आईसीसी मेंस चैंपियंस ट्रॉफी-2025 के फाइनल में भारत 12 साल बाद एक बार फिर चैंपियन ट्रॉफी जीतने में सफल रहा है। टीम इंडिया ने कीवियों से 25 साल पुराना हिसाब बराबर करते हुए आईसीसी मेंस चैंपियंस ट्रॉफी-2025 के फाइनल में उन्हें 251 रनों के एवज़ में 254 रन बनाकर चार विकेट से हरा दिया। भारत की टीम इंडिया ने सबसे सफल टीम के रूप में न्यूजीलैंड को हराकर तीसरी बार चैंपियंस ट्रॉफी का ख़िताब अपने नाम किया है। बीते एक साल में रोहित शर्मा की अगुवाई में टीम इंडिया ने यह दूसरा आईसीसी ख़िताब अपने नाम किया है। 29 जून, 2024 को भी टीम इंडिया ने उनकी कप्तानी में टी-20 वर्ल्ड कप जीतकर इतिहास रचा था।
दुबई में हुए आईसीसी के रोमांचक मुक़ाबले में न्यूजीलैंड की टीम ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाज़ी का फ़ैसला लिया था। न्यूजीलैंड ने सबसे पहले विल यंग और रचिन रवींद्र की जोड़ी को मैदान में उतारा, जिन्होंने आक्रामक शुरुआत तो की; लेकिन वरुण चक्रवर्ती ने सलामी बल्लेबाज़ विल यंग को जल्द ही आउट कर दिया। इसके बाद न्यूजीलैंड टीम पर दबाव बनने लगा और भारतीय स्पिनरों ने 11 से 41 ओवरों के बीच कसी हुई गेंदबाज़ी करते हुए कीवियों की न्यूजीलैंड टीम को महज़ 251 रन ही लेने दिये। कीवियों के वरुण चक्रवर्ती और कुलदीप यादव ने दो-दो विकेट और रविंद्र जडेजा ने एक विकेट लिया। कीवी टीम के सबसे सफल बल्लेबाज़ों में माइकल ब्रेसवेल ने 40 गेंदों में नाबाद 53 रन और डेरेल मिचेल ने 101 गेंदों में 63 रन बनाये।
न्यूजीलैंड से मिली 252 रनों का स्कोर बनाने की चुनौती को पूरा करने के लिए टीम इंडिया की ओर से बल्लेबाज़ी के लिए पहले रोहित शर्मा और शुभमन गिल की जोड़ी मैदान में उतरी। इस जोड़ी ने 105 रनों की साझेदारी करके टीम इंडिया के लिए मज़बूत प्लेटफॉर्म तैयार किया। इस जोड़ी में कप्तान रोहित शर्मा ने 83 गेंदों पर सबसे ज़्यादा 76 रनों की पारी खेली, जबकि शुभमन गिल ने 31 रन बनाये। हालाँकि इसके बाद कीवियों ने टीम इंडिया के तीन विकेट चटकाये। इसके बाद श्रेयस अय्यर और अक्षर पटेल ने चौथा विकेट गिरने तक 61 रनों की साझेदारी की, जिसमें श्रेयस अय्यर ने 48 रनों की साझेदारी निभायी। आख़िर में के.एल. राहुल ने नाबाद रहकर 34 रन बनाये की साझेदारी की। इस तरह टीम इंडिया ने 49 ओवर में छ: विकेट गँवाकर 254 रन का स्कोर बनाकर न्यूजीलैंड को हराया।
भारत की इस जीत पर विरोट कोहली ने कहा कि ‘पूरे टूर्नामेंट में अलग-अलग मैच में अलग-अलग खिलाड़ियों ने आगे बढ़कर चुनौती का डटकर सामना किया। यह प्रारूप वास्तव में बहुत अच्छा है। हमें चैंपियंस ट्रॉफी जीते हुए लंबा समय हो गया था और चैंपियन ट्रॉफी जीतना हमारा लक्ष्य था। ऑस्ट्रेलिया के दौरे के बाद हम यहाँ आये और यह टूर्नामेंट जीता, जिससे एक टीम के रूप में हमारा मनोबल बढ़ा है। इस बार हमने पिछले अनुभवों से सीखकर अच्छा प्रदर्शन किया। राहुल ने पिछले दो मैचों का जिस तरह से अच्छा अंत किया, उससे उनका अनुभव पता चलता है। चार आईसीसी ख़िताब जीतना वास्तव में किसी आशीर्वाद से कम नहीं है। मैं इतने लंबे समय तक खेलने और इसे हासिल करने के लिए ख़ुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ।’
आईसीसी मेंस चैंपियन ट्रॉफी फाइनल की टीमें
भारत : रोहित शर्मा (कप्तान), के.एल. राहुल (विकेटकीपर), विराट कोहली, शुभमन गिल, श्रेयस अय्यर, अक्षर पटेल, रविंद्र जडेजा, हार्दिक पांड्या, मोहम्मद शमी, वरुण चक्रवर्ती, कुलदीप यादव।
उत्तरी कश्मीर के विश्व प्रसिद्ध स्की रिसॉर्ट गुलमर्ग में 5वें खेलो इंडिया विंटर गेम्स-2025 12 मार्च को समाप्त हो गये। भारत के कई राज्यों के एथलीटों ने इन खेलों में भाग लिया। इन खेलों को सुरक्षित और सफल बनाने के लिए सुरक्षा व्यवस्था के अच्छे इंतज़ाम किये गये थे, जिसके लिए सीआरपीएफ, दूसरे सुरक्षा बल और जम्मू-कश्मीर पुलिस की तैनाती की गयी थी। खेलों की शुरुआत से पहले सुरक्षा व्यवस्था के लिए पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) मक़सूद-उल-ज़मान ने अपनी अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय सुरक्षा समीक्षा बैठक की थी, जिसमें तय किया गया था कि जवानों और सीसीटीवी कैमरों की निगरानी के अलावा सख़्त प्रवेश नियंत्रण, खेल मैदान के आसपास सख़्त पहरे, सुरक्षित आवास सुविधाओं, सुरक्षित पारगमन मार्ग और अराजक तत्त्वों पर नज़र रखने पर ध्यान दिया गया था।
बता दें कि 22 से 25 फरवरी तक होने वाले ये खेल उत्तरी कश्मीर में बर्फ़ जमी होने के चलते देरी से शुरू हो सके थे। इन खेलों में 550 एथलीटों सहित लगभग 800 खिलाड़ियों ने भाग लिया था। 12 मार्च तक चले खेलो इंडिया विंटर गेम्स-2025 के अंतर्गत नॉर्डिक स्क्रीइंग, अल्पाइन स्कीइंग, स्नोबोर्डिंग और स्की पर्वतारोहण जैसे खेल खेले गये। इन खेलों की ख़ूबसूरती यह रही कि इसमें जवानों ने भी भाग लिया। खेलो इंडिया विंटर गेम्स-2025 के पहले चरण का आयोजन 23 से 27 जनवरी तक लद्दाख़ में हुआ था। लद्दाख़ में आइस स्केटिंग और आइस हॉकी की प्रतिस्पर्धाएँ आयोजित की गयी थीं।
पहली बार वाराणसी में होंगे पैरा पाइथियन गेम्स
पैरा पाइथियन खेल 01 दिसंबर, 2025 से 03 दिसंबर, 2025 तक प्रस्तावित हैं, जो वाराणसी के चार प्रमुख स्टेडियमों और सात स्कूलों के खेल मैदानों में आयोजित किये जाएँगे। इस विश्वस्तरीय खेल प्रतियोगिता में 93 देशों के महिला-पुरुष खिलाड़ी भाग लेंगे। इन खेलों की सबसे ख़ास बात यह है कि भारत में पहली बार वाराणसी में ये खेल खेले जाएँगे। भारत में पैरा पाइथियन गेम्स को रूस की इंटरनेशनल डेल्फिक काउंसिल और ग्रीक की इक्यूमेनिकल डेल्फिक यूनियन का समर्थन भी मिल चुका है। दिव्यांगजन सशक्तिकरण राज्य सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. उत्तम ओझा ने बताया है कि ज़िला प्रशासन को खेलों से अवगत कराने के अलावा हुए आयोजन समिति को खेल मैदानों की सूची भेज दी गयी है। आयोजन की तैयारियाँ चल रही हैं।
बता दें कि सन् 2023 में ग्रीस में पैरा पाइथियन खेल हुए थे, जिसमें 22 देशों के महिला-पुरुष खिलाड़ियों ने भाग लिया था। भारत ने इस बार 93 देशों के खिलाड़ियों को आमंत्रित किया है, जिससे हर मुक़ाबला रोमांचक होगा। इस बार पैरा पाइथियन गेम्स-2025 में दिव्यांग खिलाड़ियों और कलाकारों को ऐतिहासिक मंच भी प्रदान किया जाएगा।
यह एक विचित्र स्थिति थी कि केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण, रेलवे और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने स्टारलिंक के प्रवेश का स्वागत किया और कुछ ही घंटों के भीतर एलन मस्क के स्टारलिंक को लेकर एक्स पर एक पोस्ट को हटा दिया। सबसे पहले वैष्णव ने पोस्ट किया था- ‘स्टारलिंक, भारत में आपका स्वागत है! दूरदराज के क्षेत्रों में रेलवे परियोजनाओं के लिए उपयोगी होगा।’ लेकिन 24 घंटे के भीतर दूरसंचार प्रतिद्वंद्वी रिलायंस जियो और भारती एयरटेल, दोनों ने स्टारलिंक की इंटरनेट सेवाओं को भारत में लाने के लिए एलन मस्क के स्पेसएक्स के साथ समझौतों की घोषणा कर दी।
दोनों समझौते स्टारलिंक द्वारा देश में परिचालन शुरू करने के लिए सरकारी प्राधिकरण प्राप्त करने की शर्त पर हैं। लेकिन वैष्णव द्वारा एक्स पर पोस्ट किये जाने से यह अनुमान लगाया गया कि क्या यह संकेत था कि सरकार ने वास्तव में स्टारलिंक को परिचालन शुरू करने की अनुमति दी है या उपग्रह स्पेक्ट्रम दे दिया है। यह सरकार के पहले के रुख़ के विपरीत था कि वह भारत में प्रवेश के लिए एलन मस्क की कम्पनी की जाँच कर रही है और इसरो यह काम कर रहा है। इसे हटाने से संकेत मिलता है कि अभी तक मंज़ूरी नहीं दी गयी है। विपक्ष के कई लोगों ने आश्चर्य जताया कि क्या यह एलन मस्क के साथ पिछले दरवाज़े से की गयी डील का हिस्सा था? और मोदी सरकार इस पिछले दरवाज़े से प्रवेश की अनुमति क्यों दे रही है?
