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नीतीश कुमार 10.0: बिहार की सत्ता, स्थिरता और सियासी बेचैनी का सबसे निर्णायक अध्याय

पटना की हवा में उस दिन एक अजीब-सी खामोशी थी। 20 नवंबर 2025, सुबह का गांधी मैदान, जहाँ इतिहास हर कुछ वर्षों में अपना चेहरा बदलने आता है। पर इस बार नज़ारा अलग था। मंच पर खड़े नीतीश कुमार ने जब दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तो उसे महज़ एक लोकतांत्रिक रस्म कहना सच से भागना होता। यह दृश्य उस राजनीतिक यात्रा का चरम था, जिसे बिहार ने दो दशकों तक महसूस किया है।कभी उम्मीदों के साथ, कभी संदेहों के साथ, और अक्सर बेचैनी की एक परत के साथ।

नीतीश कुमार के चेहरे पर एक शांत दृढ़ता थी, वही पुरानी शैली—कम बोला, गहरे देखा, और अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता का ऐसा प्रदर्शन किया जिसे विरोधी भी स्वीकार करने को मजबूर हैं। लेकिन भीड़ के नारों और मंच की चकाचौंध में एक बात सबसे ज़ोर से गूँज रही थी: बिहार अब एक ऐसे मोड़ पर है जहाँ एक और शपथ से ज़्यादा मायने रखता है कि यह कार्यकाल किस दिशा को ले जाएगा। क्या यह बिहार के आधुनिकीकरण की शुरुआत होगा, या लंबे शासन की अनिवार्य थकान का अंतिम अध्याय?

इस प्रश्न का उत्तर सिर्फ सत्ता के गलियारों में नहीं, बल्कि गाँवों की धूल में, कस्बों की बेचैनी में, युवाओं की उम्मीदों में, और राजनीतिक समीकरणों की अनकही दरारों में छिपा है।

एक आदमी, दो दशक, और बिहार की राजनीतिक आत्मा

2005 के बिहार को याद कीजिए—वह राज्य अपराध की गिरफ्त में था, प्रशासनिक संरचना न के बराबर, और विकास एक दूर का सपना। एक ऐसे समय में नीतीश कुमार उभरे जब जनता ने लालू राज की थकान और अव्यवस्था से निकलने की ख्वाहिश रखी। वह सुरक्षा और शासन के वादे के साथ आए, और शुरुआती वर्षों में ऐसा माहौल बनाया कि लोग पहली बार कहने लगे बिहार बदल रहा है।

पर राजनीति कभी एक रेखीय कहानी नहीं देती। बदलाव के बीच गठबंधन का उतार-चढ़ाव, भाजपा से अलगाव, फिर महागठबंधन, फिर वापसी, फिर टूटन—इन सबने नीतीश की छवि को दो तौर पर गढ़ा। एक ओर वे स्थिरता का चेहरा बने, दूसरी ओर वे अपने “यू-टर्न” के लिए भी कुख्यात हुए। उनके आलोचक उन्हें “पलटी कुमार” कहते रहे, और समर्थक उन्हें “बिहार का आधुनिक शिल्पकार”। सच इन दोनों के बीच कहीं फँसा रहा—इस राज्य की उम्मीदों की तरह।

लेकिन चाहे पलटवार हों या वापसी, चाहे गठबंधन हो या अलगाव एक बात कभी नहीं बदली: बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का केंद्रीय स्थान। 20 वर्षों में उन्होंने वह नैरेटिव बनाया, जिसमें उनसे सहमत या असहमत हुआ जा सकता है, पर उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

अब दसवें कार्यकाल की शुरुआत उस यात्रा के बाद हो रही है जिसमें स्थिरता और बेचैनी दोनों की छाप है।

2025 का जनादेश: जनता ने उम्मीद दी, और बदले में हिसाब माँगा

2025 के चुनाव परिणाम केवल एक राजनीतिक जीत नहीं थे, बल्कि जनमत का बड़ा विस्फोट थे। जेडीयू और भाजपा—दोनों ने बिहार के इतिहास में शायद ही कभी देखी गई सफलता हासिल की। जेडीयू को 101 में से 89 सीटें, और भाजपा को 85 सीटें। यह सिर्फ एक गठबंधन की जीत नहीं थी, बल्कि जनता की वह पुकार थी जो कह रही थी: अब आधे-अधूरे बदलाव से संतुष्टि नहीं।

इतने बड़े जनादेश के साथ, उम्मीदों की छाया भी उतनी ही गहरी होती है। यह चुनाव बताता है कि जनता बदलाव चाहती है, लेकिन प्रयोग नहीं। अनुभव चाहती है, लेकिन गतिशीलता भी। वे थक चुके हैं उस बिहार से जो हमेशा पलायन, गरीबी, कृषि संकट और बेरोजगारी की कहानियों के लिए जाना जाता है। वे उस बिहार को देखना चाहते हैं जो उद्यम, उच्च शिक्षा, आधुनिक ढाँचे और उभरते उद्योगों के लिए जाना जाए।

नीतीश कुमार जानते हैं कि 2025 का चुनाव उनसे पुरानी उपलब्धियों की पुनरावृत्ति नहीं चाहता—यह उनसे कुछ नया चाहता है। बहुत नया।

गांठों वाला गठबंधन: जहाँ सहयोग है, पर ख़ामोशी में प्रतिस्पर्धा भी

एक तरफ ऐसा लगता है कि नीतीश और भाजपा के बीच इस बार सबकुछ सहज है। भाजपा ने दो उपमुख्यमंत्री देकर शक्ति-संतुलन का सम्मान दिखाया है। मंच पर मुस्कानें भी थीं, शपथ के दौरान सौहार्द भी। लेकिन बिहार की राजनीति में सतह हमेशा कुछ और कहती है, और गहराई कुछ और।

भाजपा का जनाधार तेजी से बढ़ रहा है। शहरी वर्ग, युवा मतदाता, और व्यापारी तबका भाजपा के साथ मजबूती से खड़ा हो रहा है। यह वह इलाका है जहाँ जेडीयू की पकड़ पहले की तुलना में ढीली पड़ती जा रही है। नीतीश जानते हैं कि भाजपा का उभार सहयोग भी है और चुनौती भी। अभी गठबंधन है, पर गठबंधन भविष्य का आश्वासन कभी नहीं होता।

और दूसरी तरफ जेडीयू के भीतर नेतृत्व का संकट गहरा है। कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी नहीं। नीतीश के बाद पार्टी का क्या होगा? यह सवाल पार्टी की दीवारों से निकलकर अब जनता की चर्चा में भी पहुँच चुका है। यह अनिश्चितता मुख्यमंत्री आवास के भीतर बैठी एक छाया की तरह है—दिखती नहीं, पर हमेशा मौजूद रहती है।

नीतीश कुमार 10.0 की वास्तविक परीक्षा सत्ता चलाने से ज़्यादा, सत्ता बचाए रखने की नहीं बल्कि सत्ता को अर्थपूर्ण बनाने की है — क्योंकि अब गठबंधन में शक्ति ही नहीं, प्रतिस्पर्धा भी छिपी है।

वादों का पहाड़, हकीकत की दरारें और उम्मीदों की आग

नीतीश कुमार ने इस बार वह वादा किया है जो बिहार के राजनीतिक इतिहास में सबसे बड़ा चुनावी वायदा माना जा रहा है—एक करोड़ नौकरियाँ। यह केवल चुनावी नारा नहीं, बल्कि वह सपना है जिससे बिहार का हर युवा रोज़ दो-चार होता है।

