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फ्रांस

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विश्व रैंकिंग: 17
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन : विजेता (1998)

खास बात

फ्रेंक रिबेरी और समीर नासरी की अनुपस्थिति में मैथ्यू वाल्बुएना की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है. सामान्य तौर पर दाएं क्षेत्र में तैनात किए जाने वाले प्रतिभाशाली मैथ्यू से शायद ही कभी गेंद छूटती है. इसके साथ ही रक्षा पंक्ति को भेदने वाले मौकों पर उनकी खास नजर रहती है

स्टार खिलाड़ी फ्रेंक रिबेरी का चोटिल होने के कारण फुटबॉल विश्व कप से बाहर होना फ्रांस की टीम के लिए बड़ा झटका है. बायर्न म्यूनिख के इस 31 वर्षीय फॉरवर्ड से पूरी टीम ये उम्मीद लगाए बैठी थी कि वह जरूर इस बार उसके नेतृत्व में विश्व कप ले आएगी. ब्राजील में पूरी टीम रिबेरी की कमी महसूस कर रही है. एक तरफ रिबेरी टीम से बाहर हैं, वहीं कोच डिडियर डैशचैम्प्स के उस निर्णय ने भी टीम के कप जीतने की उम्मीदों पर सवालिया निशान लगा दिया है जिसके तहत उन्होंने मैनचेस्टर सिटी के मिडफील्डर समीर नासरी को टीम में शामिल नहीं किया. डैशचैम्प्स का कहना था कि 41 मैच खेल चुके नासरी विश्व कप की उनकी योजनाओं में फिट नहीं बैठते क्योंकि विश्व कप के लिए चुनी गई टीम में शामिल खिलाड़ियों की तुलना में उनका प्रदर्शन कमजोर रहा है.टीम में प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की भरमार होने के बावजूद फ्रांस 2008 के यूरो कप और 2010 के विश्व कप में एक भी मैच नहीं जीत पाया. हालांकि ग्रुप ई में स्विट्जरलैंड, होंडुरास, इक्वेडोर के साथ शामिल फ्रांसीसी टीम के इस बार कुछ बेहतर करने की उम्मीद जताई जा रही है. रियल मैड्रिड के रफेल वराने के रूप में फ्रांसीसी टीम के पास एक बेहतरीन डिफेंडर है. फ्रैंक रिबेरी टूर्नामेंट से बाहर हैं, लेकिन फिर भी टीम की रक्षापंक्ति बेहद मजबूत है. फ्रांस के शानदार गोलकीपर ह्यूगो लौरिस के अलावा अनुभवी डिफेंडर पैट्रिस एव्रा, लॉरेन्ट कोसाइनली और रफाएल वरान टीम की ताकत हैं. इसके अलावा मिडफील्डर पॉल पोग्बा अपने फॉरवर्ड खिलाड़ी करीम बेंजेमा और ऑलिवर जिरू के लिए मैजिक पास देकर गोल के मौके बना सकते हैं. हाल ही में हुई चैंपियंस लीग में करीम रियल मैड्रिड की जीत के सबसे बड़े सितारे रहे. रिबेरी के अनुपस्थिति में ऑलिवर एक बड़ी भूमिका में रहेंगे. और न्यूकैसल के लॉइक रेमी एक सूपरसब (विकल्प) के तौर पर मददगार साबित हो सकते हैं.

होंडुरास

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विश्व रैंकिंग: 33
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन : ग्रुप स्टेज (2010)

खास बात
होंडुरास कभी भी फुटबॉल खेलने की अपनी प्रतिभा के कारण चर्चित नहीं रहा. अपनी इस कमी को वह शारीरिक दमखम से भरता दिखता है. टीम के हर खिलाड़ी की बनावट एक टैंक सरीखी है जिससे वह अपने प्रतिद्वंदियों पर ताकत के लिहाज से बीस पड़ता है. ऐसे में प्रतिद्वंदी के हाथ पांवों के अलावा उसके अहम को भी चोट लगने की संभावना है

