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पुलवामा जिले के कस्बा यार में मुठभेड़, 2 आतंकी ढेर

कश्मीर में सुरक्षा बलों की कार्रवाई में दो आतंकी मारे गए हैं। यह आतंकी पुलवामा जिले में एक मुठभेड़ में ढेर किये गए। इनमें एक जैश-ए- मोहम्मद (जेईएम) का कमांडर भी बताया गया है।

जानकारी के मुताबिक पुलवामा जिले के कस्बा यार इलाके में यह मुठभेड़ हुई। सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच हुई इस मुठभेड़ में दो आतंकी मारे गए। कश्मीर पुलिस के मुताबिक जो आतंकी मुठभेड़ में मारे गए हैं उनमें से एक की पहचान जैश-ए- मोहम्मद का कमांडर यासिर परे भी शामिल है।

पुलिस  मुताबिक मारा गया दूसरा आतंकी फुरकान है जिसकी पहचान एक विदेशी आतंकी के तौर पर की गयी है। यासिर परे को विस्फोटक बनाने में माहिर माना जाता था। पुलिस के मताबिक इससे पहले भी यह दोनों आतंकी कुछ घटनाओं में शामिल थे।

मुठभेड़ तब शुरू हुई जब पुलिस को पुलवामा के कस्बा यार इलाके में आतंकियों की मौजूदगी की जानकारी मिली। इसके बाद जेके पुलिस, सेना और सीआरपीएफ की साझा टुकड़ी उस इलाके में पहुँची। सर्च ऑपरेशन शुरू किया गया। बाद में घिरने पर आतंकियों की तरफ से गोलीबारी शुरू कर दी गयी जो मुठभेड़ में तब्दील हो गयी और 2 आतंकी ढेर कर दिए गए।

विपक्ष का सांसदों के निलंबन पर विरोध प्रदर्शन, राज्य सभा कार्यवाही 2 बजे तक स्थगित

प्रधानमंत्री मोदी की वरिष्ठ मंत्रियों के साथ बैठक के बीच कांग्रेस और विपक्ष ने बुधवार को फिर महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने 12 सांसदों के निलंबन के खिलाफ प्रदर्शन किया। उधर राज्यसभा में आज फिर सांसदों के निलंबन के खिलाफ विपक्ष ने हंगामा और नारेबाजी की जिसके बाद सदन की कार्यवाही पहले दोपहर 12 बजे तक स्थगित की गई लेकिन फिर शुरू होने पर जब विपक्ष ने हंगामा किया तो 2 बजे तक स्थगित कर दिया गया।

बता दें संसद के शीतकालीन सत्र का आज तीसरा दिन है और पिछले दो दिन के हंगामे के बाद आज फिर हंगामा हुआ है। विपक्ष पहले किसान कानूनों को लेकर सदन में चर्चा चाहता था, लेकिन सरकार ने इसे नहीं माना। अब 12 विपक्षी सांसदों के निलंबन के खिलाफ कांग्रेस और विपक्ष आंदोलित है।

पहले बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसद की कार्यवाही शुरू होने से पहले मंत्रिमंडल के वरिष्ठ साथियों के साथ बैठक की जिसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी, कानून मंत्री किरण रिजिजू और संसदीय मामलों के मंत्री प्रह्लाद जोशी शामिल रहे। समझा जाता है कि पीएम ने आने वाले बिलों और विपक्ष के आचरण पर चर्चा की।

लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने आज किसान आंदोलन के दौरान  किसानों की शहादत का मुद्दा उठाया। कांग्रेस के अन्य सदस्यों और विपक्षी सदस्यों ने इस मौक पर ‘हमें न्याय चाहिए’ के नारे लगाए।

इधर सरकार को आज लोकसभा में कई विधेयक पेश करने हैं। इनमें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया लोकसभा में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी(विनियमन) विधेयक, 2020 भी शामिल है।

फिर बढ़ी मास्क और सेनेटाइजर की मांग

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओमिक्रोन को लेकर चेतावनी के बाद देश का स्वास्थ्य महकमा सकते में है। कि कहीं कोरोना का ये नया रूप फिर से लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ न कर दें। वहीं कोरोना की रोकथाम में अनिवार्य सेनेटाईजर और मास्क का बाजार फिर से जोर-पकड़ने लगा है।

बताते चलें, नवम्बर माह में कोरोना के मामलों में कमी आने के कारण महानगरों के अलावा गांव-कस्बों के ज्यादा लोगों ने मास्क और सेनेटाइजर का प्रयोग कम कर दिया था।

लेकिन जैसे ही अब डब्ल्यूएचओ ने कहा कि ओमिक्रोन का जोखिम ज्यादा है। मीडिया के माध्यम से गांव-गांव शहर–शहर तक बात पहुचंने पर लोग फिर से सतर्क हो गये है। और फिर, से मास्क और सेनेटाइजर का प्रयोग करने लगे है।

दिल्ली के दवा व्यापारियों का कहना है कि अक्टूबर और नवम्बर माह में लोगों ने मास्क और सेनेटाइजर का प्रयोग कम कर दिया था। जिसके कारण बाजारों से सेनेटाइजर और मास्क की बिक्री में तेजी से गिरावट आयी थी।

जैसे ही 4 दिन पहले डब्ल्यूएचओ और देश–दुनिया के डाक्टरों ने चिंता व्यक्त की ओमिक्रोन का खतरा डेल्टा वायरस से कहीं अधिक है। इससे बचाव के तौर पर हमें सोशल डिस्टेसिंग का पालन करना होगा। वहीं सेनेटाइजर और मास्क का भी प्रयोग करना होगा। इसके चलते गत चार दिनों में मास्क और सेनेटाइजर की बिक्री में इजाफा हुआ है।

लोग फिर से सेनेटाइजर और मास्क को खरीद रहे है। दवा व्यापारी पवन नारंग का कहना है कि कोई मुसीबत हो या अवसर इसके पीछे बाजार छिपा होता है। मौजूदा समय में ओमिक्रोन जैसी बीमारी से बचने के लिये लोगों ने फिर से सेनेटाइजर और मास्क को खरीदना शुरू किया है। जो चार दिन पहले बंद था। उनका कहना है कि छोटे-छोटे और पिछड़े इलाकों से फिर से सेनेटाइजर मास्क की मांग बड़ी है।

