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कोरोना के नये स्वरूप आँमिक्रोन को लेकर डाँक्टर, व्यापारी और छात्र चिंतित

देश–दुनिया में कोरोना के नये स्वरूप आँमिक्रोन को लेकर मचे हडकंप से लोगों में फिर डर और भय बढ़ने लगा है। हांलाकि, केन्द्र सरकार के निर्देश के बाद राज्यों ने अलर्ट जारी कर दिया है। वहीं दिल्ली सरकार ने हर संभव आँमिक्रोन जैसे वेरिएंट से निपटने के लिये डाँक्टरों को तैयार रहने को कहा है।

बताते चलें, कोरोना का कहर 2020 मार्च से देश –दुनिया में कहर मचा रहा है। जिसके चलते लाखों लोगों की जाने गयी है और करोड़ो लोग कोरोना जैसी बीमारी की चपेट में आये है। तब से लोगों के बीच एक भय है कि कहीं कोरोना का नया वैरिएंट फिर से लाँकडाउन जैसी स्थिति लाने को मजबूर न कर दें।

कोरोना के आँमिक्रोन के बढ़ते मामलों को लेकर एक ओर डाँक्टरों ने सावधान रहने की बात कहीं है। तो वहीं व्यापारियों और छात्रों ने चिंता व्यक्त करते हुये कहा है कि अगर फिर से कोरोना का कहर बढ़ा तो आने वाले दिनों में फिर से मुसीबत न बढ़ जाये।

मैक्स अस्पताल के कैथ लैब के डायरेक्टर डाँ विवेका कुमार का कहना है कि, कोरोना एक संक्रमित बीमारी है। इसमें जरा सी लापरवाही घातक हो सकती है। जिनको हृगय रोग या दमा जैसी बीमारी है। वे समय –समय पर अपना इलाज करवाते रहे।

दिल्ली सरकार के प्रोग्राम ऑफीसर डाँ भरत सागर का कहना है कि, कोरोना के नये स्वरूप को लेकर सतर्क रहे। मास्क लगाकर घर से निकलें और सोशल डिस्टेसिंग का पालन करें। भीड़भाड़ वाले इलाके में जाने से बचें।

दिल्ली के व्यापारी रतन अग्रवाल और पुनीत सेठ ने कहा कि, आँमिक्रोन को लेकर अभी से बाजार में नरमी आने लगी है। अगर कोरोना 2020 की तरह फिर से पाबंदी लगनी शुरू हुई तो, आने वाले दिनों में बाजारों में संकट दिखेगा और आर्थिक हालात फिर से कमजोर होगें। वही छात्रों का कहना है कि जैसे–तैसे पढ़ाई को आँनलाईन से क्लासों तक स्कूल जाने के लिये माहौल बना था। अगर फिर से कोरोना के नये स्वरूप के चलते स्कूलों को बंद करना पड़ा तो पढ़ाई काफी हद तक प्रभावित होगी।

दक्षिण अफ्रीका में पाये गये कोरोना के नये स्वरूपों से फिर हडकंप

दक्षिण अफ्रीका के तीन देशों में कोरोना के नये स्वरूप पाये जाने से स्वास्थ्य महकमें में हडकंप मच गया है। एम्स सहित देश के जाने-माने डाँक्टरों का कहना है कि, देश में कोरोना का कहर तो नहीं है। लेकिन कोरोना तो है। इस लिहाज से हमें अब और सावधान रहने की जरूरत है।

आईएमए के पूर्व संयुक्त सचिव डाँ अनिल बंसल का कहना है कि, जो लोग पहले से कोरोना संक्रमित हो चुके है। उनको दक्षिण अफ्रीका में आये नये स्वरूप से संक्रमण का खतरा हो सकता है। अभी तक नये स्वरूप– बी1.1529 के बारे में सही-सही जानकारी नहीं है।

एम्स के डाँक्टर आलोक कुमार का कहना है। कि कोरोना को लेकर जरा सी लापरवाही घातक हो सकती है। इसलिये मुंह में मास्क लगाकर ही घर से निकलें और सोशल डिस्टेसिंग का पालन करें। ताकि कोरोना के संक्रमण से बचा जा सकें।