होंडुरास के खिलाड़ी दुनिया की नजरों में उस समय आए जब उन्होंने धमाकेदार तरीके से 2012 लंदन ओलंपिक के क्वार्टर फाइनल में अपनी जगह बनाई. अंतिम आठ में टीम ब्राजील से भले हार गई, लेकिन उस खेल के दौरान टीम ने जो सीखा, जो अनुभव किया वो उसे लंबी रेस के लिए तैयार करने वाला था. ‘हम कर सकते हैं’ जैसे आत्मविश्वास के भाव से टीम को भरने और उसे विश्व फुटबॉल के नक्शे पर लाने का श्रेय टीम के साल 2011 से कोच कोलंबियाई मूल के लुइस सुआरेज़ को जाता है.टीम की रक्षा पंक्ति का इतिहास बहुत शानदार रहा है, जहां कीपर नोएल वलाडेर्स ने 100 से अधिक मैचों में टीम का प्रतिनिधित्व किया है. दिग्गज खिलाड़ी विक्टर बर्नार्डेज और मेनोर फिगरो मिडफिल्ड में बेहतरीन साझेदारी के लिए जाने जाते हैं. वहीं सेल्टिक और रेंजर्स के लिए खेलने वाले एमिलियो इजागुरे और अर्नोल्ड पेराल्टा की साझेदारी से तैयार रक्षा पंक्ति का तोड़ निकालना विपक्षी टीम के लिए हमेशा बेहद मुश्किल भरा रहा है. एमिलियो इजागुरे ने 2010-11 में इतने बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया कि उन्हें उस साल के स्कॉटिश प्रिमियर लीग के खिलाड़ी का खिताब मिला. विल्सन पैलेसियस जहां मैदान के मिडफिल्ड में मोर्चा संभालेंगे वहीं एंडी नाजर और ऑस्कर गार्सिया अग्रिम पंक्ति का नेतृत्व करेंगे. कार्लो कॉस्टली और जेरी  बेंगस्टन के पूरे फॉर्म में फील्ड पर दिखने की उम्मीद है. कार्लो ने मैदान पर अगर कोई गलती की तो वो अपने नाम(कॉस्टली) के कारण मजाक का विषय जरूर बन सकते हैं. वहीं टीम के उभरते खिलाड़ी जेरी बेंगट्सन की प्रतिभा पर फिलहाल कोई उंगली उठाता नहीं दिखता.

बोस्निया-हर्जेगोविना

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विश्व रैंकिंग: 21
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनविश्वकप में पहली बार

खास बात
एडिन जेको के रूप में भले ही बोस्निया- हर्जेगोविना के पास एक शानदार स्ट्राइकर हो, लेकिन उनकी सुरक्षा पंक्ति में वह मजबूती नहीं है. यही वजह है कि अपनी रणनीति बनाते हुए कोच साफेत सूसिक को मिडफील्ड की तरफ ज्यादा ध्यान देना होगा. इस लिहाज से सईद कोलासिनेक एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी साबित हो सकते हैं

बोस्नियाई टीम के खेल में एक अलग रचनात्मकता है जो उसके कोच साफेत सूसिक की देन है. साफेत ने अपनी देखरेख में खेल के इस पक्ष पर खूब ध्यान केंद्रित किया. कहा जाता है कि बोस्नियाई टीम की यही रचनात्मकता उसकी सबसे बड़ी ताकत है जिसके दम पर टीम अपने उन विरोधियों पर भारी पड़ती है जो परंपरागत तरीके से खेलते हैं. हालांकि टीम की इस ताकत को उन टीमों से चुनौती मिलती है जो बेहद आक्रामकता के साथ अपना खेल खेलती हैं. टीम स्वाभाविक रूप से मैनचेस्टर सिटी के स्टार स्ट्राइकर एडिन जेको पर निर्भर है. ब्राजील में हो रहे इस फुटबॉल महाकुंभ में जेको का साथ रोमा के स्टार खिलाड़ी मिरालेम जानिक देंगे जो हाल में कई मौकों पर बेहतरीन खेल का प्रदर्शन कर चुके हैं.मैदान पर टीम का पूरा प्रदर्शन इन दोनों खिलाड़ियों के बीच के तालमेल पर ही निर्भर करेगा. इन्हीं दोनों के कंधों पर टीम को विजय दिलाने का पूरा दारोमदार रहेगा. वैसे जरूरत से ज्यादा रचनात्मकता भी कभी-कभी भारी पड़ जाती है. हाल के मैच इसकी पुष्टि करते हैं, जिनमें टीम की फॉरवर्ड पंक्ति उस समय थोड़ी भ्रमित दिखाई दी जब उसके खेलने के नियमित तौर-तरीकों में बदलाव हुआ. यही नहीं मिडफील्ड से पर्याप्त सहयोग नहीं मिलने के कारण टीम की समस्या और बढ़ती दिखाई दी. हालांकि टीम के पास इस चुनौती से निपटने के लिए 20 वर्षीय सईद कोलासिनेक जैसा खिलाड़ी भी है. सईद बतौर रक्षात्मक मिडफील्डर के रूप में अचानक होने वाले किसी जवाबी हमले से निपट सकते हैं. टीम के सामने दूसरी चुनौती अतिरिक्त खिलाड़ियों की कमी की भी है. किसी खिलाड़ी के चोटिल होने या थकने पर कोच साफेत सूसिक के पास विकल्प के रूप में जो खिलाड़ी हैं उनके खेल की गुणवत्ता उतनी नहीं है.

