Home Blog Page 576

कृषि कानून वापसी बिल संसद में ध्वनिमत से पास, अब राष्ट्रपति करेंगे मंजूर

कृषि कानून वापसी बिल सोमवार को संसद के दोनों सदनों में ध्वनिमत से पास हो गया है। अब इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाएगा। संसद में आज कृषि कानूनों को लेकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की तरफ से जबरदस्त हंगामा किया गया. इसके चलते लोक सभा और राज्य सभा दोनों की कार्यवाही दो बार स्थगित की गर्इ।

अब संसद के दोनों सदनों में पास होने के बाद बिल को मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाएगा। विपक्ष के जोरदार हंगामे के बीच लोक सभा और राज्य सभा में कानून वापसी बिल पास हुए।

विपक्ष चाहता था कि बिल पर चर्चा हो लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। इसके विरोध में कांग्रेस सहित विपक्ष ने जबरदस्त हंगामा किया। बिल ध्वनि मत से पारित हुआ। इसके आज ही राज्यसभा में भी पेश करने की संभावना है।

इससे पहले सुबह संसद का शीतकालीन सत्र सोमवार को हंगामे से शुरू हुआ। विपक्ष के हंगामे के बीच लोकसभा और राज्य सभा को 12 बजे तक स्थगित कर दिया गया। उधर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में पार्टी के सांसदों ने कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग के साथ महात्मा गांधी की प्रतिमा के पास विरोध प्रदर्शन किया।

बता दें सरकार की सत्र के पहले ही दिन लोकसभा में कृषि कानूनों की वापसी के लिए बिल पेश करने की तैयारी है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर लोकसभा में तीन मौजूदा कानूनों की वापसी का प्रस्ताव पेश करेंगे। उधर सदन शुरू होने से पहले कांग्रेस ने विपक्ष की बैठक कर इस मसले पर चर्चा की।

विपक्ष के कृषि कानूनों को लेकर हंगामा करने के बाद लोकसभा की कार्यवाही को 12 बजे तक स्थगित कर दिया गया है। लोकसभा में किसानों के मुद्दे पर विपक्ष के हंगामें पर स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि पहला दिन है जनता देख रही है।

शीतकालीन सत्र के पहले दिन विपक्ष ने कृषि कानूनों पर चर्चा की मांग को लेकर लोकसभा में हंगामा किया। उधर बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक में विपक्ष ने कहा कि अगर चर्चा नहीं हुई तो संसद नहीं चलने देंगे, जिसपर सरकार ने कहा कि हम कानून खत्म कर रहे हैं तो फिर चर्चा क्यों।

उधर संसद की कार्यवाही शुरू होने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वरिष्ठ मंत्रियों  रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमार, कॉमर्स मिनिस्टर पीयूष गोयल और संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी के साथ बैठक की।  पीएम मोदी ने कहा कि देश आजादी के अमृत महोत्सव मना रहा है। देश में चारों ओर इस आजादी के अमृत महोत्सव के निमित्त रचनात्मक, सकारात्मक, जनहित और राष्ट्रहित के लिए, सामान्य नागरिक, अनेक कार्यक्रम कर रहे हैं।

पीएम ने कहा कि आजादी के दीवानों ने जो सपने देखे थे उन सपनों को पूरा करने के लिए सामान्य नागरिक भी इस देश का दायित्व निभाने का प्रयास कर रहा है। ये खबरें अपने आप में भारत के भविष्य के लिए शुभ संकेत हैं। मोदी ने कहा कि सरकार हर विषय पर चर्चा के लिए तैयार है। विपक्ष के हर सवाल को शांति से जवाब देने को सरकार तैयार है। पीएम मोदी ने कहा कि संसद में सवाल भी हो और शांति भी बनी रहे। सदन में देशहित और राष्ट्रहित को लेकर अधिक से अधिक चर्चा हो।

