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ऑपरेशन ट्रैक डाउन में एसटीएफ की बड़ी सफलता

हरियाणा पुलिस के विशेष अभियान ऑपरेशन ट्रैक डाउन के तहत एसटीएफ यूनिट पलवल ने एक महत्वपूर्ण कार्रवाई करते हुए नूंह जिले के कुख्यात और ₹5000 के इनामी बदमाश राहुल उर्फ धौलू को हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित मनाली से गिरफ्तार कर लिया। आरोपी के खिलाफ हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में कई संगीन मामलों में संलिप्त होने के आरोप हैं। वह थाना सदर नूंह एवं पुलिस स्टेशन रोज़का मेव में दर्ज एफआईआर संख्या 151, दिनांक 17 अगस्त 2025 में वांछित चल रहा था, जिसके चलते उसकी गिरफ्तारी पर ₹5000 का इनाम घोषित किया गया था। एसटीएफ ने गुप्त सूचना और तकनीकी निगरानी के आधार पर उसे मनाली में दबोच लिया।

राहुल उर्फ धौलू का आपराधिक रिकॉर्ड अत्यंत चिंताजनक है और वह डकैती, यौन अपराध, अपहरण, हत्या के प्रयास और धमकी सहित कुल सात मामलों में वांछित रहा है। वर्ष 2014 में थाना सदर नूंह में यौन अपराध और अपहरण का मामला दर्ज हुआ। वर्ष 2020 में सदर सोहना, गुरुग्राम में धारा 395 आईपीसी के तहत डकैती का मुकदमा और वर्ष 2021 में थाना डीएलएफ फेज-1, गुरुग्राम में धारा 160 आईपीसी के तहत मुकदमा पंजीकृत हुआ। वर्ष 2022 में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उसके खिलाफ डकैती और चोरी का माल रखने का मामला दर्ज किया गया, जबकि इसी वर्ष थाना सदर नूंह में उस पर हत्या के प्रयास और धमकी का एक और मुकदमा दर्ज हुआ। आरोपी को सदर सोहना, गुरुग्राम के एक मामले में अदालत द्वारा प्रोक्लेम्ड ऑफेंडर भी घोषित किया जा चुका था। गिरफ्तारी के बाद उसे आगे की कानूनी कार्रवाई हेतु गुरुग्राम पुलिस के पीओ स्टाफ के हवाले कर दिया गया है।

ऑपरेशन ट्रैक डाउन

5 से 16 नवंबर 2025 तक चलाया गया ये अभियान राज्य में सक्रिय संगठित अपराध और आपराधिक गिरोहों के खिलाफ बेहद प्रभावी सिद्ध हुआ है। इस 12 दिवसीय कार्रवाई के दौरान हरियाणा पुलिस ने आर्म्स एक्ट, हत्या, हत्या के प्रयास, रंगदारी, डकैती, लूट, झपटमारी और अपहरण जैसे जघन्य अपराधों से जुड़े कुल 518 मामलों में 670 अपराधियों को गिरफ्तार किया। अन्य मामलों में 2724 अतिरिक्त गिरफ्तारियाँ की गईं। अभियान में 179 हिस्ट्रीशीट या व्यक्तिगत फाइलें खोली गईं तथा बड़ी मात्रा में अवैध हथियार बरामद किए गए, जिनमें 250 कारतूस/कार्टिलेज, 21 देशी कट्टे, 55 पिस्तौल, 7 मैगज़ीन, 2 रिवॉल्वर और 4 बंदूकें शामिल हैं।

16 नवंबर को हरियाणा पुलिस ने राज्यभर में संगठित और गंभीर अपराधों के खिलाफ गहन कार्रवाई करते हुए 48 गंभीर मामले दर्ज किए और इन मामलों में शामिल 60 अपराधियों को गिरफ्तार किया। इस कार्रवाई में गुरुग्राम, पलवल, भिवानी और झज्जर जिलों ने प्रमुख भूमिका निभाई। गुरुग्राम में 13 मामलों में 14 गिरफ्तारियाँ, पलवल में 8 मामलों में 9 गिरफ्तारियाँ, भिवानी में 4 मामलों में 8 गिरफ्तारियाँ और झज्जर में 7 मामलों में 8 गिरफ्तारियाँ दर्ज की गईं। फरीदाबाद में हत्या के 3 मामलों में 5 गिरफ्तारियाँ हुईं। इसके साथ ही 29 नए हिस्ट्रीशीट भी खोले गए, जिनमें कुरुक्षेत्र जिला सबसे आगे रहा।

बिक्री के लिए खबरें!

पेड न्यूज या पेड कंटेंट से तात्पर्य समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रकाशित उन लेखों अथवा खबरों से है, जिनके लिए बाकायदा प्रकाशन के माध्यमों के लिए भुगतान किया जाता है। संस्थान खबरों को प्रकाशित-प्रसारित करने के लिए तय रकम देते हैं और मीडिया संस्थान उनके लिए उनके अनुकूल परिस्थितियां खबरों के माध्यम से तैयार करते हैं। ऐसी खबरें विज्ञापनों जैसी होती हैं, लेकिन विज्ञापन टैग के बिना। इस प्रकार के समाचार को लंबे समय से एक गंभीर कदाचार माना जाता रहा है, क्योंकि यह खबरें नागरिकों, पाठकों से सही तथ्यों को छिपाकर उन्हें धोखा देती हैं। खबरों के रूप में दिखाई देने वाली ये सामग्री वास्तव में एक विज्ञापन ही होती हैं। दूसरी बात इस तरह की खबरों के लिए किए जाने वाले भुगतान के तरीके अक्सर कर नियमों और चुनाव व्यय कानूनों का उल्लंघन करते हैं। इससे अधिक गंभीर बात यह है कि इससे चुनावी चिंताएं पैदा होती हैं, क्योंकि मीडिया सीधे तौर पर मतदाताओं को प्रभावित करता है। पेड न्यूज को भ्रष्टाचार का एक रूप माना जाता है और यह अक्सर चुनावों के दौरान देखा जाता है। इसका उपयोग किसी उम्मीदवार को अनुचित तरीके से लाभ पहुंचाने या नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाता है।
नीरा राडिया टेप विवाद को कौन भूल सकता है? 2001 में स्थापित जनसंपर्क (पीआर) फर्म वैष्णवी कम्युनिकेशंस की प्रमुख नीरा राडिया देश के कुछ सबसे बड़े कॉर्पोरेट घरानों को अपने ग्राहकों में गिनती हैं, जिनमें टाटा और रिलायंस सबसे मूल्यवान हैं। राडिया को एक पीआर पेशेवर के रूप में कम और एक लॉबिस्ट के रूप में अधिक संदर्भित किया गया, जो कॉर्पोरेट घरानों, पत्रकारों, राजनेताओं और नौकरशाहों के बीच संपर्क स्थापित करने में शामिल थी। राडिया टेपों के कारण कुछ पत्रकारों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठे। टेपों का सबसे चिंताजनक पहलू यह था कि पत्रकारों की राजनीतिक और कॉर्पोरेट सौदेबाजी में कथित संलिप्तता थी। रिपोर्ट्स से पता चला कि देश के कुछ शीर्ष पत्रकार राजनेताओं, पार्टियों और कॉर्पोरेट घरानों के लिए बिचौलियों का काम कर रहे थे। यह भी एक तरह की पेड न्यूज़ थी।
चूंकि पेड न्यूज का खेल लंबे समय से भारतीय समाज को प्रभावित और परेशान कर रहा है, विशेष रूप से चुनावी मौसम में। ऐसे में तहलका ने बिहार में चुनाव के दौरान और पश्चिम बंगाल सहित कई अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले देश में पहली बार इस भ्रष्टाचार की पड़ताल करने का निर्णय लिया।
‘मैंने तीन वर्तमान मुख्यमंत्रियों की मदद उनकी पेड न्यूज प्रकाशित करवाने में की है। मैंने उनके प्रोफाइल बनाए, उन्हें सोशल मीडिया पर अपलोड किया और पैसे के लिए उनका प्रचार किया। यह तो बस पेड न्यूज़ है।’ -एक प्रमुख डिजिटल ब्रांड के विनोद तिवारी (बदला हुआ नाम) ने कहा।
‘मैं खबर के रूप में पेड विज्ञापन प्रकाशित करूंगा, ताकि भारत का चुनाव आयोग यह पता न लगा सके कि यह भुगतान की गई खबर है या वास्तविक खबर है। पेड-न्यूज़ के कारोबार में चुनाव आयोग को धोखा देने का यह सबसे अच्छा तरीका है।’ -विनोद ने तहलका रिपोर्टर से कहा।
‘आप मुझे बताएं कि चुनाव के दौरान आप अपने उम्मीदवार की खबरें किस चैनल पर चाहते हैं और ऐसा हो जाएगा। मैं यह सेवा भी पैसे के लिए देता हूं।’ -उसने कहा।
‘मैं सब कुछ करूंगा। उम्मीदवारों के चित्र और वीडियो के साथ लेख प्रकाशित करवाऊंगा। यह सब पैसे से होगा। कोई न कोई उम्मीदवार के पक्ष में लेख लिखेगा। पेड न्यूज अखबारों और डिजिटल प्लेटफॉर्म दोनों पर दिखाई देगी और जो कुछ भी मैं आपको बता रहा हूं, वह सब पेड होगा।’ -ट्रेम्ट टेक्नोलॉजी के संस्थापक निदेशक रोहन मिश्रा ने कहा।
‘मैं देश के शीर्ष डिजिटल प्लेटफॉर्म पर एक सकारात्मक खबरें प्रकाशित करने के लिए 16,000 रुपए लेता हूं। यदि आप अपने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों के बारे में नकारात्मक स्टोरी चाहते हैं, तो दोगुनी कीमत देनी होगी। 16 हजार रुपए से 32 हजार रुपए प्रति लेख।’ -रोहन ने हमारे संवाददाता को बताया।
‘बिहार चुनाव में भारत के चुनाव आयोग को धोखा देने के लिए आपके पेड न्यूज को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया जाएगा। आपका लेख प्रत्येक चैनल पर प्रसारित होने वाले शीर्ष सौ खबरों में दिखाई देगा। इसे विज्ञापन की तरह नहीं, बल्कि खबर की तरह प्रस्तुत किया जाएगा, लेकिन इसके लिए आपको भुगतान करना होगा। 15-20 सेकंड के लिए टेलीविजन का शुल्क 35,000 रुपए है।’ -रोहन ने खुलासा किया।
‘मैं लंबे समय से पेड न्यूज का काम कर रहा हूं और कभी पकड़ा नहीं गया। अब पेड न्यूज विक्रेताओं के माध्यम से प्रकाशित की जाती है, इसलिए यह अखबारों में मौलिक रूप में दिखाई देगी। एक रिपोर्टर जाकर स्टोरी करेगा, लेकिन इसके लिए उसे भुगतान किया जाएगा। इसकी दर लगभग 60-65 हजार रुपए प्रति खबर है।’ -उसने आगे कहा।
‘मुझे पेड न्यूज के लिए सभी भुगतान नकद में किए जाएंगे। यदि मैं किसी खाते के माध्यम से कोई भुगतान लेता हूं, तो वह मेरी कंपनी के खाते में नहीं जाएगा; वह किसी अन्य खाते के माध्यम से भेजा जाएगा।’ -रोहन ने बताया।
विनोद कहते हैं कि पेड न्यूज का कारोबार अब अधिक संगठित हो गया है। यह प्रत्यक्ष मीडिया सौदों के बजाय विक्रेताओं के माध्यम से संचालित होने वाला बाजार है। ये विक्रेता राजनेताओं और मीडिया आउटलेट्स के बीच बिचौलियों के रूप में कार्य करते हैं, तथा विषय-वस्तु निर्माण से लेकर प्लेसमेंट तक सब कुछ प्रबंधित करते हैं। विनोद, जो दावा करते हैं कि उन्होंने तीन मुख्यमंत्रियों के साथ काम किया है, अपनी भूमिका को आश्चर्यजनक स्पष्टता के साथ समझाते हैं- ‘मैं उनकी प्रोफाइल बनाता हूँ, उन्हें सोशल मीडिया पर अपलोड करता हूं और उनका प्रचार करता हूं, और ये सब पैसे के लिए करता हूं। ये तो बस पेड न्यूज़ है।’ -उसने तहलका से कहा।
व्यवसाय से जुड़े एक अन्य विक्रेता रोहन मिश्रा ने भी विनोद की बातों को दोहराते हुए कहा कि चुनावों के दौरान ऐसी सेवाओं की मांग बढ़ जाती है। ‘स्थानीय विधायकों से लेकर बड़े नेताओं तक, हर कोई खबरों में छाये रहने के लिए मीडिया संस्थानों पर कब्जा करना चाहता है। हम ऐसा करते हैं।’ -उसने मुस्कुराते हुए कहा।
निम्नलिखित बातचीत में विनोद ने स्वीकार किया कि वह राजनेताओं के लिए संपूर्ण ब्रांडिंग उपलब्ध कराता है, जिसमें चुनावी पैकेज भी शामिल हैं, जो उम्मीदवारों की प्रोफाइल तैयार करते हैं और उनका प्रचार करते हैं। उनका कहना है कि उन्होंने पहले भी ऐसे प्रोफाइल बेचे हैं और डिजिटल तथा समाचार प्लेटफॉर्म पर प्रचार के लिए शुल्क लेते हैं। विनोद का कहना है कि इन वस्तुओं को समयबद्ध तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, ताकि चुनाव आयोग आसानी से यह न पहचान सके कि इन्हें भुगतान किया गया है।

