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कानों में मिठास घोलती रहेगी जादुई आवाज़

MUMBAI, INDIA - JULY 28, 2006: LATA MANGESHKAR ANSWERING 'LIVE' TO THE LISTENERS TO CITY'S FM RADIO CHANNEL AT BANDRA-KURLA COMPLEX ON FRIDAY. (Photo by Vijayanand Gupta/Hindustan Times via Getty Images)

लता मंगेशकर पहला गाना मराठी फ़िल्म ‘चिमुकला संसार’ में गाया था- ‘मी म्हणेन तुजला दादा दादुटल्या’। मास्टर विनायक द्वारा निर्मित इस फ़िल्म का निर्देशन वसंत जोगळेकर ने किया था। इस फ़िल्म में लता मंगेशकर ने अभिनेता मास्टर विनायक की छोटी बहन का किरदार भी निभाया था। इसके बाद वसंत जोगळेकर ने ‘किती हसाल’ नामक फ़िल्म में भी लता को मौक़ा दिया। जब वसंत जोगळेकर ने फ़िल्म ‘आप की सेवा में’ बनायी, तो लता को भी पहली मर्तबा हिन्दी फ़िल्म उद्योग में मौक़ा मिला। इससे पहले उन्होंने मंगळागौर, माझं बाळ आणि गजाभाऊ नामक फ़िल्मों में अपनी इच्छा के विरुद्ध अभिनय भी किया। बोनी कपूर की एक फ़िल्म में भी उनके अभिनय की झलक कुछ ही लोगों को पता होगी। लेकिन उस समय किसी को पता नहीं था कि एक दिन लता को सरस्वती का अवतार भी कहा जाएगा।

सूरों की सरिता लता मंगेशकर के निधन की ख़बर जैसे ही देश-दुनिया में फैली, लोगों ने उन्हें श्रद्धापूर्वक विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की। फ़िल्म जगत में हलचल-सी मच गयी और बड़े-बड़े सितारों का उनके अन्तिम दर्शन के आना शुरू हो गया। केंद्र सरकार से लेकर प्रदेशों की सरकारों, महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें शोक श्रद्धांजलि अर्पित की। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी का शोक सन्देश मंगेशकर परीवार को दिया। महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले ने कहा कि लता मंगेशकर का स्मारक अच्छी गुणवत्ता वाला, अंतरराष्ट्रीय स्तर का मुम्बई के ही दादर के शिवाजी पार्क में होना चाहिए। ताकि देश-दुनिया की जनता याद रखे। उनकी अन्तिम यात्रा में न केवल अभिनेत्री-अभिनेता, राजनेता मौज़ूद रहे, बल्कि आम जनमानस ने भी उन्हें एक झलक देख लेने की कोशिश की। लता दीदी को अपनी अन्तिम यात्रा के दौरान भी महाराष्ट्र राज्य की संस्कृति और परम्परा अलविदा कहने में सफल रही।

लता मंगेशकर की आवाज़ का कौन $कायल नहीं रहा, यही वजह है कि उन्हें फ़िल्म के सर्वोच्च पुरस्कारों समेत भारत के तीन सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न, पद्म विभूषण और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया। एच.एम. व्ही ने महाराष्ट्र के मशहूर मराठी गाने के सम्राट, $कव्वाल स्वर्गीय प्रह्लाद शिंदे को लेकर एल्बम निकालने की सोची। लेकिन प्रह्लाद शिंदे का सादा रहन-सहन देखकर लता मंगेशकर ने एच.एम. व्ही को इन्कार कर दिया। इतना ही नहीं, जिन बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने महिलाओं को हक़ दिलाने वाला हिन्दू कोड बिल नामंजूर किये जाने पर केंद्रीय क़ानून मंत्री पद से इस्तीफ़ा तक दे दिया, उनके ऊपर भी लता मंगेशकर ने गाना गाने से साफ़ इन्कार कर दिया था। जबकि उनसे उस महान् शख़्सियत पर गाना गाने के लिए मुँह माँगे पैसों का ऑफर किया गया और विनती भी की गयी; लेकिन लता फिर भी नहीं मानीं।

महिलाओं को सम्मान के लिए लडऩे वाले और उन्हें कई हक़ दिलाने वाले बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर पर एक गाना तो लता मंगेशकर को गाना चाहिए था। यदि बाबा साहेब पर लिखे गाने को स्वर कोकिला ने सुर दिया होता, तो न तो उनका गला ख़राब हो जाता और न ही वह अस्पृश्य हो जातीं। लता मंगेशकर ने ‘काँटा लगा’ से लेकर ‘शाक धुमधुम’ जैसे हज़ारों गाने गाये; लेकिन बाबा साहेब पर लिखा गाना गाने की कभी हामी नहीं भरी। जबकि कहा जाता है कि एक कलाकार की कला के आलावा कोई जाति नहीं होती। इसमें कोई दो-राय नहीं कि हम स्वर साधना की देवी लता मंगेशकर के हमेशा ऋणी रहेंगे कि उन्होंने देश को एक-से-एक ख़ूबसूरत गाने को अपने स्वरों से नवाज़। लेकिन उनका जीवन कई विवादों से भी घिरा रहा, जिसमें एक विवाद उनकी सोच का मनुवादी होने को लेकर भी था। इसी सोच के चलते उनकी अपने समय के गायकों से भी कुछ अनबन रही। ओ.पी. नैय्यर ने कहा था कि मुझे लगता है कि लता मंगेशकर बहुत अच्छी गायिका हैं। उसकी आवाज़ बहुत पतली है। लेकिन वह मेरे द्वारा रचित गीत भी नहीं गा सकतीं। मेरे प्रतिबन्ध बहुत कठिन हैं, जिससे गायकों का दम घुटता है। और लता ये कठिन टोटके नहीं गा पाएँगी। वह मेरे लेखन की गायिका नहीं हैं।

हम सभी की प्रिय लता दीदी को ईश्वर का बुलावा आया और वह हमारे बीच से चली गयीं। लेकिन उनकी जादुई आवाज़ हमारे कानों में मिठास घोलती रहेगी। हालाँकि मैं इससे ज़्यादा कुछ नहीं कहूँगा कि सामाजिक भेदभावों से पहले संवेदनशीलता की नज़र रखना हम सबका परम् कर्तव्य है। क्योंकि सामाजिक भेदभावों का मैल मन में रखने वाले शाहरूख़ ख़ान की दुआ को भी थूकना साबित करने की कोशिश करते हैं। फिर जिन लोगों का मर्तबा ऊँचा हो और जिन्होंने समाज के लिए जीवन न्यौछावर कर दिया हो, उनसे भेदभाव की तो कोई गुंजाइश ही नहीं बनती। लता मंगेशकर को मैं पूरे देश की तरफ़ से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

युद्ध की स्थितियाँ!

