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कमांडर हारा, सेना जीती

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इस चुनाव जंग में हिमाचल की यह दिलचस्प कहानी है जिसमें सेना तो जीत गयी लेकिन कमांडर हार गया। चुनाव के समय बनी अनिश्चितता के विपरीत पहाड़ के मतदाताओं ने आखिर 44 सीटों के साथ भाजपा को सत्ता की देहरी पार करवा दी। यह अलग बात है कि जिन प्रेम कुमार धूमल के बूते भाजपा ने धमाकेदार जीत हासिल की वे खुद अपनी सीट से हार गए। यही नहीं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती को भी हार झेलनी पड़ी। इसके विपरीत कांग्रेस चुनाव हार गयी लेकिन उसके मुख्यमंत्री पद के दावेदार वीरभद्र सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू दोनों जीत गए। जुझारू राजनीति के लिए जाने जाने वाले माकपा के राकेश सिंघा करीब 24 साल के बाद दोबारा विधानसभा की देहरी पार कर गए और ठियोग में उन्होंने जबरदस्त जीत दर्ज की।

यह चुनाव नतीजे प्रदेश में नई पीढ़ी के लिए रास्ता खोल गए हैं। भाजपा में जहाँ 54 साल के जगत प्रकाश नड्डा के लिए मुख्यमंत्री बनने की राह खुल रही है वहीं पार्टी में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जय राम ठाकुर भी अब मुख्यमंत्री पद की दौड़ में रहेंगे। उनके अलावा अजय जम्वाल का नाम भी चर्चा में है। इस तरह के संकेत भी हैं कि आलाकमान धूमल के नाम पर भी विचार कर सकती है क्योंकि उनके अनुभव और पार्टी के प्रति उनकी सेवा को आसानी से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, भले वे अपनी सीट से हार गए हैं। यदि ऐसी स्थिति बनी तो किसी विधायक से सीट खाली करवाकर धूमल को वहां से लड़वाया जा सकता है। कुटलैहड़ से जीते वीरेंद्र कँवर ने धूमल ही हार होते ही ऐलान कर दिया कि वे धूमल के लिए अपनी सीट छोडऩे को तैयार हैं।

यदि नड्डा के लिए मुख्यमंत्री पद के द्वार खुले तो बिलासपुर से जीते भाजपा विधायक को अपनी सीट खाली करनी पड़ेगी। इस बीच खबर यह भी है कि सराज से जीते जय राम ठाकुर को दिल्ली आने के लिए कहा गया है। वैसे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती के चुनाव हार जाने के बाद उनकी कुर्सी जा सकती है।

उधर कांग्रेस में निवर्तमान मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह 84 साल के हैं और पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव था। उनके लिए राहत की बात यही रही है कि उनके पुत्र विक्रमादित्य सिंह शिमला ग्रामीण सीट से जीत गए। लिहाजा कांग्रेस में भई अब बदलाव की बयार दिख सकती है।  भाजपा आलाकमान ने जब धूमल की सीट हमीरपुर से सुजानपुर बदली थी, उस समय राजनीतिक गलियारों में यही चर्चा रही थी कि भाजपा के ही एक गुट ने इसमें भूमिका निभाई है। उस समय केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा का नाम भाजपा के भीतर मुख्यमंत्री पद के लिए चर्चा में था हालाँकि जब आलाकमान ने देखा कि धूमल को आगे किये बगैर पार्टी के लिए पहाड़ी सूबे में संकट खड़ा हो सकता है तो उसे मजबूरन धूमल का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित करना पड़ा। ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं भाजपा इस कारण ही इतनी ताकत से सत्ता में आ सकी।

वैसे नड्डा के अलावा जय राम ठाकुर और अजय जम्वाल के नाम भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल बताये जा रहे हैं। चुनाव के नतीजे आने के बाद यह चर्चा भी रही कि धूमल के प्रदेश और भाजपा की राजनीति में महत्व को देखते हुए आलाकमान उन्हें मुख्यमंत्री मनोनीत कर सकती है और फिर हमीरपुर से जीते नरेंद्र ठाकुर से सीट खाली करवाकर धूमल को उपचुनाव में उतारा जा सकता है। वैसे होगा क्या, इसकी तस्वीर कुछ दिन में साफ होगी।

कांग्रेस में राहुल गाँधी के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी में बदलाव होना तय है। ऐसे में हिमाचल में वीरभद्र सिंह का क्या भविष्य होता है इसका पता भी आने वाले दिनों में ही चलेगा। पार्टी में आशा कुमारी, मुकेश अग्निहोत्री जैसे नेता अब अग्रिम पंक्ति में दिखेंगे। वीरभद्र सिंह, जो इस चुनाव में मोर्चे पर अपने बूते लड़े, ने पार्टी की हार अपने ऊपर लेते हुए कि पार्टी के पास संसाधनों की कमी पार्टी की जीत के आड़े आई। उधर धूमल ने जनता का पार्टी की जीत के लिए धन्यवाद किया। अपनी हार पर उन्होंने कहा कि वे इससे दुखी हैं पर भाजपा के फिर सत्ता में आने की उन्हें खुशी है। ‘तहलकाÓ से बातचीत में धूमल ने कहा कि जनता ने मोदी सरकार की नीतियों पर मुहर लगाई है। उन्होंने कहा ज़रूर कोइ कमी रही जो चुनाव में उन्हें मतदाताओं का समर्थन नहीं मिल पाया।

कांग्रेस इस चुनाव में 22 सीटें ही जीत पाई। प्रदेश में जनता का हर चुनाव में सरकार बदल देने का चलन इस बार भी जारी रहा। दरअसल प्रदेश में सरकारी कर्मचारी चुनाव में बड़ा रोल निभाते हैं। इस का कारण यह है कि यहाँ कमोवेश हर घर से एक व्यक्ति सरकारी नौकरी में है। निजी क्षेत्र सीमित है लिहाजा लोगों को रोजगार के लिए सरकारी क्षेत्र पर निर्भर रहना होता है। इस समय सरकारी रोजगार विभाग में करीब 6 लाख नाम बेरोजगारों के दर्ज हैं जो नौकरी के लिए कतार में हैं। ऐसी स्थिति में सरकारी कर्मचारी हर बार सरकार बदल देने में अपनी भलाई मानते हैं। उनकी सोच है नई सरकार से उन्हें ज्यादा बेहतर लाभ मिलने की गुंजाइश रहती है।

