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एमपी में मालगाड़ी पटरी से उतरी, रास्ता रुकने से कई ट्रेन प्रभावित

मध्य प्रदेश के झाबुआ में एक रेल हादसे में सोमवार तड़के मालगाड़ी के 16 डिब्बे पटरी से उतर गए। हादसे के कारण दिल्ली और मुंबई के बीच का रेल यातायात पूर्ण रूप से बंद करना पड़ा है।

जानकारी के मुताबिक पश्चिमी रेलवे के रतलाम मंडल में यह रेल हादसा हुआ। मालगाड़ी के 16 डिब्बे पटरी से उतर गए जिसके बाद पश्चिम रेलवे का दोनों तरफ का रेल यातायात प्रभावित हो गया है। दाहोद जिले के मंगल महुडी में सोमवार सुबह 1.30 बजे यह रेल हादसा हुआ।

हादसे के बाद कई पैसेंजर ट्रेन प्रभावित हुई हैं। कई और ट्रेन डायवर्ट या रद्द की गयी हैं जिससे यात्रियों को दिक्कत झेलनी पड़ी है। गाड़ी के 16 डिब्बे एक के ऊपर एक चढ़ गए। इनमें 8 डिब्बे अप, 8 डिब्बे डाउन लाइन और 6 डिब्बे ऑफ लाइन पर जा बिखरे। हादसे की जगह काफी दूर तक मालगाड़ी के पुर्जे बिखरे मिले।

मंगल महुडी के डेढ़ किलोमीटर के बीच रेलवे की 25000 मेगा वाट की मेन लाइन टूट गयी है। मालगाड़ी के डिब्बों में स्पार्किंग के बाद यह हादसा हुआ। दुर्घटना से दिल्ली और मुंबई के बीच का रेल यातायात संपूर्ण रूप से बंद हो गया है। ट्रैफिक बहाल करने के लिए टूटे डिब्बों को पटरी पर से हटाने की कवायद जारी है।

सावन के पहले सोमवार पर बिहार के मंदिर में भगदड़ मचने से महिला की मौत

सावन के पहले सोमवार को बिहार के सीवान में स्थित महेंद्र नाथ मंदिर में भगदड़ के दौरान एक महिला की जान चली गयी। हादसे में दो महिलाएं घायल हुई हैं जिन्हें सीवान अस्पताल में भर्ती किया गया है।

जानकारी के मुताबिक सावन का पहला सोमवार होने के कारण मंदिर में काफी भीड़ उमड़ी थी। तड़के करीब 3 बजे भगदड़ मचने से एक महिला भीड़ के बीच कुचली गयी, जिससे उसकी मौत हो गई। दो अन्य महिला श्रद्धालु घायल हुई हैं।

हादसा तब पेश आया जब मंदिर में सुबह शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ उमड़ पड़ी। जैसे ही गेट खुला लोग कतार तोड़कर धक्का-मुक्की करने लगे और इसी दौरान यह हादसा हो गया। गेट के पास कुचलने से एक महिला की मौत हो गई और दो घायल हो गईं।

घायलों को सीवान सदर अस्पताल में भर्ती किया गया। सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुँच गयी और सुरक्षा व्यवस्था की। अब इलाके में सुरक्षा को चाक चौबंद किया गया है।

देश में लगातार चौथे दिन कोरोना के 20 हजार से ज्यादा मामले आए

देश में पिछले 24 घंटे में कोरोना के 20, 044 मामले सामने आये हैं जबकि इस दौरान 56 लोगों की जान गयी है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के आज सुबह जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में सक्रिय कोरोना मामले 1,40,760 हैं। पिछले 24 घंटे में 18,301 मरीज स्वस्थ हुए हैं जिससे रिकवरी दर 98.48 फीसदी हो गयी है। कोरोना के कुल 4,17,895 परीक्षण किए गए हैं जबकि राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान के तहत अब तक 199.71 करोड़ टीके की खुराक दी जा चुकी है।

दिल्ली में शुक्रवार को कोरोना संक्रमण के 601 नए मामले सामने आए और इसकी दर 3.64 फीसदी दर्ज की गई। पिछले एक दिन में महामारी से कोई मौत नहीं हुई है। राष्ट्रीय राजधानी में अब तक संक्रमण के 19,43,026 मामले सामने आ चुके हैं और 26,289 मरीजों की मौत हो चुकी है।

इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने आगाह किया है कि कोविड-19 की नयी लहरों के लिए तैयार रहना चाहिए। ऐसे साक्ष्य लगातार मिल रहे हैं कि ओमीक्रोन के उपस्वरूप- बीए.4 और बीए.5 टीका ले चुके लोगों को भी संक्रमित कर रहे हैं।

जॉनसन खेमे के विरोध के बावजूद पीएम की दौड़ में मजबूत सुनक

भारतीय मूल के ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद की दौड़ में मजबूती से बने हुए हैं। निवर्तमान पीएम बोरिस जॉनसन के विरोध के बावजूद यूके पीएम पद के दावेदार के तौर पर ऋषि सुनक की दूसरे राउंड में सबसे ज्यादा वोट मिलने के बाद संभावनाएं जोर पकड़ रही हैं। हालांकि, ब्रिटिश मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक बोरिस जॉनसन सुनक का विरोध कर रहे हैं और उन्होंने अपने समर्थकों को कथित तौर पर सुनक को ‘किसी भी सूरत में समर्थन नहीं देने’ को कहा है।

ब्रिटिश मीडिया की कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि कार्यवाहक पीएम बोरिस जॉनसन ने अपने सहयोगियों (डाउनिंग स्ट्रीट टीम) से कथित तौर पर कहा कि ‘किसी का भी समर्थन करें लेकिन सुनक का नहीं।’ बेशक जॉनसन के एक सहयोगी ने इस दावे को खारिज किया है कि वह (जॉनसन) सुनक के अलावा किसी को भी अपना उत्तराधिकारी बनते देखना चाहते हैं। हालांकि, उन्होंने माना कि जॉनसन सुनक के ‘विश्वासघात’ से खफा हैं।

रिपोर्ट्स में कहा गया है कि जॉनसन सुनक को अपनी कुर्सी जाने का सबसे बड़ा कारण मानते हैं। पूर्व चांसलर सुनक सहित कुछ मंत्रियों के इस्तीफों के बाद दबाव में आए जॉनसन ने 7 जुलाई को कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पद से इस्तीफा दे दिया था। जॉनसन कार्यवाहक पीएम हैं।

ब्रिटिश मीडिया की कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक जॉनसन विदेश मंत्री लिज ट्रस का समर्थन करने के हक़ में दिख रहे हैं। उनके अलावा विकल्प के रूप में कनिष्ठ व्यापार मंत्री जॉनसन पेनी मोरडाउंट का भी समर्थन कर रहे हैं। जॉनसन के केबिनेट सहयोगी जैकब रीस-मोग और नैडीन डोरिस सुनक के खिलाफ अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं।

सुनक संसद के कंजर्वेटिव सदस्यों के प्रथम दो चरण के मतदान में विजेता रहे हैं। उनके खेमे ने इन चर्चाओं को महत्व नहीं देने की बात की है कि उन्हें टोरी सांसदों के अलावा और मजबूत समर्थन नहीं है। सुनक के समर्थक कंजर्वेटिव सांसद रिचर्ड होल्डेन ने कहा कि हमें आगे बढ़ने का पक्का भरोसा है।