UNKNOWN LOCATION, BELARUS - FEBRUARY 09: (----EDITORIAL USE ONLY â MANDATORY CREDIT - "BELARUS DEFENSE MINISTRY / HANDOUT" - NO MARKETING NO ADVERTISING CAMPAIGNS - DISTRIBUTED AS A SERVICE TO CLIENTS----) S-400 and Pantsir-S air defence systems arrive to participate in the Russian-Belarusian military will start a joint exercise amid tension between Ukraine and Russia at an Unknown location in Belarus on February 9, 2022. According to the Belarusian Ministry of Defense, the joint military exercise "Allied Resolve 2022" will take place from February 10-20. The military units of the Russian Armed Forces from the Eastern Military District and some military units of the Belarusian Armed Forces will in the exercise. (Photo by Belarus Defense Ministruy/Anadolu Agency via Getty Images)

यूक्रेन में बढ़ती तनातनी बन सकती है बड़े संकट का कारण

यूक्रेन में सैन्य तनाव बड़े ख़तरे के संकेत देने लगा है। रूस ने जिस तरह बेलारूस के साथ काला सागर में युद्धाभ्यास किया है, उससे दुनिया भर के रक्षा विशेषज्ञ मान रहे हैं कि रूस ने नाटो में न जाने की जो धमकी यूक्रेन को दी है, उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। अमेरिका ने इसी ख़तरे को देखते हुए अपने नागरिकों को यूक्रेन छोडऩे को कहा, जिसके बाद यह कहा जाने लगा है कि रूस युद्ध के लिए गम्भीर है। यूक्रेन संकट के राजनयिक समाधान की कोशिशें हो रही हैं। लेकिन फ़िलहाल रूस जिस तरह अपने इकलौते एजेंडे कि यूक्रेन नाटो सदस्य बनने की दौड़ से पीछे हट जाए। लेकिन यूक्रेन समर्पण करने के मूड में नहीं दिख रहा। रूस के इस परमाणु अभ्‍यास में क़रीब 30,000 सैनिक हिस्‍सा ले रहे हैं। नाटो के महासचिव रूसी अभ्‍यास को ख़तरनाक क्षण बता चुके हैं।

फरवरी के पहले पखवाड़े तक रूस यूक्रेन को कमोवेश चारों तरफ़ से घेर चुका था। युद्ध होगा या नहीं, यह बाद की बात है, रूस की पहली कोशिश यूक्रेन को इस मनोविज्ञानिक दबाव के ज़रिये इस बात के लिए तैयार करने की कोशिश है कि वह नाटो का सदस्य बनने की कोशिशों से तौबा कर ले। ऐसा होगा या नहीं; कहना कठिन है। क्योंकि अमेरिका और उसके सहयोगी यूक्रेन को हिम्मत से खड़ा रहने के लिए उसकी सैन्य मदद कर रहे हैं।

रूस की सेना समुद्र, ज़मीन और हवा के रास्‍ते परमाणु बम गिराने का अभ्‍यास कर रही है। ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वालेस के मुताबिक, रूसी सेना न्‍यूक्लियर स्‍ट्रेटजि‍क अभ्‍यास करने जा रही है। राजनयिक कोशिशों के बावजूद रूस ग़लत दिशा में बढ़ रहा है। वालेस का कहना था कि जानकारियों के मुतबिक, रूस यूक्रेन पर हमले की तैयारी कर रहा है। बातचीत के बावजूद चीज़ें ग़लत दिशा की तरफ़ जा रही हैं। रूस अब भी अपनी सेना को बढ़ा रहा है।

रूस की सरकारी समाचार एजेंसी ने इस बीच यह साफ़ किया कि देश की सेना परमाणु अभ्‍यास में रणनीतिक परमाणु बल के तीनों ही हिस्सों ज़मीन, समुद्र और हवा से परमाणु बम गिराने का अभ्‍यास कर रही है। नाटो के महासचिव रूसी अभ्‍यास को ख़तरनाक क्षण बताते हुए कह चुके हैं कि यह शीत युद्ध के बाद अब तक का सबसे बड़ा अभ्‍यास है। यूरोप की सुरक्षा के लिए यह ख़तरनाक क्षण है। रूसी सैनिकों की संख्‍या बढ़ रही है। हमले के ख़तरे की चेतावनी देने वाला समय लगातार कम होता जा रहा है।

इस मसले पर 10 फरवरी को ब्रिटेन की विदेश मंत्री एलिजाबेथ ट्रूस रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के साथ बैठक कर चुकी हैं। कोशिश यूक्रेन संकट में कमी लाना और कूटनीतिक तरीक़ों से तनाव कम करने की है। इसके बाद एलिजाबेथ ने रूस को चेताया कि यूक्रेन पर हमले के गम्भीर नतीजे होंगे और इसकी बड़ी क़ीमत चुकानी होगी। हालाँकि लावरोव ने साफ़ कहा कि पश्चिमी देश मॉस्को को उपदेश नहीं दें। वैचारिक दृष्टिकोण और अन्तिम चेतावनी के रास्ते आगे नहीं बढ़ा जा सकता।

निश्चित ही इसके बाद यूक्रेन मामला तेज़ी से गर्माता दिख रहा है। रूस की यूक्रेन को नाटो का सदस्य न बनने अन्यथा परमाणु हमले झेलने की धमकी के बाद अमेरिका ने 11 फरवरी को यूक्रेन में अपने नागरिकों को तुरन्त देश छोडऩे की एडवाइजरी जारी की। वैश्विक स्तर पर विशेषज्ञ यूक्रेन पर बड़े देशों के बीच बढ़ रहे तनाव को विश्व शान्ति के लिए ख़तरा मान रहे हैं और उनको अंदेशा है कि यह तनाव बड़े टकराव का रास्ता खोल सकता है।

यह अवसर भारत के लिए भी संकट जैसा है। क्योंकि उसके सामने अमेरिका और रूस में से एक का चुनाव (पक्ष) करने की चुनौती है। अमेरिका यूक्रेन मामले में भारत को अपने साथ खड़ा देखना चाहता है। लेकिन रूस, जिसके साथ हाल के सालों में भारत के सम्बन्ध पुराने स्तर जैसे दोस्ताना नहीं कहे जा सकते; के साथ भी भारत सम्बन्ध ख़राब नहीं करना चाहता। भारत की कोशिश संतुलन बनाने की है। अमेरिका के साथ-साथ रूस भी भारत का रणनीतिक साझीदार है।

रूस भारत के लिए इसलिए भी ज़रूरी है कि चीन के साथ उसका तनाव ऊँचे स्तर पर है। यूक्रेन मामले में चीन रूस के साथ खड़ा हो गया है। चीन से टकराव घटाने में रूस अहम भूमिका निभा सकता है, अमेरिका नहीं। भारत रणनीतिक तौर पर रूस का भी क़रीबी है। लम्बे वक़्त से भारत रूसी रक्षा उपकरण और हथियार का ख़रीदार है। लिहाज़ा रूस पर रक्षा क्षेत्र की निर्भरता भी है। ज़ाहिर है भारत इस बड़ी चुनौती के समय समझदारी से काम लेगा और इस युद्ध के पक्ष में नहीं रहेगा।