मीडिया को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि  संसद का ये सत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा – ”पिछले दिनों संविधान दिवस भी नए संकल्प के साथ संविधान की स्पिरिट को पेश करने के लिए दायित्व के संबंध में पूरे देश ने एक संकल्प किया है। ऐसे में हम चाहेंगे कि भारत का संसद का ये सत्र और आगे आने वाले भी सत्र आजादी के दीवानों की भावनाओं के अनुरुप चले। उसके अनुकूल संसद में देशहित की चर्चाएं हों, देश की प्रगति के लिए रास्ते खोजे और उसके लिए ये सत्र बहुत ही विचारों की समृद्धि वाला, दूरगामी प्रभाव पैदा करने वाले सकारात्मक निर्णय लेने वाला बने। मैं उम्मीद करता हूं कि भविष्य में संसद को कैसा चलाया जाए। कितना योगदान किया जाए। इसलिए एक मापदंड स्थापित करें।’

मोदी ने कहा – ”हम सभी को कोरोना से सतर्क रहने की जरूरत है। पिछले सत्र के बाद कोरोना की एक विकट परिस्थिति पैदा हुई थी। देश ने 100 करोड़ से अधिक टीकाकरण कर लिया है अब हम 150 करोड़ की ओर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। मैं संसद के सभी साथियों से सतर्क रहने की प्रार्थना करता हूं, क्योंकि आप सबका उत्तम स्वास्थ्य ऐसी संकट की घड़ी में हमारी प्राथमिकता है।’

एमसीडी चुनाव में बदलाव की उम्मीद

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव को लेकर दिल्ली की सियासत में हलचल तेज हो गयी है। दिल्ली में भले ही आप पार्टी और भाजपा के बीच मुकाबला होने के संभावना है। लेकिन इस बार कांग्रेस पार्टी भी दमखम के साथ चुनाव लड़ेगी और खोये हुये जनाधार को वापस लाने का प्रयास करेगी।

बताते चलें, दिल्ली में आप पार्टी की जनविरोधी नीतियों के विरोध में भाजपा ही नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी भी जमकर विरोध –प्रदर्शन कर रही है। दिल्ली की सियासत के जानकार कृष्ण देव का कहना है कि दिल्ली के लोगों का अपना नजरिया और मिजाज है। जो चुनाव के समय ही निर्णय करता है कि कौन पार्टी ने विकास किया है और कौन सही मायने में कर सकती है। लेकिन साथ ही इस बात पर गौर करती है। कि मौजूदा सरकार किस हद तक जनता के साथ है।

दिल्ली  एमसीडी में भाजपा काबिज है। तो दिल्ली सरकार में आप पार्टी की सरकार है। ऐसे में दिल्ली की सियासत का जो तालमेल है । उस पर अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता है। लेकिन इतना जरूर है। इस बार अगर कांग्रेस अपने खोये हुये जनाधार को पाने के लिये प्रयास करती है। तो निश्चित ही चुनाव परिणाम चौंकाने वाले साबित होगे।

जानकारों का कहना है कि, दिल्ली की सियासत में बदलाव आता रहा है। क्योंकि दिल्ली सरकार में आप पार्टी की आबकारी नीतियों का राजनीति दल ही विरोध नहीं कर रहे है। बल्कि जनता भी विरोध कर रही है। जगह –जगह धरना प्रदर्शन हो रहे है। मौजूदा समय में जिस तरह से दिल्ली में सियासत हो रही है। उससे बड़े बदलाव की राजनीतिक उम्मीद की जा रही है।

 

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 दिसंबर को काशी विश्वनाथ धाम से मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन को करेंगे संबोधित

New Delhi, July 09 (ANI): Prime Minister Narendra Modi chairs a High-level meeting and reviews the augmentation and availability of Oxygen across the country, in New Delhi on Friday. (ANI Photo)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 दिसंबर को काशी विश्वनाथ धाम से भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन को संबोधित करेंगे। प्रधानमंत्री 13 दिसंबर की सुबह अपने संसदीय क्षेत्र काशी विश्वनाथ धाम में यजमान बनकर विशेष अनुष्ठान करेंगे।

गंगा जल के साथ ही देश की सभी प्रमुख नदियों के जल से काशीपुराधिपति का अभिषेक करने के बाद पीएम विधिवत पूजा अर्चना करेंगे। प्रधानमंत्री दफ्तर सूत्रों ने बताया की प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय अपने संसदीय क्षेत्र के दौरे पर वाराणसी जायेंगे।

काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के साथ ही ‘भव्य काशी दिव्य काशी’ के नाम से एक महीने तक चलने वाले आयोजन की शुरुआत होगी। 13 दिसंबर को काशीपुराधिपति के भव्य दरबार को बाबा के भक्तों को समर्पित करने के बाद वे संतों से संवाद करेगें। इसके बाद मंदिर चौक में संतों से मंदिर के इतिहास और वर्तमान स्वरूप पर चर्चा करेंगे।

सूत्रों ने और बताया की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आदेश दिया विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शास्त्रोक्त पूजन-अर्चन का काशी के साथ देशभर में लाइव प्रसारण होगा।

विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण से पूर्व उत्सव का माहौल बनाएं जाएँ। 12, 13 व 14 दिसंबर को गंगा घाटों के साथ शहर की प्रमुख इमारतों की विशेष रूप से सजावट एवं लाइटिंग करायी जाय और लोग अपने घरों में दीप अवश्य जलाएं। उन्होंने कहा कि 13 दिसंबर को धाम के लोकार्पण के बाद 14, 15 व 16 दिसंबर को काशी के हर घर तक बाबा का प्रसाद व धाम के इतिहास से संबंधित कॉफी टेबल बुक पहुंचाने के लिए अभियान चलाएंगे।

सन-1669 में अहिल्याबाई होल्कर के काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनरुद्धार कराने के लगभग 452 वर्ष बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकल्प के साथ धाम के रूप में मंदिर का पुनरुद्धार कराया है, हर देशवासी इसका साक्षी बनने जा रहा है। पूरे महीने रोजाना देश के अलग-अलग हिस्सों से विशेष ट्रेनों का संचालन वाराणसी के लिए होगा, ताकि लोग बनारस आकर भव्य और दिव्य काशी का नजारा ले सकें।

कोरोना के नये स्वरूप आँमिक्रोन को लेकर डाँक्टर, व्यापारी और छात्र चिंतित

देश–दुनिया में कोरोना के नये स्वरूप आँमिक्रोन को लेकर मचे हडकंप से लोगों में फिर डर और भय बढ़ने लगा है। हांलाकि, केन्द्र सरकार के निर्देश के बाद राज्यों ने अलर्ट जारी कर दिया है। वहीं दिल्ली सरकार ने हर संभव आँमिक्रोन जैसे वेरिएंट से निपटने के लिये डाँक्टरों को तैयार रहने को कहा है।

बताते चलें, कोरोना का कहर 2020 मार्च से देश –दुनिया में कहर मचा रहा है। जिसके चलते लाखों लोगों की जाने गयी है और करोड़ो लोग कोरोना जैसी बीमारी की चपेट में आये है। तब से लोगों के बीच एक भय है कि कहीं कोरोना का नया वैरिएंट फिर से लाँकडाउन जैसी स्थिति लाने को मजबूर न कर दें।

कोरोना के आँमिक्रोन के बढ़ते मामलों को लेकर एक ओर डाँक्टरों ने सावधान रहने की बात कहीं है। तो वहीं व्यापारियों और छात्रों ने चिंता व्यक्त करते हुये कहा है कि अगर फिर से कोरोना का कहर बढ़ा तो आने वाले दिनों में फिर से मुसीबत न बढ़ जाये।

मैक्स अस्पताल के कैथ लैब के डायरेक्टर डाँ विवेका कुमार का कहना है कि, कोरोना एक संक्रमित बीमारी है। इसमें जरा सी लापरवाही घातक हो सकती है। जिनको हृगय रोग या दमा जैसी बीमारी है। वे समय –समय पर अपना इलाज करवाते रहे।

दिल्ली सरकार के प्रोग्राम ऑफीसर डाँ भरत सागर का कहना है कि, कोरोना के नये स्वरूप को लेकर सतर्क रहे। मास्क लगाकर घर से निकलें और सोशल डिस्टेसिंग का पालन करें। भीड़भाड़ वाले इलाके में जाने से बचें।

