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मुख्य मुक़ाबले में सपा और भाजपा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव-2022

उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव जितने नज़दीक आते जा रहे हैं, चुनावी सरगर्मी बढ़ती ही जा रही है। चैनलों के सर्वे एक तरफ़ भाजपा के हाथ में अगली कमान सौंपते दिख रहे हैं, वहीं भाजपा सरकार के प्रति लोगों का ग़ुस्सा चौथे आसमान पर दिख रहा है। जातिगत आँकड़ों की जोड़-तोड़ के अलावा दो मुख्य राजनीतिक दलों- सपा और भाजपा में नेताओं और विधायकों को तोडऩे की राजनीति चल रही है। जनाधार वाले नेता या तो भाजपा में जा रहे हैं या सपा में। जो भाजपा में नहीं जा सकते, उन्हें सपा में अपना भविष्य दिखायी दे रहा है। ज़ाहिर है कि बसपा और कांग्रेस पार्टी के कई जनाधार वाले नेता या तो सपा या फिर भाजपा में जा चुके हैं।

इसमें कोई दो-राय नहीं है कि चुनाव से पहले भाजपा की कोशिश है कि उन दलों में सेंधमारी की जाए, जिनके नेताओं का अपने क्षेत्र में अच्छा प्रभाव है। ज़ाहिर है कि यह भाजपा का परखा हुआ फॉर्मूला रहा है। इसीलिए 2022 के चुनाव में भाजपा अपने टेस्टेड फॉर्मूले को एक बार फिर आजमाने में जुटी है। लेकिन इस बार उसके निशाने पर समाजवादी पार्टी और उसके नेता हैं; क्योंकि पार्टी का लक्ष्य विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करना है। इसके अनेक उदाहरण पिछले चुनाव में आपको दिखायी पड़े थे, जिनमें अगर सन् 2016 की बात करें, तो बसपा से आये बृजेश पाठक, स्वामी प्रसाद मौर्य, भगवती सागर, ममतेश शाक्य, रोशनलाल, रोमी साहनी, रजनी तिवारी, राजेश त्रिपाठी थे। इसके अलावा समाजवादी पार्टी से अनिल राजभर, कुलदीप सिंह सेंगर, अशोक बाजपेई भाजपा में शामिल हुए थे। इसके बाद कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी और सपा के वरिष्ठ नेता नरेश अग्रवाल भी भाजपा में शामिल हुए थे।

हालाँकि नये क़द्दावर नेताओं को जोडऩे में समाजवादी पार्टी भी पीछे नहीं है, उसमें भी लगातार दूसरी पार्टी के नेताओं को शामिल किया जा रहा है। पिछले दिनों पूर्वांचल की सियासत में ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले हरिशंकर तिवारी के बेटे और विधायक विनय शंकर तिवारी, पूर्व सांसद कुशल तिवारी और भांजे गणेश शंकर पांडेय को समाजवादी पार्टी की सदस्यता दिलाते हुए अखिलेश यादव ने कहा था कि आज बहुत-ही प्रतिष्ठित परिवार के लोग सपा में शामिल हो रहे हैं। यहाँ देखने वाली बात यह होगी कि मुख्यमंत्री योगी के क्षेत्र गोरखपुर से आने वाले ये क़द्दावर नेता समाजवादी पार्टी में शामिल होने के बाद भाजपा को कितना नुक़सान पहुँचाते हैं।

सवाल यह है कि चुनाव जीतने की कोशिशें सत्ताधारी पार्टी भाजपा और सपा के बीच इस क़दर बढ़ गयी हैं कि अब हर तरह से दोनों पार्टियाँ मतदाताओं को लुभाने में जुटी हुई हैं। बाक़ी पार्टियाँ भी इसी कोशिश में हैं; लेकिन उन्हें पता है कि उनके हाथ क्या लगने वाला है। भाजपा की अगर बात करें, तो प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी मिलकर इन दिनों जनता को शिलान्यासों, उद्घाटनों के तोहफे देने में जुटे हैं। जो काम उन्हें अपने अब तक के कार्यकाल में कर लेना चाहिए था, उस सबकी याद चुनाव के दौरान आ रही है। हद तो यह तक है कि चुनाव जीतने के लिए कई दर्ज़न कैमरे लगाकर प्रधानमंत्री मोदी को दिसंबर के महीने में गंगा में डुबकी लगानी पड़ी।

इसके अलावा अगर दूसरे पहलू पर नज़र डाली जाए, तो इस समय देश में दो तस्वीरें हमारे सामने हैं। एक तो यह कि कोरोना महामारी का एक नया वायरस ओमिक्रॉन वारियंट देश में दस्तक दे चुका है और वह तेज़ी से फैल रहा है। दूसरी यह कि देश के प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और अन्य कई केंद्रीय मंत्री विधानसभा के चुनावों में अपनी पार्टी की जीत के लिए दिन-रात एक किये हुए हैं और उन्हें कोरोना के इस घातक ओमिक्रॉन वारियंट के बढऩे से जैसे मानो उन्हें कोई मतलब ही नहीं है।

