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राजे के मंसूबों पर वज्रपात

बीती 8 मार्च को अपनी सालगिरह के जश्न का पासा फेंककर वसुंधरा राजे ने भाजपा आलाकमान को अपनी ताक़त का अहसास कराने का नया सियासी दाँव खेल दिया। बेशुमार मन्दिरों वाले क़स्बे के शेरायपाटन में आयोजित इस जश्न में 11 सांसदों और 42 विधायकों के अलावा भारी तादाद में कार्यकर्ताओं की मौज़ूदगी से राजे के चेहरे पर गर्वीली मुस्कान खिंचती नज़र आयी। नतीजतन राजे का ग़ुरूर शायराना अंदाज़ में उनके सर चढ़कर बोला- ‘बिजली जब चमकती है, तो आकाश बदल देती है; नारी जब गरजती है, तो इतिहास बदल देती है।’

सालगिरह के जश्न में राजे ने पूरे जोशीले अंदाज़ में आगामी विधानसभा चुनावों में नेतृत्व की कमान थमने की अभिलाशा का प्रदर्शन कर दिया। नतीजतन आतलाकमान की पेशानी पर सिलवटें पड़े बिना नहीं रहीं। उधर ख़ुशी से फूलकर कुप्पा हुईं वसुंधरा अपनी आस्था तर करने के लिए दिल्ली पहुँचीं; लेकिन उनसे मिलना तो दरकिनार प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने उन्हें ड्योढ़ी पर भी पाँव रखने की इजाज़त नहीं दी।

इससे पहले नेतृत्व की कमान सौंपने के लिए वसुंधरा समर्थकों का भाजपा आलाकमान को लिखा गया एक सौहार्दपूर्ण ख़त उनकी ख़ता बन चुका था। चिट्ठी में विधायकों ने वसुंधरा राजे को प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के लिए जो नया सियासी व्याकरण गढ़ा था, उसका सुर शीर्ष नेतृत्व को रास नहीं आया। मीडिया में चिट्ठी बम की किरचें उड़ीं, तो प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए राजे समर्थकों को क़ैफ़ियत के लिए जयपुर के एमएनआईटी गेस्ट हाऊस में तलब कर लिया। चिट्ठी में लोकतांत्रिक मूल्यों का हवाला देते हुए दलील दी गयी थी कि राजनीति में चेहरा बहुत मायने रखता है, जनता चेहरे को ही देखती है। अलबत्ता राजे समर्थक विधायकों ने राजनीतिक परिस्थितियों के अनुकूल कोई पटकथा तैयार नहीं की थी। नतीजतन अरुण सिंह के साथ बहस के दौरान मुद्दे को अलग मोड़ दे दिया कि व्यवस्था को जिस तरह चलाया जा रहा है, वह सही नहीं है।

 

विश्लेषकों का कहना है कि वसुंधरा राजे की मंशा को मोदी और शाह पूरी तरह भाँप चुके थे। नतीजतन ऐलानिया कह दिया कि इस बार नेतृत्व उनकी तरफ़ करवट नहीं लेगा। मोदी और शाह की चक्रवर्ती जोड़ी का हर गूढ़ फ़ैसला कोई बड़ा लक्ष्य और अपने आम आदमी पार्टी में एक सियासी मंसूबा संजोये रहता है, ताकि अपने विरोधियों और वंशवादी लोगों को बड़ा झटका दिया जा सके। सूत्रों का कहना है कि भले ही वसुंधरा नहीं समझ पायी; लेकिन इससे काफ़ी पहले ही बिरला की ताजपोशी झिंझोड़ कर बता गयी थी कि अब मोदी-शाह की जोड़ी राजस्थान की राजनीति को वसुंधरा मुक्त करने की जुगत में है। बेशक बिरला की ताजपोशी को अमित शाह की पर्सनल च्वाइस बताया जा रहा था। जबकि हक़ीक़त समझें, तो इसमें पूरी तरह सियासत का बघार लगा हुआ था। कोई ज़माना था, जब बिरला और वसुंधरा राजे के रिश्तों में आत्मीयता रही होगी? लेकिन इतनी भर कि बिरला वसुंधरा मंत्रिमंडल में संसदीय सचिव की दहलीज़ पर ही टिके रहे। इसके बाद रिश्ते कितने तल्ख़ हुए? कहने की ज़रूरत नहीं है। लोकसभा चुनावों में तो नौबत यहाँ तक आ गयी थी कि वसुंधरा राजे बिरला का टिकट कटवाने पर आमादा हो गयी थीं। वसुंधरा पूरी तरह कोटा राजपरिवार के इज्यराज सिंह को टिकट दिलवाने पर लामबंद थीं। लेकिन शाह के आगे राजे की एक नहीं चली और टिकट बिरला को मिलकर रहा। जबकि टिकट मिलने की आस में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये इज्यराज सिंह न घर के रहे, न घाट के। मोदी किस तरह आडवाणी और जसवंत सिंह को हाशिये पर धकेलने में कामयाब हुए; यह वसुंधरा समझतीं, तो विधानसभा चुनाव अपनी कमान में लडऩे का राजहठ नहीं करतीं। केंद्रीय मंत्रिमंडल में गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन मेघवाल, और कैलाश चौधरी सरी$खे अपने विरोधियों को शामिल किया जाना वसुंधरा राजे ने कितनी सूनी आँखों से तितर-बितर देखा होगा, यह कहने की ज़रूरत नहीं। सूत्रों का कहना है कि राजे की अंदरूनी तिलमिलाहट सबसे ज़्यादा इस बात को लेकर रही कि एक साल की सांसदी के बाद ही बिरला सर्वोच्च आसन पर जा बैठे, जबकि संसदीय कार्यकाल की चार पारियाँ खेल चुके उनके सांसद बेटे को राज्य मंत्री का पद भी नहीं मिला?

सूत्रों की मानें तो यह एक दिलचस्प हक़ीक़त है कि जब तक लालकृष्ण आडवाणी क़द्दावर रहे, वसुंधरा राजे निरंकुश बनी रहीं। राजमहलों की सामंती शैली की राजनीति करते हुए उन्होंने किसी की परवाह भी नहीं की। तब वह किस क़दर आँखें तरेरने में माहिर थीं, इसकी बानगी इसी बात से समझी जा सकती है कि जब सन् 2014 के चुनावी नतीजे आये, तो उन्होंने अहंकारी भाव में फ़िक़रा कसने में क़सर नहीं छोड़ी कि यह सिर्फ़ नरेन्द्र मोदी की जीत नहीं, बल्कि यह हमारी जतन से कमायी गयी जीत है। किसी और को इसका श्रेय क्यों लेने देना चाहेंगे? उनके राजनीतिक जीवन का इतिहास बाँच चुके विश्लेषकों का कहना है कि वसुंधरा राजे अपनी हथेलियों में राजयोग की लकीरें देखने की इस क़दर अभ्यस्त हो चुकी है कि प्रदेश की सियासत को लेकर किसी भी मुद्दे पर ख़ुदमुख़्तारी दिखाने से नहीं चूकती। विश्लेषकों का कहना है कि यही हठीलापन राजे के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी रही है। मनमानी के इतने मौक़े उनकी पीठ पर लदे हैं, वह मौक़ापरस्त होने का कौशल ही भूल गयी हैं। इस वक़्त जबकि राजे केंद्रीय मंत्रिमंडल में उनके विरोधियों को तवज्जो देने और प्रदेश भाजपा में नया नेतृत्व तैयार किये जाने की धुन सुन रही है। बावजूद इसके महारानी इस सच को क़ुबूलने के लिए तैयार नहीं कि उन्हें अब राजनीतिक हाशिये पर डाल दिया गया है।

वसुंधरा के रोचक राजनीतिक रोज़नामचे को बाँच चुके विश्लेषकों का कहना है कि इन स्थितियों से राजे कहीं भी दुविधाग्रस्त नज़र नहीं आ रही हैं। आज भी उनकी ज़ुबान पर रटा-रटाया जुमला है कि ‘मैं कहीं नहीं जाने वाली। जीना यहाँ, मरना यहाँ…’

विश्लेषक उनकी बेफ़िक्री को नज़रअंदाज़ नहीं करते। उनका कहना है कि राजे भाजपा नेतृत्व को बेचैन करने की कोई नयी क़िस्सागोई की शुरुआत कर सकती हैं। मोदी-शाह में वसुंधरा को लेकर ग़ुस्से की खदबदाहट है, तो इसकी बड़ी वजह है चुनावी रैलियों में उस धुन की अनसुनी करना कि ‘वसुंधरा तेरी ख़ैर नहीं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के निकटवर्ती सूत्रों का कहना है कि अगर तभी इस धुन के मर्म को समझ लिया जाता और वसुंधरा केा चुनावी मैदान से हटा लिया जाता, तो राजस्थान की सत्ता भाजपा के हाथों से फिसलने से रोकी जा सकती थी। उस दौरान प्रदेश में आरएसएस ने केंद्रीय नेतृत्व को आगाह किया था कि सरकार के प्रति लोगों में जबरदस्त नाराज़गी है। इसलिए चुनावी कमान वसुधरा के हाथों में सौंपना बहुत बड़ा जोखिम होगा। लेकिन अपनी होनहार नेता के प्रति संघ का यह नज़रिया राजे समर्थकों को हज़म नहीं हुआ।

जनवरी, 2016 में जब अमित शाह ने राजस्थान का दौरा किया था, तो उन्होंने न सिर्फ़ वसुंधरा राजे की प्रशंसा की थी, बल्कि यहाँ तक कह दिया था कि जब तक वसुंधरा राजे हैं, प्रदेश में नेतृत्व का मुद्दा नहीं है। राजे भी उसी तर्ज में शाह की शैदाई बनी नज़र आयीं कि उन्होंने पार्टी को फिर से जीवंत बना दिया है। शाह ने हमें चुनावी रंग में ला दिया है। लेकिन एक-दूसरे की ख़ूबियाँ गिनाने की ज़ुबानी रंगबाज़ी अब पूरी तरह ग़ायब है। अब शाह राजस्थान में नये नेतृत्व की बिसात बिछाने में जुटे हैं। कहने की ज़रूरत नहीं कि इस राजनीतिक क़वायद में लोकसभा अध्यक्ष बिरला की भूमिका किस हद तक होगी?

सूत्रों का कहना है कि अभी से पूरे देश को केसरिया में रंगने का लक्ष्य लेकर चल रही भाजपा का नया फार्मूला केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को मुख्यमंत्री पद के लिए गढऩे को लेकर होगा, तो राज्यवर्धन सिंह को प्रदेश अध्यक्ष के लिए तैयार किया जाना होगा। गजेन्द्र सिंह शेखावत मोदी के बेहद क़रीब माने जाते हैं। हालाँकि सूत्रों का कहना है कि संघ मॉडल पर प्रचारक और विस्तारक संघ विचारधारा के साथ प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो सकता है। सूत्रों का कहना है कि मोदी की तर्ज पर यह कहानी राजस्थान में दोहरायी जा सकती है। लेकिन क्या वसुंधरा के जोरावर रहते हुए इस कहानी की पटकथा को लिखना आसान होगा?

दरक चुका शीशा

 राजनीतिक धैर्य के अनोखे प्रदर्शन के बाद भाजपा आलाकमान ने वसुंधरा राजे से अपनी रहस्यमय दूरी का ख़ुलासा करने का फ़ैसला कर लिया है। बेशक वसुंधरा राजे ने विधानसभा चुनावों में नेतृत्व की पाग बाँधकर कृतज्ञ करने की गुज़ारिश में कोई कसर नहीं छोड़ी। आलाकमान ने वसुंधरा के प्रति लोगों के उत्साह बार-बार परखा; लेकिन हर बार उन्हें कोई सन्तोषपरक प्रतिक्रिया नहीं मिली। राजनीतिक विश्लेशक के.बी. शर्मा कहते हैं कि इस पर तो अटकलें भी नहीं लगायी जा सकतीं। दरअसल राजे समर्थकों का इस बात को हवा देना ही बेतुका लगता है। शर्मा कहते हैं कि अगर आलाकमान ने वसुंधरा को हरी झण्डी दे दी होती, तो अब तक आस्तीनें चढ़ाती नज़र आतीं। लेकिन वह तो ज़ाहिर चुप्पी की मांद में ही दुबककर बैठी हैं। शर्मा कहते हैं कि कोई ज़माना था, जब अमित शाह ने मोदी-वसुंधरा की जोड़ी को मणिकांचन योग बताया था; लेकिन अब तो शीशा दरक चुका है।

शर्मा का कहना है कि इतिहास कभी दफ़न नहीं होता, अलबत्ता जानबूझकर उसे भुलाना भय और भ्रान्ति की वजह से ही हो सकता है। यह एक दिलचस्प हक़ीक़त है कि पिछले चुनावी दंगल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने मोदी-राजे मिलाप को मणिकांचन योग बताया; लेकिन वसुंधरा ने यह कहकर धृष्टता की सीमा लाँघ दी कि यह पार्टी मेरी माँ राजमाता विजया राजे सिंधिया ने बनायी और बढ़ायी है। उनके नाम और काम से ही आप यहाँ पहुँचे हैं। यह वही राजे हैं, उन्होंने आठ साल तक संघ कैडर के पदाधिकारी को संगठन मंत्री के पद पर मनोनीत नहीं होने दिया। सन् 2014 के चुनावी नतीजे आये तो राजे ने मोदी लहर को यह कहकर साफ़ नकार दिया ओर अहंकारी फ़िक़रा कसा कि यह हमारी अपने जतन से कमायी गयी जीत है और अपनी कमायी गयी जीत का श्रेय हम किसी और को क्यों देना चाहेंगे? संघ के दख़ल को भी राजे ने यह कहकर नकार दिया कि मुझे अपने परफॉर्मेंस पर अटूट भरोसा है। संघ प्रमुख की निगाहों से वसुंधरा की हठधर्मिता का नुमाइश चेहरा उस वक़्त भी गुज़रा जब इस तर्क के बावजूद कि मुख्यमंत्री आवास सत्ता और संगठन का साझा केंद्र नहीं होना चाहिए? लेकिन राजे ने तमाम नसीहतों को धता बताते हुए अपने भरोसेमंद अशोक परनामी की संगठन के अध्यक्ष पद पर दोबारा ताजपोशी करवा ली। मोदी-शाह की लाख कोशिशों के बावजूद उन्होंने एंटीइंकबेंसी के आदेशों को दुत्कार दिया और चुनावी नेतृत्व की कमान पूरी धौंस के साथ क़ब्ज़ा ली? शर्मा का कहना है कि अब जबकि इस बार के चुनाव भाजपा के भविष्य की नयी पटकथा लिखने जा रहे हैं, तो रथ का सारथी कौन बनना चाहिए? कम-से-कम वसुंधरा तो नहीं। वसुंधरा सरकार की योजनाओं को लेकर लोगों का नज़रिया कभी भी उत्साहवर्धक नहीं रहा। लेकिन आँकड़ों को लेकर नेताओं की मुख़्तलिफ़ बयानबाज़ी भी कोढ़ में खाज साबित हुई। रोज़गार के आँकड़े तो पतंग के माँझे की तरह उलझ गये।

फार्मा का कहना है कि पार्टी में वसुंधरा के गिर्द चौतरफ़ा असन्तोष इस क़दर भड़का हुआ है कि उनके लिए बचने की कोई राह ही कहाँ बची है? शर्मा कहते हैं कि 163 वोटों के एक-तिहाई बहुमत से सत्ता में आयी वसुंधरा सरकार ने मुसीबतों को बुलावा अपने अलोकतांत्रिक तरीक़ों से ही दिया। सामंती शैली में राजनीति और मोदी-शाह के साथ तल्ख़ रिश्तों ने वसुंधरा राजे के राजनीतिक जीवन के समापन की पटकथा लिख दी है। राजे का राजहठ और लोकतांत्रिक व्यवस्था से बदशगुनी छेड़छाड़ अब उनके लिए सियासत में वापसी के कपाट हमेशा के लिए बन्द कर चुकी है।

