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कश्मीर मुठभेड़ में व्यापारियों की मौत की जांच होगी : एलजी 

जम्मू कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने कश्मीर के हैदरपोरा में हुई एक मुठभेड़ में दो व्यापारियों को मारे जाने की घटना की जांच के आदेश दिए हैं। सुरक्षा बलों ने उन्हें आतंकियों का सहयोगी बताया था जबकि परिजनों ने इसे गलत बताते हुए इसके  खिलाफ प्रदर्शन किया था। इन लोगों के शव भी दूर जाकर दफनाए गए थे, जिसका विरोध हुआ था।

इस घटना में चार लोग मारे गए थे जिनमें यह दो व्यापारी भी शामिल। पुलिस ने इन दोनों दो आतंकियों का सहयोगी बताया था। इस बीच कश्मीर के राजनीतिक गुपकार गठबंधन ने इस घटना की कड़ी निंदा की है। उन्होंने पूरी घटना की जांच की मांग की है। हालांकि, अब एलजी ने अब इस घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं।

इस बीच कश्मीर में पिछले 48 घंटे के दौरान पांच आतंकियों को ढेर कर दिया गया है। घाटी  के कुलगाम जिले में अलग-अलग मुठभेड़ों में यह आतंकी मारे गए। इसके अलावा  सुरक्षा बलों ने पिछली रात जम्मू के सिधड़ा में तीन लोगों को 43 लाख रूपये की नकदी के साथ गिरफ्तार किया है। यह लोग आतंकियों के सहायक बताये गए हैं।

रिपोर्ट्स के मुताबिक कश्मीर के कुलगाम जिले में अलग-अलग मुठभेड़ों में सुरक्षा बलों ने पांच आतंकियों को ढेर कर दिया। उधर सुरक्षा बलों ने जम्मू के कश्मीर की तरफ जाने वाले सिधड़ा पुल के पास 43 लाख की नकदी के साथ तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस का दावा है कि तीनों लोग आतंकियों के सहायक थे और यह पैसा आतंकियों तक पहुँचाया जाना था। पुलिस के मुताबिक यह लोग पैसा पंजाब से लेकर दक्षिण कश्मीर जा रहे थे।

जम्मू क्षेत्र की नगरोटा पुलिस ने तीनों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। पुलिस के मुताबिक इन लोगों की ओर से यह रकम जैश-ए-मोहम्मद की आतंकी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल होनी थी। गिरफ्तार किए लोगों के नाम फयाज अहमद डार, उमर फारूक और मौजम परवाज बताये गए हैं।

पुलिस को सूचना मिली थी कि पंजाब से दक्षिण कश्मीर की तरफ नकदी ले जाने की कोशिश हो रही है। योजना बनाकर इन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। वाहनों की नाके पर चेकिंग के दौरान इन लोगों का वाहन जब रोका गया तो पूछताछ में वे हड़बड़ाने लगे जिससे पुलिस को उनपर संदेह हुआ। तलाशी लेने पर उनके दो थैलों से 43 लाख रुपये की रकम मिली।

इससे पहले कश्मीर में सुरक्षाबलों ने अलग-अलग मुठभेड़ों में टीआरएफ के एक  कमांडर सहित 5 आतंकियों को मार गिराया गया। कश्मीर के कुलगाम जिले में यह मुठभेड़ें हुईं। कश्मीर पुलिस और सुरक्षा बल वहां  गतिविधियों पर कड़ी नजर रखे हुए हैं। मारे गए आतंकियों में पाकिस्तानी हैदर भी शामिल है।

प्रदूषित वातावरण से याददाश्त होती है कमजोर

जैसे-जैसे दिल्ली–एनसीआर में वायु प्रदूषण का कहर बढ़ रहा है। वैसे–वैसे सर्दी भी बढ़ रही है। ऐसे में हार्ट रोगियों को विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। क्योंकि सर्दी के मौसम में उच्च रक्त चाप बढ़ने की शिकायत आम तौर पर होती है।

वहीं प्रदूषण से सांस लेने में दिक्कत होती है। ऐसे में जरा सी लापरवाही घातक हो सकती है। ये जानकारी दिल्ली सरकार के स्टेट प्रोगाम आँफीसर(एनसीसीएचएच) व जी बी पंत अस्पताल के एडिशनल एम एस डाँ भरत सागर ने दी। उन्होंने बताया कि, प्रदूषित वातापरण में रहने से याददाश्त कमजोर होती है। चिड़चिड़ा पन आता है। साथ-साथ तामाम तरह की बीमारियां घेरने लगती है। इसलिये प्रदूषित वातावरण से बचें।

डाँ सागर का कहना है कि, तामाम शोधों से पता चला है कि प्रदूषण से शरीर का अंग डैमेज होता है। जिसमें आँखों में जलन और गलें में खंराच शामिल है। डाँ सागर का मानना है कि मौजूदा समय में दिल्ली–एनसीआर की वायु गुणवत्ता सबसे खराब है। जिसके कारण लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ रहा है। इससे बचाव के तौर पर हमें सावधानी अपनानी के लिये गुनगुन पानी का सेवन करना चाहिये।

बार-बार मुंह का साफ पानी से धोना चाहिये अगर शरीर में बैचेनी हो और सांस लेने में दिक्कत के साथ हाई बी पी हो तो उसे नजरअंदाज ना करें। डाँक्ट से परामर्श लें। बैचेनी के साथ घबराहट होने पर हार्ट रोग के लक्षण भी हो सकते है। प्रदूषित वातावरण में योग व्यायाम करने से बचें। लेकिन नियमित व्यायाम करें।

भाजपा में शामिल हो रहे है बसपा और सपा के नेता

उत्तर प्रदेश चुनाव में भले ही अभी 3 महीने से कम का समय बचा है पर प्रदेश की सियासत में हलचल तेज है। प्रदेश में भाजपा में सपा, कांग्रेस सहित बसपा के नेता शामिल हो रहे है। जिसके चलते भाजपा का दबदबा बढ़ रहा है।

वहीं अन्य पार्टी के नेताओं में इस बात की आशंका है कि चुनाव आते-आते कहीं वो भाजपा में शामिल हो गये तो चुनाव जीतना तो दूर जन सभा में जनता के बीच रैलियां करना मुश्किल हो जायेगा।

सूत्रों का कहना है कि भाजपा के प्रदेश के बड़े नेताओं के अलावा दिल्ली आलाकमान तक उत्तर प्रदेश के नेताओं जो अन्य दल में है भाजपा में शामिल होने की जुगत लगा रहे है। और भाजपा से टिकट पाने की कोशिश कर रहें है।

गत दिनों पहले सपा और बसपा के 7-8 विधायकों ने भाजपा का दामन थामा है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि, भाजपा की जिला इकाई से लेकर गांव-गांव तक इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को भाजपा में शामिल करवाया जाये ताकि 2022 में भाजपा की सरकार पूर्ण बहुमत के साथ बन सकें।

समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता सी सी सिंह का कहना है कि भाजपा जो भी चुनाव जीतती रही है। वो शहरी मतदाता के सहारे पर गांव में समाजवादी पार्टी का वोट रहा है। गांव के लोग आज भी समाजवादी पार्टी को पसंद करते है। भाजपा सत्ता की धमक और चमक की दम पर भाजपा में शामिल करना चाहती है।

उन्होंने आगे बताया कि, जो भी विधायक या पूर्व विधायक भाजपा में शामिल हो रहे है। उनको पता कि समाजवादी पार्टी उनको टिकट देने वाली नहीं है। इसलिये वो भाजपा में शामिल हो रहे है। फिलहाल चुनाव में भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच चुनावी मुकाबला हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट की प्रदूषण पर सख्त टिप्पणी- “अफसरों के लिए एसी दफ्तर में बैठकर किसानों को कोसना आसान”

प्रदूषण के मसले पर सर्वोच्च न्यायालय में आज हो रही सुनवाई के दौरान के सख्त टिप्पणी करते हुए बुधवार को कहा कि ब्यूरोक्रेसी निष्क्रिय हो गई है और अफसर एसी दफ्तरों में बैठकर किसानों को दोषी ठहराना आसान है। इस मामले पर सुनवाई अब 24 नवंबर को होगी। सर्वोच्च अदालत ने किसानों पर कोई जुर्माना लगाने से भी साफ़ इनकार कर दिया है।

दिल्ली में वायु क्वालिटी में सुधार नहीं आने से व्यापक स्तर पर चिंता जताई जा रही है।  आज दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स 379 है, जिसे बहुत खराब श्रेणी में गिना जाता है। इस बीच सर्वोच्च अदालत में आज इस मसले पर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट प्रदूषण के मसले पर पहले ही केंद्र और दिल्ली सरकार कार्रवाई योजना उसके सामने पेश करने को कह चुका है।

