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पाकिस्तान में आतंकवादी ठिकानों पर भारत का हमला, एलओसी पर तनाव तेज

भारतीय सशस्त्र बलों ने बुधवार तड़के पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में आतंकवादी ठिकानों पर लक्षित सैन्य हमले किए। यह कार्रवाई पिछले महीने पहलगाम आतंकी हमले में 26 नागरिकों की मौत के जवाब में की गई। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नामक इस अभियान में जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) और लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के मुख्यालय समेत नौ प्रमुख ठिकानों को निशाना बनाया गया।

ऑपरेशन सिंदूरके तहत नौ ठिकाने ध्वस्त

भारतीय सेना ने तड़के करीब 1:45 बजे जारी बयान में कहा:

“कुछ समय पहले भारतीय सशस्त्र बलों ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पीओके में उन आतंकवादी ठिकानों पर हमले किए, जहां से भारत के खिलाफ हमलों की योजना बनाई और उन्हें अंजाम दिया जाता रहा है।”

सेना ने जोर देकर कहा कि ये हमले “केंद्रित, मापित और गैर-उत्तेजक” थे और किसी भी पाकिस्तानी सैन्य ठिकाने को निशाना नहीं बनाया गया। यह कार्रवाई पहलगाम नरसंहार के दो सप्ताह बाद हुई है, जिसमें 25 भारतीय पर्यटकों और एक नेपाली नागरिक की जान गई थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 29 अप्रैल को हुई उच्च स्तरीय बैठक में सशस्त्र बलों को जवाबी कार्रवाई के तरीके, लक्ष्य और समय तय करने के लिए पूरी छूट दी थी।

पाकिस्तानी गोलीबारी में नागरिक घायल

भारत के हमलों के कुछ ही घंटों बाद पाकिस्तानी बलों ने जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर भारी मोर्टार गोला-बारी शुरू कर दी। अधिकारियों ने बताया कि पूंछ और राजौरी जिलों तथा उत्तर कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के करनाह सेक्टर में जबरदस्त गोलीबारी हुई।

मनकोट गांव में एक महिला और उसकी बेटी घायल हो गईं जब उनके घर पर मोर्टार के गोले गिरे। इनमें से एक की हालत गंभीर है और दोनों को अस्पताल ले जाया जा रहा है। अधिकारियों ने बताया कि गोलाबारी के चलते लोगों को भूमिगत बंकरों में शरण लेनी पड़ी।

भारतीय सेना ने भी जवाबी कार्रवाई की और कई जगहों पर दोनों तरफ से गोलीबारी जारी रही।

उरी में गोला-बारी में 9 नागरिक घायल, जिनमें 3 बच्चे शामिल

मंगलवार और बुधवार की दरम्यानी रात उरी सेक्टर में पाकिस्तानी बलों की भारी गोला-बारी में कम से कम नौ नागरिक घायल हो गए, जिनमें तीन बच्चे भी शामिल हैं। कई घरों को नुकसान पहुंचा है, अधिकारियों और स्थानीय लोगों ने बताया।

दो जिलों में स्कूल-कॉलेज बंद

एहतियात के तौर पर प्रशासन ने बारामुला, कुपवाड़ा और गुरेज़ के सभी स्कूलों और कॉलेजों को आज के लिए बंद रखने का आदेश दिया। डिविजनल कमिश्नर कश्मीर विजय कुमार बिधूड़ी ने लोगों से सतर्क लेकिन शांत रहने और आधिकारिक सलाह का पालन करने की अपील की।

तनाव चरम पर

यह ताजा तनाव उस समय सामने आया है जब भारत ने पहलगाम हमले के बाद सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया था। इसके बाद से पाकिस्तानी सेना ने कई बार एलओसी पर संघर्ष विराम का उल्लंघन किया है, जो कुपवाड़ा और बारामुला से लेकर जम्मू क्षेत्र के पूंछ और राजौरी तक फैला हुआ है।

यह संघर्ष विराम उल्लंघन दोनों देशों के सैन्य संचालन महानिदेशकों (डीजीएमओ) के बीच हाल ही में हुई हॉटलाइन वार्ता के बावजूद हो रहे हैं।

इस बीच, रामबन के पंथियाल उप-मंडल में एक जोरदार विस्फोट की भी खबर आई है, हालांकि इसका कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है।


सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों को मिलेगा मुफ्त इलाज, देश भर में कैशलेस ट्रीटमेंट स्कीम लागू

सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों को तत्काल और मुफ्त इलाज सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने देश भर में कैशलेस ट्रीटमेंट स्कीम (नकद रहित इलाज योजना) लागू कर दी है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी गजट अधिसूचना के अनुसार, यह महत्वपूर्ण योजना 5 मई, 2025 से प्रभावी हो गई है।

इस योजना के तहत, मोटर वाहन दुर्घटना में घायल हुए किसी भी व्यक्ति को प्रति हादसा अधिकतम 1.5 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज मिल सकेगा। मंत्रालय की अधिसूचना के मुताबिक, सड़क हादसे के शिकार व्यक्ति को देश के किसी भी हिस्से में, सरकारी या योजना के लिए नामित निजी अस्पतालों में इलाज की सुविधा मुफ्त मिलेगी।

योजना के प्रावधानों के अनुसार, पीड़ित व्यक्ति को दुर्घटना की तारीख से अगले सात दिनों तक, अधिकतम 1,50,000 रुपये तक का कैशलेस इलाज प्रदान किया जाएगा। हालांकि, यह सुविधा केवल उन्हीं अस्पतालों में पूरी तरह लागू होगी जिन्हें सरकार ने इस योजना के लिए “नामित” किया है।

यदि किसी आपात स्थिति में पीड़ित को नामित अस्पताल उपलब्ध नहीं हो पाता है और इलाज किसी अन्य अस्पताल में कराना पड़ता है, तो उस स्थिति में उस अस्पताल में केवल घायल व्यक्ति की स्थिति को स्थिर करने (स्टेबलाइजेशन) तक का खर्च ही इस योजना के तहत कवर किया जाएगा। इस संबंध में विस्तृत गाइडलाइंस अलग से जारी की गई हैं।

इस योजना के प्रभावी क्रियान्वयन की जिम्मेदारी नेशनल हेल्थ अथॉरिटी (NHA) को सौंपी गई है। NHA पुलिस, अस्पतालों और राज्य स्तरीय स्वास्थ्य एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित कर यह सुनिश्चित करेगी कि योजना का लाभ पात्र व्यक्तियों तक पहुंचे।

प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में स्टेट रोड सेफ्टी काउंसिल को इस योजना के लिए नोडल एजेंसी बनाया गया है। यह काउंसिल योजना के सही ढंग से लागू होने, अस्पतालों को योजना से जोड़ने, पीड़ितों के इलाज और भुगतान प्रक्रिया की निगरानी करेगी। इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार योजना की प्रभावी निगरानी और संचालन सुनिश्चित करने के लिए एक स्टीयरिंग कमेटी (निगरानी समिति) का भी गठन करेगी।

गौरतलब है कि इस योजना को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने से पहले, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने 14 मार्च 2024 को इसका एक पायलट प्रोग्राम शुरू किया था, जिससे मिले अनुभव के आधार पर अब इसे पूरे देश में लागू किया गया है। इस कदम से सड़क दुर्घटनाओं में घायलों को समय पर और आर्थिक चिंता के बिना इलाज मिलने की उम्मीद है।

होम डिलीवरी सर्विसेज और ऑनलाइन मार्केट्स: एक नई क्रांति

बृज खंडेलवाल द्वारा

ऑनलाइन डिलीवरी सेवाओं का तेज़ी से बढ़ता चलन आज के डिजिटल युग की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। दर्जनों प्लेटफॉर्म और ऐप-आधारित सेवाओं ने बाज़ार को लोकतांत्रिक बना दिया है, जिससे उत्पादक सीधे उपभोक्ताओं तक पहुँच पा रहे हैं। यह बदलाव निश्चित रूप से पारंपरिक बाज़ारों की रौनक को कम कर सकता है, लेकिन इसके कई सकारात्मक पहलू भी हैं।

सीनियर सिटीजन पद्मिनी अय्यर कहती हैं, ” साग सब्जी, फल, दूध बगैरा लेने भीड़ भरे बेलनगंज मार्केट में जाती थी, कई बार रिक्शा नहीं मिलता था, पैदल सामान लाते  टाइम बंदर हमला कर देते थे, अब इतना आराम हो गया, सेम रेट, पूरा वजन, अच्छी क्वालिटी सिर्फ दस पंद्रह मिनिटों में घर बैठे मिल रहा है, कई बार ब्लिंकिट की सर्विस इतनी फास्ट होती है, कि लगता है बंदा बाहर गेट पर ही बैठा है क्या।”

होम मेकर्स अब घर के सदस्यों पर निर्भर नहीं हैं। चुटकियों में फ्रेश, ब्रांडेड प्रोडक्ट्स होम सप्लाई हो रहे हैं। बिग बास्केट के युवा डिलीवरी पार्टनर रोहित ने बताया कि हर महीने २५ से ३० हजार कमा लेता है। हमारे गुप्ताजी कहते हैं कि एक गया, दूसरा आया हमारे अपार्टमेंट complex में। कभी फ्लिपकार्ट, कभी अमेजन, या फिर ब्लिंकिट या जोमैटो वाला रात बारह बजे तक यही क्रम चलता है। “एक रोज देर शाम दिल्ली से लौटा था, मूड बन रहा था मगर केमिस्ट की दुकान से खरीदना भूल गया, थोड़ा मायूस हुआ पर पत्नी जी ने ब्लिंकिट से मंगाने का सुझाव दिया, काम बन गया,” भटनागर जी ने बताया।

सबसे महत्वपूर्ण लाभों में से एक है ट्रैफिक जाम, प्रदूषण और समय की बर्बादी में कमी। लोग अब घर बैठे ही अपनी ज़रूरत की चीज़ें मंगवा सकते हैं, जिससे सड़कों पर वाहनों का दबाव कम होता है। इसके अतिरिक्त, यह क्षेत्र कम पढ़े-लिखे युवाओं और लड़कियों के लिए अतिरिक्त आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है, जो डिलीवरी पार्टनर के रूप में पार्ट-टाइम काम करके अपनी जीविका चला रहे हैं।

नवीनतम रुझानों की बात करें, तो अब डिलीवरी सेवाएं केवल भोजन और किराने के सामान तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि दवाइयाँ, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य आवश्यक वस्तुएं भी ऑनलाइन उपलब्ध हैं। ड्रोन डिलीवरी और इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग जैसी तकनीकें इस क्षेत्र को और अधिक कुशल और पर्यावरण के अनुकूल बना रही हैं। आने वाले समय में, हम इस क्षेत्र में और भी नवाचार और विकास देखने की उम्मीद कर सकते हैं।

भारत में होम डिलीवरी सर्विसेज और ऑनलाइन मार्केट्स ने पिछले एक दशक में उपभोक्ता व्यवहार और अर्थव्यवस्था को नया आकार दिया है। अमेजन, फ्लिपकार्ट, ब्लिंकिट, और इंस्टामार्ट जैसे प्लेटफॉर्म्स ने सब्जी, फल, दूध से लेकर सेक्स टॉयज और कंडोम तक, लगभग हर चीज को घर तक पहुंचा दिया है। शराब को छोड़कर, शायद ही कोई उत्पाद बचा हो जो ऑनलाइन उपलब्ध न हो। यह नई व्यवस्था सुविधा और गति का प्रतीक बन चुकी है, लेकिन इसके साथ ही पारंपरिक किराना दुकानों, कॉर्नर शॉप्स, और मंडी सिस्टम पर गहरा प्रभाव पड़ा है।

होम डिलीवरी सर्विसेज का सबसे बड़ा लाभ है सुविधा। उपभोक्ता 24/7, कहीं से भी खरीदारी कर सकते हैं, जो व्यस्त जीवनशैली वालों के लिए वरदान है। विशेष रूप से सीनियर सिटीजन्स को घर बैठे आवश्यक वस्तुओं की डिलीवरी से बहुत राहत मिली है। ई-कॉमर्स की बदौलत उत्पादों की व्यापक रेंज उपलब्ध है, जो पारंपरिक दुकानों में संभव नहीं। 

आर्थिक दृष्टिकोण से, इन सेवाओं ने गिग इकॉनमी को बढ़ावा दिया है। भारत में लगभग 10-12 करोड़ गिग वर्कर्स हैं, जो फूड डिलीवरी, ई-कॉमर्स, और लॉजिस्टिक्स से जुड़े हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक गिग वर्कर्स कुल श्रम बल का 4.1% (लगभग 23.5 करोड़) होंगे। ये प्लेटफॉर्म्स डेटा एनालिटिक्स का उपयोग कर उपभोक्ता व्यवहार को समझते हैं, जिससे बेहतर मार्केटिंग और मूल्य निर्धारण संभव होता है। जीएसटी संग्रह भी ऑल-टाइम हाई पर है, क्योंकि ऑनलाइन लेनदेन पारदर्शी हैं, जो सरकार के लिए फायदेमंद है।नुकसान: पारंपरिक बाजारों पर संकट और सामाजिक प्रभाव

हालांकि, यह व्यवस्था पारंपरिक किराना दुकानों और मंडी सिस्टम को ध्वस्त कर रही है। एक सर्वे के अनुसार, 46% शहरी उपभोक्ताओं ने किराना दुकानों से खरीदारी कम कर दी है, जिससे छोटे व्यापारियों को नुकसान और कर्मचारियों की छंटनी हुई है। मंडियों में भी किसानों को कम कीमत मिल रही है, क्योंकि बड़े प्लेटफॉर्म्स सीधे उत्पादकों से सौदा करते हैं। गिग वर्कर्स को भी चुनौतियां हैं—कम वेतन, सामाजिक सुरक्षा की कमी, और अनिश्चित कार्य घंटे। 

सामाजिक स्तर पर, नौजवानों में आलस्य की शिकायत बढ़ रही है। त्वरित डिलीवरी की आदत ने लोगों को बाहर जाने और सामुदायिक संपर्क से दूर किया है। इसके अलावा, लुभावनी स्कीम्स जैसे भारी डिस्काउंट और कैशबैक उपभोक्ताओं को अनावश्यक खरीदारी के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे वित्तीय अनुशासन प्रभावित होता है।आर्थिक प्रभाव और रोजगार सृजन

ई-कॉमर्स सेक्टर ने भारत में 2024 में लगभग 15 लाख प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित किए। गिग वर्कर्स के अलावा, लॉजिस्टिक्स, वेयरहाउसिंग, और टेक्नोलॉजी सेक्टर में भी नौकरियां बढ़ी हैं। उदाहरण के लिए, अमेजन और फ्लिपकार्ट ने लाखों MSMEs को अपने प्लेटफॉर्म्स से जोड़ा, जिससे छोटे व्यवसायों को वैश्विक पहुंच मिली। हालांकि, पारंपरिक रिटेल में रोजगार हानि इसकी एक कड़वी सच्चाई है।लॉन्ग रन प्रभाव और भविष्य का परिदृश्य

लंबे समय में, यह व्यवस्था उपभोक्ता-केंद्रित अर्थव्यवस्था को और मजबूत करेगी, लेकिन छोटे व्यापारियों के लिए चुनौतियां बढ़ेंगी। सरकार का रुख सकारात्मक है, क्योंकि जीएसटी और डिजिटल लेनदेन से राजस्व बढ़ रहा है। हालांकि, गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएं लागू करना जरूरी है, जैसा कि राजस्थान ने 2023 में शुरू किया। 

2025 में पारंपरिक मार्केट्स दिक्कत में हैं, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होंगे। स्थानीय किराना दुकानें ताजा उत्पादों और व्यक्तिगत सेवा के दम पर टिक सकती हैं। भविष्य में, हाइब्रिड मॉडल्स (ऑनलाइन-ऑफलाइन एकीकरण) और स्मार्ट लॉजिस्टिक्स इस सेक्टर को और बदल सकते हैं।

आतंकवाद के कितने चेहरे!

