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एमसीडी चुनाव में छठ पूजा और छठ घाट बनेगा चुनावी मुद्दा

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनाव को लेकर भले ही 5 महीने से कम का समय बचा है। लेकिन दिल्ली में चुनावी सरगर्मियां तेज होती जा रही है।

हाल ही में, छठ पूजा को लेकर दिल्ली में सियासी तीर जमकर चलें। आप पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल और भाजपा के सांसद मनोज तिवारी के बीच छठ पूजा और छठ घाट को लेकर जुवानी जंग चली।

बताते चलें, दिल्ली पूर्वाचल और बिहार में लगभग 25 लाख से अधिक लोग रहते है। इस लिहाज से पूर्वाचल वासियों और बिहार वासियों का बड़ा वोट बैंक है। लेकिन कोरोना को लेकर दिल्ली सरकार ने यमुना नदी और अन्य स्थानों पर रोक लगायी थी। लेकिन भाजपा के विरोध के चलते कुछ स्थानों पर दिल्ली सरकार ने कुछ पाबंदी हटाई थी।

आगामी दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भाजपा आप पार्टी को छठ पूजा सहित अन्य मुद्दों पर घेरने की तैयारी कर रही है। भाजपा का कहना है कि छठ पूजा को लेकर बिहार और पूर्वाचल वासियों की दिल्ली सरकार ने अनदेखी की है और अपमान भी किया है।

मौजूदा समय में भाजपा दिल्ली में कई मोर्चे पर आप पार्टी को घेरने की तैयारी कर रही है। जैसे दिल्ली में स्माँग सेन्टर होने के बावजूद दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण और डेंगू जैसी बीमारी को लेकर है। जबकि आप पार्टी का कहना है कि दिल्ली में भाजपा को नगर निगम के चुनाव में हार साफ दिख रही है।

इसके चलते भाजपा छठ पूजा और छठ घाट को लेकर सियासत कर रही है। जबकि आप पार्टी ने छठ पूजा करने की हर संभव तैयारी की थी।

कंगना रणौत के आज़ादी को भीख कहने वाले ब्यान पर वरुण गांधी ने कहा – ‘इसे पागलपन कहूं या देशद्रोह’

भाजपा विचारधारा से नजदीकी रखने वाली फिल्म अभिनेत्री कंगना रणौत के एक ब्यान पर विवाद पैदा हो गया है। कंगना ने कहा था कि देश को 1947 में तो भीख मिली थी, असली आजादी तो 2014 में मिली। इस ब्यान पर भाजपा नेता वरुण गांधी ने तीखी टिप्पणी करते हुए इसे आज़ादी के शहीदों का अपमान बताते हुए कहा – ‘कंगना की सोच को मैं पागलपन कहूं या फिर देशद्रोह।’

कंगना के इस ब्यान पर बड़ा विवाद पैदा हो गया है। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने उनकी इस टिप्पणी को खराब कमेंट बताया है। अकाली दल के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने इस ब्यान पर कहा –  ‘लाखों शहादतों के बाद मिली आज़ादी को भीख कहना कंगना रणौत का मानसिक दीवालियापन है।’

भाजपा के नेता वरुण गांधी ने भी इस ब्यान के लिए कंगना को जमकर खरी खोटी सुनाई है। वरुण गांधी ने इस ब्यान को लेकर कंगना पर स्वतंत्रता सेनानियों के अपमान का आरोप लगाया और कहा – ‘कंगना की सोच को मैं मैं पागलपन कहूं या फिर देशद्रोह।’

कंगना के ब्यान पर वरुण गांधी ने ट्वीट किया है जिसमें उन्होंने लिखा – ‘कभी महात्मा गांधी के त्याग और तपस्या का अपमान, कभी उनके हत्यारे को सम्मान देना। अब शहीद मंगल पाण्डेय से लेकर रानी लक्ष्मीबाई, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और लाखों स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों का ऐसा तिरस्कार। उनकी इस सोच को पागलपन कहूं या फिर देशद्रोह ?’

