प्रकृति का कहर

दिल दहला गयी अमरनाथ में बादल फटने की घटना, पहाड़ों पर ही फटते हैं बादल

अमरनाथ में 8 जुलाई को बादल फटने से निचली गुफा में आयी बाढ़ में दर्ज़नों लोगों की जान चली गयी और कई लापता हो गये। पहाड़ों में बादल फटने की घटनाएँ नयी बात नहीं है, क्योंकि हाल के दशकों में पर्यावरण से खिलवाड़ हुआ है। इसी वजह ने तबाही के रास्ते ही खोले हैं। पिछले साल उत्तराखण्ड के चमोली में बादल फटा था। सन् 2013 में केदारनाथ में बादल फटने से 5,700 से ज़्यादा लोगों की जान चली गयी थी। हिमाचल, जम्मू-कश्मीर में भी बादल फटने बाढ़ की घटनाओं में सैकड़ों लोग जान गँवा चुके हैं।

याद करें, तो देश में बादल फटने की पहली घटना सन् 1970 में हुई थी। तब हिमाचल में मंडी ज़िले के बरोट में एक मिनट में 38.10 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गयी थी, जो सामान्य से बहुत ज़्यादा थी। उसके बाद हुई दर्ज़नों छोटी-बड़ी घटनाओं में हज़ारों लोग काल के गाल में समा चुके हैं। अब अमरनाथ में गुफा के दर्शन के लिए यात्रा पर निकले श्रद्धालुओं पर प्रकृति कहर बनकर बरसी। अमरनाथ गुफा क्षेत्र में बादल फटने की घटना हुई, जिसके बाद क्षेत्र में बाढ़ आ गयी और लंगर और श्रद्धालुओं के विश्राम के लिए बने तम्बुओं के भीतर बैठे लोगों को अपने साथ बहा ले गयी। घटना चूँकि शाम को हुई, जल्दी ही अँधेरा होने के कारण राहत कार्यों में दिक़्क़त आयी। हालाँकि एनडीआरएफ, आईटीबीपी और सेना के जवानों ने रात भर काम करके क़रीब 15,000 लोगों को सुरक्षित जगह और बेस कैम्प पंजतरणी पहुँचाया।

ख़बर लिखे जाने तक बाढ़ से मौत का शिकार हुए क़रीब 16 लोगों के शव मलवे से निकाले जा चुके थे। क़रीब 41 लोग लापता हैं, जिनकी तलाश जारी है। स्थिति को देखते हुए अमरनाथ यात्रा को स्थिति बहाल होने तक स्थगित करना पड़ा।
ऐसी घटना पहली बार नहीं हुई है। इससे पहले भी बाबा बर्फ़ानी के श्रद्धालुओं ने प्रकृति की मार झेली है। कमोबेश हर साल किसी-न-किसी कारण से कई श्रद्धालुओं की मौत यात्रा के दौरान होती है। बड़ी घटना की बात करें, तो 53 साल पहले (1969 में) अमरनाथ यात्रा के दौरान बादल फटने से क़रीब 100 श्रद्धालुओं की मौत हो गयी थी।

क्यों फटते हैं बादल?
वैसे पर्वतीय क्षेत्रों में बादल फटना अब आम बात हो गयी है। बादल तब फटता है, जब पहाड़ की तलहटी में मौज़ूद गर्म हवा पहाड़ों से टकराकर ऊपर उठती है। इससे वहाँ वह बादलों से टकराती है।

इस प्रक्रिया में ज़्यादा नमी वाले बहुत बादल एक जगह जमा हो जाते हैं और कुछ ही समय में मूसलाधार बारिश हो जाती है, जो ऊँचाई से नीचे आते-आते भीषण बाढ़ में बदल जाती है। विज्ञानियों के मुताबिक, सामान्य तौर पर बादल फटने की घटनाएँ धरती की सतह से 12 से 15 किलोमीटर की ऊँचाई पर होती हैं।
दरअसल जब बादल भारी मात्रा में पानी से भरे होते हैं और उनके रास्ते में बाधा आ जाती है, तो वे अचानक फट जाते हैं। इस स्थिति में कई लाख लीटर पानी एक साथ बहने लगता है। प्रति घंटा क़रीब 100 मिलीमीटर बारिश हो जाती है। पानी के तेज़ बहाव में भारी मात्रा में गाद और चट्टानें बहने लगती हैं। लिहाज़ा जो भी जगह इसके रास्ते में आती है, वहाँ तबाही मच जाती है। लोग, पशु, ज़मीन पर रहने वाले जीव-जन्तु, घर, रास्ते, और अन्य निर्माण तेज़ पानी के साथ बह जाते हैं।

बहुत-से लोगों को पता नहीं होगा कि आसमान पर जो निचाई वाले यानी गरजने वाले काले और रूई जैसे बादल दिखते हैं, वही ज़्यादा फटते हैं। बादलों की इस तबाही से बचने के लिए अभी तक कोई अलार्म या उपकरण नहीं बना है, जो पहले ही इसकी जानकारी दे सके। दरअसल हरित पट्टी के लगातार घटने से भी पर्यावरण को नुक़सान पहुँच रहा है, जो आपदा का कारण बनता है। हर साल बिजली परियोजनाओं के निर्माण के लिए हज़ारों पेड़ों की बलि ले ली जाती है। शहरों में कंक्रीट का जंगल खड़ा होना तापमान को बढ़ाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में खेती के लिए जंगलों पर बड़ा दबाव रहता है।
फटने वाले बादलों को प्रेग्नेंट क्लाउड भी कहा जाता है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, बादल फटने को फ्लैश फ्लड या क्लाउड बस्र्ट भी कहते हैं। अमरनाथ की घटना के बावजूद श्रद्धालुओं में उत्साह दिखा। घटना की रात भी जम्मू बेस कैम्प से तीर्थयात्रियों का जत्था कश्मीर के बालटाल और पहलगाम बेस कैम्प के लिए रवाना हुआ। जब यह घटना हुई, उस समय गुफा के पास 10,000 से 15,000 श्रद्धालु मौज़ूद थे। तेज़ बहाव के साथ आये पानी से श्रद्धालुओं के लिए लगाये गये क़रीब 25 टेंट और तीन लंगर बह गये। पूरे इला$के में तेज़ी से पानी भर गया और कई लोग इसकी चपेट में आ गये।

बादल फटने की बड़ी घटनाएँ
हाल के दशकों में सबसे बड़ी घटना जून, 2013 में हुई, जब केदारनाथ में 5,700 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गयी थी। फरवरी, 2021 में भी चमोली में 83 लोगों की मौत हुई और कई लापता हो गये। मई, 2022 को टिहरी ज़िले में हज़ारों मकान तबाह हो गये और 100 से ज़्यादा पशुओं की मौत हो गयी। अगस्त, 2015 में हिमाचल के धर्मपुर में चार लोगों की मौत हो गयी। जुलाई, 2015 में कश्मीर में एक हफ़्ते के भीतर आठ बार बादल फटने की घटनाएँ हुईं, जिसमें 10 लोगों और सैकड़ों मवेशियों की मौत हो गयी। सन् 2014 में जम्मू-कश्मीर में बादल फटने से आयी बाढ़ के बाद श्रीनगर की सड़कों पर शव पानी पर तैरते दिखायी दिये। इस बाढ़ में 5,000 करोड़ रुपये के राजस्व का नुक़सान हुआ। हिमाचल की किन्नौर-शिमला सीमा पर अगस्त, 2007 में बदल फटने से आयी बाढ़ में 30 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गयी।