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कहीं टूट न जाए सब्र का बाँध

 माँग पूरी नहीं करा सका सवा साल का संघर्ष, दिल्ली की सीमाओं पर एक साल से बैठे हैं किसान

 22 नवंबर से सरकार को हर मोर्चे पर घेरेंगे किसान, संसद के शीत सत्र में भी उठाएँगे अपनी आवाज़

तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में किसानों को दिल्ली की सीमाओं पर आन्दोलन करते एक साल हो गया; लेकिन सरकार ने किसानों की माँगें नहीं मानी हैं। अपने हक़ और खेती बचाने के लिए सरकार से साल पर से गुहार लगाते किसान घर होते हुए भी बेघरों की तरह मौसमों की मार सहकर भी कृषि क़ानूनों को ख़त्म करने की अपनी माँग पर अडिग हैं। केंद्र सरकार और भाजपा की राज्य सरकारों के तमाम दबावों और 650 से ज़्यादा किसानों की आन्दोलन के दौरान मौत के बावजूद किसानों ने हौसला और सब्र नहीं खोया।

सरकार को किसानों की सुननी चाहिए, अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि किसानों के साथ-साथ जनता के सब्र का भी बाँध टूट जाए; क्योंकि यह आन्दोलन आज़ाद भारत का सबसे बड़ा आन्दोलन बन चुका है और यह पहली सरकार है, जिसने इतने बड़े आन्दोलन के बावजूद किसानों की अनदेखी की है। अब किसान हर हाल में अपनी लड़ाई में जीत चाहते हैं और इसके लिए केंद्र सरकार को हर मोर्चे पर घेरने की योजना बना चुके हैं। इसके लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने एक दिन पहले ही बैठक करके विधिवत् कई फ़ैसले लिये हैं। इन फ़ैसलों में तय किया गया है कि किसान दिल्ली के अलावा पूरे देश में भाजपा और उसकी सरकारों का विरोध करेंगे।

इन विरोधों के फ़िलहाल जो संयुक्त किसान मोर्चा ने तय किया है, उसमें सबसे पहले 22 नवंबर को लखनऊ में किसान महापंचायत का आयोजन होगा। इस महापंचायत की अगुवाई भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता और किसान नेता राकेश टिकैत करेंगे। महापंचायत के बारे में राकेश टिकैत ने कहा है कि 22 नवंबर को लखनऊ में होने वाली किसान महापंचायत ऐतिहासिक होगी, जो कि तीनों काले क़ानूनों और किसान विरोधी भाजपा सरकार के ताबूत में आख़िरी कील साबित होगी। उन्होंने यह भी कहा है कि अब पूर्वांचल में भी आन्दोलन तेज़ किया जाएगा।

इस महापंचायत के बारे में ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर बैठे किसान देवेंद्र सिंह ने कहा कि मुज़फ़्फ़रनगर की महापंचायत से भी बड़ी लखनऊ की महापंचायत होगी, जो कि प्रदेश के किसानों और लोगों को भाजपा सरकार की जनविरोधी नीतियों के बारे में जागरूक करने के लिए आयोजित की जा रही है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन में भाजपा की केंद्र सरकार इन तीन क़ानूनों को लेकर आयी थी, जिसमें किसानों के हाथ से खेती-बाड़ी ही नहीं, उनकी जमीने छीनने तक की योजना बन चुकी है, जिसके चलते किसान इन क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार यह नहीं चाहती कि लोगों को इन क़ानूनों की हक़ीक़त पता चले, यही वजह है कि वह इन क़ानूनों पर खुली चर्चा करने से कतरा रही है और किसानों की आवाज़ को जबरन दबाने के लगातार प्रयास करती रही है।

अगर इन क़ानूनों की हक़ीक़त आम जनता को पता चल जाए, तो जनता भी सडक़ों पर दिखायी देगी। संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में यह भी तय किया गया है कि 26 नवंबर को किसान दिल्ली में कम-से-कम 500 ट्रैक्टरों के साथ प्रवेश करेंगे। 26 नवंबर को भारत का संविधान सन् 1949 में संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था। इसलिए इस दिन संविधान दिवस भी है। ट्रैक्टर लेकर दिल्ली में प्रवेश करने वाले किसानों में से 500 चयनित किसान 29 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में अपनी आवाज़ बुलंद करेंगे। किसानों ने तय किया है कि वे शान्तिपूर्वक अपनी बात सरकार के सामने रखेंगे।

मोर्चा ने निर्णय लिया है कि 29 नवंबर से संसद के शीतकालीन सत्र के समाप्त होने तक हर रोज़ किसान मोर्चा द्वारा चयनित 500 किसान ट्रैक्टर ट्रालियाँ लेकर संसद भवन जाएँगे और अपनी आवाज़ बुलन्द करेंगे, ताकि तानाशाही पर उतरी सरकार को उनकी परेशानी का अहसास हो सके और वह तीनों काले क़ानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर हो सके। वहीं 22 नवंबर से पहले से ही दिल्ली की सीमाओं पर देश भर के किसान एक बार फिर जुटना शुरू होंगे और सरकार को उसके नये क़ानून लाने की ग़लती और अपनी एकता की ताक़त का अहसास कराएँगे।

मोर्चा ने यह भी फ़ैसला किया है कि 28 नवंबर को मुम्बई के आज़ाद मैदान में भी देश भर के किसान एक विशाल किसान-मज़दूर महापंचायत का आयोजन करेंगे। इस महापंचायत का आयोजन महाराष्ट्र के 100 से अधिक संगठनों की ओर से संयुक्त शेतकारी कामगार मोर्चा (एसएसकेएम) के बैनर तले संयुक्त रूप से आयोजित होगा।

बता दें कि किसान सरकार से तीनों कृषि क़ानूनों को समाप्त करने, न्यूनतम समर्थन मूल्य की लिखित गारंटी देने के अलावा किसान हर दिन एक-न-एक नयी माँग भी उठा रहे हैं। इन माँगों में हर राज्य के किसानों की अपनी और राज्यों में अलग-अलग क्षेत्र के किसानों की अपनी-अपनी समस्याएँ शामिल हैं। लेकिन सरकार की मंशा किसानों की किसी भी समस्या को सुनने की नहीं लगती। अगर वह किसानों की परेशानियों को समझती, तो अब तक प्रधानमंत्री, जो कि हर छोटी-बड़ी गतिविधि में दिलचस्पी रखते हैं। मोरों को दाना चुगाते हैं। एक क्रिकेटर की उँगली में चोट लगने पर दु:ख व्यक्त करते हैं; अब तक किसानों से भी बात कर चुके होते।

