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हाथों से काम छीन रही रोबोटिक साइंस

अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस पर विशेष

01 मई को अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस है। इसे मज़दूर दिवस और मई दिवस भी कहते हैं। इस दिन पूरी दुनिया में मज़दूरों और शारीरिक श्रम करने वालों के लिए काम करने का दावा करने वाले बड़े-बड़े दावेदार राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इकट्ठे होंगे और सभी श्रमिकों के साथ खड़े होने का ड्रामा करके बड़ी-बड़ी बातें करेंगे। लेकिन क्या श्रमिकों, ख़ासकर मज़दूरों के लिए कोई सच में लड़ाई लड़कर उनके हितों और अधिकारों के लिए ईमानदारी से काम करता है? हक़ीक़त यह है कि मज़दूर और श्रमिक 100 साल से पहले की हज़ारों साल की ग़ुलामी से आज़ाद होकर मज़दूरी यानी तनख़्वाह भले ही पाने लगे हों; लेकिन वे असल में ग़ुलामी से आज़ाद नहीं हो सके हैं। आज भी गार्ड और कम्पनियों में काम करने वाली लेबर को 9 से 12 घंटे की ड्यूटी करनी पड़ती है और तनख़्वाह 8 घंटे की भी नहीं मिलती है। गुजरात की कई कपड़ा मिलों में काम करने वाले गार्ड, मज़दूर और दूसरे श्रमिक मजबूरन 9 से 12 घंटे ड्यूटी करते हैं और इसके बदले में 6-7 हज़ार रुपये से लेकर 10-12 हज़ार रुपये महीने की तनख़्वाह मिलती है। ठेकेदारों के अंडर में काम करने वालों की हालत से इससे भी ख़राब है। इस शोषण के ख़िलाफ़ कोई आवाज़ नहीं उठा पाता। क्योंकि अगर कोई आवाज़ उठाता है, तो उसे नौकरी छोड़नी पड़ती है और उसकी जगह उससे भी कम तनख़्वाह में काम करने के लिए कई और लोग तैयार हो जाते हैं।

आज भारत में जहाँ एक नौकरी को पाने की होड़ सैकड़ों लोगों में लग जाती है, वहीं जिन हाथों को काम मिला हुआ है, उनके हाथों से भी काम छिनने के आसार बढ़ते जा रहे हैं। भारत में हाथ से काम करने वाले मज़दूरों और श्रमिकों के हाथों से काम छीनने में जहाँ बेरोज़गारी, ग़रीबी और महँगाई है, वहीं विदेशों में इसकी वजह भारतीय श्रमिकों की घटती माँग और रोबोट के ज़रिये काम कराने के चलन का बढ़ना है। भारत में बेरोज़गारी, ग़रीबी और क़र्ज़ की वजह से हर साल 40 हज़ार से ज़्यादा मज़दूर और क़रीब 1,200 से ज़्यादा बेरोज़गार छात्र आत्महत्या कर लेते हैं। बेरोज़गारी का आलम ये है कि 16 प्रतिशत 12वीं से ज़्यादा पढ़े-लिखे युवा छोटे-छोटे काम और मज़दूरी करने को मजबूर हैं। एक तरफ़ हाथों से रोज़गार छिनने की वजह महँगाई, बेरोज़गारी, मशीनीकरण है, तो दूसरी तरफ़ अब रोबोट हाथों से काम छीनने में अहम भूमिका निभा रहा है। जानकारों के मुताबिक, दुनिया में जैसे-जैसे रोबोट की माँग बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे श्रमिकों की माँग घटती जा रही है। दुनिया के कई रेस्तरां में, घरों में और कम्पनियों में रोबोट से काम लिया जा रहा है। एआई तकनीक के बढ़ते क़दम रोबोट को बिलकुल इंसानों की तरह संवेदनशील और काम करने में इंसानों से भी ज़्यादा परफेक्ट बनाने की कोशिश में हैं।

साल 2024 में अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस की थीम जलवायु परिवर्तन के बीच कार्यस्थल सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करना थी। इस साल मेहनतकश लोगों के अधिकारों का सम्मान मक़सद है। लेकिन क्या इससे दुनिया के इस वर्ग का सच में भला हो सकेगा? दुनिया भर में एक दिन के लिए किसी दिवस को मनाने भर से हालात नहीं सुधर सकते। क्योंकि ये दिवस अरबों रुपये ख़र्च करके सिर्फ़ बड़ी-बड़ी बातें करने का खोखला आधार बन चुके हैं, जिनके बहाने मज़दूर हितों की बात करने वाले बहुत-से दलालों की जेब गर्म हो जाती है। मज़दूरों पर काम करने वाली संस्थाएँ इस एक दिन में करोड़ों रुपये बनाकर फिर साल भर के लिए मज़दूरों और दूसरे श्रमिकों की समस्याओं से अनजान हो जाती हैं। दुनिया भर में करोड़ों मज़दूर संगठनों, मज़दूरों के लिए काम करने वाले एनजीओ और मज़दूरों के लिए काम करने वाली दूसरी संस्थाओं की चौखट पर उनके साथ हुए अन्याय की फ़रियाद लेकर माथा टेकने जाते हैं; लेकिन ये सब 80 प्रतिशत से ज़्यादा पीड़ित मज़दूरों और श्रमिकों को न्याय नहीं दिला पाते। उलटा मज़दूरों और श्रमिकों से न्याय की लड़ाई लड़ने के नाम पर पैसा ऐंठ लेते हैं। कई संगठनों, एनजीओ और संस्थाओं के लोग तो मज़दूरों की लड़ाई हाथ में लेकर मज़दूरों का शोषण करने वाली संस्थाओं, कम्पनियों से ही दलाली लेकर मज़दूरों को धोखा देते रहते हैं।