घोषणाओं ने इन सौदों पर संसदीय या सार्वजनिक बहस की अनुपस्थिति के बारे में भी सवाल उठाये। स्टारलिंक 2022 से भारतीय बाज़ार में प्रवेश करने की कोशिश कर रहा था और एयरटेल व जियो दोनों ने शुरू में इसके प्रवेश का विरोध किया था। सन् 2024 में इंडिया मोबाइल कांग्रेस में एयरटेल के सुनील मित्तल ने कहा था कि सैटेलाइट कम्पनियों को पारंपरिक दूरसंचार कम्पनियों की तरह स्पेक्ट्रम ख़रीदने और लाइसेंस शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता होनी चाहिए। जियो ने भी इसी तरह का रुख़ अपनाया था, जिसके कारण एलन मस्क ने टिप्पणी की थी कि नीलामी-आधारित दृष्टिकोण की माँग अभूतपूर्व थी और भारत में काम करना बहुत अधिक परेशानी वाली बात है। लेकिन अब यह अतीत की बात हो गयी है; क्योंकि मंज़ूरी मिलने वाली है।
कुल 73 लाख मतदाताओं (जून, 2024 में राजधानी में 72.37 लाख पंजीकृत महिला मतदाता) में से सिर्फ़ 17 लाख महिलाओं को ही दिल्ली सरकार की महिला समृद्धि योजना का लाभ मिलने की संभावना है। 73 लाख मतदाताओं में से 60 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं की संख्या लगभग 13 लाख है, जो इस योजना से बाहर हो गयी हैं; क्योंकि इस योजना में 18-60 वर्ष की आयु सीमा तय की गयी है। इस तरह इस योजना के लिए पात्र महिलाओं की संख्या घटकर लगभग 60 लाख रह गयी। लेकिन दिल्ली सरकार ने इस योजना के क्रियान्वयन के लिए मुख्यमंत्री रेखा की अध्यक्षता में एक समिति बनायी है, जो लाभार्थियों के लिए मानदंड तय करेगी। ज़ाहिर है आयकर दाता, पेंशनभोगी और केंद्र व राज्य की योजनाओं की अन्य लाभार्थी महिलाएँ भी इससे बाहर हो जाएँगी। दूसरी बात, सभी मतदाता ज़रूरी नहीं कि दिल्ली के स्थायी निवासी हों और उन्हें जाँच का सामना करना पड़ेगा। यह अनुमान लगाया गया है कि ग़रीबी रेखा से नीचे या आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (बीपीएल या ईडब्ल्यूएस) की वास्तविक ज़रूरतमंद लाभार्थियों की संख्या, मतदाता सूची या जनसंख्या के आधार पर बतायी गयी संख्या से कहीं कम होगी।
समिति द्वारा चुनी गयी सभी पात्र लाभार्थियों को 2,500 रुपये मासिक भत्ता मिलेगा और इसके लिए 5,100 करोड़ रुपये की शुरुआती राशि निर्धारित की गयी है। दिल्ली सरकार की इस योजना में पारदर्शिता, दक्षता और वित्तीय लाभों के निर्बाध वितरण को सुनिश्चित करने के लिए उन्नत तकनीक का लाभ उठाया जाएगा। अनुमान है कि जाँच और उन्मूलन के बाद वास्तविक लाभार्थी महिलाओं की संख्या सिर्फ़ 17-18 लाख ही रह जाएगी। यह भी स्पष्ट नहीं है कि यह योजना कबसे लागू होगी; क्योंकि नियमों को ठीक करने और फॉर्म भरने में अभी लंबा समय लगेगा। दरअसल, सरकार को इस योजना को लागू करने की कोई जल्दी भी नहीं है।
मोदी सरकार ने लोकसभा में एक तरह का रिकॉर्ड बना दिया है। 17वीं लोकसभा के पूरे कार्यकाल के दौरान उन्होंने कोई उपसभापति नहीं बनाया और 18वीं लोकसभा में भी किसी के इस पद पर आसीन होने का कोई संकेत नहीं है। परंपरागत रूप से उपसभापति का पद मुख्य विपक्षी दल को दिया जाता है।
चूँकि संख्या की कमी के कारण कांग्रेस के पास विपक्ष का नेता (एलओपी) पद नहीं था, इसलिए यह पद ख़ाली रहा; हालाँकि कोई कारण नहीं बताया गया। कांग्रेस नेताओं का यह भी मानना है कि उपसभापति का पद ख़ाली रहने का एकमात्र कारण यह है कि इसे विपक्ष को दिया जाना है। इस परंपरा की शुरुआत सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू ने की थी, जिन्होंने सन् 1956 में शिरोमणि अकाली दल के सरदार हुकुम सिंह को उपसभापति चुना था। इसके बाद उपसभापति सत्तारूढ़ कांग्रेस से ही होते रहे, जब तक कि आपातकाल के वर्षों के दौरान एक स्वतंत्र सदस्य जी.जी. स्वेल को इस पद पर नियुक्त नहीं किया गया। इसके बाद विपक्ष के सदस्यों ने इस पद पर क़ब्ज़ा किया। यह परंपरा 16वीं लोकसभा तक जारी रही, जब एआईएडीएमके के एम. थंबीदुरई उपसभापति थे। 17वीं लोकसभा में मोदी सरकार ने उपसभापति नहीं रखने का फ़ैसला किया और यह पद ख़ाली रहा। इसी से सत्तारूढ़ दल को यह नियुक्ति अनिश्चितकाल तक टालने का बहाना मिल गया। हालाँकि संविधान के अनुच्छेद-93 में कहा गया है कि लोकसभा को जितनी जल्दी हो सके अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में दो सदस्यों को चुनना होगा।
पंजाब: अमृतसर के ठाकरद्वारा मंदिर पर हुए ग्रेनेड हमले के एक आरोपित को पंजाब पुलिस ने सोमवार सुबह खंडवाला इलाके में मुठभेड़ के दौरान मार गिराया, जबकि उसका एक साथी फरार हो गया। इस मुठभेड़ में एक पुलिस कांस्टेबल घायल हुआ है। फरार आरोपित की तलाश के लिए पुलिस लगातार छापेमारी कर रही है।
पंजाब पुलिस के महानिदेशक (DGP) गौरव यादव ने जानकारी देते हुए बताया कि 15 मार्च की रात अमृतसर स्थित ठाकरद्वारा मंदिर पर ग्रेनेड हमला किया गया था। इस हमले के बाद पुलिस ने मामले की जांच शुरू की और अमृतसर में एफआईआर दर्ज की गई। जांच के दौरान पुलिस को हमले में इस्तेमाल की गई बाइक के बारे में विश्वसनीय सूचना मिली। इसी आधार पर पुलिस की CIA (क्राइम इन्वेस्टिगेशन एजेंसी) और छेहर्टा थाना पुलिस की टीमों ने सोमवार तड़के खंडवाला इलाके में छापा मारा।
जब पुलिस ने आरोपितों की बाइक को रोकने की कोशिश की, तो वे बाइक छोड़कर पुलिस पर गोलियां चलाने लगे। बदमाशों की फायरिंग में एक कांस्टेबल गुरप्रीत सिंह घायल हो गया, जिसे बाएं हाथ में गोली लगी। वहीं, इंस्पेक्टर अमोलक सिंह की पगड़ी को भी एक गोली छूकर निकल गई, जिससे वे बाल-बाल बच गए। एक गोली पुलिस वाहन को भी लगी।
पुलिस ने जवाबी कार्रवाई करते हुए फायरिंग की, जिसमें एक बदमाश गुरसिदक गंभीर रूप से घायल हो गया, जबकि उसका साथी विशाल भागने में सफल रहा। घायल गुरसिदक और कांस्टेबल गुरप्रीत सिंह को इलाज के लिए सिविल अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान गुरसिदक की मौत हो गई।
पुलिस अब इस मामले में पाकिस्तान और आईएसआई से आरोपितों के संभावित संबंधों की जांच कर रही है। फरार आरोपित विशाल की तलाश जारी है, और पुलिस उसे जल्द गिरफ्तार करने के लिए लगातार छापेमारी कर रही है।
– भारत में वन्यजीव शिकारी और तस्कर भालुओं और उनके अंगों की कर रहे तस्करी!