आन्दोलन तोडऩे की कोशिशें

नये कृषि क़ानूनों के विरोध में किसान आन्दोलन जब से शुरू हुआ है, तभी से केंद्र सरकार इस कोशिश में लगी है कि किसी तरह उसे तोडक़र ख़त्म कर दिया जाए। इसके लिए किसानों के ख़िलाफ़ की गयी साज़िशों के लिए सरकार पर सीधे-सीधे आरोप देना उचित नहीं होगा; लेकिन इसमें कोई दो-राय नहीं कि आन्दोलन के दौरान किसानों पर लाठीचार्ज करने, आँसू गैस के गोले दाग़ने, सडक़ें खोदने, उन पर कीलें ठुकवाने, कंटीले तार लगवाने, भारी बैरिकेड लगवाने, पुलिस और अद्र्धसैन्य बलों से बल प्रयोग करवाने का काम तक सरकार ने किया। किसानों के लिए खाना कहाँ से आ रहा है? उसकी जाँच कराने जैसे काम भी सरकार ने किये? इसके अलावा किसानों पर लगातार अराजक तत्त्वों ने भी हमले किये हैं, जिसमें कई किसानों की जान भी गयी है या यह कहें कि उनकी हत्या कर दी गयी।

इसके बाद इसके अलावा उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी स्थित तिकुनिया क्षेत्र में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे अभिषेक मिश्रा मोनू ने केंद्रीय मंत्री की रैली का विरोध करके लौट रहे किसानों पर पीछे से कार चढ़ा दी। इससे ठीक पहले ही ख़ुद अजय मिश्रा ने ही किसानों को खुले शब्दों में धमकी दी थी। इतना ही नहीं, अभी हाल ही में दिल्ली सीमाओं पर किसान आन्दोलन से लौट रही पंजाब की पाँच महिलाओं को बहादुरगढ़ स्थित झज्जर रोड के फुटपाथ पर जाकर डंपर ने रौंद डाला, जिसमें तीन की मौक़े पर ही मौत हो गयी और दो को गम्भीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया।

इतने पर भी सरकार ने किसानों के प्रति संवेदनशील रवैया नहीं अपनाया और उन्हें आतंकवादी, ख़ालिस्तानी, दलाल, व्यापारी, दंगाई और न जाने क्या-क्या साबित करने की कोशिश की। अराजक तत्त्वों द्वारा किसानों पर हमले और उनकी हत्याओं के मामले में कई बार भाजपा और सरकार तक पर सीधे-सीधे आरोप लगे, लेकिन उसने इसकी परवाह किये बग़ैर किसानों के प्रति अपना शत्रुभाव का रवैया जारी रखा, जिसके चलते लखीमपुर में किसानों पर कार चढ़ाने जैसी घटना हुई। लेकिन किसानों के हौसले सरकार और भाजपा की इस नीति से पस्त नहीं हुए, बल्कि उन्होंने अब और दृढ़ संकल्पित होकर सरकार से लोहा लेने की ठान ली है, जिसका असर एक बार फिर बड़े स्तर पर दिखेगा।

ज़ाहिर है इसका असर सरकार पर सीधे-सीधे भले न पड़े; लेकिन उसे जनाक्रोश तो झेलना पड़ेगा, जो अब दिख भी रहा है। ये देश में ही नहीं, विदेशों में भी दिखायी दिया है।

दो दीये, शहीदों के लिए

इस दीपावली पर राकेश टिकैत व संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने किसानों के साथ आन्दोलन के दौरान मृत्यु को प्राप्त हुए किसानों और देश के लिए सीमाओं पर शहीद हुए जवानों को याद करते हुए उनकी याद में दीप प्रज्ज्वलित किये और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इस श्रद्धांजलि सभा का आयोजन ‘दो दीये, शहीदों के लिए’ के नाम से किया गया। इस दौरान राकेश टिकैत ने कहा कि केंद्र सरकार ने 22 जनवरी को किसानों से आख़िरी बार औपचारिक बात की थी।

अब पंजाब और हरियाणा से क़रीब सवा साल से भी पहले शुरू हुए आन्दोलन के बाद अपने हक़ के लिए दिल्ली की सीमाओं पर आकर एक साल से अपने हक़ के लिए खुले आसमान के नीचे परेशान बैठे किसानों ने सरकार को 26 नवंबर तक का अन्तिम चेतावनी (अल्टीमेटम) दिया है। अगर वह अब भी नहीं मानी, तो किसान अपने ट्रैक्टरों के साथ दो घंटे के स्टैंडबाय मोड पर होंगे। उन्होंने कृषि क़ानूनों के वापस होने तक आन्दोलन के समाप्त न होने का संकेत देते हुए साफ़ कहा कि अगर सरकारें पाँच साल चल सकती हैं, तो किसान आन्दोलन भी पाँच साल तक चल सकता है। बता दें कि किसानों की माँगें न मान लेने तक राकेश टिकैत ने घर न लौटने की कसम खाई हुई है और तबसे वह लगातार देश भर में किसानों को जागरूक करने के लिए भ्रमण कर रहे हैं।

किसानों के पक्ष में खड़े दल

किसान आन्दोलन के पक्ष में शुरू से ही कई दल आ खड़े हुए थे, जिनमें कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, रालोद, सपा, अकाली दल प्रमुख हैं। लेकिन किसान आन्दोलन के पक्ष में बढ़ता जनसमर्थन देख कुछ अन्य छोटे-बड़े दल भी किसानों के समर्थन में आ खड़े हुए हैं। लम्बे समय से चुप्पी साधे रखने वाली उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा प्रमुख मायावती ने भी किसान आन्दोलन का अब समर्थन कर दिया है। इतना ही नहीं, भाजपा के कुछ नेता भी दबी ज़ुबान से तो कुछ खुले तौर पर किसान आन्दोलन का समर्थन करने लगे हैं। कई तो इस्तीफ़ा दे चुके हैं या पार्टी बदल चुके हैं। लेकिन दु:ख की बात यह है कि सभी दल किसानों के साथ जनाधार के स्वार्थ के चक्कर में खड़े हुए हैं।

केंद्र पर फिर बरसे मलिक

शुरू से ही किसान आन्दोलन के पक्ष में खड़े मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक एक बार फिर केंद्र सरकार पर जमकर बरसे हैं। उन्होंने साफ़ कहा है कि देश में इतना बड़ा आन्दोलन आज तक नहीं चला। दिल्ली के नेता एक कुत्ते के मरने पर भी संवेदना प्रकट करते हैं; लेकिन उनमें से किसी ने भी 600 किसानों की मौत पर दु:ख तक नहीं जताया।