माकपा दो दशक के बाद विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में सफल रही है। राकेश सिंघा को प्रदेश के सबसे जुझारू नेताओं में गिना जाता है। गुडिय़ा दुष्कर्म और हत्या मामले में उसके परिवार के लिए इन्साफ के जो लड़ाई माकपा ने लड़ी उसीका नतीजा है कि उसे ठियोग में जीत मिली है। इससे पार्टी को आने वाले वक्त में शिमला इलाके में अपना विस्तार करने का अवसर मिला है। देखना है वह इसका कितना लाभ उठा पाती है।

इन चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस में उठापटक देखने को मिल सकती है। वीरभद्र सिंह की उम्र को देखते हुए युवा नेता आगे आने की जंग में जुटेंगे। आशा कुमारी का नाम इसमें सबसे आगे है। पार्टी में भावी मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाने वाले सुधीर शर्मा धर्मशाला से चुनाव हार गए लेकिन हरोली से जीते मुकेश अग्निहोत्री अब अपने लिए कोशिश शुरू कर सकते हैं। कौल सिंह के चुनाव हारने से उनका रास्ता भी बंद हो गया लगता है।

कोरेगांव हिंसा की ज़द में आए महाराष्ट्र के कई शहर

maharashra protest

महाराष्ट्र के पुणे जिले में दलितों और मराठा संगठन के लोगों के बीच सोमवार को हुई झड़प ने बड़ी हिंसा का रूप धारण कर लिया है। राज्य के कई कस्बों और शहरों में आंदोलनकारियों ने कई बसों को नुकसान पहुंचाया और सड़क और रेल यातायात में बाधा पहुंचाई। कई जगह आगजनी की घटना भी देखने को मिली।
याद रहे पुणे में भीम-कोरेगांव युद्ध की 200 वीं वर्षगांठ समारोह के दौरान दलित समूहों और दाएं विंग हिंदू संगठनों के समर्थकों के बीच कहा सुनी में कल एक आदमी की मृत्यु हो गयी थी और कई लोग घायल हो गए थे। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हादसे की न्यायिक जांच का आदेश दिया और लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की।
फडनवीस ने बताया कि मृतक के परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा और हादसे की सीआईडी ​​की जांच की जाएगी। उन्होंने हिंसा के पीछे एक साजिश की आशंका जताई।
डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के पोते और एक्टिविस्ट प्रकाश आंबेडकर सहित आठ संगठनों ने बुधवार को महाराष्ट्र बंद का आह्वान किया है। प्रकाश आंबेडकर ने कहा कि फडणवीस ने न्यायिक जांच के जो आदेश दिए गए हैं वो उन्हें मंजूर नहीं हैं।
पुलिस के अनुसार 100 से अधिक प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया गया है। 160 से अधिक बसें क्षतिग्रस्त हुईं।
हिंसक घटनाओं को देखते हुए औरंगाबाद में धारा-144 लागू कर दी गई है। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की सभी परीक्षाएं रद्द कर दी गई हैं। नासिक में दलित संगठनों ने सड़कें जाम कीं और मुंबई में रेल रोको आंदोलन किया।
औरंगाबाद और अहमदनगर के लिए बस सेवा निरस्त कर दी गई जबकि कई लोकल ट्रेनों की सर्विस भी प्रभावित हुई। वैसे पुलिस ने इस हंगामें से निपटने की पूरी चाक चौबंद व्यवस्था की है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भीम-कोरेगांव शौर्य समारोह को आरएसएस-बीजेपी के “फासीवादी दृष्टिकोण” के विरोध के एक “शक्तिशाली प्रतीक” माना।
उन्होंने ट्वीट के जरिए कहा कि भारत के लिए आरएसएस और भाजपा के फासीवादी सोच है और वो भारतीय समाज में दलितों को उठने नहीं देना चाहते हैं। उन्होंने ऊना मामला, रोहित वेमुला और भीम कोरेगांव को याद किया और उनके प्रतिरोध को दलितों की आवाज बताया।
200 साल पहले 1818 में पेशवा को अंग्रेजों ने दलितों के साथ मिलकर हराया था। 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव युद्ध के 200 साल पूरे होने पर लाखों की संख्या में दलित शौर्य दिवस मनाने इकट्ठा हुए थे। माना जाता है कि महार समुदाय से लोग – जिन्हें तब अस्पृश्य माना जाता था – ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं का हिस्सा थे।

मुंबई में पब में आग लगने से 14 लोगों की मृत्यु

mumbai fire

मुंबई में एक परिसर की छत पर स्थित पब में बृस्पतिवार की रात को आग लगने से 14 लोगों की मृत्यु हो गयी और 21 अन्य घायल हो गए। बताया जा रहा है कि क़रीब दर्जन भर परिवार वहाँ किसी के जन्मदिन का जश्न माना रहे थे।

मुंबई के शहरी निकाय बृहन्मुंबई महानगरपालिका के एक अधिकारी ने पत्रकारों को बताया कि रात करीब साढ़े बारह बजे छत पर स्थित ‘1 एबव’ पब में आग लगी और जल्द ही तीसरी मंजिल पर स्थित ‘मोजो पब’ भी इसकी चपेट में आ गया।

केईएम अस्पताल के डीन अविनाश सुपे ने कहा कि 11 महिलाओं सहित ज्यादातर लोगों की मौत धुएं से दम घुटने के कारण हुई है। हादसे में मारे गये और घायल हुए ज्यादातर लोगों को इसी अस्पताल में रखा गया है।

कुछ अन्य सूत्रों से मिली सूचनाओं के अनुसार, हादसे में मारी गयी महिलाओं में जन्मदिन मना रही लड़की भी शामिल है, हालांकि इसकी स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो पायी है।

पीटीआई रिपोर्ट के मुताबिक़ हादसे में जले दोनों पब लोअर परेल क्षेत्र में कमला मिल परिसर स्थित ट्रेड हाउस की तीसरी और सबसे ऊपर की चौथी मंजिल पर बने थे। इस परिसर में राष्ट्रीय टेलीविजन चैनलों सहित कई कार्यालय हैं।

