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गुजरात चुनाव के पहले चरण में 68 फीसदी मतदान

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गुजरात चुनाव के पहले चरण में 68 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, वरिष्ठ चुनाव आयुक्त उमेश सिन्हा ने बताया।
शनिवार को सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे मतदान हुआ।इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की तकनीकी खराब होने की कुछ घटनाओं को छोड़कर मतदान शांतिपूर्ण रहा।
पहले चरण में कुल 182 विधानसभा क्षेत्रों में से 89 सीटों के लिए मतदान किया गया जिसमें कच्छ, सुरेंद्रनगर, मोरबी, राजकोट, जामनगर, द्वारका, पोरबंदर, जूनागढ़, गिर सोमनाथ, अमरेली, भावनगर, बोताड, नर्मदा, भरूच, सूरत, तापी, सौराष्ट और दक्षिण गुजरात क्षेत्र के 19 जिले शामिल थे।
कुल 977 में 58 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं। जहाँ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 89 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, कांग्रेस के 86 उम्मीदवार हैं और 442 निर्दलीय उम्मीदवार हैं।
विधानसभा के लिए पहले चरण में मुख्यमंत्री विजय रुपानी, गुजरात भाजपा प्रमुख जिंत वाघानी, पूर्व गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी (जीपीसीसी) के प्रमुख अर्जुन मोधवाडिया, सिद्धार्थ पटेल और शक्तिसिंह गोहिल की क़िस्मत अब ईवीएम में बंद हो गयी है।
पहले चरण में चुनाव आयोग ने 24,689 मतदान केंद्रों पर मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) का इस्तेमाल किया जबकि 27,158 ईवीएम प्रयोग हुए।
2012 के विधानसभा चुनाव में पहले चरण में 70.74 प्रतिशत मतदाता मतदान हुआ था।
यह चुनाव प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक प्रतिष्ठा की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है जहाँ राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस एक मज़बूत प्रतिद्वंद्वी के रूप में सामने आई है ।
93 सीटों के लिए मतदान का दूसरा चरण 14 दिसंबर को होगा जबकि मतगणना 18 दिसंबर को होगी।

अब पैन को आधार से 31 मार्च तक जोड़ा जा सकता है

aadhaar

सरकार ने आयकर पैन को आधार संख्या से जोड़ने के लिए दी गयी समय सीमा आज तीन महीने और बढ़ा कर 31 मार्च 2018 कर दिया है।
विभिन्न सेवाओं और कल्याणकारी योजनाओं को आधार से जोड़ने की समय सीमा तीसरी बार बढ़ायी गयी है।
केंद्र सरकार उच्चतम न्यायालय को यह बात पहले ही कह चुकी है।
वित्त मंत्रालय ने एक वक्तवय कहा, “हमारी जानकारी में आया है कि कुछ करदाताओं ने अभी तक पैन को आधार से नहीं जोड़ा है। इसी वजह से पैन को आधार से जोड़ने की प्रक्रिया की तिथि को आगे बढ़ाकर 31 मार्च 2018 करने का फैसला किया गया है।”
पी टी आई की रिपोर्ट के अनुसार इस नवंबर तक 33 करोड़ पैन धारकों में से 13.28 करोड़ लोगों ने अपने पैन को अपनी 12 अंकों वाली डिजिटल और जैविक पहचान आधारित आधार संख्या से जोड़ दिया था।
इस साल सरकार ने आयकर दाखिल करने के साथ नए पैन नंबर प्राप्त करने के लिए आधार को अनिवार्य घोषित कर दिया है।
आयकर कानून की धारा 139 एए (2) के तहत हर व्यक्ति, जिसके पास 1 जुलाई 2017 तक पैन है और वह आधार पहचान पत्र प्राप्त करने का पा पात्र है, उसे अपनी आधार संख्या की जानकारी कर अधिकारियों को देनी जरूरी है।
यह मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है और सरकार ने पैन को आधार के साथ जोड़ने की तारीख को अगस्त में चार महीने आगे बढ़ाकर 31 दिसंबर 2017 किया था।

उत्तर प्रदेश ने तीन तलाक सम्बन्धी विधेयक के मसौदे पर सहमति जताई

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने तीन तलाक को लेकर केन्द्र के प्रस्तावित विधेयक के मसौदे से सहमति व्यक्त की है। ऐसा करने वाली वह देश की पहली राज्य सरकार है।

मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में तीन तलाक पर प्रस्तावित विधेयक के मसौदे पर रजामंदी जाहिर की गयी, पीटीआई की खबर से ये ख़ुलासा हुआ।

मसविदे में तीन तलाक या तलाक-ए-बिदअत को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध करार देते हुए इसके दोषी को तीन साल कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। साथ ही तीन तलाक देने पर पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण का खर्च भी देना होगा।

राज्य सरकार के प्रवक्ता स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने यहां बताया कि केन्द्र ने राज्य सरकार को वह मसविदा भेजते हुए 10 दिसम्बर तक उस पर राय देने को कहा था। मंत्रिपरिषद की सहमति मिलने के बाद इसे वापस केन्द्र के पास भेजा जाएगा।

एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने बताया कि उत्तर प्रदेश तीन तलाक सम्बन्धी विधेयक के मसविदे पर सहमति देने वाला पहला राज्य है। इस विधेयक को संसद के आगामी शीतकालीन सत्र के दौरान सदन में पेश किये जाने की सम्भावना है।

उन्होंने बताया कि इस साल गत 22 अगस्त को उच्चतम न्यायालय द्वारा तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिये जाने के बाद देश में तीन तलाक के 68 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें उत्तर प्रदेश अव्वल है।