अपने आलोचकों को निशाने पर लेते हुए सत्यपाल मलिक ने कहा-‘मैं अगर कृषि क़ानून के मुद्दे पर कहूँगा, तो विवाद हो जाएगा। मेरे कुछ शुभचिन्तक इस इंतज़ार में हैं कि मैं हटूँ। कुछ लोग सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं कि राज्यपाल साहब, अगर इतना महसूस कर रहे हो, तो इस्तीफ़ा क्यों नहीं दे देते हैं? मुझे आपके पिताजी ने राज्यपाल नहीं बनाया था और न मैं वोट से बना था। मुझे दिल्ली में दो-तीन बड़े लोगों ने राज्यपाल बनाया था और मैं उनकी ही इच्छा के विरुद्ध बोल रहा हूँ। जब वे मुझसे कह देंगे कि हमें दिक़्क़त है, पद छोड़ दो; तो मैं इस्तीफ़ा देने में एक मिनट भी नहीं लगाऊँगा।’

उन्होंने कहा कि मैंने पहले भी कहा था कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी दे दे, किसान आन्दोलन समाप्त हो जाएगा। फ़िलहाल किसान आन्दोलन एक बार फिर अपने उफान पर आने को है। इसमें आगे क्या होगा? यह तो सरकार व किसानों के निर्णयों पर ही निर्भर करेगा।

गोयल बोले, फिर बनेगी सरकार

इधर केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने टाइम्स नाउ समिट-2021 में एक तरह से किसानों का मनोबल कम करने के मक़सद से कहा है कि उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजे बहुत अच्छे आएँगे। भाजपा अपने मित्र दलों के साथ वहाँ एक बार फिर पूर्ण और अच्छे बहुमत की सरकार लेकर आएगी। हालाँकि उनके ऐसा कहने के पीछे आत्मविश्वास है या अतिविश्वास? यह तो नहीं कहा जा सकता। लेकिन उनके इस बयान में किसानों की अनदेखी करने और चुनाव जीतने का अतिविश्वास से भरे होने पर लोग सवालिया निशान लगा रहे हैं?

केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि सरकार तीन नये कृषि क़ानूनों पर विरोध कर रहे किसानों से बात करने के लिए तैयार है। लेकिन सवाल यह है कि सरकार किस तरह तैयार है? और अगर तैयार है, तो कृषि क़ानूनों पर खुलकर चर्चा क्यों नहीं करती? वह कृषि क़ानूनों को अपनी तरफ़ से अच्छा बताने की बजाय उन पर चर्चा करे और उनमें जो भी शर्तें, नियम हैं, उनके फ़ायदे-नुक़सान एक-एक करके गिनाये। इससे जनता को भी सही मायने में समझ में आएगा कि कृषि क़ानूनों को लेकर सरकार ग़लत है या किसान? लेकिन यह देखा गया है कि सरकार लगातार खुली बातचीत से बचती रही है। इसका मतलब क्या है? यह बताने की ज़रूरत नहीं है। इसे चोर की दाढ़ी में तिनका वाले मुहावरे से समझना ही पर्याप्त होगा।

डेंगू का डंक

कोरोना महामारी की दोनों लहरों में लोगों को जिन परेशानियों का सामना करना पड़ा उसने यह साबित कर दिया कि अगर कोई बीमारी महामारी का रूप ले ले, तो देश की स्वास्थ्य व्यवस्था जवाब दे जाती है। इन दिनों तेज़ी से फैलते डेंगू ने भी यही साबित कर दिया है। कुछ राज्यों में तो हाल यह है कि मरीज़ों को समय पर सही इलाज मिलना तो दूर, जाँच तक समय पर नहीं हो पा रही है। संक्रमण मुक्त पलंग (बेड) तक हर जगह मौज़ूद नहीं हैं, जिससे  संक्रमण और बढ़ रहा है।

डेंगू के इतने मरीज़ बढ़ रहे हैं कि सरकारी अस्पतालों में ही नहीं, बल्कि निजी अस्पतालों में बेड के लिए उन्हें भटकना पड़ रहा है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के जर्जर इसकी मूल वजह स्वास्थ्य सेवाओं का लगातार होता निजीकरण और कार्पोरेट अस्पतालों का विस्तार होना है।

गम्भीर बात यह है कि सरकारी अस्पतालों में भी अब डॉक्टरों की नियुक्तियाँ अनौपचारिक (एडहॉक) या अनुबन्ध (कॉन्ट्रेक्ट) पर एक या दो साल के लिए होने लगी हैं। इसके चलते डॉक्टर्स या तो मन से सेवाएँ नहीं देते या फिर नियमित होने के लिए संघर्ष करते रहते हैं। इतना ही नहीं, अस्पतालों में डॉक्टर्स, पैरामैडिकल स्टाफ और नर्स की कमी के चलते मरीज़ इलाज के लिए भटकते रहते हैं और कई बार इलाज न मिलने या समय पर इलाज न मिलने पर दम तोड़ देते हैं। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में कमियों को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) कई बार आगाह कर चुका है। लेकिन सरकार ने सरकारी स्वास्थ्य सेवाएँ बेहतर करने की जगह उनके निजीकरण का विस्तार ही किया है।

मौज़ूदा समय में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत कई अन्य प्रदेशों में डेंगू ने पिछले महीने से पैर पसार रखे हैं। जब भी कोई बीमारी महामारी का रूप लेती है, तो व्यवस्था के अभाव की वजह से मरीज़ों को झोलाछाप डॉक्टरों तक से इलाज कराने को मजबूर होना पड़ता है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व संयुक्त सचिव डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि कोई भी संक्रमित बीमारी हो, अगर उसका समय रहते पक्का इलाज न हो तो वह भयंकर रूप ले-लेती है। मौज़ूदा समय में डेंगू तेज़ी से फैल रहा है। देश के ग़रीब लोग सरकारी अस्पतालों पर ही निर्भर हैं। कहीं-कहीं सरकारी अस्पतालों की दशा बहुत ख़राब है। सरकारी अस्पतालों की लैबों में जाँच रिपोर्ट ही दो से तीन दिन में मिलती है; जबकि डेंगू में रक्त की तुरन्त जाँच और प्लेटलेट्स की गिनती बहुत ज़रूरी होती है। लेकिन समय पर जाँच रिपोर्ट न मिलने के चलते मरीज़ों को ख़तरा बढ़ जाता है और डेंगू के सही आँकड़े भी नहीं आ पाते। डॉक्टर बंसल कहते हैं कि भारत में स्वास्थ्य बजट भी बहुत कम है।