रिपोर्टर : इसके अलावा आप ब्रांडिंग भी करते हैं- इंडिविजुअल, इलेक्शंस में, जैसे पॉलिटिशियंस हैं, इलेक्शन कॉन्टेस्ट करते हैं?
विनोद : हां।
रिपोर्टर : करते हैं आप?
विनोद : करते हैं, मैंने XXXX साहब की की है।
रिपोर्टर : XXXXXX की?
विनोद : हां, हां… XXXXXX की है, XXXXX के लिए काम किया है।
रिपोर्टर : इलेक्शंस में पेड न्यूज, …वो कैसे करोगे आप?
विनोद : इलेक्शंस के लिए मेरे पास पूरा एक पैकेज है, पैकेज के थ्रू मैं सारी चीजें कर सकता हूं।
रिपोर्टर : देखिए, दो चीजें होंगी, …एक तो नेताजी अपना प्रोफाइल बनाके आप को दे देंगे, वो आपको चलवाना है न्यूज पेपर्स में, अखबारों में उसको पब्लिश करवाना है। एक तरीका ये होगा कि नेताजी कहेंगे मेरी ब्रांडिंग करवानी है, टीम आपकी होगी। अब आप कैसे करेंगे? लेकिन होगा वो इलेक्शन अनाउंस होने के बाद ही, तो आपको ये देखना है कि इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया के सामने न पता चल पाए कि ये पेड न्यूज है।
विनोद : वो सब मैं करा लूंगा, वो कहीं किसी की नजरों में नहीं आने वाला, इलेक्शन कमीशन आल्सो नाउ कि यही टाइम होता है अपने को पुलिंग करवाने का, ये हर जगह होता है। ऐसे कोई दिक्कत वाली बात नहीं है।
रिपोर्टर : तो आप कर चुके हो पेड न्यूज इलेक्शन के टाइम में?
विनोद : हां।
रिपोर्टर : पक्का?
विनोद : हां, मैंने बताया ना इलेक्शन टाइम में मैंने इन लोगों की ऐसी-ऐसी प्रोफाइल बेची है सर!
रिपोर्टर : तो इसमें पेड न्यूज थोड़ी होगा XXXXXX एट्च में?
विनोद : बट मैंने उनका प्रोफाइल बनाया, उसको लोड भी किया। चार्जेज भी लिए, आलसो उन्होंने बोला मेरा ये वीडियो है, इसको प्रमोट करिए, या मैं ये चीज कर रहा हूं, आप इसको लिखवाइए, तो वो पेड ही तो हुआ सर!

जब बात पेड न्यूज की आती है, तो हम भारत के चुनाव आयोग से कैसे बच सकते हैं? इस सवाल के जवाब में विनोद ने हमें बताया कि वह भुगतान की गई सामग्री को सामान्य समाचार की तरह प्रस्तुत करता है, यह सामान्य रिपोर्टिंग की तरह दिखता है। लेकिन इसके लिए भुगतान किया जाता है, इसलिए ईसीआई इसे पहचान नहीं पाएगा। इस संक्षिप्त बातचीत में विनोद ने बताया कि किस तरह राजनीतिक खबरों को जनता तक पहुंचने से पहले उन्हें तैयार किया जाता है।
विनोद : मैं XXXXX के लिए काम करता हूं।
रिपोर्टर : किस टाइप की स्टोरीज लग सकती हैं?
विनोद : जैसे हमारे पास न अभी कुछ पॉलिटिकल स्टोरीज आ रही थी, जैसे हर पॉलिटिकल पार्टी ये चाहती है कि मेरे जो इंटरव्यू हैं, वो लोगों तक पहुंचे, कैसे पहुंचेगी? …जब आप उस स्टोरी को एक न्यूज वे में पेश करो। अगर आप सीधा-सीधा बोलोगे, तो सब लोग समझ जाएंगे कि ये पेड स्टोरी है।

विनोद ने स्वीकार किया कि वह भारत में किसी भी समाचार चैनल पर खबरें प्रकाशित करवाने का व्यवसाय करता है। उसने कहा कि उनके पास लोगों की स्टोरीज को समाचार प्लेटफार्मों पर प्रकाशित कराने में मदद करने के लिए पहुंच और संपर्क हैं। उसने बताया कि पार्टियां चाहती हैं कि उनके साक्षात्कार प्रायोजित लगे बिना लोगों तक पहुंचें। विनोद का कहना है कि असली तरकीब उन्हें खबरों के रूप में प्रस्तुत करने में है।
विनोद : कहने का मोटिव ये है कि मेरे पास चीजें सारी हैं, मेरे पास रीच है, चैनल्स हैं। आप जो कहेंगे, मेरे पास वो सारी चीजें हैं।
रिपोर्टर : चैनल्स में भी स्टोरी लग सकती है?
विनोद : आप बताओ कौन-सी है और किस चैनल में लगानी है आपको>
रिपोर्टर : अच्छा, ये भी सर्विस है आपके पास?
विनोद : ये भी हैं।

अब विनोद ने खुलासा किया कि कैसे एक बार भाजपा उम्मीदवार के प्रचार के लिए उसने जो सौदा किया था, वह विफल हो गया था। विनोद के अनुसार, विधानसभा चुनाव लड़ रही भाजपा की एक उम्मीदवार, जो पूर्व महापौर है; ने उसे फोन किया था और अपने निर्वाचन क्षेत्र के लगभग 1.5 से 2 लाख मतदाताओं के मतदाता पहचान पत्र और फोन नंबर दिए थे। विनोद को उन मतदाताओं को व्हाट्सएप संदेश भेजकर भाजपा उम्मीदवार को वोट देने के लिए कहना था। विनोद ने बताया कि सौदा आठ लाख रुपए में तय हुआ था। लेकिन जल्द ही भाजपा आईटी सेल को इसकी जानकारी हो गई और उन्होंने सौदा रद्द कर दिया। विनोद ने कहा कि यह सौदा इसलिए रद्द किया गया, क्योंकि भाजपा में सब कुछ केंद्रीकृत है, यहां तक कि प्रचार के लिए भी उम्मीदवार स्वतंत्र एजेंसियों को नियुक्त नहीं कर सकते। पार्टी ऐसे सभी काम स्वयं ही संभालती है।
विनोद : वो XXXXX हैं ना XXXX में, तो उनको  चांसेज थे टिकट मिलने के बीजेपी से, जब XXXXX इलेक्शन हुआ था।
रिपोर्टर : XXXXXX तो शायद मेयर भी रह चुकी हैं?
विनोद : हां, मेयर भी रह चुकी हैं। सो मैं उनके टच में आया था, तो पेड प्रमोशंस की बात चल रही थी, तो उस समय XXXXX चैनल फंडिंग कर रहा था, तो उन्होंने मेरे को बोला मेरे को व्हाट्सएप कैंपेनिंग करना है। व्हाट्सएप पर मैसेजेज भेजना था, मैंने बोला हो जाएगा। मेरे को दे दो।
विनोद (आगे) : मैंने कहा आप मेरे को मेंबर्स दे दो। उन्होंने बोला मैं अपनी कॉन्स्टीट्वेंसी से जो 1.5 लाख से 2 लाख तक मेंबर्स दूंगा, उसमें आपको भेजना है। मैंने बोला ठीक है। मैंने उनको कॉस्टिंग दी, सब चीज़ें फाइनल हो गयी, बट बीजेपी का क्या है सर कि उनका खुद का अपना एक पूरा चैनल है। सो दे सैड अगर आपको कोई भी प्रमोशन करनी है, तो उसे अवर इंटरनल चैनल्स ओनली।
विनोद (आगे) : तो XXXXX को पता चला कि ये ऐसे-ऐसा व्हाट्सएप पर प्रमोशन करवाना चाहती हैं, तो उन्होंने उस बंदे को इनसे कॉन्टेक्ट करवा दिया, तो मेरी डील समझिए आप साइन होते-होते रह गई।
रिपोर्टर : कितने की थी डील?
विनोद : वो मेरी डील थी 8 लाख के आसपास की थी।
रिपोर्टर : एक इलेक्शन की?
विनोद : हां, सिर्फ व्हाट्सएप कैंपेन।
रिपोर्टर : XXXXX इलेक्शन में?
विनोद : ये सर जो अभी XXXX में हुआ है, इसी इलेक्शन में।
रिपोर्टर : तो वोटर आईडी से ही सारे नंबर निकाल रहे होंगे?
विनोद : उन्होंने क्या किया था, वोटर आईडी की पूरी लिस्ट मेरे पास आ गई थी, जिसके अंदर मेरे को मैसेज सेंड करने थे।

विनोद के बाद तहलका रिपोर्टर ने रोहन मिश्रा से मुलाकात की, जो एक अन्य पेड न्यूज प्रकाशित-प्रसारित करने वाले हैं और ट्रेम्ट टेक्नोलॉजी के संस्थापक निदेशक हैं। रोहन ने तहलका के संवाददाता को यह भी बताया कि वह सब कुछ संभाल लेंगे, उम्मीदवारों की तस्वीरों और वीडियो के साथ लेख प्रकाशित करवाना। यह सब भुगतान किया जाएगा। रोहन के अनुसार, कोई व्यक्ति चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार के पक्ष में लेख लिखता था। उन्होंने कहा कि पेड न्यूज अखबारों और डिजिटल प्लेटफॉर्म दोनों पर दिखाई देगी और उन्होंने जो कुछ भी उल्लेख किया है, उसके लिए पेड न्यूज होगी।
रिपोर्टर : वो आप कैसे करेंगे, मतलब आर्टिकल पब्लिश करवाएंगे?
रोहन : आर्टिकल भी है, फोटो भी है, वीडियो शूटिंग भी होती है।
रिपोर्टर : अखबारों में आर्टिकल पब्लिश कराएंगे, पेड होंगे वो सारे?
रोहन : पेड होंगे, …जो आर्टिकल लिखे जाते हैं, जैसे बैनर होता है।
रिपोर्टर : मैं प्रिंट की बात कर रहा हूं. अखबार की; डिजिटल की नहीं।
रोहन : मैं दोनों की बात कर रहा हूं, आर्टिकल लिखे जाएंगे, किसी के थ्रू लिखे जाएंगे।
रिपोर्टर : पैसा देना पड़ेगा ना उसमें?
रोहन : जो भी चीज मैं बोल रहा हूं, सब चीज के पैसे हैं।



अब रोहन ने तहलका को बताया कि वह देश के शीर्ष डिजिटल प्लेटफॉर्म पर एक सकारात्मक कहानी प्रकाशित करने के लिए 16,000 रुपये लेते हैं। रोहन ने कहा कि यदि हम प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों के बारे में कोई नकारात्मक स्टोरी प्रकाशित करवाना चाहते हैं, तो शुल्क दोगुना हो जाएगा- 16,000 रुपये प्रति स्टोरी से बढ़कर 32,000 रुपये प्रति स्टोरी हो जाएगा। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि एक कहानी प्रकाशित होने में उन्हें सिर्फ एक घंटा लगता था।
रोहन : हम आर्टिकल भी करवाते हैं।
रिपोर्टर : आर्टिकल पब्लिश करवाते हो अखबारों में?
रोहन : हां, डिजिटल में भी करवाते हैं।
रिपोर्टर : क्या रेट है उसका?
रोहन : डिपेंड करता है कौन-सा है। XXXXX का हम देते हैं 16,000 रुपए में, XXXX है, XXXXX न्यूज है, XXXX न्यूज है, XXXX है, XXXX है, XXXXX….।
रिपोर्टर : सब डिजिटल हैं ये?
रोहन : हां।
रिपोर्टर : अखबार नहीं है कोई?
रोहन : अखबार नहीं है, अखबार का अलग होता है।
रिपोर्टर : इसमें पॉजिटिव स्टोरी करवाते हो या नेगेटिव?
रोहन : मेनली तो पॉजिटिव, उसका (नेगेटिव का) डबल लगता है, 15 का 32 हजार।
रोहन (आगे) : ठीक है, वो डबल लगेगा।
रिपोर्टर : नेगेटिव का हो जाएगा?
रोहन : हां।
रिपोर्टर : हो जाएगा, पर डबल लगेगा?
रोहन : पता होना चाहिए ना, क्या हा स्टोरी। किसके बारे में है? 16 का 32 लगेगा।
रिपोर्टर : पक्का छपवा दोगे?
रोहन : हां, एक घंटे में छपवा दूंगा।
रिपोर्टर : किसमें छपवा दोगे?
रोहन : XXXX में, सब पर छपवा दूंगा, XXX, XXXX….।
रिपोर्टर : एक घंटे में छपवा दोगे, पक्का?
रोहन : पक्का।
रिपोर्टर : पैसा बाद में दूंगा, मैं दे चुका हूं पहले आपको।
रोहन : ठीक है आधा-आधा करेंगे।
रिपोर्टर : 16 पहले, 16 बाद में?

