अंजलि भाटिया नई दिल्ली , 14 जून भारत और चीन के रिश्तों को फिर से पटरी पर लाने की दिशा में एक अहम क़दम उठाया गया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 24-25 जून को चीन दौरे पर जा रहे हैं। यह 2020 में पूर्वी लद्दाख में हुई तनातनी के बाद किसी भारतीय केंद्रीय मंत्री की पहली आधिकारिक यात्रा होगी। इस दौरान वे शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के रक्षा मंत्रियों की बैठक में भाग लेंगे। इस यात्रा के दौरान राजनाथ सिंह की मुलाकात चीन के रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जून से होने की संभावना है। यह बातचीत भारत-चीन के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनाव को कम करने और विश्वास बहाली की दिशा में अहम मानी जा रही है। रक्षा मंत्री बनने के बाद यह सिंह की पहली चीन यात्रा होगी, हालांकि गृह मंत्री रहते हुए वे पहले भी चीन जा चुके हैं। नवंबर 2024 में लाओस की राजधानी वियंतियाने में ASEAN रक्षा मंत्रियों की बैठक के दौरान सिंह और डोंग जून की अनौपचारिक मुलाकात हो चुकी है। सूत्रों के मुताबिक, यह यात्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच पिछले साल अक्टूबर में जोहानसबर्ग में हुई मुलाकात के बाद बनी आपसी समझ को आगे बढ़ाने की पहल है। उस बैठक में दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर करने और तनाव को दूर करने पर सहमति जताई थी। इससे पहले 13 जून को विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने नई दिल्ली में चीन के उप विदेश मंत्री सुन वेइडोंग से मुलाकात की। दोनों अधिकारियों ने जनवरी में हुई पिछली बैठक के बाद द्विपक्षीय संबंधों की स्थिति की समीक्षा की और “जन-आधारित जुड़ाव” पर ध्यान केंद्रित करने की बात कही।
नई दिल्ली, 14 जून- संयुक्त राष्ट्र में गाजा संघर्ष विराम के प्रस्ताव पर भारत के मतदान से अलग रहने के फैसले को लेकर कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर गंभीर सवाल उठाए हैं। पार्टी ने इसे देश की शांति, अहिंसा और नैतिक कूटनीति की परंपरा के साथ धोखा बताया है और कहा कि सरकार को साफ करना चाहिए कि उसने यह फैसला किन कारणों से लिया।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, महासचिव केसी वेणुगोपाल, प्रियंका गांधी वाड्रा और प्रवक्ता पवन खेड़ा ने शनिवार को संयुक्त बयान में कहा कि भारत का यह रुख उसकी ऐतिहासिक गुटनिरपेक्ष नीति और नैतिक कूटनीति के खिलाफ है। कांग्रेस ने मांग की कि भारत को फिर से न्याय, सत्य और अहिंसा की आवाज बनना होगा।
खरगे ने कहा कि गाजा संघर्ष विराम को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा में लाए गए प्रस्ताव के पक्ष में 149 देशों ने मतदान किया, लेकिन भारत 19 ऐसे देशों में रहा जिन्होंने मतदान में भाग ही नहीं लिया। उन्होंने कहा कि इस तरह हम वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं।
उन्होंने कहा, “भारत ने कभी गाजा जैसे मानवीय संकट पर चुप्पी नहीं साधी थी, फिर अब क्या बदल गया? प्रधानमंत्री मोदी को विदेश मंत्री की बार-बार की गई गलतियों पर ध्यान देना चाहिए और जवाबदेही तय करनी चाहिए।”
प्रियंका गांधी वाड्रा ने भारत के रुख को निराशाजनक करार देते हुए कहा कि यह हमारी उपनिवेशवाद विरोधी विरासत से एक दुखद विचलन है। उन्होंने कहा, “जब इजरायल गाजा में नागरिक इलाकों को निशाना बना रहा था, हम खामोश रहे। अब हम ईरान की संप्रभुता पर हमले पर भी चुप हैं। यह अंतरराष्ट्रीय कानून का सीधा उल्लंघन है।”
केसी वेणुगोपाल ने कहा कि भारत हमेशा शांति, न्याय और मानव गरिमा के पक्ष में खड़ा रहा है। लेकिन इस बार दक्षिण एशिया, ब्रिक्स और एससीओ जैसे मंचों पर भारत ही एकमात्र ऐसा देश रहा, जिसने संयुक्त राष्ट्र के संघर्ष विराम प्रस्ताव पर वोट नहीं दिया।
उन्होंने कहा कि 60,000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे हैं, फिर भी भारत चुप है। उन्होंने पूछा कि क्या भारत ने अब युद्ध, नरसंहार और मानवाधिकारों के खिलाफ अपने सिद्धांत छोड़ दिए हैं?