विश्व उच्च रक्तचाप दिवस

जागरूकता के अभाव में बढ़ रहे रोगी

उच्च रक्तचाप यानी हाइपरटेंशन एक ऐसी बीमारी है, जो शहरों में हर छठे इंसान को है। इसी बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए दुनिया में हर साल 17 मई को विश्व उच्च रक्तचाप दिवस मनाया जाता है। आजकल 16 साल से लेकर 70-80 साल तक के लोग उच्च रक्तचाप के शिकार हैं। उच्च रक्तचाप की वजह अनियमित दिनचर्या, उल्टासीधा खानपान और तनाव है। उच्च रक्तचाप में लोगों को ग़ुस्सा जल्दी आता है। शुरू-शुरू में किसी-किसी बात पर आने वाला ग़ुस्सा बाद में बात-बात पर आने लगता है, क्योंकि ऐसे लोगों को पता नहीं होता कि उनका ब्लड प्रेशर बढ़ चुका है, जो कि एक बीमारी है। अगर इस बीमारी को समय रहते ख़त्म नहीं किया जाए, तो इससे कई बीमारियाँ और पैदा होती हैं, जिसमें हार्ट अटैक, कम्पन, मस्तिष्काघात, पाचनतंत्र का बिगडऩा, सोचने की क्षमता का नाश, याददाश्त का कमज़ोर होना आदि शामिल है।

उच्च रक्तचाप के रोगियों की संख्या

लोगों को इस बीमारी से बाहर लाने के लिए कई दवाओं की बिक्री दुनिया भर में हो रही है; लेकिन यह जागरूकता के अभाव में बीमारी घटने की जगह लगातार बढ़ती जा रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 30 वर्षों  में उच्च रक्तचाप के क़रीब 97 फ़ीसदी मामले बढ़े हैं। आज दुनिया भर में क़रीब 128 करोड़ लोग उच्च रक्तचाप के शिकार हैं।

एक शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि सन् 1990 में 30 से 79 की उम्र की क़रीब 33.1 करोड़ महिलाएँ और क़रीब 31.7 करोड़ पुरुष उच्च रक्तचाप से पीडि़त थे। जबकि 29 साल बाद यानी साल 2019 में 62.6 करोड़ महिलाएँ और 65.2 करोड़ पुरुष उच्च रक्तचाप से पीडि़त हो चुके थे। हिन्दुस्तान में भी पिछले 30 वर्षों में उच्च रक्तचाप के मरीज़ बढ़े हैं। हिन्दुस्तान में सन् 1990 में 28 फ़ीसदी महिलाएँ और 29 फ़ीसदी पुरुष उच्च रक्तचाप का शिकार थे। जबकि साल 2019 में 32 फ़ीसदी महिलाएँ 38 फ़ीसदी पुरुष इसकी चपेट में आ चुके थे। हालाँकि दुनिया भर में बढ़ रहे उच्च रक्तचाप में बढ़ोतरी की अपेक्षा हिन्दुस्तान में धीमी गति से यह रोग बढ़ रहा है।

अहमदाबाद में निजी सेवाएँ देने वाले डॉक्टर विमल कहते हैं कि उच्च रक्तचाप कोई बीमारी नहीं है, इसलिए इसकी दबा देना तब तक ठीक नहीं, जब तक कि रोगी को कोई ख़तरा न हो। इस बीमारी में रोगी को दवा खाने से बेहतर रहेगा कि वो योग करें और मनोचिकित्सक से सलाह लें। ज़्यादा ज़रूरत हो, तो अपने खानपान को ठीक करें। अगर फिर भी कोई दिक़्क़त आ रही हो, तो ही दवा के लिए किसी अच्छे डॉक्टर के पास जाएँ। क्योंकि अगर शुरू में ही उच्च रक्तचाप वाले रोगी ध्यान दें, तो वो आसानी से ठीक हो सकते हैं। उच्च रक्तचाप को कम करने का सबसे अच्छा तरीक़ा है कूल और हैप्पी रहें। इसके साथ ही नमक और गर्म व स्पाइसी चीज़ों का सेवन कम करें।

अक्सर देखा जाता है कि लोग तनाव में आकर नशा करने लगते हैं, जो कि रक्तचाप को और तेज़ी से बढ़ाता है। इसलिए धूम्रपान और शराब आदि से दूर रहें। विश्व उच्च रक्तचाप दिवस पर लोगों को जागरूक करने का काम किया जाता है। लेकिन लोग इस बीमारी के प्रति जागरूक होने के बजाय शुरू में इसे हल्के में लेते रहते हैं और बाद में गम्भीर रूप से बीमार हो जाते हैं। जहाँ डॉक्टर और दवाओं की ज़रूरत पड़ती-ही-पड़ती है। आज दुनिया में क़रीब एक करोड़ लोग उच्च रक्तचाप की दवा का सेवन कर रहे हैं।

ललितपुर की घटना ने किया ख़ाकी को शर्मसार

उत्तर प्रदेश में आज से लगभग पाँच साल पहले महिलाओं की सुरक्षा के लिए 181 हेल्पलाइन सेवा शुरू हुई थी। यह सेवा दो साल भी ठीक से नहीं चली। अब स्थिति यह है कि पुलिस पर ही महिलाओं के उत्पीडऩ के आरोप लग रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राम राज्य की कल्पना को उन्हीं की पुलिस पलीता लगा रही है। आरोप लगने लगे हैं कि उत्तर प्रदेश पुलिस गुंडागर्दी में अग्रणी है।

कुछ दिन पहले पुलिस का शैतानी चेहरा उत्तर प्रदेश के ललितपुर की हृदयविदारक घटना के उजागर होने पर सामने आया। घटना के अनुसार ललितपुर जिले में एक 13 वर्षीय किशोरी सामूहिक दुष्कर्म की शिकार हुई। जब वह किशोरी रिपोर्ट दर्ज कराने अपने क्षेत्रीय थाने पाली में गयी, तो बयान दर्ज कराने के नाम पर वहाँ के थानाध्यक्ष तिलकधारी सरोज ने भी कथित रूप से उसके साथ दुष्कर्म किया।

मामला चाइल्ड लाइन एनजीओ के माध्यम से तब उजागर हुआ, जब एनजीओ की काउंसलिंग में पीडि़ता ने आप बीती बतायी। पीडि़ता ने कहा कि वह थानाध्यक्ष के आगे गिड़गिड़ाती रही, पर उसने ज़रा भी तरस नहीं खाया। मुद्दे के बारे में पता चलते ही लोगों में ग़ुस्सा फूट पड़ा और वे न्याय की माँग करने लगे। जैसे ही सरकार के कानों तक यह बात पहुँची, थानाध्यक्ष को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया और थाने के पुलिसकर्मियों को लाइन हाज़िर कर दिया गया। लोगों ने न्याय की माँग करते हुए पूरे थाने की पुलिस को निलंबित करके उन्हें जेल भेजने की माँग की। मगर इतने बड़े स्तर पर सरकार कार्रवाई करने से बच रही है। उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने दोषियों पर ठोस कार्रवाई का आश्वासन तो दिया है, मगर पीडि़ता का जीवन तबाह हो गया। इसके लिए सरकार क्या कर रही है? यह एक बड़ा प्रश्न है।

प्रश्न तो और भी कई हैं, जिनका उत्तर पाने के लिए सरकार का मुँह खुलवाना होगा, जो कि आसान नहीं है। मगर सम्भव है कि लोगों का ग़ुस्सा और उनके प्रश्न पहुँच जाएँ। किशोरी के साथ हुए दुराचार पर अधिवक्ता प्रवीन कहते हैं कि न्याय व्यवस्था के तीन ही स्तम्भ होते हैं, न्यायालय, पुलिस और पत्रकारिता। अगर इनमें से एक स्तम्भ भी अपराध को शरण देता है, तो जनता का विश्वास उस पर से उठता है। पुलिस न्याय व्यवस्था बनाये रखने वाला वह स्तम्भ है, जिसके द्वार पर निर्बल से निर्बल व्यक्ति स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। मगर अगर पुलिस वाले ही लोगों पर अत्याचार करेंगे, तो लोग थानों में न्याय की गुहार कैसे लगाएँगे? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार को इस मामले में अच्छी तरह जाँच करते हुए दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए और पीडि़त बच्ची को न्याय दिलाना चाहिए। ललितपुर में थाने में थानाध्यक्ष द्वारा ही पीडि़त किशोरी से दुष्कर्म करने के मामले में भाजपा नेता रामवीर का कहना है कि किशोरी के साथ जो भी हुआ सरकार उसके लिए गम्भीर है। दोषियों को सज़ा देने में योगी सरकार हमेशा अग्रणी भूमिका में रही है और रहेगी। योगी सरकार पक्षपात नहीं करती दोषी कोई भी हो, उसे छोड़ा नहीं जाता है। अत: आप निश्चिंत रहें, दोषियों पर कार्रवाई होगी।

इधर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी करके पूरे मामले की रिपोर्ट माँगी, जिसके बाद प्रदेश के प्रशासन में हड़कंप मच गया।

छिड़ी राजनीतिक बहस

किशोरी के साथ थाने में दुष्कर्म को लेकर प्रदेश में राजनीति छिड़ गयी है। प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश ने इसे योगी सरकार की नाकामी और पुलिस की गुंडागर्दी करार देते हुए न्याय की माँग की है। सपा के ट्वीटर हैंडल से एक ट्वीट किया गया कि ‘भाजपा सरकार में सबसे बड़ा सवाल यह है कि किस पर भरोसा किया जाए, किस पर नहीं? ललितपुर में रेप की शिकायत करने पहुँची नाबालिग़ से थाने में ही एसओ ने दरिंदगी की। अब मुख्यमंत्री बताएँ कि पीडि़त बेटियाँ जाएँ, तो जाएँ कहाँ? सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पीडि़त बच्ची तथा उसके परिजनों से मुलाक़ात भी की।

वहीं कांग्रेस ने सीधे सरकार पर हमला बोला है। कांग्रेस महासचिव और पार्टी की उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गाँधी वाड्रा ने कहा कि बुलडोजर के शोर में क़ानून व्यवस्था के असल सुधारों को कैसे दबाया जा रहा है। अगर महिलाएँ ही थाने में सुरक्षित नहीं होंगी, तो वे शिकायत लेकर कहाँ जाएँगी?

इस पर उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने विपक्षी दलों से कहा कि वे आपराधिक मामलों का राजनीतिकरण न करें। उन्होंने कहा कि ‘पीडि़ता हमारी बेटी है और उसके साथ कुछ ग़लत हुआ है, तो सरकार सख़्त कार्रवाई करेगी और दोषी को किसी क़ीमत पर नहीं बख़्शेगी। सरकार इस मामले को फास्ट ट्रैक अदालत में ले जाएगी और घटना में शामिल पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ इतनी सख़्त कार्रवाई होगी कि उनकी अगली पीढिय़ाँ तक कराह उठेंगी। उनके ख़िलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत कार्रवाई होगी और किसी को भी बख़्शा नहीं जाएगा।’

सही एजेंसी से जाँच हो : आरोपी

इधर पाली थाने के निलंबित थानाध्यक्ष तिलकधारी सरोज जब अधिवक्ता से मिलने प्रयागराज पहुँचे, तो उन्हें वहीं से गिरफ़्तार कर लिया गया। गिरफ़्तारी के बाद उन्होंने सफ़ाई दी फ़र्ज़ी जाँच होगी, तो अपराधी कहलाऊँगा। आरोपी निलंबित थानाध्यक्ष ने माँग की कि सही एजेंसी से जाँच होनी चाहिए। तिलकधारी की गिरफ़्तारी के बाद उनकी पत्नी ने एडीजी के कार्यालय पहुँचकर अपने पति को निर्दोष बताया और कहा कि उन्हें फँसाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वह किशोरी पीडि़ता नहीं है, वह पहले भी कई लोगों को झूठे मुक़दमे में फँसाकर जेल भेज चुकी है।

29 पुलिसकर्मी किये लाइन हाज़िर

पाली थाने में हुई इस शर्मनाक घटना के बाद ललितपुर से लखनऊ तक पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया। सूचना मिलते ही एडीडी जोन भानु भास्कर ने पाली थाने के सभी 29 पुलिसकर्मियों को तत्काल लाइन हाज़िर करते हुए जाँच के आदेश दिये। मामले की जाँच झाँसी रेंज के डीआईडी जोगेंद्र कुमार कर रहे हैं। पीडि़ता को अस्पताल में भर्ती कराकर उसका मेडिकल कराया गया। हालाँकि अदालत में पीडि़ता का 164 का बयान नहीं हुआ, जो कि आवश्यक था।

पहले भी शर्मसार हुई है वर्दी

यह कोई पहला मामला नहीं है, जब उत्तर प्रदेश की पुलिस का दामन दाग़दार और वर्दी शर्मसार हुई है। इससे पहले भी कई बार अनेक पुलिसकर्मी थाने में दुष्कर्म, मारपीट और अपराधियों को शरण देने के आरोप से कलंकित हो चुके हैं। कानपुर, उन्नाव से लेकर बदायूँ, नवाबाद थाना, उल्दन थाना तथा ललितपुर कोतवाली तक पुलिस ने वर्दी को शर्मसार किया है। योगी आदित्यनाथ सरकार में कई मामलों में पुलिस की गुंडागर्दी सामने आयी है। इसी बार की विधानसभा में योगी आदित्यनाथ की बड़ी जीत के बाद जगह-जगह लगे उनके जनता जनार्दन के धन्यवाद वाले होर्डिंग मुँह चिढ़ा रहे हैं, मानो कह रहे हों कि आपके राम राज्य में जनता सुरक्षित कहाँ है?

क्या है मामला?

बताया जा रहा है कि पीडि़त किशोरी का 22 अप्रैल को अपहरण करके चार लोग भोपाल ले गये थे, जहाँ कथित रूप से उसे तीन-चार दिन बंधक बनाकर सामूहिक दुष्कर्म किया। जब किशोरी की हालत बिगड़ी, तो अपराधी उसे पाली थाने के बाहर छोड़कर भाग गये। विदित हो कि 27 अप्रैल को एक 13 वर्षीय पीडि़ता अपने साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज कराने पाली थाने में गयी थी, जहाँ बयान दर्ज करने के बहाने वहाँ के थानाध्यक्ष ने उसे कमरे में ले जाकर दुष्कर्म किया। जब मामला उजागर हुआ, तो हड़कंप मच गया। सरकार ने पाली के थानाध्यक्ष तिलकधारी सरोज को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया और उसके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई का आश्वासन पीडि़ता व उसके परिजनों को दिया। झाँसी के पुलिस उप महानिरीक्षक जोगेन्द्र कुमार ने इस मामले में कठोर क़दम उठाये हैं। मामले में बलात्कार, अपहरण, आपराधिक साज़िश के आरोपों, पोक्सो तथा एससी/एसटी एक्ट की धाराओं के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है। आरोपियों को गिरफ़्तार करने के लिए पुलिस के छ: दल गठित किये गये हैं।

दफ़्तर वापसी के आदेश से नौकरीपेशा महिलाएँ परेशान

Women work in a call center at Avise Techno Solutions LLP in Kolkata, India on December 24, 2017. Photograph: Taylor Weidman/Bloomberg

अपूर्वा पेशे से कम्प्यूटर इंजीनियर हैं। उम्र क़रीब 32 साल। 16 महीने पहले बेटे को जन्म दिया।  यह उनकी पहली संतान है। कोरोना महामारी के चलते वह भी दुनिया की लाखों कामकाजी महिलाओं की तरह घर से कार्य (वर्क फ्रॉम होम) कर रही थीं। घर में एक सहायिका थी, जिसका काम बच्चे की देखरेख करना था। लेकिन कुछ महीने पहले कम्पनी ने दफ़्तर में आकर काम करने का आदेश जारी कर दिया। वह दिल्ली में अपने पति के साथ अकेले रहती हैं। अब उसके सामने यह दुविधा पैदा हो गयी कि वह नौकरी जारी रखें या बेटे के पालन-पोषण के लिए नौकरी से इस्तीफ़ा दे दें। उसके सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि वह अपने बेटे को 12-14 घंटे के लिए अकेले कैसे सहायिका के साथ छोड़ दे। दरअसल अपूर्वा अकेली ऐसी पेशेवर महिला नहीं हैं, जो इस समस्या का सामना कर रही हैं, बल्कि दुनिया में लाखों ऐसी महिलाएँ हैं।

