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यमुना बैराज बनाओ, तालाब बचाओ!

बृज खंडेलवाल

विश्व जल दिवस 2025 पर, दुनिया जब पानी की कमी से जूझ रही है, दो मिलियन से अधिक लोगों का शहर आगरा सरकारी लापरवाही और गलत प्राथमिकताओं का जीता-जागता सबूत और असफलता की बेहतरीन मिसाल है।

135 किलोमीटर लंबी गंगाजल पाइपलाइन से हालिया संकट कुछ हद तक नियंत्रित हुआ है,  मगर शहर की जीवनदायिनी, पावन यमुना नदी का गला घोंटकर, आगरा के पर्यावरण को तबाह कर दिया गया है। नदी किनारे खड़ी बेहतरीन  मुगलकालीन इमारतें अब पर्यावरणीय खतरे में हैं।

यमुना आरती के महंत, पंडित जुगल किशोर कहते हैं, “देवी माँ के रूप में पूजी जाने वाली यमुना आज एक नाला बन गई है। इसका पानी ज़हरीला हो गया है, और इसकी सहायक नदियाँ, उठनगन, खारी, पार्वती, कार्बन आदि, लगभग ख़त्म हो चुकी हैं। ताज महल की छाँव में, शहर का जल संकट पारिस्थितिकी की अनदेखी और शहरी बदइंतजामी की एक भयावह तस्वीर पेश करता है।”

पर्यावरणविद डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य के अनुसार, “यमुना नदी की दुर्दशा सिस्टम के नाकाम होने की कहानी है। ऊपर की ओर, ओखला बैराज इसके प्रवाह का अधिकांश हिस्सा डायवर्ट कर देता है, जिससे आगरा में एक कंकाल जैसी धारा रह जाती है। नीचे की ओर, नदी एक ज़हरीले कूड़ेदान में बदल जाती है, जो दिल्ली और हरियाणा से आने वाले अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक कचरे से भरी हुई है। घाटों पर रसायन युक्त झाग तैर रहे हैं, और इसकी सतह पर मरी हुई मछलियाँ दिखती हैं – जो पारिस्थितिकी तंत्र के पतन की एक कठोर याद दिलाती हैं। नदी की सहायक नदियाँ, जो कभी महत्वपूर्ण धमनियाँ हुआ करती थीं, अतिक्रमण और उदासीनता के बोझ तले लुप्त हो चुकी हैं, जिससे भूजल पुनर्भरण और भी कम हो गया है। यमुना, जिसने कभी आगरा के अतीत को आकार दिया था, अब इसके भविष्य को सूखने का ख़तरा है।”

नदी के उस पार, आगरा के ऐतिहासिक तालाब – जो कभी जीवन और जीविका के जीवंत केंद्र थे – विलुप्त हो रहे हैं। रिवर कनेक्ट अभियान के सदस्य चतुर्भुज तिवारी कहते हैं, “जिले में लगभग 1000 तालाब थे, जो कभी मानसून की बारिश का पानी इकट्ठा करते थे और सूखे महीनों में पड़ोस को सहारा देते थे, अब कंक्रीट के नीचे दबे हुए हैं या कचरे से भरे हुए हैं। शहर के सांस्कृतिक और पारिस्थितिक ताने-बाने में उकेरे गए ये जल निकाय अनियंत्रित शहरीकरण और नागरिक उपेक्षा का शिकार हो गए हैं। जहाँ कभी पानी नीले आसमान की परछाई दिखाता था, वहाँ अब बंजर टीले धूप में तप रहे हैं, जिससे शहर की निर्भरता पहले से ही तनावग्रस्त यमुना और घटते तालाब, पोखर, बावड़ी पर और बढ़ गई है। कीठम झील जो अंग्रेजों ने आगरा की ग्रीष्मकालीन जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाई थी, वो सुविधा मथुरा रिफाइनरी को मिल रही है।”

आगरा के निवासियों के लिए, इसके नतीजे डरावने हैं। शहर की जल उपयोगिता, डिमांड सप्लाई,  आगरा जल संस्थान, के लिए चुनौती है। नल घंटों तक सूखे रहते हैं। पंडित महेश शुक्ला कहते हैं कि झुग्गियों और ट्रांस यमुना कॉलोनियों में, महिलाएँ सामुदायिक पंपों पर घंटों कतार में खड़ी रहती हैं, जबकि जिले के किसान अपनी फसलों को सूखते हुए देखने को मजबूर हो जाते हैं,  क्योंकि बोरवेल सूख जाते हैं या जल स्तर गिर जाता है। ज़हरीले पानी से बीमारियाँ भी फैलती हैं, जिससे शहर की मुश्किलें और बढ़ रही हैं।

यहाँ तक कि आगरा का नायाब रत्न ताजमहल भी इससे अछूता नहीं है। ग्रीन एक्टिविस्ट पद्मिनी अय्यर के अनुसार, सूखी, प्रदूषित यमुना ताज की लकड़ी की नींव को कमज़ोर कर रही है, जिससे स्मारक की संरचनात्मक अखंडता और इससे जुड़ी पर्यटन अर्थव्यवस्था पर ख़तरा मंडरा रहा है। सर्किट हाउस के तालाबों और शाहजहां गार्डन को  अब नहरी पानी नहीं मिल रहा है, उक्खररा माइनर, शमशाबाद रोड पर अतिक्रमणों के बोझ तले मर चुकी है.”

यमुना भक्त ज्योति खंडेलवाल कहती हैं, “सभी ब्लॉकों में जल स्तर लगातार पाताल लोक की ओर बढ़ रहा है, फ्लोराइड और अन्य ज़हरीले रसायनों की वजह से कई गाँवों में लोग बेबस, बीमार और कुबड़े हो रहे हैं, हरियाली सूख रही है, चंबल नदी भी पानी के लिए तरस रही है, लेकिन जन प्रतिनिधियों को कोई फ़िक्र नहीं है।”

रिवर कनेक्ट कैंपेन के सदस्य कहते हैं कि यमुना की सफाई के लिए अंतरराज्यीय सहयोग की ज़रूरत है, जिसमें दिल्ली में सख़्त अपशिष्ट नियंत्रण, गाद निकालने के ज़रिए सहायक नदियों को पुनर्जीवित करना और अवैध रेत खनन पर लगाम लगाना शामिल है।