पवन खेड़ा ने भारत के रुख को “चौंकाने वाला” बताया और कहा कि यह हमारे स्वतंत्रता आंदोलन और नैतिक कूटनीति की विरासत से विश्वासघात है। उन्होंने याद दिलाया कि भारत फलस्तीन मुक्ति संगठन को मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश था और 1988 में फलस्तीन को औपचारिक रूप से मान्यता दी थी। खेड़ा ने कहा, “आज भारत तेल अवीव के सामने झुक गया है। हमारी नैतिक आवाज, जिस पर पूरी दुनिया कभी भरोसा करती थी, वह कमजोर हो चुकी है। अगर भारत को वैश्विक नेतृत्व चाहिए, तो उसे सही वक्त पर सही बात कहने की हिम्मत भी दिखानी होगी।”
12 जून 2025 को अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरने के कुछ सेकंड बाद एयर इंडिया का बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर (फ्लाइट AI-171) मेघानीनगर इलाके में बीजे मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस विमान में 230 यात्री और 12 क्रू मेंबर सहित कुल 242 लोग सवार थे, जिनमें से 241 की मौत हो गई। केवल एक यात्री, रमेश विश्वास कुमार, जो सीट 11A पर बैठा था, चमत्कारिक रूप से बच गया। हादसे में हॉस्टल में मौजूद 33 लोग, जिनमें 20 ट्रेनी डॉक्टर शामिल थे, भी मारे गए, जिससे कुल मृतकों की संख्या 275 हो गई। यह हादसा भारत के इतिहास के सबसे भयावह विमान हादसों में से एक है, जिसने टाटा समूह, एयर इंडिया, और बोइंग की सुरक्षा प्रक्रियाओं पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
पायलट का अनुभव और प्रबंधन की लापरवाही
विमान की कमान कैप्टन सुमीत सभरवाल के हाथ में थी, जिनके पास 8,200 घंटे की उड़ान का अनुभव था, और उनके सह-पायलट फर्स्ट ऑफिसर क्लाइव कुंदर के पास 1,100 घंटे का अनुभव था। कैप्टन सभरवाल एक लाइन ट्रेनिंग कैप्टन (LTC) थे, जो अन्य पायलटों को प्रशिक्षण देने के लिए अधिकृत थे। इतने अनुभवी पायलट के बावजूद हादसा होना एयर इंडिया के प्रबंधन की खामियों की ओर इशारा करता है। प्रारंभिक जांच में पता चला कि टेकऑफ के दौरान कॉन्फिगरेशन एरर (जैसे गलत फ्लैप सेटिंग, कम इंजन थ्रस्ट, या गियर न उठाना) संभावित कारण हो सकता है, जिसे 43 डिग्री सेल्सियस की गर्मी और भारी ईंधन भार ने और जटिल बना दिया। यह सवाल उठता है कि इतने अनुभवी पायलट के साथ ऐसी चूक कैसे हुई? क्या एयर इंडिया का प्रबंधन पायलटों पर अनुचित दबाव डाल रहा था, या रखरखाव और प्रशिक्षण में कमी थी? पायलट ने टेकऑफ के 27 सेकंड बाद “मेडे” कॉल दी थी, जिसमें “लॉसिंग पावर” का जिक्र था, जो तकनीकी खराबी या प्रबंधकीय लापरवाही की ओर संकेत करता है।
डीजीसीए ने दी थी बार-बार चेतावनियां
डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) ने 2022 में टाटा समूह द्वारा एयर इंडिया के निजीकरण के बाद से कई बार चेतावनी जारी की थी। डीजीसीए ने पायलट रोस्टरिंग में अनियमितताओं, कॉकपिट अनुशासन की कमी, और विमानों के रखरखाव में लापरवाही जैसे मुद्दों पर नोटिस भेजे थे। विशेष रूप से, 29 फरवरी 2024 को प्रकाशित आज तक के एक आर्टिकल के अनुसार, डीजीसीए ने एक बुजुर्ग यात्री को व्हीलचेयर देने में देरी के लिए एयर इंडिया पर 30 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। इसके अलावा, द इकोनॉमिक टाइम्स में दिनांक 1 फ़रवरी 2025 को छपे एक आर्टिकल के अनुसार जनवरी 2025 में डीजीसीए ने एक अनुचित पायलट को उड़ान की अनुमति देने के लिए एयर इंडिया पर फिर से 30 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। इन चेतावनियों और जुर्मानों के बावजूद, एयर इंडिया ने अपने संचालन में सुधार नहीं किया, जिसका परिणाम इस त्रासदी के रूप में सामने आया। डीजीसीए की इन चेतावनियों को नजरअंदाज करना प्रबंधन की गंभीर लापरवाही को दर्शाता है।
टाटा समूह की जिम्मेदारी
टाटा समूह ने 2022 में 2.4 बिलियन डॉलर में एयर इंडिया का अधिग्रहण किया था, वादा करते हुए कि वह इसकी छवि और सुरक्षा मानकों को बेहतर करेगा। लेकिन सोशल मीडिया पर जनता का गुस्सा इस बात को दर्शाता है कि निजीकरण के बाद एयर इंडिया की सेवाएं और सुरक्षा मानक और खराब हुए हैं। कई यात्रियों ने शिकायत की है कि विमानों का रखरखाव और सेवा स्तर पहले से भी नीचे गिर गया है। टाटा समूह के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन ने हादसे पर दुख जताया और मृतकों के परिवारों को 1 करोड़ रुपये के मुआवजे की घोषणा की, साथ ही घायलों के इलाज और बीजे मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल के पुनर्निर्माण का वादा किया। लेकिन क्या यह मुआवजा 275 लोगों की जान की कीमत चुका सकता है? जनता का सवाल है कि टाटा समूह ने डीजीसीए की चेतावनियों को गंभीरता से क्यों नहीं लिया, और क्या लागत कटौती के लिए सुरक्षा से समझौता किया गया?