प्रौद्योगिकी विकास में भारत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 नवंबर को सिडनी संवाद में भारत के प्रौद्योगिकी विकास और कान्ति विषय पर सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि हम दुनिया की सबसे व्यापक सार्वजनिक सूचना और संरचना का निर्माण कर रहे हैं और 60,000 गाँवों को जोडऩे की राह पर हैं। हम सशक्तिकरण, संयोजकता (कनेक्टिविटी), लाभ वितरण और कल्याण सहित शासन के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग करके लोगों के जीवन को बदल रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत के उद्योग सेवा क्षेत्र संसाधनों के रूपांतरण और जैव विविधता के संरक्षण के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करके बड़े पैमाने पर डिजिटल परिवर्तन के दौर से गुज़र रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत को भविष्य के लिए तैयार करने का बड़ा प्रयास हो रहा है। हम 5जी और 6जी जैसी दूरसंचार प्रौद्योगिकी में स्वदेशी क्षमता विकसित करने में निवेश कर रहे हैं। भारत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में अग्रणी देशों में से एक है।

सभी रिपोट्र्स और सूचनाओं को देखें, तो हम पाते हैं कि मोदी सरकार में सन् 2014 के बाद प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कुछ सराहनीय कार्य तो हुए हैं; लेकिन भारत में प्रौद्योगिकी का जितना विकास होना चाहिए था, वो अभी तक नहीं हुआ है। इसमें और तेज़ी लाने की ज़रूरत है। भारत का सालाना रक्षा बजट लगभग 4.78 लाख करोड़ रुपये का है, फिर भी भारत हथियार और रक्षा उपकरणों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है। आज भी भारत अपनी रक्षा ज़रूरतों का क़रीब 60 फ़ीसदी सामान आयात करता है। इसके अतिरिक्त उत्पादन, इलेक्ट्रॉनिक्स सहित कई क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर आयात होता है। कुल मिलाकर भारत तकनीक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत अभी अन्य देशों से बहुत पीछे है। देश को अमेरिका, चीन, जापान जैसे विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा करने के लिए केंद्र सरकार को अभी अथक प्रयास करने होंगे।

पिछली सरकार ने एक महत्वाकांक्षी भारतीय एसटीआई उद्यम के मार्गदर्शक विजन के साथ विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (एसटीआई) नीति 2013 बनायी थी। मौज़ूदा सरकार ने नयी शिक्षा नीति उच्च शिक्षा के विदेशी संस्थानों को भारत में नये संस्थान खोलने के लिए प्रेरित करने का हर सम्भव प्रयास किया। लेकिन सन् 2014 के बाद देश में पहले से खुले हुए संस्थान तेज़ी से बन्द हुए हैं। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (एआईसीटीई) के अनुसार,  शिक्षा सत्र 2014-15 में 77 संस्थान बन्द हुए थे। इसके बाद 2015-16 में 126, 2016-17 में 163, 2017-18 में 134, 2018-19 में 89, 2019-20 में 92 और पिछले साल यानी 2020 में 179 तकनीकी उच्च शिक्षा के संस्थान बन्द हो गये थे। शिक्षा संस्थानों के इतनी तेज़ी से बन्द होने के पीछे सरकार की क्या मंशा रही, यह तो नहीं पता; लेकिन इससे शिक्षा के क्षेत्र में देश का बहुत बड़ा नुक़सान ज़रूर हुआ है। बड़ी बात यह है कि इतनी बड़ी संख्या में संस्थानों के बन्द होने के पीछे कोरोना वायरस महामारी का असर बताया जा रहा है‌। लेकिन संस्थान तो कोरोना महामारी से पहले भी ख़ूब बन्द हुए हैं।

हालाँकि 24 मार्च, 2020 को तालाबन्दी के बाद तो सभी शिक्षण संस्थान बन्द हो गये थे। कई परिवारों की कमायी में कमी आयी, जिसकी वजह से अनेक छात्रों को फीस देने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इससे संस्थानों की कमायी पर भी असर पड़ा है। संस्थानों को चालू रखने के लिए कई जगह तमाम अध्यापकों को या तो नौकरी से निकाल दिया गया या मार्च से वेतन नहीं दिया गया। लेकिन अकेले महामारी ही इस समस्या का कारण नहीं है। पिछले कई साल से इनमें से अधिकतर संस्थानों में बड़ी संख्या में पद ख़ाली पड़े हुए हैं। यहाँ तक कि आईआईटी जैसे तकनीकी शिक्षा संस्थानों, जहाँ कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच दाख़िला लेना करोड़ों छात्रों के लिए एक सपना होता है; में भी अभी शिक्षक पद ख़ाली पड़े हैं। 2018-19 सत्र में देश के 23 आईआईटी संस्थानों में 118 पद ख़ाली थे। ये सब रोज़गार और करियर के बदलते स्वरूप तथा छात्रों की कई विषयों में रुचि गिरने की वजह से हो रहा है।

अक्टूबर, 2020 में प्रधानमंत्री ने बताया था कि सन् 2014 से पहले तक देश में 16 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और नौ भारतीय सूचना और प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईआईटी) थे। सन् 2014 के बाद सात आईआईटी और 16 नये आईआईआईटी की स्थापना की गयी है। 5 फरवरी, 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईआईटी) अधिनियम संशोधन विधेयक को मंज़ूरी देकर पाँच भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान (आईआईटी) को राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान का दर्जा देने का प्रावधान किया। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अनुसार, वर्तमान में भारत में 23 आईआईटी हैं। देश में 31 राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) हैं, जिनमें से 31वें एनआईटी, आंध्र प्रदेश की स्थापना सन् 2015-16 में हुई। वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान कुछ डीएसटी संस्थानों में शोध केंद्रों की स्थापना की गयी।

भारत को आत्मनिर्भर बनाने और अगले दशक में वैज्ञानिक शोध एवं विकास के मामले में देश को विश्व के अग्रणी राष्ट्रों की पंक्ति में लाने का लक्ष्य लेकर बनायी गयी नयी विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं नवाचार नीति के मसौदे को अन्तिम रूप दे दिया गया है। महत्त्वपूर्ण मानव संसाधन को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की ओर आकर्षित एवं पोषित करने के साथ-साथ उन्हें इस क्षेत्र में बनाये रखने के लिए इस नीति के अंतर्गत जन केंद्रित पारिस्थितिक तंत्र विकसित करने पर ज़ोर दिया गया है। इस नयी नीति में हर पाँच साल में पूर्णकालिक समतुल्य शोधकर्ताओं की संख्या, शोध एवं विकास पर सकल घरेलू व्यय (जीईआरडी) और जीईआरडी में निजी क्षेत्र के योगदान को दोगना करने पर भी बल दिया गया है।

प्रौद्योगिकी के विकास से कृषि के क्षेत्र में अधिक उपज देने वाले बीजों से लेकर फ़सलों के पकने के बाद की प्रौद्योगिकी के प्रयोगों ने अनाजों की उपज को बढ़ाया है। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) तथा प्रतिरक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) निरंतर नागरिकों और रक्षा विभाग के लिए विस्तृत पैमाने पर विज्ञान और तकनीकी अनुसंधान में संलग्न हैं। रक्षा के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी विकास का ही आधुनिकतम परिणाम है कि भारत में अब मिसाइल बनायी जाने लगी हैं। कुछ मिसाइलों का आगामी विकास हेतु परीक्षण भी किया जा चुका है।