सातवें अजूबे की अनदेखी

ताजमहल से गुम हो रहे हैं बेशकीमती पत्थर

राष्ट्रीय धरोहरें किसी देश की संस्कृति और पुरातन वास्तुकला की पहचान होती हैं। इसलिए इनकी सुरक्षा करना सरकार, प्रशासन और देशवासियों का परम कर्तव्य है। धरोहरें जितनी पुरानी होती हैं, उनकी सुरक्षा और रखरखाव की उतनी ही ज्यादा जरूरत होती है। लेकिन भारत में अनेक राष्ट्रीय धरोहरों की दुर्दशा पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिसके चलते उनका अस्तित्व खतरे में है। दुनिया का सातवां अजूबा ताजमहल भारत की एक अपनी अलग पहचान का प्रतीक है। लेकिन देश की इस खास धरोहर में से कीमती पत्थर निकलते जा रहे हैं। तहलका एसआईटी की विशेष रिपोर्ट :-

मोहब्बत की निशानी, बिल्डिंग ऑफ डिवाइन, दुनिया का सातवाँ अजूबा समेत और भी न जाने कितने ही नामों से दुनिया भर में ताजमहल की पहचान है। कहते हैं कि ताजमहल के जितने नाम हैं, उससे कहीं ज्यादा इसके रंग हैं। सुबह, दोपहर, शाम और रात में तो ये रंग बदलते ही हैं। लेकिन बादलों की रंगत बदलने से इसका बैकग्राउंड भी इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगाता है। बैकग्राउंड (पृष्ठभूमि) में बरसाती काली घटाएँ हों, तो ताज की सफेदी में और भी निखार आ जाता है। बैकग्राउंड शाम के वक्त जब हल्की सैफरन और लाल रंगत पर होता है, तो उस वक्त ताज की खूबसूरती को लफ्जों में बयां करना मुश्किल ही है।

ताज के दिन में एक नहीं कई-कई बार इस तरह से रंग बदलने की वजह को शायद बहुत कम ही लोग जानते होंगे। अगर आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) और सीनियर गाइड की मानें, तो इसके पीछे ताजमहल में लगे छोटे-छोटे; लेकिन बेशकीमती रंग-बिरंगे पत्थर हैं। कहने को तो ये पत्थर हैं; लेकिन असल में यह नीलम, पन्ना (हीरा), रूबी, अकीक (हकीक), मूंगा, फिरोजा और सीप आदि हैं। जानकारों का कहना है कि यह पत्थर मुख्य सफेद संगमरमर की इमारत में लगे हैं, तो उसके सामने बने रॉयल गेट में भी लगे हुए हैं। इसके अलावा भी और बहुत सारी ऐसी जगहें हैं, जहाँ इस तरह के पत्थर लगे हुए हैं और धूप के साथ-साथ चाँदनी रात में अपना असर मुख्य इमारत पर छोड़ते हैं। पहले शरद पूर्णिमा की रात ताज में मेला लगता था। चाँद की रोशनी में होने वाली चमकी को देखने के लिए लोग आते थे। लेकिन दुनिया भर में मशहूर भारत के इस ताज की चमक दिन-ब-दिन धूमिल होती जा रही है।

इसे लेकर सर्वोच्च न्यायालय की 11 जुलाई, 2018 की टिप्पणी काफी कड़ी थी- ‘आप ताज को बन्द कर सकते हैं। आप चाहें, तो इसे ध्वस्त कर सकते हैं। आप इससे दूर जा सकते हैं।’
इस तीखी टिप्पणी ने भारत के सबसे अधिक पसन्द किये जाने और सबसे अधिक देखे जाने वाले स्मारक के संरक्षण पर असामान्य बहस को हवा दी। यह सर्वोच्च न्यायालय के एक और न्यायाधीश थे, जिन्होंने इस मामले में एक और गंभीर मुद्दे की तरफ ध्यान आकर्षित किया। सितंबर, 2015 में जब न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ अपने परिवार के साथ ताजमहल देखने गये, तो उनकी नजर कुछ स्मारकों की तरफ गई, जिनकी तरफ काले धुएं के गुब्बार आ रहे थे। यह धुआँ ताजमहल और आगरा किले के बीच स्थित मुक्तिधाम श्मशान से निकल रहा था।

इसके बाद भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को लिखे एक पत्र में न्यायमूर्ति जोसेफ ने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप की माँग की। उन्होंने कहा कि या तो श्मशान को स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिए या शून्य कार्बन उत्सर्जन सुनिश्चित करने के लिए गीले स्क्रबर के साथ चिमनी स्थापित की जानी चाहिए। लेकिन श्मशान स्थल को स्थानांतरित करने के प्रयास सिरे नहीं चढ़े। यह तब भी नहीं हो सका था, जब डॉ. एस. वरदराजन समिति ने वायुमंडलीय पर्यावरणीय गुणवत्ता और ताजमहल के संरक्षण पर सन् 1994 में इसे हटाने का सुझाव दिया था। आगरा में चार आधिकारिक घाटों में से यह घाट सबसे लोकप्रिय है, जिसमें हर रोज करीब 60 शवों तक का अन्तिम संस्कार होता है, जिनमें से प्रत्येक के लिए करीब 300 किलो लकड़ी की आवश्यकता होती है।

वकील एम.सी. मेहता की 1980 के दशक में दायर एक जनहित याचिका के परिणामस्वरूप ताज के आसपास दूषित वायु को कम करने के लिए मथुरा तेल रिफाइनरियों के खिलाफ कड़े आदेश दिये गये थे। तबसे सर्वोच्च न्यायालय ने 10,400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को ताज ट्रिपेजियम जोन (टीटीजेड) यानी समलम्ब चतुर्भुज क्षेत्र घोषित करते हुए प्रदूषणकारी इकाइयों को बन्द करने या स्थानांतरित करने और ताजमहल को साफ करने के लिए कार्रवाई का निर्देश दिया था। मीडिया में प्रकाशित मेहता के एक बयान के मुताबिक, एक ताजा याचिका में उन्होंने खुलासा किया है- ‘ताज का रखरखाव चरमरा गया है। वहाँ इस्तेमाल मार्बल का रंग उतर रहा है। दरारें आ रही हैं। मीनारें झुकी हुई दिख रही हैं। सामग्री गिर रही है। झूमर आदि टूट रहे हैं। सीसीटीवी काम नहीं कर रहे हैं। आसपास की नालियां बंद हैं। अवैध अतिक्रमण हुए हैं और आसपास उद्योग और अन्य गतिविधियाँ पनप रही हैं। जबकि सूख रही यमुना ताज की नींव को खतरे में डाल रही है और हमलावर कीड़ों को भी बढ़ावा दे रही है। प्रदूषण अब भी वहाँ सबसे बड़ी समस्या है।’

वकील एम.सी. मेहता की यह बात सही है। क्योंकि ताजमहल ही नहीं, बल्कि इसके रॉयल गेट समेत कैम्पस के दूसरे हिस्सों से कीमती पत्थर गुम हो रहे हैं। यह बात हम नहीं, खुद एएसआई कह रहा है। आरटीआई के जवाब और पच्चीकारी (इनले वर्क) के लिए जारी होने वाली निविदा (टेंडर), एस्टीमेट (आकलन) इस बात की तस्दीक कर रहे हैं। अलग-अलग दो आरटीआई में मिले जवाब के मुताबिक, वित्त वर्ष 2015-16 से वित्त वर्ष 2018-19 यानी कोरोना-काल में हुई तालाबंदी से पहले तक हर साल ताजमहल में कीमती पत्थर गुम होने के बाद खाली जगहों को भरने के लिए लाखों रुपये खर्च किये गये हैं। लेकिन गुम होने वाले यानी दीवारों में से निकलने वाले कीमती पत्थरों के बारे में जब हमने आरटीआई में एएसआई से पूछा, तो विभाग के अफसरों ने उसका संतुष्टि पूर्ण जवाब नहीं दिया।

आरटीआई के सवाल

ताजमहल के किसी भी हिस्से से पत्थर निकलने और टूटकर गिरने के बाद एएसआई उन पत्थरों का क्या करता है?
ताजमहल के किसी भी हिस्से से पत्थर निकलने और टूटकर गिरने के बाद एएसआई ने किस-किस हिस्से के ऐसे कितने पत्थरों को सँभालकर रखा हुआ है और इस वक्त वो कहाँ हैं?
ताजमहल परिसर के किसी भी हिस्से में ऐसी कितनी घटनाएँ हुई हैं, जहाँ प्राकृतिक तरीके से पत्थर निकला हो, टूट गया हो और उसके बाद निकला या टूटा पत्थर विभाग को मौके से न मिला हो?
ताजमहल परिसर में ऐसी कितनी घटनाएँ सामने आयी हैं, जहाँ टूट-फूट के निशान से पता चलता हो कि पच्चीकारी (इनले वर्क) के पत्थर कोई निकालकर ले गया है?