पर नौकरी सिर्फ घोषणाओं से नहीं आती। इसके लिए उद्योग चाहिए, स्किल चाहिए, इंफ्रास्ट्रक्चर चाहिए, और सबसे ज़रूरी चाहिए एक ऐसा राजनीतिक माहौल जो निवेशकों को भरोसा दे सके। बिहार अभी भी उन चुनौतियों से भरा है जो उद्योगपतियों को डराती हैं—जमीन अधिग्रहण की मुश्किलें, धीमी प्रशासनिक प्रक्रियाएँ, क़ानून-व्यवस्था पर lingering सवाल, और skilled manpower की भारी कमी।

इसलिए नीतीश का यह वादा महज़ विकास का एजेंडा नहीं है, बल्कि राजनीतिक साहस का भी इम्तिहान है।

दूसरा बड़ा वादा—हर जिले में मेगा स्किल सेंटर।

यह विचार काग़ज़ पर शानदार है, लेकिन अगर यह केंद्र सिर्फ सरकारी फाइलों के शो-पीस बनकर रह गए, तो जनता की नाराज़गी पहले से कहीं अधिक तेज़ होगी। क्योंकि इस बार युवा इंतज़ार नहीं करना चाहते। वे पलायन की थकान से बाहर आना चाहते हैं। वे ट्रेन के रिज़र्वेशन पर लिखे “बिहार – दिल्ली स्पेशल” को रोजगार की मजबूरी का प्रमाण नहीं बनाना चाहते।

महिला उद्यमिता का वादा भी एक मजबूत सोच है। पर सवाल वही—क्या ये योजनाएँ ज़मीन पर उतरीं भी? या यह सब एक ऐसी किताब के पन्ने ही रह गए जिसका पाठ कोई नहीं पढ़ता?

बिहार की जटिल सच्चाइयाँ: जमीन, समाज और व्यवस्था का असली संघर्ष

अगर इन वादों को पूरा करना है तो नीतीश को उन संरचनात्मक समस्याओं से भिड़ना होगा जो पिछले 50 वर्षों से बिहार की रीढ़ में फँसी हुई हैं। यह सिर्फ सरकारी योजनाओं की बात नहीं, बल्कि उस सामाजिक-आर्थिक वास्तविकता की है जो बिहार को उसके पूरे सामर्थ्य तक पहुँचने से रोकती रही है।

रोजगार की समस्या केवल उद्योग की कमी नहीं, बल्कि कौशल और अवसरों का असंतुलन भी है। युवा पढ़ते हैं, पर पढ़ाई का बाजार नहीं है। वे सपने देखते हैं, पर उन सपनों के लिए जमीन कहीं और मिलती है—दिल्ली, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र। बिहार वर्षों से अपने युवाओं को जन्म देता है, पर उन्हें अपने भीतर रोक नहीं पाता।

कृषि पर अत्यधिक निर्भरता राज्य की दूसरी सबसे बड़ी कमजोरी है। खेती आज भी खतरों से भरी है—सिंचाई की कमी, मौसम की मार, बाजार तक पहुँच का संघर्ष और जमीन का बिखराव। किसान मेहनत करते हैं, पर आर्थिक लाभ का अनुपात शर्मनाक है।

शिक्षा में सुधार हुए हैं, इसमें कोई संदेह नहीं। लेकिन स्कूलों के बाद की कहानी—कॉलेज, विश्वविद्यालय, शोध संस्थान—बुरी तरह कमजोर हैं। जहाँ युवा higher education के लिए बाहर जाते हों, वहाँ रोजगार का पारिस्थितिकी तंत्र मजबूत होना मुश्किल है।

स्वास्थ्य तंत्र की कहानी भी दो टुकड़ों में बटी है। बड़े अस्पताल खड़े हुए हैं, मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ी है, पर ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों का सच अब भी भयावह है। डॉक्टर नहीं, दवाएँ नहीं, और प्रशासन अपनी पुरानी lethargy के साथ।

और इन सबके ऊपर वह अदृश्य दीवार—भ्रष्टाचार। जब किसी योजना के बजट का हिस्सा पहली ही परत में गायब हो जाए, तो विकास की गति वैसे ही धीमी पड़ जाती है जैसे खराब इंजन वाली ट्रेन चढ़ाई पर। योजनाएँ बनती हैं, घोषणाएँ होती हैं, पर जमीन तक पहुँचने तक वे अक्सर अपनी आधी जान खो चुकी होती हैं।

इस पूरे ढांचे को सुधारना ही नीतीश 10.0 का असली युद्ध है।

नीतीश कुमार के सामने सबसे कठिन सवाल: क्या वे इतिहास गढ़ेंगे या इतिहास बनकर रह जाएँगे?

इस कार्यकाल को केवल राजनीतिक घटना कहना उसके महत्व को हल्का करना होगा। यह वह पल है जब बिहार का भविष्य और नीतीश की विरासत दोनों दाँव पर हैं। यह कार्यकाल सिर्फ अगले पाँच सालों की सरकार नहीं, बल्कि अगले 25 सालों के बिहार की दिशा तय करने वाला दौर है।

क्योंकि आज बिहार जिस चौराहे पर खड़ा है, वहाँ से रास्ते दो ही हैं—

पहला रास्ता एक ऐसे बिहार की ओर जाता है जहाँ उद्योग आते हैं, आईटी पार्क बनते हैं, उच्च शिक्षा संस्थान उभरते हैं, नौकरियाँ पैदा होती हैं, पलायन रुकता है, और राज्य देश के विकास की धारा में तेज़ तरक्की करता है।

दूसरा रास्ता उस दोहराव की ओर ले जाता है जहाँ वादे बड़े हों, घोषणाएँ चमकदार हों, पर धरातल वही पुराना हो। जहाँ जनता की उम्मीदें हर चुनाव में बनें और टूटें। जहाँ बिहार एक संभावना हो, पर उपलब्धि न बन पाए।

नीतीश कुमार शायद यह बात किसी और से ज्यादा समझते हैं कि उनकी यात्रा का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण अध्याय शुरू हो चुका है। अब वे सिर्फ एक मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि एक संभावित विरासत के वाहक हैं। और इतिहास इस बात से नहीं बनता कि आप कितनी बार सत्ता में लौटे—बल्कि इससे बनता है कि आपने सत्ता में रहते हुए क्या बदल दिया।

समापन: बिहार का भाग्य और नीतीश की विरासत — दोनों यहीं से लिखा जाएगा

शपथ के बाद गांधी मैदान धीरे-धीरे खाली होने लगा। मंच के पीछे नेताओं की भीड़ घटी, और पटना की हवा में राजनीतिक शोर की जगह फिर से वही रोज़मर्रा की हलचल लौट आई। पर उस दिन जो हुआ, वह सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं था—वह एक बड़ा सवाल था, जिसे नीतीश कुमार, उनकी सरकार, उनका गठबंधन, और पूरा बिहार आने वाले वर्षों में जवाब देगा।