सन् 2014 में भारत ने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का सफल परीक्षण किया। क्रायोजेनिक इंजन बहुत भारी सेटेलाइट्स को लम्बी दूरी तक प्रक्षेपित करने में सफल है। मिशन 2017 के अंतर्गत इसरो ने एक साथ 104 उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा के अन्दर स्थापित किया था। इसरो ने इसके द्वारा विश्व कीर्तिमान बनाया। सन् 2019 में भारत ने चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण किया था। ये मिशन आंशिक रूप से सफल रहा। इसका आर्बिटर सफलतापूर्वक आज भी चंद्रमा के चारों ओर घूम रहा है; लेकिन विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर की क्रैश लैंडिंग हुई थी।

सरकार मेक इन इंडिया प्रोग्राम में रक्षा उपकरणों में स्वदेशी उत्पादन को महत्त्व दे रही है। सैन्य सुधारों के लिए एफडीआई पॉलिसी, इंडस्ट्रियल लाइसेंसिंग पॉलिसी और निर्यात को सरल बनाया गया है। रक्षा निर्यात के मामले में भारत अब शीर्ष 25 देशों में पहुँच गया है। रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्र में भारत को दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल करने के लिए रक्षा मंत्रालय ने 3 अगस्त, 2020 को रक्षा उत्पादन और निर्यात संवर्धन नीति का मसौदा जारी किया है।

राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी विकास रणनीति मसौदा 2020-24 का लक्ष्य वर्ष 2025 तक जैव प्रौद्योगिकी उद्योग को 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक ले जाना तथा शिक्षा और उद्योग को जोड़ते हुए जीवंत स्टार्टअप, उद्यमी और औद्योगिक आधार का निर्माण तथा विकास करना है। सन् 2016 में आईआईटी गुवाहाटी में सेंटर फॉर रूरल टेक्नोलॉजी की स्थापना हुई और सन् 2018 में इसमें नये सिरे से बदलाव किये गये, ताकि आईआईटी, एनआईटी, आईआईएसईआर जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों को ग्रामीण समुदायों से जोड़ा जा सके। 2014-15 के बाद भू-स्थानिक क्षेत्र से प्राकृतिक संसाधन डेटा प्रबन्धन प्रणाली के तहत कई अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गयी।

दिसंबर, 2016 में तारापुर महाराष्ट्र साइट के लिए सैद्धांतिक मंज़ूरी दी गयी, जो कि थोरियम अनुप्रयोग के लिए उपयोग किये जाने वाले 300 मेगावॉट उन्नत भारी जल रिएक्टर का पता लगाने वाला है। भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को लोकप्रिय बनाने के लिए दिल्ली में 15 जनवरी, 2019 को दो विज्ञान संचार कार्यक्रम डीडी विज्ञान और भारत विज्ञान शुरू हुए।

भारत विश्व के विभिन्न देशों के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी साझेदारी के साथ अमेरिका में 30 मीटर टेलीस्कोप, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में स्क्वायर किलोमीटर ऐरे जैसी अत्याधुनिक खगोल विज्ञान सुविधाओं को तैयार करने के काम में भाग ले रहा है। भारत संयुक्त राज्य अमेरिका के सहयोग से महाराष्ट्र में लेजर इंटरफेरोमीटर गुरुत्वाकर्षण तरंग वेधशाला का तीसरा डिटेक्टर स्थापित कर रहा है। भारत विशेष रूप से विमानन जैव ईंधन ऊर्जा के क्षेत्र में वैश्विक विज्ञान और प्रौद्योगिकी साझेदारियों के लिए प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में उभरा है। सन् 2017 में भारत परमाणु अनुसंधान के लिए यूरोपीय संगठन का एक सहयोगी सदस्य बन गया है। अगर केंद्र सरकार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ठीक से काम करे, तो भारत इस क्षेत्र में विश्व में का$फी अग्रणी भूमिका निभा सकता है।

दुनिया के 4.50 करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर

अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े के बाद रोटी के लिए बेटियों को बेच रहे वहाँ के बहुत-से लोग

विश्व खाद्य कार्यक्रम की नवीनतम रिपोर्ट में यह ख़ुलासा हुआ है कि वर्तमान में दुनिया के क़रीब साढ़े चार करोड़ लोग भुखमरी के द्वार पर खड़े हैं। कुल 43 देश इस तरह की स्थिति झेल रहे हैं, जिनमें हाल में तालिबान के क़ब्ज़े में आया अफ़ग़ानिस्तान भी है। उधर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल में कहा है कि तालिबान के क़ब्ज़े में आये युद्धग्रस्त अफ़ग़ानिस्तान में लाखों की संख्या में बच्चे इस साल के अन्त तक भूख से जान गँवा सकते हैं।

अपनी रिपोर्ट में विश्व खाद्य कार्यक्रम ने साथ ही आगाह किया है कि दुनिया के 43 देश इस संकट को झेल रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर में करोड़ों लोगों की हालत इतनी ख़राब है कि उन्हें भरपेट दो वक़्त का भोजन तक हासिल नहीं है। चिन्ता की बात यह है कि यह स्थिति लगातार ख़राब होती जा रही है। संगठन के मुताबिक, भुखमरी की  स्थिति झेल रहे लोगों की संख्या साल 2019 के 2.70 करोड़ के मुक़ाबले दोगुनी हो गयी है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल के शुरू में यह 4.20 करोड़ हो गयी है। भुखमरी का सामना कर रहे लोगों की सबसे ज़्यादा संख्या बुरुंडी, कन्‍या, अंगोला, सोमालिया, हेती, इथियोपिया और अफ़ग़ानिस्तान में है। तालिबान का शासन आने के बाद अफ़ग़ानिस्तान में हालात काफ़ी ख़राब हुए हैं और हाल की रिपोट्र्स बताती हैं कि भुखमरी का सामना करते हुए लोग पैसे के लिए अपनी बेटियों तक को बेचने तक को मजबूर हुए हैं। दुनिया में भुखमरी की बात करें, तो विश्व खाद्य कार्यक्रम संगठन के कार्यकारी निदेशक डेविड बीजली का कहना है कि दुनिया में करोड़ों लोग भुखमरी की यह गम्भीर समस्या झेल रहे हैं। बीजली के मुताबिक, हमारे सामने कोरोना महामारी के अलावा, क्लाइमेट चेंज, संघर्ष, हिंसा और युद्ध जैसे संकट मुँह फाड़े खड़े हैं। भुखमरी की स्थिति का सामना करने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। ताज़ा आँकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि विश्व के क़रीब साढ़े चार करोड़ से भी ज़्यादा लोग इस स्थिति की तरफ़ तेज़ी से बढ़ रहे हैं। अफ़ग़ानिस्तान की मौज़ूदा परिस्थितियों का जायज़ा लेने भी बीजली वहाँ जा चुके हैं। उन्होंने तालिबानी शासन वाले इस देश को लेकर कहा है कि यूएन खाद्य एजेंसी, अफ़ग़ानिस्तान में लगभग क़रीब ढाई करोड़ लोगों तक मदद पहुँचाने का काम कर रही है। वे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बढ़ती ईंधन और खाद्य पदार्थों क़ीमतों से भी चिन्तित हैं। उनके मुताबिक, इसका सबसे ज़्यादा असर ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले ही झेल रहे हैं। उन्होंने कहा कि उर्वरक भी पहले से काफ़ी महँगे हो गये हैं और इन सभी की वजह से दुनिया के सामने एक नयी तरह का संकट खड़ा हो गया है। खाद्य एजेंसी का अनुमान है कि दुनिया भर में भुखमरी की इस स्थिति से निपटने के लिए क़रीब सात अरब डॉलर की ज़रूरत रहेगी। मौज़ूदा वर्ष में यह राशि 6 अरब 60 करोड़ डॉलर थी। उनके मुताबिक, ‘हमें दुनिया भर में ज़रूरतमंद परिवारों तक सहायता पहुँचाने के लिए अधिक धन चाहिए।’