लोकनायक अस्पताल के डाँ ए आर कुमार ने बताया कि दिल्ली में जागरूकता के चलते कोरोना के मामलें कम आ रहे है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम लापरवाह हो जाये। उनका कहना है। अप्रैल-मई में जो कोरोना का कहर आया था। उसके बाद अब फिर से कोरोना के बढ़ने की संभावना जतायी जा रही है।

बताते चलें, देश में मौजूदा समय में तीन समस्या विकराल रूप धारण किये हुये है, जिनमें डेंगू का कहर, वायु प्रदूषण का कहर जो लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाल रहा है। अब फिर से कोरोना के बढ़ते मामलों ने लोगों को ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य महकमें में हडकंप मचा दिया है। जिसके चलते लोगों में डर और भय है। कि कहीं कोरोना का कहर लोगों के जीवन में मुशीबत ना डाल दें। इसलिये सावधानी जरूर अपनायें।

नेशन फ़ॉर फार्मर्स, अन्य संगठनों की ‘किसान आयोग’ गठित करने की घोषणा, सिफारिशें देंगे 

किसान आंदोलन के लगातार जारी रहने और मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बीच नेशन फ़ॉर फार्मर्स और अन्य संगठनों और किसान समर्थक मंचों ने देश में कृषि की स्थिति के मूल्यांकन और प्रकाशन के लिए ‘किसान आयोग’ के गठन की प्रक्रिया की घोषणा की है। पी साईनाथ, जगमोहन सिंह और नवशरण सिंह जैसे बड़े किसान समर्थक चेहरों के साथ ‘नेशन फ़ॉर फार्मर्स’ ने इसकी घोषणा की है।

किसान आंदोलनों के अग्रणी यह सभी दिग्गज शुक्रवार को प्रेस क्लब आफ इण्डिया में जुटे थे, जहाँ उन्होंने किसानों के हक़ में एक प्रेस कांफ्रेंस को भी सम्बोधित किया। इसमें पी साईनाथ ने कहा कि – ‘डॉक्टर एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय किसान आयोग, जिसे हम स्वामीनाथन आयोग के नाम से बेहतर जानते हैं, उसका हश्र किसी से छिपा नहीं है। आज भी आयोग की अहम सिफारिशें देश भर के किसानों के बीच लोकप्रिय हैं, जिनमें से कुछ को- खासकर फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने से संबंधित- तत्काल संबोधित किए जाने की ज़रूरत है ताकि आंदोलनरत किसान अपने घर लौट सकें।’

उन्होंने कहा कि स्वामीनाथन आयोग को अपनी पांच में से पहली रिपोर्ट सरकार को जमा किए सोलह बरस हो गए। संसद में इन पर बहस करवाने की बार-बार मांग की गई लेकिन यूपीए और एनडीए दोनों की सरकारों ने इसके लिए न्यूनतम समय भी नहीं दिया। पिछले कई वर्ष से नेशन फ़ॉर फार्मर्स नाम का यह मंच मौजूदा कृषि संकट के संदर्भ में रिपोर्ट और संबंधित मसलों पर संसद में विशेष सत्र रख के बहस करवाने की मांग करता रहा है। यह कृषि संकट बीते दो दशकों में लाखों किसानों को जान ले चुका है।

इस मौके पर अन्य किसान नेताओं दिनेश अबरोल, अनिल चौधरी, निखिल डे, नवशरण सिंह, जगमोहन सिंह, एनडी जयप्रकाश, थॉमस फ्रांको और गोपाल कृष्ण ने कहा भारत में कृषि और उससे सम्बद्ध सभी क्षेत्रों में किसानों और खेतिहर आबादी के विभिन्न तबकों की आय के समक्ष खड़ी चुनौतियों के मद्देनजर किसान आयोग देश भर में विविध कृषि प्रणालियों से जुड़े संगठनों के साथ मिलकर सार्वजनिक जांच-पड़ताल की एक प्रक्रिया को चलाएगा।