तो क्या सरकार उस समय का इंतज़ार कर रही है, जब देश में पहले की तरह हर जगह इस वारियंट के मरीज़-ही-मरीज़ हों और दोबारा लॉकडाउन लगने की नौबत आ जाए? क्या चुनावी प्रचार इतना ज़रूरी है कि केवल पाँच राज्यों और उनमें भी महज एक राज्य उत्तर प्रदेश को मुख्य तौर पर जीतने के लिए पूरे देश को ख़तरे में डाल दिया जाए? इससे क्या हासिल होगा? अगर उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार दावा कर रही हैं कि उन्होंने पिछले पाँच साल में काम बहुत अच्छा किया है और प्रदेश में सबसे ज़्यादा विकास किया है, तो राज्य की जनता उन्हें चुन ही लेगी, इसमें दिन-रात डेरा डालकर देश भर की चिन्ता छोड़कर राज्यों में पड़े रहना केंद्र सरकार के लिए कितना उचित है? दूसरी बात प्रचार की रही, तो राज्य सरकार अपना देख लेगी, जैसे दूसरी राजनीतिक पार्टियाँ अपना प्रचार करती हैं। वैसे ही राज्य स्तर की कोर चुनाव की ज़िम्मेदारी सँभालने के लिए है ना!

दूसरा पार्टी अध्यक्ष ख़ुद समझ लेंगे कि कहाँ, कितना समय उन्हें देना है? इसमें केंद्र सरकार के मंत्रियों को राज्य में जीत के लिए दिन-रात एक करना और डेरा जमा लेना क्या देश के अन्य राज्यों के साथ धोखा नहीं है? किसी विद्वान ने कहा है कि एक मोहल्ले को बचाने के लिए एक आदमी की, एक गाँव को बचाने के लिए एक मोहल्ले की, एक ज़िले को बचाने के लिए एक गाँव की, एक राज्य को बचाने के लिए एक ज़िले की और एक देश को बचाने के लिए एक राज्य की अगर बलि भी देनी पड़े, तो दे देनी चाहिए। क्योंकि बड़े बचाव के लिए छोटी क़ुर्बानी देने से काम चले, तो उसे स्वीकार करना चाहिए।

आज ओमिक्रॉन की चपेट में पूरा देश ही है, ऐसे में इंसानियत और राज धर्म यही कहता है कि प्रधानमंत्री और उनकी टीम को राज्य में पार्टी प्रचार-प्रसार छोड़कर देश को बचाना चाहिए और यही उनका धर्म भी है। क्योंकि देश की जनता ने उन्हें देश के लिए चुना है, न कि अपनी पार्टी के प्रचार के लिए। बहरहाल फ़िलहाल प्रदेश में राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ता जा रहा है। जानकारों का मानना है कि धीरे-धीरे प्रदेश की राजनीति दो ध्रुवों में बदलने जा रही है। हालाँकि इस ध्रुवीकरण के बाद भी बसपा को 15 फ़ीसदी से 16 फ़ीसदी वोट मिलने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता, जबकि राष्ट्रीय सियासी दल कांग्रेस भी कम-से-कम 4 से 5 फ़ीसदी वोट पश्चिम बंगाल की तरह अवश्य पाएगी। इसके अलावा 5 फ़ीसदी वोट में निर्दलीय तथा अन्य छोटे दल सेंध लगाने में कामयाब होते दिखायी दे रहे हैं।

इस स्थिति में मुख्य मुक़ाबला शेष बचे 70 फ़ीसदी वोट बैंक के लिए होगा, जो क़रीब 36 फ़ीसदी के आँकड़े को पार करेगा। उस दल की ही सरकार बनेगी, जो 36 फ़ीसदी वोटों को पार कर जाएगा। हालाँकि फ़िलहाल इस आँकड़े में भारतीय जनता पार्टी मामूली बढ़त के साथ ऊपर दिखायी दे रही है। लेकिन सपा से उसे पूरी चुनौती मिल रही है और भाजपा नेताओं को सपा से हार का डर दिन-रात सता रहा है। फ़िलहाल सपा-रालोद गठजोड़ को जाटव दलित के अलावा यादव जाट पिछड़ा और अगड़ा वोट बहुत कम मिलता दिखायी पड़ रहा है। जबकि गठजोड़ को मुसलमानों अधिकांश वोट मिलता दिख रहा है। परन्तु गठजोड़ के दोनों प्रमुख दलों के जाट एवं यादव मतदाताओं के 20 से 40 फ़ीसदी वोट सत्ताधारी दल भाजपा में जाते प्रतीत हो रहे हैं। जिससे गठजोड़ को नुक़सान होने की सम्भावना है।

