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गुरमीत राम रहीम एक बार फिर से 40 दिन की पैरोल पर

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख 14वीं बार मिली रिहाई

नई दिल्ली: डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम एक बार फिर सुनारिया जेल से बाहर आ गया है। इस बार उन्हें 40 दिन की पैरोल दी गई है। 5 अगस्त को जेल से रिहा होने के बाद वे पुलिस सुरक्षा में अपने सिरसा स्थित डेरे के लिए रवाना हुए। राम रहीम को इससे पहले 9 अप्रैल 2025 को 21 दिन की फरलो मिली थी। अब तक वह 14 बार जेल से बाहर आ चुके हैं। इस साल 1 जनवरी से 14 सितंबर तक के चार महीने की अवधि में वह 91 दिन जेल से बाहर रहेंगे।

डेरा प्रमुख साल 2017 से रोहतक की सुनारिया जेल में बंद हैं। उन्हें पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत ने साध्वियों से बलात्कार और पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्या मामले में दोषी ठहराया था। उन्हें 20-20 साल की दो सजाएं सुनाई गई हैं।

पैरोल की शर्तों के तहत राम रहीम सिरसा डेरे में ही रहेंगे। जानकारी के मुताबिक, इस बार पैरोल की अवधि के दौरान वह 15 अगस्त को अपना 58वां जन्मदिन मनाएंगे और डेरे में पूरे महीने कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इससे पहले अप्रैल में पैरोल के दौरान 29 अप्रैल को डेरा स्थापना दिवस भी मनाया गया था। गौरतलब है कि राम रहीम को पहले भी चुनावी या धार्मिक आयोजनों से पहले पैरोल मिलती रही है। फरवरी में दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भी उन्हें 30 दिन की पैरोल मिली थी।

राम रहीम की बार-बार पैरोल पर रिहाई को लेकर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर सवाल उठते रहे हैं। विपक्षी दलों और मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि सरकारें डेरा समर्थकों के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक लाभ के लिए राहत देती हैं।

डोनाल्ड ट्रंप की धमकियों के बीच रूस ने 38 साल पुरानी डील तोड़ी

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हालिया धमकियों के बीच रूस ने एक बड़ा फैसला लेते हुए छोटी और मध्यम दूरी की मिसाइलों की तैनाती पर लगी रोक हटा दी है। वर्षों पहले इस प्रकार की मिसाइलों की तैनाती पर स्वैच्छिक प्रतिबंध लगाया गया था, जिसे अब रूस ने समाप्त कर दिया है। रूसी विदेश मंत्रालय ने सोमवार को बयान जारी कर कहा कि अब वह खुद को इस प्रतिबंध से बंधा हुआ नहीं मानता, क्योंकि इस प्रतिबंध को बनाए रखने के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ समाप्त हो चुकी हैं।

रूस का यह कदम अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के उस आदेश के बाद सामने आया है, जिसमें उन्होंने रूस के तटों के पास अमेरिका की दो परमाणु पनडुब्बियाँ तैनात करने के निर्देश दिए थे। इस आदेश के बाद रूस और अमेरिका के बीच तनाव और भी गहरा गया है।

गौरतलब है कि वर्ष 1987 में रूस और अमेरिका के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ था, जिसमें दोनों देशों ने 500 से 5,500 किलोमीटर की रेंज वाली ग्राउंड-लॉन्च बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों की तैनाती न करने पर सहमति जताई थी। हालांकि, अमेरिका वर्ष 2019 में इस समझौते से एकतरफा रूप से बाहर निकल गया था।

रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा, “इस मुद्दे पर हमारी बार-बार की चेतावनियों को नजरअंदाज किया गया। हमने यह स्पष्ट किया था कि हम ऐसी मिसाइलों की तैनाती तभी करेंगे जब अमेरिका पहले ऐसा कोई कदम उठाएगा। अब चूंकि अमेरिका ने ऐसा कदम उठा लिया है, इसलिए हमने भी यह रोक हटाने का फैसला किया है।”

ऑपरेशन सिंदूर के बाद पहली बार NDA सांसदों की बैठक

PM मोदी का भव्य सम्मान; ‘हर हर महादेव’ के नारे गूंजे

ऑपरेशन सिंदूर और ऑपरेशन महादेव की सफलता के बाद मंगलवार, 5 अगस्त को पहली बार एनडीए (NDA) संसदीय दल की बैठक आयोजित हुई। बैठक की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जोरदार स्वागत से हुई। सांसदों ने ‘हर हर महादेव’ के गगनभेदी नारों और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच प्रधानमंत्री का अभिनंदन किया।

प्रधानमंत्री मोदी ने बैठक की अध्यक्षता की और कुछ ही देर में उन्होंने सांसदों को संबोधित भी किया। बैठक के दौरान एनडीए सांसदों ने ऑपरेशन सिंदूर और ऑपरेशन महादेव की सफलता पर सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया। इसके साथ ही ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विशेष रूप से बधाई दी गई।

बैठक में पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी गई और उनके परिजनों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की गई। इसके अलावा, हाल ही में निर्वाचित नए सांसदों का प्रधानमंत्री से औपचारिक परिचय भी कराया गया।

ऋण धोखाधड़ी केस में अनिल अंबानी से आज ED करेगी पूछताछ

मशहूर उद्योगपति अनिल अंबानी से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) मंगलवार को पूछताछ करेगा। यह कार्रवाई 17,000 करोड़ की कथित ऋण धोखाधड़ी और धनशोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) से जुड़े मामले की जांच के तहत की जा रही है। 66 वर्षीय अनिल अंबानी आज दिल्ली स्थित ईडी मुख्यालय में पेश होंगे, जहां एजेंसी धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत उनका बयान दर्ज करेगी। कारोबारी दिल्ली के लिए रवाना हो गए हैं।

ईडी ने अनिल अंबानी के खिलाफ पहले ही लुकआउट सर्कुलर (LOC) जारी किया हुआ है, जिसके चलते वह बिना जांच अधिकारी की अनुमति के देश छोड़कर नहीं जा सकते। सूत्रों के अनुसार, 1 अगस्त को ईडी ने उन्हें समन भेजा था, जिसके बाद आज उनकी पेशी तय हुई है। ईडी की कार्रवाई यहीं तक सीमित नहीं रही। 24 जुलाई से शुरू हुई छापेमारी तीन दिन तक चली, जिसमें मुंबई में 35 से अधिक ठिकानों पर तलाशी ली गई। ये ठिकाने अनिल अंबानी समूह से जुड़ी 50 कंपनियों और 25 अधिकारियों से संबंधित थे। जांच एजेंसी को संदेह है कि 2017 से 2019 के बीच यस बैंक से अंबानी की कंपनियों को मिले लगभग 3,000 करोड़ के ऋण का दुरुपयोग किया गया।

ईडी की जांच वित्तीय अनियमितताओं, संदिग्ध निवेश और ऋण के ग़लत इस्तेमाल से संबंधित है। आरोप है कि कई कंपनियों के जरिए लिए गए 17,000 करोड़ के समूह ऋण का उपयोग अनुचित या अनधिकृत गतिविधियों में किया गया।

ईडी विभिन्न कंपनियों और अधिकारियों की भूमिका की जांच कर रही है, ताकि यह पता चल सके कि इस बड़े घोटाले में कौन-कौन शामिल हैं और कैसे पैसे की हेराफेरी की गई। यह मामला न सिर्फ कॉर्पोरेट जगत, बल्कि वित्तीय संस्थानों और कानून व्यवस्था से भी जुड़ा हुआ है, इसलिए यह खबर राष्ट्रीय स्तर पर बेहद गंभीर और महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

आपको कैसे पता चीन ने ज़मीन कब्ज़ा रखी…सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को लगाई फटकार

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भारतीय सेना को लेकर की गई कथित टिप्पणी पर दर्ज मानहानि केस के खिलाफ दाखिल याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। सुनवाई के दौरान अदालत ने राहुल गांधी को फटकार लगाते हुए कहा, आपको कैसे पता चला कि चीन ने 2000 किलोमीटर तक भारत की जमीन हड़प ली है? अगर आप सच्चे भारतीय होते तो ऐसा नहीं कहते।

कोर्ट ने यह भी पूछा, “आप विपक्ष के नेता हैं, तो इस तरह की बातें सोशल मीडिया पर क्यों कह रहे हैं? आप ये सवाल संसद में क्यों नहीं पूछते?” राहुल गांधी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि “उन्होंने चुनाव संसद में बोलने की छूट पाने के लिए नहीं लड़ा, बल्कि उन्हें संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत स्वतंत्र रूप से बोलने का अधिकार है।” सिंघवी ने कहा कि इस मामले में संज्ञान लिए जाने से पहले राहुल गांधी को प्राकृतिक न्याय (नैचुरिक जस्टिस) नहीं मिला।

कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि राहुल गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में यह तर्क नहीं उठाया और अब सुप्रीम कोर्ट में भी विशेष अनुमति याचिका (SLP) में यह बिंदु शामिल नहीं किया गया है। हालांकि, सुनवाई के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को अंतरिम राहत देते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया और निचली अदालत में चल रही कार्यवाही पर फिलहाल रोक लगा दी है। यह मामला उस टिप्पणी से जुड़ा है जो राहुल गांधी ने 9 दिसंबर 2022 को भारत-चीन सीमा पर हुई झड़प के बाद सेना और जमीन कब्जे को लेकर की थी। इसी टिप्पणी को लेकर उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश में मानहानि का मामला दर्ज हुआ है।

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, राज्यसभा सांसद और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक संरक्षक ‘गुरुजी’ शिबू सोरेन का सोमवार को निधन हो गया। उन्होंने 81 वर्ष की आयु में दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से पूरे झारखंड समेत देश के राजनीतिक गलियारों में शोक की लहर दौड़ गई है।

जानकारी के अनुसार, गुरुजी बीते कुछ दिनों से अस्पताल में भर्ती थे और उनकी स्थिति लगातार चिंताजनक बनी हुई थी। हाल ही में उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ था, जिसके कारण उनके शरीर का बायां हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था। न्यूरोलॉजी, कार्डियोलॉजी और नेफ्रोलॉजी के विशेषज्ञ डॉक्टरों की एक टीम लगातार उनके स्वास्थ्य की निगरानी कर रही थी।

