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नेशनल हेराल्ड अखबार के दफ्तर समेत अन्य दस जगहो पर ईडी की छापेमारी

नेशनल हेराल्ड अखबार से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से पूछताछ के कुछ दिनों बाद मंगलवार को नेशनल हेराल्ड दफ्तर समेत लगभग दस ठिकानों पर छापेमारी की है।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से पहले र्इडी ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी से पांच दिनों तक पूछताछ की थी। ईडी द्वारा सोनिया गांधी से की गई पूछताछ में करीब 100 प्रश्न पूछे गए थे, और राहुल गांधी से करीब 150 प्रश्न पूछे गए थे।

हालांकि सोनिया गांधी और राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के दौरान कांग्रेस ने देश भर में विरोध प्रदर्शन किया था। और आरोप लगाया था कि चुनावों में राजनीतिक लाभ पाने के लिए व विपक्षी दलों के नेताओं को परेशान करने के लिए मोदी सरकार प्रवर्तन निदेशालय का इस्तेमाल कर रही है।

आपको बता दें, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा नेशनल हेराल्ड अखबार चलाने वाली कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) की स्थापना की गयी थी।

प्रवर्तन निदेशालय का कहना है कि, यंग इंडियन ने एजेएल की संपत्ति में 800 करोड़ रुपये से भी अधिक हेरफेर किया है। और आयकर विभाग के अनुसार इसे यंग इंडियन के शेयर धारकों सोनिया गांधी व राहुल गांधी की संपत्ति माना जाना चाहिए। जिसके लिए उन्हें करों की भुगतान भी करना चाहिए।

मंकीपॉक्स: बेंगलुरु एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशनों पर स्क्रीनिंग शुरू, देश में कुल 6 मामले

भारत में मंकीपॉक्स के अब तक छह मामले आये हैं जिनमें एक नाइजीरियाई नागरिक शामिल है। मंकीपॉक्स को लेकर देश में कर्नाटक पहला राज्य बन गया है जहाँ राजधानी बेंगलुरु में एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशनों पर स्क्रीनिंग शुरू करने का आदेश जारी हुआ है। वहां कन्फर्म मंकीपॉक्स को 21 दिन की आइसोलेशन में रखने का भी फैसला किया गया है।

बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) ने एक आदेश में बाकायदा दिशा-निर्देश जारी किये हैं जिनमें कहा गया है कि क्षेत्रीय स्वास्थ्य अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि स्क्रीनिंग टीमों को उनके संबंधित अधिकार क्षेत्र में हवाई अड्डों, बस स्टैंड और रेलवे स्टेशनों पर तैनात किया जाए। समुदाय के सभी संदिग्ध मामलों की अस्पताल आधारित निगरानी और लक्षित निगरानी दोनों के माध्यम से जांच और परीक्षण किया जाए।

इस बीच भारत में मंकीपॉक्स के अब तक छह मामले सामने आये हैं। दिल्ली में सोमवार को 35 साल के एक नाइजीरियाई नागरिक में संक्रमण की पुष्टि की गयी है।नाइजीरियाई व्यक्ति को सरकारी एलएनजेपी अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जो राष्ट्रीय राजधानी में इस संक्रमण के इलाज के लिए नोडल अस्पताल है।

मंकीपॉक्स से केरल में पहली मौत हुई है। राजस्थान में भी सोमवार मंकीपॉक्स का पहला संदिग्ध मरीज मिला है जिसे बुखार, शरीर पर दाने की शिकायत के बाद एक सरकारी अस्पताल में भर्ती किया गया है।

केंद्र ने स्थिति पर नजर रखने के लिए एक कार्यबल गठित किया है। इथियोपिया का एक नागरिक जो बेंगलुरु आया है, उसका मंकीपॉक्स का परीक्षण किया गया हालांकि, वह चिकन पॉक्स से पीड़ित पाया गया है। इस नागरिक को एक निजी अस्पताल में अलग वार्ड में रखा गया है।

अमेरिका ने ड्रोन से अल-कायदा चीफ अल-जवाहिरी को काबुल में मार गिराया

एक सर्जन से दुनिया का सबसे खूंखार आतंकी बना अल-कायदा प्रमुख अयमान अल-जवाहिरी अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में मार गिराया गया है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक प्रसारण में इसकी घोषणा की। अमेरिका पर 9/11 के हमले का उसे मास्टरमाइंड माना जाता था। जवाहिरी पर अमेरिका ने 25 मिलियन डॉलर का इनाम रखा था।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने आधिकारिक हैंडल से ट्वीट किया – ‘ये हमला अमेरिकी लोगों की रक्षा करने की हमारी क्षमता और संकल्प को प्रदर्शित करता है। चाहे कितना वक्त लगे, हम आपको खोज लेंगे।’

व्हाइट हाउस की तरफ से कहा गया – ‘अफगानिस्तान में एक ड्रोन हमले में अलकायदा प्रमुख को निशाना बनाया गया। उस पर नजर रखी जा रही थी।’ अलकायदा का नेता बनने से पहले अयमान अल-जवाहिरी मिस्र का एक सर्जन था। वर्तमान में वह दुनिया के सबसे वांछित आतंकियों में एक था।

अमेरिका पर हुए 11 सितंबर, 2001 के हमलों का उसे मास्टरमाइंड माना जाता था जिसमें 3 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी थी। जवाहिरी पर अमेरिका ने 25 मिलियन डॉलर का इनाम रखा था। जवाहिरी का खात्मा पाकिस्तान के एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद 11 साल बाद हुआ है। उसे भी अमेरिका के सील कमांडो ने मारा था।

अमेरिकी सेना के अगस्त, 2021 में अफगानिस्तान छोड़ने के बाद यह काबुल में अल-कायदा पर अमेरिका का पहला ड्रोन हमला है। अमेरिकी प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पत्रकारों से कहा – ‘जवाहिरी कई साल से छिपा था। उसका पता लगाने और उसे मारने का अभियान आतंकवाद रोधी और खुफिया समुदाय द्वारा सावधानीपूर्वक किया जा रहा था, जिसका परिणाम आज सामने आ गया है।’

अधिकारी ने कहा – ‘कई साल से अमेरिकी सरकार को जवाहिरी के नेटवर्क के बारे में पता चल रहा था और उस पर एजेंसी की नजर थी। अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद यहां अल कायदा की उपस्थिति के संकेत मिलने लगे थे। इसी साल अमेरिकी अधिकारियों ने पाया कि जवाहिरी का परिवार, जिसमें उसकी पत्नी, उसकी बेटी और उसके बच्चे काबुल में एक सुरक्षित घर में रह रहे थे। बाद में यहीं से जवाहिरी की पहचान की गई। इसके बाद पक्का हो चुका
व्हाइट हाउस का ट्वीट –
President Biden
@POTUS
United States government official
The United States continues to demonstrate our resolve and our capacity to defend the American people against those who seek to do us harm. Tonight we made clear : No matter how long it takes.
No matter where you try to hide. We will find you.

बेबसी की दास्तान: दार्जिलिंग से दिल्ली तक फैला है मानव तस्करी का जाल

‘तहलका’ की खोज से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल से लेकर नेपाल तक के बच्चों और किशोरों की देश के विभिन्न हिस्सों में कैसे तस्करी की जाती है। समाज की इस बेहद कड़वी सच्चाई को देखकर रूह काँप जाती है। सरकारों और प्रशासन की नाक तले नाबालिग़ों की खुली ख़रीद-फ़रोख़्त का इतना संगठित और विस्तृत धंधा अचम्भित करने वाला है। इस धंधे में बेबस नाबालिग़ों को पशुओं की तरह इस्तेमाल किया जाता है। उन बेचारों को तो यह भी पता नहीं होता कि जिस काम के बहाने चंद रुपये का लालच देकर उन्हें ले जाया जा रहा है, उसमें उनकी जान भी जा सकती है। लेकिन सामाजिक और आर्थिक बेबसी के शिकार ये लोग इस जाल में फँसकर मूक दास बन जाते हैं। तहलका एसआईटी की विस्तृत रिपोर्ट :-

‘यह मौत का कारण बन सकता है? यह निंदनीय है और जोखिम से भरा है। लेकिन फिर भी मैं नशीली दवाओं के परीक्षण के लिए पाँच नशा करने वालों की व्यवस्था कर सकता हूँ। दरअसल वे किसी काम के नहीं हैं और यहाँ तक कि उनके परिवारों ने उन्हें छोड़ भी दिया है। लेकिन मैं उन्हें यह नहीं बताऊँगा कि उनका इस्तेमाल दिल्ली में दवा परीक्षण के लिए किया जाएगा। इसके बजाय मैं उन्हें बताऊँगा कि उन्हें दिल्ली में 20,000 रुपये प्रति माह के तनख़्वाह वाली नौकरी मिलेगी। साथ ही आपके और मेरे बीच इन पाँच लोगों की आपूर्ति के लिए कोई काग़ज़ी कार्रवाई नहीं होगी। …और उनकी आपूर्ति के बाद न तो मैं तुम्हें जानता हूँ, न ही तुम मुझे जानते हो। चूँकि यह एक ग़ैर-क़ानूनी कार्य है, इसलिए मुझे इस कार्य के लिए पर्याप्त राशि की आवश्यकता है। आपको पाँच लोगों के लिए 2,00,000 रुपये देने होंगे।’ यह एक संजय मंडल नाम के व्यक्ति के शब्द हैं। संजय सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल का एक मानव तस्कर है।

संजय ने ‘तहलका’ को बताया कि वह दिल्ली में एक दवा फर्म द्वारा ड्रग ट्रायल से गुज़रने के लिए पाँच बेरोज़गार नशेबाज़ों का प्रबन्ध कैसे करेगा, जिन्हें उनके परिवारों ने छोड़ दिया है। संजय के मुताबिक, यह सब उन पाँच लोगों की सहमति के बिना होगा, जिन्हें पता भी नहीं होगा कि उन पर ड्रग ट्रायल किया जाएगा। उन्हें बस इतना पता होगा कि उन्हें दिल्ली में 20,000 रुपये प्रतिमाह की नौकरी मिलेगी। संजय का कहना है- ‘नौकरी का लालच उन्हें दिल्ली जाने के लिए मजबूर करेगा।’

संजय मंडल पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग स्थित बाग़डोगरा के रहने वाला है। वह एक टूर और ट्रैवल एजेंसी में कैब ड्राइवर के रूप में काम करता है। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने ख़ुद को एक ग्राहक के रूप में पेश किया, जिन्होंने दिल्ली में दवा परीक्षण और कई अन्य कार्यों के लिए कई नाबालिग़ों और आदमियों की ज़रूरत संजय को बतायी। रिपोर्टर ने संजय से सिलीगुड़ी में मिलकर मुलाक़ात की। यह मुलाक़ात एक अन्य टैक्सी चालक (तस्कर भी) गोपाल के ज़रिये हुई। संजय मंडल से मिलने पर ‘तहलका’ रिपोर्टर ने संजय से कहा कि हमें दिल्ली के लिए निर्माण और घरेलू काम समेत विभिन्न कामों के लिए मज़दूरों की ज़रूरत है। उससे कहा गया कि अधिकांश लोग, जिसमें लड़कियाँ भी शामिल होंगी; कम उम्र के होने चाहिए।