ज़ाहिर है पिछले दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गढ़ मेरठ की परिवर्तन सन्देश रैली में सपा-रालोद के दोनों युवा नेताओं की एक झलक पाने के लिए भारी जन-सैलाब उमड़ा था। लेकिन यहाँ सवाल यह खड़ा हो जाता है कि इतनी बड़ी रैली होने के बावजूद क्या रैली में आये लोग इन पार्टियों के गठजोड़ से एकमत हो पाएँगे? क्योंकि अक्सर देखा गया है कि चुनाव के दौरान बड़ी-बड़ी रैलियाँ होती हैं; लेकिन चुनाव के समय जब मतदान होता है, तो उतना मतदान नहीं होता, जितने की उम्मीद की जाती है। तो क्या यह कहना सम्भव है कि रैलियों में जो भीड़ आ रही है, वह मतदाता भी बनेगी? इसके लिए हमें चुनाव का इंतज़ार करना होगा।

उत्तर प्रदेश की राजनीति को क़रीब से जानने वाले सामाजिक कार्यकर्ता एवं वरिष्ठ पत्रकार राजीव सैनी बताते हैं कि भाजपा हर हाल में 34 फ़ीसदी वोट के क़रीब पाती दिख रही है। ऐसे में सपा-रालोद गठजोड़ भी हालत में 38 फ़ीसदी वोट लिए बग़ैर भाजपा को नहीं हरा पाएगा। क्योंकि सपा-रालोद के उम्मीदवार कुछ चुनिंदा सीटों पर बहुत बड़े भरी अन्तर से जीतते प्रतीत हो रहे हैं। जबकि भाजपा के उम्मीदवार अधिकांश सीटों पर बहुत छोटे अन्तर से जीत दर्ज करते दिख रहे हैं।

इस अन्तर को मिटाने के लिए भाजपा के मुक़ाबले चार फ़ीसदी अधिक वोट लाना नितांत आवश्यक है। हालाँकि प्रदेश की जनता में भाजपा की योगी सरकार के प्रति क़रीब 75 फ़ीसदी से अधिक विरोधी लहर (एंटी इनकंबेंसी) होने के बावजूद समाजवादी पार्टी के पिछले शासनकाल में यादववाद, भाई-भतीजावाद एवं मुस्लिम परस्ती होने के कारण अभी तक जीत की स्थिति बनती नज़र नहीं आ रही है। जानकार इस के दो बड़े कारण गिना रहे हैं, जिनमें पहला है प्रदेश की जनता को समाजवादी के घोषणा-पत्र से सीधा-सीधा सा प्रतीत नहीं हो रहा है कि उनके लिए क्या होगा और उसके लिए क्या किया जाएगा? दूसरा, प्रदेश की शत-प्रतिशत आबादी तक इस गठगोड़ के लोग वोट माँगने नहीं पहुँच पा रहे हैं। कई लोग ज़मीन पर संगठन का न होने को इसका बड़ा कारण मान रहे हैं। लोगों का मानना यह है कि प्रदेश के 70 से 75 फ़ीसदी लोग भाजपा की विरोधी लहर के चलते इस गठजोड़ को जिताना चाहते हैं; लेकिन इन दलों के नेता जनता के बीच पूरी पैठ नहीं बना पा रहे हैं।

इसलिए फ़िलहाल मामूली अन्तर से ही सही सपा-रालोद गठगोड़ चुनावी जंग पिछड़ रहा है। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी द्वारा तीन कृषि क़ानूनों को वापस लेने के बाद किसानों की नाराज़गी कुछ हद तक कम होने के बाद भाजपा मामूली बढ़त बनाती दिखायी दे रही है। हालाँकि साफ़तौर पर अभी कुछ भी कहना उचित नहीं है। उत्तर प्रदेश में राजनीतिक ऊँट किस करवट बैठेगा, इसके लिए चुनावी परिणाम आने तक इंतज़ार करना होगा।

(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक सम्पादक हैं।)

फिर वही बसों में परेशानी

कोरोना के बढ़ते कहर को देखते हुये दिल्ली सरकार ने कोरोना विरोधी कदम उठाये के साथ-साथ तमाम पाबंदियां भी लगाई है। जिसका दिल्ली वासियों ने स्वागत किया है। लेकिन परिवहन व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। दिल्ली परिवहन निगम की बसों के लिए सरकार ने सख्त आदेश भी जारी किया है इस आदेश के अनुसार प्रत्येक बस में 20 से अधिक लोगों के यात्रा की अनुमति नहीं दी गर्इ है।

सराकर के इस आदेश के बाद से बसों में दैनिक यात्रियों को यात्रा करने में काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। खासतौर पर दफ्तर के लिए बस से आवागमन करने वाले यात्रियों को घंटे भर इंतजार के बाद मिली बस से दफ्तर पहुंचने में घंटो की देरी से पहुंच रहे है। जिससे उन्हें दफ्तर में कर्इ दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