अफ़ग़ानिस्तान में बढ़ी भुखमरी

तालिबान का राज आने के बाद अफ़ग़ानिस्तान की हालत बेहद ख़राब है। देश की बड़ी आबादी भुखमरी का सामना कर रही है। आर्थिक संकट इतना बढ़ गया है कि लोगों को दो-जून की रोटी नसीब नहीं। इसके सबसे दु:खद और गम्भीर परिणाम यह है कि वहाँ लोग पैसे के बदले अपनी छोटी बच्चियों को शादी के लिए बेच रहे हैं। पिछले तीन-चार महीने में विस्थापित हुए अफ़ग़ानी नागरिक ग़रीबी और भुखमरी के गम्भीर संकट से दो-चार हैं। रिपोट्र्स के मुताबिक, परिवार के अन्य सदस्यों का पेट भरने के लिए लोग अपनी नाबालिग़ बच्चियों तक को बेच रहे हैं। ऐसे कुछ लोगों या बच्चियों की दास्ताँ सामने आयी है। हाल में एक पिता ने अपनी नौ साल की छोटी बच्ची को 55 साल के आदमी को बेच दिया, तो एक अन्य बच्ची को 70 साल के एक व्यक्ति के हाथों बेचा गया। जानकारी के मुताबिक, यह लोग अपनी बच्चियों को बेचने वाले माता-पिता को धन देते हैं और बच्चियों से निकाह कर लेते हैं। तालिबान के आने के बाद कई परिवारों को रोटी नहीं मिल पा रही। अफ़ग़ानिस्तान को विदेशी मदद भी बन्द हो चुकी है। इससे वहाँ आम लोगों की ज़िन्दगी और कठिन हो गयी है। बहुत-से लोग बच्चों को बेचकर बाक़ी सदस्यों पर पेट भर रहे हैं।

हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान के बाग़लान प्रान्त के एक शिविर की घटना सामने आयी थी। बाग़लान की एक लडक़ी के पिता ने एक साक्षात्कार में अपनी बच्ची को बेचने की मजबूरी की दास्ताँ बतायी। पिता ने बताया कि वह अपनी एक 12 साल और दूसरी नौ साल की बेटी को पैसे के लिए बेच चुके हैं। उन्होंने ऐसा इसलिए किया, ताकि परिवार के अन्य सदस्यों को ज़िन्दा रखा जा सके। पिता ने मजबूरी में किये अपने इस फ़ैसले पर दु:खी होकर कहा कि इस फ़ैसले के कारण वह टूट गये हैं; क्योंकि बेटियों को बेचना एक शर्म भरा काम है। घोर प्रान्त से भी 10 साल की एक नाबालिग़ बच्ची को बेचने की रिपोर्ट आयी है। इस बच्ची के परिवार ने पैसे के लिए 70 साल के आदमी से इसकी शादी करवा दी। लडक़ी ने परिवार से दूर जाने का विरोध भी किया और कहा कि उसके साथ जबरदस्ती की गयी, तो वह जान दे देगी। इस देश के कई प्रान्तों में ऐसी घटनाएँ हुई हैं। महिलाओं के काम करने पर तो तालिबान ने वैसे ही पाबंदी लगा रखी है, जबकि लड़कियों की पढ़ाई पर भी रोक है।

भारत अफ़ग़ानिस्तान के इस हालत को देख उसकी मदद करना चाहता है। हालाँकि पाकिस्तान सरकार भारत के मदद वाले गेहूँ को पाकिस्तान से होकर ले जाने में अड़ंगे लगाती रही है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान कहते हैं कि उनकी सरकार भारतीय गेहूँ को पाकिस्तान से होकर ले जाने के अफ़ग़ान भाइयों के अनुरोध पर मानवीय आधार पर नरम रूख़ रखे हुए हैं। भारत पिछले दशक से लेकर अब तक अफ़ग़ानिस्तान को 10 लाख मीट्रिक टन से अधिक गेहूँ दे चुका है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अफ़ग़ानिस्तान में 18.8 मिलियन के आसपास लोग गम्भीर खाद्य असुरक्षा से पीडि़त हैं। उनके पास ख़ुद के लिए दैनिक ज़रूरतें पूरी करने के लिए कोई साधन नहीं। यह संख्या 2021 के अन्त तक चिन्ताजनक 22.8 मिलियन का आँकड़ा छू सकती है। संगठन ने कृषि उत्पादन जारी रखने और युद्ध से पीडि़त देश के कई हिस्सों में आजीविका के ज़रिये ख़त्म होने से बचाने की कोशिश के रूप में किसानों और चरवाहों को बीज, उर्वरक, नक़दी और अन्य आजीविका सहायता प्रदान की है।

रिपोर्ट के मुताबिक, अभी कृषि और पशु उत्पादन में तत्काल निवेश की सख़्त ज़रूरत है। ऐसा होने पर देश की खाद्य सुरक्षा बहाल करके किसानों के पास अधिक समय तक धन की उपलब्धता रहेगी। वैसे भी कृषि अफ़ग़ान आजीविका और अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ है। एफएओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में लगभग 70 फ़ीसदी लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। यह लोग कृषि के सकल घरेलू उत्पाद का कम-से-कम 25 फ़ीसदी हिस्सा हैं और यह प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हर तरह की आजीविका का क़रीब-क़रीब 80 फ़ीसदी है।