अब रोहन ने बिहार चुनाव के दौरान पेड न्यूज कैसे काम करती है, इस पर विस्तार से चर्चा की। रोहन के अनुसार, हमारी पेड न्यूज को भारत के चुनाव आयोग को धोखा देने के लिए सही तरीके से प्रस्तुत किया जाएगा। यह प्रमुख टीवी चैनलों पर प्रसारित शीर्ष सौ खबरों में शामिल होगा, जिसे विज्ञापन के बजाय नियमित समाचार के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। लेकिन इसके लिए पूरा भुगतान किया जाएगा। रोहन ने तहलका रिपोर्टर को बताया कि 15 से 20 सेकंड के स्लॉट के लिए शुल्क 35,000 रुपए होगा।
रिपोर्टर : चुनाव आयोग की पकड़ में तो नहीं आ जाएंगे पेड एडवर्टीजमेंट?
रोहन : पेड एड पकड़ में तो आते हैं…, अच्छाई ये है, पेड एड इसलिए लोग ज्यादा नहीं कराते। उनको लगे ही न पेड है।
रिपोर्टर : कैसे करवाओगे फिर?
रोहन : जैसे XXXX है आपका, उसमें सुबह एक न्यूज आती है, फर्स्ट 1000 क्रेक एक न्यूज आती है सुबह, जिसमें 100 न्यूज बताते हैं 10 मिनट के अंदर उसमें 15 सेकंड की क्लिप जाती है, बाइट जाती है, सब लगाते हैं।
रोहन (आगे) : 35 के तक होता है, जैसे अगर मैं XXXX को दूंगा तो वो 35के में तो वो हमारा क्लिप लगा देगा टॉप 100 न्यूज में 15-20 सेकंड का मैक्सिमम, और XXXX जहां-जहां चलता है, वहां वो चलेगा। पेड एड में हम डाइमेंशन कंट्रोल कर सकते हैं, लेकिन जब ऑर्गेनिक एप चलाते हो ना, तो डाइमेंशन कंट्रोल नहीं कर सकते। और दूसरी बात जो ये फास्ट न्यूज चलते हैं ना, इसमें कोई पोड का सिस्टम नहीं होता, ये हमें डायरेक्टली करना होता है।
रिपोर्टर : डाइमेंशन कंट्रोल कर सकते हैं,…इसका क्या मतलब?
रोहन : जैसे हम काम कर रहे हैं और पेड न्यूज चलाते हैं हम लोग। जैसे अगर हमें बिहार में दिखाना है, तो बिहार में ही दिखेगा, बट जब ऑर्गेनिक दिखाते हो, उसमें कंट्रोल नहीं हो सकता, कि सिर्फ बिहार में दिखे, बिहार के बाहर न दिखे। जैसे XXXX चल रहा है, तो XXXXX लोग जहां-जहां देख रहे हैं, …चाहे इंडिया में या इंडिया के बाहर, तो उनको भी हमारा एड दिखेगा उस टाइम पर, बट ऑर्गेनिक होगा, और इसमें चुनाव आयोग कुछ नहीं कर पाएगी। …इसमें कुछ नहीं होगा ना व्हाइट मनी जाएगी आपकी। तो 15-20 सेकंड की बाइट जाएगी हर चैनल पर और हर चैनल का कास्ट है 35000 रुपए एक दिन का।
रिपोर्टर : 15 सेकंड की कॉस्ट है 35 थाउजेंड?
रोहन : हां, मतलब XXX का 15-20 सेकंड का 35के, XXXX न्यूज का जहां-जहां में चलवाना है।
रिपोर्टर : जो बिहार में है?
रोहन : जैसे XXXX का है बिहार XXXX, ऐसे बहुत सारे हैं, ये चुनाव आयोग के पकड़ में नहीं आता, क्योंकि ये ऑर्गेनिक है, इसलिए पेड एड में तो लिखा होता है ना प्रॉपर्टी ‘स्पॉन्सर्ड’ यहां लिखा नहीं होता।

यहां, रोहन पेड न्यूज पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यप्रणाली की पूरी झलक प्रस्तुत करते हैं – जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार प्रशंसक क्लबों के माध्यम से भुगतान को छिपाया जाता है, तथा किस प्रकार विज्ञापनों को ऑर्गेनिक कहानियों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। उन्होंने स्वीकार किया कि वे लंबे समय से पेड न्यूज के धंधे में हैं और कभी पकड़े नहीं गए। उनके अनुसार, अब पेड न्यूज विक्रेताओं के माध्यम से प्रसारित की जाती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि समाचार पत्रों में प्रकाशित होने पर यह ऑर्गेनिक लगे। रोहन ने कहा कि रिपोर्टर जाकर स्टोरी दर्ज कर सकता है, लेकिन उसे फिर भी भुगतान किया जाएगा – प्रति स्टोरी लगभग 60,000 से 65,000 रुपये की दर से। उन्होंने यह भी कहा कि कभी-कभी फैन क्लबों के माध्यम से पेड न्यूज चलाई जाती है, जहां उम्मीदवार के समर्थक – जो चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के अंतर्गत नहीं आते हैं – फैन पेजों के माध्यम से अपने उम्मीदवार के पक्ष में पेड कंटेंट चलाते हैं। टीवी पर चर्चा के बाद रोहन ने हमें समाचार पत्रों के लिए भुगतान की गई समाचार दरों के बारे में भी बताया।
रिपोर्टर : आप पेड न्यूज करा चुके हो पहले?
रोहन : हां, करा चुके हैं, ये कभी पकड़ में नहीं आएगा, ऑर्गेनिक वाला नहीं पकड़ में आता, XXXX वाला थोड़ी करेगा हम पैसे लेकर काम कर रहे हैं।
रोहन (आगे) : हमारा जो एड है ना, वो फैन क्लब से चलता है।
रिपोर्टर : मतलब?
रोहन : मान लीजिए जैसे पॉलिटिकल पार्टी को बैन होता है, तब फैन क्लब चलता है, मतलब लोग अपना पैसा लगा रहे हैं, ना कि कैंडिडेट अपना पैसा लगा रहा है। इसलिए हम कभी कैंडिडेट की प्रोफाइल से एड नहीं चलाते, अगर चलाते हैं, तो थर्ड पार्टी से।
रिपोर्टर : मतलब फैंन चलाते हैं?
रोहन : हां, फैंस चलाते हैं। मतलब हमको थोड़ी चुनाव आयोग मना करेगा, हम से क्वेश्चन कर भी ले चुनाव आयोग, हम कहेंगे हमारा कैंडीडेट जीते, और चुनाव के दायरे में हम आते ही नहीं किसी तरीके से।
रिपोर्टर : अगले साल और स्टेट्स में भी चुनाव हैं, वहां भी हो जाएगा पेड न्यूज?
रोहन : हां, पेड न्यूज सब जगह हो जाएगा, सबका सिस्टम एक ही है, चाहे हम चलाएं या कोई और।
वेंडर : सिस्टम एक ही होगा।
रिपोर्टर : आपका एप्रोच चैनल और न्यूजपेपर में डायरेक्ट है या वेंडर के थ्रू?
रोहन : हमारा खुद का पोर्टल है, हमने वेंडरशिप ले रखी है सबसे हमने, पेपर में ले रखी है, डिजिटल में ले रखी है, टीवी में है, साथ में बिलबोर्ड में भी।
रिपोर्टर : जो सड़कों में बिलबोर्ड लगते हैं?
रोहन : हां, बट वो मेरा दिल्ली-एनसीआर तक ही है, ….बिलबोर्ड का।
रिपोर्टर : आप जो काम कर रहे हो, थ्रू वेंडर के कर रहे हो?
रोहन : मतलब मैं सब वेंडर हूं, मान लीजिए आप।
रिपोर्टर : ये 35 थाउजेंड जो चैनल का है, इसमें सब इन्क्लूसिव है, आपका भी?
रोहन : हां।
रिपोर्टर : अखबार में?
रोहन : अखबार में जितना भी होगा, उसका 20 परसेंट हम चार्ज करते हैं।
रिपोर्टर : अखबार में कैसे करते हैं?
रोहन : दो तरीके हैं, एक तो हमने एड लगा लिया, दूसरा एडिटर जो लिखता है, या रिपोर्टर जाता है और लिखता है, वो ऑर्गेनिक होता है, तो वो चुनाव आयोग की नहीं पकड़ में आता है। अगर आप अखबार में बड़ा एड दिखाते हो, तो उसका बिल देना पड़ता है कि आपने लगाया था पैसा।
रिपोर्टर : आप कैसे करवाओगे?
रोहन : देखो, मैं कहूंगा 19-20 वाला करते हैं कुछ एड भी लगाते हैं, उसके साथ किसी एडिटर के साथ, मतलब प्रेस वालों से करवाएंगे। जैसे XXXX है, XXXX है, इनके रिपोर्टर आपके बारे में लेख लिखेंगे और आपका पिक्चर लगा देंगे, कि मैं गया, देखा और लिखा। जबकि बंदा खुद लिख रहा है, वो उसकी रिस्पॉन्सिबिलिटी है, जो लिख रहा है।
रिपोर्टर : उसका क्या चार्ज होगा?
रोहन : वो डिपेंड करता है कौन-सा पेपर है, कितना चार्ज करेगा? मतलब मान लीजिए 70 से 1.5 लाख तक जाता है।
रिपोर्टर : एक आर्टिकल का?
रोहन : बड़ा सा पेज पर जाएगा, उसका आधा पेज का होगा।
रिपोर्टर : XXXXX बड़ा अखबार है बिहार का?
रोहन : उसका अलग होगा, XXXX का अलग होगा। कम से कम 65-70 के जाएगा हाफ पेज का, ये मैं ऑर्गेनिक बता रहा हूं, एड का तो और ज्यादा जाएगा। वो तो 3-3.5 लाख है, आधे पेज का; क्यूंकि वो प्रॉपर्टी दिखता है उस पर लिखा होता है ‘स्पॉन्सर्ड’।

रोहन ने हमें बताया कि पेड न्यूज के लिए सभी भुगतान नकद में किए जाएंगे, बिना किसी बिल या जीएसटी के। उसने कहा कि यदि कोई भुगतान बैंक खाते के माध्यम से किया जाता है, तो वह उनकी कंपनी के खाते में नहीं जाएगा, बल्कि किसी अन्य खाते में जाएगा। रोहन ने आगे कहा कि उनकी पेड न्यूज सेवाएं अगले साल पश्चिम बंगाल, असम और अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के दौरान भी उपलब्ध रहेंगी।
रिपोर्टर : इसमें पेमेंट एडवांस होगा?
रोहन : पेमेंट एडवांस होगा और उसके साथ-साथ आपको मेरे किसी अकाउंट में ट्रांसफर करना होगा, मैं बताऊंगा आपको पेमेंट का। कंपनी में नहीं जाएगा।
रिपोर्टर : मतलब?
रोहन : मतलब इसका कोई जीएसटी बिल नहीं मिलेगा, मेरा ये मतलब है।
रिपोर्टर : बिल नहीं मिलेगा ना?
रोहन : हां, बिल नहीं मिलेगा।
रिपोर्टर : मतलब आप कैश पेमेंट लोगे ना?
रोहन : हां, कैश लेंगे या जिस भी अकाउंट में लेना होगा मुझे तो अकाउंट में जिसमें बोलूंगा, उसमें करेंगे। मैक्सिमम कैश रहेगा, जितना ज्यादा कैश दे पाएंगे, उतना अच्छा रहेगा। आपके लिए भी बेहतर है और हमारे लिए भी बेहतर है।
रिपोर्टर : मतलब सारे इलेक्शंस में ये हो जाएगी पेड न्यूज?
रोहन : हां, कोई भी हो। यही चल भी रहा है। हम देख रहे हैं बिहार में बहुत चल रहा है।