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए) के अध्यक्ष डॉक्टर अश्विनी डालमिया कहते हैं कि डेंगू हर साल कहर बनकर आता है। डेंगू फैलाने वाला एडीज इजिप्टी मच्छर साफ़ पानी और घरों में पनपता है। यही वजह है कि इन मच्छरों की संख्या बढऩे पर डेंगू भी तेज़ी से फैलता है। ऐसे में घरों की सफ़ार्इ, साफ़ पानी को भी ढककर रखने, पानी जमा न होने देने और मच्छरों को मारने वाली दवा से ही इसका इलाज ज़रूरी है। साथ ही इन दिनों में होने वाले बुख़ार को लोग सामान्य न समझें और इलाज के साथ-साथ सबसे पहले डेंगू की जाँच कराएँ, ताकि अगर मरीज़ को डेंगू है, तो समय रहते उसका इलाज हो सके।

डेंगू विरोधी अभियान में गत आठ साल से काम करने वाले डॉक्टर दिव्यांग देव गोस्वामी का कहना है कि कई राज्यों में डेंगू के तेज़ी से विस्तार के लिए सरकार की उदासीनता और स्वास्थ्य एजेंसियाँ ज़िम्मेदार हैं। जब हर साल अक्टूबर और नवंबर में डेंगू फैलता है, तो सरकार डेंगू से निपटने के लिए कोई पुख़्ता इंतज़ाम क्यों नहीं करती है? दबाओं का छिडक़ाव पहले होता था; लेकिन अब नहीं होता। साल में दो-चार बार धुआँ छोडऩे वाले आते हैं, जिससे मच्छर तो नहीं मरते, प्रदूषण ज़रूर फैल जाता है। देश में स्वास्थ्य विभाग एक बड़ा बाज़ार बनकर ऊभर रहा है, जिसके चलते पैसा कमाने के लालच में कार्पोरेट घराने इस क्षेत्र में पाँव पसारते जा रहे हैं और आम आदमी की पहुँच से इलाज दूर होता जा रहा है। बीमारियों को एक सुनियोजित तरीक़े से बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके पीछे दवा कम्पनियों और जाँच केंद्रों का कारोबारी स्वार्थ भी है। डॉक्टर गोस्वामी का कहना है कि कई राज्यों में मरीज़ों के लिए बेड तक उपलब्ध नहीं हैं। कई अस्पतालों में मानवता को झझकोर देनी वाली घटनाएँ घट रही हैं।

तहलका संवाददाता ने उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा के सरकारी अस्पतालों की जानकारी जुटायी, जहाँ देखने में आया कि स्वास्थ व्यवस्था में उत्तर प्रदेश की दशा सबसे ज़्यादा ख़राब है। वहाँ डेंगू से मरने वालों की संख्या भी इसकी गवाह है। एक मरीज़ ने बताया कि अब तो डेंगू कुछ कम हो रहा है; लेकिन जब डेंगू के मामले चरम पर थे, तब एक-एक बेड पर कई-कई मरीज़ डाले जा रहे थे। इतने पर भी अनेक मरीज़ अस्पतालों में इलाज के लिए भटक रहे थे। कई-कई दिन बेड की चादरें नहीं बदली जा रही थीं। डॉक्टर भी क्या करें, जब संसाधन ही नहीं होंगे, तो इलाज कैसे होगा? एक चौंकाने वाली बात यह भी सामने आयी कि कुछ सरकारी डॉक्टर मरीज़ों को निजी अस्पतालों में भेज रहे थे। अब यह साँठगाँठ की वजह से होता है या अव्यवस्था की वजह से? नहीं कह सकते।

पद्म सम्मान -2021 ग्रामीण विभूतियों ने रचा इतिहास

ईमानदार, मेहनती और परिस्थितियों से लडऩे वालों के प्रेरणास्रोत है पद्मश्री मंजम्मा जोगतन का संघर्ष

देश के बड़े सम्मानों में गिने जाने वाले पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री मिलना गौरव की बात है। साल 2021 के लिए दिये जाने वाले इन पुरस्कारों में सबसे ख़ास बात यह रही कि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों ने शहर में रहने वालों की तुलना में ज़्यादा पुरस्कार प्राप्त किये। लेकिन दु:खद यह है कि इन सम्मानों पर कुछ नाम वे भी लिख दिये जाते हैं, जो असल में उनके हक़दार नहीं होते। लेकिन कुछ विभूतियाँ वास्तव में ये सम्मान पाने की हक़दार होती हैं। ख़ैर, हम इस समय इस बहस में नहीं पड़ेंगे। हम हाल ही में मिले इन सम्मानों से नवाज़ी गयी विभूतियों का संक्षिप्त परिचय देकर आज उस विभूति का ज़िक्र करेंगे, जिसने अपने जीवन में कला को जीवंत करने की नीयत से जीवन की परेशानियों की परवाह किये बग़ैर दिन-रात मेहनत की, जिसे यह भी पता नहीं था कि जीवन में उसे कोई सम्मान भी मिलेगा।

हाल ही में मिले इन 119 सम्मानों में सात पद्म विभूषण से सम्मानित विभूतियों में जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे को सार्वजनिक मामलों के लिए, तमिलनाडु के संगीत निदेशक, गायक एस.पी. बालासुब्रमण्यम को मरणोपरांत कला के क्षेत्र में, कर्नाटक डॉक्टर बेले मोनप्पा हेगड़े को चिकित्सा के क्षेत्र में, संयुक्त राज्य अमेरिका के नरिंदर सिंह कपनी को विज्ञान एवं तकनीक में मरणोपरांत क्षेत्र में, दिल्ली के मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान को अध्यात्म के लिए, दिल्ली के बी.बी. लाल को पुरातत्व के क्षेत्र में और ओडिशा के सुदर्शन साहू को मूर्तिकला के क्षेत्र में सम्मान दिया गया।