कोरोना का असर

कई रिपोट्र्स से ज़ाहिर होता है कि कोरोना महामारी ने भी दुनिया भर में भुखमरी पैदा की है। संयुक्त राष्ट्र महासभा की मानवाधिकार समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए उठाये गये क़दमों और बिगड़ते वैश्विक सम्बन्धों के कारण उत्तर कोरिया भी गम्भीर भुखमरी के कगार पर है। वहाँ भुखमरी के चलते लोग आत्महत्या करने को मजबूर हो चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में दावा है कि उत्तर कोरिया वैश्विक समुदाय से जितना अलग-थलग नज़र आ रहा है, उतना पहले कभी नहीं था। इसके मुताबिक, उत्तर कोरिया में भोजन का गम्भीर संकट है। लोगों की आजीविका मुश्किल दौर में है। बच्चे और बुज़ुर्ग भुखमरी का सामना कर रहे हैं। राजनीतिक क़ैदियों के शिविरों तक में खाद्यान्न की कमी बेहद चिन्ताजनक स्तर पर है। याद रहे डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (डीपीआरके) ने महामारी रोकने के इरादे से देश की सीमाएँ सील कर दी थीं। इसका असर यह हुआ कि उत्तर कोरिया के लोगों के स्वास्थ्य पर गम्भीर असर पड़ा। इससे देश के बुनियादी स्वास्थ्य ढाँचे में निवेश की गम्भीर कमी हो गयी। सरकार के सीमाएँ सील करने के क़दम को विशेषज्ञों ने आत्मघाती बताया है। इसका नतीजा लोगों के आत्महत्या करने के रूप में सामने आया है। यही नहीं, लोग देश से पलायन कर रहे हैं। देश में मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष जाँचकर्ता की आख़िरी रिपोर्ट में कहा गया है कि आवाजाही पर पाबंदी और राष्ट्रीय सीमाओं को सील करने से बाज़ार शिथिल पड़ गये हैं। लोगों के लिए भोजन सहित बुनियादी ज़रूरतें पहुँचाने में बाधा से कई संकट पैदा हुए हैं।

15 करोड़ बच्चे स्कूली आहार से वंचित

संयुक्त राष्ट्र की जानकारी कहती है कि एक अनुमान के मुताबिक, दुनिया भर में 15 करोड़ बच्चे अब भी स्कूलों में मिलने वाले आहार और बुनियादी स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं से वंचित हैं। कोई 60 से ज़्यादा देशों ने स्कूलों में हर बच्चे के लिए साल 2030 तक पोषक आहार सुनिश्चित करने के उद्देश्य से स्कूली आहार गठबन्धन की स्थापना की है। यूएन एजेंसियों ने स्कूली बच्चों के पोषण, स्वास्थ्य व उनकी शिक्षा में बेहतरी लाने पर केंद्रित एक अंतरराष्ट्रीय गठबन्धन को समर्थन देने की प्रतिबद्धता जतायी है। साल 2020-21 में कोविड-19 महामारी के कारण विश्व भर में शिक्षण कार्य में उत्पन्न हुए व्यवधान और व्यापक पैमाने पर तालाबन्दी लागू होने से स्कूलों में मिलने वाले आहार सहित अन्य कार्यक्रम प्रभावित हुए। कोरोना-काल के दौरान बड़ी संख्या में विद्यार्थियों के लिए स्कूलों में सेहतमंद आहार या स्कूल-आधारित स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं में रुकावटें खड़ी हुई हैं। खाद्य और कृषि संगठन, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, विश्व खाद्य कार्यक्रम और विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक साझा वक्तव्य कहता है कि उनकी पहल में शामिल हर यूएन एजेंसी इस गठबन्धन के लिए आवश्यक विशेषज्ञताएँ मुहैया कराएगी। इसमें ग़ैर-सरकारी, नागरिक समाज संगठनों और संस्थाओं से 50 से ज़्यादा साझीदार शामिल हैं।

“भुखमरी के मुहाने पर बैठे करोड़ों लोग अपना सब कुछ लुटा चुके हैं। अब उनके पास कोई दूसरा संसाधन या विकल्प भी नहीं बचा है। 43 देशों में हालात की समीक्षा के दौरान ये जानकारी सामने आयी है कि कुछ लोगों को हर रोज़ खाना तक नहीं मिल पा रहा है।”

डेविड बीजली

कार्यकारी निदेशक, डब्ल्यूएफपी

सावधानी से करें मास्क का इस्तेमाल

वायु प्रदूषण से कम घातक नहीं मास्क का लगातार या ग़लत उपयोग

देश में कोरोना वायरस की रफ़्तार भले ही कम हुई है; लेकिन कोरोना की तीसरी लहर का ख़तरा अभी भी बना हुआ है। इसके चलते दिल्ली जैसे महानगरों में मास्क से अभी भी लोगों का पीछा नहीं छूटा है। बताते चलें जब देश में कोरोना वायरस की पहली लहर मार्च, 2020 में आयी थी, तब मास्क को आनिवार्यता के तौर पर लागू किया गया। तबसे अधिकतर शहरों के लोग लगातार मास्क लगाने को मजबूर हैं। हालाँकि कई प्रदेशों में लोग मास्क नहीं लगा रहे हैं;

लेकिन दिल्ली में यह अभी भी अनिवार्य बना हुआ है। लेकिन लगातार मास्क लगाने से स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव भी पड़ रहा है।

हालाँकि डॉक्टर्स कहते हैं कि कोरोना वायरस के साथ-साथ अन्य कई बीमारियों और वायु प्रदूषण से बचने के लिए मास्क ज़रूरी है। इससे कई तरह की परेशानियों से बचा जा सकता है। लेकिन यह भी सच है कि लगातार मास्क लगाये रखने से ज़रूरत के हिसाब से ऑक्सीजन शरीर में नहीं पहुँच पाती। यानी दोनों तरह से मुसीबत है, अगर मास्क नहीं लगाया तो मुश्किल और अगर नहीं लगाया, तो भी मुश्किल। देश के अधिकतर राज्यों में जागरूकता के अभाव और लापरवाही के कारण लोगों में आम धारण ये बन चुकी है कि मास्क लगाने की अब ज़रूरत नहीं है, क्योंकि कोरोना चला गया है। लेकिन सच्चाई तो यह है कि कोरोना वायरस अभी गया नहीं है और अगर लापरवाही बरती गयी, तो निश्चित तौर पर कोरोना वायरस फिर से बढ़ सकता है। अब जहाँ लोग मास्क लगा रहे हैं, वहाँ भी लोगों को ख़तरा है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व संयुक्त सचिव डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि मास्क को अगर सही से नहीं लगाया जाए, तो यह भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। देखा गया है कि दिल्ली जैसे शहर में ज़्यादातर लोगों को दमा और साँस सम्बन्धी बीमारियाँ हैं। इसके कारण वे ज़्यादा समय तक सार्वजनिक स्थानों पर मास्क नहीं लगा पाते हैं और मास्क को नाक के नीचे लटका कर रखते हैं, जिससे संक्रमण (इंफेक्शन) फैलने का ख़तरा बना रहता है। डॉक्टर बंसल का कहना है कि कई लोग तो एक ही मास्क को कई-कई दिनों तक इस्तेमाल करते हैं, जिससे संक्रमण होने का ज़्यादा ख़तरा रहता है। जागरूकता के अभाव में कई लोग तो बिना धुले या ज़मीन पर गिरे मास्क को भी मुँह पर लगा लेते हैं, जो सबसे ज़्यादा हानिकारक होता है। ऐसे में दो तरह से मास्क भी वायु प्रदूषण से कम घातक नहीं होता। एक तो लगातार मास्क लगाये रखना और दूसरा लगातार एक ही मास्क का इस्तेमाल करना, ख़ासकर हर रोज बिना धोये और बहुत दिनों तक इस्तेमाल करना।