मंडल ने हमें बताया कि अभी तक उसने दिल्ली को कोई मज़दूर नहीं दिया है। लेकिन गंगटोक (सिक्किम) में उसके द्वारा सप्लाई किये गये छ: लडक़े एक होटल में काम करते हैं। संजय ने यह भी ख़ुलासा किया कि उसने अपने गृह क्षेत्र सिलीगुड़ी में श्रमिकों की आपूर्ति की थी।

रिपोर्टर : अभी तक दिल्ली में दिया आपने?
संजय : नहीं, दिल्ली में नहीं दिया। इधर अभी गंगटोक मैं छ: लडक़ा कर रहा है।
रिपोर्टर : आपने दिया है?
संजय : होटल में काम कर रहा है।
रिपोर्टर : होटल में, और कहाँ दिया है?
संजय : और इधर लोकल में रहता है।

मुलाक़ात के दौरान हमने संजय से कहा कि हमें दिल्ली में घरेलू काम के लिए नाबालिग़ लड़कियों की ज़रूरत है। संजय मान गया और हमसे कहा कि वह हमें 12, 14 और 15 साल की चार नाबालिग़ लड़कियाँ मुहैया कराएगा।
रिपोर्टर : लड़कियों की क्या उम्र बतायी आपने?
संजय : वो सर! 14 साल, 12 साल, 15 साल।
रिपोर्टर : कितनी लड़कियाँ हैं, जो हमारे साथ जाएँगी?
संजय : चार।
रिपोर्टर : जो दिल्ली जाएँगी न?
संजय : हाँ।
रिपोर्टर : जिनको तुम भेजोगे?
संजय : हाँ।
रिपोर्टर : घर का काम तो कर लेगी न, जैसा कहेंगे?
संजय : भारी काम तो नहीं? उम्र छोटा है। घर के काम, जैसे- झाड़ू है, पोंछा है।
रिपोर्टर : हर जगह लड़कियों को आप छोड़ आते हो या वो ही लेकर जाते हैं?
संजय : कहीं लोकल हुआ, तो छोड़ आते हैं। गंगटोक हुआ, तो जैसे मेरे पास इनोवा है। मैं ही लेकर चला जाता हूँ।
रिपोर्टर : हाँ, तो बस फिर आप ही लेकर जाना।

इसके बाद संजय मंडल ने हमें बताया कि वह नाबालिग़ कामगारों की आपूर्ति के लिए कितना चार्ज करेगा।
रिपोर्टर : आपका अभी तक का रेट क्या है, एक बच्चे का?
संजय : मेरा क्या महीने का 2,000 रुपये दीजिएगा।
रिपोर्टर : हर महीने 2,000?
संजय : जी।
रिपोर्टर : जैसे हमने 10 बच्चे लिए, तो महीने के 20,000 रुपये और बच्चों की तनख़्वाह (वेतन) अलग?

संजय अब बच्चों को काम पर भेजने में शामिल जोखिम के बारे में बताता है, ताकि वह सेवाओं के लिए माँग की जाने वाली राशि का औचित्य साबित कर सके।
संजय : ये सब काम के लिए भेजेंगे, ये सब पूरा रिस्क (जोखिम) मेरे पर रहता है। एक भी बच्चे के साथ कुछ हो गया तो मेरा…।
रिपोर्टर : नहीं-नहीं। …अभी तक आपने जो बच्चे भेजे हैं, वो सारा जोखिम आप पर रहा है?
संजय : हाँ।
रिपोर्टर : उनके साथ कुछ हुआ तो नहीं?
संजय : नहीं।

संजय ने अब हमारे लिए नाबालिग़ों को दिल्ली भेजने की अपनी योजना का ख़ुलासा किया। उसने कहा कि वह पहले लडक़ों को हमारे साथ दिल्ली भेजेगा। लडक़ों को नये परिवेश में ढलने के बाद ही लड़कियों को भेजा जाएगा।
संजय : ये आपको जो लेडीज था, चार जुगाड़ हुआ ठीक है। लेकिन हमारा नौ लडक़ा भी जा रहा है पहले लॉट में…, ठीक है।
रिपोर्टर : हमारे साथ?
संजय : आप लेकर जाएँगे साथ में?
रिपोर्टर : नहीं-नहीं; आप किसको भेजने की बात कर रहे हो? हमें या किसी और को? हमें देने की बात कर रहे हो?
संजय : जी।
रिपोर्टर : ठीक है बताएँ?
संजय : नौ लडक़ा जो जा रहा है, पहले लॉट (खेप) में। इनको 10 दिन काम करने दीजिए। वहाँ का हालत-सिचुएशन बताएगा, तो चार लेडीज और उनके साथ चार-पाँच लडक़ा और जाएगा।
रिपोर्टर : और बच्चे कितने जा रहे हैं?
संजय : अभी बच्चे जो जा रहे हैं, नौ बच्चे जा रहे हैं।
रिपोर्टर : कितनी उम्र के?
संजय : 20 के ऊपर नहीं हैं। सारा 20 के नीचे के हैं। और सबसे कम 14 साल।
रिपोर्टर : हमें दिखवा दोगे एक बार?
संजय : अभी दो-चार लडक़ा साइट पर काम कर रहा है। देखना चाहे, तो देख सकता है।
रिपोर्टर : अभी हमें सबसे कम उम्र के बच्चे जो दे रहे हैं आप, वो 14 साल के हैं?
संजय : जी।
रिपोर्टर : कितने हैं, वो 14 साल के?
संजय : दो लडक़े हैं। बाक़ी सब उसी के हैं, 14, 15, 18…20 के, ऊपर का नहीं है कोई।

हमें निर्माण और घरेलू काम के लिए लड़कियों और लडक़ों के रूप में नाबालिग़ बच्चे देने की बात करने के बाद संजय मंडल ने अब हमें बताया कि वह दिल्ली में ड्रग ट्रायल के लिए मज़दूरों का प्रबंधन कैसे करेगा।
रिपोर्टर : दवा (फार्मास्युटिकल) कम्पनी ने ट्रायल करना है। दवा कम्पनी को उसके लिए मज़दूर चाहिए।
संजय : जोखिम होता है।
रिपोर्टर : जोखिम तो होता है, पूरा होता है।
संजय : मौत तो नहीं हो जाती?
रिपोर्टर : अब वो तो दवा कम्पनी बताएगी। हम कैसे कह
सकते हैं।
संजय : इसके लिए भी आदमी देना पड़ेगा?
रिपोर्टर : आदमी-औरत चाहिए। जो दवाइयाँ दवा कम्पनी बनाती है, उसके लिए भी मज़दूर चाहिए। दवा का ट्रायल करना है।
संजय : ऐसा जानकर कोई जाना चाहेगा? जैसे आप मेरे को बताते हो। उसे बताकर काम नहीं किया जा सकता।
रिपोर्टर : अगर नहीं बताकर करना चाहते हैं, तो नहीं बताकर करते हैं?
संजय : जो भी है, आपके मेरे बीच में साफ़ होना चाहिए।
रिपोर्टर : मैंने तो क्लियर (स्पष्ट) कर दिया।
संजय : एक दो के साथ बोलोगे, तो दो चार लडक़ा राज़ी न हो तो? उसमें उसको दूसरा काम बोलकर कर सकते हैं। इस टाइप में लडक़ा हैं थोड़ा आवारा टाइप। घर से कोई लेना-देना नहीं है। है, ऐसा लडक़ा भी है न! गार्जियन (अभिभावक) उसको भाव नहीं देता है। थोड़ा आवारा टाइप का लडक़ा है। सर! ऐसा लडक़ा कोई काम का नहीं है। कहीं कोई काम में लग जाएँगे वो ही ठीक है…, इस प्रकार का लडक़ा को थोड़ा पैसे का लालाच-वालच देने से काम हो सकता है। …ये बात सीक्रेट ही रहे सर!
रिपोर्टर : तुम्हारे-हमारे बीच में रहे।
संजय : ये बहुत बड़ा कांड (स्कैंडल) है।
रिपोर्टर : हम नहीं बताएँगे।

क्योंकि इससे मौत भी हो सकती है। इसके बावजूद उन्होंने ड्रग ट्रायल के लिए हमें मज़दूर भी मुहैया कराने पर सहमति जतायी; लेकिन कुछ पूर्व शर्तों के साथ। संजय ने ख़ुलासा किया कि वह पाँच युवा लडक़ों को जानता है, जो नौकरी के लिए नशे के आदी हैं।
संजय : इसके लिए पाँच लडक़ा मिल जाएगा। ऐसा लडक़ा चलेगा, जो नशेड़ी (ड्रग एडिक्ट) हो?
रिपोर्टर : चल जाएगा।
संजय : ऐसा लडक़ा बहुत है। जो सच बात है, थोड़ा ड्रग एडिक्ट है। उन लोगों को थोड़ा पैसे का लालच देने से कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाएगा।
रिपोर्टर : ठीक है।

यह पूछे जाने पर कि वह पाँच नशा करने वालों को क्या नौकरी का प्रस्ताव देगा? संजय ने कहा कि वह उन्हें दिल्ली के एक बार में नौकरी की पेशकश करेगा।
रिपोर्टर : तो उसे क्या काम बताओगे?
संजय : बार-बूर का काम।
रिपोर्टर : बार का?
संजय : बार में दारू देने का।

संजय ने आगे ख़ुलासा किया कि वह पाँच नशा करने वालों के अभिभावकों को यह नहीं बताएगा कि वह उनके लडक़ों को दवा परीक्षण के लिए दिल्ली भेज रहा है। न ही उनके और हमारे बीच पाँचों युवकों की आपूर्ति के लिए कोई काग़ज़ी कार्रवाई होगी।
रिपोर्टर : जो दवा के परीक्षण में जाएँगे, उनका कोई हमारे साथ काग़ज़ी समझौता नहीं होगा?
संजय : नहीं होगा सर! मैं उनको भेजूँगा इस तरह कि उनके अभिभावक को न पता चले कि मैंने उनको भेजा है।

संजय के मुताबिक, वह सभी पाँचों सदस्यों को इस बारे में अँधेरे में रखेगा कि उन्हें दिल्ली क्यों भेजा जा रहा है?
रिपोर्टर : उनको तुम बताओगे नहीं कि उन पर दवा का ट्रायल (परीक्षण) होगा?
संजय : नहीं, बताने से नहीं भी जा सकता है।

संजय ने ‘तहलका’ से कहा कि वह दिल्ली भेजे जा रहे पाँच नशेडिय़ों से ड्रग ट्रायल की बात छिपाएगा, और उन्हें बताएगा कि उन्हें 20,000 प्रतिमाह वेतन के साथ नौकरी मिलेगी।
रिपोर्टर : उनका पैसा बताओ कितना लोगे?
संजय : उसको सैलरी बोलकर भेजना पड़ेगा।
रिपोर्टर : कितनी सैलरी?
संजय : उसे अच्छा सैलरी भेजना पड़ेगा। जब वो नशा करता है, चार-पाँच सौ तो वो फूँक ही देता है।
रिपोर्टर : कितनी सैलरी बताओ?
संजय : 20,000 बोलकर भेजा जाएगा।
रिपोर्टर : महीने का?