कार्यबल में इंसानों से ज़्यादा पॉवरफुल और लगातार बिना थके बिना तनख़्वाह के काम करने के चलते दुनिया भर में रोबोट की माँग बढ़ती जा रही है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और रोबोटिक साइंस की तेज़ी से हो रही प्रगति ने दुनिया भर के ह्यूमन फ्रेंडली लोगों को चिन्ता में डाल दिया है। लेकिन जो लोग इंसानों से ज़्यादा मशीनों को महत्त्व देते हैं और व्यापार भी किसी भी हाल में ज़्यादा-से-ज़्यादा लाभ कमाने का ज़रिया मानते हैं, वे लोग नयी तकनीक के इन बढ़ते आविष्कारों से बहुत ख़ुश हैं कि उन्हें रोबोट के रूप में बिना तनख़्वाह के ज़्यादा तेज़ी से काम करने वाली तकनीक एक बार में पैसा ख़र्च करने पर मिल रही है, जिसकी वजह से वे कई मज़दूरों और श्रमिकों का काम एक ही रोबोट से करा सकते हैं। हाल ही में रोबोट और एआई के सफल प्रयोगों के बाद ऐसे लोगों को भरोसा होने लगा है कि रोबोट और एआई इंसानों से ज़्यादा स्मार्ट, ज़्यादा मेहनत, ज़्यादा काम और ज़्यादा सटीक तरीक़े से काम करने के लिए इन तकनीकी यंत्रों पर भरोसा किया जा सकता है। इन लोगों का मानना है कि रोबोट और एआई से किसी भी प्रकार की बेईमानी का कोई ख़तरा नहीं है, जो इंसानों से अक्सर होता है। अमेरिका, चीन, जापान, ब्रिटेन, दुबई, क़ुवैत और दूसरे कई विकसित देशों की कई बड़ी-बड़ी कम्पनियों में रोबोट काम कर रहे हैं और उनकी क्षमता, कम लागत और काम में सफ़ाई के मामले में ज़्यादातर कम्पनियों ने संतुष्टिपूर्ण जवाब दिये हैं।

लेकिन इस सबके बावजूद रोबोट और एआई के कई बड़े ख़तरे भी हैं, जिनको लेकर लोग चिन्तित हैं। दरअसल एआई और इंटरनेट के बढ़ते उपयोग ने कम्पनियों और पूँजीपतियों को एक सेकेंड में भी बर्बाद करने की चिन्ता को बढ़ाया है। क्योंकि इससे सभी लोग और कम्पनियाँ चौबीसों घंटे अंतरराष्ट्रीय साइबर अपराधियों और ठगों के निशाने पर रहती हैं। दूसरी तरफ़ रोबोट किसी भी इंसान या चीज़ को तोड़फोड़ करके नुक़सान पहुँचा सकता है, चाहे वो रोबोट को ख़रीदने या चलाने वाला उसका मालिक ही क्यों न हो। इसी वजह से रोबोट को संवेदनशील और आज्ञाकारी बनाने की दिशा में वैज्ञानिक लगातार काम कर रहे हैं। अभी हाल ही में ऐसे कई रोबोट तैयार किये गये हैं, जो इंसानों की तरह ही प्यार, जज़्बात को महसूस कर सकें और इंसानों की तरह देख-सुनकर उनकी बातों का सही जवाब दे सकें या समस्याओं का समाधान कर सकें।

अब तो ऐसे-ऐसे रोबोट बनाये जा रहे हैं, जो हर काम कर सकें। ख़ाना बनाने और साफ-सफ़ाई करने से लेकर युद्ध करने तक में काम आ सकें। ई-कॉमर्स कम्पनियों के लिए रोबोट वरदान साबित हो रहे हैं। इन कम्पनियों में मैन्युफैक्चरिंग से लेकर ऑर्डर के मुताबिक, सामान निकालकर पैक करने और डिलीवरी देने तक में रोबोट की डिमांड बढ़ती जा रही है। लेकिन इससे दुनिया भर में श्रमिकों की माँग घटती जा रही है। हालाँकि जानकार कह रहे हैं कि इससे किसी को घबराने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि अपना स्किल डेवलप करने की ज़रूरत है। लेकिन आज दुनिया की क़रीब 8.5 अरब आबादी में अनपढ़ और ग़ैर-प्रशिक्षित श्रमिकों की संख्या 2.1 अरब से भी ज़्यादा है, तो वे क्या करें? आज के आधुनिक युग में भी भारत और दूसरे विकासशील देशों में 8.6 प्रतिशत से ज़्यादा मासूम स्कूल का मुँह नहीं देख पा रहे हैं और 16.4 प्रतिशत से ज़्यादा बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़कर मज़दूर बन रहे हैं। पैसे के अभाव में अनपढ़, कम पढ़े-लिखे और यहाँ तक कि बहुत-से ग्रेजुएट बच्चों तक को किसी हुनर का प्रशिक्षण भी नहीं मिल पाता है। प्रशिक्षण या स्किल डेवलप करने के लिए 24 प्रतिशत से ज़्यादा भारतीय बच्चे नौकरी के सहारे हैं, जहाँ वे बिलकुल निचले स्तर से कम तनख़्वाह में काम शुरू करते हैं। ऐसे में अगर रोबोट ने श्रम के क्षेत्र में क़दम रख दिया, तो उनकी नौकरी और ख़तरे में पड़ जाएगी।