इंट्रो- भालुओं, ख़ासकर आलसी भालुओं का भारत में अवैध शिकार लगातार हो रहा है। शिकारी और वन्यजीव तस्कर सरकारों और वन विभाग की आँखों में धूल झोंककर भालुओं और उनके अंगों की तस्करी करते हैं। ये शिकारी और तस्कर भालुओं का शिकार करके उनके अंगों और भालुओं के बच्चों को पकड़कर दुनिया के कई देशों में भेजते हैं। भालुओं के शरीर के अंगों से कुछ देशों में पारंपरिक दवाएँ और सूप जैसी चीज़ें बनती हैं, जिनकी विदेशों में माँग बढ़ रही है। यह सरकारों, वन्यजीव संरक्षकों और पर्यावरणविदों के लिए ही नहीं आम समाज के लिए भी गहन चिन्ता का विषय है। पढ़िए, भारत में भालुओं के शिकार और तस्करी का ख़ुलासा करने वाली तहलका एसआईटी की यह ख़ास रिपोर्ट :-
‘वियतनाम में बीयर बाइल (भालू पित्त रस) नाम का एक फार्म है, जहाँ 1,000 भालुओं को छोटे-छोटे पिंजरों में रखा जाता है और उनके पित्ताशय से पित्त निकाला जाता है। पित्त का उपयोग दवा बनाने में किया जाता है, दावा किया जाता है कि यह यौन क्षमता को बढ़ाता है। धनी और नि:संतान दम्पति इन दवाओं के लिए 50,000 रुपये तक का भुगतान करते हैं। यह प्रथा चीन और वियतनाम दोनों में आम है।’ -यह बात ‘तहलका’ रिपोर्टर को वाइल्ड लाइफ एसओएस के संरक्षण परियोजनाओं के निदेशक बैजूराज एम.वी. ने बतायी।
‘अवैध शिकार और मादक पदार्थ एक विशाल उद्योग के रूप में विकसित हो गये हैं, जो बड़े धन से संचालित होते हैं। इसमें वन्यजीव व्यापार, वन्यजीव उत्पादों का व्यापार शामिल है। बाज़ार में हर चीज़ किसी-न-किसी उद्देश्य से बेची जाती है। हाल ही में चीन और इंडोनेशिया जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से भारत में अवैध वन्यजीव व्यापार में वृद्धि हुई है।’ -बैजूराज ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया।
‘आलसी भालू का अवैध शिकार आमतौर पर नवंबर और दिसंबर में होता है, जब मादा भालू शावकों को जन्म देती है। भालुओं के अपनी माँद से बाहर आने के बाद शिकारी उनके शावकों को चुरा लेते हैं और माँ को मार देते हैं, उसके शरीर के अंगों का व्यापार करते हैं और शावकों को बिचौलियों को बेच देते हैं।’ -बैजूराज ने आगे बताया।
‘ख़ाना-ब-दोश जनजाति कलंदर के लोग भालुओं का नृत्य लोगों को दिखाने के उद्देश्य से नर भालुओं की आक्रामकता को कम करने और उन्हें अधिक मिलनसार बनाने के लिए उनको बधिया (नंपुसक) कर देते थे, जिससे उन्हें नृत्य प्रदर्शनों में इस्तेमाल किया जा सके।’ -यह बात वाइल्ड लाइफ एसओएस के विजिटर एवं वालंटियर प्रोग्राम के प्रमुख समन्वयक हरेंद्र सिंह ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बतायी।
‘चीनी व्यापारी आलसी भालुओं के बच्चों के पंजों से जूस बनाते हैं और वयस्क आलसी भालुओं के पित्ताशय का उपयोग दवाइयाँ बनाने के लिए करते हैं।’ -हरेंद्र सिंह ने ख़ुलासा किया।
‘पहले अवैध शिकार कलंदरों के माध्यम से किया जाता था। शिकारी उनके पास आते, कुछ पैसे देते और भालुओं को ले जाते। हालाँकि अवैध शिकार की प्रणाली विकसित हो गयी है। अब यह राष्ट्रीय उद्यानों के माध्यम से हो रहा है, जहाँ आलसी भालू बड़ी संख्या में पाये जाते हैं।’ -हरेंद्र ने बताया।
04 मार्च, 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के जामनगर ज़िले में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) और रिलायंस फाउंडेशन द्वारा स्थापित वन्यजीव केंद्र का उद्घाटन करने के बाद अद्वितीय वन्यजीव संरक्षण, बचाव और पुनर्वास केंद्र वनतारा की प्रशंसा की। यह पहल 30 वर्ष पहले कार्तिक सत्यनारायण द्वारा वन्य जीव संरक्षण के लिए शुरू की गयी पहल का अनुसरण है। कार्तिक सत्यनारायण ने सन् 1995 में गीता शेषमणि के साथ मिलकर ग़ैर-लाभकारी संगठन वाइल्ड लाइफ एसओएस की स्थापना की थी। आज वाइल्ड लाइफ एसओएस भारत में भालू संरक्षण के लिए कई परियोजनाएँ चला रहा है, जिसमें आगरा में भालुओं के लिए दुनिया का सबसे बड़ा पुनर्वास केंद्र भी शामिल है। उत्तर प्रदेश वन विभाग के सहयोग से सन् 1999 में आगरा में स्थापित वाइल्ड लाइफ एसओएस द्वारा भालू बचाव अभियान के तहत वर्तमान में बचाये गये 88 भालू हैं। यह परियोजना उन आलसी भालुओं का पुनर्वास सुनिश्चित करती है, जिन्हें कभी नृत्य करने वाले भालू के रूप में वश में किया गया था या वन्यजीव तस्करों से छुड़ाया गया था। यह कलंदर समुदाय के आदिवासी परिवारों को वैकल्पिक आजीविका सहायता भी प्रदान करता रहा है, जिनकी बस्तियों और सड़क किनारे लोगों और पर्यटकों को लुभाने की सदियों पुरानी भालुओं को नचाने की परंपरा थी, जिसे वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम-1972 के तहत अवैध घोषित कर दिया गया था। अब आलसी भालुओं को वन्यजीव क़ानूनों के तहत उच्च स्तर की सुरक्षा प्राप्त है। सन् 2009 में वन्यजीव एसओएस ने अंतिम नाचने वाले भालू आदित को बचाकर एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की, जिसके साथ ही भारत में इस प्रथा का अंत हो गया।
आलसी भालू को अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट (ख़तरा सूची) में असुरक्षित के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और इसे वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम-1972 की अनुसूची-1 के तहत संरक्षित किया गया है। ऐसा अनुमान है कि भारत के जंगलों में 6,000 से 11,000 तक भालू हैं। आज आलसी भालू केवल भारतीय उपमहाद्वीप नेपाल और श्रीलंका में एक उप-प्रजाति के रूप में पाये जाते हैं। वैश्विक आलसी भालू आबादी के लगभग 90 प्रतिशत भालू भारत में पाये जाते हैं। दुर्भाग्यवश आलसी भालुओं का उनके शरीर के अंगों के लिए अभी भी अवैध शिकार हो रहा है। नाचने वाले आलसी भालुओं की बरामदगी की बढ़ती संख्या भारत में अवैध वन्यजीव व्यापार के बारे में चिन्ता पैदा करती है। कड़े क़ानूनों, वन विभाग और वन्यजीव एसओएस के ठोस प्रयासों के बावजूद भालुओं का अवैध शिकार जारी है।
आलसी भालुओं का अवैध शिकार उनके शरीर के अंगों के लिए किया जाता है। चीन और वियतनाम में भालुओं के पित्ताशय की बहुत माँग है, जहाँ पारंपरिक दवाएँ बनाने के लिए पित्त निकाला जाता है। भालुओं के बच्चों के पंजे का उपयोग जूस (सूप) बनाने के लिए भी किया जाता है। अवैध शिकार की वास्तविकताओं को उजागर करने के लिए ‘तहलका’ एसआईटी ने दुनिया के सबसे बड़े भालू बचाव केंद्र की यात्रा की, जो आगरा से 17 किलोमीटर पश्चिम में सूर सरोवर पक्षी अभयारण्य में स्थित है। इस अभयारण्य को कीठम झील के नाम से भी जाना जाता है। बचाव केंद्र में ‘तहलका’ रिपोर्टर की मुलाक़ात वाइल्ड लाइफ एसओएस के आगंतुक एवं स्वयंसेवक कार्यक्रम के प्रमुख समन्वयक हरेंद्र प्रताप सिंह से हुई।
हरेंद्र, जो पिछले 10 वर्षों से भालू अभयारण्य से जुड़े हैं; ‘तहलका’ रिपोर्टर से बातचीत में आलसी भालुओं के अवैध व्यापार में शामिल वीभत्स प्रथाओं पर प्रकाश डालते हैं। उन्होंने बताया कि किस प्रकार शिकारी और तस्कर उनके पित्ताशय को निकालते हैं तथा पित्त रस को चाइनीज दवाओं में उपयोग के लिए बेच देत हैं। उन्होंने यह भी बताया कि अवैध शिकार के दौरान नर और मादा भालुओं के आक्रमण को रोकने के लिए किस प्रकार युवा और नवजात भालुओं को निशाना बनाया जाता है; यहाँ तक कि उनकी माँओं के साथ ही उन्हें भी मार दिया जाता है।
रिपोर्टर : अच्छा, हरेंद्र जी! आप इल्लीगल ट्रेड (अवैध व्यापार) के बारे में बता रहे थे; ….स्लॉथ बीयर (आलसी भालू) का इल्लीगल ट्रेड क्या है?
सिंह : गाल ब्लैडर (पित्ताशय की थैली), …पित्ताशय निकालते हैं। …वो पूरा गाल ब्लैडर निकाल लेते हैं, उसके बाद उसका जो बिले जूस (पित्त रस) होता है, उसका जो जूस होता है, वो चाइनीज मेडिसिन्स (चीनी दवाओं) में यूज (इस्तेमाल) होता है।
रिपोर्टर : उसके बाद बीयर अलाइव (भालू ज़िन्दा) रहता है?
सिंह : कौन रहेगा? वो मार जाएगा। ऑपरेशन करके थोड़ी निकाल रहा है, जो मार रहा है, वो निकाल रहा है।
रिपोर्टर : तो वो यंग बीयर (जवान भालू) के साथ भी करते थे या जिनका लाइफ स्पैन (जीवन-काल) ख़त्म होने वाला होता है?
सिंह : नहीं-नहीं; यंग के साथ भी करते हैं। छोटे बच्चों को तस्करी करके वो वहाँ सूप बनाते हैं; …अब बच्चा जब माँ के साथ होगा, तो माँ छोड़ेगी नहीं उसको, तो इस वजह से वो माँ को भी मारेंगे।
हरेंद्र के अनुसार, पित्ताशय की मुख्य माँग चीन से आती है, शिकारी नेपाल, कंबोडिया वियतनाम के रास्ते चीन पहुँचते हैं।
रिपोर्टर : स्मगलिंग (तस्करी) सिर्फ़ चाइना में होती है?
सिंह : चाइना से डिमांड होता है, पर वो नेटवर्क कैसे फैला हुआ है, कि यहाँ से नेपाल जाना है, नेपाल से किस रूट से जाएँगे कंबोडिया, वियतनाम, जहाँ से भी।
अब हरेंद्र ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि चीन में पारंपरिक दवा बनाने के लिए स्लॉथ (आलसी) भालू के पित्ताशय का इस्तेमाल किया जाता है और भालू के बच्चे के पंजे का इस्तेमाल सूप बनाने के लिए किया जाता है।
रिपोर्टर : फाइनल डेस्टिनेशन चाइना था उनका?
सिंह : डिमांड चाइना से थी।
रिपोर्टर : गाल ब्लैडर का यूज या तो सूप या मेडिसिन…?
सिंह : सूप बनाते थे पॉ (पंजे) का, भालू के बच्चे के पॉ का। गाल ब्लैडर से वो चाइनीज मेडिसिन बनाते थे।
रिपोर्टर : वो मेडिसिन का यूज क्या होता था?