इसके अलावा 10 पद्म भूषण- केरल की कृष्णन नायर शांताकुमारी को कला (पाश्र्व गायन) के क्षेत्र में, असम के तरुण गोगोई को मरणोपरांत, पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान (बिहार) को मरणोपरांत, गुजरात के केशुभाई पटेल को मरणोपरांत, हरियाणा के तरलोचन सिंह और मध्य प्रदेश की सुमित्रा महाजन को सार्वजनिक मामलों के लिए, कर्नाटक के चंद्रशेखर कंबरा को साहित्य एंव शिक्षा के क्षेत्र में, उत्तर प्रदेश के नृपेंद्र मिश्र को नागरिक सेवाओं के लिए, उत्तर प्रदेश के कल्बे सादिक को मरणोपरांत अध्यात्म के क्षेत्र में एवं महाराष्ट्र के रजनीकांत देवीदास को उद्योग के क्षेत्र में सम्मानपूर्वक महामहिम राष्ट्रपति के हाथों दिये गये।

इसी तरह पद्मश्री पाने वाले 102 लोगों में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कर्नाटक की तुलसी गौड़ा, महाराष्ट्र की राहीबाई सोमा पोपेर और राजस्थान के हिम्मताराम भांभू जी को पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में, मंजम्मा जोगतन को कला के क्षेत्र में, शिक्षा के क्षेत्र में मंगलोर के हरेकाला हजब्बा, समाज कल्याण के लिए अयोध्या के मोहम्मद शरीफ़, कला के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के गुलफाम अहमद के अलावा करतार पारस राम सिंग, बॉम्बे जयश्री, बालन पुठेरी, अंशु जमसेनपा, श्रीकांत डालर, दुलारी देवी, भूपेंद्र कुमार सिंह संजय, चरन लाल सपरू, मंगल सिंह हाजोवेरी, करतार सिंह, अली मानिकफन, सुब्बु अरुमुगम, क़ाज़ी सज्जाद अली ज़ाहिर, मौमा दास, पी.वी. सिंधु, मेरी कॉम, आनंद महिंद्रा, पंडित छन्नूलाल मिश्र, कंगना रनोट और सिंगर अदनान सामी के अलावा अन्य 75 लोग शामिल रहे।

ग़ौरतलब हो की विभिन्न क्षेत्रों में विशेष योगदान देने वालों को देश के राष्ट्रपति द्वारा पद्म विभूषण सम्मान से, असाधारण और प्रतिष्ठित सेवा के लिए पद्म भूषण एवं उच्च क्रम की विशिष्ट सेवा और किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट सेवा के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया जाता है।

पद्मश्री मंजम्मा जोगतन का संघर्ष

भारत देश के दक्षिण के 7 तालुका वाले ज़िला बेल्लारी है। कुल 8,461 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल और दो लाख 63 हज़ार से अधिक आबादी वाले इस ज़िले में 13 क़स्बे और 552 गाँव हैं। प्रति 1000 पुरुषों पर 983 महिलाओं वाले इस ज़िले में एक बड़ी आबादी अनपढ़ और पिछड़ी है।

ऐसे ही लोगों में से बेल्लारी ज़िले के कल्लुकम्बा गाँव में हनुमंतैया और जयलक्ष्मी के परिवार में 18 अप्रैल, 1964 में जन्मीं एक जोगतीन (जोगनिया ) मंजम्मा जोगती उर्फ़ मंजुनाथ शेट्टी ने भारतीय कन्नड़ थिएटर अभिनेत्री, गायिका और उत्तरी कर्नाटक के लोकनृत्य जोगती नृत्य में ख़ुद को स्थापित किया। लेकिन उन्होंने जिन परिस्थितियों में ख़ुद को स्थापित किया, वह क़ाबिल-ए-तारीफ़ है।  एक भगोड़े भिखारी से लेकर लोक कला के राज्य के शीर्ष संस्थान का नेतृत्व करने तक की मंजम्मा की असाधारण जीवन कहानी अब  स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा है।

पद्मश्री मिलने के बाद ख़ुशी के आँसू आँखों में भरकर मंजम्मा बोलीं कि इस प्यार और प्रशंसा ने मुझे अभिभूत कर दिया है। मैंने अपना पूरा जीवन इस स्वीकृति और प्यार के लिए तरसते हुए बिताया है। वह कहती हैं जब मैं पहली बार इस कुर्सी पर (पद्मश्री सम्मान के लिए) बैठी तो मेरे हाथ काँप रहे थे। मैं वहाँ विपरीत दिशा में बैठी थी और तत्कालीन राष्ट्रपति को नमस्ते सर! कहने में भी घबरा जा रही थी। मेरे जैसे किसी ने कभी इस तरह आसमान तक पहुँचने का सपना कैसे देखा होगा?

अकल्पनीय दर्द झेल चुकीं मंजूनाथ ने एक महिला के रूप में पहचान बनानी शुरू की, इससे पहले उनके पास न तो तन ढकने के लिए ठीक से कपड़े थे और न पेट भरने के लिए रोटी का इंतज़ाम था। वह एक तौलिया के बराबर कपड़ा लपेटकर रहती थीं। उन्हें कामों में अपनी माँ की मदद करना, स्कूल की लड़कियों के साथ रहना, नाचना और कपड़े पहनना पसन्द था। उनके जीवन में विकट कष्ट रहे, प्रताडि़त की गयीं और एक समय ऐसा आया जब उन्होंने आत्महत्या तक की कोशिश की। एक समय ऐसा भी आया वह घर छोडक़र चली गयीं और पेट भरने के लिए भीख माँगने लगीं। एक दिन छ: लोगों ने उसके साथ बलात्कार करके लूट लिया। इस बार भी उनके मन में कई विचार कौंधे, कभी सोचा कि बलात्कारियों को मार दें, तो कभी सोचा कि आत्महत्या कर लें। लेकिन फिर दावणगेरे के पास एक बस स्टैंड पर उन्होंने एक पिता-पुत्र को लोकगीत गाते और नाचते देखा। बस यहीं से उन्होंने ठान लिया कि उन्हें नृत्य में कुछ बड़ा करना है। मंजम्मा को तब यह नहीं पता था कि कला उनके जीवन में अधिक परिवर्तनकारी भूमिका निभायेगी। एक साथी जोगप्पा ने उसे हागरिबोम्मनहल्ली के एक लोक कलाकार कलव्वा से मिलवाया। इस पर मंजम्मा का कहती है कि मुझे आज भी वह दिन याद है, जब कलव्वा ने मुझे उसके सामने नृत्य करने के लिए कहा था; जिसे आप लोग ऑडिशन कहते हैं। उसने मेरे चेहरे पर मेकअप करने के लिए किसी को लिया और मुझे याद है कि मैं आईने को देख रही थी और बहुत शर्मिंदगी  महसूस कर रही थी। मैं बहुत साँवली थी और इस मेकअप ने मुझे गोरा और सुन्दर बना दिया था। मैंने कलव्वा गाते हुए नृत्य किया। जल्द ही उसने मुझे नाटकों में छोटी भूमिकाओं के लिए और फिर बड़ी मुख्य भूमिकाओं के लिए भी आमंत्रित करना  शुरू कर दिया। मेरे जीवन को विस्तार देने में मेरे माता-पिता की बड़ी भूमिका रही है।