इटली

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विश्व रैंकिंग: 9
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनविजेता (1934, 38, 82, 2006)

खास बात
जब मारियो बालोटेली मैदान पर हों तो कब क्या होगा कोई नहीं कह सकता. एसी मिलान की ओर से खेलने वाले इस खिलाड़ी ने इस सीजन में जहां 18 गोल मारे वहीं उसे 15 कार्ड भी मिले (इनमें से 14 यलो और एक रेड कार्ड था). एक बात तो तय है, वे गोलकीपरों और रेफरी दोनों को काफी व्यस्त रखने वाले हैं
नीदरलैंड के साथ-साथ इटली को भी एक ऐसी टीम माना जाता है जो सदाबहार है, यानी जिसकी जीत की संभावनाएं हमेशा रहती हैं. लेकिन हाल के वर्षों में इटली की टीम में सितारों की कमी रही है. हां, वर्ष 2006 में जर्मनी में विश्व कप विजेता बनने वाली टीम के दो खिलाड़ी आंद्रिया पिर्लो और जनलुइजी बफॉन जरूर इस बार भी विश्व कप टीम का हिस्सा हैं. लेकिन इस टीम में ऐसी अनेक खूबियां भी हैं जो आमतौर पर सामने नहीं नजर आतीं. कोच सीजर प्रानडेली की इस टीम के लिए एक शृंखला बनाकर खेलना बीते दिनों की बात हो चुका है. यह वही कोच हंै जिनकी आक्रामक टीम ने वर्ष 2012 के यूरो कप के फाइनल में प्रवेश किया था. हालांकि वहां इनको स्पेन से 4-0 की शिकस्त खानी पड़ी थी. टीम के पास बफॉन के रूप में एक जबरदस्त गोलकीपर है और जॉर्जियो चेलिनी तथा जुवेंटस (फुटबॉल क्लब) के उनके साथी खिलाड़ी मिलकर टीम को एक दमदार बैकलाइन प्रदान करते हैं और टीम की रक्षा पंक्ति को मजबूत बनाते हैं. निस्संदेह पिर्लो इस टीम के सबसे जादुई खिलाड़ी हैं और वह मिडफील्ड में अपना करिश्मा दिखाना जारी रखेंगे. डेनियल डे रोसी और मार्को वेराट्टी के रूप में उनके पास दो बेहतरीन पासर्स भी हैं. फॉरवर्ड लाइन की बात करें तो मारियो बालोटेली आक्रमण की अगुआई करेंगे. हालांकि कई दफा वह अचानक लड़खड़ा जाते हैं लेकिन गोल की उनकी भूख का कोई जवाब नहीं. अगर वे विफल होते हैं तो टीम के पास सीरो इम्मोबाइल के रूप में ऐसा स्ट्राइकर भी है जो बेहद गतिशील है.

उरुग्वे

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विश्व रैंकिंग: 7
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनविजेता (1930, 50)

खास बात
इसमें दो राय नहीं कि उरुग्वे के पास दुनिया की बेहतरीन स्ट्राइकर जोड़ी है. लुइस सुआरेज और एडिनसन कवानी दोनों बहुत नैसर्गिक प्रतिभा के धनी हैं और एक-दूसरे की कमी को पूरा करते हैं. यह भी मानने की बात नहीं है कि कभी ऐसा होगा कि एक साथ एक ही दिन दोनों की चमक फीकी पड़ जाएगी