सिंह : डिफरेंट थिंग्स (अलग-अलग चीज़ें); …मोस्टली वुमन (ख़ासकर महिलाओं) के लिए बनाते हैं। …अगर बेबी (बच्चे) नहीं हो रहे हैं, तो उनके लिए अलग-अलग ह्यूमंस (इंसानों) के लिए भी बना रहे हैं; …अलग-अलग चीज़ों के लिए।
यह पूछे जाने पर कि क्या उत्तर प्रदेश वन विभाग और वन्यजीव एसओएस के कई प्रयासों के बावजूद स्लोथ भालुओं का अवैध शिकार अभी भी जारी है? हरेंद्र ने स्पष्ट रूप से हाँ कहा।
रिपोर्टर : और ये अभी भी हो रहा है?
सिंह : ऑफकोर्स (बिलकुल), आप कह सकते हैं; क्यूँकि स्टिल बाइल फार्म्स (शान्त पित्त फार्म) चल रहे हैं। …जो मोस्टली वियतनाम में है। …सन बीयर्स (धूप में रहने वाला भालुओं) पर भी यही करते हैं। वहाँ तो प्रॉपर फार्म्स हैं। भालूओं को पिंजरे में रखा हुआ है और कोर्ड (तार) लगायी हुई है। उससे बाइल कलेक्ट (पित्त इकट्ठा) कर रहे हैं। उसको हैंड फीडिंग (हाथ से भोजन) कराएँगे और बाइल-वाइल (पित्त-वित्त) क्या है? खाना डाइजेस्ट करने के लिए वही तो कलेक्ट (इकट्ठा) कर रहे हैं वो।
हरेंद्र ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि सन् 2009 के बाद से आगरा भालू अभयारण्य में कलंदरों द्वारा पारंपरिक नृत्य में इस्तेमाल किया जाने वाला कोई भी भालू नहीं आया है। लेकिन हाँ, उन्हें वन विभाग द्वारा शिकारियों से बचाये गये भालू मिले।
रिपोर्टर : वैसे आपने काफ़ी बीयर्स (भालुओं) को रेस्क्यू किया (बचाया) है; पर अभी भी ट्रैफिकिंग (तस्करी) का तरीक़ा क्या है?
सिंह : अब तो एक्टिव (सक्रिय) हो गया है फॉरेस्ट डिपार्टमेंट (वन विभाग)। अभी तो इतना नहीं होता। पहले क्या हो रहा था, …डांसिंग बीयर ट्रेडिशन (भालू नचाने का चलन) था। इसलिए पर्चेज (ख़रीदारी) का नेटवर्क था। वट नाउ द गवर्नमेंट डिपार्टमेंट इज एक्टिव (लेकिन अब सरकारी महकमा सक्रिय है)। अभी 2009 के बाद हमारे पास कोई भी डांसिंग बीयर्स (नाचने वाले भालू) नहीं आये, इट मीन्स (इसका मतलब है कि) कोई भी भालू नाचने के लिए यूज नहीं हो रहे; बट ऐसा नहीं था कि 2009 के बाद कोई भालू नहीं आया हो। …वी गॉट सम बीयर, बट नॉट फ्रॉम डांसिंग बीयर ट्रेड (हमें कुछ भालू मिले; लेकिन नाचने वाले भालू के व्यापार से नहीं)। दोज विल बी सीज्ड वाई द फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ऐंड दोज विल बी गिव टू अस फॉर लाइफ टाइम केयर (उन्हें वन विभाग द्वारा ज़ब्त कर लिया जाएगा और उन्हें दिया जाएगा) बिकॉज (क्योंकि) उन बच्चों का तस्करी हो रहा था, तो उनको वो जंगल में दोबारा नहीं छोड़ सकते। अगर अडल्ट बीयर (वयस्क भालू) होता, तो शायद वो जंगल में छोड़ देते, अगर कोई 2-3 साल का भालू है, तो वो सर्वाइव कर (बच) जाएगा; मगर दो-तीन मंथ्स (महीने) का है, सो हाउ दे कैन सर्वाइव (तो वे कैसे जीवित रह सकते हैं)।
अब हरेंद्र ने ख़ुलासा किया कि आलसी भालू राष्ट्रीय उद्यानों में उपलब्ध हैं। लेकिन वे राष्ट्रीय उद्यानों में भी सुरक्षित नहीं हैं; क्योंकि शिकारी राष्ट्रीय उद्यानों से भी उनका शिकार कर रहे हैं।
सिंह : जंगलों में तो अवेलेबल हैं ही, उसके लिए आप कैसे न कह सकते हैं। आप रणथंभोर चले जाइए, बेंगलूरु चले जाइए, दारोजी चले जाइए; मिल जाएँगे।
रिपोर्टर : सेंचुरीज (अभयारण्डों) से कैसे बीयर (भालू) स्मगलिंग (तस्करी) हो रहे हैं?
सिंह : इंडिया (भारत) में सब कुछ होता है।
अब हरेंद्र ने ‘तहलका’ संवाददाता को बताया कि भालुओं के आक्रामक व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए कलंदर उनको बधिया (नंपुसक) बना रहे हैं, ताकि वे आसानी से उनके इशारों पर नाच सकें।
रिपोर्टर : सुनने में आया था कि ये जो कलंदर थे, वो इनके अंडकोष निकाल लेते थे?
सिंह : हाँ; वो कैस्ट्रैशन (बधिया) करते थे। नॉट जस्ट फॉर ब्रीडिंग, बट टू अवॉइड एग्रेशन ऑल सो (न केवल प्रजनन के लिए, बल्कि आक्रामकता से बचने के लिए भी)।
रिपोर्टर : इसमें कलंदर का क्या फ़ायदा था?
सिंह : भालू अग्रेसिव (आक्रामक) नहीं होगा, तो उनके (कलंदर और देखने वालों के) लिए थ्रीट (ख़तरा) नहीं होगा।
रिपोर्टर : लेकिन उससे पॉपुलेशन भी तो नहीं बचेगी।
सिंह : पॉपुलेशन बढ़ाकर उनको क्या करना है? जंगल से और भालू ले आएँगे; …दे जस्ट हैव टू थिंक हाउ टू कंट्रोल अ बीयर (उन्हें बस यह सोचना है कि भालू को कैसे नियंत्रित किया जाए)।
जब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने आगरा के आलसी भालू पुनर्वास केंद्र का दौरा किया, तो वाइल्ड लाइफ एसओएस की संरक्षण परियोजनाओं के निदेशक बैजूराज एम.वी. बचाव केंद्र में नहीं थे; वह असम में थे। इसलिए ‘तहलका’ रिपोर्टर ने उनसे फोन पर बात करने का फ़ैसला किया। आलसी भालू के अवैध शिकार के बारे में पूछे जाने पर बैजूराज ने कहा कि आज की दुनिया में अवैध शिकार और नारकोटिक्स एक बहुत बड़ा उद्योग बन गया है। उन्होंने कहा कि एक ऐसे विदेशी जानवर का नाम बताइए, जिसकी तस्करी भारत में नहीं होती हो।
बैजूराज : पोचिंग (अवैध शिकार) का पर्पज इज टुडे द पोचिंग ऑर वाइल्ड लाइफ ट्रेड इज गोइंग इन हैंड विद् नारकोटिक्स इज इज अ बिग बिलियन इंडस्ट्री (उद्देश्य यह है कि आज अवैध शिकार या वन्यजीव व्यापार नशीले पदार्थों के साथ-साथ चल रहा है, यह एक बड़ा और अरबों का उद्योग है)। वाइल्ड लाइफ इट इंक्लूड्स वाइल्ड लाइफ ट्रेड (वन्य जीवन में वन्यजीव व्यापार शामिल है), वाइल्ड लाइफ आर्टिकल्स ट्रेड (वन्य जीव, मतलब व्यापार), एवरीथिंग इज सोल्ड इन द मार्केट (बाज़ार में सब कुछ बिकता है)। फॉर वन ऑर द अदर पर्पज टुडे द एंट्री स्केनारियो इज वाइल्ड लाइफ एक्जोटिक एनिमल ट्रेड (किसी-न-किसी उद्देश्य से आज पूरा परिदृश्य वन्यजीव विदेशी पशु व्यापार का है)। एव्री वेयर यू गेट वाइल्ड लाइफ ट्रेड एक्सोटिक एनिमल्स (हर जगह आपको वन्यजीव व्यापार विदेशी पशु मिलते हैं। मैनहूज (बिल्ली की तरह एक जंगली जानवर) को लेकर हर चीज़ आपको इंडिया में ख़रीदने को मिलेगा। ये इतना अमेंस (बड़ा) है ट्रेड (व्यापार) कि कोई अमेजिन (कल्पना) ही नहीं कर पाएँगे। थाउजेंड्स ऑफ ग्वांस आर कमिंग टू इंडिया ऐज वाइल्ड लाइफ ट्रेड (हज़ारों गुयाना -एक प्रकार की बड़ी छिपकली- वन्यजीव व्यापार के रूप में भारत आ रहे हैं)। इट इज गोइंग ऑन फ्रॉम सो मैनी ईयर्स बट फ्रॉम सम ईयर्स इट हैज इंक्रीज्ड (यह कई वर्षों से चल रहा है; लेकिन कुछ वर्षों से इसमें वृद्धि हुई है)। अभी बहुत ज़्यादा इंक्रीज्ड (विस्तार) हो गया है वाइल्ड लाइफ ट्रेड (वन्यजीव व्यापार)। पोचिंग (अवैध शिकार) क्या होता है, वो अलग-अलग चीज़ों के लिए होता है। अभी आपको बीयर पोच (भालू का अवैध शिकार) कर दिया किसी ने, वो कलंदर को बेचेंगे या किसी थर्ड पार्टी को बेचेंगे। वो उसको नेपाल बॉर्डर पर कर देंगे। चाइना बॉर्डर पर कर देंगे। उनको कुछ पैसा मिलेगा, बीयर सर्वाइव कर (भालू जीवित रह) सकता है, तो उसको बड़ा कर देंगे। …वाइल्ड ट्रेड (वन्य व्यापार) के लिए उसे करेंगे। सर्वाइव नहीं करेगा, तो उसको बॉडी पार्ट्स के लिए यूज (उपयोग) करेंगे। गाल ब्लैडर ट्रेड (पित्ताशय व्यापार) और दवाई के लिए; एव्री थिंग इज सोल्ड इन द मार्केट ट्रेड (आज बाज़ार में हर चीज़ बिकती है)।
अब बैजूराज ने बताया कि आलसी भालू का अवैध शिकार किस समय किया जाता है; ख़ासकर नवंबर और दिसंबर के महीनों में।
रिपोर्टर : पोचिंग होती कैसे है?