एक समाचार चैनल के प्रोग्राम प्रोड्यूसर संजय जाधव ने कहा, ‘‘मैं रात्रि पाली में था। हमने पब से लोगों की चीखें सुनीं। शुरू में हमें लगा, यह वहां चल रही पार्टी का शोर है।’’ जाधव ने कहा, ‘‘जब मैं कार्यालय से बाहर आया तो, मैंने देखा कि ऊपरी मंजिल के रूफ-टॉप पब में आग लग गयी है। आग की लपटों से हमारे कार्यालय का मुख्य दरवाजा अवरुद्ध हो गया।’’ करीब आधे घंटे में ही आग पूरी इमारत में फैल गयी जिस पर काबू पाने में कई घंटे का वक्त लगा। आग लगने के कारणों का अभी तक पता नहीं चला है।

मुंबई की एक डॉक्टर सुलभा के. जी. अरोड़ा ने एनडीटीवी न्यूज चैनल को बताया कि वह ‘1 एबव’ रेस्तरां में थीं।

उन्होंने एनडीटीवी से फोन पर कहा, ‘‘किसी को बाहर भागने का वक्त नहीं मिला क्योंकि आग बहुत तेजी से फैली। रेस्तरां के कर्मचारी ग्राहकों की हरसंभव मदद करने की कोशिश कर रहे थे।’’ उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कहा, ‘‘भगदड़ मच गई और किसी ने मुझे धक्का दिया। मेरे ऊपर की छत जल रही थी और लोग मेरे ऊपर से भाग रहे थे।’’ ‘‘मुझे अभी तक समझ नहीं आ रहा है कि मैं, जिंदा कैसे बची।’’ पुलिस के एक अधिकारी ने पीटीआई को बताया कि दमकल विभाग और पुलिसकर्मी मौके पर पहुंच गये। हादसे में झुलसे 35 लोगों को पब से निकालकर अस्पताल पहुंचाया गया।