मानसिक रोगियों की अनदेखी

कोरोना-काल में हुई तालाबंदी के दौरान देश की एक बहुत बड़ी आबादी ने अपने इलाज पर क़रीब 70,000 करोड़ रुपये जेब से ख़र्च किये

सर्वे संतु निरामया (सब स्वस्थ रहें)। यह कामना करना और इसे अमलीजामा पहनाना, दोनों ही अलग-अलग बातें हैं। केंद्र सरकार यह कामना तो करती है कि सब स्वस्थ रहें; लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसे पूरा करने के लिए कितनी ईमानदारी और किस इच्छाशक्ति से काम करती है, यह बात देशवासी भी समझते हैं। वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 1 फरवरी को संसद में पेश आम बजट में स्वास्थ्य बजट में बढ़ोतरी तो हुई है और आँकड़े बताते हैं कि 2021-2022 यानी चालू वित वर्ष में स्वास्थ्य बजट 73,931 करोड़ रुपये का था, जो अब 2022-2023 वित्त वर्ष में 86,200 करोड़ रुपये हो गया है, यानी गत वर्ष की तुलना में स्वास्थ्य के बजट में कुल 16.59 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है। शायद आँकड़ों की इस बढ़ोतरी के मद्देनज़र केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने बजट के बाद टिप्पणी करते हुए कहा कि आत्मनिर्भर भारत का बजट देश में मानसिक स्वास्थ्य को मज़बूत करने, शोध को बढ़ाने, आमजन तक उत्तम स्वास्थ्य सुविधा पहुँचाने में मील का पत्थर साबित होगा। यह बजट 100 साल में विकास का नया विश्वास लेकर आया है।

दरअसल अमृत-काल में नया भारत गढऩे का जो मुहावरा देश की जनता के सामने पेश किया गया है, कह सकते हैं कि आमजन की रोज़ाना मुश्किलों का समाधान निकालने में विफल केंद्र में मौज़ूद सरकार ने देश की जनता का ध्यान अपनी विफलताओं से हटाकर उसे आने वाले 25 वर्षों के रोडमैप का सपना देखते रहने का सन्देश दिया है। किसी भी कल्याणकारी राज्य के लिए उसकी जनता का स्वास्थ्य बहुत अहमियत रखता है। क्योंकि स्वस्थ जनता राज्य पर बोझ नहीं होती, बल्कि अपने परिवार, समाज और देश की अर्थ-व्यवस्था में ठोस योगदान देती है। भारत आने वाले कुछ वर्षों में पाँच ख़रब की अर्थ-व्यवस्था बनने का सपना संजोये हुए है और सरकार का दावा है कि वह इस दिशा में आगे भी बढ़ रही है। लेकिन क्या सरकार के पास इस सवाल का जवाब है कि शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार आमजन अपने इलाज के लिए अपनी जेब से क्यों ख़र्च कर रहा है? यह ख़र्च इतना बड़ा है कि इस ख़र्च के चलते समाज में आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है। कोरोना महामारी ने आमजन की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। ऐसे में माना जा रहा था कि सरकार आम बजट में स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्वास्थ्य के ढाँचे का मज़बूती प्रदान करेगी। स्वास्थ्य बजट के आँकड़ों में बढ़ोतरी नाकाफ़ी है।

इससे देश के स्वास्थ्य तंत्र के कमज़ोर बुनियादी ढाँचे को मज़बूती नहीं मिल सकेगी। स्वास्थ्य बजट का सूक्ष्म विश्लेषण बताता है कि स्वास्थ्य शोध विभाग, जो कि भारत में कोरोना टीके के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, उसके बजट में महज़ क़रीब चार फ़ीसदी की ही वृद्धि की गयी है। वित्त वर्ष 2021-2022 के लिए यह राशि 2,663 करोड़ रुपये थी, जो वित्त वर्ष 2022-2023 में बढक़र 3,200 करोड़ रुपये कर दी गयी है। जबकि महामारी ने सरकारों को सिखाया है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में निरंतर शोध के लिए काम करना कितना ज़रूरी है? दरअसल सरकार ने बजट में बढ़ोतरी कर यह सन्देश देने की कोशिश की है कि उसे अपनी जनता की फ़िक्र है। लेकिन हक़ीक़त यह है कि स्वास्थ्य पर सरकार का फोकस एक दिखावा ही लगता है। कोरोना महामारी के दौरान जब तालाबंदी (लॉकडाउन) के कारण हज़ारों की नौकरियाँ ख़त्म हो गयीं, लाखों लोगों के वेतन में मोटी कटौती की गयी, जो अनेक जगह अब भी जारी है; ऐसे वक़्त में देश की एक बहुत बड़ी आबादी ने अपने इलाज पर क़रीब 70,000 करोड़ रुपये अपनी जेब से ख़र्च किये, जो कि वास्तव में सरकार को ख़र्च करने चाहिए थे। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, जो कि एक महत्त्वाकांक्षी योजना है; के तहत सभी बीमारियों पर नियंत्रण कार्यक्रम और प्रजनन व बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम आते हैं, जिसमें टीकाकरण भी शामिल है। ये कार्यक्रम भारत की अधिकांश ग़रीब जनता के लिए टूटती साँसों के बीच जीवन की आशा की एक मात्र किरण हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के बजट में 7.4 फ़ीसदी बढ़ोतरी तो कर दी गयी है; लेकिन ध्यान देने वाला बिन्दु यह है कि बीते साल कोरोना महामारी में इन सेवाओं का लाभ उठाने वालों की संख्या में क़रीब 30 फ़ीसदी की कमी दर्ज की गयी, इससे कई बीमारियों के बढऩे का ख़तरा जताया जा रहा है। यही नहीं, लाखों बच्चे निर्धारित समय पर अपनी टीका ख़ुराक से भी वंचित रह गये। ऐसे में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन योजना के तहत चलाये जा रहे कार्यक्रमों में सरकार को अधिक रक़म आवंटित करनी चाहिए थी। भारत स्वास्थ्य पर अपनी जीडीपी का बहुत-ही कम ख़र्च करता है। यह आँकड़ा क़रीब 1.2 से 1.5 फ़ीसदी के दरमियान ही अटका हुआ है। जबकि इसे कम-से-कम जीडीपी का आठ फ़ीसदी होना चाहिए। वित्त वर्ष 2022-23 के स्वास्थ्य बजट में एक ऐलान ने अधिक घ्यान खींचा और वह ऐलान है कि देश में राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य योजना शुरू किया जाएगा।