बोइंग 787 की सुरक्षा पर सवाल
हादसे में शामिल बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर 11.5 साल पुराना था और 41,000 घंटे से ज्यादा उड़ान भर चुका था। बोइंग के इस मॉडल पर पहले भी सवाल उठ चुके हैं। 2024 में बोइंग के व्हिसलब्लोअर सैम सालेहपौर ने 787 और 777 विमानों में संरचनात्मक खामियों का खुलासा किया था, जिससे विमान की सुरक्षा और दीर्घायु पर असर पड़ सकता है। अमेरिकी फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (एफएए) ने इसकी जांच शुरू की थी, लेकिन अभी तक कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं निकला। इसके अलावा, बोइंग के अन्य मॉडल, जैसे 737 मैक्स, 2018 और 2019 में क्रैश हो चुके हैं, जिसके बाद कंपनी की गुणवत्ता और सुरक्षा प्रक्रियाएं सवालों के घेरे में हैं। अहमदाबाद हादसा बोइंग 787 ड्रीमलाइनर का पहला क्रैश है, जिसने इसके सुरक्षा रिकॉर्ड को धूमिल किया है।
जांच और भविष्य के कदम
डीजीसीए ने हादसे के बाद एयर इंडिया के सभी बोइंग 787 विमानों की गहन जांच के आदेश दिए हैं, जो 15 जून 2025 से लागू होंगे। एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (AAIB) ने एक ब्लैक बॉक्स (कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर) हॉस्टल की छत पर पाया, और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर की तलाश जारी है। केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू ने एक उच्च-स्तरीय समिति गठित की है, जिसमें गुजरात सरकार, डीजीसीए, और अन्य विशेषज्ञ शामिल हैं। बोइंग ने भी जांच में सहयोग का वादा किया है।
275 मृतकों की जिम्मेदारी कौन लेगा?
इस हादसे में 275 लोगों की जान गई, जिसमें गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, 20 ट्रेनी डॉक्टर, और 61 विदेशी नागरिक शामिल थे। टाटा समूह ने 1 करोड़ रुपये के मुआवजे की घोषणा की, और मॉन्ट्रियल कन्वेंशन के तहत बीमा कंपनियां भी मृतकों के परिजनों को मुआवजा देंगी, जो 25 लाख से 1.4 करोड़ रुपये तक हो सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या आर्थिक मुआवजा इतनी बड़ी त्रासदी की भरपाई कर सकता है? जनता का गुस्सा सोशल मीडिया पर साफ दिख रहा है, जहां लोग पूछ रहे हैं कि इतनी जानें लेने की जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या टाटा समूह और एयर इंडिया का प्रबंधन अपनी गलतियों के लिए जवाबदेह होगा, या यह हादसा केवल आंकड़ों में सिमटकर रह जाएगा? लोग मांग कर रहे हैं कि हादसे की गहन जांच हो, और दोषियों को सजा मिले, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।
हादसा है बड़ा सबक
अहमदाबाद विमान हादसा टाटा समूह, एयर इंडिया, और बोइंग के लिए एक कठोर सबक है। डीजीसीए की चेतावनियों को नजरअंदाज करना, रखरखाव में लापरवाही, और संभवतः लागत कटौती के लिए सुरक्षा से समझौता करना इस त्रासदी का कारण बना। अब जरूरत है कि सुरक्षा मानकों को और सख्त किया जाए, पायलटों के प्रशिक्षण और रोस्टरिंग में सुधार हो, और विमानों का रखरखाव प्राथमिकता बने। यह हादसा न केवल 275 परिवारों के लिए एक अपूरणीय क्षति है, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है कि सुरक्षा से समझौता कभी स्वीकार्य नहीं हो सकता।
