उनसे माफी माँगता। आखिर जब परीक्षा हुई, तो वह फैल हो गया। यह कहानी मेरी दादी मुझे बचपन में सुनाकर पढऩे के लिए प्रोत्साहित करती थीं।

कहानी छोटी है, लेकिन इसका सार बिल्कुल वैसा ही है, जैसा मज़हबी किताबों को मानने वालों का। हम सब इसी तरह मज़हबी किताबों का सम्मान ठीक इसी तरह करते हैं, लेकिन उन्हें पढ़कर उन पर अमल नहीं करना चाहते और इसका नतीजा यह होता है कि हम आपस में बिखरे रहते हैं और एक ही ईश्वर को अलग-अलग मानने की भयंकर भूल करते हैं। यह इस वजह से है, क्योंकि हम किताबें पढ़-पढ़कर ईश्वरीय ज्ञान पाना चाहते हैं, उसे पा लेने का भ्रम पालते हैं। इसीलिए सन्त कबीर दास कहते हैं :-

पोथी पढि़-पढि़ जगमुआ, पंडित भया न कोय

ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय

हमें इस भ्रम से निकलना होगा। इसका मतलब यह भी नहीं कि हम मज़हबी किताबों में दी गयी सीखों पर अमल ही करना बन्द कर दें। लेकिन हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि ईश्वर दो-चार नहीं, बल्कि एक ही है और इस नाते हम मनुष्य, चाहे किसी भी बनावट के हों, किसी भी क्षेत्र के हों, एक ही हैं; और हमें आपस में मिलजुलकर प्यार से रहना चाहिए, एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए।

मध्य प्रदेश में पेट्रोल के दाम इतने बढ़ गए कि मशीनों ने तेल देना बंद किया!

देश में रोजाना डीजल-पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी का सिलसिला जारी है। मध्य प्रदेश में तो प्रीमियम पेट्रोल के दाम इतने बढ़ गए कि मशीनों को तेल देने के लिए बंद करना पड़ा। दरअसल, इन मीशीनों में दो अंक के नंबर और दशमलव के बाद दो अंक तक के दाम में ही पेट्रोल बेचे जाने का प्रावधान है यानी अधिकतर कीमत 99.99 रुपये हो सकती है। पर, रविवार को दाम 100 रुपये पहुंच गए, जिससे इन मशीनों से पेट्रोल देना बंद करना पड़ा।

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में पावर पेट्रोल 100 रुपये चार पैसे प्रति लीटर की दर पर से बेचा गया। यहां पुराने पेट्रोल पंपों को बिक्री रोकनी पड़ी क्योंकि दाम तीन डिजिट में पहुंचे तो मशीनों में डिस्प्ले होने बंद हो गए। अगर नाॅर्मल पेट्रोल के दाम भी 100 रुपये लीटर तक पहुंच गए तो कई पेट्रोल पंपों को बिक्री रोकनी पड़ेगी। नए साल के बाद से तेल की कीमतों में करीब पांच रुपयं की बढ़ोतरी हो चुकी है और अब भी जारी है।

रविवार यानी 14 फरवरी को लगातार छठे दिन पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा दर्ज किया गया। देश की राजधानी नई दिल्ली समेत सभी महानगरों में ईंधन के दाम में बढ़ोतरी हुई है। मुंबई में पेट्रोल के दाम 95 रुपये प्रति लीटर पार हो गए हैं। रविवार को दिल्ली में पेट्रोल 29 पैसे और डीजल 32 पैसे और महंगा हो गया है। इस इजाफे का बाद दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल का भाव 88.73 रुपए और डीजल का भाव 79.06 रुपए प्रति लीटर हो गया है, जो अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा है।