स्थानीय स्तर पर, आगरा नगर निगम अतिक्रमण हटाकर, गाद निकालकर और वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देकर सामुदायिक तालाबों को पुनर्जीवित कर सकता है।

आगरा सिविल सोसाइटी के संयोजक अनिल शर्मा का कहना है कि शहर में वाटर हार्वेस्टिंग, छत पर संग्रह प्रणाली और जन जागरूकता अभियान भूजल तनाव को कम कर सकते हैं, जबकि किसान ड्रिप सिंचाई जैसे जल-कुशल तरीकों को अपना सकते हैं।

श्री मथुराधीश मंदिर के गोस्वामी नंदन श्रोत्रिय को अभी भी उम्मीद है। “ताजमहल अभी भी चमक रहा है, जो इंसानी प्रतिभा और लचीलेपन का सबूत है। इसकी झलक को किसी सूखी खाई में गायब होने की ज़रूरत नहीं है। सामूहिक इच्छाशक्ति और योगी सरकार की निर्णायक कार्रवाई से, आगरा अपने हालात बदल सकता है – इससे पहले कि इसकी विरासत धूल में मिल जाए।”

बीजापुर-कांकेर में 30 नक्सली ढेर, घंटो चली मुठभेड़

बीजपुर: छत्तीसगढ़ के बीजापुर के अड़ी जंगल और कक्रि जिले के नारायणपुर सरहदी क्षेत्र में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच गुरुवार को हुई मुठभेड़ में 30 नक्सली ढेर हो गए जबकि एक जवान बलिदानी हो गया। बीजापुर जिल के गंगालुर थाना क्षेत्र अंर्तगत नक्सलियों के फोर सरही इलाके बीजापुर-दंतेवाड़ा सीमा पर अंडी के जंगल में आज सुबह 7 बजे से सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच चल रही मुठभेड में 30 नक्सली मारे गए हैं जबकि डीआरजी के एक जवान का बलितन हो गया। इस मुठभेड़ में नक्सलियों के बड़े कैडर्स के मारे जाने की संभावना जताई गई है।

और बढ़ सकती है संख्या, एक जवान भी हुआ खलिदानी

सिंचंग अभियान पर संयुक्त पुलिस बल रवाना हुई थी। इस इलाके में भी आज सुबह से डीआरजी और बीएसएफ की संयुक्त पुलिस और नक्सलियों के बीच पुल भेड़ हुए में अभी तक 4 नक्सलियों के शव और आटोमैटिक हथियार सहित अन्य नक्सल साम्धी बरामद को गयी है। बस्तर अहंजी सुंदरराज पी ने बीजापुर एवं कफिर जिले में जारी मुठभेड़ की पुष्टि करते हुए बताया कि बीजापुर से 26 नक्सललियों के शव और ककिर जिले से 4 नक्सलियों के शव सहित मुठभेड़ स्थल से खाड़ी मात्रा में हथियार और गोला बारुद के साथ अब तक 30 नक्सलियों के शव बरामद कर लिए गये हैं। क्षेत्र में मुठभेड़ के साथ ही सिंचिंग अधिशन जारी है विस्तृत जानकारी पृथ्क से दी जाएगी।

अगले साल 31 मार्च से पहले देश होने वाला है नक्सलमुक्त: अमित शाह

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र बोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार नक्सलियों के विरुद्ध रुचलेस अफ्रोव के नाथ आगे बह रही है। उन्होंने चावा किया कि अगले साल 31 मार्च से पहले देश नक्सालमुक्त होने वाला है। छत्तीसपद में गुरुवार की दो अलग-अलग अभियानों में 22 नकालियों के मारे जाने के बाद सोसल मीडिया लेटफॉर्म एक्स पर साझा किए गए एक पोस्ट में अमित शाह ने कहा कि नक्चलमुक्त भारत अभियान की दिशा में आज हमारे जवानों जवानों ने एक और बड़ी मृफलता हासिल की है। छत्तीसगढ़ के बीजापुर और कफिर में चुरक्षा बलों के 2 अलग-अलग ऑपरेशन में 22 नक्सली मारे गए। मोदी सरकार नक्सलियों के विरुद्ध रथलेश अधोच से आगे बाद रही है और समर्पच से लेकर चमावेशन की तमाम सुविधाओं के बावजूः जो वसली आतासमर्पण नहीं कर रहे उनके खिलाफ जीने टॉलरेंस की नीति अपना रही है।

अगले साल 31 मार्च से पहले देश नक्सलबुक्त होने बाला है। गृह नत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व और केन्द्रीय गृा एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में स्क्सलवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति के चलते वर्ष 3025 में अब तक 90 नक्सली बारे जा चुके हैं, 104 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है और 164 ने आत्मसमर्पण किया है। वर्ष 2024 में 290 नक्सलियों को न्यूट्रलाइज किया गया था. 1090 को गिरफ्तार किया गया और 881 ने आत्मसमर्पण किया था। अभी तक कुल 5 शीर्ष नफाली नेताओं को न्यूट्रलाइज किया जा चुका है। बयान में कहा गया है कि वर्ष 2004 से 2014 के बीच नाम्खाली हिसा की कुल 16,263 घटनाएं हुई थीं

सरकारी उपक्रमों में 600 सेअधिक ‘स्वतंत्र निदेशक’ पदरिक्त

केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में ‘स्वतंत्र निदेशकों’ के 625 से अधिक बोर्ड-स्तरीय पद खाली पड़े हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में ऐसे 750 पद हैं। स्वतंत्र निदेशक गैर-कार्यकारी निदेशकों की भूमिका निभाते हैं और कंपनी के दिन-प्रतिदिन के कार्यों में सीधे तौर पर शामिल नहीं होते हैं, लेकिन उनसे बेहतर कॉर्पोरेट प्रशासन सुनिश्चित करने और शेयरधारकों के हितों की रक्षा करने की अपेक्षा की जाती है। अधिकारियों के लगातार फेरबदल के कारण फाइलों के निपटान में भारी देरी होने लगी है। सूत्रों का कहना है कि तत्कालीन डीपीई सचिव तुहिन कांत पांडे ने दिसंबर 2024 तक कम से कम 50 प्रतिशत पदों को तेजी से भरने का लक्ष्य तय किया था, लेकिन जिम्मेदारियों के लगातार अतिरिक्त बोझ ने उनकी योजनाओं को क्रियान्वित करने में बाधा उत्पन्न की।