इधर हर साल की तरह वायु प्रदूषण इस बार भी चरम पर रहा है। डॉक्टर बंसल का कहना है कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के कारण दीपावली के बाद से धुन्ध-ही-धुन्ध छायी रही है, जिसके चलते बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक साँस लेने में दिक़्क़त महसूस कर रहे हैं। क्योंकि हवा में जब प्रदूषण फैलता है, तो फेफड़ों तक हवा में हानिकारक तत्त्व सीधे जाते हैं, जिससे फेफड़े काफ़ी कमज़ोर हो जाते हैं। कोरोना वायरस का सीधा असर भी फेफड़ों पर ही पड़ा है। देश में अगर सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या फेफड़ों की बीमारी के रूप में सामने आयी है। ऐसे में मास्क लगाना बहुत ज़रूरी हो जाता है।

प्रदूषण विरोधी अभियान चलाने वाले डॉक्टर दिव्यांग देव गोस्वामी का कहना है कि देश में अगर कोरोना के बाद मौज़ूदा दौर में कोई स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक़्क़त पैदा कर रहा है, तो वह वायु प्रदूषण है। इसकी वजह सरकार की लापरवाही और आम जनमानस की उदासीनता भी है। डॉक्टर दिव्यांग कहते हैं कि सरकार तो तब जागती है, जब वायु प्रदूषण से लोगों के बीच हाहाकार मचने लगता है। लोग भी कम नहीं हैं, उन्हें साँस लेने में परेशानी होती है, फिर भी कई काम ऐसे करते हैं, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है। इस बार दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण 500 क्यूआर के पास पहुँच गया। इस वायु प्रदूषण के कारण घरों में रहने वाले लोगों तक को भी साँस लेने में दिक़्क़त होने लगती है। आँखें ख़राब होने लगती हैं। जो लोग दफ़्तरों में जाकर काम करते हैं या सफ़र में रहते हैं, शाम तक उनका चेहरा तक काला पड़ जाता है। नाक और गले में काला कार्बन जम जाता है।

डॉक्टर दिव्यांग देव का कहना है कि समय रहते अगर सरकार ने वायु प्रदूषण पर रोक के लिए कोई कारगर क़दम नहीं उठाये, तो आने वाले दिनों में देश में फेफड़ों से सम्बन्धित बीमारियों के मरीज़ों की संख्या बढऩा निश्चित है। रहा सवाल मास्क का, तो मास्क को ज़्यादा समय तक प्रयोग में लाने से साँस सम्बन्धी दिक़्क़त तो होती ही है। इसलिए सार्वजनिक जगह पर ही मास्क लगाएँ।

पर्यावरणविद् डॉक्टर सुबोध कुमार का कहना है कि कोरोना के बाद बढ़े हुए वायु प्रदूषण को लेकर लेकर लोगों के बीच में बैचेनी है। लोग वायु प्रदूषण के चलते तनाव में हैं। लेकिन कोई बीमारी हो या अन्य प्राकृतिक आपदा आये, भ्रष्ट तंत्र के चलते किसी भी परेशानी का समाधान आसानी से नहीं हो पाता है। वायु प्रदूषण की ही बात करें, तो इसे कम करने के लिए हर साल करोड़ों रुपये का बजट रखा जाता है। इस बजट को लेकर अधिकारियों और एजेंसियों के बीच जमकर गुटबन्दी होती है और फिर हेराफेरी की जाती है, जिसके चलते वायु प्रदूषण में सुधार तो उनके अपने तरीक़े से ही होता है। हाल यह है कि अन्य स्रोतों से आया हुआ बजट भी इस पर ख़र्च हो जाता है। उन्होंने बताया कि सन् 2018 में केंद्र सरकार ने वायु प्रदूषण रोकने के लिए अच्छा-ख़ासा बजट दिया था; लेकिन वायु प्रदूषण से निपटने में तंत्र काफ़ी हद तक नाकाम ही रहा। अफ़सोस यह है कि किसानों पर पराली जलाकर प्रदूषण फैलाने के जो आरोप लगाये जाते रहे हैं, हक़ीक़त में ये आरोप ख़ुद को बचाने के लिए हैं। यह बात सर्वोच्च न्यायालय भी कह चुका है। यह सच्चाई सामने आयी है कि पराली के कारण तो प्रदूषण मात्र 5 से 10 फ़ीसदी ही बढ़ता है। सच तो यह है कि पुराने वाहनों, फैक्ट्रियों, निर्माण, वाहनों की बढ़ती संख्या, भारी मात्रा में विस्फोटक और आग जलाने से प्रदूषण तेज़ी से बढ़ता है। सडक़ों पर प्रदूषण मानक को ताक में रखकर कई वाहन दौड़ते हैं। इनमें कई तो विकट धुआँ उगलते चलते हैं। इसी तरह दिल्ली-एनसीआर में तामाम सियासी लोगों की फैक्ट्रियाँ नियमों को ताक पर रखकर धड़ल्ले से चल रही हैं। इन फैक्ट्रियों के पास न तो प्रदूषण-रोधी उपकरण हैं और न ही लाइसेंस है। इसके कारण पूरे वातावरण में धुआँ-ही-धुआँ फैलता है और लगातार प्रदूषण फैलता है।

दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि वायु प्रदूषण को लेकर अफसरों के बीच एक ही मैसेज है कि यह तो सलाना संकट है। इसमें जो कुछ भी होगा समय के साथ स्वत: होगा। इसके चलते कोई ख़ास काम नहीं होता है। अधिकारी ने बताया कि महानगरों में अगर कोई वायु प्रदूषण के नाम पर कोई कारोबार पनपा है, तो वो है वायु शोधन (एयर प्यूरीफेशन) मशीनों का, जिसमें कारोबारी सरकारी से लेकर निजी कम्पनी में वायु शोधन मशीनें लगा रहे हैं और बता भी रहे हैं कि मौज़ूदा दौर में यह सब ज़रूरी है। कुल मिलाकर वायु प्रदूषण से यह कारोबार ख़ूब फल-फूल रहा है।