आज सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने केंद्र और दिल्ली सरकारों से कहा कि वे किसानों के पराली जलाने पर विवाद करना बंद करें। अफसर एसी कमरों में बैठकर किसानों को दोषी ठहरा रहे हैं क्योंकि अधिकारी निष्क्रिय हैं। अगली सुनवाई इस मसले पर अब 24 नवंबर को होगी। आज सुनवाई के दौरान केंद्र और राज्य सरकारों के बीच पराली जलने का लेकर आरोप-प्रत्यारोप पर मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि ‘सरकार अगर पराली जलाने को लेकर किसानों से बात करना चाहती है तो बेशक करे, लेकिन हम किसानों पर कोई जुर्माना नहीं लगाना चाहते।’

सर्वोच्च अदालत ने अधिकारियों पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘दिल्ली के पंच  सितारा होटलों में बैठकर किसानों पर टिप्पणी करना बड़ा आसान है। लेकिन कोई यह नहीं समझना चाहता कि किसानों को पराली क्यों जलानी पड़ती है। किसी भी स्रोत से ज्यादा प्रदूषण टीवी चैनलों पर होने वाली बहस-बाजी से फैलता है। वहां हर किसी का कोई न कोई एजेंडा है। हम यहां उपाय ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं।’

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ‘हम कोई आदेश जारी नहीं कर रहे लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि प्रदूषण रोकने के लिए ढिलाई बरती जाए। प्रधान न्यायाधीश रमना ने कहा कि ‘अफसरशाही निष्क्रिय हो गई है। अपने आप कुछ नहीं कर रही है। अफसर इन्तजार करते हैं कि अदालतें आदेश दें और उनका काम केवल हलफनामों पर दस्तखत करने भर है। मामले में अगली सुनवाई बुधवार को होगी।

घर से काम (डब्ल्यूएफएच) पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि दफ्तरों में सभी 100 अधिकारियों की जरूरत नहीं है। आप इसके बजाय 50 अधिकारियों को बुला सकते हैं। न्यायमूर्ती सूर्यकांत ने कहा कि कई सरकारी इलाके हैं जहां चौथे से लेकर प्रथम श्रेणी के कर्मचारी आसपास ही रहते हैं। क्या कर्मचारी सार्वजनिक परिवहन में यात्रा नहीं कर सकते। केंद्र की तरफ से एसजी ने कहा कि दिल्ली जैसे राज्य के लिए वर्क फ्रॉम होम का असर दिल्ली पर पड़ेगा, लेकिन अगर हम वर्क फ्रॉम होम जाते हैं तो इसका अखिल भारतीय प्रभाव होगा।

करतारपुर साहिब कॉरिडोर फिर खुला, दर्शन के लिए जाएगी पंजाब केबिनेट

भारत-पाकिस्तान के बीच सिख श्रद्धालुओं का पवित्र स्थल करतारपुर साहिब कॉरिडोर 611 दिन के बाद आज (बुधवार) को फिर खुल गया। आज सौ के करीब केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारी और 149 श्रद्धालु करतारपुर के लिए निकल रहे हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने पहले ही घोषणा कर दी है कि उनकी पूरी केबिनेट करतारपुर साहिब दर्शन के लिए जाएगी।

आज करतारपुर जाने वालों में गुरु नानक देव की 17वीं पीढ़ी के प्रतिनिधि बाबा सुखदीप सिंह बेदी भी शामिल हैं। बता दें करीब एक साल आठ महीने बाद भारत के गृह मंत्रालय ने करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोलने की अनुमति दी है। याद रहे 16 मार्च, 2020 को करतारपुर साहिब कॉरिडोर जाने के लिए पंजीकरण बंद कर दिया गया था। गुरु पर्व नजदीक है, लिहाजा केंद्र के फैसले से सिख श्रद्धालुओं ने खुशी का इजहार किया है।

सरकार ने करतारपुर साहिब जाने वालों के लिए कोविड वैक्सीन की दोनों डोज लगी होने की शर्त रखी है। श्रद्धालुओं को आरटी-पीसीआर की निगेटिव रिपोर्ट (72 घंटे के भीतर वाली) अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत करनी होगी। साथ ही श्रद्धालुओं को कोविड प्रोटोकॉल का पालन करना ज़रूरी होगा। पाकिस्तान सरकार ने इसका भारत से अनुरोध किया था, जिसे स्वीकार करने के बाद करतारपुर कॉरिडोर खोलने पर सहमति बन गयी।

करतारपुर साहिब जाने वाले आम श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए फिलहाल हफ्ते भर इंतजार करना होगा। यहाँ यह बताना भी ज़रूरी है कि करतारपुर साहिब गुरुद्वारा तक जाने वाले कॉरिडोर का पाकिस्तान सरकार ने पुनरुद्धार किया है। चार किलोमीटर लंबा करतापुर कॉरिडोर बनने से भारत में डेरा बाबा नानक और पाकिस्‍तान में गुरुद्वारा दरबार साहिब आपस में सीधे जुड़े हैं। अब करतारपुर साहिब कॉरिडोर फिर खुलने से सिख संगत में खुशी की लहर है।

सिद्धू जल्द करेंगे पंजाब में अपनी नई टीम की घोषणा

नवजोत सिंह सिद्धू गिले शिकवे ख़त्म करके काम पर लौट आये और पंजाब की  कांग्रेस सरकार भी पटड़ी पर लौट आई। चुनाव से पहले पंजाब कांग्रेस के भीतर यदि कोई नया विवाद पैदा नहीं हुआ तो पार्टी की विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी अब जोर पकड़ने वाली है। काफी दिन तक कोपभवन में बैठने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सिद्धू के मंगलवार से कांग्रेस दफ्तर आना शुरू करने के बाद पार्टी की गतिविधियों ने गति पकड़ ली है। वे जल्दी ही अपनी नई टीम घोषणा करेंगे।

सिद्धू ने दफ्तर में दोबारा जिम्मा सँभालने के बाद कहा कि कांग्रेस राज्य में एक महीने के भीतर अपनी ताकत दिखा देगी। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी अपनी सरकार के कामों पर बराबर नजर रखे हुए हैं और हाल के हफ़्तों में उन्होंने कई फैसले किये हैं। उनकी सक्रियता से साफ़ जाहिर होता है कि वे पंजाब में दोबारा पार्टी की सरकार लाने के लिए मेहनत कर रहे हैं। राज्य में विपक्षी अकाली दल, भाजपा और आप , हालांकि, चन्नी सरकार को नाकाम बता रहे हैं और उनका आरोप है कि सीम और अन्य पार्टी की भीतरी लड़ाई में उलझे हैं।

यह समझा जाता है कि कांग्रेस आलाकमान ने सिद्धू को नई टीम बनाने की मंजूरी दे दी है। सिद्धू जल्द ही इसकी घोषणा करेंगे। साथ ही पार्टी चुनाव कार्यक्रमों और प्रचार कमेटियों की भी घोषणा करेगी। पंजाब कांग्रेस के नए प्रभारी हरीश चौधरी मुख्यमंत्री चन्नी और प्रदेश अध्यक्ष सिद्धू के रिश्तों में जमी बर्फ पिघलाने में सफल रहे हैं। अब पार्टी पूरा फोकस चुनाव की तैयारी पर करना चाहती है।

सिद्धू पार्टी के जिला अध्यक्षों की सूची इसी हफ्ते जारी करने वाले वाले हैं। इसके अलावा राज्य स्तर पर संगठन की बात रखने वाले प्रवक्ताओं के नाम भी लगभग तैयार कर लिए गए हैं। सिद्धू संगठन और सरकार की मिली जुली ताकत के साथ जनता के बीच जाना चाहते हैं। उनका यह भी कहना है कि जनता से लफ्फाजी वादे नहीं किये जाने चाहिएं।

पार्टी दफ्तर में जिम्मा सँभालने के बाद सिद्धू ने कल कहा था कि ‘पंजाब उस मुकाम  पर खड़ा है, जहां हम सबसे ज्यादा कर्ज वाले राज्य हैं। गोवा में प्रति व्यक्ति पूंजीगत खर्च 14000 रुपये, हरियाणा में 6000 रुपये है जबकि राष्ट्रीय औसत 3500 रुपये हैं। लेकिन पंजाब में यह महज 870 रुपये है जिसे बढ़ाने की सख्त ज़रुरत है। आत्मनिर्भरता से ही यह मुकाम हासिल किया जा सकता है। सिद्धू इस बात पर जोर दे रहे हैं कि पंजाब को अपने पांव पर खड़ा होना होगा। कर्ज की पीठ पर बैठकर पंजाब तरक्की का आसमान नहीं छू सकता।

सिद्धू विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी प्रत्याशियों के नाम तय करने की प्रक्रिया भी जल्द शुरू करने वाले हैं। हालांकि, संभावना यही है कि यह प्रक्रिया लम्बी चलेगी। प्रदेश में पार्टी टिकट के तलबगारों की संख्या इतनी ज्यादा है कि सिद्धू के लिए अंतिम चयन आसान काम नहीं रहेगा। लिहाजा लग यही रहा है कि चुनाव की घोषणा की आसपास कांग्रेस प्रत्याशियों के नाम घोषित करेगी। सिद्धू यह ज़रूर कह रहे हैं कि उम्मीदवारों का चयन मेरिट के आधार पर ही होगा। अंतिम मुहर पार्टी आलाकमान ही लगाएगी।