पाँच लडक़ों को ड्रग ट्रायल के लिए दिल्ली भेजने के लिए संजय ने अब अपने लिए एक बड़ी रक़म की माँग की।
रिपोर्टर : और आप कितना लोगे?
संजय : इसका तो एकदम क्लियर कट बात है। इसका तो आप ख़ुद सोचकर दीजिए। इसमें बहुत बड़ा जोखिम है।
रिपोर्टर : पैसे बताओ यार!
संजय : सेटिंग करके भेजना है। …सारा मेरी गारंटी है। कैसे हैंडल करके भेजना है पाँच लडक़ों को। क्या करना है उनको। …ख़र्चा-पानी। वो नशा करता है। …वो भी उसे ख़रीद कर दे देंगे। ये ग़द्दार काम है सर! इसमें मोटा अमाउंट दीजिए।
रिपोर्टर : कितना चाहिए, बताओ?
संजय : उसको तो जो 20,000 वेतन मिल जाएगा।
रिपोर्टर : 2,000?
संजय : 2,000 तो असली काम का है।
रिपोर्टर : कितना?
संजय : लाख हम्म…?
रिपोर्टर : दो लाख (2,00,000) पाँच लडक़ों का?
संजय : मैं मैनेज करके भेजूँगा।

संजय मंडल के बाद ‘तहलका’ ने नक्सलबाड़ी, सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल के एक अन्य तस्कर रंजीत टोपो से मुलाक़ात की। हमने रंजीत से कहा कि हमें सिलीगुड़ी, कोलकाता और दिल्ली के लिए 100-150 मज़दूरों की ज़रूरत है। नक़ली ग्राहक बनकर हमने रंजीत से कहा कि हमें अपने निर्माण कार्य और दिल्ली में हुक्का बार के लिए नाबालिग़ लड़कियों और लडक़ों की ज़रूरत है। रंजीत हमारे निर्माण स्थल और हुक्का बार के लिए लड़कियों सहित 25-30 नाबालिग़ बच्चों की आपूर्ति करने के लिए सहमत हो गया।
रिपोर्टर : एक बात बताओ, इसमें बच्चे कितने करवा दोगे लेबर (मज़दूर) के?
रंजीत : बच्चे?
रिपोर्टर : जेंट्स-लेडीज 100-150 लेबर में कितने करवा दोगे बच्चे? …16 साल से कम?
रंजीत : जब बच्चे जाना शुरू करेंगे न, …तभी। मोटा-मोटा 25-30 बच्चे करा देंगे।
रिपोर्टर : 25-30 बच्चे आप करवा दोगे?
रंजीत : हाँ।
रिपोर्टर : लडक़े-लड़कियाँ, दोनों 16 साल से कम?
रंजीत : जी।
रिपोर्टर : इसमें सिलीगुड़ी के होंगे बच्चे या नेपाल के होंगे?
रंजीत : सिलीगुड़ी के होंगे। नेपाल के भी होंगे।
रिपोर्टर : नेपाल के होंगे, ठीक है करवा दो। लडक़े-लड़कियाँ, …दोनों 16 साल से कम?
रंजीत : हम्म।
रिपोर्टर : 20 कह रहे हो न? 20 बच्चे करवा दो।
रंजीत : हाँ।

रंजीत टोपो ने अब समझाया कि कैसे वह चाय बाग़ानों में दिहाड़ी मज़दूरों को क़र्ज़ देकर बँधुआ मज़दूर बनाता है।
रंजीत : मान लीजिए किसी मज़दूर को पैसे की ज़रूरत लगी। वो अरेंज (व्यवस्था) नहीं कर पा रहे हैं। ठीक है दो-तीन महीने बाद अरेंज करेंगे। उसको 20,000 रुपये दे दिया। पाँच परसेंट (फ़ीसदी) के हिसाब से, चला ले घर को मेरे पैसे से…। उसके तीन महीने बाद या चार महीने बाद वो शादी वग़ैरह में चलाकर लोन दे दे।
रिपोर्टर : तब तक वो आपका…?
रंजीत : ब्याज (इंटरेस्ट) देगा।
रिपोर्टर : तब तक वो आपके खेत में काम करेगा। चाय बा$गान में काम करेगा। उससे पहले वो जा नहीं सकता है। ये होता है न तरीक़ा?
रंजीत : हाँ।

रंजीत टोपो ने ‘तहलका’ के सामने ख़ुलासा किया कि कैसे उसने बिल्डर से अधिक पैसा लिया और बेंगलूरु में मज़दूरों को कम भुगतान किया, जहाँ उसने 2012-13 में निर्माण स्थल के लिए श्रमिकों की आपूर्ति की थी।
रिपोर्टर : बेंगलूरु में कितना लिया था आपने?
रंजीत : सर! वो तो कमीशन था। वो लोगों का जितना पेमेंट होता था न सर! 400 का अरेंज किये थे वहाँ। 500 का अरेंज किये थे वहाँ। मान लीजिये 300 का हम देते थे, 200 का हम लेते थे।
रिपोर्टर : जैसे उनको 500 मिलता है।
रंजीत : हम यहाँ से बोलकर गये थे कि वहाँ दिहाड़ी 300 रुपये है। लेकिन हम वहाँ से 500 उठाते थे।
रिपोर्टर : अच्छा, आप मज़दूर को बोलकर लेकर गये थे कि आपको 500 रुपये मिलेंगे। मिलता था 300 रुपये?
रंजीत : नहीं, बोलकर नहीं गये थे हम। यहाँ बोल दिये कि वहाँ आपको 300 रुपये दिलाएँगे। उस समय दिहाड़ी (डेली वेजेज) भी कम देते थे। 200 रुपये था।
रिपोर्टर : लेकिन वो आपको 500 रुपये देता था न?
रंजीत : जी।
रिपोर्टर : 300 आप लेबर को देते थे न! 200 रुपये अपने पास रखते थे ?
रंजीत : हाँ।

रंजीत हमें नेपाल से मज़दूर देने को तैयार हो गया। 50-50 के अनुपात में। आधे नेपाल से और आधे सिलीगुड़ी से।
रिपोर्टर : वहाँ (नेपाल) के कितने मज़दूर दिलवा दोगे?
रंजीत : नेपाल का मान लीजिए ज़्यादा तो इधर का ही होगा। 50-50 कर लीजिए।
रिपोर्टर : 50-50; सिलीगुड़ी के 50 मज़दूर होंगे? 50 नेपाल के मज़दूर होंगे? चलिए ठीक है।
रंजीत : हम्म।

रंजीत ने अब हमें बताया कि वह हमसे लेबर सप्लाई (मज़दूर आपूर्ति) के लिए प्रति व्यक्ति 2,000 रुपये वसूल करेगा।
रंजीत : जैसे आज मान लीजिए 10 आदमी भेज दिये। कमीशन पा गये।
रिपोर्टर : मतलब आप कह रहे हैं, 10 को भेज दिया। 10 का कमीशन आप ले लोगे? कितना होगा?
रंजीत : जैसे पकड़ लीजिए एक आदमी का 2,000 रुपये।
रिपोर्टर : एक आदमी का 2,000 रुपये, कमीशन आपका लेबर (देने) का?
रंजीत : हाँ।

अब हम तीसरे तस्कर गोपाल से पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में मिले। गोपाल टैक्सी भी चलाता है। एक ग्राहक के रूप में हमने गोपाल से दिल्ली-एनसीआर में हमारे हुक्का बार के लिए 12, 13, 14, 15 साल आयु वर्ग के नाबालिग़ बच्चों की आपूर्ति करने की माँग की। गोपाल हमारी माँग को पूरा करने के लिए तैयार हो गया।
रिपोर्टर : आपने काम सुन ही लिया हमारा। एक तो हुक्का बार है दिल्ली-एनसीआर में। हुक्का होता है न, हुक्का जानते होंगे? तंबाकू वग़ैरह भरनी है बच्चों ने। गेस्ट को सप्लाई करना है।
गोपाल : अलग-अलग टाइप का लडक़ा लोग चाहिए? पहाड़ी नेपाल का मिलेगा।
रिपोर्टर : नेपाली मिल जाएगा न?
गोपाल : हाँ-हाँ; बार में काम करने के लिए मिल जाएगा।
रिपोर्टर : बार-वार में काम करने के लिए?
गोपाल : बार?
रिपोर्टर : मतलब हुक्का बार में काम करने के लिए बच्चे
मिल जाएँगे?
गोपाल : मिल जाएँगे।

गोपाल ने कहा कि वह हमें लेबर वर्क के लिए 50-60 बच्चों की आपूर्ति कर सकता है।
रिपोर्टर : टोटल कितने बच्चे सप्लाई कर सकते हैं आप?
गोपाल : 50-60 पकड़ लीजिए।
रिपोर्टर : 50-60 पक्का गारंटी दे रहे हो आप?
गोपाल : हाँ।
रिपोर्टर : एक बच्चे का वो ही, 500 रुपये दिन का।
गोपाल ने ख़ुलासा किया कि वह हमें केवल 12, 13, 14 और 15 वर्ष की आयु के नाबालिग़ बच्चे देगा।
रिपोर्टर : लेकिन हमें वही चाहिए, छोटे बच्चे।
गोपाल : हाँ।
रिपोर्टर : 12, 13, 14, 15 साल के?
गोपाल : मिल जाएँगे।
रिपोर्टर : हैं?
गोपाल : मिल जाएँगे।
रिपोर्टर : पक्का, फाइनल समझें फिर हम?
गोपाल : हाँ।