अब रोहन ने खुलासा किया कि कैसे वह अमेरिका के कैलिफोर्निया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वैज्ञानिक के रूप में काम कर रहे एक भारतीय को भारतीय मीडिया में सकारात्मक पेड न्यूज प्रकाशित करवाकर स्थायी निवास (पीआर) प्राप्त करने में मदद कर रहा है। रोहन बताता है कि सकारात्मक खबरों को किस प्रकार तैयार किया गया, भुगतान किया गया, और किस प्रकार ऐसी खबरों को ग्राहक की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए रणनीतिक रूप से विभिन्न प्लेटफार्मों पर रखा जाता है।
रोहन : एक क्लाइंट है, यूएस कैलिफोर्निया में, XXXX….।
रिपोर्टर : क्या नाम है …XXXX?
रोहन : XXXXXX
रिपोर्टर : बिजनेसमैन है ये?
रोहन : नहीं, इनका भी पॉजिटिव इमेज बनाना है, ताकि इनको परमानेंट पीआर मिले वहां।
रिपोर्टर : यूएस में?
रोहन : अभी अवार्ड भी दिलवा रहे हैं।
रिपोर्टर : किस सेक्टर में हैं ये?
रोहन : एआई में।
रिपोर्टर : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंडिया का बंदा है?
रोहन : इंडिया का है।
रिपोर्टर : इंडिया में कहां से?
रोहन : नोेएडा।
रिपोर्टर : तो ये इसलिए पॉजिटिव स्टोरी छपरा रहे हैं, ताकि इनका पीआर हो जाए?
रोहन : हां, पॉजिटिव बनाना है।
रिपोर्टर : तो वहां तक जाती हैं खबरें?
रोहन : धीरे-धीरे लगा देते हैं ना, जैसे XXXX है, सब में आएगी।
आगामी बातचीत में रोहन बताते हैं कि किस प्रकार वे लोगों को सरकारी पुरस्कार दिलाने में मदद करने के लिए अनुकूल मीडिया कवरेज तैयार करते हैं। उन्होंने बताया कि वह एक लड़के को भारतीय मीडिया में सकारात्मक खबर प्रकाशित करवाकर बच्चों के लिए भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार प्राप्त करने में मदद कर रहे हैं। ये पुरस्कार जनवरी में भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किये जाते हैं।
रोहन : आपने बाल पुरस्कार अवार्ड सुना है आपने?
रिपोर्टर : बाल पुरस्कार?
रोहन : पीएम देते हैं ये।
रिपोर्टर : कौन देते हैं?
रोहन : प्रधानमंत्री, पीएम देते हैं, …पीएम या प्रेसिडेंट।
रिपोर्टर : 26 जनवरी को?
रोहन : हां, रिपोर्टर वो तो नहीं है, जो बहादुरी वाले अवार्ड मिलते हैं बच्चों को?
रोहन : बच्चों को, हां, सोशल वर्क के लिए मिलता है।
रिपोर्टर : गैलेंट्री अवार्ड?
रोहन : तो इस बच्चे ने अप्लाई किया हुआ था अवार्ड के लिए, तो इसकी पॉजिटिव न्यूज बनाया था।
रिपोर्टर : अच्छा बच्चे का क्या नाम है?
रोहन : XXXX
रिपोर्टर : ये चाह रहा है मुझे गैलेंट्री अवार्ड मिल जाए?
रोहन : ये नहीं, इसकी मां, इसको पता नहीं कुछ; इसकी मदर कर रही है सब।
रिपोर्टर : इसने कोई गैलेन्ट्री वाला काम किया है?
रोहन : हां, इसने एक सॉफ्टवेयर बना रखा है, बच्चों को पढ़ाने के लिए, स्मार्ट गैजेट।
रिपोर्टर : बच्चे ने?
रोहन : हां तो इसको हम प्रमोट कर रहे हैं, इसका वेबसाइट भी है।

भारत में पेड न्यूज पर कार्रवाई में भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) शामिल है, जो जांच करता है और इसकी लागत को उम्मीदवार के खर्च में जोड़ता है और प्रिंट मीडिया के लिए भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) शामिल है, जो मीडिया घरानों की निंदा कर सकता है। प्रस्तावित विधायी कार्रवाई में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 के तहत पेड न्यूज को चुनावी अपराध बनाना शामिल है। हालांकि यह अभी भी सरकार की मंजूरी के लिए लंबित है।
विनोद और रोहन के बाद हमारी मुलाकात दीपक सिंह (बदला हुआ नाम) से हुई, जो पेड न्यूज का कारोबार करने वाले एक अन्य विक्रेता हैं। उन्होंने हमें यह भी आश्वासन दिया कि वे हमारी कहानी देश के किसी भी डिजिटल समाचार प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित करवा सकते हैं। इस स्टोरी को लिखते समय दीपक ने तहलका को कई अखिल भारतीय मीडिया घरानों की रेट लिस्ट भेजी थी, जो पैसे लेकर स्टोरी प्रकाशित करते हैं। उनके अनुसार, कुछ मीडिया संस्थान ऐसी सामग्री को प्रायोजित बताते हैं, जबकि अन्य ऐसा नहीं करते।
रोहन मिश्रा ने तहलका के साथ उन मीडिया संस्थानों की एक रेट कार्ड भी साझा किया है, जहां पेड न्यूज़ प्रकाशित की जा सकती है। उनकी सूची काफ़ी लंबी है, लेकिन कुछ अंश नीचे दिए गए हैं :-
एक प्रमुख समाचार चैनल – दिल्ली-एनसीआर में 1-टू-1 स्टूडियो साक्षात्कार : 75,000 रुपए (23 मिलियन ग्राहक)
एक प्रमुख समाचार चैनल – दिल्ली-एनसीआर में 1-टू-1 स्टूडियो साक्षात्कार : 75,000 रुपए (48 मिलियन ग्राहक)
एक प्रमुख प्रसारण मंच – दिल्ली-एनसीआर में 1-टू-1 स्टूडियो साक्षात्कार : 90,000 रुपए (43 मिलियन ग्राहक)

ये साक्षात्कार 30-40 मिनट तक चलते हैं और संबंधित चैनलों के डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रसारित किए जाते हैं। टेलीविजन के अलावा तहलका के पास पेड न्यूज में शामिल कई अखिल भारतीय समाचार पत्रों और समाचार एजेंसियों की रेट लिस्ट भी है। निष्कर्ष यह स्पष्ट करते हैं कि किस प्रकार वाणिज्य ने पत्रकारिता में चुपचाप घुसपैठ कर ली है, जहां राजनीतिक प्रभाव, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और लाभ एक दूसरे से मिलकर स्वतंत्र प्रेस के विचार को विकृत कर देते हैं।

बिहार चुनाव 2025 

बिहार के चुनाव परिणाम जिस सुस्त, धुंधले नवंबर की सुबह खुलने शुरू हुए, उसी क्षण से यह साफ़ होने लगा था कि यह सिर्फ़ एक हार-जीत का खेल नहीं है; यह राज्य की मन:स्थिति का वह आइना है जिसमें राजनीति के सारे छल, सारे वादे और सारे भय बिना धूल के दिखने लगते हैं। ईवीएम के उन ठंडे अंकों में न सिर्फ़ राजनीतिक गठबंधनों का भविष्य दर्ज था, बल्कि बिहार के मतदाता के बदलते मानस की छिपी परतें भी थीं।वे परतें, जिन्हें शायद महागठबंधन समझ नहीं पाया और एनडीए ने चुपचाप पढ़ लिया।

सुबह छह बजे जब पहले रुझान आए, राजद कार्यालय में उम्मीदें हवा में तैर रही थीं। पीले रंग की इमारत के बाहर जुटी भीड़ को लग रहा था कि तेजस्वी की मेहनत रंग लाएगी। उनके कस्बों, शहरों, देहातों में फैले भाषणों की तपिश अभी भी लोगों की स्मृति में थी। अधिकार यात्रा के समय लोगों की आँखों में चमक थी। यह चमक कि शायद इस बार कोई नया अध्याय खुलेगा। लेकिन जैसे-जैसे घंटे आगे बढ़ते गए, यह चमक एक बेचैन, चुप्पी भरे डर में बदलने लगी।

यह वही डर था जो महीनों पहले चुनाव की हवा में उड़ रहा था।वह डर, जिसे एनडीए ने बहुत धीरे-धीरे बूथ तक पहुँचाया था। ‘जंगलराज’ का वह पुराना, धुंधला हो चुका मुहावरा फिर एक बार धूल झाड़कर मतदाताओं के मानस में डाल दिया गया। कई युवा तो शायद उस दौर को जानते भी नहीं, लेकिन प्रचार ने उन सबके मन में एक कहानी उकेर दी।एक कहानी कि अगर सत्ता बदली, तो शायद स्थिरता भी खो जाएगी। बिहार का मतदाता स्थिरता से डरता नहीं, पर अस्थिरता से थरथरा उठता है।

इस चुनाव में महागठबंधन का संघर्ष यहीं से शुरू होता है।

तेजस्वी यादव की छवि एक युवा, शांत, नए युग के नेता की थी। वे मंच पर संयमित रहते, विरोधियों को चुनौती भी देते लेकिन भाषा में तीखापन नहीं लाते। उनके चेहरे पर वह साफ़-सुथरी राजनीतिक ऊर्जा थी जिसमें युवाओं को भविष्य दिखता है। लेकिन राजनीति केवल चेहरों से नहीं जीती जाती। चेहरों के पीछे खड़ी मशीनरी का दम होना चाहिए।वह मशीनरी जो हर दरवाज़े तक पहुँच सके, जो हर फोन पर उपलब्ध हो, जो हर बूथ पर सुबह से शाम तक जमी रहे। और यही वह बिंदु था जहाँ महागठबंधन की आंधी, एनडीए की अदृश्य जकड़न से हार गई।

महागठबंधन के बड़े रणनीतिकार मान रहे थे कि लोकसभा में 10 सीटें जीत लेने के बाद विधानसभा में 60 के आसपास पहुँच जाना कोई मुश्किल काम नहीं होना चाहिए। यह चुनावी गणित, यह हवा, यह मीटिंगें सभी कुछ यही संकेत दे रहे थे कि माहौल विपक्ष के पक्ष में है। बिहार के गाँवों में घूमने वाले पत्रकारों को लोकसभा के बाद यह लगता था कि जनता बदलाव चाहती है। बेरोज़गारी की शिकायतें थीं, महंगाई का दर्द था, और महिलाओं का डर था कि सुरक्षा से समझौता न हो। यह एक ऐसा मिश्रण था जो किसी भी सरकार के खिलाफ़ जाता है। पर बिहार में कहानी कभी सीधी नहीं होती। यहाँ राजनीति रस्सी पर चलने जैसा है, संतुलन ज़रा बिगड़ा नहीं कि पूरा ढाँचा गिर गया।

महागठबंधन ने उस संतुलन को समझने में गलती की।

राहुल गांधी की ‘वोट चोरी यात्रा’ ने बिहार में अपनी एक अनोखी गूँज पैदा की थी। 25 जिलों से गुजरती हुई, 110 विधानसभा सीटों को छूती हुई, 1300 किलोमीटर लंबी इस यात्रा ने कांग्रेस को एक बार फिर सक्रिय दिखाया। राहुल की सभाओं में भीड़ आती थी, युवा नारे लगाते थे, महिलाओं की संख्या भी बढ़ी थी। लेकिन यात्रा का प्रभाव वह नहीं बना जो प्रभाव एक चुनावी लहर बनाता है।

लोग राहुल को सुनते तो थे, पर उन्हें अपने बीच का नहीं मानते थे। उनकी आवाज़ में जो चिंता थी, वह असली थी, पर राजनीति में असली चीज़ें भी असर तभी करती हैं जब उनमें निरंतरता हो। राहुल आते थे, बोलते थे, चले जाते थे। बिहार जैसे राज्य में, जहाँ चुनाव का आधा असर जनता के साथ ‘सतत उपस्थिति’ से बनता है, वह उपस्थिति कांग्रेस दे नहीं पाई।

राजद और कांग्रेस दोनों ही अपने-अपने दायरों में कैम्पेन कर रहे थे, पर उनके बीच वह समन्वय नहीं था जो दिखना चाहिए था। सीट बंटवारे ने एक और दरार पैदा कर दी। कई जगहों पर कांग्रेस को उसके अपेक्षा से कम सीटें मिलीं, कई जगहों पर राजद नेताओं को लगा कि कांग्रेस कमजोर सीटें लेकर बोझ बढ़ा रही है। यह तनाव ज़मीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं तक पहुंचा, जिसने साझी लड़ाई की एकता को कमज़ोर कर दिया।