पार्टी शायद किसी एक चेहरे को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर आगे नहीं करेगी। आलाकमान चाहती है कि पार्टी इस मामले में उलझने की जगह पूरी ताकत से चुनाव की तैयारी करे। चुनाव बाद मुख्यमंत्री का फैसला किया जाए। वैसे चूँकि चन्नी सीएम  और सिद्धू पार्टी अध्यक्ष हैं,  पार्टी के लिए किसी एक को आगे करके चुनाव लड़ना आसान होगा भी नहीं।

वायु प्रदूषण के चलते बीड़ी सिगरेट का सेवन खतरनाक

अगर राजधानी दिल्ली–एनसीआर में वायु प्रदूषण का कहर ऐसा ही बढ़ता रहा तो आने वाले दिनों में शायद ही कोई घर बचें। जिसको सांस लेने में दिक्कत सहित वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारी ना हो।

यह जानकारी दिल्ली सरकार के स्टेट प्रोग्राम आँफीसर एवं एडशिनल एम एस (जी आई पी ई आर) के डाँ भारत भूषण ने दी। उन्होंने बताया कि, दिल्ली में सांस लेने में दिक्कत और आँखों में जलन के कारण लोगों को घर से निकलने में दिक्कत हो रही है। जिसमें सबसे अधिक बच्चें है।

डाँ भारत भूषण का कहना है कि, दिल्ली–एनसीआर में कोरोना, डेंगू और प्रदूषित कहर से लोगों में बैचेनी देखी जा रही है। उन्होंने कहा कि बचाव के तौर पर सलह दी जाती है कि घर पर रहे। साथ ही घर से निकलते ही मास्क अवश्य लगाये। डाँ भारत भूषण का मानना है। प्रदूषण अब सलाना संकट के तौर पर लोगों के जीवन में जहर घोल रहा है। जिसमें सबसे ज्यादा बच्चें प्रभावित हो रहे है।

क्योंकि दिल्ली में सरकारी हो या निजी अस्पताल कोरोना और डेंगू के बाद अगर सबसे ज्याजा मरीज जो आ रहे है। वो दमा अस्थमा और सांस रोग से पीड़ित मरीज है।

उन्होंने आगे कहा कि, जो लोग तम्बाकू , बीड़ी और सिगरेट का सेवन करते है। वो इस मौसम में बिल्कुल भी सेवन ना करें। क्योंकि इससे उनके स्वास्थ्य पर एक साथ दो–तरफा नुकसान हो सकता है। क्योंकि ज्यादात्तर नशें का सेवन इसलिये करते है।

कुछ लोग सिगरेट का सेवन केवल टेंशन को कम करने के लिए करते है। जबकि इससे ना तो टेंशन कम होती है। बल्कि, शरीर में कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।

गतिरोध के बीच गति हासिल करता किसान आन्दोलन

यह 27 नवंबर, 2020 का दिन था, जब केंद्र सरकार के बनाये गये तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में ‘दिल्ली चलो’ के आह्वान पर किसान दिल्ली की सीमाओं की ओर रवाना हो गये। मौसम की बेरूख़ी, कड़ाके की ठण्ड, बारिश, भीषण गर्मी, पुलिस की कार्रवाई और कोरोना वायरस महामारी, निजी नुक़सान और यातनाओं के बावजूद किसानों ने अपनी सम्पत्ति और परिजनों के संकट में होने के बावजूद आन्दोलन जारी रखा है। किसानों के इस संघर्ष को लेकर बता रहे हैं सविंदर बाजवा :-

किसान आन्दोलन चरम पर है। किसानों के दबाव में पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, केरल, छत्तीसगढ़ और दिल्ली की राज्य सरकारें इन तीन विवादास्पद क़ानूनों के विरोध में पहले ही प्रस्ताव पारित कर चुकी हैं। किसानों ने साफ़ सन्देश दिया है कि वे एक लम्बी लड़ाई के लिए तैयार हैं और अगर तीन विवादित क़ानूनों को निरस्त नहीं किया गया, तो वे आन्दोलन को और बढ़ाने के लिए तैयार हैं। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में चार किसानों और एक पत्रकार की हत्या, सैकड़ों की संख्या में प्रदर्शनकारियों की मौत और किसानों पर सरकार के दुश्मनों जैसे बर्ताव वाली घटनाएँ भी उनका हौसला नहीं तोड़ पायी हैं। हर गुज़रते दिन के साथ प्रदर्शनकारी किसानों को समाज के अधिकाधिक वर्गों का समर्थन मिल रहा है।

किसान आन्दोलन के लिए 26 नवंबर का दिन ख़ास है; क्योंकि एक साल पहले इसी दिन उनका आन्दोलन दिल्ली की सीमाओं से शुरू हुआ था। अब एक साल बाद सत्ता में बैठे उन मठाधीशों को गहन निराशा हुई है, जो यह मान कर चल रहे थे कि यह आन्दोलन बीच में ही टूट जाएगा। हक़ीक़त में हुआ यह है कि दबाव और प्रताडऩा के तमाम हथकंडे अपनाये जाने के बावजूद किसान आन्दोलन समय के साथ और ताक़त हासिल करता गया है। आन्दोलनों के इतिहास में यह किसान आन्दोलन अब तक का सबसे लम्बे विरोध वाला आन्दोलन में बन चुका है।

अब संयुक्त किसान मोर्चा ने घोषणा की है कि आन्दोलन का एक साल पूरा होने पर इसी 29 नवंबर से 500 चुनिंदा किसान हर दिन संसद की ओर कूच (मार्च) करेंगे। संसद मार्च 29 नवंबर से शुरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र के साथ प्रारम्भ होगा। संसद का शीतकालीन सत्र 23 दिसंबर तक चलेगा।

संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने विभिन्न राज्यों के किसानों से अपने-अपने राज्यों की राजधानियों में महापंचायत आयोजित करने का भी आग्रह किया है। इस बीच पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश के किसान महापंचायत आयोजित करने के लिए दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर जुटेंगे। सिंघु बॉर्डर विरोध स्थल पर आयोजित एक बैठक के दौरान आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले 40 किसान संघों के एक छत्र निकाय एसकेएम ने ये फ़ैसले किये हैं। ये कार्यक्रम पूरे भारत में ‘बड़े पैमाने पर आन्दोलन’ के एक वर्ष का आयोजन किये जाने वाले कार्यक्रमों का हिस्सा हैं। एक बयान में साझा किसान संगठन ने कहा कि 29 नवंबर से संसद के शीतकालीन सत्र के आख़िरी दिन तक 500 चयनित किसान स्वयंसेवक ट्रैक्टर-ट्रॉली में हर दिन संसद परिसर के पास शान्तिपूर्वक और पूरे अनुशासन के साथ राष्ट्रीय राजधानी में विरोध करने के अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने के लिए जाएँगे। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि यह ‘इस ज़िद्दी, असंवेदनशील, जन-विरोधी और कॉर्पोरेट समर्थक भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए’ किया जाएगा, ताकि उसे देश भर के किसानों की जायज़ माँगों को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जा सके। पिछले एक साल से यह ऐतिहासिक संघर्ष चल रहा है और तब तक जारी रहेगा, जब तक किसान न्याय हासिल नहीं कर लेते।

किसान मोर्चा ने कहा कि दिल्ली की सभी सीमाओं पर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, राजस्थान और अन्य प्रदेशों से बड़ी संख्या में किसानों को जुटाया जाएगा। उस दिन वहाँ (सीमाओं पर) विशाल जनसभाएँ होंगी। इस संघर्ष में अब तक शहीद हो चुके 650 से अधिक किसानों को श्रद्धांजलि दी जाएगी।