लोगों का कहना है कि दिल्ली सरकार की जो भी बसें है, उनमें तो 20 से अधिक लोग यात्रा नहीं कर सकते है। जबकि प्राईवेट बस वाले यात्रियों को ठूस–ठूस कर यात्रा करवा रहे है। और कोरोना विरोधी नियमों की धज्जियां उड़ा रहे है साथ ही जम कर औने–पौने दाम यात्रियों से वसूल रहे है। बस में यात्रा करने वाले संतोष कुमार और जगत कुमार ने बताया कि सरकार तो सीधा आदेश जारी कर देती है। लेकिन पहले से उसका विकल्प तैयार नहीं करती है। जिसके चलते लोगों को परेशानी होती है। उनका कहना है कि मासिक पास बनवाया है। बसों में जगह न मिलने से उनको अब आँटो से यात्रा करने को मजबूर होना पड़ रहा है।

लोगों का कहना है कि जब भी दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ा है तब ही दिल्ली सरकार ने प्राईवेट बसों को सड़कों पर ऊतारा है, ताकि लोगों को यात्रा करने में किसी प्रकार की दिक्कत का सामना न करने पड़े, उसी तरह लोगों की मांग है कि प्राईवेट बसों को फिर से उतारा जाये ताकि लोगों को अपने गतंव्य स्थान और आँफिस में आने–जाने में परेशानी न हो। जानकारों का कहना है कि बसों में तो सरकार कोरोना को रोकना चाहती है। जबकि बस स्टैण्डों में सैकड़ो लोगों की भीड़ भी तो संक्रमण बढ़ा सकती है। इसलिये सरकार को कोई विकल्प तो सकारात्मक निकालना ही होगा।

राहुल गांधी कांग्रेस की कमान थामने को तैयार: मधुसूदन मिस्त्री

अगले साल सितंबर तक कांग्रेस पार्टी अंतरिम अध्यक्ष से अपना नया अध्यक्ष चुनने में समर्थ होगी। पार्टी 2024 में नए चेहरे के साथ चुनाव में जाना चाहती है और पार्टी सूत्रों का दावा है कि राहुल गांधी कांग्रेस की कमान थामने को तैयार हो गए है। पिछले कई सालों से अध्‍यक्ष पद को लेकर चल रही चर्चा पर अब कांग्रेस पार्टी बहुत जल्‍द विराम लगाने के लिए तैयार हो गर्इ है।

कांग्रेस संगठन चुनाव प्राधिकरण के अध्यक्ष वो गुजरात से पूर्व सांसद मधुसूदन मिस्त्री ने इशारों में कहा है कि राहुल गांधी पार्टी चुनाव के माध्यम से अगले साल सितंबर तक कांग्रेस अध्‍यक्ष का पद संभाल लेंगे। सोनिया गांधी के साथ लम्बी बैठक के बाद मिस्त्री ने कहा कि सितंबर तक पार्टी अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। पार्टी के केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री ने सोनिया गांधी को चुनाव प्रक्रिया की प्रगति रिपोर्ट भी सौंपी है।

कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने को तैयार हो गये है। अबतक पार्टी के अध्‍यक्ष पद की जिम्मेदारी अंतरिम अध्यक्ष के नाते सोनिया गांधी संभाल रही थी। पार्टी ने अक्टूबर में ही घोषणा कर दी थी कि अध्यक्ष पद के लिए अगस्त और सितंबर के बीच चुनाव होगा। पार्टी सूत्रों का दावा है कि राहुल गांधी कांग्रेस की कमान थामने को तैयार हो गए है, इसका मतलब है कि राहुल की कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ताजपोशी बस औपचारिकता मात्र रह गई है।

सूत्रों के मुताबिक अगर राहुल गांधी अध्‍यक्ष पद के लिए खड़े होते है तो कोई भी उनके खिलाफ पर्चा दाखिल नहीं करेगा। और यदि अध्‍यक्ष पद के लिए चुनाव कराने की नौबत आई तो भी राहुल गांधी का अध्यक्ष बनना तय है। साल 2019 की हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और बाद में सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया था। कोरोना के चलते पार्टी में अध्‍यक्ष पद की संगठन चुनाव नहीं हो पा रहा थे लेकिन अब पार्टी ने नया अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया और समयसीमा तय कर ली है।

मधुसूधन मिस्त्री ने बताया कि, जहां तक अध्यक्ष के रूप में उनके नाम का सवाल है तो मैं किसी एक नाम के बारे में नहीं बोल सकता लेकिन यह देखना होगा कि कितने लोग चुनाव लड़ रहे हैं, उसी पर निर्भर करेगा कि चुनाव कैसा होगा।

