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समाज की वास्तविकता से रुबरु धारा के वृत्तचित्र

धारा के चिंतन का क्षेत्र समाज के विभिन्न वर्ग हैं और अभिव्यक्ति के लिए उन्होंने ज़रिया चुना है – वृत्तचित्र। इन वृत्तचित्रों में उनकी कहानियां बोलती सी प्रतीत होती हैं। सन 2017 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उन्हें  अपनी उपलब्धियों के लिए सेंटर फॉर वुमनस स्टडीज एंड डेवलपमेंट की तरफ से ”वूमन अचीवर अवार्ड” मिल चुका है।

बेशक वे पिछले कई वर्षों से अपने काम में नाम कमा रही हैं लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा पहचान मिली 2016 में उनके किन्नरों पर बनाये वृत्त चित्र से। इस वृत्त चित्र की राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा हुई। एक नए विषय को लेकर धारा सरस्वती का प्रयास सचमुच सराहनीय था। धारा शिमला में दूरदर्शन से जुड़ी हैं और किन्नरों के जीवन पर उनका वृतचित्र ‘मैं कौन हूं ‘ समाज के इस वर्ग का दर्द नई संवेदना के साथ सामने लाता है। वृतचित्र ‘मैं कौन हूं’ में किन्नर जीवन का बहुत निकट से चित्रण किया गया है। कुछ वैसे ही मानो किसी गूंगे को जुबां दे दी गई हो।

चंडीगढ़ में धारा सरस्वती के वृतचित्र का ‘कंसोरटियम फार कम्युनिकेशन ‘  के फेस्टिवल में प्रदर्शन हो चुका है। इससे उन्हें अपनी बात एक बड़े वर्ग तक पहुंचाने का अवसर मिला। जब उनसे पूछा गया कि इस तरह के बिलकुल अलग विषय पर वृतचित्र का उन्हें विचार कैसे आया तो धारा ने कहा कि जब वह स्कूल में पढ़ती थीं तब अकसर सोचती थीं कि हमारा तो परिवार है। हमें सोशल स्पोर्ट है। फिर भी इतनी दिक्कतें हमारे जीवन में आती हैं। उन (किन्नर) का तो कोई भी नहीं। ‘जब अवसर मिला तो इस पर वृतचित्र बनाने का फैसला किया ताकि लोग भी समाज के इस वर्ग की संवेदना को समझ सकें।

छोटे पर्दे पर किन्नर जीवन को लाने की उनकी मेहनत निश्चित रूप से सफल रही है। यह उनका वृतचित्र देखने से ही पता चल जाता है। चंडीगढ़ के फेस्टिवल में इसे काफी सराहना मिली। न केवल उसका फिल्मांकन बेहतर तरीके से हुआ है बल्कि उसमें किन्नर विषय वस्तु को भी बहुत गहराई से उकेरा गया है।

‘मैं कौन हूं’ में किन्नर जीवन का बहुत निकट से चित्रण किया गया है। भारी मेकअप, शादी-विवाह और जन्मदिन मना रहे परिवारों को खोज रही आंखों के पीछे क्या दर्द छिपा है, धारा सरस्वती इसे अपने वृत्तचित्र में सामने लाने में सफल रही हैं। धारा सरस्वती बताती हैं कि इस वर्ग की कहानी जानने के लिए कोई हफ्ता भर वह उनके बीच रहीं। उनका जीवन निकट से जाना। तब उन्होंने जाना कि जो किन्नर हमारे खुशी के मौकों पर हमारे मन को अपने विशेष अंदाज से पल भर में हंसी-ठिठोली से भर देते हैं, वास्तव में उनके अपने जीवन कितनी पीड़ा और अकेलापन है।

धारा बताती हैं कि हम कैसे उनकी मदद कर सकते हैं, कैसे उनकी आवाज बन सकते हैं, उनके चेहरे पर कैसे मुस्कान ला सकते हैं, यही मैं सोचा करती थी। उनका कहना है कि जीवन के संघर्ष को जानना है तो किन्नर को नजदीक से जानना जरूरी है। उन्होंने कहा कि उन्हें वृतचित्र बनाते हुए कोई मुश्किल नहीं आई। ‘समाज की आम सोच के विपरीत किन्नर बहुत मृदुभाषी और खुश तबीयत के लोग हैं। शायद अपनी पीड़ा छिपाने का इससे बेहतर और कोई तरीका भी उनके पास नहीं। धारा के मुताबिक  वृतचित्र बनाने के पीछे एक और मकसद यह है कि हम किन्नरों को समाज की मुख्यधारा में ला सकें। उन्होंने कहा कि वह इतने मजबूत हैं कि तमाम विषमताओं और अकेलेपन को बहुत हिम्मत से झेलते हैं। ‘उनका कोई परिवार नहीं। कोई मां-बाप नहीं, कोई रिश्तेदार नहीं। कोई सामाजिक ताना-बाना नहीं, लेकिन फिर भी जिंदा हैंं। उनकी इस जीवटता को सलाम करने का मन करता है। धारा का कहना है कि किन्नर बहुत बहादुर हैं और पूरे समज के लिए प्रेरणा स्रोत हो सकते हैं। वे चाहती हैं कि कोशिश होनी चाहिए समाज के इस वर्ग को मुख्यधारा से जोड़ा जाए। उन्होंने कहा कि जब वह उनसे मिलीं और उनसे बात करती थीं तो वे रो पड़ते थे। कई बार तो मुझे उनके आंसू पोंछने पड़े।

सरस्वती पिछले लंबे समय से सामाजिक विषयों पर काम कर रही हैं। उनका कहना है कि दूसरे विषयों के मुकाबले उन्हें किन्नर विषय पर काम करने में बहुत मजा आया। साथ ही उनके बीच रहकर जीवन का एक नया अनुभव हासिल किया। धारा सरस्वती कहती हैं कि आम लोग किन्नर की पीड़ा से परिचित नहीं और उनका मकसद इस वृत चित्र के जरिए इस अंधेरे पक्ष को ही सामने लाना है। वृत चित्र से उन्हें काफी सराहना मिली है।

इस सराहना से उत्साहित धारा सरस्वती कहती हैं कि यह अलग विषय था और वृतचित्र को मिली तारीफ उन्हें प्रेरणा देती है कि वह और लग्न से ऐसे ही विषयों को समाज के सामने लाती रहें। उन्होंने कहा कि किन्नर विषय पर बने उनके वृत चित्र को सराहना मिलने से यह भी जाहिर होता है कि समाज काफी संवेदनशील है और वह कहानी में उकेरी गई पीड़ा का एहसास करता है। उन्होंने कहा कि वृत चित्र देखने के बाद बहुत से लोगों ने उन्हें बताया कि किन्नर वर्ग के प्रति उनकी धारणा बदली है और वे अब उन्हें नए नज़रिए से देखते हैं इसी समाज के एक अंग के रूप में।

अवाडर्: वूमन अचीवर अवार्ड के आलावा धारा को प्रसार भारती का ‘आउट स्टैंडिंग कमर्शियल रेवेन्यू अचीवर अवार्ड’ और दिल्ली की ”प्रकृतिÓÓ संस्था का अवार्ड भी मिल चुका है। इसके आलावा अन्य अवार्ड भी उन्हें मिले हैं। धारा कहती हैं कि अवार्ड प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि इस से यह पता चलता है आपके काम को लोग सराह रहे हैं।

फिल्म में भी किया काम

धारा सरस्वती अजय देवगन-सुष्मिता सेन अभिनीत फिल्म ‘मैं ऐसा हफ हूंÓ में अभिनय कर चुकी हैं। इस फिल्म (2005) में उन्होंने अजय देवगन की बेटी की टीचर का रोल निभाया था, जिसमें उन्हें काफी प्रशंसा भी मिली। इस फिल्म की कहानी देवगन की बेटी के इर्द-गिर्द ही घूमती है। उन्होंने कुछ विज्ञापन फिल्मों में भी काम किया है। धारा बताती हैं कि फिल्म में काम करने का उनका अनुभव अच्छा रहा। उन्हें कैंसर से पीडि़त रहीं मीनाक्षी चौधरी की जीवटता पर बनाए वृतचित्र पर भी काफी प्रशंसा मिली थी। उन्होंने 109 साल के बुजुर्ग की ओपन हार्ट सर्जरी पर बनाए वृत चित्र पर भी खूब नाम कमाया। इसके अलावा धारा हिमाचल की महिलाओं के जीवन पर वृत्तचित्र बनाकर भी खूब नाम कमा चुकी हैं। ”वूमन इन एग्रीकल्चर”, ”हाइड्रोपोनिक पॉलीहाउस”,” हौसलों की उड़ान” और ”दिले नादान तुझे हुआ क्या है” उनके अन्य चर्चित वृत्तचित्र हैं।

देवभूमि भी सुरक्षित नहीं महिलाओं के लिए

तीन साल में महिलाओं के साथ दुष्कर्म की 745 घटनाएं। जी हाँ, यह आंकड़े देव भूमि माने जाने वाले हिमाचल के हैं – जनवरी 2015 से दिसंबर 2017 के बीच के। इस साल की घटनाएं अलग से हैं। आंकड़ों से समझा जा सकता है कि इस पहाड़ी सूबे में भी महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ा सवाल बन रहा है। दुष्कर्म की जिस घटना ने पिछले साल पूरे देश का ध्यान खींचा था वह शिमला के कोटखाई की थी जिसमें गुडिय़ा (काल्पनिक नाम) की दुष्कर्म के बाद बेहद निर्मम तरीके से हत्या कर दी गयी थी। इस घटना को एक साल होने को है लेकिन भारत की सबसे बड़ी एजेंसी माने जाने वाली सीबीआई भी असल हत्यारों तक नहीं पहुँच पाई है। इससे समझा जा सकता है कि स्थिति कितनी भयावह होती जा रही है।

”तहलका की छानबीन से जाहिर होता है कि हिमाचल में महिलाओं के प्रति अपराध अब महानगरों की ही तरह बढ़ रहे हैं। भले प्रदेश की सरकारें देश के आंकड़ों की तुलना में सूबे के आंकड़े हलके बताकर अपना पल्लू झाड़ रही हों, हकीकत यह है कि यह आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं। खासकर हिमाचल जैसे सूबे में जिसे हाल के वर्षों में महिलाओं के बेहद सुरक्षित प्रदेश माना जाता रहा है। तहकीकात से जाहिर होता है कि 2015 में प्रदेश में दुष्कर्म से जुडी 244 घटनाएं हुईं जबकि 2017 में इसका आंकड़ा 248 रहा।

यह सिर्फ दुष्कर्म केे आंकड़े हैं। महिलाओं से छेड़छाड़ की 2015 में 433, 2016 में 410 और 2017 में 404 घटनाएं हुई। यह आंकड़े वे हैं जो पोलिस के पास दर्ज हुए। समझा जा सकता असल घटनाएं इससे कहीं ज्यादा रही होंगी क्योंकि बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियानों के बावजूद अभी भी पहाड़ी समाज में इस तरह के अपराध की सूचना पोलिस को देने पर लोग झिझकते हैं। इसके पीछे कारण बदनामी का डर होता है हालाँकि सच् यह भी है कि इस तरह के अपराध की शिकायत पोलिस को न देने से सिर्फ अपराधियों के हौसले बुलंद होते हैं।  ”मैं समझती हूँ कि यह आंकड़े हिमाचल के हिसाब से बहुत चिंता पैदा करने वाले हैं। हालात खराब हो रहे हैं। इस मामले में कानून व्यवस्था में बेहद सुधार की ज़रुरत है,ÓÓ यह कहना है अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अनीता वर्मा का।

इस साल में तो महिलाओं के खिलाफ अपराध की मानों बाढ़ आई हुई है। ज्वाली पुलिस चौकी कोटला के तहत एक 20 वर्षीय युवती की फरवरी के शुरू में हत्या कर दी गई। हत्या के बाद युवती का अर्धनग्न अवस्था में शव ग्राम पंचायत जोल से करीब दो किलोमीटर दूर एक जंगल में फेंक दिया गया। युवती तीन फरवरी को अपनी बहन के ससुराल में गई थी। अपनी बहन के घर रुकने के बाद वह अपने घर के लिए चली आई, लेकिन वह घर नहीं पहुंची। पांच फरवरी को युवती के पिता ने पुलिस चौकी कोटला में जाकर गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई।