यह इस बात का संकेत करता है कि किसान संघर्ष का भविष्य में क्या रास्ता होगा? किसान तीनों कृषि क़ानूनों को निरस्त करने की माँग पर अडिग हैं। क्योंकि उन्हें भय है कि ये क़ानून उन्हें उनके अधिकारों और बेहतर क़ीमत की लड़ाई लडऩे से वंचित कर देंगे। साथ ही यह डर भी है कि यह क़ानून उन्हें ताक़तवर कॉर्पोरेट की दया पर छोड़ देंगे। उन्हें यह डर भी सता रहा है कि क़ानून उनकी फ़सलों की ख़रीद के लिए मिलने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य को ख़त्म करने का रास्ता खोल सकते हैं। यह आन्दोलन की बढ़ती गति का प्रमाण है कि आन्दोलन में शामिल महिलाओं, युवाओं और बुज़ुर्गों का मनोबल बहुत ऊँचा है। बड़ी बात यह है कि इस आन्दोलन में किसान परिवार की युवतियों और कई बच्चों ने भी खुले आसमान के नीचे एक लम्बा समय बिताया है और आन्दोलन में बड़ों के साथ-साथ उनकी भागीदारी लगातार और मज़बूती से बनी हुई है। हरदा के गाँव आलनपुर के किसान की बेटी छ: साल की सानिका पटेल को कोई कैसे भूल सकता है; जो खुले मंच से सरकार को अपनी एक कविता से चुनौती दो चुकी हैं। इसी साल 26 जनवरी को किसानों के दिल्ली में प्रवेश को लेकर दिल्ली की सभी सीमाओं को सील करके किसानों पर लाठियाँ बरसवाने वाली सरकार अभी से दिल्ली की सीमाओं पर एक बार फिर पुलिस और अद्र्धसैन्य बलों का पहरा बढ़ा रही है। हाल यह है कि सरकार ने पुलिस के ज़रिये दिल्ली में आने वाली कई सडक़ों पर अवरोधक लगा रखे हैं, जबकि जनता में यह ख़बर फैलाने की लगातार कोशिशें की गयी हैं कि किसान सडक़ों को जाम करके बैठे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी जब किसानों पर सडक़ें घेरकर बैठने का आरोप लगाया, तो हृदय को बड़ा आघात पहुँचा। मैं लगातार दिल्ली की सीमाओं पर जहाँ-जहाँ किसान बैठे हैं, जाता रहा हूँ। किसानों ने इस तरह का कोई अवरोध पैदा नहीं किया है। इस बात के प्रमाण भी कैमरों में कैद हो चुके हैं। सरकार अब भी कोशिश में है कि किसी तरह किसान आन्दोलन खत्म हो; लेकिन सच तो यह है कि इस आन्दोलन के धीमा होने के कोई संकेत नहीं दिखते और इसका एक साल पूरा होने के दिन फिर ‘दिल्ली चलो’ का आह्वान इसे और गति दे सकता है।

पर्यावरण की मार

एक बड़े ख़तरे के रूप में उभर रहा जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तन दुनिया में एक बड़े ख़तरे के रूप में देखा जा रहा है, जिस पर दुनिया के सभी देशों में चिन्ता है। विभिन्न रिपोर्ट्स में भी भविष्य में इससे सम्भावित बड़े ख़तरों के प्रति सचेत किया गया है। हाल में स्कॉकटलैंड के ग्लास्गो में कॉप-26 सम्मेलन में दुनिया भर के नेताओं ने इस विषय पर सम्बोधन में अपने देशों में किये जा रहे प्रयासों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने स्थिति को सँभालने वाले तरीक़ों का ज़िक्र एंव गहन मंथन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेता ‘पंचामृत’ का मंत्र देकर और भारत के साल 2070 तक ‘नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन’ लक्ष्य हासिल करने की प्रतिबद्धता जताकर पर्यावरण की गम्भीरता से पूरी दुनिया को आगाह करने की कोशिश की। ज़मीन पर जलवायु परिवर्तन की स्थिति पर विशेष संवाददाता राकेश रॉकी की रिपोर्ट:-

क्या जलवायु परिवर्तन दुनिया में अब रोगों की जड़ का सबसे बड़ा कारक बनने जा रहा है? शायद हाँ!

दुनिया भर में पहली बार किसी चिकित्सक ने एक महिला के रोग का कारण उसकी अस्पताल की पर्ची में आधिकारिक रूप से ‘जलवायु परिवर्तन’ लिखा है। घटना कनाडा की है, जहाँ इसी 8 नवंबर को 70 साल की एक महिला की बीमारी को जलवायु परिवर्तन के कारण हुई बीमारी बताया गया है। दिलचस्प संयोग यह है कि यह मामला तब सामने आया, जब स्कॉटलैंड के ग्लास्गो में जलवायु परिवर्तन पर कॉप-26 के अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में दुनिया भर के दिग्गज पर्यावरण को बचाने को लेकर रूपरेखा तैयार कर रहे थे। घटनाएँ बताती हैं कि प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन दुनिया को संकट के किस मोड़ पर खड़ा कर चुका है।

हाल के वर्षों में पर्यावरण को महत्त्व तो मिलना शुरू हुआ है; लेकिन इसके बावजूद यह दुनिया के ज़्यादातर देशों में राजनीतिक कार्यसूची (एजेंडा) नहीं बन पाया है। दूसरे, विकासशील देश समझते हैं कि विकसित देश कार्बन उत्सर्जन में उनसे कहीं आगे हैं। लेकिन जब भी पर्यावरण पर अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन होते हैं, तो विकसित देश हर समस्या का ठीकरा विकासशील देशों पर थोप देते हैं। इसे लेकर तनाव ग्लास्गो के कॉप-26 सम्मलेन में भी दिखा। भारत की तरफ़ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सम्मलेन में शिरकत की और पाँच तत्त्वों को ‘पंचामृत’ का मंत्र देकर यह साफ़ किया कि अगर इनकी आज क़द्र नहीं की और इन्हें स्वच्छ नहीं रखा गया, तो आने वाले समय में और बड़े ख़तरों से दो-चार होना पड़ेगा। प्रधानमंत्री ने इस दौरान भारत में कार्बन उत्सर्जन को लेकर चिन्ताओं और भविष्य में किये जाने वाले अपने प्रयासों का भी ज़िक्र किया।

कॉप सम्मेलन-26में कई मुद्दे उठे। इनमें सबसे ज़्यादा चिन्ता लगातार बढ़ते तापमान पर जतायी गयी। बता दें जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कन्वेन्शन के ताज़ा आँकड़ों के मुताबिक, मौज़ूदा राष्ट्रीय निर्धारित योगदानों के परिणामस्वरूप अब भी 2.7 डिग्री सेल्सियस डिग्री की विनाशकारी तापमान वृद्धि होगी। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने सम्मलेन में कहा कि पिछले कुछ दिन में जो घोषणाएँ की गयी हैं, उन्हें देखते हुए अभी यह कहना मुश्किल है कि इस समय दुनिया की क्या स्थिति है। लेकिन वह इस बारे में ज़रूर आश्वस्त हैं कि जी20 देशों की तरफ़ से और ज़्यादा महत्त्वाकांक्षा की ज़रूरत है, जो कि कुल कार्बन प्रदूषण के लगभग 80 फ़ीसदी हिस्से के लिए ज़िम्मेदार हैं।

1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य

सम्मलेन का लब्बोलुआब यह था कि तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का युद्ध इसी दशक के दौरान जीता या हारा जाएगा। गुटेरेश ने अपने सम्बोधन में धनराशि लक्ष्य की बात भी कही। उन्होंने चेतावनी भरे शब्दों में कहा- ‘यह लक्ष्य साल 2023 तक तो पूरा होने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे हैं, और उसके बाद के समय के लिए भी अतिरिक्त धनराशि की ज़रूरत होगी। मैं इस अपर्याप्त धनराशि की तुलना, ख़बरों डॉलर की उस धनराशि के साथ कर रहा हूँ, जो इस लक्ष्य की प्राप्ति को सम्भव बनाने के लिए दुनिया भर के देशों से और ज़्यादा कार्रवाई की ज़रूरत है। हाल में आईपीसीसी की जलवायु परिवर्तन पर रिपोर्ट जारी होने के बाद संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इसे मानवता के लिए कोड रेड की संज्ञा दी थी। दुनिया में जलवायु परिवर्तन पर हाल में आयी संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट भी कई ख़तरों के तरफ़ आगाह करते हैं।

जलवायु परिवर्तन से जुड़े विज्ञान पर वयापक विश्लेषण वाली इस रिपोर्ट में साफ़ कहा गया था कि पृथ्वी की औसत सतह का तापमान साल 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा और यह बढ़ोतरी पूर्वानुमान से एक दशक पहले ही होने जा रही है, जो कि बेहद चिन्ताजनक है।

सम्मलेन में कार्बन उत्सर्जन सबसे बड़ा विषय बना रहा। दुनिया के कई बड़े कार्बन उत्सर्जक देश घोषणा कर चुके हैं कि साल 2050 तक वो कार्बन उत्सर्जन के मामले में तटस्थ (न्यूट्रल) हो जाएँगे। यहाँ तक कि चीन ने साल 2060 तक के लिए अन्तिम तिथि तय की हुई है। वहीं भारत ने कहा है कि वह सन् 2005 के स्तर के हिसाब से 2030 तक 33-35 फ़ीसदी कार्बन उत्सर्जन कम करेगा।

रिपोर्ट के आधार पर संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि भूमण्डलीय ऊष्मीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) बहुत तेज़ी से हो रहा है और इसके लिए साफ़तौर पर मानव जाति ही ज़िम्मेदार है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ते तापमान से दुनिया भर में मौसम से जुड़ी भयंकर आपदाएँ आएँगी। दुनिया पहले ही बर्फ़ की चादरों के पिघलने, समुद्र के बढ़ते स्तर और बढ़ते अम्लीकरण में अपरिवर्तनीय बदलाव झेल रही है। वायुमण्डल को गर्म करने वाली गैसों का उत्सर्जन जिस तरह से जारी है, उसकी वजह से सिर्फ़ दो दशक में ही तापमान की सीमाएँ टूट चुकी हैं। यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि इस शताब्दी के अन्त तक समुद्र का जलस्तर लगभग दो मीटर तक बढ़ सकता है।