बैजूराज : नवंबर-दिसंबर मंथ्स में भालू बच्चा देता है और पोचर्स (शिकारियों) को अच्छे से पता होता है, कौन-से जंगल में भालू आता है। ये क्या करता है, जंगल में जाता है और जैसे ही भालू डेन (माँद) से निकलता है, तुरंत ये लोग अंदर गुफा में जाकर बच्चे को लेकर आएँगे और बाइ चांस मदर (संयोगवश माँ) आ गया, तो इनको मारना पड़ता है मदर को। तो मदर को मार दिया, तो उसकी बॉडी पार्ट्स (शारीरिक अंगों) को सेल कर (बेच) दिया; और बच्चे को मार्केट (बाज़ार) में सेल करेंगे (बेचेंगे)। वैसे तो कम हो गया भालू का ट्रेड (व्यापार); झारखण्ड और राजस्थान में कुछ कलंदर रह गया, वैसे कलंदर मुश्किल है मिलना। इसलिए अब बीयर कब (भालू के बच्चे) का पोचिंग (अवैध शिकार) ज़्यादा नहीं होता। पोच (शिकार) होता है; क्यूँकि वो इंडोनेशिया बॉर्डर पार करके चाइना निकल जाएगा, क्यूँकि वो बीयर पॉ सूप एट्च (भालू के पंजों का सूप इत्यादि) के लिए ट्रेड करता है। अब एक होता है पैट (पालतू) ट्रेड (व्यापार); कोई भी अपने घर में पैट (पालतू पशु) पालने के लिए तैयार है, आपको सन बीयर (धूप में रहने वाला भालू) मिलेगा रेस्टोरेंट में भी केज (पिंजरे) में डाल के। रेस्टोरेंट को अट्रैक्ट करने (रेस्तरां को आकर्षित बनाने) के लिए।
अब बैजूराज ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि अवैध मार्गों से बड़ी संख्या में जानवर भारत में आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि आलसी भालुओं की तरह भारत के अधिकतर बाघों का भी अवैध शिकार करके उन्हें चीन भेजा जाता है। उन्होंने ख़ुलासा किया कि बिचौलिये ही अवैध शिकार से पैसा कमा रहे हैं। वे शिकारियों को एक भालू या एक बाघ की खाल के लिए 5 से 10 हज़ार रुपये देते हैं; लेकिन ये बिचौलिये उन्हें 5 से 10 लाख रुपये में बेच देते हैं।
बैजूराज : देखिए, हमारा मैक्सिमम टाइगर (ज़्यादातर बाघ) तो चाइना (चीन) ही गया है अभी तक। वो लोग कुछ भी खा लेंगे। उसका कोई लिमिट नहीं है। अभी इंडिया में भी बहुत जानवर आ रहे हैं। आप स्टडी (अध्ययन) करोगे, तो हैरान हो जाएँगे, इतना सारा जानवर तस्करी होकर इंडिया में आता है बाई ट्रेड (व्यापार के द्वारा)। बहुत मगरमच्छ, मकाऊ (एक प्रकार का जंगली तोता), कंगारू आता है। बर्ड्स (चिड़ियाँ) आता है। वलाबीज (छोटा कंगारू, जिसे धानी प्राणी और मारसूपियल कहते हैं) आता है। साउथ-ईस्ट एशियन कंट्रीज (दक्षिण पूर्व एशियाई देशों) से चाइना, इंडोनेशिया से आता है और इंडिया में सब लोग पिंजरा में डालने के लिए ख़रीद रहे हैं। एक्जोटिक एनिमल (विदेशी जानवर)। …देखो इजीली (आसानी से) तो टाइगर (बाघ) भी अवेलेबल (उपलब्ध) नहीं है; बट (लेकिन) हमने लास्ट ईयर (पिछले साल) पकड़ा था तमिलनाडु से। हम और आपके लिए स्लॉथ बीयर (आलसी भालू) देखने को भी नहीं मिलेगा; लेकिन पोचिंग (अवैध शिकार) के लिए सब कुछ अवेलेबल (उपलब्ध) है। इसमें मैक्सिमम पोचिंग (ज्यादातर शिकारी) जंगल में ही रहने वाला है। पैसा जो कमाता है मिडिल मैन (बीच का आदमी – पशुओं और उनके अंगों की तस्करी करके बाज़ार में बेचने वाला) है। वो तो पोचर्स (शिकारी) को पैसे पकड़ाएगा, बोलेगा एक टाइगर स्किन (बाघ की खाल) चाहिए या स्लॉथ बीयर (आलसी भालू) चाहिए हमको; …उनको (शिकारी को) तो 5-10 हज़ार से मतलब है। वो टाइगर का स्किन (खाल) दे देंगे और मिडिल मैन (बीच का आदमी) उसको 5-10 लाख में बचेंगे मार्केट में। मिडिल मैन ज़्यादा पैसा कमाता है। …अब किसान भी तो ज़्यादा नहीं कमाता, दुकानदार कमाता है।
अब बैजूराज ने बताया कि वियतनाम में स्लोथ भालू के पित्ताशय का उपयोग किसलिए किया जाता है।
रिपोर्टर : स्लॉथ बीयर (आलसी भालू) के ब्लैडर (पित्त) का क्या यूज (इस्तेमाल) हो रहा है?
बैजूराज : वियतनाम में बीयर बाइल करके एक फार्म है, तो उसमें न कम-से-कम 1,000 भालू पिंजरे में रखा हुआ है। उसमें तीन फिट का पिंजरा में भालू लेटा हुआ है और उसका बाइल (पित्त) कलेक्ट (इकट्ठा) हो रहा है। कभी-कभी उस ल्यूकिड (तरल) के साथ पस (पीव) भी आता है, वो दवाई करके बेच देता है। …तो आपको हम बोलेंगे आप यूज कर लो, आपके सेक्सुअल बहुत ये हो जाएगा, …तो क्या होता है, बड़ा-बड़ा लोग, जिसको बच्चा नहीं हो रहा है, ट्राई करेंगे; …50 हज़ार (रुपये) देकर। ये है मार्केटिंग। ये सब चाइना में हो रहा है और अमीर लोग ख़रीदते हैं, …ग़रीब लोग को ज़रूरत नहीं है।
बैजूराज, जिन्होंने वाइल्ड लाइफ एसओएस (वन्य जीवों के बचाव के लिए चलाया जा रहा एक ग़ैर-लाभकारी वन्यजीव संगठन) के साथ कुल 20 वर्ष बिताये हैं; जिनमें से 16 वर्ष सिर्फ़ आगरा भालू बचाव केंद्र में बिताये हैं; बताते हैं कि वाइल्ड लाइफ एसओएस भारत में अवैध शिकार को समाप्त करने के लिए किस प्रकार काम कर रहा है।
बैजूराज : मुझको 20 ईयर्स (20 साल) हुआ वाइल्ड लाइफ एसओएस के साथ, दिल्ली फोर ईयर्स नाउ सेटल्ड इन आगरा फ्रॉम 16 ईयर्स (पहले चार साल दिल्ली में रहा, अब 16 साल से आगरा में हूँ)।
रिपोर्टर : वाइल्ड लाइफ एसओएस ने पोचिंग (शिकार) में कितना बड़ा रोल (भूमिका) दे हैव प्लेयड (जो उन्होंने निभायी)।
बैजूराज : वी हैव इनफॉर्मर नेटवर्क (हमारे पास मुखबिर नेटवर्क है)। हमारा हर जगह इनफॉर्मर है, वो हमको ख़बर देता है, कोई भी, कुछ हो रहा है। फॉर ऑल एनिमल्स कैंडोलिज्म (हर क्षेत्र में हर जानवर के लिए), टाइगर (बाघ), …एनी वेयर एनीथिंग इज हैपनिंग दे विल लेट अस नाउ (कहीं भी कुछ भी हो रहा हो, तो हमें बता देते हैं)। वी आर पेइंग देम (हम उन्हें भुगतान करते हैं)। उनकी इंफॉर्मेशन (सूचना) से हम वाइल्ड लाइफ (वन्य जीवों) को अवेयर (जागरूक) करते हैं। ये सब नेटवर्क के थ्रू (ज़रिये) पता चलता है। हम फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को इन्फॉर्म करता है, बिकॉज वी आर नॉट लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी (क्योंकि हम क़ानून प्रवर्तन संस्था नहीं हैं)। हम वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो (वन्य जीव अपराध नियंत्रण केंद्र) या फॉरेस्टर डिपार्टमेंट (वन विभाग) को बोलेंगे। हम को-ऑर्डिनेट (समायोजन) करते हैं। हम पिक्चर (सामने) में नहीं आते कहीं। आई एम आलसो अ वालंटियर ऑफ वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो (मैं वन्यजीव अपराध नियंत्रण केंद्र का स्वयंसेवक भी हूँ)। हम ओनली इंफॉर्मेशन (सिर्फ़ जानकारी) देता है।
बैजूराज के अनुसार, सभी राष्ट्रीय उद्यानों में अवैध शिकार निरोधक शाखा है; जो इस बात का संकेत है कि वहाँ से भी अवैध शिकार किया जाता है। इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि जानवर कहाँ है। शिकारी हर जगह जाते हैं।
रिपोर्टर : क्या नेशनल पार्क से भी स्मगलिंग (तस्करी) होता है?