फरवरी में ही हमीरपुर के एक निजी कालेज में शिक्षक ने इसी कालेज की एक छात्रा के अस्मत लूट ली। पुलिस ने आरोपी प्राध्यापक के खिलाफ रेप का मामला दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया।   छात्रा के नाबालिग होने के चलते पोस्को एक्ट भी लगाया गया है। मामला दर्ज कर पुलिस ने जांच तेज कर दी है। बता दें कि पिछले कल हमीरपुर के एक निजी कॉलेज में एक प्राध्यापक के छात्रा के साथ दुराचार करने का मामला सामने आया था। इसको लेकर छात्रा के परिजनों व अन्य लोगों ने कॉलेज में ही प्राध्यापक की पिटाई कर दी थी। जिसके बाद मामला पुलिस के पास पहुंच गया था। छात्र सड़कों पर उतर आए और दोषी के खिलाफ  कार्रवाई की मांग की। इसके बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए आरोपी प्राध्यापक के खिलाफ रेप का मामला दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया। मामले की पुष्टि एसपी हमीरपुर रमन कुमार मीणा ने की है। उनके मुताबिक पुलिस ने प्राध्यापक पर रेप और पोस्को एक्ट के सेक्शन चार के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है। आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। मामले की जांच शुरू कर दी है। पीडि़त छात्रा के बयान लिए जाएंगे। मामले में तेजी से कार्रवाई की जाएगी। हमारी कोशिश रहेगी कि मामले में एक माह के अंदर चालान कोर्ट में दाखिल किया जाए। पीडि़त छात्रा के बयान के आधार पर जांच आगे बढ़ेगी।

12 फरवरी को शाहपुर के पुलिस चौकी कोटला के तहत एक बीस वर्षीय युवती की हत्या कर दी गई। हत्या के बाद युवती का अर्धनग्न अवस्था में शव ग्राम पंचायत जोल से करीब दो किलोमीटर दूर एक जंगल में फेंक दिया गया। युवती शाहपुर क्षेत्र के भनियार की रहने वाली थी, उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट उसके पिता ने पुलिस चौकी कोटला में की थी। पुलिस ने मौके पर पहुंच कर जांच शुरू कर दी, साथ ही फोरेेंसिक टीम भी मौके से साक्ष्य जुटाकर ले गई है। पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर शक के आधार पर एक आरोपी को गिरफ्तार किया है, जो रिश्ते में उसका मामा लगता है। युवती के शरीर पर गहरे घाव थे और माना जा रहा है कि युवती की हत्या गला दबाकर की गई है। मर्डर मामले में कोटला पुलिस चौकी प्रभारी एएसआई अशोक कुमार को लाइन हाजिर कर दिया गाय। यह कार्रवाई लोगों की शिकायत के बाद एसपी कांगड़ा संतोष पटियाल ने की। बता दें कि युवती मर्डर मामले में लोगों का आरोप है कि  युवती की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करने बाद पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। न ही पुलिस ने उस समय कॉल रिकॉर्ड खंगाले और न ही कोई और कार्रवाई की।

12 फरवरी को ही नेरवा में एक गांव में बिजली विभाग में कार्यरत व्यक्ति के खिलाफ  एक गूंगी-बहरी लड़की के साथ दुराचार का मामला पुलिस में दर्ज हुआ। आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया। घर में अकेली देखकर 35 वर्षीय एक गूंगी-बहरी लड़की के साथ  55 साल के इस व्यक्ति ने रेप कर डाला। गांव में एक शादी की पार्टी थी और लड़की के पिता और भाई वहां गए हुए थे। लड़की घर पर अकेली थी  तभी भगतराम उम्र 56 साल नामक व्यक्ति जोकि बिजली विभाग नेरवा में कार्यरत है, लड़की को अकेली देख कर  उसके कमरे में गया। कमरा बंद कर लिया। कुछ देर बाद जब लड़की का भाई घर पंहुचा तो उसे लड़की के कमरे से खांसने की आवाज आई और उसे लगा की कोई कमरे में है और वह दरवाजा खोलने लगा। जब दरवाजा नहीं खुला तो उसने दरवाजा तोड़ा तो देखा की वह अर्धवस्त्र अवस्था में था और उसकी बहन लहूलुहान पड़ी थी। तभी उसने गांव के लोगों को बुलाया और और साथ उस व्यक्ति की उसी अवस्था में फोटो खींच ली । उसके बाद नेरवा पुलिस को सूचना दी। नेरवा पुलिस ने मौके पर जाकर आरोपी को गिरफ्तार कर 376 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है।

अगले ही दिन ऊना में मामला सामने आया। वहां पर स्कूल से छुट्टी होने पर घर लौट रहीं दो छात्राओं के साथ छेड़छाड़ करने और अश्लील हरकतें करने की घटना हुई।  मामला पुलिस के पास पहुंच गया जिसने मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी। घटना थाना ऊना के तहत पड़ते एक स्कूल की जहाँ छुट्टी होने पर दो छात्राएं घर लौट रहीं थीं। रास्ते में बाइक सवार तीन युवक मिले और दोनों छात्राओं का रास्ता रोककर अश्लील बातें करने लगे। छात्राओं का कहना है कि तीनों ने शराब पी रखी थी।

16 फरवरी को जवालामुखी में बंधक बनाकर एक नाबालिग लड़की  की अस्मत लूटने का सनसनीखेज मामला सामने आया । पुलिस ने आरोपी युवक को गिरफ्तार कर लिया । जानकारी के अनुसार 18 की रात एक नाबालिग लड़की घर से कुछ ही दूरी पर शौच करने गई थी। इस दौरान वहां पहले से घात लगाए बैठे एक युवक ने उसे पकड़ लिया और उसके हाथ -पांव बांध कर उससे दुष्कर्म किया। इसके बाद युवक ने पीडि़ता को घटना के बारे में किसी को कुछ भी बताने पर जान से मारने की धमकी भी दी। जब काफी देर तक युवती घर नहीं लौटी तो परिजनों उसकी तलाश में गए, तो उन्हें कुछ दूरी पर ही लड़की बेहोशी की हालत में मिली। होश आने पर युवती ने परिजनों को आपबीती सुनाई, जिसके बाद परिजनों ने ज्वालामुखी थाने में घटना की शिकायत दर्ज करवाई। शिकायत मिलने के बाद पुलिस ने आरोपी युवक को गिरफ्तार कर लिया है। आरोपी गांव का ही युवक बताया जा रहा है। पुलिस ने पीडि़ता की शिकायत के आधार पर धारा 376ए 511ए 341 और 506 के तहत मामला दर्ज कर आगामी जांच शुरू कर दी।

21 फरवरी को नाहन पुलिस थाना रेणुका में एक व्यक्ति की शिकायत पर दो युवकों के खिलाफ  युवती से छेड़छाड़ और जान से मारने की धमकी देने का मामला दर्ज किया गया। शिकायत के आधार पर रेणुका पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी। जानकारी के अनुसार रेणुका थाने में युवती के पिता ने शिकायत दर्ज करवाई कि कोटीधिमान इलाके के भवाई बलीच गांव के दो भाइयों ने उसकी बेटी के साथ छेड़छाड़ की है। साथ ही यह बात किसी दूसरे को बताने पर जान से मारने की धमकी भी दी। शिकायत के बाद पुलिस ने वीरेंद्र सिंह व प्रकाश के खिलाफ  मामला दर्ज कर लिया है। मामले की पुष्टि एएसपी मोनिका ने की है।

छानबीन से जाहिर होता है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध (दुष्कर्म) की सबसे ज्यादा घटनाएं कांगड़ा जिले में हुई हैं। 2015 में इस जिले में 46, 2016 में 41 और 2017 में 37 घटनाएं हुईं। इसी तरह शिमला में इन वर्षों में क्रमश 24, 28 और 29, कुल्लू में 23, 17 और 19 चम्बा में 26, 15 और 10, मंडी में 29, 30 और 37 जबकि सिरमौर में क्रमश 31, 34 और 23 दुष्कर्म की घटनाएं हुईं।

सीएम भी चिंतित

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी इन आंकड़ों से विचलित दिखते हैं। ”तहलका’ से बातचीत में उन्होंने कहा कि वे दूसरे प्रदेशों से आंकड़ों की तुलना करके मामले की गंभीरता कम नहीं करना चाहते। ठाकुर ने बताया कि मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने 26 जनवरी को ”शक्ति बटन ऐप्प” की शुरुआत की जिसमें संकट में फंसी महिला या लड़की को तुरंत मदद पहुँचाने और अपराधी को पकडऩे की सुविधा है। इसमें संकट में फंसी महिला या लड़की जैेसे ही अपने मोबाइल में इस ऐप्प पर लाल बटन दबाएगी, 20 सेकण्ड में इसकी सूचना पुलिस तक उसके फोन नंबर, नाम, लोकेशन समेत पहुँच जाएगी। पुलिस तुरंत हरकत में आकर अपराधी को दबोच सकती और महिला की मदद कर सकती है। इसके अलावा प्रदेश सरकार ने ”गुडिय़ा हेल्पलाइन” भी लांच की है। मुख्यमंत्री का कहना था कि इस मामले में उनकी सरकार बेहद संवेदनशील है और महिलाओं के खिलाफ अपराध पर सख्ती बरती जाएगी।

मजऱ् बढ़ता गया ज्यों – ज्यों दवा की

राष्ट्रीय क्राइम ब्यूरो के अनुसार 2011 से 2016  तक के छह सालों में देश भर में बलात्कार के 1,93,169 मामले दर्ज किए गए। ज़ाहिर है ये आंकडे पूरा सच बयान नहीं कर रहे क्योंकि ज़्यादातर मामलों में लोग पुलिस के पास नहीं जाते। बलात्कार के सर्वाधिक मामले 2016 के हैं। 2016 में 38,947 केस दर्ज किए गए।  ध्यान रहे कि 2017 के आकड़े अभी उपलब्ध नहीं है। बलात्कार के अपराध में मौत की सज़ा का प्रावधान हो जाने के बावजुद इनमें किसी प्रकार  की कोई कमी नहीं देखी गई है।2011 के 24,206 मामलों की बढ़ती यह गिनती 2016 में 38,947 तक पहुंच गई।

इसके अलावा 2012 में 24,923, 2013 में 33,707, 2014 में 36,735 और 2015 में 34,651मामले दर्ज किए गए।

2016 के आंकड़ों का अगर राज्यवार ब्यौरा देखा जाए तो बलात्कार के सर्वाधिक मामले मध्यप्रदेश (4,882) उत्तरप्रदेश (4816) और महाराष्ट्र (4,189) के हैं। 2015 में भी इस मामले में मध्यप्रदेश (4,391) नंबर एक पर था। इनके अलावा राजस्थान (3616) और दिल्ली (2155) भी महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं माने जा सकते। हिमाचल प्रदेश में 2016 में 252 महिलाओं से बलात्कार होना इस राज्य की संस्कृति को देखते हुए चिंता का विषय है।

पूरे आसमां की तलाश करती नारी

‘अबला तेरी यही कहानी आंचल

में दूध और आंखां में पानी

मैथिलीशरण गुप्त ने ये पंक्तियां आज़ादी की लड़ाई के दौरान लिखी थी। सोच यह थी कि आज़ादी के बाद महिलाओं का जीवन बदलेगा। इसमें कुछ बदलाव तो आया हैमहिलाओं ने बहुत कुछ कर दिखाया है। पर क्या उनके प्रति पूरी दुनिया की सामाजिक सोच बदली है- इसका जायला ले रही हैं- अलका आर्य