याद रहे एक इंटरव्यू में कंगना रणौत ने स्वतंत्रता को लेकर जो ब्यान दिया उसपर ख़ासा विवाद पैदा हो गया है। कंगना ने इस इंटरव्यू में कहा था कि ‘आजादी अगर भीख में मिले, तो क्या वो आजादी हो सकती है ? सावरकर, रानी लक्ष्मीबाई, नेता सुभाषचंद्र बोस इन लोगों की बात करूं तो ये लोग जानते थे कि खून बहेगा लेकिन ये भी याद रहे कि हिंदुस्तानी-हिंदुस्तानी का खून न बहाए। उन्होंने आजादी की कीमत चुकाई, यकीनन। पर वो आजादी नहीं थी वो भीख थी। जो आजादी मिली है वो 2014 में मिली है।’

जाहिर है कंगना के ब्यान से बड़ा विवाद बनेगा। अभी और प्रतिक्रियाएं आ सकती हैं। उधर इस ब्यान पर अकाली दल के वरिष्ठ नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने कंगना के ब्यान पर ट्वीट में कहा – ‘मणिकर्णिका का रोल निभाने वाली आर्टिस्ट आज़ादी को भीख कैसे कह सकती है। लाखों शहादतों के बाद मिली आज़ादी को भीख कहना कंगना रणौत का मानसिक दीवालियापन है।’

वायु प्रदूषण से आंखों में जलन और लंग में कालापन

दीपावली के 8 दिन के बाद भी दिल्ली–एनसीआर में वायु प्रदूषण का कहर लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक की आंखों में जलन की शिकायतें काफी बढ़ी है। वहीं अस्थमा के रोग से पीड़ित मरीजों का संख्या मे भी इजाफा हुआ है।

वायु प्रदूषण से होने वाले नुकसान के बारे जानकारी देते हुये  डाँ बृजकिशोर तोमर ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर सहित कई राज्यों में वायु प्रदूषण के कारण प्रकृति से लेकर मानव जीवन में संकट बढ़ा है। एयर क्वालिटी इन्डेक्स 4 सौ से ज्यादा होने पर लंग में काला पन होने की शिकायतों में इजाफा हुआ है।

बताते चलें, दीपावली के त्यौहार पर पटाखों पर रोक लगाने का उद्देश्य यही था। कि पटाखों के जलाये जाने से प्रदूषित माहौल पर रोक लगेगी। लेकिन, पटाखों के रोक के बावजूद भी पटाखें जलाये गये। जिससे वायु प्रदूषण बढ़ा है।

दिल्ली–एनसीआर में जहां देखों वहां प्रदूषित धुआं ही धुआं दिखायी देता है। सबसे चौकाने वाली बात तो ये है कि केन्द्र सरकार से लेकर दिल्ली सरकार ने प्रदूषण को रोकने लिये जो भी इंतजाम किये है। वो सब दिखावे के ही साबित हो रहे है। ऐसे में आम जनमानस को प्रदूषित माहौल में जीने को मजबूर होना पड़ रहा है।

बाड़मेर-जोधपुर हाईवे पर बस-टैंकर टक्कर से लगी आग, 12 लोग जिन्दा जले  

राजस्थान में एक बड़े हादसे में बुधवार को 12 लोग ज़िंदा जल गए। हादसा तब हुआ जब बाड़मेर-जोधपुर हाईवे पर एक निजी बस और टैंकर के बीच टक्कर हो गयी। टैंकर से टक्कर के बाद बस में आग लग गई और यह इतनी भयंकर थी कि सभी यात्रियों में से कुछ को ही बचाया जा सका।

रिपोर्ट्स के मुताबिक हादसे के वक्त बस में 25-26 लोग सवार थे। इस हादसे में बस में सवार 12 लोगों की जलकर मौत हो गई। हादसे के बाद बाड़मेर-जोधपुर हाईवे पर लंबा जाम लग गया। टैंकर से बस की टक्कर होते ही उसमें आग लग गई। बस में सवार 25 लोगों में से 10 लोगों को बचा लिया गया है।