दिल्ली के व्यापारी रतन अग्रवाल और पुनीत सेठ ने कहा कि, आँमिक्रोन को लेकर अभी से बाजार में नरमी आने लगी है। अगर कोरोना 2020 की तरह फिर से पाबंदी लगनी शुरू हुई तो, आने वाले दिनों में बाजारों में संकट दिखेगा और आर्थिक हालात फिर से कमजोर होगें। वही छात्रों का कहना है कि जैसे–तैसे पढ़ाई को आँनलाईन से क्लासों तक स्कूल जाने के लिये माहौल बना था। अगर फिर से कोरोना के नये स्वरूप के चलते स्कूलों को बंद करना पड़ा तो पढ़ाई काफी हद तक प्रभावित होगी।

दक्षिण अफ्रीका में पाये गये कोरोना के नये स्वरूपों से फिर हडकंप

दक्षिण अफ्रीका के तीन देशों में कोरोना के नये स्वरूप पाये जाने से स्वास्थ्य महकमें में हडकंप मच गया है। एम्स सहित देश के जाने-माने डाँक्टरों का कहना है कि, देश में कोरोना का कहर तो नहीं है। लेकिन कोरोना तो है। इस लिहाज से हमें अब और सावधान रहने की जरूरत है।

आईएमए के पूर्व संयुक्त सचिव डाँ अनिल बंसल का कहना है कि, जो लोग पहले से कोरोना संक्रमित हो चुके है। उनको दक्षिण अफ्रीका में आये नये स्वरूप से संक्रमण का खतरा हो सकता है। अभी तक नये स्वरूप– बी1.1529 के बारे में सही-सही जानकारी नहीं है।

एम्स के डाँक्टर आलोक कुमार का कहना है। कि कोरोना को लेकर जरा सी लापरवाही घातक हो सकती है। इसलिये मुंह में मास्क लगाकर ही घर से निकलें और सोशल डिस्टेसिंग का पालन करें। ताकि कोरोना के संक्रमण से बचा जा सकें।

लोकनायक अस्पताल के डाँ ए आर कुमार ने बताया कि दिल्ली में जागरूकता के चलते कोरोना के मामलें कम आ रहे है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम लापरवाह हो जाये। उनका कहना है। अप्रैल-मई में जो कोरोना का कहर आया था। उसके बाद अब फिर से कोरोना के बढ़ने की संभावना जतायी जा रही है।

बताते चलें, देश में मौजूदा समय में तीन समस्या विकराल रूप धारण किये हुये है, जिनमें डेंगू का कहर, वायु प्रदूषण का कहर जो लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाल रहा है। अब फिर से कोरोना के बढ़ते मामलों ने लोगों को ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य महकमें में हडकंप मचा दिया है। जिसके चलते लोगों में डर और भय है। कि कहीं कोरोना का कहर लोगों के जीवन में मुशीबत ना डाल दें। इसलिये सावधानी जरूर अपनायें।

नेशन फ़ॉर फार्मर्स, अन्य संगठनों की ‘किसान आयोग’ गठित करने की घोषणा, सिफारिशें देंगे 

किसान आंदोलन के लगातार जारी रहने और मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बीच नेशन फ़ॉर फार्मर्स और अन्य संगठनों और किसान समर्थक मंचों ने देश में कृषि की स्थिति के मूल्यांकन और प्रकाशन के लिए ‘किसान आयोग’ के गठन की प्रक्रिया की घोषणा की है। पी साईनाथ, जगमोहन सिंह और नवशरण सिंह जैसे बड़े किसान समर्थक चेहरों के साथ ‘नेशन फ़ॉर फार्मर्स’ ने इसकी घोषणा की है।