रात्रि-पारी में काम करने वाली एक महिला ने बताया कि माँ बनने के बाद उसके सामने नौकरी छोडऩे के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था, क्योंकि बच्चे की देखरेख के लिए उसके पास परिवार का कोई भी सदस्य नहीं था। कोरोना महामारी ने हज़ारों महिलाओं को घर से कार्य करने दिया; लेकिन अब जब उन्हें दफ़्तर आने का आदेश मिलना शुरू हो गया है, तो उनके सामने कई चुनौतियाँ आकर खड़ी हो गयी हैं। कई जगह यह सुगबुगाहट भी ज़ोर पकडऩे लगी है कि जब घर से काम हो रहा है, तो फिर दफ़्तर आने के लिए दबाव क्यों? एपल कम्पनी के सीईओ टिम कुक ने हाल में एक आदेशात्मक सन्देश जारी किया कि 11 मई से एप्पल में घर से कार्य धीरे-धीरे ख़त्म होगा। आधार दिया कि पूरी दुनिया में कोरोना नियंत्रण के कारण दफ़्तर में आकर काम करने की व्यवस्था प्रभावी हो रही है। कई जगह मास्क लगाना भी ज़रूरी नहीं है। ग़ौर करने वाली बात यह है कि सीईओ टिम कुक की इस चिट्ठी का विरोध भी शुरू हो गया है। कम्पनी में ही काम करने वाले कर्मियों में से 200 कर्मियों के एक समूह ने सीईओ टिम कुक को चिट्ठी भेजी है, जिसमें लिखा है कि इस आदेश से कम्पनी पुरुष प्रधान हो जाएगी। इससे युवाओं, गोरे लोगों, पुरुषों और सक्षम लोगों को कम्पनी में तरजीह मिलेगी; क्योंकि इसके मुक़ाबले अधिक आयु वाले, अश्वेत, महिलाओं और दिव्यांगों को दफ़्तर आने में परेशानी होना तय है। इस सूची में महिलाओं को भी शामिल किया गया है, क्योंकि प्रतिकार करने वाले एप्पल टुगेदर नाम से बने इस समूह में संवेदनशील कर्मियों ने महिलाओं की समस्याओं, चुनौतियों को गम्भीरता से समझते हुए ही उन्हें इस सूची में रखा होगा।

ग़ौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के ग्लोबल सर्वे 2021 ने दर्ज किया कि घर से कार्य या जॉब फ्लेक्सिबिलिटी महिलाओं के लिए विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। आधी ज़मीं, आधा आसमाँ हमारा; लेकिन हक़ीक़त में तो बंदिशें पीछा छोड़ती नज़र नहीं आतीं। अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार बनने के बाद वहाँ महिलाओं के हालात को लेकर राहत भरी ख़बरों का सबको इंतज़ार रहता है। हाल ही में एक ख़बर आयी है कि तुर्कमेनिस्तान में महिलाओं के पहनावे और कॉस्मेटिक्स के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। मध्य एशिया में सोवियत संघ का हिस्सा रहे तुर्कमेनिस्तान की सरकार ने सभी बयूटी सैलून बन्द कर ब्यूटी सर्विस पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। महिलाओं के किसी संस्थान में दाख़िल होने से पहले उनके पहनावे की जाँच की जाती हैं। महिलाओं को नौकरी ज्वाइन करने से पहले नो मेकअप बॉन्ड भरना होता है। वहाँ की महिलाएँ मजबूरन ऐसा बॉन्ड भर देती हैं, क्योंकि नौकरी करना उनकी पारिवारिक व आर्थिक ज़िम्मेदारी है। कहीं कम्पनियों की नीतियाँ तो कहीं सामाजिक-धार्मिक कट्टरता महिलाओं को कार्यबल का सक्रिय हिस्सा बनने की राह में रोड़ा डालते हैं। दुनिया भर में बेरोज़गारी एक विकराल समस्या बन गयी है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की इस साल जनवरी में जारी रिपोर्ट ‘वल्र्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक-ट्रेंड 2022’ के मुताबिक, इस साल यानी 2022 में दुनिया भर में क़रीब 20.7 करोड़ लोग बेरोज़गार होंगे। और यह संख्या सन् 2019 में 18.6 करोड़ थी। यानी इस दरमियान बेरोज़ग़ारों की संख्या में 11 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा होने की सम्भावना व्यक्त की गयी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 के दौरान काम के जिन घंटों में कमी आने का अनुमान है, वो 5.2 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर है। विश्व के सभी क्षेत्रों में श्रम बाज़ार पर इस महामारी का प्रभाव पड़ा है।

अब अर्थ-व्यवस्थाएँ उबर रही हैं; लेकिन उच्च आय वाले देशों में अच्छी रिकवरी हो रही है, जबकि निम्न-मध्यम आय वाले देशों में बुरा हाल है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस संकट का महिलाओं पर जो विषम प्रभाव पड़ा है, आने वाले कई वर्षों तक उसके बने रहने की सम्भावना है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के महानिदेशक गाय राइडर की राय है कि श्रम बाज़ार में व्यापक सुधार के बिना इस महामारी से उबरा नहीं जा सकता। इतना ही नहीं इन सुधारों के स्थायी होने के लिए इनका बेहतर काम के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए, जिसका अर्थ है कि इसमें स्वास्थ्य, सुरक्षा, समानता, सामाजिक सुरक्षा और संवाद शामिल होने चाहिए। बेरोज़गारी की समस्या भारत में भी चिन्ता का विषय है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि काम नहीं मिलने से हताश होने वाले लोगों में महिलाओं की तादाद अधिक है। उन्हें योग्यता के अनुसार काम नहीं मिल रहा है। हर साल नौकरी पाने में असफल रहने के बाद 45 करोड़ से अधिक लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने अब काम की तालाश ही छोड़ दी है। सन् 2017 से 2022 के बीच कुल कामगारों की संख्या 46 फ़ीसदी से घटकर 40 फ़ीसदी रह गयी है। भारत में अभी 90 करोड़ लोग रोज़गार के योग्य हैं; लेकिन इसमें से क़रीब 45 करोड़ से अधिक लोगों ने अब काम की तलाश ही बन्द कर दी है। यह बात दीगर है कि केंद्रीय श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय ने इन दावों का खण्डन करते हुए कहा कि रोज़गार के योग्य आबादी में से आधी आबादी ने काम की तलाश की उम्मीद ही खो दी है, यह मानना तथ्यात्मक तौर पर ग़लत होगा; क्योंकि उनमें से अधिकतर उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं या देखभाल जैसी अवैतनिक गतिविधियों से जुड़े हुए हैं। ग़ौरतलब है कि देश में महिलाओं की आबादी तो 49 फ़ीसदी है; लेकिन श्रम बल में हिस्सेदारी केवल 18 फ़ीसदी है, जो कि वैश्विक औसत से लगभग आधी है। श्रम बाज़ार में महिलाओं की भागीदारी में बीते दो दशकों में गिरावट जारी है। जबकि देश में उच्च शिक्षा हासिल करने वाली लड़कियों की संख्या बढ़ी है। देश में श्रम बल में महिला भागीदारी दर 2011-2012 में 31.2 फ़ीसदी से गिरकर सन् 2018-2019 में 24.5 फ़ीसदी रह गयी, जो कि अब 18 फ़ीसदी पर आ गयी है।

भारत में श्रम बाज़ार में महिलाओं की भागीदारी की दर ब्रिक्स देशों में सबसे कम है। यह दक्षिण एशिया में श्रीलंका और बांग्लादेश से भी कम है। श्रम बाज़ार में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की कम भागीदारी से श्रम बाज़ार में असमानता आती है और यह देश की तरक़्क़ी में बाधा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का आकलन है कि भारत का सकल घरेलू उत्पाद 27 फ़ीसदी अधिक होगा, यदि आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भी पुरुषों के समान संख्या में भागीदारी होगी। दरअसल श्रम बल में लैंगिक समानता लाना एक बड़ी चुनौती है। वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक-2021 के अनुसार, भारत 156 देशों की सूची में 140वें स्थान पर है, जो वर्ष 2006 में इसके 98वें स्थान की तुलना में एक बड़ी गिरावट को दर्शाता है। भारत में घरेलू उत्तरदायित्व महिलाओं के वैतनिक कामकाजी होने की राह में एक बड़ी रुकावट है।

इसके अलावा निजी कम्पनियों के नियम-क़ायदे भी उन्हें किसी हद तक निरोत्साहित ही करते हैं। दिल्ली में एक निजी संस्था में काम करने वाली एक महिला ने बताया कि अगर वह दफ़्तर में 10 मिनट लेट पहुँचे या 30 मिनट, उसे दफ़्तर में उतनी ही देर अधिक बैठकर काम करना पड़ता है। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था तक आसानी से पहुँच नहीं होना व ऐसे साधनों की कमी भी महिलाओं की गतिशीलता को बाधित करती है। लड़कियों व महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराध भी उनके व उनके परिजनों के मन में असुरक्षा के भाव के साथ कई तरह की आशंकाओं को जन्म देते हैं। परिवार / समाज की लगातार सपोर्ट न मिलना, बच्चों की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी व उनकी सुरक्षा करना आदि कारक महत्त्वपूर्ण है। आख़िर एक कामकाजी महिला पार्ट टाइम नौकरी करने के लिए क्यों हामी भर्ती है? यह सोचना सरकार, समाज की ज़िम्मेदारी है। महिलाओं की श्रम बाज़ार में संख्या बढ़ाने व उन्हें वहाँ रोके रखने के लिए मज़बूत सपोर्ट ढाँचा खड़ा करना होगा।

विश्व दूरसंचार दिवस

चुनौतियों के बीच तरक़्क़ी की कोशिश

मोबाइल की दुनिया में हिन्दुस्तान 5जी की तरफ़ पहुँच रहा है। अभी जब दुनिया 53वाँ दूरसंचार दिवस मना रही है, तब पूरी दुनिया दूरसंचार के नेटवर्क जाल में क़ैद है। यानी दूरसंचार के बिना जीवन का संचार अब नहीं हो सकता, ऐसा माना जाता है। एक समय था, जब दुनिया में चीज़ों और बातों के आदान-प्रदान के लिए पत्र और यात्रा होती थी, जिसमें चिट्ठी, बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी, पैदल से लेकर जहाज़, मोटर, रेल आदि तक इंसान को पहुँचने में सदियाँ लग गयीं। टेलीफोन और रेडियो से संचार क्रान्ति का जन्म हुआ। लेकिन यहाँ से मोबाइल, सेटेलाइट, ड्रोन और रोबोट तक पहुँचने में वैज्ञानिकों ने एक सदी का भी समय नहीं लगाया। आज यही चीज़ें हर एक संचार का ज़रिया हैं।

इन दिनों संचार माध्यम इतनी तेज़ी से बदल रहे हैं, जिसकी आज से 50 साल पहले किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। आज इंसान दुनिया के चाहे किसी भी कोने में रहता हो, उसे अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने में एक सेकेंड का समय भी नहीं लगता, यदि उसके पास इंटरनेट और मोबाइल है, तो। मोबाइल और इंटरनेट तकनीक से सूचना का आदान-प्रदान इतनी तेज़ी से हुआ है कि अनपढ़ इंसान भी इसका फ़ायदा उठा रहा है। वैज्ञानिक इस दूरसंचार तकनीक को और अधिक सुविधाजनक बनाने की कोशिश में लगे हैं, जिसे प्रोत्साहित करने के लिए हर साल विश्व दूरसंचार दिवस मनाया जाता है।

बता दें कि पहला विश्व दूरसंचार दिवस 17 मई, 1969 को मनाया गया। लेकिन इसे उतना महत्त्व नहीं मिला। अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू) की स्थापना और सन् 1865 में पहले अंतरराष्ट्रीय टेलीग्राफ कन्वेंशन पर कई देशों के हस्ताक्षर करने के लिए सन् 1973 में  मलागा-टोरेमोलिनोस में प्लाइनापोटेंसिएरी सम्मेलन हुआ। यहीं पर साल 17 मई, 1973 को अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ की स्थापना हुई थी। दूरसंचार में बड़ी क्रान्ति आने के अवसर पर सूचना समाज पर सन् 2005 में विश्व शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें संयुक्त राष्ट्र महासभा से आग्रह किया गया कि वह 17 मई विश्व सूचना समाज दिवस के रूप में मनाये।

महासभा ने इसे स्वीकार किया और सन् 2006 से विश्व दूरसंचार दिवस के साथ विश्व सूचना समाज दिवस भी मनाया जाने लगा। आज करोड़ों लोगों के हाथ में मोबाइल फोन है। लाखों लोग इससे रोज़गार पा रहे हैं और दुनिया की कई बड़ी कम्पनियाँ इस क्षेत्र पर अपना आधिपत्य जमाने की कोशिश में लगी हैं। कई देश दूरसंचार में 8जी और 9जी जैसी तकनीक का इस्तेमाल कर कर रहे हैं, जबकि हिन्दुस्तान में अभी 4जी का ज़माना चल रहा है, जबकि 5जी के लाने की तैयारी चल रही है। इसके लिए रिलायंस कम्पनी बड़े पैमाने पर 5जी टॉवरों को लगाने और हिन्द महासागर में इंटरनेट नेटवर्क की तारें बिछाने के काम में लगी है।

दूरसंचार का महत्त्व

आज के आधुनिक दौर में टेलीविजन, रेडियो, मोबाइल, इंटरनेट, सोशल मीडिया आदि सब कुछ है। इनमें से मोबाइल, इंटरनेट, सोशल मीडिया को दूरसंचार की बेसिक ज़रूरतों में माना जाता है। इनके बिना जीवन की कल्पना अब नामुमकिन-सी लगती है। ये चीज़ें दूरसंचार की एक ऐसी क्रान्ति हैं, जिनका इस्तेमाल अब बच्चे भी करना जानते हैं और शिक्षा से लेकर करियर तक इनके बग़ैर उन्हें आगे बढ़ाना मुश्किल है। इससे पहले टेलिफोन को दूरसंचार का सबसे बेहतर माध्यम माना जाता था और उससे पहले चिट्ठी को। टेलिफोन सन् 1880 में ही शुरू हो गया था।

सन् 1881 में हिन्दुस्तान में औपचारिक टेलिफोन सेवा की स्थापना हो चुकी थी। उन दिनों यह बड़े लोगों के इस्तेमाल तक ही सीमित था, जिससे दुनिया के हर कोने में बात करना सम्भव नहीं था। धीरे-धीरे इसमें सुधार होता गया और क़रीब आधी सदी बीतते-बीतते नौकरशाहों के घरों तक टेलीफोन पहुँच गया और 100 साल बीतते-बीतते हर शहर में जगह-जगह टेलिफोन लगे पीसीओ खुलने लगे। इसके क़रीब 20 साल बीतने से पहले ही मोबाइल ने एंट्री ली और आज मोबाइल एक मिनी कम्प्यूटर की तरह इस्तेमाल में है। क़रीब 30 वर्षों से हर साल विश्व दूरसंचार दिवस दूरसंचार से सम्बन्धित नये-नये विषयों पर चर्चा होती है।

दूरसंचार के फ़ायदे

दूरसंचार के अनेक फ़ायदे हैं, जिन्हें हर कोई उठाना चाहता है। यह एक त्वरित और सुलभ संचार सुविधा है, जिससे सेकेंड से पहले दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाले से बात हो सकती है और कोई इंसान सेकेंडों में अपना सन्देश भेज सकता है। साथ ही कोई इंसान आसानी से अपनी बात करोड़ों लोगों तक भी पहुँच सकता है। इससे समय और ख़र्च की बड़ी बचत होती है। दूरसंचार के माध्यम से एक साथ दो से अधिक लोग भी अलग-अलग बैठकर बात कर सकते हैं।

मोबाइल और इंटरनेट उपभोक्ताओं की ज़रूरी चीज़ें आज के आधुनिक दूरसंचार के ज़रिये सेव रह सकती हैं। दूरसंचार के चलते व्यापार और आयात-निर्यात भी आसान हुआ है। आज दूरसंचार के माध्यम से लाखों लोग एक जगह बैठे-बैठे कुछ भी ख़रीद और बेच सकते हैं। इससे समय और पैसे दोनों की बचत सम्भव हो सकी है।

