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महाकुंभ भगदड़ मामले पर सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

नई दिल्ली :  सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज महाकुंभ में हुई भगदड़ पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने इस घटना को एक “दुर्भाग्यपूर्ण घटना” बताते हुए याचिकाकर्ता को इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट में वकील विशाल तिवारी ने जनहित याचिका दायर कर महाकुंभ में हुई भगदड़ पर स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की थी। याचिका में यह भी मांग की गई थी कि सभी राज्यों को मेले में सुविधा केंद्र खोलने चाहिए ताकि गैर हिंदी भाषी श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो।

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को इलाहाबाद हाई कोर्ट जाने को कहा है। कोर्ट का मानना है कि यह मामला राज्य उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है। बता दें, मौनी अमावस्या के दिन प्रयागराज महाकुंभ में भगदड़ मच गई थी जिसमें 30 लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हुए थे। इस घटना के बाद सरकार ने मेले में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कई कड़े कदम उठाए हैं।

भारतीय-अमेरिकी गायिका चंद्रिका टंडन ने जीता ग्रैमी पुरस्कार

भारतीय-अमेरिकी गायिका चंद्रिका टंडन ने एल्बम ‘त्रिवेणी’ के लिए बेस्ट न्यू एज, एम्बिएंट या चैंट एल्बम श्रेणी में ग्रैमी पुरस्कार जीता। उन्होंने रिकी केज और अनुष्का शंकर को पछाड़कर यह सम्मान जीता। रविवार को 67वें ग्रैमी का आयोजन रिकॉर्डिंग अकादमी ने लॉस एंजिल्स के क्रिप्टो डॉट कॉम एरिना में किया।

चंद्रिका ने अपने सहयोगियों, दक्षिण अफ्रीकी बांसुरी वादक वाउटर केलरमैन और जापानी सेलिस्ट इरु मात्सुमोतो के साथ यह पुरस्कार जीता। चंद्रिका के साथ बेस्ट न्यू एज, एम्बिएंट या चैंट एल्बम श्रेणी में रिकी केज का ब्रेक ऑफ डॉन, रयूची सकामोटो का ओपस, अनुष्का शंकर का चैप्टर सेकंड: हाउ डार्क इट इज बिफोर डॉन और राधिका वेकारिया का वॉरियर्स ऑफ लाइट शामिल थे।

न्यूयॉर्क में भारत के महावाणिज्य दूतावास ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर एक पोस्ट शेयर करते हुए चंद्रिका को बधाई दी। चंद्रिका पेप्सिको की पूर्व सीईओ इंद्रा नूई की बहन हैं। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पोस्ट पर लिखा, “त्रिवेणी के लिए बेस्ट न्यू एज, एम्बिएंट या चैंट एल्बम श्रेणी में ग्रैमी अवार्ड जीतने पर चंद्रिका टंडन को बधाई! प्राचीन मंत्रों, बांसुरी और सेलो का एक मंत्रमुग्ध करने वाला मिश्रण है। ‘त्रिवेणी’ संगीत की सार्वभौमिक भाषा के माध्यम से संस्कृतियों और परंपराओं को जोड़ता है।”

उन्होंने आगे लिखा, उनकी कृतियां प्रतिभा और रचनात्मकता का एक उल्लेखनीय मिश्रण एक उद्देश्य के साथ दिखाती है। मैं उनकी निरंतर सफलता और वैश्विक मान्यता की कामना करता हूं। इस बीच बता दें, ग्रैमी ने कई कारण से सुर्खियां बटोरी। इस बार रैपर कान्ये वेस्ट और उनकी पत्नी बियांका सेंसरी को पुलिस ने इवेंट से बाहर निकाल दिया।

साथ ही हॉलीवुड स्टार विल स्मिथ ने 94वें अकादमी पुरस्कार के दौरान 2022 में हुई थप्पड़ की घटना के बाद वापसी की। वैरायटी डॉट कॉम की रिपोर्ट के अनुसार स्मिथ ने पियानो पर हर्बी हैनकॉक का परिचय देकर सेगमेंट की शुरुआत की और बाद में “विकेड” स्टार सिंथिया एरिवो का परिचय कराया, जिन्होंने “फ्लाई मी टू द मून” गीत गाया था।

नुक्कड़ नाटकों के जरिए राजनीति

– दिल्ली विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को साधने के लिए नुक्कड़ नाटकों का सहारा ले रहीं पार्टियां!

इंट्रो- नुक्कड़ नाटक चौक-चौराहों पर भीड़ का ध्यान खींचने का बहुत पुराना माध्यम हैं। इन नुक्कड़ नाटकों के जरिए बड़ी आसानी से लोगों को संदेश दिए जाते रहे हैं। पूर्व में जब प्रसार के माध्यम कम थे, तब सरकारें देश के लोगों में किसी कार्य या योजना के प्रति जागरूकता लाने के लिए नुक्कड़ नाटकों का आयोजन कराती थीं। लेकिन अब चुनावों का रुख मोड़ने के लिए भी नुक्कड़ नाटकों का सहारा लिया जाता है। कुछ कलाकारों का दावा है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में कुछ राजनीतिक पार्टियां नुक्कड़ नाटक कराकर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में जुटी हैं। इन नुक्कड़ नाटकों में कभी-कभी नैतिकता की सीमाएं लांघी जा रही हैं। इस बार ‘तहलका’ ने इस तरह की चुनाव साधने की विभिन्न पार्टियों की योजनाओं की जानकारी कलाकारों से जुटाते हुए पड़ताल की है। पढ़िए, तहलका एसआईटी की यह अनोखी पड़ताल :-

‘मैंने प्रशांत किशोर की टीम के लिए काम किया है और 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान कई नुक्कड़ नाटक किए हैं, जब वह भाजपा के लिए काम कर रहे थे। उस चुनाव में मैंने चार निर्वाचन क्षेत्रों- आगरा, अकबरपुर, आजमगढ़ और रामपुर का प्रभार संभाला था। इनमें से भाजपा ने तीन सीटें जीती थीं। मैं निश्चितता के साथ कह सकता हूं कि नुक्कड़ नाटकों ने मतदाताओं को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।’ -यह बात नुक्कड़ नाटक कलाकार धर्मवीर मिश्रा ने नुक्कड़ नाटकों के नकली कॉन्ट्रेक्टर बनकर उससे मिले ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर को बताई।

‘पहले नुक्कड़ नाटकों का इस्तेमाल सामाजिक जागरूकता फैलाने के लिए किया जाता था। आजकल इनका इस्तेमाल राजनीतिक पार्टियां चुनावों के दौरान अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए करती हैं। इसके लिए किसी बड़ी भीड़ या मंच की आवश्यकता नहीं होती है। आप (नुक्कड़ कलाकार) कहीं भी जाकर प्रदर्शन कर सकते हैं और सिर्फ 10 मिनट के नाटक में सभी राजनीतिक एजेंडे को व्यक्त कर सकते हैं। दो अलग-अलग टीमों के साथ आप (नुक्कड़ कलाकार) बिना किसी कठिनाई के एक साथ दो स्थानों पर प्रदर्शन कर सकते हैं।’ -यह बात विभिन्न पार्टियों को अपनी सेवाएं प्रदान करने वाले एक अन्य रंगमंच कलाकार अनुराग द्विवेदी ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताई।

‘जब मैं पिछले आम चुनावों के दौरान दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए नुक्कड़ नाटक कर रहा था, तो श्रोताओं में से कई लोगों ने खुले तौर पर भाजपा के खिलाफ बात की थी। हालांकि जब चुनाव परिणाम घोषित हुए, तो भाजपा दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटों पर विजयी हुई। यह दर्शाता है कि हमारे नुक्कड़ नाटकों ने भाजपा के पक्ष में मतदाताओं को प्रभावित करने में भूमिका निभायी।’ -यह दावा एक तीसरे थिएटर कलाकार शशांक साशा ने ‘तहलका’ के रिपोर्टर से बातचीत के दौरान किया।

‘हालांकि भविष्य में मैं भाजपा के लिए नुक्कड़ नाटक नहीं करूंगा, क्योंकि वे भुगतान जारी करने से पहले चुनावों के दौरान हमारे द्वारा किए गए नुक्कड़ नाटकों का व्यापक सबूत मांगते हैं। हमने हाल ही में हुए जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा के लिए काम किया; लेकिन उनके साथ हमारा अनुभव अच्छा नहीं रहा।’ -अनुराग द्विवेदी ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कहा।