बैजूराज : जुगाड़ नहीं कर सकते। मैक्सिमम तो नेशनल पार्क और सेंचुरी (दोनों ही बड़े जंगल हैं;) में ही मिलता है; आपके और हमारे गाँव में तो मिलेगा नहीं। पकड़ना तो उधर ही होगा। अभी छत्तीसगढ़ गया था, वहाँ नेशनल पार्क बाउंड्री के बाहर भी स्लॉथ बीयर (आलसी भालू) रहता है। …एम.पी. (मध्य प्रदेश) में ज़्यादा स्लॉथ बीयर होता है। ..तो परचेजर्स (ख़रीदारों) के लिए नेशनल पार्क, …उनको कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। अभी राइनो (गैंडा) की पोचिंग (शिकार) में होगा ना! उसके लिए फ़र्क़ नहीं होता; …पोचर्स (शिकारी) कहीं भी जा सकते हैं। हर नेशनल पार्क में एंटी पोचिंग विंग (अवैध शिकार विरोधी दस्ता) होता है। कैंप्स होता है। …हमारा बर्ड सेंचुरी में भी पोचर्स (शिकारी) आता था, मछली पोच करने (मछलियों का शिकार करने) के लिए। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट कितना पोचर्स (शिकारियों) को पकड़ता है; …हर टाइम जेल भेजता है।
वाइल्ड लाइफ एसओएस वर्तमान में बेंगलूरु (कर्नाटक), भोपाल (मध्य प्रदेश), पुरुलिया (पश्चिम बंगाल) और आगरा (उत्तर प्रदेश) में चार भालू बचाव केंद्र चला रहा है, जिसमें आगरा दुनिया का सबसे बड़ा भालू बचाव केंद्र है। बैजूराज के अनुसार, जब सन् 1999 में आगरा भालू बचाव केंद्र खोला गया था, तब वहाँ 270 भालू थे। आज इनकी संख्या केवल 88 रह गयी है। अधिकांश भालू क्षय रोग के शिकार हो गये हैं। यह रोग उन्हें मदारियों (कलंदरों) से हुआ था, जो उन्हें पर्यटकों के सामने नाचने के लिए मजबूर करते थे। इससे पहले कि वे भालुओं के लिए और घातक सिद्ध होते, इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बैजूराज बताते हैं कि आगरा केंद्र भालुओं के लिए प्रजनन स्थल नहीं है। मदारियों ने भालुओं के प्रजनन-काल के दौरान उनके आक्रामक व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए क्रूर तरीक़ों का इस्तेमाल किया था, जिसमें उनके अंडकोषों को कुचलकर उनको बधिया (नपुंसक) बनाना भी शामिल था; ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नृत्य प्रदर्शन के दौरान भालू शान्त बने रहें।
यद्यपि भारत में भालुओं के नृत्य की परंपरा लगभग लुप्त हो चुकी है, फिर भी अवैध शिकार एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। आलसी भालुओं का शिकार अभी भी उनके पित्ताशय और पंजों के लिए किया जा रहा है, जिनकी चीन और वियतनाम में पारंपरिक दवाओं के लिए माँग है। यह अवैध व्यापार पहले से ही संकटग्रस्त प्रजातियों पर और भी अधिक दबाव डाल रहा है, जिससे बेहतर संरक्षण और अवैध शिकार के ख़िलाफ़ सख़्त अमल की आवश्यकता पर ज़ोर दिया जा रहा है।
– ‘जब तक जीओ मौज़ करो। चिन्ता किस बात की? क़र्ज़ करो और घी पीओ।’ -संसद में मोदी
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जब उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश को तरह-तरह के रंगीन सपने दिखाकर लोकसभा के चुनाव के लिए प्रधानमंत्री का चेहरा बनकर ताल ठोंकी, तो पूरे देश ने उनकी एक-एक बात को, उनके एक-एक वादे को न सिर्फ़ पूरे ध्यान से सुना, बल्कि यह सोचना शुरू कर दिया कि देश को भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और दूसरी तमाम परेशानियों से कोई मुक्ति दिलाने वाला आ गया है। और इसी विश्वास के साथ दूसरी बार यानी साल 2019 में भी लोगों ने उन्हें फिर से प्रधानमंत्री पद की ज़िम्मेदारी सौंप दी।
तीसरी बार यानी साल 2024 में कुछ लोगों का विश्वास उन पर कम हुआ; लेकिन फिर भी उन्हें प्रधानमंत्री बनने का मौक़ा मिला। और प्रधानमंत्री न सिर्फ़ देश में होने वाले हर चुनाव में, बल्कि अपने हर शासन-काल में देश को वादे देते रहे और रंगीन सपने दिखाते रहे। फाइव ट्रिलियन इकोनॉमी के सपने भी दिखाते रहे और कहते रहे कि देश तरक़्क़ी कर रहा है। लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त तो कुछ और ही बयाँ कर रही है और जिस तरीक़े से पिछले दिनों शेयर मार्केट की गिरावट ने 29 साल का रिकॉर्ड तोड़ते हुए शेयर धारकों के क़रीब 94 लाख करोड़ से ज़्यादा डुबो दिये, उससे साफ़ पता चलता है कि केंद्र सरकार की शेयर मार्केट को लेकर नीति बहुत अच्छी नहीं है।
दरअसल, केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तीसरा कार्यकाल है और उन्हें हिंदुस्तान पर शासन करते हुए तक़रीबन 11 साल हो चुके हैं। इस बीच में हर दूसरे-तीसरे साल शेयर मार्केट गिरता रहा है। हालाँकि यह शेयर मार्केट सिर्फ़ मोदी सरकार में ही नहीं गिरा है, बल्कि पहले भी ऐसा कई बार हुआ है; लेकिन इतनी बुरी तरह से और बार-बार इतनी गिरावट नहीं होती थी। केंद्र की मोदी सरकार में ही 24 अगस्त, 2015 को सेंसेक्स में 1,624 अंक गिरा था और फरवरी, 2016 तक 26 फ़ीसदी की गिरावट शेयर मार्केट में दर्ज की गयी। गिर चुका था। इसके बाद मामूली सुधार के बाद 29 सितंबर, 2016 को पाकिस्तान के साथ तनाव और सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान बीएसई का बेंचमार्क इंडेक्स सेंसेक्स 500 अंक तक टूट गया था। इसके बाद 08 नवंबर, 2016 को रात 8:00 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक नोटबंदी की घोषणा कर दी, जिसके अगले ही दिन 09 नवंबर को सेंसेक्स 1,689 अंक गिर गया। इसके बाद कोरोना-काल में 2020 में लॉकडाउन और काम बंद होने के चलते न सिर्फ़ शेयर मार्केट गिरने लगा, बल्कि आर्थिक मंदी ने भी हिंदुस्तान को अपनी चपेट में ले लिया। इसके बाद जनवरी, 2023 में अडानी पर भ्रष्टाचार के हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोप के बाद अडानी ग्रुप के शेयर गिरने से निवेशकों के हज़ारों करोड़ डूब गये। इसके बाद सितंबर, 2024 में सेंसेक्स और निफ्टी दोनों 16 फ़ीसदी तक कमज़ोर हुए। और अब इस गिरावट का 29 साल का रिकॉर्ड टूटा है और सिर्फ़ शेयर मार्केट की गिरावट ने ही 29 साल का रिकॉर्ड नहीं तोड़ा है, बल्कि देश के तक़रीबन 100 करोड़ लोगों के पास खाने भर की भी व्यवस्था बमुश्किल हो पा रही है।
हालाँकि मोदी सरकार में शेयर मार्केट केवल गिरा ही नहीं, बल्कि कई बार उछला भी और निवेशकों को अच्छा-ख़ासा फ़ायदा भी हुआ है। शेयर मार्केट के रिकॉर्ड के मुताबिक, साल 2014 से साल 2024 तक निवेशकों को 75.25 लाख करोड़ रुपये का फ़ायदा हुआ है। 16 मई, 2014 से 23 मई, 2019 के बीच बंबई शेयर मार्केट में सूचीबद्ध कम्पनियों का बाज़ार पूँजीकरण यानी मार्केट कैप 75.25 लाख करोड़ रुपये बढ़कर 150.25 लाख करोड़ रुपये हो गया था; लेकिन यह फ़ायदा छोटे निवेशकों को बहुत नहीं मिला; क्योंकि बड़े निवेशकों ने जब-जब मुनाफ़ा होते देखा; शेयर मार्केट से पैसा निकाल लिया, जिससे ज़्यादातर छोटे निवेशकों का पैसा डूब गया।
दरअसल, पिछले दिनों आयी इंडस वैली एनुअल रिपोर्ट-2025 यह बताती है कि आर्थिक रूप से हिंदुस्तान की हालत बहुत ज़्यादा ख़राब हो चुकी है। इस रिपोर्ट में हिंदुस्तान को जिस प्रकार से तीन हिस्सों में बाँटा गया है, उससे साफ़ पता चलता है कि आज देश की 90 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी की आर्थिक हालत इतनी ख़राब हो चुकी है कि वे इंडोनेशिया जैसे देश में भुखमरी से जूझने वाले लोगों की क़तार में खड़े हो चुके हैं। यह वो तीसरा तबक़ा है, जिसके पास जो वक़्त का खाना खाने तक की व्यवस्था नहीं है। वहीं एक वो तबक़ा है, जो अमीर से और अमीर होता जा रहा है और दूसरा तबक़ा वो है, जो मेहनत करके जैसे-तैसे अपना घर चला रहा है। सरकार तो ख़ुद ही कह रही है कि वह तक़रीबन 81 करोड़ लोगों को हर महीने पाँच किलो राशन देती है। इसका मतलब साफ़ है कि सरकार के ही मुताबिक, देश में 81 करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर हैं। इंडस वैली एनुअल रिपोर्ट-2025 में कहा गया है कि हिंदुस्तान में ऐसे 100 करोड़ लोग हैं, जिनमें मज़दूर, बेघर, बेरोज़गार और 90 फ़ीसदी किसान शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सिर्फ़ 10 फ़ीसदी लोगों के पास ही देश की कुल कमायी का 57.7 फ़ीसदी हिस्सा चला जाता है, जबकि देश के 50 फ़ीसदी मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के लोगों की कमायी 22.2 फ़ीसदी से घटकर 15 फ़ीसदी ही रह गयी है। और किसान-कमेरा वर्ग, ग़रीबों, बेरोज़गारों के पास बचत करने की छोड़िए, खाने भर की भी कमायी नहीं है। देश पर लगातार क़र्ज़ बढ़ रहा है और केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा के किसी भी मंत्री, सांसद, विधायक और नेता को इस बात की चिन्ता नहीं है कि आख़िर देश किस दिशा में जा रहा है। होगी भी कैसे? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो संसद में बोल ही चुके हैं कि ‘मरने के बाद क्या है? क्या देखा है? जब तक जीओ, मौज़ करो। चिन्ता किस बात की? क़र्ज़ करो और घी पीओ।’