दूरसंचार के नुक़सान

दूरसंचार का सबसे बड़ा और ज़रूरी माध्यम बन चुका मोबाइल आज भले ही लोगों की जीवन से अलग न हो पाने वाली ज़रूरत बन गया है; लेकिन इसके अनेक नुक़सान भी इंसानों समेत दूसरे सभी जीवों को हो रहे हैं। इंटरनेट और मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली किरणों के चलते आज कई तरह की बीमारियाँ पनप चुकी हैं, जिनके कारण हर साल लाखों मौतें हो रही हैं। जब भी संचार की उच्च क्षमता वाले नेटवर्क का परीक्षण होता है, लाखों जीव जान गँवा देते हैं। लेकिन दुनिया भर के देशों में बैठी सरकारें और दूरसंचार के माध्यम से मुनाफ़ा कमाने वाली कम्पनियाँ इसे लगातार नज़रअंदाज़ करती रही हैं। हाल ही में हिन्दुस्तान में 5जी के परीक्षण के दौरान पक्षियों और लोगों के मरने की ख़बरें भी मीडिया के माध्यम से सामने आयीं; लेकिन इस परीक्षण पर पाबंदी नहीं लगी। इससे पहले 4जी के परीक्षण के दौरान बहुत पक्षियों की मौत हुई थी।

प्राकृतिक आपदा के समय इंटरनेट काम नहीं करता, जिसके बात मोबाइल एक डब्बा ही रह जाता है। यदि कोई सरकार चाहे, तो इंटरनेट सेवाओं को बन्द करा सकती है, जिसके बाद इसका किसी भी आम नागरिक को कोई फ़ायदा नहीं मिलता। इसके अलावा सोशल मीडिया के माध्यम से कई बार साम्प्रदायिकता फैलाकर लोगों को भड़काया भी जा चुका है, जो कि दंगों का कारण बन चुकी है।

आज दुनिया का हर देश समुद्रों में इंटरनेट के तारों का जाल बिछाने में लगा है, जिससे लाखों जलीय जीव प्रभावित हो रहे हैं। मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली विकिरणों से आसपास के लोगों पर बुरा असर पड़ रहा है। मोबाइल फोन से निकलने वाली विकिरणों से बच्चों और बड़ों दोनों में कई बीमारियाँ पैदा हो रही हैं, जिनमें नपुंसकता, दृष्टि दोष, उच्च रक्तचाप, कैंसर, धीमा बुद्धि विकास, शारीरिक कमज़ोरी, तनाव, ग़ुस्सा, चिड़चिड़ापन, सिर दर्द, भावनाओं की कमी आदि मुख्य हैं। डॉक्टर सलाह देते हैं कि मोबाइल का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

पंजाब पुलिस और मान की प्रतिष्ठा दाँव पर

पंजाब पुलिस का मखौल उड़े, छीछालेदर हो और वह किसी कॉमेडियन जैसी भूमिका अदा करे, तो कोई क्या करे? दिल्ली के भाजपा नेता तेजिंदर पाल बग्गा की गिरफ़्तारी प्रकरण में जिस तरह से हरियाणा के कुरुक्षेत्र में दिल्ली, पंजाब और हरियाणा पुलिस के बीच जो स्थिति पैदा हो गयी थी, वैसी अक्सर होती नहीं है। पंजाब पुलिस को ख़ाली हाथ आना पड़ा। इसकी मुख्य वजह पंजाब पुलिस की कार्रवाई ग़लत थी। बिना क़रीबी थाने में आमद किये पंजाब पुलिस ने जिस तरह काम किया, उससे ख़ाकी पर सवाल खड़े हुए।

पंजाब पुलिस यह जानते हुए कि दिल्ली में पुलिस आम आदमी पार्टी सरकार की नहीं, बल्कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है और फिर मोहाली (पंजाब) पहुँचने का रास्ता हरियाणा से होकर गुज़रता है। आरोपी भाजपा से जुड़ा नेता है, तो मामले में राजनीति भी होगी। दिल्ली और हरियाणा पुलिस ने जिस तरह से इस मामले में पंजाब पुलिस को बैंरग लौटा दिया, उससे उसकी छवि को और बट्टा लगा है। इतने बड़े मामले में मुख्यमंत्री (गृहमंत्री प्रभार) भगवंत मान की भी तुरन्त प्रतिक्रिया ज़रूर आनी चाहिए थी; पर नहीं आयी। आये भी कैसे? क्योंकि प्राथमिकी उनके राजनीतिक गुरु अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ थी और शिकायतकर्ता डॉ. सन्नी आहलूवालिया उनकी ही पार्टी के नेता हैं। पंजाब सरकार अभी तक अपनी कार्रवाई को जायज़ ठहरा रही है; लेकिन सभी जानते हैं कि उसने जो किया, वह सही नहीं था। अगर होता, तो बग्गा को वापस दिल्ली नहीं, बल्कि पंजाब पुलिस मोहाली साइबर थाने में पूछताछ के लिए लाने में सफल होती।

अब पंजाब पुलिस अपने डीएसपी स्तर के अधिकारी को थाने में जबरदस्ती रोके रखने जैसे आरोप लगा रही है। पुलिस पंजाब की और इस्तेमाल अपरोक्ष तौर पर कोई और करे, तो ख़ाकी पर सवाल उठेंगे ही। इससे पहले दिल्ली के कुमार विश्वास और अलका लांबा मामले में पंजाब पुलिस के इस्तेमाल करने के आरोप लगे हैं। ये मामले दिल्ली में भी दर्ज हो सकते थे, क्योंकि दोनों ने बयान पंजाब में नहीं, बल्कि दिल्ली में दिये थे। बग्गा भाजपा नेता हैं; लेकिन विवादास्पद और आक्रामक तेवर वाले बयान जारी करते हैं। कश्मीर फाइल्स नामक फ़िल्म पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की प्रतिकूल टिप्पणी के बाद बग्गा ने भाजयुमो का प्रदर्शन किया। यह लोकतंत्र में सामान्य बात है और हर किसी को इसका अधिकार भी है; लेकिन ट्वीटर पर केजरीवाल के माफ़ी न माँगने पर देख लेने जैसी धमकी पोस्ट करना सीधे-सीधे धमकी जैसा है। कुमार विश्वास, अलका लांबा और तेजिंदर बग्गा मामलों में  समानता यह कि तीनों ही मामले दिल्ली के और अरविंदर केजरीवाल से जुड़े हैं। आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता और नेता चाहते, तो दिल्ली में प्राथमिकी दर्ज करा सकते थे। ऐसा सम्भव होता, तो अब तक दिल्ली में ही न जाने कितने मामले दर्ज हो गये होते। ख़ुद केजरीवाल मीडिया के माध्यम से गम्भीर आरोप लगाते रहते हैं और उन पर भी न जाने कितने आरोप लगते हैं। बहुत-से मामलों को केजरीवाल हँसी में टाल देते रहे हैं। कुमार विश्वास के उनके ख़ालिस्तान समर्थकों से तार जुड़े होने के आरोप पर वह मुस्कुराते हुए कहते रहे हैं कि इस हिसाब से तो वह (मासूम आतंकवादी) हैं। गम्भीर आरोपों को हल्के में लेना और हल्के आरोपों पर गम्भीरता दिखाना उनकी आदत में शामिल है।

पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद राज्य पुलिस के दुरुपयोग के आरोप लगने लगे हैं; लेकिन सरकार इसे रुटीन की कार्रवाई बताती रही है। तीनों प्राथमिकी पंजाब में दर्ज हुई और पुलिस ने तत्परता से काम किया। काश राज्य की पुलिस अन्य मामलों में भी ऐसी त्वरित कार्रवाई करे, तो लोगों का भरोसा बढ़े। मौज़ूदा समय में इसकी ज़रूरत भी है, क्योंकि सरकार के संरक्षण में इस पर बहुत कुछ करने के आरोप लगते रहे हैं। बग्गा मामले में जिस तरह से राज्य पुलिस को मात खानी पड़ी है, उसे देखते हुए अब ऐसी कार्रवाई से पहले अच्छी तरह से सोचेगी ज़रूर। हैरानी की बात यह कि राज्य पुलिस की छवि पर बट्टा लगे और उसकी कार्रवाई को ग़लत ठहराया जा रहा हो और मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया न आये, तो हैरानी होती है। वह राज्य के गृह मंत्री भी हैं। पुलिस महानिदेशक सीधे उनको रिपोर्ट करते हैं।

01 अप्रैल को मोहाली के साइबर थाने में डॉ. सन्नी आहलूवालिया ने बग्गा के बयान को ख़तरनाक और पंजाब के हालात को बिगाडऩे वाला बताते हुए मामला दर्ज कराया था। मामला दर्ज होते ही पुलिस महानिदेशक के निर्देश पर बाक़ायदा तीन सदस्यीय विशेष जाँच समिति गठित कर दी गयी। समिति ने शिकायत को गम्भीर माना और बाक़ायदा तौर पर आरोपी बग्गा को जाँच में शामिल होने का नोटिस दिया।

चूँकि पुलिस को इस मामले में कार्रवाई को अंजाम देना था लिहाज़ा एक माह के दौरान ही चार से पाँच नोटिस बग्गा के पश्चिमी दिल्ली आवास पर दिये गये। बग्गा जाँच में कभी शामिल नहीं हुए इसलिए राज्य पुलिस उनको गिरफ़्तार करना चाहती थी।  पुलिस गिरफ़्तारी वारंट लेकर दूसरे राज्य में ऐसा कर सकती है; लेकिन इसके लिए कुछ प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। बग्गा के मामले में पंजाब पुलिस ने ऐसा कुछ नहीं किया। बग्गा का आवास जनकपुरी थाने के तहत आता है, इसलिए पंजाब पुलिस को पहले उसी थाने में जाकर अपनी आमद दर्ज करानी थी। थाने का स्टाफ राज्य पुलिस के साथ जाता और गिरफ़्तारी हो जाती; लेकिन राज्य पुलिस ने ऐसा नहीं किया, बल्कि सीधे ही नोटिस के बहाने घर में गयी और गिरफ़्तार कर लिया। आरोपी को पटका (पगड़ी का एक रूप) और चप्पल तक पहनने न देने का आरोप भी है।

अनहोनी की आशंका के चलते बग्गा के पिता प्रीतपाल ने बेटे के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करायी। इसके बाद तो दिल्ली पुलिस ने जिस तेज़ी से कार्रवाई की वह अपने में मिसाल है। दिल्ली पुलिस ने तुरन्त अपहरण और अन्य धाराओं के तहत न केवल मामला दर्ज कर लिया, बल्कि दो घंटे के अन्दर न्यायालय से सर्च वारंट भी हासिल कर लिया। पंजाब पुलिस बग्गा को मोहाली के साइबर थाने में पूछताछ के लिए ले गयी थी। पूरा रास्ता हरियाणा से होकर गुज़रता है, लिहाज़ा अलर्ट जारी कर दिया गया। हरियाणा पुलिस ने भी दिल्ली पुलिस जैसी तत्परता दिखायी और गाड़ी को करनाल-कुरुक्षेत्र राष्ट्रीय राजमार्ग पर (थानेसर) में रोक लिया। सूचना के बाद दिल्ली पुलिस पहुँची बग्गा को अपने क़ब्ज़े में ले लिया। बग्गा पंजाब पुलिस के आरोपी है, देर-सबेर पंजाब पुलिस पर मामले में फिर से कार्रवाई कर सकती है; लेकिन इस बार पहले जैसी नहीं होगी।

नवीन विश्वास, अलका लांबा और तेजिंदर बग्गा तीनों ही मामलों में मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। वह अधरझूल में हैं। वह मामलों में पुलिस कार्रवाई को हरी झंडी तो देते हैं; लेकिन स्पष्ट तौर पर पुलिस कार्रवाई को क़ानून सम्मत ठहराने की हिम्मत नहीं रखते। राज्य पुलिस का इस्तेमाल राजनीतिक दुश्मनी निकालने के लिए हो तो न केवल पुलिस, बल्कि राज्य सरकार और ख़ुद भगवंत मान की छवि ख़राब होगी। सारे मामले केजरीवाल से जुड़े हैं। ऐसे में भगवंत मान दो पाटन के बीच फँस गये हैं। वह अपने राजनीतिक गुरु का ध्यान रखें या पुलिस की छवि का। लगता है उन्हें कुछ समझ ही नहीं आ रहा है। जिन वादों को पूरा कर मान सोच रहे हैं कि उनकी सरकार लोगों की उम्मीदों पर खरी उतर रही है, वह उनका वहम साबित होगा।

पंजाब से जुड़ा कोई मामला हो, तो पंजाब पुलिस की कार्रवाई समझ में आती है। लेकिन दिल्ली में की गयी बयानबाज़ी और मामले पंजाब में दर्ज हों और यहाँ की पुलिस कार्रवाई करे, तो सवाल तो खड़े होंगे ही। मान परीक्षा के दौर से गुज़र रहे हैं, उनके नेतृत्व को अभी कसौटी पर कसा जाना है। कॉमेडियन से गम्भीर नेता बने भगवंत मान को राज्य पुलिस की छवि कितना सुधार सकेंगे यह आना वाला समय ही बताएगा। विपक्ष को साथ लेकर चलने और राजनीतिक दुश्मनी भुलाने का दावा करने वाले भगवंत मान की चुप्पी बहुत कुछ कहती है।

आक्रामक तेवर

तेजिंदर बग्गा भगत सिंह क्रान्ति सेना संगठन के तौर पर राजनीति में आये। वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण की सरेआम पिटाई मामले से बग्गा चर्चा में आये। भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय सचिव बग्गा दिल्ली विधानसभा का चुनाव हरिनगर सीट से लड़ चुके हैं। वह पार्टी के प्रवक्ता हैं और सोशल मीडिया पर अपने आक्रामक बयानों से जाने पहचाने जाते हैं। मामला दर्ज होने के बाद वे खुले तौर पर कहते हैं कि उनके तेवरों में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। सोशल मीडिया पर वह बहुत बार पार्टी लाइन से हटकर बयानबाज़ी करते हैं, जो कभी उनके लिए संकट की वजह बन सकती है।

केजरीवाल आदर्श

बग्गा के ख़िलाफ़ मोहाली के साइबर थाने में प्राथमिकी दर्ज कराने वाले डॉ. सन्नी आहलूवालिया पेशे से डेंटिस्ट हैं। मोहाली निवासी सन्नी के लिए केजरीवाल आदर्श हैं। उनकी प्रेरणा से ही वह 2016 में आम आदमी पार्टी में शामिल हुए। पार्ट के विभिन्न पदों पर रहे सन्नी आनंदपुर लोकसभा क्षेत्र में पार्टी के प्रभारी भी रहे हैं। बग्गा अपने बयानों से पंजाब के सौहार्द को बिगाडऩे में लगे हैं; ऐसे में उन पर मामला दर्ज कराया गया।

झारखण्ड: पेशे का रूप ले रही राजनीति!

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के इस्तीफ़े की उठी माँग, चर्चा है कि फिर कौन बनेगा मुख्यमंत्री?

पिछले कुछ वर्षों में देश के राजनीतिक माहौल में तेज़ी से बदलाव आया है। समाज में अन्तिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के जीवन में कोई सुधार नहीं आया है। राजनीतिक दलों के समानता का अधिकार देने के वादे, सबको छत, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार और अन्न आदि देने के दावे ज़मीनी हक़ीक़त से कोसों दूर हैं। समाज सेवा के लिए बनी राजनीति अब कहीं-न-कहीं पेशे का रूप ले रही है। झारखण्ड भी इससे अछूता नहीं है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री और मंत्री जैसे गरिमामयी पदों पर बैठे लोगों की सदस्यता पर भी प्रश्न चिह्न लग रहे हैं। राज्यपाल और चुनाव आयोग के साथ-साथ मामले न्यायालय तक पहुँच रहे हैं। नतीजतन राजनेता से लेकर नौकरशाह तक सभी इसी में उलझे हुए हैं। झारखण्ड में पिछले एक महीने से विकास के मुद्दे गौण हैं। प्रदेश के हालात पर बता रहे हैं प्रशांत झा :-

झारखण्ड एक बार फिर नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है। मौज़ूदा हेमंत सरकार में भूचाल आया हुआ है। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री और विधायक अपनी-अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं। मुख्यमंत्री, एक अन्य मंत्री और दो विधायकों की सदस्यता पर प्रश्नचिह्न लग रहे हैं। वहीं सरकार के एक मंत्री कोरोना प्रोत्साहन राशि में गड़बड़ी के विवाद में फँसे हुए हैं। सत्ता पक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। सरकार हिलडुल रही है। विकास का बाट जोह रही जनता अँधेरे में है। हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री रहेंगे या नहीं? सरकार रहेगी या गिरेगी? अगर गठबंधन की सरकार रहेगी, तो अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? क्या भाजपा तोडफ़ोड़ कर सरकार बनाएगी? क्या राज्य में एक बार फिर राष्ट्रपति शासन लगेगा?