पिछले 11 वर्षों से देश में कुछ लोग बड़ी आसानी से जिसे मज़ीर् देशद्रोही कह दे रहे हैं। यह तमग़ा ज़्यादातर एकता तथा भाईचारे की बात करने वाले समन्यववादियों, सरकार और प्रधानमंत्री से सवाल करने वालों, उनका विरोध करने वालों को मिलना आम बात हो चुकी है। हालाँकि अब इसकी प्रतिक्रिया होने लगी है और ऐसे लोगों को भी लोग अंधभक्त, देशद्रोही, ग़द्दार और न जाने क्या-क्या कहने लगे हैं। लेकिन असल में देशद्रोही कौन-कौन हैं? वे किस-किस रूप में हर जगह मौज़ूद हैं? इसकी पहचान होनी ही चाहिए।

इन दिनों देश भर में तरह-तरह की विद्रूप घटनाएँ हर मिनट घट रही हैं। कुछ लोग ख़तरनाक हथियार लेकर अपने से अलग धर्म और अलग जाति के लोगों की खुलेआम हत्या कर रहे हैं। बेरहमी से उनकी पिटाई कर रहे हैं। इन लोगों को क्या कहा जाएगा? क्या ऐसे लोग पाकिस्तानी आतंकवादियों से किसी प्रकार अलग हैं? भारतीयों की निरंतर नृशंस हत्याएँ तो दोनों ही कर रहे हैं। फिर दोनों में क्या अंतर है? दोनों ही आतंकवादी ही तो हैं।

पाकिस्तानी आतंकवादी तो भारत-द्रोही भी हैं और भारतीयों के दुश्मन ही हैं। लेकिन वे देशद्रोही की श्रेणी से बाहर हैं, क्योंकि वे भारत के नागरिक नहीं हैं। इसलिए आतंकवादियों को तो ढूँढ-ढूँढकर उनके कुकृत्यों से भी भयंकर मौत की सज़ा हमारी सेनाएँ उनको देती भी हैं और देती रहेंगी। लेकिन उन आतंकवादियों को सज़ा कौन देगा, जो अपने ही देश में पैदा हो रहे हैं? जो इसी देश के नागरिक हैं और अपने ही देशवासियों को अकारण मौत के घाट उतारते जा रहे हैं। ये लोग कहीं धर्म के नाम पर, तो कहीं जाति के नाम पर हत्याएँ कर रहे हैं। उन्हें लूट रहे हैं। उनके घर जला रहे हैं। उनके व्यवसाय नष्ट कर रहे हैं। युवतियों और महिलाओं की इज़्ज़त तार-तार कर रहे हैं। उनकी दुर्दशा और हत्या कर रहे हैं। कहीं रेलवे पटरियों को उखाड़कर हज़ारों लोगों की जान जोखिम में डाल रहे हैं, तो कहीं पुलिस और सेना के जवानों को ही निशाना बना रहे हैं। दंगे-फ़साद कर-करा रहे हैं। इनके घरों में हथियारों के ज़$खीरे मिल रहे हैं। ये गोहत्या कर-करा रहे हैं। नफ़रत फैला रहे हैं। झूठी अफ़वाहें उड़ा रहे हैं। अपने फ़ायदे के लिए जघन्य अपराधों को अंज़ाम दे रहे हैं। ज़िम्मेदार पदों पर बैठकर घोटाले कर रहे हैं। लोगों को ग़रीबी और बेरोज़गारी की खाई में धकेल रहे हैं। सीमाओं का सौदा कर रहे हैं। गमन करके देश का पैसा बाहर ले जा रहे हैं। लोगों को देशभक्ति का ज्ञान दे रहे हैं और ख़ुद देश को बर्बाद करके विदेशी नागरिकता ले रहे हैं। औक़ात से ज़्यादा दिखावा कर रहे हैं। नशे की तस्करी करवाकर युवाओं को ज़िन्दा लाश बना रहे हैं। ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ जब भी कोई क़ानूनी हाथ उठना चाहता है या सामाजिक बहिष्कार की आवाज़ उठती है, तो भी इनका कुछ नहीं बिगड़ता। क्योंकि ये लोग राजनीतिक पकड़ वाले हैं, जिन्हें उच्च संरक्षण मिला हुआ। ऐसा संरक्षण कि न न्यायाधीश इन्हें आसानी से सज़ा सुना पाते हैं और न ही पुलिस इनका कुछ बिगाड़ पाती है।

ऐसे लोग भी तो आतंकवादी ही हैं, जो मानवता के दुश्मन भी हैं; और देशद्रोही भी हैं। पाकिस्तानी आतंकवादियों और इन सबका मक़सद एक ही है- भारत की बर्बादी, भारतीयों की हत्या; और दोनों का ईमान भी एक ही है-पैसा। दोनों पैसे के लालच में हत्याएँ करते हैं। लोगों को दु:ख पहुँचाते हैं। लेकिन इन आतंकवादियों को अपराध करने के लिए पैसा कहाँ से आता है? कौन देता है? और किस मक़सद से देता है?

आम लोग इससे बिलकुल अनजान हैं। उन्हें तो तब इसका अहसास होता है, जब अचानक किसी पर हमला हो जाता है। यह हमला कभी नेताओं, ताक़तवर लोगों और अपराधियों पर नहीं होता। जब कहीं किसी पर हमले होते हैं, तब इन्हें दु:ख भी नहीं होता। ऐसा लगता है कि जो देश में जनता के दिये टैक्स से सुरक्षा प्राप्त करते हैं, उन्हें लोगों की जान की कोई चिन्ता नहीं है। सुरक्षा व्यवस्था के सारे इंतज़ाम भी उन्होंने अपनेलिये या फिर अपने अधिकारों और न्याय की माँग करने वाली जनता पर लाठियाँ भाँजने और उसे जेल में डालने के लिए सुरक्षित कर लिये हैं। देश की व्यवस्था भी जो नहीं सँभाल सकते, वे शासन करने के लिए हर हथकंडा अपनाते हैं। लेकिन फिर भी वे सुरक्षित हैं। इसलिए उन्हें इसका अहसास भी नहीं है कि किसी पर जब हमला होता है, तो उस पर क्या बीतती है। इस दर्द का अहसास पहलगाम से बचकर निकलने वालों की तरह हमलों से ज़िन्दा बचे लोग ही समझ सकते हैं। देश के संवेदनशील ईमानदार नागरिक समझ सकते हैं। अपनी जान हथेली पर रखकर देश की सुरक्षा करने वाले जवान समझ सकते हैं। क्योंकि इन लोगों से तो सवाल पूछने या इनका विरोध करने से ही एफआईआर दर्ज हो जाती है। ऐसा करने वाले के घर पर बुलडोज़र पहुँच जाता है। उसे गालियाँ और धमकियाँ दी जाती हैं। उस पर हमले होते हैं। काश! देश का हर नागरिक समझ पाता कि उसकी और भारत की भलाई किसमें है। फिर राजनीतिक और धार्मिक ठेकेदार किसी को गुमराह नहीं कर पाते और ये आतंकवाद भी नहीं पनपता।

किसानों को धोखा दे रहे जालसाज़

योगेश

किसानों की फ़सलों में रोग लगने से लेकर फ़सल का अच्छी तरह न उगना एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। इसकी वजह नक़ली बीज, नक़ली खादें और नक़ली कीटनाशक हैं, जिन्हें किसान अनजाने में जालसाज़ों से ख़रीद रहे हैं। हमारे देश में नक़ली बीजों, नक़ली खादों और नक़ली कीटनाशकों की बिक्री एक बड़ी साज़िश है, जिससे देश के लगभग 95 प्रतिशत किसान अनजान हैं। जानकारी की यह कमी किसानों को बहुत बड़ा नुक़सान हर साल पहुँच रही है। फर्टिलाइजर के नाम पर बाज़ारों में बिक रहे नक़ली बीजों, नक़ली खादों और नक़ली कीटनाशकों से देश के किसानों को हर साल 83.6 करोड़ रुपये का नुक़सान हो रहा है और जालसाज़ों को इतना ही फ़ायदा। ये जालसाज़ किसानों को ही नक़ली समान बेचने तक नहीं रुके हुए हैं, बल्कि किसानों के फ़सल उत्पादों को ख़रीदने के बाद उनमें मिलावट करके भी मोटी कमायी कर रहे हैं। इन्हीं जालसाज़ों की वजह से फ़सलों में बीमारियाँ लग रही हैं, जो बाद में हम इंसानों से लेकर पशु-पक्षियों तक को बीमार कर रही हैं।

यह मौसम कपास की बुवाई का है। लेकिन कपास के नक़ली बीजों को लेकर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के किसान परेशान हैं। महाराष्ट्र में कपास के नक़ली बीजों की ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से कालाबाज़ारी ही रही है। महाराष्ट्र में कपास के नक़ली बीज की आवक से कृषि अधिकारी और किसान परेशान हैं। कृषि बाज़ार से सम्बन्धित सूत्रों से पता चला है कि महाराष्ट्र में कपास के बीज के अलावा दूसरी कई फ़सलों और फलों के बीज भी भारी मात्रा में नक़ली बिक रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि महाराष्ट्र में गुजरात और मध्य प्रदेश से नक़ली बीजों की खेप बड़ी मात्रा में आ रही है। लेकिन गुजरात और मध्य प्रदेश में भी नक़ली बीजों की समस्या है। महाराष्ट्र के कृषि अधिकारियों ने कहा है कि महाराष्ट्र के उन सभी बॉर्डरों पर चेकप्वाइंट्स बनाकर चेकिंग की जाती है, जो सीमावर्ती राज्यों गुजरात और मध्य प्रदेश से लगते हैं। इसके लिए सब-रीजनल ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट, पुलिस और कृषि विभाग मिलकर अभियान चला रहे हैं। नक़ली बीज विक्रेताओं को पकड़ने के लिए महाराष्ट्र कृषि विभाग ने एक अभियान भी चलाया है, जिससे किसान जालसाज़ों और धोखाधड़ी से बचाये जा सकें। इसके साथ ही राज्य के किसानों को सलाह दी गयी है कि वे बीज, रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक ख़रीदते समय उनकी गुणवत्ता जाँच लें, जिन किसानों को असली-नक़ली बीजों, खादों और कीटनाशकों की पहचान नहीं है वे उनकी जाँच कराने के लिए तालुका या ज़िला स्तर पर बनी जाँच टीमों से सैंपल के साथ मिलें, नहीं तो किसी पर नक़ली बीज, खाद या कीटनाशक बेचने का शक होने पर कृषि अधिकारियों को इसकी सूचना दें। महाराष्ट्र में पिछले साल भी खांदेश में कपास के नक़ली बीज बड़ी मात्रा में पकड़े गये थे। किसान जब नक़ली बीजों को अपने खेतों में बो देते हैं, तो उनके ठीक से न उगने पर ज़्यादा खाद और ज़्यादा कीटनाशक का प्रयोग करते हैं, जिससे उन्हें धन, श्रम और उत्पादन में विकट नुक़सान उठाना पड़ता है।

महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में बड़े पैमाने पर कपास की खेती की जाती है; लेकिन यहाँ कपास की गुणवत्ता गिरती जा रही है जिसकी वजह नक़ली बीज, नक़ली खाद और नक़ली कीटनाशक हैं, जिनकी वजह से ज़मीन ख़राब हो रही है। कपास और दूसरी फ़सलें भी ख़राब हो रही हैं। किसानों की माँग है कि जालसाज़ों के ख़िलाफ़ सरकार सख़्त कार्रवाई करे, जिससे उनकी फ़सलें ख़राब होने से बच सकें और उन्हें अच्छी पैदावार मिल सके। किसानों का कहना है कि पिछले साल बीजों के निरीक्षण के लिए महाराष्ट्र में 16 निरीक्षक दल बनाये गये थे, जिन्हें मई में तैनात किया गया था। इस बार बाज़ार में नक़ली बीज आ चुके हैं और बुवाई भी शुरू हो चुकी है; लेकिन अभी गहन जाँच नहीं हो रही है। कृषि विभाग ख़रीफ़ फ़सलों की तैयारियाँ कर चुका है; लेकिन अभी तक उसने किसानों को बचाने का कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है, जिसके चलते विभाग ने इस बारे में कोई ऐलान भी नहीं किया है।

अप्रैल के अंतिम सप्ताह से कपास की बुवाई शुरू हो गयी है, जो कि मई के अंत तक चलेगी। कपास की बुवाई के समय और फ़सल उगाने के दौरान किसानों बाज़ार से उर्वरक खाद डालने के लिए ख़रीदेंगे और दो-महीने बाद ही कीटनाशकों की ज़रूरत पड़ेगी। कृषि विभाग के सख़्त क़दम न उठने से नक़ली बीजों, नक़ली खादों और नक़ली कीटनाशकों के बेचने वाले जालसाज़ किसानों को बड़ा नुक़सान पहुँचा देंगे। किसानों को इस धोखाधड़ी से बचने के लिए कृषि विभाग जागरूक कर रहा है; लेकिन बचाने के लिए ठोस क़दम नहीं उठा रहा है। किसानों को इतनी पहचान नहीं होती कि वे नक़ली बीजों, नक़ली खादों और नक़ली कीटनाशकों की पहचान कर सकें, क्योंकि उनकी पैकिंग बिलकुल असली बीजों, खादों और कीटनाशकों की तरह ही होती है। कई किसान थोड़ी छूट के लालच में आकर जालसाज़ों के बहकावे में आ जाते हैं। कृषि विभाग सिर्फ़ अधिकृत वेंडर से ही बीज, खाद और कीटनाशक ख़रीदने की सलाह दे रहा है। लेकिन मिलावट करने वाले किसी भी रूप में हो सकते हैं।