अगर नीतीश इस बार बिहार को एक नए युग में प्रवेश करा पाए, तो इतिहास उन्हें सिर्फ “दस बार के मुख्यमंत्री” के रूप में नहीं, बल्कि “बिहार के पुनर्निर्माण के शिल्पकार” के रूप में याद करेगा। और अगर वे असफल हुए—तो यह वह अध्याय होगा जिसे बिहार अपनी सबसे बड़ी खोई हुई संभावना के रूप में दर्ज करेगा। समय की घड़ी अब चल चुकी है। विरासत का दरवाज़ा खुल चुका है। अब देखना है।नीतीश कुमार उसमें प्रवेश करते हैं, या उसके सामने खड़े रह जाते हैं।

हरियाणा ने ‘दीन दयाल लाडो लक्ष्मी योजना’ की दूसरी किस्त की जारी

हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने आज ‘दीन दयाल लाडो लक्ष्मी योजना’ की दूसरी किस्त जारी की। आज की किश्त जारी होने के साथ ही 7 लाख 1 हजार 965 लाभार्थी बहनों के खातों में लगभग 148 करोड़ रुपये की राशि का लाभ पहुंचा है।

मुख्यमंत्री बुधवार को यहां आयोजित प्रेस वार्ता को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर सामाजिक न्याय अधिकारिता अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण एवं अंत्योदय (सेवा) मंत्री कृष्ण कुमार बेदी भी उपस्थित रहे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ने निर्णय लिया है कि अब इस योजना का लाभ 3 माह के अंतराल में दिया जाएगा और 3 माह की राशि का एक साथ भुगतान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह योजना सिर्फ आर्थिक सहायता का माध्यम नहीं, बल्कि महिलाओं के सामाजिक सशक्तिकरण और आर्थिक स्वावलंबन की दिशा में एक मजबूत पहल है।

उन्होंने कहा कि गत 25 सितंबर को ‘दीन दयाल लाडो लक्ष्मी’ ऐप का शुभारंभ पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी के 109वें जन्मदिवस के अवसर पर किया था। उसके बाद 1 नवंबर को पात्र महिलाओं को पहली किस्त जारी कर उन्हें लाभ प्रदान किया गया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि इस ऐप पर गत 30 नवंबर तक 9 लाख 592 महिलाओं ने आवेदन किया है। इनमें से 7 लाख 1 हजार 965 महिलाएं पात्र पाई गई हैं। इनमें से 5 लाख 58 हजार 346 महिलाओं ने अपना आधार KYC पूरा कर लिया है। जबकि, 1 लाख 43 हजार 619 महिलाओं का वेरिफिकेशन पेंडिंग है।

उन्होंने कहा कि जिन महिलाओं का आधार केवाईसी का अंतिम चरण अभी भी बकाया है, उनसे निवेदन है कि वे जल्द से जल्द इसे पूरा कर लें। जैसे ही यह प्रोसेस पूरा होगा, उन्हें भी इस योजना का लाभ मिलना शुरू हो जाएगा।  

मुख्यमंत्री ने कहा कि इस योजना का लाभ 23 वर्ष या इससे अधिक आयु की वे सभी महिलाएं ले सकती हैं, जिनके परिवार की वार्षिक आय एक लाख रुपये से कम है। इस योजना का विशेष पहलू यह है कि परिवार की सभी पात्र महिलाएं इस योजना का लाभ ले सकती हैं। इस योजना का लाभ पाने के लिए आवेदन प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और ऑनलाइन है। आवेदन ‘लाडो लक्ष्मी मोबाइल ऐप’ के माध्यम से किसी भी स्थान से किसी भी समय सरलता से किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि आवेदन पूरा होते ही 24 से 48 घंटे में सारी वेरिफिकेशन प्रक्रिया पूरी कर ली जाती है और पात्र पाई गई महिलाओं को एसएमएस द्वारा सूचित कर दिया जाता है। इस एसएमएस में उनसे निवेदन किया जाता है कि वे आवेदन के अंतिम चरण में इसी ऐप पर दोबारा जाकर अपना लाइव फोटो खींचकर अपलोड करें। जैसे ही आधार डेटाबेस के माध्यम से ई- केवाईसी हो जाती है, उसके बाद सेवा विभाग इस योजना की आईडी जारी कर देता है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि इस योजना के लिए महिलाओं का बहुत अच्छा रिस्पॉन्स आ रहा है और प्रतिदिन औसतन 3 से 4 हजार महिलाओं की ओर से आवेदन किया जा रहा है। हरियाणा सरकार की यह पहल न सिर्फ सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करती है, बल्कि ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के संकल्प को भी मजबूती देती है।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने जन कल्याण के लिए जो संकल्प किए थे, उसे सरकार लगातार पूरा कर रही है। हर घर – हर गृहिणी योजना के तहत लगभग 15 लाख से ज्यादा महिलाओं को 500 रुपये में गैस सिलेंडर दिया जा रहा है। इसके अलावा किडनी रोगियों को फ्री डायलिसिस की सुविधा प्रदान की गई है। इतना ही नहीं हरियाणा देश का पहला राज्य है जहां किसानों की फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की जा रही है।

इस अवसर पर सामाजिक न्याय अधिकारिता अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण एवं अंत्योदय (सेवा) विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव श्रीमती जी अनुपमा, सूचना जनसंपर्क भाषा एवं संस्कृति विभाग के महानिदेशक के मकरंद पांडुरंग, सेवा विभाग के निदेशक प्रशांत पंवार और सूचना जनसंपर्क भाषा एवं संस्कृति विभाग की अतिरिक्त निदेशक (प्रशासन) श्रीमती वर्षा खांगवाल सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे।

यूके की नंबर 1 पिज़्ज़ेरिया, पिज़्ज़ा एक्सप्रेस अब चंडीगढ़ में

चंडीगढ़ में पिज़्ज़ा एक्सप्रेस का उद्घाटन GIPL (भारती फैमिली ऑफिस के खाद्य और पेय खंड) द्वारा किया गया है, और यह लॉन्च पंजाब में विशेष रूप से मोहाली और लुधियाना में ब्रांड द्वारा देखी गई मजबूत प्रतिक्रिया के बाद हुआ है, जहां ग्राहकों ने पिज़्ज़ा एक्सप्रेस की वास्तविकता, ताजगी और स्टाइल को सराहा है। यह उद्घाटन पिज़्ज़ा एक्सप्रेस का भारत में 37वां रेस्तरां है।

रामित भारती मित्तल, चेयरमैन और डायरेक्टर, GIPL ने कहा, “यह शहर वास्तविकता और कारीगरी को महत्व देता है, जो पिज़्ज़ा एक्सप्रेस का मूल है। हमारी ब्रिटालियन पहचान, आइकोनिक मेनू और गुणवत्ता के प्रति प्रतिबद्धता चंडीगढ़ के खाने के तरीके के साथ खूबसूरती से मेल खाती है। यह लॉन्च हमारी रणनीतिक उत्तर भारत विस्तार यात्रा का एक महत्वपूर्ण कदम है।”

जैरी थॉमस, क्युलिनरी हेड – पिज़्ज़ा एक्सप्रेस ने कहा, “हमारे पिज़्ज़ाईओलोस (पिज़्ज़ा बनाने वाले) हर चीज के केंद्र में हैं, और आटा हमेशा हीरो रहता है। ताजे सामग्री, जो सम्मान के साथ तैयार की जाती हैं, वे स्वाद पैदा करती हैं जो दुनिया भर में समान रहते हैं। जबकि हमारा मूल कभी नहीं बदलता, नवाचार पिज़्ज़ा एक्सप्रेस की डीएनए का हिस्सा है। यही कारण है कि अंतर्राष्ट्रीय पसंदीदा जैसे ‘लेगेरा’ स्थानीय अनुकूलन के साथ आराम से बैठे हैं। चंडीगढ़ के लिए, हमने ‘स्पाइसी अमेरिकन हॉटेस्ट’, ‘पाद्रिनो’, और ‘चिकन और पनीर धनिया पेस्टो’ जैसे व्यंजन तैयार किए हैं, जो भारतीय मेहमानों के स्वाद को ध्यान में रखते हुए विकसित किए गए हैं।”