यह कोई ऐसी टीम नहीं है जो एक खिलाड़ी पर निर्भर हो लेकिन इस वक्त पूरा देश एक खिलाड़ी की फिटनेस को लेकर चिंतित है. टूर्नामेंट में सुआरेज की कमी का खमियाजा उरुग्वे को पहले ही मैच में उठाना पड़ा और वह कोस्टारिका से 3-1 से शिकस्त खा गया. इसमें कोई शक नहीं है कि सुआरेज दुनिया के सबसे खतरनाक स्ट्राइकर्स में से एक हैं और उनकी मौजूदगी या गैरमौजूदगी टीम के प्रदर्शन पर बहुत असर डाल सकती है. मई के अंत में हुए घुटने के ऑपरेशन ने उनकी विश्व कप संभावनाओं को दुविधा में डाल दिया है. सुआरेज ने इस सत्र में इंग्लिश प्रीमियर लीग में लिवरपूल के लिए खेलते हुए 33 मैचों में 31 गोल दागे हैं. उनकी गैर मौजूदगी में अन्य फॉरवर्ड खिलाड़ियों, एडिनसन कवानी और दिएगो फॉर्लोन पर दबाव बहुत बढ़ जाएगा. ऐसे में डिफेंस में दिएगो एमिगोस और दिएगो लुगानो तथा दिएगो गोदिन की मौजूदगी थोड़ा आश्वस्त करती है. मिडफील्ड थोड़ी चिंता का विषय है. 34 साल के दिएगो पेरेज पर उम्र का असर दिखने लगा है. उनके साथी एगिडियो अरेवालो रियोस भी उतने तेज नहीं रह गए हैं.

शपथ और कपट

sushma-swarajनरेंद्र मोदी की नई सरकार के तीन केंद्रीय मंत्रियों सुषमा स्वराज, उमा भारती और डॉ हर्षवर्द्धन ने जब संस्कृत में शपथ ली तो वे क्या साबित करना चाहते थे? शायद यह कि उनकी शाखाएं-प्रशाखाएं चाहे जितनी भी फैल रही हों, उनकी जड़ें अपनी उसी संस्कृति से प्राणवायु और नैतिक बल ग्रहण करती हैं जिसमें संस्कृत की केंद्रीय उपस्थिति है. लेकिन क्या इस प्रतीकात्मकता का हमारे समय में कोई मोल बचा हुआ है? क्या भाषा का मामला इतना सहज है कि हम उसे प्रतीक की तरह इस्तेमाल करके अपनी एक खास पहचान सुनिश्चित करना चाहें और आगे बढ़ जाएं? भाषा में हमारी स्मृति बसी होती है, हमारे स्पंदन बोलते हैं, भाषाएं हमें बनाती और बसाती हैं. यह भी संभव है कि हम एक नहीं कई भाषाओं में बनते और बसते हों जो हमें हमारे छत और आंगन की तरह आसरा देती हों और घर-बाहर एक पहचान देती हों.

दुर्भाग्य से कम से कम पिछले दो दशकों में भारत में भाषा या भाषाओं के ये घर बिल्कुल उजाड़ दिए गए हैं- हम अंग्रेजी के लगातार अपरिहार्य होते बाजार में खड़े हैं और इस व्यावहारिकता को पूरे जीवन की ताबीज बना बैठे हैं कि अंग्रेजी सीखेंगे तो नई दुनिया के साथ चल सकेंगे, नए भारत में अपनी एक विशिष्ट हैसियत बना सकेंगे. चूंकि विकास के नाम पर एक तरह की उपभोक्ता आर्थिक समृद्धि ही जीवन का इकलौता लक्ष्य बना दी गई है और रोटी-रोजगार के सारे अवसर, ज्ञान-विज्ञान के सारे संसाधन अंग्रेजी के लिए समर्पित कर दिए गए हैं, इसलिए यह तर्क बड़ी आसानी से स्वीकार भी कर लिया जा रहा है. जो इसका विरोध कर रहे हैं वे उपहास की निगाह से देखे जा रहे हैं क्योंकि वे ऐतिहासिक तौर पर पिछड़े हुए लोग माने जा रहे हैं.