ये तमाम सवाल राजनीतिक गलियारे से लेकर आम लोगों के बीच तैर रहे हैं। सभी अपनी-अपनी दलीले दे रहे हैं। यह हो सकता है, वो हो सकता है। इस सियासी तूफ़ान के बीच एक आईएएस पूजा सिंघल पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की छापेमारी और करोड़ों रुपये मिलने ने आग में घी का काम कर दिया है। क्योंकि आईएएस पूजा सिंघल खान एवं उद्योग विभाग की सचिव हैं। पूर्व सरकार में तो गहरी पैठ थी ही, वतर्मान सरकार में भी पहुँच कम नहीं है। कई और आईएएस अधिकारियों के ईडी के राडार पर होने की सूचना प्राप्त हो रही है। इस सियासी और ब्यूरोक्रेसी तूफ़ान पर राज्य के साथ-साथ पूरे देश की नज़र टिकी हुई है और ऊँट किस करवट बैठता है? इसका इंतज़ार हो रहा है।

मुख्यमंत्री की सदस्यता पर सवाल

झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता ख़तरे में हैं। उन्होंने रांची के अनगड़ा में 88 डिसमिल (3,562.24 वर्ग मीटर) ज़मीन पर दिसंबर, 2021 में स्टोन माइनिंग का लीज लिया है। ख़ास बात यह है कि खान विभाग मुख्यमंत्री के अधीन ही है। पूर्व मुख्यमंत्री सह भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ने इस मामले को उजागार किया। उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर अपने पद का दुरुपयोग करते हुए माइंस लेने का आरोप लगाया। भाजपा की ओर से इसकी शिकायत राज्यपाल रमेश बैस से की गयी। मुख्यमंत्री की सदस्यता पर सवाल उठाते हुए उन्हें बर्ख़ास्त करने की माँग की गयी। राज्यपाल ने सारे मामले से चुनाव आयोग को अवगत कराया और सलाह माँगी।

चुनाव आयोग ने भेजा नोटिस

चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नोटिस भेजकर यह बताने के लिए कहा कि अपने पक्ष खदान का पट्टा जारी करने के लिए उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए? जो प्रथम दृष्टया लोक जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा-9(ए) का उल्लंघन करती है। धारा-9(ए) सरकारी अनुबंधों के लिए किसी सदन से अयोग्यता से सम्बन्धित है। इससे पहले आयोग ने दस्तावेज़ की सत्यता प्रमाणित करने लिए राज्य के मुख्य सचिव से रिपोर्ट माँगी थी। मुख्य सचिव से रिपोर्ट मिलने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नोटिस भेजा गया। इस बीच मुख्यमंत्री ने खनन पट्टा वापस कर दिया है।

मुख्यमंत्री ने दिया जवाब

मुख्यमंत्री ने 9 मई को चुनाव आयोग को जवाब दे दिया है। उन्होंने अपनी माँ की गम्भीर बीमारी का हवाला देते हुए ज़िक्र किया है कि वह लगातार उपचार के सिलसिले में हैदराबाद में थे। इस वजह से आयोग द्वारा भेजे गये नोटिस का अध्ययन नहीं कर पाये। रिपोर्ट का ठीक से अध्ययन करने उस पर क़ानूनी सलाह लेने के लिए वक़्त की ज़रूरत है। हेमंत सोरेन ने चुनाव आयोग से एक माह का समय माँगा, ताकि वह नोटिस का अध्ययन कर क़ानूनी विशेषज्ञों से राय लें सकें। अब चुनाव आयोग उनकी बातों से कितना सन्तुष्ट होता है और क्या क़दम उठाता है? राज्यपाल को क्या सलाह देता है? इसका इंतज़ार है।

हेमंत के बचाव में उतरा झामुमो

इस बीच झामुमो कई फ्रंट पर काम कर रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पार्टी झामुमो उनके बचाव में उतर गया है। मुख्मंत्री हेमंत सोरेन के इस्तीफ़ा देने की स्थिति में वैकिल्पक रास्ता भी तलाशा जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और भाजपा को घेरने का प्रयास चल रहा है। झामुमो ने हेमंत सोरेन के बचाव में राज्यपाल को ज्ञापन भी दिया गया। झामुमो नेताओं का कहना है कि माइनिंग लीज धारा-9(ए) के तहत नहीं आता है। साथ ही मुख्यमंत्री ने इस पर काम भी शुरू नहीं किया है। उन्होंने लीज सरेंडर भी कर दिया है। पार्टी द्वारा कहा जा रहा है कि अगर मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ असंवैधानिक क़दम उठाये जाते हैं, तो वह सर्वोच्च न्यायालय जाएँगे। अगर मुख्यमंत्री हेमंत को पद से इस्तीफ़ा देना ही पड़ा, तो गठबंधन की सरकार में किसे मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है? इसकी भी अंदरख़ाने क़वायद चल रही है। इधर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास पर कई आरोप लगाये जा रहे हैं। उनके ख़िलाफ़ जाँच की माँग की जा रही है। भाजपा पर सरकार को अस्थिर करने और जनता को दिग्भ्रमित करने का आरोप लगाया जा रहा है।

हेमंत के भाई पर भी संकट

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के छोटे भाई विधायक बसंत सोरेन भी संकट में हैं। उनकी सदस्यता पर भी सवाल उठाया गया है। बसंत सोरेन पर दुमका में माइनिंग लीज लेने का मामला है। भाजपा ने इस सन्दर्भ में भी राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा था। भाजपा ने राज्यपाल को सौंपे पत्र में कहा था कि विधायक बसंत सोरेन मेसर्स ग्रैंड माइनिंग नामक कम्पनी चलाते हैं। पश्चिम बंगाल की कम्पनी मेसर्स चंद्रा स्टोन में पार्टनर हैं। पाकुड़ की इनकी माइनिंग कम्पनी पर सरकार का 14 करोड़ रुपये बक़ाया है। राज्यपाल ने उनका भी मामला चुनाव आयोग को भेजा था। चुनाव आयोग ने मुख्य सचिव से बसंत सोरेन के बारे में भी रिपोर्ट माँगी थी, जो आयोग को उपलब्ध करा दिया गया। इसके बाद पिछले दिनों आयोग ने बसंत सोरेन को भी नोटिस भेजते हुए पूछा है कि क्यों न आपकी सदस्यता रद्द की जाए? वह भी क़ानूनी सलाह ले रहे और जल्द ही आयोग को जवाब देंगे।

मंत्री मिथिलेश भी निशाने पर

झारखण्ड सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथिलेश ठाकुर की सदस्यता का भी मामला चुनाव आयोग पहुँचा है। विधानसभा चुनाव के समय उनके द्वारा ठेका कम्पनी संचालित किये जाने तथा इसे लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा-9(ए) के दायरे में आने की शिकायत मिलने के बाद आयोग ने राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी से इस पर नियमानुसार कार्रवाई करने को कहा है। शिकायतकर्ता सुनील महतो ने आरोप लगाया है कि विधानसभा चुनाव के दौरान मिथिलेश ठाकुर द्वारा भरे गये फार्म-26 में इसका ज़िक्र है कि वह चाईबासा के सत्यम् बिल्डर्स के पार्टनर हैं। यह कम्पनी सरकारी ठेका लेने का काम करती है। विधानसभा चुनाव के दौरान उनकी राज्य सरकार के साथ की गयी कई संविदाएँ अस्तित्व में थीं। शिकायत में ऐसी कई संविदाओं का उल्लेख भी किया गया है। शिकायतकर्ता ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत उनकी सदस्यता रद्द करने की माँग की है।

भाजपा विधायक भी घेरे में

भाजपा विधायक समरीलाल भी इन सभी के पीछे-पीछे चल रहे हैं। उनकी सदस्यता को लेकर भी आरोप लग रहे हैं। समरीलाल ने आरक्षित सीट से चुनाव लड़ा था। उनके जाति प्रमाण-पत्र को अवैध करार दिया गया है। उनकी सदस्यता को रद्द करने का आग्रह किया गया है। समरीलाल ने राज्य सरकार के उस आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में याचिका दाख़िल की है, जिसमें उनका अनुसूचित जाति प्रमाण-पत्र रद्द कर दिया गया है।

कल्याण सचिव की अध्यक्षता में गठित जाति छानबीन समिति ने सुरेश बैठा की शिकायत की जाँच के बाद उनका जाति प्रमाण-पत्र गलत पाया था। इसके बाद इस मामले को आवश्यक कार्रवाई के लिए राजभवन भेज दिया गया था। अब राजभवन कोर्ट के $फैसले का इंतज़ार कर रहा है।

कांग्रेस कोटे से मंत्री विवाद में

इन सब के बीच हेमंत सरकार में कांग्रेस कोटे के मंत्री बन्ना गुप्ता भी विवादों में फँस गये हैं। उनके पास स्वास्थ्य विभाग है। निर्दलीय विधायक सरयू राय ने मंत्री बन्ना गुप्ता पर कोरोना के लिए प्रोत्साहन राशि में गड़बड़ी का आरोप लगाया। उन्होंने दस्तावेज़ पेश करते हुए कहा कि बन्ना गुप्ता समेत उनके कार्यालय के 58 कर्मचारियों ने कोरोना-काल में काम के लिए प्रोत्साहन राशि ख़ुद ले ली है। बन्ना गुप्ता ने आनन-फ़ानन में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और राशि भुगतान नहीं होने की बात कही। हालाँकि राशि लेने के लिए काग़ज़ी कार्रवाई पूरी हो गयी थी। बन्ना गुप्ता ने सरयू राय के ख़िलाफ़ न्यायालय में मानहानि का दावा किया है। साथ ही मंत्री बन्ना गुप्ता के अवर सचिव विजय वर्मा ने विधायक सरयू राय पर ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी है।

सड़क पर भाजपा-झामुमो

राज्य के ब्यूरोक्रेसी में 6 मई को बड़ी हलचल हुई। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने आईएएस पूजा सिंघल और उनके क़रीबियों के लगभग दो दर्ज़न ठिकानों पर एक साथ छापा मारा। झारखण्ड के रांची, खूँटी के अलावा बिहार, राजस्थान, दिल्ली-एनसीआर, कोलकाता आदि जगहों पर टीम पहुँची। पूजा सिंघल के सरकारी आवास उनके पति अभिषेक झा और सीए सुमन कुमार के घर पर छापा मारा गया। पति अभिषेक और सीए सुमन कुमार के घर से 19 करोड़ रुपये नक़द बरामद हुए। इसके अलावा करोड़ों के निवेश और शैल कम्पनियों के सुबूत मिले हैं। सुमन कुमार को गिरफ़्तार कर लिया गया है। पूजा सिंघल और अभिषेक झा से पूछताछ चल रही है। पूजा सिंघल वर्तमान में खान एवं उद्योग विभाग की सचिव हैं। इसलिए भाजपा सरकार पर हमलावार हैं। वहीं पूजा सिंघल पर जिन मामलों (मनरेगा राशि और माइंस मामले) को लेकर कार्रवाई चल रही है, वह भाजपा के शासन काल का है। उस वक़्त वह उपायुक्त थीं। लिहाज़ा झामुमो भी हमलावार है। दोनों तरफ़ से बयानबाज़ी और सड़कों पर धरना-प्रदर्शन जारी है। झामुमो केंद्र सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं पर दुरुपयोग का आरोप लगा रही। वहीं भाजपा राज्य सरकार की विफलता, सरकार के संरक्षण में भ्रष्टाचार पनपने और पूजा सिंघल के मामले को सीबीआई जाँच कराने की माँग कर रही है।

सियासी घमासान में जनता गौण

राज्य में सियासी घमासान पिछले एक महीने से मचा है। सभी की नज़र राजभवन पर टिकी हुई है। हालात बाता रहे है कि आने वाले दिनों में झारखण्ड पर से संकट के बादल छँटने के आसार कम ही हैं। क्योंकि चर्चा है कि जल्द ही दो और मामलों में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को चुनाव आयोग से नोटिस भेजे जाने की उम्मीद है।

उधर मुख्यमंत्री हेमंत सोरने के माइनिंग लीज का मामला, उनके परिवार में आय से अधिक सम्पत्ति का मामले को लेकर झारखण्ड उच्च न्यायालय में पीआईएल दाख़िल है। जिस पर जल्द ही सुनवाई शुरू होने वाली है। वहीं, आईएएस पूजा सिंघल मामले में कई ख़ुलासे होंगे। साथ ही पिछले दिनों आरोपित आईएएस और आईपीएस की सूची राजभवन ने सरकार से माँगी थी। जो राजभवन को उपलब्ध करा दिया गया है। इसमें आधा दर्ज़न अधिकारियों के नाम हैं। इनके ख़िलाफ़ भी जल्द ही जाँच एजेंसियाँ क़दम उठाएँगी। पिछले एक महीने से राज्य इन्हीं सब में उलझा हुआ है। नया वित्तीय वर्ष का एक महीना बीत चुका है। पिछले एक महीने में विकास की बात कहीं से निकलकर नहीं आ रही। जनमुद्दे, जनसमस्या और विकास गौण है। जनता पाँच साल के लिए चुने जनप्रतिनिधियों की तरफ़ विकास और अपना हित करने के लिए मुँह ताक रही है। उनके पास एक ही सवाल है- आख़िर राज्य की स्थिति कब और कैसे बदलेगी?