देश पहले ही जीडीपी के मामले में दुनिया के 194 देशों की सूची में 144वीं रैंक पर आ चुका है, जिससे यह साबित होता है कि हिंदुस्तान ग़रीबी के मामले में तक़रीबन 40 साल पीछे चला गया है और प्रधानमंत्री मोदी के हर साल दो करोड़ रोज़गार, किसानों की आय दोगुनी और हिंदुस्तान की इकोनॉमी फाइव ट्रिलियन करने के वादे जुमला ही साबित हुए हैं। और यहाँ न सिर्फ़ आर्थिक असमानता की खाई गहरी होती जा रही है, बल्कि अमीर लगातार देश को लूट रहे हैं, जिसमें सरकार की मिलीभगत से इनकार नहीं किया जा सकता।
अब सवाल यह उठता है कि देश की गिरती अर्थ-व्यवस्था, आम निवेशकों के साल-दर-साल डूबते पैसे और बढ़ती बेरोज़गारी, महँगाई, ग़रीबी आदि की क्या-क्या वजहें हैं? आख़िर क्यों अमीर और अमीर, और ग़रीब और भी ग़रीब होता जा रहा है? इसका जवाब भी इंडस वैली एनुअल रिपोर्ट-2025 में दिया गया है और वो यह है कि हिंदुस्तान की आर्थिक स्थिति केंद्र सरकार के चुनावी प्रक्रिया में अनाप-शनाप ख़र्च होते हैं, जिसमें पार्टियाँ बहुत पैसा पानी की तरह बहाती हैं; और भाजपा इसमें सबसे आगे है। इसके अलावा लोगों पर टैक्स का बोझ बढ़ गया है और कमायी में कमी आयी है। और इन सबसे बड़ा कारण है केंद्र सरकार द्वारा लिया गया अनाप-शनाप क़र्ज़, जिसका ब्याज ही लाखों करोड़ रुपये महीने है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, हिंदुस्तान पर साल 2024 की तीसरी तिमाही में ही तक़रीबन 7,118 अरब डॉलर यानी तक़रीबन 711.8 अरब डॉलर का विदेशी क़र्ज़ था, जिसका ब्याज ही तक़रीबन 23.8 बिलियन डॉलर सालाना होता है। हैरत की बात यह है कि हिंदुस्तान पर विदेशी क़र्ज़ बढ़ता ही जा रहा है। अर्थशास्त्र के कुछ जानकार कह रहे हैं कि यह क़र्ज़ हिंदुस्तान की जीडीपी का तक़रीबन 90 फ़ीसदी से ज़्यादा है। आईएमएफ रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हिंदुस्तान पर साल 2022-23 में ही उसकी जीडीपी का क़र्ज़ 81 फ़ीसदी हो गया था। जीडीपी को लेकर भी केंद्र सरकार के आँकड़े कुछ कहते हैं, जबकि अर्थशास्त्री कुछ और ही कहते हैं। राजनीति और आर्थिक मामलों के जानकार केंद्र की मोदी सरकार पर ऐसे कई मामलों न सिर्फ़ आँकड़े छुपाने के, बल्कि देश को गुमराह करके क़र्ज़ में डुबोने तक के आरोप लगाते रहे हैं, जिसके जवाब में केंद्र सरकार ज़्यादातर ख़ामोश रहती है। हालाँकि सरकार भले ही ख़ामोश रहे; लेकिन लगातार बढ़ती जा रही चार चीज़ें- महँगाई, बेरोज़गारी, भुखमरी और ग़रीबी से यह साफ़ पता चलता है कि नोटबंदी के बाद से देश के अमीरों और नेताओं की संपत्ति में ही सैकड़ों से हज़ारों गुना इज़ाफ़ा हुआ है; लेकिन मध्यम वर्ग, निम्न-मध्यम वर्ग की कमायी कम हुई है और ग़रीबों की तो लुटिया ही डूब गयी है।
बहरहाल, केंद्र सरकार को हिंदुस्तान की गिरती जीडीपी, कमज़ोर होती अर्थ-व्यवस्था और लोगों की समस्याओं से ज़्यादा चुनाव जीतने की पड़ी रहती है। साल 2014 के बाद से नोट से वोट और तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर चुनाव जीतने में जिस तरह से भाजपा ने सारी हदें पार की हैं और चुनाव आयोग ने उसका साथ दिया है; जिससे साफ़ लगता है कि तगड़े चुनावी ख़र्च और तमाम तरह की परेशानियों के चलते ही आज ये हालात देखने को मिल रहे हैं। आम लोगों के हिस्से के अरबों रुपये अमीरों के पास किसी-न-किसी बहाने से जा रहे हैं और इसका सबसे ज़्यादा असर वेतनभोगी लोगों पर पड़ा है, जिसके चलते इस वर्ग की घरेलू बचत 30 फ़ीसदी ही रह गयी है। जबकि केंद्र की मोदी सरकार न तो शिक्षा पर और न ही रक्षा पर ज़्यादा ख़र्च कर रही है।
वर्ल्ड बैंक तो यह तक कह रहा है कि साल 2047 तक भी हिंदुस्तान की सरकार फाइव ट्रिलियन इकोनॉमी का लक्ष्य पूरा नहीं कर सकेगी। लेकिन केंद्र की मोदी सरकार देश को विकसित करने के ख़वाब दिखा रही है। देश में भ्रष्टाचार की जड़ें भी इतनी गहरी हैं, कि कोई भी सरकार इससे अछूती दिखायी नहीं देती यानी हमाम में सब नंगे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने 08 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर गुजरात के नवसारी ज़िले में एक कार्यक्रम में कहा कि भारत दुनिया की तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है, आधे स्टार्टअप में महिला निदेशक हैं। सबसे बड़ी संख्या में महिला पायलट भारत में हैं। अंतरिक्ष मिशन का नेतृत्व महिला वैज्ञानिकों की टीम कर रही है। माननीय प्रधानमंत्री ने हमारे देश में महिला सशक्तिकरण की ऐसी तस्वीर को दुनिया के सामने उकेरकर ख़ुद को आधी दुनिया का सबसे बड़ा हितेशी होने का संदेश देने की कोशिश की है। लेकिन इससे ठीक पाँच दिन पहले 03 मार्च को भाजपा शासित छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले के परसबाड़ा गाँव में छ: नवनिर्वाचित महिला पंचायत सदस्यों के पतियों ने उनके स्थान पर शपथ ली।
हैरत इस बात पर भी है कि परसबाड़ा गाँव पंडरिया निर्वाचन क्षेत्र में आता है और इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भाजपा की एक महिला विधायक करती हैं। इस घटना का वीडियो सामने आने पर प्रशासन ने ग्राम पंचायत सचिव को निलंबित कर दिया है; पर एक अधिकारी ने इस बात का भी ख़ुलासा किया कि ये नवनिर्वाचित पंच महिलाएँ इसलिए शपथ नहीं ले सकीं, क्योंकि वे पढ़ नहीं सकतीं। यह घटना महिला सशक्तिकरण की ज़मीनी हक़ीक़त को सामने रखती है और अक्सर ऐसी घटनाएँ प्रधानमंत्री के भाषणों से नदारद रहती हैं।
दरअसल भारत दुनिया की पाँचवीं अर्थ-व्यवस्था है और देश की 145 करोड़ आबादी में महिलाओं की संख्या क़रीब 49 फ़ीसदी है। दुनिया की सबसे अधिक महिला आबादी इसी देश में है। महिला मतदान में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। लेकिन यह भी कड़वी हक़ीक़त है कि इसी देश की पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर उनके पति, पुरुष रिश्तेदार कार्यभार सँभालते हैं। सरपंच पति, पंच पति और प्रधान पति की परंपरा आज भी अपनी जड़ें जमाये हुए है। यह मुददा बहुत गंभीर है।
दरअसल भारत मूलत: ग्राम परिवेश वाला देश रहा है; बेशक बीते कई दशकों से रोज़गार अधिकतर शहर केंद्रित होने के कारण गाँववासी भी शहरों की ओर पालयन करते रहते हैं; लेकिन गाँवों का अपना महत्त्व बरक़रार है। स्थानीय स्तर पर महिलाओं को सशक्त बनाने और गाँवों के विकास में उनकी भागीदारी बढ़ाने के मक़सद से 73वें संविधान संशोधन के ज़रिये सन् 1992 में तीन स्तर (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, ज़िला परिषद्) की पंचायत प्रणाली की स्थापना की गयी थी, जिसमें महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गयीं। बाद में 21 राज्यों और दो केंद्र शासित राज्यों ने इस आरक्षण को 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया। यह भी एक तथ्यपरक सच्चाई है कि महिला सरपंचों व पंचों के सामने पुरुषों की तुलना में अधिक चुनौतियाँ आज भी बरक़रार हैं; पर उसके समानांतर महिलाओं के आगे आने से असंख्य गाँवों में स्वच्छता, सड़क, पानी, स्वास्थ्य व शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं को तरजीह मिलने लगी व उनमें सुधार भी हुआ। महिला आरक्षण का यह फ़ायदा दस्तावेज़ों में तो दर्ज हुआ। लेकिन सरपंच पति, पंच पति सरीखा मुद्दा भी एक गंभीर चुनौती बन गया है।
इन पदों पर निर्वाचित महिलाओं के पति जब उनकी जगह काम करते हैं, तो सारी शक्तियों का इस्तेमाल वे करने लगते हैं। ऐसे में निर्वाचित महिला प्रतिनिधि बस काग़ज़ी प्रतिनिधि बनकर रह जाती हैं। यह 21वीं सदी के दो दशक बीत जाने के बाद भी देश में पितृप्रधान संरचना की मज़बूत पकड़ को दर्शाता है और 73वें सविंधान संशोधन की मंशा पर भी आघात है। सरकार भी इस तथ्य की तस्दीक़ करती है। हाल ही में पंचायती राज मंत्रालय द्वारा गठित पैनल द्वारा ‘पंचायती राज प्रणालियों और संस्थाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और भूमिकाओं को बदलना : प्रॉक्सी भागीदारों के प्रयासों को ख़त्म करना’ विषय पर जारी रिपोर्ट में इस व्यवस्था को ख़त्म करने की सिफ़ारिश के साथ-साथ इसमें सुधार के कई उपाय भी सुझाये गये हैं।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 2.63 लाख पंचायतें हैं। इनमें 32.29 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों में 46.6 प्रतिशत यानी 15.03 लाख महिलाएँ हैं। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि राजस्थान, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में ऐसे मामलों की संख्या अधिक है। बिहार में एनडीए की सरकार है, तो हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकारे हैं। समिति ने महिलाओं के हाथों में असल में नेतृत्व की कमान सौंपने के लिए कई सुझाव दिये हैं। ऐसे मामलों से निपटने के लिए महिला लोकपाल की नियुक्ति के सुझाव के अलावा ग्राम सभाओं के शपथ ग्रहण को सार्वजनिक समारोह को आयोजित करने की बात कही है। समिति ने महिलाओं को बेहतर प्रशिक्षण देने और उनके कौशल को बढ़ावा देने के लिए वर्चुएल रियलिटी (वीआर) और एआई के ज़रिये उन्हें प्रशिक्षण देने का भी सुझाव दिया है। कई सुझावों व सिफ़ारिशों से नत्थी यह रिपोर्ट पंचायती व्यवस्था में निर्वाचित महिलाओं को असल में कितना सशक्त करेगी और राज्य सरकारें व केंद्र सरकार क्या ठोस क़दम उठाती हैं? यह आने वाला वक़्त बताएगा।