जानकार ही ऐसा मान रहे हैं कि आने वाले 10 वर्षों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स और बायोटेक्नोलॉजी के नाम से दस्तक दे चुकी चौथी औद्योगिक क्रांति के दौर में मशीनों और नयी तकनीक के चलते करोड़ों लोग बेरोज़गार होंगे और बहुत-से लोग नौकरियों से हाथ धो बैठेंगे। फ्यूचर ऑफ जॉब्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले पाँच साल में ही दुनिया भर में सिर्फ़ रोबोट ही 50 लाख से ज़्यादा लोगों को बेरोज़गार कर देगा। विश्व आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले निकट समय में ही दुनिया भर में 800 से ज़्यादा सेक्टर्स में रोबोट, एआई और नयी तकनीक के चलते 80 प्रतिशत नौकरियाँ लोगों के हाथों से छिन जाएँगी। एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2030 तक दुनिया में 80 करोड़ नौकरियाँ लोगों के हाथों से छिन जाएँगी। ये दावे ऐसे ही नहीं किये जा रहे हैं। लोगों के हाथों से काम मशीनीकरण ने छीना है और आगे भी छीना जाएगा; लेकिन मशीनीकरण के इस बढ़ते युग में हैंडीक्राफ्ट और शारीरिक श्रम से बनी चीज़ों की माँग भी बढ़ रही है, बशर्ते वे चीज़ें यूनिक और अच्छी गुणवत्ता वाली हों। इसलिए श्रमिक वर्ग से, ख़ासकर मज़दूरों से यही कहना पड़ेगा कि वे अपने हाथों और दिमाग़ का इस्तेमाल करके कुछ ऐसी चीज़ें बनाएँ, जिससे उन्हें आमदनी भी हो और दुनिया उनके हुनर का लोहा भी माने। तभी श्रमिक दिवस को मनाना सफल हो सकेगा।

मई दिवस 2025 पर- क्या आज के दौर में ट्रेड यूनियनों का अस्तित्व खतरे में?

अप्रासंगिक हो चुके श्रमिक संगठन, कभी वामपंथी क्रांति के शैक्षिक शिविर होते थे

बृज खंडेलवाल  द्वारा

पहली मई को जब दुनिया भर में मई दिवस मनाया जाएगा, भारत समेत कई देशों में ट्रेड यूनियनों की प्रासंगिकता पर गंभीर सवाल भी उठेंगे।

श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में वर्तमान में 16,000 से अधिक पंजीकृत ट्रेड यूनियनें हैं, जिनमें से केवल 12 राष्ट्रीय स्तर की यूनियनें हैं। यह संख्या पिछले एक दशक में 20% कम हुई है, जबकि देश का कार्यबल 50 करोड़ से अधिक हो चुका है।  

श्रम ब्यूरो के 2024 के सर्वे के अनुसार: 

– केवल 7% भारतीय श्रमिक (लगभग 3.5 करोड़) संगठित क्षेत्र में काम करते हैं , – ट्रेड यूनियनों की सदस्यता पिछले 10 वर्षों में 35% घटी है ,-_- 83% कार्यबल असंगठित क्षेत्र में है जहां यूनियनों की पहुंच नगण्य है।  

1886 के शिकागो हेमार्केट घटना से प्रेरित मई दिवस ने भारत में 1923 में चेन्नई से शुरुआत की थी। आजादी के बाद के दशकों में यूनियनों ने कई बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं:  – 8 घंटे कार्यदिवस  -न्यूनतम मजदूरी कानून  – कार्यस्थल सुरक्षा मानक, लेकिन   1991 के उदारीकरण के बाद से स्थिति बदलने लगी। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के आंकड़े बताते हैं कि:  – 2000-2025 के बीच हड़तालों की संख्या में 60% की कमी आई,   – 75% से अधिक निजी कंपनियों में यूनियन गतिविधियां प्रतिबंधित हैं ।

गिग इकॉनमी के उभार ने स्थिति और जटिल बना दी है:  – ज़ोमैटो, स्विगी जैसे प्लेटफॉर्म पर 50 लाख से अधिक डिलीवरी पार्टनर्स  – ओला/उबर ड्राइवर्स की संख्या 25 लाख से अधिक  – इनमें से 95% कर्मचारी किसी यूनियन से नहीं जुड़े हैं।

एक पूर्व यूनियन नेता कहते हैं, “आज की अर्थव्यवस्था में, यूनियनें सिर्फ 5% कर्मचारियों की आवाज बनकर रह गई हैं। हमें गिग वर्कर्स, फ्रीलांसर्स और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों तक पहुंचना होगा।” 