बताया गया है कि, हादसे का शिकार बस 9:55 पर बालोतरा से रवाना हुई थी। आगे जाने के बाद गलत दिशा से आ रहे  टैंकर ने बस को टक्कर मार दी। इसके बाद बस में भयंकर आग लग गई जो इतनी भयंकर थी कि चंद मिनट में बस खाक में बदल गयी।

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला ने सहयोगी असर से ब्रिटेन में जीवन डोर बाँधी

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और जानी मानी अभियानकर्ता मलाला यूसुफजई ने  पुराने साथी असर से निकाह कर लिया है। यह जानकारी सामने आते ही उन्हें दुनिया भर से बधाइयां और शुभकामना सन्देश मीडिया पर मिल रहे हैं। मलाला ने अपने असर के साथ ब्रिटेन में ज़िंदगी की डोर बाँधी।

असर ने ही सोशल मीडिया पर अपने निकाह जानकारी साझा की है। बता दें  लड़कियों की शिक्षा की मजबूत पक्षधर मलाला का निकाह समारोह ब्रिटेन के बर्मिंघम  में स्थित आवास पर हुआ। मलाला ने भी अपने सोशल मीडिया पर मंगलवार को कुछ  तस्वीरें शेयर की थीं।

आधिकारिक हैंडल पर मलाला ने लिखा – ‘आज मेरे जीवन का अनमोल दिन है। असर और मैं जीवनभर के लिए शादी के बंधन में बंध गए हैं। हमने बर्मिघम में अपने परिवारजनों के साथ एक छोटा निकाह समारोह आयोजित किया।  हमें दुआएं दें। हम एक साथ इस सफर को बिताने के लिए उत्साहित हैं।’

याद रहे मूलता पाकिस्तान की मलाला का जन्म वहीं हुआ था। पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा की हिमायत करने वाली मलाला पर 2012 में तालिबान आतंकियों ने हमला किया था जब वह सिर्फ 11 साल की थी। लेकिन गंभीर घायल होने वाली मलाला ने हार नहीं मानी और लड़कियों की शिक्षा और अधिकारों की लड़ाई लड़ती रहीं हैं। उन्हें उनके इसी जीवट के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

चन्नी-सिद्धू ‘शीतयुद्ध’ खत्म होने से राहत की सांस ली पंजाब में कांग्रेस ने

पंजाब में आखिर सत्तारूढ़ दल के दो बड़ों, मुख्य्मंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के बीच करीब दो महीने से चल रहा शीतयुद्ध आखिर ख़त्म हो गया। कांग्रेस अब मान रही है कि चन्नी और सिद्धू की जोड़ी मिलकर राजनीतिक रूप से पंजाब में कांग्रेस को दोबारा सत्ता में ले आएगी। पार्टी को यह भी महसूस हो रहा है कि बतौर मुख्यमंत्री दो महीने के कम समय में भी चन्नी जनहित  के काम करके करके अपनी अलग छवि बनाने में सफल दिख रहे हैं।

चन्नी-सिद्धू के बीच जंग ख़त्म होने से कांग्रेस आलाकमान ने भी राहत की सांस ली है।  उसे लग रहा है कि सिद्धू के प्रदेश अध्यक्ष के रूप से अब काम संभाल लेने से अब संगठन की सक्रियता में तेजी आएगी जबकि चन्नी सरकार पहले से ही सक्रिय है। अब तक चन्नी सरकार ने कई बड़े फैसले किये हैं। कांग्रेस महसूस कर रही है कि चुनाव से पहले दोनों में तनाव ख़त्म होना पार्टी के लिए सुकून वाली खबर है।

चन्नी सरकार बनने के बाद हुए कुछ फैसलों से सिद्धू नाराज थे। इसका कारण यह था कि जो वादे पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने किये थे, उनमें से कई पर कैप्टेन अमरिंदर सिंह सरकार के समय अमल नहीं हुआ था। कुछ ऐसे फैसले या नियुक्तियां थीं, जिनसे सिद्धू इसलिए असहमत थे क्योंकि उन्हें लगता था कि इससे जनता में गलत संकेत जायगा।