एएसआई के जवाब

पत्थर टूटकर गिरने पर अगर अधिक क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो उसे हटा दिया जाता है। अगर काम के लायक होता है, तो उसे इस्तेमाल में ले लेते हैं। इस तरह के निकले पत्थरों की कोई गिनती नहीं है।
टूट-फूट का लेखा-जोखा नहीं : ताज में कब से पत्थरों का निकलना, झड़ना और गिरना शुरू हुआ है, इसका भी कोई लेखा-जोखा (रिकॉर्ड) एएसआई के पास नहीं है। सन् 2011 से 2021 तक पत्थर निकलने की कितनी घटनाएँ हो चुकी हैं? यह रिकॉर्ड भी विभाग में नहीं है। हर साल पच्चीकारी (इनले वर्क) के तहत पत्थर लगाने का काम किस संस्था से कराया जा रहा है, यह पूछने पर एएसआई ने बताया कि वो खुद इस काम को कराता है।

किस साल लगे कितने के पत्थर? : आरटीआई में जब एएसआई से यह पूछा गया कि सन् 2011 से 2021 के बीच कितने रुपये का किस-किस साल पत्थर लगवाने का काम कराया गया? तो एएसआई ने जानकारी दी कि सन् 2011 से 2021 के बीच सिर्फ चार बार इस तरह के पत्थर लगवाने का काम कराया गया है, जो इस प्रकार है :-
वित्त वर्ष 2018-19 में 50.92 लाख रुपये का काम हुआ। वित्त वर्ष 2017-18 में 42 लाख रुपये का काम हुआ। वित्त वर्ष 2016-17 में 20 लाख रुपये का काम हुआ। वित्त वर्ष 2015-16 में भी काम हुआ है; लेकिन आरटीआई में खर्च का आँकड़ा 12,141 रुपये बताया गया है। जबकि पच्चीकारी को देखते हुए यह आँकड़ा अधूरा मालूम होता है। इस बारे में जब केंद्रीय जनसूचना अधिकारी से पूछा गया, तो उन्होंने दी गयी जानकारी के अलावा और कुछ भी बताने से इनकार कर दिया।

रॉयल गेट से गुम हुए ज्यादा पत्थर : आरटीआई में मिली जानकारी के मुताबिक, ताजमहल के रॉयल गेट से सबसे ज्यादा पत्थर गायब हो रहे हैं। आरटीआई में दूसरी जगहों के बारे में एएसआई ने बताया नहीं है। पहली आरटीआई के मुताबिक, रॉयल गेट पर वित्त वर्ष 2015-16, वित्त वर्ष 2016-17 और वित्त वर्ष 2017-18 में तीन बार लाखों रुपये खर्च कर पत्थर लगवाने का काम कराया गया है। हालाँकि एएसआई द्वारा आरटीआई में इस खर्च को महज 12,141 रुपये बताना हजम नहीं होता, क्योंकि जो कीमती पत्थर गिरते हैं, उनकी जगह कोई आम पत्थर नहीं लगता।

खर्च छिपा रहा एएसआई : एएसआई, आगरा सर्किल से आरटीआई में मिले दो अलग-अलग जवाब को देखने पर पता चलता है कि पच्चीकारी पर खर्च हुई रकम के बारे में विभाग गलत जानकारी दे रहा है। जब दूसरी आरटीआई में वर्ष 2011 से वर्ष 2021 के बीच हुए पच्चीकारी के बारे में पूछा जाता है, तो उसके जवाब में सिर्फ एक साल यानी वित्त वर्ष 2018-19 के बारे में ही जानकारी दी जाती है। अब एएसआई पच्चीकारी की जानकारी को क्यों छुपा रहा है? क्यों दो आरटीआई में विभाग पच्चीकारी से सम्बन्धित सूचना अलग-अलग दे रहा है? इसके बारे में तो खुद एएसआई ही जवाब दे सकता है।

ताज में कौन-से कितने पत्थर?

मौलवी मोईनुद्दीन द्वारा सन् 1924 में यानी 98 साल पहले लिखी गयी एक किताब ‘दि ताज ऐंड इट्स एन्वायरमेंट’ (the taj and its environment) और इतिहासकार आर. नाथ द्वारा सन् 1970 में लिखी गयी किताब ‘दि इमोर्टल ताजमहल’ (the immortal taj mahal), जिसका अर्थ होता है- अविनाशी ताजमहल; की मानें तो ताजमहल बनवाने के दौरान उसमें 42 तरह के बेशकीमती पत्थर लगवाये गये थे। मौलवी मोईनुद्दीन की किताब में बताया गया है कि कहाँ से कितने पत्थर मँगवाकर ताजमहल में लगाये गये। किताब में दी गयी जानकारी को मानें तो, बगदाद से 540 हकीक पत्थर, तिब्बत से 670 फिरोजा पत्थर, 143 भारतीय मूँगे, 74 नीलम, 42 जवाहरात, 97 पुखराज (इन तीनों पत्थरों के आने की जानकारी नहीं है कि कहाँ से आये), बड़कसान (अफगानिस्तान) से 142 रूबी पत्थर, 625 हीरे और पन्ना पत्थर, ग्वालियर से 427 अबरी पत्थर, 52 गारनेट-गंगा पत्थर लाकर लगाये गये। इसके अलावा 1,00,000 (एक लाख) सीप भी लगायी गयी हैं। ताजमहल में बहुत सारी जगहों पर संग-ए-मूसा भी लगे हुए हैं और ये अक्सर दीवारों से गायब दिखते हैं।

मीडिया की खबरों को भी नकार रहा एएसआई

आरटीआई में एएसआई से जानकारी माँगी गयी थी कि सन् 2011 से लेकर सन् 2021 तक ताजमहल के किसी भी हिस्से में पत्थर निकलने और गिरकर टूटने की कितनी घटनाएँ हो चुकी हैं? इस आरटीआई के जवाब में एएसआई ने कहा है कि उसके पास इस तरह का कोई लेखा-जोखा नहीं है।
वहीं सन् 2015 और 2016 की चंद मीडिया रिपोर्ट्स ही बताती हैं कि इन दो वर्षों में ताजमहल से पत्थर निकलने की पाँच घटनाएँ हो चुकी थीं। इनमें से दो घटनाएँ तो ताज की मीनार में से ही पत्थर निकलने की हुई हैं। यहाँ से संग-ए-मूसा निकलकर फर्श पर गिर गया था। रॉयल गेट से भी पत्थर निकले थे। मीडिया ने इन खबरों को सार्वजनिक किया था। लेकिन एएसआई का कहना है कि उसके पास इनका कोई लेखा-जोखा नहीं है। संग-ए-मूसा ताज की मीनार में ही नहीं और दूसरे हिस्सों में भी दिखायी देते हैं। इस पत्थर का इस्तेमाल खासतौर पर उस जगह कोई आकर्षक बनाने के लिए किया जाता है। जैसे सफेद मार्बल की मीनारों में जगह-जगह संग-ए-मूसा की धारीदार पट्टी दी गयी हैं।