पिछली बार हरियाणा सरकार ने नक़ली बीज, नक़ली खाद और नक़ली कीटनाशक बेचने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिये थे; लेकिन जालसाज़ों ने नक़ली बीज, नक़ली खाद और नक़ली कीटनाशक बेचने के कई रास्ते निकाल लिये। पकड़े जाने पर नक़ली बीज, नक़ली खाद और नक़ली कीटनाशक बेचने वालों को छ: महीने से तीन साल तक की सज़ा हरियाणा सरकार ने तय कर रखी है, जिसमें पाँच लाख तक का ज़ुर्माना भी है या दोनों में से एक का लागू होगा। हरियाणा में भी नक़ली और मिलावटी बीजों, खादों और कीटनाशकों की बिक्री काफ़ी ज़्यादा होती है। कथित आरोप लगते रहे हैं कि विश्वसनीय बीज उत्पादक और विक्रेता भी लालच में ख़राब या निम्न गुणवत्ता वाले या नक़ली बीज अच्छे बीजों में मिलाकर बेचते हैं। खाद और कीटनाशक बेचने वाले भी यही करते हैं।

नक़ली बीजों, नक़ली खादों और नक़ली कीटनाशकों की कालाबाज़ारी कुछ राज्यों में ही नहीं, पूरे देश में हो रही है। यह बाज़ार इतना बड़ा है कि इससे हर साल जानकारी के अभाव में करोड़ों रुपये किसानों की जेब से आसानी से निकल रहे हैं। नक़ली बीजों, खादों और नक़ली कीटनाशकों की बिक्री रोकने के लिए वस्तु अधिनियम-1955, कीटनाशक अधिनियम-1964, बीज अधिनियम-1966, बीज नियम-1968, आवश्यक कीटनाशक नियम-1971, बीज (नियंत्रण) आदेश-1983 और उर्वरक (नियंत्रण) आदेश-1985 आदि क़ानून बने हुए हैं। लेकिन नक़ली बीजों, नक़ली खादों और नक़ली कीटनाशकों की बिक्री अभी तक नहीं रुकी है। नक़ली बीज, नक़ली खाद और नक़ली कीटनाशक बेचने वालों के ख़िलाफ़ किसान रिपोर्ट दर्ज करा सकते हैं; लेकिन देश के ज़्यादातर किसान छोटे और कम जानकारी वाले हैं, जिनमें से ज़्यादातर किसान बीज, खाद और कीटनाशक विक्रेताओं से उधार में ये सब लेते हैं। इन सब वजहों से वे जालसाज़ों के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज नहीं करवाते और इसके उलट फ़सल अच्छी न होने पर खाद और कीटनाशक डालते रहते हैं।

राज्य सरकारों के कृषि विभाग अपने-अपने राज्य में बीजों, उर्वरक खादों और कीटनाशकों की गुणवत्ता की जाँच करने और उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित रहे इसके लिए हर ज़िले में ब्लाक स्तर पर निरीक्षकों की नियुक्ति करते हैं, जिनका काम बीज, उर्वरक खाद और कीटनाशक विक्रेताओं की दुकानों से नमूने लेकर उनकी जाँच करना होता है। लेकिन पाया गया है कि निरीक्षक एसी वाले कमरों में आराम फ़रमाते हैं और किसानों के साथ धोखाधड़ी होती रहती है। देश के कई जागरूक किसानों ने कई बार इन निरीक्षकों पर बीज, खाद और कीटनाशक विक्रेताओं से मिलीभगत कर इस कालाबाज़ारी को बढ़ावा दिया है। लेकिन सभी निरीक्षकों पर ये आरोप नहीं लगाये जा सकते। वित्त वर्ष 2023-24 में देश भर में तैनात निरीक्षकों ने बीजों, उर्वरकों और कीटनाशकों के जो नमूने लिए, उनकी संख्या बहुत ज़्यादा है। वित्त वर्ष 2023-24 में देश में बीजों के 1,33,588 नमूने लिये गये, जिनमें से 3,630 नमूने ख़राब मिले थे। इसी वित्त वर्ष में उर्वरक खादों के 1,81,153 नमूनों में से 8,988 नमूने ख़राब मिले, जबकि कीटनाशकों के 80,789 नमूनों में से 2,222 नमूने नक़ली मिले। वित्त वर्ष 1014-25 में भी नक़ली बीज, नक़ली खाद और नक़ली कीटनाशक बड़ी मात्रा में मिले हैं। ये सब नक़ली और मिलावटी बीज, खाद और कीटनाशक फर्टिलाइजर के नाम पर ख़ूब बेचे जा रहे हैं। बीज, खाद और कीटनाशक विक्रेता अपनी दुकान पर जाँच के लिए आने वाले कई भ्रष्ट जाँच अधिकारियों की जेब गर्म कर देते हैं, जिससे वे बिना कोई कार्रवाई किये चले जाते हैं।

अभी फिर बाज़ार में फर्टिलाइजर के नाम पर नक़ली बीजों, नक़ली उर्वरक खादों और नक़ली कीटनाशकों की भरमार की ख़बरें सामने आ रही हैं। लेकिन देश भर में किसानों को नक़ली बीज, नक़ली खाद और नक़ली कीटनाशक बेचने वाले जालसाज़ों से बचाने के ठोस उपाय नहीं हैं।

पिछले महीने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने कहा था कि केंद्र सरकार नक़ली कृषि इनपुट (नक़ली बीजों, नक़ली खादों और नक़ली कीटनाशकों) की आपूर्ति करने वालों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई कर रही है। पिछले साल केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों को हर हाल में असली और अच्छी गुणवत्ता वाले बीज, उर्वरक खाद और कीटनाशक उपलब्ध कराने की बात कही थी और इसके लिए कृषि अधिकारियों को आदेश दिये थे कि वे जालसाज़ों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करें। लेकिन अभी तक नक़ली बीज, नक़ली खाद और नक़ली कीटनाशक बेचने वालों को ऐसा करने से रोका नहीं जा सका है, जिससे किसानों के साथ होने वाली धोखाधड़ी भी नहीं रुकी है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय इस मामले में सही भावना से काम करे, तो यह संभव है। किसानों को भी चाहिए कि वे असली बीजों के लिए अपने पूर्वजों की तरह ख़ुद बीजों का संरक्षण करें, जैविक खाद बनाएँ और कीटनाशकों की जगह पशुओं के मल-मूत्र, खलियों और नीम पत्तियों के घोल का छिड़काव करें, जिससे उन्हें जैविक पैदावार के साथ ही फ़सलों का अच्छा भाव भी मिल सके और उनकी फ़सलों को ख़ाने से कोई व्यक्ति या पशु-पक्षी बीमार न पड़े। किसानों को इसके लिए जागरूकता और आपसी सहयोग की ज़रूरत है।

युद्ध की तबाही से मासूमों को बचाने की ज़रूरत

इजरायल-गाज़ा के बीच युद्ध चलते दो वर्ष से अधिक हो गये हैं और इसी 19 अप्रैल को इजरायल के प्रधानमंत्री बेजामिन नेतन्याहू ने कहा कि उसके पास गाज़ा में लड़ाई जारी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इजरायल हमास को ख़त्म करने, बंधकों को आज़ाद कराने और यह सुनिश्चित करने से पहने युद्ध समाप्त नहीं करेगा। इधर रूस-यूक्रेन युद्ध तीन साल के बाद भी जारी है। यह युद्ध क्यों जारी है? ज़ाहिर है इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के अपने-अपने हित हैं; लेकिन युद्धग्रस्त व संघर्ष ग्रस्त इलाक़ों में बेक़ुसूर बच्चों को किस तरह निशाना बनाया जाता है, जिससे बच्चे प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। 2022 तक दुनिया भर में 486 मिलियन बच्चों के सक्रिय संघर्ष क्षेत्रों में रहने का अनुमान है।

बाल अधिकारों पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ के अनुसार, 2022 में रूस के साथ पूर्ण पैमाने पर हमले के बाद हमले के पहले महीने के भीतर यूक्रेन के आधे से अधिक बच्चे विस्थापित हो गये, जबकि 500 से अधिक बच्चे मारे गये और 1,100 से अधिक घायल हुए। रूस-यूक्रेन व इजरायल-गाज़ा के बीच जारी युद्ध की तस्वीरों में अक्सर बच्चों के मरने-घायल होने वाली तस्वीरों से हमारा सामना होता रहता है। इसी 17 अप्रैल को इजरायल-गाज़ा जंग में दोनों हाथ गँवाने वाले नौ साल के बच्चे की तस्वीर ‘वर्ल्ड प्रेस फोटो ऑफ द ईयर’ चुनी गयी है। यह तस्वीर नौ वर्षीय फिलिस्तीनी बच्चे महमूद अज्जीर की है, जो युद्ध में अपने दोनों हाथ खो चुका है।

बच्चा जब अपनी माँ से मिला, तो उसका सबसे पहला सवाल था कि ‘अब मैं अपनी माँ को गले कैसे लगाऊँगा?’ बेक़ुसूर, मासूम बच्चे, जिनका राजनीति से कोई रिश्ता नहीं; जिनकी वोट के ज़रिये किसी ख़ास राजनीतिक दल को सत्ता सौंपने में हिस्सेदारी नहीं होती, उन्हें हमलों के सबसे बुरे नतीजे भुगतने पड़ते हैं। इजरायल में हमास द्वारा बंधक बनाये गये 253 लोगों में से 40 और मारे गये लोगों में लगभग 30 बच्चे थे। गाज़ा में इजरायल की नाकेबंदी को 50 से अधिक दिन हो गये हैं और वहाँ मौज़ूदा हालात ये हैं कि दवाइयों की कमी के चलते गाज़ा में क्लीनिक सुबह 10:00 बजे ही बंद करने पड़ रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वहाँ खाद्य वस्तुएँ 1,400 प्रतिशत महँगी हो गयी हैं और अधिकांश बच्चे दिन में एक बार भी भोजन नहीं कर पा रहे हैं। 95 प्रतिशत सहायता एजेंसियाँ काम बंद कर चुकी हैं। यूनिसेफ के प्रवक्ता जेम्स एल्डर का मानना है कि बच्चों के लिए दुनिया की सबसे ख़तरनाक जगह गाज़ा पट्टी है। यूनिसेफ का अनुमान है कि वहाँ 8,50,000 बच्चे उजड़ गये हैं और अपना घर खो चुके हैं।

ग़ौरतलब है कि गाज़ा की 23 लाख की आबादी में आधे बच्चे हैं, जिनका जीवन इस युद्ध में तबाह हो गया है। चालू हमलों में एकदम सही आँकड़े उपलब्ध नहीं होते; लेकिन वहाँ काम करने वाली स्थानीय व अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ आँकड़ों को दुनिया के सामने लाने के लिए प्रयासरत रहती हैं, ताकि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रमुख और संवेदनशील व मानावाधिकारों और बाल अधिकारों के उल्लघंन का मुद्दा प्रमुखता से उठाया जा सके। एक ग़ैर-लाभकारी संस्था यूरो मेडिटेनेनिया ह्ममून राइट्स मॉनिटर की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 24,000 से अधिक बच्चों ने अपने माता-पिता में से एक या दोनों को खो दिया है। बच्चे युद्ध नहीं, शान्ति चाहते हैं। लेकिन भू-राजनीतिक हितों के संरक्षण के नाम पर जब युद्ध लड़े जाते हैं, तो राजनीतिक प्रभुत्व के प्रदर्शन हेतु सरहद के पार हमले किये जाते हैं। इससे बच्चों पर क्या बीतती है? इसकी परवाह किसी को नहीं होती। कहने को तो सन् 1999 में बच्चों व सशस्त्र संघर्ष पर पहले प्रस्ताव में छ: गंभीर उल्लंघनों की पहचान की गयी थी, जो युद्ध के समय बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। जैसे-बच्चों की हत्या और उन्हें अपंग बनाना, स्कूलों या अस्पतालों पर हमले, बच्चों की अपहरण, बच्चों के बलात्कार या अन्य गंभीर यौन हिंसा, सशस्त्र बलों या सशस्त्र समूहों में बच्चों की भर्ती या इस्तेमाल। लेकिन अंतरराष्ट्रीय क़ानून की किसे परवाह है? यही नहीं, बच्चों के इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत वसीली नेबेंजिया ने इस जनवरी में कहा कि यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल, जो ख़ुद एक अमेरिकी है; ने दिसंबर में यूक्रेन में बच्चों के बारे में 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद् को जानकारी दी थी। इस परिषद् की अध्यक्षता अमेरिका कर रहा था। लेकिन जनवरी में रूस द्वारा बुलायी गयी बैठक में यूनिसेफ की तरफ़ से गाज़ा में बच्चों के मुद्दे पर कोई ठोस जानकारी नहीं दी गयी। नेबेंजिया ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि यूनिसेफ के लिए गाज़ा के बच्चे यूक्रेन के बच्चों से कम महत्त्वपूर्ण हैं। हालाँकि यूनिसेफ का कहना है कि उनकी कार्यकारी निदेशक रसेल उस समय विश्व आर्थिक मंच की बैठक में भाग लेने के लिए दावोस में थीं और उन्होंने गाज़ा में बच्चों की स्थिति के बारे में कई बार सुरक्षा परिषद् को जानकारी दी है। आज युद्ध की तबाही से इन मासूमों को बचाने की ज़रूरत है। लेकिन इस मुद्दे पर अलग ही राजनीति हो रही है।

भाजपा को आपसी तकरार करेगी सत्ता से बाहर?

अक्सर ऐसा कहा जाता है कि भाजपा में वही होता है, जो गुजराती लॉबी यानी शीर्ष नेतृत्व चाहता है। और पिछले तकरीबन 11 साल से पूरी भाजपा टीम यानी एक-एक नेता और एक-एक कार्यकर्ता इसी शीर्ष नेतृत्व के नीचे और इसी नेतृत्व के इशारे पर काम कर रहा है। जैसा कि सभी जानते हैं कि ये नेतृत्व किसी और का नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी का है, जो इस समय केंद्र की सत्ता में दो शीर्ष पदों पर हैं और हर भाजपा शासित राज्य को कंट्रोल करते हैं। यह देखा गया है कि भाजपा के हर छोटे-बड़े नेताओं को इस जोड़ी की आज्ञा का पालन करना ही होता है; लेकिन फिर भी भाजपा के भीतर बग़ावत के सुर नहीं दब रहे हैं। और ऐसे दावे किये जा रहे हैं कि बग़ावत कोई और नहीं, बल्कि कुछ शीर्ष नेता कर रहे हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें, तो साल 2014 में भाजपा को केंद्र की सत्ता में आने का मौक़ा ही जिनकी वजह से मिला, आज उन्हीं के ख़िलाफ़ पार्टी में हवा तेज़ हो गयी है और इस हवा को चारों तरफ़ डर का पर्दा लगाकर रोकने की कोशिश की जा रही है कि अगर किसी ने खुलकर विरोध किया और वो हवा बाहर गयी, तो पार्टी बर्दाश्त नहीं करेगी। हालाँकि फिर भी कुछ मज़बूत नेताओं के बग़ावत के सुर कहीं-न-कहीं कानों तक आ रहे हैं या उनकी गतिविधियों से बग़ावत की बू भी आ रही है।

दरअसल, पिछले 8-9 वर्षों से ये आरोप लगते रहे हैं कि मोदी सरकार में सांसदों की बात तो दूर, मंत्रियों की भी नहीं सुनी जाती है। कथित तौर पर इस बात की कई बार चर्चा रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की इच्छा के बग़ैर पार्टी और सरकार में एक पत्ता भी नहीं हिलता है। हालाँकि यह भी कहा जाता है कि बीच-बीच में उनकी बात को काटने या अपनी बात मनवाने के लिए संघ अपनी शक्तियों का उपयोग करता रहता है, जिसके चलते कई बार संघ और गुजरात की इस शीर्ष जोड़ी में टकराव भी हो चुका है। और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो कभी अमित शाह के ख़ास माने जाते थे; से भी अब मोदी-शाह का टकराव उभर रहा है। अब उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री की जगह केशव प्रसाद मौर्य और उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने ले ली है और केशव प्रसाद मौर्य तो अमित शाह के ख़ासमख़ास माने जाने लगे हैं। यही वजह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लाख न चाहते हुए भी उनकी अपनी ही सरकार में विधायक दो गुटों में बँटे हुए हैं, जिनमें से एक धड़ा इस मौक़े के इंतज़ार में है कि उन्हें कब उत्तर प्रदेश की शीर्ष कुर्सी से हटाया जाए। और दूसरे इस इंतज़ार में है कि कब योगी प्रधानमंत्री बनें। इस बीच योगी को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए शीर्ष नेतृत्व बेचैन है। सवाल यह है कि क्या मोदी-शाह की जोड़ी, जिसकी बिना मज़ीर् के पार्टी और सरकार में एक पत्ता भी नहीं हिलता; मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हिला पाएँगे?