सम्मलेन में जलवायु और पर्यावरण पर चर्चा के दिन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की नयी रिपोर्ट में ख़ुलासा किया कि जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिए नीतियाँ और योजनाएँ बढ़ तो रही हैं; लेकिन वित्त और क्रियान्वयन अब भी पीछे हैं। अनुकूलन अन्तर रिपोर्ट-2021 में जलवायु वित्त तेज़ी से बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों से निपटने के लिये त्वरित कार्यवाही करने की पुकार भी लगायी गयी है।

यूएनईपी की कार्यकारी निदेशक इन्गेर ऐण्डर्सन ने इसे लेकर कहा कि दुनिया, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए प्रयास बढ़ाती तो नज़र आ रही है; लेकिन ये प्रयास कहीं से भी बहुत मज़बूत नज़र नहीं आ रहे हैं। दुनिया को ख़ुद को जलवायु परिवर्तन के हिसाब से ढालने की ख़ातिर तीव्र गति से बदलाव करने होंगे।

एण्डर्सन ने कहा कि अगर देश कार्बन उत्सर्जन को आज ही बिल्कुल बन्द कर दें, तो भी आने वाले कई दशकों तक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव जारी रहेंगे। उन्होंने कहा कि हमें जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुक़सान महत्त्वपूर्ण तरीक़े से कम करने की ख़ातिर अनुकूलन महत्त्वकांक्षा और वित्त और क्रियान्वयन में बहुत तेज़ी से बदलाव करने होंगे; और हमें यह अभी करना होगा।

यह रिपोर्ट पेरिस जलवायु समझौते के प्रावधानों के अनुरूप वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के सामूहिक प्रयासों का एक हिस्सा है। वर्तमान आँकड़ों के मुतबिक, दुनिया इस सदी के अन्त तक तापमान वृद्धि 2.7 डिग्री सेल्सियस रहने के रास्ते पर चल रही है। यहाँ तक कि अगर पेरिस जलवायु समझौते के अनुरूप, तापमान वृद्धि को 1.5 या 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर लिया जाता है, तो भी जलवायु परिवर्तन के बहुत-से जोखिम रहेंगे। यूएन पर्यावरण कार्यक्रम का कहना है कि अगर कार्बन उत्सर्जन की मात्रा और उसमें कमी लाने के लिए की जा रही कार्र्यवाही के बीच बहुत बड़े अन्तर की खाई को और ज़्यादा फैलने से रोकना है, तो विशेष रूप में जलवायु वित्त और अनुकूलन के लिए ज़्यादा महत्त्वाकांक्षाएँ पालने की ज़रूरत है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दशक के अन्त तक जलवायु अनुकूलन की लागत प्रतिवर्ष 140 से 300 अरब डॉलर के आसपास रहने का अनुमान है और उसके बाद यह 2050 तक 280 से 500 अरब डॉलर प्रतिवर्ष होगी। दुनिया भर के देश कोरोना महामारी से उबरने के आर्थिक प्रयासों में हरित आर्थिक विकास को प्राथमिकता देने का अवसर गँवा रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि हरित आर्थिक प्रगति, सूखा, जंगली आग और बाढ़ जैसे जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी प्रभावों के लिए अनुकूलन करने में भी मदद करती है। जून तक जिन 66 देशों के हालात का अध्ययन किया गया उनमें से एक-तिहाई से भी कम देशों ने कोरोना महामारी का सामना करने के उपायों में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को शामिल किया।

सम्मलेन में वित्तीय घोषणाएँ

संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन कॉप-26 में दूसरा दिन वित्तीय घोषणाओं का रहा। इनमें सबसे बड़ी घोषणा थी कि दुनिया भर की लगभग 500 वित्तीय संस्थाओं और संगठनों द्वारा पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए 130 ट्रिलियन (130 लाख करोड़ रुपये) की धनराशि जुटाने पर सहमति बनी। इन लक्ष्यों में तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना भी शामिल है और यह धनराशि दुनिया की कुल वित्तीय सम्पदाओं का लगभग 40 फ़ीसदी हिस्सा है।

जलवायु कार्रवाई और वित्त के लिए संयक्त राष्ट्र के विशेष दूत मार्क कार्नी ने नैट शून्य के लिए ग्लासगो वित्तीय गठबन्धन को इकट्ठा किया है। यह गठबन्धन बैंकों हस्तियों, बीमा कम्पनियों की हस्तियों और निवेशकों का एक ऐसा समूह है, जिन्होंने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को अपने कामकाज के केंद्र में रखने का संकल्प व्यक्त किया है।

मार्क कार्नी ने कॉप-26 के जलवायु वित्त कार्यक्रम के दौरान, प्रतिनिधियों से दो टूक कहा कि आज मुख्य सन्देश यह है कि धन मौज़ूद है। बदलाव के लिए धन मौज़ूद है। बैंक ऑफ  इंग्लैंड के पूर्व गवर्नर मार्क कार्नी ने ज़ोर देकर कहा कि वह नैट शून्य के मुद्दे को नयी वित्तीय व्यवस्था के एक अति महत्त्वपूर्ण ढाँचे के रूप में देखते हैं।

इसके अलावा 5 नवंबर को ग्लास्गो में ‘युवजन’ का आयोजन किया गया। हज़ारों प्रदर्शनकारियों ने सडक़ों पर उतर कर जलवायु कार्रवाई के समर्थन में प्रदर्शन किया। उस दिन ग्लासगो के इस केंद्रीय इलाक़े में हम क्या चाहते हैं? जलवायु न्याय! हम यह कब चाहते हैं? अभी!’ जैसे नारों से गूँज उठा। विरोध-प्रदर्शन के दौरान एक कार्यकर्ता ने तो पोशाक पहन कर डायनासोर का रूप धारण किया। यहाँ बताया गया कि 23 से अधिक देशों में शिक्षा मंत्रियों और युवाओं ने राष्ट्रीय जलवायु शिक्षा प्रतिज्ञाएँ पेश किये हैं। इनमें शिक्षा क्षेत्र की कार्बन पर निर्भरता घटाने और स्कूल के लिए संसाधन विकास को अहम बताया गया है।

पर्यावरण समर्थक जुलूस

जब ग्लास्गो में सम्मलेन चल रहा था, वहाँ फ्राइडेज फॉर फ्यूचर नामक संस्था कार्यकर्ताओं ने बड़ा जुलूस (मार्च) निकाला। यह संस्था जानी-मानी पर्यावरण अभियानकर्ता स्वीडन ग्रेटा थनवर्ग से प्रेरित है। मार्च में सभी आयु वर्ग के लोग जियॉर्ड चौराहे पर जलवायु कार्रवाई की माँग को लेकर जुटे। यह लोग हाथों में तख़्तियाँ और बैनर थामे हुए थे और इनमें छोटे बच्चों से लेकर भावी पीढिय़ों के लिए बेहतर भविष्य की माँग करती महिलाएँ और वयस्क बड़ी संख्या में उपस्थित थे। इस मार्च में पर्यावरणविदों ने सम्बोधन भी दिये, जिनमें सबसे आख़िरी सम्बोधन थनबर्ग का रहा।

लातिन-अमेरिकी आदिवासी नेताओं ने भी प्रदर्शनों में शिरकत की। उन्होंने विश्व नेताओं तक बुलन्द आवाज़ में अपना सन्देश पहुँचाया, जिसमें कहा गया था कि संसाधनों का दोहन बन्द कीजिए और कार्बन को भूमि में ही रहने दीजिए। जियॉर्ज चौराहे के एक मंच पर जुटे कार्यकर्ताओं ने क्षोभ जताया कि आदिवासी नदियों में अपनी ज़िन्दगी गँवा रहे हैं। वे विकराल बाढ़ों में जीवन आहूत कर रहे हैं। उनके घर तबाह हो रहे हैं। भोजन, पुल, फ़सलें सभी कुछ नष्ट हो रहा है।

कुछ ऐसा ही सम्मेलन के ब्लू ज़ोन में भी दिखा। यंगगो नामक पहल के तहत 40,000 से अधिक युवा जलवायु कार्यकर्ताओं ने हस्ताक्षर किया हुआ एक ज्ञापन कॉप अध्यक्ष और अन्य नेताओं को सौंपा।

इस ज्ञापन में जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न हुई मौज़ूदा परिस्थितियों पर अनेक चिन्ताएँ जतायी गयी हैं। साथ ही जलवायु परिवर्तन मामलों पर यूएन संस्था की कार्यकारी सचिव पैट्रीशिया ऐस्पिनोसा से आग्रह किया गया है कि कॉप-26 के समापन पर घोषणा-पत्र के मसौदे में युवजन की अहमियत का भी उल्लेख किया जाए।

उन्होंने युवजन के साथ एक पैनल विचार-विमर्श में कहा कि हम इन मुद्दों और माँगों को प्रतिनिधियों के ध्यानार्थ लाएँगे; इनमें से सभी बेहद तार्किक और न्यायोचित हैं। युवा कार्यकर्ताओं द्वारा मंत्रियों को सौंपे गये इस वक्तव्य में जलवायु वित्त पोषण, आवाजाही, परिवहन, वन्य जीव रक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्र्यवाही का आग्रह किया गया है।