निजी उपयोग के लिए नहीं सरकारी विमान, राज्यपाल को वापस बुलाए केंद्र: शिवसेना

महाराष्ट्र में शिवसेना और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी फिर आमने-सामने हैं। सत्ताधारी शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में राज्यपाल कोश्यारी को निशाना बनाया है। दरअसल, पिछले दिनों सरकारी विमान के इस्तेमाल की अनुमति नहीं मिली थी, जिसका जवाब अब दिया गया है। राज्यपाल इस विमान से उत्तराखंड जाना चाह रहे थे, पर सरकार की ओर से मना कर दिया गया था। अब शिवसेना ने कहा है कि सरकारी विमान निजी उपयोग के लिए नहीं हैं।
सामना में लिखा कि “राजभवन में नियम-कानूनों की ऐसी अवहेलना होना काला कृत्य है। गृह मंत्रालय को भारतीय संविधान, नियम, कानून आदि से नफरत होगी तो ऐसे राज्यपाल का पूरा वस्त्रहरण होने से पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय को उन्हें वापस बुला लेना चाहिए। राज्यपाल के कंधे पर बंदूक रखकर केंद्र की महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार को निशाना बनाना सही नहीं है। बता दें कि राज्यपाल महोदय को सरकारी विमान उड़ाते हुए उनके अपने गृहराज्य अर्थात देहरादून जाना था। परंतु उद्धव सरकार ने उन्हें विमान के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी। राज्यपाल महोदय वीरवार सुबह विमान में जाकर बैठ गए। परंतु उड़ान की अनुमति नहीं होने के कारण उन्हें नीचे उतरना पड़ा तथा प्रवासी विमान से देहरादून आदि भागों में जाना पड़ा।”

आगे लिखा है कि “राज्यपाल का यह दौरा निजी था इसलिए सरकारी विमान का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। ऐसा अवगत कराने के बाद भी राज्यपाल विमान में बैठ गए। राज्यपाल ही क्या मुख्यमंत्री को भी निजी इस्तेमाल के लिए सरकारी विमान के अनुमति की इजाजत नहीं है। इसलिए इसमें विवाद का सवाल कैसे उठता है। पूरा देश जानता हे कि भाजपा अहंकार की राजनीति कर रही है। दिल्ली की सीमाओं पर कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे करीब 200 किसानों ने अब तक जान दे दी है, लेकिन सरकार पीछे हटने को राजी नहीें है। इसे अहंकार नहीं कहा जाए तो क्या कहा जाए? फडणवीस कहते हैं, राज्यपाल को विमान नहीं दिया ये महाराष्ट्र के इतिहास का काला दिन है। सरकार ने राज्यपाल का अपमान किया। विपक्ष के नेता का ऐसा कहना ज्यादती है। उन्हें अपने संवैधानिक सलाहकारों से मामले में जानकारी हासिल करनी चाहिए।”

उपयुक्त समय पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा जरूर दिया जायेगा : अमित शाह

लोकसभा में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2021 पर हुई चर्चा में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक का राज्य के दर्जे से कोई संबंध नहीं है और उपयुक्त समय आने पर जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा जरूर दिया जाएगा।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “मैं फिर से कहता हूं कि इस विधेयक का जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे से कोई संबंध नहीं है. उपयुक्त समय पर प्रदेश को राज्य का दर्जा दिया जाएगा।”

सदन में शाह ने AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को जवाब देते हुए कहा  ‘असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि केंद्रशासित प्रदेश में 2जी से 4जी इंटरनेट  सर्विसेज बहारी ताकतों के दबाव में बहाल की हैं। उनको पता नहीं है कि ये यूपीए सरकार नहीं, जिसे वो समर्थन करते थे। ये नरेन्द्र मोदी की सरकार है, इसमें देश की सरकार, देश की संसद, देश के लिए फैसले करती है।

संसद में शाह ने ये भी दावा किया है कि ओवैसी साहब-अफसरों का भी हिन्दू मुस्लिम में बटवारा करते हैं।उन्होंने सवाल किया कि “क्या एक मुस्लिम अफसर हिन्दू जनता की सेवा नहीं कर सकता या हिन्दू अफसर मुस्लिम जनता की सेवा नहीं कर सकता?” शाह ने कहा कि ये अफसरों को हिन्दू मुस्लिम में बांटते हैं और खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘यहां पूछा जा रहा है कि अनुच्छेद 370 हटाने के वक्त जो वादे किए गए थे, उनका क्या हुआ? मैं इस सवाल का जवाब जरूर दूंगा, लेकिन पूछना चाहता हूं, जिन्हें पीढ़ियों तक देश में शासन करने का मौका मिला, वे अपने गिरेबां में झांककर देखें, क्या आप हमसे 17 महीने का हिसाब मांगने के लायक हैं ?