किसान आंदोलनों के अग्रणी यह सभी दिग्गज शुक्रवार को प्रेस क्लब आफ इण्डिया में जुटे थे, जहाँ उन्होंने किसानों के हक़ में एक प्रेस कांफ्रेंस को भी सम्बोधित किया। इसमें पी साईनाथ ने कहा कि – ‘डॉक्टर एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय किसान आयोग, जिसे हम स्वामीनाथन आयोग के नाम से बेहतर जानते हैं, उसका हश्र किसी से छिपा नहीं है। आज भी आयोग की अहम सिफारिशें देश भर के किसानों के बीच लोकप्रिय हैं, जिनमें से कुछ को- खासकर फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने से संबंधित- तत्काल संबोधित किए जाने की ज़रूरत है ताकि आंदोलनरत किसान अपने घर लौट सकें।’

उन्होंने कहा कि स्वामीनाथन आयोग को अपनी पांच में से पहली रिपोर्ट सरकार को जमा किए सोलह बरस हो गए। संसद में इन पर बहस करवाने की बार-बार मांग की गई लेकिन यूपीए और एनडीए दोनों की सरकारों ने इसके लिए न्यूनतम समय भी नहीं दिया। पिछले कई वर्ष से नेशन फ़ॉर फार्मर्स नाम का यह मंच मौजूदा कृषि संकट के संदर्भ में रिपोर्ट और संबंधित मसलों पर संसद में विशेष सत्र रख के बहस करवाने की मांग करता रहा है। यह कृषि संकट बीते दो दशकों में लाखों किसानों को जान ले चुका है।

इस मौके पर अन्य किसान नेताओं दिनेश अबरोल, अनिल चौधरी, निखिल डे, नवशरण सिंह, जगमोहन सिंह, एनडी जयप्रकाश, थॉमस फ्रांको और गोपाल कृष्ण ने कहा भारत में कृषि और उससे सम्बद्ध सभी क्षेत्रों में किसानों और खेतिहर आबादी के विभिन्न तबकों की आय के समक्ष खड़ी चुनौतियों के मद्देनजर किसान आयोग देश भर में विविध कृषि प्रणालियों से जुड़े संगठनों के साथ मिलकर सार्वजनिक जांच-पड़ताल की एक प्रक्रिया को चलाएगा।

इन किसान विशेषज्ञों ने कहा कि किसान आयोग की ज़रूरत क्या है? इसकी वजह ये है कि जब-जब सरकारों द्वारा गठित किये गए आयोगों की सिफारिशें सरकारों और कॉर्पोरेट ताकतों के खिलाफ गयीं, तब-तब उन सिफारिशों को दफना दिया गया। इसलिए अब किसान संगठनों के सामने यह चुनौती है कि वे विभिन्न मजदूर संगठनों, महिला संगठनों, पर्यावरण पर काम करने वाले समूहों, सामाजिक आंदोलनों और खाद्य व पोषण, समग्र स्वास्थ्य, रूपांतरकारी शिक्षा, सुरक्षित पर्यावरण, वन अधिकार और  ग्रामीण उद्योगों के पुनर्नवीकरण और स्थानीय स्तर पर चल रही मूल्यवर्धित कृषि गतिविधियों से जुड़े नागरिक समूहों के नेटवर्कों और अधिकार केंद्रित मंचों को एक साथ लाकर एक जन-केंद्रित व्यापक मंच बनावें।

उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य किसान संगठनों की सक्रिय भागीदारी से कृषि क्षेत्र में रूपांतरण की एक ठोस दृष्टि और रणनीति को विकसित करना है ताकि खाद्य विविधता, पारिस्थितिकीय सातत्य, समता व सामाजिक न्याय की राजनीति के एजेंडे को कॉर्पोरेट पूंजी से अप्रभावित रहते हुए कृषि रूपांतरण की प्रक्रिया में समाहित किया जा सके।

राष्ट्रीय किसान आयोग को लेकर इन नेताओं ने कहा, ‘कुछ प्रतिष्ठित किसान और कृषि विशेषज्ञ शामिल होंगे। इसकी अंतिम संरचना को तय करने में थोड़ा समय लगेगा। यह देश भर के किसानों की नुमाइंदगी करेगा। यह आयोग राज्यस्तरीय आयोगों के गठन को भी प्रोत्साहित करेगा जो कृषि आधारित समूहों और वर्गों के बीच देश भर में अध्ययन, तथ्यान्वेषण और सुनवाई कर सकें।’