‘तहलका’ द्वारा उजागर किये गये उपरोक्त तीन चरित्र संकेत करते हैं कि भारत में मानव तस्करी एक गम्भीर समस्या है। वाणिज्यिक और यौन शोषण के उद्देश्य से पूरे भारत में लोगों का बेशर्मी और अवैध रूप से अवैध व्यापार किया जाता है और उन्हें जबरन / बँधुआ मज़दूरी में फँसाया जाता है। भारत में विभिन्न कारणों से पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की तस्करी की जाती है। व्यावसायिक या यौन शोषण के उद्देश्य से देश के भीतर महिलाओं और लड़कियों की तस्करी की जाती है और कभी-कभी उन्हें जबरन शादी में शामिल किया जाता है। श्रम के उद्देश्य से पुरुषों और लडक़ों की तस्करी की जाती है। बच्चों के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से को कारख़ाने के श्रमिकों, घरेलू नौकरों, भिखारियों और कृषि श्रमिकों के रूप में जबरन इस्तेमाल किया जाता है, और यहाँ तक कि कुछ आतंकवादी और विद्रोही गुट उन्हें सशस्त्र लड़ाकों के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं।
नेपाली बच्चों को भी विभिन्न क्षेत्रों में जबरन मज़दूरी के लिए भारत लाया जाता है। भारतीय महिलाओं को वाणिज्यिक और यौन शोषण के लिए मध्य पूर्व में तस्करी कर ले जाया जाता है। भारतीय निवासी जो हर साल स्वेच्छा से मध्य पूर्व और यूरोप में घरेलू नौकरों के रूप में काम करने के लिए और कम कुशल नौकरियों के लिए प्रवास करते हैं, कभी-कभी तस्करी के जाल में फँस जाते हैं। ऐसे मामलों में श्रमिकों को धोखाधड़ी के माध्यम से भर्ती किया गया हो सकता है, जो उन्हें सीधे ऋण बंधन (दास बनने) सहित मजबूर श्रम की स्थिति में ले जाता है।
आज के समय में उपयोग और शिक्षा दोनों में प्रौद्योगिकी में प्रगति के कारण तस्करी ऑनलाइन हो रही है। पहले के समय में यह इंसानों के माध्यम से पैसे के लिए या फिर डर के कारण होता था। इसके साथ ही लोगों ने बँधुआ मज़दूर या उच्च प्रमुखों के दास होने के लिए सहमति व्यक्त की। हमारी वर्तमान पीढ़ी में यह उन लोगों की सहमति के बिना होता है, जिन्हें पीडि़त माना जाता है।

जबलपुर के अस्पताल में आग लगने से मरीजों सहित 10 लोगों की मौत

मध्य प्रदेश के जबलपुर में एक अस्पताल में आग लग जाने से 10 लोगों की मौत हो गयी है। यह एक निजी अस्पताल है जिसमें इस घटना में कई लोग गंभीर रूप से झुलस कर घायल हुए हैं।

जानकारी के मुताबिक न्‍यू लाइफ स्पेशिलिटी अस्पताल में आग लगने से 10 लोगों की जान चली गयी है। यह संख्या ज्यादा हो सकती है क्योंकि काफी लोग गंभीर रूप से झुलस जाने से घायल हैं। करीब 12 लोगों के झुलसने की खबर है। ये 30 बिस्तरों वाला अस्पताल है।

रिपोर्ट्स में बताया गया है कि मरने वालों में 5 मरीज और 3 अस्पताल कर्मचारी हैं। फायर ब्रिगेड ने बहुत मुश्किल से आग पर काबू पाया। अस्पताल में अफरातफरी का माहौल है। अस्पताल इमारत से धुएं का काला गुबार उठता दिखाई दिया है।

यह घटना जबलपुर के दमोह नाका इलाके के पास न्यू लाइफ मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल की है जहाँ दोपहर बाद अचानक आग की लपटें उठने लगीं। मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने घटना में जान गंवाने वाले लोगों के निकट परिजनों को 5-5 लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा की है।

गिरफ्तार संजय राउत को कोर्ट ने 4 दिन के ईडी के रिमांड पर भेजा

मुंबई की एक चॉल के पुनर्विकास में कथित अनियमितताओं से जुड़े धन शोधन के मामले में पिछली रात गिरफ्तार शिवसेना सांसद संजय राउत को सोमवार दोपहर सेशन कोर्ट में पेश किया गया, जहाँ उन्हें 4 दिन के ईडी के रिमांड पर भेज दिया गया। इस बीच शिव सेना ने राउत की गिरफ्तारी को राजनीतिक प्रतिशोध बताते हुए कहा है कि पार्टी बिलकुल नहीं झुकेगी।

कोर्ट ने संजय राउत को घर का खाना और दवाई की इजाजत दे दी है। जज ने सुनवाई के दौरान कहा कि अभी तक मिले सबूतों को देखते हुए राऊत की कस्टडी जरूरी है। हालांकि, उन्होंने ईडी के 8 दिन के रिमांड की मांग को स्वीकार नहीं करते हुए चार दिन की कस्टडी दी। कोर्ट ने कहा कि शिव सेना नेता की सेहत को देखते हुए जरूरत पर उन्हें दवाई और इलाज की इजाजत दी जाती है।

राउत को सेशंस कोर्ट में पेश करने से पहले सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी। शिव सैनिकों ने पहले ही राउत की गिरफ्तारी के विरोध में प्रदर्शन करने का ऐलान किया है। मुंबई स्थित ईडी के दफ्तर, जेजे अस्पताल और सेशंस कोर्ट परिसर में करीब 200 पुलिसकर्मियों को तैनात किया है, ताकि किसी प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था की दिक्कत खड़ी न हो। राउत की गिरफ्तारी पर शिवसेना प्रवक्ता आनंद दुबे ने कहा – ‘राउत झुकेंगे नहीं। हम भी देखते हैं कि दिल्ली में कितना दम है?’

याद रहे राउत (60) को दक्षिण मुंबई के बैलार्ड एस्टेट में ईडी के क्षेत्रीय कार्यालय में छह घंटे से अधिक की पूछताछ के बाद रविवार आधी रात गिरफ्तार कर लिया गया था। अधिकारियों का दावा है कि ‘राउत जांच में सहयोग नहीं कर रहे थे, जिसके कारण उन्हें धन शोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत देर रात 12:05 बजे हिरासत में लिया गया ‘

राज्यसभा सदस्य राउत को आज मुंबई में एक विशेष पीएमएलए अदालत में पेश किया जाएगा, जहां प्रवर्तन निदेशालय उनकी हिरासत का अनुरोध करेगा। ईडी ने रविवार को मुंबई के भांडुप इलाके में उनके आवास पर तलाशी ली थी और राउत से पूछताछ की थी। शाम तक उन्हें एजेंसी के स्थानीय कार्यालय में पूछताछ के लिए बुलाया गया था। अधिकारियों का दावा है कि तलाशी के दौरान दल ने 11.5 लाख रुपये नकद बरामद किए।

शिव सेना ने आरोप लगाया है कि संघीय एजेंसी की कार्रवाई का उद्देश्य शिवसेना और महाराष्ट्र को कमजोर करना है और राउत के खिलाफ झूठा मामला तैयार किया गया है। याद रहे अप्रैल में ईडी ने जांच के तहत राउत की पत्नी वर्षा राउत और उनके दो सहयोगियों की 11.15 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति को अस्थायी रूप से कुर्क किया था।

मानव तस्करी एक विकृति

30 जुलाई संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की तरफ़ से मानव तस्करी के ख़िलाफ़ विश्व दिवस के रूप में नामित किया गया है। इस दिन को चिह्नित करने और तस्करी के शिकार लोगों की दुर्दशा की याद दिलाने के लिए ‘तहलका’ की विशेष जाँच टीम (एसआईटी) इस बार आवरण कथा ‘बेबसी की दास्तान’ लेकर आयी है। रिपोर्ट इस सच को उजागर करती है कि कैसे बच्चों को उनकी शुरुआती अवस्था से किशोरावस्था तक, जिसे मासूमियत और आज़ादी के स्वर्ण युग में परिभाषित किया जाता है; देश के विभिन्न हिस्सों में निर्दयता से तस्करी करके लाया जाता है।

विशेष जाँच टीम के छिपे कैमरे ने सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल के एक मानव तस्कर को जीवन के जोखिम वाले दवा परीक्षण के लिए काम के झूठे वादे पर पैसे के बदले में प्रदान करने की पेशकश करते हुए रिकॉर्ड किया। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा ग़ायब हो जाता है। कुछ समय पहले ‘ओरिएंट लॉन्गमैन’ द्वारा प्रकाशित, ‘एनएचआरसी एक्शन रिसर्च ऑन ट्रैफिकिंग’ से ज़ाहिर होता है कि किसी एक साल में औसतन 44,000 बच्चों के लापता होने की सूचना है और उनमें से 11,000 से अधिक का पता नहीं चला है। अकसर बच्चे और उनके ग़रीब माता-पिता, जिन्हें हरे नोट देने का वादा किया जाता है; अन्त में सम्पन्न लोगों के शहरी घरों में बहुत कम भुगतान, दुव्र्यवहार और कभी-कभी यौन उत्पीडऩ के साथ काम करने को मजबूर होते हैं। जैसा कि निजी घरों के अन्दर होता है; अकेले बच्चे पीडि़त होते हैं।

रिपोट्र्स से पता चलता है कि 2020 में तस्करी किये गये 2,222 बच्चों में से सबसे अधिक 815 (36.6 फ़ीसदी) राजस्थान से थे। इसके बाद केरल (184) और ओडिशा (159) थे। इसके बाद बिहार था, जहाँ 123 बच्चों और झारखण्ड से 114 बच्चों की तस्करी की गयी। भारत इस मामले में विशेष रूप से संवेदनशील है और ग़ैर-सरकारी संगठनों के अनुसार प्रतिदिन 21 बच्चों की तस्करी यहाँ की जाती है। चाइल्डलाइन इंडिया हेल्पलाइन को केवल एक वर्ष में 50 लाख इमरजेंसी कॉल प्राप्त हुए। एनजीओ का अनुमान है कि भारत में क़रीब 3,00,000 (तीन लाख) बाल भिखारी हैं और हर साल 44,000 बच्चे इससे जुड़े गिरोहों के चंगुल में फँसते हैं। वेश्यावृति में क़रीब 40 फ़ीसदी बच्चे हैं। ऐसा अनुमान है कि भारत में रेड-लाइट ज़िलों में 20 लाख से अधिक महिलाओं और बच्चों का यौन सम्बन्ध बनाने के लिए तस्करी की जाती है।

प्रौद्योगिकी के आगमन के बावजूद, जिसने सूचना और ज्ञान की उपलब्धता को सरल किया है; बुनियादी शिक्षा की कमी, बेरोज़गारी और ग़रीबी के परिणामस्वरूप मानव तस्करी, यौन शोषण, जबरन श्रम, भीख माँगना और बच्चों के शोषण के मामले बढ़े हैं। निस्संदेह दुनिया भर में मानव तस्करी को ड्रग्स और हथियारों के बाद तीसरा सबसे आकर्षक अवैध व्यापार माना जाता है। हालाँकि यह अपराध है। ‘तहलका’ की जाँच से यह भी पता चला है कि नेपाली बच्चों को भी विभिन्न क्षेत्रों में जबरन मजदूरी के लिए भारत लाया जाता है। भारतीय महिलाओं को पैसे और यौन शोषण के लिए मध्य पूर्व में तस्करी कर लाया जाता है।