बता दें कि मंजम्मा को सन् 2010 में राज्योत्सव पुरस्कार से नवाज़ा गया। सन्  2019 में वह लोक कला के लिए मंजम्मा कर्नाटक जनपद अकादमी का नेतृत्व करने वाली पहली ट्रांसवुमन बनीं। जनवरी, 2021 में भारत सरकार ने लोक कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार की घोषणा की।

कंगना का बड़बोलापन

बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत ने पद्मश्री सम्मान लेने के दौरान जिस तरह का बयान दिया, उसकी हर तरफ़ जमकर निंदा हो रही है। उन्होंने अपने बयान कि ‘1947 में तो भीख में आज़ादी मिली थी, असली आज़ादी तो 2014 में मिली है’ न केवल देश, बल्कि देश की आज़ादी के लिए लडऩे और शहीद होने वाले बलिदानियों का भी अपमान किया है। सबसे ज़्यादा दु:खद उनके इस बयान पर राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक चुप्पी साधे रहे। भला ऐसे बयान देने वाले व्यक्ति को देश के सर्वोच्च लोग सुन कैसे सके? यह सवाल उनसे ही पूछा जाना चाहिए।  हालाँकि जागरूक बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों, आम लोगों ने सोशल मीडिया पर उन्हें बुरी तरह घेरा है। वहीं भाजपा सांसद वरुण गाँधी ने कंगना को आड़े हाथों लेते हुए लिखा कि यह एक राष्ट्र विरोधी कार्य है और इसे इस तरह से बाहर किया जाना चाहिए। लेकिन कंगना ने उनके इस बयान पर पलटवार करते हुए उन्हें महात्मा गाँधी के कटोरे में भीख मिली जैसी बात कहकर उन्हें बहस के लिए उकसाने का काम किया। सवाल यह है कि आख़िर कंगना रनौत किससे बूते इतना उछल रही हैं कि वह यह तमीज़ भी भूल गयीं कि देश के बलिदानियों का सम्मान करना भी भूल गयीं? कंगना की इस हरकत के लिए आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य प्रीति शर्मा मेनन ने कंगना के बयान को देशद्रोही और भडक़ाऊ करार देते हुए मुम्बई पुलिस को एक आवेदन प्रस्तुत किया है, जिसमें उन्होंने भारतीय दण्ड संहिता की धारा-504, 505 और 124(ए) के तहत अभिनेत्री के देशद्रोही और भडक़ाऊ बयानों के लिए कार्रवाई का अनुरोध किया है। कंगना के ख़िलाफ़ अन्य कई एफआईआर दर्ज करायी गयी हैं।

दिल्ली-एनसीआर: सड़कों पर कचड़ा जलाने से प्रदूषण में इजाफा

दिल्ली में लगातार बढ़ता प्रदूषण का कहर लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहा है। अगर समय रहते दूषित –प्रदूषित पर काबू नहीं पाया गया तो, आने वाले दिनों में लोगों का घरों से निकलना मुश्किल होगा।

सबसे दुखद बात तो यह है कि, सुप्रीम कोर्ट से लेकर दिल्ली सरकार ने प्रदूषण को काबू करने के लिये सरकारी दफ्तर से लेकर स्कूलों तक को एक सप्ताह बंद कर दिया है।

उसके बावजूद आज भी खुले आम सड़कों में दूषित कचड़े को जलाया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि, कोई आम आदमी इस कचड़े को जला रहा है। बल्कि सफाई कर्मचारी खुल कर जला रहे है। जिसकी वजह से कचड़े से निकला धुआं दिल्ली शहर के पर्यावरण को दूषित कर रहा है।

मौजूदा समय में वायु प्रदूषण को लेकर दिल्ली में सियासत जमकर हो रही है। पर प्रदूषण को रोकने के लिये कोई कारगर राजनीति नहीं हो रही है। इस कारण दिल्ली में दूषित वातावरण दिन व दिन बढ़ता ही जा रहा है।

दिल्ली में टूटी-फूटी सड़को के कारण जगह–जगह धूल भी प्रदूषण को बढ़ा रही है। समाजसेवी व सैल्यूट तिरंगा के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष राजकुमार सिंह ने बताया कि, दिल्ली सहित जो एनसीआर में वायु प्रदूषण का कहर बढ़ा है। इस कहर पर लोगों में पर्यावरण से संबंधित जागरूकता के चलते ही इस गंभीर प्रदूषण समस्या पर काबू पाया जा सकता है।

लोगों को अपने घरों के आस-पास कचड़ें को जलाने पर रोक लगाना चाहिये और सरकार को भी कड़ाई से इस नियम का पालन करवाना चाहिये।

त्रिपुरा में हिरासत में लीं दो महिला पत्रकारों को मिली जमानत, रिहा की जाएंगी

उत्तर पूर्व के त्रिपुरा में रविवार को हिरासत में ली गईं दो महिला पत्रकारों को स्थानीय अदालत से जमानत मिलने के बाद रिहा करने के आदेश हुए हैं। त्रिपुरा आईं इन महिला पत्रकारों को राज्‍य में हाल की सांप्रदायिक घटनाओं पर रिपोर्ट लिखने के कारण असम पुलिस ने हिरासत में लिया था। दोनों महिला पत्रकारों ने त्रिपुरा पुलिस पर उन्हें डराने-धमकाने का आरोप भी लगाया था।

त्रिपुरा में जिला के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने दोनों जमानत दे दी। एचडब्ल्यू न्यूज नेटवर्क पत्रकार समृद्धि सकुनिया और स्वर्ण झा पर विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने आरोप लगाया था कि हिंसा पर अपनी रिपोर्ट से इन पत्रकारों ने त्रिपुरा की छवि को ठेस पहुंचाई है। विहिप के एक कार्यकर्ता ने इसे लेकर पुलिस में शिकायत की थी जिसके बाद त्रिपुरा के फातिक्रोय थाने की पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया था।

अब उन्हें जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए गए हैं। यह पत्रकार राज्‍य में हुई सांप्रदायिक हिंसा को कवर करने त्रिपुरा आई हैं। उन्हें असम-त्रिपुरा बार्डर पर  करीमगंज नीलम बाजार में हिरासत में लिया गया था।