ग़ौरतलब है कि कोरोना महामारी के दौर में मानसिक रोग दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरकर सामने आया है। मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ी है। वैज्ञानिक साक्ष्य भी इस ओर इशारा कर रहे हैं कि कोरोना महामारी का शिकार हुए कई लोगों में अवसाद, चिन्ता के लक्षण पाये जा रहे हैं। कई लोग कोरोना रिपोर्ट के नकारात्मक आने के बाद भी कोरोना महामारी का शिकार दिखे हैं और अनेक ऐसे भी लोग इस महामारी की चपेट में आये हैं, जिनको एक या दोनों कोरोना टीके लग चुके हैं। यही नहीं, जो लोग पूरी तरह स्वस्थ हैं, उनकी मानसिक सेहत को भी कोरोना महामारी प्रभावित कर रही है। तालाबंदी के कारण बच्चे, बुज़ुर्ग, युवा घरों में क़ैद होकर रह गये थे। घरेलू हिंसा की घटनाएँ भी बढ़ी हैं। यानी कोरोना महामारी ने मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर ही नहीं डाला, बल्कि इसे बढ़ाया भी।

हाल में जारी कुछ अध्ययन बताते हैं कि देश में 14 फ़ीसदी आबादी किसी-न-किसी मानसिक विकार से ग्रस्त हैं। पाँच फ़ीसदी आबादी सिर्फ़ मानसिक अवसाद की शिकार है। कोरोना महामारी से पहले ही देश के क़रीब पाँच करोड़ बच्चे मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धित समस्या से प्रभावित थे। अब तो कोरोना-काल में यह संख्या और भी बढ़ गयी होगी। राष्ट्रीय अपराध शाखा के सन् 2019 के आँकड़े बताते हैं कि देश में हर तीन में से एक आदमी ने अपनी ज़िन्दगी का अन्त ख़ुद किया; उसकी वजह पारिवारिक दिक़्क़तें थीं। जिन लोगों ने ख़ुदकुशी की, उनमें एक-चौथाई लोग दिहाड़ी मज़दूर थे। यूँ तो भारत सरकार ने देश में मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करने की मंशा से 10 अक्टूबर, 2014 को राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति लागू की थी। इसका उद्देश्य भारत के लोगों की मानसिक सेहत को ठीक रखना और मानसिक रोगों से ग्रस्त लोगों तक मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धित इलाज की सेवाएँ उन तक सहजता से पहुँचाना है। यही नहीं, इसके प्रति जागरूकता का प्रचार-प्रसार भी करना है। लेकिन अभी तक सरकार अपने उद्देश्य को हासिल करने की दिशा में कुछ ख़ास हासिल नहीं कर सकी। हालात यह हैं कि 135 करोड़ की आबादी में मानसिक रोगों का इलाज करने वाले मानसिक रोग विषेशज्ञों की संख्या सिर्फ़ 8,000 है। उनमें से अधिकांश शहरी इलाक़ों में ही सेवाएँ देते हैं; जबकि देश की क़रीब 60 फ़ीसदी आबादी गाँवों में बसती है। दूर-दराज़ के इलाक़ों में मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवाएँ पहुँचाना एक बहुत बड़ी चुनौती है। इस ज़मीनी सच्चाई को भाँपते हुए सरकार ने इस बजट में राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू करने का ऐलान किया।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करते हुए कहा कि राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत लोगों को गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और देखभाल की सुविधा मुहैया करायी जाएगी। इसके लिए देश भर में 23 उत्कृष्ट टेली-मेंटल स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना होगी। बेंगलूरु स्थित राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (निम्हांस) इन सभी 23 केंद्रों का नोडल सेंटर होगा।

इस कार्यक्रम के ज़रिये दूरसंचार या आभासी बैठक (वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग) के ज़रिये इलाज किया जाएगा। देश को इसकी ज़रूरत है। लेकिन सवाल यह भी है कि सरकार ने वित्त वर्ष 2022-2023 के स्वास्थ्य बजट के तहत मानसिक स्वास्थ्य बजट में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं की है। चालू वित वर्ष 2021-22 में मानसिक स्वास्थ्य के लिए 597 करोड़ रुपये रखे गये, जबकि 2022-2023 के स्वास्थ्य बजट के लिए 610 करोड़ रुपये का प्रावधान है। मानसिक रोगियों के इलाज के लिए इस्तेमाल में आने वाली दवाइयाँ महँगी हैं। दवाओं की कमी भी है। एक लाख की आबादी पर मानसिक स्वास्थ्य नर्स की उपलब्धता महज़ 0.8 फ़ीसदी है। सामाजिक कार्यकर्ता की उपलब्धता महज़ 0.06 फ़ीसदी है। मनोचिकित्सक महज़ 0.29 फ़ीसदी और वाक् चिकित्सक (स्पीच थेरेपिस्ट) 0.17 फ़ीसदी हैं। मनोविज्ञानी महज़ 0.07 फ़ीसदी हैं। आँकड़े बोलते हैं कि देश को इस क्षेत्र में बड़ी रक़म ख़र्च करनी चाहिए, न कि सांकेतिक बढ़ोतरी वाली राह अपनानी चाहिए। इस बजट में नेशनल डिजिटल हेल्थ ईको सिस्टम भी शुरू करने का ऐलान किया है। इसमें व्यापक रूप से स्वास्थ्य प्रदाताओं और स्वास्थ्य सुविधाओं के डिजिटल पंजीयन, विशिष्ट स्वास्थ्य पहचान, संयुक्त ढाँचा शामिल होगा। यह स्वास्थ्य सुविधाओं तक सार्वभौमिक पहुँच प्रदान करेगा। स्वास्थ्य बजट में ऐलान तो बहुत किये गये हैं, मगर देश की आम जनता कितनी लाभान्वित होती है? यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा।

प्रतिभाओं की युवा टोली

अंडर-19 विश्व क्रिकेट कप विजेता टीम में हैं भविष्य के कई सितारे

हाल के कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन करने वाले युवा क्रिकेट खिलाड़ी का लक्ष्य आईपीएल में बेहतर नीलामी में जगह बनाना बन गया है। दरअसल सच तो यह है कि भारतीय टीम में चयन भी अब काफ़ी हद तक आईपीएल में प्रदर्शन के आधार पर होने लगा है। अब, जबकि भारत ने रिकॉर्ड पाँचवीं बार विश्व अंडर-19 कप जीत लिया है; चर्चा यह होने लगी है कि इनमें से कौन-कौन खिलाड़ी आईपीएल मेगा नीलामी में ऊँची बोली में जाएँगे? इस बात की चर्चा बहुत कम है कि इनमें से कौन-कौन खिलाड़ी हैं, जो भविष्य में भारतीय क्रिकेट को मज़बूती देंगे। इस बार की विश्व विजेता टीम में कई ऐसी प्रतिभाएँ हैं, जिन्हें बेहिचक भारतीय टीम के भविष्य के सितारे कहा जा सकता है।

ठीक है कि आईपीएल भी भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) का ही हिस्सा है; लेकिन आईपीएल सीमित ओवर का, वह भी महज़ 20 ही ओवर का खेल है। रणजी ट्रॉफी और दूसरी चार-पाँच दिन वाली घरेलू प्रतियोगिताओं में टेस्ट टीम में आ सकने वाली प्रतिभाओं की ज़्यादा परख होती है। लेकिन आईपीएल चूँकि कारपोरेट का भी खेल है, घरेलू प्रतियोगिताओं के मुक़ाबले उसकी ही चर्चा हर जगह होती है। हाल के कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि भारत में आईपीएल के मैच देखने के लिए तो टिकट की होड़ मची रहती है, टेस्ट मैच के दौरान स्टेडियम में खिलाडिय़ों के अलावा गिने-चुने दर्शक ही दिखते हैं।