इसी तरह, मौजूदा सचिव (अतिरिक्त प्रभार) अरुणीश चावला पर भी दीपम सचिव के रूप में अपने नियमित प्रभार के अलावा संस्कृति मंत्रालय के कार्यों का भी भारी बोझ है। पिछले साल जुलाई में अली रजा रिजवी के सेवानिवृत्त होने के बाद से डीपीई लगातार तदर्थ व्यवस्था के अधीन है। इसके अलावा, एक वर्ग कहता है कि हाल ही में एक तरह की केंद्रीकृत राजनीतिक मंजूरी स्वतंत्र निदेशक की नियुक्तियों में प्रमुख भूमिका निभा रही है, जो इस तरह की नियुक्तियों में बाधाओं और देरी को भी बढ़ाती है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अब 64 सूचीबद्ध सीपीएसई के बोर्ड में लगभग 200 रिक्तियों को भरने के लिए तत्काल उपाय किए जा रहे हैं। विचाराधीन विकल्पों में चयन प्रक्रिया को तेज करना और कुछ मामलों में मौजूदा गैर-आधिकारिक निदेशकों के कार्यकाल को बढ़ाना शामिल है। इन रिक्तियों को भरने की आवश्यकता महत्वपूर्ण है, क्योंकि स्वतंत्र निदेशक कॉर्पोरेट प्रशासन मानकों को बनाए रखने और हितधारकों के हितों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे उन ऑडिट कमेटियों का भी महत्वपूर्ण भाग होते हैं जो वैधानिक अनुपालन की देखरेख करते हैं।

पंजाब पुलिस ने खाली कराया खनौरी और शंभू बॉर्डर; हिरासत में कई किसान नेता

एक साल से शंभू और खनौरी सीमाओं पर जमे किसानों को पंजाब पुलिस ने हटा दिया है। पंजाब पुलिस ने बुधवार को शंभू और खनौरी सीमाओं पर विरोध स्थलों को खाली करा दिया और बैरिकेड्स, वाहनों और अस्थायी ढांचों को हटा दिया। इसके साथ ही माना जा रहा है आज से एनएच-44 भी खुल जाएगा।

अब किसानों की आगे की रणनीति क्या होगा यह देखना होगा। क्योंकि किसान नेता गुरमनीत सिंह मंगत ने मीडिया को बताया कि सरवण सिंह पंधेर और जगजीत सिंह दल्लेवाल सहित कई किसान नेताओं को मोहाली में उस समय हिरासत में लिया गया है और किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को बुधवार देर रात डेढ़ बजे जालंधर के पिम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

पंजाब सरकार ने बड़े सुनियोजित ढंग से हटाते हुए दोनों मोर्चों पर बुलडोजर चलवा दिया। बुधवार को दिन में केंद्रीय मंत्रियों के साथ संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) की चंडीगढ़ में सातवें दौर की बैठक बेनतीजा रहने के बाद पुलिस ने पिछले चार महीनों से अनशन कर रहे जगजीत सिंह डल्लेवाल और किसान नेता सरवण सिंह पंधेर को हिरासत में लिया। जब पुलिस ने डल्लेवाल व पंधेर को हिरासत में लिया तो किसानों में आक्रोश फैल गया। किसानों ने बैरिकेड हटाने की कोशिश की जिससे पुलिस व किसानों में धक्का-मुक्की हुई।

जानकारी के मुताबिक पंजाब सरकार के प्रतिनिधियों ने किसानों से यह कहते हुए नेशनल हाइवे खोलने की अपील की कि इससे लोगों को भारी परेशानी हो रही है और कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है पर किसानों ने बात मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद उनसे केवल एक ओर का रास्ता खोलने की अपील की गई, परंतु किसान नहीं माने। बैठक के बाद चंडीगढ़ से शंभू व खनौरी लौट रहे किसानों को पुलिस ने रास्ते में ही पकड़ना शुरू कर दिया।

बता दें किसानों ने 13 फरवरी, 2024 को शंभू व खनौरी बार्डर पर एक साथ धरना शुरू किया था। किसानों के धरने के कारण हरियाणा पुलिस की ओर से बैरिकेडिंग करके इस रास्ते को बंद कर दिया गया है जिससे लोगों को भारी परेशानी हो रही थी तथा उद्योग-धंधे प्रभावित हो रहे थे। जिस तरह से कार्रवाई हुई है, उससे स्पष्ट कि यह रणनीति केंद्र व पंजाब सरकार के अधिकारियों ने मिलकर तय की है।

अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर 9 महीने 14 दिन बाद पृथ्वी पर लौटे

फ्लोरिडा समुद्र तट पर लैंडिंग, डॉल्फिन्स ने किया स्वागत

फ्लोरिडा: अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर, साथ ही नासा के निक हैग और रूसी अंतरिक्ष यात्री अलेक्जेंडर गोर्बुनोव, नौ महीने 14 दिन के लंबे मिशन के बाद पृथ्वी पर वापस लौटे हैं। एस्ट्रोनॉट्स को स्पेसएक्स के ड्रैगन अंतरिक्ष यान द्वारा सुरक्षित रूप से फ्लोरिडा के तट पर उतारा गया था। धरती पर लौटे अंतरिक्ष यात्रियों को एक सुंदर और अप्रत्याशित अनुभव हुआ। उनका स्वागत डॉल्फिन्स ने किया। ड्रैगन कैप्सूल के समुद्र में उतरते ही डॉल्फिन कैप्सूल के आसपास तैरते हुए देखे गए।

यह एक लगभग जादुई क्षण था जब डॉल्फिन ने ड्रैगन कैप्सूल के चारों ओर चक्कर लगाया, इससे पहले कि इसे रिकवरी पोत पर रखा जाता। रिकवरी टीम ने कैप्सूल के साइड हैच को सावधानी से खोला, जो सितंबर के बाद से पहली बार खुला था। अंतरिक्ष यात्रियों को कैप्सूल से बाहर निकाला गया और 45 दिनों के पुनर्वास कार्यक्रम के लिए ह्यूस्टन ले जाया गया। क्रू-9 की पृथ्वी पर वापसी में अपनी चुनौतियां थीं।

मूल रूप से, यह मिशन (जो बोइंग के स्टारलाइनर की पहली चालक दल वाली उड़ान होने वाला था) केवल आठ दिनों तक चलने वाला था। हालांकि, स्टारलाइनर कैप्सूल के साथ तकनीकी समस्याओं के कारण, विलियम्स और विलमोर अंतरिक्ष में फंस गए थे। स्टारलाइनर के प्रणोदन समस्याओं के चलते सितंबर में इसकी वापसी बिना चालक दल के हुई।