उच्चतम न्यायालय द्वारा पाबंदी लगाये जाने के बावजूद देश में तीन तलाक के बढ़ते मामलों के मद्देनजर केन्द्र सरकार ने ‘मुस्लिम वीमेन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरेज बिल’ का मसविदा तैयार किया है। इसे विभिन्न राज्य सरकारों के पास विचार के लिये भेजा गया है। इस मसविदे को केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अगुवाई वाले अन्तरमंत्रालयी समूह ने तैयार किया है।

प्रस्तावित कानून केवल तलाक-ए-बिदअत की स्थिति में ही लागू होगा और इससे पीड़ित महिला अपने तथा अपने बच्चों के भरणपोषण के लिये गुजारा भत्ता पाने के लिये मजिस्ट्रेट का दरवाजा खटखटा सकेगी।

प्रस्तावित विधेयक के तहत ईमेल, एसएमएस तथा व्हाट्सएप समेत किसी भी तरीके से दिए गए तीन तलाक को गैरकानूनी माना गया है।

आवासीय और ऑटो ऋण में कोई राहत नहीं क्योंकि नीतिगत दरें रहेंगी वही

भारतीय रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों को अपरिवर्तित रखा है जिसकी वजह से बैंकों के लिए आवास और ऑटो ऋण पर ब्याज दरों को कम करना मुश्किल हो जायेगा।
बैंक ने चालू वित्त वर्ष (2016-17) के लिए 6.7 प्रतिशत की वृद्धि दर के अनुमान को कायम रखा है।
केंद्रीय बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की अगुवाई वाली छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति ने रेपो दर को छह प्रतिशत तथा रिवर्स रेपो दर को 5.75 प्रतिशत पर कायम रखा है।
वित्त वर्ष 2017-18 में मौद्रिक नीति की पांचवीं द्विमासिक समीक्षा में कहा गया कि दूसरी तिमाही की वृद्धि दर अक्तूबर की समीक्षा में लगाए गए अनुमान से कम है। कच्चे तेल की कीमतों में हालिया वृद्धि से कंपनियों के मार्जिन और सकल मूल्यवर्धित :जीवीए: वृद्धि दर पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
केंद्रीय बैंक ने अक्तूबर की समीक्षा में 2017-18 के लिए जीवीए वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। इससे कायम रखा गया है क्योंकि जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।
समीक्षा में कहा गया है कि खरीफ उत्पादन और रबी की बुवाई में कमी से कृषि क्षेत्र के परिदृश्य के नीचे की ओर जाने का जोखिम है। यदि सकारात्मक पक्ष देखा जाए तो हालिया महीनों में ऋण की वृद्धि दर कुछ तेज हुई है। इसमें कहा गया है कि इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुन:पूंजीकरण से भी ऋण का प्रवाह बढ़ेगा।
रीयल एस्टेट जैसे सेवा क्षेत्र के कुछ क्षेत्रों में कमजोरी देखी जा रही है। समीक्षा में कहा गया है कि सेवा और बुनियादी ढांचा क्षेत्र चौथी तिमाही में मांग, वित्तीय स्थितियों तथा कुल कारोबारी परिस्थितियों में सुधार की उम्मीद कर रहा है।

राहुल ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन पत्र दाखिल किया

Rahul Gujarat कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने आज, यानी 4 दिसंबर को, पार्टी के मुख्य पद के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। 47 वर्षीय सोनिया गांधी के पुत्र की चुनाव में अकेले उम्मीदवार के रूप में उभरने की संभावना है। उनकी मां सोनिया गांधी ने यह पद 1 9 वर्षों तक संभाला है। आज नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख है। पार्टी के केंद्रीय निर्वाचन प्राधिकरण के अध्यक्ष मौलपल्ली रामचंद्रन के मुताबिक रविवार तक किसी और ने दस्तावेज नहीं दाखिल किया था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह पार्टी अध्यक्ष पद के लिए राहुल गांधी की उम्मीदवारी के लिए प्रस्तावक हैं। उम्मीदवारी वापस लेने की आखिरी तारीख 11 दिसंबर है। मतदान 16 दिसंबर को होने की संभावना है और गिनती 1 9 दिसंबर को होगी।

काशी कबहुं न छोडि़ए, विश्वनाथ दरबार!