शिबू सोरेन लंबे समय से स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं से जूझ रहे थे। वह किडनी की गंभीर बीमारी से पीड़ित थे और पिछले एक साल से डायलिसिस पर थे। इसके अलावा, वह मधुमेह से भी पीड़ित थे और पूर्व में उनकी हार्ट बाईपास सर्जरी भी हो चुकी थी।

‘दिशोम गुरु’ के नाम से लोकप्रिय शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को वर्तमान रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ था। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा। जब वह महज 13 साल के थे, तब सूदखोर महाजनों ने उनके पिता की हत्या कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़कर सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष का रास्ता चुना।

शिबू सोरेन ने झारखंड को अलग राज्य बनाने के आंदोलन का नेतृत्व किया। वह तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। इसके अलावा, वह केंद्र में मनमोहन सिंह की यूपीए-1 सरकार में कोयला मंत्री भी रह चुके थे, हालांकि चिरूडीह हत्याकांड में नाम आने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। उनके निधन को भारतीय राजनीति, विशेषकर झारखंड के लिए एक अपूरणीय क्षति माना जा रहा है।

चुनाव आयोग ने तेजस्वी यादव को दो वोटर कार्ड रखने के मामले में नोटिस जारी किया

चुनाव आयोग ने बिहार के नेता विपक्ष तेजस्वी यादव को नोटिस जारी किया है। चुनाव आयोग ने तेजस्वी यादव को पत्र लिखकर उनके द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखाए गए वोटर ID कार्ड की मांग की है, ताकि उसकी जांच हो सके।

आयोग ने यह भी कहा कि जो EPIC नंबर तेजस्वी यादव ने दिखाया वह वैलिड नहीं है। तेजस्वी यादव के आरोपों पर ERO ने जवाब मांगा है। ERO ने कहा, “प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखाया गया ID कार्ड आधिकारिक रूप से निर्गत प्रतीत नहीं होता है। ऐसे में इसकी जांच की जरूरत है। आयोग ने EPIC कार्ड का विवरण और ओरिजिनल कॉपी की मांग की है। ताकि यह जांच हो सके कि तेजस्वी के दो EPIC नंबर कैसे है?

बता दें कि बिहार में SIR के बाद जारी ड्राफ्ट रोल पर सवाल उठाते हुए तेजस्वी यादव ने कहा था कि मेरा नाम काट दिया गया है। बाद में जब प्रशासन ने तेजस्वी के दावे का खंडन किया था। तब तेजस्वी ने कहा था कि मेरा EPIC नंबर बदल दिया गया है। अब चुनाव आयोग तेजस्वी द्वारा दिखाए गए ईपिक नंबर और वोटर कार्ड की जांच करेगा। एनडीए प्रवक्ताओं ने दो एपिक नंबर पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह आया कहां से? कोई भी व्यक्ति दो मतदाता पहचान पत्र नहीं रख सकता है। अगर रखता है तो यह अपराध है। एनडीए के प्रवक्ताओं ने साफ कहा कि चुनाव आयोग को इस पर संज्ञान लेना चाहिए और तत्काल इस मामले को लेकर तेजस्वी यादव पर मुकदमा दायर करना चाहिए।     

फ़र्ज़ी पते पर वाहन पंजीकरण का खेल!

– दिल्ली-एनसीआर में फल-फूल रहा है वाहनों का फ़र्ज़ी पंजीकरण कराने का धंधा

इंट्रो-वाहनों की कालाबाज़ारी, चोरी के वाहनों की बिक्री और नक़ली नंबर प्लेट के वाहनों के सड़कों पर दौड़ने की ख़बरें किसी से छिपी नहीं हैं। लेकिन अब ‘तहलका’ ने दिल्ली-एनसीआर में वाहनों के फ़र्ज़ी पंजीकरण के काले बाज़ार का पर्दाफ़ाश किया है। इस पड़ताल से पता चला है कि पुरानी कारों के डीलर और दलाल फ़र्ज़ी पतों पर वाहनों का पंजीकरण करा देते हैं। असल में ये लोग व्यवस्था की ख़ामियों का फ़ायदा उठाते हैं। डीलर और दलाल यह काम एक निश्चित क़ीमत लेकर फ़र्ज़ी किरायानामा और आधार के विवरण का उपयोग करके करवाते हैं। ‘तहलका’ ने दिल्ली-एनसीआर में इस फलते-फूलते फ़र्ज़ी वाहन पंजीकरण रैकेट और वाहन पंजीकरण नियमों के गहरे सुरक्षा निहितार्थों के उल्लंघन का ख़ुलासा किया है। पढ़िए, तहलका एसआईटी की यह ख़ास पड़ताल :-

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने दिल्ली में घोषणा की कि अनुमेय आयु सीमा से अधिक आयु वाले सभी प्रदूषणकारी वाहन- डीजल के लिए 10 वर्ष और पेट्रोल के लिए 15 वर्ष, जिन्हें ऐंड-ऑफ-लाइफ वाहन (ईएलवी) भी कहा जाता है; को 01 जुलाई, 2025 से दिल्ली के ईंधन स्टेशनों पर ईंधन भरने से रोक दिया जाएगा। यह क़दम 01 जुलाई को राष्ट्रीय राजधानी में लागू किया गया, जिससे दिल्ली की सड़कों पर चलने वाले 62 लाख वाहन प्रभावित हुए। लेकिन इसके लागू होने के कुछ ही दिनों के भीतर, सीएक्यूएम ने जनता की कड़ी प्रतिक्रिया और दिल्ली सरकार के विरोध के बाद ईएलवी ईंधन पर प्रतिबंध के क्रियान्वयन को स्थगित कर दिया। अब नयी कार्यान्वयन तिथि 01 नवंबर, 2025 है, तथा इसका दायरा एनसीआर के प्रमुख ज़िलों तक विस्तारित किया गया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना एक महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता है। लेकिन इतना ही महत्वपूर्ण एक अन्य मुद्दा भी है, जिसे अधिकारियों द्वारा काफ़ी हद तक नज़रअंदाज़ किया जाता है; वह है- दिल्ली-एनसीआर में फ़र्ज़ी पतों पर वाहनों का फ़र्ज़ी पंजीकरण; जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी एक ख़तरा है। दस्तावेज़ों में धोखाधड़ी की दुनिया में हमारा ध्यान अक्सर यात्रा दस्तावेज़ों- पहचान पत्रों, ड्राइविंग लाइसेंस और नक़ली बैंक नोटों की ओर जाता है। हालाँकि एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र जिस पर शायद ही कभी ध्यान दिया जाता है; वह है- धोखाधड़ी वाले तरीक़े से वाहनों का पंजीकरण। ये दस्तावेज़ संगठित अपराध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और पीड़ितों पर गहरा प्रभाव डालते हैं।

धोखाधड़ी से वाहन पंजीकरण कराना अपराध-संगठित गिरोहों के लिए एक बहुमूल्य संसाधन है। ऐसे वाहन कई प्रकार की अवैध गतिविधियों को संभव बनाते हैं- तस्करी और अवैध व्यापार से लेकर क़ानून प्रवर्तन से बचने और चोरी की कारों की बिक्री को सुगम बनाने तक। जाली पंजीकरण दस्तावेज़ों, फ़र्ज़ी प्लेटों और छेड़छाड़ किये गये वीआईएन (वाहन पहचान संख्या) चिह्नों का उपयोग करके, अपराधी वाहनों की वास्तविक पहचान छिपा सकते हैं। इससे अधिकारियों के लिए अपराधियों का पता लगाना और उन्हें पकड़ना कठिन हो जाता है, जिससे जाँच लंबी हो जाती है और वसूली के प्रयास जटिल हो जाते हैं। इस बढ़ते ख़तरे को उजागर करने के लिए ‘तहलका’ ने दिल्ली-एनसीआर में फ़र्ज़ी पतों पर फ़र्ज़ी वाहन पंजीकरण से जुड़े रैकेट और पुरानी कारों के डीलरों और उनके ग्राहकों के बीच गठजोड़ की पड़ताल करने का फ़ैसला किया। हमारी पड़ताल से पता चला है कि इस क्षेत्र के डीलर ख़रीदारों को यह आश्वासन देकर वाहन बेच रहे हैं कि दिल्ली सहित किसी भी दिल्ली-एनसीआर शहर में पंजीकरण की व्यवस्था की जा सकती है, भले ही ग्राहक के पास उस स्थान के लिए वैध पहचान या पते का प्रमाण हो या नहीं।

‘चूँकि मुझसे कार ख़रीदने वाला व्यक्ति आपका परिचित है, इसलिए मैं अपना आधार और दिल्ली का पता प्रमाण-पत्र दे दूँगा, जिस पर उसकी कार ट्रांसफर की जा सकेगी। अगर कोई और होता, तो मैं यह जोखिम कभी नहीं उठाता। कौन जानता है? हो सकता है कि वह कोई अपराधी हो! उस कार में कोई अपराध कर दे और मैं जेल में पहुँच जाऊँ।’ -दिल्ली के पुरानी कारों के डीलर संजय सिंह बालियान ने ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर से कहा।

‘आपको पते के प्रमाण के बारे में चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं है। दलाल दिल्ली से एक फ़र्ज़ी किराया समझौता तैयार कर लेगा और आपकी गाड़ी दिल्ली के पते पर ट्रांसफर कर दी जाएगी।’ -बालियान ने आगे कहा।

‘हाल ही में मैंने मेरठ के पते के प्रमाण का उपयोग करके मेरठ के एक व्यक्ति को गुड़गाँव (गुरुग्राम) नंबर वाली एक कार बेची। मैंने ब्रोकर को 10,000 रुपये दिये। उसने फ़र्ज़ी किरायेनामे के आधार पर कार को गुड़गाँव के पते पर स्थानांतरित करवा लिया, जिसमें दिखाया गया कि वह व्यक्ति गुड़गाँव में किराये पर रह रहा है। असल में वह वहाँ कभी रहा ही नहीं। इसके लिए मैंने दलाल को 10,000 रुपये दिये।’ -उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद के एक अन्य पुरानी कार विक्रेता मोहम्मद नबी ने हमारे अंडरकवर रिपोर्टर से कहा।