कुमार आशीष, भारत के सीईओ, पिज़्ज़ा एक्सप्रेस ने कहा, “पंजाब में मोहाली से लेकर चंडीगढ़ तक मिली प्रतिक्रिया से यह संकेत मिलता है कि प्रीमियम कैजुअल डाइनिंग के लिए मजबूत मांग है। अमृतसर और जलंधर हमारी उत्तर भारत विकास यात्रा के अगले अध्याय होंगे और इसके साथ, हम FY 2026-27 तक 50 रेस्तरां का मील का पत्थर हासिल करने के रास्ते पर मजबूती से हैं।”

“गीता का संदेश शाश्वत है”

भगवद गीता का संदेश समय की सीमाओं को पार करता है और दुनिया भर के लोगों को प्रेरित करता है, जैसा कि कुरुक्षेत्र में आयोजित अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के दौरान स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हुआ। सोमवार को केशव पार्क में एक भव्य ग्लोबल गीता पाठ का आयोजन किया गया, जिसमें 21,000 बच्चों ने एक साथ गीता के श्लोकों का पाठ किया। इस सामूहिक पाठ ने वातावरण को आध्यात्मिकता, ज्ञान और भक्ति से भर दिया, और भारतीय सिद्धांत वसुधैव कुटुम्बकम—”संपूर्ण विश्व एक परिवार है”—को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया।

इस कार्यक्रम में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, योग गुरु बाबा रामदेव, और गीता के विद्वान स्वामी ज्ञानानंद महाराज सहित कई प्रमुख हस्तियों ने भाग लिया। मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन की शुरुआत मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी और गीता जयंती के पावन अवसर पर सभी को शुभकामनाएं देते हुए भगवान श्री कृष्ण से लोगों के जीवन को ज्ञान की रौशनी से आलोकित करने की प्रार्थना की। उन्होंने 5,163 साल पहले इस दिन भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दी गई दिव्य शिक्षाओं पर प्रकाश डाला, और बताया कि गीता का संदेश आज भी मानवता को मार्गदर्शन प्रदान करता है।

मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि गीता का पाठ केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी लाभकारी है। उन्होंने समझाया कि गीता के श्लोकों का उच्चारण, साथ ही वेदों और उपनिषदों जैसे अन्य पवित्र ग्रंथों का पाठ मानसिक शांति, नैतिक स्पष्टता और ऊर्जा का निर्माण करता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रेरणा से, सैनी ने साझा किया कि 2016 में गीता जयंती की वैश्विक उत्सव की शुरुआत की गई, जो मोदी के 2014 में पहले अमेरिकी दौरे के बाद संभव हुआ। उस यात्रा के दौरान, मोदी ने “The Gita According to Gandhi” नामक पुस्तक अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को भेंट दी, जिसने गीता को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की दिशा में पहला कदम उठाया। मुख्यमंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि प्रधानमंत्री मोदी ने 25 नवंबर को कुरुक्षेत्र में महाभारत थीम्ड अनुभव केंद्र का उद्घाटन किया, जो अब वैश्विक ध्यान आकर्षित कर रहा है। 28 नवंबर को, प्रधानमंत्री ने उडुपी, कर्नाटका में इस केंद्र को और बढ़ावा दिया और लोगों से इसे देखने का आह्वान किया।

सैनी ने प्रधानमंत्री को योग के वैश्विक प्रसार का श्रेय दिया, यह कहते हुए कि अब हर साल अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को दुनियाभर में मनाया जाता है, जो मोदी के प्रयासों का परिणाम है। आधुनिक समय की चुनौतियों जैसे तनाव, गुस्सा और अनिश्चितता का सामना करते हुए, मुख्यमंत्री ने गीता के संदेश को जीवन के उतार-चढ़ाव में संतुलन बनाए रखने का मार्ग बताया। उन्होंने गीता को जीवन का शाश्वत स्रोत और हर व्यक्तिगत और सामाजिक चुनौती का समाधान बताया। धार्मिक विश्वासों के अनुसार, जिस घर में नियमित रूप से गीता का पाठ होता है, वह नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षित रहता है।

मुख्यमंत्री ने अंत में कहा कि गीता का संदेश केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए अमूल्य है। उनका मानना था कि यदि समाज के हर व्यक्ति ने गीता के शिक्षाओं को अपनाया, तो समाज में संघर्ष, असमानता और पीड़ा समाप्त हो जाएगी, और एक आदर्श समाज की स्थापना होगी। इससे लोगों के बीच मजबूत रिश्ते बनेंगे और समाज में सामंजस्य होगा।

गीता विद्वान स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने इस भावना को दोहराया, यह कहते हुए कि कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि पर भगवान श्री कृष्ण की दी गई शिक्षाएं सत्य, धर्म और कर्म के मार्ग को प्रकट करती हैं। योग गुरु बाबा रामदेव ने भी कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि को गीता के ज्ञान और मूल्यों का स्रोत बताया और लोगों से गीता की बुद्धि को व्यक्तिगत और राष्ट्रीय विकास के लिए अपनाने का आह्वान किया, ताकि 2047 तक एक समृद्ध भारत का निर्माण हो सके।

कार्यक्रम में अन्य प्रमुख व्यक्तियों में बाबा भूपेन्द्र सिंह, स्वामी मास्टर महाराज, प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा, डॉ. रामनिक कौर और कई सरकारी अधिकारी शामिल थे। इस आयोजन में इन सभी की उपस्थिति ने गीता महोत्सव के अंतरराष्ट्रीय महत्व को रेखांकित किया, जो अब एक वैश्विक उत्सव बन चुका है, जिसमें दुनिया भर से लोग भाग लेते हैं।

GB रियल्टी लक्ज़री का जीवन को सुलभ बनाने के लिए 1% पेमेंट प्लान

उत्तर भारत के प्रीमियम हाउसिंग बाजार को आकार देने वाली एक महत्वपूर्ण पहल में, GB रियल्टी ने एक अग्रणी ‘1% मासिक लक्ज़री होम पेमेंट प्लान’ पेश किया है, जिसे उत्तर भारत के लक्ज़री होम बाजार के लिए एक गेम चेंजर माना जा रहा है।

कंपनी की पहली सालगिरह के अवसर पर इस योजना की घोषणा करते हुए, GB रियल्टी के संस्थापक और चेयरमैन, गुरिंदर भट्टी ने कंपनी के उपाध्यक्ष जतिंदर बजवा के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “1% पेमेंट प्लान हमारे पहले सालगिरह पर होमबायर्स के लिए एक तोहफा है। हमने इस योजना को मध्य और उच्च मध्य वर्ग के महत्वाकांक्षी खरीदारों को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया है। हमारा मानना है कि लक्ज़री अब एक विशेषाधिकार नहीं, बल्कि एक आवश्यकता बन गई है, और यह सभी के लिए सुलभ होनी चाहिए।”