इस बार की विश्व विजेता कप टीम को देखा जाए, तो इसमें कुछ ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने प्रतिभा के बूते सबका ध्यान अपनी तरफ़ खींचा है। इनमें यश ढुल, अंगकृष रघुवंशी, राज बावा, शेख़ रशीद, हरनूर सिंह, विक्की ओसवाल, निशांत सिंधु और राज्यवर्धन हंगरगेकर शामिल हैं। पिछले 20 साल के युवा विश्व क्रिकेट कप का इतिहास देखा जाए, तो ज़ाहिर होता है कि भारतीय टीम ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। उसमें से निकले कुछ खिलाड़ी देश की टीम का हिस्सा बने, जिनमें विराट कोहली भी शामिल हैं। इस लिहाज़ से देखा जाए इस विश्व कप से देश के लिए युवा क्रिकेटरों की ऐसी टोली निकली है, जो प्रतिभा से भरपूर है। आईपीएल की नीलामी में निश्चित ही इनका बोलबाला रहेगा। लेकिन यह भी ज़रूरी है कि यह प्रतिभाएँ आईपीएल तक सीमित न रहें। टेस्ट मैच से लेकर भारतीय टीम के दूसरे फॉर्मेट में भी अवसर पा सकें और ख़ुद को साबित कर सकें।

कैसे जीता भारत?

भारत ने अंडर-19 विश्व कप-2022 के फाइनल मुक़ाबले में इंग्लैंड को चार विकेट से हराया। मैच दिलचस्प बन गया था। भारतीय टीम ने 5वीं बार कप जीता है, जो एक रिकॉर्ड है। उसके बाद ऑस्ट्रलिया है, जिसने तीन ट्रॉफी (एक बार यूथ वल्र्ड कप) जबकि पाकिस्तान दो बार, इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका, वेस्टइंडीज और बांग्लादेश ने एक-एक बार ख़िताब जीता है। वैसे तो पहला विश्व कप सन् 1988 में हुआ था; लेकिन भारत ने सन् 2000 में पहला ख़िताब जीता, जब मोहम्मद क़ैफ़ भारतीय टीम के कप्तान थे। इसके बाद भारतीय टीम अलग-अलग वर्षों में तीन बार चैंपियन बनी। अब इसी साल (2022) का विश्व कप जीतकर उसने पाँचवीं जीत हासिल की है।

सर विवियन रिचड्र्स स्टेडियम में क़दम रखते ही भारतीय युवा टीम ने यह जता दिया था कि भारत किस इरादे से यहाँ हैं। इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाज़ी की और 44.5 ओवर में 189 रन पर इंग्लैंड का बिस्तर बाँध दिया। फाइनल में मैन ऑफ द मैच रहे राज बावा ने महज़ 35 रन देकर पाँच विकेट लिये। इस मैच ने सन् 1983 के विश्व कप की याद ताजा कर दी, जिसमें सीनियर भारतीय टीम ने वेस्टइंडीज को 184 रन पर समेट दिया था। उसे याद करके भी लगा कि भारत अब पाँचवें युवा विश्व कप के नज़दीक खड़ा है।

हालाँकि हुआ भी ऐसा ही; लेकिन दिलचस्प अंदाज़ में। भारत ने 48.4 ओवर में जाकर छ: विकेट पर 195 रन बनाकर ख़िताब अपने नाम किया। टीम इंडिया की शुरुआत वैसे ख़राब रही। ओपनर अंगकृष रघुवंशी खाता खोले बिना पहले ही ओवर में जोशुआ बॉडेन की गेंद पर चलते बने। इसके बाद हरनूर सिंह और शेख़ रशीद ने मज़बूत मोर्चा सँभाला; लेकिन 49 रन पर हरनूर 21 रन बनाकर आउट हो गये। फिर मैदान में उतरे उप कप्तान शेख़ रशीद और कप्तान यश ढुल ने टिक कर बल्लेबाज़ी की। शेख़ ने 84 गेंदों में छ: चौकों की मदद से 50 रन की बेहतरीन पारी खेली। उनके जाने के बाद कप्तान यश भी 17 रन के निजी स्कोर पर आउट हो गये, जिससे भारत को चौथा झटका लगा।

स्कोर 97 रन पर चार विकेट का हो गया, तो राज बावा और निशांत सिंधु ने 88 गेंदों में 67 रन की साझेदारी करके भारत के लिए उम्मीद ज़िन्दा रखी। हालाँकि 43वें ओवर में राज बावा के आउट होने से कराते हुए बड़ा झटका दे दिया। राज गेंदबाज़ी के बाद बल्ले से भी कमाल करने में कामयाब रहे, जिसकी भारत को ज़रूरत थी। बावा ने 35 रन बनाये। निशांत ने हाफ सेंचुरी पूरी की, तो 48वें ओवर की चौथी गेंद पर दिनेश ने सिक्स लगाते हुए भारत को ख़िताब जितवा दिया। हरनूर सिंह (50) और निशांत सिंधु (50*) ने भी कमाल की बल्लेबाज़ी की। बावा ने तो युगांडा के ख़िलाफ़ ताबड़तोड़ 168 रन ठोके थे।

इससे पहले इंग्लैंड ने 44.5 ओवर में 189 रन बनाये। इंग्लैंड के लिए जेम्स रीयू (95) ने देश की टीम को बहुत-ही कम स्कोर पर आउट होने से बचा लिया। इंग्लैंड के लिए रीयू और जेम्स सेल्स (नाबाद 34) ने आठवें विकेट के लिए 93 रन की साझेदारी की। इंग्लैंड का स्कोर 11वें ओवर में तीन विकेट पर महज़ 37 रन था।

टूर्नामेंट में भारत का सफर प्रभावशाली रहा। पहले मैच में 15 जनवरी को उसने दक्षिण अफ्रीका को 45 रन, 19 जनवरी को आयरलैंड को 174 रन, 22 जनवरी को युगांडा को 326 रन, 29 जनवरी को बांग्लादेश को पाँच विकेट से, 2 फरवरी को सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया को 96 रन, जबकि फाइनल में 6 फरवरी को इंग्लैंड को चार विकेट से हराया।

 

भविष्य के सितारे

यश ढुल : विजेता अंडर-19 के कप्तान यश ढुल अपने प्रदर्शन के कारण देश भर के क्रिकेट जानकारों के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं। ढुल ने पहले ही मैच में 82 रनों की शानदार पारी खेली। हालाँकि इसके बाद उन्हें कुछ मैच में कोविड के चलते खेलने का अवसर नहीं मिला। क्वार्टर फाइनल में ज़रूर छोटी, परन्तु प्रभावशाली पारी खेली। अंडर-19 एशिया कप में भी यश ने अपने प्रदर्शन से सभी को प्रभावित किया था। यश ढुल ने कुल खेले 4 मैचों में 76.33 की प्रभावशाली औसत से 229 रन बनाये।