वापसी की अनिश्चितता के कारण, नासा ने अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेसएक्स के क्रू-9 मिशन में फिर से सौंप दिया। सितंबर में, स्पेसएक्स ने उन्हें वापस लाने के लिए एक ड्रैगन अंतरिक्ष यान भेजा, जिसमें चार के बजाय केवल दो चालक दल के सदस्य थे, ताकि फंसे हुए अंतरिक्ष यात्रियों को समायोजित किया जा सके। फाल्कन 9 रॉकेट पर ड्रैगन कैप्सूल को मिशन के लिए लॉन्च किया गया था। क्रू-10 ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर क्रू-9 की जगह ले ली है।

चुनाव आयोग का बड़ा फैसला, पैन कार्ड के बाद अब, वोटर आईडी भी होगा आधार से लिंक

नई दिल्ली: वोटर आईडी को आधार से लिंक करने के लिए चुनाव आयोग ने बड़ा फैसला लिया है। मंगलवार को हुई एक अहम बैठक में देश के निर्वाचन आयोग ने इन दोनों को आपस में जोड़ने की अनुमति दे दी है। आयोग ने साफ किया कि यह प्रक्रिया पूरी तरह संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत ही होगी।

चुनाव आयोग की ओर से बयान जारी कर कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 23(4), 23(5) और 23(6) के अनुसार ईपीआईसी को आधार से जोड़ा जाएगा। इससे पहले सरकार ने पैन कार्ड को आधार से जोड़ने का फैसला किया था। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि आधार कार्ड सिर्फ पहचान का प्रमाण है, नागरिकता का नहीं। इसलिए आधार से लिंक करने की प्रक्रिया यह सुनिश्चित करेगी कि सिर्फ भारतीय नागरिक ही मतदाता सूची में दर्ज हों। आयोग ने कहा, “संविधान के अनुसार, मतदान का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को ही मिल सकता है। आधार सिर्फ व्यक्ति की पहचान साबित करता है, उसकी नागरिकता नहीं। इसलिए इस प्रक्रिया को कानूनी दायरे में रखा जाएगा और सुप्रीम कोर्ट के सिविल के फैसले के अनुरूप आगे बढ़ाया जाएगा।” चुनाव आयोग और आधार कार्ड जारी करने वाली संस्था यूआईडीएआई के तकनीकी विशेषज्ञ जल्द ही इस पर काम शुरू करेंगे। इस पूरी प्रक्रिया को साइबर सुरक्षा और डेटा प्राइवेसी का ध्यान रखते हुए किया जाएगा, ताकि कोई भी नागरिकता से जुड़ा भ्रम न फैले।

दरअसल, चुनाव आयोग ने हाल ही में फैसला लिया था कि वो अगले तीन महीने के भीतर डुप्लिकेट नंबर वाले वोटर आईडी को नए EPIC नंबर जारी करेगा। चुनाव आयोग ने कहा थआ कि डुप्लिकेट नंबर होने का मतलब फर्जी वोटर नहीं है। आधार को EPIC से जोड़ने के पीछे का मुख्य उद्देश्य वोटर लिस्ट में गड़बड़ी को दूर करना और उसे साफ सुथरा बनाना है. चुनाव आयोग का मानना है कि इस कदम से फर्जी वोटरों की पहचान करने में मदद मिलेगी।

क्यों ख़त्म नहीं हो रहीं किसानों की समस्याएँ?

योगेश

हमारे कृषि प्रधान देश में किसानों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, जिसके कई कारण किसान-आत्महत्या के मामले बढ़ने के साथ-साथ बड़ी संख्या में वे खेती छोड़ते जा रहे हैं। केंद्र सरकार के वादे के मुताबिक सन् 2022 तक किसानों की आय भी दोगुनी नहीं हुई। स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों के हिसाब से फ़सलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य और इसके लिए गारंटी क़ानून भी वह नहीं बना रही है। फ़सलों की लागत बढ़ती जा रही है। कृषि यंत्रों, कीटनाशकों, बीजों, डीजल पर जीएसटी लग रही है और मंडी का आढ़त शुल्क, महँगी ढुलाई जैसे ख़र्चे अलग से हैं। अभी कृषि यंत्रों पर 28 प्रतिशत, कीटनाशक दवाओं पर 18 प्रतिशत, बीजों पर 12 प्रतिशत, डीजल पर सीधे जीएसटी तो नहीं है; लेकिन वैट और दूसरे कर लागू हैं। इससे किसानों की जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है, जो उन्हें क़र्ज़ में डुबोने के लिए काफ़ी है। नाबार्ड ने अपनी कुछ महीने पहले की रिपोर्ट में बताया था कि देश के 55.4 प्रतिशत किसान परिवार क़र्ज़ में डूबे हैं, जिनमें हर किसान परिवार पर औसतन 91,231 रुपये का क़र्ज़ है। 23.4 प्रतिशत किसान परिवार निजी कम्पनियों और लोगों के क़र्ज़ में दबे हैं।

31 जनवरी को संसद में केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक समीक्षा 2024-25 की रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि वित्त वर्ष 2024-25 में वास्तविक मूल्य वर्धन 6.4 प्रतिशत की दर से और कृषि क्षेत्र में 3.8 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी होने का अनुमान है। लेकिन किसान परिवारों की आर्थिक स्थिति और कृषि में कम होते जा रहे रोज़गार के अवसरों से लगता है कि सिर्फ़ कृषि क्षेत्र का बाज़ार लाभ में हैं, किसान नहीं। कृषि क्षेत्र में कम उत्पादन, किसानों की कम होती आय, किसानों की कृषि में अरुचि, महँगी होती कृषि, कृषि यंत्रों के ज़्यादा उपयोग और कृषि साधनों की कमी जैसे कारणों से कृषि क्षेत्र में रोज़गार घटते जा रहे हैं। वित्त वर्ष 2023-24 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया था कि कृषि क्षेत्र में घटते रोज़गारों की पूर्ति और ग़ैर-कृषि क्षेत्रों में हल वर्ष 78.5 लाख नौकरियाँ पैदा करने की ज़रूरत है और ये नौकरियाँ कम-से-कम 2030 तक देनी होंगी। आर्थिक सर्वेक्षण की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2024-25 तक कृषि क्षेत्र में पुरुषों की भागीदारी 3.9 प्रतिशत कम हुई है, जबकि महिलाओं की भागीदारी 7.5 प्रतिशत बड़ी है। लेकिन कृषि क्षेत्र की सर्वे रिपोर्ट ये कह रही हैं कि रोज़गार के मामले में कृषि क्षेत्र 46.2 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ अभी भी अग्रणी बना हुआ है।