यहाँ यह बताना भी ज़रूरी है कि बतौर मुख्यमंत्री चन्नी ने अपने  फैसलों पर दृढ़ता दिखाई और कभी नहीं लगा कि वे किसी के दबाव में काम कर रहे हैं। इसकी उनकी छवि एक प्रशासक के रूप में भी मजबूत बनी है। भले डीजीपी के बाद अब एडवोकेट जनरल एपीएस देओल का इस्तीफा मंजूर कर लिया गया है, इसे पार्टी हित में किया फैसला माना जा सकता है, न कि किसी दबाव में। हालांकि, इन फैसलों से यह अवश्य जाहिर हुआ है कि चन्नी के राहुल गांधी के काफी करीब होने के बावजूद सिद्धू भी दोनों युवा गांधी नेताओं के करीब हैं और उनकी बात सुनी जाती है।

दोनों – चन्नी और सिद्धू – विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार हैं। सिद्धू को लेकर तो पंजाब कांग्रेस के पिछले प्रभारी हरीश रावत ने चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद यह तक कह दिया था कि उनके नेतृत्व में ही कांग्रेस  अगला चुनाव लड़ेगी। हालांकि, यह भी सच है कि चन्नी पिछले करीब दो महीने में अपनी अलग छवि गढ़ने में सफल रहे हैं, जिससे उनका राजनीतिक कौशल झलकता है।

तनातनी के दो बड़े मुद्दों एडवोकेट जनरल की नियुक्ति के अलावा डीजीपी की नियुक्ति तनाव का बड़ा कारण बना हुआ था। डीजीपी के पद पर इकबाल प्रीत सिंह सहोता को हटाने की सिद्धू की मांग को स्वीकार करते हुए चन्नी ने पहले ही यूपीएससी से पैनल मिलते ही नए डीजीपी की नियुक्ति की बात कह दी थी। इस तरह यह मसले अब हल हैं। पिछले कल ही पंजाब केबिनेट की बैठक से पहले मुख्यमंत्री चन्नी और सिद्धू के बीच लगातार दूसरे दिन हुई सुलह बैठक के सकारात्मक नतीजे सामने आये।

केबिनेट बैठक के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में चन्नी और सिद्धू दोनों की शारीरिक भाषा से साफ़ दिख रहा था कि मामला शांत हो चुका है। सिद्धू ने चन्नी सरकार के रेत के दाम वाले फैसले का स्वागत किया और सुझाव दिया कि हमें (सरकार को) यह दाम और आय बनाए रखने होंगे। प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीएम चन्नी ने बताया कि अटॉर्नी जनरल देओल का इस्तीफा मंजूर कर लिया गया है। पंजाब पुलिस के नए डीजीपी की  नियुक्ति भी यूपीएससी पैनल के मिलते ही होने की बात चन्नी ने कही।

पटाखा कारोबारी और मजदूरों के सामने रोजगार का संकट

कोरोना संकट और प्रदूषण के कहर का डर दिखा कर सरकार ने दीपावली पर पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगार्इ थी। जिसके कारण पटाखों का कारोबार करने वाले व्यापारियों की दीपावली फींकी हो गयी। पटाखों के कारोबार में मजदूरी करने वाले मजदूरो के सामने रोजी-रोटी का संकट आ खड़ा हो गया है।

पटाखा फैक्ट्री में काम करने वाले सुभाष ने तहलका संवाददाता को बताया कि, वर्ष 2020 में कोरोना के कहर के चलते लोगों के जीवन में रोजी-रोटी का संकट आया था। लेकिन इस बार सरकार ने बढ़ते प्रदूषण को लेकर जो पटाखो पर रोक लगायी है। उससे गरीब मजदूरों के सामने फिर से काम धंधा का संकट आ खड़ा हो गया है।