‘यदि आप (कलाकार) आम आदमी पार्टी या कांग्रेस से नुक्कड़ नाटक अभियान का ठेका चाहते हैं, तो आपको सीधे उम्मीदवारों से संपर्क करना होगा, क्योंकि ये पार्टियां ऐसे मामलों को केंद्रीय रूप से नहीं संभालती हैं। दूसरी ओर भाजपा के मामले में आप (कलाकार) नुक्कड़ नाटकों का ठेका केवल उनके मुख्यालय के माध्यम से ही हासिल कर सकते हैं।’ -शशांक साशा ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया।

‘2025 के दिल्ली चुनावों में मैं आम आदमी पार्टी द्वारा जारी गीत- फिर लाएंगे केजरीवाल में शामिल हूं। पिछले कई वर्षों में मैंने भारत भर में विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए तीन-चार लाख नुक्कड़ नाटक किये हैं। यदि 25 लोग हमारा नाटक देखने के लिए एकत्रित होते हैं, तो कम-से-कम पांच लोग हमारे अभिनय से प्रभावित होंगे और वे पांच लोग एक श्रृंखला बनाएंगे।’ -धर्मवीर मिश्रा ने अपने अनुभव को आधार बताते हुए कहा।

नुक्कड़ नाटक लंबे समय से भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहे हैं। भारतीय जन नाट्य संघ (आईपीटीए) ने देश भर में नुक्कड़ नाटकों को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये प्रदर्शन आमतौर पर सार्वजनिक स्थानों जैसे मॉल, बाजार क्षेत्रों और सड़क के किनारे आयोजित किए जाते हैं। इसमें कलाकार पूरी तरह से अपनी प्राकृतिक आवाज पर निर्भर रहते हैं तथा माइक्रोफोन या स्पीकर के बिना अभिनय करते हैं। परंपरागत रूप से नुक्कड़ नाटकों का उपयोग किसानों के अधिकार, जल संकट, बाल श्रम और घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों पर सामाजिक जागरूकता बढ़ाने के लिए किया जाता था।

हालांकि आजकल नुक्कड़ नाटक राजनीतिक दलों के लिए चुनावों के दौरान अपने एजेंडे को बढ़ावा देने का साधन बन गये हैं। सच्चाई को उजागर करने के लिए ‘तहलका’ ने इसकी पड़ताल की और नुक्कड़ नाटक समूहों से बात की। इन कलाकारों ने विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए प्रचार करने और अपने प्रदर्शनों के माध्यम से मतदाताओं को प्रभावित करने की बात स्वीकार की।

इस सच्चाई का पता लगाने के लिए 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक उम्मीदवारों के लिए नुक्कड़ नाटक समूह की तलाश करने वाले एक काल्पनिक ग्राहक के रूप में ‘तहलका’ रिपोर्टर ने पहली मुलाकात दिल्ली के शशांक साशा से की। साशा पिछले 10 वर्षों से अपना पंजीकृत समूह क्रिएटिव आर्ट ग्रुप सोसायटी चला रहे हैं। उन्होंने बताया कि चुनावों के दौरान मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए सभी राजनीतिक दलों द्वारा नुक्कड़ नाटकों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। उन्होंने दावा किया कि 2024 के आम चुनावों के दौरान उन्होंने दिल्ली में भाजपा के लिए नुक्कड़ नाटक किये थे और शहर की सभी सात लोकसभा सीटों पर पार्टी की जीत में उनका योगदान रहा है। साशा के अनुसार, उनके प्रदर्शन ने उन मतदाताओं को प्रभावित करने में भूमिका निभायी, जो शुरू में भाजपा के खिलाफ थे। उन्होंने खुलासा किया कि उन्हें नुक्कड़ नाटक करने के लिए भाजपा से प्रतिदिन 15,000 रुपए मिलते थे।

रिपोर्टर : एक बात बताओ आप, ये जो नुक्कड़ नाटक करवाओगे आप, दिल्ली में इससे क्या वोटर इंफ्लूएंस (मतदाता प्रभावित) होता है?

साशा : हां; बिलकुल होता है सर! फायदा होता है। अभी मैं आपको बताता हूं, लास्ट ईयर (पिछले साल) भी किया था मैंने, …2024 में। तब पीछे से आवाज सुनाई दे रही थी, जब हम कर रहे थे- क्या बीजेपी, क्या बीजेपी। बाद में पता लग रहा है कि सातों सीट बीजेपी ले गयी। …मतलब, मैं हैरान था सर! लिटरली (सचमुच) हैरान था, सात सीट्स सर!

रिपोर्टर : ये नुक्कड़ नाटक से हुआ है?

साशा : ये नुक्कड़ नाटक से ही हुआ है; और बाकी के जो लोग होते हैं सर! वो भी कुछ-न-कुछ काम करते हैं।

रिपोर्टर : तो आपकी कितनी सीट्स हो गई थीं लोकसभा इलेक्शन में?

साशा : बेसिकली आपको एक एरिया प्रोवाइड करवा देते हैं। हमको मिला था …रोहिणी के आस-पास का; जो लोकसभा मिली थी मुझे, लोकसभा सात में, …एक लोकसभा में, …बहुत बड़ी होती है वो, तो उसमें अलग विधानसभाओं में तो वही टीम छोड़ दी थी, वहां 10-12 दिन का प्रोग्राम चलाया था।

रिपोर्टर : तो आपने लगातार 10-12 दिन तक नुक्कड़ नाटक किया रोज? उसमें क्या करते थे आप?

साशा : यही नुक्कड़ नाटक; …स्क्रिप्ट दे दी थी।

रिपोर्टर : अच्छा! स्क्रिप्ट यही लोग देते हैं? …पॉलिटिकल पार्टी?

साशा : बीजेपी तो बनाकर देती है, आप को बताना पड़ता है, ये-ये है।

रिपोर्टर : ये ओपेनली (खुलेआम) करते हो आप?

साशा : हां-हां; जैसे अब बीजेपी करवा रही है, तो ये हमें प्रोवाइड करवा देंगे कुर्ता, एक स्टॉल टाइप का होता है, तो सामने देखते ही पता चल जाएगा, ये बीजेपी के बंदे हैं। लास्ट टाइम भी इन्होंने लोगो दिया था, भगवा कलर के जूते दिए थे। बेसिकली दिस इज अ कैंपेन (मूलत: यह एक अभियान है)।

रिपोर्टर : कितना पैसा देते हैं ये लोग?

साशा : लास्ट टाइम इन्होंने दिया था एक दिन का लगभग 15 हजार।

रिपोर्टर : तो 10 दिन किया, तो हो गया 1.5 लाख रुपए।

साशा ने खुलासा किया कि 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा ने मतदाताओं को प्रभावित करने के उद्देश्य से नुक्कड़ नाटक समूहों को नुक्कड़ नाटक करने के लिए आमंत्रित किया है। उनके सहित लगभग 250 समूहों ने अनुबंधों के लिए आवेदन किया है। अवसर प्राप्त करने के बारे में आश्वस्त, साशा ने चयन प्रक्रिया को समझाया और विस्तार से बताया कि कैसे भाजपा व्यापक कवरेज सुनिश्चित करने के लिए अपने पर्याप्त संसाधनों का उपयोग करते हुए निर्वाचन क्षेत्रों में टीमों को आवंटित करती है।

रिपोर्टर : अब जैसे आपने XXXX को बुलाया, ये किसका कैंपेन (अभियान) है?

साशा : बीजेपी का।

रिपोर्टर : अप्लाई की क्या फॉर्मेलिटी है?

साशा : सोर्स (स्रोत) से सारी चीजें पता चलती हैं। कोई सोर्स गया उसने बताया, उसके बाद रजिस्ट्रेशन कर लेते हैं।

रिपोर्टर : मान लो, भगवान न करे रिजेक्ट (रद्द) हो गया आपका, फिर?

साशा : नहीं, रिजेक्ट तो नहीं होगा सर! इतनी सियोरिटी है। …अब जैसे आप कह रहे हैं, आप तीन कैंडिडेट्स दे देंगे; तो आपकी भी कुछ बातचीत होगी!

रिपोर्टर : बीजेपी अभी कितने पर करवा रही है?

साशा : जो एंट्री भरी है, 250 टीम्स के आसपास एंट्री भरी है।

रिपोर्टर : और आप कॉन्फिडेंट हो, आपको मिल जाएगा?

साशा : हां; कितनी सीट्स हैं?

रिपोर्टर : 70

साशा : हां; तो ये लगभग 70 टीम्स को तो काम दे ही देंगे। और ये लोग क्या करते हैं, मान लीजिए एक टीम को इन्होंने 10 दिन के लिए हायर किया, तो एक विधानसभा में दो-तीन दिन में उतार देते हैं।

रिपोर्टर : 70 की 70 सीट्स पर करवा लेगी बीजेपी?

साशा : करवाएंगे सर! बीजेपी के पास फंड इतना है।

रिपोर्टर : सारा आप ही को (तुमको) मिलेगा?