एनडीए ने इसके मुकाबले एकदम सटीक संयम रखा। वहाँ सीट बंटवारे पर न कोई सार्वजनिक नाराज़गी, न पोस्टर युद्ध, न बगावत सब कुछ असामान्य रूप से शांत। यह शांत वातावरण मतदाता के लिए ‘स्थिरता’ का संकेत था। कई क्षेत्रों में पत्रकारों ने पाया कि लोग कहते हैं, “इनका घर में झगड़ा नहीं है, तो सरकार भी स्थिर होगी।” राजनीति में यह बारीक संकेत बहुत मायने रखते हैं।

महागठबंधन को इस संकेत की गंभीरता समझ नहीं आई।

तेजस्वी यादव की हर सभा में भारी भीड़ इकट्ठा हो रही थी। युवा लड़के उनकी गाड़ियों के पीछे दौड़ते थे, महिलाएँ उनके भाषण में उत्साह से सिर हिलाती थीं, बुजुर्ग कहते थे कि लड़का ठीक है। पर समस्या यह थी कि तेजस्वी का भाषण हर सभा में लगभग समान रहता था—बेरोज़गारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, और विकास के वादे। इन विषयों पर वे बात करते तो साफ़, पर विस्तार में नहीं जाते। बिहार का मतदाता विस्तार चाहता है। वह जानना चाहता है कि नौकरी आएगी कैसे। शिक्षकों की भर्ती होगी कैसे। स्वास्थ्य तंत्र सुधरेगा कैसे।

तेजस्वी यह सब कहते-कहते आगे बढ़ जाते थे, यह जल्दबाज़ी मतदाता को खटकती थी।

उनकी अधिकार यात्रा अपनी जगह शानदार थी। यात्रा के दौरान लोग उन्हें देखकर उत्साहित होते, कुछ महिलाएँ बच्चों को गोद में लेकर उनके सामने खड़ी हो जातीं, कई बूढ़े किसान उनसे हाथ मिलाने की कोशिश करते। उस यात्रा में ‘राजनीतिक संवेदना’ थी। लेकिन यात्रा के बाद जो संगठनात्मक ढाँचा उस संवेदना को वोट में बदलना चाहिए था, वह ढाँचा उतना सशक्त नहीं था।

महागठबंधन की अंदरूनी कमजोरी यहाँ साफ़ उभरती है।

इसके विपरीत, भाजपा का बूथ स्तर पर काम बेहद संगठित था। उनके ‘पन्ना प्रमुख’ सिस्टम ने हर मोहल्ले, हर टोले तक उनकी उपस्थिति कायम रखी। चुनाव में कौन किस परिवार को प्रभावित कर रहा है, किस बूथ पर दलित वोट खिसक रहे हैं, किस इलाके में राजपूतों में असंतोष है, किस गाँव में यादवों के बीच दुविधा है। इन सबकी जानकारी भाजपा के पास थी, लगातार अपडेटेड। यह वही मशीनरी है जो चुनाव जीतने के लिए असली हथियार होती है।

महागठबंधन के पास यह सूक्ष्म जानकारी का नेटवर्क कमज़ोर था।

भारत के कई राज्यों में एक दिलचस्प बात देखी जाती है। विपक्ष जितनी भीड़ जुटा ले, जब तक उसके पास बूथ-स्तर की मशीनरी नहीं होती, वह भीड़ वोट में नहीं बदलती। बिहार इसका सबसे बड़ा उदाहरण बन गया।

इसी बीच, एक और बात जिसने महागठबंधन को भारी नुकसान पहुंचाया, वह था उसके समर्थकों का व्यवहार। तेजस्वी तो सभ्य भाषा में बोलते थे, लेकिन कई स्थानीय स्तर के कार्यकर्ता, खासकर युवा नेता, पुराने राजद वाले अंदाज़ में व्यवहार करने लगे। कहीं रोड शो में बदतमीज़ी, कहीं विरोधियों को धमकाने जैसी घटनाएँ, कहीं सोशल मीडिया पर घमंड भरी पोस्ट इन सबने एनडीए के आरोपों को जस्टिफाई कर दिया कि ‘सत्ता मिली तो जंगलराज आएगा।’

बिहार में वोटर बहुत संवेदनशील है। वह चेहरे से ज़्यादा व्यवहार देखता है। और यही व्यवहार महागठबंधन को नुकसान दे गया।

चुनावी मौसम के दौरान जिस तरह गांवों की पगडंडियों पर चर्चाएँ बदल रही थीं, वह महागठबंधन के लिए चेतावनी थी, लेकिन शायद उन्होंने उसे सुनने की कोशिश नहीं की। एक तरफ जहां तेजस्वी और राहुल की यात्राओं से एक राजनीतिक माहौल बन रहा था, वहीं दूसरी तरफ एनडीए की टीम गांवों में चुपचाप उन कमजोर बिंदुओं को पकड़ रही थी, जहाँ महागठबंधन की पकड़ ढीली थी। यह चुनावी लय किसी को दिखाई नहीं दे रही थी, लेकिन उसका असर धीरे-धीरे जड़ पकड़ रहा था।

कई गांवों में महिलाओं ने साफ कहा था कि वे कोई जोखिम नहीं लेना चाहतीं। तेजस्वी और राहुल के वादों में उन्हें उम्मीद तो दिखती थी, लेकिन सुरक्षा और स्थिरता का भाव नहीं। महिलाओं ने यह भी कहा कि हर बार चुनाव में बड़े वादे सुनकर वे थक चुकी हैं।वे अब सिर्फ यह देखना चाहती हैं कि घर सुरक्षित रहे, रात में सड़कें शांत रहें, और बच्चों के स्कूल जाने में कोई रुकावट न हो। महागठबंधन ने महिलाओं के लिए योजनाएँ ज़रूर बनाई थीं, पर योजनाएँ वही असर नहीं डाल पाईं, जो मतदाता के वास्तविक डर को कम कर पातीं।

बिहार में महिलाओं की भागीदारी किसी भी चुनाव का निर्णायक हिस्सा होती है। इस बार भी महिलाएँ भारी संख्या में वोट डालने पहुँचीं। लेकिन जिस तरह चुनावी समीकरण बने, उससे लगा कि उनका वोट बड़ी मजबूती से एनडीए के पक्ष में गया। यह बात महागठबंधन ने देर से समझी कि महिलाओं का यह भरोसा,स्थिरता और सुरक्षा पर उनके खिलाफ़ चला गया।

राहुल की वोट चोरी  यात्रा अपने आप में बड़ी थी, पर वह एक ‘लंबी लड़ाई’ की शुरुआत नहीं बन सकी। यात्रा के दौरान राहुल गांधी के मंचों पर ताली बजाने वाले हजारों लोग थे, पर चुनाव परिणामों में उस ताली की गूंज नहीं सुनाई दी। बिहार का मतदाता यह सवाल पूछ रहा था कि क्या ये यात्राएँ चुनाव के कुछ महीने पहले की राजनीतिक घटनाएँ थीं या यह किसी लंबे संघर्ष की रणनीति है?

विपक्ष का सबसे बड़ा संकट यही था। वे विश्वास जगा नहीं सके कि यह लड़ाई केवल सत्ता पाने की नहीं, बल्कि सत्ता बदलने की है।

तेजस्वी यादव की अधिकार यात्रा में जोश था। युवाओं के चेहरे पर उम्मीद थी। यह यात्रा कई बार उस पुरानी याद को जगाती थी कि बिहार एक युवा मुख्यमंत्री को स्वीकार कर सकता है, जैसे एक वक्त युवा नीतीश को किया था। लेकिन तेजस्वी के सामने समस्या यह थी कि वे अपने पूरे गठबंधन को एक सूत्र में नहीं बाँध पाए।

राजद की जातीय पकड़ मजबूत थी, पर बिहार 2025 में सिर्फ जातीय समीकरणों से नहीं चलता। EBC, OBC, SC, ST और अल्पसंख्यक वोट का एक बड़ा हिस्सा अभी भी नए पटरी पर चलते विकास और स्थिरता के मुद्दों को प्राथमिकता दे रहा है। महागठबंधन जातिवाद के आरोप से बाहर निकलने में जितना संघर्ष कर रहा था, उतना ही वह जातियों के जोड़-तोड़ में उलझता भी जा रहा था। यह एक विरोधाभास था, जिसे मतदाता ने महसूस किया।

इधर एनडीए इस सवाल का जवाब बहुत साफ़-सुथरे ढंग से दे रहा था। उनका प्रचार कह रहा था कि विकास वही कर सकता है जो सत्ता में स्थिर है। कानून-व्यवस्था वही संभाल सकता है जो राज्य को लंबे समय से चला रहा है। और बिहार के गांवों में यह संदेश बहुत गहराई से बैठ गया था।

साथ ही, पीएम मोदी का चेहरा इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा रहा था। बिहार में एक सामान्य भावना यह है कि राज्य चाहे किसी भी दल को चुने, लेकिन केंद्र में प्रभावशाली नेतृत्व के साथ तालमेल बनाए रखना जरूरी है। कई ग्रामीण क्षेत्रों में यह भी सुना गया कि लोग कहते थे।“जो सरकार केंद्र में है, वही राज्य को पैसे देती है।” यह असलियत चाहे राजनीतिक मायने में जटिल हो, लेकिन अधिकांश वोटरों की नज़र में यह एक सीधी, सरल बात थी।

महागठबंधन का यह भी दुर्भाग्य रहा कि वह भाजपा के प्रचार की धार को काट नहीं पाया। हर इलाके में भाजपा के कार्यकर्ता यह बात फैला रहे थे कि ‘अगर महागठबंधन आया तो फिर वही पुराने दिन लौट आएंगे।’

राजद ने इसे चुनौती दी, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका बचाव करने के लिए वे उतना मजबूत संदेश नहीं दे सके।

जब जंगलराज का आरोप बार-बार दोहराया जाता है, और उसके खिलाफ़ आपका प्रत्युत्तर कमजोर पड़ जाता है, तो मतदाता की सोच पर उसका असर पड़ता है।

यही महागठबंधन की सबसे भारी चूक थी।

इसके अलावा सीट बंटवारे को लेकर जो मनमुटाव था, उसने कार्यकर्ताओं को भीतर से कमजोर कर दिया। कांग्रेस के कई परंपरागत क्षेत्रों में राजद के युवा समर्थक सक्रिय नहीं दिखे। राजद की मजबूत सीटों पर कांग्रेस के कार्यकर्ता उतने उत्साहित नहीं थे। महागठबंधन का यह ढीला जोड़ चुनावी मैदान में बिखर गया।

इस चुनाव में एक और दिलचस्प बात दिखाई दी—युवाओं की मानसिकता।

वे बदलाव चाहते थे, लेकिन अनिश्चित बदलाव नहीं।

वे नौकरी चाहते थे, पर नौकरी देने वाले तंत्र की स्थिरता भी चाहते थे।

वे वादे सुनना चाहते थे, पर वादों के पीछे की ईमानदारी भी देखना चाहते थे।

तेजस्वी ने नौकरी देने का बड़ा वादा किया था, पर युवाओं के बड़े हिस्से ने इस वादे पर भरोसा नहीं किया, क्योंकि उन्हें लगा कि राजद की सरकार में नियुक्तियाँ घोटाले में फँस सकती हैं या प्रक्रिया धीमी हो सकती है। यह डर किसी बड़े प्रचार का हिस्सा नहीं था। यह बिहार की राजनीतिक स्मृति का हिस्सा था।

इधर भाजपा ने नौकरी का वादा नहीं किया, पर स्थिरता का वादा किया। और बिहार जैसे राज्य में स्थिरता एक बड़ी राजनीतिक मुद्रा होती है।

यही कारण है कि चुनाव के आखिरी हफ्ते में ऐसे मतदाता भी एनडीए की ओर झुकते दिखे, जो पहले महागठबंधन को वोट देने के मुड में थे।

यह झुकाव इतना सूक्ष्म था कि महागठबंधन उसे पढ़ नहीं पाया।

और जब तक पढ़ पाया, तब तक देर हो चुकी थी।

चुनाव परिणामों ने यह साफ कर दिया कि बिहार की राजनीति अब एक नए युग में प्रवेश कर चुकी है—जहाँ जाति की भूमिका बनी रहने वाली है, लेकिन निर्णायक नहीं। जहां नेता की लोकप्रियता मायने रखती है, लेकिन उससे ज्यादा मायने रखता है उसका संगठन। जहां भीड़ जुटाना जरूरी है, लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है बूथ संभालना। जहां यात्रा निकालना प्रभावशाली है, लेकिन उससे भी ज्यादा प्रभावशाली है वर्ष भर जनता के बीच रहना।