यूं दोहराया इतिहास ने खुद को हिमाचल में

यह २४ मार्च, १९९८ की बात है। हिमाचल में भाजपा-हिमाचल विकास कांग्रेस की गठबंधन सरकार का शपथ ग्रहण समारोह था। जगह थी राजभवन का लॉन और मंच पर अन्य नेताओं के अलावा मौजूद थे तब भाजपा के महासचिव और हिमाचल मामलों के प्रभारी नरेंद्र मोदी। प्रेम कुमार धूमल जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे तो मोदी के चेहरे पर एक ”विजयी मुस्कराहट” थी। आखिर उस समय के कद्दावर नेता शांता कुमार के मुकाबले उन्होंने ही धूमल को तरजीह दी थी। धूमल ने मोदी के इस भरोसे का सम्मान रखा और सिर्फ बहुमत लायक विधायकों और हिमाचल विकास कांग्रेस के मुखिया और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुख राम के असंख्य दबावों के बावजूद पूरे पांच साल सरकार चलाई। इससे पहले शांता कुमार के नेतृत्व वाली जनता पार्टी (१९७७) और भाजपा (१९९०) सरकारें अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई थीं।
और इसके बाद की तस्वीर २७ दिसंबर, २०१७ की है। जगह रिज मैदान, शिमला। इस बार भी भाजपा का ही मुख्यमंत्री शपथ ले रहा है। बस चेहरा अलग है और मंच पर बैठे नरेंद्र मोदी भी प्रधानमंत्री हो चुके हैं। और कभी मोदी के प्रिय रहे धूमल अन्य नेताओं के साथ बैठे भाजपा के बीच सत्ता हस्तांतरण की इस प्रक्रिया को देख रहे हैं। भाग्य ने साथ दिया होता तो मोदी के सामने वे ही २७ दिसंबर को शपथ ले रहे होते। लेकिन चुनाव में हार ने उनके लिए सारे समीकरण बदल दिए। भाजपा की अगली पीढ़ी ने सत्ता का आरोहण कर लिया है और धूमल के राजनीतिक भविष्य के विकल्प अब सिर्फ आलाकमान के हाथ में हैं।
खुद धूमल का कहना है कि उन्होंने हमेशा वही किया जो आलाकमान ने सौंपा।  ‘भविष्य में भी ऐसा ही होगा। मेरे लिए पार्टी सबसे ऊपर है। मुझे खुशी है हिमाचल के लोगों ने भाजपा को इतना मजबूत बहुमत दिया। जयराम सरकार को मेरा पूरा सहयोग रहेगा, धूमल ने तहलका से बातचीत में कहा।
जयराम ने ११ अन्य मंत्रियों के साथ शपथ ली और इस तरह ६८ सदस्यीय विधानसभा में अधिकतम  १२ मंत्री होने का कोटा पूरा कर लिया। दिलचस्प यह है कि जो १२ मंत्री बने उनमें मुख्यमंत्री सहित ६ राजपूत हैं। शायद प्रदेश में राजपूत मतदाताओं की ज्यादा तादाद को ध्यान में रखकर ऐसा किया गया है। और भी दिलचस्प यह है कि ११ में से ६ धूमल के समर्थक या उनकी पसंद के हैं। पहले १० मंत्री बनाने की सूची राज्यपाल को भेजी गयी थी लेकिन बाद में धूमल के जोर देने पर वरिष्ठ विधायक किशन कपूर का नाम भी शपथ से महज आधा घंटा पहले सूची में जोड़ा गया। यह भी ध्यान देने योग्य है कि केंद्रीय स्वास्थय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा के बिलासपुर जिले और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के जिले हमीरपुर से किसी को मंत्री नहीं बनाया गया।
सौम्य और ईमानदार छवि वाले जय राम ठाकुर को अब भाजपा की भविष्य की चुनौतियों को झेलना है। सबसे बड़ी राजनीतिक चुनौती २०१९ में आएगी जब लोक सभा के चुनाव होंगे और सबसे बड़ी प्रशासनिक चुनौती तत्काल रूप से उनके सामने खड़ी है और वह है प्रदेश के ऊपर ५०,००० करोड़ रूपये का क़र्ज़। प्रदेश के सीमित आर्थिक संसाधनों में से उन्हें सूबे की माली हालत को पटरी पर लाने की जुगत भिड़ानी है और साथ ही केंद्र से प्रदेश के लिए बड़ी परियोजनाओं का भी इंतजाम करना है। धूमल के २००७-२०१२ के सत्ता काल के विपरीत जय राम के सामने सुखद स्थिति यह है कि केंद्र में उनकी अपनी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार है लिहाजा पैसे और परियोजनाओं का आना खुद जय राम के प्रबंध कौशल पर निर्भर करेगा।
मुख्यमंत्री २९ दिसंबर को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले। जयराम मोदी के अलावा कुछ अन्य केंद्रीय मंत्रियों से भी मिले। सूत्रों के मुताबिक जयराम ने मुलाकात में प्रदेश की योजनाओं की जानकारी भी दी और आर्थिक संकट को लेकर भी चर्चा की ताकि इस संकट से उबरने का रास्ता निकाला जा सके।
प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि हिमाचल में भाजपा सरकार बनेगी तो यहां पर विकास डबल इंजन के सहारे होगा और विकास में और गति आएगी। राज्य की मौजूदा स्थिति ऐसी है कि राज्य के पास कर्मचारियों को वेतन और पेंशनरों को पेंशन देने के लिए भी क़र्ज़ लेना पड़ रहा है।    हालात उस समय और खराब होंगे, जब पंजाब में नए वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होंगी। नया पे-स्केल लागू होने पर राज्य पर और ज्यादा आर्थिक भार पड़ेगा। वहीं, विकास की गति को भी बनाए रखना है और लोगों ने नई सरकार से जो उम्मीदें लगा रखी है, उसे भी पूरा करना है। ऐसे में वित्त प्रबंधन के साथ-साथ आय के और स्रोत खोजना समय की मांग है। सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती पिछली कांग्रेस सरकार की घोषणाएं और शिलान्यास हैं। इनके लिए पैसे का प्रबंधन करना भी अहम है।
जय राम के पास ४४ विधायकों का अच्छा ख़ासा बहुमत है और प्रदेश की चारों लोक सभा सीटों पर भाजपा के ही सांसद हैं जिनके जरिये वे केंद्र सरकार तक अपनी आवाज आसानी से पहुंचा सकते हैं। ”पिछली सरकार ने केंद्र से मिली आर्थिक मदद का इस्तेमाल ही नहीं किया और परियोजनाओं को भी ठीक से लागू नहीं किया। हम ऐसा नहीं होने देंगे। केंद्र के पैसे का पूरा उपयोग होगा और ज्यादा से ज्यादा परियोजनाएं लाने की कोशिश होगी ताकि हमारे युवाओं को इससे रोजगार का रास्ता भी निकल सके, तहलका से बातचीत में मुख्यमंत्री जय राम ने कहा।
उनके सामने रोजगार दूसरी सबसे बड़ी चुनौती है। हिमाचल में निजी क्षेत्र सीमित सा है और सरकार के पास इतना पैसा नहीं कि बड़े पैमाने पर युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों के दरवाजे खोल सके। ऐसे में जय राम के सामने प्रदेश के अपने संसाधनों को विकसित करने की चुनौती रहेगी खासकर पर्यटन के क्षेत्र में, जिसके विकास के प्रदेश में सर्वाधिक सम्भावना है। पिछली सरकार ने बेरोजगारों को भत्ता देने का वादा किया था और सत्ता के अंतिम महीनों में इस पर अमल की अपर्याप्त सी कोशिश भी  की। इसका न तो युवाओं को सही लाभ मिल पाया न राजनीतिक रूप से कांग्रेस को फायदा मिला।
जय राम के सामने अफशर शाही के साथ भी उचित तालमेल बिठाना होगा ताकि सरकार की योजनाएं सही से अपने अंजाम तक पहुँच सकें। भाजपा के बीच बहुत से लोग हैं जो मानते हैं कि जय राम की शराफत इसमें आड़े आ सकती है। हिमाचल में अफशरशाही को ”बेलगाम घोड़े” की तरह माना जाता है। यहाँ ज्यादातर अफसर किसी न किसी दाल के ख़ास रहे हैं।  पुराने सरकारों में यह साफ़ दीखता रहा है। हर मुख्यमंत्री के अपने चाहते अफसर रहे हैं। जयराम को निश्चित ही इससे बाहर निकलना होगा। नहीं तो सरकार में बदलाव की बात हवा में ही रह जाएगी।
सरकाघाट से शपथ ग्रहण समारोह में आये राहुल राणा हालांकि कहते हैं कि जयराम को प्रशासन का अनुभव है।  ” वे मंत्री रह चुके हैं। ठीक है अफशरशाही को लगाम में रखना ज़रूरी है लेकिन उन्हें बिना भेदभाव साथ लेकर चलना ज्यादा हितकर है। आखिर योजनाओं का खाका अफसरों ने ही बनाना है, राणा का कहना था।
जय राम मंत्रिमंडल में ६० फीसदी नए चेहरे यह इशारा करते हैं कि भाजपा आलाकमान ने पार्टी के भीतर अगली पंक्ति तैयार करने की रणनीति पर काम किया है। इन नए चेहरों में ज्यादातर किसी गुट विशेष से नहीं जुड़े हैं लिहाजा उन्हें जयराम के साथ माना जा सकता है। इस तरह जयराम प्रदेश भाजपा में अपना एक समर्थक वर्ग बना पाएंगे। हो सकता है दो -ढाई साल के बाद पुराने चेहरों को विदा कर और नए चेहरे मंत्रिमंडल में शामिल किये जाएँ। वैसे मंत्रिमंडल में संतुलन दिखता है और भविष्य में असंतोष की गुंजाइश न के बराबर है। इसमें जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन साधने की पूरी कोशिश की गयी है।
नड्डा के बिलासपुर जिले को प्रतिनिधित्व न देने के पीछे सोच यह हो सकती है इस जिले का केंद्र  सरकार में नड्डा के जरिये प्रतिनिधित्व है। हाँ, धूमल के हमीरपुर जिले से किसी को न लेना थोड़ा हैरानी भरा ज़रूर है। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि हो सकता है आने वाले समय में धूमल को मोदी सरकार में मंत्री पद मिले। या उनके सांसद बेटे अनुराग ठाकुर को मंत्री बना दिया जाए। वैसे धूमल को राज्यपाल बनाने के चर्चा चुनाव से पहले ही उनके विरोधी गुट ने चला रखी थी।
नतीजे आने के बाद बाद जैसी उठापटक भाजपा में देखने को मिली उसके पीछे कारण था धूमल का चुनाव हार जाना। सम्भवता भाजपा में धूमल के हारने की उम्मीद किसी को नहीं रही होगी। दिलचस्प यह है कि चुनाव हार जाने के बाद भी ४४ विधायकों में से २६ का समर्थन धूमल के साथ था। उन्हें मुख्यमंत्री मनोनीत करने की मांग भी हुई। यही कारण था कि १८ दिसंबर को नतीजे निकलने के बाद विधायक दल का नेता चुनने में भाजपा को एक हफ्ता लग गया। बीच में नाम नड्डा का भी चला लेकिन फैसला यही हुआ की चुने विधायकों में से ही नेता चुना जाए। जय राम के पक्ष में धूमल भी हुए और नड्डा भी लेकिन असल दबाव बनाया संघ ने। संघ ने यदि जोर न दिया होता तो सम्भवता जयराम मुख्यमंत्री न बनते। जयराम के नाम का प्रस्ताव प्रेम कुमार धूमल ने रखा और शांता कुमार व जेपी नड्डा ने उसका अनुमोदन किया। दरअसल संघ का पूरे घटनाक्रम के दौरान बराबर दखल रहा। हिमाचल में संघ के नेता इस दौरान काफी सक्रिय रहे।
आम लोगों का मानना है कि नए मुख्यमंत्री जय राम की अच्छी छवि उनकी काम आएगी। ”उन्हें क्षेत्रीय संतुलनों और जातीय समीकरणों के जाल से बचना होगा और अफसरों पर भी नजर रखनी होगी। यदि वे ऐसा कर पाते हैं तो सफल रहेंगे, यह कहना था एक सरकारी कर्मचारी सुभाष पटियाल का। सुजानपुर के रहने वाले सुभाष वालिया ने कहा कि परिवर्तन के रूप में भाजपा ने जयराम का चयन करके समझदारी वाला फैसला किया है  युवा है और उनकी छवि साफ़ है।  ”जय राम कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकते हैं, सुभाष का आकलन था।