देश में कई जगह भूकम्प के तेज झटके; अमृतसर – तज़ाकिस्तान थे भूकंप के दो केंद्र, तीव्रता 6.3

भारत सहित अफ़ग़ानिस्तान में भूकंप के बड़े झटके आये हैं। इसके दो एपिसेंटर अमृतसर और तज़ाकिस्तान बताये गए हैं। हालांकि, आईएएमडी ने अमृतसर के भूकंप का केंद्र होने से कुछ देर पहले इंकार किया है। इसकी तीव्रता की अभी पक्की खबर नहीं है, हालांकि इनकी तीव्रता 6.3 और 6.1 बताई गयी है। यह झटके 10.31 बजे (तज़ाकिस्तान) से 10.34 (अमृतसर) के बीच आये हैं। अभी तक की जानकारी के मुताबिक अमृतसर में कुछ नुक्सान हुआ है और कुछ कच्चे घरों में दरारें आई हैं।

भूकंप के झटके महसूस करते ही लोग दर कर  घरों से बाहर निकल आये। पंजाब, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश सहित उत्तर भारत में  में भी तेज झटके महसूस किये गए। राजधानी दिल्ली में दो बार भूकंप के तेज झटके लगे जिससे लोग डर कर घरों से बाहर भागे। खासकर बहुमंजिला इमारतों में। झटके इतने तेज थे कि पंखे भी हिल गए।
अभी ट्रक की जानकारी के मुताबिक भूकंप की गहराई 10 किलोमीटर ज़मीन के नीचे थी जिससे झटके भी दूर-दूर तक महसूस किये गए। अमृतसर में कुछ  की खबर है और वहां कुछ घरों में दरारें आई हैं। भूकंप को लेकर बार-बार जानकारी बदली गयी है और अभी तक सही जानकारी का इन्तजार है।

तमिलनाडु में पटाखा फैक्ट्री में आग से अब तक 11 की मौत, मोदी, राहुल ने दुःख जताया

तमिलनाडु के विरुधुनगर में पटाखे की फैक्ट्री में शुक्रवार को लगी आग में जान गंवाने वालों की संख्या 11 हो गई है।  इस घटना में 36 लोग घायल हुए हैं जिनमें कुछ की हालत गंभीर बताई गयी है। पीएम नरेंद्र मोदी ने घटना पर गहरा दुःख जताया है। उधर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हादसे पर गहरा दुःख जताते हुए तमिलनाड में आग हादसे को लेकर राज्य सरकार से तत्काल मदद की अपील की है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक हादसा दोपहर करीब पोन 2 बजे हुआ। आग भड़काने के बाद कई धमाके हुए जिससे बचाव टीमों को घटनास्थल के पास पहुँचना मुश्किल हुआ।  दमकलकर्मी सत्तुर, शिवकाशी और वेम्बकोट्टई में दमकल केंद्रों से आग की लपटों को दूर करने के लिए मौके पर पहुंचे लेकिन तब तक कम से कम चार पटाखा बनाने वाले शेड नष्ट हो गए।
जानाकरी के मुताबिक विरुधुनगर स्थित इस फैक्ट्री में अचानक विस्फोट हुआ।  विस्फोट के बाद आग लगी और जब तक कि कोई कुछ सोचता आग फैल चुकी थी।  घटना की जानकारी मिलते ही मौके फायर टेंडर पहुंच गए। दमकल की आधा दर्जन से ज्यादा गाड़ियां आग बुझाने में जुट गईं। पटाखा फैक्ट्री के अंदर बार-बार विस्फोट  होने की खबर है।
उधर मुख्यमंत्री की तरफ से सभी मृतकों के परिवारों 3-3 लाख रुपये की अनुग्रह राशि जबकि गंभीर रूप से घायलों को एक-एक लाख रुपये देने का ऐलान किया गया है। घटना पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुख व्यक्त किया है। उन्होंने ट्वीट में कहा – ‘तमिलनाडु के विरुधुनगर में पटाखा फैक्ट्री में आग की घटना दुखद है। इस दुख की घड़ी में मेरी सांत्वना शोकाकुल परिवारों के साथ है। मैं आशा करता हूं घायल जल्द ठीक होंगे। प्रभावितों की मदद के लिए अथॉरिटीज की तरफ से काम किया रहा है।’
इस बीच प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से विरुधुनगर आग हादसे में मृतक परिवार वालों को 2-2 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने का ऐलान किया गया है। इसके साथ ही, जो लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं उन्हें 50 हजार रुपये दिए जाएंगे।
उधर तमिलनाडु में आग हादसे को लेकर राहुल गांधी ने राज्य सरकार से तत्काल मदद की अपील की है। उन्होंने ट्वीट में कहा – ‘तमिलनाडु के विरुधुनगर में पटाखा पीड़ितों के परिवार के प्रति दिल से सांत्वना व्यक्त करता हूं। जो लोग अभी भी अंदर फंसे हुए हैं उसके बारे में सोचना हृदय विदारक है। मैं राज्य सरकार से यह अपील करता हूं कि वे फौरन बचाव, मदद और राहत मुहैया कराएं।’