‘असली कार ट्रांसफर के लिए एजेंट 3,000 से 4,000 रुपये तक लेते हैं; लेकिन नकली ट्रांसफर के लिए वे लगभग 10,000 रुपये लेते हैं। ऐसे मामलों में यदि वाहन का उपयोग करके कोई अपराध किया जाता है, तो पुलिस पंजीकृत पते पर जाएगी। उस पते पर उन्हें कोई और व्यक्ति मिलेगा, जो इस बात की पुष्टि करेगा कि सम्बन्धित व्यक्ति वास्तव में वहाँ किराये पर रह रहा था।’ -नबी ने कहा।

‘मैं दिल्ली में रहता हूँ; लेकिन हरियाणा नंबर की कार चलाता हूँ। मेरे पास हरियाणा का कोई एड्रेस प्रूफ (पता प्रमाण) भी नहीं है। क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (आरटीओ) ऐसा कर रहे हैं। वे पते का सत्यापन भी नहीं कर रहे हैं।’ -दिल्ली के एक अन्य पुरानी कार विक्रेता आशीष वालिया ने संवाददाता को आश्वस्त करते हुए कहा।

इस पड़ताल में ‘तहलका’ रिपोर्टर ने सबसे पहले मोहम्मद नबी से बात की। नबी उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद में पुरानी कारों का कारोबार करता है। रिपोर्टर ने उसके सामने एक फ़र्ज़ी सौदा पेश किया और कहा कि गुड़गाँव निवासी हमारा दोस्त दिल्ली की नंबर प्लेट वाली एक पुरानी क्रिस्टा इनोवा कार ख़रीदना चाहता है। हम अपने मित्र के नाम पर वाहन हस्तांतरित करने की प्रक्रिया जानना चाहते थे। नबी ने विस्तार से बताया कि एक दलाल हमारे (रिपोर्टर) के दोस्त, जो कि काल्पनिक है; को दिल्ली में किसी पते पर फ़र्ज़ी रूप से किरायेदार के रूप दिखाएगा। नबी ने आगे कहा कि आपका दोस्त भले ही उस पते पर नहीं रहता है; लेकिन यदि कोई आता है, तो उसे वहाँ कोई-न-कोई मिल जाएगा। वे इसी के लिए पैसे लेते हैं।

निम्नलिखित बातचीत में मोहम्मद नबी बताता है कि कैसे एजेंट देखभाल व्यवस्था का उपयोग करके नक़ली पतों को वैध बनाते हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि दलाल अपना पता देते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि जाँचकर्ता को गुमराह करने के लिए कोई व्यक्ति मौज़ूद रहे और यह सब एक क़ीमत पर होता है।

रिपोर्टर : फ़र्ज़ी ये भी तो होता है? आदमी उस एड्रेस पर न हो फ़र्ज़ी रसीद कटवा ली?

नबी : वो फ़र्ज़ी नहीं है काम, वो भी जेनुइन काम है। …ऐसा है, वो केयर ऑफ (ष्/श) में ट्रांसफर होती है।

रिपोर्टर : जब आदमी रहता नहीं है उस एड्रेस पर तो कैसे हो जाएगा?

नबी : वो एजेंट एड्रेस लगाता है। उस एड्रेस पर आप जाओगे, तो बंदा आपको मिलेगा।

रिपोर्टर : कौन-सा बंदा मिलेगा?

नबी : वो जिसका एड्रेस लगा होगा।

रिपोर्टर : वो बंदा तो मिलेगा; …मगर जिसके नाम गाड़ी है, वो थोड़ी मिलेगा?

नबी : न! वो नहीं मिलेगा।

रिपोर्टर : तो वो फ़र्ज़ी ही तो हुआ।

नबी : केयर ऑफ का मतलब ही यही है। जैसे आपका रिलेटिव रहता है वहाँ। …उसमें जो एजेंट होता है, वो अपना एड्रेस कराता है।

रिपोर्टर : मगर बंदा रहता थोड़ी है?

नबी : उसमें क्या करते हैं, …एजेंट अपना लगाता है; …पैसे लेते हैं।

रिपोर्टर : हाँ; तो केयर ऑफ के पैसे लेता है ना वो कराने के?

नबी : हाँ।

अब नबी ने इस तरह का फ़र्ज़ीवाड़ा करने वालों का बचाव करते हुए दावा किया कि एजेंट केवल उन लोगों के लिए स्थानांतरण की प्रक्रिया करते हैं, जिन्हें वे जानते हैं। उसने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि वे (दलाल) केवल अपने परिचित लोगों के स्थानांतरण मामले ही निपटाते हैं। हालाँकि नबी यह स्पष्ट करने में असफल रहा कि ये लोग एक वास्तविक ख़रीदार और संभावित अपराधी के बीच अंतर कैसे करते हैं? नबी के अनुसार, वे (दलाल) अपराधियों के स्थानांतरण मामले लेने से बचते हैं। अगर बाद में कुछ ग़लत हो गया, तो ब्रोकर मुश्किल में पड़ जाएगा। नबी ने स्वीकार किया कि यदि दिल्ली के फ़र्ज़ी किराये के पते पर हस्तांतरित कार का उपयोग करके कोई अपराध किया जाता है, तो पुलिस उस पते पर जाएगी; लेकिन वास्तविक मालिक को नहीं ढूँढ पाएगी। इसके बजाय वे किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढ लेंगे, जिसने पैसे के लिए उनका पता दिया है और वह व्यक्ति मुसीबत में पड़ जाएगा।

रिपोर्टर : मैं वही तो कह रहा हूँ, फ़र्ज़ी तो हो गया?

नबी : फ़र्ज़ी थोड़ी है एड्रेस। लग रहा है चाहे किसी का भी लग रहा है। बिना एड्रेस के थोड़ी ट्रांसफर हो जाएगी।

रिपोर्टर : नहीं, समझ नहीं रहे हो तुम। मान लो कोई क्रिमिनल निकला, जिसके नाम गाड़ी ट्रांसफर हुई हो, उसने कोई वारदात कर दी?

नबी : तो उसे ट्रांसफर के लिए ऐसे कोई देगा भी नहीं। स$ख्ती बहुत ज़्यादा है। …ऐसे बंदे को गाड़ी दी भी नहीं जाएगी।

रिपोर्टर : किसी के चेहरे पर थोड़ी लिखा है कि वो अपराधी है? मान लो आपसे किसी ने गाड़ी ख़रीदी…।

नबी : देखिए, जो ट्रांसफर करवाते हैं ना! वो भी जो है, केयर ऑफ में हर बंदे के लिए ट्रांसफर नहीं कराते हैं। वो भी बंदे को पहचानकर ही कराते हैं। मान लो हम जाने वाले हैं, तो वो बता देता है। हम कह देते हैं कि अपना बंदा है। …जो अपना बंदा होगा, वो करा देगा। वो कह देता है- ज़िम्मेदारी आपकी होगी।

रिपोर्टर : मैं वही तो पूछ रहा हूँ, …किसी क्रिमिनल (अपराधी) की आपने करवा दी, तो उसमें तो फँस जाएगा ना आदमी?

नबी : उसमें हर बंदा एड्रेस ऐसे नहीं लगाता है; …मैं आपको बता रहा हूँ। अब मान लो हम आपके अपने बंदे हैं, ठीक है; …आपने कहा कि नबी भाई मेरा एड्रेस नहीं है दिल्ली का और आपकी दिल्ली की आईडी है, तो आप ट्रांसफर करवा दो। अब मान लोग इस गाड़ी से कोई क्राइम भी होता है, अब मान लो एक्सीडेंट भी हो गया ख़ुदा-न-ख़्वास्ता। या कोई वारदात हो गयी, तो उसमें एड्रेस पर ही तो पुलिस जाती है। …तो एड्रेस पर पुलिस जाएगी और जिसके नाम है, ऑनर के, उसको पकड़ेगी।

रिपोर्टर : मान लो इस एड्रेस पर आदमी रहता ही नहीं है?

नबी : वो तो नहीं रहता; मगर जो रहता है, …उसको तो पकड़ेगी ना पुलिस।

रिपोर्टर : वो तो बेचारा फँस गया ना, जिसके एड्रेस पर लगाया है।

नबी : हाँ; बिलकुल फँस जाएगा।

नबी ने आगे बताया कि फ़र्ज़ी स्थानांतरण की प्रणाली कितनी सामान्य हो गयी है। उसने कहा कि वह कार ट्रांसफर के लिए पैसा लेता है और फ़र्ज़ी किरायेनामे के लिए अपना पता देने वाले लोग भी इसके लिए शुल्क लेते हैं। यदि पुलिस उस फ़र्ज़ी पते पर जाती है, तो घर में रहने वाला व्यक्ति दावा करेगा कि कार का मालिक वहाँ किराये पर रह रहा था और अब वहाँ से चला गया है। जैसा कि नबी स्पष्ट रूप से कहता है कि प्राथमिकता वैधता नहीं, बल्कि वाहन का स्थानांतरण है; चाहे कुछ भी हो जाए।

रिपोर्टर : इस आदमी के साथ तो ग़लत हो गया ना?

नबी : हाँ; देखो ऐसा है. हम तो लगा ही नहीं रहे। …मान लो हम पैसा दे रहे हैं, तो उसी चीज़ का दे रहे हैं। …एजेंट जिसका एड्रेस लेगा रहा है, वो भी पैसा ले रहा है। जो बंदा अपना एड्रेस लगता है ना! एजेंट से वो पैसे भी लेता है। केयर ऑफ के पैसे देता है, वर्ना ऐसे कोई लगाएगा थोड़ी! अब मैं तो आपका अपना बंदा हूँ, आपसे मैंने कोई पैसा नहीं लिया। …अपना एड्रेस लगा दिया, वो तो हो गयी भाईचारे वाली बात। अब एजेंट तो दिन में सैकड़ों गाड़ियाँ ट्रांसफर करवाते हैं, वो तो पीने-खाने वाले जो होते हैं ना! नशेड़ी, वो अपना एड्रेस लगा देते हैं, उनको तो बस पैसे चाहिए, उनको कोई दिक़्क़त ही नहीं; …पैसे से मतलब है।

रिपोर्टर : चालान तो ऑनलाइन आ जाते हैं उसकी कोई दिक़्क़त नहीं है। मान लो कोई वारदात हो जाए, तो पुलिस नंबर से एड्रेस निकालेगी ना! …पर उस एड्रेस पर वो आदमी मिलेगा नहीं।

नबी : नहीं।

रिपोर्टर : ये तो गड़बड़ हो गयी ना?