भट्टी ने आगे कहा, “रियल एस्टेट उद्योग में वित्तीय बोझ आमतौर पर खरीदार पर डाल दिया जाता है, लेकिन इस योजना के तहत हम इस बोझ को अपने ऊपर ले आए हैं। हमें गर्व है कि हमने इस प्रवृत्ति को उलट दिया है। हमारा ध्यान ‘ऑपस वन’ के संभावित निवासियों के लिए सक्षम प्रावधान बनाने पर है।”

‘ऑपस वन’ GB रियल्टी की आगामी RERA-स्वीकृत अल्ट्रा-लक्ज़री हाउसिंग परियोजना है, जो तैयार होने पर न्यू चंडीगढ़ की सबसे ऊंची आवासीय टावर्स का प्रदर्शन करेगी।

1% पेमेंट प्लान के तहत, ‘ऑपस वन’ में एक अल्ट्रा-लक्ज़री होम की कुल राशि का 40% 42 महीनों (लगभग 4 वर्षों) में एक आसान मासिक भुगतान मॉडल के तहत पूरा किया जाएगा, जिसमें एक साधारण प्रारंभिक डाउन पेमेंट के बाद मासिक किस्तें दी जाएंगी। शेष 60% भुगतान कब्जे के समय किया जाएगा। ‘ऑपस वन’ परियोजना दिसंबर 2029 में तैयार होनी है—सिर्फ 4 साल में।

यह योजना इस प्रकार है: 20% अग्रिम डाउन पेमेंट, उसके बाद 42 महीनों में 1% तक मासिक किस्तों का भुगतान किया जाएगा, जिससे कुल राशि का 40% चुकता किया जाएगा। शेष 60% भुगतान कब्जे के समय किया जाएगा। भट्टी ने इस योजना के बारे में कहा, “यह योजना खरीदार से वित्तीय बोझ को हटाकर बिल्डर पर डालती है। खरीदार को असमान्य वित्तीय लचीलापन मिलता है, क्योंकि वे आसान मासिक किस्तों के जरिए अंतिम किस्त के लिए पैसे बचाने की योजना बना सकते हैं।”

उन्होंने यह भी कहा कि इस मॉडल से यह सुनिश्चित होता है कि बिल्डर को अंतिम भुगतान मिलता है, जो बिल्डर पर समय पर परियोजना की डिलीवरी का जिम्मा डालता है। यह खरीदारों का विश्वास मजबूत करता है, खासकर ऐसे बाजार में जहां विश्वास सबसे महत्वपूर्ण है। भट्टी ने बताया कि उत्तर भारत के लक्ज़री हाउसिंग क्षेत्र में यह संरचना खरीदारों को चार साल की अवधि में अपनी वित्तीय स्थिति को आराम से प्रबंधित करने की क्षमता देती है।

मीडिया द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में भट्टी ने बताया कि इस परियोजना में दुनिया के प्रमुख डिज़ाइन और योजना विशेषज्ञों को शामिल किया गया है, जिनमें प्रमुख आर्किटेक्ट त्रिपत गिरधर, लाइटिंग और विज़ुअल प्लानिंग कंसल्टेंट ध्रुव ज्योति घोष, लैंडस्केप आर्किटेक्ट वन्नापॉर्न फोर्नप्राफा, और इंटीरियर्स डिज़ाइन कंसल्टेंट क्रिस गॉडफ्री शामिल हैं।

30वीं एनएचआरसी वाद-विवाद प्रतियोगिता में सीआईएसएफ ने सर्वश्रेष्ठ टीम का खिताब जीता

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत ने सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के सहयोग से नई दिल्ली में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के लिए अपनी 30वीं वार्षिक वाद-विवाद प्रतियोगिता के फाइनल दौर का आयोजन किया। विषय था— मानवाधिकारों का पालन अर्धसैनिक बलों द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं से समझौता किए बिना किया जा सकता है।’ सेमीफ़ाइनल और ज़ोनल दौरों के बाद फाइनल में 16 प्रतिभागियों ने हिंदी और अंग्रेज़ी में पक्ष और विपक्ष में बहस की। केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) ने प्रतियोगिता की सर्वश्रेष्ठ टीम के रूप में चल ट्रॉफी अपने नाम की।

व्यक्तिगत सम्मान में, हिंदी वाद-विवाद में प्रथम पुरस्कार सीआईएसएफ के सहायक कमांडेंट मयंक वर्मा को मिला, जबकि अंग्रेज़ी में प्रथम पुरस्कार सीआईएसएफ की सहायक कमांडेंट सुश्री अरुंधथी वी. को मिला। हिंदी में द्वितीय पुरस्कार असम राइफल्स के रिक्रूट जीडी दीपक सिंह यादव को और अंग्रेज़ी में असम राइफल्स के मेजर आदित्य पाटिल को मिला। हिंदी में तृतीय पुरस्कार बीएसएफ के कांस्टेबल अशुतोष सिंह को तथा अंग्रेज़ी में तृतीय पुरस्कार एनएसजी के सहायक कमांडेंट नरेश चंद्र बजेठा को मिला। प्रमाणपत्र और स्मृति-चिह्न के अलावा प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार विजेताओं को क्रमशः 12,000 रुपये, 10,000 रुपये और 8,000 रुपये की नकद राशि भी प्रदान की गई।

एनएचआरसी, भारत के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमणियन ने विषय पर अपने स्पष्ट विचार प्रस्तुत करने के लिए सभी 16 प्रतिभागियों के प्रयासों की सराहना की और कहा कि वे सभी विजेता बनने के योग्य थे। उन्होंने कहा कि एनएचआरसी की इस पहल का उद्देश्य सशस्त्र बलों को मानवाधिकारों के दृष्टिकोण से अपने कर्तव्य पर विचार करने का मंच प्रदान करना है।

न्यायमूर्ति रामासुब्रमणियन ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए सशस्त्र बलों के कर्तव्य में संतुलन अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यह कहना तथ्यात्मक रूप से अतिशयोक्ति होगी कि मानवाधिकारों का पालन केवल राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं से समझौता करके ही किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि सशस्त्र कार्रवाई के दौरान मानवाधिकार संबंधी बहस नई नहीं, बल्कि सदियों पुरानी है। इस संदर्भ में उन्होंने रामायण और महाभारत से भी उदाहरण दिए।

इससे पहले, एनएचआरसी, भारत की सदस्य तथा निर्णायक मंडल की प्रमुख सुश्री विजय भारती सयानी ने कहा कि सुरक्षा और मानवाधिकार परस्पर विरोधी अवधारणाएँ नहीं हैं। वे हमारी लोकतंत्र की नींव को मजबूत करने वाले परस्पर पूरक स्तंभ हैं। यह प्रतियोगिता केवल एक शैक्षणिक अभ्यास नहीं है, बल्कि यह हमारे केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की बौद्धिक क्षमता, नैतिक साहस और लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतीक है, जिन्हें वे गर्व के साथ धारण करते हैं।

अपने संबोधन में, एनएचआरसी, भारत के सचिव-जनरल भरत लाल ने कहा कि पुलिस बलों के कर्तव्य और मानवाधिकारों की रक्षा के बीच कोई विरोधाभास नहीं है। समानता, स्वतंत्रता और न्याय की संवैधानिक गारंटी तभी सुनिश्चित हो सकती है जब सार्वजनिक व्यवस्था बनी रहे, जिसकी जिम्मेदारी सुरक्षा बलों पर होती है। उन्होंने कहा कि शक्ति के साथ बड़ी जिम्मेदारी आती है, और सशस्त्र बल लोगों के जीवन और अधिकारों की रक्षा के लिए उपयुक्त वातावरण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