साशा : नहीं, नहीं।

रिपोर्टर : आपको कितनी सीट की संभावना है?

साशा : एक ही मिलेगी सर! मैक्समम दो, …एक-दो ओनली। क्यूंकि आल ओवर दिल्ली में एक ही टीम नहीं कर सकती सर!

जब साशा से पूछा गया कि क्या वह भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लिए भी अभियान का प्रबंधन कर सकते हैं, तो उन्होंने आत्मविश्वास के साथ अपनी रणनीति बतायी कि उनके समूह में अलग-अलग पार्टियों के लिए अलग-अलग टीमें हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई ओवरलैप या मिक्स-अप न हो। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने कहा कि भाजपा भी इस व्यवस्था से अवगत है; लेकिन उसका ध्यान केवल अपने परिणाम सुरक्षित करने पर है। नुक्कड़ नाटक प्रदर्शन के लिए साशा ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से प्रतिदिन 20,000 रुपए लेने की मांग की, जिसमें भोजन और पटकथा लेखन का खर्च शामिल नहीं था।

रिपोर्टर : अगर मैं आपको आप और कांग्रेस के दो-तीन कैंडिडेट्स दिलवा दूं, कर लोगो आप?

साशा : हां।

रिपोर्टर : मिक्स नहीं हो जाएगा?

साशा : नहीं, मेरी और भी टीम्स हैं। जैसे मैं पर्टिकुलरली बीजेपी का कर रहा हूं; दूसरी टीम आम आदमी पार्टी का कर लेगी। तीसरी टीम कांग्रेस कर लेगी। एक्चुअली ये चीज जो है, बीजेपी वालों को भी पता है। यहां लोग ऐसे भी हैं, जो किसी पार्टी के हैं और दूसरी पार्टी के लिए काम कर रहे हैं। सबको सब पता है सर! लेकिन उनको तो अपने काम से मतलब है ना सर! और होता क्या है, …बीजेपी वाले अगर हम कहीं जा रहे हैं, तो एक पर्सन (व्यक्ति) अपना दे देते हैं। इससे मैं लोकेशन लूंगा, को-ऑर्डिनेशन होगा, वो साथ में ही रहेगा पर्सन। उससे क्या होगा, वो हमको वॉच करता (देखता) रहेगा, हम कोई गलत इंफॉर्मेशन तो पास नहीं कर रहे हैं!

रिपोर्टर : अच्छा, मैं कितना रेट कोट कर दूं आपकी तरफ से?

साशा : कर दीजिए 20 के आसपास।

रिपोर्टर : जो 15 हजार आपने लोकसभा में किए थे, उसमें खाना था?

साशा : नहीं सर!

रिपोर्टर : स्क्रिप्ट आपकी होगी।

साशा : हां; वो लिखवानी पड़ेगी बाहर से, उसका भी खर्चा जाएगा।

साशा ने अब भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच अभियान रणनीतियों में महत्वपूर्ण अंतर को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि भाजपा का केंद्रीय कार्यालय चुनावों के लिए नुक्कड़ नाटक के ठेकों का सीधे प्रबंधन करता है। इसके विपरीत कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने यह जिम्मेदारी व्यक्तिगत उम्मीदवारों पर छोड़ दी है तथा थिएटर समूहों को काम के लिए सीधे उनसे संपर्क करना पड़ता है।

साशा : बीजेपी वाले ना क्या करते हैं, मैं आपको बताऊं- जैसे अब दिल्ली में इलेक्शन हैं। दिल्ली बीजेपी का जो कार्यालय है, वो कार्यालय ही से डील करते हैं डायरेक्ट। …अब जैसे कि उन्होंने निकाल दिया कि आप लोग आ जाओ।

रिपोर्टर : जितनी भी नुक्कड़ टीम्स हैं?

साशा : हां; अब जिन-जिन लोगों को पता चलता है, वो अपना अप्लाई कर देते हैं। कांग्रेस और आप क्या है, उनके लिए पर्टिकुलरली (खासतौर पर) हर कैंडिडेट (उम्मीदवार) के पास जाना पड़ता है। वो डील नहीं करते, जैसे दिल्ली प्रदेश है। आम आदमी पार्टी का वो डील नहीं करते, सीधे आप कैंडिडेट के पास जाओ। …कैंडिडेट ही आपको काम देगा। डिपेंड करता है, कैंडिडेट पर, काम करवाएगा या नहीं। यही कांग्रेस में है।

अब साशा ने विस्तार से बताया कि कैसे नुक्कड़ नाटक मतदाताओं को प्रभावित करने का एक शक्तिशाली साधन हैं। उन्होंने बताया कि लाइव इंटरेक्शन और मनोरंजन के पहलू दर्शकों को आकर्षित करते हैं और ऐसा प्रभाव पैदा करते हैं, जिसे डिजिटल प्लेटफॉर्म अक्सर हासिल करने में असफल रहते हैं। जमीनी स्तर पर लोगों से सीधे जुड़कर ये प्रदर्शन स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं, भले ही दर्शकों का केवल एक छोटा-सा हिस्सा ही इच्छित संदेश को समझ पाता हो। दर्शकों के साथ सीधा और व्यक्तिगत जुड़ाव एक अभियान माध्यम के रूप में नुक्कड़ नाटकों की अद्वितीय प्रभावशीलता को रेखांकित करता है।

रिपोर्टर : अच्छा; अगर मैं बात करूं किसी कैंडिडेट से आप (आम आदमी पार्टी) के या कांग्रेस के, तो उनका पहला सवाल होगा- कैसे इंफ्लूएंस करेंगे? वो आप मुझे तरीका समझा दो।

साशा : सर! तरीका इतना-सा है, हमारी जो स्क्रिप्ट होगी ना! आप जब भी बात करेंगे, बोलिएगा नुक्कड़ नाटक बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म है; …ऑडियंस (दर्शक) को इंफ्लूएंस (प्रभावित) किया जा सकता है। क्यूंकि हम जब भी कोई चीज फोन पर देखते हैं ना! स्क्रॉल कर देते हैं; लेकिन जब मैन-टू-मैन बात होती है, परफॉर्मेंस दिखाते हैं 15 मिनट, 20 मिनट का, तो उसमें ग्राउंड पर जाते हैं। उनसे इंट्रेक्ट करते हैं, तो 15-20 मिनट में इंटरटेनमेंट पर्पज से उसको दिखाते हैं। जब दिखाने लगते हैं, तो लोग इंटरेस्ट लेने लगते हैं। कहीं-न-कहीं अगर 100 लोग खड़े हैं, 100 में से 30 के दिमाग में भी आ गयी, तो कन्वर्ट तो हो ही गया। तो बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म है एंटरटेनमेंट के हिसाब से लोगों तक अपनी बात पहुंचाना और लोग इंज्वॉय भी करते हैं। गालियां पड़ती हैं आर्टिस्ट (कलाकार) को पड़ती हैं, पर वो लेट गो (जाने दो) वाली बात होती है। देखिए, जब हम आम जनता के बीच में जाते हैं, नेताओं को भी गालियां पड़ती हैं, फिर हम तो आर्टिस्ट हैं।

साशा के बाद अब ‘तहलका’ रिपोर्टर की मुलाकात दिल्ली के माध्यम नुक्कड़ नाटक समूह के अनुराग द्विवेदी से हुई। अनुराग द्विवेदी और रिपोर्टर मुलाकात में एक दिलचस्प परिप्रेक्ष्य सामने आया। कभी सामाजिक जागरूकता का माध्यम रहे नुक्कड़ नाटक अब राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के साधन बन गये हैं। अनुराग ने बताया कि किस प्रकार इस परिवर्तन ने मतदाताओं को लक्षित रूप से प्रभावित करने में मदद की है, तथा बड़ी व्यवस्था या भीड़ की आवश्यकता के बिना विभिन्न मोहल्लों में लघु, प्रभावशाली प्रदर्शनों का लाभ उठाया है।

अनुराग : पॉलिटिकल एजेंडा के लिए कभी यूज (उपयोग) नहीं हुआ नुक्कड़ नाटक। सोशल अवेयरनेस के लिए ही यूज होता है; लेकिन अब ये हो गया है कि पॉलिटिकल भी, …एक साथ एक नाटक 10 मिनट में आप अपने सारे एजेंडा डील कर सकते हो। आप कहीं भी एप्रोच कर सकते हो। मंच लगाने की जरूरत नहीं, हजारों लोगों को बुलाने की जरूरत नहीं है। यदि आपकी गली में दो चौराहे हैं, तो दोनों चौराहों पर कर सकते हैं। अगर 20-25 लोग इस चौराहे पर जमा हैं, 20-25 उस चौराहे पर, तो जरूरी नहीं हम उनको भी यहां बुलाएं, हम वहां भी कर सकते हैं।

अनुराग ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर चुनावों के दौरान निराशाजनक अनुभव का हवाला देते हुए 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा के साथ काम न करने की मंशा व्यक्त की। उन्होंने बताया कि किस प्रकार भाजपा की व्यापक तकनीकी आवश्यकताओं, जिसमें अनेक फॉर्म भरने से लेकर उनके एप और व्हाट्सएप चैनल पर प्रदर्शन के लिए फोटोग्राफिक प्रमाण उपलब्ध कराना शामिल है; ने इस प्रक्रिया को चुनौतीपूर्ण बना दिया। इसके अतिरिक्त भुगतान में देरी से मामला और जटिल हो जाता है, जिससे भाजपा के साथ दोबारा काम करने में उनकी (अनुराग की) रुचि कम हो गयी है।

रिपोर्टर : अभी आपने बीजेपी के लिए अप्लाई किया है 2025 में?