योगी ने सपा सांसद के रामजीलाल सुमन के बहाने करणी सेना की ताक़त से यह दिखा दिया कि अगर शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें छेड़ने की कोशिश की, तो राजपूत इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।

रामजीलाल पर हमला हुआ, जिसे सपा प्रमुख और सांसद अखिलेश यादव ने पुरज़ोर तरीक़े से उठाया है। इसका नुक़सान भाजपा को उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव में हो सकता है। भाजपा में गुजराती लॉबी के समर्थक कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की वजह से प्रदेश का माहौल ख़राब हो रहा है और जातिवाद को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे राजपूतों को छोड़कर बाक़ी जातियों के लोग योगी से सख़्त नाराज़ हैं, जिसका ख़ामियाजा भाजपा ने साल 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों में भुगत लिया और अब आगे भी भुगतना पड़ सकता है। हालाँकि योगी तो ख़ुद को इतना मज़बूत बना चुके कि उन्हें हिला पाना आसान नहीं होगा। लेकिन फिर भी उत्तर प्रदेश के लोकसभा और विधानसभा चुनावों पर इसका असर पड़ेगा। बहरहाल, इस साल 17 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी पूरे 75 साल के हो जाएँगे और उन्हीं के बनाये पार्टी नियम के मुताबिक उन्हें पार्टी के सलाहकार मंडल में शामिल होना पड़ेगा। क्या वे ऐसा करेंगे?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

खूब बिक रहा है मुफ्त वाला राशन

– कोटे से मुफ्त में मिलने वाले सरकारी राशन की हो रही कालाबाजारी

इंट्रो-भारत में घोटाले सिर्फ नेताओं और अधिकारियों तक ही सीमित नहीं हैं; और न ही सुविधाओं का दुरुपयोग सिर्फ उच्च पदों पर बैठे लोग ही करते हैं। आम लोगों को भी जब मौका मिलता है, तो उनमें भी बहुत-से लोग भी सुविधाओं का दुरुपयोग करने लगते हैं। ‘तहलका’ ने अपनी इस पड़ताल में पता लगाया है कि कुछ लोग पीएमजीकेएवाई के तहत उन्हें मिलने वाले मुफ्त-राशन को बेच रहे हैं। इस अवैध धंधे में कई दुकानदार और कथित रूप से राशन वितरक भी शामिल हैं। हालांकि संभव है कि कुछ लोग गरीबी के चलते मजबूरी में ऐसा कर रहे हों; लेकिन ज्यादातर मुफ्त-राशन के लाभार्थी राशन में मिले चावल को पैसे और अच्छी क्वालिटी का चावल खाने के लिए बेच रहे हैं। इसके चलते गरीबों की जीवन-रेखा कहा जाने वाला यह राशन एक भूमिगत व्यापार में बदल रहा है। पढ़िए, तहलका एसआईटी की यह खास रिपोर्ट :-

किराना दुकानदार सरकार द्वारा दिये जाने वाले मुफ्त चावल को अपनी दुकानों में खुलेआम न रखकर दूसरी जगह पर छिपाकर रखते हैं, जिससे वे सरकारी छापेमारी और जुर्माने से बच सकें। अगर वे अपनी दुकानों में चावल रखेंगे, तो यह जोखिम रहता है कि कोई व्यक्ति अधिकारियों को इसकी सूचना दे देगा, जिससे दुकान मालिक को परेशानी हो सकती है।’ -यह बात उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के मोहनपुर गांव के रहने वाले अफसर अली नाम के एक दलाल ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कही।

‘या तो आप हम पर स्टिंग कर रहे हैं, या आप पुलिस विभाग से हैं। मैं अपना राशन कार्ड नहीं खोना चाहती। इसलिए मैं अपना मुफ्त चावल आपको नहीं बेचूंगी।’ यह बात उत्तर प्रदेश के नोएडा के सेक्टर-81 में रहने वाली रिहाना नाम की एक महिला ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कही, जो कि मुफ्त-राशन योजना की एक लाभार्थी है।

‘अभी मेरे पास 7 क्विंटल (700 किलोग्राम) राशन वाले चावल हैं, जो मैंने सरकारी राशन के लाभार्थियों से खरीदे हैं। वे लोग हर महीने राशन की दुकानों से मिलने वाले मुफ्त-राशन में से चावल मुझे बेच जाते हैं।’- यह बात उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के मोहनपुर गांव के ही एक निजी किराना दुकान मालिक मोहम्मद रफी ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से फोन पर कही।

‘चिंता मत करो। मैंने अपने इलाके के राशन डीलर से बात कर ली है। अगर आपको हर महीने 50 क्विंटल (5,000 किलो) राशन चावल की भी जरूरत है, तो हम मुहैया करा देंगे।’ -रफी ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कहा। ‘हम लाभार्थियों से मुफ्त-राशन योजना के तहत मिलने वाला चावल 27-28 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदते हैं, इसलिए हम इसे आपको 32 रुपये में नहीं बेच सकते। हमें कम-से-कम 38 रुपये प्रति किलो चाहिए।’ -रफी ने ‘तहलका’ रिपोर्टर के सामने सौदा रखा। मोहम्मद रफी ने आगे यह भी कहा- ‘मेरी दुकान पर नियमित रूप से मुफ्त-राशन का चावल आता है। हर महीने लाभार्थी अपने कोटे का चावल लेकर आते हैं, जिसे वे या तो बेच देते हैं या बेहतर गुणवत्ता वाले चावल के बदले दे जाते हैं।’

भारत में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत अप्रैल, 2020 में शुरू की गयी मुफ्त-राशन योजना का उद्देश्य शुरू में तीन महीने के लिए कोरोना महामारी के दौरान गरीबों की सहायता करना था; लेकिन बाद में इसे बढ़ा दिया गया। इस योजना के माध्यम से 81 करोड़ से अधिक परिवारों को, जो आयकर नहीं देते हैं; हर महीने प्रति व्यक्ति पांच किलोग्राम राशन मिलता है। इस योजना को अब केंद्र सरकार द्वारा पांच वर्षों के लिए अर्थात् दिसंबर, 2028 तक बढ़ा दिया गया है। पीएमजीकेएवाई में भाग लेने के लिए कोई अलग पंजीकरण प्रक्रिया नहीं है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनयेफएसए) के अंतर्गत लाभार्थी, जिनमें अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) या प्राथमिकता वाले घरेलू (पीएचएच) राशन कार्डधारक भी शामिल हैं; स्थानीय राशन वितरण की दुकानों पर अपने मौजूदा राशन कार्ड का उपयोग करके पीएमजीकेएवाई लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इस योजना के शुभारंभ के बाद से सरकार को विभिन्न राज्यों और जिलों से कई शिकायतें प्राप्त हुई हैं, जिनमें आरोप लगाया गया है कि राशन डीलर और किराना की दुकान चलाने वाले खुले बाजार में इस सरकारी राशन को बेच रहे हैं। इस तरह ये अपात्र लोग जरूरतमंदों को दिये जाने वाले इस सरकारी राशन को हड़पने में कामयाब हो रहे हैं।

गरीबों और जरूरतमंदों को मिलने वाले इस राशन की कालाबाजारी करने वालों में पैसे वाले (करदाता, दुकानदार, अच्छी-खासी संपत्ति वाले और कार मालिक) तक शामिल हैं, जो इस योजना का अनुचित लाभ उठा रहे हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, ऐसे व्यक्तियों को जल्द ही कार्यक्रम से बाहर कर दिया जाएगा। धोखाधड़ी की शिकायतें लगातार सामने आने के कारण ही ‘तहलका’ ने पीएमजीकेएवाई योजना के तहत चल रहे इस घपले की पड़ताल करने का निर्णय लिया। सरकार द्वारा उपलब्ध कराये गये मुफ्त चावल की अवैध बिक्री के बारे में ‘तहलका’ एसआईटी की यह पड़ताल उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के मोहनपुर गांव के निवासी अफसर अली से बातचीत से शुरू होती है। सरकारी राशन के एक नकली खरीदार बनकर ‘तहलका’ रिपोर्टर ने ऐसे लोगों से संपर्क किया, जो सरकार से मिलने वाले मुफ्त-राशन को बेचने का काम करते हैं, जिनमें सबसे पहले अफसर अली से मुलाकात की गयी। इस बातचीत में पता चला कि अफसर, जिसे पीएमजीकेएवाई योजना के तहत 5 किलो चावल मिलता है; 16 से 18 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से ये राशन दुकानदार को बेच रहा है। यह चौंकाने वाली स्वीकारोक्ति एक व्यापक मुद्दे को उजागर करती है, जहां लाभार्थी न केवल निजी लाभ के लिए प्रणाली का शोषण करते हैं, बल्कि गरीबों के लिए आवश्यक वस्तुओं के लिए भूमिगत बाजार को भी बढ़ावा देते हैं।

रिपोर्टर : क्या-क्या मिलता है?

अफसर : हां, मिलता है चावल, गेहूं और चीनी।

रिपोर्टर : चीनी कितनी मिलती है?

अफसर : 3-3.5 केजी (तीन-साढ़े तीन किलो) मिलती है हर महीने।

रिपोर्टर : ये तो फ्री (मुफ्त) मिलता होगा, …सरकार की तरफ से मिलता है?

अफसर : हां; हर महीने मिलता है।

रिपोर्टर : इस महीने का मिल गया?

अफसर : भतीजा हमारा ले गया।

रिपोर्टर : कुछ लोग बेच भी तो देते हैं चावल को?

अफसर : हां।

रिपोर्टर : किस रेट (भाव) में बेचते हैं?

अफसर : 18-16 रुपए किलो दुकान वाले को देते हैं।

रिपोर्टर : कुछ बेचना चाह रहे हो दिल्ली में, तो बताओ; किस रेट में बेचते हो?

अफसर : चावल : तो मोटा वाला 17-18 में बिकता है।

रिपोर्टर : जो सरकार तुम्हें फ्री में दे रही है?

अफसर : वो तो पांच किलो मिलता है।

रिपोर्टर : वो कितने में बेच देते हो?

अफसर : 16-17 रुपए दुकान वाला लेता है।

अब अफसर ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि उसके परिवार के पास दो राशन कार्ड हैं। एक लाल रंग का और दूसरा पीले रंग का। उसने कहा कि लाल रंग के राशन कार्ड पर उन्हें मुफ्त-राशन नहीं मिलता, इसके लिए उन्हें कुछ पैसे देने पड़ते हैं। लेकिन पीले रंग के राशन कार्ड पर उन्हें मुफ्त-राशन मिलता है। उसके अनुसार पीले रंग का राशन कार्ड उसकी मां के नाम पर है, जिस पर उसके परिवार को मुफ्त-राशन मिलता है।

रिपोर्टर : और कितने लोग बेचते हैं गेहूं?

अफसर : कुछ लोग आपस में बदल लेते हैं, जिनका परिवार बड़ा है।

रिपोर्टर : आपको तो फ्री (मुफ्त) में मिल रहा है सरकार से कोई पैसा नहीं देना पड़ता। इस महीने का मिल गया अप्रैल का?

अफसर : हां; चार-पांच दिन पहले।

रिपोर्टर : राशन कार्ड में किस-किस का नाम है?

अफसर : हम पांच भाइयों का। फ्री वाला तो एक ही कार्ड पर आता है चावल, बाक़ी जो है, दो कार्ड होते हैं। एक लाल वाला होता है, उसमें पैसे देने पड़ते हैं और पीले में नहीं देने पड़ते। और जो फ्री अनाज मिलता है, वो पीले वाले में मिलता है। …हमारे पास एक लाल वाला है, एक पीले वाला। पीला वाला मां के नाम पर है और लाल वाले में पांच भाइयों का नाम है।

रिपोर्टर : मां को मिलता होगा राशन फ्री वाला?

अफसर : हां।

रिपोर्टर : क्या-क्या मिलता है?

अफसर : लगभग 13 किलो अनाज मिलता है; …गेहूं, चावल सब मिलाकर 13 किलो। और लाल वाले में 33 किलो, मगर उसमें पैसे देने पड़ते हैं।

रिपोर्टर : कितने पैसे?

अफसर : 170 रुपए, …जितने हैं।

‘तहलका’ रिपोर्टर ने सरकारी मुफ्त-राशन का ग्राहक बनकर अफसर से जब ये कहा कि दिल्ली में एक निजी डीलर को देश के 80 करोड़ से अधिक लोगों को वितरित किये जाने वाले सरकारी मुफ्त चावल की भारी मात्रा में जरूरत है। तब अफसर रिपोर्टर को एक ग्राहक समझकर उनके लिए दलाल के रूप में काम करने के लिए सहमत हो गया और उसने रिपोर्टर को बताया कि वह उनके लिए हर महीने आठ से  नौ क्विंटल (800 से 900 किलोग्राम) सरकार से राशन कार्ड धारकों के मुफ्त में मिलने वाले चावल की व्यवस्था कर सकता है। उसने कहा कि वह हमारे (‘तहलका’ रिपोर्टर के) लिए बरेली से दिल्ली तक चावल ले जाने के लिए एक पिकअप वैन की व्यवस्था भी कर देगा। अफसर के अनुसार, उसके गांव में करीब 250-300 लोगों को सरकारी योजना के तहत मुफ्त-राशन मिल रहा है। वह उन लोगों से बात करेगा और उचित दाम पर हमारे (नकली ग्राहक बने ‘तहलका’ रिपोर्टर के लिए चावल का प्रबंध करेगा। उसने कहा कि वह रिपोर्टर को सरकारी चावल उपलब्ध कराने के लिए राशन डीलर से भी बात करेगा।

रिपोर्टर : यहां पर किसी को जरूरत है। …वो बहुत सारा अनाज चावल खरीदना चाहते हैं, जो सरकार देती है। आप 16-17 रुपये में बेचते हो ना! मैं आपको दिल्ली में उसके 30 रुपये दिलवा दूंगा।

अफसर : जैसे हम पिकअप भरके लेकर आये, तो कोई दिक्कत तो न आयेगी रास्ते में? …जैसे बॉर्डर पे चेक करे….!