मीनार के बारे में भी दी गलत जानकारी

जानकारों और मीडिया रिपोर्ट की मानें, तो ताज की मीनारों से भी संग-ए-मूसा (पत्थर) निकलकर गिरते रहते हैं। मीनार को आकर्षक बनाने के लिए संग-ए-मूसा समेत तीन तरह के पत्थर लगाये गये हैं। वैसे पूरी मीनार सफेद मार्बल की बनी हुई है। पत्थर निकलने के बाद होने वाले पच्चीकारी की जानकारी के लिए 12 सितंबर, 2021 को एक आरटीआई एएसआई को भेजी गयी थी। नियमानुसार 30 दिन में आरटीआई का जवाब आवेदन करने वाले को मिल जाना चाहिए; लेकिन मीनार में हुई पच्चीकारी के बारे में जानकारी के लिए आरटीआई डालने के 38 दिन बाद भी एएसआई की ओर से जो जवाब दिया गया, वह गलत था। हैरानी की बात यह है कि जानकारी ताजमहल की मीनार के सम्बन्ध में माँगी गयी थी, जबकि एएसआई की ओर से जो सूचना भेजी गई, वह आगरा के किले की दीवारों के बारे में थी। इस बारे में जब पहली अपील का इस्तेमाल किया गया, तो अपीलीय अधिकारी ने जवाब दिया कि आपकी माँगी गयी सूचना आपको भेज दी गयी है। मतलब अधिकारी ने भी यह नहीं देखा कि भेजी गयी सूचना आरटीआई से सम्बन्धित है भी या नहीं?

निकले-टूटे पत्थरों को लगाने-रखने का नियम

ताजमहल में तैनात रहे एएसआई के एक अफसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया- ‘जब भी ताजमहल में से कोई पत्थर निकलता है, तो नियमों के मुताबिक उसकी जाँच करके यह देखा जाता है कि वह दोबारा से इस्तेमाल हो जाए। अगर पत्थर ज्यादा चटका और टूटा नहीं है, तो उसे दूसरी जगह पर इस्तेमाल कर लिया जाता है। अगर वह इस्तेमाल करने लायक नहीं होता है, तो उसे लिखा-पढ़ी करने के बाद ताजमहल के संग्रहालय (म्यूजियम) में भेज दिया जाता है। नियम तो यह भी है कि अगर ऐसे पत्थरों की संख्या ज्यादा है, तो एएसआई के द्वारा दूसरे संग्रहालयों को भी वो पत्थर दिये जा सकते हैं।’

इमारतों के पत्थरों की बढ़ती रहती है कीमत

गाइड एसोसिएशन के अध्यक्ष और सीनियर गाइड शम्सुद्दीन ने बताया- ‘पहली बात तो यह कि ताजमहल में बेहद कीमती पत्थर लगाये थे, जो मौजूदा वक्त के हिसाब से और भी ज्यादा कीमत के हो जाते हैं। साथ ही ये पत्थर 400 साल से ज्यादा पुराने भी हैं। इससे भी बड़ी बात यह है कि ताजमहल में लगे होने की वजह से इनकी वैल्यू (मूल्य व अहमियत) और बढ़ जाती है। निकला हुआ पत्थर ताजमहल का ही है, इसकी पहचान इस बात से भी हो जाती है कि जब ताज बनाने के दौरान जो कारीगर वहाँ काम कर रहे थे, उन्होंने उन पत्थरों को तराशने के दौरान उन पर अपनी निशानी छोड़ दी थी। ये निशानियाँ यह पहचान भी बताती हैं कि पत्थर ताजमहल से निकला हुआ है।’

पच्चीकारी के लिए है केवल एक कारीगर

पच्चीकारी करने वाले ताजगंज निवासी शालू की मानें, तो इमारती पच्चीकारी मतलब किसी इमारत में पच्चीकारी करना हो या फिर सजावटी वस्तु (डेकोरेटिव आइटम) लगानी हो, सभी के लिए कम-से-कम तीन कारीगारों की जरूरत तो पड़ेगी ही। क्योंकि किसी भी तरह की पच्चीकारी तीन वर्गों (कारीगरों) में बँटी होती है। इन कारीगरों में पहला पत्थर की कटिंग करने वाला, दूसरा उसे तराशने वाला और तीसरा उस पत्थर को इमारत के किसी फूल-पत्ती में फिक्स करने यानी उसे भरने वाला।
लेकिन एक आरटीआई के मुताबिक, एएसआई ने ताजमहल में होने वाली पच्चीकारी को देखते हुए सन् 2000 में पच्चीकारी के जानकार सिर्फ एक ही कर्मचारी की भर्ती की थी। अब इस एक कर्मचारी से एएसआई पच्चीकारी कैसे कराता होगा? यह तो वही बेहतर बता सकता है। हालाँकि अभी यह कर्मचारी भी पच्चीकारी छोड़कर ताजमहल में किसी दूसरे काम को अंजाम दे रहा है।

क्या कहते हैं एएसआई के अफसर?

ताजमहल से गुम हो रहे पत्थरों के बारे में जब एएसआई आगरा सर्किल के सुपरिटेंडेंट आर.के. पटेल से पूछा गया, तो उन्होंने कहा- ‘ताजमहल ही नहीं, ऐसी किसी भी इमारत में, जहाँ पच्चीकारी हुई है; वहाँ निकले हुए पत्थर को दोबारा से लगाने की कोशिश की जाती है। कई बार पत्थर निकलकर गिरने, चटकने की शिकायत मिलती है, या फिर उस पत्थर को फिक्स करने वाला मेटेरियल उन्हें छोड़ देता है, तो ऐसे में भी उसी पत्थर को दोबारा से वहाँ लगाने की कोशिश की जाती है। लेकिन अगर पत्थर वहाँ लगने लायक नहीं होता है, तो ही वहाँ दूसरा टुकड़ा (पीस) लगाया जाता है। या फिर जब एस्टीमेट (आकलन) बनता है, तो वहाँ उसे देख लिया जाता है। लेकिन ऐसे पत्थरों की संख्या बहुत-ही कम होती है।’

लेकिन जब बार-बार बचे हुए छोटे पत्थरों के बारे में पूछा गया, तो इस पर कोई सीधा, सटीक जवाब देने के बजाय आर.के. पटेल ने कहा- ‘किस सामग्री (मटेरियल) का या किस चीज का हम क्या करेंगे? यह हालात पर निर्भर करता है। इसके लिए हम अपने अनुभव का भी इस्तेमाल करते हैं कि किस चीज का कहाँ इस्तेमाल करेंगे? इसमें बहुत सारी कार्यप्रणाली (मैथडोलॉजी) हैं। ये कोई एक या दो नहीं होती हैं।’

आर.के. पटेल ने यह भी कहा कि हम निकले हुए पत्थरों का क्या करते हैं? इसकी जानकारी आरटीआई में दे चुके हैं। जबकि आरटीआई के तहत उन्होंने ऐसी कोई जानकारी नहीं दी है। आरटीआई में तो वह ऐसे निकले हुए पत्थरों का कोई लेखा-जोखा विभाग के पास होने से भी इनकार कर चुके हैं।
आखिर में एएसआई आगरा सर्किल के सुपरिटेंडेंट आर.के. पटेल ने इतना ही कहा कि किसी दिन आप मुआयना (विजिट) कीजिए और जो खास प्रश्न करेंगे, तो मैं उसका उत्तर दूँगा।