Kashi vishwanath

पिता श्री ठीक होकर बनारस लौट गए हैं। मैं उन्हें दिल्ली में उतने ही दिन रोक पाया जब तक वे बिस्तर पर थे। उनका दिल सामान्य आदमी से आधा धड़क रहा था। इस कारण शरीर के दूसरे हिस्से में $खून और ऑक्सीजन की आपूर्ति काफी कम थी। डाक्टरों ने उनके दिल में पेसमेकर लगाया। ठीक होते ही वे एक रोज़ भी यहां नहीं रु के। लौट गए बनारस। इस दलील के साथ कि ‘मेरो मन अनत कहां सुख पावे। जैसे उडि़ जहाज को पंछी पुनि जहाज पर आवै।Ó
वे दिल्ली आना नहीं चाहते थे। कहते – ‘यह भी कोई शहर है। सत्ता के लिए षडयंत्रों का शहर। शोहरत के पीछे भागते लोग। वहीं काशी। राग और विराग का शहर। जहां लोग मोक्ष के लिए शरीर तक छोड़ देते हैं। एक फक्कड़ मस्ती के साथ। और यहां अनंत लिप्सा की न थकने वाली होड़ जारी है।Ó
डाक्टरों की सलाह के बावजूद पिताश्री इलाज के लिए दिल्ली आने में ना-नुकुर कर रहे थे। इस उम्र में कोई काशी छोड़ता है। उनके इस हठ की एक दूसरी वजह भी देखता हूं। बनारस का एक खास किस्म का ‘ऑर्गेनिकÓ चरित्र है। कोई वहां कुछ दिन रह ले तो उसकी जड़ें उग आती हैं। यह जड़ें उसे शहर नहीं छोडऩे देतीं। इसीलिए एक बुरी आदत सा बनारस व्यक्ति को छोड़ता नहीं। फिर दिल्ली से बनारस की क्या तुलना। एक ओर सदियों से सिकुड़ती-फैलती, बनती-बिगड़ती, उजड़ती-बसती दिल्ली। दूसरी तरफ धर्म, परम्परा और संस्कृति की अनादि, अनंत परम्परा। जिसका न इतिहास बदला न भूगोल।
दिल्ली को पिताजी एक सराय मानते। दुनिया का सबसे बड़ा ‘ट्रांजिट कैम्पÓ। जहां लोग लगातार आते और जाते रहते हैं। अस्पताल में उन्होंने बताया कि डॉ. लोहिया दिल्ली को भारतीय इतिहास की शाश्वत नगरवधू कहा करते थे। डॉ. लोहिया और पिताजी का जन्म अकबरपुर के शहज़ादपुर कस्बे में कोई सौ गज की दूरी में ही हुआ था। शायद इसलिए दोनों मानते हैं कि दिल्ली न किसी की रही है न किसी की होगी। इसका अपना एक बेवफा चरित्र है। मुकाबले में अपने बनारस की आत्मीयता और अड्डेबाज़ी का जवाब नहीं। जहां जुलाहे में भी ब्रह्यज्ञान जगा था। शायद इसीलिए तुलसी ने भी यहीं तन त्यागा था।
दिल्ली से उनके इस बैर भाव के कारण उन्हें इलाज के लिए दिल्ली लाना मुश्किल काम था। मोक्ष भले बनारस में मिले पर जीवन पर आए संकट से बचने के उपकरण दिल्ली में थे। क्या करें? संकट बड़ा था। समय के साथ उनकी सेहत गिर रही थी। बनारस के डाक्टर $फौरन ऑपरेशन चाहते थे। मैं कुछ कहता वे बोल पड़ते, इस उम्र में कोई काशी छोड़ता है भला। मेरे मन में एक अपराधबोध पहले से ही था। माता को भी दिल्ली लाया था। इलाज के लिए। वे यहीं चली गई। दिल पर बना यह बोझ फैसला लेने में बाधक था। तब माता के दिल के वॉल्व बदलवाने थे।
दिल्ली में बड़े अस्पतालों में पव्वा न हो तो कोई पूछता नहीं है। अपना पव्वा साबित करने के लिए माताजी को मैं दिल्ली ले आया था। मेरा पव्वा उन पर भारी पड़ा। दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में उनका ऑपरेशन हुआ। वे दिल्ली चलकर आई थीं और मैं वापस बनारस लौटा, उनकी देह लेकर।
बनारस के एक निजी अस्पताल के आईसीयू में मैं इसी उधेड़बुन में था। तभी पिताश्री ने कहा, क्यों परेशान हो। गालिब का एक शेर सुनाया- ‘मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यों रातभर नहीं आती।Ó चचा गालिब के इस शेर ने मुझमें ताकत भर दी। फैसला हो गया कि दिल्ली ही चलना है।