जलवायु परिवर्तन से मौतें

ख़राब मौसम के चरम पर पहुँचने की घटनाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से एशिया में साल 2020 में हज़ारों लोगों की मौत हुई है। लाखों विस्थापित हुए हैं, और सैकड़ों अरब डॉलर का नुक़सान हुआ है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) और इसके साझेदार संगठनों की एक रिपोर्ट में इसका ख़ुलासा हुआ है। अध्ययन में इन आपदाओं से बुनियादी ढाँचे और पारिस्थितिकी तंत्रों पर हुए भीषण असर की पड़ताल की गयी है।

रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 में बाढ़ और तुफ़ान की घटनाओं में एशिया में क़रीब पाँच करोड़ लोग प्रभावित हुए और पाँच हज़ार से अधिक लोगों की मौत हुई। यह आँकड़ा पिछले दो दशक के वार्षिक औसत (15 करोड़ प्रभावित और 15 हज़ार हताहत) से कम है; जो कि एशिया के अनेक देशों में समय पूर्व चेतावनी के बाद कार्यप्रणालियों की सफलता का द्योतक है। लेकिन टिकाऊ विकास पर ख़तरा मंडरा रहा है। खाद्य और जल असुरक्षा, स्वास्थ्य जोखिम और पर्यावरण क्षरण उभार पर हैं।

इस रिपोर्ट में भूमि और महासागर के तापमानों के बढऩे, हिमनदों का आकार घटने, समुद्रों में जमे पानी के सिकुडऩे, समुद्री जलस्तर बढऩे और चरम मौसम की गम्भीर घटनाओं पर जानकारी प्रदान की गयी है। यह रिपोर्ट ज़ाहिर करती है कि हिमालय की चोटियों से लेकर निचले तटीय इलाक़ों और घनी आबादी वाले शहरी इलाक़ों से लेकर रेगिस्तानों तक एशिया का हर हिस्सा जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हुआ है।

मई, 2020 में बेहद शक्तिशाली चक्रवाती तुफ़ान अम्फान से भारत और बांग्लादेश का सुन्दरवन इलाक़ा प्रभावित हुआ, जिससे भारत में 24 लाख लोग और बांग्लादेश में 25 लाख लोग विस्थापित हुए। बताया गया है कि ग्लेशियर का आकार घटने, ताज़ा और स्वच्छ हवा-पानी में कमी आने से भविष्य में एशिया में जल सुरक्षा और पारिस्थितिकी तंत्रों पर भीषण असर होने की आशंका है। भारत के लद्दाख़ हिमालय क्षेत्र में गर्मियों के दौरान पानी की कमी से निपटने के लिए कृत्रिम हिमनद (बर्फ़खण्ड) परियोजना सोनम वांगचुक के विचार पर आधारित थी।

इस रिपोर्ट में चक्रवाती तुफ़ानों, बाढ़ और सूखे से औसत वार्षिक नुक़सान सैकड़ों अरब डॉलर होने का अनुमान जताया गया है। एशिया-प्रशान्त क्षेत्र के लिए यूएन आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् द्वारा यह नुक़सान चीन में 238 अरब डॉलर, भारत में 87 अरब डॉलर और जापान में 83 अरब डॉलर आँका गया है।

एशिया के अनेक क्षेत्र में टिकाऊ विकास के 13वें लक्ष्य (जलवायु कार्यवाही) को हासिल करने के प्रयासों को झटका लगा है; क्योंकि त्वरित ढँग से सहनक्षमता निर्माण के अभाव में एसडीजी लक्ष्यों को पाने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।

विकट पेड़ कटान

जलवायु परिवर्तन के इस बड़े ख़तरें की नींव मानव ने ख़ुद रखी है। प्रकृति का जमकर दोहन इसका सबसे बड़ा कारण है। इनमें वन प्रमुख हैं। जिस स्तर पर वनों को काटा गया है, उसने दुनिया के सामने गम्भीर चुनौतियाँ पेश कर दी हैं। जानकार कहते हैं कि कार्बन डाईऑक्साइड को सोखने में वनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है और इन्हीं पर हमने सबसे बड़ी चोट की है। भारत की ही बात करें, तो इसके लद्दाख़ हिमालय क्षेत्र में गर्मियों के दौरान पानी की कमी से निपटने के लिए कृत्रिम हिमनद की एक परियोजना सामने आयी, जिसके सूत्रधार सोनम वांगचुक थे।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, सन् 1990 से 2018 तक भूटान, चीन, भारत और वियतनाम ने अपने वन आच्छादित क्षेत्र का आकार बढ़ाया है; लेकिन म्यांमार, कम्बोडिया सहित अन्य देशों में इसमें कमी आयी है। ग्लोबल फारेस्ट वॉच के संस्थापक डर्क ब्राएंट का कहना है कि महज़ 20 साल के भीतर दुनिया भर के 40 फ़ीसदी कट जाएँगे। दुनिया के सबसे बड़े जंगल ओकी-फिनोकी से लेकर भारत के सुदूर उत्तर पूर्व के जंगलों को निर्दयता से काटा जा रहा है। जंगल कटने से जीव-जन्तुओं की कई प्रजाति दुनिया से विलुप्त होती जा रही हैं।

जंगल की कटाई तीसरी दुनिया के देशों में ज़्यादा है। यह वही देश हैं, जहाँ विकास की प्रक्रिया तो धीमी है; लेकिन जनसंख्या वृद्धि पर ज़ीरो हैं। इस कारण से वर्षा वन, जो प्रकृति की ख़ुबसूरत देन हैं; तेज़ी से काटे जा रहे हैं। जंगल कटने से कार्बन डाईऑक्साइड बढ़ रही है और भूमि कटान तेज़ी से हो रहा है। हिमालय पर्वत पर वन कटान से भू-क्षरण तेज़ी से हो रहा है। एक सर्वे कहता है कि हिमालयी क्षेत्र में भूक्षरण की दर प्रतिवर्ष सात मिलीमीटर तक पहुँच गयी है, जिससे कई बार 500 से 1000 फ़ीसदी तक गाद घाटियों और झीलों में भर जाती है। उत्तराखण्ड, हिमाचल और कश्मीर में हाल की तबाहियों का प्रमुख कारण जगंलों का बेहिसाब कटान है।

भारत का पंचामृत मंत्र

 2030 तक भारत अपनी ग़ैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावॉट तक पहुँचाएगा।

 2030 तक भारत अपनी 50 फ़ीसदी ऊर्जा की आवश्यकता नवीकरणीय ऊर्जा से पूरी करेगा।

 अब से लेकर 2030 तक के कुल प्रोजेक्टेड कार्बन एमिशन में एक बिलियन टन की कमी करेगा।

 साल 2030 तक अपनी अर्थ-व्यवस्था की कार्बन इंटेन्सिटी को 45 फ़ीसदी से भी कम करेगा।

 साल 2070 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करेगा।

दुनिया में जलवायु परिवर्तन से बीमारी का पहला मामला आया सामने

जलवायु परिवर्तन से बीमार होने का पहला मामला कनाडा में सामने आया है। इसी महीने की 8 तारीख़ को कनाडा की 70 साल की बुज़ुर्ग महिला दुनिया की पहली महिला बन गयीं, जिनके रोग का कारण जलवायु परिवर्तन बताया गया है। इस महिला का नाम उजागर नहीं किया गया है। लेकिन ख़बरें से पता चलता है कि उसे कनाडा के कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रान्त में कूटने लेक अस्पताल में भर्ती किया गया था, जहाँ डॉ. काइल मेरिट ने उनके रोग को जलवायु परिवर्तन के कारण हुआ बताया है। डॉक्टर काइल के मुताबिक, साल के शुरू में चलीं गर्म हवाओं से यह महिला एक साथ कई स्वास्थ्य समस्याओं से घिर गयी, जिनकी हालत अब और गम्भीर हो गयी है। अस्थमा और डायबिटीज से भी पीडि़त इस महिला को साँस लेने में दिक़्क़त सहित कुछ अन्य तकलीफ़ों से दो-चार होना पड़ा है। डॉक्टरों के मुताबिक, यह महिला आज हाइड्रेटेड रहने के लिए संघर्ष कर रही है। वैसे डॉक्टर मेरिट का मत है कि रोगियों के लक्षणों का इलाज करने तक सीमित रहने से ज़्यादा बेहतर समस्या के कारणों की पहचान और उनका निदान करने पर होना चाहिए।

प्लास्टिक जन्य प्रदूषण का ख़तरा

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की एक नयी रिपोर्ट में महासागरों और अन्य जल क्षेत्रों में प्लास्टिक प्रदूषण की तेज़ी से बढ़ती मात्रा पर चिन्ता जतायी गयी है। इसके साल 2030 तक दोगुना हो जाने का अनुमान जताया गया है। यूएन के वार्षिक जलवायु सम्मेलन कॉप-26 से 10 दिन पहले जारी इस रिपोर्ट में प्लास्टिक को भी एक जलवायु समस्या क़रार दिया गया है।