इन किसान विशेषज्ञों ने कहा कि किसान आयोग की ज़रूरत क्या है? इसकी वजह ये है कि जब-जब सरकारों द्वारा गठित किये गए आयोगों की सिफारिशें सरकारों और कॉर्पोरेट ताकतों के खिलाफ गयीं, तब-तब उन सिफारिशों को दफना दिया गया। इसलिए अब किसान संगठनों के सामने यह चुनौती है कि वे विभिन्न मजदूर संगठनों, महिला संगठनों, पर्यावरण पर काम करने वाले समूहों, सामाजिक आंदोलनों और खाद्य व पोषण, समग्र स्वास्थ्य, रूपांतरकारी शिक्षा, सुरक्षित पर्यावरण, वन अधिकार और  ग्रामीण उद्योगों के पुनर्नवीकरण और स्थानीय स्तर पर चल रही मूल्यवर्धित कृषि गतिविधियों से जुड़े नागरिक समूहों के नेटवर्कों और अधिकार केंद्रित मंचों को एक साथ लाकर एक जन-केंद्रित व्यापक मंच बनावें।

उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य किसान संगठनों की सक्रिय भागीदारी से कृषि क्षेत्र में रूपांतरण की एक ठोस दृष्टि और रणनीति को विकसित करना है ताकि खाद्य विविधता, पारिस्थितिकीय सातत्य, समता व सामाजिक न्याय की राजनीति के एजेंडे को कॉर्पोरेट पूंजी से अप्रभावित रहते हुए कृषि रूपांतरण की प्रक्रिया में समाहित किया जा सके।

राष्ट्रीय किसान आयोग को लेकर इन नेताओं ने कहा, ‘कुछ प्रतिष्ठित किसान और कृषि विशेषज्ञ शामिल होंगे। इसकी अंतिम संरचना को तय करने में थोड़ा समय लगेगा। यह देश भर के किसानों की नुमाइंदगी करेगा। यह आयोग राज्यस्तरीय आयोगों के गठन को भी प्रोत्साहित करेगा जो कृषि आधारित समूहों और वर्गों के बीच देश भर में अध्ययन, तथ्यान्वेषण और सुनवाई कर सकें।’

उन्होंने कहा कि ‘स्वामीनाथन आयोग की पहली रिपोर्ट दिसंबर 2004 और आखिरी रिपोर्ट अक्टूबर 2006 में जमा की गई थी। इस देश के इतिहास में कृषि पर सबसे महत्वपूर्ण इस रिपोर्ट पर संसद में चर्चा के लिए एक दिन भी नहीं दिया गया। अब जबकि सोलह साल बीत गए हैं, पुराने लंबित मुद्दों और नई परिस्थितियों में पैदा हुए  जलवायु परिवर्तन, कर्ज़ आदि मुद्दों ने मिलकर स्थिति को और घातक बना दिया है। इस पर नए सिरे से एक रिपोर्ट लाए जाने की ज़रूरत है।’
कृषि जानकारों ने कहा – ‘इसी के साथ दूसरे ‘सरकारी’ आयोगों की निरर्थकता को भी देखा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने किसानों की समस्याओं को समझने और समाधान सुझाने के लिए एक कमेटी गठित करने का निर्देश दिया था। इस कमेटी में कृषि कानूनों के स्वयंभू समर्थक भरे हुए थे। अब चूंकि सरकार कह रही है कि वह संसद में इन कानूनों को वापस लेगी, कमेटी के सदस्यों को उसकी अप्रासंगिकता का बोध हो गया है। इस दौरान मीडिया लगातार जोर देकर कहा रहा है कि सिर्फ कॉरपोरेट समर्थक उपायों को ही ‘सुधार’ कहा जा सकता है।’

उन्होंने कहा कि नेशन फ़ॉर फार्मर्स ने किसान आयोग का गठन शुरू कर दिया है। स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट सरकार द्वारा नियुक्त प्रतिष्ठित विद्वानों के अध्ययन व परामर्श का परिणाम थी जिन्होंने किसानों और अन्य से व्यापक रायशुमारी की थी। किसान आयोग का गठन किसानों द्वारा किया जाएगा और उसकी कमान किसानों के हाथ में ही रहेगी, जो विशेषज्ञों के साथ परामर्श करेंगे और फॉलो-अप के लिए ऐसे संयुक्त मंचों का गठन करेंगे जिन्हें सरकार या अदालतें खत्म नहीं कर पाएंगी। भारतीय कृषि की समस्याओं के बारे में हमें किसानों से बेहतर आखिर कौन बता सकता है?