पिताजी को दिल्ली लाना दिल-जिगरे का काम था। ऐसा नहीं था कि वे दिल्ली के हमारे घर आते नहीं थे। पिताजी कई बार आए। बनारस से उनका आना हमारे दिल्ली के घर में उत्सव की तरह होता। वे आएं तो उत्सव और टिक जाएं तो महोत्सव। अब उत्सव होगा या महोत्सव, यह निर्णय हर बार अपने मूड के अनुसार पिताजी ही लेते। काशी से उनका निकलना या कहिए उन्हें निकालना, उतना ही कठिन होता जितना स्वयं काशीनाथ को उनकी नगरी से निकाल पाना। गाया हज़रते ज़ौक की एक पंक्ति, कुछ यूं बदलकर उन्होंने अपने सीने से लगा रखी थी- ‘कौन जाए ए ज़ौक अब काशी की गलियां छोड़कर।’ काशी में पिता के प्राण बसते हैं।
लेकिन इस बार व्यथा कुछ अलग थी। उन्हेंं दिल्ली लाना जितना कठिन था, उतना ही ज़रूरी भी। हमेशा जिंदादिली से जीने वाले पिता उम्र के 84वें पड़ाव पर दिल के ही हाथों मात खा रहे थे। उनके सीने में ‘पेसमेकर’ लगाया जाना ज़रूरी हो गया था। पेसमेकर यानी एक प्रकार का ‘इनवर्टरÓ। जब दिल को धड़काने वाली बिजली की तरंगे फेल होने लगती हैं तो यह खुद-ब-खुद ऑन होकर दिल को धड़काने लगता है। ‘पेसमेकर’ तो बनारस में भी लग सकता था पर इसके लिए ज़रूरी सुविधाएं वहां नहीं थीं।
‘अब तो होगा सो यहीं होगा।’ उनकी इस हठधर्मिता के पीछे छुपी, अंत तक अपनी मिट्टी से जुड़े रहने की आस्था एकदम तटस्थ थी। उन्हें कैसे कहूं की आपको दिल्ली चलना ही होगा। मितव्ययिता जीवनभर उनके स्वभाव का हिस्सा रही। अचानक यह कुंजी मेरे दिमाग पर लगा ताला खोल गई। सो इसी के सहारे एक नए दांव का मसौदा तैयार किया। कल सुबह-सुबह बात बन जाएगी। सुबह आईसीयू में उनके सामने था। ऊपर वाले का सुमिरण किया और अपना पत्ता फेंका। ‘देखिए दिल्ली से एयर एम्बुलेंस मंगवाई है। आज दोपहर तक आ जाएगी। अभी एक मित्र के कहने पर कोई पैसा नहीं लग रहा है। मगर कल कोई ऊंच-नीच हो गई तो आनन-फानन में यही एयर एम्बुलेंस दोगुना पैसा लेकर आएगी।Ó सधा हुआ तीर सीधा निशाने पर लगा। पिताजी का स्वर फू टा, ‘अच्छा, ठीक है। चलता हूं। तुम मुझे दिल्ली ले जा रहे हो तो कुछ-न-कुछ बड़ी गड़बड़ ज़रूर है।Ó
इलाज के लिए पिताजी का दिल्ली चलने का राज़ी हो जाना मेरे लिए उनके आधे स्वस्थ हो जाने की आश्वस्ति थी। यूं भी जीवन की आपाधापी में एक बेटे का पिता से कितना सरोकार रहता हैं? ममत्व, आत्मीयता, प्यार, साहस और एक वृक्ष के साए के अलावा? ज़रूरत के वक्त उनसे ही रास्ता पूछना और राह भटकने पर उन्हीं से दण्ड पाना। शायर मित्र आलोक का शेर है -‘कभी बड़ा सा हाथखर्च है। कभी हथेली की सूजन। मेरे मन का आधा साहस आधा डर हैं बाबू जी।Ó
मगर स्वयं पिता बनने पर कई मानक एकदम उलट जाते हैं। एक पिता के रूप में हम अपनी आकांक्षाओं और अपेक्षाओं का प्रतिबिंब अपने पिता की आंखों में देखने लगते हैं। तब इस रिश्ते का महत्व समझ में आता है। एक रिश्ता सबसे बड़ी ज़रूरत बन जाता है। तपती धूप में की जाने वाली यात्रा के बीच आने वाले मीठे जल के कुंए या बावड़ी में बदल जाता है।
पिताश्री दिल्ली आए। इलाज कराया। और ठीक होकर बनारस लौट गए। दिल्ली के चाक-चिक्य को छोड़ उसी काशी को जिसके बारे में कहा गया है ‘चना चबैना गंग जल जो पुरवै करतार। काशी कबहुं न छोडि़ए विश्वनाथ दरबार।Ó उन्हें दिल्ली दरबार से बेहतर विश्वनाथ दरबार लगता है। लेकिन उनकी सेवा का सुयोग इन दिनों जो मुझे मिला वह सदा-सदा के लिए मेरे मन में ठहर गया है। मुझे धन्य कर गया है।