महागठबंधन ने केवल चुनाव लड़ा।

एनडीए ने पूरा सिस्टम चलाया।

यही वजह है कि दोनों का नतीजा इतना अलग-अलग दिखाई दिया।

चुनाव के बाद जब सन्नाटा छाया, महागठबंधन की हार का सबसे बड़ा दर्द यह था कि वे अपनी ही बढ़त को बरकरार नहीं रख पाए। लोकसभा में मिली 10 सीटें उम्मीद की खिड़की थीं, लेकिन वे खिड़कियाँ विधानसभा में बंद हो गईं। यह विफलता सिर्फ़ राजनीति की विफलता नहीं, रणनीति की विफलता भी थी।

तेजस्वी यादव अपनी मेहनत, अपनी सभाओं, अपने संयमित भाषणों के बावजूद हार गए—क्योंकि उनके पास वह मशीन नहीं थी जो वोट को संभाल सके।

राहुल गांधी यात्रा करके भी प्रभावित नहीं कर पाए—क्योंकि कांग्रेस अपनी जमीनी पकड़ खो चुकी है।

महागठबंधन ने बिहार को कुछ नया देने की कोशिश की,लेकिन बिहार तैयार नहीं था।

यह चुनाव सिर्फ़ यह नहीं बताता कि एनडीए जीता और महागठबंधन हारा।

यह बताता है कि राजनीति केवल भावनाओं का खेल नहीं, यह संगठन, रणनीति, धैर्य और जनमानस की धारणा का खेल है।

यह बताता है कि भीड़ और वोट का रिश्ता बहुत अलग-अलग होता है।

यह बताता है कि बिहार का मतदाता अब पुरानी राजनीति नहीं चाहता।वह स्थिरता के साथ बदलाव चाहता है, पर ऐसा बदलाव जो उसके हर दिन को प्रभावित न कर दे।

महागठबंधन को अब अपने भीतर झांककर यह तय करना होगा कि आगे का रास्ता क्या होगा।

क्या वे उसी पुरानी रणनीति के साथ अगला चुनाव लड़ेंगे?

या एक नई दिशा, नई भाषा और नए संगठन के साथ अपनी लड़ाई दोबारा शुरू करेंगे?

चुनाव परिणाम एक संदेश हैं।

और बिहार ने इस बार बहुत स्पष्ट संदेश दिया है—

कि जूनून से चुनाव जीता जा सकता है,

लेकिन सिर्फ़ जूनून से सत्ता नहीं पाई जा सकती।

समय की यात्रा: पैग्स, महलों और लोगों की दास्तान — पंजाब के शाही अतीत को फिर से जीवंत करती पुस्तक

तेहलका ब्यूरो द्वारा पुस्तक समीक्षा

Of Pegs, Palaces, and the People छोटे-छोटे लेकिन प्रभावशाली किस्सों का मनमोहक संग्रह है, जो पाठकों को पंजाब के समृद्ध और अक्सर भूले हुए इतिहास के बीच ले जाता है। हर कहानी, जो वास्तविक घटनाओं पर आधारित है, उन बादशाहों, योद्धाओं, रानियों, विद्रोहियों और आम लोगों को फिर से जीवंत करती है, जिन्होंने पंजाब के अतीत पर अमिट छाप छोड़ी। हरशित नारंग एक प्रथम बार लेखक और अनुभवी नौकरशाह इन भूली-बिसरी शख्सियतों को जिस जीवंतता और गहराई से प्रस्तुत करते हैं, वह विद्वता और संवेदनशील कहानी कहने की कला का बेहतरीन मेल है।

11 अगस्त 2025 को नई दिल्ली में जारी हुई यह पुस्तक भारतीय नॉन-फिक्शन की दुनिया में नारंग की एंट्री का ऐलान करती है। यह सिर्फ एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि उस पंजाब को समर्पित एक भावनात्मक श्रद्धांजलि है—जो शाही किस्सों, बगावत, परंपराओं और गर्व से भरा था, लेकिन जिसकी कहानियों से नई पीढ़ी का रिश्ता धीरे-धीरे टूटता जा रहा है।

नारंग की कहानी कहने की क्षमता पूरे पुस्तक में चमकती दिखती है। शोधकर्ता की बारीकी और कथाकार की आत्मा के साथ, वह पंजाब के अतीत के उन अध्यायों को सामने लाते हैं जो अक्सर पाठ्यपुस्तकों में जगह नहीं बना पाते। दुले भट्टी—जिसे पंजाब का रॉबिन हुड कहा जाता है—से लेकर कपूरथला की स्पैनिश महारानी प्रेम कौर तक, हर अध्याय पंजाब के शाही वैभव और क्रांतिकारी तेवरों की एक सजीव तस्वीर पेश करता है। “पटियाला पैग” की अनोखी विरासत भी इस पुस्तक को धरातल से जोड़ती है—जहाँ इतिहास सिर्फ राजसी नहीं, बल्कि रोजमर्रा की संस्कृति में भी सांस लेता है।

हर अध्याय एक अलग यात्रा है—कभी ढहते महलों की गूंज, कभी पीढ़ियों से चली आ रही लोककथाओं की सरगोशियाँ, तो कभी उन तकनीकी नवाचारों की झलक, जिन्हें इतिहास में शायद ही कहीं दर्ज किया गया, जैसे पटियाला स्टेट मोनोरेल। नारंग सिर्फ घटनाओं का वर्णन नहीं करते—वह उन्हें पुनर्जीवित करते हैं, ऐसा महसूस कराते हैं मानो पाठक स्वयं उस दौर में मौजूद हों।जैसा कि नारंग कहते हैं, “यह वही पंजाब है जिसे मैंने बचपन में सुना—परतों से भरी विरासतें, जिद्दी रानियाँ, अजीबोगरीब राजा और पीढ़ियों से फुसफुसाई जाती कहानियाँ। ये कहानियाँ आगे बढ़ाए जाने लायक हैं।”

विषय के प्रति लेखक का यह भावनात्मक जुड़ाव पुस्तक में सर्वत्र महसूस होता है और इसे एक सांस्कृतिक दायित्व जैसा महत्व देता है—पंजाब की भूलती हुई विरासत को सहेजने का प्रयास। आज जब इतिहास को अक्सर एकरूप कथाओं में ढाल दिया जाता है, Of Pegs, Palaces, and the People एक महत्वपूर्ण पुनःअभिग्रहण बनकर सामने आती है। नारंग याद दिलाते हैं कि इतिहास केवल तारीखों और तथ्यों का जोड़ नहीं, बल्कि एक जीवित, सांस लेती सत्ता है—भावनाओं, जटिलताओं और रंगों से भरी। पुस्तक पंजाब के अतीत की परतें खोलती है—कभी प्रसिद्ध तो कभी गुमनाम किरदारों के माध्यम से—दुले भट्टी के विद्रोह से लेकर महारानी प्रेम कौर की रहस्यमयी ज़िंदगी तक।

पुस्तक की संरचना—हर अध्याय का स्वतंत्र होना—इसे विविधता से भर देता है। चाहे लाहौर के खोये खजाने हों या पटियाला की मोनोरेल—पाठक एक समय-यात्रा में प्रवेश करता है। नारंग सिर्फ स्थानों और व्यक्तियों का परिचय नहीं देते; वह पाठक को उन्हें महसूस करने के लिए आमंत्रित करते हैं। शीश महल का वर्णन पढ़ते हुए लगता है मानो उसके आइने आज भी अपनी चमक बिखेर रहे हों।

लेखन शैली जीवंत, सटीक और पंजाब की मिट्टी में रची-बसी है। भाषा अकादमिक बोझिलता से दूर है—यह सांस्कृतिक स्पंदन और भावनात्मक बनावट से भरी है। यहाँ इतिहास स्थिर नहीं—पन्नों के बीच फुसफुसाता, धड़कता और कभी-कभी रहस्यों की तरह झिलमिलाता है।

हालाँकि कुछ स्थानों पर अध्यायों के बीच बदलाव अचानक महसूस होता है। यदि एक संक्षिप्त टाइमलाइन या अध्याय-पूर्व परिचय होता तो यह पाठकीय अनुभव को और सहज बना सकता था। साथ ही, नए पाठकों के लिए क्षेत्रीय शब्दों का एक ग्लॉसरी भी उपयोगी होता।

अंत में, Of Pegs, Palaces, and the People पंजाब के शाही और लोक इतिहास के अनमोल पहलुओं को उजागर करने वाली एक महत्वपूर्ण, रोचक और पठनीय कृति है। हरशित नारंग की यह पहली पुस्तक उनकी जड़ों के प्रति व्यक्तिगत समर्पण भी है और व्यापक पाठकों के लिए एक आह्वान भी—कि उस इतिहास को संजोएं, जिसने इस शानदार धरती को आकार दिया।

पुस्तक के बारे में

पेपरबैक, 256 पृष्ठ / मूल्य: ₹399

प्रकाशक: सप्तऋषि पब्लिकेशन्स

टेंडर प्रक्रिया के कारण डीआई पाइपों की खरीद में हरियाणा को करोड़ों का नुकसान

हरियाणा लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग द्वारा दो वर्ष की दर अनुबंध (रेट कॉन्ट्रैक्ट) के अंतर्गत डीआई पाइपों की खरीद के लिए अपनाई गई टेंडर प्रक्रिया राज्य के लिए भारी वित्तीय नुकसान का कारण बन रही है। यह तरीका राज्य की वित्तीय स्थिति के लिए हानिकारक है और हरियाणा सरकार के हितों के विपरीत प्रतीत होता है।

हालांकि अनुबंध में मूल्य परिवर्तन (Price Variation) की एक शर्त शामिल है, लेकिन यह बाजार में उतार-चढ़ाव से पर्याप्त सुरक्षा प्रदान नहीं करती। इसका स्पष्ट उदाहरण रेट कॉन्ट्रैक्ट संख्या 99/HR/RC/E-2/2023-24/4256-59 दिनांक 17.07.2024 से देखा जा सकता है, जो 17.07.2025 तक मान्य था। इस अनुबंध के तहत फरवरी 2025 में लगभग 800 करोड़ रुपये मूल्य के डीआई पाइप ऊंचे दामों पर खरीदे गए।

उदाहरण के तौर पर, 100mm (K-7) पाइप की दर, जो पहले रेट कॉन्ट्रैक्ट के तहत PVC फार्मूले के अनुसार ₹1260 से घटकर ₹1157 प्रति मीटर हो गई थी, वह नई टेंडर प्रक्रिया (28.03.2025 को खुली) में ₹1085 प्रति मीटर तक गिर गई। यानी दरों में करीब 15% तक की गिरावट आई थी, फिर भी विभाग ने पुराने अनुबंध के तहत ऊंची कीमतों पर पाइप खरीदे, जबकि वह अनुबंध 24.07.2025 तक वैध था।

लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के मुख्य अभियंता (Engineer-in-Chief) दविंदर दहिया ने इस पर कोई टिप्पणी करने या आधिकारिक पक्ष साझा करने से इनकार कर दिया। प्राप्त विवरणों के अनुसार, मूल्य परिवर्तन की शर्त के बावजूद विभाग को लगभग 100 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। किसी कारणवश यह टेंडर रद्द कर दिया गया और ₹2800 करोड़ के डीआई पाइपों की खरीद के लिए एक नया दो वर्षीय दर अनुबंध 29.08.2025 को खोला गया — ठीक पुराने अनुबंध की समाप्ति के बाद।

नए और पुराने अनुबंध की दरों में लगभग 30% का अंतर था। उदाहरण के लिए, पुराने अनुबंध में 100mm (K-7) पाइप की दर PVC फार्मूले के बाद ₹1157 प्रति मीटर थी, जबकि नई टेंडर में यही दर ₹910 प्रति मीटर रह गई (लगभग 28% का अंतर)। यदि पिछला अनुबंध दो वर्ष के लिए वैध रहता, जैसा कि अब प्रस्तावित किया जा रहा है, तो सरकार अगले एक वर्ष तक लगभग 30% अधिक दरों पर खरीद जारी रखती, जिससे लगभग ₹1000 करोड़ रुपये का नुकसान होता।

डीआई पाइपों की कीमतों में गिरावट का मुख्य कारण मांग में कमी (विशेषकर जल जीवन मिशन परियोजना के अभाव में) और नए व पुराने निर्माताओं की उत्पादन क्षमता में वृद्धि है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब बाजार में कीमतें घट रही हैं, तो दो वर्षों के लिए दरें तय करना कहां तक उचित है? हरियाणा सरकार ने राज्य के बहुमूल्य धन की अनदेखी करते हुए हर साल लगभग ₹400 करोड़ के नुकसान की दिशा में कदम बढ़ा दिया है।