एसएसबी की विशेष डीजी सुश्री अनुपमा निलेक्कर चंद्रा ने भी प्रतिभागियों के प्रयासों की सराहना की और कहा कि उन्होंने वाद-विवाद के दौरान अपनी सोच को बड़ी स्पष्टता के साथ अभिव्यक्त किया। उन्होंने बताया कि यह आयोजन अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों भाषाओं में किया जाता है और पिछले 30 वर्षों में विकसित प्रणाली के अनुसार आठ ज़ोन इसमें भाग लेते हैं।

एनएचआरसी, भारत के महानिदेशक (जांच) आनंद स्वरूप; रजिस्ट्रार (कानून) जोगिंदर सिंह; निर्णायक मंडल के दो सदस्य— पूर्व महानिदेशक, बीपीआर एंड डी, डॉ. मीरन चड्ढा बोरवांकर और दक्षिण कैंपस, दिल्ली विश्वविद्यालय की निदेशक प्रो. रजिनी अब्बी; एनएचआरसी एसएसपी हरी लाल चौहान तथा अन्य वरिष्ठ एनएचआरसी अधिकारी और सीएपीएफ कर्मी उपस्थित थे।

35 देशों के IDEA फोरम की अध्यक्षता करेंगे भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त

भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार वर्ष 2026 के लिए इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस (IDEA) की अध्यक्षता करेंगे।

इस संबंध में जानकारी देते हुए हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ए. श्रीनिवास ने बताया कि मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार 3 दिसंबर 2025 को स्वीडन के स्टॉकहोम में आयोजित होने वाली इंटरनेशनल IDEA के सदस्य देशों की परिषद की बैठक में अध्यक्ष का पद संभालेंगे। वे वर्ष 2026 के दौरान परिषद की सभी बैठकों की अध्यक्षता करेंगे।

उन्होंने बताया कि 1995 में स्थापित इंटरनेशनल IDEA एक अंतर-सरकारी संगठन है, जो विश्वभर में लोकतांत्रिक संस्थानों और प्रक्रियाओं को सशक्त बनाने का कार्य करता है। वर्तमान में इसके 35 सदस्य देश हैं, जबकि अमेरिका और जापान पर्यवेक्षक के रूप में जुड़े हुए हैं। यह संगठन समावेशी, लचीली और जवाबदेह लोकतंत्रों को बढ़ावा देता है।

उन्होंने कहा कि यह अध्यक्षता एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जो भारत के चुनाव आयोग को दुनिया के सबसे विश्वसनीय और नवाचारी चुनाव प्रबंधन निकायों में से एक के रूप में वैश्विक मान्यता प्रदान करती है। भारत इस संगठन का संस्थापक सदस्य है और लोकतांत्रिक विमर्श तथा संस्थागत पहलों में लगातार योगदान देता रहा है।

उन्होंने कहा कि अध्यक्ष के रूप में ज्ञानेश कुमार विश्व के सबसे बड़े चुनावों के संचालन में भारत के अद्वितीय अनुभव का उपयोग करते हुए इंटरनेशनल IDEA के वैश्विक एजेंडा को दिशा देंगे। इससे चुनाव प्रबंधन संस्थानों के बीच ज्ञान-साझाकरण मजबूत होगा, पेशेवर नेटवर्क का विस्तार होगा, और प्रमाण-आधारित वैश्विक चुनावी सुधारों को बढ़ावा मिलेगा। लगभग एक अरब मतदाताओं की विशाल मतदाता सूची और पारदर्शी एवं सुव्यवस्थित चुनावी प्रक्रियाओं के साथ भारत वर्षभर विश्वभर के निर्वाचन निकायों के साथ अपने सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करेगा।

उन्होंने कहा कि इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल मैनेजमेंट, चुनाव आयोग के प्रशिक्षण संस्थान और इंटरनेशनल IDEA के बीच संयुक्त कार्यक्रम, कार्यशालाएँ और शोध सहयोग गलत सूचना, चुनावी हिंसा और मतदाता विश्वास में कमी जैसी चुनौतियों से निपटने की वैश्विक तैयारी को और मजबूत करेंगे। अपनी स्थापना से अब तक IIDEM ने 28 देशों के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं और लगभग 142 देशों के 3,169 अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान किया है।

उन्होंने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त के नेतृत्व में इंटरनेशनल IDEA और चुनाव आयोग मिलकर ECI के तकनीकी और प्रशासनिक नवाचारों तथा सर्वोत्तम प्रथाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दस्तावेज़ित और प्रसारित करेंगे। यह अध्यक्षता भारत की मजबूत लोकतांत्रिक परंपराओं और चुनाव प्रबंधन में उसकी वैश्विक नेतृत्व क्षमता का प्रमाण है।

“राष्ट्र को मजबूत और सशक्त करना ही संविधान की मूल भावना” 

संविधान दिवस के अवसर पर हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी बुधवार को हरियाणा विधानसभा पहुंचे और वहां आयोजित कार्यक्रम में शामिल होकर प्रदेशवासियों को संविधान दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दीं। मुख्यमंत्री ने कहा कि आज हम सभी के लिए गर्व का दिन है, क्योंकि भारतीय संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को समान अवसर, न्याय और गरिमा के साथ आगे बढ़ने का अधिकार प्रदान किया है।

मुख्यमंत्री सैनी ने कहा कि राष्ट्र को मजबूत, सशक्त और एकजुट करना ही संविधान की मूल भावना है और इसी संकल्प के साथ हरियाणा सरकार समाज के प्रत्येक वर्ग के विकास के लिए निरंतर कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि पारदर्शिता, सुशासन, सामाजिक न्याय और नागरिकों की भागीदारी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की आत्मा हैं और सरकार की नीतियां इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित हैं।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आज संविधान पूरी तरह सुरक्षित है और ‘सबका साथ—सबका विकास—सबका विश्वास—सबका प्रयास’ संविधान की भावना का सच्चा प्रतिबिंब है। प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मजबूत लोकतांत्रिक ढांचे ने संविधान की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उन्होंने कहा कि देशहित और संविधान की गरिमा सबसे ऊपर है।

मुख्यमंत्री ने सभी नागरिकों से संविधान में निहित मूल कर्तव्यों और अधिकारों के प्रति जागरूक रहने तथा राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भागीदारी का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि भारत का भविष्य युवाओं के हाथ में है और युवाओं को संविधान की समझ के साथ समाज और देश के प्रति कर्तव्य निर्वहन का संकल्प लेना चाहिए।

कार्यक्रम के दौरान विधानसभा स्पीकर हरविंदर कल्याण, विकास एवं पंचायत मंत्री श्री कृष्ण लाल पंवार, शिक्षा मंत्री महीपाल ढांडा, राजस्व मंत्री विपुल गोयल, खाद्य आपूर्ति राज्यमंत्री राजेश नागर सहित अनेक विधायक, अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित रहे।