रिपोर्टर : तो आप बता देना, …आप व्यापारी हो चावल देने आये हो।

अफसर : अच्छा।

रिपोर्टर : वो हमारी जिम्मेदारी है उसकी टेंशन मत लो आप।

अफसर : आप 30 रुपये किलो ले लोगे?

रिपोर्टर : कितना चावल हो जाएगा आपके गांव से?

अफसर : फिर तो मैं कोटे (सरकारी राशन वितरक) से ही बात करूँगा डायरेक्ट (सीधे)।

रिपोर्टर : हमको फ्री वाला चाहिए, जो सरकार देती है; …वही लेना है, पैसे वाला नहीं। तो गांव से आप लोग 17-18 में बेच रहे हो, मैं 30 दिलवा दूंगा।

अफसर : अच्छा; बात करके बताता हूं।

रिपोर्टर : आप भरके ले आओगे गांव से?

अफसर : हां; हो तो जाएगा सर!

रिपोर्टर : कितने लोग हैं, जिनको फ्री में अनाज मिल रहा है?

अफसर : 200-250 लोग होंगे, …300 से ज्यादा ही होंगे।

रिपोर्टर : 300 से ज्यादा होंगे, जिनको फ्री अनाज मिल रहा है 5 केजी (पांच किलो)? …कौन-सा गांव है तुम्हारा?

अफसर : मोहनपुर तरिया।

रिपोर्टर : ये बरेली से कितनी दूर है?

अफसर : लखनऊ रोड से लेफ्ट (बाएं) बाईपास से छ: किलोमीटर दूर है, जिला बरेली।

रिपोर्टर : आप भी मोहनपुर गांव में रहते हो? …सारे मुस्लिम हैं?

अफसर : पूरा पाकिस्तानी एरिया (इलाका) है।

रिपोर्टर : पाकिस्तानी एरिया क्यों बोल रहे हो?

अफसर : टोटल मुस्लिम है।

रिपोर्टर : तो उससे बात करके बताओ।

अफसर : बताता हूं मैं। …हर महीने कम-से-कम 6-7 क्विंटल तो हो ही जाएगा चावल।

रिपोर्टर : 6-7 क्विंटल? …एक गाड़ी में कितना आ जाएगा? …एक पिकअप में?

अफसर : कम-से-कम 8-9 क्विंटल तो ले ही जाता है।

रिपोर्टर : बरेली से दिल्ली लाने की जिम्मेदारी तुम्हारी होगी?

अफसर : वो कम-से-कम 4-5 के (हजार) लेगा।

रिपोर्टर : वो हम दे देंगे, पिकअप वाले का खर्चा अलग है। …आपका काम है चावल से पिकअप भरवाकर दिल्ली लाना।

अफसर : अच्छा।

रिपोर्टर : 8-9 क्विंटल दिलवा दोगे हर महीने?

अफसर : हां।

रिपोर्टर : पक्का?

अफसर : पक्का सर!

रिपोर्टर : फ्री वाला चाहिए।

अफसर : मैं पूरी बात करवा दूंगा, कोटे वाले से।

‘तहलका’ रिपोर्टर से बात करने के बाद अफसर ने उन्हें एक व्यापारी मानकर उनके लिए दिल्ली में आपूर्ति के लिए सरकारी मुफ्त चावल की व्यवस्था के लिए बातचीत शुरू कर दी। उसने अपने गांव के एक किराना दुकान मालिक से बात की, जिसने अफसर को बताया कि उसके पास कई क्विंटल सरकार से लोगों के लिए मुफ्त बांटने के लिए आने वाला चावल है, जो लाभार्थियों ने उसे बेचा है। अफसर ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि किराना दुकान का मालिक सरकारी मुफ्त चावल अपनी दुकान पर नहीं रखता है, क्योंकि उसे डर है कि कहीं इसके लिए अधिकारियों द्वारा छापा न मारा जाए। अफसर ने कहा कि वह उन ग्रामीणों से चावल का प्रबंध करेगा, जो बेचने में इच्छुक हैं और कुछ चावल वह किराना दुकान के मालिक से भी मंगवाएगा। कुल मिलाकर उसने दिल्ली में बड़ी मात्रा में सरकारी योजना के तहत राशन कार्ड धारकों को मुफ्त मिलने वाले चावल की आपूर्ति करने की प्रतिबद्धता जतायी।

अफसर : मैं ये कह रहा था, दुकानदार है जैसे जगह-जगह दुकान है गांव वाले जमा करते हैं चावल, तो ये ऐसे इकट्ठा करना पड़ेगा चावल; …ये दुकान में नहीं रखते हैं। कहीं और रखते हैं चावल।

रिपोर्टर : ऐसा क्यूं?

अफसर : मुखबिरी कर दी किसी ने, …कहां से आया, कैसे आया…?

रिपोर्टर : कभी छापा पड़ा है किसी के यहां? …क्या होता है?

अफसर : चालान काट देते हैं 10 के (हजार) का, 15 के (हजार) का। …मुखबिरी कर देते हैं लोग। चावल वालों के भी लाइसेंस बन रहे हैं आजकल। …वो किसी भी वैरायटी का चावल बेच सकते हैं।

रिपोर्टर : तुम अपना भी तो चावल बेचोगे हमें? …तुम्हारे दो राशन कार्ड हैं; एक लाल, एक पीला? लाल में पैसे देने पड़ते हैं, पीला वाला मुफ्त मिलता है चावल?

अफसर : हां। …दुकानदार के पास दो-तीन क्विंटल है चावल और बाक़ी मैंने और लोगों से बात की है; …वो कह रहे हैं- बेचते रहेंगे, व्यवस्था देखते रहेंगे; …28 रुपये किलो।

अब अफसर ने दावा किया कि उसने हमारे (‘तहलका’ रिपोर्टर के) लिए चावल की व्यवस्था करने के लिए अपने गांव से एक निजी किराना दुकानदार मोहम्मद रफी से बात की है। रफी ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से बातचीत के दौरान बताया कि उसे दो-तीन महीने में मुफ्त-राशन पाने वालों से चार से पांच क्विंटल (400-500 किलोग्राम) चावल मिल जाता है। उसने कहा कि राशन लाभार्थी या तो सरकार से मुफ्त में मिलने वाले चावल को बेच देते हैं या अपने चावल के बदले में उससे अच्छी गुणवत्ता वाला चावल ले लेते हैं। उसने कहा कि वह हमारे (‘तहलका’ रिपोर्टर के) लिए सरकार द्वारा मुफ्त में वितरित किया जाने वाले चावल की व्यवस्था करेगा और इसके लिए उसने राशन डीलर से भी बात की है, जो सरकारी राशन वाले चावल आपूर्ति की व्यवस्था करेगा।

रिपोर्टर : हमें रफी साहब वो चावल चाहिए, जो सरकार दे रही है फ्री में, राशन में?

रफी : मेरे पास कोटे का ही चावल आता है। …लोग आते हैं मुझसे बदल ले जाते हैं। कुछ मोटा चावल नहीं खाते, वो बदल ले जाते हैं या पैसे ले जाते हैं।

रिपोर्टर : तो ऐसे कितने लोग आ जाते हैं आपके पास?

रफी : समझ लो दो-तीन महीने में हमारे पास चार-पांच क्विंटल चावल इकट्ठे हुए हैं।

रिपोर्टर : हमें तो बड़ी तादाद में चावल चाहिए, वो कैसे दोगे?

रफी : आपके लिए मैंने बड़े डीलर से बात कर ली है। …अभी तो जो मेरे पास है, मुझसे ले लो। मैं बड़े डीलर से भी दिलवा दूंगा। ये है थोड़ी मेहनत हम भी लेंगे, …एक-दो रुपया हमारा भी बन जाएगा।

जब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने रफी से पूछा कि वह जो चावल हमें दिल्ली में देगा, वो सरकार द्वारा राशन के रूप में लोगों को मुफ्त वितरित होने वाला चावल होगा? तो रफी ने रिपोर्टर को बताया कि विश्वास बढ़ाने के लिए वह उन्हें वीडियो कॉल के जरिये अपने यहां रखे सरकारी राशन वाले चावल को दिखाएगा, जो कि राशन कार्ड (गरीबी रेखा से नीचे वाले कार्ड) धारकों को मुफ्त मिलता है। उसने कहा कि फिलहाल उसके पास सात क्विंटल (700 किलोग्राम) सरकार राशन वाला चावल है, जो उसने सरकार से मुफ्त-राशन पाने वाले लाभार्थियों से खरीदा है। रफी ने आगे कहा कि वह हमारे (रिपोर्टर के) लिए 50 क्विंटल (5,000 किलोग्राम) चावल की व्यवस्था भी कर सकता है, वह भी प्रति दिन।

रिपोर्टर : नहीं, मुझे वो ही चावल चाहिए, जो सरकार देती है फ्री में।

रफी : नहीं तो आपको भरोसा कैसे दिलाया जाए, वीडियो कॉल परे …बिलकुल वही चावल हैं कच्चे, लगे हुए हैं हमारे पास। …अभी तो हमने ऐसे ही रखे हुए हैं, जब किसी को देना होता है, तो 50-50 किलो बना देते हैं।

रिपोर्टर : अच्छा; जो चावल आपको लोग दे जाते हैं, वो आप इकट्ठा करते रहते हो? …अभी कितना होगा आपके पास?

रफी : करीब सात क्विंटल।

रिपोर्टर : मतलब, 700 किलो, और हमें हर महीने चाहिए 10-12 क्विंटल।

रफी : अरे तुम बात कर लो, हम महीने के महीने 15 क्विंटल दिलवाएंगे; …ऐसी बात नहीं है, 50 क्विंटल भी दिलवाएंगे।

रिपोर्टर : आप कहां से लोगे अगर 50 क्विंटल हमें दोगे भी?

रफी : अब दिलवा देंगे रोज की गाड़ी आएगी-जाएगी तो…।

अब रफी ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से चावल के दाम पर बातचीत की। रिपोर्टर ने रफी से कहा कि वह 32 रुपये प्रति किलो की दर से भी उससे सरकारी राशन का चावल खरीदने को तैयार हैं। लेकिन रफी ने इस दर पर अपना चावल बेचने से इनकार कर दिया। उसने कम-से-कम 38 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव की मांग की। रफी ने कहा कि उसने राशन डीलर से सरकार द्वारा लोगों को मुफ्त में वितरित होने वाले चावल के उपलब्ध कराने के लिए बात की है।

रिपोर्टर : क्या रेट होगा चावल का, आप जो दोगे हमें?

रफी : क्या तय हुई थी आपकी?

रिपोर्टर : यो तो कह रहे थे 16, 17, 18 (रुपये) में बेचता हूं।

रफी : यहां तो 27-28 रुपये खरीदते हैं वो, डीलर ले लेता है हमसे 30-32 का रेट। …हम पैसे नहीं लेकर आते, बदले में चावल ही लेकर आते हैं।

रिपोर्टर : एरिया कौन-सा है?

रफी : तरिया मोहनपुर, बरेली जिला।

रिपोर्टर : हमसे कितना लोगे?

रफी : बरेली के अंदर मोटा चावल की कीमत 40 रुपये है।

रिपोर्टर : हम सरकारी चावल की बात कर रहे हैं, फ्री वाली…।

रफी : पौना चावल भी समझ लो 50 का रेट है, तो मोटा चावल कितने का होगा?

रिपोर्टर : हमको कितने में दोगे चावल?

रफी : आप कितना दोगे? …पहले बताओ।

रिपोर्टर : दे दो 32 रुपये में, पर किलो।

रफी : नहीं, इतना तो नहीं हो सकता। …कम-से-कम 38 रुपये तो हो।

रिपोर्टर : चलो मैं शाम को बताता हूं।

रफी : हां बता दो हमने डीलर के भी कानों में बात डाल दी है। …एक-दो रुपये की बात होगी, तो इधर-उधर हो जाएगा। हां, भरोसे वाले आदमी हो, …आप वीडियो कॉल करके पूरा माल देखिए; पूरी तसल्ली हो, तभी आगे बढ़ना।

बरेली से नि:शुल्क राशन योजना वाले चावल बेचने वालों की पड़ताल करते हुए ‘तहलका’ रिपोर्टर ने उत्तर प्रदेश के एक अन्य शहर नोएडा में कुछ ऐसे लोगों की जानकारी जुटायी। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने नोएडा के सेक्टर-81 में रिहाना से मुलाकात की, जो क्षेत्र की अन्य महिलाओं के साथ मुफ्त-राशन लाभार्थी होने का दावा करती है। ‘तहलका’ रिपोर्टर एक स्थानीय दलाल के माध्यम से रिहाना और अन्य महिलाओं से मिले। ‘तहलका’ रिपोर्टर से मिलते ही रिहाना ने कहा कि वह अपना मुफ्त-राशन के तहत मिलने वाले चावल 35 रुपये प्रति किलोग्राम से कम भाव में नहीं बेचेगी, जो उसके अनुसार खुले बाजार भाव से सस्ता है। रिपोर्टर ने रिहाना से यह भी कहा कि हमें हर महीने मुफ्त-राशन योजना के तहत मिलने वाले चावल की आपूर्ति की आवश्यकता है।

रिहाना : किस रेट (भाव) में लेते हो?

रिपोर्टर : आप किस रेट में लेंगी?

रिहाना : 35 रुपये।

रिपोर्टर : 35 रुपये किलो? …ज्यादा नहीं है?

रिहाना : कम हैं। …दुकान के रेट से तो कम ही हैं।

रिपोर्टर : चावल कौन-से हैं? …दिखा देंगी आप?

रिहाना : अभी तो नहीं हैं।

रिपोर्टर : ये वही हैं ना, जो सरकार फ्री में देती है?

रिहाना : हां; …पांच किलो मिलते हैं, एक आदमी को।

रिपोर्टर : मुझे दिखा दो आप।

रिहाना : चावल कहां है अभी?

रिपोर्टर : मिले नहीं हैं?

रिहाना : ना! …5 तारीख तक मिलते हैं, इस बार मिले नहीं हैं। 10 तक मिलेंगे।

रिपोर्टर : तो हमें हर महीने चाहिए।

रिहाना : हां।

रिपोर्टर : चावल कितना मिलता है?