आधी दुनिया यानी स्त्रियों की दुनिया। आधी जमीं हमारी,आधा आसमां हमारा। क्या यह हकीकत है? नहीं। कड़वी हकीकत यह है कि लैंगिक भेदभाव की वैश्विक खाई इतनी गहरी है कि बदलाव की मौजूदा दर से इसे भरने में एक सदी से भी अधिक समय लग जाएगा। विश्व आर्थिक मंच की हाल में ही जारी स्त्री-पुरुष असमानता सूचकांक रिपोर्ट-2017 आगाह करती है कि भेदभाव का यह फासला लैंगिक न्याय वाली दुनिया बनाने वाले संघर्ष को और अधिक कड़ा बना देता है।

विश्व आर्थिक मंच में शिक्षा और जेंडर विभाग की प्रमुख सादिया जाहिदी का कहना है कि बड़े देशों में असमानता कम करने की रफ्तार घटी है। स्त्री-पुरुष में असमानता विश्व स्तर पर बढ़ी है। स्त्री-पुरुष असमानता सूचकांक के 11 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ। 2016 की रिपोर्ट में कहा गया था कि इस अंतर को पाटने में 83 साल लगेंगे। लेकिन नई रिपोर्ट के मुताबिक अब इसमें 100 साल यानी एक सदी लग जाएगी। यह रिपोर्ट यह भी कहती है कि मौजूदा परिदृश्य के मद्देनजर महिलाओं को आर्थिक बराबरी के लिए अभी 217 साल और इंतजार करना पड़ेगा जबकि पिछले साल की रिपोर्ट में यह 170 साल आंका गया था। राजनीतिक भेदभाव दूर करने में 99 साल लगेंगे। इस रिपोर्ट के अनुसार आइसलैंड,नार्वे,फिनलैंड,रवांडा व स्वीडन की महिलाएं शीर्ष मुल्कों में हैं। जबकि यमन,पाकिस्तान,सीरिया,ईरान आखिरी पायदान पर हैं। बहरहाल भारत का जहां तक का सवाल है,वह लैंगिक असमानता में 21 पायदान नीचे आ गया है।

विश्व आर्थिक मंच ने 144 देशों में भारत को 108वें नंबर पर रखा है, पिछले साल 87वें नंबर पर था। इसकी वजह स्त्री व पुरुष के बीच आर्थिक व सियासी अंतर का बढऩा है। आर्थिक सहभागिता में 2016 में भारत का 136वां नंबर था पर 2017 में 139वा नंबर मिला है। इस रिपोर्ट के अनुसार 66 फीसदी महिलाओं के मुकाबले भारत में 12 फीसद पुरुष ही बिना वेतन के काम करते हैं। घरेलू कामकाज,पारिवारिक सदस्यों की देखभाल में उनका योगदान न के बराबर होता है। रिपोर्ट के मुताबिक बिना पगार के काम में घर की साफ-सफाई,परिवार और बाहरी सदस्यों की देखभाल-आवभगत,बीमारों की देखभाल,यात्रा से जुड़ी गतिविधियां शमिल हैं। दूसरे मुल्कों में बिना पगार के काम करने वाली महिलाओं की संख्या भारत की तुलना में कम है। उदाहरण के तौर पर चीन में 44 प्रतिशत महिलाएं बिना वेतन काम करती हैं और पुरुषों के मामले में यह अनुपात 19 प्रतिशत है। ब्रिटेन में भी 56.7 प्रतिशत महिलाएं बिना वेतन काम करती हैं व दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क माने जाने वाले अमेरिका में भी ऐसी महिलाओं की तादाद 50 प्रतिशत है। वहां 31.5 प्रतिशत पुरुष बिना वेतन काम करते हैं।

रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि महिला असमानता को खत्म करने से ब्रिटेन की जीडीपी 250 अरब डालर,अमेरिका की 1750 अरब डालर और चीन की अर्थव्यवस्था में 2.5 लाख करोड़ डालर का इजाफा हो सकता है। भारत में कुल कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 27 प्रतिशत है। यही नहीं अधिकांश क्षेत्रों में महिलाओं को पुरुषों के समान काम करने पर समान वेतन नहीं मिलता। पुरुष को जितना वेतन मिलता है, उन्हें उसका 60 प्रतिशत ही मिलता है। भारत में महिला कृषि मजदूरों की संख्या तो पुरुष मजदूरों से ज्यादा है मगर उनकी दिहाड़ी कम है। चाय बगानों में भी यही हालात है। गारमेंट्स कारखानों में भी हजारों की संख्या में महिलाएं काम करती दिखाई देती हैं मगर वेतन में मामले में पुरुषों से कमतर ही आंका जाता है।

औद्योगिक इतिहास बताता है कि जिन उद्योगों में कार्यबल की दृष्टि से महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक होती है,वहां उनका वेतन पुरुष प्रधान वाले उद्योगों की तुलना में कम होता है। लेकिन अगर महिलाएं उच्च पदों/नेतृत्व वाले पद पर हैं तो महिलाओं के वेतन में अंतर कम होने की संभावना बनी रहती है। वर्तमान परिदृश्य को खंगाले तो रिपोर्ट के जरिए पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर किसी भी उद्योग में नेतृत्व की पोजिशन में 50 प्रतिशत महिलाएं भी नहीं हैं। ऊर्जा,खनन,निर्माण में तो यह 20 प्रतिशत से भी कम है। सिर्फ स्वास्थ्य-देखभाल,शिक्षा व गैर सरकारी संगठन में 40 प्रतिशत से ज्य़ादा महिलाएं काम कर रही हैं। ये उद्योग कई पीढिय़ों से महिलाओं पर भरोसा करते आए हैं और महिलाओं को काम के मौके भी प्रदान कर रहे हैं। भारत में कामकाजी महिलाओं की दर 27 प्रतिशत है, यह चिंताजनक है। 1991 से आर्थिक सुधार नीतियों के मॉडल को अपनाने की शुरूआत हुई मगर कार्यस्थल पर महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाना एक बहुत बड़ी चुनौती है। समान काम-समान वेतन के सिं़द्धात का जमीनी स्तर पर पालन नहीं होता। नोटबंदी के बाद घरेलू बचत, खासकर महिलाओं द्वारा जमा राशि बैंको में चली गई। अब तक यह बचत फिर पटरी पर नहीं आ पाई है। आरबीआई के आंकड़ें बताते हैं कि जहां 2015-16 में सकल घरेलू आय का 1.4 प्रतिशत हिस्सा घरों में बचत के रूप में होता था, 2016-17 में बचत मायनस 2.1 पर जा पहुंची।

पाकिस्तान के मशहूर अखबार डॉन ने लिखा है कि वास्तविकता है कि पाकिस्तान जैसे मुल्कों में महिलाएं आज भी कॅरियर की शुरुआत से ही उपेक्षा झेलती हैं,वेतन तो कम मिलता ही है,शीर्ष पदों पर उनकी भागीदारी पुरुषों के अनुपात में बहुत कम है। पाकिस्तान का बीते दो सालों से 144 मुल्कों की इस सूची में 143वें पायदान पर जमे रहना बताता है कि यहां महिलाओं के प्रति भेदभाव बढ़ा है। राजनीतिक अधिकार में भारत की रैंकिंग 2017 में 15 है जबकि 2016 में 9 थी। संसद में महिला प्रतिनिधित्व 12 फीसद हैं जबकि पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में 20 प्रतिशत महिलाएं संसद में हैं। आइसलैंड में 1982 तक 5 प्रतिशत महिलाए ही ंसांसद थीं लेकिन 2016 में यह संख्या 48 प्रतिशत हो गई। भारत के पंचायती राज व नगर निकायों में महिला आरक्षण के जरिए बदलाव का अहसास हो रहा है मगर जहां तक संसद व विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसद आरक्षण का सवाल है,उस की असलियत यह है कि ऐसा विधेयक काफी सालों से लटका हुआ है। आज की तारीख में केंद्र में एनडीए की सरकार है, भाजपा चाहे तो महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दे सकती है पर इस मुद्दे पर फिलहाल कोई सुगबुगाहट नहीं दिखाई देती। पुरुष प्रधान संसदीय व्यवस्था में लैंगिक न्याय वाले बदलाव की पहल राजनीतिक वर्ग को ही करनी चाहिए। स्वास्थ्य के मामले में भारत 141वें व शिक्षा के मामले में 112वें नंबर पर है। स्वास्थ्य और सरवाइवल में मुल्क का 141वां नंबर बताता है कि महिलाओं के स्वास्थ्य का मुद्दा गंभीर है। न्यू ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट-2017 के अनुसार प्रजनन आयु वर्ग में एनमिक महिलाओं की सबसे ज्य़ादा संख्या भारत है। यह संख्या 51 फीसद है। दरअसल नीति निर्माताओं को महिला स्वास्थ्य,पोषण संबंध नीतियों का पुर्नाकलन करना होगा। स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंच सुनिश्चित करनी होगी। ढांचागत सुधार के साथ-साथ इन सुधारों से महिलाएं लाभान्वित भी हों, इस पर भी फोकस करना होगा। स्त्री-पुरुष असमानता सूचकांक-2017 रिपोर्ट हमारे सामने अहम सवाल यह उठाती है कि आर्थिक प्रगति के दो दशकों ने औरतों की जिंदगी में बदलाव को तेज रफ्तार क्यों नही ंदी?

गंगा किनारे जाने के लिए टूटेंगी बनारस की गलियां

राज्य सरकार तकरीबन 500 करोड़ रुपए खर्च करके 400 मीटर लंबा एक गलियारा बनाना चाहती है। इससे स्नानार्थियों और तीर्थयात्रियों को गंगा में डुबकी लगाने के बाद फौरन बाबा विश्वनाथ के दर्शन हो सकेंगे।

क ाशी विश्वनाथ मंदिर से गंगा किनारे तक आने के रास्ते को चौड़ा करने का उत्तरप्रदेश सरकार का इरादा जल्द अमल में आएगा। हांलाकि राज्य सरकार की इस योजना से न केवल निवासी बल्कि बुद्धिजीवी तक निराश हैं और वे विरोध जता रहे हैं।

राज्य सरकार तकरीबन 500 करोड़ रुपए खर्च करके 400 मीटर लंबा एक गलियारा बनाना चाहती है। इससे स्नानार्थियों और तीर्थयात्रियों को गंगा में डुबकी लगाने के बाद फौरन बाबा विश्वनाथ के दर्शन हो सकेंगे। गंगा किनारे बस्तियों के रहने वालों का कहना है कि अति महत्वपूर्ण लोगों के लिए गंगा किनारे पहुंंचने और बाबा विश्वनाथ मंदिर में पहुंचने को और आसान बनाने के लिए यह व्यवस्था प्रदेश सरकार कर रही है।

राज्य सरकार के मुख्यमंत्रियों में बाबू संपूर्णा नंद, कमलापति त्रिपाठी जैसे संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी के अच्छे जानकार लोगों ने भी सत्ता संभाली लेकिन कभी उन्होंने यह नहीं सोचा कि तंग गलियों से गंगा तक पहुंचना और उन्ही गलियों से बाबा विश्वनाथ के दरबार और दूसरे मंदिरों तक पहुंचने का जो तौर-तरीका सदियों से चला आ रहा है उसे तोड़ दिया जाए। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वाराणसी को जापान के क्योटो नगर की तरह खूबसूरत और आकर्षक बनाने पर तो ज़ोर दिया लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि स्मार्ट शहर बनाने के नाम पर गंगा और विश्वनाथ मंदिर तक ऐसा गलियारा बने जिससे वीवीआईपी अपनी सुरक्षा और फौज-फांटे के साथ तत्काल स्नान और दर्शन की प्रक्रिया पूरी कर सकें।

देश में भाजपा नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार के गठन के बाद धार्मिक तौर पर मशहूर शहरों को जाने के इच्छुक अतिविशिष्ट लोगों का आना-जाना बढ़ा है। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे की दिसंबर 2015 में वाराणसी की यात्रा हुई थी। उन्हें गंगा आरती दिखाने का कार्यक्रम बनाया गया था। इस कार्यक्रम के दौरान उनके साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे।