अंजलि भाटिया नई दिल्ली , 13 जून अहमदाबाद में हाल ही में हुए दर्दनाक विमान हादसे पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने गहरा शोक व्यक्त करते हुए घटना की न्यायिक जांच की मांग की है। उन्होंने कहा कि हादसे में जिन लोगों की जान गई है, उनके परिजनों के प्रति गहरी संवेदना है और कांग्रेस समेत सभी संगठनों के कार्यकर्ताओं को घायलों व पीड़ित परिवारों की साहसिक मदद के लिए आगे आना चाहिए। खरगे ने केंद्र सरकार से मांग की कि वह पीड़ितों को आर्थिक सहायता, बेहतर चिकित्सा सुविधा और अन्य जरूरी समर्थन तत्काल प्रदान करे। उन्होंने कहा कि सभी घायलों को प्राथमिकता के आधार पर इलाज मिलना चाहिए और हादसे की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। खरगे ने यह भी दावा किया कि पायलट पर निर्धारित समय से पहले उड़ान भरने का दबाव था, और यह तथ्य केवल निष्पक्ष जांच से ही सामने आएगा। उन्होंने कहा कि यह जांच सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा या सेवानिवृत्त न्यायाधीश से करवाई जानी चाहिए ताकि यह स्पष्ट हो सके कि यह हादसा कैसे हुआ और इसकी जिम्मेदारी किसकी है। पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि शाह का यह बयान कि “दुर्घटनाओं को कोई नहीं रोक सकता”, न केवल गैरजिम्मेदाराना है बल्कि यह त्यागपत्र जैसा वक्तव्य है। खेड़ा ने सवाल उठाया कि अगर सरकार हादसों को नहीं रोक सकती तो मंत्रालयों और नियामक संस्थाओं का औचित्य क्या है? उन्होंने कहा कि “विमान हादसे दैवीय आपदाएं नहीं हैं”, इसलिए उन्हें रोका जा सकता है। तभी तो हमारे पास नियामक तंत्र, सुरक्षा प्रोटोकॉल और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली मौजूद हैं। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भी सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “क्या यही कहना एक केंद्रीय गृह मंत्री को शोभा देता है? यह बेहद असंवेदनशील बयान है। गौरतलब है कि गुरुवार को अमित शाह ने बयान दिया था कि विमान में ईंधन के कारण तापमान इतना अधिक हो गया था कि किसी को बचा पाना संभव नहीं था। कांग्रेस ने हादसे की गंभीरता और सरकार की जवाबदेही को रेखांकित करते हुए मांग की है कि पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए ठोस और पारदर्शी जांच हो तथा जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई हो।
नई दिल्ली , 13 जून- भारत और मंगोलिया के बीच रक्षा सहयोग को मजबूत करने के उद्देश्य से भारत के रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह और मंगोलिया के रक्षा मंत्रालय के राज्य सचिव ब्रिगेडियर जनरल गंखुयाग देवादोरज के बीच शुक्रवार को मंगोलिया की राजधानी उलानबटार में महत्वपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता आयोजित हुई।बैठक में दोनों देशों ने विशेष रूप से नई और उभरती तकनीकों में सहयोग बढ़ाने पर बल दिया। यह बातचीत भारत-मंगोलिया रणनीतिक साझेदारी को नई दिशा देने और रक्षा क्षेत्र में विश्वास और सहयोग को और गहरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
उसी दिन भारत-मंगोलिया के संयुक्त सैन्य अभ्यास ‘नोमैडिक एलीफेंट 2025’ का समापन समारोह भी उलानबटार में संपन्न हुआ। इस अवसर पर रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उनके साथ मंगोलिया के डिप्टी चीफ ऑफ जनरल स्टाफ ब्रिगेडियर जनरल बाटार बालजिद, भारत के मंगोलिया में राजदूत अतुल एम. गोत्सुरवे तथा लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह भी मौजूद थे।
रक्षा सचिव ने भारतीय और मंगोलियाई सैनिकों की पेशेवर दक्षता की प्रशंसा करते हुए इस सैन्य अभ्यास को बढ़ते द्विपक्षीय रक्षा सहयोग और क्षेत्रीय शांति के प्रति साझा प्रतिबद्धता का प्रतीक बताया।