रिपोर्ट में प्लास्टिक से स्वास्थ्य, अर्थ-व्यवस्था, जैव-विविधता और जलवायु पर होने वाले दुष्प्रभावों को रेखांकित किया गया है। साथ ही वैश्विक प्रदूषण संकट से निपटने के लिए अनावश्यक, टालने योग्य और समस्या की वजह बनने वाले प्लास्टिक में ठोस कमी लाये जाने पर बल दिया गया है। प्लास्टिक की मात्रा में ज़रूरी गिरावट को सम्भव बनाने के लिए जीवाश्म ईंधनों के बजाय नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में तेज़ रफ़्तार से आगे बढऩे, उनसे सब्सिडी हटाने और उत्पादों को फिर से इस्तेमाल में लाने (चक्रीय) जैसे उपाय अपनाने का सुझाव दिया गया है। ‘फ्रॉम प्लास्टिक टू सॉल्यूशन : अ ग्लोबल असेसमेंट ऑफ मरीन मीटर एंड प्लास्टिक पॉल्यूशन’ शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट से ज़ाहिर होता है कि प्लास्टिक से सभी पारिस्थितिकी तंत्रों के लिए ख़तरा बढ़ रहा है। प्लास्टिक के गहराते संकट से निपटने और उसके दुष्प्रभावों की दिशा पलटने के लिए समझ व ज्ञान तो बढ़ रहा है; लेकिन इसे कारगर कार्रवाई में बदलने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत रहेगी।

यूएन एजेंसी ने ज़ोर देकर कहा है कि प्लास्टिक एक गम्भीर जलवायु समस्या भी है। इसमें बताया गया है कि सन् 2015 में प्लास्टिक से होने वाला ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 1.7 गीगाटन कार्बन डाईऑक्साइड के बराबर था। साल 2050 में यह आँकड़ा बढक़र क़रीब 6.5 गीगाटन तक पहुँच जाने का अनुमान है। यह सम्पूर्ण कार्बन बजट का 15 फ़ीसदी है। अर्थात् ग्रीनहाउस गैस की वह मात्रा, जिसे वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को पैरिस समझौते के लक्ष्यों के भीतर रखने के लिए उत्सर्जित किया जा सकता है।

यूएन पर्यावरण एजेंसी की कार्यकारी निदेशक इन्गर एण्डरसन के मुताबिक, यह रिपोर्ट तत्काल कार्र्यवाही करने और महासागरों की रक्षा और उनकी पुन: बहाली के पक्ष में अब तक का सबसे मज़बूत वैज्ञानिक तर्क है। उन्होंने बताया कि एक बड़ी चिन्ता टूटकर बिखर जाने वाले उत्पादों से जुड़ी है। जैसे कि प्लास्टिक के महीन कण और बेहद कम मात्रा में मिलाये जाने वाले रासायनिक पदार्थ जो ज़हरीले हैं और मानव स्वास्थ्य, वन्यजीवन स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्रों के लिए नुक़सानदेह हैं।

जानकारी के मुताबिक, समुद्र में कचरे की कुल मात्रा में से 85 फ़ीसदी प्लास्टिक ही है। साल 2040 तक इसकी मात्रा तीन गुना होने की आशंका है, और महासागरों में हर साल 2 करोड़ 30 लाख 70 हज़ार मीट्रिक टन कचरा पहुँचेगा। यह तटीय रेखा के प्रति मीटर हिस्से के लिए लगभग 50 किलोग्राम प्लास्टिक बन जाता है। इससे समुद्री जीवन, पक्षियों, कछुओं और स्तनपायी पशुओं के लिए एक बड़ा जोखिम पैदा होने की आशंका है। प्लास्टिक के दुष्प्रभावों से मानव शरीर भी अछूता नहीं है। समुद्री भोजन, पेय पदार्थों और साधारण नमक में भी मिल जाने वाले प्लास्टिक का सेवन नुक़सानदेह है। इसके अलावा हवा में लटके महीन कण, त्वचा को बेधते हैं और साँस के ज़रिये भी अन्दर आ सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि केवल पुनरावर्तन (री-साइक्लिंग) का सहारा लेकर, प्लास्टिक प्रदूषण संकट से बाहर निकल पाना सम्भव नहीं है। इसके अलावा उन्होंने अन्य हानिकारक विकल्पों, जैसे कि जैव-आधारित या जैव रूप से नष्ट होने योग्य के इस्तेमाल पर भी सचेत किया है, जिनसे आम प्लास्टिक की तरह ही जोखिम पैदा हो सकते हैं। रिपोर्ट में प्लास्टिक उत्पादन और खपत में तत्काल कमी लाने का आग्रह किया गया है, और सम्पूर्ण मूल्य श्रृंखला में रूपान्तरकारी बदलाव को प्रोत्साहन दिया गया है।

यूएन एजेंसी ने प्लास्टिक के स्रोत, स्तर और उसकी नियति की पहचान करने के लिए ठोस और कारगर निगरानी प्रणालियों में निवेश की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। इस क्रम में चक्रीय तौर-तरीक़ों (प्लास्टिक के इस्तेमाल को घटाने, फिर से इस्तेमाल में लाने और पुनरावर्तन) व अन्य विकल्पों को अपनाना भी ज़रूरी होगा।

भारत का विकसित देशों पर हमला

 

भारत ने इस बार ग्लासगो में आयोजित वल्र्ड लीडर समिट ऑफ कॉप-26 में अपने एजेंडे को कहीं बेहतर तरीक़े और स्पष्टता से रेखांकित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के अभियान का नेतृत्व किया और अपने सम्बोधन में पंचामृत का नारा दिया, जिसे दूसरे देशों के मुखियाओं से काफ़ी प्रशंसा मिली।

मोदी ने कहा कि भारत 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्हें इस बात के लिए काफ़ी तारीफ़ मिली। इसका एक कारण यह रहा कि एक विकासशील देश के लिहाज़ से आर्थिक और पर्यावरणीय ज़रूरतों को सन्तुलित करने की कोशिश की इसमें गम्भीर कोशिश की गयी है। भारत सरकार ने भी मोदी के भाषण को तरजीह दी। लिहाज़ा देश के टीवी चैनलों ने इसका सीधा प्रसारण किया। वैसे इस बात को लेकर काफ़ी विशेषज्ञों ने निराशा जतायी है कि भारत ने लक्ष्यों को अंतरराष्ट्रीय लक्ष्य साल 2050 के भी दो दशक बाद हासिल करने का वादा किया है। हाँ, कुछ विशेषज्ञों ने भारत की आबादी और अन्य कारणों के आधार पर इस लक्ष्य को व्यावहारिक माना है।

सम्मलेन में मोदी के भाषण से यह भी ज़ाहिर हुआ कि वे विकसित देशों के दबाव में नहीं दिखे। उन्होंने एक तरह से विकसित देशों को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि दुनिया की आबादी का 17 फ़ीसदी देश होने बावजूद यह कुल कार्बन उत्सर्जन में महज़ 5 फ़ीसदी से भी कम भागीदारी करता है। इससे पर्यावरण के मामले में भारत का पक्ष मज़बूत हुआ है।

मोदी ने कहा- ‘आज विश्व की आबादी का 17 फ़ीसदी होने के बावजूद, जिसकी उत्सर्जन में ज़िम्मेदारी सिर्फ़ पाँच फ़ीसदी रही है, उस भारत ने अपना कर्तव्य पूरा करके दिखाने में कोई कोर-क़सर बाक़ी नहीं छोड़ी है।’

प्रधानमंत्री ने कहा- ‘मुझे ख़ुशी है कि भारत जैसा विकासशील देश करोड़ों लोगों को ग़रीबी से बाहर निकालने में जुटा है और करोड़ों लोगों की जीवन में आसानी लाने पर रात-दिन काम कर रहा है।’ सम्मलेन में मोदी ने विकसित देशों के विकासशील देशों पर दबाव बनाने पर उनकी खिंचाई भी की। मोदी ने कहा- ‘यह सच्चाई हम सभी जानते हैं कि जलवायु वित्त को लेकर आज तक किये गये वादे खोखले ही साबित हुए हैं। जब हम सभी जलवायु कार्यवाही पर अपनी महत्त्वाकांक्षा बढ़ा रहे हैं, तब क्लामेट फाइनेंस पर दुनिया की इच्छा वही नहीं रह सकती, जो पेरिस समझौते के समय थी। जलवायु परिवर्तन पर इस वैश्विक मंथन के बीच मैं भारत की ओर से इस चुनौती से निपटने के लिए पाँच अमृत तत्त्व रखना चाहता हूँ। पंचामृत की सौगात देना चाहता हूँ।’