हरियाणा पुलिस की बड़ी मुहिम

हरियाणा में सड़क सुरक्षा को लेकर पुलिस की जीरो-टॉलरेंस नीति का असर साफ दिख रहा है। 1 जनवरी 2025 से 24 नवंबर 2025 तक पूरे राज्य में 63,073 ड्रंकन ड्राइविंग चालान किए गए—जो यह दर्शाता है कि हरियाणा पुलिस नशे में वाहन चलाने जैसे खतरनाक व्यवहार पर किसी भी प्रकार की ढिलाई बरतने को तैयार नहीं है। इस पहल ने न केवल अनगिनत ज़िंदगियों को सड़क हादसों से बचाया है, बल्कि यातायात अनुशासन को मज़बूती दी है। 

जिलेवार आंकड़ों से पता चलता है कि गुरुग्राम में सबसे अधिक 24,972 चालान किए गए। इसके बाद फरीदाबाद में 7,402, करनाल में 4,851, पंचकूला में 4,180, और जींद में 3109 चालान किए गए। यह आंकड़े साफ संकेत देते हैं कि बड़े शहरी इलाकों में पुलिस ने सबसे ज्यादा निगरानी बढ़ाई, जहां रात के समय भारी ट्रैफिक के कारण जोखिम अधिक रहता है। 

हरियाणा पुलिस द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार सभी जिलों में नियमित विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं। इन अभियानों का उद्देश्य केवल नशे में ड्राइविंग रोकना नहीं, बल्कि लेन ड्राइविंग, ध्वनि प्रदूषण, और रेड-ब्लू लाइट के दुरुपयोग पर भी कठोर निगरानी रखना है। साप्ताहिक रिपोर्टों के अध्ययन के बाद पुलिस मुख्यालय ने जिलों को निर्देश दिए हैं कि वे इन अभियानों को और अधिक प्रभावी तथा परिणाम-उन्मुख बनाएं। 

नए निर्देशों के अनुसार, सभी टोल प्लाज़ाओं पर शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक पुलिस की विशेष टीमों को तैनात किया जा रहा है। ये टीमें Alco-Sensor और E-Challan मशीनों से लैस रहती हैं ताकि मौके पर ही जांच कर नशे में गाड़ी चलाने वालों पर तुरंत कार्रवाई की जा सके। यह पहल हाईवे सुरक्षा बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। 

हरियाणा पुलिस का स्पष्ट संदेश है कि ड्रंकन ड्राइविंग न केवल आपके जीवन को खतरे में डालती है, बल्कि सड़क पर चल रहे हर व्यक्ति की सुरक्षा को जोखिम में डालती है। पुलिस बार-बार अपील कर रही है: “नशा करके गाड़ी न चलाएं—स्टेयरिंग पर बैठते समय आपकी जिम्मेदारी आपके हाथों में होती है।” 

पुलिस बार-बार यह स्पष्ट कर चुकी है कि अभियान का उद्देश्य सिर्फ चालान करना नहीं, बल्कि लोगों को समझाना है कि सड़क सुरक्षा सामूहिक जिम्मेदारी है।हरियाणा पुलिस का मानना है कि सड़क पर सुरक्षा तभी सुनिश्चित हो सकती है जब हर नागरिक स्वयं नियमों का पालन करे और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करे। इसलिए चालान कार्रवाई को अंतिम लक्ष्य नहीं माना जाता, बल्कि यह एक माध्यम है जिससे लोग अपने और दूसरों के जीवन की महत्ता को समझें। 

हरियाणा पुलिस ने नागरिकों से अपील की है कि वे स्वयं भी जागरूक बनें और अपने परिवार, मित्रों व सहकर्मियों को नशे की हालत में वाहन न चलाने की सलाह दें। सड़क पर सुरक्षित ड्राइविंग ही असली ‘सेफ्टी कवच’ है।

केमिकल वेपन : डॉक्टर्स की एक खतरनाक साजिश?

पिछले दो दशकों में भारत में बम ब्लास्टों के जरिए कई आतंकी हमले हो चुके हैं, जिसमें सबसे ताजा मामला दिल्ली के लाल किले के पास हुए भयंकर बम ब्लास्ट का है। इस बम ब्लास्ट में एक दर्जन से ज्यादा लोगों के मरने और दो दर्जन से ज्यादा लोगों के घायल होने के बाद हुई जांच में एक हैरान करने वाला पैटर्न सामने आया है, जिनमें कुछ दहशतगर्द डॉक्टर्स के जुड़े होने से मामला बहुत ही बदल गया।

केमिकल वेपन डॉक्टर्स के द्वारा हमलों की योजना बनाने, फंडिंग जुटाने या तकनीकी मदद देने से पूरा देश आश्चर्य में पड़ गया। क्योंकि जिन डॉक्टर्स को लोग आंख बंद करके भगवान का दूसरा रूप मानते हैं, और उन्हें जीवन बचाने वाला समझते हैं, उन्हें डॉक्टर्स के भेष में ऐसेे दहशतगर्द निकलेंगे ये किसी ने नहीं सोचा था। लेकिन इन डॉक्टर्स में से कुछ ने अपना जमीर इस तरह बेच दिया कि पैसे के लिए देश के खिलाफ ही अपनी केमिस्ट्री, बायोलॉजी और फार्माकोलॉजी की ट्रेनिंग में सीखे गए रासायनिक प्रयोगों से खतरनाक हथियार और विस्फोटक बनाने में इस्तेमाल किया, जो बड़े अफसोस की बात है। दिल्ली के लाल किला के पास 2000, 2002 और 2005 ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया गया है।