कोरोना से ज़्यादा मौतें दिखाने से भारत नाख़ुश

डब्ल्यूएचओ के मॉडलों की वैधता और डाटा संग्रह की पद्धति को बताया संदिग्ध

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट में कोरोना से मौतों का आँकड़ा सरकार के आधिकारिक आँकड़ों से क़रीब 10 गुना ज़्यादा अर्थात् 47.4 लाख बताया गया है। हालाँकि भारत ने प्रामाणिक डेटा की उपलब्धता को देखते हुए अधिक मृत्यु दर अनुमान के लिए गणितीय मॉडल के उपयोग पर कड़ी आपत्ति जतायी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ज़्यादा मृत्यु दर के आँकड़ों ने कई सवाल उठाये हैं; क्योंकि भारत का कहना है कि इस्तेमाल किये गये मॉडलों की वैधता और डेटा संग्रह की पद्धति संदिग्ध हैं।

भारत लगातार डब्ल्यूएचओ द्वारा गणितीय मॉडल के आधार पर अधिक मृत्यु दर अनुमान लगाने के लिए अपनायी गयी कार्यप्रणाली पर आपत्ति जताता रहा है। इस मॉडलिंग अभ्यास की प्रक्रिया, कार्यप्रणाली और परिणाम पर भारत की आपत्ति के बावजूद, डब्ल्यूएचओ ने भारत की चिन्ताओं पर पर्याप्त रूप से ध्यान दिये बिना अतिरिक्त मृत्यु दर अनुमान जारी किया है।

भारत ने डब्ल्यूएचओ को यह भी सूचित किया था कि भारत के रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) द्वारा नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) के माध्यम से प्रकाशित प्रामाणिक डेटा की उपलब्धता को देखते हुए गणितीय मॉडल का उपयोग भारत के लिए अतिरिक्त मृत्यु संख्या पेश करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। सरकार का कहना रहा है कि भारत में जन्म और मृत्यु की पंजीकरण व्यवस्था काफ़ी मज़बूत है और दशकों पुराने वैधानिक क़ानूनी ढाँचे ‘जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम-1969’ द्वारा शासित है। नागरिक पंजीकरण डेटा के साथ-साथ आरजीआई द्वारा प्रतिवर्ष जारी किये गये नमूना पंजीकरण डेटा का उपयोग घरेलू और वैश्विक स्तर पर बड़ी संख्या में शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।

आरजीआई एक सदी से अधिक पुराना वैधानिक संगठन है और इसे राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य रजिस्ट्रारों और देश भर में लगभग तीन लाख रजिस्ट्रारों / सब-रजिस्ट्रारों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। राज्यों / संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा प्रस्तुत रिपोट्र्स के आधार पर राष्ट्रीय रिपोर्ट- नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) पर आधारित भारत के महत्त्वपूर्ण आँकड़े आरजीआई द्वारा प्रतिवर्ष प्रकाशित किये जाते हैं। वर्ष 2019 के लिए इस तरह की अन्तिम राष्ट्रीय रिपोर्ट जून, 2021 में प्रकाशित हुई थी और वर्ष 2020 के लिए 3 मई, 2022 को प्रकाशित की गयी थी। ये रिपोर्ट सार्वजनिक है। भारत का दृढ़ विश्वास है कि किसी सदस्य राज्य के क़ानूनी ढाँचे के माध्यम से उत्पन्न इस तरह के मज़बूत और सटीक डेटा को ग़ैर-आधिकारिक डेटा स्रोतों के आधार पर सटीक गणितीय अनुमान से कम पर भरोसा करने के बजाय डब्ल्यूएचओ द्वारा सम्मान, स्वीकार और उपयोग किया जाना चाहिए।

भारत ने श्रेणी-1 और श्रेणी-2 देशों को वर्गीकृत करने के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा उपयोग किये गये मानदंड और धारणा में विसंगतियों (जिसके लिए एक गणितीय मॉडलिंग अनुमान का उपयोग किया जाता है) की ओर इशारा किया था और साथ ही भारत को श्रेणी-2 वाले देशों में रखने के आधार पर सवाल उठाया था। भारत ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया था कि एक प्रभावी और मज़बूत वैधानिक प्रणाली के माध्यम से एकत्र किये गये मृत्यु डेटा की सटीकता को देखते हुए भारत श्रेणी-2 देशों में रखे जाने के योग्य नहीं है। डब्ल्यूएचओ ने आज तक भारत की दलील का जवाब नहीं दिया है।

भारत ने डब्ल्यूएचओ के स्वयं के इस स्वीकारोक्ति पर लगातार सवाल उठाया है कि 17 भारतीय राज्यों के सम्बन्ध में डेटा कुछ वेबसाइट्स और मीडिया रिपोट्र्स से प्राप्त किया गया था और गणितीय मॉडल इस्तेमाल किया गया था। यह भारत के मामले में अधिक मृत्यु दर अनुमान लगाने के लिए डेटा संग्रह की सांख्यिकीय रूप से ख़राब और वैज्ञानिक रूप से संदिग्ध कार्यप्रणाली को दर्शाता है।

डब्ल्यूएचओ के साथ संवाद, जुड़ाव और संचार की प्रक्रिया के दौरान उसने कई मॉडलों का हवाला देते हुए भारत के लिए अलग-अलग अतिरिक्त मृत्यु दर का अनुमान लगाया है; जो ख़ुद इस्तेमाल किये गये मॉडलों की वैधता और मज़बूती पर सवाल उठाता है। भारत के लिए अधिक मृत्यु दर अनुमानों की गणना के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा उपयोग किये जाने वाले मॉडलों में से एक में वैश्विक स्वास्थ्य अनुमान (जीएचई) 2019 के उपयोग पर भी भारत ने आपत्ति जतायी। जीएचई अपने आप में एक अनुमान है। इसलिए एक मॉडलिंग दृष्टिकोण एक अन्य अनुमान के आधार पर मृत्यु दर का अनुमान प्रदान करता है, जबकि देश के भीतर उपलब्ध वास्तविक आँकड़ों की पूरी तरह से अवहेलना करना अकादमिक कठोरता की कमी को प्रदर्शित करता है।

भारत में कोरोना वायरस के परीक्षण की सकारात्मकता दर पूरे देश में किसी भी समय एक समान नहीं थी। ऐसा मॉडलिंग दृष्टिकोण देश के भीतर स्थान और समय दोनों के सन्दर्भ में कोरोना सकारात्मकता दर में परिवर्तनशीलता को ध्यान में रखने में विफल रहता है। यह मॉडल विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में उपयोग किये जाने वाले विभिन्न नैदानिक विधियों (आरएटी/आरटी-पीसीआर) के परीक्षण की दर और प्रभाव को ध्यान में रखने में भी विफल रहता है।

अपने बड़े क्षेत्र, विविधता और क़रीब 1.3 अरब की आबादी के कारण जिसने अंतरिक्ष और समय दोनों में महामारी की परिवर्तनशील गम्भीरता देखी, उस भारत ने लगातार ‘एक आकार में सभी को फिट बैठाने वाले इस दृष्टिकोण और मॉडल के उपयोग पर आपत्ति जतायी। क्योंकि यह छोटे देशों पर लागू हो सकता है; लेकिन ये आँकड़े भारत पर लागू नहीं हो सकते विविधता। एक मॉडल में भारत के आयु-लिंग वितरण को भारत के साथ जनसांख्यिकी और आकार के मामले में अतुलनीय अन्य देशों द्वारा रिपोर्ट की गयी कि अतिरिक्त मौतों के आयु-लिंग वितरण के आधार पर एक्सट्रपलेशन (आँकड़े सृजित करने की एक प्रक्रिया) किया गया था और भारत के प्रामाणिक भारतीय स्रोत से उपलब्ध डेटा का उपयोग करने का अनुरोध नहीं माना था।

मॉडल ने तापमान और मृत्यु दर के बीच एक विपरीत सम्बन्ध माना, जिसे भारत के बार-बार अनुरोध के बावजूद डब्ल्यूएचओ द्वारा कभी भी प्रमाणित नहीं किया गया था। इन मतभेदों के बावजूद भारत ने इस तरीक़े पर डब्ल्यूएचओ के साथ सहयोग और समन्वय करना जारी रखा और कई औपचारिक संचार (नवंबर, 2021 से मई, 2022 तक 10 बार) के साथ-साथ डब्ल्यूएचओ के साथ कई आभासी बातचीत हुई। 3 मई, 2022 को आरजीआई द्वारा प्रकाशित 2020 के सीआरएस डेटा से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि भारत के कोरोना से मौतों के विभिन्न मॉडलिंग अनुमानों के आधार पर बनायी जाने वाली कथा को कई बार रिपोर्ट किया गया आँकड़ा वास्तविकता से पूरी तरह से हटा दिया गया है।

सन् 2018 और 2019 के लिए मृत्यु दर के आँकड़े भी सार्वजनिक उपलब्ध हैं। चूँकि आरजीआई के आँकड़े किसी विशेष वर्ष के लिए मृत्यु दर से जुड़े हैं, इसलिए कोरोना से मृत्यु दर के आँकड़ों को उस वर्ष सर्व-मृत्यु दर का एक उप-समूह माना जा सकता है। इसलिए देश भर में एक कठोर प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त किये गये वैधानिक प्राधिकरण द्वारा जारी किये गये विश्वसनीय आँकड़े वर्तमान में नीति नियोजन में विश्लेषण और समर्थन के लिए उपलब्ध हैं। यह एक ज्ञात तथ्य है कि मॉडलिंग, अधिक बार नहीं अधिक अनुमान लगा सकता है और कुछ अवसरों पर ये अनुमान बेतुकेपन की सीमा तक फैल सकते हैं।

भारत के रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) के कार्यालय के तत्त्वाधान में नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) रिपोर्ट-2020 द्वारा जारी आँकड़ों को डब्ल्यूएचओ के साथ अतिरिक्त मृत्यु रिपोर्ट तैयार करने के लिए साझा किया गया था। डब्ल्यूएचओ को उनके प्रकाशन का समर्थन करने के लिए इस डेटा को संप्रेषित करने के बावजूद डब्ल्यूएचओ ने उनके लिए सबसे अच्छी तरह से ज्ञात कारणों से भारत द्वारा प्रस्तुत उपलब्ध आँकड़ों की अनदेखी करना चुना और ज़्यादा मृत्यु दर के अनुमानों को प्रकाशित किया, जिसके लिए कार्यप्रणाली, डेटा के स्रोत और परिणामों पर भारत ने लगातार सवाल उठाये गये हैं। भारत के मामले में डब्ल्यूएचओ ने कहा कि 2020 में ही क़रीब 8.3 लाख मौतें होने का अनुमान है। यह संख्या भारत द्वारा अपने नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) में दर्ज वर्ष 2020 के लिए जन्म और मृत्यु के पंजीकरण के लिए अपना वार्षिक डेटा जारी करने के दो दिन बाद आयी है, जिसमें पिछले वर्षों की तुलना में लगभग 4.75 लाख अधिक मौतें हुई हैं, जो इस प्रवृत्ति के अनुरूप है। पिछले कुछ वर्षों में बढ़ते पंजीकरण देखे जा रहे हैं।

सीआरएस कारण-विशिष्ट मृत्यु दर रिकॉर्ड नहीं करता है। सरकार ने डब्ल्यूएचओ द्वारा अधिक मौतों की गणना के लिए अपनायी गयी प्रक्रिया और कार्यप्रणाली पर बार-बार आपत्ति जतायी है, और इस सम्बन्ध में वैश्विक संगठन को कम से कम 10 पत्र भेजे थे। सरकार ने एक बयान में कहा- ‘डब्ल्यूएचओ ने भारत की चिन्ताओं को पर्याप्त रूप से सम्बोधित किये बिना अतिरिक्त मृत्यु दर का अनुमान जारी किया है।‘

समस्या धर्म नहीं, घृणा है

पिछले कई साल से देखने में आ रहा है कि कई सनातनी और इस्लामिक त्योहार एक साथ पड़ रहे हैं। इससे पहले भी कई बार ऐसा हुआ ही होगा। जबसे विभिन्न धर्मों में त्योहार मनाने की परम्परा शुरू हुई होगी, तबसे न जाने कितने ही त्योहार एक साथ आये और मनाये गये होंगे। होली, जन्माष्टमी, दीपावली, दशहरा, लोहड़ी, वैशाखी, गुरु पर्व, मुहर्रम, ईद, क्रिसमस, गुड फ्राइडे, ईस्टर और भी कई छोटे-बड़े त्योहार कितनी ही बार एक साथ अथवा थोड़े-बहुत आगे-पीछे आये होंगे। ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं, जो एक-दूसरे को अपने त्योहारों पर निमंत्रण और बधाई, मुबारकबाद भेजते हैं। मैंने दर्ज़नों मुस्लिम समुदाय के लोगों को दीपावली, होली, जन्माष्टमी मनाते देखा है। मन्दिरों का प्रसाद खाते देखा है। वहीं सनातनधर्मियों को ईद मनाते देखा है, ताजिया उठाते देखा है। कोई भेदभाव नहीं। कोई बैर नहीं। कोई धर्मवाद नहीं। सब एक जैसे दिखे हैं। किसी ने किसी से नहीं कहा कि यह तुम्हारा त्योहार नहीं है, तो क्यों मना रहे हो? बल्कि ख़ुश होकर दूसरे धर्म वालों का स्वागत किया है।

दरअसल यह भारत की परम्परा रही है कि दुश्मन को भी प्यार दो। फिर यहाँ बसने वाले तो अपने हैं। यहाँ जिस धर्म के भी लोग आये, उन पर यहाँ की अतिथि देवो भव: संस्कृति का इतना गहरा असर हुआ कि उन्होंने न केवल यहाँ की इस परम्परा को अपनाया, वरन् एकता के महत्त्व को भी समझा। भारत में इन दिनों क़रीब सात धर्म और दर्ज़नों पन्थ हैं। इनमें सनातन धर्म में क़रीब 23, इसाई धर्म में नौ, इस्लाम धर्म में पाँच, बौद्ध धर्म में पाँच, जैन धर्म में चार और सिख धर्म में तीन पन्थ हैं। मतभेद और झगड़े की जड़ यहीं से शुरू होती है। इसी की आड़ लेकर हर धर्म से गहरे जुड़े कुछ पाखण्डी धर्माचारियों ने धर्मों को लोगों में फूट डालने का हथियार बना लिया।

इन लोगों की बातों में लोग इसलिए आते गये, क्योंकि लोगों को हमेशा अपने-अपने धर्म से मोह रहा है, जिसके चलते धर्माचारियों की हर बात उन्हें धर्म पर चलने जैसी लगती है और वे उस पर आँख बन्द करके अमल करते हैं। यही वजह है कि जैसे ही धर्म के चंद तथाकथित ठेकेदार उन्हें उकसाते हैं, लोग आँख बन्द करके बिना सोचे-समझे आपस में मरने-मारने पर आमादा हो जाते हैं। आज यही हालात बने हुए हैं। जिधर देखो नफ़रत की आग धधक रही है। अन्दर-ही-अन्दर नफ़रत की विषबेल दिमाग़ों में उग रही है। यह तब है, जब सब एक ही हवा में साँस ले रहे हैं। एक ही सूरज से धूप और प्रकाश ले रहे हैं। एक चंद्रमा की चाँदनी में नहाते हैं। एक ही धरती पर रहते हैं और इसी पर निर्भर हैं। फिर भी लड़ते हैं। लेकिन जिनके बहकाने पर लड़ते हैं, वे कभी नहीं लड़ते। बल्कि जिस दिन कहीं दो धर्मों के मूर्खों में दंगे होते हैं, उस दिन उन दोनों धर्मों के लोग रात को एक साथ जश्न मना रहे होते हैं। उसके कुछ दिन बाद जब मामला शान्त हो जाता है, तब धर्म संसद में बैठकर शान्ति का उपदेश देते हैं। एक-दूसरे के धर्म की तारीफ़ करते हैं। लडऩे वाले नफ़रत से ऊपर कभी नहीं निकल पाते। दरअसल यह कमी धर्मों की नहीं है, वरन् धर्मों को समझे बग़ैर मूर्ख बनने वालों की है। अर्थात् समस्या धर्म नहीं हैं, बल्कि समस्या घृणा है, जो धर्मों को न समझने के चलते पनपती है। इस घृणा को निकाल फेंकना होगा। आज धर्म को जानने वालों का अभाव है। किसी के पास किताबी ज्ञान के सिवाय कुछ नहीं है। एक ईश्वर को ही बाँटकर देखते हैं।

लोग तो इतने मूर्ख हैं कि जब सन्त कबीरदास उन्हें समझाते थे, तो वे उन पर ही हमलावर हो जाते थे। कई बार लोगों ने सन्त कबीरदास पर हमले किये, उनका सिर फोड़ा। धीरे-धीरे लाखों लोग उनके अनुयायी बने और उनकी बातें मानने लगे। लेकिन हैरानी की बात देखिए कि जब सन्त कबीरदास अपनी अन्तिम साँसे ले रहे थे, तब उन्हीं के अनुयायी इस बात पर झगड़ रहे थे कि कबीर का धर्म क्या है? सनातनी कह रहे थे कि कबीर सानतनधर्मी हैं और मुस्लिम कह रहे थे कि कबीर मुसलमान हैं। जिन लोगों को उम्र भर एक महान् सन्त सीधे रास्ते पर लाने का प्रयास करते रहे, वही लोग उनके शरीर के अन्तिम संस्कार को लेकर झगड़ रहे थे। जब उनके बेटे कमाल ने उन लोगों को समझाने के लिए पिता के पास से उठना चाहा, तो सन्त कबीरदास ने उनका हाथ पकड़ लिया और बोले- ‘रहने दो, मत समझाओ! ये नहीं समझेंगे। इन्हें मैं जीवन भर यही समझाता रहा कि सब एक ही ईश्वर की सन्तानें हैं। बाहरी धर्म आडम्बर और मिथ्या हैं। अगर ये इस छोटी-सी बात को समझ गये होते, तो आज झगड़ा क्यों कर रहे होते? इस बारे में मेरा एक शेर है-