प्रदेश में तीन चौथाई बहुमत पाने के बाद सत्ता में आई भाजपा सरकार ने यह फैसला लिया है कि उन 160 मकानों को धराशायी कर दिया जाए जिससे न केवल एक गलियारा फिलहाल बने बल्कि आने वाले दशकों में उसे और विस्तार भी दिया जा सके। जब तोड़-फोड़ की कार्रवाई शुरू होगी तो इसमें कई छोटे-बड़े मंदिर,ऐतिहासिक – सांस्कृतिक महत्व का केंद्र रही इमारतें भी ज़मीदोज़ हो जाएंगी। हांलाकि नगर प्रशासन का कहना है कि सिर्फ एन्क्रोचमेंट को ही हटाया जाएगा।

वाराणसी की धार्मिक-ऐतिहासिक विरासत को कभी मुगलिया सल्तनत भी नेस्तनाबूत नहीं कर सकी। बड़े पैमाने पर दूसरे धर्मों के लागे भी वाराणसी आए और काशी में बसे। अंग्रेजों ने भी सिर्फ  इलाके की सीवरेज व्यवस्था को ही विकसित किया। कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी हमेशा नगर की पुलिस पर ही रही। स्वतंत्रता आंदोलन को तेज रखने में इन्ही गलियों का योगदान हमेशा रहा। पुुलिस और स्वतंत्रता सेनानियों की आंख-मिचौली बरसों काशी की गलियों में चलती रही लेकिन राज्य में सत्ता संभाल रही उत्तरप्रदेश सरकार ने विधानसभा में हासिल बहुमत का पूरा लाभ उठाते हुए इस परियोजना को हरी झंडी दिखाई और उस पर कार्रवाई भी शुरू कर दी है। अपने पांच साल के शासन में इस परियोजना पर अमली जामा पहना लेने का सोचा गया है।

काशी के ही एक वरिष्ठ पत्रकार पद्मपति शर्मा विश्वनाथ मंदिर के पास की ही गली में रहते हैं। उन्होंने अपने एक लेख में बताया कि उनका मकान 175 साल से भी पुराना है और वाराणसी विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने गलियारा बनाने की योजना के लिए 29 जनवरी को उनके मकान को भी धराशायी करने का मन बना लिया है। शर्मा ने अधिकारियों के न मानने पर आत्मदाह कर लेेने की धमकी दी है। उन्होंने फेसबुक पर लिखा है, ‘बहुत हो गई भिखमंगी, अब होगी लड़ाईÓ।

शर्मा और इलाके के दूसरे निवासियों ने काशी की धरोहर बचाओ संघर्ष समिति नाम से एक संगठन भी बना लिया है। इस संगठन के लोग इसके जरिए काशी की सांस्कृतिक विरासत बचाए रखने के लिए संघर्ष करेंगे। इसमें समस्त धर्म परायण नागरिक गण शामिल हैं

तकरीबन एक दशक पहले काशी विश्वनाथ परियोजना की रूपरेखा बनी थी। जिसे बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की सरकारों ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था। जब भाजपा सरकार सत्ता में आई तो सेवा निवृत नौकरशाहों ने इस योजना को बाहर निकलवाया और उस पर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से मंजूरी भी ले ली।

मुख्यमंत्री ने 31 जनवरी को वाराणसी पहुंच कर पूरी योजना की जानकारी अधिकारियों से ली। वाराणसी विकास प्रधिकरण के सचिव विशाल सिंह इस परियोजना के नोडल अधिकारी हैं। उनका कहना है कि यह गलत सूचना है कि हज़ारों लोग और कई सौ परिवार विस्थापित होंगे। यह भी गलत सूचना है कि कई ऐतिहासिक -धार्मिक स्थल टूटेंगे। उन्होंने कहा कि निहित स्वार्थों के चलते लोग इस तरह का मिथ्या प्रचार कर रहे हैं। दरअसल ऐसे लोगों के अपने मकान दुकान स्टोर रूम इन धार्मिक-ऐतिहासिक धरोहरों में बने हुए हैं। बड़ी संख्या में लोग मंदिरों में भी रहते हैं। ऐसे लोगों से ऐतिहासिक – धार्मिक महत्व के स्थलों को मुक्त कराया जाएगा।

गंगा किनारे गलियों का घना घेरा

काशी की गलियां ऐसी हैं जहंा दिन-दोपहरी में भी उजास नहीं पहुंचती । कुछ गलियां इतनी पतली हैं कि दो आदमी एक साथ नहीं गुजऱ सकते। जो बंबई-कलकत्ता की सड़कों पर खो जाने से डरते हैं वे यदि काशी की गलियों में चक्कर काटें तो दिन भर वे  चक्कर काटेंगे पर भूल जाएंगे कि उन्होंने कहां से गली की शुरूआत की थी। कई गलियोंं में तो काफी दूर आगे जाने पर रास्त भी बंद मिल सकता है। नतीजा यह होगा कि आपको फिर गली की उस छोर तक वापस आना पड़े जहां से गड़बड़ा कर आप मुड़ गए थे। कुछ गलियां ऐसी हैं कि आगे बढऩे पर मालूम होगा कि आगे रास्ता बंद है। लेकिन गली के छोर पर पहुंचने पर देखेंगे कि बगल में एक पतली गली सड़क से जा मिली है। गलियों का तिलिस्म इतना रहस्यमय है कि बाहरी की कौन कहे इसी शहर के वशिंदे भी जाने में हिचकते हैं। कुछ तो गलियां ऐसी है जिनमें बाहर निकलने के लिए किसी दरवाजे या मेहराबदार फाटक के भीतर से गुजरना पड़ता है।

कहते हैं कि यहां कई ऐसी भी गलियां हैं जिनसे बाहर निकलने के लिए चार से चौहद रास्ते हैं। जिस गली से आप घर पहुंच सकते हैं उसी से आप श्मशान या नदी के किनारे भी जा सकते हैं।

सोचिए यदि इन गलियों में कभी शंकर भगवान के किसी वाहन से मुलाकात हो जाए और अचानक किसी बात से नाराज़ हो कर वह आपको हुरपेट ले तो जान बचाकर भागना भी मुश्किल हो जाए । और फिर उन गलियों में जो आगे रास्ता बंद हो। आप पीछे भाग नहीं सकते आगे रास्ता बंद है।  अगल-बगल के सभी मकानों के भीतर लोहे की भारी सांकल लगी हैं उधर सांड महराज हुरेपेट आ रहे है। अगर बीमा कंपनियां उचित समझे तो बीमा एजेंट इन गलियों में ज़रूर भेजे। फिर गंदगी की बात तो कहां नहीं है। हर शहर गंदा है वहीं बनारस की कुछ ही गलियां चकाचक हैं।

जिन गलियों में सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचती, बरसात के मौसम का भी पता नहीं चलता वहां भी लोग यदि छता लगा कर चलते हैं तो कारण है गंदगी। बनारसी गली में तीन मंजिलें, चार मंजिलें से बिना नीचे देखे पान की पीक थूक सकता है, पोंछे का पानी फैंक सकता है, कूड़े का अंबर गिरा  सकता है। इस सत्कार्य में लिसड़ा व्यक्ति जब गालियां देता है तो सुनकर भाई लोग प्रसन्न होते हैं।

बंदरों के लिए गलियां प्रिय क्रीड़ा स्थल है। ऐसी घटनाएं सुनने में आती हैं कि अचानक छत से एक बड़ा रोड़ा सिर पर आ गिरा और बड़ी आसानी से स्वर्ग में सीट रिजर्व हो गई।

चुनावों में जीत के इरादे से कांग्रेस में मंथन

कांग्रेस में बड़ा मंथन चल रहा है। सत्ता संभाल रही भाजपा दावे पर दावे, नित नए घोटाले और पुराने घोटालों को और बढऩे से नहीं रोक पा रही है। उसे अभी आस है देश में संकीर्ण मुद्दों की आंच में रोटियां सेंकने की। उधर पुरानी कांग्रेस की 25 लोगों की कांग्रेस कार्यसमिति को युवा पार्टी के युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष ने भंग कर दिया है। पुराने पदाधिकारियों में हताशा और नयों में उत्साह के सुर जगने लगे हैं।

हाल-फि लहाल कांग्रेस कार्य समिति जो पार्टी संबंधी फैसले लेने की सबसे बड़ी कमेटी रही है वह अब स्टीयरिंग कमेटी में बदल गई है। 17-18 फ रवरी को हुई प्लेनरी बैठक में राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष चुने गए। ऐसी इस दौरान स्टीयरिंग कमेटी (तैयारी बैठक) तमाम प्रस्तावों की तैयारी कर लेगी जिन पर चर्चा होनी है और सत्रों के दौरान उन पर सहमति बनाई जानी है।

इसी बैठक के दौरान 25 सदस्यों की कार्यसमिति में आने के लिए नेताओं में होड़ सी है। हालांकि पार्टी के नियमों के तहत कमेटी इन में से 10 को चुनाव के जरिए लेती है। कांग्रेस अध्यक्ष का यह अधिकार है कि वे चाहें तो पूरी टीम ही चुन लें। पार्टी ऑफि स में और कांस्टीयूशन क्लब तक में चर्चा यही है कि कार्यसमिति में कौन आएगा और कौन नहीं। राहुल गांधी जब पार्टी अध्यक्ष नहीं बने थे तो उनकी मां सोनिया गांधी के प्रति रहे वफ ादार लोगों को ‘पुराने चौकीदारÓ कहा जाता था। अब पार्टी के नए स्वरूप में उन्हें डर सता रहा है कि कहीं वे हाशिए पर न पहुंच जाएं। हालांकि नए अध्यक्ष ने यह वादा किया था कि उनकी टीम में न केवल युवा बल्कि अनुभवी लोग भी होंगे। यह भी माना जा रहा हे कि बाहुबल, धनबल के महाबली भी इस कार्यसमिति में आने के लिए लालयित हैं।

यह सब जान-देख कर ही राहुल गांधी को यह लग गया कि ऐसी गंभीर दशा में उन्हें कैसे उस पार्टी को संभालना है जिसके हाथ से सत्ता की कुर्सी सरक गई। कहने वाले यह भी कहते हैं कि वे उन लोगों से घिरे हैं। जिन्हें ज़मीनी हालात का अंदाजा नहीं है।

उधर कांग्रेस के दिग्गज अनुभवी नेताओं का मानना है कि वे ऐसी टीम बनाने में कामयाब हो जाएंगे जो जनता में भरोसा इस कदर पैदा कर पाएंगे कि मतदाता मशीनों के जरिए होने वाली धांधली भी कामयाब न हो। हिंसा के जरिए लोगों को यंत्रणा देकर मतदान न करने देने का खेल न खेला जा सके। जनता को पहले से पता हो कि वह वोट जिसे दे रही है वह दलबदलू, बाहुबली और धनबली तो नहीं है। नई टीम को पता होगा कि उसकी क्या रणनीति होगी बूथ मैनेजमेंट, घर-घर प्रचार और मतदाताओं की सुरक्षा के संबंध में। जिन लोगों को उनके स्वास्थ्य के चलते बाहर जाने की राह दिखने लगी है उनमें अंबिका सोनी, जनार्दन द्विवेदी, मोहन प्रकाश और सीपी जोशी हैं। पुरानी टीम में अहमद पटेल, गुलाम नबी आज़ाद, मल्लिकार्जुन खडग़े, एके एंटनी आदि हैं। कांग्रेस पार्टी में पिछले साल चुनाव की जिम्मेदारी संभालने वाले मुल्ला पल्ली रामचंद्रन के नई कमेटी में आने की संभावना है।

कांग्रेस पार्टी पर ध्यान देने वाले विशेषज्ञों के अनुसार सचिन पायलट, सुष्मिता देब, मिलिंद देवड़ा, देवेंद्र हुडा और ज्योतिरादित्य सिंधिया इस नई कमेटी में हो सकते हैं। तमाम विवादों के बावजूद शशि थरूर पार्टी के नए प्रोफेशनल ग्रुप के प्रभारी हैं और अभी उनकी नई किताब ‘मैं हिंदू क्यों हूंÓ खासी चर्चा में भी रही है। कांग्रेस में शुरू से ही बु़िद्धजीवियों, साहित्य और कला के प्रति एक संवेदनशीलता रही है। पार्टी के नए आलाकमान ने उसे अपनाए रहने का यदि वाकई इरादा बनाया है तो वह वाकई बड़ी बात है।