 

अंगकृष रघुवंशी : भारतीय अंडर-19 टीम के ओपनर अंगकृष ने हाल में जबरदस्त प्रदर्शन किया है। रघुवंशी ने एक बार 144 रन की शानदार पारी भी खेली। अंगकृष रघुवंशी ने छ: मैचों में 46.33 की औसत से 278 रन विश्व कप में बनाये।

 

राज बावा : एक प्रभावशाली ऑल राउंडर के रूप में ख़ुद को स्थापित करने की तरफ़ बढ़ रहे बावा का इस विश्व कप में ख़ासा प्रभाव दिखा। बावा मध्यक्रम में धमाकेदार बल्लेबाज़ी कर सकते हैं। इस विश्व कप में युगांडा के ख़िलाफ़ उनकी ताबड़तोड़ 162 रन की पारी कपिल देव की याद दिलाती है। इस विश्व कप में गेंद से भी बावा ने अच्छा कमाल दिखाया। एक ऑलराउंडर के नाते                            उनका आईपीएल में किसी भी टीम में अच्छी बोली पर जाने पक्की सम्भावना है।

शेख़ रशीद : भारतीय अंडर-19 टीम के उप कप्तान शेख़ रशीद पर हर निगाह है। रशीद बेहतरीन बल्लेबाज़ हैं। नंबर तीन पर उन्होंने विश्व कप और उससे पहले अंडर-19 एशिया कप में बेहतरीन पारियाँ खेलीं। आईपीएल टीमों की शेख़ रशीद पर नज़र है।

हरनूर सिंह : सलामी बल्लेबाज़ हरनूर सिंह ने पहले युवा एशिया कप और उसके बाद अंडर-19 विश्व कप के वॉर्मअप मैच में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ शतक मारकर सुर्ख़ियों में आये।

 

 

विक्की ओसवाल : स्पिनर विक्की ओसवाल ने अपनी फिरकी से काफ़ी प्रभावित किया है। यूथ क्रिकेट टीम के पास गेंदबाज़ों में सबसे ज़्यादा प्रभावित ऑर्थोडॉक्स स्पिन गेंदबाज़ विक्की ओसवाल ने किया है। विकी ने युवा विश्व कप में छ: मैचों में 12 विकेट लिये। विश्व कप के पहले ही मैच में पाँच विकेट लेकर सबकी नज़रों में आ गये।

 

युवा विश्व क्रिकेट कप का सफ़र

किस साल?         किसने जीता?

 1988                 ऑस्ट्रेलिया

 1998                 इंग्लैंड

 2000                 भारत

 2002                 ऑस्ट्रेलिया

 2004                 पाकिस्तान

 2006                 पाकिस्तान

 2008                 भारत

 2010                 ऑस्ट्रेलिया

 2012                 भारत

 2014                 दक्षिण अफ्रीका

 2016                 वेस्टइंडीज

 2018                 भारत

 2020                 बांग्लादेश

 2022                 भारत

इंसानियत से बड़ा धर्म नहीं

नफ़रत जिससे की जाती है, उसके साथ-साथ उसे भी जलाकर ख़ाक कर देती है, जो नफ़रत करता है। यह ठीक वैसे ही है, जैसे दूसरे का घर जलाने के लिए अपने घर में चिंगारी रखना। लेकिन अपने सीने में नफ़रत की चिंगारी रखने वाले यह नहीं समझते कि वे जिनसे नफ़रत करते हैं, उन्हें ख़ाक कर देने की स्थिति आने तक ख़ुद भी तिल-तिल जलकर मरते हैं। एक बहुत छोटी बात बहुत मोटे तौर पर सभी को समझनी चाहिए कि अगर हम दूसरे से लडऩे के लिए उतरेंगे, तो मारे हम भी जा सकते हैं। मारे नहीं गये, तो ज़ख़्म तो मिलेंगे ही। लेकिन इतनी सीधी बात बहुत-से लोगों को समझ नहीं आती और वे मज़हबी दीवारों को और उठाने की कोशिश में दूसरे मज़हब के लोगों को हर वक़्त मारने को तैयार रहते हैं। इतनी नफ़रत अगर लोग बुरे कर्मों से करें, तो ख़ुद को इतना निर्मल, अच्छा और ऊँचा बना सकते हैं कि उनके आगे हर कोई नतमस्तक हो जाए। सभी जानते हैं कि वास्तविक सन्तों, पीरों के क़दमों में हर कोई सिर झुका देता है और हर मज़हब के लोग उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की चेष्टा बिना किसी भेदभाव के करते हैं।

सोचने की बात यही है कि जिन सन्तों-पीरों के पास कोई हथियार नहीं होता, उनके आगे लोग सिर झुका लेते हैं और श्रद्धापूर्वक उनका आदर करते हैं। वहीं गुण्डे-मवालियों से लोग डरते भले ही हों; लेकिन न तो सम्मान से उनके आगे सिर झुकाते हैं और न ही उनका आदर करते हैं। यहाँ केवल इतना ही फ़र्क़ है कि सन्त-पीर सर्वशक्तिमान ईश्वर की शरण में चले जाते हैं और ख़ुद को निर्बल, असहाय, भिखारी स्वीकार करके सभी को एक नज़र से देखते हैं। हिंसा से दूर हो जाते हैं। वहीं गुण्डे-मवाली ख़ुद को सर्वशक्तिमान बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं और निर्बलों, असहायों पर अत्याचार करके सबको भिखारी समझते हैं और हिंसा करते हैं। आज कितने ही लोग नेता, सन्त-पीर और दयालु रूप में फिर रहे हैं। लेकिन वे स्वकल्याण और पर-विनाश की कोशिशों में लगे हैं। अपने इसी उद्देश्य के लिए वे विनाश के सबसे घातक हथियार नफ़रत का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन समझ नहीं आता कि जिस जीभ में मिठास लाने से दिलों पर शासन किया जा सकता है, उस जीभ को लोग विषैला बनाकर विषाक्त शब्द-बाणों के ज़रिये दुनिया को तहस-नहस क्यों करना चाहते हैं? ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि क्या वे अपने घर में अशान्ति चाहते हैं? अगर नहीं, तो दुनिया में अशान्ति क्यों चाहते हैं? कुछ समय से देश में दो मज़हबों के लोगों में जिस तरीक़े से नफ़रत फैलायी जा रही है; क्या उससे देश का भला होगा? यह सवाल उन लोगों से पूछा जाना चाहिए, जो लगातार नफ़रत फैलाते जा रहे हैं। वह भी तब, जब दुनिया भर के देश परस्पर युद्ध और गृहयुद्ध की तरफ़ बढ़ रहे हैं। इस समय तो केवल भारत को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को शान्ति और सौहार्द का पाठ पढ़ाये जाने की ज़रूरत है। भले ही इसके लिए चीन जैसे आततायी देशों को कुचलना पड़े। लेकिन इससे पहले हमें अपने देश को मज़बूत करने की ज़रूरत है, जिसके लिए हमें आज आपसी प्यार, भाईचारे तथा सौहार्द को बचाना और बढ़ाना पड़ेगा। इसके लिए नफ़रत फैलाने वालों से भी प्यार से ही पेश आकर, उनके सामने इंसानियात का उदाहरण पेश करके उन्हें निरुत्तर करना चाहिए। मेरी नज़र में ऐसे दो उदाहरण हैं; एक नफ़रत फैलाने का और एक उस नफ़रत पर मोहब्बत की पट्टी बाँधने का।