नबी : जो एड्रेस लगाएगा, वो अपने बल-बूते पर लगाता है। …कि जो भी होगा, मैं देख लूँगा। हमको क्या मतलब इस बात से, हमको तो ट्रांसफर से मतलब है। हमारी गाड़ी ट्रांसफर होनी चाहिए, बस।

रिपोर्टर : पुलिस जाएगी, तो बोल देगा। मेरे यहाँ किराये पर रहता है?

नबी : हाँ; वो तो रेंट एग्रीमेंट भी लगता है ना बाक़ायदा। वो रेंट एग्रीमेंट भी लगाता है।

रिपोर्टर : अच्छा; आधार भी तो लगता है ट्रांसफर में?

नबी : आधार कार्ड उसका लगता है, जिसकी गाड़ी होती है।

रिपोर्टर : हाँ; तो उसमें भी तो एड्रेस होता है।

नबी : हाँ; तो वो अपडेट कराते हैं, वो रेंट एग्रीमेंट बनवाते हैं; …ये बंदा इस एड्रेस पर रहता था और रहता है। वो एक एलआईसी टाइप का बनाते हैं, रेंट एग्रीमेंट बनाते हैं; …तब ट्रांसफर होती है।

रिपोर्टर : वो पैसे लेते होंगे रेंट एग्रीमेंट बनाने के?

नबी : हाँ; बिलकुल लेते हैं।

अब नबी ने सामान्य स्थानांतरण और केयर ऑफ स्थानांतरण के बीच लागत के बारे में बताया। उसके अनुसार, फ़र्ज़ी पते का उपयोग करने पर सामान्य स्थानांतरण की तुलना में अधिक शुल्क लगता है। उसने बताया कि एक फ़र्ज़ी स्थानांतरण की लागत 10,000 से 12,000 रुपये के बीच होती है, जबकि सही तरीक़े से सामान्य स्थानांतरण में मात्र 3,500 से 4,000 रुपये के बीच ख़र्चा आता है। उसने बताया कि फ़र्ज़ी स्थानांतरण अधिक महँगे क्यों होते हैं? इसके लिए उसने एजेंट की फीस और फ़र्ज़ी किरायेनामे और उपयोगिता बिल जैसे दस्तावेज़ों को तैयार करने में लगने वाले ख़र्च का हवाला दिया।

रिपोर्टर : पैसा ज़्यादा लगेगा इस काम में?

नबी : कम-से-कम 10-12 हज़ार लगेगा।

रिपोर्टर : इतना ज़्यादा? और नॉर्मल ट्रांसफर में कितना लगेगा?

नबी : रुपये 3,500-4,000 के (हज़ार) केयर ऑफ में ज़्यादा लगता है। एजेंट खाएँगे पैसे, रेंट एग्रीमेंट बनता है। आधार कार्ड, बिजली का बिल दूसरे का लगेगा। …ये सारा काम होगा।

अब नबी ने बताया कि कैसे एक फ़र्ज़ी किरायेनामे के ज़रिये उसने मेरठ के एक ख़रीदार द्वारा गुड़गाँव से ख़रीदी गयी कार स्थानांतरित करवायी। नबी ने कहा कि उसने एक दलाल को 10,000 रुपये का भुगतान किया था, जिसने गुड़गाँव का फ़र्ज़ी किरायेनामे के आधार पर स्थानांतरण की व्यवस्था की थी, जहाँ कार का ख़रीदार रहता ही नहीं था। उसने कहा कि वास्तव में वह व्यक्ति गुड़गाँव में कभी रहा ही नहीं।

नबी : एक बंदे की आईडी थी मेरठ की, मैंने अल्टो 800 बेची थी। …अभी उस पर मेरठ की गाड़ी है और एड्रेस था हरियाणा का, …गुड़गाँव का। एचआर 26 थी कार। इस कार को मैंने अभी ट्रांसफर कराया है। …दो-तीन महीने हो गये एजेंट ने गुड़गाँव का एड्रेस दिखाया, वही कराता है सारे काम। हमको तो पैसे देने हैं। …बस, काम होना चाहिए। मैंने गाड़ी बेची है, तो मेरे थ्रू (ज़रिये) ही तो होगा।

रिपोर्टर : कितने पैसे लिये?

नबी : उसने 10 के (हज़ार) लिये थे।

अब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने दूसरे कार डीलर संजय सिंह बलियान से संपर्क किया। संजय पुरानी कारों का कारोबार करता है और इच्छुक ख़रीदारों की गाड़ियाँ ग़लत पते पर स्थानांतरित करवा देता है। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने उसके सामने भी फ़र्ज़ी तरीक़े से कार स्थानांतरित कराने का एक काल्पनिक सौदा पेश किया और कहा कि हमारा मित्र दिल्ली-एनसीआर में एक पुरानी क्रिस्टा इनोवा ख़रीदना चाहता है; लेकिन वह गुड़गाँव (हरियाणा) का है और उसके पास दिल्ली का कोई पता प्रमाण नहीं है। हम जानना चाहते थे कि उनके नाम पर स्थानांतरण की व्यवस्था कैसे की जाएगी। जवाब में संजय ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि चिन्ता की कोई बात नहीं है; कार को दिल्ली के फ़र्ज़ी पते पर किरायानामा बनवाकर उसका उपयोग करके वह हमारे (रिपोर्टर के काल्पनिक) दोस्त के नाम पर कार स्थानांतरित करवा देगा।

रिपोर्टर : ख़रीदार गुड़गाँव के हैं।

संजय : नाम करा देंगे।

रिपोर्टर : कैसे नाम करवाओगे? वो दिल्ली में नहीं है, आईडी नहीं है।

संजय : केयर ऑफ में हो जाएगी सर जी!

इस बातचीत में संजय ने बताया कि किस तरह से स्थानांतरण के लिए किराया समझौतों और आधार विवरण में हेरफेर किया जाता है। उसने विस्तार से बताया कि वाहन को स्थानांतरित करने के लिए जिस दलाल का सहयोग लिया जाएगा, वह दिल्ली के पते पर एक फ़र्ज़ी किरायानामा तैयार करेगा, जिसमें दिखाया जाएगा कि कार मालिक गुड़गाँव आने से पहले वहाँ रहता था। संजय ने यह बात यह जानते हुए कही कि कार को दिल्ली के किसी पते से पंजीकृत कराने वाला व्यक्ति, जो कि इस पड़ताल में काल्पनिक है; कभी दिल्ली में रहा ही नहीं। लेकिन फिर भी संजय ने आश्वासन दिया कि कार को एक फ़र्ज़ी पते का उपयोग करके स्थानांतरित करवा दिया जाएगा।

संजय : रेंट एग्रीमेंट करवा देंगे यहाँ का, आजकल तो आधार भी चेंज हो जाता है। यहाँ से किसी का रेंट एग्रीमेंट बनवाएँगे कि रेंट पर रह रहे हैं ये यहाँ। आधार नंबर तो वही रहेगा।

रिपोर्टर : किसी और का रेंट एग्रीमेंट लगाओगे?

संजय : हाँ जी! किसी के मकान का होगा। दलाल ही बनवाते हैं। …हो जाता है, केयर ऑफ में।

रिपोर्टर : उनका दिल्ली में कोई रिश्तेदार नहीं है ना! …वो रेंट पर रहे हैं, कुछ एड्रेस नहीं है उनका?

संजय : हाँ; तो वो हो जाता है जी! …बनवा देते हैं।

‘तहलका’ रिपोर्टर ने संजय से कहा कि यह ग़लत होगा। हमारा दोस्त तो कभी दिल्ली में रहा ही नहीं। रिपोर्टर ने  आशंका व्यक्त की, कि कार स्थानांतरित कराने के लिए एक फ़र्ज़ी किरायेनामे से यह पता चल जाएगा कि वह वहाँ कार मालिक नहीं रहता है। लेकिन फिर भी संजय ने ग़लत पते की चिन्ताओं को दरकिनार करते हुए दावा किया कि बिहार तक का कोई भी व्यक्ति केयर ऑफ रूट के ज़रिये कार स्थानांतरित करवा सकता है। उसने बताया कि दलाल हर चीज़ का प्रबंधन करते हैं- किरायानामा और आधार विवरण आदि तक का। संजय ने बताया कि दलाल अक्सर अपने या किसी रिश्तेदार के प्रमाण-पत्रों का उपयोग करते हैं।

रिपोर्टर : वो तो ग़लत हो जाएगा ना?

संजय : आरसी तो बाई पोस्ट ही जाएगी।

रिपोर्टर : हाँ; मगर वो रहे तो हैं नहीं उस एड्रेस पर। …ग़लत न हो जाएगा?

संजय : आजकल तो सब कुछ आधार नंबर है। अगर कोई बिहार का भी हो, उसके नाम भी केयर ऑफ में हो जाएगी।

रिपोर्टर : आधार किसका लगेगा?

संजय : आधार दलाल लगवाते हैं अपना। …रेंट एग्रीमेंट बनवाते हैं। रेंट एग्रीमेंट बनवा देंगे। आधार दलाल किसी का बी लगाएगा अपने रिश्तेदार का हो चाहे।

रिपोर्टर : क्यूँकि इनका आधार गुड़गाँव का है?

संजय ने यह भी स्वीकार किया कि उसने फ़र्ज़ी किरायेनामे का उपयोग करके हिमाचल प्रदेश में पंजीकृत एक कार ख़ुद भी ख़रीदी थी और दो साल तक दिल्ली में अपने पास रखकर, चलाकर बेच दिया। उसने खुले तौर पर स्वीकार किया कि कैसे केयर ऑफ व्यवस्था इस तरह के हस्तांतरण को आसान बनाती है।

संजय : कोई दिक़्क़त नहीं। अभी मैंने हिमाचल में गाड़ी करवायी केयर ऑफ में। मैंने दो साल रखी, …एचपी 16।

रिपोर्टर : आपने दो साल गाड़ी रखी हिमाचल की?