उन्होंने कहा कि ‘स्वामीनाथन आयोग की पहली रिपोर्ट दिसंबर 2004 और आखिरी रिपोर्ट अक्टूबर 2006 में जमा की गई थी। इस देश के इतिहास में कृषि पर सबसे महत्वपूर्ण इस रिपोर्ट पर संसद में चर्चा के लिए एक दिन भी नहीं दिया गया। अब जबकि सोलह साल बीत गए हैं, पुराने लंबित मुद्दों और नई परिस्थितियों में पैदा हुए  जलवायु परिवर्तन, कर्ज़ आदि मुद्दों ने मिलकर स्थिति को और घातक बना दिया है। इस पर नए सिरे से एक रिपोर्ट लाए जाने की ज़रूरत है।’
कृषि जानकारों ने कहा – ‘इसी के साथ दूसरे ‘सरकारी’ आयोगों की निरर्थकता को भी देखा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने किसानों की समस्याओं को समझने और समाधान सुझाने के लिए एक कमेटी गठित करने का निर्देश दिया था। इस कमेटी में कृषि कानूनों के स्वयंभू समर्थक भरे हुए थे। अब चूंकि सरकार कह रही है कि वह संसद में इन कानूनों को वापस लेगी, कमेटी के सदस्यों को उसकी अप्रासंगिकता का बोध हो गया है। इस दौरान मीडिया लगातार जोर देकर कहा रहा है कि सिर्फ कॉरपोरेट समर्थक उपायों को ही ‘सुधार’ कहा जा सकता है।’

उन्होंने कहा कि नेशन फ़ॉर फार्मर्स ने किसान आयोग का गठन शुरू कर दिया है। स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट सरकार द्वारा नियुक्त प्रतिष्ठित विद्वानों के अध्ययन व परामर्श का परिणाम थी जिन्होंने किसानों और अन्य से व्यापक रायशुमारी की थी। किसान आयोग का गठन किसानों द्वारा किया जाएगा और उसकी कमान किसानों के हाथ में ही रहेगी, जो विशेषज्ञों के साथ परामर्श करेंगे और फॉलो-अप के लिए ऐसे संयुक्त मंचों का गठन करेंगे जिन्हें सरकार या अदालतें खत्म नहीं कर पाएंगी। भारतीय कृषि की समस्याओं के बारे में हमें किसानों से बेहतर आखिर कौन बता सकता है?

इन नेताओं ने कहा कि यह आयोग भारतीय कृषि के भीतर मौजूद संकट और व्यापक खेतिहर समाज के संकटों पर एक समग्र रिपोर्ट तैयार करेगा और किसानों के समूहों, कृषि-खाद्य तंत्र से सम्बद्ध गैर-कॉरपोरेट इकाइयों और नागरिक समूहों को न्यायपूर्ण पारिस्थितिकीय और सामाजिक परिवर्तनों के लिए संघर्ष के उद्देश्य से एक साथ लाएगा। उन्होंने कहा कि भारत में उन वास्तविक सुधारों की ज़रूरत है जो किसानों और खेत मजदूरों और स्थानीय समुदायों के हित में हों, न कि कॉरपोरेट के हित में। आयोग इन सब मुद्दों पर सिफारिशें प्रस्तुत करेगा।

उत्तर प्रदेश की सियासत का असर दिल्ली एमसीडी चुनाव पर

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के साथ ही दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनाव होने है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में जो भी सियासी दांव पेंच चले जा रहे है। उनका सीधा असर दिल्ली नगर के चुनाव पर जरूर पड़ना है।