एएसआई के डायरेक्टर ऑफ कंजर्वेशन का जवाब

इस बारे में जब एएसआई के डायरेक्टर ऑफ कंजर्वेशन (संरक्षण निदेशक) और पीआरओ वसंत स्वर्णकार से बात की गयी, तो उन्होंने कहा- ‘निकले हुए पत्थर को कई तरीकों से रक्षित (प्रिजर्व) किया जाता है। इमारत से निकला जो पत्थर दोबारा से इस्तेमाल नहीं हो सकता है, उसे एएसआई के संग्रहालय में रख दिया जाता है। एएसआई की स्टोन टेस्टिंग लैब (शिला जाँच प्रयोगशाला) में भी भेज दिया जाता है। इतना ही नहीं कुछ पत्थर विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों (कॉलेजेज) और शिक्षण संस्थानों (इंस्टीट्यूट्स) को भी विद्यार्थियों के अध्यनन के लिए दे दिये जाते हैं।’

एएसआई द्वारा माँगे गये पत्थर

 196 पत्थर पीला टाइगर मार्बल।
 21 पत्थर पीला स्टार मार्बल।
 161 पत्थर ब्लैक स्टार मार्बल।
 213 पत्थर ब्लैक हॉफ स्टार मार्बल।
 318 पत्थर ब्लैक मार्बल।
 89 पत्थर टाइगर मार्बल, हॉफ सिंगाड़ा।
 32 पत्थर पीला हॉफ स्टार मार्बल।
 20,051 सीपियाँ।
(आकलन रिपोर्ट के मुताबिक, सभी रंग-बिरंगे पत्थरों की कीमत 600 रुपये प्रति टुकड़े (पीस) से लेकर 5,000 रुपये प्रति टुकड़ा तक है।)

घटनाएँ, जो दो साल में हुईं

 दिसम्बर, 2015 में ताजमहल की मीनार का पत्थर निकलकर गिर गया।
 अप्रैल, 2015 में ताजमहल के रॉयल से पत्थर निकलकर गिर गया था।
 मई, 2015 सरहिंदी बेगम के मकबरे से पत्थर गिरा।
 जून, 2015 को रॉयल गेट पर काले पत्थर टूटकर नीचे गिरे।
 जुलाई, 2016 को दक्षिण पश्चिमी मीनार से पत्थर नीचे गिरा।

फतेहपुर सीकरी की दरगाह से भी गुम हो रहे पत्थर

फतेहपुर सीकरी में हजरत शेख सलीम चिश्ती की दरगाह है। कहा जाता है कि यह बादशाह अकबर के गुरु थे। बुलंद दरवाजे में दाखिल होते ही सफेद संगमरमर से बनी शेख सलीम चिश्ती की दरगाह दिखाई दे जाती है। दरगाह में भी कीमती पत्थर और सीप का काम हुआ है।
आकर्षक चित्रकारी (पेंटिंग) भी दरगाह की दीवारों पर बनी हुई है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि दरगाह में लगे पत्थर भी गुम हो रहे हैं, जिनकी संख्या एक हजार से ज्यादा ही है। यहाँ तक की शेख सलीम चिश्ती की कब्र के ऊपर बनी एक छतरी पर से भी कुछ सीपियाँ भी गुम हो गयी हैं। गुम हुई सीपियों की संख्या भी हजारों में है।

कौन-कौन से पत्थर हो चुके गुम?

फतेहपुर सीकरी आने वाले आम पर्यटकों को शायद जल्दी पता भी नहीं चलता कि दरगाह परिसर में से रंग-बिरंगे पत्थर गुम हो रहे हैं। लेकिन दरगाह परिसर में काम करने के लिए एएसआई ने एक निविदा आकलन (टेंडर एस्टीमेट) जारी किया था। इस निविदा में बताया गया है कि कौन-सा काम होना है और किस पत्थर का इस्तेमाल करना है? इसी आकलन रिपोर्ट में रंग-बिरंगे पत्थरों का भी जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में पच्चीकारी के पत्थरों का जिक्र करते हुए बताया गया है कि कौन-से पत्थर कितने चाहिए?

50 से 70 लाख खर्च के बावजूद सीप गायब

एक आरटीआई के मुताबिक, एएसआई ने वित्त वर्ष 2019-20 और वित्त वर्ष 2020-21 में 50 लाख रुपये खर्च करके दरगाह परिसर में काम कराया है। 50 लाख रुपये से दरगाह की छत की मरम्मत के अतिरिक्त टूटे और कमजोर पत्थर बदले गये, चित्रकारी और पच्चीकारी भी करायी गयी।
बावजूद इसके कब्र के ऊपर लगी छतरी की छत और उसके स्तम्भ (पिलर) पर से सीपियाँ गायब हैं। दो पिलर तो ऐसे हैं, जहाँ अब नाम मात्र के लिए ही सीपियाँ बची हैं। दीवारों पर से रंगीन चित्रकारी उखड़ी हुई है।
हालाँकि सूत्रों का कहना है कि दरगाह परिसर में 50 नहीं, 70 लाख रुपये का काम हुआ है। गौरतलब है कि ताजमहल में हुई पच्चीकारी के मामले में भी एएसआई ने दो अलग-अलग आरटीआई में पूछने पर दो तरह के जवाब दिये थे।

ट्रस्ट ने खर्च पर लगायी रोक

दरगाह की हालत को देखकर पुणे की उत्तरा देवी ट्रस्ट (न्यास)ने एएसआई के पास एक प्रस्ताव भेजा था।
प्रस्ताव में कहा गया था कि हम (ट्रस्टी) दरगाह में काम कराने के लिए पैसा देना चाहते हैं। जिस पर एएसआई और ट्रस्ट के बीच कागजी खानापूर्ति पूरी होते ही ट्रस्ट ने पैसा देना शुरू कर दिया। सूत्रों की मानें, तो ट्रस्ट ने एक करोड़ रुपये से काम कराने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन एक आरटीआई के मुताबिक, दरगाह में सिर्फ 50 लाख रुपये का ही काम हो पाया है।

कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि संस्था 70 लाख रुपये का काम करा चुकी है; लेकिन इसके बाद काम करने के तरीके को देखते हुए ट्रस्ट ने अपने हाथ पीछे खींच लिए और 50 या 70 लाख रुपये (जो भी सही है) का काम कराकर आगरा से वापस चला गया।
इस बारे में जब पुणे स्थित ट्रस्ट के लोगों से बातचीत करने की कोशिश की गयी, तो उन्होंने यह कहकर टाल दिया कि हमने जितना काम कराना था, हम करा चुके। अब हम इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहते हैं। लेकिन ट्रस्ट के कुछ लोग अभी भी फतेहपुर सीकरी में रहकर करीब 550 लोगों को हर रोज खाना खिला रहे हैं।

राजस्थान में जल परियोजना पर राजनीति

ईस्टर्न राजस्थान कैनाल परियोजना को लेकर इन दिनों सियासत में गहमा-गहमी मची हुई हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कहना है- ‘हम प्रधानमंत्री मोदी को उनका वादा याद दिलाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने को कहा था; लेकिन अब वह अपने वादे से मुकर रहे हैं। हम कोई भीख नहीं माँग रहे हैं। यह हमारा अधिकार है।’

गहलोत ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और हमलावर होते हुए कहा कि इस परियोजना से राजस्थान के 13 ज़िलों में सिंचाई हो सकती है। उन्होंने इस मामले में केंद्र के इस तर्क को ग़लत बताया कि जल प्रदेश का मुद्दा है। उन्होंने कहा कि अगर केंद्र इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने से इनकार करता है, तो हम इसे अपने बूते पूरा करेंगे। सूत्रों की मानें, तो राजनीतिक रस्साकसी में इस परियोजना का काफ़ी मीठा पानी व्यर्थ बह रहा है।