संजय : हाँ; अभी बेची है, पिछले महीने।

रिपोर्टर : मतलब हिमाचल की गाड़ी दिल्ली में चला रहे थे आप?

संजय : हाँ जी! दो साल तक रखी। मैंने ख़रीदी थी। …सही रेट में मिल गयी थी।

रिपोर्टर : तो आपने अपने नाम ट्रांसफर करायी?

संजय : हाँ; मैंने अपने नाम से ट्रांसफर करवायी।

इसके बाद संजय ने ‘तहलका’ रिपोर्टर का परिचय संदीप गिरधर से करवाया, जो इस काल्पनिक सौदे में वाहन को दिल्ली के पते पर स्तानांतरित कराने का काम करने को तैयार है। गिरधर से बात करने के बाद संजय ने कहा कि वह स्थानांतरण के लिए अपना पता और आधार नंबर देने को तैयार है। उसने बताया कि वह ऐसा केवल इसलिए कर रहा है, क्योंकि वह हमें (रिपोर्टर को) जानता है अन्यथा वह किसी अजनबी के लिए ऐसा जोखिम कभी नहीं उठाता। संजय ने स्वीकार किया कि यदि उस कार से कोई अपराध किया जाता है, तो वह ख़ुद मुसीबत में फँस जाएगा; क्योंकि वाहन उसके पते पर पंजीकृत होगा। उसने यह भी दावा किया कि कोई और व्यक्ति इसी काम के लिए 50,000 रुपये लेता।

संजय : सर जी! नाम हो जाएगी। नाम की टेंशन मत लो आप।

रिपोर्टर : ये क्यूँ थे?

संजय : संदीप गिरधर, …पाकिस्तानी बनिये होते हैं ये। इनका गाड़ी ट्रांसफर का भी काम है। ठीक है; …पैसा अच्छा लगाते हैं ये। गाड़ी तो हो जाएगी ट्रांसफर। …एक बार गाड़ी के फोटो आ जाने दो।

रिपोर्टर : आप अपने नाम से लगवा दोगे?

संजय : लगवा दूँगा केयर ऑफ ही तो लगाना है। …आधार ही तो लगेगा, …मेरा भी लगेगा। मेरा अथॉरिटी में लगेगा। आपका आदमी है इसलिए मैं दे रहा हूँ, वर्ना कौन देता है? आप जानने वाले हो, इसलिए कर रहे हैं वर्ना नहीं। कोई गड़बड़ हुई, तो मैं तो जाऊँगा जेल। कोई और होता, तो कहता 50 हज़ार रुपये दो। …पता नहीं क्या क्राइम करेगा गाड़ी से। …कौन इस चक्कर में पड़ेगा। अब मेरी ऐसी उमर थोड़ी है कि लात खा लो।

इसके बाद ‘तहलका’ रिपोर्टर ने दिल्ली के पुरानी कारों के तीसरे डीलर आशीष वालिया तक से बात की। रिपोर्टर ने आशीष से कहा कि वह अपने लिए एक क्रिस्टा इनोवा ख़रीदना चाहते हैं। इस पर वालिया ने रिपोर्टर को गुड़गाँव पंजीकरण संख्या वाली एक पुरानी क्रिस्टा इनोवा कार की पेशकश की और आश्वासन दिया कि गुड़गाँव में किसी पते के प्रमाण के बिना भी कार को गुड़गाँव के पते पर स्थानांतरित किया जा सकता है। अपने दावे के समर्थन में उसने अपना उदाहरण दिया कि वह ख़ुद दिल्ली में रहता है, फिर भी उसकी कार हरियाणा में पंजीकृत है; जबकि वहाँ उनकी कोई संपत्ति नहीं है। वालिया के अनुसार, ऑनलाइन संचालित प्रक्रिया में जहाँ आरटीओ औपचारिकताएँ पूरी करते हैं; पते पर भौतिक उपस्थिति अप्रासंगिक है।

रिपोर्टर : ये ट्रांसफर आप ही करवाओगे गुड़गाँव का मेरा? …एड्रेस तो है नहीं?

वालिया : हाँ; बिलकुल।

रिपोर्टर : कोई ग़लत तो नहीं हो जाएगा? …गुड़गाँव की गाड़ी दिल्ली में ट्रांसफर…?

वालिया : मेरी ख़ुद की गाड़ी है। एचआर XXXXX नंबर डाल लो। मेरे नाम है, जबकि मेरी कोई प्रॉपर्टी नहीं है। ये तो अंबाला के पास नारायणगढ़ है, वहाँ की है।

रिपोर्टर : कोई दिक़्क़त तो नहीं होगी?

वालिया : कैसे? मान लो, मैं आज एक जगह रह रहा हूँ; …कल दूसरी जगह रह रहा हूँ; एड्रेस थोड़ी न रोज़-रोज़ चेंज होंगे!

रिपोर्टर : हम तो रहे ही नहीं वहाँ पर?

वालिया : वो अलग बात है, अब तो सब कुछ ऑनलाइन है। जब ऑनलाइन नहीं था, तब भी ये हो रहा था। क्यूँकि कर तो आरटीओ ही रहा है ना! पब्लिक (जनता) में से थोड़ी कोई कर रहा है?

इस फ़र्ज़ीवाड़े की हद यह है कि वालिया ने पते की जाँच को लेकर रिपोर्टर की चिन्ता को ख़ारिज करते हुए कहा कि सत्यापन व्यावहारिक रूप से अस्तित्वहीन होता है। वालिया के अनुसार, उसका ब्रोकर फ़र्ज़ी किरायानामा तैयार करके यह दिखा देगा कि हम (रिपोर्टर) गुड़गाँव में किराये पर रह रहे हैं; जबकि उसे पता था कि रिपोर्टर वहाँ कभी नहीं रहे और न ही रहते हैं। फिर भी उसने दावा किया कि वह फ़र्ज़ी पते का उपयोग करके कार स्थानांतरित करवा देगा। वालिया को पता था कि रिपोर्टर का आधार दिल्ली का है। फिर भी कार गुड़गाँव के फ़र्ज़ी पते पर पंजीकृत करवाने का रिपोर्टर को आश्वाससन देते हुए उसने कहा कि कोई भी पता सत्यापित करने नहीं आता।

रिपोर्टर : कोई वेरीफाई भी नहीं होगा?

वालिया : क्या होता है, एक्चुअली वहाँ पर वो केयर ऑफ में लगता है। ये बंदा फ़िलहाल यहाँ पर है। इसका परमानेंट एड्रेस ये है, जो आपका आधार कार्ड होगा…।

रिपोर्टर : जो आप एड्रेस दिखाओगे, वो वेरीफाई नहीं होगा?

वालिया : नहीं; कोई वेरीफाई नहीं होता। वैसे भी सब कुछ ऑनलाइन है, …टोटल ऑनलाइन।

वाहनों का फ़र्ज़ी पंजीकरण ज़्यादातर पुरानी कारों से जुड़ा है और दिल्ली इसका प्रमुख केंद्र है। दिल्ली-एनसीआर में वाहनों के पंजीकरण के लिए फ़र्ज़ी किरायेनामों का नियमित रूप से उपयोग किया जाता है, जबकि ऐसे स्थानांतरणों में आधार कार्ड को कभी-कभी ऐसे किराये के पते पर अपडेट कर दिया जाता है, जिस पर आधार धारक रहता ही नहीं है। वर्तमान में सरकार का ईएलवीस (एंड-ऑफ-लाइफ व्हीकल्स) पर ध्यान केंद्रित करना समझ में आता है; लेकिन उसे बड़े पैमाने पर वाहनों के फ़र्ज़ी पंजीकरण पर भी ध्यान देना चाहिए। यह एक ऐसी समस्या है, जो अब राष्ट्रीय सुरक्षा और क़ानून प्रवर्तन के लिए गंभीर ख़तरा बन गयी है।

नये रूप में तहलका,मगर तेवर वही

‘तहलका’ के नये लेआउट में अब ज्योतिष, पहेलियाँ, बॉलीवुड के पर्दे के पीछे की ख़बरें और आध्यात्मिक कॉलम जैसी सुविधाएँ शामिल हैं। लेकिन इसका सार निर्भीक खोजी पत्रकारिता पूरी तरह बरक़रार है। नवीनतम संस्करण में ‘तहलका’ की उन असहज सच्चाइयों को उजागर करने की प्रतिबद्धता की पुष्टि की गयी है, जिनसे अन्य लोग कतराते हैं।

इस अंक में विभा शर्मा की आवरण कथा- ‘मतदाता पुनरीक्षण और समय के विरुद्ध दौड़’ बिहार में चुनाव आयोग के द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) से जुड़े विवाद को उजागर करती है। इस प्रक्रिया को, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केवल पात्र मतदाता ही सूचीबद्ध हों; विपक्षी नेता जाँच के दायरे में लाना चाहते हैं। उनका तर्क है कि यदि बिहार में मतदाता सूची सुधारने की प्रक्रिया दोषपूर्ण है, तो 40 सांसद, जिन्होंने वर्तमान लोकसभा को आकार देने में मदद की है; को तत्काल अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। चुनाव आयोग ने अपने निर्णय का बचाव करते हुए कहा है कि संशोधन का उद्देश्य सटीक और त्रुटिरहित मतदाता सूची तैयार करना है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए महत्त्वपूर्ण है। इस प्रक्रिया में पात्र मतदाताओं को शामिल करना तथा मृत्यु प्रवासन या अवैध आव्रजन के कारण अयोग्य मतदाताओं को हटाना शामिल है। 01 अगस्त से 01 सितंबर तक 64 लाख चिह्नित मतदाताओं के भाग्य की समीक्षा की जाएगी, जिसके लिए चुनाव आयोग को प्रतिदिन दो लाख से अधिक लोगों तक पहुँचने की आवश्यकता होगी। हालाँकि आलोचकों ने इस प्रक्रिया के समय और गति को लेकर चिन्ता जतायी है, जो आगामी विधानसभा चुनावों के साथ मेल खाती है। वे नागरिकता और मतदाता पात्रता के प्रमाण के रूप में चुनाव आयोग द्वारा स्वीकार किये जाने वाले दस्तावेज़ों की प्रतिबंधात्मक सूची को भी चुनौती दे रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने अब तक संशोधन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है; लेकिन इसके क्रियान्वयन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवायी जारी रखी है। ऐसा प्रतीत होता है कि बिहार में विशेष रूप से साक्ष्य प्रस्तुत करने का भार नागरिकों पर आ गया है।