ट्रेड यूनियनों के सामने स्पष्ट विकल्प है – या तो नए आर्थिक युग के अनुकूल खुद को बदलें, या फिर धीरे-धीरे अप्रासंगिक होते चले जाएं। श्रमिक अधिकारों की यह लड़ाई अब सिर्फ कारखानों तक सीमित नहीं, बल्कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और होम-बेस्ड वर्कर्स तक पहुंचनी होगी। एक वैश्विक, खुली हुई अर्थव्यवस्था के दौर में ट्रेड यूनियनों की अहमियत का सवाल बड़ा होता जा रहा है। कभी क्रांतिकारी बदलाव की पेशवाई करने वाली ट्रेड यूनियनें, भारत और दूसरी जगहों पर, अपनी धार खोती हुई दिख रही हैं, एक ऐसी आज़ाद बाज़ार व्यवस्था में अपनी पहचान के संकट से जूझ रही हैं जहाँ उनकी पारंपरिक भूमिकाओं पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं। निजीकरण, आउटसोर्सिंग और बढ़ती हुई गैर-संगठित कार्यबल वाली सोसाइटी में, क्या ट्रेड यूनियनें अब भी परिवर्तनकारी बदलाव के लिए इकट्ठा होने की जगह हैं, या उन्हें सिर्फ कानूनी कार्रवाई करने वाली कमेटियों तक सीमित कर दिया गया है?

दशकों में, मई दिवस वामपंथी विचारधाराओं के लिए एक मंच के रूप में विकसित हुआ, ट्रेड यूनियनों ने व्यवस्थागत असमानताओं के खिलाफ working class के मज़लूमों के हक में आवाज़ उठाई। फिर भी, आज की दुनिया में, उन शुरुआती आंदोलनों का जोश कम होता दिख रहा है।

भारत में, जहाँ ज़्यादातर कार्यबल गैर-संगठित क्षेत्र में काम करता है—किसान, विक्रेता और गिग वर्कर—पारंपरिक ट्रेड यूनियनों की अहमियत पर सवाल उठ रहे हैं। श्रम अदालतों में याचिकाओं की लंबी कतारें सीधी कार्रवाई से लंबी कानूनी लड़ाइयों की ओर बदलाव का संकेत देती हैं। हकीकत यह है कि इस खुली अर्थव्यवस्था के दौर में, मज़दूर उन नियोक्ताओं की मर्ज़ी पर हैं जो कभी भी निकाल सकते हैं। नौकरी की सुरक्षा पुरानी बात हो गई है। सरकारी विभागों द्वारा सेवाओं को आउटसोर्स करने और गिग इकोनॉमी के तेज़ी से बढ़ने के साथ, यूनियनों की सौदेबाजी की ताकत काफी कम हो गई है।

एक पूर्व ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता, इस संदर्भ में मई दिवस के मकसद पर ही सवाल उठाते हैं। “कौन किससे लड़ रहा है? ‘क्रांति के स्कूल’ के रूप में ट्रेड यूनियनें एक पुरानी अवधारणा हैं। वामपंथी एक ऐसी व्यवस्था में खुद को किनारे महसूस करते हैं जहाँ आर्थिक वर्ग अब मार्क्स की कल्पना के अनुसार स्पष्ट रूप से अलग नहीं हैं,” वे कहते हैं।

स्व-नियोजित श्रमिकों के उदय ने शोषण की रेखाओं को और धुंधला कर दिया है, कई विक्रेता पारंपरिक नियोक्ताओं के बजाय सरकारी एजेंसियों और पुलिस को अपने मुख्य ज़ालिम के रूप में बताते हैं।

एक फैक्ट्री वर्कर कहता है, “हमारी लड़ाई सिर्फ निजी नियोक्ताओं के खिलाफ नहीं, बल्कि अधिकारियों द्वारा की जाने वाली तकलीफ के खिलाफ भी है।”

क्रांतिकारी जोश जिसने कभी ट्रेड यूनियनों को परिभाषित किया था, अब व्यावहारिकता में बदल गया है। समाजवादी टिप्पणीकार पारस नाथ चौधरी कहते हैं, “यूनियनें अपना क्रांतिकारी चरित्र खो रही हैं, प्रबंधन के साथ सौदेबाजी करने वाली कानूनी कार्रवाई समितियों में बदल रही हैं।” हड़तालें, जो कभी श्रम सक्रियता की पहचान थीं, अब दुर्लभ हैं। यूनियन नेता अक्सर प्रबंधन बोर्डों में बैठते हैं, जिन्हें औद्योगिक चक्र की रफ्तार सुनिश्चित करने का काम सौंपा जाता है, न कि उसे बाधित करने का।

कार्ल मार्क्स ने ट्रेड यूनियनों को एक समाजवादी क्रांति के लिए आयोजन केंद्रों के रूप में कल्पना की थी, जो श्रमिकों को एकजुट करते थे और उनकी वर्ग चेतना को तेज़ करते थे। हालाँकि, आज, यूनियनें पूंजीवादी ढांचे को चुनौती देने के बजाय छोटे-छोटे रियायतों को हासिल करने पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित करती हुई दिखती हैं। यह बदलाव वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक व्यापक परिवर्तन को दर्शाता है। ट्रेड यूनियनों का क्लासिकल मॉडल—स्पष्ट वर्ग विभाजनों और सामूहिक सौदेबाजी की धारणा पर निर्मित—एक खंडित कार्यबल और सिकुड़ते नौकरी बाज़ार के अनुकूल होने के लिए संघर्ष कर रहा है।

कार्यकर्ता अजय कुमार आर्थिक अनिश्चितताओं की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, “जब विकल्प कम हों तो श्रमिक वर्ग लड़ने की हैसियत नहीं रखता,” जो सामूहिक कार्रवाई को हतोत्साहित करते हैं। राजनीतिक संस्थाओं के रूप में, ट्रेड यूनियनों का प्रभाव कम हो गया है, नेताओं ने टकराव के बजाय प्रतिष्ठान के साथ समन्वय करना पसंद किया है।