टीएमसी सांसद दिनेश त्रिवेदी का राज्य सभा से इस्तीफा देने का ऐलान, भाजपा में शामिल होने की अटकलें हुईं तेज

वरिष्ठ टीएमसी नेता दिनेश त्रिवेदी ने राज्य सभा से इस्तीफा देने का ऐलान किया है। उन्होंने खुद राज्य सभा में अपने इस्तीफे का ऐलान किया। पूर्व रेल मंत्री ने कहा कि वे घुटन महसूस कर रहे हैं। उनके भाजपा में जाने की अटकलें तेज हो गयी हैं।
राज्य सभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुए त्रिवेदी ने अपने भाषण के तुरंत बाद कहा कि वे घुटन महसूस कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने राज्य सभा से इस्तीफा देने का  ऐलान किया। टीएमसी से उनका इस्तीफा पार्टी के लिए बड़ा झटका माना जाएगा क्योंकि वे पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और कई पदों पर रहे हैं।
टीएमसी ने उन्हें राज्य सभा में बजट पर पार्टी का पक्ष रखने का जिम्मा दिया था लेकिन दिनेश ने ऐसा नहीं किया और भाषण के बाद अपना इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया। पिछले दिनों में खुले रूप से दिनेश त्रिवेदी ने पार्टी के खिलाफ कुछ ख़ास नहीं कहा था लेकिन पार्टी के भीतर कुछ स्तर पर उनको लेकर आशंका जरूर जताई जा रही थी। वैसे पार्टी की तरफ से त्रिवेदी को  तरजीह मिलती रही है लिहाजा उन्हें पार्टी का वफादार माना जाता था।
सम्भावना है कि त्रिवेदी एकाध दिन में भाजपा में शामिल  हो सकते हैं। उनके राज्य सभा से इस्तीफे की प्रक्रिया के बाद वे सांसद नहीं रहेंगे जिसके बाद उनका किसी अन्य दल में शामिल होने का रास्ता साफ़ हो जाएगा। बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा पूरी कोशिश कर रही है ताकि राज्य में मजबूत नेतृत्व की कमी को कम किया जा सके।

पीएम डरपोक हैं, चीन को भारत की ज़मीन सौंप दी ; हमारी सेना फिंगर 4 पर थी तो 3 पर क्यों लाया: राहुल