एस के गुप्ता जो की एक पटाखा व्यापारी है उनका कहना है कि, जिस तरीके से पुलिस ने उनके सामान को जब्त किया है और जुर्माना लगाया है। उससे उनको कई परेशानीयों का सामना करना पड़ रहा है।

पटाखा बनाने के काम लगे व्यापारियों का कहना है कि, यदि सरकार पूरी तरह से पटाखा कारोबार पर रोक लगाना चाहती है तो लगाये। लेकिन सर्वप्रथम इस कारोबार मे कार्यरत लाखों लोगो को सरकार रोजगार मुहैया कराये ताकि इनका जीवन यापन भलीभाती चल सकें।

मौजूदा हालात इस प्रकार है कि, पटाखा व्यापारी अपने कारोबार को चालू करने से डर रहे है। कि कहीं कोई छापामारी ना हो जाये।

संसद का शीतकालीन सत्र 29 नवंबर से शुरू होकर 23 दिसंबर तक चलेगा, लगभग 19 बैठके होने की संभावना

मीनाक्षी भट्टाचार्य

आज संसदीय मामलों की कैबिनेट कमेटी (CCPA) ने शीतकालीन सत्र की सिफारिश कर दी है। इस कमेटी की अध्यक्षता केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की है। संसद का शीतकालीन सत्र 29 नवंबर से शुरू होकर 23 दिसंबर तक चलेगा।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में CCPA की जो बैठक हुर्इ थी उसमें शीतकालीन सत्र की सिफारिश की गर्इ थी। ‘इस सत्र के दौरान कुल 19 दिन काम होगा, लोकसभा और राज्यसभा के सत्र साथ-साथ चलेगें। साथ ही संसद में कोविड प्रोटोकॉल को लेकर इस हफ्ते बैठक हो सकती है’ आगामी हफ्तों में संसद चलाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा अध्यक्ष के बीच बैठकें होने का भी अनुमान है।

देश में इस वक्त कोरोना महामारी के मामले काफी नियंत्रण में होने के बावजूद संसद सत्र सुचारू रूप से चलाने के लिए कोरोना नियमों में मानसून सत्र की तरह ही सख्ती बरती जाएगी। बीते वर्ष कोरोना महामारी के कारण शीतकालीन सत्र नहीं हो सका था, फिर बाद में शीतकालीन सत्र को मानसून सत्र के साथ मिला दिया गया था।

शीतकालीन सत्र को इस वजह से महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि, कुछ ही महीनों में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले है, इन राज्यों में उत्तर प्रदेश भी शामिल है, साल 2022 को राजनीतिक महल भाजपा का 2024 लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल भी कह रहे है। इस सत्र में लगभग 19 बैठक होने की संभावना है और यह क्रिसमस से पहले समाप्त हो जाएगा।

सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में वित्तीय क्षेत्र से जुड़े दो महत्वपूर्ण विधेयक भी ला सकती है जिसकी घोषणा बजट में हुई थी, इनमें से एक विधेयक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण को सुगमता से पूरा करने से संबंधित है। इसके अलावा सरकार राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली न्यास (एनपीएस) को पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) से अलग करने के लिए पीएफआरडीए, अधिनियम, 2013 में संशोधन का विधेयक भी ला सकती है, इससे पेंशन का दायरा व्यापक हो जायेगा।

सूत्रों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में सरकार बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 में संशोधन संबंधी विधेयक ला सकती है। इसके अलावा बैंकों के निजीकरण के लिए बैंकिंग कंपनीज (अधिग्रहण और उपक्रमों का स्थानांतरण) अधिनियम, 1970 और बैंकिंग कंपनीज (अधिग्रहण एवं उपक्रमों का स्थानांतरण) अधिनियम, 1980 में संशोधन करने की जरूरत होगी। इन कानूनों के जरिये जो दो चरणों में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था अब बैंकों के निजीकरण के लिए इन कानूनों के प्रावधानों में भी बदलाव करने की जरूरत है।