मोदी ने अपने सम्बोधन में कहा कि आज जब मैं आपके बीच आया हूँ, तो भारत के ट्रैक रिकॉर्ड को भी लेकर आया हूँ। मेरी बातें सिर्फ़ शब्द नहीं हैं; ये भावी पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य का जयघोष है। मोदी ने कहा कि आज भारत स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता में दुनिया भर में चौथे स्थान पर है। उन्होंने कहा कि विश्व की पूरी आबादी से भी अधिक यात्री, भारतीय रेल से हर वर्ष यात्रा करते हैं। इस विशाल रेलवे तंत्र ने अपने आपको साल 2030 तक नेट ज़ीरो बनाने का लक्ष्य रखा है। अकेली इस पहल से सालाना 60 मिलियन टन एमिशन की कमी होगी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि सोलर पॉवर में एक क्रान्तिकारी क़दम के रूप में हमने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबन्धन की पहल की। जलवायु अनुकूलन के लिए हमने आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिए गठबन्धन का निर्माण किया है। ये करोड़ों ज़िन्दगियों को बचाने के लिए एक संवेदनशील और महत्त्वपूर्ण पहल है।

ग्लासगो सम्बोधन में मोदी ने कहा- ‘मैं आज आपके सामने एक शब्द मुहिम (वन-वर्ड मूवमेंट) का प्रस्ताव रखता हूँ। यह एक शब्द जलवायु के सन्दर्भ में एक शब्द-एक विश्व का मूल आधार बन सकता है; अधिष्ठान बन सकता है। यह एक शब्द है- लाइफ, एल. आई. एफ. ई. यानी लाइफस्टाइल फॉर इन्वॉयरमेंट।’

मोदी सम्मेलन में हिस्सा लेने से पहले भी सक्रिय रहे। मोदी ने सम्मलेन के अपने सम्बोधन से पहले कहा- ‘हमें अनुकूलन को अपनी विकास नीतियों और योजनाओं का मुख्य हिस्सा बनाना होगा। भारत में नल से जल, स्वच्छ भारत मिशन और उज्ज्वला जैसी योजनाओं से न सिर्फ़ हमारे नागरिकों को लाभ मिला है, बल्कि उनके जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है।’

प्रधानमंत्री ने कहा कि कई पारम्परिक समुदायों को प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने का ज्ञान है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह ज्ञान आने वाली पीढिय़ों तक पहुँचे, इसे स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल जीवन शैली का संरक्षण भी अनुकूलन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है।

भारत में मोदी सरकार के तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ एक साल से चल रहे आन्दोलन के बीच ग्लास्गो में मोदी ने कहा- ‘भारत समेत अधिकतर विकासशील देशों के किसानों के लिए जलवायु एक बड़ी चुनौती है। खेती के तरीक़ों में बदलाव आ रहा है। बेसमय बारिश और बाढ़ या लगातार आ रहे तुफ़ानों से फ़सलें तबाह हो रही हैं। पेयजल के स्रोत से लेकर किफ़ायती आवास तक सभी को जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ साथ आने की ज़रूरत है। अनुकूलन के तरीक़ों चाहें लोकल हों; लेकिन पिछले देशों को इसके ग्लोबल समर्थन मिलना चाहिए।’

प्रधानमंत्री ने सन् 2015 में पेरिस में कॉप-21 में इससे पहले हिस्सा लिया था। इस बार के सम्मलेन को कॉप-26 (कान्फ्रेंस ऑफ पार्टीज) कहा गया, जिसका मक़सद जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर रूपरेखा तैयार करना था। सम्मलेन 13 नवंबर तक चला। याद रहे छ: साल पहले फ्रांस की राजधानी में हुए सम्मेलन में इस सदी के अन्त तक ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस (3.6 डिग्री फारेनहाइट) से नीचे रखने के लक्ष्य पर सहमति जतायी गयी थी। इस साल सम्मेलन के लिए 25,000 से अधिक प्रतिनिधियों ने पंजीकरण कराया है। ब्रिटिश अधिकारी आलोक शर्मा इसकी अध्यक्षता करेंगे।

 

 

“26 साल के जलवायु सम्मेलनों के बावजूद कथित तौर पर ‘आँय, बाँय, शाँय’ जारी रखने वाले नेता आलोचना के पात्र हैं। कॉप बैठकों के दौरान किये जाने वाले वादों की पारदर्शिता पर सन्देह के असंख्य कारण हैं। नेतागण कुछ भी नहीं कर रहे हैं। वे बस ऐसे रास्ते तैयार कर रहे हैं, जिनसे उन्हें फ़ायदा मिलता हो, और विनाशकारी प्रणाली से मुनाफ़ा मिलना जारी रह सके। प्रकृति और लोगों का दोहन, मौज़ूदा और भावी जीवन की परिस्थितियों की तबाही जारी रखने के लिए नेताओं द्वारा किये जाने वाला यह एक सक्रिय चयन है।”

ग्रेटा थनबर्ग

पर्यावरण अभियानकर्ता

पर्यावरण और पंचामृत

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के सदस्यों के सम्मेलन (कॉप26) के लिए ग्लासगो में एकत्र हुए विश्व नेताओं को पंचामृत की पेशकश की, तो यह स्पष्ट था कि भारत ने अमीर देशों पर हमला किया था। भारत ने वन वर्ल्ड – लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट (पर्यावरण के लिए एक विश्व जीवन शैली) का मूल आधार बनने के लिए एक शब्द लाइफ (जीवन) इस अभियान को दिया। चुनौती से निपटने के लिए पाँच अमृत तत्त्व ‘पंचामृत’ की बात की। इसके तहत साल 2030 तक भारत अपनी ग़ैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावॉट तक ले जाएगा। अक्षय ऊर्जा से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50 फ़ीसदी तक पूरा करेगा। कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को एक अरब टन से कम करेगा। अपनी अर्थ-व्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45 फ़ीसदी से कम करके भारत अन्त में साल 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तैयार है।

भारत का अभियान मानव जाति के ग्रह (पृथ्वी) को बचाने के लिए पर्यावरण के प्रति अपने शोषणकारी दृष्टिकोण को सुधारने का एक अवसर है। जलवायु परिवर्तन के कारण चरम तक ख़राब होते मौसम ने जीवन पर भारी असर डाला है। पूरी दुनिया को उत्सर्जन में कटौती की ज़रूरत है। वर्तमान में विकसित और विकासशील देशों के बीच विश्वास की कमी है। अमीर देश पर्यावरण के क्षरण के लिए ग़रीब देशों को दोषी ठहराने में लगे हैं।

तथ्य यह है कि भारत दुनिया की 17 फ़ीसदी आबादी वाला देश होने के बावजूद कार्बन का केवल पाँच फ़ीसदी हिस्सा ही उत्सर्जित करता है। जबकि चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ के देश पूरी दुनिया से उत्सर्जित 36.44 गीगा टन कार्बन डाईऑक्साइड का 50 फ़ीसदी से अधिक हिस्से का उत्सर्जन करते हैं। हैरानी की बात है कि वैश्विक उत्सर्जन में अकेले चीन का योगदान 25 फ़ीसदी से अधिक है। वहीं भारत के मुक़ाबले केवल एक-चौथाई आबादी वाला अमेरिका भी भारत के मुक़ाबले दोगुने से अधिक कार्बन का उत्सर्जन कर रहा है। मूल रूप से सभी मनुष्य समान हैं और यह प्रति व्यक्ति कार्बन फुटप्रिंट है, जिसका अर्थ होना चाहिए कि अमीर देशों ने समान शर्तों पर ज़िम्मेदारी साझा करने के लिए अपने कार्बन उत्सर्जन में आनुपातिक रूप से कटौती दिखायी होगी। अमीर देश समाधान के साथ सामने नहीं आने में देरी बढ़ते तापमान की क़ीमत पर कर रहे हैं और केवल ग़रीब देशों को दोष दे रहे हैं। शुद्ध शून्य उत्सर्जन का रोडमैप नयी अर्थ-व्यवस्था और उदार वित्त पोषण के लिए समावेशी हरित प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण है।

संयुक्त राष्ट्र के एक निकाय जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल ने भी अपनी रिपोर्ट में तर्क देते हुए कहा है कि भूमंडलीय ऊष्मीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) को सतत् विकास, ग़रीबी उन्मूलन और असमानताओं को कम करने की अधिक क्षमता के साथ काम करना होगा। इससे पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस कार्बन उत्सर्जन के बजाय 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित होगा और ऐसा करने से पर्यावरण के कई पहलुओं को हासिल करना काफ़ी आसान हो जाएगा।
आईपीसीसी रिपोर्ट में भी ऊर्जा के लिए कोयला, गैस और तेल में भारी कमी, बिजली उत्पादन की कार्बन तीव्रता को कम करने और नवीकरणीय स्रोतों की हिस्सेदारी को लगभग 70 फ़ीसदी तक बढ़ाने का सुझाव दिया गया है। यह ख़ुशी की बात है कि दुनिया के दो सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले देशों- अमेरिका और चीन ने अब पृथ्वी के पर्यावरण को और ख़राब होने से बचाने के लिए उन्नत जलवायु क्रियाओं के लिए एक कार्य समूह बनाकर मिलकर काम करने की घोषणा की है। सहयोग का यह सिद्धांत मानवता को आशा की एक किरण दिखाता है।