कबीरा ज़ात से क्या था, बहस इस बात की थी।

सगे दो भाइयों ने ख़ून आपस में बहाया।।“ 

डिजिटल धोखा: सोशल मीडिया पर फ़र्जी लाइक्स, फॉलोअर्स का ख़ूब फल-फूल रहा धंधा

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नक़ली फॉलोअर्स, लाइक, कमेंट और व्यूज से लेकर प्रतिद्वंद्वी की वेबसाइट क्रैश करने तक हर सेवा धंधेबाज़ों की तश्तरी में तैयार है। तहलका एसआईटी की ख़ास जाँच रिपोर्ट :-

दुनिया भर में मशहूर हस्तियों और नामी लोगों ने विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी पोस्ट्स के ज़्यादा व्यूज दिखाने या फ़र्जी फॉलोअर्स संख्या बनाने के आरोपों को लेकर समय-समय पर सुख़ियाँ बटोरी हैं। सोशल मीडिया पर देखे जाने वाले व्यूज और लाइक करने की बढ़ी हुई संख्या अपनी तरफ़ ध्यान आकर्षित करने का सबसे आसान तरीक़ा है। लोकप्रिय ब्रांड एंडोर्समेंट हासिल करने के लिए सोशल मीडिया हस्तियों और नामी लोगों के बीच यह एक आम बात है।

एक हालिया मामला प्रसिद्ध बॉलीवुड गायक और रैपर बादशाह का है, जिन्होंने दावा किया है कि उनके गीत के वीडियो- ‘पागल है’ को यूट्यूब पर रिलीज होते ही पहले ही दिन 75 मिलियन बार देखा गया था। कई रिपोट्र्स ने यह भी दावा किया कि इसने इसे यूट्यूब पर पहले दिन का सबसे लोकप्रिय वीडियो बना दिया। जाँच के बाद मुम्बई पुलिस ने पाया कि बादशाह ने विभिन्न साइटों को कुल 72 लाख रुपये का भुगतान किया, जो उनके वीडियो को लोकप्रिय करने के लिए फ़र्जी लाइक करवाते हैं। बादशाह अपने ऊपर लगे इन आरोपों को ख़ारिज़ कर चुके हैं।

हालाँकि बादशाह अकेले नहीं, जो सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। भारत के प्रमुख राजनेताओं के कितने ही नक़ली फॉलोअर्स हैं, इस बारे में कई चर्चाएँ सामने आती रही हैं। कभी-कभी उनके पूरे कथित फॉलोअर्स में से क़रीब आधे नक़ली होते हैं। लेकिन सिर्फ़ ऑनलाइन ही क्यों? ऑफलाइन देखो! राजनीतिक रैलियों और प्रचार में सबसे आम तरीक़ों में से एक है- स्टेडियम / सभा-स्थल में भीड़ दिखाना। ऐसे लोग जिन्हें पता ही नहीं होता कि मंच पर क्या हो रहा है? पैसे, शराब और भोजन का लालच देकर रैली स्थल पर उन्हें बुलाया जाता है। वे वास्तव में नक़ली श्रोता हैं। ऑफलाइन, सिर्फ़ उस कार्यक्रम भर के लिए। क्या यह क़ानूनी रूप से ग़लत है? बिलकुल नहीं। क्या यह नैतिक रूप से ग़लत है? हाँ, निश्चित ही।

बादशाह अपनी प्रोफाइल को बूस्ट करने के लिए बैंडवैगन इफेक्ट का इस्तेमाल कर रहे हैं। विश्व रिकॉर्ड को उनकी उपलब्धियों की सूची में जोड़ा जा सकता है, और प्रचार के लिए ब्रांडों और एजेंसियों के साथ उनकी सौदेबाज़ी की क्षमता को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

भारत में फ़िल्म निर्माता हर समय इसका इस्तेमाल करते हैं। जब वे दावा करते हैं कि उनकी फ़िल्म 100 करोड़ रुपये की फ़िल्म है, तो वे परोक्ष रूप से यह कह रहे हैं कि चूँकि इतने सारे लोगों ने इसे देखा है, इसलिए फ़िल्म वास्तव में अच्छी होनी चाहिए। और यह उन लोगों को फोमो (फियर ऑफ मिसिंग आउट) संकेत (सामने वाले के दिमाग़ में यह भय भरना कि उसने यदि इसे नहीं देखा, तो वह एक शानदार चीज़ देखने से वंचित होने वाला है) भेजता है। यदि 100 करोड़ रुपये वैध रूप से अर्जित किये गये थे (और फ़र्जी रूप से उत्पन्न नहीं हुए थे, जो कि अवैध है), तो यह फोमो बनाने का एक अच्छा तरीक़ा है।

लेकिन बादशाह ने अपने 100 करोड़ रुपये पाने के लिए, जो एक विश्व रिकॉर्ड है; नक़ली लाइक्स और कमेंट्स का सहारा लिया। सीधे शब्दों में कहें, तो अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स के लिए लाइक, फॉलोअर्स या व्यू ख़रीदना ग़ैर-क़ानूनी नहीं है; क्योंकि ऐसा कोई विशिष्ट अधिनियम या क़ानूनी प्रावधान नहीं है, जो सीधे तौर पर इस तरह के कृत्य पर रोक लगाता है या जिस पर मुक़दमा दायर हो सकता हो। लेकिन फॉलोअर्स की संख्या या व्यूज की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से फ़र्जी अकाउंट बनाने वाले व्यक्ति के ख़िलाफ़ भारतीय दण्ड संहिता की धारा-468 के तहत शिकायत दर्ज की जा सकती है। भा.दं.सं. का यह विशेष खण्ड धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाज़ी के अपराध से सम्बन्धित है।

क़ानूनी प्रावधान की ज़रूरत

इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए भारत को एक ऐसे क़ानून की ज़रूरत है, जो इस समस्या से पूरी तरह निपटे। ऑनलाइन झूठ और हेराफेरी से बचने के लिए सुरक्षा अधिनियम को अक्टूबर, 2019 में सिंगापुर सरकार ने अधिसूचित किया था। इस अधिनियम में समन्वित फ़र्जी आचरण के ख़िलाफ़ उपयोगकर्ताओं का पता लगाने, नियंत्रित करने और उनकी सुरक्षा करने के उपाय शामिल हैं। यह अधिनियम सोशल मीडिया खातों और बोट (इंटरनेट पर स्वतंत्र प्रोग्राम) के दुरुपयोग से सम्बन्धित चिन्ताओं को भी दूर करता है। एक अन्य उल्लेखनीय उदाहरण संयुक्त राज्य अमेरिका का है, जिसके पास हाल तक क़ानून के इस क्षेत्र से सम्बन्धित कोई क़ानून नहीं था। लेकिन 2019 में एक पूर्ववर्ती समझौते के तहत संयुक्त राज्य अमेरिका ने फ़र्जी खातों से नक़ली गतिविधि का उपयोग करके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फ़र्जी फॉलोअर्स बनाने, लाइक की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया।

लेकिन भारत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फ़र्जी फॉलोअर्स, लाइक और व्यूज की बिक्री बेरोकटोक जारी है। संख्या जितनी अधिक होगी, आप उतनी ही अधिक मूल्यवान इकाई बनेंगे। इन्फ्लुएंसर्स (जो ब्रांडों के लिए सम्भावित विज्ञापनदाताओं के रूप में कार्य करते हैं), विशेष रूप से अपनी सोशल मीडिया उपस्थिति को बढ़ावा देने के लिए अपने फॉलोअर्स को बढ़ाने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। और जब माँग होती है, तो आपूर्ति भी होती है। दिल्ली में कई डिजिटल मीडिया कंसल्टेंसी हैं, जो फॉलोअर्स बेचने का दावा करती हैं। इन धंधेबाज़ों ने इस डिमांड को पैसा बनाने वाले सफल उद्यम में बदल दिया है।

‘तहलका’ ने सच्चाई का पता लगाने के लिए जाँच करने की ठानी। और इसमें चौंकाने वाले ख़ुलासे हुए। दिल्ली स्थित कंसल्टेंसी पूर्व निर्धारित राशि के लिए फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब और इंस्टाग्राम जैसी लोकप्रिय सोशल मीडिया साइटों पर फॉलोअर्स, नक़ली कमेंट्स, लाइक और टिप्पणियाँ प्रदान करने का दावा करती है। हमने ख़ुद को सम्भावित ग्राहकों के रूप में पेश किया और दिल्ली स्थित एमडीईईजेड, ई-कॉमर्स समाधान सॉफ्टवेयर कम्पनी के दो भागीदारों सुहैब और उज़ैर से मुलाक़ात की। ये मुलाक़ात दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में हुई थी। हमने सुहैब और उज़ैर से कहा कि हम एक न्यूज वेबसाइट और एक यू ट्यूब चैनल लेकर आ रहे हैं। और उनके लॉन्च के पहले दिन से हम अपने उत्पाद के लिए लाखों में सोशल मीडिया व्यू, लाइक्स, कमेंट्स, फॉलोअर्स जेनरेट करना चाहते हैं। सुहैब और उज़ैर ने हमारी माँग पर तुरन्त ‘हाँ’ कहा और कहा कि पैसे से सब कुछ सम्भव है। बिना किसी झिझक के वे मौखिक रूप से हमारे सलाहकार बनने के लिए सहमत हो गये। और हमसे कहा कि हमें अपनी माँग पूरी करने के लिए उन्हें पैसे देने होंगे; क्योंकि सोशल मीडिया पर सब कुछ पेड है। हमारे बजट को जानने के बाद दोनों ने हमें उन सेवाओं के बारे में बताना शुरू किया, जो वे हमें प्रदान करेंगे।

 

यह पूछे जाने पर कि वे हमारे यूट्यूब चैनल के लॉन्च के पहले दिन से एक लाख व्यूज कैसे देंगे? शोएब और उज़ैर ने एक साथ विस्तार से बताया।

रिपोर्टर : मान लीजिये मुझे पहले दिन अपने चैनल पर एक लाख व्यूज चाहिए। पहले दिन, यूट्यूब पर… जब मैंने चैनल लॉन्च किया, पहला वीडियो डाला पहले दिन मुझे यूट्यूब पर एक लाख व्यूज चाहिए।

 शोएब : बिलकुल सम्भव है सर! प्रति कमेंट का चार्ज रहता है। ठीक है सर! …आप कितने लोगों तक पहुँच रहे हैं, ये बजट पर निर्भर करता है… जितना बजट होगा, उतने ही ज़्यादा फॉलोअर्स।

 

रिपोर्टर : समझा नहीं मैं आपकी बात, 24 घंटे में?

उज़ैर : आपका कहना यह है कि आपको लाखों व्यूज चाहिए।

रिपोर्टर : पहले दिन।

 उज़ैर : मैंने वीडियो डाली… 12 घंटे मैं मुझे इतने चाहिए। मैं उम्मीद कर रहा हूँ कि 12 लाख व्यूज चाहिए। वो चीज़ तो हासिल करने योग्य हो जाएगी। हम लगाएँगे पैसा वो हो जाएँगे।

जैसे-जैसे बैठक आगे बढ़ी, शोएब ने और ख़ुलासा किया। उन्होंने स्वीकार किया कि कुछ मामलों में वह हमारे उत्पाद के लिए नक़ली व्यूज का प्रबन्ध करेंगे।

शोएब : और ऐसे ही कुछ मामले नक़ली रिव्यू के भी डलवाने पड़ते हैं।

रिपोर्टर : नक़ली व्यूज…वो कैसे?

शोएब : सर! उसकी भी सर्विस होती है। ख़ास कुछ डेटा हमारे पास है, उसे इस्तेमाल कर सकते हैं। फेक रिव्यू डलवाने पड़ते हैं। उसके भी सर चार्ज हैं, 100 रुपये प्रति व्यू और जो भी चार्ज हैं। क्योंकि इसमें असलियत तभी आती है, जब आपका आईपी ट्रैक होता है। आपका आईपी, आपका ईमेल और आईडी ट्रैक होता है। अगर वो एक ही बन्दे से करवा दिया 100 पेज बनाकर, तो वो नक़ली लगता है। नीचे कर दिया जाता है, सच्चाई लाने के लिए उनके अलग आईपी पते पर लोग बैठे होते हैं, वो रिव्यू डलवाते हैं।

शोएब : कुछ मामलों में हम अपने उत्पाद के लिए नक़ली रिव्यू का प्रबन्ध करेंगे। वास्तविक दिखने के लिए हम विभिन्न आईपी पतों से नक़ली रिव्यू का प्रबन्ध करेंगे, अन्यथा हम पकड़े जाएँगे। और हमारी वेबसाइट को ब्लैक लिस्ट कर दिया जाएगा। एक नक़ली व्यू की क़ीमत 100 रुपये होगी।

शोएब ने ‘फेक रिव्यू’ का कारण भी बताया।

रिपोर्टर : किस चीज़ के रिव्यू?

शोएब : सर! उदाहरण के लिए जैसा हमारा कोई ब्रांड चल नहीं रहा, किसी ब्रांड को चलवाने के लिए नक़ली रिव्यू डालेंगे।

शोएब ने समझाया कि हमारे ब्रांड को चलाने के लिए हम नक़ली रिव्यू के लिए जाएँगे। इसके बाद शोएब समझाया कि ‘बीओटी’

क्या है?

रिपोर्टर : और उस के लिए हम लोग आपको हायर भी कर रहे हैं, जो भी बजट होगा आपका? अब वो चाहिए नक़ली हो या असली हो, वो सब आपको देखना है… बस आप ये ध्यान रखिएगा, जहाँ आप नक़ली इस्तेमाल कर रहे हैं, वो चीज़ कहीं यहाँ न आ जाए।

शोएब : सर! यही महत्त्वपूर्ण है…, वरना तो हम अपने हैंड से भी करवा सकते हैं। लेकिन मूल रूप से हमारे बंदे बैठे हैं; अलग-अलग जगह पर, अलग-अलग आईडी पर। वे हर किसी चीज़ के लिए होते हैं, ठीक से सेटअप है। वे इसी चीज़ के लिए होते हैं। उनका काम ही यही है सर! अलग-अलग जगह पर व्यूज डलवाने का।

रिपोर्टर : उसे बोट बोलते हैं न?

शोएब : हाँ।

उज़ैर : ऑर्गेनिक रीच पेड हो जाएगी इससे।

शोएब : सर! ये 2 टाइप के होते हैं, एक तो ओरिजिनल होते हैं, जो ओरिजिनल होते हैं। बोट में पकड़ हो जाती है, उन पर आप इतना विश्वास नहीं कर सकते, जो छोटे लेवल पर होते हैं।

रिपोर्टर : नहीं, तो आप जो फेक बता रहे हैं; वो नक़ली ही तो हुए?

शोएब : सर! इनको आप शब्दावली दे सकते हैं; लेकिन सर! ये असली हैं।

रिपोर्टर : आप कह सकते हैं बोट हैं?

शोएब : आप कह सकते हैं। लेकिन हमारे लिए तो नक़ली ही हैं।

शोएब बताते हैं कि अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग आईडी वाले लोग ब्रांड के लिए नक़ली व्यूज कैसे लिखते हैं। वह उन्हें बोट कहते हैं।

जैसे-जैसे शोएब और उज़ैर से मुलाक़ात आगे बढ़ती है, वे हमें अन्दर की कहानी बताते हैं कि सोशल मीडिया को कैसे मैनेज किया जाता है? इस शृंखला में उन्होंने अब ख़ुलासा किया कि सोशल मीडिया पर वीडियो कैसे वायरल होते हैं? यह सब भुगतान पर किया जाता है। दोनों के अनुसार, यह सच्चे नहीं।

 

रिपोर्टर : अच्छा इसके अलावा अगर हमको वीडियो वायरल करवाने हैं?

उज़ैर : वायरल करवाना है?

शोएब : सर! वायरल करवाने के लिए न अलग रणनीति इस्तेमाल की जाती है।

उज़ैर : आजकल मीम्स से भी चीज़ वायरल होती है। वो स्ट्रैटेजी भी लेकर चलना पड़ता है।

शोएब : वो भी सर!

रिपोर्टर : अच्छा यह वायरल भी पेड ही होगा?