राजनीति के विश्लेषकों का मानना है। अगर समाजवादी पार्टी और आप पार्टी उत्तर प्रदेश में गठबंधन करती है। तो दिल्ली के एमसीडी के चुनाव में भाजपा ही नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे को चुनाव में उठा सकती है। क्योंकि आप पार्टी का जो जन्म हुआ है वो, भ्रष्ट्राचार के विरोध में हुआ है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने तो कई बार भ्रष्ट्र नेताओं की सूची जारी कर कहा कि आप पार्टी का कभी भी भ्रष्ट्र पार्टी के साथ गठबंधन नहीं हो सकता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अमरीश का कहना है कि, सियासत में कब कौन किसका दोस्त बन जाये और कब विरोधी ये कहा नहीं जा सकता है। लेकिन आप पार्टी के मुखिया ने तो अन्ना आंदोलन के समय से ही मुख्यमंत्री बनने तक कई मर्तबा कहा है कि वे उन राजनातिक दलों के साथ समझौता नहीं करेगे जिन पर भ्रष्ट्राचार के आरोप है।

यदि आप पार्टी उत्तर प्रदेश में अपने लाभ के लिये उन राजनीतिक दलों के साथ समझौता करती है। जिन पर भ्रष्ट्राचार के आरोप है। तो केजरीवाल की राजनीति से जनता का विश्वास उठ जायेगा।

उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में केजरीवाल की राजनीति पूरी तरह से असफल हो जायेगी। भाजपा के नेता राजकुमार सिंह का कहना है कि, सियासत में सब चलता की राजनीति अब ज्यादा दिन चलने वाली नहीं है। जनता और मतदाता जागरूक है। वो भली- भाँति जानती है कि कौन नेता देश का विकास कर सकता है। क्योंकि अब जनता विकास चाहती है। उन्होंने कहा कि, उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के साथ ही दिल्ली में एमसीडी के चुनाव है। जो दिल्ली की सियासत में बड़े महत्व रखते है।

दिल्ली के एमसीडी के चुनाव में राष्ट्रीय स्तर के नेता चुनावी सभायें भी करते है। ऐसो में आप पार्टी की राजनीति और कथनी और करनी को जरूर मुद्दा बनाया जायेगा।

गरीब की थाली से टमाटर गायब

सब्जियों के हर रोज बढ़ते दामों से गरीबों की थाली से हरी सब्जियां और टमाटर गायब होते जा रहे है। सब्जियों के बढ़े दामों के पीछें क्या कारण है?

इस पर तहलका संवाददाता ने सब्जी व्यापारियों से बात की तो उन्होंने बताया कि, कई बार फसल की कमी होती तो कई बार जमाखोरी (कालाबाजारी) भी  जिसके कारण सब्जियों के दामों में इजाफा होता है।

सब्जी व्यापारी पवन कुशवाहा ने बताया कि, एक ओर तो पेट्रोल-डीजल के दाम बढे है। फिलहाल जरूर थोड़ी कम हुये है। जिसके चलते सब्जियों के दामों में बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं कुछ व्यापारी जो मोटे पैसे वाले है। वे जमकर काला बजारी कर जमाखोरी कर रहे है। जिसके कारण  सब्जियां सही मात्रा में बाजार में नहीं आ पाती है।

आजादपुर मंड़ी के व्यापारी संतोष अग्रवाल का कहना है कि, थोक मंडियों में तो टमाटर 37, 40 और 30 रूपये किलों है। लेकिन छोटी मंडियों में किराया-भाड़ा लगने से 70, 80 और 100 रूपये किलो तक बिक रहा है।

दिल्ली के पांडव नगर में सब्जी खरीद रही गृहणी सुनीता ने बताया कि, ये सब सरकार की लापरवाही का नतीजा है। जिसके कारण सब्जियों के दामों में इजाफा हो रहा है। उनका कहना है कि कोरोना काल के बाद गरीब और मध्यम परिवार को वैसे ही आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा है।

महगांई के कारण लोगों को खान-पान की वस्तुओं को खरीदने में दिक्कत हो रही है। उनका कहना है कि टमाटर, प्याज और आलू सहित हरी सब्जियो के दाम बढ़ रहे है। जबकि सर्दी का मौसम तो सब्जियों का मौसम ही माना जाता है।

फिर भी अगर सर्दी के मौसम में सब्जियों के दाम बढ़ रहे है। तो सरकार की लापरवाही का नतीजा है। जिसके कारण गरीबों को हरी सब्जियां नहीं मिल पा रही है।

 