ऐसे में देश में एक ऐसी सरकार आई है जिसका प्रधानमंत्री हिंदी बोलता है और जिसके कुछ मंत्री संस्कृत तक में शपथ लेने को तैयार दिखते हैं तो इससे वह उपेक्षित और चोट खाई भाषिक अस्मिता अचानक अपने-आप को कुछ उपकृत महसूस करती है जो अन्यथा हर अवसर से वंचित रखी जा रही है. उसे लगता है कि हिंदी या भारतीय भाषाओं के दिन फिरने वाले हैं और सामाजिक-सार्वजनिक जीवन में उसकी पूछ बढ़ने वाली है. उसके इस कातर विश्वास को इस खयाल से भी बल मिलता है कि मनोरंजन की दुनिया में- टीवी और बॉलीवुड में हिंदी की हैसियत बची हुई है, उसमें क्रिकेट की कमेंटरी भी हो रही है, हॉलीवुड की फिल्में डब भी हो रही हैं और दुनिया के कई देशों में हिंदी पढ़ाई भी जा रही है. नेट पर भी हिंदी का विस्तार हो रहा है.

लेकिन जो लोग इस बाजार को करीब से जानते हैं, उन्हें मालूम है कि यहां भी हिंदी की हैसियत महज एक बोली की है. इस बाजार में फैसला करने वाले लोग अंग्रेजी के हैं और वे हिंदी को उसकी जातीय खुशबू से काट कर उसे ज्यादा से ज्यादा अंग्रेजी काट वाली भाषा बना कर पेश करने के हामी हैं. यही लोग अमिताभ बच्चन की करोड़पति वाली नकली किस्म की हिंदी पर वाह-वाह करते हैं और अपने टीवी-अखबारों में अंग्रेजी शब्दों ही नहीं, रोमन लिपि तक के इस्तेमाल को इसी तर्क के साथ लागू कराते हैं कि यही चल रहा है.

क्या यह जो चल रहा है, मोदी सरकार उसे बदलने का कोई इरादा रखती है? क्या वह संस्कृत या दूसरी भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी के मुकाबले खड़ा करके एक तरह की देशज प्रतिभा को उचित पोषण देने की सोच रही है? दुर्भाग्य से ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है. संस्कृत या भारतीय भाषाएं उसके लिए एक जज्बाती मुद्दा भर हैं जिनमें शपथ लेकर वह खुद को जड़ों के करीब महसूस करती है. लेकिन सच्चाई यह है कि इन जड़ों पर लगातार मट्ठा डालने की जो प्रक्रिया चल रही है, उसे वह जान-बूझ कर अनदेखा करती है. कभी हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान को अपना नारा बनाने वाले जनसंघ की कोख से निकली भाजपा को यह सीखने में समय लगा कि मामला सिर्फ हिंदी का नहीं, भारतीय भाषाओं का भी है, लेकिन उससे कहीं ज्यादा तेजी से उसने यह सीख लिया कि इन्हें भुलाकर अंग्रेजी को बढ़ावा देकर ही वह नई दुनिया से अपने लिए मुहर हासिल कर सकती है. सच तो यह है कि भारत का पूरा प्रशासनिक तंत्र जैसे अंग्रेजी के बिना एक कदम बढ़ने को तैयार नहीं है. वह अपने प्रधानमंत्री या दूसरे मंत्रियों के लिए दुभाषिए का इंतजाम कर लेगा, उनके लिए फाइलों के हिंदी में संक्षिप्त नोट तैयार करवा लेगा, लेकिन पूरे राजकाज की भाषा बदलने को तैयार नहीं होगा.

क्योंकि ऐसा होगा तो सिर्फ भाषा नहीं बदलेगी, सारा राजकाज ही बदल जाएगा. अचानक वह विशेषाधिकार टूट जाएगा जो अंग्रेजी की आड़ में एक बहुत छोटे से तबके ने हासिल कर रखा है और जिसके बूते वह देश के सबसे ज्यादा संसाधनों पर काबिज है. सच तो यह है कि अंग्रेजी की इस भाषिक हैसियत ने भारत को एक नए उपनिवेश में बदल डाला है जिसकी प्रच्छन्न गुलामियां दिखाई नहीं पड़तीं. यह भाषिक गुलामी हमें आजादी का भ्रम देती है, लेकिन हमारे संसाधन हमसे छीन ले रही है. इन संसाधनों में हिस्सेदारी की प्राथमिक शर्त यही है कि हम अपनी भाषा की पगडंडियां छोड़ अंग्रेजी के राजपथ पर उतर आएं. यह भाषा नहीं, मनुष्य को और उसकी संस्कृति को बदलने की प्रक्रिया भी है।

इस पूरी प्रक्रिया की अनदेखी कर जो लोग सिर्फ संस्कृत में शपथ लेकर या कहीं हिंदी में भाषण देकर संतोष हासिल करते हैं या वाहवाही लूटते हैं वे दरअसल गहरे सांस्कृतिक अर्थों में बेहद नादान और उथले राजनीतिक अर्थों में बहुत सयाने लोग हैं- वे भाषाओं को मां बताते हैं और फिर मां की अनदेखी करते हैं- कहीं इस विश्वास और अभ्यास से भरे कि मां के साथ हर तरह की छूट ली जा सकती है, उसकी उपेक्षा भी की जा सकती है.