इन नेताओं ने कहा कि यह आयोग भारतीय कृषि के भीतर मौजूद संकट और व्यापक खेतिहर समाज के संकटों पर एक समग्र रिपोर्ट तैयार करेगा और किसानों के समूहों, कृषि-खाद्य तंत्र से सम्बद्ध गैर-कॉरपोरेट इकाइयों और नागरिक समूहों को न्यायपूर्ण पारिस्थितिकीय और सामाजिक परिवर्तनों के लिए संघर्ष के उद्देश्य से एक साथ लाएगा। उन्होंने कहा कि भारत में उन वास्तविक सुधारों की ज़रूरत है जो किसानों और खेत मजदूरों और स्थानीय समुदायों के हित में हों, न कि कॉरपोरेट के हित में। आयोग इन सब मुद्दों पर सिफारिशें प्रस्तुत करेगा।

उत्तर प्रदेश की सियासत का असर दिल्ली एमसीडी चुनाव पर

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के साथ ही दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनाव होने है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में जो भी सियासी दांव पेंच चले जा रहे है। उनका सीधा असर दिल्ली नगर के चुनाव पर जरूर पड़ना है।

राजनीति के विश्लेषकों का मानना है। अगर समाजवादी पार्टी और आप पार्टी उत्तर प्रदेश में गठबंधन करती है। तो दिल्ली के एमसीडी के चुनाव में भाजपा ही नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे को चुनाव में उठा सकती है। क्योंकि आप पार्टी का जो जन्म हुआ है वो, भ्रष्ट्राचार के विरोध में हुआ है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने तो कई बार भ्रष्ट्र नेताओं की सूची जारी कर कहा कि आप पार्टी का कभी भी भ्रष्ट्र पार्टी के साथ गठबंधन नहीं हो सकता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अमरीश का कहना है कि, सियासत में कब कौन किसका दोस्त बन जाये और कब विरोधी ये कहा नहीं जा सकता है। लेकिन आप पार्टी के मुखिया ने तो अन्ना आंदोलन के समय से ही मुख्यमंत्री बनने तक कई मर्तबा कहा है कि वे उन राजनातिक दलों के साथ समझौता नहीं करेगे जिन पर भ्रष्ट्राचार के आरोप है।

यदि आप पार्टी उत्तर प्रदेश में अपने लाभ के लिये उन राजनीतिक दलों के साथ समझौता करती है। जिन पर भ्रष्ट्राचार के आरोप है। तो केजरीवाल की राजनीति से जनता का विश्वास उठ जायेगा।

उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में केजरीवाल की राजनीति पूरी तरह से असफल हो जायेगी। भाजपा के नेता राजकुमार सिंह का कहना है कि, सियासत में सब चलता की राजनीति अब ज्यादा दिन चलने वाली नहीं है। जनता और मतदाता जागरूक है। वो भली- भाँति जानती है कि कौन नेता देश का विकास कर सकता है। क्योंकि अब जनता विकास चाहती है। उन्होंने कहा कि, उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के साथ ही दिल्ली में एमसीडी के चुनाव है। जो दिल्ली की सियासत में बड़े महत्व रखते है।

दिल्ली के एमसीडी के चुनाव में राष्ट्रीय स्तर के नेता चुनावी सभायें भी करते है। ऐसो में आप पार्टी की राजनीति और कथनी और करनी को जरूर मुद्दा बनाया जायेगा।

गरीब की थाली से टमाटर गायब

सब्जियों के हर रोज बढ़ते दामों से गरीबों की थाली से हरी सब्जियां और टमाटर गायब होते जा रहे है। सब्जियों के बढ़े दामों के पीछें क्या कारण है?