कुछ लोग यह भी मानते हैं कि शायद अमरिंदर सिंह, पृथ्वीराज चौहान और कुमारी शैलजा

फि र कांग्रेस कमेटी में हों। पार्टी की रणनीति तैयार करने में और उसमें वक्त-ज़रूरत अनुसार बदलाव करने में सक्षम भी रहे हैं।

राहुल गांधी ने सचिन पायलट को राजस्थान में मनोनीत किया। वहां अभी उप-चुनाव हुए। इन में उन्होंने कांग्रेस को फि र जीवित किर दिया । इस कार्य में उन्होंने दिग्गज नेता अशोक गहलोत से राय-मशविरा भी किया और कामयाब रहे। हालांकि हरियाणा कांग्रेस को फि र से खड़ा नहीं कर पाए और कार्यकर्ता भी उनसे विमुख रहे। उन्हें शायद कोई नया काम दिया जाए।

अपनी नजऱ और रणनीति को खासा पैना बनाते जा रहे हैं राहुल गांधी। उन्होंने पिछले कई महीनों में कई खासी जिम्मेदारियां कइयों को सौंपी और उनकी योग्यता भी जांची-परखी। उन्होंने विभिन्न राज्यों के दौरों के दौरान और पार्टी संगठन में लंबे अर्से से काम करते हुए पार्टी के उपयुक्त नई युवा पौद की पहचान भी की है।

कांग्रेस के अंदर नए से नए जुझारू तेवर के लोगों के लिए पार्टी में आने और आगे बढऩे के ढेरों मौके हैं। ऐसे युवा नेताओं की एक लंबी कतार है जिसे अपने चुने जाने की ताब है। युवा राहुल गांधी यह जानते-समझते हैं कि देश के युवाओं को वे ही प्रगति के पथ पर ले जा सकते हैं। देश को भ्रष्टाचार और संकीर्ण सेनाओं की कुरूपता से बचा सकते हैं और पूरे देश में सद्भाव और शांति को ला सकते हैं। चुनौतियां ढेरों हैं और संघर्ष भी जटिल है। राहुल और हर कांग्रेसी यह जान-समझ रहा है।

नारी संघर्ष की दास्तान है, दुनिया की तहरीक

यहां तो जब किसी जन्म की सूचना आती है तो पहली चीज़ जो सभी जानना चाहते हैं वह यह है कि यह लड़की है या लड़का। इसमें तों कोई अपवाद ही नहीं है कि किस लिंग मे हम जन्मे हैं – उसके अनुसार ही हमारी शरीर संरचना होती है- जो ताजिन्दगी साथ होती है। हालांकि हमारे लिंग को यानी – लड़का है या लड़की को इतना प्रचारित कर दिया जाता है साथ ही उस पर तरह तरह की बंदिशें लगा दी जाती है। क्या प्रकृति पुरूष और स्त्री बतौर अलग-अलग जैविक भूमिकाएं तय करती है, क्या यह लिंग आधारित प्रणाली बनाती है जिसे खास तौर पर मानव खासतौर पर तंग नज़रिए वाले समाजों और देशों मसलन हमारे अपना लेता है। दो अलग-अलग लिंग बना कर क्या प्रकृति दो समान लोगों को एक पूर्णता नहीं देती जिससे पूरे चक्र में जीवन बने?

लैगिंक भेदभाव और रूढि़वादी नज़रिया महिलाओं के लिए पूरी दुनिया में कमोबेश है। पश्चिम के बेहद विकसित देशों में भी भारत की तुलना में खासा लैंगिक भेदभाव है। महिलाओं की खराब स्थिति से खासी सामाजिक समस्या है। हमारे देश में कई तरह की असमानताएं हैं, खासतौर पर जाति, धर्म, और सामाजिक आर्थिक क्षेत्र में। हमारे देश में कमोबेश आधी जनसंख्या महिलाओं की है। एक महिला होना यानी पुरूषों की तुलना में नीचा होना। बच्चों के मामले में भी यदि बच्ची लड़की है तो उसे बच्चों की तुलना में बढ़ावा नहीं मिलता।

अर्थशास्त्र में नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने 1990 में ‘न्यूयार्क रिव्यू ऑफ बुक्सÓ में एक लेख देश की ‘गायब होती महिलाओं पर लिखा था। इसमें बताया गया है कि किस तरह एक करोड़ महिलाएं देश की जनसंख्या से कम हो जाती है वह भी भ्रूण हत्याओं से। इसके अलावा लड़कियों और महिलाओं के स्वास्थ्य में लापरवाही बरतने और पोषक तत्व न मिलने से होते हैं। उन्होंने लिखा कि यूरोप और उत्तरी अमेरिका में पुरूषों की तुलना में महिलाएं जहां 1.05 या 1.06 हैं वहीं दक्षिण एशिया (भारत समेत) में पश्चिम एशिया और चीन में यह घटकर 0.94 रह गया है। वर्ल्ड हेल्प आर्गेनाइजेशन के अनुसार हर लड़की की तुलना में जैविक तौर पर प्राकृतिक लिंग अनुपात 1.05 लड़कों की है। यह बताता है कि विकसित पश्चिमी देशों और रूढि़वादी एशिया में लड़कियों की स्थिति कैसी है।

जनसंख्या के अनुसार 2011 में भारत में जनसंख्या का अनुपात महिलाओं का प्रति एक हज़ार पुरूषों पर 940 स्त्रियों का था। यह पहले की तुलना में कुछ बेहतर है क्योंकि 2001 में हुए सर्वे में प्रति 1000 पुरूषों पर 933 स्त्रियां थी।

नवीनतम इकॉनॉमिक सर्वे रिपोर्ट जनवरी 2012 में बताया गया है कि भारतीय मां-बाप में पुरूष बच्चे की प्रबल आकांक्षा होती है। इसलिए वे जब तक पुरूष बच्चा हासिल न हो प्रयास जारी रखते हैं। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार भारत में फिलहाल दो करोड़ दस लाख लड़कियां ऐसी हैं जो ‘अनचाहीÓ हैं। ये 0.25 की उम्र के बीच की हैं। ऐसे परिवार जहां पुरूष बच्चे का जन्म हो गया वहां बच्चों का जन्म फिर रूक जाता है। इससे लगता है कि मां-बाप इस तरह निरोधक कानून खुद पर अमल करते हैं। अपने विविधता पूर्ण देश में हम बहुधा अलग-अलग सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि के परिवारों में तीन या ज़्यादा बच्चे देखते हैं। आमतौर पर जब पहले ही दो या तीन बच्चियां हो जाती हैं तो हम पाते हैं कि सबसे छोटी संतान यदि पुरूष बच्चा हुई तो और बच्चे नहीं होते। दूसरी ओर यह भी देखा गया है कि कुछ परिवार ऐसे भी हैं जहां एक या दो बच्चे हैं और दोनों पुरूष बच्चे हैं तो परिवार में बच्चों की संख्या इसलिए डर से नहीं बढ़ाई जाती जिससे तीसरा बच्चा बेटी न हो। नतीजा साफ दिखता है कि अनचाही बच्चियों की कोई उचित देख-रेख नहीं होती। वे अस्वस्थ रहती हैं और उन्हें हमेशा उनके मां-बाप यही बताते-सिखाते रहते हैं कि कैसे उन्हें अपने बच्चे संभालने हैं। जब अनचाही बच्चियां बड़े परिवारों में पलती-बढ़ती हैं तो उनके मां-बाप उन पर खर्च भी काफी कम कर देते हैं। वे ज़्यादा चिंता पुरूष बच्चों की करते हैं। उन्हें पोषक तत्वों को ज़्यादा दिया जाता है बनिस्बत लड़कियां के । उनकी सेहत का भी अच्छा ध्यान दिया जाता है।

भारत में महिलाओं की देखरेख की जिम्मेदारी परिवारों के पुरूषों पर ही होती है । वे पिता,भाई, पति और बच्चे भी हो सकते हैं। भले ही हम खुद के आधुनिक होने का दावा करें। पर जीवन के अहम फैसले प्राय: लड़कियों के परिवार ही लड़कियों के लिए लेते हैं। इसकी कतई चिंता नहीं की जाती कि लड़की या पत्नी खुद क्या चाहती है। मामला चाहे शिक्षा, व्यावसायिक पसंद या फिर विवाह का हो, विभिन्न संस्कृतियों वाले परिवारों में भी समाज की ओर से लगाई गई पाबंदियों को ही माना जाता हे। खासतौर पर महिलाओं की योग्यता और आज़ादी पर। जबकि पुरूषों के बारे में फैसला लेते हुए परिवार इस बात पर ध्यान देते हैं कि पुरूष बच्चे की क्या मांगे हैं और क्या इच्छाएं हैं। परंपरा से चला आ रहा है कि परिवार में पिता का फैसला ही आखिरी फैसला होता है, मां का नहीं।

दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा है कि महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भता कितनी है। इंडिया डेवलमेंट रिपोर्ट जिसे वर्ल्ड बैंक ने 2017 में जारी किया उसके अनुसार हमारे देश में काम करने वाली स्त्रियों की तादाद बहुत ही कम है। हम 131 देशों में 120 वें स्थान पर है। पांरपरिक तौर पर महिलाओं के लिए घर का कामकाज करना और बच्चों को संभालना ही काम रहा है। ज़्यादातर महिलाएं बाहर काम करने में इसलिए रूचि नहीं लेती कि यह तो पुरूषों का कार्य है कि वह घर के बाहर जाए और कमा कर लाए। यहां तक कि नौकरी की पात्रता रखने वाली महिलाएं भी विवाह के बाद नौकरियां छोड़ देती हैं और मातृत्व पर ही ध्यान देती हैं।

घरेलू कामकाज और बच्चों की देखरेख भी महिलाओं का ही जिम्मेदारी समझी जाती हे। पति और पिता शायद ही महिलाओं के इन कामों में हाथ बंटाते हैं भले ही कम वेतन मिले। वे भी आखिरकार किसी तरह परिवार और काम की जगह के समय में तालमेल बिठाती हैं। इसमें काफी परिश्रम, ऊर्जा और थकावट होती है। यह भी एक तथ्य है कि ज़्यादातर महिलाएं जो कमा कर लाती हैं वह अपने पति के हाथों में या परिवार को सौंप देती हैं। जो मिलकर तमाम वित्तीय फैसले भी लेते हैं। यानी देश में ज़्यादातर कामकाजी महिलाएं भी पुरूषों पर ही आश्रित हैं। भले ही वे कमा कर ला रही है। यह एक तरह से महिला को दास बनाए रखने सा ही है।

21वीं सदी में भी लड़कियां और महिलाओं का पहनावा उनके परिवार ही तय करते हैं। कम उम्र से ही लड़कियों को वैसे कपड़े पहनने से रोका जाता है जिन पर समाज को आपत्ति हो। न मानने पर लड़कियां – महिलाओं पर असंवेदनशीलता के साथ अत्याचार भी किए जाते हैं। हमेशा इस बात पर बहस होती है कि पहनावे के चलते ही महिलाओं, लड़कियों के साथ यौन हिंसा हुई। महिलाएं जो कपड़े चुनती हैं उन पर हमेशा बहस होती है। इसके पीछे यही परंपरावादी सोच है कि महिलाओं को पुरूषों की ही सुननी चाहिए क्योंकि वे पुरूषों की मौन भावनाओं को जगाती है।

ज़्यादातर महिलाओं को हमारे देश में विभिन्न परिवारों और समुदायों में बच्चे पैदा करने में नियंत्रण रखने की आज़ादी नहीं है। पूरी दुनिया में खासतौर पर हमारे देश और पितृसत्ता समाज वाले समुदायों में लगभग यह माना जाता है कि औरतें बच्चे पैदा करने की मशीन हैं। उन्हें परिवार में पुरूष उत्तराधिकारी पैदा करना चाहिए। ऐसी महिलाएं और लड़कियां गिनती की होंगी जो अविवाहित रहें या विवाहित हों। ऐसे जोड़े भी कम ही हैं जो बच्चा न पैदा करने का फैसला लेते हों। कई बेहद शिक्षित परिवारों में भी उत्तराधिकारी की मांग को लेकर कलह होती रहती है। खासतौर पर ऐसी महिलाओं के साथ यह आम होता है जहां लड़कियों का जल्दी विवाह नहीं होता और परिवार शादीशुदा महिलाओं पर बच्चे के लिए दबाव परिवार बनाते हैं जिससे समाज में उनकी किरकिरी न हो।