Manu Sharma

मनु शर्मा कवि, शिक्षक और पौराणिक उपन्यासकार 
(28 अक्तूबर 1928-8 नवंबर 2017)
हिंदी साहित्य में पौराणिक उपन्यासकार के तौर पर विख्यात मनु शर्मा (हनुमान प्रसाद शर्मा) का आठ नवंबर को काशी में निधन हो गया। अभी 28 अक्तूबर को पारिवारिक सदस्यों और साहित्यकारों ने उनका नब्बे वां जन्मदिन मनाया था। उनका रचना संसार विराट था और निजी संसार उतना ही व्यापक और सहज। कृष्ण उनके अपने सखा, चिंतक और मार्गदर्शक थे। उन्होंने आठ खंडों में उनकी कथा लिखी। ‘तहलकाÓ को भी उनका रचनात्मक सहयोग हमेशा मिला। उनका शरीर आज नहीं है फिर भी वे हर पल साथ हैं।-संपादक

रूसी क्रांति आज भी तर्कसंगत

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रूस में हुई मज़दूर क्रांति को आज 100 साल हो गए। 1917 में रूस के मज़दूरों और किसानों ने व्लादीमीर लेनिन के नेतृत्व में ज़ार की सत्ता को उखाड़ फेंका था। पूरी दुनिया के लिए यह एक हैरानी, पर बेहद खुशी का लम्हा था। उस समय में कोई भी यह कल्पना नहीं कर सकता था कि मशीनों पर काम करने वाले हाथ कभी राजसत्ता की बागडोर भी थाम सकते हैं। इस क्रांति ने पूरी दुनिया का नक्शा बदल दिया। सामंतवादी व पूंजीवादी निज़ाम के सामने एक चुनौती खड़ी हो गई।
उसी समय फासीवाद के प्रतीक एडोल्फ हिटलर ने रूस पर हमला कर दिया। उसे इस बात का अहसास नहीं था कि जहां मज़दूर-किसान सत्ता में हो वहां जीत पाना आसान नहीं । यह सही है कि सर्द मौसम ने रूसियों का साथ दिया, पर यह भी सच है कि जहां नाज़ी सैनिक वेतन की खातिर लड़ रहे थे वहीं रूसियों की लड़ाई अपनी अस्मिता को बचाने की थी। लेनिनगार्ड की गलियां उस युद्ध की आज भी गवाह हैं। हिटलर के लिए यह युद्ध उसके जीवन का अंतिम युद्ध साबित हुआ।
कार्ल मार्क्स के अर्थशास्त्र को लेकर चला रूस देखते ही देखते दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बन गया। इसमें इस बात का महत्व यह नहीं है कि वह व्यवस्था कब तक रही, उसमें क्या परिवर्तन आया। महत्वपूर्ण यह है कि रूसी क्रांति ने मज़दूरों को शोषण के खिलाफ एक जुट होने का संदेश दिया। सामंतवाद को गहरी चोट दी और पूंजीवाद को जनकल्याण की योजनांए लागू करने पर मजबूर कर दिया। आज पूरे विश्व में ‘पूंजीवादÓ को सम्मान की नज़र से नहीं देखा जाता। वे देश जिनमें पूरी तरह पूंजीवादी अर्थव्यवस्था लागू है, वहां भी वे समाजवाद का नाम लेने पर मजबूर हैं। आज का पूंजीपति या एकाधिकार का हिमायती भी मुखर रूप से यह नहीं कह सकता कि पूंजीवादी व्यवस्था के लिए लोग वोट दें। वे इसके लिए तरह-तरह के मुखौटे पहनता है। कभी धर्म का नाम लेता है कभी संप्रदाय का । कभी क्षेत्रवाद की बात फैलाता है तो कभी भाषा का मामला खड़ा करता है। लेकिन उसमें यह साहस नहीं है कि वह कह सके कि देश में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था लागू की जाएगी।
मार्क्स की पुस्तक ‘ दास कैपिटलÓ समाजवादी सोच के लोगों के लिए एक ग्रंथ है। मज़दूरों और किसानों की लूट का पता इस पुस्तक के आधार पर लगता है यह कारण है कि आज भी जब पूंजीवादी दुनिया पर मुसीबत आती है तो बाज़ार में ‘दास कैपिटलÓ की मांग तेज़ी से बढ़ जाती है।
इसी के आधार पर कम्युनिस्ट आंदोलन खड़ा हुआ जो पूरे विश्व में फैला। मार्क्स और लेनिन की सोच के अनुसार मानव के हाथों मानव की लूट की एक बड़ी वजह उत्पादन के साधनों  का निजी हाथों में रहना है। यही कारण है कि कम्युनिस्ट देशों में ये संसाधन सार्वजनिक क्षेत्र में दिए जाते हैं, ताकि उनका मुनाफा कुछ एक लोगों या परिवारों के पास इक_ा न हो। मज़दूर को उसके श्रम की पूरी कीमत और किसान को उसकी फसल का पूरा मूल्य मिले।
रूस जो कि सोवियत संघ बना, से चली यह मज़दूर क्रांति पूरे  यूरोप, चीन, कोरिया वियतनाम और क्यूबा वगैरहा में फैली। लेकिन 70 साल बाद इसमें विघटन के संकेत मिले और सोवियत संघ टूट गया। लोगों को इससे भी बेहतर किसी व्यवस्था की ज़रूरत महसूस होने लगी। पूंजीवादी देशों खासतौर से अमेरिका को अब विश्व का बाज़ार अपना लगने लगा। आज इस बात को लगभग 25 साल हो गए। इन 25 सालों में दुनिया बहुत बदली विज्ञान ने विकास किया और कहा जाने लगा कि अब का मानव, इस व्यवस्था में बेहतर जीवन जी रहा है।। कहा गया कि कम्युनिज़म खत्म हो गया है।
रूस में जहां लेनिन के बुत तक गिरा दिए गए थे, आज लोग उसकी तस्वीर ले कर 1917 की क्रांति का जश्न मनाते नज़र आ रहे हैं। हालांकि वहां के राष्ट्रपति पुतीन ने इन समारोहों का बहिष्कार किया है, सरकारी टीवी चैनलों पर 100 साला समारोहों की खबर तक नहीं चली लेकिन लोग फिर से इक_ा हो रहे हैं क्योंकि आर्थिक तंगी और समाज में गरीब और अमीर के बीच की खाई गहरी होती जा रही है।
इन हालात में मार्क्स या लेनिन का याद आना और रूस की ‘वोल्शविकÓ क्रांति  जश्न बहुत अर्थ रखता है। वह क्रांति आज भी उतनी ही तर्कसंगत है जितनी उस वक्त थी।