इसके अलावा किसानों को उनकी फ़सलों का सही भाव नहीं मिलता, जिसकी माँग को लेकर पंजाब के किसान सड़कों पर हैं। उनका साथ देश भर के जागरूक किसान दे रहे हैं। किसानों के साथ केंद्र सरकार के प्रतिनिधि मंडल की बैठकें नाकाम रही हैं। भारतीय किसान यूनियन (एकता सिद्धूपुर – ग़ैर राजनीतिक) के किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल किसानों की माँगें पूरी न होने तक अनिश्चितकालीन अनशन पर हैं और उन्हें अनशन करते हुए 100 दिन से ज़्यादा हो गये हैं। उनका स्वास्थ अच्छा नहीं है उनकी शरीर बहुत कमज़ोर हो चुका है और पैरों में सूजन आ चुकी है। अब 19 मार्च को किसान नेताओं और केंद्र सरकार के प्रतिनिधि मंडल के बीच बातचीत होगी। इस बैठक के लिए किसान चंडीगढ़ के लिए कूच कर रहे हैं। किसान नेताओं ने कहा है कि अगर केंद्र सरकार इस बैठक में भी किसानों की माँगें नहीं मानेगी, तो वे दिल्ली जाएँगे। किसानों के चंडीगढ़ में जमा होने के पहले ही सरकार ने चंडीगढ़ में पुलिस की तैनाती बड़ा दी है। केंद्र सरकार ने हर बार किसानों पर बल प्रयोग करके उन्हें रोकने की कोशिश की है, जिसमें किसानों पर अत्याचार की सीमाएँ पार की गयी हैं।

2020 में तीन कृषि क़ानूनों के चलते शुरू हुआ किसान आन्दोलन से अब तक 800 के लगभग किसानों की मौत हो चुकी है। किसानों का कहना है कि उनके कई निर्दोष किसान साथियों की हत्या हुई है। केंद्र सरकार किसानों के साथ धोखा कर रही है और उनकी माँगों की अनदेखी करती जा रही है। किसानों ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान पर भी केंद्र सरकार के इशारों पर काम करने का आरोप लगाया है।

किसानों की फ़सलों का सही भाव न मिलने की स्थित यह है कि हर साल लाखों किसानों को उनकी फ़सलों को घाटे में बेचना पड़ता है। कई किसान घाटे से आहत होकर फ़सलों को खेत में ही नष्ट कर देते हैं। 2023 में सोलापुर ज़िले के बार्शी तालुका के गाँव कोरेगाँव के किसान राजेंद्र तुकाराम चव्हाण को भाड़ा और दूसरे कर काटकर पाँच कुंतल 12 किलो प्याज के मात्र दो रुपये 49 पैसे की ही रसीद मिली, जिसका किसान को दो रुपये का चेक मिला था। किसान राजेंद्र तुकाराम चव्हाण ने अपने दो एकड़ खेत में प्याज की फ़सल उगायी थी, जिसकी सबसे बाद की खेप के उसे दो रुपये ही मिले। किसान को दो रुपये का चेक कृषि आय बाज़ार समिति के व्यापारी सूर्या ट्रेडर्स ने दिया था और कहा था कि प्याज ख़राब थी। 2023 में प्याज का बाज़ार भाव 30 रुपये से 35 रुपये प्रति किलो था। 2022 में भी मध्य प्रदेश में एक किसान के तीन कुंतल प्याज के भी मंडी में दो रुपये ही मिले थे।

इस वर्ष कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश में इटावा ज़िले के चायत भरथना सरैया क्षेत्र के गाँव नगला हरलाल के किसान प्रभाकर सिंह शाक्य ने अपने खेत में खड़ी छ: बीघा गोभी की फ़सल में ट्रैक्टर चलवाकर उसे मिट्टी में मिला दिया, जिसका कारण गोभी का डेढ़ से दो रुपये किलो का मंडी भाव था। संपर्क करने पर किसान प्रभाकर सिंह शाक्य ने कहा कि उन्होंने तीन महीने की कड़ी मेहनत करके 56,000 रुपये की लागत लगाकर गोभी की फ़सल उगायी थी। अगर गोभी का चार-पाँच रुपये किलो का भाव मिलता, तो भी उनकी फ़सल ढाई से तीन लाख रुपये की होती। लेकिन डेढ़-दो रुपये किलो के भाव से एक लाख रुपये की भी फ़सल नहीं निकल पाती। उसमें कटाई, ढुलाई अलग देनी पड़ती। इस तरह उन्हें घाटा होता। इसलिए उन्होंने पहले अपने और आसपास के गाँवों के लोगों से मुफ्त में खेत से गोभी तोड़कर ले जाने को कहा और फिर बची हुई फ़सल में ट्रैक्टर चलवा दिया।

ख़राब मौसम और आपदा के कारण ख़राब होने वाली फ़सलों का बीमा भी किसानों को नहीं मिल पाता। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 01 फरवरी को बजट पेश करते हुए किसानों के लिए कई योजनाओं की घोषणा की, जिनमें फ़सल बीमा को लेकर उन्होंने कहा कि हवा, आँधी, ओलावृष्टि, कीट-पतंगों से नष्ट फ़सलों के नुक़सान की भरपाई के लिए किसानों को प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना के तहत पूरा पैसा मिलेगा। लेकिन किसानों की शिकायत रहती है कि उन्हें फ़सल बीमा ही नहीं मिलता। जिन किसानों को फ़सल बीमा मिलता है, उनकी शिकायत रहती है कि फ़सल बीमा बहुत कम मिलता है। कई राज्यों के किसान फ़सल ख़राब होने पर बीमा न मिलने के लिए संघर्ष भी करते रहते हैं, फिर भी उन्हें फ़सलों के नुक़सान की उचित राशि नहीं मिल पाती।

किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य देने, इस हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य का गारंटी क़ानून बनाने और किसानों की दूसरी माँगें पूरी करने का फ़ैसला केंद्र सरकार कब लेगी, इसका कोई अता-पता नहीं है। केंद्र सरकार इस बारे में किसानों को आश्वासन देती रहती है। लेकिन उसकी टालमटोल और किसानों के प्रति उसका व्यवहार उसके इरादों को साफ़ दर्शाते हैं। किसानों के शान्ति से आन्दोलन करने को केंद्र सरकार उनकी कमज़ोरी समझ रही है। किसान नेताओं ने कहा है कि वे केंद्र सरकार से माँग कर रहे हैं कि किसानों की माँगों को उसे मान लेना चाहिए, नहीं तो एक और देशव्यापी आन्दोलन होगा, जिसकी ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की होगी। सुप्रीम कोर्ट के द्वारा गठित समिति अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुँची है। उसने भी किसानों के मामले को गंभीरता से नहीं लिया है। सुप्रीम कोर्ट को किसानों की माँगों को अनसुना करने को लेकर केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करना चाहिए। हालाँकि इसमें समस्या उन किसानों की है, जो केंद्र सरकार से कोई शिकायत नहीं रखते। ऐसे किसानों में दो तरह के किसान हैं। एक वे, जो भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को पसंद करते हैं और दूसरे वे, जो किसानों की समस्याओं को लेकर जागरूक ही नहीं हैं। ये किसान अपनी दुर्दशा को अपना भाग्य मानते हैं। किसानों में इसी कारण एकता नहीं है और किसान आन्दोलन मज़बूत नहीं हो पा रहा है।

अगर पूरे देश के किसान एकजुट होकर अपनी माँगों को सरकार के सामने रखने के लिए आगे आएँ, तो केंद्र सरकार को झुकना ही पड़ेगा। अपने क्षेत्र के कई किसानों से किसान आन्दोलन और किसानों की माँगों के बारे में बात करने पर ज़्यादातर किसान इनसे कोई मतलब नहीं रखने वाले ही मिले। उन्हें सरकार से अपनी-अपनी छोटी-छोटी शिकायतें ही हैं। किसान नेताओं को अगर किसान आन्दोलन को बड़ा करना है, तो गाँवों के किसानों को जगाना पड़ेगा। इसके लिए महेंद्र सिंह टिकैत जैसे किसान नेता का होना ज़रूरी है। लेकिन इस समय के किसान नेताओं में ऐसा एक भी किसान नेता नहीं है।

ट्रम्प के आगे झुकना ठीक नहीं

आपने देखा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की को किस तरह जलील किया। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी उनका व्यवहार वैसा नहीं था, जैसा एक राजा का दूसरे राजा के साथ होना चाहिए। ज़ेलेंस्की ने तो फिर भी प्रतिरोध की भाषा इस्तेमाल की थी; मोदी सिर्फ़ हँसते रहे। हो सकता है यह उनका कूटनीतिक अंदाज़ हो। या फिर हो सकता है कि वह अपने डिअर फ्रेंड ट्रम्प को नाराज़ नहीं करना चाहते हों। ट्रम्प दुनिया भर के देशों पर टैरिफ में कटौती को लेकर दबाव बना रहे हैं; भारत पर भी बना रहे थे। कनाडा और मैक्सिको ने ट्रम्प के दबाव के आगे झुकने से मना कर दिया। दो दिन बाद ही ट्रम्प ने कनाडा और मेक्सिको पर लगाये गये नये टैरिफ से कई उत्पादों को छूट देने का फ़ैसला कर लिया। लेकिन इसी दौरान ट्रम्प ने ख़ुलासा किया कि भारत टैरिफ में कमी करने के लिए तैयार हो गया है। ट्रम्प ने अपमानजनक भाषा में कहा- ‘क्योंकि आख़िरकार कोई उनके (भारत के) किये की पोल खोल रहा है।’ ट्रम्प ने जब यह ख़ुलासा किया, तब तक भारत ने आधिकारिक रूप से इस विषय पर चुप्पी साधे रखी थी। तो क्या प्रधानमंत्री मोदी अपने मित्र के दबाव के आगे झुक गये हैं?

जब यह सारी क़वायद चली हुई थी, उस दौरान भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर अमेरिका में ही थे। अमेरिका की भाषा उस दौरान भी किसी तरह मित्र वाली नहीं थी। अमेरिका एक तरह से हाँकने वाली भाषा इस्तेमाल कर रहा है। भारत ने ख़ुद को इस स्थिति में क्यों पहुँचा दिया? इसका बेहतर जवाब तो मोदी सरकार ही दे सकती है। पूर्व के प्रधानमंत्री नेहरू, इंदिरा गाँधी और यहाँ तक कि वाजपेयी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भाषा को लेकर बेहद संवेदनशील रहे हैं और उन्होंने ऐसा होने पर साफ़ शब्दों में प्रतिवाद करने या अपनी नाराज़गी जताने में कभी हिचक नहीं दिखायी थी। लेकिन दुनिया में भारत के इस डंका-काल में यह सब होना हैरानी भरा है और मोदी सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाता है।

भारत की अमेरिका के साथ व्यापार हिस्सेदारी समय के साथ बढ़ी है। मोदी-काल की ही बात की जाए, तो इन 11 वर्षों में फार्मा, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल आदि में बेहतर निर्यात के चलते अमेरिका के साथ भारत का माल व्यापार बढ़ते बढ़ते 35 अरब डॉलर तक पहुँच गया है। भारत अमेरिका से पेट्रोलियम  पदार्थ, कच्चा तेल, मोती, क़ीमती पत्थर, मशीनरी, विमान के पुर्जे और सैन्य उपकरण आयात करता है। ट्रम्प ने धमकी दी थी कि यदि ब्रिक्स देश अमेरिकी डॉलर को कमज़ोर करते हैं, तो वह भारत समेत उन पर 150 फ़ीसदी टैरिफ लगा देंगे। अब इन टैरिफ शर्तों के चलते निश्चित ही भारत का व्यापार प्रभावित होगा। ट्रम्प ने 08 मार्च को जब मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि भारत उन (अमेरिका) से भारी टैरिफ वसूलता है, तो आप भारत में कुछ भी नहीं बेच सकते।