रिहाना : 10 मिलता है।

रिपोर्टर : गेहूं 10 किलो? …कितना लोग हो आप घर में?

रिहाना : 25 किलो मिलता है। …जैसे हम चाहें, तो पूरा चावल भी ले सकते हैं।

रिपोर्टर : अच्छा; चाहो पूरा चावल ले लो, चाहो तो पूरा गेहूं?

रिहाना : हां; और कुछ नहीं मिलता।

जब ‘तहलका’ रिपोर्टर की महिलाओं के समूह में रिहाना से बात हो रही थी, तब किसी ने शोर मचाया कि हम (रिपोर्टर) मीडिया से हैं और उनका स्टिंग कर रहे हैं। समूह में खड़े एक लड़के ने रिपोर्टर को पुलिस वाला कहा। इसके बाद रिहाना ने अपना रुख बदल लिया और उन्हें (रिपोर्टर को) अपना मुफ्त-राशन बेचने से इनकार कर दिया और यहां तक कह दिया कि उसके पास राशन कार्ड भी नहीं है। लेकिन रिपोर्टर के साथ पहले हो चुकी रिहाना की बातचीत उसके इस दावे का समर्थन नहीं करती कि उनके पास राशन कार्ड नहीं है।

रिहाना : अभी हमारे बने नहीं हैं राशन कार्ड।

रिपोर्टर : अभी तो आप कह रही हो बना हुआ है?

रिहाना : मेरे छ: तो बच्चे हैं खाने वाले। …दो जानें (लोग) हम हो गये, आठ जानें (लोग), तो 25 किलो क्यूं, कम-से-कम 40 किलो मिलन चाहिए। …यहां तो मैं ले नहीं रही हूं, गांव में मिलता है हमारा।

एक अन्य महिला : दो किलो गेहूं, तीन किलो चावल, ऐसे मिलता है।

रिपोर्टर : दो किलो गेहूं, तीन किलो चावल? …एक आदमी पर?

महिला : हां।

रिपोर्टर : तो क्या रेट? बताएं आप! …20 रुपये किलो?

रिहाना : कैसी बात कर रहे हो?

रिपोर्टर : ये तो मना कर रही हैं।

रिहाना : इतने खाने वाले हैं, फिर भी मैं बेच रही हूं। हमारे तो चावल भी अच्छे ना हैं, मोटे चावल हैं।

एक दूसरी महिला : ये  मीडिया वाले हैं।

रिपोर्टर : मीडिया वाले हैं? …मेरे तो बचते ही ना हैं चावल। मीडिया वाले की बात ना है। …वैसे भी इतने मोटे चावल देख लेंगे, तो मीडिया वाले क्या करेंगे?

एक लड़का : इनके दिल में धक-धक हो रही है, ये पुलिस वाले तो नहीं हैं?

रिपोर्टर : अरे, पुलिस वाले नहीं हैं।

रिहाना : नहीं-नहीं। मैं आपको जानती हूं, चाचा हैं हमारे। …10 साल से मिल रहा है बराबर।

रिहाना के बाद ‘तहलका’ रिपोर्टर की मुलाकात नोएडा के उसी सेक्टर की दूसरी गली में एक अन्य महिला से हुई। मुफ्त-राशन का लाभार्थी होने का दावा करने वाली महिला ने अपना नाम बताने से इनकार कर दिया; लेकिन उसने कबूल किया कि वह खुले बाजार में 25 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से मुफ्त चावल बेच रही है।

महिला : अभी नहीं मिला है चावल।

रिपोर्टर : क्या रेट देती हो? …25 रुपये?

महिला : हां।

रिपोर्टर : जो फ्री राशन सरकार दे रही है, हमको वो चाहिए पांच किलो; …वो चाहिए हमको।

महिला : दे तो देते आपको, पर वो अभी मिले नहीं हैं। पिछले महीने मिले। कभी 7 को (7 तारीख को) मिले, कभी 8 को। …इस बार मिला ही नहीं, 9 तारीख हो गयी।

रिपोर्टर : अप्रैल में अभी नहीं मिला?

महिला : अभी नहीं मिला।

रिपोर्टर : कितना मिलता है?

महिला : एक आदमी पर पांच किलो।

रिपोर्टर : दो आदमी पर 10 किलो, दो केजी (किलो) चावल, तीन केजी गेहूं?

महिला : चावल लो या अनाज लो, हम तो चावल ले लेते हैं।

रिपोर्टर : वो क्या रेट दे देंगी आप? …हमें चाहिए खरीदना है हमको?

महिला : अभी तो मिले नहीं हैं।

रिपोर्टर : नहीं, जब मिलेंगे, तब?

महिला : जब मिलेंगे, तब ले लेना।

रिपोर्टर : किस रेट में?

महिला : हम तो 20 भी दे देवें हैं। …हम हैं हिन्दू, हम तो अपना खाने के लिए ही कर लेते हैं। जैसे कोई आता है, तो दे देते हैं. …दो केजी, 2.5 केजी; …वैसे कोई जरूरत नहीं है।

उसी गली में ‘तहलका’ रिपोर्टर की मुलाकात एक अन्य महिला से हुई। उसने भी दावा किया कि वह मुफ्त-राशन की लाभार्थी है; लेकिन उसने अपना नाम बताने से इनकार कर दिया। उसने कबूल किया कि वह सरकार से मुफ्त-राशन योजना के तहत मिलने वाले चावल खुले बाजार में 25 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव से बेच देती है। वह ‘तहलका’ रिपोर्टर को ग्राहक समझकर 30 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल बेचने को तैयार हो गयी। हालांकि उसने गेहूं बेचने से इनकार कर दिया।

रिपोर्टर : आप क्या लेती हो फ्री में?

महिला : चावल भी, राशन भी।

रिपोर्टर : चावल और गेहूं दोनों मिलते हैं?

महिला : हां; हमारे चार-पांच लोग हैं। 15 गेहूं, 15 चालल आता है।

रिपोर्टर : फ्री में आता होगा ये तो?

महिला : हां।

रिपोर्टर : हमें चावल-गेहूं दोनों चाहिए।

महिला : दोनों नहीं देंगे।

रिपोर्टर : एक दे दोगी?

महिला : हां; हम चावल बेचे, …25 रुपये किलो।

रिपोर्टर : चावल बेचते हो, 25 किलो? …ठीक है, हमको हर महीने चाहिए होगा।

महिला : मिलेगा तो दे देंगे।

रिपोर्टर : ठीक है, वही 25 रुपये पर केजी (25 रुपये प्रति किलो)?

दलाल : ज्यादा दे देना, गरीब आदमी है।

रिपोर्टर : चलो ठीक है, 30 रुपये पर केजी ले लेंगे।

उसी गली में ‘तहलका’ रिपोर्टर की मुलाकात एक अन्य महिला से हुई। उसने भी खुद को मुफ्त-राशन की लाभार्थी होने का दावा किया। उसने भी अपना नाम बताने से इनकार कर दिया। लेकिन उसने कबूल किया कि वह सरकार से मुफ्त मिलने वाला चावल 25 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से खुले बाजार में बेच रही है। महिला ने बताया कि उसने पिछले महीने का चावल स्थानीय दुकानदार को बेचा था। उसने बताया कि लोग उससे चावल खरीदने के लिए उनके दरवाज़े पर आते हैं। यह महिला भी ‘तहलका’ रिपोर्टर को 30 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से अपना चावल बेचने के लिए भी सहमत हो गयी।

रिपोर्टर : क्या रेट बेचती हो आप चावल?

महिला : दुकानदार तो 25 ही (25 रुपये प्रति किलो) ही देवे है।

रिपोर्टर : दुकानदार 25? …लेकिन हम लगातार लेंगे आपसे।

महिला : ठीक है।

रिपोर्टर : हर महीने 30 रुपये (किलो का) रेट ले लेना आप हमसे। …आप कहां बेचती हो? …दुकान पर?

महिला : नहीं-नहीं, आप घर से ले लेना।

रिपोर्टर : घर से?

महिला : घर से भी ले जावे है, …दुकान से भी। …अब पता लग गया, अब तुम्हें दे दिया करेंगे।

रिपोर्टर : चावल देखने को मिल सकता है, क्वालिटी कैसी है?

महिला : अब तो बेच दिये, …साथ-के-साथ बेच देते है। हमारे बच्चे खाते नहीं हैं, इसलिए हम हाथ-के-हाथ बेच दें, चून (आटा) ले लें दुकान से।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत देश भर में 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को पांच किलोग्राम प्रति व्यक्ति के हिसाब से मुफ्त-राशन मिल रहा है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीब एवं जरूरतमंद परिवारों को आवश्यक खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना है। हालांकि यह बात सामने आयी है कि कई लाभार्थी उन्हें मिलने वाले इस मुफ्त-राशन को, खासतौर पर चावलों को खुले बाजार में बेच रहे हैं और बड़ी संख्या में अपात्र लोग भी इस कल्याणकारी योजना का लाभ उठा रहे हैं।

पीएमजीकेएवाई के सम्बन्ध में ‘तहलका’ एसआईटी ने अपने गुप्त कैमरे में लाभार्थियों को उन्हें मिलने वाले मुफ्त सरकारी राशन को बेचने की बात करते हुए कैमरे में क़ैद किया है, जो कि चौंकाने वाली बात है। जरूरतमंदों को वितरित किये जाने वाले राशन के इस व्यापक दुरुपयोग को देखते हुए सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की गयी है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस योजना से उन लोगों को ही लाभ मिले, जिन्हें वास्तव में इसकी आवश्यकता है, और इस राशन की बढ़ती कालाबाजारी पर अंकुश लगाया जा सके। अब यह कार्रवाई का समय है।

पहलगाम का असली संदेश और सीख?

पूर्व सैन्य कमांडरों ने पहलगाम में हुए हालिया आतंकवादी हमले का कारण ख़ुफ़िया जानकारी और सुरक्षा तैयारियों में भारी विफलता बताया है। जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद एक चिन्ताजनक रूप से परिचित पैटर्न का अनुसरण करता है; लेकिन बैसरन में हमला एक ख़तरनाक इरादे का प्रतिनिधित्व करता है। इससे कई गंभीर प्रश्न उठते हैं; ऐसे संवेदनशील क्षेत्र में सेना क्यों नहीं तैनात की गयी? ख़ुफ़िया एजेंसियाँ क्या कर रही थीं? आतंकवादी इतनी आसानी से हमारे सुरक्षा तंत्र में सेंध लगाने में कामयाब कैसे हो गये?

मोदी सरकार ने अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के बाद से अपनी पीठ थपथपायी है और अब कश्मीर में इस कहानी को नया रूप देने की कोशिश की है। लेकिन यह हमला, जिसकी ज़िम्मेदारी प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा के प्रतिनिधि ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ ने ली है; एक कड़वी सच्चाई को रेखांकित करता है। यह महज़ संयोग नहीं है; क्योंकि यह नरसंहार अमेरिका द्वारा 26/11 के आरोपी तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण को मंज़ूरी दिये जाने के कुछ ही समय बाद हुआ। वह भी ऐसे समय में, जब पाकिस्तान में अशान्ति बढ़ रही है। वहाँ बलूच विद्रोह तेज़ हो रहा है और सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर भारत-विरोधी बयानबाज़ी कर रहे हैं। पहलगाम, जो अपेक्षाकृत सुरक्षित माना जाता है और जिसके बारे में कोई पूर्व ख़ुफ़िया चेतावनी नहीं थी; में हुए हमले की निर्लज्जता ने जनता के ग़ुस्से को फिर से भड़का दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपनी विदेश यात्रा को छोटा करने का निर्णय और गृह मंत्री अमित शाह का घायलों से मिलने जाना स्थिति की गंभीरता को रेखांकित करता है।

इस बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने हमले की एक तटस्थ, पारदर्शी और विश्वसनीय जाँच का प्रस्ताव दिया है। हालाँकि यह एक खोखला प्रस्ताव है; क्योंकि इस्लामाबाद ने उरी और पुलवामा से सम्बन्धित जाँचों सहित पिछली कई जाँचों में भारत के साथ सहयोग करने से लगातार इनकार किया है। यह कूटनीति और छल के बीच एक स्पष्ट रेखा है। इस त्रासदी के बाद चीन की चुप्पी, विशेष रूप से भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती नज़दीकियों के बीच बहुत कुछ कह रही है। बीजिंग ने अभी तक इस हमले की निंदा नहीं की है। यद्यपि भारत अक्सर बड़े आतंकवादी हमलों का जवाब कूटनीतिक तरीक़े से सुरक्षा उपायों के साथ देता है; लेकिन पूर्ण पैमाने पर सैन्य जवाबी कार्रवाई शायद ही कभी की जाती है। आतंकवाद में पाकिस्तान की राज्य सहभागिता इस्लामाबाद पर एकीकृत अंतरराष्ट्रीय दबाव की माँग करती है। फिर भी दु:ख की घड़ी के बीच बैसरन का संदेश एक नये अध्याय की शुरुआत का संकेत हो सकता है। जैसा कि वरिष्ठ पत्रकार राकेश रॉकी ने अपनी आवरण कथा- ‘आत्मघाती चूक’ में कहा है। हालाँकि हमले की निराशा के बीच लचीलेपन और आशा की झलकियाँ भी हैं। हमले के ठीक एक सप्ताह बाद पर्यटक, जिनमें विदेशी भी शामिल हैं; एक बार फिर श्रीनगर की डल झील पर शिकारा की सवारी का आनंद ले रहे हैं और सोशल मीडिया पर शान्तिपूर्ण दृश्य साझा कर रहे हैं। सामान्य स्थिति की ओर यह तीव्र वापसी कश्मीर की शान्ति और स्थिरता की गहरी चाहत को उजागर करती है।

कश्मीरी लोग इस अत्याचार की निंदा करने के लिए एकजुट हैं; उमर अब्दुल्ला जैसे राजनीतिक नेताओं से लेकर सैयद आदिल हुसैन शाह के परिवार तक, जो एक बहादुर टट्टू सवार था, जिसने बहादुरी से एक आतंकवादी से हथियार छीनने की कोशिश की थी और आतंकियों की गोलियों का निशाना बना। पाकिस्तान के लिए जम्मू-कश्मीर के निवासियों का संदेश स्पष्ट है- बाहर रहो। कश्मीर को ठीक होने दो और आगे का रास्ता तय करने दो। इस अंतहीन संघर्ष के सबसे मार्मिक परिणामों में से एक सीमा-पार विवाहों से पैदा हुए बच्चों की दुर्दशा है, जो किसी निर्जन क्षेत्र में पहचान, राजनीति और दर्द के बीच फँसे हुए हैं। कश्मीर के लोग शोक मना रहे हैं; लेकिन वे स्पष्टता, साहस और करुणा के साथ अपनी बात भी कह रहे हैं। शायद यही पहलगाम का असली संदेश है।   