आज ज़रूरत है कि कि काफी कम उम्र से ही हम छोटे पुरूष बच्चों और लड़कियों को उनकी पसंद के साथ बढऩे दें। उनमें कोई भेदभाव न किया जाए। इससे लैंगिक भेदभाव और खुद के महत्वपूर्ण मानने का दिमागी फितूर भी कम होगा। पीढिय़ों से चली आ रही रूढि़वादिता पर भी सवाल उठाए जाने चाहिए। और उनका विरोध करना चाहिए। तभी लड़कियों और महिलाओं के प्रति सोच बदलेगी। पुरूष भी खुद को बदलेंगे। लड़कियों को इच्छा से अपनी पसंद े का अधिकार देना चाहिए। उन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि दूसरे क्या कहेंगे। दहेज देने के लिए पैसा बचाने की जगह उसका उपयोग बच्चियों की पढ़ाई -लिखाई , खानपान, कपड़ों और उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने में शिक्षा देने में खर्च करना चाहिए। यह बड़ी चुनौती है कि पारंपरिक नज़रिए को छोड़ कर प्रगतिशील तरीके से सोचना और करना। परिवारों में पुरूष बच्चों के प्रति आग्रह भी खत्म होना चाहिए।

 

खराब लड़की

– जो साड़ी भी नहीं पहन पाती।

– जो सिगरेट पीना बुरा नहीं मानती। खुद भी पीती है।

– बियर भी पीती है।

– कमर दिखाऊ कपड़े पहनती है।

– बड़े-बूढ़ों का लिहाज नहीं करती।

– ज़ोर-ज़ोर से बोलती हैं

– खूब ठठा कर हंसती है।

– कोई फरमाइश जो नापसंद है उसे साहसपूर्वक इंकार करती है।

– लड़की खुद को नियमित व्यायाम, पैदल चल कर और दौड़ते हुए चुस्त रखती है।

 

‘लव जेहादÓ से नहीं

लड़ सकते धर्मांध

यदि मुस्लिम लड़कियों को अपनी पसंद के गैर मुस्लिम लड़के से शादी नहीं करने दी जाती तो यह समुदाय नैतिक तौर पर आरएसएस की ओर से ‘लव जेहादÓ के नाम पर पाखंड के खिलाफ नहीं लड़ सकता।

यह कहना है शेहला राशिद का । हम किसी भी तरह की धर्मांधता और ईशनिदां के खिलाफ मज़बूती से शेहला के साथ हैं। हमारी कामना है कि शेहला इस जोखिम भरे रास्ते पर संघर्ष करें और अपने राजनीतिक मकसदों पर डटी रहें।

हम छात्र हैं जेएनयू के

 

दक्षिण-पूर्व एशिया की यात्रा पर चार महिला मोटर साइकिल सवार

हैदराबाद देश के महत्वपूर्ण शहरों में एक है। साथ ही यहां की बहुल आबादी में संकीर्णता का ज़्यादा फैलाव नहीं है। शिक्षा, व्यापार और विज्ञान में इस शहर के निवासियों ने अपना नाम रोशन किया है। अब यहां की चार लड़कियों ने ‘रोटू मेकांगÓ कार्यक्रम के तहत 16,992 किलोमीटर की दूरी मोटर साइकिलों पर तय करने का मिशन शुरु किया है। ये मोटर साइकिल सवार भारत,म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम और बांग्लादेश की यात्राएं करते हुए अपना मिशन पूरा करेंगी। इनकी यह यात्रा अभी-अभी तैयार भारत-म्यांमार-थाईलैंड के ‘ट्राइलेटरल हाईवेÓ से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की होगी।

इन महिलाओं में इन की प्रमुख जय भारती, शिल्पा बालकृष्णन, एएसडी शांति और पिया बहादुर है। ‘ रोड टू मेकांगÓ अभियान की शुरूआत इन्होंने 11 फरवरी की दोपहर से शहर की बाहरी इलाके गोलापुडी से की। राज्य व केंद्र के पर्यटन विभाग के अधिकारियों ने वन टाइम क्षेत्र के कालेश्वर राव मार्केट, पंजा सेंटर, चिट्टी नगर, और प्रकाशन बैरेज पर इन्हें शुभकामनाओं के साथ विदा किया।

अपने इस मिशन के जरिए ये महिलाएं ‘अमूल्य भारतÓ की संस्कृतियों और परंपराओं का भी परिचय देंगी और भारतीय उप महाद्वीव के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत की जानकारी का आदान-प्रदान करेंगी। ये पांच देशों में यूनेस्को की विरासत के 19 स्थलों का भ्रमण भी करेंगी। इनकी इस यात्रा से भारत और एशिया पूर्व एशिया के देशों की महिलाओं में सड़क मार्ग से यात्रा करने में दिलचस्पी बढ़ेगी।

भाजपा का नया महल बना मुख्यालय का नया पता

अब भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय कार्यालय का पता नई दिल्ली 11 अशोक रोड से 6 दीन दयाल मार्ग हो गया है। लाल पत्थर से बने मुख्यालय की विशेषता है कि यह हाईटेक सुविधाओं से लैस है। भवन पूरी तरह से महल की तरह दिखता है। यह 1,70,000 वर्ग फीट में कमल के थीम पर बना है, 70 कमरे, लगभग 200 से अधिक कारों के लिए पार्किंग है। सभी कमरों में वाई फाई की सुविधा, विशाल पुस्तकालय,

चुनावी रणनीति के लिए वार रूम, संपर्क के लिए वीडियो कांफ्रेस की सुविधा है। 400 लोगों की क्षमता का कांफ्रेस रूम है। पार्टी कार्यालय की चकाचौंध अपने आप में भव्य है।

18 फरवरी को इस भव्य राष्ट्रीय कार्यालय के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भाजपा शत-प्रतिशत लोकतांत्रिक पार्टी है और कहा कि हमारे पिंड में ही लोकतंत्र है। प्रधानमंत्री ने कहा कि नए मुख्यालय में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीन दयाल उपाध्याय जैसे विचारकों को संतोष मिलेगा क्योंकि उन्होंने जो जनसंघ के रूप में बोया था अब वो पूरी तरह से वट वृक्ष बन गया है। जो लोगों की उम्मीदों को पूरा कर रहा है।

इस मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि कार्यकर्ताओं के बल पर पार्टी यहां तक पहुंची है। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि पार्टी का यह कार्यालय दुनिया के किसी भी राजनीतिक दल की पार्टी से बड़ा कार्यालय है। यहां से पार्टी के प्रदेश कार्यालय और जि़ला कार्यालयों के साथ सीधे वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से संपर्क साधा जा सकता है। प्रधानमंत्री, प्रदेश कार्यकारिणी को यहीं से संबोधित कर सकते हैं। अमित शाह ने बताया कि इस कार्यालय में आधुनिक आईटी सेल , सोशल मीडिया सेल और मीडिया के सोशल सेल और मीडिया के लिए सभी सुविधाओं के साथ बेहतर मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई गयी हैं। प्रेस के लिए भी लाइव करने की सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं।

अमित शाह ने कहा कि वैसे तो कई राजनैतिक दल है लेकिन संगठन के आधार पर और लोकतंात्रिक तरीके से चलने वाली एक मात्र पार्टी भाजपा है। संगठन के आधार पर चलने वाली पार्टी में कार्यालय का बहुत बड़ा महत्व होता है। अब पार्टी 635 जि़लों में भाजपा के जि़ला मुख्यालय बना रही है। भाजपा अध्यक्ष के अनुसार 2015 में राष्ट्रीय कार्यकारिणी में तय किया गया था कि 635 जिलों में पार्टी जिलों मुख्यालय बनाएंगी जिसका काम चल रहा है।

पार्टी कार्यालय में भव्य भवन के साथ-साथ तीन सुंदर बगीचों का निर्माण दिल्ली नगर निगम और केंद्र सरकार मिल कर रही है। भाजपा कार्यकर्ता राहित ने बताया कि इन प्रकोष्ठों के अलग-अलग दफ्तर बनने से कार्यकर्ताओं को अपनी बात रखने में आसानी होगी क्योंकि कार्यकर्ता ही पार्टी की रीढ़ होते हैं।

सज़ा का खौफ नहीं बैंकों में लूट जारी

भारत में अब यह चकित करने की खबर नहीं होती। आरोपी देश छोड़ कर फरार हो जाता है और विदेश में बस जाता है तो यह पता लगता है कि घोटाला हुआ है। घोटालेबाजों की नई सूची में अब नए नाम जो जुड़े हैं वे हैं नीरव मोदी और मेहुल चौकसे के। फिर मामला विजय माल्या का हो या ललित मोदी का तरीका सबका एक है।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पंजाब नैशनल बैंक शायद देश का सबसे बड़ा बैंक है। जहां रुपए 11,000 करोड़ मात्र से भी ज़्यादा का बैंक घोटाला हुआ। बैंक ने इस घोटाले को मुंबई में अपनी शाखाओं में हुआ पाया। यदि इस नियमित घोटाले का पूरा हिसाब लगाएं तो यह लगभग रुपए 11,300 करोड़ मात्र होता है। बैंक की कुल कमाई का आठ गुणा यानी लगभग रुपए 1320 करोड़ मात्र।

देश का दूसरा सबसे बड़ा बैंक कहलाने वाले इस बैंक में दूसरे बैंकों की तुलना में पिछले कुछ सालों में बैंकिग कामकाज में खासी जांच-पड़ताल होने का दावा रहा है। वहीं ऐसा होना वाकई आश्चर्य की बात है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, बैंक की आडिट कमेटियां और बोर्ड वगैरह बैंक के अपने खातों की नियमित वित्तीय हिसाब-किताब की पड़ताल करते ही हैं। इस सारी छानबीन का आशय यही होता है कि उन कर्जों पर नकेल कसी जा सके जो जाली होने की कगार पर पहुंच रहे हैं। यहीं यह भी याद रखें कि केंद्र सरकार भी प्राय: इधर यह कहती रही है कि कारपोरेट सेक्टर के खराब कजऱ्ों के कारण ही क्रोनी कैपिटल का विकास हुआ है। इससे निपटने के लिए 21 सार्वजनिक बैंकों को इसी वित्तीय वर्ष में रुपए एक लाख करोड़ मात्र की पूंजी देने की योजना भी बनी। इसमें से रुपए 5,473 करोड़ मात्र तो पंजाब नेशनल बैंक को ही दिए जाने थे। यह आधी ही रकम है। इसका कैपिटल एडेकवेसी रेशियो फिर भी उसी अनुपात में रहेगा जब यह री कैपिटैलाइजेशन की घोषणा हुई। बाजार में इसकी कैपिटैलाइजेशन इस घोटाले के उजागर होने के पहले तक तकरीबन रुपए 10,000 करोड़ मात्र था। इसके शेयर की कीमत में भी बीस फीसद की गिरावट आई।

तभी घोटाले का एक और मामला उजागर हुआ जो दूसरे बैंकों में हुआ। सीबीआई ने एक एफआईआर (प्राथमिकी) रोटोमैक पेन प्रमोटर विक्रम कोठारी के खिलाफ भी दायर की है। जिसने रुपए 3695 करोड़ मात्र के कजऱ् का घोटाला सार्वजनिक बैंकों के साथ किया। यह मामला तब दर्ज किया गया जब रोटोमैक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड और इसके निदेशकों विक्रम कोठारी, साधना कोठारी और राहुल कोठारी के खिलाफ बैंक ऑफ बड़ौदा ने शिकायत दर्ज कराई। इस शिकायत में दर्ज है कि रोटोमैक ने सात बैंकों के समूह से रुपए 2,919 करोड़ मात्र का कजऱ् लिया। इस राशि में यदि ब्याज भी जोड़ दे ंतो यह रुपए 3695 करोड़ मात्र हो जाता है। सीबीआई की एफआईआर के अनुसार रोटोमैक पर बैंक ऑफ इंडिया के रुपए 754.77 करोड़ मात्र, रुपए 456.63 करोड़ मात्र बैंक ऑफ बडौदा रुपए 771.01 करोड़ मात्र, इंडियन ओवरसीज बैंक रुपए 458.95 करोड़ मात्र, युनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, रु. 330.68 करोड़ मात्र इलाहाबाद बैंक रु. 49.82 करोड़ मात्र ओरिएंटल बैंक ऑफ कामर्स के बकाया है।