और अब 2025 में ऐसी दिल दहलाने वाली घटना को दहशतगर्दों ने अंजाम दे डाला। ये सब घटनाओं के अलावा 2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट, इंडियन मुजाहिदीन के कई हमले, आईएसआईएस के भारतीय मॉड्यूल और हाल के पुणे-बेंगलुरु आईएसआईएस मॉड्यूल तक के हमलों में डॉक्टर्स का नाम बार-बार जुड़ता रहा है। यह कोई संयोग नहीं है; यह एक व्यवस्थित और खतरनाक ट्रेंड है, जो कि डॉक्टर्स के भेष में शैतानों को छिपाए हुए नजर आता है।
25 दिसंबर 2000 को लाल किले के बाहर हुए बम धमाके में लश्कर-ए-तैयबा का हाथ था। इस मामले में गिरफ़्तार किए गए कई आतंकियों में कश्मीरी मेडिकल स्टूडेंट्स और डॉक्टर्स शामिल थे। 2002 और फिर 2005 में लाल किले के आसपास हुए सीरियल ब्लास्ट में भी पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के साथ-साथ स्थानीय मेडिकल प्रोफेशनल्स की भूमिका सामने आई। इन हमलों में अमोनियम नाइट्रेट, आरडीएक्स और केमिकल बूस्टर का इस्तेमाल हुआ था। जांच एजेंसियों ने पाया कि कुछ आरोपी डॉक्टर्स केमिकल मिक्सिंग और टाइमर सर्किट बनाने में मदद कर रहे थे। उस समय इसे अलग-थलग घटना माना गया, लेकिन आज देखें तो यह एक लंबी शृंखला की पहली कड़ी थी। इसी तरह 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सात सीरियल धमाकों में 209 लोग मारे गए थे। इनमें प्रेशर कुकर बमों में आरडीएक्स के साथ-साथ अमोनियम नाइट्रेट और फ्यूल ऑयल का मिश्रण इस्तेमाल हुआ था। एनआईए और एटीएस की जांच में सामने आया कि इंडियन मुजाहिदीन के कई प्रमुख सदस्य मेडिकल बैकग्राउंड से थे। इनमें सबसे चर्चित नाम एमबीबीएस डॉक्टर शाहनवाज आलम का था, जो इंडियन मुजाहिदीन के लिए बम बनाने का काम करता था।
25 दिसंबर 2000 को लाल किले के बाहर हुए बम धमाके में लश्कर-ए-तैयबा का हाथ था। इस मामले में गिरफ़्तार किए गए कई आतंकियों में कश्मीरी मेडिकल स्टूडेंट्स और डॉक्टर्स शामिल थे। 2002 और फिर 2005 में लाल किले के आसपास हुए सीरियल ब्लास्ट में भी पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के साथ-साथ स्थानीय मेडिकल प्रोफेशनल्स की भूमिका सामने आई। इन हमलों में अमोनियम नाइट्रेट, आरडीएक्स और केमिकल बूस्टर का इस्तेमाल हुआ था। जांच एजेंसियों ने पाया कि कुछ आरोपी डॉक्टर्स केमिकल मिक्सिंग और टाइमर सर्किट बनाने में मदद कर रहे थे। उस समय इसे अलग-थलग घटना माना गया, लेकिन आज देखें तो यह एक लंबी शृंखला की पहली कड़ी थी।
डॉक्टर्स का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भी इंसानियत की सेवा कर रहा है, लेकिन कुछ मुट्ठी भर लोग पूरे प्रोफेशन को बदनाम कर रहे हैं और देश को अंदर से खोखला करने की कोशिश कर रहे हैं। इनके खिलाफ़ जितनी जल्दी सख्त कदम उठेंगे, उतना ही सुरक्षित रहेगा हमारा देश। उसके साथी डॉ. अरशद वानी और कई अन्य मेडिकल स्टूडेंट्स पाकिस्तान में ट्रेनिंग लेकर आए थे। ये लोग अस्पतालों की लैब और फार्मेसी का इस्तेमाल केमिकल हथियारों के प्रयोग के लिए कर रहे थे। 2008 के बाद इंडियन मुजाहिदीन ने अहमदाबाद, दिल्ली, बेंगलुरु, जयपुर और पुणे में सीरियल ब्लास्ट किए। इनमें से अधिकांश में अमोनियम नाइट्रेट + एल्यूमिनियम पाउडर + ऑयल और केमिकल इग्नाइटर का इस्तेमाल हुआ। हिजबुल मुजाहिदीन के तकनीकी विंग में डॉक्टर्स की भरमार थी। इसके अलावा अहमदाबाद ब्लास्ट केस में एमबीबीएस डॉक्टर मोहम्मद सादिक इसरार अहमद, कश्मीरी डॉक्टर और आईएम का कोर मेंबर डॉ. अबू राशिद और भटकल ब्रदर्स का करीबी व मेडिकल बैकग्राउंड डॉ. रियाज़ भटकल जैसे लोग शामिल थे। इन लोगों ने अपनी मेडिकल पढ़ाई के दौरान सीखी गई ऑर्गेनिक केमिस्ट्री और फार्माकोलॉजी का इस्तेमाल ना सिर्फ़ विस्फोटक बनाने में किया, बल्कि ज़हर (पोटैशियम सायनाइड) और जैविक हथियारों के प्रयोग की योजना भी बनाई थी। 2014 में रांची में पकड़े गए IM मॉड्यूल में भी दो एणबीबीएस डॉक्टर्स मिले थे, जो केमिकल जिहाद की ट्रेनिंग ले रहे थे।


2016 के बाद आईएसआईएस ने भारत में अपने मॉड्यूल बनाए। इनमें भी डॉक्टर्स का प्रतिशत असामान्य रूप से ज्यादा था। केरल मॉड्यूल और एमहीहीए सर्जन डॉ. आदिल डॉ. रियाज़ भटकल, अल-हिंद मॉड्यूल लखनऊ और एमबीबीएस गोल्ड मेडलिस्ट डॉ. हारिस फारूकी, पुणे आईएसआईएस मॉड्यूल डॉ. सैफी और डॉ. कासिम निकले और ये दोनों 2023-24 में गिरफ़्तार किए गए।
2023 में पुणे से पकड़े गए आईएसआईएस मॉड्यूल में दो डॉक्टर्स (एक एमबीबीएस और एक बीडीएस) ने घर में ही मदर ऑफ सैतान ट्राईएसेटोन ट्राईपेरोक्साइड नामक खतरनाक केमिकल विस्फोटक बनाया था। ट्राईएसेटोन ट्राईपेरोक्साइड को ही 2005 लंदन बॉम्बिंग, 2015 पेरिस अटैक और 2016 ब्रसेल्स अटैक में इस्तेमाल किया गया था। ये डॉक्टर्स डार्क वेब से केमिकल फॉर्मूला डाउनलोड कर रहे थे और अस्पताल की लैब में प्रैक्टिस करते थे।
पिछले दो दशकों में भारत में कई आतंकी हमलों में एक हैरान करने वाला पैटर्न सामने आया है, इनमें से कई हमलों की योजना बनाने, फंडिंग जुटाने या तकनीकी मदद देने में मेडिकल प्रोफेशनल्स (डॉक्टर्स और मेडिकल स्टूडेंट्स) की भूमिका रही है। 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सात सीरियल धमाकों में 209 लोग मारे गए थे। इनमें प्रेशर कुकर बमों में आरडीएक्स के साथ-साथ अमोनियम नाइट्रेट और फ्यूल ऑयल का मिश्रण इस्तेमाल हुआ था। एनआईए और एटीएस की जांच में सामने आया कि इंडियन मुजाहिदीन  के कई प्रमुख सदस्य मेडिकल बैकग्राउंड से थे। इनमें सबसे चर्चित नाम था, डॉ. शाहनवाज़ आलम जो आईएम का बम बनाने वाला एक्सपर्ट था। उसके साथी डॉ. अरशद वानी और कई अन्य मेडिकल स्टूडेंट्स पाकिस्तान में ट्रेनिंग लेकर आए थे। ये लोग अस्पतालों की लैब और फार्मेसी का इस्तेमाल केमिकल हथियारों के प्रयोग के लिए कर रहे थे। और अब दिल्ली में जिस तरह से डॉक्टर्स के काले कारनामों ने एक और बम ब्लास्ट को अंजाम दिया है, उससे समाज में अच्छे डॉक्टर्स को भी शर्मसार किया है, जो मरीजों को ठीक करने के लिए दिन-रात लगे रहते हैं और जनसेवा को ही अपना धर्म समझते हैं।
लेकिन सरकार को इस तरफ ध्यान देना होगा कि कुछ बुरे डॉक्टर्स, जो कि असल में देश के साथ गद्दारी करते हुए सानियत को तार-तार करने का काम कर रहे हैं, उन्हें गिरफ्तार किया ज़रूर जाना चाहिए। और इसमें वो डॉक्टर अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं, जो समाज की सेवा करने पर ही अपना फोकस करते हैं। क्योंकि आतंकवादी सोच के डॉक्टर्स और दूसरे लोगों के खिलाफ़ जितनी जल्दी सख्त कदम उठेंगे, उतना ही हमारा देश सुरक्षित रहेगा। इस पर हम यह भी कह सकते हैं कि कहाँ हमारे डॉक्टर APJ अब्दुल कलाम और कहाँ यह आतंकी डॉक्टर्स  जो अपने ही देश को बर्बाद करने में तुले हैं।