CWC ने अक्टूबर में ही बैठक की थी, जिसमें आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों समेत कई मुद्दों पर चर्चा की गई थी। मिस्त्री ने बताया कि सदस्यता अभियान को 31 मार्च तक खत्म कर लिया जाएगा, ब्लॉक समितियों के चुनाव 1 अप्रैल 2022 से शुरू हो जायेगा। अध्यक्ष के चुनाव के बाद AICC का सेशल बुलाया जाएगा जिसमें CWC के चुनाव को लेकर फैसला होगा।

पहाड़ी औषधियों में तमाम रोगों का उपचार: आयुर्वेद

एक ओर कोरोना दूसरी ओर वायु प्रदूषण का कहर लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाल रहा है। जिसके कारण लोगों को बेवजह सूखी खांसी हो रही है। सरिता विहार स्थित अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआईआईए) के आयुर्वेद विशेषज्ञों का कहना है कि पहाड़ी इलाके में मिलने वाली जूफा औषधि प्रदूषण या फिर प्रदूषित कणों के बचाव में काफी बेहत्तर काम करती है।

जूफा के साथ तुलसी, लौंग, वासा, पिपलि, गोजिहा, दालचीनी, कटेली, बहेडा, अंजीर, उनाब इत्यादि के मिश्रण का सेवन करने से खांसी और कफ से आराम मिलता है। इन्ही औषधियों को मिलाकर एमिल फार्मास्युटिकल्स ने ज्यूफेक्स फोर्ट सीरप बनाया है। जिसका सेवन गुनगुने पानी के साथ किया जा सकता है।

एआईआईए के सीनियर डॉ शांतनु कुमार का कहना है कि इस समय दिल्ली–एनसीआर में प्रदूषण से लोग एंटी एलर्जी के शिकार हो रहे है। जिससे खांसी, कफ, बुखार, सिरदर्द इत्यादि के लक्षण होते है। अगर समय रहते इसका उपचार न कराया जाये तो संक्रमण में तब्दील हो सकते है।

दिल्ली नगर निगम के सीनियर आयुर्वेद चिकित्सा अधीक्षक डाँ आर पी पाराशर का कहना है कि जूफा,तुलसी, भृंगराज इत्यादि औषधि कफ को बाहर निकालने में मदद करती है। साथ ही इन औषधियों से रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है।

बताते चलें, इन्ही आयुर्वेद औषधियों का सेवन लोगों ने कोरोना काल में किया था जिसका लोगों को काफी लाभ भी मिला था।आयुर्वेद डाक्टरों का दावा है कि जहरीली हवा में सूखी खांसी को जूफा रोक सकती है। डाँ शांतनु का कहना है कि घर हो या दफ्तर लोगों को प्रदूषण तामाम बीमारियोंकी चपेट में ले रहा है।

एम्स में 500 रूपये तक की निशुल्क जांच, मरीजों को मिलेगी राहत

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने 2017 में दिल्ली और अन्य राज्यों से आने वाले उन मरीजों के बीच अध्ययन करवाया था। जो इलाज के दौरान पैसों के अभाव में काफी परेशान रहते थे। तभी एम्स के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया ने केन्द्र सरकार से यह सिफारिश की थी कि मरीजों को राहत के तौर पर 500 रूपये की निशुल्क जांच मिलनी चाहिये।

लेकिन एम्स का यह प्रस्ताव केन्द्र सरकार में लटका रहा। अभी हाल में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ मनसुख मांडविया ने एम्स में दौरा किया था। तब भी  इसी बात से केन्द्रीय मंत्री को इस प्रस्ताव से अवगत कराया था। इसके बाद डाँ मांडविया ने एम्स की व्यवस्थाओं में सुधार के लिये एक समिति के जरिए जांच करने के निर्देश दिये थे।

एम्स के डॉ शिव चौधरी की अध्यक्षता में गठित समिति ने 500 रूपये तक की जांच निशुल्क करने की सिफारिश की थी। इसी सिफारिश पर केन्द्रीय मंत्री द्वारा ये अनुमति दी गयी कि  मरीजों को 500 रूपये तक की सभी चिकित्सीय जांच निशुल्क उपलब्ध होगी। इस फैसले के बाद एम्स में खून की जांच, एक्सरे, सीटी स्कैनव सहित 500 रूपये के भीतर आने वाली सभी जांच निशुल्क होगी। साथ ही मरीजों को जांच रिपोर्ट उसी दिन आँनलाईन उपलब्ध करायी जायेगी। एम्स के डाँक्टरों का कहना है कि वैसे तो मरीजों को एक हजार तक जांच फ्री होनी चाहिये।

देश के अधिकतर गरीब मरीज ही एम्स में इलाज कराने को आते है। एम्स में मरीजों की अधिक संख्या होने की वजह से उन्हें कई-कई दिनों तक एम्स में अन्य जांचों के लिये रूकना पड़ता है। जिससे उनका आर्थिक और काम का नुकसान होता है। एम्स प्रशासन और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को अभी और सुधार करने पर विचार करना। चाहिये ताकि मरीजों को ज्यादा से ज्यादा बेहत्तर स्वास्थ्य सेवायें मिल सकें।