लेखक को अपने विचारों को जताने का मूलभूत अधिकार है: सुप्रीम कोर्ट

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प्रोफेसर कांचा इलैया शेफर्ड की किताब के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया ज़रूर लेकिन उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। उन्हें घर पर ही नज़रबंद रखा गया है। जिससे वे सुरक्षित रह सकें।
पिछले महीने प्रोफेसर कांचा इलैया शेफर्ड की किताब ‘स्मगलरलु कामाटोल्लुÓ पर पाबंदी लगाने की याचिका पर फैसला दिया सुप्रीम कोर्ट ने। अदालत ने 1969 के एक अदालती ऐतिहासिक फैसले का मान रखते हुए यह फैसला लिया। एडवोकेट के आइएनवी वीरंजनेमुलु ने अपनी याचिका में पुस्तक के एक अध्याय ‘हिंदुत्व मुक्त भारतÓ पर आपत्ति जताई थी। सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख न्यायाधीश दीपक मिश्र, एएमखानवलकर और डी वाई चंद्रचूड की खंड पीठ ने दो पन्ने के अपने फैसले में लिखा कि ‘हर लेखक को अपने विचारों को मुक्त रह कर अपनी बात कहने और उसे उपयुक्त तरीके से अभिव्यक्त करने का मूलभूत अधिकार है। किसी लेखक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को दबाने को हल्के में नहीं लिया जा सकता। इस किस्म की किताब को प्रतिबंधित करने के किसी भी अनुरोध पर सोच-विचार कर कठोरता से ही फैसला लेना चाहिए।
सच्चाई की खातिर और अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार की रक्षा में यह अदालत याचिका खारिज करती है। अदालत ने याचिका कर्ता से कहा कि प्रोफेसर कांचा इलैया की किताब पर प्रतिबंध लगवाने का उसका प्रयास ‘महत्वाकांक्षीÓ है। जब कोई लेखक लिखता है तो यह उसकी अभिव्यक्ति के अधिकार का मामला होता है। हमें नहीं लगता कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस अदालत (सुप्रीम कोर्ट) को किताबों को प्रतिबंधित करने का काम करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला 1969 के उस ऐतिहासिक फैसले की याद दिलाता है जब ईवी रामास्वामी पेरियार की ‘सच्ची रामायणÓ पर पाबंदी लगाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की थी। ‘सच्ची रामायणÓ पर अदालती फैसला एक ऐसी नजीर है जिसे अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार के मामलों में हमेशा गिना जाता है। ईवी रामास्वामी पेरियार बहुजन आंदोलन के कुछ आधार व्यक्तित्वों में एक हैं। दक्षिण भारत (तमिलनाडु) में द्रविड आंदोलन की नींव रखने वालों में वे एक थे। वे तर्कवादी और समाज सुधारक थे। जनता ने उन्हें पेरियार (सम्मानित व्यक्ति) की पदवी दी क्यांकि खुद वे सत्ता की राजनीति से दूर रहे। लेकिन वहीं राजनीति की ऐसी धुरी बनी जिस पर आज भी चक्कर लग रहे हैं। पेरियार वर्ण आश्रम के विरोधी थे और उससे जुड़े तमाम मसलों पर उन्होंने लिखा। उन्होंने कर्मकांड और आडंबर पर भी प्रहार किए।
उत्तर प्रदेश में समाज सुधारक और रिपब्लिकन पार्टी के नेता ललई सिंह यादव ने 1968 में ‘सच्ची रामायणÓ का हिंदी अनुवाद किया। उत्तरप्रदेश सरकार ने 20 दिसंबर 1969 में उस पर पाबंदी लगा दी। ललई सिंह यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की। 10 जनवरी 1971 को जस्टिस एके कीर्ति, जस्टिस केएन श्रीवास्तव और जस्टिस हरिस्वरूप की पीठ ने किताब पर से पाबंदी हटा दी और ललई सिंह यादव को तीन सौ रुपए हर्जाना भी दिलाया। उत्तरप्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट गई। जस्टिस मुर्तजा फाजिल अली की सदस्यता वाली पूर्ण पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखने का फैसला सुनाया।
अब कांचा इलैया की सुरक्षा राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। उनकी किताब भी मूल और अनुवाद में पूरे देश में उपलब्ध रहेगी।
हैदराबाद के कांचा इलैया तेलंगाना के उस्मानिया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रह चुके हैं। तेलुगु में लिखी उनकी पुस्तकों के अनुवाद अंग्रेजी में भी हो चुके हैं। वे अब अंग्रेजी में भी लिखते हैं।
वे मादिगा जाति के हैं। इस जाति में सभी प्रकार के मांस भक्षण का रिवाज सदियों से चला आ रहा है। गौ भक्षण के कारण हिंदू और ऊंची जातियां माला मादिगा को अपने से दूर रखती हैं। सूअर भी इनका प्रिय भोज्य पदार्थ है और घूस तथा चूहे गांवो में मदिगाओं का रुचिकर भोजन है तथा आर्थिक अभाव में जीने का सबसे बड़ा साधन भी। कांचा इलैया इसी मादिगा जाति के जुझारु प्रतिनिधि और विद्रोही लेखक नेता हैं।
एक जमाने में मंदिरों में इस जाति के लोगों का प्रवेश निषिद्ध था। इलैया ने वर्षों पूर्व ‘आइएम नॉट हिन्दू्Ó और बाद में ‘हिन्दू इंडियाÓ में प्रकाशन लेखन कर विवादों को मोल लिया था। विशेष कर मनुवादी व्यवस्था की उन्होंने चीरफाड़ की। वे पूछने पर कहते हैं, मनुवाद ने मनुष्य को विभाजित कर हमें ऊंचे से गिराया है और भारत को बर्बाद किया है। कहीं किसी प्रसंग में उन्होंने अश्लील शब्दों का प्रयोग हिन्दू देवी-देवताओं के लिए किया, जिसे वे अपना नागरिक स्वातंत्र्य मानते हैं। वे कहते हैं मैं समाजशास्त्री हूं। उनकी इस स्वघोषित ‘पदवीÓ को बहुसंख्य लोग नकारते हैं और उनके द्वारा व्यक्त विचारों पर अपनी असहमति जताते हैं। हरकतों की संज्ञा देते हैं।