अनुराग : अभी नहीं किया है। बीजेपी के लिए नहीं करना है। वो वाला एक्सपीरिएंस थोड़ा-सा अच्छा नहीं हुआ। हम इतनी दूर जा रहे हैं, बीजेपी की टेक्निकल चीजें ज़्यादा हैं। हम अपनी आर्टिस्टिक (कलात्मक) चीजें नहीं दे पा रहे हैं, जितनी उनकी टेक्निकल चीजें हैं। जैसे वो फॉर्म देते हैं, उसे भरो, कितने लोगों ने नाटक किया, किस लोकेशन पर किया, उस लोकेशन से तीन-चार व्यक्तियों से साइन भी करवाना। उसके बाद उनकी एक एप आती है और इनका व्हाट्सएप चैनल भी चलता है, सेम फोटो इनको ग्रुप पर भी चाहिए। सेम एप पर भी अपलोड करो आर्टिस्टों की, वो इतने ज़्यादा प्रूफ मांग रहे हैं नाटक के। …उनकी एप पर हर घंटे आपको फोटो अपलोड करनी है। पेमेंट भी ऐसे नहीं देते। उसका भी लोचा है। जम्मू में इतने साल बाद जा रहे थे, इतने साल बाद चुनाव हो रहे थे, बहुत कम लोग वहां जाने को तैयार हुए थे। ये सब चीजें करने के बाद पेमेंट के लिए भी बहुत ज़्यादा इंतजार करना पड़ता था। कार्यालय जाओ, वहां फॉर्म भरो। …अगर आपने 10 दिन काम किया है, तो 10 दिन के फॉर्म भरो; …आपके पास फोटो प्रूफ भी होना चाहिए।

रिपोर्टर : वर्ना वो पैसे काट लेंगे?

अनुराग : हां।

अनुराग ने दावा किया कि उनके नुक्कड़ नाटकों ने भाजपा को जम्मू-कश्मीर चुनावों के दौरान राम मंदिर और अनुच्छेद-370 जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हुए हिन्दुत्व कार्ड खेलने में मदद की थी। अपने नुक्कड़ नाटक प्रदर्शनों के लिए उन्हें प्रति नाटक 2,200 रुपए मिलते थे और वे प्रतिदिन छ: से सात प्रदर्शन करते थे, जो शारीरिक श्रम के हिसाब से काफी कठिन होता था। उन्होंने बताया कि किसी व्यक्तिगत उम्मीदवार ने नहीं, बल्कि भाजपा ने ही उनकी टीम को चालीस नुक्कड़ नाटक समूहों के एक बड़े दल के हिस्से के रूप में तैनात किया था।

रिपोर्टर : जम्मू में तो आपने बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड खेला होगा?

अनुराग : हां; वही है। राम मंदिर का मुद्दा, 370 का मुद्दा; …ये ही दोनों मेन मुद्दे थे। मैं तो सोच रहा हूं आप जो हमें देंगे, हम उसी के इर्द-गिर्द बनाएंगे नाटक।

रिपोर्टर : कितना पेमेंट होता है एक दिन का?

अनुराग : एक दिन का नहीं सर! एक नाटक का। 2,200 रुपया दिया एक नाटक का। …2,200 के हिसाब से छ: नाटक, सात नाटक।

रिपोर्टर : दिन में कितने करते थे?

अनुराग : दिन में छ: से सात नाटक, ये हमारी लिमिट है। छ:-सात नाटक अगर 10-10 मिनट भी किया सर! बहुत एनर्जी (ऊर्जा) लगती है।

रिपोर्टर : ये आपको पार्टी ने बुलाया था या क्लाइंट ने?

अनुराग : पार्टी ने बुलाया था सर! चालीस टीम्स गई थीं।

अनुराग ने हमें विश्वास के साथ आश्वासन दिया कि उनका प्रदर्शन हमारे उम्मीदवारों के पक्ष में मतदाताओं को प्रभावित कर सकता है तथा उन्होंने इसे प्रमाणित करने के लिए अपनी कलात्मक क्षमता पर विश्वास जताया। उन्होंने नकद भुगतान पर जोर दिया और अपने अनुभव का हवाला देते हुए कहा कि राजनीतिक दल आमतौर पर नकद भुगतान करते हैं। अपनी सेवाओं के लिए उन्होंने नुक्कड़ नाटक प्रदर्शन के लिए प्रतिदिन 10,000 रुपए की मांग की।

रिपोर्टर : इसकी क्या गारंटी है कि वोटर इंफ्लूएंस होगा?

अनुराग : मैं एक आर्टिस्ट हूं। पहले आपको दिखाऊंगा, आप इंफ्लूएंस होंगे, तब आप करवाएंगे।

रिपोर्टर : मोड ऑफ पेमेंट (भुगतान का नियम) क्या होगा?

अनुराग : कैश या ऑनलाइन। …लेकिन पॉलिटिकल पार्टी से आज तक ऑनलाइन मिला नहीं है हमको। झूठ नहीं बोल रहे हैं। जहां भी हुआ है, कैश ही हुआ है।

रिपोर्टर : अभी अगर हम आपसे करवाएं, तो कितना पेमेंट लोगे?

अनुराग : 10 हजार पर-डे (प्रति दिन) का।

अनुराग से मिलने के बाद ‘तहलका’ रिपोर्टर ने दिल्ली में धर्मा नुक्कड़ नाटक ग्रुप के सदस्य और आम आदमी पार्टी के हालिया प्रचार गीत- ‘फिर लाएंगे केजरीवाल’ के कलाकार धर्मवीर मिश्रा से संपर्क किया। रिपोर्टर ने उन्हें 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए स्वतंत्र उम्मीदवारों से जुड़े एक मनगढ़ंत सौदे को लेकर बातचीत की। धर्मवीर ने बिना किसी हिचकिचाहट के 2014 के आम चुनावों के दौरान प्रशांत किशोर की टीम का हिस्सा होने के अपने अनुभव को साझा किया, जहां उन्होंने उत्तर प्रदेश में नुक्कड़ नाटक के माध्यम से भाजपा के अभियान में योगदान दिया था।

धर्मवीर : कोई दिक्कत नहीं सर! पिछले चुनाव में प्रशांत किशोर की टीम का हिस्सा रहा हूं मैं; …नुक्कड़ टीम का।

रिपोर्टर : प्रशांत किशोर का?

धर्मवीर : हां।

रिपोर्टर : कब?

धर्मवीर : 2014 में यूपी में। आजमगढ़ में संभाला था। अकबरपुर में संभाला था। रामपुर भी मैंने संभाला था और आगरा भी। ये चार, …चारों जगह नुक्कड़ नाटक किये थे, 2014 के चुनाव में।

रिपोर्टर : किसके लिए काम कर रहे थे तब?

धर्मवीर : तब बीजेपी के लिए काम कर रहे थे।

रिपोर्टर : अच्छा, मोदी के लिए काम कर रहे थे?

धर्मवीर : हां जी! हम बोलते थे थे, बच्चे आते हैं नुक्कड़ नाटक में। बोलते थे, कोई दिक्कत नहीं। बच्चों के माइंड में जब आएगी, वो बोलेंगे घर जाकर; हर-हर मोदी-घर-घर मोदी। …इसमें हमने तीन सीट जीती थीं और एक सीट हारी थी।

धर्मवीर अब दावा करते हैं कि उन्होंने 2014 से अब तक भारत भर में विभिन्न पार्टियों के लिए 3-4 लाख राजनीतिक नुक्कड़ नाटक आयोजित किये हैं। उनका मानना है कि ये प्रदर्शन समर्थन की छोटी; लेकिन प्रभावशाली श्रृंखला बनाकर मतदाताओं को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

रिपोर्टर : अब आप ये बताओ, नुक्कड़ नाटक से कैसे वोटर्स को इंफ्लूएंस कर सकते हो आप?