इस शिकायत में यह जानकारी भी है कि रोटोमैक ने मंजूर कजऱ् की राशि का एक दूसरी ‘जाली कंपनीÓ में निवेश किया यहां से वह धन रोटोमैक कंपनी को वापस मिला। इस पूंजी का निर्यात के आदेशों के तहत इस्तेमाल करने की बजाए सिंगापुर की एक दूसरी कंपनी बडग़ाडिया ब्रदर्स प्राइवेट लिमिटेड को गेंहू के निर्यात में किया गया। बाद में यह धन बरगडिया ने रोटोमैक के खाते में जमा किया। दूसरे मामलों में भी निर्यात के लिए माल की खरीद में इस पूंजी का इस्तेमाल नहीं किया गया और न कंपनी ने निर्यात के किसी आर्डर को पूरा ही किया। सीबीआई के एक अधिकारी ने बताया।

इस बीच पंजाब नेशनल बैंक के एक बड़े अधिकारी ने बताया कि दस अधिकारियों को तत्काल मुअत्तल कर दिया गया। जबकि सीबीआई ने अब तक एक सेवा निवृत और एक नियमित (रेगुलर) कर्मचारी को हिरासत में लिया है। यह बात गले नहीं पचती कि कुछ छोटे कर्मचारी मिल कर इतना बड़ा धोखाधड़ी कर सकते हैं। बैंक के प्रबंध निदेशक का दावा है कि निगरानी रखने और सतर्कता बरतने के तमाम किए उपायों की छानबीन की जा रही है जिससे यह पता चल सके कि घपले हुए कैसे। एन-फोर्समेंट डारेक्टोरेट ने मुख्य आरोपी के खिलाफ मनी लांड्रिंग का मामला खरबपति जवाहरात विक्रेता नीरव मोदी पर दर्ज कर लिया है।

उसके अलावा उसकी पत्नी एमी मोदी और करीबी सहयोगियों और संबंधियों के खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया गया है। ऐसा लगता है कि खुद बैंक कर्मचारियों ने बैंकिंग प्रणाली में सेंध लगा कर इतनी भारी धनराशि को मंजूरी दिलाने में खास भूमिका निभाई। इस महा घोटाले से ‘डिजिटल पेमेंटÓ को बढ़ावा देने की सरकारी महत्वाकांक्षा को खासी चोट पहुंची है। पंजाब नेशनल बैंक ने दूसरे बैंकों की शाखाओं को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि उन्होंने ऐसी भारी राशि मंजूर करते हुए आवश्यक सजगता नहीं बरती। लेकिन यह तो महज सफाई है जो भरोसे लायक नहीं है। आरबीआई को ज़रूर इस मामले की तह तक जाना चाहिए और जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए। बैंको और कजऱ् लेने वालों के आपसी गठजोड़ को बैंकिंग प्रणाली में समस्या की जड़ बताया जाता रहा है। अब इस मामले से इस गहरे गंठजोड़ का खुलासा होने की संभावना बनी है। आरबीआई और दूसरी एजंसियों को क्रास पड़ताल करते हुए बैंकिंग प्रणाली की पूरी छानबीन करनी चाहिए जिससे बैंकिंग प्रणाली में भरोसा जम सके।

नीरव मोदी और मेहुल चौकसी का गिरफ्तारी से पहले ही फरार हो जाना भी इशारा एक गठजोड़ की ओर ही करता है। कारपोरेट जगत के नवीनतम आरोपी नीरव को दावोस में अभी हाल में हुई वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम में जुटे देश के तमाम बड़े उद्योगपतियों और राजनीतिक की ज़मात में देखा भी गया था। ये सभी ‘ब्रांड इंडियाÓ को बढ़ावा देने के लिए इक_े हुए थे। इसके कुछ ही दिन बाद पंजाब नेशनल बैंक ने आंतरिक जांच पड़ताल में 15 जनवरी को इस घपले की पड़ताल की थी।

चौकसी इलाज के बहाने विदेश में कहीं और गया इसके पहले कि बैंक कोई कार्रवाई करता। खरबों रुपयों के इस घोटाले को सार्वजनिक करता। निस्संदेह व्यवसाइयों और राजनीतिकों के बीच के संबंध बेहद मज़बूती के हैं।

क्रोनी कैपिटलिज्म की बढ़ती संस्कृति से व्यवसाइयों को वित्तीय संस्थानों से भारी धनराशि में घोटाला करने का चस्का लगा है। दिन-दुपहरिया होने वाली इस लूट को बतौर खराब कर्ज ‘नॉन परफार्मिंग एसेटÓ में मान लिया जाता है। इस भयावह नुकसान की भरपाई भी करदाता ही करते हैं। इतने बड़े पैमाने पर हुई धोखाधड़ी अमीरों और ताकतवर लोगों में गठजोड़ के बिना संभव नहीं है। लेकिन आज तक किसी को जि़म्मेदार नहीं ठहराया जा सका है। ऐसी धोखाधड़ी को हर बार छिपा कर नहीं रखा जा सकता। पंजाब नेशनल बैंक के हुक्मरानों की कोशिश है कि हम यह मान लें कि रुपए 11,000 करोड़ मात्र का घोटाला कुछ छोटे मैनेजरों की ही कारस्तानी है। कैसे इतनी भारी धनराशि को बतौर कर्ज अदा करने की मंजूरी तमाम बैंकिंग कायदे कानून को एक किनारे करके दे दी जाती है। कोई छानबीन और सतर्कता भी नहीं बरती जाती।

बैंकों को सरकारी नियंत्रण से बाहर करने की सलाह

एक भारी घोटाले में जौहरी नीरव मोदी के फंसे होने और पंजाब नेशनल बैंक पर सरकारी दबाव के चलते उद्योग व्यवसाय समूहपतियों के संगठन एसोचेम ने मांग की है कि सरकार को बैंकों को अपने नियंत्रण से छोडऩा चाहिए। उन्हें भी निजी बैंकों की ही तरह काम करने देना चाहिए।

पंजाब नेशनल बैंक में 11,300 करोड़ के घोटाले को देखते हुए सरकार को बैंकों से अपनी 50 फीसद की हिस्सेदारी में कटौती करनी चाहिए। सरकारी बैंकों को भी निजी बैंकों की ही तरह काम करने देना चाहिए जिससे उनकी जवाबदेही पूरी तौर पर शेयर होल्डरों के प्रति हो और जमा करने वालों के हितों की रक्षा हो एसोचेम ने अपने के बयान में कहा।

बयान के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक एक के बाद एक संकट में फंसते जा रहे हैं और सरकार की भी एक सीमा है जहां तक यह मदद कर सकती है। वह भी जनता के पैसों से भले ही देनदारों में प्रमुख शेयर होल्डर क्यों न हों। सार्वजनिक बैंकों का वरिष्ठ प्रबंधन अपना ज़्यादातर समय अफसरशाही से मिले निर्देशों को लेने और अमल में लाने में निकाल देता है। इस प्रक्रिया में बैंक के मुख्य काम तमाम महत्वपूर्ण रिस्क और प्रबंधन के काम रह जाते हैं। सह मसला बकों के साथ खासा संगीन है। बैंक नई तकनॉलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं। जिससे नफा और नुकसान दोनां ही संभव है। एक बार बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी 50 फीसद से कम हो तो ज़्यादा स्वायत्तता बैंकों को हासिल होगी और वे वरिष्ठ आधिकारियों की जवाबदेही और जिम्मेदारी सुनिश्चित कर सकेंगे। बोर्ड भी नीतिगत फैसले ले सकेंगे जबकि सीईओ अपने पूरे अधिकारों के और जिम्मेदारियों के साथ चल सकेंगे। एसोचेम के सेक्रेटरी जनरल डीएस रावत ने अपने एक बयान में कहा कि आरबीआई को बैंकिंग उद्योग को पूरे वित्तीय क्षेत्र में साफ-सुथरा काम करने और चाहे वह सार्वजनिक क्षेत्र हो या फिर निजी क्षेत्र या फिर गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का कामकाज इन सभी क्षेत्रों में अच्छा कामकाज होने की दिशा में उसे अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

बैंकों में निजी भागीदारी बढ़े: अरविंद सुब्रमणयम

भारत सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणयम ने चेन्नई में बोलते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में निजी भागीदारी की हिमायत की। उन्होंने कहा कि हांलाकि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में रिकैपिटइलेजेशन कर रही है, छानबीन सतर्कता और देखरेख करती ही रही हैं लेकिन साथ ही यह सब अनुशासनात्मक कार्रवाई का बेहतर नतीजा तभी सामने आएगा जब ज़्यादा निजीकरण बैंकों का होगा।

उनके अनुसार निजी क्षेत्र पर सरकारी खर्च भी कम आएगा और बैंकिंग क्षेत्र में निजी भागीदारी ज़्यादा होगी। उन्होंने कहा कि ज़्यादा निजी भागीदारी होनी चाहिए क्योंकि ऐसी कोई भी गारंटी नहीं है कि बैंकों में कामकाज सुचारू रूप से होगा। जबकि निजीकरण होने पर ऐसा ं होगा।

सीबीआई की पड़ताल

मुंबई की सीबीआई अदालत में इस मामले में गिरफ्तार तीन आरोपियों को पुलिस की हिरासत में भेज दिया। इनमें पंजाब नेशनल बैंक के उपप्रबंधक गोकुलनाथ शेट्टी, सिंगिल विंडों ऑपरेटर मनोज खराट और नीरव मोदी समूह की ओर से दस्तखत करने वाले अधिकारी।

इन तीनों के अलावा सीबीआई ने इस धोखधड़ी में शामिल रहने के आरोप में दस निदेशकों और अधिकारियों को पूछताछ के दायरे में रखा है। एन्फार्समेंट डायरेक्टोरेट, ने नीरव मोदी, मेहुल चौकसी और 39 स्थानों पर पंजाब नेशनल बैंक के ठिकानों पर भी अचल संपत्तियों की पड़ताल की।

यह सारा घोटाला हुआ कैसे

इस सारे घोटाले में स्विफ्ट (एसडब्लू आईएफटी) यानी बैंकों में एक दूसरे से संपर्क रखने की प्रणाली और अधूरी लेजर एंट्रीज और जांच और समुचित व्यवस्था और बैंक की अपनी बनाए हुए बैंकिंग कायदे-कानूनों की जानबूझ कर की गई अनदेखी। पंजाब नेशनल बैंक के सीईओ सुनील मेहता ने कहा, हां, समस्या तो है। हमने इसकी पड़ताल कर ली है। हम इससे निपटने में जुटे हैं। हम तमाम कमियों को देखेंगे और उन्हें दुरूस्त करेंगे। यह जोखिम तो जनता से जुड़ा हुआ है। हम इसे देख रहे हैं।

सीबीआई के अदालती दस्तावेजों के अनुसार एक बड़ी संख्या में जाली लेटर्स ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी किए गए। यह एक तरह की गारंटी है दूसरे बैंकों को किसी उपभोक्ता को कजऱ् देने के लिए। यह बैंकों की विदेश स्थित शाखाओं को दिए गए। इस मामले में खासतौर पर ये जेवरात की कंपनियों के एक समूह को दिए गए। चूंकि ये गारंटी पत्र भारतीय बैंकों की विदेश स्थित शाखाओं को भेजे गए थे। यह माना गया कि सभी भारतीय हैं और बैंको ने तमाम जेवरात कंपनियों को धन दे दिया।