‘हिन्दू इंडियाÓ का ही एक भाग है वर्तमान में उनकी प्रकाशित तेलगु में पुस्तक ‘सामाजिका स्मगलुरलु कोया टोल्लू् अर्थात वैश्य लोग सामाजिक तस्कर हैं।Ó
‘देश भर में व्यापार की बागडोर इन दिनों वैश्य के ही हाथ में है। महात्मा गांधी भी वैश्य थे और भारतीय राजनीति के अनेक सितारे इस जाति के वर्चस्व में आते हैं।
तेलंगाना की वैश्य जाति को ‘कोमटीÓ कहते हैं। परंपरानुसार ये ‘कृपणÓ जाति हैं और खानपान में शुद्ध शाकाहारी। एक प्रकार से ब्राहमण जाति के समकक्ष हैं कोमटी जाति। पूजा पाठ और धर्म प्रचारक के रूप में कोमटियों की आस्था सघन रही है।
कांचा इलैया स्वयं मादिगा हैं उन्हें एक प्रकार से ब्राहमण, कापू, गोल्ला, कुर्मा जातियों द्वारा निम्न जातियों को दबाये जाने की शिकायत रही है। उन्होंने ‘हिन्दू इंडियाÓ में इस से पहले जमकर मीनमेख निकाली थी। यहां तक की इनकी तुलना हरामी और कामियों से की थी। यह काँचा के अपने विचार थे। ब्राहमण जाति को मनु स्मृति में मस्तिष्क कहा गया है। इसका उन्होंने प्रबल विरोध किया था। कापू जाति तेलंगाना में सत्ता संघर्ष में सबसे आगे रही है। यादव जाति का वर्चस्व भी तेलंगाना की जिन्दगी में वर्चस्व रहा है। इन सब की आलोचना काँचा इलैया ने की है। इसके लिए उनके साथ तेलंगाना के कुछ बुद्धिजीवी और दलित हैं। पहले उन का विरोध हुआ था, किन्तु उतना नहीं जितना आज हो रहा है।
इसी लगन में उन्होंने एक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने वैश्य लोगों को सामाजिक तस्कर भी बताया। इस पर अच्छा खासा विरोध हो रहा है क्योंकि वैश्य जाति के लोग धन बल से समर्थ भी हैं। काँचा इलैया के लेखन से वैश्व समुदाय के लोग अपमान महसूस करते हैं। हालांकि उनकी जीवन शैली और व्यापारिक विस्तारवादी प्रसंगों पर काँचा ने प्रहार किया है। उन्होंने परंपरा से गांवों में रेहन पर खेत देने को, सोना चांदी गिरवी रखने के धंधों की आलोचना की और बताया कि छोटी जातियों का शोषण कितना होता रहा है। इसी तरह उन्होंने मूलधन पर ब्याज – बट्टे के बहाने हो रहे शोषण को अपनी रचनाओं के जरिए पेश किया। काँचा इलैया से मैंने जब सम्पर्क किया तो उन्होंने बताया कि ‘कसाई एक बार में पशु को मार देता है किन्तु वैश्य (वणिक) ब्याज के कारोबार के चलते उसे किश्तों में मारता है और हिन्दुस्तान इससे बेखबर है। सरकार आंख मूंदे देखती है।Ó
काँचा इलैया यह भी जानते हैं कि मनी लांड्रिंग पर राज्य और केंद्र सरकार ने कड़े कानून बना डाले हैं फिर भी महाजनी सभ्यता अभी चरमरा भी नहीं है। गांवों में यह भीतरी कर व्यवस्था शोषण रूप में अब भी जारी है। वे कहते हैं इसका विरोध होना चाहिए।
मुझे वे समझाते हैं आप के हिन्दी के लेखक प्रेमचंद ने इस महाजनी व्यवस्था का विरोध किया था। मैं तो आधुनिक भारत में वैश्यों की शोषण प्रवृति को आगे लाया हूं, फिर मुझे क्यों लोग जान से मारना चाहते हैं। मैं एक सामाजिक लेखक हूं। मेरे पास प्रमाण हैं। मैं अकारण नहीं लिखता हूं।
उनकी दलीलों और स्पष्टीकरणों से असहमत आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना के वैश्य संगठनों ने उनकी पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगाने हेतु प्रदर्शन किए हैं। उनको जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं। इस पर इलैया ने उस्मानिया विश्वविद्यालय परिसर स्थित थाने में शिकायत दर्ज करवाई है। इस संदर्भ में वैश्य संगठनों के प्रतिनिधियों का आरोप है कि पुस्तक में तथ्यहीन बातें हैं जिसे लेकर गुंटूर में उनका घेराव हुआ। कार पर भी हमला हुआ पर वे बच गए। जाहिर है कि वैश्य जाति में अनेक जातियों के लोग आते हैं। हिन्दुस्तान भर से वैश्यों का यह आन्दोलन उठा है।
इलैया कहते हैं कि तमिलनाडु में वैश्य समाज के स्वनिर्मित कल्की अवतार समाज के मासूम लोगों का शोषण कर रहे हैं। समाज के लोगों से लाखों रुपयों का धन वसूला जा रहा है, जो आश्रम में प्रवेश से लेकर अन्य प्रसाधनों तक की सुविधा उपलब्धता के नाम पर चल रहा है। कल्की अवतार के नाम पर इलैया के अनुसार एक ढोंगी बाबा अपनी पत्नी परिवार के साथ यह सब कर रहा है। लोग उसे पूज रहे हैं। राज्य सरकारें चुप हैं। करोड़ों अरबों का यह धन कहां से आ और कहां जा रहा है।Ó
इलैया का यह आरोप जांच का विषय हो सकता है। वे तमिलनाडु के कल्कि अवतार बाबा का जिक्र कर रहे हैं जिन्हें अच्छा खासा सम्मान वैश्य समुदाय में प्राप्त है और वे अपने वैश्य अनुयायियों में पूज्यनीय हैं।
उन्होंने सरकारों से आग्रह किया था कि हिन्दी, तेलुगु माध्यम की शिक्षा पांचवीं तक कर दी जाए और इसके बाद का शिक्षा अंग्रेजी माध्यम से हो जिससे सीधे अंग्रेजी में पढ़ कर दलित छात्र उन पदों पर पहुंचे, जहां वे नहीं पहुंच पाते हैं।
लेकिन काँचा इलैया का कहना है कि उन्हें जान से मारने की धमकियां एसएमएस से मिलती हैं। पुलिस को उनकी हिफाजत करनी चाहिए, क्योंकि आजकल लिखने पर मौत की सजा लेखकों को दे दी जाती है।