उल्लेखनीय है कि चंबल नदी पर धौलपुर में केंद्रीय जल आयोग का रिवर गेज स्टेशन है। जहाँ नदी में बहकर जाने वाले पानी की मात्रा मापी जाती है। केंद्रीय जल आयोग के इस स्टेशन से प्राप्त 36 साल के आँकड़ों के अनुसार, रिवर गेज स्टेशन से हर साल औसतन 1,900 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी व्यर्थ बह जाता है। राज्य के स्वायत्त शासन मंत्री शान्ति धारीवाल का कहना है कि योजना से मात्र 3,500 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी ही उपयोग में लिया जाएगा। ईआरसीपी की डीपीआर मध्य प्रदेश-राजस्थान अंतरराज्यीय स्टेट कंट्रोल बोर्ड की सन् 2005 में आयोजित बैठक में लिये गये निर्णय के अनुसार तैयार की गयी है। इस निर्णय के अनुसार, राज्य किसी परियोजना के लिए अपने राज्य के कैचमेंट से प्राप्त 90 फ़ीसदी पानी एवं दूसरे राज्य के कैचमेंट से प्राप्त 10 फ़ीसदी पानी का उपयोग इस शर्त के साथ कर सकते हैं कि यदि परियोजना में आने वाले बाँध और बैराजों का डूब (तराई) क्षेत्र दूसरे राज्य सीमा में नहीं आता हो, तो ऐसे मामलों में राज्य की सहमति आवश्यक नहीं है। राज्य सरकार अपने संसाधनों से इस परियोजना पर कार्य करेगी, तो इसमें बहुत ज़्यादा समय लगेगा; क्योंकि जब केंद्र सरकार परियोजना को 90 अनुपात 10 के आधार पर राष्ट्रीय महत्त्व की परियोजना का दर्जा देगी, तब भी यह 10 साल में पूरी होगी। लम्बे समय से इस परियोजना को राष्ट्रीय महत्त्व की परियोजना घोषित करने की माँग केंद्र सरकार से कर रहा है। लेकिन इस पर अभी तक कोई फैसला केंद्र ने नहीं लिया। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री ने जयपुर एवं अजमेर से 7 जुलाई, 2018 एवं 6 अक्टूबर, 2018 को आयोजित रैलियों से ईआरसीपी को राष्ट्रीय महत्त्व की परियोजना घोषित करने का वादा किया था; लेकिन अभी तक निभाया नहीं गया है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।

मंत्री धारीवाल ने कहा कि इस प्रोजेक्ट में अभी तक राज्य का पैसा लग रहा है। पानी राजस्थान के हिस्से का है, तो केंद्र सरकार परियोजना का कार्य रोकने के लिए कैसे कह सकता है? उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार अपने इस रवैये से प्रदेश की जनता को पेयजल से और किसानों को सिंचाई के पानी से वंचित करने का प्रयास क्यों कर रही है? इस तरह के रोड़े अटकाने की वजह से 13 ज़िलों में पेयजल और सिंचाई का काम प्रभावित हो रहा है। इसके अलावा सतही जल की उपलब्धता पर आश्रित जल जीवन मिशन की कई ज़िलों में सफलता दर भी प्रभावित हो रही है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। ऐसे में केंद्र के इस क़दम से तो किसानों की आय भी ख़त्म हो जाएगी।

बता दें कि इस योजना से हाड़ोती के चारों ज़िले जुड़े हुए हैं। यहाँ दीगोद तहसील में योजना के तहत नवनेरा बाँध का निर्माण हो रहा है। इस योजना को राष्ट्रीय महत्त्व का दर्जा नहीं मिलने पर कांग्रेस नेता खुलकर बयान दे रहे हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस मुद्दे को लेकर 13 ज़िलों के कांग्रेस नेताओं के साथ बैठक भी कर चुके हैं।
स्वायत्त शासन मंत्री शान्ति धारीवाल ने कहा कि ईआरसीपी राज्य की महत्त्वपूर्ण योजना है, जिसमें केंद्रीय जल आयोग की वर्ष 2010 की गाइड लाइन की पालना करते हुए केंद्र सरकार के उपक्रम वेप्कॉस ने 37,200 करोड़ रुपये की डीपीआर तैयार की थी। इसके बाद भी केंद्र सरकार ने इसमें रोड़े अटकाये। धारीवाल ने कहा कि केंद्र सरकार योजना में सिंचाई का प्रावधान हटाने पर अड़ी है। हम किसानों का नुक़सान नहीं होने देंगे। इस परियोजना से सिंचाई सुविधा के प्रावधान को नहीं हटाया जा सकता। केंद्र जब तक राष्ट्रीय महत्त्व का दर्जा नहीं दे देती, राज्य सरकार अपने सीमित संसाधनों से इसका कार्य जारी रखेगी। उन्होंने कहा कि यह परियोजना 13 ज़िलों की जीवन-रेखा साबित होगी। इसके पूरा होने से पेयजल उपलब्धता के साथ 2,00,000 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार होगा। इस परियोजना से बारां, कोटा, बूँदी, झालावाड़ सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर, भरतपुर, दौसा, अलवर, जयपुर, अजमेर एवं टोंक के निवासियों की पेयजल आवश्यकता पूरी होगी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने नवनेरा-गलवा, बिशनपुर-ईसरदा, तिक, महलपुर बैराज, रामगढ़ बैराज के 9,600 करोड़ रुपये के काम हाथ में लेने की बजट में घोषणा की थी। इसका कार्य वर्ष 2022-23 में शुरू कर 2027 तक पूरा किया जाएगा।

दिलचस्प बात है कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्री शेखावत इस योजना में ख़ामियाँ निकाल रहे हैं। शेखावत इसकी डीपीआर को ही ग़लत बताते हैं। कोटा प्रवास के दौरान कहा था कि पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना की डीपीआर दिशा-निर्देशों के अनुसार नहीं बनी। इस पर मध्य प्रदेश की भी आपत्ति है। इसलिए इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय महत्त्व की योजना का दर्जा नहीं मिला। यदि दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रस्ताव केंद्र को मिलता तो कोई दिक़्क़त नहीं आती। केंद्र सरकार चाहती है कि यह योजना समय पर पूरी हो; लेकिन राज्य के निर्धारित प्रारूप में प्रस्ताव नहीं मिला।

उधर भाजपा विधायक संदीप शर्मा ने कहा केंद्र सरकार हर घर तथा जल पहुँचाने की योजना पर कार्य कर रही है। राजस्थान सरकार ने इस योजना में सहयोग नहीं किया, इस कारण प्रगति प्रभावित हुई। ईआरसीपी की कार्य योजना केंद्रीय जल आयोग की दिशा-निर्देशों के अनुसार बनाने में राज्य सरकार को क्या दि$क्क़त है। राज्य सरकार को इस मुद्दे पर राजनीति करने की बजाय हल निकालने में केंद्र सरकार का सहयोग करना चाहिए। इस मुद्दे के बहाने राज्य सरकार अपनी विफलताएँ छिपा रही है। 13 ज़िले के लोग राज्य सरकार के बहकावे में नहीं आएँगे।

धार्मिक भावनाएँ आहत करने वाले मामले में जुबैर को मिली जमानत

दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने शुक्रवार ऑल्ट न्यूज के को-फाउंडर और फैक्ट-चेकर मोहम्मद ज़ुबैर को दिल्ली के धार्मिक भावनाएँ आहत करने से जुड़े मामले में ज़मानत दे दी है। उन्हें 50,000 रूपये के मुचलके पर जमानत मिली है।

इस मामले में न्यायालय ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक दलों को आलोचना के लिए तैयार रहना चाहिए। आलोचना अच्छे लोकतंत्र के लिए बहुत ज़रूरी है। सिर्फ़ किसी राजनीतिक दल की आलोचना भर से धारा 153ए और 295ए लगाना ठीक नहीं।

बता दें यह मामला साल 2018 में एक ट्वीट से धार्मिक भावनाएँ आहत करने से जुड़ा है। वैसे, जमानत के बावजूद ज़ुबैर को अभी जेल में रहना होगा, क्योंकि वह हाथरस केस में अभी 27 तारीख़ तक न्यायिक हिरासत में हैं।