राजेश कुमार सिंह शनिवार को उलानबटार में आयोजित बहुराष्ट्रीय संयुक्त सैन्य अभ्यास ‘खान क्वेस्ट 2025’ के उद्घाटन समारोह में भाग लेंगे। इस सैन्य अभ्यास में भारतीय सेना की टुकड़ी भी शामिल हो रही है। वहीं, मंगोलियाई व अमेरिकी सेना भी इस अभ्यास का हिस्सा हैं। इस अभ्यास में शामिल होने वाली भारतीय सेना की टुकड़ी में कुमाऊं रेजिमेंट के 40 जवानों के साथ-साथ अन्य अंगों और सेवाओं के जवान भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, एक महिला अधिकारी और दो महिला सैनिक भी टुकड़ी का हिस्सा हैं। ‘खान क्वेस्ट 2025’ का आयोजन 14 जून से 28 जून तक चलेगा और इसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय सैन्य समन्वय और साझेदारी को बढ़ावा देना है।भारत और मंगोलिया की सेनाओं के बीच आतंकवाद के खिलाफ किया जा रहा एक महत्वपूर्ण संयुक्त युद्धाभ्यास ‘नोमैडिक एलीफेंट 2025’ शुक्रवार को पूरा हो गया।
अंजलि भाटिया नई दिल्ली, 13 जून , भारत सरकार ने सीमा क्षेत्रों में स्थित सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक अहम कदम उठाया है। इसके तहत, सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्गों, पुलों और सुरंगों की सूची तैयार करने और एक डाटा बैंक बनाने का काम शुरू कर दिया है, ताकि युद्ध जैसी स्थिति में इन बुनियादी ढांचों को सुरक्षित रखा जा सके। इसके अलावा, सरकार वैकल्पिक रास्तों और कनेक्टिविटी के खाके पर भी काम कर रही है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सचिव वी. उमाशंकर ने इस संबंध में शीर्ष अधिकारियों के साथ एक बैठक की, जिसमें भारत की यूनियन वॉर बुक के तहत देशभर के प्रमुख, सीमावर्ती और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को सूचीबद्ध करने के निर्देश दिए गए। इस डाटा बैंक में न केवल मौजूदा बुनियादी ढांचे को शामिल किया जाएगा, बल्कि निर्माणाधीन राजमार्ग, पुल, सुरंग और भारी निर्माण उपकरण भी दर्ज किए जाएंगे। इस डाटा बैंक का एक प्रमुख लाभ यह होगा कि इसे ऑनलाइन निगरानी के माध्यम से ट्रैक किया जा सकेगा। साथ ही, एनएचएआई, एनएचएआईडीसीएल और बीआरओ जैसे संस्थाओं को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया गया है। अधिकारियों ने बताया कि युद्ध की स्थिति में इन बुनियादी ढांचों के संचालन में कोई रुकावट न हो, इसके लिए वैकल्पिक कनेक्टिविटी के रोडमैप पर भी काम चल रहा है। इससे सेना को युद्ध की स्थिति में तेजी से प्रतिक्रिया देने में मदद मिलेगी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग केवल 2% सड़कों का हिस्सा हैं, लेकिन इन पर करीब 40%सड़क यातायात चलता है। ये राजमार्ग सीमावर्ती और पहाड़ी क्षेत्रों को जोड़ने में मदद करते हैं, जो सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये सड़कें सेना को त्वरित गति से सीमा तक पहुंचाने, हथियार और रसद पहुंचाने और सैनिकों को तैनात करने में मदद करती हैं। ये सेना को नदियों, पहाड़ों और अन्य दुर्गम इलाकों को आसानी से पार करने में सक्षम बनाते हैं।
भारत की यूनियन वॉर बुक एक गोपनीय दस्तावेज है, जो युद्ध की स्थिति में विभिन्न मंत्रालयों और एजेंसियों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है। इसमें विशेष रूप से सामरिक महत्व के राष्ट्रीय राजमार्गों, पुलों और सुरंगों की निगरानी और रखरखाव को प्राथमिकता दी जाती है, जो देश की रक्षा तैयारियों के लिए महत्वपूर्ण हैं।यह बुनियादी ढांचा न केवल युद्ध जैसी आपात स्थिति में त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है, बल्कि भारत की सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता के लिए भी एक अहम स्तंभ है।
नई दिल्ली: उत्तर भारत में पड़ रही भीषण गर्मी ने आम जनजीवन को बेहाल कर दिया है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) की वेबसाइट पर जारी स्थानीय मौसम पूर्वानुमान के अनुसार, 11 जून और 12 जून को दिल्ली-एनसीआर में तापमान 44 से 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने की संभावना है।