दिल्ली सरकार के स्टेट प्रोग्राम ऑफिसर (एनसीसीएचएच) डॉक्टर भरत सागर का कहना है कि वायु प्रदूषण के कारण मौज़ूदा समय में दमा और साँस लेने में तकलीफ़ के सबसे ज़्यादा मरीज़ बढ़े हैं। बच्चों को नेवुलाईजर (कणित्र) तक लेने को मजबूर होना पड़ रहा है, जो चिन्ता का विषय है। डॉक्टर भरत सागर का कहना है कि वायु प्रदूषण के कारण हमारे देश के नौनिहाल श्वास सम्बन्धी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।

दिल्ली दवा के कारोबारी सम्पत लाल का कहना है कि देश में मास्क का कारोबार तेज़ी से बढ़ा है। पहले कोरोना के चलते और अब वायु प्रदूषण के चलते इस कारोबार में काफ़ी बढ़ोतरी हुई है। लोगों में जागरूकता बढ़ी है, जिसके चलते अब बच्चों से लेकर युवा और बुज़ुर्ग तक मास्क का उपयोग कर रहे हैं। उनका कहना है कि मास्क का कारोबार बढऩे का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब रेहड़ी-पटरी से लेकर पनवाड़ी और परचून की दुकानों पर भी मास्क मिल जाता है; जबकि पहले मास्क केवल दवा विक्रेताओं के पास (मेडिकल स्टोर्स पर) ही मिलता था।

आईसीएमआर के एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी का कहना है कि वायु प्रदूषण से शरीर का हर अंग प्रभावित होता है। फिर भी सरकार की ओर से इस मामले में गम्भीरता से कोई पहल नहीं की जा रही है। वायु प्रदूषण के नाम पर सियासत ही होती है। जबकि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सार्थक क़दम उठाने की ज़रूरत है। देखने वाली बात यह है कि हर साल जब नवंबर-दिसंबर के महीने में वायु प्रदूषण बढ़ता है, तभी शोर होता है और तात्कालिक कोशिशें की जाती हैं। उन पर भी लीपापोती होती है। जबकि वायु प्रदूषण पर क़ाबू पाने के लिए साल भर उचित और ठोस क़दम उठाने की ज़रूरत है, ताकि इन दो महीनों में प्रदूषण बढ़े ही नहीं।

संसद से विपक्ष का वॉकआउट, 12 सांसदों के निलंबन का विरोध

संसद के दोनों सदनों में मंगलवार को लगातार दूसरे दिन कांग्रेस सहित विपक्ष ने वॉक आउट किया। विपक्ष के सदस्य 12 सांसदों का निलंबन बहाल करने की मांग कर रहे थे लेकिन ऐसा न होने पर उन्होंने वॉक आउट किया। बाद में लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधिरंजन चौधरी ने कहा कि सरकार विपक्ष को कुचल रही है और लोकतंत्र के इस सबसे बड़े मंदिर में नहीं सुनी जा रही।

विपक्ष के सदस्यों ने पहले लोकसभा से वॉक आउट किया और बाद में इसी मुद्दे पर राजसभा से भी वॉकआउट कर दिया। राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने कार्यवाही के दौरान सांसदों का निलंबन रद्द करने की कांग्रेस और विपक्ष की मांग खारिज कर दी। सभापति ने विपक्ष से कहा कि 12 सांसदों का निलंबन नियमों के तहत किया गया है लिहाजा विपक्ष के सदस्य आज या तो चर्चा करें या फिर सदन से वॉकआउट कर लें।

कार्यवाही शुरू होते ही कांग्रेस और विपक्षी दलों ने राज्यसभा के सभापति से 12 सांसदों का निलंबन रद्द करने का अनुरोध किया, हालांकि सभापति ने 12 सांसदों का निलंबन वापस लेने से इनकार कर दिया।

उधर लोकसभा में कांग्रेस और अन्य दलों के सदस्यों ने इस मसले पर हंगामा कर दिया। इसके चलते लोकसभा दोपहर 2 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई।  कांग्रेस, डीएमके, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने लोकसभा से वाक आउट किया।

राज्यसभा में सांसदों के निलंबन पर शिवसेना ने माफी मांगने से इनकार कर दिया है।  शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा – ‘मैं माफी नहीं मांगूंगी। मैंने कुछ गलत नहीं किया है। मैं जबरन सदन के भीतर जाने की कोशिश नहीं करूंगी।’

इससे पहले संसद भवन में विपक्षी दलों की बैठक हुई जिसमें जिसमें कांग्रेस नेता  राहुल गांधी ने भी हिस्सा लिया। बैठक से पहले कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा – ‘सत्र का बहिष्कार किए जाने को लेकर मेरे पास कोई जानकारी नहीं है लेकिन 12 सांसदों के निलंबन को लेकर बैठक हमने की है।’ कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा – ‘निलंबन इसलिए किया गया है ताकि विपक्षी पार्टियों द्वारा सरकार की पोल न खोल दी जाए’।

ओमिक्रोन पर केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव की राज्यों के साथ हो रही बैठक में होगी चर्चा

ओमिक्रोन को लेकर दुनिया भर में मचे हड़कंप के बीच दिल्ली में आज (मंगलवार) कोरोना वायरस के इस नए वैरिएंट पर केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण राज्यों के साथ समीक्षा कर रहे हैं। इस बैठक में संक्रमण से बचाव पर राज्य सरकारों की कोशिशों और उठाए जा रहे उपायों पर चर्चा की जा रही है।

जानकारी के मुताबिक दुनिया के विभिन्न देशों में इस वैरिएंट के मामले लगातार सामने आने के बाद भारत सरकार अलर्ट हुई है और आज की बैठक के जरिये स्थिति का आकलन कर रही है। वैसे अभी तक भारत में इस वैरिएंट का कोई मामला सामने नहीं आया है, सरकार समय रहते कदम उठाना चाहती है।

देश भर में राज्य सरकारें इसे लेकर चौकन्नी दिख रही हैं और उनमें चिंता बढ़ रही है। अब केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण इस मसले पर इस समय दिल्ली में एक समीक्षा बैठक कर रहे हैं। बैठक में ओमिक्रोन संक्रमण से बचाव और उठाये जा रहे क़दमों पर चर्चा होगी।