कांग्रेस के सामने चुनौती
सरकार भाजपा की बनी है और नया मुख्यमंत्री भी उसने चुना है लेकिन चुनौती कांग्रेस के सामने खड़ी हुई है। पिछले तीन दशक से हिमाचल में कांग्रेस की सारी राजनीति वीरभद्र सिंह के इर्द गिर्द घूम रही थी। जय राम जैसा युवा नेतृत्व भाजपा में ने आने से कांग्रेस को अब वीरभद्र सिंह, जो ८४ साल के हो चुके हैं, से बाहर निकलकर कुछ सोचना होगा। पार्टी में युवा नेताओं की कमी नहीं। आशा कुमारी को अब मौका मिल सकता है हालांकि वे ६० पार कर रही है। मुकेश अग्निहोत्री से लेकर सुखविंदर सुक्खू तक ५५ साल से काम के हैं लिहाजा उनके लिए अवसर बन सकते हैं। पार्टी के बीच बड़े दावेदार माने  जाने वाले गुरमुख सिंह बाली और कौल सिंह जैसे दिग्गज चुनाव हार चुके हैं। यही नहीं युवा तुर्क और कांग्रेस में भावी मुख्यमंत्री माने जाने वाले सुधीर शर्मा भी धर्मशाला में हार गए।
कांग्रेस के सामने संबसे बड़ी चुनौती २०१९ का लोक सभा चुनाव होगा। उसकी सरकार रहते ही प्रदेश की चारों सीटें २०१४ में भाजपा जीत गयी थी। अब तो केंद्र और प्रदेश दोनों में भाजपा की सरकार हैं लिहाजा कांग्रेस के सामने अपने पिछले प्रदर्शन को सुधारना बड़ी चुनौती जैसा होगा।
राजनीतिक विश्लेषक एसपी शर्मा मानते हैं कि वीरभद्र सिंह के प्रदेश कांग्रेस के पटल से बाहर होते ही पार्टी के सामने सवाल मुहं बाए खड़ा होगा। ”उसके पास प्रदेश में कोइ भी ऐसा नेता जिसकी प्रदेशव्यापी छवि हो। पार्टी के लिए २०१९ का चुनाव ही नहीं २०२२ का विधानसभा चुनाव भी बड़ी चुनौती होगा। उसके पास अच्छा मौक़ा उसी स्थिति में होगा यदि प्रदेश भाजपा सरकार अपनी लोकप्रियता खो दे या केंद्र में मोदी सरकार कमजोर हो जाए, शर्मा ने कहा।

राहुल पहुंचे शिमला
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी २९ दिसंबर को शिमला पहुंचे और वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक कर हार से उपजी स्थिति की जानकारी ली। बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू और अन्य नेता मौजूद थे। अभी चुने विधायकों को अपना नेता चुनना है और वीरभद्र सिंह खेमा कोशिश कर रहा है कि नेता प्रतिपक्ष के लिए सिंह का ही चुनाव हो। हालांकि उनके विरोधी इस पद के लिए किसी दूसरे को चुने जाने की वकालत कर रहे हैं. युवा कांग्रेस ने आरोप लगया कि उन्हें राहुल से मिलने नहीं दिया गया।

विधायक को चांटा

MLA slapping woman constable
राहुल गांधी के दौरे में शुक्रवार को उस समय विवाद पैदा हो गया जब वरिष्ठ कांग्रेस विधायक आशा कुमारी ने पार्टी दफ्तर के बाहर एक महिला कांस्टेबल को थप्पड़ मार दिया।  बदले में कांस्टेबल ने भी आशा को थापड़ मार दिया। आशा उस समय राहुल की बैठक में जाने के लिए जोर रही थीं लेकिन कांस्टेबल ने उन्हें और उनके साथ पूर्व मंत्री धनी राम शांडिल को रोक दिया।  आशा इससे क्रोधित हो गईं और थप्पड़ मार दिया।