प्रणालीगत भ्रष्टाचार पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए ‘तहलका’ की विशेष जाँच टीम (एसआईटी) ने ‘फ़र्ज़ी पते पर वाहन पंजीकरण का खेल!’ उजागर किया है, जिसमें दिल्ली-एनसीआर में बड़े पैमाने पर फ़र्ज़ी वाहन पंजीकरण रैकेट का ख़ुलासा किया गया है। पुरानी कारों के डीलर और दलाल धोखाधड़ी से बने फ़र्ज़ी किरायेनामे और आधार के विवरण का उपयोग करके वाहनों को ग़लत पते पर पंजीकृत करने के लिए ख़ामियों का फ़ायदा उठाते हैं, जिससे ख़रीदारों को स्थानीय पते के प्रमाण के लिए क़ानूनी आवश्यकताओं से बचने का मौक़ा मिल जाता है। ये फ़र्ज़ी पंजीकरण महज़ काग़ज़ी घोटाला नहीं हैं, बल्कि यह प्रक्रिया दलालों और डीलरों के इस संगठित अपराध के लिए रीढ़ की हड्डी का काम करती है। अपराधी ऐसे वाहनों का उपयोग तस्करी, अवैध व्यापार और क़ानून प्रवर्तन से बचने के लिए करते हैं। फ़र्ज़ी पंजीकरण में इस्तेमाल फ़र्ज़ी दस्तावेज़, नक़ली नंबर प्लेट और वाहन पहचान संख्या (वीआईएन) से ऐसे वाहनों की असली पहचान छिपाने में मदद मिलती है।

‘तहलका’ की इस पड़ताल से पता चलता है कि किस तरह डीलर ग्राहकों को आश्वस्त करते हैं कि वे उचित दस्तावेज़ों के बिना ही दिल्ली-एनसीआर के किसी भी शहर में वाहन पंजीकृत करा सकते हैं। इससे न केवल क़ानून-व्यवस्था को नुक़सान पहुँचता है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी ख़तरा पैदा होता है। इस बीच वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने 01 नवंबर, 2025 से दिल्ली में 10 वर्ष से अधिक पुराने डीज़ल वाहनों और 15 वर्ष से अधिक पुराने पेट्रोल वाहनों में ईंधन भरने पर रोक लगाने का फ़ैसला लिया है। पहले यह नियम 01 जुलाई को लागू किया गया था; लेकिन जनता के विरोध के बाद इसे स्थगित कर दिया गया था। जुलाई में इस प्रतिबंध से 62 लाख से ज़्यादा वाहन प्रभावित हुए थे। वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाना महत्त्वपूर्ण है; लेकिन प्राधिकारियों को व्यापक स्तर पर फैले फ़र्ज़ी पंजीकरण के ख़तरे से भी निपटना होगा, जो कि प्रणाली में एक और अदृश्य प्रदूषक है।

‘तहलका’ की स्टोरीज कार्रवाई का आह्वान करती हैं- दोषपूर्ण शासन, अनियंत्रित अपराध और नियामक उदासीनता के ख़िलाफ़। माध्यम भले ही विकसित हो गया हो; लेकिन हमारा मिशन अपरिवर्तित है- सत्ता के सामने सच बोलना।

मतदाता पुनरीक्षण और समय के विरुद्ध दौड़

बिहार में मतदाता सूची से अपात्र लोगों को हटाने के लिए पुनरीक्षण कर रहा चुनाव आयोग

इंट्रो- चुनाव आयोग कह रहा है कि बिहार के लगभग आठ करोड़ मतदाताओं का संपूर्ण पुनरीक्षण सटीक और त्रुटिरहित मतदाता सूची बनाने के लिए किया जा रहा है, जो उचित और स्वतंत्र है तथा निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए इसकी बुनियादी आवश्यकता है। क्या बिहार में केवल दो महीनों में लगभग आठ करोड़ मतदाताओं का ईमानदारी से पुनरीक्षण संभव है? विभा शर्मा की रिपोर्ट :-

कई विपक्षी नेताओं का तर्क है कि आगामी विधानसभा चुनावों में केवल योग्य नागरिकों के ही मतदान करने की सुनिश्चितता के लिए यदि भारत निर्वाचन आयोग (चुनाव आयोग) बिहार में मतदाता सूची से अपात्र लोगों को हटाने के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण कर रहा है, तो 2024 के आम चुनावों से पहले बिहार से चुने गये 40 सांसदों को लोकसभा से तुरंत हटा दिया जाना चाहिए। समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव ने कहा है- ‘मैं इस बात से सहमत हूँ कि केवल योग्य भारतीय नागरिकों को ही मतदान करना चाहिए। लेकिन अगर चुनाव आयोग के आँकड़े सही हैं, तो 2024 के लोकसभा चुनावों में लाखों अयोग्य मतदाताओं ने मतदान किया, जिसका अर्थ है कि बिहार और शायद पूरे देश के परिणाम ग़लत थे। मतदाता सूची में गंभीर विसंगतियाँ थीं। इसलिए बिहार के सभी 40 सांसदों को तुरंत इस्तीफ़ा दे देना चाहिए और वहाँ नये सिरे से चुनाव कराने का आदेश दिया जाना चाहिए।’

विपक्ष की बात में दम हो सकता है; लेकिन चुनाव आयोग कहता है कि बिहार के लगभग आठ करोड़ मतदाताओं का संपूर्ण पुनरीक्षण सटीक और त्रुटिरहित मतदाता सूची बनाने के लिए किया जा रहा है, जो उचित और स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए बुनियादी आवश्यकता है। मूलत: चुनाव आयोग की प्रक्रिया में दो पहलू शामिल हैं- मतदान के लिए पंजीकृत पात्र मतदाताओं को शामिल करना तथा अपात्र मतदाताओं को हटाना, जिनके नाम प्रवास, मृत्यु या विदेशी अवैध अप्रवासी होने जैसे कारणों से ग़लत तरीक़े से मतदाता सूची में शामिल किये गये हैं।

बिहार में अंतिम संशोधन के बाद से कई परिवर्तन हुए हैं- शहरीकरण के कारण लोग गाँवों से शहरों और अन्य राज्यों की ओर जा रहे हैं। मौतों की सूचना नहीं दी जा रही है और शायद कुछ संदिग्ध राजनीतिक कारण भी हैं; जो किसी भी भारतीय नागरिक के लिए आपत्तिजनक होने चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस तरह का अभ्यास समय-समय पर किया जाना चाहिए; लेकिन यहाँ सवाल समय का है और वह भी अभी क्यों। अन्य प्रश्न हैं- क्या बिहार जैसे विशाल राज्य में, जहाँ जनसंख्या असमान है, इतनी बड़ी प्रक्रिया दो महीने में ईमानदारी से पूरी की जा सकती है? क्या 24 जून को शुरू की गयी इस प्रक्रिया में आठ करोड़ मतदाताओं को शामिल किया जा सकता है? क्या उनसे अचानक उनकी पहचान के लिए प्रासंगिक दस्तावेज़ दिखाने के लिए कहा जा सकता है? याद रखें, इनमें से कुछ मतदाता समाज के अत्यंत ग़रीब और हाशिये पर पड़े वर्गों से आते हैं।

कई विपक्षी दलों और अन्य लोगों ने एसआईआर को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी और इसे एक दुर्भावनापूर्ण और शरारती अभ्यास कहा, जो लाखों लोगों को मताधिकार से वंचित कर सकता है। विपक्ष ने इसे सत्तारूढ़ भाजपा के निर्देशों के तहत ईसीआई द्वारा आयोजित धाँधली का प्रयास बताया।

कुछ सरल गणित

अब हम 28 जुलाई, 2025 की स्थिति (जब यह लेख लिखा गया) और चिह्नित मतदाताओं के बारे में विपक्ष के तर्क पर वापस आते हैं। घर-घर जाकर एक महीने तक चले सर्वेक्षण के बाद 25 जुलाई को जारी किये गये चुनाव आयोग के आँकड़ों में 64 लाख मतदाताओं की पहचान की गयी। अब अगर इन 64 लाख मतदाताओं को 40 यानी बिहार के सांसदों की संख्या से भाग दिया जाए, तो जो आँकड़ा सामने आता है, वह 1.6 लाख होगा।

2024 के लोकसभा चुनावों में सबसे कम जीत का अंतर 48 वोटों का था, जो मुंबई उत्तर पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र से शिवसेना के रवींद्र दत्ताराम वायकर ने हासिल किया था। सबसे अधिक (मतों के संदर्भ में) जीत असम के धुबरी निर्वाचन क्षेत्र से रक़ीबुल हुसैन की रही, जिन्होंने 10 लाख से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की। मुद्दा यह है कि पिछले सात दशकों में भारत में हुए मतदान में लोकसभा की काफ़ी सीटें छोटे अंतर (पाँच प्रतिशत या उससे कम अंतर) से जीती गयी हैं। वास्तव में डेटा विश्लेषण से पता चलता है कि 2009, 2014 और 2019 में लगभग 23 प्रतिशत सीटों पर जीत का अंतर पाँच प्रतिशत या उससे कम था।

2024 के लोकसभा चुनावों में जीत का औसत अंतर राज्यों में अलग-अलग होगा। कुछ सीटों पर कड़ी प्रतिस्पर्धा होगी, जिसका फ़ैसला मुट्ठी भर वोटों से होगा; जबकि अन्य सीटों पर भारी अंतर से भारी जीत होगी। सिर्फ़ तर्क के लिए मुद्दा यह है कि अगर इन सभी 64 लाख मतदाताओं को आज मतदाता सूची से हटा दिया जाए, तो 2024 के लोकसभा परिणामों के बारे में विपक्षी नेताओं का तर्क भी समझ में आ जाएगा और सिर्फ़ बिहार में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में। विधानसभा चुनावों में जीत का अंतर और भी कम होता है। और नाम हटाने या जोड़ने से निश्चित रूप से नतीजों पर असर पड़ेगा। और यही बात विपक्ष को चिन्तित करती है।

अब तक क्या हुआ है?