भारत में मानव तस्करी को संविधान में दिये गये मौलिक अधिकार के रूप में प्रतिबन्धित किया गया है; लेकिन एक संगठित अपराध के रूप में मानव तस्करी जारी है। मानव तस्करी एक ऐसा अपराध है, जिसे ज़्यादातर पुलिस में कम रिपोर्ट किया जाता है। आज इसे रोकने और पीडि़तों के पुनर्वास के लिए गम्भीर नीतिगत पहल की आवश्यकता है। भारत की नयी शिक्षा नीति की प्रशंसा की गयी है। लेकिन तस्करी की जाँच के लिए मानव अधिकारों का पाठ्यक्रम अभी भी हमारी शिक्षा में शामिल किया जाना बाक़ी है।

असंगठित विपक्ष से सत्ता पक्ष मज़बूत

एनडीए पक्ष की द्रोपदी मुर्मू के राष्ट्रपति चुने जाने से खुली विपक्षी दलों की एकता की पोल

सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति बन गयीं। वह दूसरी महिला और पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं। मुर्मू ने काफ़ी विपरीत परिस्थितियों का जीवन में सामना किया और जीवटता का परिचय दिया। निश्चित ही मुर्मू का राष्ट्रपति बनना देश के लोकतंत्र के लिए सुखद संकेत है।
विपक्ष इस चुनाव में बिखरा-बिखरा सा दिखा और कभी भी नहीं लगा कि वह अपने उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को जिताने के लिए गम्भीर है। इसके विपरीत एनडीए, ख़ासकर भाजपा ने सारा गुणा, भाग, जोड़ करके काम किया और अपनी उम्मीदवार को बड़े अन्तर से जीत दिलायी।

बेशक लोकसभा और राष्ट्रपति के चुनाव में अन्तर है। लेकिन राष्ट्रपति के चुनाव में एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की बड़ी जीत इस बात का साफ़ संकेत है कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दल मानसिक रूप से एक साथ आने के लिए तैयार नहीं हैं। कांग्रेस ने भले टीएमसी के नेता यशवंत सिन्हा का खुलकर समर्थन किया; लेकिन इसके बाद जब उप राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस की मार्गरेट अल्वा को विपक्ष ने अपना साझा उम्मीदवार घोषित किया, तो टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने यह कहकर इस चुनाव में मत (वोट) न देने का ऐलान कर दिया कि उनकी पार्टी को भरोसे में लिए बिना यह फ़ैसला हुआ। इससे ज़ाहिर होता है कि विपक्षी एकता का राग वास्तव में कितना बेसुरा है।

राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार की जीत तभी सुनिश्चित हो गयी थी, जब उसने द्रोपदी मुर्मू को अपना उम्मीदवार घोषित किया था। विपक्ष अपने उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के पक्ष में मत जुटाने में तो नाकाम रहा ही, उलटा उसके अपने 17 सांसदों और 110 विधायकों ने ही मुर्मू के पक्ष में मतदान कर दिया। बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, अकाली दल, शिवसेना, तेलगू देशम पार्टी एनडीए का हिस्सा नहीं थे; लेकिन विपक्ष इनमें से एक को भी अपने साथ नहीं जोड़ पाया। उलटे उसके अपने सहयोगी मुर्मू के साथ जा खड़े हुए। विपक्षी एकता में दरार का इससे बड़ा और क्या उदाहरण हो सकता है?

मुर्मू के पक्ष में नतीजे आने के साथ ही विपक्षी नेताओं में एकता के दावे तब हवा हो गये। ख़ूब प्रति मतदान (क्रॉस वोटिंग) हुई। इसके विपरीत भाजपा ने मुर्मू के बहाने आदिवासी समाज में बड़ी सेंध लगा दी है, जो भविष्य के चुनावों में उसके काम आएगी। विपक्ष लाख कोशिश के बावजूद अपनी एकता बरक़रार नहीं रख पाया। उदाहरण के लिए झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) कांग्रेस की गठबंधन सहयोगी पार्टी है; लेकिन उसने मुर्मू को समर्थन दिया।

विपक्ष को तो तभी झटका लग गया था, जब राष्ट्रपति चुनाव से कुछ दिन पहले टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने कह दिया कि अगर भाजपा उनसे द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने के लिए कहती, तो वह मान जातीं। दिलचस्प यह है कि ममता ने ही विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए यशवंत सिन्हा के नाम का प्रस्ताव रखा था और वह थे भी उनकी ही पार्टी के नेता।

बहरहाल यशवंत सिन्हा अब इस बात से सन्तुष्टि कर सकते हैं कि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में देश के इतिहास में वह तीसरे सबसे ज़्यादा मत हासिल करने वाले विपक्ष के प्रत्याशी बन गये। उन्हें 36 फ़ीसदी मत हासिल हुए। मुर्मू ने विपक्ष के साझे उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को हराया भी बड़े अन्तर से। मुर्मू को 2,824 मत मिले, जिनका मत-मूल्य (वोट वैल्यू) 6,76,803 है; जबकि सिन्हा को महज़ 1877 मत मिले, जिनका मूल्य 3,80,177 है। चौथे चरण में सिन्हा को मुर्मू से ज़्यादा मत मिले। हालाँकि मुर्मू की पहले के तीन चरण की बढ़त इतनी ज़्यादा थी कि इससे कोई अन्तर नहीं पड़ा।

लोकसभा और राज्यसभा को मिलाकर 776 सांसदों के मत मान्य थे, जिनमें 15 मत रद्द हो गये। कुछ सांसदों ने मत नहीं डाले। इस तरह कुल 748 सांसदों के 5,23,600 मूल्य के मत पड़े। मुर्मू को 72 फ़ीसदी सांसदों का समर्थन मिला और वह कुल मतों में से 64.03 फ़ीसदी मत हासिल कर विजयी घोषित हुई हैं। इधर यशवंत सिन्हा को देश के तीन राज्यों में एक भी मत नहीं मिला; जबकि देश का कोई ऐसा राज्य नहीं रहा, जहाँ से मुर्मू को मत न मिले हों। केरल में बेशक कुल 140 विधायकों में से मुर्मू को सि$र्फ एक मत मिला।

आंध्र प्रदेश में जिन 173 विधायकों ने मत डाले उन सभी ने मुर्मू को मत दिये। नागालैंड में सभी 59 और सिक्किम के सारे 32 विधायकों ने भी मुर्मू को मत डाले। सिन्हा को विपक्ष के ही कई मतों के क्रॉस होने से नुक़सान उठाना पड़ा।

उप राष्ट्रपति चुनाव : धनखड़ बनाम अल्वा
उप राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए ने किसान पृष्ठभूमि वाले जगदीप धनखड़ को उम्मीदवार बनाकर किसानों को लेकर ख़राब हुई अपनी छवि को सुधारने की कोशिश की है। इससे यह तो ज़ाहिर हो ही गया कि उत्तर प्रदेश का चुनौतीपूर्ण विधानसभा चुनाव जीतने के बावजूद भाजपा में किसान समर्थक को लेकर आशंका रही है। भले धनखड़ किसानों के कोई बड़े नेता न हों, भाजपा उनके नाम पर किसान समर्थक होने का दावा करेगी ही। उप राष्ट्रपति चुनाव के लिए 6 अगस्त को चुनाव होना है, उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए भाजपा पूरी ताक़त से मैदान में जुटी हुई है। कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष ने साझे रूप से पूर्व केंद्रीय मंत्री मार्गरेट अल्वा को मैदान में उतारा है, जो राज्यपाल भी रही हैं। लेकिन राष्ट्रपति चुनाव की ही तरह विपक्ष बिखरा-बिखरा दिख रहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी नेता ममता बनर्जी अल्वा को समर्थन नहीं देने की बात कह चुकी हैं। देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, अकाली दल, शिवसेना, तेलगु देशम पार्टी जैसे गैर-एनडीए दलों का समर्थन हासिल कर पाते हैं या नहीं। मुर्मू को इन दलों के समर्थन का कारण उनका आदिवासी होना था। देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह सभी दल फिर एनडीए के साथ जाते हैं या मार्गरेट अल्वा को समर्थन देते हैं? ऐसा होता है, तो धनखड़ के लिए मुकाबला मुश्किल हो जाएगा।

भारत को चीन से कितना ख़तरा!

सीमा पर चीन करता जा रहा निर्माण, लड़ाकू विमान लगातार भर रहे उड़ानें

क्या साल के आख़िर में तीसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने के बाद शी जिनपिंग भारत के साथ युद्ध की तैयारी कर रहे हैं? पूर्वी लद्दाख़ के ग़ैर-विवादित क्षेत्र में नो फ्लाई ज़ोन में चीन के लड़ाकू विमानों ने हाल के दो हफ़्तों में एक से ज़्यादा बार भारतीय क्षेत्र के ऊपर उड़ानें भरी हैं। इसके अलावा भूटान के रास्ते भारत को घेरने के इरादे से चीन डोकलाम से नौ किलोमीटर दूर भूटान की अमो चू नदी घाटी में पिछले साल जो गाँव बसाना शुरू किया था, अब वहाँ पूरा गाँव बस गया है। चीन ने इसके अलावा सीमा पर कई निर्माण किये हैं, जिन्हें उसकी भविष्य की तैयारियों के रूप में देखा जा रहा है। यह सब घटनाएँ तब हो रही हैं, जब चीन भारत के साथ कोर कमांडर स्तर की बातचीत के 16 दौर हो चुके हैं।

चीनी सेना अपनी पहुँच डोकलाम पठार की रणनीतिक लिहाज़ से महत्त्वपूर्ण चोटी तक बनाना चाहती है। जुलाई के मध्य में भारत ने भूटान को डोकलाम पठार के पास विवादित त्रि-जंक्शन क्षेत्र में चीन के कार्यों को लेकर सचेत किया था। दरअसल चीन का बड़ा उद्देश्य दबाव की स्थिति बनाकर भारत के साथ 3,488 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) और थिंपू के साथ 477 किलोमीटर की विवादित सीमा के साथ दशकों से उठाये जा रहे अपने सीमा दावों को ताक़त देना है।

चीन की गतिविधियों को लेकर चिन्ता केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के वरिष्ठ नेता और सांसद सुब्रमण्यम स्वामी भी जता रहे हैं। सीमा के भीतर चीन के लड़ाकू जहाज़ों के उड़ान भरने की रिपोट्र्स के बीच सुब्रमण्यम स्वामी ने एक ट्वीट करके कहा- ‘चीन की सेना भारतीय सीमा में घुस चुकी है और धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। क्या आप (मोदी) इसका परिणाम समझते हैं?’