आत्मघाती चूक- पहलगाम आतंकी हमले से उठ खड़े हुए कई सवाल

इंट्रो- पहलगाम में आतंकी हमले में 26 लोगों के नरसंहार ने भारत में ग़ुस्सा पैदा किया है। यह ग़ुस्सा आतंकियों और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ तो है ही, केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ भी है, जिस पर सुरक्षा में लापरवाही का आरोप लगाया जा रहा है। सीमा पर इस बड़ी घटना के बाद तनाव है। इस घटना के बाद मोदी सरकार की कश्मीर नीति पर भी सवाल उठे हैं। बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार राकेश रॉकी :-

क्या कश्मीर में सब कुछ सामान्य है? क्या ऐसा दिखाने की केंद्र सरकार की ज़िद ने कश्मीर में नरसंहार की बड़ी घटना को अंजाम देने के आतंकवादियों के मंसूबों को बल दिया? जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 निरस्त करने के बाद सूबे में कई पर्यटन स्थलों को सैलानियों के लिए खोलने का फ़ैसला केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लिया था, जिनमें 60 ऐसे थे, जहाँ उचित सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी या वे सुरक्षा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील थे। पहलगाम के जिस बैसरन पिकनिक स्पॉट पर आतंकियों ने 25 सैलानियों और एक स्थानीय नागरिक की हत्या का ख़ूनी खेल खेला, वहाँ से कुछ समय पहले सीआरपीएफ को हटा लिया गया था। इसका फ़ैसला किस स्तर पर किसने किया? यह भी एक बड़ा सवाल है। घाटी के मुसलमान भी आतंक की इस घटना के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए। निश्चित ही पहलगाम का बैसरन आतंकी हमला सुरक्षा और रणनीति की बड़ी चूक का नतीजा है, जहाँ घटना के बाद सुरक्षा बलों को पहुँचने में ही डेढ़ से दो घंटे का लम्बा वक़्त लग गया। यह घटना ऐसे समय में हुई है, जब अमेरिका के उप राष्ट्रपति जेडी वेन्स भारत के दौरे पर थे। इस घटना ने न सिर्फ़ भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव बना दिया है, बल्कि चीन ने पाकिस्तान को जे-10सी और जेएफ-17 लड़ाकू विमान देने की घोषणा कर तनाव को और हवा दे दी है। तनाव की स्थिति यह है कि भारत ने सिंधु जल समझौता निलंबित करने सहित कुछ फ़ैसले किये हैं, तो पाकिस्तान ने शिमला समझौते को रद्द करने की घोषणा की है।

जानकारी के मुताबिक, पहलगाम आतंकी नरसंहार के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जब श्रीनगर पहुँचे थे, तो एक बैठक में उच्चाधिकारियों ने उन्हें बताया था कि कश्मीर में अनुच्छेद-370 ख़त्म होने के बाद पर्यटकों के लिए खोले गये 63 ऐसे स्थल हैं, जो असुरक्षित हैं और वहाँ सुरक्षा के पुख़्ता इंतज़ाम नहीं। शाह को अधिकारियों ने बैठक में सुझाव दिया कि पहलगाम हमले को देखते हुए इन स्थलों को पर्यटकों की आवाजाही के लिए बंद कर देना चाहिए। सूत्रों के मुताबिक, घाटी में आतंकी हमले के ख़तरे को लेकर भी इनपुट्स केंद्र को भेजे गये थे। हालाँकि यह माना जाता है कि मोदी सरकार ऐसा करने में हिचक रही थी; क्योंकि वह लम्बे समय से यह दावा कर रही है कि कश्मीर में अब स्थिति सुधर चुकी है और इस दु:ख की घड़ी में बैसरन का संदेश एक नये अध्याय की शुरुआत का संकेत हो सकता है।

निश्चित ही पहलगाम आतंकी हमले ने देश को हिलाकर रख दिया है। आतंकवादियों और उनके आकाओं के ख़िलाफ़ देश की जनता में जबरदस्त ग़ुस्सा है। पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कार्रवाई का दबाव बन रहा है। बहुत-से उग्र गुटों ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया है। इस दु:खद घटना का सबसे शर्मनाक पहलू यह रहा कि इसमें देश के ही एक पक्ष की तरफ़ से हिन्दू-मुस्लिम का नैरेटिव बनाने की भरपूर कोशिश हो रही है। कहा यह गया कि आतंकवादियों ने पर्यटकों की हत्या करने से पहले सभी का धर्म पूछा था। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है; क्योंकि किसी ख़ास मक़सद से जब ऐसा ख़ूनी खेल खेला जाता है, तब इन घटनाओं के पीछे खड़े लोग एक रणनीति बनाकर यह नापाक तरीक़े अपनाते हैं, जिससे समाज में अफ़रा-तफ़री मचे।

जनता में मोदी सरकार के ख़िलाफ़ भी बहुत नाराज़गी है; क्योंकि यह ज़ाहिर हो गया है कि जहाँ सैलानियों की इतनी भीड़ जुट रही थी, वहाँ एक भी जवान सुरक्षा में तैनात नहीं था। आतंकी हमले में जान गँवाने वालों के रिश्तेदारों के जो वीडियो सामने आये हैं, उनसे भी ज़ाहिर होता है कि घटनास्थल पर सुरक्षा के नाम पर कुछ भी नहीं था। ऐसा क्यों हुआ, इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय की ज़िम्मेदारी बनती है। जम्मू-कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश है और वहाँ सुरक्षा की सारी ज़िम्मेदारी सीधे गृह मंत्रालय की है। यह घटना केंद्र सरकार के सबसे बड़े सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल की रणनीति की नाकामी की तरफ़ भी इशारा करती है, जो मोदी सरकार में देश और देश से बाहर की सुरक्षा नीति में बड़ा रोल निभा रहे हैं।

हाल के महीनों में जम्मू के सीमान्त ज़िलों राजौरी, पुंछ, किश्तवाड़ आदि में आतंकियों की घुसपैठ और हमलों की कई घटनाएँ हुई थीं जिससे सुरक्षा इंतज़ाम और चौकस करने की सख़्त ज़रूरत थी। यहीं से आतंकी कश्मीर पहुँचते हैं। यह रिपोर्ट्स सामने आ रही थीं कि इन इलाक़ों के घने जंगलों में आतंकियों ने अपने ठिकाने बना लिये हैं। पीरपंजाल का यह इलाक़ा बहुत सघन है और कश्मीर को यहीं से रास्ता भी जाता है। हाल में यह जानकारी भी सामने आयी है कि पाकिस्तान सेना और आईएसआई के सहयोग से आतंकियों को अब गुरिल्ला ट्रेनिंग दी जा रही है। स्थानीय युवाओं की आतंकी घटनाओं में भागीदारी कम हुई है और विदेशी आतंकी यह काम ज़्यादा कर रहे हैं।

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, सरकार के जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की कमर तोड़ने के दावों के विपरीत और अनुच्छेद-370 ख़त्म करने के फ़ैसले को इसका श्रेय देने के बावजूद इस सरहदी सूबे में अभी भी 100 से 125 के बीच आतंकी सक्रिय हैं, जिनमें 85 फ़ीसदी विदशी आतंकी हैं। यह स्थिति तब है, जब अभी भी कश्मीर में सामान्य से कहीं अधिक सैन्य बल मौज़ूद हैं। ऐसे में यह गंभीर सवाल उठता है कि पहलगाम के जिस पिकनिक स्पॉट पर आतंकियों ने ख़ूनी खेल खेला वहाँ सुरक्षा के लिए एक भी जवान तैनात नहीं था। क्यों? सरकार को इसका जवाब देना चाहिए।

कहना होगा कि आतंकवादी और उनके आका अपने मक़सद में सफल रहे, क्योंकि पहलगाम की घटना के बाद टीवी चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक में सुरक्षा तंत्र की बड़ी चूक और नाकामी पर सवाल उठाने की जगह हिन्दू-मुस्लिम वाला नैरेटिव चला दिया गया। इस घटना के बाद चुनावी राज्य बिहार पहुँचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान और हमले के ज़िम्मेदार आतंकियों को चेताया, तो नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी आतंकवादी घटना में घायल लोगों के हाल जानने कश्मीर पहुँचे। गृह मंत्री अमित शाह ने घटना वाले दिन ही श्रीनगर में अधिकारियों से स्थिति की जानकारी ली। दिल्ली में इसके बाद सर्वदलीय बैठक भी इस घटना को लेकर हुई, जिसमें कांग्रेस सहित पूरी विपक्ष ने सुरक्षा में लापरवाही का सवाल खड़ा किया साथ ही सरकार को आश्वस्त किया कि विपक्ष उसके साथ खड़ा है और वह जो भी फ़ैसला करेगी, उसका समर्थन रहेगा।

रोज़गार पर हमला– इसमें कोई दो-राय नहीं कि कश्मीर घाटी में सैलानियों की संख्या बढ़ने से यदि कोई सबसे ज़्यादा ख़ुश थे, तो वे स्थानीय कश्मीरी मुस्लिम थे, जिनकी रोज़ी-रोटी का सबसे बड़ा ज़रिया ही पर्यटक हैं। ऐसे में इस घटना ने इन कश्मीरी मुसलमानों को भी गहरा ज़$ख्म दिया है। यही कारण रहा कि यह मुस्लिम खुलकर दहशतगर्दों के ख़िलाफ़ आये हैं और अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर कर रहे हैं। घटना वाले दिन भी कश्मीरी मुसलामानों ने आतंकी हमले के दौरान कई पर्यटकों की जान बचाने में बड़ी भूमिका अदा की और ख़ुद की जान ख़तरे में डाली। आतंकियों ने पर्यटकों की जान बचाने की कोशिश करने पर ऐसे ही एक स्थानीय मुस्लिम सईद आदिल हुसैन शाह पर गोलियों की बोछार कर दी, जिससे आदिल की मौत हो गयी।

इस हमले से लम्बे समय से आतंकवाद की मार झेल रहे कश्मीर में फिर से पर्यटकों के आने से रोज़गार के जो रास्ते खुले थे, फ़िलहाल उन पर संकट के बादल छाये हुए समझो। यह घटना स्थानीय लोगों के लिए आर्थिक रूप से बहुत नुक़सानदेह साबित हुई है। यही कारण रहा कि उन्होंने खुलकर दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी शुरू कर दी है। कश्मीर में इस घटना के बाद पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भी जबरदस्त माहौल बना है, जो कश्मीरियों के हक़ के लिए लड़ने का ढोंग करता रहता है। कश्मीर में लोग समझ चुके हैं कि पाकिस्तान कभी भी उनका हितेषी नहीं था, न कभी होगा। कश्मीर के नाम पर उसके नेता सिर्फ़ यहाँ के लोगों को बरगलाने की कोशिश करते हैं।

हाल के महीनों में कश्मीर में पर्यटकों की संख्या बढ़ी थी; क्योंकि केंद्र सरकार लगातार दावे कर रही थी कि वहाँ माहौल अब सुधर चुका है, आतंकवाद की कमर तोड़ी जा चुकी है और शान्ति लौट चुकी है। लेकिन जम्मू रीज़न में जिस तरह हाल के महीनों में आतंकी हमले हुए थे, उन्हें देखकर साफ़ लग रहा था कि सरकार का दावा सही नहीं है। दुनिया को दिखाने के लिए भले सरकार ने शान्ति का ढोल पीटा हो, ज़मीनी हक़ीक़त वैसी नहीं थी। इस बड़ी घटना से पहले कश्मीर के भीतर भी आतंकी घटनाएँ हो रही थीं। भले छोटे स्तर पर थीं। ऐसे में कश्मीर के पर्यटन स्थलों को आतंकियों की चरागाह के रूप में खुला छोड़ देना बहुत नासमझी भरा क़दम था। जिन जगहों को सैलानियों के लिए खोला गया, उनमें 60 को संवेदनशील माना गया था। लेकिन वहाँ सुरक्षा का इंतज़ाम न करना केंद्र सरकार की भयंकर भूल थी, जिसकी क़ीमत 26 भारतीयों को अपनी जान गँवा कर चुकानी पड़ी।

पहलगाम की घटना के बाद कश्मीर जाने की रफ़्तार एकदम ढीली पड़ गयी। हज़ारों लोगों ने अपनी बुकिंग रद्द कर दी है, जबकि जिन्हें कुछ और दिन कश्मीर में रुकना था, वे तुरंत कश्मीर वापस चले गये हैं। एयरलाइन्स सूत्रों के मुताबिक, पहलगाम घटना के बाद आनन-फ़ानन में सैकड़ों पर्यटकों ने वापसी के लिए टिकट ख़रीदे हैं। जानकारों के मुताबिक, इस एक घटना ने कश्मीर में जाने वालों का भरोसा डिगा दिया है और इसे बहाल करने में लम्बा वक़्त लग जाएगा।

सूत्रों के मुताबिक, पहलगाम हमले के बाद ख़तरे को देखते हुए केंद्र सरकार ने 29 अप्रैल को ज़्यादा संवेदनशील 48 पर्यटक स्थलों को सैलानियों के लिए बंद कर दिया है। इनमें श्रीनगर की मशहूर डल झील भी है।

हिन्दू-मुस्लिम नैरेटिव– इस दु:खद घटना का सबसे शर्मनाक पहलू यह रहा कि इसमें देश के ही एक पक्ष की तरफ़ से हिन्दू-मुस्लिम का नैरेटिव बनाने की भरपूर कोशिश हुई। कहा यह गया कि आतंकवादियों ने पर्यटकों की हत्या करने से पहले सभी का धर्म पूछा था। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है; क्योंकि किसी ख़ास मक़सद से जब ऐसा ख़ूनी खेल खेला जाता है तब इन घटनाओं के पीछे खड़े लोग एक रणनीति बनाकर यह नापाक तरीक़े अपनाते हैं, ताकि समाज में अफ़रा-तफ़री मचे। कहना होगा कि आतंकवादी और उनके आका अपने मक़सद में सफल रहे। क्योंकि पहलगाम की घटना के बाद गोदी पत्रकारों ने टीवी चैनलों, अख़बारों से लेकर सोशल मीडिया तक पर सवाल उठाने और यह बताने की जगह कि यह सुरक्षा तंत्र की बड़ी चूक और नाकामी है; धर्म वाला नैरेटिव चला दिया। इस घटना के बाद चुनावी राज्य बिहार पहुँचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को चेताया, तो नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी अमेरिका की यात्रा अधूरी छोड़ आतंकवादी घटना में घायल हुए लोगों से मिलने कश्मीर के अस्पतालों में पहुँचे।