इस पर तहलका संवाददाता ने सब्जी व्यापारियों से बात की तो उन्होंने बताया कि, कई बार फसल की कमी होती तो कई बार जमाखोरी (कालाबाजारी) भी  जिसके कारण सब्जियों के दामों में इजाफा होता है।

सब्जी व्यापारी पवन कुशवाहा ने बताया कि, एक ओर तो पेट्रोल-डीजल के दाम बढे है। फिलहाल जरूर थोड़ी कम हुये है। जिसके चलते सब्जियों के दामों में बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं कुछ व्यापारी जो मोटे पैसे वाले है। वे जमकर काला बजारी कर जमाखोरी कर रहे है। जिसके कारण  सब्जियां सही मात्रा में बाजार में नहीं आ पाती है।

आजादपुर मंड़ी के व्यापारी संतोष अग्रवाल का कहना है कि, थोक मंडियों में तो टमाटर 37, 40 और 30 रूपये किलों है। लेकिन छोटी मंडियों में किराया-भाड़ा लगने से 70, 80 और 100 रूपये किलो तक बिक रहा है।

दिल्ली के पांडव नगर में सब्जी खरीद रही गृहणी सुनीता ने बताया कि, ये सब सरकार की लापरवाही का नतीजा है। जिसके कारण सब्जियों के दामों में इजाफा हो रहा है। उनका कहना है कि कोरोना काल के बाद गरीब और मध्यम परिवार को वैसे ही आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा है।

महगांई के कारण लोगों को खान-पान की वस्तुओं को खरीदने में दिक्कत हो रही है। उनका कहना है कि टमाटर, प्याज और आलू सहित हरी सब्जियो के दाम बढ़ रहे है। जबकि सर्दी का मौसम तो सब्जियों का मौसम ही माना जाता है।

फिर भी अगर सर्दी के मौसम में सब्जियों के दाम बढ़ रहे है। तो सरकार की लापरवाही का नतीजा है। जिसके कारण गरीबों को हरी सब्जियां नहीं मिल पा रही है।

 

कोरोना, डेंगू और वायु प्रदूषण से करें बचाव

मौजूदा समय में देश में कोरोना, डेंगू और वायु प्रदूषण के कहर से लोगों को तमाम तरह की परेशानीयों का सामना करना पड़ रहा है। आलम यह है कि, लोगों के अंदर इस बात की भी फिक्र है कि कहीं वे अपने घरों से निकल कर अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे।

दिल्ली स्टेट प्रोग्राम के अधिकारी डाँ भरत सागर का कहना है कि, कोरोना का कहर कम हुआ है लेकिन कोरोना है। और सभी को सावधानी बरतने की जरूरत है। वहीं डेंगू के अब तक के सबसे ज्यादा मामले इस बार दिल्ली में आये है। जो चिंता का विषय है। इसी तरह लगातार वायु प्रदूषण का कहर लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है।

बच्चो और बुजुर्गो में लंग की दिक्कत आ रही है। ऐसे में बचाव के तौर पर सोशल डिस्टेसिंग का पालन करें और घरों से निकलते समय मास्क लगाकर निकलें।

डाँ भरत सागर ने बताया कि, भीड़-भाड़ वाले इलाके में जाने से बचें। बुखार के साथ गले में खिचाव व दर्द हो तो उसे नजरअंदाज ना करें। क्योंकि स्वास्थ्य के लिये  यह बेहद हानिकारक हो सकता है।

इंडियन हार्ट फाउंडेशन के चेयरमैन डाँ आर एन कालरा का कहना है कि, आने वाली सर्दी के मौसम में  स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होती है। साथ ही बी पी और हाइपरटेंशन के मामलें बढ़ते है। इसलिये बचाव के तौर पर योग को अपनाये और बुखार के साथ बैचेनी, बायें हाथ में दर्द और जबड़े में तेजी से खिचाव हो तो उसे नजरअंदाज ना करें। क्योंकि ये शायद हार्ट रोग के लक्षण हो सकते है।

उन्होंने कहा कि कोरोना , डेंगू और वायु प्रदूषण से मौजूदा समय में बचना ही तामाम बीमारियों से बचना है।