दो दिन पहले ही जुबैर ने सर्वोच्च न्यायालय से यूपी पुलिस के उनके खिलाफ दर्ज छह मामलों को रद्द करने का अनुरोध किया था। उन्होंने कहा है कि मामलों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल को वापस लिया जाए।

पटना के एसएसपी ने की पीएफआई से आरएसएस की तुलना, मचा बवाल

बिहार के पटना में एसएसपी के चरमपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से आरएसएस की तुलना के मामले ने तूल पकड़ लिया है। इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी आरजेडी आमने-सामने डट गए हैं।

भाजपा और उसके समर्थक जहाँ एसएसपी मानवजीत सिंह ढिल्लों के खिलाफ खड़े हो गए हैं, वहीं पुलिस अधिकारी को विपक्ष और अन्य से जबरदस्त समर्थन मिल रहा है। बता दें एसएसपी ढिल्लों ने कहा था कि ‘जिस तरह आरएसएस की शाखा में शारीरिक प्रशिक्षण दिया जाता है, वैसे ही पीएफआई में भी फीजिकल ट्रेनिंग दी जा रही थी।’

यह मामला तब सुर्ख़ियों में आया जब बिहार पुलिस ने गुरूवार को संदिग्ध आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ करते हुए चरमपंथी संगठन पीएफआई से जुड़े तीन लोगों को गिरफ्तार किया। इसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में पटना के एसएसपी मानवजीत सिंह ढिल्लों ने कहा कि आरएसएस और पीएफआई की ट्रेनिंग में समानताएं हैं।

ढिल्लों ने कहा – ‘जिस तरह आरएसएस की शाखा में शारीरिक प्रशिक्षण दिया जाता है, वैसे ही पीएफआई में भी फिजिकल ट्रेनिंग दी जा रही थी। जिस तरह आरएसएस अपनी शाखा का आयोजन करते हैं जिसमें लाठी चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है, वैसे ही पीएफआई शारीरिक प्रशिक्षण के नाम पर युवाओं को ट्रेनिंग दे रहे थे और अपने एजेंडा और प्रोपेगेंडा के तहत युवाओं का ब्रेनवॉश कर रहे थे।’

एसएसपी ने पात्र सम्मेलन में कहा – ‘हम लोग इस संगठन को काफी समय से फॉलो कर रहे थे। हमारे अलावा कई और सुरक्षा एजेंसियों के पास इनको लेकर इनपुट थे। प्रधानमंत्री के दौरे को लेकर भी हमें कई इनपुट मिले थे, जिनके आधार पर हमने छापेमारी की और इन लोगों को गिरफ्तार किया। हमारी सोशल मीडिया की मॉनिटरिंग टीम इस पर नजर बनाए हुई थी।’

इस मसले पर राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने कहा – ‘एसएसपी मानवजीत सिंह ढिल्लो ने कुछ भी गलत नहीं कहा है।’ सत्तारूढ़ जदयु की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

भाजपा नेता वरिष्ठ मंत्री गिरिराज सिंह ने एक ट्वीट में कहा – ‘आरएसएस मतलब राष्ट्र प्रेम..आरएसएस मतलब राष्ट्र कल्याण…आरएसएस मतलब देश सेवा…आरएसएस मतलब जनकल्याण…आरएसएस मतलब मानवता और सौहार्द्र…आरएसएस मतलब संविधान के हिमायती। देश और दुनिया का हर समझदार व्यक्ति इस बात को जानता है, सिवाय कुछ एजेंडावादियों और तुष्टिकरण के पैरोकारों के।’

फिलहाल एसएसपी ढिल्लों के मुताबिक फुलवारी थाने में इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई है। इसमें से एक आरोपी का भाई सिमी का एक्टिव सदस्य था, जो बैन किया जा चुका है। वो जेल भी जा चुका है। एसएसपी ने बताया कि हमें कुछ ऐसे भी डॉक्यूमेंट मिले हैं, जिसमें भारत की संप्रभुता और अखंडता के विरुद्ध भी कई बातें लिखी गई थी।

ताजमहल और सरकारी उदासीनता!

नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने चार शताब्दियों से अधिक समय से प्रेम से प्रेरित वास्तुकला की उत्कृष्ट कृति के रूप में विद्यमान ताजमहल को ‘समय के गाल पर एक आँसू’ के रूप में वर्णित किया है। हाल ही में इसके रखरखाव और आधिकारिक उदासीनता पर चिन्ता जतायी गयी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को सौंपी गयी आईआईटी कानपुर की एक रिपोर्ट में पाया गया कि हवा में पीएम-2.5 कणों की मात्रा कोयले के जलने के कारण बढ़ रही है; क्योंकि इसको जाँचने के लिए ताजमहल में रखे गये फिल्टर पेपर में जले हुए कण और प्लास्टिक, काग़ज़ की राख और ठोस अपशिष्ट दिखायी दे रहे हैं। ताज के आसपास ‘अम्लीय वर्षा’ देखे जाने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने मथुरा और वृंदावन जैसे शहरों में औद्योगिक इकाइयों के विस्तार पर रोक लगाने का आदेश दिया था।

प्रशासन की सरासर उदासीनता के लिए अधिकारियों को आड़े हाथ लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने ताजमहल और पेरिस के एफिल टॉवर के बीच समानांतर रेखा खींची और कहा कि यह मक़बरा शायद अधिक सुन्दर था। लेकिन एफिल टॉवर, जो एक टीवी टॉवर की तरह दिखता है; को देखने हर साल 80 मिलियन (आठ करोड़) आगंतुक आते हैं, जो कि ताजमहल की तुलना में आठ गुना अधिक हैं।

इस अंक में ‘तहलका’ की कवर स्टोरी ताजमहल के लापता हुए क़ीमती पत्थरों के बारे में है। ‘तहलका’ पत्रकारिता के मूल में अडिग विश्वसनीयता और सच्चाई रही है और स्टोरी सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत एकत्र की गयी जानकारी पर निर्भर करती है। आरटीआई के जवाब से पुष्टि होती है कि ताजमहल के क़ीमती पत्थर न केवल शाही द्वार से, बल्कि स्मारक के अन्य हिस्सों से भी $गायब हैं। आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि बुरी तरह क्षतिग्रस्त टूटे पत्थरों को स्थायी रूप से हटा दिया जाता है। हालाँकि लापता पत्थरों की संख्या के बारे में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के आरटीआई जवाब में कहा गया है- ‘हमारे पास ऐसे पत्थरों का कोई रिकॉर्ड नहीं है। एएसआई के पास सन् 2011 से सन् 2021 के बीच ताजमहल से पत्थरों के लापता होने की घटनाओं की संख्या का भी कोई रिकॉर्ड नहीं है।’

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि मुगलों की रत्नों, क़ीमती धातुओं और सजावटी कलाओं के लिए एक अतृप्त इच्छा रही। जानकारी से पता चलता है कि ताजमहल के बाहरी निर्माण में 28 प्रकार के दुर्लभ पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था। स्मारक में इस्तेमाल किये राजस्थान, पंजाब, तिब्बत, चीन, श्रीलंका, अरब और अफ़ग़ानिस्तान से लाये क़ीमती पत्थरों और हीरों के लापता होने पर सवालिया निशान लग गया है। आगंतुकों का मानना है कि इन रंगीन पत्थरों की वजह से ताजमहल दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है।

‘तहलका’ की कहानी कुछ अनुत्तरित सवालों के जवाब देने की कोशिश के साथ-साथ ताजमहल में लगे संगमरमर के रंग बदलने, दरारों, मीनारों के झुकाव के संकेत, सामग्री का गिरना, झूमर टूटने, क्षेत्र के चारों ओर नालियों के जाम होने, अवैध अतिक्रमण और उद्योगों के पनपने के अलावा ताज की नींव को ख़तरे में डाल रही यमुना और हमलावर कीड़ों के बढऩे की तरफ़ भी ध्यान दिलाती है। समय आ गया है कि सरकार ताजमहल के लिए दृष्टि दस्तावेज़ (विजन डाक्यूमेंट) तैयार करे।