इन तथ्यों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि दो वर्षीय दर अनुबंध राज्य के हित में नहीं है, क्योंकि इससे आर्थिक नुकसान होता है और सरकार प्रतिस्पर्धात्मक दरों तथा नई उत्पादन क्षमताओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाती है। यह नीति कुछ चुनिंदा निर्माताओं के लिए एकाधिकार (monopoly) का वातावरण भी तैयार करती है। आमतौर पर यह भी देखा गया है कि जब किसी निर्माता को लंबे समय के लिए आपूर्ति करनी होती है, तो वह भविष्य की अनिश्चितताओं को ध्यान में रखकर कीमतें बढ़ा देता है।

लोक स्वास्थ्य विभाग के गोदामों में वर्तमान में लगभग ₹700 करोड़ के डीआई पाइपों का स्टॉक है और ठेकेदारों व आपूर्तिकर्ताओं के प्रति सैकड़ों करोड़ की देनदारी है। विशेषज्ञों का मानना है कि विभाग को अपने दीर्घकालिक दर अनुबंधों की नीति पर पुनर्विचार कर, विशिष्ट मात्रा (specific quantity) वाले टेंडरों की ओर बढ़ना चाहिए ताकि अधिक प्रतिस्पर्धी दरें प्राप्त हो सकें और राज्य के वित्तीय हितों की रक्षा की जा सके।

लोक हित में अधिवक्ता एवं विधिक सलाहकार गौरव दीप गोयल ने इस विषय में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, मुख्य प्रधान सचिव राजेश खुल्लर, मंत्री एवं उच्चस्तरीय क्रय समिति के सदस्य विपुल गोयल और अन्य अधिकारियों को पत्र लिखा है।

गुरुग्राम में कन्वेंशन सेंटर बनाने के लिए केंद्रीय आवासन एवं शहरी मंत्री मनोहर लाल हरियाणा के मुख्यमंत्री से करेंगे विचार विमर्श

केंद्रीय मंत्री शुक्रवार को गुरुग्राम में आयोजित तीन दिवसीय 18वें अर्बन मोबिलिटी इंडिया सम्मेलन एवं प्रदर्शनी का  शुभारंभ करने उपरान्त सम्बोधित कर रहे थे । उन्होंने  परिसर में लगी शहरी विकास और गतिशीलता को दर्शाती विकासात्मक प्रदर्शनी का उद्घाटन करने उपरांत अवलोकन भी किया। 18वें अर्बन मोबिलिटी इंडिया सम्मेलन एवं प्रदर्शनी का उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में इजी मोड ऑफ ट्रेवलिंग थीम के साथ सुगमता बनाए रखने के लिए बेहतर यातायात व्यवस्था व सेवाएं प्रदान करना है।

शहरी विकास पर घोषणाएं

मनोहर लाल ने अपने मंत्रालय के माध्यम से आमजन की सुविधा व बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के उद्देश्य पर केंद्रित तीन बड़ी घोषणाएं करते हुए कहा कि इनके शुरू होने से विकास की नई शुरुआत देखने को मिलेगी। उन्होंने घोषणा की कि दिल्ली मेट्रो इंटरनेशनल लिमिटेड-डीएमआईएल की स्थापना की जाएगी जिसके तहत भारत के अलावा अन्य देशों के लिए यह एजेंसी मेट्रो के विस्तारीकरण की दिशा में काम करेंगी। वहीं मास रेपिड ट्रांसिट सिस्टम विकसित किया जाएगा जिसके लिए डीएमआरसी सहयोगी रहेंगी। इस सिस्टम से मेट्रो का बेहतर ढंग से एक दूसरे से जुड़ाव होगा और सुरक्षा मानकों व साइबर सिक्योरिटी सिस्टम के साथ आमजन को सुरक्षित यातायात सुविधाएं व सेवाएं कार्य करेंगी। मेट्रो सेवा में गुणवत्तापरक सुधार लाने व नए प्रयोग करने के लिए दिल्ली मेट्रो रेल अकादमी का गठन शहरी मंत्रालय द्वारा किया जाएगा। इसके गठन से तीव्र गति से केपेसिटी बिल्डिंग का काम होगा और सेंटर ऑफ एक्सिलेंस के साथ यह केंद्र मेट्रो सेवा में नवाचार पद्धति के साथ नई दिशा प्रदान करेगा। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय राजधानी में अनेक बड़े कन्वेंशन सेंटर हैं किंतु बड़े शहरों में शामिल गुरुग्राम में भी कन्वेंशन सेंटर की जरूरत है, ऐसे में वे हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी से विचार विमर्श करते हुए यहां भी अत्याधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण कन्वेंशन सेंटर बनाने की दिशा में कार्य करेंगे।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आज देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में भारत आत्मनिर्भरता के साथ आगे बढ़ रहा है। ट्रांसपोर्ट नेटवर्किंग को जोड़ते हुए देश मेक इन इंडिया के सिद्धांत के साथ 2047 को विकसित राष्ट्र के रूप में पहचान दिलाने में अग्रणी रहेगा। उन्होंने बताया कि शहरी क्षेत्र में आवश्यकता अनुरूप सकारात्मक परिवर्तन किया जा रहा है। शहरी क्षेत्र में यातायात पर सरकार का पूरा फोकस है। उन्होंने बताया कि भारत आज मेट्रो सेवा प्रदान करने में दुनिया में तीसरे स्थान पर हैं और आने वाले करीब 3 साल में हम अमेरिका को पीछे छोडक़र अग्रणी देशों में शामिल होंगे। नई तकनीक के साथ जनसुविधाएं प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार कार्य कर रही है और इस प्रकार के सम्मेलन के माध्यम से विशेषाज्ञों के सहयोग से नवाचार पद्धाति पर हम काम करेंगे।

बिहार चुनाव: कई उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और बिहार इलेक्शन वॉच ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण में चुनाव लड़ रहे 1,302 उम्मीदवारों में से 1,297 उम्मीदवारों के स्वयं-शपथपत्रों का विश्लेषण किया है। रिपोर्ट के अनुसार, 1,297 उम्मीदवारों में से 415 (32%) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं।
ADR ने यह अवलोकन किया कि ऐसा प्रतीत होता है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का राजनीतिक दलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है, क्योंकि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (दूसरा चरण) में उन्होंने फिर से लगभग 32% आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों को टिकट दिया है। बिहार चुनाव के दूसरे चरण में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने 19% से 100% तक ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया है जिन्होंने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी 2020 को अपने निर्देशों में राजनीतिक दलों को स्पष्ट रूप से आदेश दिया था कि वे ऐसे उम्मीदवारों को चुनने के कारण बताएं, और यह भी स्पष्ट करें कि आपराधिक पृष्ठभूमि न रखने वाले अन्य व्यक्तियों को उम्मीदवार क्यों नहीं बनाया गया। इन अनिवार्य दिशानिर्देशों के अनुसार, चयन के कारण उम्मीदवार की योग्यता, उपलब्धियों और मेरिट से संबंधित होने चाहिए।
हाल ही में फरवरी 2025 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनावों में यह देखा गया कि राजनीतिक दलों ने “व्यक्ति की लोकप्रियता, सामाजिक कार्य करना, या मामले राजनीतिक रूप से प्रेरित हैं” जैसे निराधार कारण बताए। ऐसे कारणों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए ठोस और वैध कारण नहीं माना जा सकता। यह आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि राजनीतिक दल चुनाव प्रणाली में सुधार करने में कोई रुचि नहीं रखते, और हमारी लोकतंत्र प्रणाली कानून तोड़ने वालों के हाथों में ही पीड़ित होती रहेगी, जो बाद में कानून निर्माता बन जाते हैं।
कुल 341 (26%) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जबकि 19 उम्मीदवारों पर हत्या (IPC धारा 302, 303) और (BNS धारा 103(1)) के मामले दर्ज हैं। 79 उम्मीदवारों पर हत्या के प्रयास (IPC धारा 307) और (BNS धारा 109) के मामले दर्ज हैं।
महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित मामलों की बात करें तो 52 उम्मीदवारों ने ऐसे मामलों की घोषणा की है। इनमें से 3 उम्मीदवारों पर बलात्कार (IPC धारा 375 और 376) के मामले दर्ज हैं।
दलवार विश्लेषण से पता चलता है कि सभी प्रमुख दलों ने संदिग्ध पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को टिकट दिया है।
• जन सुराज पार्टी के 117 उम्मीदवारों में से 58 (50%) ने आपराधिक मामले घोषित किए हैं।
• बसपा (BSP) के 91 उम्मीदवारों में से 17 (19%)।
• राजद (RJD) के 70 उम्मीदवारों में से 38 (54%)।
• भाजपा (BJP) के 53 उम्मीदवारों में से 30 (57%)।
• जदयू (JD(U)) के 44 उम्मीदवारों में से 14 (32%)।
• आप (AAP) के 39 उम्मीदवारों में से 12 (31%)।
• कांग्रेस (INC) के 37 उम्मीदवारों में से 25 (68%)।
• लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के 15 उम्मीदवारों में से 9 (60%)।
• CPI(ML)(L) के 6 उम्मीदवारों में से 5 (83%)।
• CPI के 4 उम्मीदवारों में से 2 (50%)।
• CPI(M) के एकमात्र उम्मीदवार (100%) ने आपराधिक मामले घोषित किए हैं।
गंभीर आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों के संदर्भ में:
• जन सुराज पार्टी के 117 में से 51 (44%) उम्मीदवार,
• बसपा के 91 में से 12 (13%),
• राजद के 70 में से 27 (39%),
• भाजपा के 53 में से 22 (42%),
• जदयू के 44 में से 11 (25%),
• आप के 39 में से 12 (31%),
• कांग्रेस के 37 में से 20 (54%),
• लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के 15 में से 9 (60%),
• CPI(ML)(L) के 6 में से 4 (67%),
• CPI के 4 में से 2 (50%) और
• CPI(M) के 1 में से 1 (100%) उम्मीदवारों ने गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं।
लगभग 122 विधानसभा क्षेत्रों में से 73 (60%) क्षेत्र ऐसे हैं जिन्हें “रेड अलर्ट निर्वाचन क्षेत्र” कहा गया है। “रेड अलर्ट निर्वाचन क्षेत्र” वे होते हैं जहाँ तीन या उससे अधिक उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं।

जीबी रियल्टी ने न्यू चंडीगढ़ में लॉन्च किया ‘ओपस वन’ — एक ‘आइकॉनिक सर्टिफाइड’ अल्ट्रा-लग्ज़री रेज़िडेंशियल प्रोजेक्ट

क्षेत्र के तेजी से उभरते रियल एस्टेट समूह जीबी रियल्टी के अत्याधुनिक लग्ज़री प्रोजेक्ट ‘ओपस वन’ के अनावरण से पंजाब की आर्किटेक्चरल और रियल एस्टेट दुनिया में एक नया अध्याय जुड़ गया है। इस प्रोजेक्ट को कंपनी ने अपनी ‘मैग्नम ओपस’ यानी सबसे खास रचना बताया है।

यह न्यू चंडीगढ़ का पहला रेरा एप्रूव्ड ‘आइकॉनिक सर्टिफाइड’ रेज़िडेंशियल प्रोजेक्ट है, जिसे यहां आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आधिकारिक रूप से लॉन्च किया गया। यह उपलब्धि इसके आधुनिक डिज़ाइन, पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी और टिकाऊ निर्माण की सोच को दर्शाती है। न्यू चंडीगढ़ के इकोसिटी-II में बनने जा रहा ‘ओपस वन’ एक ऐसा लैंडमार्क प्रोजेक्ट है जो अंतरराष्ट्रीय डिज़ाइन विशेषज्ञता, टिकाऊ आर्किटेक्चर और समय से परे लग्जरी का सुंदर संगम होगा।

जीबी रियल्टी के फाउंडर एवं चेयरमैन गुरिंदर भट्टी ने कहा कि, “हालांकि मेरे पास दुबई जैसे वैश्विक केंद्रों में जीबी रियल्टी का पहला प्रोजेक्ट शुरू करने का अवसर था, पर मैंने इसे पंजाब में ही आरंभ करने का निर्णय लिया ताकि यह ब्रांड मेरी मातृभूमि में जड़ें जमाए।” प्रेस कांफ्रेंस में गुरिंदर भट्टी के साथ राजेश मित्तल, एमडी सूर्यकॉन और रोहित सेठी, निदेशक (संचालन), जीबी रियल्टी भी मौजूद रहे । भट्टी ने बताया कि ‘ओपस वन’ को क्षेत्र की सबसे ऊंची रिहायशी इमारत के रूप में तैयार किया जा रहा है, जिसमें 32 मंज़िलों तक ऊंचे 11 टावर होंगे और लगभग 688 अल्ट्रा-लग्जरी अपार्टमेंट्स शामिल होंगे।