सन् 2017 में सिक्किम के पास डोकलाम पठार पर भारत और चीन की सेना का आमना-सामना हुआ था। सैटेलाइट से हाल में ली गयी जो तस्वीरें सामने आयी हैं, उनसे ज़ाहिर होता है कि एलएसी के पास भूटान के साथ विवादित क्षेत्र में चीन ने पिछले साल जो निर्माण शुरू किया था, वहाँ अब पूरा गाँव बस गया है और वहाँ उसने बड़ी संख्या में पूर्व सैनिकों को बसाया है। तस्वीरों में दिखता है कि वहाँ काफ़ी घरों के आगे कारें और अन्य वाहन खड़े हैं। दरअसल चीन रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण डोकलाम पठार को वैकल्पिक मार्ग के रूप में तैयार कर रहा है।

अब ये रिपोट्र्स पुख़्ता हो चुकी हैं कि चीन अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर अपनी क्षमताओं का विस्तार कर रहा है। भारतीय सेना की पूर्वी कमान के जीओसी-इन-सी, लेफ्टिनेंट जनरल आर.पी. कलिता का कहना है कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) अरुणाचल प्रदेश सीमा पर बुनियादी ढाँचे के विकास के साथ अपनी क्षमताओं को बढ़ा रही है।

लेफ्टिनेंट जनरल आर.पी. कलिता कहते हैं- ‘तिब्बत में भी एलएसी के पार बुनियादी ढाँचे में बहुत विकास हुआ है और हो रहा है। दूसरी ओर सडक़ों और पटरियों, कनेक्टिविटी और नये हवाई अड्डों और हेलीपैडों का निर्माण कार्य हो रहा है। सशस्त्र बलों सहित हमारी सभी एजेंसियाँ लगातार इन हालात की निगरानी कर रही हैं।’
उनका कहना है कि चीन की इन गतिविधियों को देखते हुए इंफ्रास्ट्रक्चर और ऑपरेशनल मामलों में हम भी अपनी क्षमताओं को बढ़ा रहे हैं। तकनीक (टेक्नोलॉजी) के तेज़ी से विकास के साथ ही वेलफेयर की प्रकृति बदल रही है, इसलिए तकनीक के साथ तालमेल रखने के लिए हमें अपनी ख़ुद की कार्यप्रणाली और विभिन्न चुनौतियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया विकसित करने की भी ज़रूरत है।’

साल के आख़िर में चीन में अपने नेता (राष्ट्रपति) पद का चुनाव वहाँ की कम्युनिस्ट पार्टी को करना है। ज़्यादातर विशेषज्ञ मानते हैं कि शी जिन पिंग तीसरी बार राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। उसके बाद वह अपनी कुछ योजनाओं को अमलीजामा पहनाना चाहते हैं। क्या इसमें भारत के ख़िलाफ़ युद्ध करना भी शामिल है? यह एक जटिल सवाल है, क्योंकि भारत की पिछले दशकों में बढ़ती ताक़त से भी चीनी नेतृत्व बेचैनी महसूस करता है। ख़ुद चीन के ख़राब आर्थिक हालात की रिपोट्र्स अब आने लगी हैं।

यह कहा जाता है कि जिनजिंग अपने लोगों का ध्यान भटकाने के लिए सीमा पर विवाद खड़े करते हैं। हालाँकि बहुत-से रक्षा विशेषज्ञ चेताते हैं कि चीन की गतिविधियों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। तनाव वाली तमाम गतिविधियों के बावजूद एक सच यह भी है कि चीन के साथ भारत का व्यापार आज भी जारी है। यूक्रेन में युद्ध के चलते हाल में भारत ने चीन की एक निजी कम्पनी ताइयुआन को 500 करोड़ के रेल पहियों का ऑर्डर दिया है। वैसे यूक्रेन की कम्पनी को यह ठेका इससे कहीं कम क़ीमत पर दिया गया था।

लिहाज़ा चीन के सीमा पर तनाव बढ़ाने के बावजूद कुछ विशेषज्ञ उसके व्यापारिक हितों का हवाला देते हुए मानते हैं कि वह युद्ध की सीमा तक शायद ही जाए। दूसरा भारत की सैन्य क्षमताओं को कम करके नहीं आँका जा सकता। वैसे भी चीन के भीतर ही शी जिनपिंग के लिए चुनौतियाँ कम नहीं हैं। इनमें आर्थिक चुनौतियाँ भी शामिल हैं। यह कुछ ऐसे बिन्दु हैं, जो उनके लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति बनने की राह में रोड़ा भी बन सकते हैं। क्योंकि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में उनके विरोधी कम नहीं हैं; ख़ासकर उनकी आर्थिक नीतियों के। हाल में आयी एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन से बड़ी संख्या में व्यापारियों का दूसरे देशों को पलायन हुआ है।

पश्चिम भी चिन्तित
पश्चिमी देशों का रुख़ भी चीन के प्रति अविश्वास भरा है। हाल में अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसी एफबीआई और ब्रिटेन की ख़ुफ़िया एजेंसी एमआई-5 के प्रमुखों ने एक बैठक के दौरान चीन को पश्चिमी देशों के लिए लम्बे समय का और सबसे बड़ा ख़तरा बताया था। उनका मानना था कि चीन पश्चिम देशों की गोपनीयता हासिल करने में जुटा है और उसकी विभिन्न तकनीकों को चुराने की फ़िराक़ में रहता है। दोनों देशों के ख़ुफ़िया विशेषज्ञों का मानना था कि चीन दुनिया को अपने पक्ष में बदलने की चालें चल रहा है और इसके लिए दमन का सहारा लेने से भी नहीं कतरा रहा। वे (प्रमुख) दुनिया को इसके प्रति आगाह करते हुए कहते हैं कि इन ख़तरों से निपटने की तैयारी ज़रूरी है।
चीन की ये गतिविधियाँ एशियाई देशों में भी उतनी ही हैं। स्थिति कितनी गम्भीर है इसका अंदाज़ा एफबीआई के प्रमुख क्रिस्‍टोफर रे की बातों से लगाया जा सकता है, जिनका कहना है कि एफबीआई प्रत्येक 24 घंटे में चीन से जुड़े एक मामले की जाँच करती है। क्रिस्टोफर का तो यह तक कहना है कि चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ नज़दीकी सम्बन्ध बनाने से कोई बदलाव आएगा, यह सोचना एक भूल ही होगी। एफबीआई प्रमुख चीनी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के निरंकुश एकाधिकार की तरफ़ जाने को सबसे बड़ी चिन्ता मानते हैं।

इस बैठक का लब्बोलुआब यह रहा कि चीन की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी ख़ामोशी से पूरे विश्‍व में दबाव की नीति बनाने की योजना पर काम कर रही है। दो देशों के ख़ुफ़िया प्रमुख मानते हैं कि इस दबाव का मुक़ाबला करने के लिए चीन के ख़िलाफ़ कार्रवाई की ज़रूरत है। उन्हें यह भी लगता है कि रूस के यूक्रेन पर हमले की तर्ज पर चीन ताइवान पर कार्रवाई करके उसे जबरन अपने क़ब्ज़े में करने की कोशिश कर सकता है।

ख़ुफ़िया विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन ने जासूसों का विशाल नेटवर्क बना लिया है और वह पश्चिम सहित देश के अन्य हिस्सों, जिनमें भारत भी शामिल है; में बड़े पैमाने पर अपनी गतिविधियाँ जारी रखे हुए है। इनमें हैकिंग उसका सबसे बड़ा हथियार है। चीन आर्थिक लाभ उठाने के लिए लम्बे समय से हैकिंग और सूचनाओं को चोरी की गतिविधियों में लिप्‍त है। एफबीआई और एमआई-5 दूसरे देशों की एजेंसियों के साथ एक टीम बनाकर चीन को लेकर काम कर रहे हैं।

रिपोट्र्स से पता चलता है कि चीन दुनिया भर की तमाम बड़ी कम्पनियों में अपने एक इंटरनल सेल के ज़रिये काम करता है, जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को रिपोर्ट करता है। यह सेल न सिर्फ़ राजनीतिक एजेंडा चलाता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि कम्पनी राजनीतिक दिशा-निर्देशों का पालन करे। ख़ुद चीन के विशेषज्ञ यह स्वीकार करते रहे हैं कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी दुनिया के कई देशों में बिजनेस के ज़रिये सक्रिय है। इनमें कई गोपनीय तरीक़े से काम करते हैं।

चीन पश्चिम ही नहीं एशिया में अपने विस्तार पर तेज़ी से काम कर रहा है। भारत से चीन का सीमा पर सीधा टकराव है। अपने हितों को देखते हुए अमेरिका भी एशिया में चीन को लेकर सक्रिय है। वह चीन को एशिया में रोकना चाहता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान एशिया के काफ़ी देश रूस के साथ खड़े दिखे हैं। चीन तो ख़ैर है ही। लिहाज़ा अमेरिका एशिया में चीन का विस्तार रोकने की हर सम्भव कोशिश कर रहा है। वह किसी सूरत में चीन के किसी नये क्षेत्र में क़ब्ज़े को रोकना चाहता है। इनमें भारत के लिए बहुत महत्त्वपूर्व पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाला बलूचिस्तान और गिलगित-बाल्टिस्तान जैसे क्षेत्र शामिल हैं, जहाँ पाकिस्तान के ख़िलाफ़ विद्रोह जैसे हालात हैं।


“जब भी हम पाते हैं कि चीनी विमान या रिमोट से पायलट एयरक्राफ्ट सिस्टम (आरपीएस) वास्तविक नियंत्रण रेखा के थोड़ा बहुत क़रीब आ रहे हैं, तो हम अपने लड़ाकू विमानों के ज़रिये उचित उपाय करते हैं। हमने हमारे सिस्टम को हाई अलर्ट पर रखा है। इसने उन्हें काफ़ी हद तक बाधित किया है।’’
विवेक राम चौधरी
एयर चीफ मार्शल


“चीन की सेना भारतीय सीमा में घुस चुकी है और धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। मैं किसी ऐसे व्यक्ति से मिला, जिसका भाई भारतीय सेना में है और लद्दाख़ में सेवारत है। उनके भाई के अनुसार, चीनी पीएलए (चीन की सेना) एलएसी (भारत-चीन की सीमा रेखा) के पार ग़ैर-विवादित भारतीय क्षेत्र में आगे बढ़ चुकी है और धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। अभी भी कोई आया नहीं? क्या मोदी इसका परिणाम समझते हैं?’’
सुब्रमण्यम स्वामी
भाजपा सांसद


“सशस्त्र बलों सहित हमारी सभी एजेंसियाँ लगातार वर्तमान हालात की निगरानी कर रही हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर और ऑपरेशनल मामलों में हम भी अपनी क्षमताओं को बढ़ा रहे हैं। टेक्नोलॉजी के तेज़ी से विकास के साथ ही वेलफेयर की प्रकृति बदल रही है। इसलिए टेक्नोलॉजी के साथ तालमेल रखने के लिए हमें अपनी ख़ुद की कार्यप्रणाली और विभिन्न चुनौतियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया विकसित करने की भी ज़रूरत है।’’
लेफ्टिनेंट जनरल आर.पी. कलिता
जीओसी-इन-सी,
पूर्वी कमान