मंत्रिमंडल ने तीन कृषि क़ानून वापस लेने को दी अपनी मंजूरी  

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विवादित तीन कृषि कानूनों को वापस लेने को मंजूरी दे दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिन पहले यह कहते हुए कि सरकार किसानों को  असफल रही, इसकी घोषणा की थी। हालांकि, एमएसपी की गारंटी और कुछ अन्य मुद्दों पर किसान अभी अड़े हुए हैं और उन्होंने फिलहाल अपना आंदोलन वापस लेने से मना  कर दिया है। याद रहे एक साल से ज्यादा के पूरी किसान आंदोलन के दौरान 750 के करीब किसानों की शहादत हुई है।

मंत्रिमंडल की आज नई दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में बैठक हुई, जिसमें यह फैसला किया गया। इसी महीने 29 तारीख से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है जिसमें इन कानूनों को वापस लेने के लिए पहले ही हफ्ते में बिल लाया जाएगा। हालांकि, यह साफ़ नहीं है कि एमएसपी पर गारंटी को लेकर क्या फैसला किया जाएगा, क्योंकि किसानों का साझा संगठन संयुक्त किसान मोर्चा इसपर बिल लाने की मांग कर रहा है।

किसान आंदोलन ख़त्म करने का कोई फैसला किसानों ने नहीं किया है। वे एमएसपी गारंटी की अपनी पुरानी मांग पर दृढ़ हैं। प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद ही किसान  संगठनों ने साफ़ कर दिया था कि वे अभी आंदोलन ख़त्म नहीं करेंगे क्योंकि उनकी सभी मांगों पर फैसला अभी नहीं हुआ है।

फ़िलहाल यह देखना दिलचस्प होगा कि किसानों के सभी मुद्दों पर सरकार संसद में क्या फैसला करेगी। इसी पर आंदोलन का रुख निर्भर करेगा। किसान आंदोलन का भले जो फैसला हो, यह तय है कि सरकार ने अपनी तरफ से तीन कृषि कानूनों को लेकर प्रक्रिया शुरू कर दी है।

पुलों के नीचे जलाये जाते हैं टायर, जो फैलाते हैं प्रदूषण

सरकार के तामाम प्रयासों के बावजूद आज भी लोग वायु प्रदूषण को रोकने के लिये सरकार का सहयोग नहीं कर रहे है।  जिसके चलते दिल्ली में वायु की गुणवत्ता निरंतर खराब हो रही है। दिल्ली के बड़े-बड़े पुलों के नीचे आज भी कुछ लोग सर्दी से बचने के लिये टायर और कचड़े को जलाने में लगे है। जिससे शहर का वातावरण पूरी तरह से दूषित हो रहा है।

बताते चले, दिल्ली में वायु प्रदूषण के कहर के चलते स्कूल बंद है और सरकारी दफ्तर भी ताकि दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम किया जा सकें। लेकिन कुछ लोगों की लापरवाही के काऱण वायु प्रदूषण को कंट्रोल नहीं किया जा पा रहा है।

ऐसा नहीं कि कुछ लोग पुलों में जलाये जा रहे टायरों और कचड़ा का विरोध नहीं कर रहे है। लेकिन पुलों के नीचे बैठकर रात गुजारते है। वे विरोध करने वालों के खिलाफ हिंसा पर उतर आते है।

दिल्ली के अक्षरधाम के पास रहने वाले पंडित अरविन्द कुमार ने बताया कि, सरकार को इस मामले में कार्रवाई करनी चाहिये। ताकि प्रदूषण पर रोक लगे। अन्यथा प्रदूषण को काबू करने में अधिक समय लगेगा।

सबसे गंभीर बात तो यह है कि, जिन लोगों को प्रदूषण को रोकने के लिये जिम्मेदारी दी गयी है। वे ही सब कार्रवाई करने से बचते है तो वायु प्रदूषण का कहर कैसे थमेगा?