कोरोना, डेंगू और वायु प्रदूषण से करें बचाव

मौजूदा समय में देश में कोरोना, डेंगू और वायु प्रदूषण के कहर से लोगों को तमाम तरह की परेशानीयों का सामना करना पड़ रहा है। आलम यह है कि, लोगों के अंदर इस बात की भी फिक्र है कि कहीं वे अपने घरों से निकल कर अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे।

दिल्ली स्टेट प्रोग्राम के अधिकारी डाँ भरत सागर का कहना है कि, कोरोना का कहर कम हुआ है लेकिन कोरोना है। और सभी को सावधानी बरतने की जरूरत है। वहीं डेंगू के अब तक के सबसे ज्यादा मामले इस बार दिल्ली में आये है। जो चिंता का विषय है। इसी तरह लगातार वायु प्रदूषण का कहर लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है।

बच्चो और बुजुर्गो में लंग की दिक्कत आ रही है। ऐसे में बचाव के तौर पर सोशल डिस्टेसिंग का पालन करें और घरों से निकलते समय मास्क लगाकर निकलें।

डाँ भरत सागर ने बताया कि, भीड़-भाड़ वाले इलाके में जाने से बचें। बुखार के साथ गले में खिचाव व दर्द हो तो उसे नजरअंदाज ना करें। क्योंकि स्वास्थ्य के लिये  यह बेहद हानिकारक हो सकता है।

इंडियन हार्ट फाउंडेशन के चेयरमैन डाँ आर एन कालरा का कहना है कि, आने वाली सर्दी के मौसम में  स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होती है। साथ ही बी पी और हाइपरटेंशन के मामलें बढ़ते है। इसलिये बचाव के तौर पर योग को अपनाये और बुखार के साथ बैचेनी, बायें हाथ में दर्द और जबड़े में तेजी से खिचाव हो तो उसे नजरअंदाज ना करें। क्योंकि ये शायद हार्ट रोग के लक्षण हो सकते है।

उन्होंने कहा कि कोरोना , डेंगू और वायु प्रदूषण से मौजूदा समय में बचना ही तामाम बीमारियों से बचना है।

मंत्रिमंडल ने तीन कृषि क़ानून वापस लेने को दी अपनी मंजूरी  

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विवादित तीन कृषि कानूनों को वापस लेने को मंजूरी दे दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिन पहले यह कहते हुए कि सरकार किसानों को  असफल रही, इसकी घोषणा की थी। हालांकि, एमएसपी की गारंटी और कुछ अन्य मुद्दों पर किसान अभी अड़े हुए हैं और उन्होंने फिलहाल अपना आंदोलन वापस लेने से मना  कर दिया है। याद रहे एक साल से ज्यादा के पूरी किसान आंदोलन के दौरान 750 के करीब किसानों की शहादत हुई है।

मंत्रिमंडल की आज नई दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में बैठक हुई, जिसमें यह फैसला किया गया। इसी महीने 29 तारीख से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है जिसमें इन कानूनों को वापस लेने के लिए पहले ही हफ्ते में बिल लाया जाएगा। हालांकि, यह साफ़ नहीं है कि एमएसपी पर गारंटी को लेकर क्या फैसला किया जाएगा, क्योंकि किसानों का साझा संगठन संयुक्त किसान मोर्चा इसपर बिल लाने की मांग कर रहा है।

किसान आंदोलन ख़त्म करने का कोई फैसला किसानों ने नहीं किया है। वे एमएसपी गारंटी की अपनी पुरानी मांग पर दृढ़ हैं। प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद ही किसान  संगठनों ने साफ़ कर दिया था कि वे अभी आंदोलन ख़त्म नहीं करेंगे क्योंकि उनकी सभी मांगों पर फैसला अभी नहीं हुआ है।

फ़िलहाल यह देखना दिलचस्प होगा कि किसानों के सभी मुद्दों पर सरकार संसद में क्या फैसला करेगी। इसी पर आंदोलन का रुख निर्भर करेगा। किसान आंदोलन का भले जो फैसला हो, यह तय है कि सरकार ने अपनी तरफ से तीन कृषि कानूनों को लेकर प्रक्रिया शुरू कर दी है।