केंद्र सरकार पहले ही इस घातक वायरस के मामले में स्वास्थ्य विभाग  सम्बंधित अधिकारियों को निर्देश दे चुकी है। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने राज्यों को एक पत्र लिखकर इस वैरिएंट की निगरानी, रोकथाम के अलावा कोविड टीकाकरण की गति बढ़ाने को कहा है। बता दें डब्ल्यूएचओ ने कोरोना के इस नए वैरिएंट को वैरिएंट आफ कंसर्न (वीओसी) श्रेणी में रखते हुए इसे ओमिक्रोन नाम दिया है। कुछ वैज्ञानिक इसे ‘घातक’ बता चुके हैं।

उधर ओमिक्रोन को लेकर दुनिया भर में फ़ैली दहशत के बीच भारत में अभी भी जनता में सावधानी नहीं दिख रही। बाजारों-गलियों में लोग कोरोना गाईडलाइंस  की जमकर धज्जियां उड़ा रहे हैं। कोरोना को लेकर शासन–प्रशासन सतर्क रहने की बात कर रहा है लेकिन जनमानस है कि मानने को तैयार नहीं। जानकार इसके चलते कोरोना के बढ़ने का खतरा जता रहे हैं।

दिल्ली के बाजारों, मैट्रो स्टेशनों और बस अड्डों सहित अन्य सार्वजनिक स्थानों पर लगातार भीड़ देखी जा रही है। सोशल डिस्टेसिंग का पालन नहीं हो रहा। लोगों के बीच ये धारणा बन गयी है कि कोरोना का वायरस आसानी से जाना वाला नहीं लिहाजा  जो सावधानीहै बरत लो, लेकिन इससे ज्यादा कुछ करने को राजी नहीं।

एम्स के डाँ. आलोक कुमार का कहना है कि कोरोना से बचाव के लिए हमें विशेष सावधानी अपनानी चाहिये। भीड़- भाड़ वाले संक्रमित क्षेत्रों में जाने से बचना चाहिये। सोशल डिस्टेसिंग का पालन करना चाहिये। मास्क जरूर लगाने चाहिए। देखा जाए तो दिल्ली में कुछ लोग मास्क लगाकर तो चल रहे हैं लेकिन कई नहीं। फिलहाल वे डर से बाहर निकले हुए हैं जिसका कारण यह है कि पिछले तीन-चार महीनों से कोविड मामले कम हो चुके हैं।

आईएमए के पूर्व संयुक्त सचिव डाँ. अनिल बंसल का कहना है कि कोरोना का कहर तो देश–दुनिया में चल ही रहा है। अब ओमिक्रोन  को चिंता है कि कही ये कोरोना की दूसरे लहार की तरह घातक साबित न हो। वो कहते हैं कि नए वैरिएंट को लेकर लोगों को अफवाहें नहीं फैलाने चाहियें लेकिन सावधानी जरूर बरतनी चाहिए। सर्दी-जुकाम और बुखार होने पर डाँक्टरों से परामर्श कर इलाज करवाने की सलाह भी वे देते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ की हालत गंभीर, आईसीयू में भर्ती

जाने-माने पत्रकार विनोद दुआ की हालत गंभीर है। उनकी बेटी ने एक इंस्टाग्राम पोस्ट में इसकी जानकारी दी है। इसके मुताबिक दुआ आईसीयू में हैं और उनकी हालत गंभीर है।

याद रहे कुछ महीने पहले विनोद दुआ पर राजद्रोह का केस दर्ज हुआ था। दुआ पर आरोप लगाया गया था कि यूट्यूब चैनल पर उनके पोस्ट किए वीडियो से लोगों की  भावनाएं भड़कने का डर था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट से उन्हें इस मामले में राहत देते हुए उनके खिलाफ दर्ज मामले को निरस्त कर दिया था। अब विनोद दुआ की कलाकार बेटी मलाइका दुआ ने इंस्टाग्राम पोस्ट में पिता की हालत गंभीर होने की जानकारी दी है।

वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा ने भी उनकी पोस्ट को रीट्वीट किया है। इस पोस्ट में मलाइका ने लिखा है – ‘मेरे पिता की हालत काफी गंभीर है और वह आईसीयू में हैं।  अप्रैल के बाद से ही उनकी सेहत लगातार बिगड़ती जा रही है। उन्होंने एक असाधारण जीवन जिया है और हमें वही दिया है। उन्हें दर्द नहीं होना चाहिए। सब उन्हें बहुत प्यार करते हैं और मैं आप सबसे गुजारिश करती हूं कि दुआ करें कि उन्हें कम से कम तकलीफ हो।’

याद रहे कोविड की दूसरी लहर के दौरान विनोद दुआ और उनकी पत्नी चिन्ना दुआ संक्रमित हो गए थे। चिन्ना दुआ (पद्मावती) की 7 जून को कोविड से जान चली गयी थी। बता दें चिन्ना रेडियोलॉजिस्ट थीं और उन्हें संक्रमित होने पर गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

‘लंगर बाबा’ जगदीश आहूजा का चंडीगढ़ में निधन, गरीबों को खिलाते रहे 40 साल भोजन

जाने माने समाजसेवी जगदीश आहूजा (85) का चंडीगढ़ में सोमवार को निधन हो गया। पदमश्री से सम्मानित आहूजा ‘लंगर बाबा’ के नाम से मशहूर थे और पीजीआई, चंडीगढ़ औरशहर के दो अन्य बड़े सरकारी अस्पतालों जीएमएसएच-16 और जीएमसीएच-32 के सामने लंगर लगाकर 40 साल तक उन्होंने जरूरतमंदों का पेट भरा।

जानकरी के मुताबिक पद्मश्री जगदीश आहूजा का सोमवार को चंडीगढ़ में निधन हो गया और शाम 3 बजे सेक्टर 25 स्थित श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार किया गया जिसमें नम आँखों से बड़ी संख्या में लोगों ने उन्हें अंतिम विदाई दी। लंगर लगाकर लोगों का पेट भरने वाले ‘लंगर बाबा’ को पिछले साल ही पद्मश्री पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था।

याद रहे आहूजा सेक्टर 23 में रहते थे। आहूजा को लोग प्यार से ‘लंगर बाबा’ के नाम से पुकारते थे जबकि पटियाला में उन्होंने गुड़ और फल बेचकर अपना जीवनयापन शुरू किया था। साल 1956 में जब जेब में महज 15 पैसे की पूंजी के साथ जब वे चंडीगढ़ आए तो उनकी उम्र 21 साल ही थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक उस समय आहूजा ने एक रेहड़ी किराए पर लेकर केले बेचने का काम शुरू किया।

चंडीगढ़ में साल 1981 में उन्होंने चंडीगढ़ में लंगर लगाना शुरू किया। यह मुफ्त  लंगर अस्पताल में भर्ती मरीजों के तीमारदारों और शहर के अन्य जरूरतमंदों के  लिए बहुत उपयोगी साबित हुआ जिससे उनका नाम ‘लंगर बाबा’ पड़ गया। उनके निधन पर शहर की अनेक संस्थाओं ने अफ़सोस जताया है।