कृष्णा सोबती को मिला ज्ञानपीठ

Krishna sobti cut

हिंदी में लिखने वाली पंजाब की अपनी बेटी कृष्णा सोबती को 92 साल की उम्र में ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए नामित किया गया। वे आज़ादी के पहले अखंड पंजाब के गुजरात में जन्मी थीं। हिंदी में लिखते हुए वे धड़ल्ले से पंजाबी शब्दों, मुहावरों का इस्तेमाल करती हैं। इतना ही नहीं उनकी अपनी शैली में पंजाबी के अलावा उर्दू और हिंदी की अपनी तहजीब भी है।
कृष्णा सोबती का नाम मित्रो मरजानी, ए लड़की, दिल-ओ-दानिश, जि़ंदगीनामा और यात्रा वृतांतों के कारण है। ज्ञानपीठ के प्रवक्ता के अनुसार कृष्णा सोबती की पहली कहानी 1944 में छपी थी। उनकी मशहूर कहानियों में ‘सिक्का बदल गयाÓ है।
यह कृष्णा सोबती की खासियत है कि वे न केवल स्थान बल्कि भाषा का जो इस्तेमाल करती हैं वह पंजाबी होता है। पंजाब आटर््स कौंसिल के अध्यक्ष सुरजीत पातर ने कहा, कृष्णा सोबती को ज्ञानपीठ मिलना पंजाबियों के लिए बड़े सम्मान की बात है। उन्हें यह पुरस्कार बहुत पहले ही मिलना चाहिए था।
इस साल उनकी नई किताब ‘गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तानÓ आई है। यह कृष्णा सोबती की अपनी जि़ंदगी की कहानी है। यह उनकी कहानी है जो अपने ही देश में विस्थापित हैं।
कृष्णा सोबती के बारे में बताते हुए जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय के पूर्व प्राध्यापक चमनलाल ने कहा कि कृष्णा सोबती हमारे बीच की ‘अपराइटÓ लेखकों में हैं। उन्होंने विभाजन और पंजाब पर खूब लिखा है। उन्होंने हमेशा सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ लोहा लिया। उन्होंने विभाजन के पहले के पंजाब के उदार माहौल का चित्रण अपनी लेखनी में किया है।
कृष्णा सोबती ने कन्नड़ लेखक एम एम कलबुर्गी की हत्या और दादरी में हुई हिंसा में विरोध में अक्तूबर 2015 में साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस कर दिया था और फेलोशिप भी लौटा दी थी। उन्होंने 2010 में सरकारी सम्मान पद्म भूषण भी लेने से इंकार कर दिया था।
एक किताब के शीर्षक को लेकर उनकी खटपट एक और महिला कवि और लेखक अमृता प्रीतम से हुई थी। उन्हें जि़ंदगीनामा पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। इस नाम से मिलता जुलता नाम अमृता प्रीतम ने अपनी एक किताब का रख दिया था। इस पर मुकदमा चला। जीत कृष्णा सोबती की हुई।

लेफ्टिनेंट कर्नल की बेटी का बलात्कार करने के आरोप में कर्नल गिरफ्तार

colonel rape
शिमला पुलिस ने अपनी ही सेना के अधिकारी की बेटी से कथित रूप से बलात्कार करने के लिए भारतीय सेना के आरोप में एक कर्नल को गिरफ्तार कर लिया है।
शिमला की सेना प्रशिक्षण कमान में तैनात 56 वर्षीय कर्नल को 22 नवंबर को एक लेफ्टिनेंट कर्नल की 21 वर्षीय बेटी का बलात्कार करने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया है।

मामले में प्रारंभिक जांच के बाद धारा 376 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई। शिकायत दर्ज करने के बाद पीड़िता को मेडिकल परीक्षण के लिए भेजा गया। आरोप की पुष्टि होने के बाद गिरफ्तारी की गयी, एसपी शिमला सौम्या संबासीवन ने बताया। आरोपी को 24 नवंबर को अदालत में पेश किया गया जाएगा।

शिकायत के अनुसार यह घटना 20 नवंबर को कर्नल के शिमला में आधिकारिक निवास स्थान पर हुई थी। कर्नल के कमरे में बल का प्रयोग कर पीड़िता को शराब पिलाया और बाद में बलात्कार किया।
हमला करने से एक दिन पहले अभियुक्त ने शिमला की गैयटी थिएटर में एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए पीड़िता और उसके पिता को आमंत्रित किया था। कर्नल ने उन्हें सुझाव दिया कि पीड़िता को मुंबई में रहना चाहिए और मॉडलिंग में जाना चाहिए।
पीड़िता ने आरोप लगाया है कि अधिकारी ने अपने पिता के करियर को बर्बाद करने की धमकी दी थी, अगर उसने किसी को इस घटना के बारे में बताया।
शिकायत में 21 वर्षीय पीड़िता ने कर्नल के एक दोस्त का नाम भी बताया जो घटना के समय घर में मौजूद था।