कमज़ोर नहीं भारत
सीमा पर चीन भारत को उकसाने की कोशिशों के तहत उसके लड़ाकू विमान पूर्वी लद्दाख़ में लगातार उड़ान भर रहे हैं। उसके लड़ाकू जेट पूर्वी लद्दाख़ में तैनात भारतीय बलों को भडक़ाने का लगातार प्रयास कर रहे हैं। जे-11 सहित चीनी लड़ाकू विमान वास्तविक नियंत्रण रेखा के क़रीब उड़ान भर रहे हैं। हाल के दिनों में इस क्षेत्र में 10 किलोमीटर के कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स (सीबीएम) लाइन के उल्लंघन के मामले सामने आये हैं।

विशेषज्ञ इसे क्षेत्र में भारतीय रक्षा तंत्र पर नज़र रखने के प्रयास के रूप में देख रहे हैं। भारतीय वायु सेना ने इसका जवाब देने के लिए कड़े क़दम उठाये हैं और उसने मिग-29 और मिराज़-2000 सहित अपने सबसे शक्तिशाली लड़ाकू विमानों को उन्नत ठिकानों पर आगे बढ़ा दिया है, जहाँ से वे मिनटों में चीनी हरकतों का जवाब दे सकते हैं। इसके अलावा एलएसी पर तैनात सैनिकों को चीनी भाषा मैंडेरिन सिखाने पर भारतीय सेना का फोकस बढ़ रहा है। आईटीबीपी (इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस) ने इस दिशा में ज़्यादा तेज़ी से काम किया है।

भारत के पास रफाल और एस-400 मिसाइल प्रणाली है। बता दें कि वर्ल्ड डायरेक्टरी ऑफ मॉडर्न मिलिट्री एयरक्राफ्ट (डब्ल्यूडीएमएमए) ने अपनी ग्लोबल एयर पॉवर्स रैंकिंग-2022 की रिपोर्ट में भारतीय वायु सेना को चीन की एयरफोर्स के मुक़ाबले बेहतर रैंकिंग दी है। डब्ल्यूडीएमएमए की रिपोर्ट में 98 देशों की एयर फोर्स पॉवर का मूल्यांकन किया जाता है। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने हाल में भारत को रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली ख़रीदने के लिए काटसा (काउंटरिंग अमेरिकन एडवरसरीज थ्रू सैंक्शन एक्ट) प्रतिबंधों से छूट दिलाने वाले एक संशोधित विधेयक पारित कर दिया। एस-400 रक्षा मिसाइल सिर्फ़ पाँच मिनट में युद्ध के लिए तैयार हो सकती है। सीमा पर मिग-29 और मिराज़-2000 जैसे शक्तिशाली लड़ाकू विमान तैनात हैं।

भारतीय वायु सेना के पास 632 लड़ाकू विमान सहित 1645 विमान हैं। इनमें रफाल, सुकोई, मिग-21 बीआईएस, जगुआर, मिग-29 यूपीजी (मल्टीरोल) और तेज़स शामिल हैं। वायु सेना में एमआई-17/171 (मध्यम-लिफ्ट)-223, एचएएल ध्रुव (मल्टीरोल)-91, एसए 316/एसए319 (उपयोगिता)-77, एमआई-25/25/35 (गनशिप/परिवहन)-15, एएच-64ई (हमला)-8, सीएच-47एफ (मध्यम लिफ्ट)-6, एमआई-26 (भारी लिफ्ट)-1 व एसए 315 (लाइट यूटिलिटी)-17 जैसे हेलीकॉप्टर भी मौज़ूद हैं। वायु सेना के बेड़े में एएन-32 (सामरिक)-104, एचएस 748 (उपयोगिता)-57, डोर्नियर 228 (यूटिलिटी)-50, आईएल-76 एमडी/एमकेआई (रणनीतिक)-17 और सी-17 (रणनीतिक/सामरिक)-11 सहित सी-130जे (सामरिक)-11 ट्रांसपोर्टर जहाज़ भी शामिल हैं। ग्लोबल एयरपॉवर रिपोर्ट में इंडियन एयरफोर्स का छठा स्थान है।

गिलगित-बाल्टिस्तान पर नज़र
चीन भारत को घेरने और एशिया क्षेत्र में अपनी उपस्थिति और मज़बूत करने के लिए पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका पर आर्थिक दबाव बनाकर उसकी ज़मीन हड़पने की साज़िश रच रहा है। बहुत-से जानकार श्रीलंका में वर्तमान आर्थिक तंगहाली का कारण चीन को मानते हैं। नेपाल की ज़मीन पर कई वर्षों में क़ब्ज़ा किया है। पाकिस्तान ने तो सन् 1963 में पीओके के तहत पडऩे वाला 5,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र शक्सगाम वैली चीन को भेंट में दे दिया था। अब जो रिपोर्ट सामने आयी हैं, वह भारत के लिए और चिन्ताजनक है। रिपोर्ट यह है कि चीन के 20,000 करोड़ रुपये के क़र्ज़ में फँसा पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान चीन को बेच सकता है।
‘तहलका’ की जुटाई जानकारी के मुताबिक, चीन से पाकिस्तान को मिले क़र्ज़ की शर्तों के मुताबिक पहले कुछ साल तक यह इलाक़ा पट्टे (लीज) पर दिया जाएगा। यदि पाकिस्तान क़र्ज़ नहीं चुका पाता है, तो ऐसी स्थिति में यह इलाक़ा चीन के क़ब्ज़े में चला जाएगा। गिलगित-बाल्टिस्तान के इन इलाक़ों में इलाक़ों में पाकिस्तान के अवैध क़ब्ज़े वाला पीओके शामिल है, जिसके बारे में रिपोट्र्स हैं कि चीन वहाँ पहले ही कुछ निर्माण गतिविधियों में शामिल है। साथ ही उसकी सेना की उपस्थिति भी वहाँ है।

काराकोरम नेशनल मूवमेंट के अध्यक्ष मुमताज़ नागरी ने भी हाल में यह आशंका ज़ाहिर की थी कि पाकिस्तान अपने क़र्ज़ के बोझ से छुटकारा पाने के लिए गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र चीन को पट्टे पर दे सकता है। अल अरबिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गिलगित-बाल्टिस्तान आने वाले समय में वैश्विक शक्तियों के लिए प्रतिस्पर्धा का केंद्र और दुनिया के ताक़तवर देशों के बीच जंग का मैदान बन सकता है।’

भारत के लिए चीन की यह कोशिश दो-तरफ़ा चिन्ता का विषय है। इसके कारण भी दो हैं। पहला यह कि सामरिक दृष्टि से यह चीन को बहुत मज़बूत कर देगा। दूसरा, भारत का इस इलाक़े पर स्वाभाविक और ऐतिहासिक दावा रहा है। भारत कहता रहा है कि गिलगित-बाल्टिस्तान भारत का अभिन्न हिस्सा है। आज़ादी के बाद से जम्मू-कश्मीर का यह इलाक़ा पाकिस्तान के क़ब्ज़े में है। उपेक्षित अलग-थलग और लगभग अविकसित इस क्षेत्र को पाकिस्तानी संविधान में राज्य के तौर पर मान्यता नहीं दी गयी है। हालाँकि पाकिस्तान वहाँ चुनाव कराने की कोशिश करता रहा है।
पीओके के संविधान में भी यह हिस्सा शामिल नहीं है। इमरान ख़ान सरकार ने गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का पाँचवाँ प्रान्त बनाने के लिए बहुत कोशिश की थी, जिसका भारत ने काफ़ी विरोध किया था। स्थानीय लोग भी इसके सख़्त ख़िलाफ़ रहे हैं। इमरान अपनी कोशिशों में सफल नहीं रहे थे। बता दें सात ज़िलों गान्चे, स्कर्दू, गिलगित, दिआमेर, गिजर, अस्तोर और हुंजा वाले इस इलाक़े (गिलगित-बाल्टिस्तान) की राजधानी गिलगित में है।

भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कुछ समय पहले कहा था कि सन् 1962, 1966, 1972 और 1973 में पाकिस्तान का जो संविधान बनाया गया, उसमें कभी गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तानी का हिस्सा नहीं रहा। हमारे संविधान में पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान को भारत का अभिन्न हिस्सा बताया गया है। संसद में इसे लेकर बाक़ायदा प्रस्ताव पास हुए हैं।

सन् 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ, तो गिलगित-बाल्टिस्तान किसी देश का हिस्सा नहीं था। कारण यह था कि ब्रिटेन ने सन् 1935 में गिलगित एजेंसी को यह क्षेत्र 60 साल के लिए पट्टे पर दिया था। पहली अगस्त, 1947 को अंग्रेजों ने पट्टे को ख़त्म करके इस इलाक़े को जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह को लौटा दिया। इसके बाद 31 अक्टूबर, 1947 को राजा हरि सिंह ने पाकिस्तान के हमले के बाद जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय कर दिया। हालाँकि गिलगित-बाल्टिस्तान का मामला तमाम घटनाओं के बावजूद अनसुलझा ही रहा।
यह आरोप रहे हैं कि पाकिस्तान सेना और एजेंसियाँ इलाक़े में जनता पर बहुत ज़ुल्म करती हैं। बड़े पैमाने पर स्थानीय लोगों का पलायन हुआ है, जिससे गिलगित-बाल्टिस्तान की आबादी काफ़ी कम हुई है। हाल में एक चौंकाने वाली रिपोर्ट आयी थी, जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान में होने वाली आत्महत्याओं में नौ फ़ीसदी अकेले गिलगित-बाल्टिस्तान में होती हैं। वहाँ जनता पर ज़ुल्म की इंतिहा है और उन्हें दिनभर में महज़ दो घंटे बिजली उपलब्ध करवायी जाती है। पाकिस्तान ने कभी इस इलाक़े को अपने नेशनल ग्रिड से नहीं जोड़ा। यहाँ तक कि स्थानीय लोगों को पन बिजली और अन्य विशाल संसाधनों पर अधिकार नहीं दिया है।
हाल के वर्षों में स्थानीय लोगों और पाकिस्तानी सेना के लोगों के बीच झड़पों की दर्ज़नों रिपोर्ट आयी हैं। पाकिस्तान विरोधी आन्दोलन के नेताओं का आरोप है कि सैनिक उनके लोगों को पीटते हैं। हाल में पाकिस्तानी सैनिकों के गिलगित-बाल्टिस्तान के स्वास्थ्य मंत्री राजा नासिर अली ख़ान को बुरी तरह पीटने की ख़बरें सामने आयी थीं, क्योंकि वह स्कर्दू मार्ग पर सेना के अधिग्रहण का कड़ा विरोध कर रहे थे। नासिर इमरान ख़ान के समर्थक माने जाते हैं।

रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि गिलगित-बाल्टिस्तान यदि चीन को मिल जाता है, तो उसे चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) के विस्तार में बड़ी मदद मिल जाएगी। उनके मुताबिक, भले इससे पाकिस्तान को अपने आर्थिक संकट से निपटने में मदद मिल जाए, इससे असली फ़ायदा चीन को होगा। हाँ, पाकिस्तान को अमेरिका की तरफ़ से इसका विरोध होने की आशंका है।

पाकिस्तान इस समय अमेरिका को नाराज़ नहीं करना चाहता; क्योंकि वह आईएमएफ से बेलआउट पैकेज की कोशिश में है। अमेरिका इसमें फच्चर (फाँस) लगा सकता है। अमेरिकी कांग्रेस की सदस्य बॉब लैंसिया ने हाल में कहा था कि यदि गिलगित-बाल्टिस्तान भारत में होता और बलूचिस्तान स्वतंत्र होता, तो अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका की इतनी ख़राब हालत नहीं होती।

अपराध नहीं जनहित की पत्रकारिता

आजकल लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के कमज़ोर होने का रोना पूरे देश में रोया जा रहा है। लेकिन जनकल्याण और देशहित की पत्रकारिता करने वाले तीन-चार फ़ीसदी लोग भी नहीं हैं। जनकल्याण की पत्रकारिता करने वाले लोगों पर हमले होते हैं। उन्हें अच्छी तनख़्वाह नहीं मिलती। सरकारी एजेंसियाँ और पुलिस उनके ख़िलाफ़ झूठे मुक़दमे बनाते हैं। तब कोई उन पत्रकारों के पक्ष में खड़ा नहीं दिखता। लेकिन कहते सभी हैं कि पत्रकारिता का स्तर गिर गया है। हाल ही में ऑल्ट न्यूज के को-फाउंडर और फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर के साथ यही हुआ। पुलिस ने उन्हें जेल में डाल दिया था। लेकिन कई न्यायाधीश आज भी न्यायप्रिय हैं। जुबैर को भी सर्वोच्च न्यायालय ने अंतरिम जमानत देकर साबित कर दिया कि क़ानून में अभी न्याय ज़िन्दा है।

मोहम्मद जुबैर मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उनके ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश में दर्ज सभी मामलों में राहत देते हुए 20,000 के जमानत बांड पर अंतरिम जमानत दी और पुलिस से उन्हें रिहा करने को कहा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एफआईआर ट्रांसफर सम्बन्धी आदेश सभी मौज़ूद एफआईआर और भविष्य में दर्ज होने वाली सभी एफआईआर पर लागू होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने जुबैर को अपने ख़िलाफ़ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय जाने को कहा और जुबैर के ख़िलाफ़ एक के बाद एक मुक़दमा दर्ज होने को परेशान करने वाला क़रार दिया था। अब जुबैर पर कोई कार्रवाई नहीं होगी। लेकिन जुबैर की ओर से दायर नयी याचिका में छ: मामलों की जाँच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ़ से विशेष जाँच दल के गठन को भी चुनौती दी गयी है।

बता दें कि फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर को दिल्ली पुलिस ने 2018 में किये गये एक ट्वीट को लेकर दर्ज शिकायत के बाद जून में गिरफ़्तार किया था। पुलिस ने जुबैर पर धार्मिक भावना भडक़ाने का आरोप लगाया है। जुबैर के ख़िलाफ़ हाथरस में दो और ग़ाज़ियाबाद, मुज़फ़्फ़रनगर, सीतापुर, लखीमपुर खीरी में एक-एक एफआईआर दर्ज की गयी है।

वहीं पैगंबर के बारे में टिप्पणी करने से विवादों में घिरी भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा को पहले सर्वोच्च न्यायालय ने फटकारा और देश से माफ़ी माँगने को कहा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि आपकी वजह से देश में हिंसा का माहौल पैदा हो रहा है। लेकिन दूसरी सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने नूपुर शर्मा को राहत दी है। न्यायालय ने 10 अगस्त तक नूपुर की गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी है। बता दें कि नूपुर शर्मा के समर्थन और विरोध में राजस्थान के उदयपुर में दो लोगों ने एक दर्ज़ी का सिर काट दिया था। इस सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय ने 8 राज्यों और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। नूपुर के वकील मानवेंद्र सिंह ने आर्टिकल-21 के आधार पर नूपुर को राहत देने की माँग की थी। वकील ने नूपुर को जान से मारने की धमकी और उन्हें मारने के लिए पाकिस्तान से आये शख़्स का ज़िक्र किया। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने पूछा कि पूछा कि आप दिल्ली उच्च न्यायालय जाना चाहते हैं? वकील ने कहा कि हम यही चाहते हैं। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह तो हमारी मंशा है कि आप हर जगह नहीं जाएँ। हम देखेंगे कि आगे क्या विकल्प हो सकता है। इधर कोलकाता पुलिस नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ लुकआउट नोटिस जारी कर चुकी है।

यहाँ दो मामले हमारे सामने हैं। एक मामला जुबैर का है, जिसमें उन पर धार्मिक भावना भडक़ाने का आरोप है। वहीं दूसरी तरफ़ नूपुर शर्मा है, जिनके एक बयान से गला काटने का सिलसिला शुरू हो गया। अब तक कुछ लोगों को हत्या की धमकियाँ मिल रही हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों ही मामलों में अपना फ़ैसला देते हुए यह साबित कर दिया कि क़ानून ज़िन्दा है, न्याय ज़िन्दा है।

सच बोलने के लिए पत्रकारों से उम्मीद लगाने वालों को समझना होगा कि क्या वे सच साथ खड़े हैं? भारतीय संविधान में नागरिकों को भी बोलने की स्वतंत्रता देता है। कहीं कुछ ग़लत हो, तो उन्हें बोलना चाहिए। चाहे ग़लत लोगों के ख़िलाफ़ बोलना पड़े या शासन-प्रशासन के। संविधान का अनुच्छेद-19, 20, 21 और 22 देश के सभी नागरिकों को बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अनुच्छेद-19 में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। अनुच्छेद-19(क) वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अनुच्छेद-19(ख) शान्तिपूर्ण और निराययुद्ध सम्मेलन की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अनुच्छेद-19(ग) संगम, संघ या सहकारी समिति बनाने की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अनुच्छेद-19(घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अनुच्छेद-19(ङ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र कही भी बस जाने की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अनुच्छेद-19(छ) कोई भी वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार की स्वतंत्रता का अधिकार सभी को देता है।

पहले संविधान में कुल सात मौलिक अधिकार (संविधान के भाग 3 की अनुच्छेद-12 से 35 तक) लोगों को प्राप्त थे। लेकिन 1976 में 44वें संविधान संशोधन में मूल अधिकारों में संपत्ति के अधिकार को हटा दिया गया। इनमें अनुच्छेद-14 से 18 तक समता की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख है। अनुच्छेद-19 में स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख है। अनुच्छेद-23-24 में शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के अधिकार का उल्लेख है। अनुच्छेद-25-28 में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख है। अनुच्छेद-29-30 में संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार का उल्लेख है। अनुच्छेद-32-34 में संवैधानिक उपचारों के अधिकार का उल्लेख है।

हालाँकि संविधान में प्रेस या मीडिया की स्वतंत्रता का कहीं कोई सीधा-सीधा उल्लेख है। लेकिन अनुच्छेद-19 में दिये गये स्वतंत्रता के मूल अधिकार को प्रेस की स्वतंत्रता के समकक्ष माना गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी कई बार संविधान के प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए प्रेस या मीडिया की स्वतंत्रता की व्याख्या की है। ब्रिटिश शासन में मीडिया को सामग्री के प्रचार-प्रसार के लिए रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस की सीमाओं में बाँध दिया गया।

आज प्रेस या मीडिया के पास सार्वजनिक मुद्दों पर सार्वजनिक रूप से बहस और चर्चा करने का अधिकार के अलावा $खबरों का लेखों, किसी भी विचार या वैचारिक मत, किसी भी स्रोत से जनहित की सूचनाएँ और तथ्य एकत्रित करने का अधिकार है। सरकारी विभागों, सरकारी उपक्रमों सरकारी प्राधिकरणों और लोक सेवकों कार्यों व कार्यशैली की समीक्षा करने का अधिकार और उनकी आलोचना का अधिकार है। प्रकाशन या प्रकाशन सामग्री में चयन और मीडिया (माध्यम) का मूल्य या शुल्क निर्धारित करने का अधिकार है। प्रचार के माध्यम की नीति तय करने और अपनी योजनानुसार सरकारी दबाव से मुक्त रहकर प्रकाशन, प्रचार-प्रसार सम्बन्धी गतिविधियाँ चलाने का अधिकार है। लेकिन मीडिया को ध्यान रखना होगा कि अपने अधिकारों को वह निर्णय न समझ ले और क़लम की ताक़त का ग़लत इस्तेमाल न करे।

किसी भी नागरिक या मीडिया संस्थान को राष्ट्र की प्रभुता और अखंडता, राष्ट्र या राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, विदेशी राष्ट्रों के साथ सम्बन्धों और व्यापार, शिष्टाचार या सदाचार, न्यायालय की मानना (फैसलों) के विमुख जाकर अराजकता फैलाने का अधिकार नहीं है। यदि ऐसा कोई करता है, तो वह क़ानूनी तौर पर अपराधी की श्रेणी में माना जाएगा। भारत में इन्हीं नियम-क़ायदों पर 1780 में पत्रकारिता की नींव रखी गयी थी। इसमें वर्षों सुधार होते रहे, तब कहीं जाकर एक परिपक्व देश और जनहित की पत्रकारिता का पैमाना बना। लेकिन अब कुछ लोग मीडिया का सहारा लेकर पैसा कमाने की हवस में मीडिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगाकर देश और लोगों की भावनाओं को आहत कर रहे हैं, जो एक अपराध से कम नहीं है।

सरकार के पक्ष में पत्रकारिता करने को सच्ची पत्रकारिता नहीं कहा जा सकता। इस पर रोक लगनी चाहिए। सरकारों को भी चाहिए कि वे अपने हित साधने के लिए मीडिया पर दबाव न बनाएँ और उसे अपना दरबान बनाने से बचें। वर्तमान समय में मीडिया की असलियत और अहमियत को देखते हुए यह कहना ठीक नहीं कि यह मीडिया युग है। अब हर किसी को अपने स्तर पर आवाज़ उठानी होगी। इसकी स्वतंत्रता संविधान ने हर किसी को बतौर अधिकार दी है।

अम्बेडकर ने संविधान सभा में कहा था- ‘प्रेस का अधिकार कोई ऐसा अधिकार नहीं है, जो किसी नागरिक को उसकी व्यक्तिगत क्षमता में नहीं प्रदान किया जा सकता है। प्रेस का सम्पादक या उसका प्रबंधक जब भी समाचार पत्रों के लिए कुछ लिखता है, तो इसे वह एक नागरिक की हैसियत से उपलब्ध अधिकार का प्रयोग करते हुए लिखता / कहता है।’