उनको हिरासत में लेने की एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) और इंडियन वुमेन प्रेस कॉर्प्स (आईडब्ल्यूपीसी) ने कड़ी निंदा की थी। ईजीआई ने एक बयान में कहा – ‘एडिटर्स गिल्ड इस कार्रवाई की निंदा करता है और उनकी तत्काल रिहाई और यात्रा करने की उनकी स्वतंत्रता की बहाली की मांग करता है। उधर आईडब्ल्यूपीसी ने भी दोनों पत्रकारों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की निंदा करते हुए उन्हें बिना डर या दबाव के काम करने देने को कहा था।

दोनों महिला पत्रकारों ने त्रिपुरा पुलिस पर उन्हें डराने-धमकाने का आरोप भी लगाया था। पुलिस के मुताबिक इन महिला पत्रकारों को रात में सरकारी महिला आश्रय गृह में रखा गया था और सोमवार सुबह त्रिपुरा पुलिस को सौंप दिया गया। पत्रकारों को  सिलचर हवाई अड्डे के रास्ते में हिरासत में लिया गया था। असम पुलिस के मुताबिक  त्रिपुरा पुलिस ने उसे दोनों पत्रकारों को हिरासत में लेने को कहा था।

प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- केंद्र सरकार कल आपात बैठक बुलाए

राजधानी दिल्ली में लोगों की जान हलक में डाल चुके प्रदूषण को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को दिल्ली सरकार पर सवाल उठाये साथ ही प्रदूषण काबू करने के लिए दिल्ली-एनसीआर में हफ्ते भर का लॉकडाउन रखने के लिए केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों से विचार करने को कहा।

सर्वोच्च अदालत में दिए अपने हलफनामे में दिल्ली सरकार ने पूर्ण लॉकडाउन लगाने पर सहमति दी लेकिन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में लॉकडाउन की जरूरत जताई। सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत  ने प्रदूषण का ठीकरा किसानों पर फोड़ने पर दिल्ली सरकार को फटकार लगाई।

दिल्ली सरकार ने अपने हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह राजधानी में पूरी तरह से लॉकडाउन लगाने के लिए तैयार है। केजरीवाल सरकार ने, हालांकि, कहा कि यह तभी प्रभावी होगा, यदि दिल्ली से सटे एनसीआर के इलाकों में भी लॉकडाउन लगाया जाए। सर्वोच्च अदालत ने अब इस मामले पर सुनवाई बुधवार के लिए निश्चित की है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण का ठीकरा किसानों पर फोड़ने को लेकर दिल्ली सरकार को फटकार भी लगाई। अदालत ने कहा कि तमाम हलफनामे आए हैं। हमारा मत है कि प्रदूषण का मुख्य कारण उद्योग, वाहन और निर्माण गतिविधियां हैं। पराली का रोल कुछ जगह है। टास्क फोर्स कदम उठा रही है, लेकिन आगे कौन सा कदम उठाने जा रही है ये नहीं बताया।

सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने आदेश दिया कि केंद्र सरकार को मंगलवार को एक आपात बैठक बुलाए। अदालत न कहा – ‘इसमें यह तय हो कि क्या कदम उठाने हैं, जैसा सुनवाई में बात हुई है और उस पर अमल हो। ये बात कही गई है कि पराली का प्रदूषण में ज्यादा योगदान नहीं लेकिन हम पंजाब और हरियाणा की सरकारों से  कहेंगे कि वह किसानों से दो हफ्ते तक पराली न जलाने को कहें।

इससे पहले दिल्ली सरकार ने सर्वोच्च अदालत में पेश किये हलफनामे में कहा कि वह स्थानीय कारवां उत्सर्जन नियंत्रित करने के लिए पूर्ण लॉकडाउन जैसे कदम उठाने को तैयार है, हालाकि, यह ज्यादा सार्थक होगा यदि पड़ोसी राज्यों के एनसीआर क्षेत्रों में भी इसे लागू किया जाए। साथ ही दिल्ली सरकार ने सर्वोच्च अदालत के निर्देशों के बाद उठाए कदमों पर जानकारी उसके सामने पेश की।

दिल्ली सरकार ने कहा – ‘हमने 13 नवंबर को आपात बैठक आयोजित की। इस हफ्ते स्कूलों में शारीरिक तौर पर कोई कक्षाएं नहीं होंगी। हफ्ते तक सरकारी अधिकारी भी घर से ही काम करेंगे और निजी कार्यालयों को भी वर्क फ्रॉम होम की सलाह दी गई है। सरकार ने निर्माण कार्य भी 3 दिन तक स्थगित रखने की बात की है।

दिल्ली में जारी निर्माणाधीन का काम, उड़ाई जा रही धज्जियां

दिल्ली सरकार ने भले ही वायु प्रदूषण के बढ़ते कहर को देखते हुये दिल्ली के सभी स्कूलों और सरकारी दफ्तरों के साथ–साथ निर्माणाधीन काम को बंद करने का आदेश दिया है। ताकि वायु प्रदूषण पर काबू पाया जा सकें।

लेकिन दिल्ली के कई इलाकों में आज भी चोरी-छिपे मकानों का निर्माण का काम चल रहा है। जिससे धूल जमकर फैल रही है।

बतातें चलें, दिल्ली में दिल्ली सरकार के अलावा, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) और एनडीएमसी है। दिल्ली सरकार में आप पार्टी की सरकार है तो, एमसीडी में भाजपा है।

ऐसे में सियासी तौर पर एक दूसरे के आदेश का पालन करने में आना-कानी करते है। इसी के कारण दिल्ली में निर्माणाधीन काम आसानी से बंद नहीं होता है। कई जगह दिल्ली में एससीडी के अधिकारियों के इशारे पर काम हो रहा है। पुलिस भी मूक दर्शक बनी देखती रहती है।

दिल्ली सरकार के एक अधिकारी ने बताया कि, दिल्ली में वायु प्रदूषण फैलने से तामाम तरह की दिक्कतें होती है। फिर भी जनता सरकार के आदेश की धज्जियां उड़ा रही है। सरकार का सहयोग जनता को करना चाहिये ताकि दिल्ली में वायु प्रदूषण के कहर से छुटकारा पाया जा सकें।

दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को लेकर दिल्ली में आने से कतरा रहे लोग