प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के बाद कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि भारत सरकार अमेरिका से आयात किये जाने वाले प्रमुख सामानों पर टैरिफ में कटौती करने पर विचार कर रही है। ट्रम्प ने अमेरिकी कांग्रेस के साझे सत्र में अपने भाषण में भी भारत के आयात शुल्क को निशाने पर रखा था। ट्रम्प ने कहा था कि भारत हमसे 100 फ़ीसदी से ज़्यादा ऑटो टैरिफ वसूलता है। फरवरी में ट्रम्प ने कनाडा और मैक्सिको से आयात पर भी 25 फ़ीसदी और चीन से आने वाले सामानों पर 10 फ़ीसदी अतिरिक्त टैरिफ की घोषणा की थी।

याद रहे भारत अमेरिका के साथ रेसिप्रोकल टैरिफ की जगह द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) पर ज़ोर दे रहा है। भारत के साथ इस कड़ाई के बीच ट्रम्प कनाडा और मेक्सिको पर लगाये गये नये टैरिफ से कई उत्पादों को छूट देने का फ़ैसला कर चुके हैं। सिर्फ़ दो दिन में ट्रम्प ने अपने दो सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों पर लगाये गये आयात करों को दूसरी बार वापस लिया।

चूँकि ट्रम्प ने 02 अप्रैल से पारस्परिक टैरिफ लगाने की घोषणा की है, इसलिए भारत को लेकर उनके दावे के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका के सामानों पर भारत टैक्स की क्या सीमा तय करता है। सम्भावना है कि यह कटौती व्यापक स्तर पर हो सकती है। अमेरिका के वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने हाल में कहा था कि व्हिस्की और हार्ले डेविडसन बाइक जैसे कुछ विशेष उत्पादों पर टैरिफ कम करने से काम नहीं चलेगा, बल्कि भारत को बड़े स्तर पर टैरिफ में कटौती करनी होगी। उन्होंने भारतीय बाज़ार में कृषि उत्पादों को लेकर व्यापारिक खुलापन लाने को भी बहुत ज़रूरी बताया था। ज़ाहिर है भारत जैसे बड़े बाज़ार में अमेरिका अपनी सुविधा के नियम चाहता है। दिलचस्प यह है कि प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के बाद से ही भारत की ऑटो पार्ट्स, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, ज्वेलरी, कपड़े बनाने वाली कम्पनियाँ अपने अमेरिकी व्यापारिक साझेदारों के साथ अपने व्यापारिक जोखिम कम करने की रणनीति बनाने में जुट गये थे।

ट्रम्प की इस चाल से निश्चित ही भारतीय उद्योग प्रभावित होंगे। जब अमेरिकी उत्पादों पर आयात कर (टैरिफ) घटेगा, तो वो उत्पाद भारत में सस्ते मिलेंगे। उपभोक्ताओं का तो इसमें लाभ होगा; लेकिन ख़राब असर भारतीय उद्योगों पर पड़ेगा। इलेक्ट्रॉनिक सहित जिन अमेरिकी उत्पादों का मूल्य कम होगा, उनमें भारतीय कम्पनियों के लिए न सिर्फ़ प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी, बल्कि कई कम्पनियों के सामने अस्तित्व का संकट भी खड़ा हो सकता है। भारतीय उपभोक्ताओं की कमज़ोरी हमेशा से विदेशी उत्पाद रहे हैं। वे इसे स्टेटस सिम्बल से जोड़कर देखते हैं। ऐसे में जब कोई विदेशी उत्पाद कम्पीटीटिव क़ीमत पर उपलब्ध होगा, तो निश्चित ही देश के उपभोक्ताओं की प्राथमिकता अमेरिकी उत्पाद होंगे।

भारत में विदेशी बॉन्ड्स को बढ़त मिलने से मेक इन इंडिया की नीति भी कमज़ोर पड़ जाएगी। जब ऑटो पार्ट्स की क़ीमत नीचे जाती है, तो इसका सीधा और ख़राब असर भारतीय ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग कम्पनियों पर पड़ेगा। उनको नुक़सान हो सकता है। भारत की फार्मा सेक्टर और डेयरी इंडस्ट्री पर भी इसका व्यापक दबाव बनेगा। इसके लिए भारत सरकार को नियमों में बहुत बेहतर संतुलन बनाना होगा। ज़ाहिर है वर्तमान हालत यह संकेत कर रहे हैं कि आने वाले दिनों में भारत-अमेरिका के बीच संशोधित या नया व्यापार समझौता ड्राफ्ट बनेगा। अमेरिका से आने वाले कुछ ख़ास सामानों पर आयात शुल्क कम होने की स्थिति में भारतीय कम्पनियों को उन्हें सस्ता करना होगा। इससे उपभोक्ताओं को तो सस्ती क़ीमत पर कुछ वस्तुएँ मिलेंगी; लेकिन इससे कई भारतीय सेक्टर्स को घाटा हो सकता है। दरअसल पूर्व सरकार के समय उच्च टैरिफ लगाने की ख़ास वजह ही यही थी कि भारतीय कम्पनियाँ फले-फूलें।

अमेरिका पहले से ही भारत की इस नीति का विरोधी रहा है और वह अमेरिकी उत्पादों पर ज़्यादा आयात शुल्क का विरोध करता रहा है। निश्चित ही मोदी सरकार पर दबाव रहेगा कि वह ऐसा रास्ता निकाले, जिससे भारतीय उत्पादों पर संकट न आये। यह इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि मेक इन इंडिया के सबसे बड़े समर्थक ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी रहे हैं। लेकिन यदि इस नीति में सरकार अमेरिकी हितों के आगे समर्पण करती है, तो भारतीय कम्पनियाँ निश्चित ही संकट में घिर जाएँगी।

प्रधानमंत्री मोदी ट्रम्प को दोस्त कहते हैं। हाल ही में जब वह अमेरिका के दौरे पर गये थे, तो ट्रम्प के सामने आते ही वह हेलो फ्रेंड कहते हुए ट्रम्प के गले जा लगे थे। यह अलग बात है कि ट्रम्प ने मोदी के स्वागत के लिए गेट पर ख़ुद न जाकर अपनी एक महिला अधिकारी को भेजा था। बचपन के मित्र सुदामा जब कृष्ण के महल में उनसे मिलने गये थे, तो कृष्ण न सिर्फ़ उनका स्वागत करने आगे आये थे, बल्कि उनके लाये चावल भी प्रेम से उन्होंने खाये थे। कहने का अर्थ यह है कि मित्रता में कोई बड़ा-छोटा नहीं होता। लेकिन याद रखना होगा कि ट्रम्प कृष्ण नहीं हैं। राष्ट्रपति होते हुए भी वह शुद्ध रूप से एक व्यापारी हैं। ट्रम्प सिर्फ़ अमेरिका का हित देखते हैं। प्रधानमंत्री मोदी को भी भारत का हित देखते हुए कुछ अनोखा करना होगा, अन्यथा उनकी छवि ताक़तवर राष्ट्र के सामने झुकने वाले नेता की बनते देर नहीं लगेगी।