इसी के साथ मौसम विभाग ने इन दोनों दिनों के लिए ऑरेंज अलर्ट जारी किया है। इस दौरान दिन में तेज सतही हवाएं, धूल भरी आंधी और हीट वेव जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ेगा। 13 जून को तापमान थोड़ा गिरकर 43 डिग्री तक रहने का अनुमान है, लेकिन मौसम विभाग ने फिर भी येलो अलर्ट जारी किया है।
इस दिन गर्मी के साथ नमी, तेज हवाएं, और गर्जन के साथ बारिश की संभावना जताई गई है, जिससे उमस, बेचैनी और अधिक बढ़ सकती है। 14 जून से राहत की उम्मीद है। हालांकि, बिजली-गिरने और आंधी का खतरा भी बताया गया है। मौसम विभाग के अनुसार 14 जून से मौसम में बदलाव देखने के लिए मिल सकता है। इस दिन गरज-चमक के साथ बारिश की संभावना है और तापमान 40 डिग्री तक गिर सकता है। हालांकि, इस दिन के लिए येलो अलर्ट जारी किया गया है क्योंकि 40 से 50 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तेज हवा चलने, बिजली गिरने और गर्जन की आशंका बनी हुई है। 15 और 16 जून को भी गरज के साथ बारिश या रुक-रुक कर बारिश के आसार हैं। इन दिनों के लिए कोई चेतावनी नहीं दी गई है।
मौजूदा गर्मी की स्थिति के बीच दिल्ली और एनसीआर के अस्पतालों में डिहाइड्रेशन, हीट स्ट्रोक और चक्कर आने की शिकायतों वाले मरीजों की संख्या में 90 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी देखी गई है। खासकर बच्चे और युवा बड़ी संख्या में अस्पतालों का रुख कर रहे हैं। डॉक्टरों ने लोगों को दिन में बाहर निकलने से बचने, पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स का सेवन बढ़ाने और धूप में सीधे संपर्क से बचने की सलाह दी है। भीषण गर्मी के इस दौर में प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने लोगों से अपील की है कि वे अनावश्यक रूप से घर से बाहर न निकलें, हल्के सूती कपड़े पहनें और बच्चों व बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें। मौसम विभाग द्वारा जारी अलर्ट को ध्यान में रखते हुए आम जन को सतर्क रहना बेहद जरूरी है।
मोदी सरकार ने भले ही जाति जनगणना की घोषणा कर दी हो, लेकिन इस पहल के सामने कई जटिल चुनौतियां हैं। इनमें सबसे बड़ी चुनौती यह है कि जाति गणना को शामिल करने के लिए मौजूदा जनगणना अधिनियम और संबंधित नियमों में संशोधन की आवश्यकता है या नहीं। सरकार के पास इन बदलावों को लाने के लिए लगभग 10 महीने हैं। एक बुनियादी बाधा जाति, वंश, गोत्र और उपनाम के बीच अंतर करने में कठिनाई है – खासकर तब जब उत्तरदाता अक्सर असंगत या अस्पष्ट उत्तर देते हैं। आधिकारिक दशकीय जनगणना से अलग 2011 में आयोजित सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) के दौरान ये जटिलताएं सामने आईं। इसमें जाति संबंधी 46 लाख से अधिक प्रविष्टियां दर्ज की गईं, जिनमें से कई को उपनाम, उप-जाति, समानार्थी शब्द और कबीले के नाम शामिल होने के कारण अविश्वसनीय माना गया – जिससे सटीक निष्कर्ष निकालना लगभग असंभव हो गया। अराजकता को दूर करने के लिए, मोदी सरकार ने तत्कालीन नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया को एसईसीसी के डेटा को सुव्यवस्थित और मान्य करने के लिए एक पैनल का नेतृत्व करने का काम सौंपा, हालांकि समिति की रिपोर्ट अभी भी अप्रकाशित है।
एक मुख्य चिंता यह है कि क्या मुस्लिम, ईसाई और बौद्ध जैसे गैर-हिंदू समुदायों के लिए जाति डेटा शामिल किया जाए, जिनमें आंतरिक पदानुक्रम और सामाजिक श्रेणियां भी हैं। इस बात पर बहस चल रही है कि धार्मिक संप्रदायों को शामिल किया जाए या नहीं, एससी और एसटी के साथ ओबीसी के लिए एक अलग कॉलम जोड़ा जाए और जाति समूहों को और उप-वर्गीकृत किया जाए या नहीं। ओबीसी में पसमांदा मुसलमानों को भी शामिल करने की मांग की जा रही है। इन मुद्दों से यह चिंता पैदा