धर्मवीर : नुक्कड़ नाटक होता है भीड़ करना। सब्जेक्ट दिया, उसके बाद हमें उसमें से 20-25 लोग इकट्ठे करने पड़ते हैं, उसमें से पांच बंदा निकलता है, जो आपके पक्ष में रहता है। और वो पांच बंदे ही चेन बनवाते हैं।

रिपोर्टर : ये कैसे पता आपको पांच बंदे ही बनवाते हैं चेन?

धर्मवीर : एक्सपीरिएंस है सर! …2014 से।

रिपोर्टर : आपने कितने पॉलिटिकल नुक्कड़ नाटक इलेक्शन के अभी तक करवा दिये?

धर्मवीर : पॉलिटिकल नाटक तो मैं तीन-चार लाख करवा चुका हूं अभी तक।

रिपोर्टर : तीन-चार लाख! आल ओवर इंडिया? (पूरे भारत में?)

धर्मवीर : हां; आल ओवर इंडिया। …अलग-अलग चुनाव में।

अब धर्मवीर ने अपनी नुक्कड़ नाटक टीम की संरचना और लागत का विवरण दिया, जिसमें पांच सदस्य होते हैं- एक लड़की और चार लड़के। वह प्रति प्रस्तुति 1,700 रुपए लेते हैं, जिसमें यात्रा, दर्शकों को इकट्ठा करना और 20-25 मिनट का प्रदर्शन आयोजित करना शामिल है। टीमों का संगठित दृष्टिकोण दर्शाता है कि लक्षित संदेश सीधे लोगों तक कैसे पहुंचाए जाते हैं।

रिपोर्टर : एक टीम में कितने लोग होंगे?

धर्मवीर : पांच लोग। …एक लड़की, चार लड़के।

रिपोर्टर : कितना खर्चा होगा?

धर्मवीर : 1,700 रुपए एक नाटक का। आना-जाना पब्लिक को बुलाना, वो 20-25 मिनट का होता है ये सब।

01 जनवरी, 1989 को 34 वर्षीय कवि और नाटककार सफदर हाशमी, जो कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता थे; गाजियाबाद सिटी बोर्ड चुनाव में पार्षद पद के लिए सीपीएम उम्मीदवार रामानंद झा के समर्थन में एक बड़ी भीड़ के सामने नुक्कड़ नाटक कर रहे थे; तब उन पर झा के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले उस समय के कांग्रेस उम्मीदवार मुकेश शर्मा ने क्रूरतापूर्वक हमला किया था। इस हमले के बाद सफदर हाशमी की अस्पताल में मौत हो गयी थी। यह दु:खद घटना इस बात को रेखांकित करती है कि मतदाताओं की राय को आकार देने में नुक्कड़ नाटकों ने कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है; इस हद तक कि प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों को चरम उपायों का सहारा लेना पड़ा है। 36 साल बाद भी नुक्कड़ नाटक मतदाताओं तक पहुंचने का एक महत्वपूर्ण साधन बने हुए हैं, जो आधुनिक राजनीतिक आख्यानों के अनुकूल ढलते हुए जमीनी स्तर पर अपना प्रभाव बरकरार रखते हैं। उनका निरंतर प्रचलन भारतीय राजनीति में एक प्रभावशाली माध्यम के रूप में उनकी स्थायी शक्ति को उजागर करता है।

इंटरनेशनल मास्टर्स लीग-मैदान में जल्वा बिखेंगे पुराने दिग्गज

22 फरवरी से देश में बड़े स्तर पर क्रिकेट ऑनलाइन सट्टा लगना शुरू हो जाएगा, क्योंकि 22 फरवरी से इंटरनेशनल मास्टर्स लीग (आईएमएल) के पहले सत्र की शुरुआत होने जा रही है। यह मैच तीन अलग-अलग जगहों नवी मुंबई, राजकोट और रायपुर के क्रिकेट मैदानों में खेला जाएगा। पहले सत्र का उद्घाटन मैच सचिन तेंदुलकर की कप्तानी वाली भारतीय टीम और कुमार संगकारा की कप्तानी में श्रीलंकाई टीम के बीच होगा। आईएमएल के पहले सत्र में छः देशों- भारत, श्रीलंका, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, वेस्टइंडीज और दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीमें खेलेंगी। शाम 7:30 बजे से शुरू होने वाले इन सभी क्रिकेट मैचों का सीधा प्रसारण कई निजी टीवी चैनलों पर किया जाएगा। भारत के महान् क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर इस आईएमएल क्रिकेट मैच को अनूठी विरासत का जश्न बता रहे हैं। उन्होंने अपने समकालीन खिलाड़ियों के साथ वर्षों बाद मैदान में उतरने को लेकर बेकरारी व्यक्त की है।
श्रीलंकाई कप्तान कुमार संगकारा भी सचिन तेंदुलकर की तरह ही इस आईएमएल क्रिकेट मैच में अपनी टीम के साथ हाथ आजमाने के लिए तैयार हैं। उन्होंने इस मैच को पूर्व क्रिकेटरों के लिए अद्भुत मौका बताते हुए पुराने प्रतिद्वंद्वियों के साथ खेलकर प्रशंसकों के बीच एक बार फिर जुड़ने को लेकर ख़ुशी ज़ाहिर की है। उन्होंने कहा है कि इतने सारे दिग्गजों के साथ इस ऐतिहासिक लीग का हिस्सा बनकर उन्हें बहुत ही अच्छा लग रहा है।
इस इंटरनेशनल मास्टर्स लीग टूर्नामेंट के मुक़ाबले का प्रारूप राउंड-रॉबिन होगा और बाद में इसका नॉकआउट चरण होगा। राउंड-रॉबिन चरण के दौरान हर देश की टीम दूसरे देशों की पाँच टीमों के खिलाफ एक-एक मैच खेलेगी। इस मुक़ाबले में जो चार टीमें सबसे ज़्यादा अंक लाकर शीर्ष पर पहुँचेंगी, उनके बीच 13 और 14 मार्च को सेमीफाइनल मुक़ाबला होगा। इनमें से दो जीतने वाली टीमों के बीच अंतिम और फाइनल मुक़ाबला 16 मार्च को होगा।
इस मैच की ख़ास बात यह है कि इसमें 52 वर्ष के सचिन तेंदुलकर क्रिकेट मैदान में 16 नवंबर, 2013 को संन्यास लेने के बाद जहाँ मैदान में उतरेंगे, वहीं 01 अक्टूबर, 2022 के बाद पहली बार बल्लेबाज़ी करेंगे; जबकि वह 2007 के बाद भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी करेंगे। अब देखना है कि उनक बल्ला इस मैदान में क्या कमाल करता है? इंटरनेशनल मास्टर्स लीग में सभी छः देशों के पुराने धुरंधर शामिल होंगे। ज़ाहिर है कि इस मुक़ाबले को देखने के लिए लोगों में उत्साह नज़र आएगा।

इंटरनेशनल मास्टर्स लीग-2025 की टीमें
भारत
ऑस्ट्रेलिया
श्रीलंका
दक्षिण अफ्रीका
इंग्लैंड
वेस्ट इंडीज
इंटरनेशनल मास्टर्स लीग वेन्यू
नवी मुंबई
राजकोट
रायपुर

 2025 का बजट: असमानता का खाका

अमीरी गरीबी का फासला बढ़े तो बढ़ने दो

बृज खंडेलवाल द्वारा

फरवरी 1 को पेश किया गया केंद्रीय बजट 2025, सरकार की सवालिया प्राथमिकताओं को स्पष्ट रूप से उजागर करता है, जिसमें करोड़ों “हाशिए के नागरिकों” के सामने आने वाली सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों की उपेक्षा करते हुए, संपन्न लोगों का पक्ष लिया गया है।

कॉलेज टीचर राम निवास कहते हैं ” हमें तो बजट ज्यादा समझ नहीं आता है, लगता ये है कि बड़े लोगों के  हितों को प्राथमिकता देकर, संपन्न वर्गों को कर लाभ प्रदान करके और बेरोजगारी, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने में विफल होकर मौजूदा असमानताओं को मजबूत करता है।”

ऐसे समय में जब साहसिक, जन-केंद्रित नीतियों की आवश्यकता है, यह बजट सांकेतिक उपायों से अधिक कुछ नहीं प्रदान करता है, ये राय होम मेकर पद्मिनी की है। “सड़क छाप” लोगों से बातचीत करने पर पता लगा कि भारत की बड़ी आबादी टैक्स सिस्टम के हाशिए से बाहर है, यानी औपचारिक वित्त व्यवस्था का अंग ही नहीं है, उसे बजट से कोई लेना देना नहीं है।