शीतकालीन सत्र के दौरान संसद परिसर में एंट्री करने वालों को हर वक्त मास्क लगाए रखना होगा, साथ ही सबका कोविड टेस्ट भी किया जा सकता है। महामारी के कारण पिछले सत्र के दौरान बेहद सीमित लोगों को ही परिसर के अंदर जाने की छूट दी गई थी। सांसदों के सचिवों और पूर्व सांसदों को भी एंट्री नहीं दी गई थी। संसद का आखिरी सत्र 19 जुलाई से लेकर 11 अगस्त तक चला था।

बुन्देलखण्ड की सियासत में हलचल तेज

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर बुन्देलखण्ड की सियासत में दिन व दिन गर्माहट तेज होती जा रही है। आलम ये है कि, भाजपा और सपा के बीच माहौल बन रहा है। लेकिन कांग्रेस के बढ़ते प्रभाव से और बुन्देलखण्ड में प्रियंका गांधी के तूफानी दौरे से  यहां की राजनीति में हलचल तेज है।

यहां के लोगों के बिजली–पानी के साथ–साथ बढ़ती महगांई को लेकर भाजपा सरकार के प्रति रोष है। लेकिन चुनाव तक सरकार कहीं कोई राजनीति पैंतरे के मुताबिक अगर कोई जनता को लुभाने के लिये अगर कोई दांव चलती है। तो जरूर सियासी समीकरण प्रदेश चुनाव में बदल सकते है।

अन्यथा चुनाव के पूर्व यहां पर सरकार के प्रति जनता में रोष है। बुन्देलखण्ड के लोगों का मानना है कि अगर कांग्रेस अपने चुनाव में सही प्रत्याशी को चुनाव में उतारती है और जनता के बीच खोये हुये जनाधार को लाने का प्रयास करती है। तो आने वाले दिनों में चुनावी समीकरण बदल सकते है।

मौजूदा समय में बुन्देलखण्ड की सियासत का मिजाज बदला हुआ है। यहां के लोगों का मानना है। कि, राजनीतिक उपेक्षा के कारण बुन्देलखण्ड आज भी विकास में काफी पीछे है।

 

धुआं छोड़ते पुराने वाहनों के चलने से बढ़ रहा प्रदूषण

कोरोना संकट के बीच बढ़ते प्रदूषण का कहर शहरों में ही नहीं बल्कि, गांवों तक में देखा जा रहा है। दिल्ली–एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण का असर आगरा से लेकर बुन्देलखण्ड के कई जिलों में साफ देखा जा रहा है। प्रदूषण की भयावह स्थिति के चलते निवासियों को सांस लेने में कर्इ दिक्कतो का सामना करना पड़ रहा है।

बुन्देलखण्ड वासियों का कहना है कि, गत दो-तीन सालों से बढ़ते प्रदूषण के कारण लोगों में रोष है। उनका कहना है कि पराली के अलावा, कई दशकों पुराने वाहनों की बढ़ती संख्या भी है जो कि ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ा रहे है।

सबसे गंभीर बात तो ये है। कि, पराली जलाये जाने का एक कारण तो हो सकता है। लेकिन जो दशकों पुराने वाहन बुन्देलखण्ड के कई जिलों में धुआं छोड़ते बिना रोक- टोक के चल रहे है। उन  पर पाबंदी ना लगाये जाने से आम जनमानस को प्रदूषित माहौल में जीने को मजबूर होना पड़ रहा है।

बताते चले, बढ़ते प्रदूषण की वजह सियासी लोगों का वोट बैंक है। अगर प्रशासन पुराने वाहनों को चैकिंग के दौरान रोकता है। तो सियासी दल अपनी राजनीति कर अधिकारियों पर कार्रवाई करने की बात करते है। जिसके कारण लोगों में ट्रैफिक पुलिस का डर नहीं रहता है। वे धडल्लें से अपने पुराने से पुराने वाहन चलाते है। और जहरीली हवा से पूरे शहर को प्रदूषित करते है।