वृंदावन—जिसका नाम सुनते ही मन में कृष्ण की बाँसुरी की मधुर तान, यमुना के नीले जल पर उठती लहरें और हरियाली से घिरे कुंज गलियारों की छवि उभरती थी—आज एक मायावी योजना का शिकार हो रहा है।
यह वही वृंदावन है, जहाँ मीरा ने प्रेम की अमर पंक्तियाँ गाई थीं, जहाँ चैतन्य महाप्रभु ने भक्ति की धारा बहाई थी, और जहाँ सदियों से संतों ने तपस्या की थी। लेकिन आज यह पवित्र भूमि एक क्रूर मशीनरी का हिस्सा बन चुकी है—एक ऐसी मशीनरी जो “विकास” के नाम पर आस्था को कुचल रही है, प्रकृति को निगल रही है और भक्ति को एक कॉर्पोरेट उत्पाद में बदल रही है।
वृंदावन का स्याह परिवर्तन: जब पवित्रता मुनाफे की भेंट चढ़ी
कभी वृंदावन की पहचान उसके पवित्र कुंडों, घने कदंब के वृक्षों और यमुना के किनारे फैले विशाल मैदानों से थी। आज? यह एक बदसूरत शहरी जंगल में तब्दील हो रहा है, जहाँ कंक्रीट के जंगल ने प्राकृतिक सौंदर्य को निगल लिया है। पिछले दो दशकों में वृंदावन का 60% हरित क्षेत्र नष्ट हो चुका है। बृज के 1,000 से अधिक पवित्र कुंडों में से 70 को अवैध कब्जों ने लील लिया है, बाकी को कचरे और गंदगी से पाट दिया गया है। यमुना, जो कभी निर्मल धारा थी, आज एक विषैले नाले में तब्दील हो चुकी है, जिसके किनारे अब होटल और बहुमंजिला अपार्टमेंट खड़े हैं।
वृंदावन की कुंज गलियाँ, जो कभी भक्तों के लिए श्रद्धा और शांति का प्रतीक थीं, अब चौड़ी सड़कों में बदल चुकी हैं। इन सड़कों के किनारे मंदिर, देवालय नहीं, अब श्री कृष्ण स्टोर्स, राधा-कृष्ण फास्ट फूड और भगवान गिफ्ट शॉप्स की भरमार है। यहाँ अब भक्ति नहीं, बल्कि भक्तों की जेबें काटने की होड़ मची है।
वृंदावन कॉरिडोर:
जिस तरह काशी विश्वनाथ कॉरिडोर ने वाराणसी के पुरातन स्वरूप को बदल दिया, उसी तर्ज पर वृंदावन कॉरिडोर बनाया जा रहा है। इसके नाम पर सैकड़ों साल पुराने मंदिर, हवेलियाँ और ऐतिहासिक इमारतें ध्वस्त की जा सकती हैं। सरकार का दावा है कि यह “भक्तों की सुविधा” के लिए किया जा रहा है, लेकिन कुछ लोगों को यह एक व्यावसायिक साजिश दिख रही है।
लास्ट ईयर, स्थानीय पुजारियों और संतों ने इसका विरोध किया था। वर्षों से वृंदावन में रह रहे एक आचार्य ने कहा—”इस कॉरिडोर में भक्ति नहीं, टिकट और सामान बिकेंगे।”
लेकिन सरकार और उसके साथ खड़े बाबाओं को इसकी परवाह नहीं। उनके लिए वृंदावन एक “ब्रांड” है, जिसे बेचकर करोड़ों कमाए जा सकते हैं। इस वक्त तीन ग्रुप्स में विभाजित है विरोध का आंदोलन। कुछ दिनों में कॉरिडोर के पक्ष हो जाएगा माहौल। प्रश्न सिर्फ कॉरिडोर का नहीं, समूचे ब्रज चौरासी कोस में विकास की दिशा का है।
धर्म का नया बाजार: बाबाओं और बिल्डरों का गठजोड़
वृंदावन के पतन का रास्ता उसके “आध्यात्मिक व्यापारीकरण” में देखा जा सकता है। आज यहाँ नए-नए “गुरु” उभर रहे हैं, जो “एक्सप्रेस मोक्ष” का वादा करते हैं। रियल एस्टेट कारोबारियों ने वृंदावन की जमीनों को हड़पने के तमाम उपक्रम चला रखे हैं। 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पाँच सालों में वृंदावन की 40% जमीन अवैध तरीके से बेची गई। इनमें से अधिकांश सौदे बड़े धार्मिक ट्रस्टों और नेताओं के बीच हुए।
इन्होंने पेड़ काटे, तालाब पाटे और उनकी जगह लग्जरी आश्रम, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और पार्किंग लॉट बना दिए। आज वृंदावन में “प्रेम की नगरी” नहीं, “पैसे की नगरी” बस चुकी है।
सुविधा बनाम संस्कृति
कुछ लोग कहते हैं कि यह आधुनिकीकरण अच्छा है, क्योंकि इससे मंदिर सबके लिए खुल गए हैं। सच है, जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव खत्म हुआ है। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि हम अपनी विरासत को ही मिटा दें?