स्विट्जरलैंड

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विश्व रैंकिंग: 6
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन : अंतिम आठ (1934, 38, 54)

खास बात
स्विस डिफेंस यानी रक्षा पंक्ति की जान यानी गोखान इनलर और वालोन बेहरामी इटली के क्लब नापोली के लिए खेलते हैं. इस तरह कहा जा सकता है कि टीम की रक्षापंक्ति इटली में तैयार हुई. अपने देश के लिए भी वे उसी भूमिका में रहेंगे जिस भूमिका में नापोली के लिए खेलते हैं. इनलर जहां बेहद रचनात्मक हैं वहीं बेहराम किसी भी कमी को कड़ी मेहनत से दूर करने की क्षमता रखते हैं

स्विट्जरलैंड की टीम को फीफा वर्ल्ड रैंकिंग में स्पेन, जर्मनी, ब्राजील, पुर्तगाल और अर्जेंटीना के बाद छठी रैंकिंग मिली है लेकिन विश्व कप में टीम का ग्रुप इतना आसान है कि उसके अगले दौर में जाने की काफी संभावना है. टीम के कोच ओटमार हिट्जफील्ड को बहुत कुशल रणनीतिकार माना जाता है. वर्ष 2008 में टीम का कोच बनाए जाने के बाद उन्होंने टीम की रचनात्मकता में बहुत अधिक इजाफा किया है. रक्षा पंक्ति टीम की कमजोरी बनी रही है और फैबिन शार तथा स्टीव वॉन बर्गन प्रशंसकों तथा जानकारों के मन में बहुत अधिक भरोसा नहीं पैदा कर पाए हैं. लेकिन मिडफील्ड में गोखान इनलेर और वालोन बेहरामी उनकी मदद के लिए हैं. जेरदान शाकिरी के रूप में टीम के पास एक जबरदस्त विंगर मौजूद है जो वैलेंटिन स्टॉकर और ग्रैनिट झाका के साथ मिलकर टीम की रक्षा पंक्ति को जबरदस्त मजबूती प्रदान कर सकता है. आक्रमण की बात करें तो जोसिप ड्रमिक उसके केंद्र में रहेंगे..

आइवरी कोस्ट

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विश्व रैंकिंग: 23
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन : प्रथम चरण (2006, 2010)खास बात
ड्रोग्बा और याया की जोड़ी के अलावा आइवरी कोस्ट अपने लिए सर्गे औरियर से चमत्कारिक प्रदर्शन की उम्मीद कर सकता है. उन्हें रक्षात्मक पंक्ति का काफी मजबूत खिलाड़ी माना जाता है लेकिन उनके खेल की विविधता उन्हें ऐसा बनाती है कि वे विरोधी खेमे के गोल पर हमेशा नजर रखते हैं
व्यक्तिगत प्रतिभा से भरपूर आइवरी कोस्ट कभी भी विश्व कप के पहले चरण से आगे नहीं बढ़ पाई. दो बार विश्व कप में शामिल हो चुकी यह टीम हर बार चार टीमों के अपने ग्रुप में तीसरे स्थान पर रही. लेकिन इसके साथ यह बात भी सही है कि आइवरी कोस्ट दोनों बार अपेक्षाकृत मुश्किल ग्रुप में रही है. सन 2006 में अपने पहले विश्व कप में वह अर्जेंटीना, सर्बिया मोंटेनेग्रो और नीदरलैंड के साथ थी तो 2010 में दक्षिण अफ्रीका में उसे ब्राजील, पुर्तगाल और कोरिया के मैच खेलने पड़े. हालांकि इस बार आइवरी कोस्ट को आसान ग्रुप में प्रवेश मिला है. ग्रीस, जापान व कोलंबिया के खिलाफ यह उम्मीद की जा सकती है कि ड्रोग्बा और याया अपनी टीम को आखिरी 16 टीमों तक ले जा सकेंगेे. लेकिन ड्रोग्बा की बढ़ती उम्र इसमें बाधा बन सकती है.