अप्रवासी भारतीयों को जितने अपमानजनक तरीक़े से बेड़ियों में बाँधकर अमेरिका ने भारत भेजा था, उसके ज़$ख्म अभी तक गहरे हैं। ऐसे में मोदी सरकार के अमेरिका के सामने झुकने और ट्रम्प के दबाव में आने की चर्चाओं ने भारतीय अस्मिता पर चोट पहुँचायी है। सन् 1971 के युद्ध में जब अमेरिका ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी पर सातवें बेड़े को लेकर दबाव बनाने की कोशिश की थी, तो इंदिरा गाँधी ने देश की अस्मिता को सर्वोपरि रखते हुए दबाव के आगे झुकने से मना कर दिया था। कुछ वैसा ही जिगरा अब दिखाने की ज़रूरत है। कनाडा और मेक्सिको ही नहीं, यूरोप भी ट्रम्प की दादागीरी के सामने समर्पण न करने की हिम्मत दिखा चुके हैं। चीन ने तो यह चुनौती ही दे दी कि अमेरिका (ट्रम्प) युद्ध लड़ना चाहता है, तो लड़कर देख ले। मोदी सरकार को भी भारत की असली ताक़त दिखानी होगी; क्योंकि इतिहास में वही याद किया जाता है, जो देशहित से समझौता नहीं होने देता।

पंजाब में अभी दख़ल नहीं देगी भाजपा

पंजाब में विपक्ष के नेता एवं वरिष्ठ कांग्रेसी प्रताप सिंह बाजवा भले ही यह बयान दे रहे हों कि आम आदमी पार्टी के 32 से ज़्यादा विधायक उनके संपर्क में हैं और कुछ अन्य भाजपा के संपर्क में भी हो सकते हैं, भाजपा के कुछ राज्य नेता भी आप सरकार को हिलाने के लिए उत्सुक हो सकते हैं; लेकिन बताया जा रहा है कि भाजपा नेतृत्व आम आदमी पार्टी की गाड़ी को इतनी जल्दी पटरी से उतारने के लिए तैयार नहीं है।

विधानसभा में आप के पास 117 में से 95 विधायकों के साथ पूर्ण बहुमत है। दूसरी बात यह कि भाजपा कुछ साल पहले ही अकाली दल की छाया से बाहर आयी है और कांग्रेस तथा अन्य दलों से प्रतिभाओं को आकर्षित कर रही है। अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल पहले ही अपने साले बिक्रमजीत सिंह मजीठिया के साथ टकराव की राह पर हैं, जो ईडी की जाँच का सामना कर रहे हैं।

भाजपा एक मज़बूत जाट सिख नेता की तलाश में है, जो पार्टी के पारंपरिक हिंदू वोट बैंक को भी अपने साथ जोड़ सके। भाजपा चाहती है कि भगवंत सिंह मान आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की छाया से बाहर आएँ, जो दिल्ली के बाद अब पंजाब पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। लेकिन मान के छाया से बाहर आने की संभावना कम है; क्योंकि आम आदमी पार्टी की दिल्ली टीम के पास विभिन्न समितियों के माध्यम से प्रशासन पर मज़बूत पकड़ है। भाजपा सीमावर्ती राज्य पंजाब में विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त को बढ़ावा नहीं देना चाहती और वह चाहती है कि कांग्रेस यह काम करे। भाजपा केंद्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू और अन्य दलों के नेताओं से मिलकर बने नये नेतृत्व पर भरोसा कर रही है।

मोदी और शाह के सुर अलग क्यों?

यह कोई छिपा राज नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वरिष्ठ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता शरद पवार के साथ मधुर सम्बन्ध हैं और वे पार्टी के लोगों की असहजता के बावजूद सार्वजनिक रूप से उनकी प्रशंसा करते रहे हैं। यहाँ तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का नेतृत्व भी इस रुख़ से असहज है। शरद पवार के किसी भी निमंत्रण को मोदी सहर्ष स्वीकार करते हैं और यहाँ तक कि उनकी प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि जब पवार कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री थे, तब उनका (मोदी का) मार्गदर्शन कैसे किया।

लेकिन हाल ही में एक नया चलन सामने आया है और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शरद पवार के ख़िलाफ़ सार्वजनिक बयानबाज़ी शुरू कर दी। शाह ने पवार के लिए भटकती आत्मा और विश्वासघाती जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। शाह का ग़ुस्सा तबसे शुरू हुआ, जबसे पवार ने प्रधानमंत्री से मुलाक़ात कर उन्हें अनार भेंट किये; जिससे राकांपा के दोनों गुटों के एक साथ आने की चर्चा शुरू हो गयी। इससे महाराष्ट्र में महायुति में भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी और किसी के लिए इस भ्रम को तोड़ना ज़रूरी हो गया था। शाह के इस शाब्दिक हमले को पवार द्वारा सन् 1978 में महाराष्ट्र में वसंतदादा पाटिल के नेतृत्व वाली सरकार से 40 विधायकों के साथ बाहर निकालने और फिर मुख्यमंत्री बनने के संदर्भ में देखा जा रहा है। शाह ने पवार पर धोखा और विश्वासघात की राजनीति के जनक होने का आरोप लगाया।

शरद पवार ने अमित शाह पर पलटवार किया और उन पर गृह मंत्री के पद की मर्यादा न बनाये रखने का आरोप लगाया तथा उन्हें तड़ीपार कह दिया, जिसमें उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गुजरात के मामले में आदेश का ज़िक्र भी किया। बाद में शाह ने यूपीए के तहत देश के कृषि मंत्री के रूप में पवार को बेकार क़रार देते हुए उन पर फिर से हमला किया। भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अमित शाह का पवार पर शाब्दिक हमला संदेश देने की एक अच्छी तरह से तैयार की गयी रणनीति का हिस्सा है कि जब महाराष्ट्र के मामलों की बात आती है, तो भाजपा का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। इन दिनों संसद में दोनों एक-दूसरे से फूटी आँख नहीं सुहाते।