1990 के दशक तक लंबी हड़तालें आम बात थी। 1974 की जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में 18 दिनों तक चलनेवाली चक्का जाम रेलवे स्ट्राइक से इंदिरा गांधी दबाव में आई और जून 1975 में इमरजेंसी लगी। लेकिन अब पूंजीवाद खूंखार रूप में प्रतिष्ठित हो चुका है। पत्रकार संगठन भी खामोश हैं। अमेरिकी हायर एंड फायर सिस्टम चल चुका है। पक्की नौकरियां घट रही हैं। शोषण, अन्याय और गैर बराबरी के इस दौर में श्रमिक संगठनों को नई दिशा परिभाषित करनी होगी।

पूरे देश में होगी जाति जनगणना, कैबिनेट बैठक में लिया फैसला

बिहार विधानसभा चुनावों के पहले सरकार ने राजनीतिक महत्व का एक बड़ा कदम उठाते हुए देश में आम जनगणना में जातियों की गणना कराने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को यहां हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की राजनीतिक मामलों की समिति की बैठक में यह फैसला लिया गया।

रेल, सूचना प्रसारण, इलैक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कैबिनेट के फैसलों की जानकारी दी। उन्होंने कहा, “राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने आज फैसला किया है कि जाति गणना को आगामी जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए।” वैष्णव ने कहा, “कांग्रेस की सरकारों ने आज तक जाति जनगणना का विरोध किया है। आजादी के बाद की सभी जनगणनाओं में जातियों की गणना नहीं की गयी। वर्ष 2010 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री दिवंगत डॉ. मनमोहन सिंह ने लोकसभा में आश्वासन दिया था कि जाति जनगणना पर केबिनेट में विचार किया जाएगा। तत्पश्चात एक मंत्रिमण्डल समूह का भी गठन किया गया था जिसमें अधिकांश राजनीतिक दलों ने जाति आधारित जनगणना की संस्तुति की थी। इसके बावजूद कांग्रेस की सरकार ने जाति जनगणना के बजाए, एक सर्वे कराना ही उचित समझा जिसे एसईसीसी के नाम से जाना जाता है।

इस सब के बावजूद कांग्रेस और इंडी गठबंधन के दलों ने जाति जनगणना के विषय को केवल अपने राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग किया।” सूचना प्रसारण मंत्री ने कहा कि जनगणना का विषय संविधान के अनुच्छेद 246 की केंद्रीय सूची की क्रम संख्या 69 पर अंकित है और यह केंद्र का विषय है। हालांकि, कई राज्यों ने सर्वे के माध्यम से जातियों की जनगणना की है। जहां कुछ राज्यो में यह कार्य सूचारू रूप से संपन्न हुआ है वहीं कुछ अन्य राज्यों ने राजनीतिक दृष्टि से और गैरपारदर्शी ढंग से सर्वे किया है। इस प्रकार के सर्वें से समाज में भ्रांति फैली है। इन सभी स्थितियों को ध्यान में रखते हुए और यह सुनिश्चित करते हुए कि हमारा सामाजिक ताना बाना राजनीति के दबाव मे न आये, जातियों की गणना एक सर्वें के स्थान पर मूल जनगणना में ही सम्मिलित होनी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि समाज आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से मजबूत होगा और देश की भी प्रगति निर्बाध होती रहेगी। वैष्णव ने कहा, “आज दिनांक 30 अप्रैल 2025 के दिन प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में राजनीतिक विषयों की कैबिनेट समिति ने यह निर्णय लिया है कि जातियों की गणना को आने वाली जनगणना में सम्मिलित किया जाए। यह इस बात को दर्शाता है कि वर्तमान सरकार देश और समाज के सर्वांगीण हितों और मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध है।” उन्होंने यह भी कहा कि इसके पहले भी जब समाज के गरीब वर्गों को 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया था तो समाज के किसी घटक में कोई तनाव उत्पन्न नहीं हुआ था। उल्लेखनीय है कि सरकार के इस फैसले का बिहार विधानसभा के सितंबर अक्टूबर में होने वाले चुनाव की दृष्टि से देखा जा रहा है जहां विपक्षी इंडी गठबंधन द्वारा उठायी गयी जातीय जनगणना कराने की मांग जोर पकड़ रही है। केन्द्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार के इस फैसले को बिहार की राजनीति में उलटफेर करने वाला निर्णय माना जा रहा है।

पहलगाम में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए शुभम द्विवेदी के परिजनों से मिले राहुल

कानपुर: पहलगाम में हुए कायरतापूर्ण आतंकी हमले में शहीद हुए शुभम द्विवेदी के परिजनों से कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आज मुलाक़ात कर उन्हें सांत्वना दी। शुभम उन लोगों में से एक थे जो 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए थे।

उत्तर प्रदेश कानपुर के 31 वर्षीय व्यवसायी शुभम द्विवेदी का महज दो महीने पहले 12 फरवरी को विवाह हुआ था। कश्मीर के पहलगाम में पत्नी के सामने ही आतंकवादियों ने शुभम की गोली मारकर हत्या कर दी थी। शुभम अपनी पत्नी और नौ अन्य परिजनों के साथ एक सप्ताह की छुट्टी पर 16 अप्रैल को कश्मीर गए थे।