जयराम ठाकुर ने हिमाचल में सरकार बनाने की ली शपथ

जयराम के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही हिमाचल की राजनीति में नए युग का सूत्रपात हो गया। राज्यपाल देव व्रत ने जय राम को प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। रिज मैदान पर मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के अलावा कई वरिष्ठ नेता जिनमें जगत प्रकाश नड्ढा, प्रेम कुमार धूमल, शांता कुमार शामिल है, मंच पर उपस्थित थे। दिलचस्प यह है कि केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा के बिलासपुर और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कमर धूमल के हमीरपुर जिले से किसी को मंत्री नहीं बनाया गया है। मुख्यमंत्री के अलावा ११ मंत्रियों ने शपथ ली। हिमाचल में ६८ सदस्यों की विधानसभा है और इतने ही मंत्री बनाये जा सकते हैं।
धूमल के भविष्य को लेकर अभी कयास हैं। उन्हें या तो केंद्र में मंत्री या राज्यपाल बनाया जा सकता है। वे इस चुनाव में भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे लेकिन आशचर्यजनक रूप से चुनाव हार गए थे। नवनिर्वाचित मुख्‍यमंत्री जयराम ठाकुर को बुधवार राज्यपाल देवव्रत ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री इस शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद हैं। जयराम ठाकुर के साथ महेन्‍द्र सिंह, किशन कपूर, सुरेश भारद्वाज, अनिल शर्मा, सरवीन चौधरी, राम लाल मार्कण्डेय, विपिन सिंह परमार, वीरेंद्र कंवर, विक्रम सिंह, गोविंद सिंह और राजीव सहजल ने भी मंत्री पद की शपथ ली। भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को हराकर सत्ता हासिल की है। भाजपा ने 68 सदस्यीय विधानसभा में दो-तिहाई बहुमत के करीब 44 सीटें हासिल की है। कांग्रेस ने 21 सीटों पर जीत हासिल की है।
जयराम ठाकुर के शपथ लेते ही वहां जय श्रीराम के नारे लगने लगे। रिज पर बड़ी संख्या में भाजपा समर्थक उपस्थित थे और मोदी मोदी के अलावा जय श्री राम के नारे लगा रहे थे।
मुख्यमंत्री के बाद मोहिंदर सिंह ठाकुर ने मंत्री पद की शपथ ली। मंडी की धरमपुर सीट से विधायक बने. साल 1990 से लगातार सातवीं बार विधायक बने हैं। इनका पांच अलग-अलग दलों से जीतने का रिकॉर्ड है. साथ ही ये सीएम जयराम ठाकुर के भी बेहद करीबी हैं। किशन कपूर ने मंत्री पद की शपथ ली. वो दो बार हिमाचल सरकार में मंत्री रह चुके हैं। सुरेश भारद्वाज ने मंत्री पद की शपथ ली. वो शिमला शहरी सीट से विधायक बने। इससे पहले वो राज्यसभा सांसद थे। जबकि 1997, 2007 और 2012 में भी विधायक रह चुके हैं।
अनिल शर्मा ने मंत्री पद की शपथ ली। शर्मा मंडी सीट से विधायक हैं. वो 2017 के हिमाचल चुनाव से पहले ही बीजेपी में शामिल हुए थे. ये तीन बार विधायक और एक बार राज्यसभा सांसद रह चुके हैं।
सरवीन चौधरी ने मंत्री पद की शपथ ली. वो शाहपुर सीट से चुनाव जीतीं हैं. सरवीन शाहपुर से 2007 से लगातार विधायक हैं. धूमल सरकार में सामाजिक न्याय मंत्री भी रह चुकी है।
रामलाल मार्कण्डेय ने मंत्री पद की शपथ ली. वो लाहौल स्पीति सीट से विधायक बने हैं. 1998 और 2007 में भी विधायक बन चुके हैं. 1998 में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं।
विपिन परमार ने मंत्री पद की शपथ ली. वो सुल्लाह विधानसभा सीट से चुनाव जीते हैं। दो बार हिमाचल बीजेपी के महासचिव रहे हैं। कांगड़ा-चंबा बीजेपी युवा मोर्चा के अध्यक्ष हैं। वीरेंद्र कंवर ने मंत्री पद की शपथ ली. वो ऊना की कुटलेहड़ सीट से चुनाव जीते हैं। २००३ से लगातार विधायक चुने गए हैं। साथ ही धूमल के लिए सीट छोड़ने को तैयार थे।
विक्रम सिंह ने मंत्री पद की शपथ ली. वो जसवां प्रागपुर सीट से विधायक हैं. 2003-2012 में विधायक चुने जा चुके हैं। गोविंद ठाकुर ने संस्कृत में मंत्री पद की शपथ ली। वो कुल्लू की मनाली सीट से चुनाव जीते हैं. लगातार तीसरी बार विधायक बने हैं. गोविंद ठाकुर पूर्व jai-ram-4मंत्री कुंज लाल ठाकुर के बेटे हैं। राजीव सैजल ने मंत्री पद की शपथ ली। वो सोलन की कसौली सीट से चुनाव जीते हैं. कसौली सीट से
लगातार तीसरी बार विधायक बने हैं. सैजल अनुसूचित जाति से हैं।

हिमाचल में भाजपा जीती

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हिमाचल में  भाजपा 44 सीटें जीती और कांग्रेस ने 21 सीटें हासिल की। कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियां ने सभी 68 सीटों पर अपनी किस्मत आजमाई।

चुनाव के समय बनी अनिश्चितता के विपरीत पहाड़ के मतदाताओं ने आखिर 44 सीटों के साथ भाजपा की सत्ता में फिर वापसी करवा दी। भले भाजपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार प्रेम कुमार धूमल को हार का स्वाद चखना पड़ा, उन्होंने अपनी हार के वाद बड़ा दिल दिखाते हुए पार्टी की शानदार जीत पर खुशी जताई।  अपनी हार पर कहा कि ज़रूर कुछ कमी रही होगी जो मतदाताओं ने उनका समर्थन नहीं किया। इसकी समीक्षा की जाएगी।  इस बीच कुटलैहड़ से जीते भाजपा विधायक वीरेंद्र कँवर ने धूमल के लिए अपनी सीट खली करने का प्रस्ताव किया है। उनहोंने कहा कि धूमल प्रदेश भाजपा के सर्वमान्य नेता हैं और उनके लिए सीट छोड़ कर उन्हें ख़ुशी होगी।
उधर भाजपा आलाकमान ने सराज से जीते जय राम ठाकुर को मंगलवार को दिल्ली बुलाया है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सती भी अपना चुनाव हार गए हैं  लिहाजा उन्हें पद से हटाया जा सकता है। अभी यह साफ़ नहीं है की भाजपा किसे मुख्यमंत्री बनाएगी। धूमल को मुख्यमंत्री मनोनीत करने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। बाद में उन्हें किसी विधायक से सीट खाली करवाकर उपचुनाव लड़ाया जा सकता है। वैसे केंद्रीय स्वास्थय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा के अलावा जय राम ठाकुर और अजय जम्वाल का नाम भी चर्चा में है। कांग्रेस चुनाव हार गयी लेकिन उसके मुख्यमंत्री पद के दावेदार वीरभद्र सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू दोनों जीत गए। जुझारू राजनीति के लिए जाने जाने वाले माकपा के राकेश सिंघा करीब २४ साल के बाद दोबारा विधानसभा की देहरी पार कर गए और ठियोग में उन्होंने जबरदस्त जीत दर्ज की।
यदि नड्डा के लिए मुख्यमंत्री पद के द्वार खुले तो बिलासपुर से जीते भाजपा विधायक को अपनी सीट खाली करनी पड़ेगी। वैसे होगा क्या, इसकी तस्वीर कुछ दिन में साफ़ होगी।
कांग्रेस में राहुल गाँधी के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी में बदलाव होना तय है। ऐसे में हिमाचल में वीरभद्र सिंह का क्या भविष्य होता है इसका पता भी आने वाले दिनों में ही चलेगा। पार्टी में आशा कुमारी, मुकेश अग्निहोत्री जैसे नेता अब अग्रिम पंक्ति में दिखेंगे। वीरभद्र सिंह, जो इस चुनाव में मोर्चे पर अपने बूते लड़े, ने पार्टी की हार अपने ऊपर लेते हुए कि पार्टी के पास संसाधनों की कमी पार्टी की जीत के आड़े आई। उधर धूमल ने जनता का पार्टी की जीत के लिए धन्यवाद किया। अपनी हार पर उन्होंने कहा कि वे इससे दुखी हैं पर भाजपा के फिर सत्ता में आने की उन्हें ख़ुशी है। ‘तहलका’ से बातचीत में धूमल ने कहा कि जनता ने मोदी सरकार की नीतियों पर मुहर लगाई है। उन्होंने कहा ज़रूर कोइ कमी रही जो चुनाव में उन्हें मतदाताओं का समर्थन नहीं मिल पाया। कांग्रेस इस चुनाव में २२ सीटें ही जीत पाई। प्रदेश में जनता का हर चुनाव में सरकार बदल देने का चलन इस बार भी जारी रहा।