2017 में जैन मुनि तरुण सागर ने कहा कि मुसलमानों की आबादी पर रोक नहीं लगती है, तो देश में विस्फोटक स्थिति हो जाएगी। कुछ मुसलमान भारत विरोधी हैं और भारत विरोधी मुसलमानों की आबादी बढऩे से देश में गम्भीर संकट पैदा हो जाएगा और हिन्दू असुरक्षित हो जाएँगे। मुझे एक सन्त की यह भाषा अच्छी नहीं लगी। यह एक सन्त का तरीक़ा नहीं हो सकता। सन्त नफ़रत भरी भाषा नहीं बोलते। वे मोहब्बत की भाषा से नफ़रत को शान्त करते हैं। अगर कोई सन्त, पीर, पादरी, पण्डित, मुल्ला नफ़रत फैलाता है, तो वह भी उतना ही गुनहगार है, जितना कि दंगा करने वाला कोई गुण्डा-मवाली। अगर शरीर में कहीं जख़्म हो जाए, तो उस पर विष नहीं डालना चाहिए; वरना शरीर ही मर जाएगा। मैं मानता हूँ भारत में नफ़रत के कई गहरे घाव हैं। लेकिन अगर उन पर नफ़रत रूपी विष डाला जाएगा, तो यह भारत को ही नष्ट करने जैसा अपराध होगा। उस पर मोहब्बत का मरहम लगाने की ज़रूरत है।

इसका उदाहरण मध्य प्रदेश के नीमच ज़िले के सिंगोली क़स्बे में हाल ही में देखने को मिला। यहाँ के अशरफ़ मेव उर्फ़ गुड्डू ने जैन मुनि शान्त सागर के पार्थिव शरीर के समाधि स्थल के लिए अपनी ज़मीन दान में दी। जैन सम्प्रदाय के लोगों ने अशरफ़ को भूमि के बदले मुँह माँगे दाम देने की पेशकश की। लेकिन उन्होंने कहा कि पैसा मेरे लिए मायने नहीं रखता है। मैं चाहता हूँ कि सन्तश्री का दाह संस्कार मेरी भूमि पर हो। यह मेरा सौभाग्य है कि मेरी भूमि पर एक जैन मुनि की समाधि बनेगी। बताया जाता है कि दिशा शूल के मुताबिक क़स्बे के दक्षिण-पश्चिम में समाधि के लिए नीमच-सिंगोली सडक़ मार्ग पर अशरफ़ मेव उर्फ़ गुड्डू की ज़मीन को उचित माना गया था। इसके बाद जैन समाज के लोग गुड्डू के पास पहुँचे और उन्होंने बड़ी सरलता से ज़मीन देने के लिए हामी भर दी। अशरफ़ सिंगोली नगर पंचायत के अध्यक्ष रह चुके हैं और इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म मानते हैं। मुझे लगता है कि जैन मुनि तरुण सागर को इससे बड़ा और कोई जवाब नहीं दिया जा सकता था। नफ़रत फैलाने और मोहब्बत बाँटने वालों के लिए मेरा एक दोहा :-

‘नफ़रत से नफ़रत मिले, और प्यार से प्यार।

नफ़रत से बस नाश हो, प्यार बसे संसार।।’ 

पंजाब चुनाव को लेकर हलचल तेज मतदान 20 फरवरी को है

आगामी 20 फरवरी को होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज है। पंजाब में कुल 117 विधानसभा सीटें है। इस बार का चुनाव पिछली बार की तुलना में काफी हट के है। क्योंकि इस बार दो नये दलों का उदय होने से चुनावी रंगत कुछ और है।
बताते चलें 2017 में आम आदमी पार्टी के पंजाब में चुनाव लड़ने से पंजाब की सियासत में नये प्रयोग हुये है। वहां के लोगों ने राजनीति में बदलाव को महत्व भी दिया है। वहीं 2021 में किसान आंदोलन से निकली किसानों की पार्टी ने भी पंजाब की सियासत में नया रख पैदा किया है। और 2021 में ही  कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह ने कांग्रेस को छोड़कर नयी पार्टी  पंजाब लोक कांग्रेस बनाकर भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव में अपना सियासी समीकरण साधा है।
वैसे पंजाब में कांग्रेस और अकाली दल-भाजपा के साथ गठबंधन होने की वजह से दोनों ही दलों कांग्रेस और अकाली दल के बीच ही चुनावी जंग होती रही है। लेकिन इस बार चुनाव पूरी तरह पंचकोणाीय चुनाव हो रहा है।पंजाब के जानकार जत्थेदार दर्शन सिंह का कहना है कि पंजाब में मौजूदा सियासत को भांप पाना मुश्किल है। क्योंकि जिस तरीके से पंजाब में जाति और धर्म को लेकर सियासत हो रही है। जो अभी तक के इतिहास में कभी नहीं हुई है। इस लिहाज से पंजाब  के चुनाव  परिणाम चैौंकाने वाले होगें। 
बताते चलें पंजाब की सियासत का अपना मिजाज है और अपने तौर तरीके है। पंजाब एक सम्पंन्न राज्य है। जो सिख धर्म गुरूओं की धरती है। जहां से धर्म का प्रचार -प्रसार भी हुआ है। वीरों और बलिदानों की भूमि है। पंजाब ने मुगलों के लेकर अंग्रेजों से जंग लड़ी और जब आतंकवाद आया तो उन्होंने आतंकियों को लोहे के चने चबवायें। पाकिस्तान की सीमा से सटें होने की वजह से पाकिस्तानियों के सामने सीना तान के खड़े हुये है।दर्शन सिंह का कहना है कि एक दौर था जब पंजाब में कल काऱखाने थे।
यहां की साइकिल और हौजरी के कारोबार को लेकर पूरी दुनिया में डंका बजा है। लेकिन दो दशकों से सियासत में गिरावट आने से यहां के कारखानों -फैक्ट्रियों में कमी आयी है। जिससे यहां के लोगों का पलायन अन्य राज्यों की ओर हुआ है। पंजाब में इस समय अगर सबसे बड़ी समस्या है तो नसा की है। उसको  लेकर कोई भी राजनीतिक दल कुछ भी बोलने से  डर रहा है।पंजाब के किसानों के साथ काफी अन्याय  हो रहा है। फिर भी सियासत दांन चुप है। महगांई और बेरोजगारी से लोगों का बुराहाल है। 