दशकों के सफल संरक्षण प्रयासों और लुप्तप्राय प्रजातियों के बारे में बढ़ती जागरूकता के बावजूद शिकारी एक बार फिर वन्यजीव आबादी के लिए ख़तरा बन रहे हैं। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया में लाखों लोग अभी भी भालू के पित्त, गैंडे के सींग, बंदर के मांस और बाघ के अंगों के औषधीय गुणों के बारे में ग़लत धारणा रखते हैं। इन दावों के समर्थन में वैज्ञानिक साक्ष्यों के अभाव के बावजूद इन जीवों और उनके अंगों को पारंपरिक उपचारों या विलासितापूर्ण खाद्यों की आड़ लेकर बेचा जाना जारी है, जिससे दुनिया की कुछ सबसे कमज़ोर प्रजातियों के अवैध शिकार को बढ़ावा मिल रहा है।
भारत में लुप्तप्राय प्रजातियों, विशेषकर भालुओं की स्थिति विशेष रूप से गंभीर हो गयी है। भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी आलसी भालू अवैध शिकार, वन्यजीव तस्करी और मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण बढ़ते ख़तरे का सामना कर रहा है। कई लुप्तप्राय प्रजातियों की तरह भालू भी अब अवैध व्यापार का शिकार हो रहे हैं; क्योंकि उनके शरीर के अंगों, जैसे- पित्त, पंजे और त्वचा की माँग बढ़ रही है। एशिया के कुछ भागों में इन उत्पादों की माँग पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग के लिए की जाती है। वहाँ माना जाता है कि भालू का पित्त कई प्रकार की बीमारियों का इलाज करता है, जिसमें यौन क्षमता को बढ़ाना भी शामिल है। चीन और वियतनाम जैसे देशों में धनी दंपति अक्सर इन कथित उपचारों के लिए बड़ी रक़म चुकाते हैं, जिससे शिकार का चक्र चलता रहता है।
अवैध वन्यजीव व्यापार, विशेषकर आलसी भालू के अंगों की तस्करी इस प्रजाति को विलुप्ति के क़रीब ले जा रही है। भारत में अवैध शिकार एक प्रमुख समस्या है। आवास की कमी और मनुष्यों के साथ बढ़ते वन्यजीव संघर्षों के कारण स्थिति और भी बदतर हो गयी है। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) के अनुसार, आलसी भालू को संकटग्रस्त श्रेणी में रखा गया है। अनुमान है कि जंगल में इनकी संख्या 6,000 से 11,000 तक है। भारत में वैश्विक आबादी का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा रहता है। नेपाल और श्रीलंका में भी कुछ कम संख्या में भालू पाये जाते हैं। हालाँकि भालू के शरीर के अंगों, विशेष रूप से पित्ताशय और पंजे की माँग सिर्फ़ एशिया तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यूनाइटेड किंगडम यूरोप में भालू के अवैध अंगों का सबसे बड़ा आयातक है, जो अंतरराष्ट्रीय अवैध शिकार नेटवर्क को और बढ़ावा देता है।
‘तहलका’ की इस बार की आवरण कथा- ‘भालुओं की तस्करी जारी है’ भारत में भालुओं के अवैध शिकार के फिर से शुरू होने की पुष्टि करती है, और यह उजागर करती है कि भालुओं का पित्त निकालना अब भी एक आकर्षक व्यवसाय बना हुआ है। वाइल्ड लाइफ एसओएस के संरक्षण परियोजनाओं के निदेशक बैजूराज एम.वी. के अनुसार, भालुओं के पित्ताशय की थैली चीनी पारंपरिक चिकित्सा (सीटीएम) में विशेष रूप से मूल्यवान है। वहाँ पित्त को विभिन्न बीमारियों का इलाज करने वाला माना जाता है। हालाँकि इसकी प्रभावशीलता का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। यह प्रथा आलसी भालुओं के लिए विनाशकारी है; क्योंकि शिकारी अक्सर प्रसव के मौसम में मादा भालुओं और उनके बच्चों को निशाना बनाते हैं। वे माँओं (मादा भालुओं) को मार देते हैं और उनके बच्चों को बिचौलियों को बेच देते हैं।
हाल की घटनाएँ आशा की एक किरण प्रस्तुत करती हैं। 03 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के गिर राष्ट्रीय उद्यान में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनबीडब्ल्यूएल) की बैठक की अध्यक्षता की। इस बैठक में पहली बार मोदी ने अपने कार्यकाल में बोर्ड की बैठक बुलायी थी और इसमें भारत में वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रमों की समीक्षा और उन्हें मज़बूत बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया था। इस तरह की पहल आलसी भालू जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा की लड़ाई में आगे का रास्ता दिखा सकती है।
उत्तर प्रदेश पुलिस के कारनामे हर रोज़ सुनने को मिलते हैं; लेकिन इस बार शामली ज़िले की पुलिस ने वो कारनामा कर दिखाया है, जिसकी हर तरफ़ चर्चा हो रही है। और यह कारनामा है- ख़ुदकुशी करने वाले एक किसान के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करके उस पर मुक़दमा दर्ज कराने का। कहानी थोड़ी हास्यास्पद और दु:खद है। सरकार किसान के परिवार को सहायता या राहत के बजाय उस पर क़ानूनी दाँव-पेंच में उलझा रही है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश के शामली के थाना झिंझाना क्षेत्र में एक गन्ने का भुगतान समय पर न मिलने के चलते ग्राम पुरमाफी के किसान धर्मेंद्र ने 23 फरवरी को ख़ुदकुशी कर ली। ख़ुदकुशी से पहले किसान अपने गन्ने के भुगतान के लिए चीनी मिल प्रशासन और योगी प्रशासन से कई बार गुहार लगायी थी। किसान धर्मेंद्र की पत्नी लंबे समय से बीमार चल रही है, जिसके इलाज के लिए उसे पैसों की सख़्त ज़रूरत थी। इसके अलावा किसान को अपनी बेटी की स्कूल फीस भी भरनी थी और घर के ख़र्च के लिए भी पैसे चाहिए थे। लेकिन चीनी मिल वालों ने उसका समय से भुगतान नहीं किया था। इसी के चलते किसान ने शायद कहीं से एक देशी तमंचे का इंतज़ाम करके अपने खेत में जाकर ख़ुद की कनपटी पर गोली मार ली, जिससे उसकी मौत हो गयी।
किसान की मौत के समय कुछ लोगों ने यह भी आशंका जतायी कि हो सकता है कि किसान की हत्या किसी ने कर दी हो और इसे ख़ुदकुशी साबित करने के लिए किसान के हाथ में तमंचा थमा दिया हो। हालाँकि किसान की किसी से दुश्मनी नहीं थी और उसके गाँव के लोग कह रहे हैं कि धर्मेंद्र काफ़ी दिनों से गन्ना भुगतान न होने को लेकर परेशान चल रहा था। लेकिन थाना झिंझाना की पुलिस ने किसान धर्मेंद्र की मौत या ख़ुदकुशी की गहन छानबीन करके सही वजह का पता लगाने की जगह उलटा उसके ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करके उस पर मुक़दमा दर्ज करा दिया है। मुख्यमंत्री योगी की चौकन्नी पुलिस के इस कारनामे से सब हैरान हैं और सवाल कर रहे हैं कि क्या अब मृतक किसान को अदालत में हाज़िर होने की आवाज़ लगायी जाएगी। और अगर किसान ने तमंचा ख़रीदकर ख़ुदकुशी कर भी ली हो, तो क्या एक मरे हुए किसान को सज़ा दी जाएगी? लोग सवाल उठा रहे हैं कि किसान के ख़िलाफ़ एफआईआर और मुक़दमा दर्ज कराने के बजाय पुलिस गन्ने का भुगतान न करने वाले अफ़सरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है?
दरअसल, प्रदेश में गन्ना किसानों के गन्ने का पिछले कई साल तक का बक़ाया भुगतान चीनी मिलें नहीं कर रही हैं। इन चीनी मिलों पर किसानों के सैकड़ों करोड़ रुपये बक़ाया हैं और हर साल गन्ने का भुगतान ये चीनी मिलें देने में देरी करती हैं, सो अलग। पेराई सत्र 2024-25 का पूरा गन्ना चीनी मिलें किसानों से फरवरी के दूसरे सप्ताह तक ही ख़रीद चुकी हैं और अभी तक किसानों का पूरा भुगतान नहीं हुआ है। सत्ता में आने से पहले भाजपा के कई बड़े नेताओं ने यह वादा किया था कि चीनी मिलें किसानों को 48 घंटे के भीतर भुगतान करेंगी; लेकिन ऐसा नहीं हुआ। विपक्ष भी सिर्फ़ चुनाव आने पर ही किसानों की बात करता है, उनके साथ उनके आन्दोलन में खड़े होकर उनके हक़ की आवाज़ कभी नहीं उठाता।
विडंबना यह है कि पिछले कुछ ही दिनों में दज़र्नों किसान ख़ुदकुशी कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले में ज़मीन छिनने वाले अदालती फ़ैसले से तंग किसान वेद प्रकाश ने एसडीएम और पुलिस के सामने ख़ुद को आग लगाकर आत्महत्या कर ली। फ़तेहपुर ज़िले के जाफ़राबाद गाँव में एक 48 वर्षीय किसान भोला यादव ने पहले ज़हर खा लिया और जब लोगों ने उसे बचाना चाहा, तो उसने ख़ुद को कमरे में बंद करके फाँसी लगाकर ख़ुदकुशी कर ली। छत्तीसगढ़ के ही महासमुंद ज़िले के पटेवा थाना क्षेत्र में सिंघनपुर गाँव के पूरन निषाद नाम के एक किसान ने अपने ही खेत में फाँसी लगाकर ख़ुदकुशी कर ली। अफ़सोस इस बात का है कि किसानों की ख़ुदकुशी के इतने मामले आ रहे हैं और प्रचार यह किया जा रहा है कि किसान ख़ुशहाल हैं।