समाजवादी राम किशोर कहते हैं “लाखों युवा भारतीयों के बेरोजगार या कम रोजगार वाले होने के कारण, रोजगार सृजन, कौशल विकास और उचित वेतन को बढ़ावा देने वाली नीतियों की तत्काल आवश्यकता थी। हालाँकि, बजट कोई ठोस समाधान नहीं देता है।”

राजनैतिक लाभ के लिए सरकार ने कर कटौती को प्राथमिकता दी है, आयकर सीमा को बढ़ाकर ₹1.2 मिलियन कर दिया है – एक ऐसा कदम जो मध्यम और उच्च वर्गों को  लाभान्वित करता है । कामकाजी वर्ग के लिए, मुद्रास्फीति और स्थिर मजदूरी ने पहले ही क्रय शक्ति को खत्म कर दिया है। फिर भी, इन कठिनाइयों को दूर करने के बजाय, बजट आर्थिक विकास मॉडल पर ध्यान केंद्रित करता है जो मानता है कि लाभ (ट्रिकल डाउन इकॉनमी) “नीचे की ओर जाएगा” – एक दृष्टिकोण जो भारत और अन्य अर्थव्यवस्थाओं दोनों में बार-बार विफल रहा है।

COVID-19 महामारी से सबक के बावजूद, स्वास्थ्य सेवा के लिए बजट का आवंटन काफी अपर्याप्त है, ये कहना है पब्लिक कॉमेंटेटर प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी का।

“दरअसल, भारत के नाजुक सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है, फिर भी सरकारी अस्पतालों के विस्तार और मजबूती के बजाय निजीकरण की ओर धन का झुकाव बना हुआ है।   कम आय वाले नागरिक महंगी निजी सुविधाओं की दया पर निर्भर हो जाते हैं। लाखों भारतीयों के पास अभी भी बुनियादी चिकित्सा सेवाओं तक पहुँच नहीं है, और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा गंभीर रूप से कम वित्तपोषित है।  सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों को बढ़ावा देने के बजाय, बजट एक ऐसे मॉडल को मजबूत करता है जो गरीबों को दरकिनार करता है और कुलीन स्वास्थ्य संस्थानों को प्राथमिकता देता है।” यह असंतुलन सामाजिक असमानता को और बढ़ाता है, क्योंकि निम्न-आय वाले परिवारों के बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच से वंचित रहते हैं, जिससे गरीबी का चक्र जारी रहता है।  प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में रणनीतिक निवेश के बिना, भारत का भावी कार्यबल कमजोर ही रहेगा, जिससे सामाजिक-आर्थिक विभाजन गहरा होगा।

सरकार ने मध्यम वर्ग के लिए कर राहत उपायों को लाभकारी बताया है, लेकिन वास्तव में, ये परिवर्तन उच्च आय वाले समूहों के लिए  लाभकारी है। कर रियायतों पर ध्यान केंद्रित करना सरकार की पूंजीवादी एजेंडे के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है जो सार्वजनिक कल्याण पर कॉर्पोरेट मुनाफे को प्राथमिकता देता है। जलवायु परिवर्तन के कारण  औद्योगिक प्रदूषण, वनों की कटाई और अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान नहीं दिया गया है, और नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु लचीलेपन में निवेश न्यूनतम है।  हरित ऊर्जा और प्रदूषण नियंत्रण उपायों को प्राथमिकता देने के बजाय, बजट अल्पकालिक आर्थिक लाभों पर ध्यान केंद्रित करता है जो पर्यावरणीय स्थिरता की उपेक्षा करते हुए बड़े उद्योगों को लाभ पहुँचाते हैं।  सरकार का टोटल फोकस मेट्रो, वंदे भारत, बुलेट ट्रेन, उड़ान, हवाई अड्डे, टूरिज्म प्रमोशन पर है। पीएम तो कॉन्सर्ट्स आयोजित करने की सलाह देते हैं जिससे मुनाफा हो।

इंडिया में ट्रेड यूनियन मूवमेंट लगभग खत्म होने का अर्थ ये नहीं है कि मजदूरों की स्थिति में सुधार हुआ है। ये भी संभव है कि रेवड़ी वितरण और मुफ्त अनाज मुहैया कराने से जन मानस में आक्रोश और सिस्टम के खिलाफ विद्रोही भावनाएं डाइल्यूट या नियंत्रित हो गई हों। आज की युवा पीढ़ी समाज को बदलने के सपने नहीं देखती बल्कि अपना पैकेज, अपना लाइफ स्टाइल, अपने हितों को सुरक्षित करने को प्राथमिकता देती है।

भारत को सच्चा आर्थिक न्याय प्राप्त करने के लिए, ध्यान कॉर्पोरेट हितों से हटकर मानव पूंजी पर केंद्रित करना चाहिए। अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई को पाटने के लिए संरचनात्मक सुधार, प्रगतिशील कराधान और मजबूत सामाजिक कल्याण नीतियां आवश्यक हैं। तब तक, एक समतावादी समाज का सपना पहुंच से बाहर रहेगा, जिसमें लाखों लोग संघर्ष करते रहेंगे जबकि कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोग लाभ उठाएंगे।

लुभावने वादों पर टिके दिल्ली चुनाव

दिल्ली विधानसभा चुनाव वादों की दौड़ में बदल गया है, जिसमें आम आदमी पार्टी (आप), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस सभी मतदाताओं को मुफ़्त उपहारों की पेशकश कर रही हैं, जो एक बड़ा प्रतियोगी दाँव बन रहा है। अपने घोषणा-पत्र ‘केजरीवाल की गारंटी’ में आम आदमी पार्टी ने 15 वादे किये हैं, जिनमें रोजगार सृजन और महिलाओं के लिए नक़द सहायता से लेकर वरिष्ठ नागरिकों के लिए मुफ़्त स्वास्थ्य देखभाल तक शामिल हैं। पार्टी ने सभी घरों के लिए 24/7 स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ यमुना नदी और विदेश में पढ़ने वाले दलित छात्रों के सभी ख़र्चों को कवर करने वाली छात्रवृत्ति का भी वादा किया है। इसके अलावा आप ने छात्रों के लिए मुफ्त बस, मेट्रो में छात्रों और महिलाओं का आधा किराया और दिल्ली में विश्व स्तरीय सड़कों के निर्माण का वादा किया है।
‘विकास दिल्ली संकल्प-पत्र’ के बैनर तले भाजपा का घोषणा-पत्र भी उतना ही महत्त्वाकांक्षी है। इसमें महिला समृद्धि योजना, उन्हें नक़द राशि, एक विस्तारित आयुष्मान भारत योजना और वरिष्ठ नागरिकों और आर्थिक रूप से वंचित परिवारों के लिए 10 लाख रुपये के स्वास्थ्य बीमा का वादा किया गया है। भाजपा ने होली और दिवाली जैसे त्योहारों के दौरान मुफ़्त सिलेंडर सहित एलपीजी सिलेंडर पर 500 रुपये की सब्सिडी के साथ 200 यूनिट तक मुफ़्त बिजली का भी वादा किया है।
कांग्रेस ने महिलाओं के लिए भाजपा के नक़द हस्तांतरण की बराबरी ‘प्यारी दीदी योजना’ से की है, जो प्रति माह 2,500 रुपये की पेशकश करती है। पार्टी ने आप और भाजपा दोनों की योजनाओं को पीछे छोड़ते हुए 300 यूनिट तक मुफ़्त बिजली देने का भी वादा किया है। स्वास्थ्य देखभाल के लिए कांग्रेस ‘जीवन रक्षा योजना’ के तहत सभी निवासियों के लिए 25 लाख रुपये के स्वास्थ्य बीमा की पेशकश कर रही है। इसके अतिरिक्त कांग्रेस ने 500 रुपये में सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडर के भाजपा के वादे को भी दोहराया है।
इन वादों के बीच एक सामान्य सूत्र महिलाओं पर विशेष ध्यान केंद्रित करना है, जो हाल के चुनावों में एक निर्णायक वोटिंग ब्लॉक बन गयी हैं। आप अपनी ‘मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना’ के तहत वित्तीय सहायता 1,000 रुपये से बढ़ाकर 2,100 रुपये प्रति माह करने की योजना बना रही है। भाजपा ने दिल्ली में महिलाओं को 2,500 रुपये देने का वादा करते हुए अपनी ‘महिला समृद्धि योजना’ का प्रचार किया है। इस बीच कांग्रेस अपनी ‘प्यारी दीदी योजना’ शुरू कर रही है, जिसमें प्रति माह 2,500 रुपये की समान सहायता की पेशकश की जा रही है।
कांग्रेस के लिए चुनौती बिखर चुके इंडिया गठबंधन की पार्टियों को संतुलित करने की है, जहाँ ममता बनर्जी जैसी साझीदार हैं। हेमंत सोरेन और अखिलेश यादव ने खुलेआम आप और उसके नेता अरविंद केजरीवाल का समर्थन किया है। यह राजनीतिक जटिलता कांग्रेस की स्थिति को और भी अधिक अनिश्चित बना देती है; क्योंकि वह अपने सहयोगियों के साथ गठबंधन करने के साथ-साथ महिलाओं को भी आकर्षित करने की कोशिश करती है।
‘तहलका’ की आवरण कथा- ‘नुक्कड़ नाटकों के ज़रिये राजनीति’ इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए अपरंपरागत रणनीति कर रहे हैं। ‘तहलका’ की विशेष जाँच टीम (एसआईटी) की पड़ताल से पता चलता है कि पारंपरिक नुक्कड़ नाटक, जिनका उद्देश्य कभी सामाजिक जागरूकता बढ़ाना था; अब पार्टियों द्वारा अपने चुनावी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए अपनाये जा रहे हैं। कभी-कभी ये युक्तियाँ नैतिक सीमाओं को भी पार कर जाती हैं।
भाजपा, विशेष रूप से 2024 के लोकसभा चुनावों में आप के ख़राब प्रदर्शन के मद्देनजर उसे मात देने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। पार्टी आप को लगातार चुनौती दे रही है, जिसमें केजरीवाल के इस दावे पर चुनाव आयोग (ईसी) में शिकायत दर्ज करना भी शामिल है कि यमुना नदी को ज़हरीला बनाया जा रहा है। इसके बाद चुनाव आयोग ने इस आरोप के लिए सुबूत की माँग की, जिससे केजरीवाल को अपनी टिप्पणी पर स्पष्टीकरण देना पड़ा।
चुनौतियों के बावजूद सभी की निगाहें दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य पर टिकी हुई हैं, जहाँ अरविंद केजरीवाल अंतराल में भी शासन की कमान सँभाले हुए हैं। भाजपा ने शराब नीति मामले में आप की कथित भूमिका से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोपों, केजरीवाल के आधिकारिक आवास के नवीनीकरण और पार्टी पर दबाव बनाने जैसे मुद्दों को उठाया है। जैसे-जैसे चुनाव अभियान तेज़ होगा, ये विवाद बहस को बढ़ावा देते रहेंगे। निःसंदेह 08 फरवरी को मतों की गिनती नतीजों को आकार देगी।