गुजरात में 182 में से भाजपा ने जीती 99 सीटें और कांग्रेस को मिलीं 77 सीटें

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गुजरात विधानसभा चुनाव की पूरी 182 सीटों के परिणाम आ गये हैं जिनमें से 99 सीटें भाजपा के पक्ष में जबकि 77 कांग्रेस के पाले में गई हैं। दूसरों के हिस्से 6 सीटें आई।

पहला परिणाम पोरबंदर विधानसभा सीट का आया। यहां भाजपा नेता और राज्य के मत्स्य पालन मंत्री बाबुभाई भीमाभाई बोखीरीया ने अपनी सीट बरकरार रखते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुनभाई देवाभाई मोढवाडिया को 1,855 मतों से हराया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विधानसभा सीट रहे मणीनगर से भाजपा के सुरेशभाई धनजीभाई पटेल (सुरेश पटेल) ने कांग्रेस प्रत्याशी श्वेताबेन नरेन्द्रभाई ब्रह्मभट्ट को 75,199 मतों के अंतर से हराया है।

उमरगाम सीट से भाजपा के रमणलाल नानुभाई पाटकर को जीत मिली है। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी अशोकभाई मोहनभाई पटेल को 41,690 वोटों के अंतर से हराया है।

टंकारा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी ललितभाई कगथरा ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा उम्मीदवार राघवजीभाई जीवराजभाई गड़ारा को 29,770 मतों से हराया।

दरियापुर सीट से कांग्रेस नेता गयासुद्दीन हबीबुद्दीन शेख ने भाजपा प्रत्याशी भरत बारोट को 6,187 मतों के अंतर से हराया।

धरमपुर सीट से भाजपा के अरविंद छोटुभाई पटेल ने कांग्रेस उम्मीदवार ईश्वरभाई ढेडाभाई पटेल को 22,246 वोटों के अंतर से हराया।

नडियाद विधानसभा सीट से भाजपा के पंकजभाई विनुभाई देसाई (गोटीयो) ने कांग्रेस प्रत्याशी जीतेन्द्र सूर्यकान्तभाई पटेल (आजाद) को 20,838 मतों से हराया।

गुजरात विधानसभा की बोरसद सीट से कांग्रेस के राजेन्द्रसिंह धीरसिंह परमार ने भाजपा के रमणभाइ भीखाभाइ सोलंकी को 11,468 वोटों के अंतर से हराया।

वहीं महुधा सीट से कांग्रेस के इन्द्रजीतसिंह नटवरसिंह परमार ने भाजपा प्रत्याशी भारतसिंह रायसिंगभाई परमार को 13,601 वोटों से हराया।

महुवा सीट से भाजपा के राघवभाइ चोडांभाइ मकवाणा ने 5,009 वोटों से निर्दलीय उम्मीदवार डो. कनुभाइ वी. कलसरीया को हराया।

मांगरोल सीट से भाजपा के गणपतसिंह वेस्ताभाई वसावा ने कांग्रेस के नानसिंगभाई नंदरीयाभाई वसावा को 40,799 वोटों से हराया।

अब आधार को विभिन्न योजनाओं से 31 मार्च 2018 तक जोड़ा जा सकता है

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अब आपको आधार को विभिन्न सेवाओं और कल्याणकारी योजनाओं से अनिवार्य रूप से जोड़ने के लिए और समय मिल गया है क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने इसकी समयसीमा अगले साल 31 मार्च तक के लिए बढ़ा दी।

रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने अंतरिम आदेश में आधार को मोबाइल सेवाओं से जोड़ने के संबंध में अपने पहले के आदेश में भी सुधार किया और कहा कि इस संबंध में अगले साल छह फरवरी की समयसीमा को भी 31 मार्च तक के लिए बढ़ाया जाता है।

न्यायमूर्ति ए के सीकरी, न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने कहा कि बैंक में नया खाता खोलने के लिए आवेदक को बैंक को आधार नंबर देने की जरुरत नहीं होगी।

सर्वसम्मति से अंतरिम आदेश लिखने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि हालांकि आवेदक को इस बात का सबूत दिखाना होगा कि उसने आधार संख्या के लिए आवेदन कर रखा है।

पीटीआई के अनुसार शीर्ष न्यायालय ने कहा कि संवैधानिक पीठ आधार योजना को चुनौती देने वाली याचिका पर 17 जनवरी से सुनवाई शुरू करेगी।

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कल उच्चतम न्यायालय में कहा था कि विभिन्न सेवाओं और कल्याणकारी योजनाओं को आधार से अनिवार्य रूप से जोड़ने की समयसीमा को भी अगले साल 31 मार्च तक बढ़ाया जा सकता है।