दिल्ली में यलो अलर्ट घोषित, कर्फ्यू रात 10 बजे से, मॉल मेट्रो-बसों में आधे लोग ही

दिल्ली में कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों के बीच मंगलवार को ‘येलो अलर्ट’ जारी कर दिया गया है। तीन दिन पहले घोषित रात्रि कर्फ्यू 11 बजे की जगह अब 10 बजे से ही शुरू हो जाएगा और सुबह 5 बजे तक रहेगा। येलो अलर्ट जारी होने के बाद खरीददारी का समय सुबह 10 बजे से रात 8 बजे तक रहेगा।

दिल्ली में मॉल अब ऑड ईवन के आधार पर खुलेंगे और सुबह 10 बजे से रात 8 बजे तक खुले रहेंगे। दिल्ली में अगले आदेश तक सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स बंद कर दिए गए हैं।

राजधानी दिल्ली में कोरोना और उसके नए वेरिएंट के बढ़ते मामले को देखते हुए  मंगलवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उच्च स्तरीय बैठक के बाद येलो अलर्ट लागू करने का ऐलान किया। बता दें सोमवार को दिल्ली में 300 से भी ज्यादा कोरोना के मामले आए थे जबकि रविवार को दिल्ली में कोरोना के 290 नए मामले सामने आए जबकि एक रोगी की मौत हो गयी।

अब यलो अलर्ट के बाद कंस्ट्रक्शन एक्टिविटी तो जारी रहेंगी लेकिन दिल्ली सरकार के ऑफिस में ए ग्रेड 100 फीसदी स्टाफ को आना होगा, बाकी 50 फीसदी स्टाफ, प्राइवेट ऑफिस में 50 फीसदी स्टाफ, दुकानें ऑड इवन के आधार पर पर सुबह 10 से रात 8 बजे तक खुलेंगी। ऑड ईवन बेस पर मॉल सुबह 10 से रात आठ बजे तक खुलेंगे। हर जोन में 50 प्रतिशत वेंडर के साथ एक वीकली मार्केट ही चलेगी।

रेस्टोरेंट और बार 50 फीसदी क्षमता के साथ चलेंगेपब्लिक पार्क खुलेंगे। होटल खुलेंगे। बार्बर शॉप खुलेंगी। सिनेमाघर, थिएटर, बैंक्वेट हाल, जिम, एंटरटेनमेंट पार्क बंद रहेंगे। दिल्ली मेट्रो और बसों में सीटिंग कैपेसिटी के हिसाब से 50 फीसदी लोग सफर करेंगे लेकिन स्टैंडिंग की इजाजत नहीं।

नाइट कर्फ्यू रात दस से सुबह 5 तक रहेगा। स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स बंद, स्विमिंग पूल बंद,  ऑटो, ई रिक्शा में दो सवारी, टैक्सी- कैब, ग्रामीण सेवा, फटफट सेवा में दो सवारी, मैक्सी कैब में 5 सवारी, आरटीवी में 11 सवारी ही रहेंगी।

लुधियाना कोर्ट परिसर में हुए धमाके का आरोपी मुल्तानी जर्मनी में किया गिरफ्तार

पंजाब के लुधियाना में कोर्ट परिसर में पिछले हफ्ते हुए ब्लास्ट के मामले में आरोपी जसविंदर सिंह मुल्तानी को जर्मनी के एरफर्ट में गिरफ्तार कर लिया गया है। मुल्तानी जर्मनी में अतिवादी संगठन सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) से जुड़ा आतंकी है।

बता दें मुल्तानी का नाम लुधियाना बम धमाके की जांच शुरू होते ही सामने आ गया था। आरोप है कि मुल्तानी ने पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई  और पाकिस्तान स्थित गैंगस्टर हरविंदर सिंह रिंदा के जरिए इस धमाके की साजिश रची थी।

खबर है कि भारतीय एजेंसियां मुल्तानी को लेने जर्मनी जा सकती हैं। यह आरोप है कि मुल्तानी ने धमाके के लिए पंजाब पुलिस के बर्खास्त हेड कॉन्स्टेबल गगनदीप सिंह को जरिया बनाया था।

पंजाब पुलिस की जांच में अभी तक यह भी सामने आया है कि मुल्तानी कथित तौर पर देश के प्रमुख शहरों दिल्ली, मुंबई अदि में धमाके करने की साजिश रच रहा था।  इसकी भनक लगने के बाद केंद्रीय एजेंसियां उसकी लगातार टोह ले रही थीं। मुल्तानी पर पाकिस्तान के जरिए पंजाब बॉर्डर से भारत में हथियार और नशा तस्करी के भी आरोप हैं।