शुभम द्विवेदी

इस दुःखद घड़ी में पूरा देश शोकाकुल परिवारों के साथ खड़ा है। आतंकियों के ख़िलाफ़ सख्त और ठोस कार्रवाई होनी चाहिए और पीड़ित परिवारों को न्याय मिलना चाहिए।

इसी उद्देश्य से संयुक्त विपक्ष ने सरकार को पूरा समर्थन दिया है और संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है।

राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा, “पहलगाम में हुए कायरतापूर्ण आतंकी हमले में शहीद हुए शुभम द्विवेदी के परिजनों से आज मुलाक़ात कर उन्हें सांत्वना दी। इस दुःखद घड़ी में पूरा देश शोकाकुल परिवारों के साथ खड़ा है। आतंकियों के ख़िलाफ़ सख्त और ठोस कार्रवाई होनी चाहिए और पीड़ित परिवारों को न्याय मिलना चाहिए। इसी उद्देश्य से संयुक्त विपक्ष ने सरकार को पूरा समर्थन दिया है और संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है।

अपना अमेठी दौरा पूरा करने के बाद राहुल गांधी ने शुभम के घर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनके परिजनों से मुलाकात की। गांधी के साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय भी थे। राय 23 अप्रैल को शुभम के अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे।

कश्मीर के अनंतनाग जिले के लोकप्रिय पर्यटन शहर पहलगाम के पास बैसरन में 22 अप्रैल को आतंकवादियों द्वारा की गई गोलीबारी में 26 लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हो गए। इनमें ज्यादातर पर्यटक थे।

सीबीआई की जांच का स्टेशन डेवलपमेंट के काम पर नहीं पड़ेगा असर

बिलासपुर- 32 लाख रुपए की रिश्वत कांड मामले में रेलवे के चीफ इंजीनियर के साथ रेलवे ठेकेदार झांझरिया निर्माण कंपनी भी फंसी है, जिनके खिलाफ सीबीआई की जांच चल रही है। झांझरिया निर्माण कंपनी लिमिटेड का बिलासपुर रेलवे स्टेशन में 392 करोड़ रुपए की लागत से स्टेशन डेवलपमेंट का काम चल रहा है, जिसपर इस जांच से किसी तरह का कोई असर नहीं पड़ेगा।

मालूम हो कि पांच दिन पहले बिलासपुर रेलवे जोन मुख्यालय के कंस्ट्रक्शन में सीबीआई की एक बड़ी कार्रवाई की गई थी। इसमें रोड सेफ्टी ओपन लाइन के चीफ इंजीनियर विशाल आनंद काे झांझरिया निर्माण कंपनी से 32 लाख रुपए की रिश्वत लेने के आरोप में पकड़ा गया था। सीबीआई की टीम ने चीफ इंजीनियर और ठेकेदार के आफिस में दस्तावेज को खंगाला। इस दौरान रेलवे के चीफ इंजीनियर विशाल आनंद, भाई कुणाल आनंद, झांझरिया निर्माण कंपनी लिमिटेड के एमडी सुशील झांझरिया और कर्मचारी मनोज पाठक के खिलाफ कार्रवाई करते हुए गिरफ्तार कर अपने साथ लेकर चली गई। इस कार्रवाई के बाद रेलवे के जोन व डिवीजन कार्यालय में हड़कंप मचा हुआ है। वहीं रेल अफसर भी अब पूरी तरह से सतर्क होकर अपना काम निपटारा करने में लगे हैं। सीबीआई की कार्रवाई में शामिल झांझरिया निर्माण कंपनी लिमिटेड का बिलासपुर जोनल रेलवे स्टेशन में 392 करोड़ रुपए की लागत से पुनर्विकसित करने का काम एक साल पहले ही शुरु किया गया था। इसका ठेका मिलने के बाद कंपनी ने अपने कर्मचारियों को पूरे स्टेशन में काम के लिए लगा दिया, जिसमें मजदूरों के साथ जेसीबी भी स्टेशन एरिया के बाहर तोड़फोड़ करने में लग गई थी। गेट नम्बर चार से लेकर गेट नम्बर तीन और जनआहार के बाहर एरिया तक काम कम्पलीट नहीं हो सका था, कि झांझरिया की कंपनी सीबीआई के हत्थे चढ़ गई। सीबीआई की जांच और कार्रवाई के बाद स्टेशन का काम कंपनी ने पूरी तरह से बंद कर है, जिसके कारण काम समय पर कम्पलीट होने के कोई भी आसार नहीं नजर आ रहे हैं। वहीं अधिकारियों ने इस जांच के बावजूद काम चलते रहने की बात कही है, ताकि यात्रियों को किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े।

बिलासपुर जोनल रेलवे स्टेशन में पिछले एक साल से अब तक केवल गेट नम्बर चार के सामने बने रैंप, उसके ऊपर लगे शेड को तोड़ने के बाद रनिंग लॉबी और गेट नम्बर तीन के सामने की दो पहिया और चार पहिया पार्किंग को पूरी तरह से तोड़ने का काम किया गया है। इस काम की वजह से जनआहार से लेकर रनिंग लॉबी और गेट नम्बर चार तक चारों ओर से शेड की तरह दीवार बना दिया गया है, ताकि कोई भी यात्री उस स्थान पर आना-जाना न कर सकें।