यह बहुत आश्चर्यजनक है कि कश्मीर में आतंकवाद की कोई भी वारदात होने के बाद उसमें धर्म खोजने वाले बहुत-से नफ़रती तत्त्व सामने आ जाते हैं। सच यह है कि कश्मीर में सन् 1989 में जबसे आतंकवाद शुरू हुआ, वहाँ सरकारी आँकड़ों के मुताबिक 2025 तक क़रीब 43,000 लोगों (ग़ैर-सरकारी आँकड़ों के मुताबिक 60,000) लोगों की मौत हुई है। इस दौरान छितिसिंह पुरा में सिखों के नरसंहार की घटना हुई और घाटी से बड़े पैमाने पर कश्मीरी पंडितों का पलायन भी हुआ। इस दौरान जो लोग मारे गये उनमें 85 फ़ीसदी संख्या मुसलमानों की है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि आतंकवाद में सबसे ज़्यादा पीड़ित कश्मीर रहा, जिसने वहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य के ढाँचे को ख़त्म कर दिया। असंख्या लोगों की बलि ले ली और रोज़गार के रास्ते बंद कर दिये। जान के क़ीमत सभी इंसानों की सामान है; लेकिन इस तथ्य को कैसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है कि सूबे में आतंकवाद के सबसे बड़ी क़ीमत मुसलमानों ने चुकायी है।

पहलगाम की घटना के बाद भी हिन्दू-मुस्लिम नैरेटिव बनाने की कोशिश हुई। बनाया भी गया। लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा कि इस घटिया राजनीतिक एजेंडे से हासिल क्या हुआ? आतंकवादियों ने पर्यटकों को मारने के लिए हिन्दुओं को निशाना बनाया यह उनकी और उनके आकाओं की चाल थी। जानबूझकर धर्म पूछा गया और महिलाओं से कहा गया कि जाकर मोदी को बता देना, ताकि स्थानीय लोगों और अन्य के बीच धर्म के नाम पर विभाजन पैदा किया जाए। कहा जाता है कि यदि आप लोगों को हज़ार कोशिश करके भी बाँट नहीं पा रहे हों, तो उनके बीच धर्म को लेकर आ जाओ। फिर देखो कैसे चिंगारी भड़कती है। पहलगाम के घटना के बाद भी यह कोशिश हुई और इसके पीछे राजनीति करने वाले भी कम नहीं थे।

लापरवाही कहाँ– कश्मीर में सैलानियों के लिए ख़तरा होने के बावजूद उन्हें ऐसी जगह जाने से किसी ने नहीं रोका जहाँ जाना ख़तरनाक हो सकता था। महाराष्ट्र से लेकर दूसरे राज्यों तक के टूर ऑपरेटरों को यह पता था कि पहलगाम की बैसरन घाटी में सैलानियों को भेजकर पैसा बनाया जा सकता है। प्रशासन और सुरक्षा व्यवस्था में बैठे लोगों को क्यों नहीं जानकारी थी कि एक ऐसे इलाक़े में रोज़ सैकड़ों पर्यटक आ रहे हैं, जहाँ जाने में ख़तरा है। एक ऐसी जगह जहाँ एक भी सुरक्षाकर्मी नहीं था, वहाँ सुरक्षा एजेंसियों और प्रशासन की नाक के नीचे रोज़ सैकड़ों पर्यटक जुट रहे थे। बैसरन में एक भी सुरक्षाकर्मी का न होना इसलिए भी आश्चर्यजनक है; क्योंकि हमले से कुछ दिन पहले ही भाजपा सांसद निशिकांत दुबे गुलमर्ग में अपने जन्मदिन पर पारिवारिक पार्टी का आयोजन कर रहे थे और उस समय वहाँ निजी पार्टी होने के बावजूद बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया था। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, पिछले कुछ हफ़्तों से बैसरन पिकनिक स्पॉट पर हर रोज़ 1800 से 2100 पर्यटक पहुँच रहे थे। लेकिन इसके बावजूद किसी ने यह चिन्ता नहीं की, कि वहाँ सुरक्षा के इंतज़ाम किये जाएँ।

जिस पिकनिक स्पॉट पर यह घटना हुई घास का वह मैदान कंटीली बाड़ से घिरा है। यही नहीं, भीतर जाने के लिए 30 रुपये का शुल्क अदा करना होता है, तभी कोई लोहे के गेट से भीतर जा सकता है। सवाल है कि जब आतंकी गेट से भीतर गये होंगे, तो क्या वहाँ बैठे लोगों को शक नहीं हुआ होगा? घटना के बाद इस मैदान में सैलानियों के शव ख़ून से लथपथ पड़े थे। आतंकियों की गोलियों का शिकार सभी पुरुष हुए। ख़ूनी खेल खेलकर आतंकी भागने में सफल हो गये; क्योंकि वहाँ सुरक्षा दस्ते का एक भी जवान नहीं था। घायल सुरक्षा और मदद की गुहार लगा रहे थे। स्थानीय लोगों, जिनमें ज़्यादातर दुकानदार या टट्टू वाले थे; ने घायलों को पीठ पर लादकर पहाड़ी से नीचे सुरक्षित जगहों पर पहुँचाया। घटनास्थल पर सेना या सुरक्षा जवान डेढ़ घंटे बाद पहुँचे। तब तक जिन घायलों के बचने की कोई सम्भावना थी भी, उनकी भी साँसें उखड़ चुकी थीं।

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, जहाँ इतनी बड़ी वारदात हुई, वहाँ से केंद्रीय रिज़र्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) का शिविर छ: किलोमीटर दूर है। पुलिस स्टेशन तो और भी दूर लिद्दर में है, जबकि सेना का शिविर तो पहलगाम बाज़ार के नज़दीक है; जो घटनास्थल से काफ़ी दूर है। यही कारण रहा कि सुरक्षा से जुड़े जवानों को घटना के बाद वहाँ पहुँचाने में ज़्यादा वक़्त लगा। घटनास्थल पर कहें कोई सीसीटीवी है; इसकी पुष्टि नहीं होती।

सवाल यह है कि गृह मंत्रालय और इन मामलों में इनपुट देने वाली उसकी एजेंसी आईबी (गुप्तचर ब्यूरो) क्यों यह मान बैठे थे कि इस इलाक़े में आतंकी ख़तरा नहीं है? सच तो यह है कि किश्तवाड़ और पीरपंचाल से घाटी में जाने पर यही इलाक़ा सबसे पहले आता है। बेशक केंद्र सरकार ने ढके छिपे शब्दों में लापरवाही होने की बात स्वीकार की है; लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे उन लोगों की ज़िन्दगी वापस लायी जा सकती है? जो आपके सुरक्षा इंतज़ामों के दावों पर भरोसा करके वहाँ घूमने गये? ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, कोकरनाग के पास घने जंगलों के बाद मैदानी इलाक़ा पड़ता है, जो किश्तवाड़ की तरफ़ फैला हुआ है। चूँकि इन जंगलों में अप्रैल में ही एक मुठभेड़ में जेईएम के तीन विदेशी आतंकी मरे गये थे, वहाँ सतर्कता की सख़्त ज़रूरत थी। लेकिन यह मान लिया गया कि अब कोई ख़तरा नहीं।

सुरक्षा एजेंसियों को इस बात की जानकारी थे, हाल के चार-पाँच वर्षों में इन इलाक़ों में आतंकियों ने अपनी स्थिति मज़बूत की है। ऐसे में पहलगाम हमले को साफ़तौर पर सुरक्षा की गंभीर चूक के रूप में देखा जाना चाहिए। पाकिस्तान आतंकियों की मदद करता है; यह किसी से छिपी बात नहीं है। लिहाज़ा उसको कोसने के साथ साथ अपना सुरक्षा तंत्र मज़बूत करना ज़रूरी नहीं है क्या? पर्यटकों की सामूहिक हत्या की यह घटना निश्चित ही पहली बड़ी घटना है। सन् 1995 से लेकर अब तक इन इलाक़ों में 68 पर्यटक आतंकियों की गोलियों का शिकार हुए हैं।

राजनीतिक असर– पहलगाम में हमले के बाद बेशक कांग्रेस सहित विपक्ष ने सरकार के साथ हर क़दम पर खड़ा होने की बात कही है। हालाँकि साथ ही उसे सरकार की कश्मीर नीति और वहाँ सुरक्षा रणनीति पर सवाल उठाने का भी मौक़ा मिल गया है। सर्वदलीय बैठक में नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी ने इसे लेकर सवाल भी उठाये। उन्होंने इस बात पर हैरानी जतायी कि इतनी महत्त्वपूर्ण बैठक में शामिल होने की जगह प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार जाने को तरजीह दी। उधर पहलगाम हमले से भाजपा के भीतर चल रही उठापटक पर फ़िलहाल विराम लग गया है। यह माना जा रहा है कि आरएसएस लगातार दबाव बनाये हुए है कि भाजपा अध्यक्ष उसकी पसंद का बनेगा। पिछले लम्बे समय से इस पर आरएसएस और भाजपा नेतृत्व के बीच खींचतान चली हुई है। फ़िलहाल अब नया भाजपा अध्यक्ष बनाने में देरी हो सकती है। यही नहीं, यह कयास भी लगाये जा रहे हैं कि आरएसएस केंद्र सरकार में नेतृत्व परिवर्तन पर ज़ोर दे रहा है और चाहता है कि सितंबर तक नया प्रधानमंत्री बने। फ़िलहाल इन सभी चीज़ों पर विराम लग गया है। ये आरोप लग रहे हैं कि पहलगाम हमले को हिन्दू-मुस्लिम रंग देने के पीछे वास्तव में भाजपा के ही लोग थे, ताकि बिहार चुनाव में इसका फ़ायदा लिया जाए। लेकिन जनता में इस घटना के बाद मोदी सरकार के ख़िलाफ़ भी ग़ुस्सा उभरा है, जिससे दावा नहीं किया जा सकता कि आतंकी हमले का लाभ ही मिलेगा; नुक़सान भी हो सकता है।

मोदी सरकार में हुए बड़े आतंकी हमले

उड़ी हमला : 18 सितंबर, 2016 को कश्मीर के उड़ी सेक्टर में एलओसी के पास भारतीय सेना के शिविर पर हमला। इसमें 19 जवान शहीद हो गये।

पठानकोट हमला : 02 जनवरी, 2016 को पंजाब के पठानकोट एयरबेस पर हमला। इसमें सात सुरक्षाकर्मी शहीद और 20 अन्य घायल हुए। चार आतंकी मारे गये।

अमरनाथ यात्रियों पर हमला : 10 जुलाई, 2017 को अमरनाथ जा रहे श्रद्धालुओं पर अनंतनाग ज़िले में आतंकी हमले में सात लोगों की मौत।

पुलवामा हमला : आतंकियों ने 14 फरवरी, 2019 को आईईडी धमाका कर सीआरपीएफ़ की बस को उड़ा दिया जिसमें 40 सैनिक शहीद हो गये।

रियासी हमला : रियासी में 09 जून, 2024 को शिव खोदी से लौट रहे नौ श्रद्धालुओं की हत्या।

उधमपुर हमला : उधमपुर में 16 सितंबर, 2015 को बीएसएफ क़ाफ़िले पर हमले में दो जवान शहीद।

कठुआ हमला : कठुआ में 8 जुलाई, 2024 को जवान शहीद।

डोडा हमला : डोडा में 16 जुलाई, 2024 को 5 जवान शहीद।

गुलमर्ग हमला : गुलमर्ग में 24 अक्टूबर, 2024 को 2 जवान, दो पोर्टर की हत्या।

गान्धरवाल हमला : श्रीनगर के गान्धरवाल में 20 अक्टूबर, 2024 को सात मजदूरों की हत्या।

पहलगाम हमला : 22 अप्रैल, 2025 में पर्यटकों सहित 26 लोगों की हत्या।

भारत ने उठाये ये क़दम

  1. सिंधु जल संधि निलंबित

2- पाकिस्तान का जल प्रवाह नियंत्रित करने की योजना

3- पाकिस्तान नागरिकों का वीजा रद्द

    4- पाकिस्तानी सैन्य सलाहकारों को भारत छोड़ने के निर्देश

    5- अटारी सीमा चौकी बंद

पाकिस्तान ने उठाये ये क़दम

  1.  शिमला समझौता रद्द
  2.  द्विपक्षीय समझौते स्थगित
  3.  वाघा बॉर्डर बंद करने का ऐलान
  4.  भारत के लिए एयरस्पेस बंद करने का फ़ैसला

क्या भारत करेगा हमला?

पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत के तेवर देखते हुए पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में आपात स्थिति मानते हुए वहाँ स्वास्थ्य कर्मियों की छुट्टियों और तबादलों पर तत्काल रोक लगा दी है। सेना को सतर्क रहने के लिए कहा गया है। जानकारों के मुताबिक, भारत आतंकी ठिकानों को निशाना बना सकता है। जैसा उसने 2019 के पुलवामा हमले के बाद किया था। पाकिस्तान सेना प्रमुख आसिम मुनीर, जिन्हें भारत के प्रति आक्रामक सोच रखने वाला जनरल माना जाता है; सेना की तैयारी पर काम कर रहे हैं। यह माना जाता है कि भारत में होने वाले आतंकी हमलों के पीछे सेना और आईएसआई का हाथ होता है, जबकि निर्वाचित सरकार को इसके बार इसकी जानकारी दी ही नहीं जाती। घटना के बाद भारत की प्रतिक्रिया का जवाब देने के लिए सरकार को बाध्य कर दिया जाता है। फ़िलहाल भारत की तरफ़ से कोई संकेत नहीं दिये गये हैं, सिवाय भाषणों में कड़ी कार्रवाई की बात कहने के। हाँ, सेना को तैयार रखा गया है और यह निश्चित है कि भारत, चाहे सीमित ही; सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्रवाई ज़रूर करेगा। सीमा पर जिस तरह तनाव बना है और पाकिस्तान सीजफायर का उल्लंघन कर रहा है, उससे स्थिति गंभीर हुई है। ऊपर से चीन ने पाकिस्तान को सैन्य-हथियार देने की घोषणा करके तनाव को और बढ़ा दिया है।

—ट्विट—-

”पहलगाम की घटना ने देशवासियों को पीड़ा पहुँचायी है। लोग पीड़ित परिजनों के दर्द को महसूस कर सकते हैं। हर भारतीय का ख़ून आतंक की तस्वीरों को देखकर खौल रहा है। ऐसे समय में जब कश्मीर में शान्ति लौट रही थी और लोकतंत्र मज़बूत हो रहा था। पर्यटकों की संख्या में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हो रही थी और लोगों की कमायी बढ़ रही थी; लेकिन देश के दुश्मनों को और जम्मू-कश्मीर के दुश्मनों को ये रास नहीं आया। आतंकी चाहते हैं कि कश्मीर फिर से तबाह हो जाए। इस मुश्किल वक़्त में 140 करोड़ देशवासियों की एकता सबसे बड़ा आधार है।’’

       – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (मन की बात में)

”यह एक दु:खद घटना है। जम्मू-कश्मीर के सभी लोगों ने इस आतंकी हमले की निंदा की है। इस परिस्थिति में कश्मीर के लोग पूर्ण रूप से भारत के साथ हैं। मैं सभी को कहना चाहता हूँ कि आज सारा देश एक साथ खड़ा है। जो कुछ हुआ है, उसके पीछे समाज को बाँटने, भाई को भाई से लड़ाने का विचार है। सरकार को सख़्त क़दम उठाने चाहिए।’’’

      – राहुल गाँधी, नेता प्रतिपक्ष (श्रीनगर में)