यह आरोप हैं कि मुलतानी खालिस्तान समर्थक अतिवादियों को हथियार मुहैया कराने में भी भूमिका निभा रहा था। याद रहे लुधियाना अदालत परिसर में विस्फोट की घटना पिछले गुरुवार हुई थी जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और छह लोग घायल हुए थे। विस्फोट जब हुआ था तब जिला अदालत की कार्यवाही चल रही थी। यह धमाका  अमृतसर के स्वर्ण मंदिर और कपूरथला के एक गुरुद्वारे में बेअदबी की कोशिश की घटनाओं के कुछ दिन बाद हुआ था। इन घटनाओं में दो लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी।

ओमिक्रोन को लेकर यदि और पाबंदी लगी तो होगी परेशानी

देश–दुनिया में बढ़ रहे कोरोना के नये स्वरूप ओमिक्रोन को लेकर हड़कंप मचा हुआ है। अनेकों प्रकार की समस्यायें लोगों की बढ़ रही है। तो, वही लोगों के बीच भय का आकार भी बढ़ रहा है। जब से दिल्ली में नाईट कर्फ्यू लगा है। तब से आम लोगों के साथ छात्रों, टीचरों और व्यापारियों के बीच भय का माहौल है।

दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन (आप पार्टी टीचर्स विंग) के अध्यक्ष डाँ हंसराज सुमन का कहना है कि जैसे-तैसे कोरोना का कहर कम हुआ था। काँलेज और स्कूल खुलने लगे थे। लेकिन अब फिर से कोरोना के नये स्वरूप ओमिक्रोन ने माहौल बिगाड़ दिया है। ऐसे में टीचर्स और छात्रों को स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहना रहने की जरूरत है। ताकि कोरोना का वायरस लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ न कर सकें।

व्यापारी गोकुल प्रसाद का कहना है कि कोरोना काल कब तक चलेंगा। ये कुछ कहा नहीं जा सकता है। क्योंकि दिल्ली बीते तीन दिनों से कोरोना के मामले बढ़ रहे है और नाईट कर्फ्यू भी बढ़ रहा है। ऐसे में अगर और पाबंदी बढ़ती है। तो निश्चित तौर पर बाजार प्रभावित होगा। पाबंदी के दौरान लोग खरीददारी कम करते है और घर से निकलने में बचते है जिसका असर सीधा बाजार पर पड़ता है।

सामाज सेवी आलोक गोसांई का कहना है कि, जब देश दुनिया में कोरोना महामारी जाने का नाम ही नहीं ले रही है। इसका मतलब साफ है कि कोरोना से अभी जंग बड़े स्तर पर लड़नी ही पड़ेगी। वैसे ही कोरोना ने लाखों लोगों को डसा है। लाखों लोगों को गंभीर रूप से बीमार किया है जिसके चलते अभी लोगों को कोरोना का इलाज कराना पड़ रहा है। जिसके चलते लोगों के रोजगार गये, लोगों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। अगर अब नाईट कर्फ्यू के साथ अन्य पाबंदियों से जूझना पड़ा तो निश्चित तौर पर काफी परेशानी होगी।

चुनावी राज्य हिमाचल में पीएम ने 11,000 करोड़ रुपये के शिलान्यास किए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को चुनावी राज्य हिमाचल प्रदेश में 11,000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण किया। इस मौके पर उन्होंने जनसभा में कहा कि आज देश में दो तरह के सरकार चलाने के मॉडल चल रहे हैं –  ‘एक सबका साथ, सबका विश्वास और दूसरा खुद का विकास’। पीएम मोदी का यह दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हाल के उपचुनावों में भाजपा को तीनों विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर शर्मनाक हार झेलनी पड़ी थी।

जनसभा से पहले मोदी ने 11,000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का शिलान्यास या लोकार्पण किया। उन्होंने 7,000 करोड़ की रेणुका बांध परियोजना और 1,800 करोड़ की 210 मेगावाट से अधिक की लुहरी चरण-1 पनबिजली परियोजना की आधारशिला रखी।

इसके अलावा 2,000 करोड़ रुपये की शिमला जिले की पब्बर नदी पर बनी 111 मेगावाट की सावड़ा कुड्डू पनबिजली परियोजना का लोकार्पण किया। पीएम ने 700 करोड़ रुपये से बनने वाली 66 मेगावाट की धौलासिद्ध पनबिजली परियोजना का भी शिलान्यास किया।

मोदी ने बाद में एक जनसभा में कहा – ”इस राज्य से भावनात्मक लगाव रहा है। आज मैं छोटा काशी आया हूं। चार साल में हिमाचल का काफी तेजी के साथ विकास हुआ है। डबल इंजन की सरकार से तेज विकास हो रहा है।’ पीएम ने विपक्ष पर हमला करते हुए कहा कि आज देश में दो तरह के सरकार चलाने के मॉडल चल रहे हैं।  एक सबका साथ, सबका विश्वास और दूसरा खुद का विकास।