दिल्ली को पानी न मिलने के दावे वाली याचिका को हाईकोर्ट ने किया खारिज

हाईकोर्ट ने अवमानना याचिका पर अंतिम सुनवाई के दिए निर्देश

चंडीगढ़, 31 जनवरी- दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज एक आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली को न्यायालय के आदेश के अनुसार पानी नहीं मिल रहा है और यह दिल्ली के लिए पानी से संबंधित एक महत्वपूर्ण और जरूरी मुद्दा है। कोर्ट के इस निर्णय से दिल्ली सरकार को भी बड़ा झटका लगा क्योंकि वह लगातार यह दावा कर रही थी कि हरियाणा सरकार द्वारा पानी की तय आपूर्ति नहीं की जा रही है। हालांकि, हरियाणा सरकार ने न्यायालय में स्पष्ट रूप से यह प्रस्तुत किया कि वह सभी समझौतों और न्यायालय के आदेशों के अनुरूप आवश्यक मात्रा में पानी की आपूर्ति कर रही है और इस संबंध में उसकी ओर से कोई भी कमी नहीं हुई है। इस मुद्दे पर पिछले वर्ष जून में भी सर्वोच्च न्यायालय ने विचार किया था और तब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया था।

हरियाणा सरकार की ओर से प्रस्तुत दलील में कहा गया कि मूल रिट याचिका पहले ही निपटाई जा चुकी है और अवमानना याचिका दाखिल किए जाने के समय से ही निरर्थक थी तथा आज भी निरर्थक है। यह भी बताया गया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार द्वारा दायर रिट याचिका को सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही निपटा दिया था, जिसका आदेश इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जा चुका है।

हरियाणा सरकार की ओर से वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता श्री लोकेश सिन्हल और श्री आदित्य शर्मा ने दलील दी कि यह मामला कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और पूरी तरह निराधार होने के कारण इसे खारिज किया जाना चाहिए। साथ ही, उन्होंने आग्रह किया कि मुख्य अवमानना याचिका को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए। इस पर न्यायालय ने आज के आवेदन को खारिज करते हुए निर्देश दिया कि अवमानना याचिका को अंतिम बहस के लिए सूचीबद्ध किया जाए।

संसद का बजट सत्र आज से शुरू, वक्फ संशोधन अधिनियम समेत 16 विधेयकों की सूची तैयार

नई दिल्ली : वित्त विधेयक 2025, वक्फ और बैंकिंग विनियमन अधिनियम में संशोधन और भारतीय रेलवे और भारतीय रेलवे बोर्ड अधिनियमों के विलय समेत 16 विधेयक संसद के बजट सत्र में पेश किए जाएंगे। यह सत्र शुक्रवार को आर्थिक सर्वेक्षण 2024/25 के साथ शुरू हो रहा है। इस सत्र में आपदा प्रबंधन और तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) कानूनों में संशोधन संबंधी विधेयक पटल पर रखे जा सकते हैं। तटीय और व्यापारिक नौवहन से संबंधित विधेयक और ग्रामीण प्रबंधन संस्थान आनंद का नाम बदलकर त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय करने और इसे ‘राष्ट्रीय महत्व का संस्थान’ घोषित करने संबंधी विधेयक भी पेश किए जा सकते हैं।

इस सत्र में विमानन क्षेत्र से संबंधित वित्तीय हितों की रक्षा करने और आव्रजन तथा विदेशियों के प्रवेश से संबंधित मौजूदा नियमों में बदलाव करने वाले विधेयक भी आने की उम्मीद है। अंत में, एक अन्य महत्वपूर्ण विधेयक गोवा राज्य के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के प्रतिनिधित्व का दोबारा समायोजन है। जैसा कि नाम से पता चलता है, यह उस राज्य में विधानसभा सीटों को फिर से आवंटित करने का प्रयास करता है, ताकि उसके एसटी समुदायों का बेहतर प्रतिनिधित्व हो सके।

इस सत्र में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आठवां केंद्रीय बजट पेश करेंगी। उनसे पहले मोरारजी देसाई 10 बार बजट पेश कर चुके हैं। अगर वक्फ (संशोधन) विधेयक की बात करें तो देश में मुस्लिम धर्मार्थ संपत्तियों के प्रबंधन के तरीके – वक्फ कानूनों में 44 बदलावों का प्रस्ताव करने वाला विधेयक पिछले साल अगस्त में संसद में पेश किया गया था।

विवादास्पद विधेयक को जैसे ही सदन में रखा गया और भाजपा सांसद जगदंबिका पाल की अगुआई वाली संयुक्त समिति को भेजा गया, विपक्ष ने इसका तीखा विरोध किया। जेपीसी से जुड़ी करीब 36 बैठकें हुईं, लेकिन विपक्ष के कम संख्या वाले सदस्यों के विरोध और अव्यवस्था देखने को मिली, जिन्होंने कहा कि उनकी चिंताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है। जेपीसी ने इस सप्ताह संशोधन विधेयक को मंजूरी दी है। सदन पैनल ने 14 सिफारिशें की थीं, जो सभी सत्तारूढ़ भाजपा या उसके सहयोगियों के सदस्यों की थीं, जबकि विपक्षी सांसदों की तरफ से की गई 44 सिफारिशों को खारिज कर दिया गया।

खस्ताहाल आगरा: बेपरवाह प्रशासन, दम तोड़ती विरासत

न हेरिटेज सिटी बन पाया, न स्मार्ट सिटी

बृज खंडेलवाल द्वारा

शाही विरासत और विश्वविख्यात स्मारकों का शहर आगरा आज अव्यवस्थित शहरीकरण और बदहाल प्रशासन की मार झेल रहा है। स्मार्ट सिटी बनने का सपना साकार होने के बजाय शहर बदइंतजामी, अतिक्रमण और बुनियादी सुविधाओं की कमी से कराह रहा है।

कभी मुगल साम्राज्य की राजधानी रहा, आगरा आज बिगड़ती यातायात व्यवस्था, जल संकट, बढ़ते प्रदूषण और अराजक शहरीकरण का शिकार बना हुआ है। बढ़ती आबादी  और अनियंत्रित विस्तार के कारण नागरिक सुविधाएँ चरमरा गई हैं। स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी उपेक्षा ने स्थिति और दयनीय बना दी है।