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के लोकसभा में चीन और भारत के बीच सेना और  का ब्यान देने के एक दिन बाद शुक्रवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बड़ा आरोप लगाते हुए मोदी सरकार परआरोप लगाया कि मोदी जी ने चीन के सामने सिर झुका दिया है। जो रणनीतिक क्षेत्र है और जहां चीन भारत के अंदर आकर बैठा है, उसके बारे में रक्षा मंत्री ने एक शब्द नहीं बोला। राहुल गांधी ने सवाल किया है कि भारतीय सेना हमारे अपने क्षेत्र फिंगर 4 तक थी, फिर क्यों सैनिकों को फिंगर 3 पर लाया गया?
एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, राहुल गांधी ने पूछा – ‘पीएम मोदी ने भारतीय क्षेत्र को चीन को क्यों दिया? इसका जवाब उन्हें और रक्षा मंत्री को देना चाहिए। क्यों सेना को कैलाश रेंज से पीछे हटने को कहा गया? देपसांग प्लेन्स से चीन वापस क्यों नहीं गया? हमारी जमीन फिंगर-4 तक है। पीएम मोदी ने फिंगर-3 से फिंगर-4 की जमीन चीन को पकड़ा दी है।’
कांग्रेस नेता ने कहा कि प्रधानमंत्री डरपोक हैं, जो चीन के खिलाफ खड़े नहीं हो सकते। वे हमारी सेना के जवानों के बलिदान पर थूक रहे हैं। वे सेना के बलिदान को धोखा दे रहे हैं। भारत में किसी को भी ऐसा करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए प्रधानमंत्री इस पर क्यों नहीं बोल रहे हैं।
राहुल गांधी ने कहा – ‘देपसांग, गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है। अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति को बहाल किया जाना चाहिए और प्रधानमंत्री को देश को जवाब देना चाहिए। प्रधानमंत्री डरपोक हैं जो चीन के खिलाफ खड़े नहीं हो सकते।’
कांग्रेस नेता ने कहा कि देश के क्षेत्र की रक्षा करना प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी है। ‘वह इसे कैसे करते हैं, यह उनकी समस्या है, मेरी नहीं’।
गांधी ने ने आरोप लगाया कि ‘पीएम मोदी ने भारत की जमीन चीन को सौंप दी है। कि हमारी सेनाएं तो तैयार हैं, पर मोदी चीन के सामने खड़े होने को तैयार नहीं हैं।’

स्वदेशी ऐप ‘कू’  यूजर्स की संख्या 30 लाख के पार

हाल ही में शुरु किया गया भारतिय ऐप ‘कू’  (Koo App) के यूजर्स की संख्या तेजी से बढ़ रही है । ट्विटर के मुकोबले शुरू किये इस ऐप के अबतक 30 लाख से अधिक यूजर्स हो गये है। इस हफ्ते इस ऐप के डाउनलोड 10 गुना बढ़ा है।

ऐप के लोगो में ट्विटर के नीले पक्षी के विपरीत एक पीला पक्षी है। यह ऐप हिंदी, तेलुगु और बंगाली सहित कई भाषाओं में उपलब्ध है।केंद्र सरकार के मंत्रियों और सरकारी विभागों का समर्थन मिलने के बाद लोग इसे तेज़ी से डाउनलोड कर रहे है।

पीयूष गोयल और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय जैसे कुछ मंत्रियों ने लोगों से कू को अपनाने की अपील भी की है,  जिसके चलते इसके यूजर्स की संख्या में तेजी से इज़ाफा हो रहा है।

कू के सह-संस्थापक मयंक बिदावत ने बताया कि उनके पास कू के लगभग 15 लाख एक्टिव यूजर्स सहित कुल 20 लाख से अधिक यूजर्स थे। अब, यूजर्स का आंकड़ा 30 लाख को पार कर गया है।

माइक्रो ब्लॉगिंग ऐप ट्विटर के साथ बढ़ते विवाद के बीच इस स्वदेशी ऐप को भारतीय यूज़र्स ज्यादा महत्व दे रहे है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ट्विटर से कई भड़काऊ पोस्ट को वापस लेने का आदेश दिया था, जिसको ट्विटर ने नज़रअंदाज़ कर दिया है। जिसके बाद मंत्रालय ने ट्विटर को अपना रुख बताने के लिए कू (Koo) के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया है।

कू ऐप पिछले साल सरकार द्वारा शुरू की गई आत्मनिर्भर इनोवेशन चैलेंज के विजेताओं में से एक था। अप्रमेय राधाकृष्ण और मयंक बिदावत ने पिछले साल कू की शुरुआत की थी, ताकि यूजर्स को अपनी बात कहने और भारतीय भाषाओं के प्लेटफार्म के साथ जुड़ने का मौका मिल सके।

इससे पहले जनता के साथ संवाद करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कैबिनेट मंत्रियों द्वारा ट्विटर का इस्तेमाल किया जाता रहा है।