स्थानीय वासियों को डर है कि वृंदावन कॉरिडोर, अपनी एयर-कंडीशंड सुविधाओं के साथ, तीर्थ को एक “मॉल” में बदल देगा। भक्त अब यहाँ श्रद्धा से नहीं, सेल्फी लेने आएँगे। क्या यही चाहते थे हमारे ऋषि-मुनि?
क्या बचेगा वृंदावन में?
आने वाले समय में वृंदावन एक विशाल कंक्रीट का जंगल बनकर रह जाएगा। यहाँ की मिट्टी की खुशबू, पक्षियों की चहचहाट और कुंज गलियों की शांति—सब खत्म हो जाएँगे। बचेगा तो सिर्फ एक खोखला ढाँचा, जहाँ भक्ति के नाम पर पैसा बटोरा जाएगा।
यदि यही “विकास” है, तो यह विनाश से कम नहीं। ब्रज वृंदावन की आत्मा को बचाने का समय अब निकला जा रहा है।
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट को बम से उड़ाने की धमकी मिली है। यह धमकी एक संदिग्ध ई मेल के जरिए मद्रास टाइगर्स फॉर अजमल कसाब संगठन की ओर से भेजी गई थी। इसके बाद हड़कंप मच गया और पुलिस प्रशासन ने हाईकोर्ट परिसर को खाली कराकर तत्काल तलाशी ली। इस दौरान महाधिवक्ता बिल्डिंग, वकीलों के चेंबर और परिसर से लेकर पूरी हाईकोर्ट बिल्डिंग और गार्डनों के चप्पे चप्पे की तलाशी ली गई। जजों के चेंबर और कोर्ट की भी छानबीन की गई। हालांकि हाईकोर्ट परिसर में तलाशी के दौरान कुछ नहीं मिला है। चकरभाठा पुलिस ने मामले में एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
समर वेकेशन के बाद 9 जून सोमवार से हाईकोर्ट में नियमित कामकाज शुरू हुआ। इस दौरान कोर्ट परिसर में जजों के साथ ही वकील और पक्षकार भी मौजूद थे, तभी दोपहर में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की वेबसाइट पर ईमेल के जरिए धमकी भरा मैसेज आया। मेल में हाईकोर्ट में बम लगाने और परिसर को उड़ाने देने की बात लिखी थी। मैसेज देखकर हाईकोर्ट के प्रोटोकाल अफसर भी सकते में आ गए। इसकी जानकारी तत्काल पुलिस अधिकारियों को दी गई, जिसके बाद पुलिस भी अलर्ट मोड पर आई। मामले को गंभीरता से लेते हुए पुलिस की टीम फौरन डॉग स्क्वायड के साथ मौके पर पहुंची और जांच शुरू की।
धमकी देने वाले ने ईमेल आईडी abdia@outlook.com का इस्तेमाल किया। मेल में साफ तौर पर आईईडी लगाने और किसी भी क्षण विस्फोट की बात कही गई थी। मेल में कई संवेदनशील मुद्दों का जिक्र था, जिसमें अजमल कसाब की फांसी और कुछ व्यक्तियों की हिरासत शामिल थी। इसमें “पवित्र मिशन” को अंजाम देने की धमकी दी गई थी, जिसमें कोर्ट परिसर में कथित तौर पर “अमोनियम सल्फर-आधारित आईईडी” लगाए गए होने का दावा किया गया।
तुरंत बाद पहुंची पुलिस ने बिना समय गंवाए पूरे परिसर को खाली कराया। जज, वकील, स्टाफ और पक्षकारों को बाहर निकाला गया और पूरे क्षेत्र को सील कर दिया गया। पुलिस के मुताबिक पूरे हाईकोर्ट परिसर और आसपास के क्षेत्रों की गंभीरता और बारीकी से चेकिंग की गई, लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला। पुलिस के अनुसार एफआईआर दर्ज मामले में साइबर सेल और खुफियां एजेंसियां ईमेल भेजने वाले की लोकेशन और पहचान का पता लगाने में जुटी है। ज्ञात हो कि वहीं 2 महीने पहले कवर्धा कलेक्टर कार्यालय को आरडीएक्स से उड़ाने की धमकी मिली थी। कलेक्टर कवर्धा के ऑफिशियल मेल आईडी पर कश्मीर से मेल आया था। वहीं 8 महीने पहले बिलासपुर से दिल्ली जा रही फ्लाइट को बम से उड़ाने की भी धमकी मिल चुकी है।