शोएब : सर! वो ऑर्गेनिक बहुत कम केस में होता है। हर चीज़ का वायरल पेड ही होता है; …ऑर्गेनिक कुछ नहीं होता। पता है सर! जो चीज़ वायरल हो रही होती है न, उसमें 3-4 लोग बैठे होते हैं। …उनको पता होता है कि वायरल करवानी है, वो पेड ही होता है।

रिपोर्टर : अपने आप कुछ नहीं होता। …ऑर्गेनिक कुछ नहीं।

शोएब ने आगे ख़ुलासा किया कि पैसों के ज़रिये वह छवि बदलने में हमारी मदद करेंगे। उनके मुताबिक नेगेटिव मार्केटिंग किसी के लिए भी अच्छी होती है।

शोएब : सर! इमेज तो बदलती रहती है, पैसे देकर ट्रेंडिंग करवा देंगे अच्छे से। …ज़्यादा लोगों के दिमाग़ में पहुँचा देंगे। …अच्छा पैसा लगा देंगे सर, वो बदल जाएँगे। सर! असल में नेगेटिव मार्केटिंग बहुत अच्छी चीज़ होती है। जो हम ग़लत कर रहे हैं न, वो हमारे फ़ायदे में होता है।

शोएब ने कहा कि पैसे से वह हमारे ब्रांड की छवि बदल देंगे। वह पैसे से हमारे ब्रांड को ट्रेंड करवाकर सोशल मीडिया पर लाएँगे, जिससे लोगों को हमारे ब्रांड के बारे में पता चलेगा।

रिपोर्टर : अच्छा, अगर किसी को बदनाम करना है, तो कैसे करेंगे? वायरल करना है वीडियो।

शोएब : सर! ये उनके लिए फ़ायदा भी हो सकता है। अगर पहले ही सेटअप कर लिया है। लेकिन वो ही है सर, पेड विज्ञापन। आप किसी से करवा सकते हैं, बड़े लोगों से बुरा करवा सकते हैं। सर! एक तरह से यह रिसर्च होती है।

उज़ैर : हमारे कंटेंट के हिसाब से सर! जैसे कि अगर हम शेफ की बात कर रहे हैं, एक शेफ को बदनाम करना है, उसके खाने की दूसरे शेफ से बुराई करवा लो, वो ख़ुद ही बदनाम हो जाएगा। वो पहले से ही तीन लाख तक पहुँच जाएगा।

रिपोर्टर : वो शेफ है आपके पास?

उज़ैर : बिलकुल।

रिपोर्टर : वो महाराज अगर मना कर दे?

उज़ैर : नहीं मना करेगा सर! एक मना करेगा, तो दूसरा हाँ कर देगा…। ऐसा थोड़ी है कि एक ही शेफ है। हमारे पास मल्टीपल लोग हैं।

रिपोर्टर : मतलब अगर मुझे किसी के फाइव स्टार होटल के खाने की बुराई करनी है? जबकि खाना बहुत अच्छा है, तो मैं काम आपको दे दूँ; आप शेफ से करवा देंगे?

उज़ैर : हाँ सर!

रिपोर्टर : शेफ ने मना कर दिया?

उज़ैर : सर! एक शेफ नहीं है।

रिपोर्टर : 10 ने मना कर दिया…?

उज़ैर : कुछ और तरीक़ा इस्तेमाल करेंगे।

शोएब : पेड एडवरटाइजिंग भी है सर! पेड एड चला दिया, फेक रिव्यू कर दिया, किसी को अगर डाउन ग्रेड करना होता है, आप ऑनलाइन प्रेजेंस पर अटैक करते हैं। ये इमेज पर अटैक करते हैं, ऑनलाइन जो पोर्टल्स हैं या चीज़े हैं। उन पर नक़ली व्यूज डाल सकते हैं। वो अपने आप डाउन ग्रेड हो जाता है।

रिपोर्टर : और ट्विटर पर ट्रेंड कैसे होगी कोई भी चीज़?

उज़ैर : ट्विटर पर सर? वो यह है कि ट्वीट करना पड़ता है सर! उसके लिए भी हायरिंग होती है। …आप देखो, राजनीतिक पार्टियाँ भी करती हैं। …ट्वीट करना पड़ता है, …मल्टीपल लॉगऑन से।

शोएब : ट्वीट का कंटेंट दे दिया सबको, फिक्स। …हर बंदा वही डालेगा।

रिपोर्टर : ऐसे लोग हैं आपके पास?

शोएब : सर! ये भी इस्तेमाल करते हैं आउटसोर्सिंग कम्पनियाँ हैं, फ़र्जी रिव्यू ये लोग करते हैं।

शोएब और उज़ैर के मुताबिक, वे उन कम्पनियों को हायर करेंगे, जो ट्विटर पर हमारा कंटेंट ट्रेंड करवाएँगी। इन कम्पनियों में कई लोग हैं, जिन्हें वे सामग्री प्रदान करते हैं, और ये लोग अलग-अलग स्थानों से ट्विटर पर एक ही सामग्री को ट्वीट करते हैं।

शोएब ने अब अपनी अगली योजना का ख़ुलासा किया- प्रतिद्वंद्वी वेबसाइट को कैसे क्रैश किया जाए?

शोएब : ये भी होता है सर! अगर डाउनग्रेड करना है किसी को; अगर किसी वेबसाइट को डाउनग्रेड करना है, तो आपके पास स्क्रिप्ट्स होती हैं, हैंड स्क्रिप्ट्स चला करके किसी की भी वेबसाइट डाउनग्रेड करायी जा सकती है।

रिपोर्टर : समझा नहीं मैं!

शोएब : सर! आपका रहता है… सर्वर स्पेस होता है किसी भी वेबसाइट का। …आप एक्सेस कर रहे हैं। सर्वर पर हिट कर रहे हैं। मैं एक्सेस कर रहा हूँ। सर्वर पर हिट कर रहा हूँ, जितने ज़्यादा लॉग सर्वर पर हिट करते हैं, उतना सर्वर सँभल नहीं पाता। ठीक है सर! कुछ स्क्रिप्ट बनायी जाती हैं, डाउनग्रेड करने के लिए ये अपना चलाते हैं। …अपने कम्प्यूटर से हाई पॉवर पर, वो एक के बाद एक हिट कर रहा होता है। वो दिखता ऐसा है कि लाख लोग वेबसाइट पर आ गये हैं, उनकी वेबसाइट पर; …और वेबसाइट क्रैश हो जाती है। सर्वर डाउन हो जाता है।

रिपोर्टर : मतलब, अगर आपको अपने प्रतियोगी की वेबसाइट डाउन करवानी है, तो ऐसे हम करवा सकते हैं?

शोएब : हम्म… ऐसा करा जाता है। हो सकता है सर! हमारे साथ भी कुछ मामलों में हमें सर्वर चेंज करना होगा, फटाफट से।

अब शोएब ने ख़ुलासा किया कि वह हमारे लिए फेक नेगेटिव और पॉजिटिव कमेंट्स को कैसे मैनेज करेंगे।

रिपोर्टर : अच्छा, अगर हम कमेंट चाहते हैं… अपनी किसी कंटेंट पर पॉजिटिव; वो कैसे मिलेंगे?

शोएब : सर! सकारात्मक टिप्पणियाँ, वही तरीक़ा है उसके लिए भी। मूल रूप से उपभोक्ता को लक्षित करना है। रिव्यू वाला तरीक़ा है, जहाँ से रिव्यू मिलता है। …इनकी अपनी अलग-अलग दरें होती हैं। …वो देखते-पढ़ते हैं।

रिपोर्टर : अच्छा, यह भी पेड होगा… कमेंट वाला?

शोएब : जी, पेड रहेगा सर! क्योंकि अगर हमें कमेंट्स करवाने हैं, तो फिर हम असली लोगों से करवाएँगे। असली लोगों से आप कितने करवा लोगे अधिकतम…? आप मान लीजिये 100 से करेंगे। 100 से हम करेंगे। 200 से करवा लें, इनसे हमारा काम नहीं होने वाला; …हज़ारों होते हैं।

रिपोर्टर : वो नक़ली होंगे?

शोएब : हाँ।

रिपोर्टर : वो हैं आपके पास?

शोएब : सर! वो इनसे ही मिला है।

रिपोर्टर : कम्पनी के खाते के माध्यम से?

शोएब : कम्पनी के ज़रिये ही मिला है। उनसे टाईअप करना… और जो रहती है इनकी कॉस्ट (लागत)।

रिपोर्टर : कितना रहता है इनका चार्ज, एक कमेंट का?

शोएब : इनका अलग-अलग रहता है। …100-150 के आस पास मान लीजिए।

रिपोर्टर : एक कमेंट का?

शोएब : जी।

रिपोर्टर : उसमें पॉजिटिव भी करवा लें, नेगेटिव भी?

शोएब : जी, जी।

रिपोर्टर : किसी को गाली बकवानी है, तो वो भी होगा?

शोएब : जी, बिलकुल।

अब हम मनीष कुमार से मिले। दिल्ली की एक और डिजिटल मार्केटिंग कम्पनी माई आईटी टेकी के मालिक। यह मुलाक़ात भी दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में हुई थी। शोएब और उज़ैर की तरह हमने मनीष को भी बताया कि हम न्यूज वेबसाइट और एक यूट्यूब चैनल लेकर आ रहे हैं। और इसके लॉन्च के पहले दिन से हम लाखों में व्यू, सब्सक्राइबर, लाइक, फॉलोअर आदि चाहते हैं। मनीष ने हमारी माँग पर सहमति जतायी और तुरन्त हमें अपने यूट्यूब चैनल के लॉन्च के पहले दिन से ही लाखों व्यूज जनरेट करने की अपनी योजना के बारे में बताया।

रिपोर्टर : अच्छा हमें ये व्यूज पहले दिन से लाखों में चाहिए; यूट्यूब पर पहले दिन से।

मनीष : हर वीडियो पर?

रिपोर्टर : हर वीडियो पर।

मनीष : हो जाएगा।

रिपोर्टर : जैसा आपने उदाहरण दिया था, बादशाह का वीडियो डाला था।

मनीष : हाँ।

रिपोर्टर : लड़की पागल है? …लाखों व्यूज आ गये थे।

मनीष : हाँ, क़रीब 30 लाख। …वो एक बार में नहीं आने देते; लेकिन धीरे-धीरे ले जाते हैं।

रिपोर्टर : वैसे ही लाखों देखे गये, दिन एक से यूट्यूब पर; वो कैसे आएँगे?

 मनीष : शुरुआत से अगर लेके चलेंगे, तो कर सकते हैं। अगर मान लीजिए आप लाखों में बात कर रहे हैं, एक लाख तक तो हम कर सकते हैं।

रिपोर्टर : पहले दिन से?

मनीष : पहले दिन से।

रिपोर्टर : लेकिन वो ऑर्गेनिक तो होंगे नहीं।

मनीष : ऑर्गेनिक भी आते हैं और बोट्स भी आते हैं… बोट्स के मुक़ाबले आर्गेनिक हमें सस्ते पड़ते हैं। …होते ऑर्गेनिक ही हैं। पर वो देश सस्ते दे रहा है, जहाँ से वो व्यू आ रहे हैं।

रिपोर्टर : अच्छा जो बोट्स होंगे, वो आपके डायरेक्ट कॉन्टैक्ट में होंगे या आप जिस कम्पनी से सर्विस लोगे?

मनीष : सर्विस है, वो आप भी करोगे, …मैं भी यूज करूँगा, …कोई भी यूज करेगा, उसके पैनल प्रोवाइडर हैं। …किसी भी कम्पनी में आप सर्च करोगे, …सबका प्राइस (भाव) वही होगा।

रिपोर्टर : मतलब आप कह रहे हैं कि जो पहले दिन से एक लाख व्यूज आएँगे हमारे यूट्यूब पे?

मनीष : हाँ, दे सकते हैं।

रिपोर्टर : उसमें बोट्स होंगे?

मनीष : सर! अगर मैं 300 डॉलर ख़र्च कर रहा हूँ एक लाख व्यूज के लिए या 2,000 ख़र्च कर रहा हूँ; तो वही चीज़ मैं 100 डॉलर में भी ले सकता हूँ। वही व्यूज मैं 500 डॉलर में भी ले सकता हूँ। 100 डॉलर भी मेरे लग रहे हैं और 500 डॉलर भी। क़ीमत का भेदभाव ही यही है कि जो सस्ते ब्रांड ले रहा हूँ उसकी कोई गारंटी नहीं है, बोट्स में भी वहाँ पे वो।

रिपोर्टर : आप बोल रहे हैं- बोट्स जो हैं, वो सस्ते होते हैं?

मनीष : सस्ते होते हैं।

बैठक के दौरान मनीष ने हमें आश्वासन दिया कि बोट्स का उपयोग करने के लिए हमें दण्डित नहीं किया जाएगा।

रिपोर्टर : और दूसरा यह बताएँ कि कहीं पकड़े तो नहीं जाएँगे हम?

मनीष : नहीं; ऐसा कोई मुद्दा नहीं है।

रिपोर्टर : बोट्स जो करोगे आप हमारे उसमें यूट्यूब की पॉलिसी, इंस्टाग्राम की पॉलिसी या फेसबुक की पॉलिसी का उल्लंघन हो रहा हो कहीं?

मनीष : नहीं हो रहा है। …व्यापक रूप से उपयोग करें।

रिपोर्टर : मतलब?

मनीष : मतलब, अधिकतम लोग इस्तेमाल कर रहे हैं, ये सारी सेवाएँ अधिकतम लोग इस्तेमाल कर रहे हैं।

रिपोर्टर : नहीं, मैं बोट्स की बात कर रहा हूँ।

मनीष : सारी सेवाएँ, सब करते हैं।

रिपोर्टर : ऐसा न हो, कोई ब्लॉक कर दे?

मनीष : नहीं..नहीं…नहीं।

मनीष ने आगे भरोसे के साथ ख़ुलासा किया कि उनके लिए सबसे आसान काम इंस्टाग्राम और फेसबुक पर फॉलोअर्स लाना है।

रिपोर्टर : इंस्टाग्राम पेज भी बना सकते हैं आप?

मनीष : जी, बनेगा; बिलकुल बनेगा।

रिपोर्टर : उसके फॉलोअर्स कैसे आएँगे?

मनीष : हम्म… सबसे आसान काम फेसबुक या इंस्टाग्राम ही है।

रिपोर्टर : वो आसान है। …फेसबुक या इंस्टाग्राम के लिए फॉलोअर्स लाना?

मनीष : वो आसान है; …वो हो जाएगा।

मनीष : सर! आप बोलो, अभी 10 हज़ार फॉलोअर्स डाल दूँगा।

रिपोर्टर : इंस्टाग्राम पर? वो कैसे? …बोट्स?

मनीष : बोट्स भी हैं, अच्छे वाले भी हैं। …मतलब, सबसे आसान होता है। सबसे ज़्यादा मार्केट में ट्रेंड ही यही है। सबसे ज़्यादा लोग जो सर्विसेज इस्तेमाल करते हैं, वो इंस्टाग्राम की ही करते हैं। इंस्टाग्राम आजकल लोगों में काफ़ी फेमस है।

उपरोक्त तीन पात्र सागर की चंद बूँदें मात्र हैं। उनके जैसे बहुत-से लोग फ़र्जी फॉलोअर्स, लाइक्स और कमेंट्स पैदा करने का दावा करते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, ट्विटर, टिकटॉक, यूट्यूब आदि पर नक़ली लाइक, व्यू या कमेंट ख़रीदना सैद्धांतिक रूप से उनकी सेवा की शर्तों के ख़िलाफ़ है। हालाँकि अनुशंसित कम्पनियों जैसी प्रतिष्ठित कम्पनियों से वास्तविक फॉलोअर्स को ख़रीदना उनकी सेवा की अवधि के विरुद्ध बिलकुल भी नहीं है। कोई अपराध नहीं किया जा रहा है। आप किसी क़ानूनी परेशानी में नहीं पड़ेंगे। लेकिन आपको याद रखने की ज़रूरत है कि सोशल मीडिया कम्पनियाँ निजी स्वामित्व में हैं। उनकी साइट का उपयोग करना निजी सम्पत्ति पर होने जैसा है। आपको उनके नियमों का पालन करने की ज़रूरत है, अन्यथा वे आपको अपनी सम्पत्ति का उपयोग करने से रोक सकते हैं।