कनाडा चुनाव में जस्टिन ट्रूडो की पार्टी फिर जीती, कॉर्नी फिर बनेंगे प्रधानमंत्री

कनाडा में हुए आम चुनावों के नतीजों में जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी ने फिर से सत्ता में वापसी कर ली है। लिबरल पार्टी को 166 सीटों पर जीत मिलती नजर आ रही है। हालांकि बहुमत के लिए 170 सीटों की जरूरत होती है, लेकिन लिबरल पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है और सरकार बनाने की स्थिति में है। इस बार प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी जस्टिन ट्रूडो के स्थान पर मार्क कार्नी संभालेंगे, जिन्हें पार्टी ने आंतरिक रूप से अपना नया नेता घोषित किया है। वहीं मुख्य विपक्षी कंजरवेटिव पार्टी को लगभग 145 सीटें मिली हैं, जिससे वे सत्ता से फिर बाहर रह गई है।

जगमीत सिंह और एनडीपी को बड़ा झटका खालिस्तान समर्थक नेता जगमीत सिंह को इस चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है। उनकी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) को केवल 7 सीटें जीतने में सफल रही। जगमीत सिंह खुद भी अपनी सीट गंवा बैठे और तीसरे स्थान पर खिसक गए। हार के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी।

भावुक होते हुए जगमीत ने अपने समर्थकों से कहा, “मैंने मूवमेंट को कमजोर नहीं पड़ने दिया, लेकिन जनता ने इसे स्वीकार नहीं किया। मैं निराश हूं, लेकिन हार नहीं मानूंगा।” 2021 के चुनावों में एनडीपी को 25 सीटें मिली थीं और जगमीत की पार्टी ने सरकार में किंगमेकर की भूमिका निभाई थी। लेकिन इस बार जनता ने उन्हें पूरी तरह से नकार दिया।

जम्मू-कश्मीर में बड़ा फैसला, 48 पर्यटक स्थलों को किया गया बंद

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद प्रदेश भर में सुरक्षा एजेंसियों का बड़ा एक्शन जारी है। आतंकवादियों के खिलाफ चल रहे व्यापक तलाशी अभियानों के बीच जम्मू-कश्मीर सरकार ने घाटी के 48 पर्यटक स्थलों को अस्थायी रूप से बंद करने का बड़ा फैसला लिया है।

सरकारी आदेश के मुताबिक, इन स्थलों को सुरक्षा समीक्षा और आतंकवाद विरोधी अभियानों के चलते बंद किया गया है। अधिकारियों ने बताया कि घाटी के 87 पर्यटन स्थलों में से 48 पर फिलहाल पर्यटकों की आवाजाही पर रोक रहेगी। यह कदम संवेदनशील इलाकों में पर्यटकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है।

‘पहलगाम हमले पर बुलाया जाए संसद का विशेष सत्र’- राहुल गांधी

नई दिल्ली: पहलगाम आतंकी हमले को लेकर पूरे देश में दहशत का माहौल है। इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर आतंकी हमले पर चर्चा करने का अनुरोध किया। साथ ही पत्र में संसद का विशेष सत्र बुलाने का अनुरोध किया गया है। पिछले हफ्ते हुए आतंकी हमले के बाद से विपक्ष के कई सांसदों ने सरकार से ऐसी मांग की है। प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में आगे कहा गया, ‘इस समय में एकता और एकजुटता जरूरी है, इस महत्वपूर्ण समय में भारत को यह दिखाना होगा कि हम आतंकवाद के खिलाफ हमेशा एकजुट हैं।’

खरगे के मुताबिक, संसद का विशेष सत्र बुलाकर सभी 22 अप्रैल को निर्दोष नागरिकों पर पहलगाम में हुए क्रूर आतंकी हमले से निपटने के लिए हमारे सामूहिक संकल्प और इच्छाशक्ति का एक शक्तिशाली प्रदर्शन करेंगे। हमें उम्मीद है कि सत्र तदनुसार बुलाया जाएगा। कांग्रेस के संचार प्रमुख जयराम रमेश ने मंगलवार सुबह पत्र जारी किया।

राहुल गांधी ने भी पीएम मोदी को चिट्ठी लिखी है। उन्होंने लिखा, ‘प्रिय प्रधानमंत्री जी, पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने हर भारतीय को झकझोर कर रख दिया है। इस नाजुक समय में भारत को यह दिखाना होगा कि हम आतंकवाद के खिलाफ हमेशा एकजुट रहेंगे। विपक्ष का मानना ​​है कि संसद के दोनों सदनों का एक विशेष सत्र बुलाया जाना चाहिए, जहां जनता के प्रतिनिधि अपनी एकता और दृढ़ संकल्प दिखा सकें। हम अनुरोध करते हैं कि ऐसा विशेष सत्र जल्द से जल्द बुलाया जाए।’

21वीं सदी की जरूरतों के अनुसार आधुनिक बनाई जा रही देश की शिक्षा प्रणाली: पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत मंडपम में आयोजित ‘युग्म कॉन्क्लेव’ में हिस्सा लिया। इस दौरान पीएम मोदी ने मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि देश का भविष्य उसकी युवा पीढ़ी पर निर्भर होता है, इसलिए ये जरूरी है कि हम अपने युवाओं के भविष्य के लिए और उनको भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए तैयार करें।

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में आगे कहा कि आज यहां सरकार, एकेडमी, साइंस और रिसर्च से जुड़े भिन्न-भिन्न क्षेत्र के लोग इतनी बड़ी संख्या में उपस्थि​त हैं। इस एकजुटता को ही युग्म कहते हैं। एक ऐसा युग्म जिसमें विकसित भारत के फ्यूचर टेक से जुड़े स्टेकहोल्डर्स एक साथ जुड़े हैं, एक साथ जुटे हैं। मुझे विश्वास है, हम जो भारत की इनोवेशन कैपेसिटी और डीप टेक में भारत की भूमिका को बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, उसे इस आयोजन से बल मिलेगा।