दिल्ली में फैलें वायु प्रदूषण को लेकर देश के अन्य राज्यों से आने वालों के बीच अजीब सी स्थिति है कि दिल्ली में जाये या फिर नहीं । क्योंकि दिल्ली में बढ़ता वायु प्रदूषण का स्तर इस कदर बढ़ रहा है। कि दिल्ली में आने से लोग कतरा रहे है।

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के लोगों का कहना है कि दिल्ली की मीडिया से जो जानकारी प्राप्त हो रही है। उससे तो लगता है कि दिल्ली में जाने से आँखों में जलन, अस्थमा और सांस जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है।

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के रहने वाले धीरज राज ने तहलका को बताया कि, दिल्ली देश की राजधानी है। इस लिहाज से देश के लोगों का आना-जाना लगा रहता है। पर सर्दियों के दिनों में हर साल दिल्ली में जो वायु प्रदूषण फैलता है इससे साफ है कि दिल्ली की शासन व्यवस्था ठीक नहीं है।

वहीं इलाहाबाद के रहने वाले प्रदीप सिंह का कहना है कि, जब देश की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण का कहर लोगों के जीवन के साथ खिलबाड़ कर रहा है। शासन –प्रशासन चुप है। कुछ भी कारगर कदम नहीं उठा रहा है।

कोरोना के बढ़ते मामले चिन्ताजनक

दिल्ली में कोरोना के मामलें ढ़ाई महीनें के बाद अचानक बढ़ने से चिकित्सा क्षेत्र में हड़कंप मच गया है। चिकित्सों का कहना है कि दिल्ली में डेंगू के कहर के साथ–साथ कोरोना के बढ़ते मामलें घातक साबित हो सकते है।

बताते चलें कि, ढ़ाई महीनें के बाद 62 कोरोना के नये मामलें और दो मौतें हुई है। जानकारों का कहना है कि कोरोना के अचानक मामलें अगर इसी तरह बढ़ते रहे तो हमें सावधान रहने की बेहद जरूरत है।

इंडियन हार्ट फाउंडेशन के चेयरमैन डाँ आर एन कालरा का कहना है कि, “लोगों की लापरवाही और बिना मास्क के लोगों के घूमने से कोरोना के मामलें बढ़े है। अगर ऐसी ही लापरवाही रही तो कोरोना को विकराल रूप धारण करने में ज्यादा देरी नहीं लगेगी।

मौजूदा समय में दिल्ली में डेंगू, कोरोना के साथ–साथ वायु प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के लिये काफी घातक है। मैक्स अस्पताल के कैथ लैब के डायरेक्टर डाँ विवेका कुमार ने बताया कि गले में दर्द और बुखार के साथ  बैचेनी हो तो उसे नजर अंदाज ना करें। क्योंकि बदलते मौसम में और कोरोना के प्रकोप में जरा सी लापरवाही घातक हो सकती है।

डाँ विवेका कुमार का कहना है कि, कोरोना का कहर लगभग थम सा गया था। लेकिन देश के कई राज्यों के साथ दिल्ली में कोरोना की मामूली सी बढ़त भी चिन्ता पैदा करती है। इसलिये सावधानी के तौर पर सोशल डिस्टेसिंग का पालन करें।

ग्रुप कप्तान जय किशन को दूसरी बार तेनज़िंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार

लाइफ टाइम उपलब्धियों के लिए हिमालय पर्वतारोहण संस्थान दार्जिलिंग के प्रिंसिपल ग्रुप कप्तान जय किशन को दूसरी बार तेनज़िंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार मिला है।

यह पहली बार है कि, किसी ‘सशस्त्र बल अधिकारी’ को यह ‘प्रतिष्ठित सम्मान’ मिल रहा है, अधिकारी ने माउंट एवरेस्ट में स्काईडाइविंग जंप करके उतरने के लिए विश्व रिकॉर्ड स्थापित करने के लिए एयरो स्पोर्ट्स श्रेणी के लिए उक्त पुरस्कार प्राप्त किया।

ग्रुप कैप्टन जय किशन वर्तमान में हिमालय पर्वतारोहण संस्थान दार्जिलिंग के प्राचार्य के पद पर तैनात हैं। वह एक उत्साही पैराशूट जंप इंस्ट्रक्टर और एक योग्य पर्वतारोही हैं।

उन्होंने साहसिक खेलों के क्षेत्र में छह विश्व रिकॉर्ड, एक एशियाई रिकॉर्ड और छह राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाए हैं। पिछले बीस वर्षों में उन्होंने भारत और विदेशों में 2000 से अधिक पैराशूट जंप किए हैं।

गौरब की बात यह है की, ग्रुप कप्तान ने अप्रैल 2021 के दौरान, उन्होंने सिक्किम हिमालय की चार चोटियों पर चढ़ाई-ए-थॉन अभियान का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया, जिसमें 125 प्रशिक्षु पर्वतारोहियों ने 125 घंटों में चार चोटियों पर चढ़ाई की और सिक्किम में माउंट रेनोक के ऊपर 7500 वर्ग फुट का विशाल भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया।

जबकि 125 की संख्या नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती को चिह्नित करती है, ध्वज का आकार, यानी 7500 वर्ग फुट, भारत की स्वतंत्रता के 75 गौरवशाली वर्षों का प्रतीक है।

उनकी वर्तमान उपलब्धि में माउंट एवरेस्ट पर स्काईडाइविंग के लिए विश्व रिकॉर्ड और राष्ट्रीय रिकॉर्ड, मार्सिमिक ला (पंगोगत्सो झील 186400 फीट) और किबिटू (अरुणाचल-चीन सीमा) से साइकिल अभियान, राजपथ, इंडिया गेट पर उल्टे पैराशूट का निर्माण, माउंट के ऊपर विनयसा योग, यूरोपीय उपमहाद्वीप के सबसे ऊंचे पर्वत एल्ब्रस (18600 फीट) का प्रदर्शन शामिल हैं।

आजादी का अमृत महोत्सव के बैनर तले उन्होंने दार्जिलिंग के 250 युवाओं को प्रशिक्षित किया और आपदाओं के समय समय पर सहायता प्रदान करने के लिए एक आपदा प्रतिक्रिया दल का गठन किया।

उन्होंने जनवरी 2021 में 75 घंटे के रिले सूर्य नमस्कार की कल्पना की और सफलतापूर्वक आयोजित किया, जिसमें 250 प्रतिभागियों द्वारा 250000 से अधिक सूर्य नमस्कार दोहराव के साथ, एक निर्धारित समय के भीतर सूर्य नमस्कार पुनरावृत्ति की उच्चतम संख्या का विश्व रिकॉर्ड बनाया।