इस बारे में किसान रोशन पाल का कहना है कि अभी तक सरकार तो किसानों को ही दोष देती रही है। कि किसान पराली जलाते है इसलिये वायु प्रदूषण बढ़ता है। जबकि सच्चाई ये है कि सरकार उन केन्द्रो पर गौर नहीं करती है। जो पूरे शहर को दूषित कर वातावरण को गंदा करते है। जैसे शहर के बीचों-बीच बने पुलों के नीचें टायरों के जलाना और तो और कई जगह तो भरे और बड़े बाजारों में रात दिन कचड़ा जलाया जाता है। उस पर सरकार कोर्इ संज्ञान क्यों नहीं लेती।

 

उत्तर प्रदेश को लेकर दिल्ली की सियासत में हलचल तेज

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर तीन महीने से कम का समय बचा है लेकिन दिल्ली में सियासी हलचल तेज हो गयी है। उत्तर प्रदेश के जातीय और धार्मिक समीकरण को सांधने का काम तेज गति से चल रहा है।

बताते चलें, उत्तर प्रदेश में अभी तक के विधानसभा के चुनाव में बसपा, समाजवादी पार्टी, भाजपा, और कांग्रेस के बीच चुनावी जंग होती रही है। लेकिन इस बार चुनावी जंग में आम आदमी पार्टी (आप) भी पूरे दमखम के साथ चुनाव में ताल ठोकने को तैयार है। इस लिहाज से उत्तर प्रदेश चुनाव की रूप रेखा दिल्ली में तय की जा रही है।

सबसे गंभीर बात तो यह है कि, सभी दल एक दूसरे पर आरोप लगाते है कि वे धर्म और जाति की राजनीति करते है। जबकि सच्चाई तो ये है कि कोई भी दल नहीं है जो धर्म और जाति से हटकर के राजनीति करता हो।

समाजवादी और बसपा को छोड़कर भाजपा, कांग्रेस और आप पार्टी का मुख्यालय दिल्ली में स्थित है। इस लिहाज से दिल्ली में उत्तर प्रदेश से विधायक का टिकट पाने वालो का तांता लगा रहता है। दिल्ली की सियासत में उत्तर प्रदेश की सियासत का अहम रोल है। जानकारों का कहना है कि, जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आती जायेगी तैसे–तैसे दिल्ली की सियासी हलचल तेज होती जायेगी।

मौजूदा समय में किसानों को लेकर मची हलचल को लेकर राजनीतिक समीकरण बने-बिगड़े है। किसानों का रूख को भाप कर राजनीति करने वाले नेता असमजंस में है। कि कही कृषि कानून बिल जो वापस हुआ है। उससे कहीं दांव उल्टा न पड़ जाये। ऐसे में सभी दल के नेता अभी चुनावी हवा का रूख देख रहे है।

दिल्ली एम सी डी चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज

दिल्ली नगर निगम के चुनाव को लेकर भले ही तीन महीने का समय बचा है, पर दिल्ली की सियासत में गर्माहट महसूस की जा रही है। आज दिल्ली भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक आयोजित की गयी, जिसमें आगामी दिल्ली नगर निगम के चुनाव को लेकर चर्चा की गयी।

कार्यकारिणी के वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की उपेक्षापूर्ण नीतियों के कारण दिल्ली में विकास कार्य बंद सा पड़ा है। दिल्ली में कोरोनाकाल में लोगों को सही इलाज नहीं मिला है। इसके कारण लोगों को काफी परेशानी हुई है।

इन्ही तामाम मुद्दों पर बैठक पर चर्चा की गयी है। ताकि दिल्ली में भाजपा में अपने दमखम के साथ चुनाव लड़े और जीत हासिल कर सके।

वहीं दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के नेता सुरेश कुमार का कहना है कि दिल्ली में आगामी दिल्ली नगर निगम चुनाव में कांग्रेस पूरे दमखम के साथ मैदान में उतरेगी। क्योंकि दिल्ली में कांग्रेस के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है। उन्होंने कहा कि दिल्ली नगर निगम में भाजपा और दिल्ली में आप पार्टी की सरकार की जनविरोधी नीतियों को जनता देख चुकी है। इसलिये जनता कांग्रेस पार्टी को मौका देगी।

कांग्रेस और भाजपा को आड़े हाथो लेते हुये आप पार्टी के नेता व परिवहन मंत्री गोपाल राय का कहना है कि, दिल्ली में हमारी सरकार ने जो विकास किया है और बिजली-पानी की निशुल्क सुविधा दी है उससे जनता , खासकर गरीब लोगों को बहुत लाभ पहुंचा है। साथ ही दिल्ली में महिलाओं को बस में फ्री सुविधा देने से भी आप पार्टी की लोकप्रियता बढ़ी है।