पंजाब चुनाव में होगा बहुकोणीय मुक़ाबला

21 December 2021 Amritsar Shiromani Akali Dal President Sukhbir Singh Badal along with SGPC president Harjinder Singh Dhami addresses a press conference at the Golden Temple complex in Amritsar on Tuesday. A man was beaten to death on Saturday after he allegedly attempted to commit a 'sacrilegious' act inside the historic temple. PHOTO-PRABHJOT GILL AMRITSAR

चुनाव की घोषणा के बाद ही साफ़ होगी दलों के गठबन्धन की पूरी तस्वीर

विधानसभा चुनाव से ऐन पहले कृषि क़ानून निरस्त करने के बाद भाजपा आक्रामक रूप से पंजाब के अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। इन वर्षों में कांग्रेस, अकाली दल और बाद में आम आदमी पार्टी (आप) के कारण पंजाब में पीछे रही भाजपा अब पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब लोक कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबन्धन के कारण बेहतर की उम्मीद कर रही है। हालाँकि वर्तमान राजनीतिक स्थिति से ज़ाहिर होता है कि पंजाब में अगले साल के शुरू में होने वाला विधानसभा चुनाव एक बहुकोणीय मुक़ाबले की तरफ़ बढ़ रहा है। इससे निश्चित ही सभी दल दबाव में हैं और सम्भावित चुनाव नतीजों को लेकर अभी से अनुमानों का सिलसिला शुरू हो गया है।

हाल में एक बड़े घटनाक्रम में अमरिंदर सिंह ने पंजाब में एक बैठक के बाद अपने दिल्ली आवास पर भाजपा के पंजाब प्रभारी, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत से मुलाक़ात की। दोनों ने कुछ महीनों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले गठबन्धन की घोषणा की है। शेखावत ने कहा कि सीट-बँटवारे की विस्तृत योजना की घोषणा उचित समय पर की जाएगी। सिंह ने चुटकी लेते हुए यह भी कहा कि गठबन्धन निश्चित रूप से 101 फ़ीसदी चुनाव जीतेगा। जीत हासिल करने की क्षमता सीटों को अन्तिम रूप देने में मुख्य मानदण्ड होगी।

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, सीट बँटवारे की व्यवस्था में पार्टी सबसे बड़ी भागीदार होगी और कम-से-कम 60-70 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। पंजाब में भाजपा को उम्मीद की किरण अमरिंदर सिंह के साथ गठबन्धन और सुखदेव ढींडसा और रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा के नेतृत्व वाले अकाली दल के साथ गठबन्धन है। हालाँकि पंजाब में भाजपा के सामने एक बड़ी चुनौती पूरे राज्य में अपनी उपस्थिति का अभाव होगा। जब भाजपा ने शिरोमणि अकाली दल के साथ गठजोड़ किया था, तो भाजपा एक छोटी सहयोगी थी और सीटों का एक बड़ा हिस्सा हमेशा अकाली दल को जाता था। सन् 2017 के चुनाव के दौरान भाजपा और शिरोमणि अकाली दल ने सीट बँटवारे के फार्मूले पर चुनाव लड़ा, जिसमें अकाली दल ने 94 सीटों पर और भाजपा ने 23 पर चुनाव लड़ा। तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के आन्दोलन के दौरान एनडीए में सबसे पुराने गठबन्धन सहयोगियों में से एक अकाली दल ने अलग होने का फ़ैसला किया।

भाजपा ब्रांड मोदी को प्रचार के दौरान भुनाएगी, जो किसानों और उनके परिवारों के ग़ुस्से के बावजूद कई वर्गों में अभी भी लोकप्रिय हैं। भाजपा को लगता है कि तीन विवादास्पद क़ानूनों के निरस्त होने से समय बीतने के साथ लोगों का ग़ुस्सा कम हो जाएगा। इस फ़ैसले ने भाजपा को 2022 की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में पैठ बनाने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन दिया है।

यह एक ज्ञात तथ्य है कि शिरोमणि अकाली दल को एक पंथिक पार्टी माना जाता है और जैसा कि भाजपा ने अतीत में इस पार्टी के साथ चुनाव लडऩा जारी रखा था; हिन्दू मतदाता भाजपा से दूर रहे थे। भाजपा के थिंक टैंक का मानना है कि पार्टी अब इन मतदाताओं को जीत सकती है; क्योंकि राज्य में ध्रुवीकरण हो रहा है।

पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू मुख्य रूप से करतारपुर कॉरिडोर, जो पाकिस्तान में करतारपुर साहिब गुरुद्वारे को जोड़ता है; की अपनी पहल सहित पंथिक वोटों से सम्बन्धित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। कांग्रेस हिन्दू वोट बैंक का बड़ा हिस्सा खो सकती है। इसमें कोई शक नहीं है कि सिद्धू ने हाल ही में शहरी श्रमिकों को रोज़गार का अधिकार देने के लिए शहरी रोज़गार गारंटी मिशन शुरू करने की घोषणा की है। अगर उनकी पार्टी आगामी राज्य चुनावों में सत्ता बरक़रार रखती है, तो वह इन्हें पूरा करने की बात कह रहे हैं। सिद्धू का कहना है कि यह मिशन राज्य के क़स्बों और शहरों में शहरी ग़रीबों, विशेष रूप से अकुशल श्रमिकों को रोज़गार देने के लिए केंद्र प्रायोजित योजना महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) की तर्ज पर शुरू किया जाएगा। उन्होंने आगे कहा है कि शहरी ग़रीबी राज्य में ग्रामीण ग़रीबी से दोगुनी है। हम रोज़गार का अधिकार देने के अलावा दैनिक वेतन भी तय करेंगे और काम के घंटे भी नियमित करेंगे।

अपने क्रान्तिकारी विचार को शासन के अपने पंजाब मॉडल की यूएसपी (अद्वितीय बिक्री प्रस्ताव) बताते हुए, राज्य कांग्रेस प्रमुख सिद्धू ने कहा कि यह विचार शहरी ग़रीबों के जीवन को बदल देगा। स्पष्ट रूप से विचार शहरी क्षेत्रों के मतदाताओं को लुभाने का है, जिसे भाजपा लुभाने की कोशिश कर रही है। साथ ही अमरिंदर सिंह के बाहर निकलने के बाद, कांग्रेस ग़ैर-जाट सिख राजनीति को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है और यह पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को सबसे ज़्यादा सूट (सुशोभित) करती है।

हालाँकि पंजाब में पार्टी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा भ्रमित नेतृत्व और फ्लिप-फ्लॉप ने पंजाब में सत्तासीन पार्टी के लिए स्थिति को जटिल बना दिया है। अभी भी भ्रम है कि पार्टी आलाकमान किसे मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में आगे कर रही है, चन्नी को या सिद्धू को? यह सबसे बड़ा सवाल है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुनील जाखड़ को अनदेखा किया गया है। हालाँकि उन्हें चुनाव अभियान समिति का नेतृत्व करने के लिए कहा गया है। हाल ही में अमृतसर स्थित स्वर्ण मन्दिर और कपूरथला में बेअदबी की घटनाओं ने वर्तमान कांग्रेस शासन को मुश्किल में डाल दिया है।

अकाली दल के नेता और पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज होने से पंजाब में सत्तारूढ़ कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के बीच कड़ुवाहट पैदा हो गयी है। मजीठिया अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के साले और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल के भाई हैं।

पंजाब की पाकिस्तान के साथ लगभग 563 किलोमीटर की अंतरराष्ट्रीय सीमा है; जिसमें गुरदासपुर, अमृतसर, तरनतारन और फ़िरोज़पुर ज़िले शामिल हैं। राष्ट्रवाद का आख्यान, जो भाजपा के साथ-साथ कैप्टन अमरिंदर सिंह के अनुकूल है; मतदाताओं के एक वर्ग के साथ काम कर सकता है। हालाँकि यह अनुमान लगाना ज़ल्दबाज़ी होगी कि क्या भाजपा और अमरिंदर सिंह की पार्टी मिलकर सत्तारूढ़ कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के चुनावी समीकरणों को बिगाड़ सकती है।

दिलचस्प बात यह है कि राजनीतिक पर्यवेक्षक शिरोमणि अकाली दल द्वारा भाजपा और अमरिंदर सिंह का समर्थन करने से इन्कार नहीं करते हैं, इसलिए दोनों एक साथ मिलकर पंजाब में सरकार बनाने के लिए बहुमत हासिल कर सकते हैं। वास्तव में यह आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों के लिए परेशानी का सबब बन सकता है और उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। आने वाले कुछ दिनों में यह स्थिति सामने आएगी, जब कांग्रेस और आप अपने उम्मीदवारों के बारे में फ़ैसला करेंगे; क्योंकि असन्तुष्ट नेता कैप्टन अमरिंदर के साथ हाथ मिला सकते हैं, ताकि आप और कांग्रेस का खेल ख़राब हो सके।

पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी दलित वोटों को खींचने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कई मुफ़्त उपहारों की घोषणा जनता के लिए की है। लेकिन बेअदबी और ड्रग्स जैसे बड़े राजनीतिक मुद्दे राजनीतिक दलों को परेशान कर रहे हैं।