पीएम मोदी ने आगे कहा कि किसी भी देश का भविष्य उसके युवाओं पर निर्भर करता है, इसलिए उन्हें भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए तैयार करना बहुत जरूरी है। इसमें शिक्षा की अहम भूमिका है। इसलिए हम 21वीं सदी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी शिक्षा प्रणाली को आधुनिक बना रहे हैं। नई शिक्षा नीति इस बदलाव को आगे बढ़ा रही है। देश में नई शिक्षा नीति लाई गई है। इसे शिक्षा के वैश्विक मानक को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। नई शिक्षा नीति आने के बाद हम भारतीय एजुकेशन सिस्टम में बड़ा बदलाव भी देख रहे हैं। कक्षा 1 से 7 तक के लिए नई पाठ्यपुस्तकें तैयार हो चुकी हैं। पीएम ई-विद्या और दीक्षा प्लेटफॉर्म जैसी पहल पूरे देश में एकीकृत शिक्षा प्रणाली का निर्माण कर रही हैं। इस परिवर्तन का समर्थन करने के लिए एआई द्वारा संचालित एक मजबूत डिजिटल बुनियादी ढांचा बनाया जा रहा है।

उन्होंने आगे कहा कि किसी भी देश का भविष्य उसकी युवा पीढ़ी पर निर्भर होता है, इसलिए ये जरूरी है कि हम अपने युवाओं के भविष्य के लिए और उनको भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए तैयार करें। इसमें बड़ी भूमिका देश के एजुकेशन सिस्टम की भी होती है, इसलिए हम देश के एजुकेशन सिस्टम को 21वीं सदी की जरूरतों के मुताबिक आधुनिक बना रहे हैं। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने और इसे आगे बढ़ाने के लिए, भारत के अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता है। हमने इस दिशा में लगातार काम किया है।

पीएम मोदी ने आगे कहा कि दीक्षा मंच के तहत वन नेशन, वन डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया गया है। ये इंफ्रास्ट्रक्चर एआई आधारित है। इसका उपयोग कई देशों में पाठ्यपुस्तकें तैयार करने में किया जा रहा है। वन नेशन, वन सब्सक्रिप्शन ने युवाओं को ये भरोसा दिया है कि सरकार उनकी जरूरतों को समझती है। आज इस योजना की वजह से उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों तक विश्व स्तरीय शोध पत्रिकाओं तक पहुंचना आसान हो गया है। भारत के विश्वविद्यालय परिसर आज नए गतिशील केंद्र बन रहे हैं। ऐसे केंद्र, जहां युवा शक्ति सफलता के नवाचारों को बढ़ावा दे रही है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारतीय युवाओं को किसी भी तरह की बाधा का सामना न करना पड़े, प्रधानमंत्री अनुसंधान फेलोशिप की स्थापना की गई है। हमने विकसित भारत के लक्ष्य के लिए अगले 25 वर्षों की समयसीमा तय की है। हमारे पास समय सीमित है, लक्ष्य बड़े हैं।

ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने स्टार्टअप्स को सपोर्ट करने के लिए निवेश किए 290 करोड़- केंद्रीय मंत्री

देश की छह ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने अब तक स्टार्टअप इकोसिस्टम को सपोर्ट करने के लिए 290 करोड़ रुपए का निवेश किया है। केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने मंगलवार को यह बयान दिया।

ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने अपने 550 करोड़ रुपए के स्टार्टअप फंड से 303 उभरते हुए स्टार्टअप्स को सपोर्ट किया है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन गया है।

पुरी ने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, “भारत की स्टार्टअप यात्रा सिर्फ संख्याओं के बारे में नहीं है। यह सपनों, दृढ़ संकल्प और इनोवेशन द्वारा आकार दिए गए नए भविष्य के बारे में है।”

हरदीप पुरी ने आगे कहा कि देश में 1.5 लाख से अधिक स्टार्टअप और 120 यूनिकॉर्न हैं।

पुरी ने पोस्ट में आगे कहा, “पेट्रोलियम मंत्रालय के तहत आने वाली छह ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने अपने 550 करोड़ रुपए के स्टार्टअप फंड में से 290 करोड़ रुपए का निवेश 303 कंपनियों में किया है।”

सरकार ने केंद्रीय बजट 2025-26 में फंड ऑफ फंड्स स्कीम के माध्यम से डीपटेक और एआई-सक्षम प्लेटफॉर्म विकसित करने के लिए स्टार्टअप्स को 10,000 करोड़ रुपए का फंड आवंटित किया था।

केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में ‘स्टार्टअप महाकुंभ’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार एक नियामक के रूप में नहीं बल्कि एक सुविधाकर्ता के रूप में स्टार्टअप का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है। इनोवेशन में भारत की बढ़ती ताकत पर प्रकाश डालते हुए, गोयल ने डीप टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा एनालिटिक्स में देश की क्षमता पर विश्वास जताया।

गोयल ने कहा, ” मुझे विश्वास है कि भारत इनोवेशन की दुनिया में बड़े पैमाने पर आगे बढ़ेगा। हम वैश्विक मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे।”