जापान

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विश्व रैंकिंग: 46
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन : अंतिम 16 टीमों में (2002, 2010)

खास बात
इस टीम के कोच काफी आक्रामक रणनीति के लिए जाने जाते हैं. यदि जापान अपने कमजोर डिफेंस से पार पा लेता है और मिडफील्डर लगातार विरोधी टीम के फॉरवर्ड को आगे बढ़ने से रोक पाते हैं तो एशिया की यह टीम 2002 के अपने प्रदर्शन से आगे जा सकती है

इस बार ईरान और दक्षिण कोरिया के साथ जापान ने भी एशिया से विश्व कप में क्वालीफाई किया है. यह टीम पिछले पांच फुटबॉल विश्व कप खेल चुकी है. 2002 और 2010 के विश्व कप में यह दूसरे चरण तक तक पहुंची थी. 2002 का विश्व कप संयुक्त रूप से जापान में ही हुआ था. तब अपनी सरजमीं खेलते हुए जापान ने घरेलू दर्शकों का दिल जीत लिया था. यहां दूसरे चरण में तुर्की से 0-1 से हारने के बाद यह टीम विश्व कप से बाहर हो गई थी. इसके बाद जर्मनी में हुए 2006 के विश्व कप में जापान पहले ही राऊंड में बाहर हो गया. 2010 के विश्व कप में इस टीम ने एकबार फिर जोर दिखाया. दक्षिण अफ्रीका में जापानी टीम नौंवे स्थान पर रही थी. कुल मिलाकर कभी बहुत अच्छा तो कभी औसत खेल इस टीम की पहचान  है. जापान के प्रदर्शन की अनियमितता ही उसकी सबसे बड़ी दिक्कत रही है. वैसे कोच अल्बर्टो जाकरोनी के मार्गदर्शन में जापान क्वालीफाइंग मुकाबलों में जॉर्डन को 6-0 और ओमान को 3-0 के बड़े अंतर से हारकर आगे पहुंची है.  इस प्रदर्शन में उसके प्रतिभावान मिडफील्डर केसुके होंडा के अलावा माया योशिदा, हिरोशी कियोतके, गोतोकु सकाल और उचिदा जैसे खिलाड़ियों के तालमेल ने कमाल दिखाया था. इन प्रतिभावान खिलाड़ियों की मौजूदगी और इनके बढ़िया तालमेल से विश्व कप में भी इस टीम से आक्रामक खेल की उम्मीद बंधती है.

कोस्टारिका

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विश्व रैंकिंग: 28
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन : आखिरी 16 टीमों में प्रवेश (1990)

खास बात
टीम के गोलकीपर केलर नवास को इस टूर्नामेंट में उनकी प्रतिभा के मुकाबले काफी कम करके आंका जा रहा है. यूरोप में खेलते हुए उन्होंने कई दिग्गजों को अपने नेट के सामने से निराश लौटाया है

इंग्लैंड, इटली और उरुग्वे के साथ एक ही ग्रुप में मौजूद जॉर्ज पिंटो (कोच) की कोस्टारिका इन सबसे कमतर जरूर दिखती है लेकिन छुपी रुस्तम जैसी टीमें इन्हें ही कहा जाता है. मैचों के पहले उन्हें कम करके आंका जा रहा है जो उनके लिए फायदेमंद है. कोस्टारिका  की सबसे बड़ी खूबी उसका डिफेंस है. पांच बैकलाइन खिलाड़ी और तीन सेंटर डिफेंडर उसकी बड़ी ताकत हैं. इसके बाद कैलर नवास के रूप में इस टीम के पास एक बेहतरीन गोल कीपर भी है. अपने दस क्वालीफाइंग मुकाबलों में कोस्टारिका के विरुद्ध टीमें कुल सात गोल ही कर पाई थीं. हालांकि पिंटों को अब एहसास है कि विश्व कप में आगे बढ़ना है तो उन्हें फॉरवर्ड या आक्रमण को धार देनी होगी. इसके लिए उनके पास ब्रायन रुइज हैं और उनकी मदद के लिए क्रिस्चियन बोलानोज और स्ट्राइकर जोइल कैंपबेल भी हैं.