प्रकृति का कहर

दिल दहला गयी अमरनाथ में बादल फटने की घटना, पहाड़ों पर ही फटते हैं बादल

अमरनाथ में 8 जुलाई को बादल फटने से निचली गुफा में आयी बाढ़ में दर्ज़नों लोगों की जान चली गयी और कई लापता हो गये। पहाड़ों में बादल फटने की घटनाएँ नयी बात नहीं है, क्योंकि हाल के दशकों में पर्यावरण से खिलवाड़ हुआ है। इसी वजह ने तबाही के रास्ते ही खोले हैं। पिछले साल उत्तराखण्ड के चमोली में बादल फटा था। सन् 2013 में केदारनाथ में बादल फटने से 5,700 से ज़्यादा लोगों की जान चली गयी थी। हिमाचल, जम्मू-कश्मीर में भी बादल फटने बाढ़ की घटनाओं में सैकड़ों लोग जान गँवा चुके हैं।

याद करें, तो देश में बादल फटने की पहली घटना सन् 1970 में हुई थी। तब हिमाचल में मंडी ज़िले के बरोट में एक मिनट में 38.10 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गयी थी, जो सामान्य से बहुत ज़्यादा थी। उसके बाद हुई दर्ज़नों छोटी-बड़ी घटनाओं में हज़ारों लोग काल के गाल में समा चुके हैं। अब अमरनाथ में गुफा के दर्शन के लिए यात्रा पर निकले श्रद्धालुओं पर प्रकृति कहर बनकर बरसी। अमरनाथ गुफा क्षेत्र में बादल फटने की घटना हुई, जिसके बाद क्षेत्र में बाढ़ आ गयी और लंगर और श्रद्धालुओं के विश्राम के लिए बने तम्बुओं के भीतर बैठे लोगों को अपने साथ बहा ले गयी। घटना चूँकि शाम को हुई, जल्दी ही अँधेरा होने के कारण राहत कार्यों में दिक़्क़त आयी। हालाँकि एनडीआरएफ, आईटीबीपी और सेना के जवानों ने रात भर काम करके क़रीब 15,000 लोगों को सुरक्षित जगह और बेस कैम्प पंजतरणी पहुँचाया।

ख़बर लिखे जाने तक बाढ़ से मौत का शिकार हुए क़रीब 16 लोगों के शव मलवे से निकाले जा चुके थे। क़रीब 41 लोग लापता हैं, जिनकी तलाश जारी है। स्थिति को देखते हुए अमरनाथ यात्रा को स्थिति बहाल होने तक स्थगित करना पड़ा।
ऐसी घटना पहली बार नहीं हुई है। इससे पहले भी बाबा बर्फ़ानी के श्रद्धालुओं ने प्रकृति की मार झेली है। कमोबेश हर साल किसी-न-किसी कारण से कई श्रद्धालुओं की मौत यात्रा के दौरान होती है। बड़ी घटना की बात करें, तो 53 साल पहले (1969 में) अमरनाथ यात्रा के दौरान बादल फटने से क़रीब 100 श्रद्धालुओं की मौत हो गयी थी।

क्यों फटते हैं बादल?
वैसे पर्वतीय क्षेत्रों में बादल फटना अब आम बात हो गयी है। बादल तब फटता है, जब पहाड़ की तलहटी में मौज़ूद गर्म हवा पहाड़ों से टकराकर ऊपर उठती है। इससे वहाँ वह बादलों से टकराती है।

इस प्रक्रिया में ज़्यादा नमी वाले बहुत बादल एक जगह जमा हो जाते हैं और कुछ ही समय में मूसलाधार बारिश हो जाती है, जो ऊँचाई से नीचे आते-आते भीषण बाढ़ में बदल जाती है। विज्ञानियों के मुताबिक, सामान्य तौर पर बादल फटने की घटनाएँ धरती की सतह से 12 से 15 किलोमीटर की ऊँचाई पर होती हैं।
दरअसल जब बादल भारी मात्रा में पानी से भरे होते हैं और उनके रास्ते में बाधा आ जाती है, तो वे अचानक फट जाते हैं। इस स्थिति में कई लाख लीटर पानी एक साथ बहने लगता है। प्रति घंटा क़रीब 100 मिलीमीटर बारिश हो जाती है। पानी के तेज़ बहाव में भारी मात्रा में गाद और चट्टानें बहने लगती हैं। लिहाज़ा जो भी जगह इसके रास्ते में आती है, वहाँ तबाही मच जाती है। लोग, पशु, ज़मीन पर रहने वाले जीव-जन्तु, घर, रास्ते, और अन्य निर्माण तेज़ पानी के साथ बह जाते हैं।

बहुत-से लोगों को पता नहीं होगा कि आसमान पर जो निचाई वाले यानी गरजने वाले काले और रूई जैसे बादल दिखते हैं, वही ज़्यादा फटते हैं। बादलों की इस तबाही से बचने के लिए अभी तक कोई अलार्म या उपकरण नहीं बना है, जो पहले ही इसकी जानकारी दे सके। दरअसल हरित पट्टी के लगातार घटने से भी पर्यावरण को नुक़सान पहुँच रहा है, जो आपदा का कारण बनता है। हर साल बिजली परियोजनाओं के निर्माण के लिए हज़ारों पेड़ों की बलि ले ली जाती है। शहरों में कंक्रीट का जंगल खड़ा होना तापमान को बढ़ाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में खेती के लिए जंगलों पर बड़ा दबाव रहता है।
फटने वाले बादलों को प्रेग्नेंट क्लाउड भी कहा जाता है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, बादल फटने को फ्लैश फ्लड या क्लाउड बस्र्ट भी कहते हैं। अमरनाथ की घटना के बावजूद श्रद्धालुओं में उत्साह दिखा। घटना की रात भी जम्मू बेस कैम्प से तीर्थयात्रियों का जत्था कश्मीर के बालटाल और पहलगाम बेस कैम्प के लिए रवाना हुआ। जब यह घटना हुई, उस समय गुफा के पास 10,000 से 15,000 श्रद्धालु मौज़ूद थे। तेज़ बहाव के साथ आये पानी से श्रद्धालुओं के लिए लगाये गये क़रीब 25 टेंट और तीन लंगर बह गये। पूरे इला$के में तेज़ी से पानी भर गया और कई लोग इसकी चपेट में आ गये।

बादल फटने की बड़ी घटनाएँ
हाल के दशकों में सबसे बड़ी घटना जून, 2013 में हुई, जब केदारनाथ में 5,700 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गयी थी। फरवरी, 2021 में भी चमोली में 83 लोगों की मौत हुई और कई लापता हो गये। मई, 2022 को टिहरी ज़िले में हज़ारों मकान तबाह हो गये और 100 से ज़्यादा पशुओं की मौत हो गयी। अगस्त, 2015 में हिमाचल के धर्मपुर में चार लोगों की मौत हो गयी। जुलाई, 2015 में कश्मीर में एक हफ़्ते के भीतर आठ बार बादल फटने की घटनाएँ हुईं, जिसमें 10 लोगों और सैकड़ों मवेशियों की मौत हो गयी। सन् 2014 में जम्मू-कश्मीर में बादल फटने से आयी बाढ़ के बाद श्रीनगर की सड़कों पर शव पानी पर तैरते दिखायी दिये। इस बाढ़ में 5,000 करोड़ रुपये के राजस्व का नुक़सान हुआ। हिमाचल की किन्नौर-शिमला सीमा पर अगस्त, 2007 में बदल फटने से आयी बाढ़ में 30 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गयी।