आगरा में कई स्थानीय निकाय कार्यरत हैं, लेकिन समन्वय के अभाव में विकास कार्य ठप पड़े हैं। न तो हेरिटेज सिटी बनने की योजना साकार हुई और न ही स्मार्ट सिटी बनने की दिशा में ठोस कदम उठाए गए।

कभी शहर की जीवनरेखा रही यमुना आज सूखती जा रही है, जिससे न केवल आगरा का पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो रहा है, बल्कि ताजमहल की नींव भी खतरे में है। अपशिष्ट और औद्योगिक प्रदूषण ने नदी को जहरीला बना दिया है, लेकिन राजनैतिक नेतृत्व और प्रशासन बेखबर है।

पर्यटन पर अत्यधिक निर्भरता के कारण आगरा में औद्योगिक विकास नहीं हो पाया। आईटी हब, विनिर्माण उद्योग और कौशल विकास केंद्रों के विकसित न होने से बेरोजगारी बढ़ रही है। शहर को आर्थिक विविधीकरण की सख्त जरूरत है, स्थानीय व्यापारी कहते हैं।

एक लंबे समय से स्थानीय संगठन मांग कर रहे हैं  कि सशक्त शहरी विकास प्राधिकरण का गठन कर समन्वित विकास योजनाएँ लागू की जाएं। यमुना पुनर्जीवन परियोजना के तहत नदी में जल प्रवाह बहाल किया जाए। अतिक्रमण पर सख्त कार्रवाई और सार्वजनिक स्थानों का संरक्षण किया जाए। बेहतर सार्वजनिक परिवहन विकसित कर ट्रैफिक जाम और प्रदूषण को नियंत्रित किया जाए। साथ ही पर्यावरण संरक्षण की योजनाएं लागू कर प्रदूषण कम किया जाए। शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार कर जनता को बुनियादी सुविधाएँ प्रदान की जाएं। यदि प्रशासन और नागरिक एकजुट होकर ठोस कदम उठाएँ, तो आगरा अपने गौरव को फिर से प्राप्त कर सकता है। वरना, यह ऐतिहासिक शहर अपनी पहचान और विरासत दोनों खोने की कगार पर है।

ये सवाल अक्सर किया जाता है कि क्यों आधुनिकता की दौड़ में स्मार्ट सिटी आगरा दिन व दिन पिछड़ता जा रहा है। जवाब सिंपल है। राजनैतिक नेतृत्व विकास को दिशा और गति देने में कामयाब नहीं हुआ है। इच्छा शक्ति की घोर कमी है। व्यक्तिगत स्वार्थ हावी हैं।स्थानीय निवासी डॉ अनुभव कहते हैं कि शहर का बुनियादी ढांचा अपनी सीमा तक फैला हुआ है, नागरिक सुविधाएँ लगातार बढ़ती आबादी के साथ तालमेल बिठाने में विफल हो रही हैं। “पानी की कमी और बड़े पैमाने पर अतिक्रमण से लेकर बिगड़ते वायु प्रदूषण और अपर्याप्त स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं तक, आगरा की समस्याएं गहरा रही हैं, लेकिन जन प्रतिनिधियों को चिंता नहीं है।” डॉ हरेंद्र बताते हैं, “जैसे-जैसे आगरा की आबादी बढ़ती जा रही है, अवैध बस्तियाँ और झुग्गियाँ तेज़ी से फैल रही हैं, जिससे पहले से सीमित संसाधनों पर और दबाव पड़ रहा है। सार्वजनिक स्थानों, सड़कों और यहाँ तक कि विरासत क्षेत्रों पर अतिक्रमण बढ़ गया है, जिससे शहर के सौंदर्य और कार्यात्मक परिदृश्य में गिरावट आ रही है।”

उचित शहरी परिवहन योजना की कमी के कारण आगरा की सड़कें यातायात से जाम हो जाती हैं। अतिक्रमण, बेतरतीब पार्किंग और खराब रखरखाव वाली सड़कें समस्या को और बढ़ा देती हैं। ऑटो-रिक्शा और निजी वाहनों पर शहर की निर्भरता अराजकता को बढ़ा रही है, जिसके परिणामस्वरूप यात्रा का समय लंबा होता है, ईंधन की बर्बादी होती है और प्रदूषण बढ़ता है। वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन, निर्माण धूल और औद्योगिक प्रदूषकों के कारण शहर की वायु गुणवत्ता खतरनाक दर से खराब हो रही है।  अनियमित औद्योगिक इकाइयाँ लगातार चल रही हैं, जिससे वातावरण में जहरीले पदार्थ निकल रहे हैं। इससे न केवल आगरा के निवासियों का स्वास्थ्य खतरे में है, बल्कि इसके विश्व प्रसिद्ध स्मारकों का क्षय भी तेजी से हो रहा है,” ये कहना है रिवर कनेक्ट कैंपेन के श्री जुगल किशोर का।

व्यवसाई राहुल राज सुझाव देते हैं “इलेक्ट्रिक बसों, समर्पित बस लेन और पैदल यात्री-अनुकूल क्षेत्रों सहित एक अच्छी तरह से एकीकृत सार्वजनिक परिवहन प्रणाली विकसित की जानी चाहिए। बेहतर यातायात प्रबंधन प्रणाली भीड़भाड़ और प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकती है।”

संभावनाएं और अवसर अनेक हैं, लेकिन राजनैतिक नेतृत्व प्रभावहीन होने की वजह से विकास को दिशा नहीं मिल रही है। जब कर्मठ कार्यकर्ता जमीन से जुड़े पुरुषोत्तम खंडेलवाल को विधायक के रूप में चुना गया तो शहरवासियों को उम्मीद की किरण दिखाई दी थी। लेकिन यमुना बैराज, हाई कोर्ट बेंच आदि मुद्दों पर उनकी चुप्पी रहस्य को गहरा रही है। कुछ बड़ी उम्मीदें योगेंद्र उपाध्याय से भी थीं कि आगरा विश्वविद्यालय का काया कल्प होगा। नवीन जैन तो खुद मेयर रहकर आगरा की समस्याओं से अच्छी तरह वाकिफ थे, पर राज्य सभा में आगरा की वेदना को प्रभावी तरीके से उठाने की कोशिश भी नहीं कर रहे हैं।

नगर वासी बार बार पूछ रहे हैं कि भाजपा की झोली में इतने सारे विधायक और सांसद डालने के बाद भी आगरा की आवाज दबी हुई और लड़खड़ाती सी क्यों है। विपक्ष के सांसद  तो न राम के रहे हैं, न सफलता के सुमन खिला सके हैं। फेलियर चहुंमुखी है। समूचा राजनैतिक नेतृत्व आगरा की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है।

महाकुंभ में मची भगदड़ में 30 लोगों की मौत की पुष्टि

मुख्यमंत्री योगी ने किया 25-25 लाख के मुआवजे का ऐलान

महाकुंभ में संगम तट पर मची भगदड़ में कम से कम 30 लोगों की मौत हो गई है, जबकि 60 से अधिक घायल हुए हैं। अधिकारियों के मुताबिक, भीड़ के दबाव के कारण बैरिकेड्स टूट गए, जिससे भगदड़ मच गई। डीआईजी मेला वैभव कृष्ण ने बताया कि मध्यरात्रि के आसपास हुई इस घटना में 30 में से 25 मृतकों की पहचान कर ली गई है। घायलों को कुंभ क्षेत्र के सेक्टर-2 में बने अस्पताल में भर्ती कराया गया है। घटनास्थल पर पहुंचे अधिकारियों ने बताया कि कोई वीआईपी प्रोटोकॉल नहीं था।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हादसे पर गहरा शोक व्यक्त किया और घटना की जांच के आदेश दिए। उन्होंने इस हादसे की जिम्मेदारी लेने और मृतकों के परिवारों को सहायता देने का आश्वासन दिया है। महाकुंभ में हुई भगदड़ में जान गंवाने वालों के परिवारों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 25-25 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की है। यह मुआवजा मृतकों के परिजनों को दिया जाएगा।

इस हादसे के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि वे अपने नजदीकी घाट पर स्नान करें और संगम नोज की ओर न बढ़ें। उन्होंने कहा कि कई घाट बनाए गए हैं, जहां आसानी से स्नान किया जा सकता है। संतों ने भी श्रद्धालुओं से अनुशासन बनाए रखने और अफवाहों पर ध्यान न देने की अपील की है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी ने कहा कि इतनी बड़ी भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल है और श्रद्धालुओं की सुरक्षा सबसे ज्यादा जरूरी है।

घायलों की जानकारी के लिए एक हेल्पलाइन नंबर (1920) जारी किया गया है। अधिकारियों के मुताबिक, भारी भीड़ के कारण बैरिकेड्स टूट गए और लोगों को कुचल दिया गया। इस घटना के बाद कुंभ मेला प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने का फैसला किया है।