चुनाव आयोग के अनुसार, बिहार के 99.8 प्रतिशत मतदाताओं को कवर किया जा चुका है। चिह्नित मतदाताओं की सूची में लगभग 22 लाख मृतक मतदाता, लगभग सात लाख एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत मतदाता और 35 लाख वे मतदाता शामिल हैं, जो या तो स्थायी रूप से विस्थापित हो गये हैं या उनका पता नहीं लगाया जा सका है। 7.24 करोड़ मतदाताओं के फार्म प्राप्त हो चुके हैं और उन्हें डिजिटल कर दिया गया है तथा उनके नाम मसौदा मतदाता सूची में शामिल किये जाएँगे। शेष मतदाताओं के बीएलओ रिपोर्ट सहित फॉर्मों का डिजिटलीकरण भी 01 अगस्त, 2025 तक पूरा हो जाएगा। जिन लोगों ने फॉर्म नहीं भरा है या जिनकी मृत्यु हो गयी है या जो स्थायी रूप से पलायन कर गये हैं। इन मतदाताओं की सूची 20 जुलाई को बिहार के राजनीतिक क्षेत्र में 12 राजनीतिक दलों के साथ साझा की गयी, वे हैं- बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल (यूनाइटेड), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) (लिबरेशन), राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), राष्ट्रीय पीपुल्स पार्टी, आम आदमी पार्टी।

किसी भी त्रुटि को मसौदा मतदाता सूची में सुधारा जा सकता है, जिसे 01 अगस्त को प्रकाशित किया जाएगा। 01 अगस्त से 01 सितंबर तक कोई भी मतदाता या राजनीतिक दल निर्धारित प्रपत्र भरकर ईआरओ के समक्ष किसी भी छूटे हुए पात्र मतदाता के लिए दावा प्रस्तुत कर सकता है या किसी अयोग्य मतदाता को हटाने के लिए आपत्ति दर्ज करा सकता है। चुनाव आयोग ने कहा- ‘एसआईआर के पहले चरण के अब तक सफलतापूर्वक संपन्न होने का श्रेय बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी, 38 ज़िला निर्वाचन अधिकारियों, 243 ईआरओ, 2,976 एईआरओ, 77,895 मतदान केंद्रों पर तैनात बीएलओ, स्वयंसेवकों, सभी 12 राजनीतिक दलों, उनके 38 ज़िला अध्यक्षों और उनके द्वारा नामित 1.60 लाख बीएलए को जाता है।’

एसआईआर राजनीति

विपक्ष जबकि इसे वापस लेने की माँग कर रहा है; सत्तारूढ़ भाजपा का दावा है कि बांग्लादेश से घुसपैठिये और रोहिंग्या मुसलमान बंगाली सीख रहे हैं और भारत में आधार और मतदाता कार्ड प्राप्त करने के लिए अपना नाम बदल रहे हैं और भारतीय चुनावों में मतदाता बन रहे हैं। तीव्र मतभेदों के कारण मानसून सत्र का पहला सप्ताह बाधित रहा, विपक्षी दलों ने प्रदर्शन किये और केंद्र ने जवाबी कार्रवाई की। बिहार से आने वाले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि एसआईआर पर सवाल उठाने वालों को बुनियादी संवैधानिक ज्ञान की कमी है। चुनाव आयोग केवल अपने संवैधानिक जनादेश का पालन कर रहा है, इसलिए इससे किसी को असहज क्यों होना चाहिए?

सही बात है कि चुनाव आयोग बिहार में मतदाता सूची से अयोग्य लोगों को बाहर करने के लिए यह कार्य कर रहा है, जो अच्छी बात है। लेकिन सवाल यह है कि यह अभी क्यों किया गया और पहले क्यों नहीं किया गया? कांग्रेस महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठाती रही है, जबकि पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राज्य में इस तरह के किसी भी संशोधन के प्रभावों को लेकर आशंकित है। चुनाव आयोग देशव्यापी एसआईआर की योजना बना रहा है।

इसकी शुरुआत बिहार से क्यों हुई?

इस अचानक घोषित जाँच के समक्ष कुछ प्रमुख मुद्दे थे- रोज़गार संकट; अन्यत्र आजीविका की तलाश में बिहार छोड़ रहे युवा, शिक्षा और बेहतर भविष्य, राज्य की दबावग्रस्त स्वास्थ्य सेवा प्रणाली, क़ानून व्यवस्था और महिलाओं तथा हाशिये पर पड़े लोगों के ख़िलाफ़ अपराध, जाति और पहचान की राजनीति और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का स्वास्थ्य।

बिहार में विपक्षी दल- राजद, कांग्रेस और वामपंथी दल जद(यू)-भाजपा की नीतीश कुमार सरकार को उन मुद्दों पर घेरने की रणनीति बना रहे थे; जिनके बारे में कहा जा रहा था कि उनका ज़मीनी स्तर पर काफ़ी प्रभाव पड़ रहा है। ज़ाहिर है भाजपा समर्थक भी कई मुद्दों पर भगवा पार्टी से ख़ुश नहीं थे। बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम से अवगत लोगों का कहना है कि एसआईआर की घोषणा से पहले, राजद, कांग्रेस और वामपंथी दलों वाला विपक्षी ख़ेमा सकारात्मक ज़मीनी रिपोर्ट्स और इन मुद्दों पर नीतीश को घेरने की रणनीति पर गर्व कर रहा था; लेकिन घोषणा के बाद ये सभी बातें अचानक अप्रासंगिक हो गयीं और उनका ध्यान संशोधन के ख़िलाफ़ लड़ने पर केंद्रित हो गया।

बिहार ही क्यों? इसका एक कारण शायद 2024 के विधानसभा चुनावों में पड़ोसी राज्य झारखण्ड के नतीजे भी थे। झारखण्ड में अपनी चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह सहित शीर्ष भाजपा नेताओं ने बार-बार बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठ की बात की, जो संथाल परगना और कोल्हान क्षेत्रों की पहचान और जनसांख्यिकी को तेज़ी से बदलकर झारखण्ड के लिए एक बड़ा ख़तरा पैदा कर रहे हैं। उन्होंने सत्तारूढ़ झामुमो नीत गठबंधन सरकार पर राजनीतिक हितों के लिए इस तरह की घुसपैठ को प्रोत्साहित करने का भी आरोप लगाया; लेकिन चुनाव फिर से हेमंत सोरेन के पक्ष में गये।

ग़रीबों और हाशिये पर पड़े लोगों से निपटना

संशोधन के पीछे कई अच्छे कारण हैं; लेकिन जिस तरह से यह किया जा रहा है, उससे कई ख़ामियाँ भी उजागर हुई हैं। दस्तावेज़ी प्रमाण के साथ नागरिकता साबित करने का भार लोगों पर है और अधिकारी दस्तावेज़ों का सत्यापन कर रहे हैं। आलोचकों का तर्क है कि इनमें से बड़ी संख्या में मतदाता राज्य के सबसे हाशिये पर पड़े नागरिकों में से हैं, जिन तक राज्य मशीनरी पहुँचने में विफल रही।

चुनाव आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया कि एसआईआर के तहत मतदाता की पात्रता के प्रमाण के रूप में आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड स्वीकार्य दस्तावेज़ नहीं हैं, जिसका विपक्ष और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने यह कहते हुए विरोध किया कि चुनाव आयोग ने इसके लिए कोई वैध कारण नहीं दिया। आख़िरकार आधार कार्ड स्थायी निवास प्रमाण पत्र, ओबीसी / एससी / एसटी प्रमाण पत्र और पासपोर्ट प्राप्त करने के लिए स्वीकार किये जाने वाले दस्तावेज़ों में से एक है। बिहार के क़स्बों और गाँवों से मीडिया में आयी ख़बरों के आधार पर एडीआर के हलफ़नामे में कहा गया है कि वे एसआईआर प्रक्रिया की वास्तविकता का चौंकाने वाला विवरण देते हैं, जो पूरी तरह से मनमाना, अवैध और ईसीआई के अपने आदेश और दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है।

तथ्य यह है कि हर कोई शिक्षित नहीं है या मतदाता पंजीकरण के लिए आवश्यक दस्तावेज़ या प्रमाण प्रस्तुत करने की स्थिति में नहीं है। आवश्यक दस्तावेज़ों में नगर निगम, पंचायत या किसी अधिकृत सरकारी निकाय द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र, जिसमें जन्म तिथि और स्थान दर्शाया गया हो; पासपोर्ट, मैट्रिकुलेशन या उच्च शिक्षा प्रमाण पत्र (स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र या विश्वविद्यालय की डिग्री, जिसमें आवेदक की जन्म तिथि शामिल हो); सरकारी पहचान पत्र या पेंशन दस्तावेज़, निवास प्रमाण पत्र (ज़िला मजिस्ट्रेट या समान सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी स्थायी निवास प्रमाण पत्र), वन अधिकार प्रमाण पत्र (मुख्य रूप से आदिवासी समुदायों से पात्र व्यक्तियों को वन अधिकार अधिनियम के तहत प्रदान किया गया); जाति प्रमाण पत्र (सक्षम सरकारी प्राधिकारी द्वारा जारी एससी, एसटी, ओबीसी के लिए मान्य, एनआरसी दस्तावेज़ (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से सम्बन्धित दस्तावेज़), परिवार रजिस्टर (स्थानीय निकायों द्वारा बनाये रखा गया घरेलू रजिस्टर या समान रिकॉर्ड, जिसमें परिवार के सदस्यों और प्रमुख विवरणों की सूची होती है; भूमि या आवास आवंटन पत्र और 1987 से पूर्व का सरकारी / पीएसयू आईडी (1987 से पहले किसी सरकारी निकाय या पीएसयू द्वारा जारी किया गया कोई भी पहचान दस्तावेज़)। तकनीकी पहलुओं को छोड़ दें, तो सवाल यह है कि दूरदराज़ के गाँवों और हाशिये पर पड़े तबक़ों में कितने लोगों के पास ये दस्तावेज़ हैं?