एनएसए अजित डोवल के आवास में घुसने की कोशिश में पकड़ा व्यक्ति

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित अजीत डोवल के दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर बुधवार को एक अज्ञात व्यक्ति ने कार ले जाने की कोशिश की। इस व्यक्ति को हिरासत में ले लिया गया है और उससे पूछताछ की जा रही है।

जैसे ही सुरक्षाकर्मियों ने उस व्यक्ति को कार से भीतर जाने की कोशिश में देखा और उन्हें आशंका हुई तो उन्होंने उसे रोककर हिरासत में ले लिया। दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल की टीम इस व्यक्ति से पूछताछ कर रही है। अभी यह जाहिर नहीं हुआ है कि यह व्यक्ति गलती से बंगले में घुस रहा था या किसी साजिश का हिस्सा था।

यह घटना आज सुबह की है। यह अज्ञात शख्स गाड़ी लेकर अंदर जाने की कोशिश में  था। उसे तुरंत सुरक्षा कर्मियों ने पकड़ लिया और स्थानीय पुलिस और स्पेशल सेल उससे पूछताछ कर रही है। वो जिस गाड़ी में आया वह किराये की बताई गयी है। पुलिस उनसे मानसिक संतुलन को लेकर भी जांच रही है।

परसों के मुकाबले 11 फीसदी ज्यादा कोविड मामले, कुल संख्या घटकर 3.70 लाख हुई

देश में पिछले 24 घंटे में कोविड-19 के एक दिन पहले के मुकाबले 11.7 फीसदी ज्यादा मामले आये हैं, हालांकि कुल संक्रमित लोगों की संख्या (एक्टिव मामले) घटकर 3,70,240 रह गई है। इस दौरान 514 लोगों की कोरोना से मौत हुई है, जिसमें केरल का बैकलॉग शामिल है।

सरकार की आज सुबह जारी आंकड़ों के मुताबिक देशभर में पिछले 24 घंटे में कोविड-19 के कुल 30,615 नए मामले आए हैं, जो एक दिन पहले के मुकाबले 11.7 फीसदी ज्यादा हैं। देश में अब कुल कोविड संक्रमितों की संख्या बढ़कर अब 4 करोड़ 27 लाख, 23 हजार 558 हो गई है।

इस बीच राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान के तहत देश में कुल 173.86 करोड़ वैक्सीन की खुराक लोगों को दी जा चुकी है। पिछले 24 घंटों में देशभर में वैक्सीन की कुल 41,54,476 खुराक लोगों को दी गई है।

पिछले 24 घंटों में देशभर में कुल 514 लोगों की कोविड से मौत हुई है। अब तक देश भर में महामारी से मरने वालों की कुल संख्या 5 लाख 9 हजार 872 हो गयी है।  राजधानी दिल्ली में पिछले 24 घंटे में कोविड-19 के 756 नए मामले सामने आए, 5 मरीजों की मौत हुई है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, देश में कुल एक्टिव मामलों की संख्या घटकर 3,70,240 रह गई है। कुल संक्रमण दर भी 0.87 फीसदी हो गयी है। देश में फिलहाल रिकवरी रेट बढ़कर 97.94 फीसदी हो गया है।

म्यूजिक कंपोजर बप्पी लहरी का निधन

जाने माने म्यूजिक कंपोजर और गायक बप्पी लहरी का निधन हो गया है। लता मंगेशकर के जाने के बाद बॉलीवुड को यह एक और धक्का लगा है। लहरी (69) का निधन मुंबई के एक अस्पताल में हुआ।

बप्पी लहरी के निधन से बॉलीवुड और संगीत की दुनिया को धक्का लगा है। मुम्बई के   अस्पताल की प्रेस रिलीज के मुताबिक लहरी का बीते एक महीने से इलाज चल रहा था और सोमवार को उन्हें डिस्चार्ज भी कर दिया गया था। अस्पताल के मुताबिक लहरी ओएसए (ऑब्सट्रिक्टिव स्लीप एपनिया) से पीड़ित थे।

लहरी बप्पी दा के नाम से मशहूर थे। उन्होंने म्यूजिक इंडस्ट्री में अपनी धुनों और गानों से एक अलग तरह का मुकाम हासिल किया। फिल्म जगत की कई हस्तियों ने उनके निधन पर शोक जताया है।

स्कूल खुले बच्चों के चेहरे खिले

कोरोना की रफ्तार के कम होने से दिल्ली सरकार ने दो साल से बंद स्कूलों को  खोलने का फैसला लिया है। जिसके तहत 14 फरवरी  सोमवार से प्राथिमक और जूनियर  कक्षाओं के लिये स्कूल खोले थे। फिर उसके बाद नर्सरी तक के स्कूल खोले।
ऐसे में बच्चों के साथ उनके अभिभावको में खुशी देखने को मिली है। तहलका संवाददाता ने स्कूल के टीचरों से बात की तो उन्होंने  बताया कि बच्चों को स्कूल में जो प्रैक्टिकली ज्ञान मिल सकता है। वो आँनलाईन पढ़ाई में नहीं मिल सकता है। ऐसे में स्कूल में पढ़ाई बहुत जरूरी हो जाती है।
निजी स्कूल के टीचर माधव तने्जा ने बताया कि आँनलाईन पढ़ाई तो इसलिये जरूरी थी क्योंंकि बच्चों की पढ़ाई का तारतम्य न टूटे। बच्चों ने भी आँलाईन पढ़ाई की है। लेकिन आँनलाईन पढ़ाई को ज्यादा समय तक नहीं खींचा जा सकता था। इसलिये पढ़ाई को स्कूल में जारी ऱखा जाना अतिआवश्यक था। वहीं अभिभावको की अपनी मांग है कि स्कूल खुले उसका स्वागत वे करते है।
लेकिन स्कूल को आने-जाने में बसों की सुविधाये पहलें की तरह ही दी जाये। ताकि बच्चों को स्कूल में आने जाने में दिक्कत न हो। इस बारे में स्कूल प्रबंधन से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि जब तक स्कूल को लेकर जो भी मांग अभिभावको की है। उसका निपटारा  व समाधान जरूरी है क्योंकि स्कूल खोलना कोई एक -दो दिन की बात नहीं है।
ऐसे में स्कूलों में आने-जाने के लिये बसों का चलाया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि जो भी कोरोना गाईड लाईन है उसका स्कूल वालें, बस वालें और बच्चों को भी पालन करना होगा। क्योंकि क्योंकि कोरोना की रफ्तार कम हुई है। न कि  कोरोना खत्म हुआ है।
बताते चलें दिल्ली में तो अभी स्कूल खुले है। लेकिन अन्य राज्यों में स्कूल पिछले  ही साल से खुल रहे है। यानि की कोरोना को लेकर सावधान रहने की जरूरत है। ना कि अफवाह फैलाने की और घबराने की जरूरत है।