उन्होंने कहा – ‘हर देश में अलग-अलग विचारधाराएं होती हैं, लेकिन आज हमारे देश के लोग स्पष्ट तौर पर दो विचारधाराओं को देख रहे हैं। एक विचारधारा विलंब की है और दूसरी विकास की। विलंब की विचारधारा वालों ने पहाड़ों पर रहने वाले लोगों की कभी परवाह नहीं की।’

इस मौके पर मोदी ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की पीठ थपथपाई और कहा कि उन्होंने और उनकी मेहनती टीम ने ‘हिमाचल वासियों के सपनों को पूरा करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है’. कहा कि ‘इन चार सालों में 2 साल हमने मजबूती से कोरोना से भी लड़ाई लड़ी है और विकास के कार्यों को भी रुकने नहीं दिया’।

पीएम ने इस मौके पर कहा कि गिरी नदी पर बन रही रेणुकाजी बांध परियोजना जब पूरी हो जाएगी तो एक बड़े क्षेत्र को इससे सीधा लाभ होगा। इस परियोजना से जो भी आय होगी उसका भी एक बड़ा हिस्सा हिमाचल के ही विकास पर खर्च होगा। मोदी ने कहा – ‘पूरा विश्व भारत की इस बात की प्रशंसा कर रहा है कि हमारा देश किस तरह पर्यावरण को बचाते हुए विकास को गति दे रहा है। सोलर पावर से लेकर हाइड्रो पावर तक पवन ऊर्जा से लेकर ग्रीन हाइड्रोजन तक देश हर संसाधन को पूरी तरह इस्तेमाल करने के लिए निरंतर काम कर रहा है।’

प्रधानमंत्री ने लड़कियों के लिए शादी की उम्र पर बिल लाने का जिक्र करते हुए कहा कि हमने तय किया है कि बेटियों की शादी की उम्र भी वही होनी चाहिए, जिस उम्र में बेटों को शादी की इजाजत मिलती है। बेटियों की शादी की उम्र 21 साल होने से, उन्हें पढ़ने के लिए पूरा समय भी मिलेगा और वो अपना करियर भी बना पाएंगी।

सपा और रालोद के बीच सेंध लगाने में लगे अन्य दल

राजनीति में न कोई किसी का पक्का दोस्त होता है और न ही दुश्मन। राजनीति में केवल स्वार्थ ही पक्का दोस्त होता है। यानि राजनीति स्वार्थ पर टिकी हुर्इ है। और ऐसा ही कुछ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत में चल रहा है। जब से समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के अध्यक्ष जयंत चौधरी के बीच चुनावी तालमेल हुआ है। तब से भाजपा के साथ बसपा और कांग्रेस में इस बात की बैचेनी है कि सपा और रालोद के बीच कैसे सेंध लगायी जाये ताकि, दोनों के बीच हुआ तालमेल सफल न हो सकें।

भाजपा के नेताओं का मानना है कि सपा और रालोद के बीच चुनाव आते-आते सीटों के बीच बंटवारा होने तक शायद ही तालमेल सफल हो सकें। भाजपा उत्तर प्रदेश के नेता कुलदीप कुमार का कहना है कि, रालोद से किसानों की नाराजगी रही है। किसानों को रालोद ने गुमराह किया है और वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है। भाजपा का मानना है कि रालोद के कई नेता भाजपा से लगातार संपर्क में है।

कांग्रेस के नेता अमरीश गौतम का कहना है कि, कांग्रेस के प्रति पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता का रूझान बढ़ा है। लोगों ने सपा और भाजपा के शासन में देखा है कि इन दोनों दलों ने बंटवारे की राजनीति की है। अब जनता कांग्रेस के साथ आ रही है। उनका कहना है कि कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी की रैलियां में आ रही जनता इस बात की ग्वाह है कि जनता अब हर हाल में कांग्रेस के साथ है।

कांग्रेस के चुनावी परिणाम चौंकाने वाले साबित होगें। बसपा के नेता सुधीर कुमार का कहना है कि लोनी-गाजियाबाद से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जनता के बीच जाकर इस बात पर जोर कर रहे है। कि सपा और रालोद का गठबंधन चुनाव के पूर्व का है चुनाव बाद जब दोनों को सफलता नहीं मिलेगी तब दोनों के दलों के बीच का गठबंधन टूट जायेगा। उनका कहना है कि बसपा की पकड़ दलितों के साथ मुस्लिम मतदाता में अच्छी है। इसलिये रालोद-सपा के बीच बना चुनावी तालमेल कोई चौंकाने वाला परिणाम नहीं दिला सकता है। और बसपा ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने दम पर सबसे बड़ी जीत हासिल करेंगी।