उच्च जाति की समस्याएँ

ज़ाहिर है तथाकथित ऊँची जातियों के लोग भी बहुत ख़ुश नहीं हैं। दिल्ली स्थित बिहार के एक उच्च जाति पत्रकार के अनुसार, इस कार्य में शामिल कई अधिकारी एससी / एसटी / ओबीसी समुदायों से आते हैं। जब वे देखते हैं कि उनके समुदाय के लोग किस तरह संघर्ष कर रहे हैं, तो वे ऊँची जाति के मतदाताओं का जीवन कठिन बना देते हैं। ऐसा मेरे अपने परिवार में भी हुआ है। धारणा यह है कि ऊँची जातियों के अधिकांश लोग भाजपा के मतदाता हैं।

अब चुनाव की बारी

यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि भाजपा को एसआईआर से सफलता मिलती है या नहीं। जैसे-जैसे बिहार में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ रही है, सभी की निगाहें विपक्ष और उनके अगले क़दम पर टिकी हैं। विवादास्पद संशोधन को लेकर चल रहे विवाद के बीच राजद के तेजस्वी यादव ने एक नाटकीय संकेत दिया कि उनकी पार्टी इस साल के अंत में होने वाले 2025 के चुनावों का बहिष्कार कर सकती है। इससे यह अटकलें लगायी जाने लगीं कि क्या यह एक वास्तविक संभावना है या योजनाओं के गड़बड़ा जाने की बढ़ती चिन्ताओं के बीच यह सिर्फ़ एक ख़तरा है। तेजस्वी यादव ने उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई बातें कहीं; लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ने एसआईआर को लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमज़ोर करने और मतदाता डेटा में हेरफेर करने के लिए नियुक्त किया था। उन्होंने पटना में संवाददाताओं से कहा- ‘यदि वे धोखाधड़ी के माध्यम से चुनाव जीतना चाहते हैं, तो चुनाव कराने का क्या मतलब है?’

उन्होंने धोखाधड़ी के माध्यम से मतदाता सूची में घुसपैठ करने वाले अवैध प्रवासियों के बारे में उभरते आँकड़ों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाया। तेजस्वी ने कहा कि वह इस बात से इनकार नहीं करेंगे कि राजद उस चुनावी प्रक्रिया को छोड़ देगा, जिसमें उसका विश्वास नहीं है। उन्होंने इंडिया ब्लॉक के साझेदारों के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा- ‘हम अंतिम निर्णय लेने से पहले अपने (इंडिया ब्लॉक) साझेदारों और लोगों से परामर्श करेंगे।’

कांग्रेस ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि उसे कथित तौर पर बड़े पैमाने पर अनियमितताओं की जानकारी है, जबकि सत्तारूढ़ जद(यू) ने बहिष्कार की धमकी को चुनावों में अपनी ख़राब संभावनाओं के बारे में विपक्ष की आशंका का प्रतिबिंब बताया।

दो महीने में ईमानदार एसआईआर?

ऐसा किया जा सकता है; लेकिन क्या यह शून्य त्रुटियों के साथ 100 प्रतिशत सटीक होगा कि कोई भी पात्र मतदाता छूटेगा नहीं, कोई भी अयोग्य व्यक्ति शामिल नहीं होगा? जैसा कि चुनाव आयोग दावा कर रहा है। यह देखना अभी बाक़ी है। यह एक बहुत बड़ी प्रक्रिया है। पहले चरण के बाद प्रक्रिया को पूरा करने के लिए सुधार और अन्य चरणों की आवश्यकता होती है। क्या अधिकारी उन 35 लाख लोगों के घरों का दौरा करेंगे, जो या तो स्थायी रूप से पलायन कर गये हैं या जिनका पता नहीं लगाया जा सका है? इनमें वे लोग भी शामिल हो सकते हैं, जो काम या किसी अन्य कारण से राज्य से बाहर गये हों? क्या राज्य में पुनरीक्षण कार्य के दौरान उपस्थित न होने के कारण उन्हें उनके अधिकार से वंचित किया जा सकता है?

शुरुआत में लगभग 7.9 करोड़ मतदाताओं तक पहुँचने, फॉर्म एकत्र करने और दस्तावेज़ों का सत्यापन करने की प्रक्रिया एक जटिल और समय लेने वाला काम था। चुनाव आयोग का कहना है कि 24 जून को एसआईआर प्रक्रिया शुरू होने के बाद से बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) और बूथ लेवल एजेंट (बीएलए) ने महत्त्वपूर्ण अपडेट प्रदान किये हैं।

इस प्रक्रिया में मतदाताओं तक पहुँचने के लिए, विशेष रूप से दूरदराज़ के क्षेत्रों में; बी.एल.ओ. और स्वयंसेवकों द्वारा व्यापक फील्डवर्क किया गया। लेकिन यदि कार्य सही ढंग से किया भी गया होता, तो भी फॉर्म एकत्रित करना, दस्तावेज़ों का सत्यापन करना तथा प्रवासी मतदाताओं, मृत्यु और एकाधिक पंजीकरण जैसे मुद्दों का समाधान करना निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण रहा होगा। सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद मतदाताओं को शामिल करने या बाहर करने में अभी भी त्रुटियाँ हो सकती हैं। ईसीआई इन चुनौतियों से निपटने के लिए क़दम उठाएगा; लेकिन कार्य का विशाल आकार पूरी स्थिति को थोड़ा अवास्तविक बना देता है। अब तक इस प्रक्रिया में 7.23 करोड़ मतदाताओं को शामिल किया जा चुका है; जो बिहार के मतदाताओं का 99.8 प्रतिशत है। एसआईआर दिशा-निर्देशों के अनुसार, अगला चरण 01 अगस्त से शुरू होगा और 01 सितंबर, 2025 तक जारी रहेगा।

इस अवधि के दौरान मतदाता या राजनीतिक दल दावे और आपत्तियाँ दर्ज करा सकते हैं, जिसमें मसौदा सूची से बाहर रह गये पात्र मतदाताओं को शामिल करना और अयोग्य प्रविष्टियों को हटाना शामिल है। 25 जुलाई को चुनाव आयोग ने एसआईआर को मतदाताओं के पूर्ण विश्वास और सक्रिय भागीदारी के साथ एक शानदार सफलता घोषित किया। 24 जून तक 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 7.24 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने अपने गणना फार्म जमा कर दिये हैं, जो भारी भागीदारी का संकेत है। लोगों को इसलिए शामिल नहीं किया गया, क्योंकि बीएलओ को ये मतदाता नहीं मिले या उन्हें गणना प्रपत्र वापस नहीं मिले; क्योंकि वे अन्य राज्यों / संघ शासित प्रदेशों में मतदाता बन गये थे या अस्तित्व में नहीं पाये गये या उन्होंने 25 जुलाई तक प्रपत्र जमा नहीं किया या किसी कारणवश मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने के इच्छुक नहीं थे।

चुनाव आयोग ने कहा- ‘इन मतदाताओं की सही स्थिति 01 अगस्त तक ईआरओ / एईआरओ द्वारा इन फॉर्मों की जाँच के बाद पता चलेगी। हालाँकि वास्तविक मतदाताओं को 01 अगस्त से 01 सितंबर, 2025 तक दावे और आपत्ति की अवधि के दौरान मतदाता सूची में वापस जोड़ा जा सकता है। एसआईआर के प्रथम चरण के सफल समापन का श्रेय बिहार के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, सभी 38 ज़िलों के ज़िला शिक्षा अधिकारी, 243 ईआरओ, 2,976 एईआरओ, 77,895 मतदान केंद्रों पर तैनात बीएलओ, लाखों स्वयंसेवकों और सभी 12 प्रमुख राजनीतिक दलों के क्षेत्रीय प्रतिनिधियों, जिनमें उनके ज़िला अध्यक्ष और उनके द्वारा नियुक्त 1.60 लाख बीएलए शामिल हैं; की पूर्ण भागीदारी को जाता है। एसआईआर अवधि के दौरान बीएलए की कुल संख्या में 16 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई।’

निजी तौर पर अधिकारी कई चुनौतियों को स्वीकार करते हैं- दस्तावेज़ों की आवश्यकताओं और साक्षरता के स्तर के कारण भागीदारी में कठिनाइयों का सामना करने वाले व्यक्ति और समुदाय, मानदंडों को पूरा करने के लिए संघर्ष करने वाले लोग, विशेष रूप से वे जो अस्थायी रूप से राज्य के बाहर रह रहे हैं या जिनके पास उचित दस्तावेज़ नहीं हैं; कई व्यक्ति, विशेष रूप से हाशिये के समुदायों के लोग; जिनके पास आवश्यक दस्तावेज़ नहीं हैं या उन तक उनकी पहुँच नहीं है। उदाहरण के लिए जन्म प्रमाण पत्र या जाति प्रमाण पत्र; कई लोग, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में फॉर्म भरने और प्रक्रियाओं को समझने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

अगले-दावे और आपत्तियाँ

01 अगस्त से 01 सितंबर तक 64 लाख मतदाताओं के भाग्य का फ़ैसला होगा। इसका मतलब है कि हर दिन दो लाख से अधिक लोगों तक पहुँचना। एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने पुनरीक्षण प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था; लेकिन मामले की सुनवायी जारी है। याचिकाकर्ताओं ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले चुनाव आयोग द्वारा संशोधन के आदेश की जल्दबाज़ी और प्रक्रिया पर सवाल उठाया था। उन्होंने निर्वाचन आयोग द्वारा मताधिकार और नागरिकता के प्रमाण के रूप में अनिवार्य किये गये दस्तावेज़ों की सीमित और विभेदित सूची पर भी सवाल उठाया। बिहार और देश के बाक़ी हिस्सों में दस्तावेज़ी प्रमाण के साथ नागरिकता साबित करने का दायित्व लोगों पर है।