खास बात यह है कि इस प्रोजेक्ट को पंजाब सरकार से मान्यता मिल चुकी है और इसे इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (आईजीबीसी) की ओर से सर्टिफिकेशन भी मिला है। इतना ही नहीं, ‘ओपस वन’ ने सतत और पर्यावरण-अनुकूल लग्जरी के क्षेत्र में नया कीर्तिमान बनाते हुए प्लैटिनम रेटिंग भी हासिल की है।

प्रिंसिपल आर्किटेक्ट त्रिपत गिरधर, एरेट डिज़ाइन स्टूडियो से हैं, जिन्होंने इस प्रोजेक्ट को आधुनिक मूर्तिकला के रूप में परिकल्पित किया है। प्रत्येक टावर ‘डुअल कोर लेआउट’ पर आधारित है, जिसमें प्रति मंज़िल केवल दो अपार्टमेंट्स होंगे — जो निवासियों को पूर्ण गोपनीयता (प्राइवेसी), विशिष्टता और शिवालिक हिल्स के शानदार नज़ारे प्रदान करेंगे। यहां 3 बीएचके (3000 वर्ग फुट), 4बीएचके (4500 वर्ग फुट) और 5 बीएचके (5500 वर्ग फुट) के रेजिडेंसज़ होंगे। प्रत्येक टावर में पाँच लिफ्टें होंगी, जिनमें से एक प्राइवेट लिफ्ट सीधे अपार्टमेंट के फॉयर में खुलेगी। जो इस परियोजना के अनूठे और व्यक्तिगत लग्जरी अनुभव को और भी उभारता है।

हिर्श बेडनर एसोसिएट्स (एचबीए), सिंगापुर, जो दुनिया के कुछ सबसे प्रसिद्ध हॉस्पिटैलिटी स्थलों जैसे द रिट्ज-कार्लटन आदि के डिजाइन के लिए जानी जाती है, अब अपनी कला का अनुभव ‘ओपस वन’ के इंटीरियर डिजाइन में लेकर आएगी। इसी तरह, ऑस्ट्रेलियन लाइटिंग डिज़ाइन पार्टनरशिप (एएलडीपी), जिसने सिडनी ओपेरा हाउस जैसे प्रतिष्ठित स्थलों की रोशनी की डिजाइन तैयार की है, वह भी अपनी विशेषज्ञता इस प्रोजेक्ट में दे रही है।


‘ऑपरेशन ट्रैकडाउन’ शुरू; “सबसे बदनाम” अपराधियों पर सख्त कार्रवाई!


हरियाणा पुलिस ने 5–20 नवंबर, 2025 के बीच राज्यभर में “ऑपरेशन ट्रैकडाउन” शुरू किया है। मकसद साफ है—गोलीबारी से जुड़े भगौड़ों की पहचान करके उन्हें जल्दी से जेल भेजना और आगे अपराध रोकना। आदेश में जिम्मेदारी, समय-सीमा और काम का तरीका साफ बताया गया है। इस ऑपरेशन का समन्वय IG क्राइम राकेश आर्य करेंगे। कोई भी नागरिक उनसे सीधे मोबाइल नंबर +91 90342 90495 पर सूचना दे सकता है। पहचान गोपनीय रखी जाएगी।

आदेश के मुताबिक जिनकी पहचान नहीं हुई है, उनकी पहचान करें। जिनकी पहचान हो गई है लेकिन वे फरार हैं, उन्हें पाताल से भी ढूंढ निकालें और गिरफ्तार करें। जो आरोपी जमानत पर बाहर हैं, उनकी हिस्ट्री शीट खोलें। अगर वे फिर से अपराध में सक्रिय हैं, तो उनकी जमानत रद्द कराने की कार्रवाई करें। जहां अपराध सुनियोजित तरीके से हो रहा है, वहां संगठित अपराध की सख्त धाराएं लगाएं। अपराध से कमाई गई संपत्ति को चिन्हित कर जब्त करें। जो लोग ऐसे अपराधियों को प्रश्रय, संरक्षण या फंडिंग दे रहे हैं, उन पर भी सख्त कानूनी कार्रवाई करें।

जवाबदेही साफ है। SHO और DSP अपने-अपने क्षेत्र में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सीधे जिम्मेदार होंगे। हर थाना/उपमंडल अपनी “सबसे बदनाम 5” अपराधियों की सूची बनाएगा और उन्हें जेल भेजेगा—गिरफ्तारी, सरेंडर या जमानत रद्दीकरण के जरिए। इसी तरह हर जिला और जोन “सबसे बदनाम 10” की सूची बनाएंगे। इसके नतीजों के लिए SP/DCP/CP जिम्मेदार होंगे। राज्य स्तर पर STF “सबसे बदनाम 20” की सूची तैयार करेगा और उनकी धर-पकड़ के लिए व्यापक ऑपरेशन चलाएगा।

आदेश में यह भी कहा गया है कि इन सूचीबद्ध अपराधियों को आगे अपराध करने से रोकना और पुराने अपराधों के लिए कानून के सामने जवाबदेह ठहराना जरूरी है। अगर ये आगे भी अपराध करते हैं, तो संबंधित अधिकारी जिम्मेदार माने जाएंगे। मतलब, केवल गिरफ़्तारी नहीं, बल्कि रोकथाम और मजबूत कानूनी कार्रवाई—दोनों पर बराबर जोर है।

पड़ोसी राज्यों से मिलकर काम होगा। पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली व चंडीगढ़ के साथ समन्वय कर सीमावर्ती इलाकों में चेकिंग, संयुक्त कार्रवाई और कस्टडी ट्रांसफर तेज किए जाएंगे। लक्ष्य यह है कि फरार अपराधी राज्य बदलकर बच न निकलें।

इस ऑपरेशन की भाषा और तरीका सरल और सीधा है। फोकस दिखावे पर नहीं, बल्कि काम के नतीजों पर है—कितने गिरफ्तार हुए, किन मामलों में जमानत रद्द हुई, कहां संगठित अपराध की धाराएं लगीं, कितनी संपत्ति जब्त हुई, और क्या नई वारदातें रोकी गईं। नागरिकों के लिए IG क्राइम का नंबर साझा करना इस बात का संकेत है कि पुलिस सूचना को महत्व दे रही है और पहचान की गोपनीयता सुनिश्चित करेगी।

“सबसे बदनाम 5/10/20” की सूची सिर्फ कागज नहीं, बल्कि प्राथमिकता तय करने का टूल है। इससे संसाधन और समय वहीं लगेंगे जहां जोखिम सबसे ज्यादा है। थानों को पहचान, तलाश और गिरफ्तारी—तीनों मोर्चों पर साथ काम करना होगा। पहचान में CCTV फुटेज, कॉल डिटेल रिकॉर्ड, स्थानीय सूचनाएं और ट्रांजिट पॉइंट की निगरानी मदद करेगी। जमानत रद्द कराने के लिए ताजा गतिविधियों के रिकॉर्ड और साक्ष्य के साथ अदालत जाना होगा। जहां नेटवर्क और फंडिंग दिखे, वहां संगठित अपराध की धाराएं लगेंगी और संपत्ति जब्ती होगी, ताकि दोबारा अपराध करने की ताकत टूटे।



यह भी साफ संकेत है कि हर स्तर पर नाम लेकर जिम्मेदारी तय की जा रही है—किस SHO/DSP के इलाके की “सबसे बदनाम 5” सूची में कौन-कौन हैं, जिला/जोन की “सबसे बदनाम 10” का स्टेटस क्या है, STF की “सबसे बदनाम 20” पर कितनी प्रगति हुई। 16 दिनों में गिरफ्तारी, अदालत में दायर याचिकाएं, वारंट की तामील और सीमाओं पर समन्वित कार्रवाई जैसे सूचकांकों से सफलता मापी जाएगी।

ऑपरेशन के अंत में इस्तेमाल किए गए हैशटैग—#HotOnYourTrail, #NoPlaceToHide, #OperationTrackdown, #कानून_करेगा_अपना_काम—भगोड़ों के लिए चेतावनी भी हैं और लोगों के लिए भरोसा भी कि कानून अपना काम करेगा, समय पर और साक्ष्यों के साथ।

फिलहाल दिशा साफ है: “सबसे बदनाम” अपराधियों की पहचान और गिरफ्तारी, उनके नेटवर्क पर कानूनी नकेल, पड़ोसी राज्यों के साथ मिलकर तेज कार्रवाई, और नागरिकों से मिली सूचना का सुरक्षित इस्तेमाल।

फतेहाबाद के ‘जैक’ और ‘रैम्बो’: स्वान टीम के दो सितारे जिन्होंने बदल दिया ऑपरेशन का रुख

चंडीगढ़, 04 नवंबर।
आमतौर पर पुलिस की वीरता की कहानियों में इंसानी चेहरों का जिक्र होता है, मगर फतेहाबाद पुलिस की एक हालिया और ऐतिहासिक कामयाबी के पीछे दो ऐसे वीर योद्धा हैं, जो चार पैरों पर चलते हैं लेकिन जिनकी नाक ने बड़े-बड़े अपराधियों की नींदें उड़ा दीं। ये हैं – स्वान टीम के प्रशिक्षित स्वान (डॉग) ‘जैक‘ और ‘रैम्बो‘। इन दोनों ने अपनी सूंघने की अद्भुत क्षमता और पुलिस बल के साथ तालमेल के ज़रिए ‘ऑपरेशन जीवन ज्योति’ को एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है।
ये केवल डॉग नही बल्कि हमारी टीम के हैं अग्रिम योद्धा-डीजीपी हरियाणा
पुलिस महानिदेशक ओ पी सिंह ने इस ऑपरेशन की सराहना करते हुए कहा कि जैक और रैम्बो जैसे स्वान अब केवल पुलिस के सदस्य नहीं बल्कि असली हीरो हैं। उन्होंने कहा कि ये स्वान हमारी आंख और नाक बनकर काम करते हैं और आपराधिक नेटवर्क को जड़ से उखाड़ फेंकने में यह स्वान-शक्ति बेहद कारगर साबित हो रही है। उन्होंने कहा कि हरियाणा पुलिस अपराधियों के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस की नीति पर काम कर रही है, और आगे भी ऐसे अभियान लगातार चलाए जाएंगे।
गुप्त सूचना और गोरखपुर की धरपकड़
सोमवार की सुबह, जब भूना थाना प्रभारी उपनिरीक्षक ओम प्रकाश के नेतृत्व में पुलिस टीम गुप्त सूचना के आधार पर गोरखपुर गांव में एक संदिग्ध घर की तलाशी के लिए निकली, तो साथ थे जैक और रैम्बो भी। मौके पर पहुंचते ही जैक ने अपनी सधी चाल और तीव्र सूंघने की शक्ति से संदिग्धता जताई और घर के एक हिस्से पर ध्यान केंद्रित किया। रैम्बो भी उसी दिशा में इशारा करता हुआ आगे बढ़ा, जिससे पुलिस टीम का शक और गहरा हुआ।
गुप्त कक्ष का खुलासा और बरामदगी
दोनों स्वानों की सतर्कता ने कमांडो दस्ता को तुरंत सक्रिय किया और घर के भीतर बने एक गुप्त कक्ष का पता चल गया। इस कक्ष में छिपाए गए हथियारों और कारतूसों ने इस पूरे नेटवर्क का सच सामने ला दिया। चार अवैध हथियार, 14 जिंदा कारतूस और शराब बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाला बीस लीटर लाहन, सब कुछ इसी छुपे हुए कमरे से बरामद हुआ।
अपराधियों में हड़कंप, जनता में भरोसा
‘ऑपरेशन जीवन ज्योति’ की इस सफलता ने न केवल अपराधियों के नेटवर्क पर बड़ा प्रहार किया है, बल्कि आम जनता में पुलिस व्यवस्था के प्रति विश्वास को और प्रगाढ़ किया है। जैक और रैम्बो जैसे प्रशिक्षित स्वान यह साबित कर रहे हैं कि जब तकनीक, मानव कौशल और पशु शक्ति एकसाथ हो जाएं, तो अपराध और नशे के खिलाफ लड़ाई में जीत निश्चित है।
स्वानः पुलिस परिवार के समर्पित प्रहरी
हरियाणा पुलिस की स्वान यूनिट में काम करने वाले ये डॉग सिर्फ़ एक ऑपरेशन का हिस्सा नहीं, बल्कि पुलिस परिवार के ऐसे सदस्य हैं, जिनकी प्रतिबद्धता और पराक्रम हर समय जनता की सुरक्षा के लिए समर्पित रहता है। जैक और रैम्बो की यह कहानी केवल एक अभियान की नहीं, बल्कि इस बात का सबूत है कि असली प्रहरी कभी थकते नहीं-भले ही वे इंसान हों या स्वान।