हाल ही में उच्चतम न्यायालय की नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा था कि संविधान के तहत निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। आधार की वैधता को चुनौती देने वाले कई याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह निजता के अधिकारों का उल्लंघन करता है।

शीर्ष न्यायालय में कई याचिकाकर्ताओं ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) संख्या को बैंक खातों और मोबाइल नंबर से जोड़ने को ‘‘गैरकानूनी तथा असंवैधानिक’’ बताया है।

अदालत ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री को कोयला घोटाले में दोषी माना

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एक विशेष अदालत ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा और पूर्व कोयला सचिव एच सी गुप्ता को कोयला घोटाला मामले में भ्रष्टाचार तथा अन्य आरोपों का दोषी ठहराया।
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक़ विशेष सीबीआई न्यायाधीश भरत पराशर ने झारखंड के पूर्व सचिव ए के बासु और निजी कपंनी विनी आयरन तथा स्टील उद्योग लिमिटेड (वीआईएसयूएल) समेत कोड़ा, गुप्ता और अन्य आरोपियों को अपराधिक षड्यंत्र समेत अलग-अलग अपराधों में दोषी ठहराया।
यह मामला झारखंड में राजहरा नॉर्थ कोयला ब्लॉक का आवंटन कोलकाता स्थित वीआईएसयूएल को देने में अनियमितताओं से जुड़ा है।
अदालत सजा को लेकर दलीलें कल सुनेगी।
वीआईएसयूएल के निदेशक वैभव तुलस्यान तथा दो लोक सेवकों बसंत कुमार भट्टाचार्य और बिपिन बिहारी सिंह तथा चार्टर्ड अकाउंटेंट नवीन कुमार तुलस्यान को अदालत ने सभी आरोपों से बरी कर दिया।
अदालत ने आईपीसी की धारा 120-बी (आपराधिक षडयंत्र) के साथ धारा 420 (धोखाधड़ी) और धारा 409 (लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात) तथा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के प्रावधानों के तहत कथित अपराधों का संज्ञान लिया था। इसके बाद इन सभी लोगों को बतौर आरोपी समन भेजा गया।
सीबीआई ने आरोप लगाया कि कंपनी ने आठ जनवरी 2007 को राजहरा नॉर्थ कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए आवेदन दिया था।
उसने कहा कि झारखंड सरकार और इस्पात मंत्रालय ने वीआईयूएसएल को कोयला ब्लॉक का आवंटन करने की सिफारिश नहीं की थी इसके बावजूद 36वीं स्क्रीनिंग कमेटी ने आरोपी कंपनी को ब्लॉक का आवंटन करने की सिफारिश की।
सीबीआई ने कहा कि स्क्रीनिंग कमेटी के तत्कालीन चेयरमैन गुप्ता ने यह तथ्य तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से छिपाया कि झारखंड सरकार ने वीआईएसयूएल को कोयला ब्लॉक का आवंटन करने की सिफारिश नहीं की है। रिपोर्ट के मुताबिक़ उस समय कोयला मंत्रालय का प्रभार मनमोहन सिंह के पास ही था।
सीबीआई ने आरोप लगाया कि कोड़ा, बासु और दो आरोपी लोक सेवकों ने वीआईएसयूएल को कोयला ब्लॉक का आवंटन करने के लिए साजिश रची।
आरोपियों ने अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों से इनकार कर दिया है।

इस महीने रसोई गैस सिलेंडर के दाम में कोई वृद्धि नहीं

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पिछले 17 महीने में रसोई गैस सिलेंडर के दाम 19 किस्तों में 76.5 रुपये बढ़ाने के बाद, राष्ट्रीय तेल कंपनियों ने इस महीने एलपीजी की दरों में मासिक संशोधन नहीं किया है। माना जा रहा है कि ऐसा गुजरात चुनाव को ध्यान में रख कर किया गया है।
इंडियन ऑयल कारपोरेशन, भारत पेट्रोलियम व हिंदुस्तान पेट्रोलियम पिछले साल जुलाई से ही एलपीजी के दाम हर महीने पहली तारीख को बढ़ाती आ रही है ताकि इस पर सरकारी सब्सिडी को 2018 तक समाप्त किया जा सके।
एक कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ये तो माना कि इस बार एल पी जी के दाम नहीं नहीं बढ़ेंगे मगर वजह बताने से इंकार कर दिया। उसने कहा, “मैं इस फैसले की वजह बताने की स्थिति में नहीं हूं. यह प्रबंधन का फैसला है.”
इससे पहले एक नवंबर को सब्सिडी वाली एलपीजी के दाम 4.50 रुपये प्रति सिलेंडर बढ़ाकर 495.69 रुपये किया था. सरकार ने पिछले साल सार्वजनिक तेल कंपनियों से कहा था कि वह हर महीने कीमत बढ़ाएं ताकि पूरी सब्सिडी को मार्च 2018 तक समाप्त किया जा सके.
पीएसआई की रिपोर्ट के अनुसार सब्सिडी वाले एलपीजी की कीमत पिछले 1 नवंबर को सिलेंडर 4.50 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 495.6 9 रुपये पर पहुंच गई थी।
सरकार ने पिछले साल सरकारी तेल कंपनियों को मार्च 2018 तक सभी सब्सिडी खत्म करने के लिए हर महीने कीमतें बढ़ाने के लिए कहा था।
पिछले साल जुलाई से मासिक वृद्धि की नीति के कार्यान्वयन से एलपीजी की सब्सिडी वाले एलपीजी प्रति सिलेंडर 76.51 रुपये बढ़ गए हैं। । जून, 2016 में 14.2 किलो का एलपीजी सिलेंडर 419.18 रुपये था।
प्रति वर्ष हर घर 14.2 किलो के 12 सिलेंडर पर सब्सिडी का हकदार है। इससे ज़्यादा ज़रुरत पड़ने पर सिलिंडर बाजार मूल्य पर खरीदा जा सकता है।
प्रारंभ में एलपीजी की दर में 2 रुपये प्रति माह की वृद्धि हुई थी, जिसे इस साल मई से 3 रुपये कर दिया गया था।
देश में सब्सिडी वाले एलपीजी के 18.11 करोड़ ग्राहक हैं। गैर-सब्सिडी वाले रसोई गैस के 2.66 करोड़ उपयोगकर्ता हैं।