शेट्टी ने बैंक की स्विफ्ट प्रणाली के ज़रिए उन पासवर्ड का इस्तेमाल किया जिनसे वह कागज बना सका। ऐसे भी उदाहरण हैं कि एक या उससे ज़्यादा भी जूनियर सहयोगी रहे हों जिन्होंने संदेश भेजे और व्यक्ति विशेष ने सहमति देने के लिहाज से सारे खतूत को जांचा। बैंक एकज्क्यूटिवस से छानबीन और अदालती दस्तावेजों और साक्षात्कारों से यह बात सामने आई।

मुंबई की अदालत में जमा सीबीआई के एक दस्तावेज के अनुसार ‘इस मामले में बैंक के एक या ज़्यादा कर्मचारियों,अधिकारियों के शामिल होने का अंदेशा संभव है। स्विफ्ट पर लेनदेन शुरू करते ही शेट्टी जो उस बैंक की उस शाखा में 2010 से 2017 तक काम करता रहा ने रेगुलर रोटेशन की आम बैंकिंग व्यवस्था को भी बैंक की इंटरनल प्रणाली पर रिकार्ड नहीं किया। क्योंकि पंजाब नेशनल बैंक की आंतरिक साफ्टवेयर प्रणाली स्विफ्ट से आटोमेटिक तौर पर नहीं जुड़ी थी। कर्मचारी खुद स्विफ्ट प्रणाली से जुड़ कर काम करते थे। यह न होने के ही कारण लेन देन बैंक के खाते में दिखाई नहीं देता था। सीबीआई के एक अधिकारी के अनुसार सात साल की अवधि में ऐेसे घोटाले के 150 मामले सामने आए।

आखिर वित्तमंत्री ने तोड़ा मौन

केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने पंजाब नेशनल बैंक घोटाले पर अपना मौन तोड़ा। उन्होंने इसके लिए ऑडिटर और पंजाब नेशनल बैंक के प्रबंधन की नाकामियों को जि़म्मेदार ठहराया। जिसके चलते समय रहते कदम नहीं उठाए गए जिनके चलते रुपए 11,400 करोड़ मात्र का गोलमाल पकड़ में नहीं आ सका।

‘अनियमितताओं पर लगाम लगाने के लिए नज़र रखले वाली एजेंसियों को ध्यान देना चाहिए। उन्हें यह निश्चय करना होगा कि ऐसी गड़बडिय़ां

शुरूआत में ही दबा दी जाएं। वित्तमंत्री एशिया और प्रशांत सागर के एसोसिएश्सन ऑफ डेवलपमेंट फाइनेंशियल इंस्टीटयूशनल की 41वीं बैठक में अपनी बात रख रहे थे। जांच एजेंसियां अब पंजाब नेशनल बैंक के कर्मचारियों से पूछताछ कर रही हैं। यह पता लगाने के लिए कि आरोपियों से उनका कितना संपर्क रहा है।

‘आडिटर्स भी इस घोटाले को नहीं पकड़ पाए उस पर वित्तमंत्री ने कहा, आखिर ऑडिटर्स क्या कर रहे थे? भीतरी और बाहरी ऑडिटर तक इसे नहीं पकड़ सके। ऐसे में ज़रूरी है कि यह जाना जाए कि ऐसी धोखाधड़ी का खर्च प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर होता है। कर देने वालों के लिए यह प्रत्यक्ष है जबकि अप्रत्यक्ष तौर पर लागत देना बैंकों की क्षमता पर है।

आरबीआई की बैंक धोखाधड़ी रोकने पर समिति

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने (आरबीआई) ने एक समिति बनाने की घोषणा की है। आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड ऑफ डारेक्टर्स के पूर्व सदस्य वाईएच मालेगम की अध्यक्षता में यह समिति गाठित हुई है। यह समिति बैंकों में धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों का अध्ययन करेगी और एक योजना तैयार करेगी जिससे इन्हें रोका जा सके।

आरबीआई ने दावा किया है कि पहले ही इसने बैंकों को चेतावनी दी थी। यह चेतावनी अगस्त 2016 से ‘स्विफ्टÓ प्रणाली के बेजा इस्तेमाल पर तीन बाद चेताया था। बैंकों ने अपनी व्यावसायिक ज़रूरतों के लिहाज से ‘स्विफ्टÓ का विकास किया लेकिन उसके इस्तेमाल के साथ जोखिम भी है इसी कारण बैंकों को संभावित बेजा इस्तेमाल से बचने की तीन बार सलाह दी। उन्हें सलाह दी कि आरबीआई के दिशा निर्देशों के तहत उसे दुरुस्त किया जाए। जिस पर ध्यान नहीं दिया गया।

अर्थव्यवस्था को खोखला कर रहा है एनपीए

बैंकों के नॉन परफारमिंग एसेटस (एनपीए) क्या हंै, यह समझ पाना या तय कर पाना काफी कठिन है। आमतौर पर बैंक अपने दिए कर्जों को लौटाने की सीमावधियां बढ़ा दिए करते हैं। इसे तकनीकी भाषा में ‘रोल ओवरÓ कहा जाता है। यह लगातार बढ़ रहा एनपीए देश की अर्थव्यवस्था को खोखला कर रहा है।

एनपीए की समस्या पहले के मुकाबले अब कहीं ज्य़ादा गंभीर है। इसका बड़ा कारण यह है कि अब बैंकों का चरित्र और प्रवृति बदल गई है। देश में उदारीकरण से पहले आमतौर पर वाणिज्यिक बैंक हुआ करते थे, जो ग्राहकों की संपत्ति और दूसरे स्त्रोतों का आकलन करने के बाद उन्हें कजऱ् दिया करते थे। वे यह बात की निश्चित करते थे कि यदि कजऱ् वापिस नहीं हुआ तो उसे कैसे वसूला जाएगा। वे कजऱ् छोटी समय अवधि के लिए होते थे। उन कजऱ्ों का असली मकसद काम-काज चलने के लिए ‘वर्किग कैपिटलÓ के रूप में देना था। लंबे समय के जो कजऱ् थे वे दूसरे वित्तीय संस्थानों की मार्फत दिए जाते थे। इन का काम कम ब्याज पर कजऱ् देना था ताकि निवेश को प्रोत्साहन दिया जा सके। इस व्यवस्था में ये ‘इंवेटरियांÓ बैंकों के लिए ज़मानत का काम करती थीं। कजऱ् वापिस न होने की सूरत में बैंक इन ‘इंवेटरियांÓ को अपने काबू में ले सकते थे। हालांकि यह तरीका भी पूरी तरह सही नहीं था, इसमें भी खामियां थी। कई बार लोग एक ही’इंवेटरीÓ पर अलग स्त्रोतों से कजऱ् ले लिया करते थे। इनकी कीमत का सही आकलन नहीं हो पाता था। फिर भी डूबे कजऱ्ों की गिनती काफी कम और सीमित थी।

पर समय के साथ हालात बदले और उदारीकरण ने पूरी व्यवस्था को ही बदल डाला। उसने वित्तीय संस्थानों के महत्व को खत्म कर दिया। कई वित्तीय संस्थान बैंकों में परिवर्तित कर दिए गए। इसके साथ ही अल्प अवधि के कजऱ् देने वाले वाणिज्यिक बैंक लंबी अवधि के कजऱ् देने लगे। यहीं से असली समस्या शुरू हुई। डूबने वाले कजऱ्ों के मुख्य रूप से तीन कारण है – पहला तो यही कि जो प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनी उसके हिसाब से ज़मीनी स्तर पर काम न हो सका और सारे अनुमान मात्र कागज़ी हो गए। दूसरा यह कि निवेश परियोजना शुरू से ही गैरवहनीय हो पर सरकार के दवाब में बैंकों ने उस पर कजऱ् दे दिया या फिर बैंक खुद ही उसका आकलन ठीक से न कर पाए और उसकी ऊपरी चकाचौंध में बह जाए। ऐसे मामले में जब परियोजना की बुनियादी गैरवहनीयता आने लगती है तो यह कजऱ् डुबाऊ कजऱ् बन जाता है। तीसरा जब कजऱ् लेने वाला ग्राहक जो कि आमतौर कोई बड़ा पैसे वाला संस्थान होता है अपने असर और संबंधों का दवाब डाल कर कजऱ् लेता है, जिसे वापिस करने की या पूरी तरह लौटने की उसकी मंशा ही नहीं होती। एक प्रकार से यह धोखाधड़ी का ही मामला होता है। जाहिर है ऐसी धोखाधड़ी का शिकार अधिकतर सरकारी बैंक ही होते है क्योंकि राजनीति का सबसे ज्य़ादा दवाब उन्हीं पर पड़ता है। लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि ऐसे बैंकों का निजीकरण किया जाए, बल्कि इसका अर्थ यह है कि ऐसे बैंकों के कामकाज पर जनतंत्रिक नियंत्रण रखा जाए ताकि इन्हें सरकार हस्तक्षेप से मुक्त रखा जा सके।

जिस समय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था उस समय उसका एक लक्ष्य यह भी था कि कृषि क्षेत्र को संस्थागत कजऱ् मुहैया कराया जाए। बैंक राष्ट्रीयकरण की शुरूआत से ही पूंजीवादी व्यवस्था और इजारेदारी के समर्थकों ने यह छवि बनाने की कोशिश की कि एनपीए का मुख्य कारण किसानों का कजऱ् न चुका पाना है। लेकिन इन आरोप का खोखलापन उन सूचियों से जाहिर हो जाता है जो समय-समय पर बैंकों के कर्मचारी जारी करते रहे हैं। इन सूचियों के अनुसार कार्पोरेट ग्राहक सबसे बड़े कजऱ्दार हैं। इस कारण किसानों की कजऱ् लौटने की विफलता बैंकिग व्यवस्था के लिए कोई गंभीर मुद्दा नहीं है। एनपीए कितना है इसका अनुमान लगाना बेहद कठिन है, पर एक आकलन के अनुसार इस समय यह आठ लाख करोड़

रु पए के आसपास होना चाहिए। इसमें बड़े घरानों का हिस्सा 75 फीसद से भी ज्य़ादा हो सकता है। इस तरह, इन अनुमानों से यह नतीजा निकलता है कि बंैकों के कजऱ्ों का 56.25 फीसद बड़े घरानों के पास है। सरकार के मौजूदा सारे कदम बड़े घरानों के हक में जा रहे हैं।

यह सरकार कालेधन और दरबारी पूंजीवाद के खिलाफ होने का दम भरती है लेकिन ऐसा है नहीं। यदि यह वास्तव में ऐसी होती तो सबसे पहले उन लोगों की सूची जारी करती तो ‘डिफाल्टरÓ हैं। दूसरे, बड़े ‘डिफाल्टरोंÓ की इस बात की जांच होती कि क्या ये लोग असल में डिफाल्टर है या जानबूझ कर पैसा लौटाना नहीं चाहते। यदि इन ‘डिफाल्टरोंÓ पर जांच हो तो बैंकों की जान बच सकती है।

दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने में क्यों है हिचक

दिल्ली में अफसरशाही और जनता के प्रतिनिधि उन्मत्त हैं। यह उन्माद और एकजुटता तब न जाने क्यों नहीं दिखाई दी जब राजेंद्र कुमार गिरफ्तार किए गए और दूसरे अफसर खामोश रहे। यह एकजुटता थोड़ा और पहले हुई उस घटना पर भी नहीं दिखी जब दिल्ली में ही एक आईएएस और उसके परिवार को खुदकुशी करनी पड़ी। सभी जानते हैं आईएएस लॉबी का शगल सरकार बनाने और सरकार गिराने में खुद को चाणक्य की भूमिका में रखने का रहा है। खुद प्रधानमंत्री भी अक्सर इस लॉबी की तारीफ करते नहीं अघाते हैं क्योंकि वे दुनियादारी जानते समझते हैं।

दिल्ली के अफसरशाहों में मुख्य सचिव के साथ दिख रही एकजुटता कितनी टिकाऊ होगी वह तो समय बताएगा। लेकिन केंद्र सरकार के वरिष्ठ गृह राज्य मंत्री से ज़रूर उनकी तत्काल बातचीत हुई। भारतीय जनता पार्टी इस विवाद को संवैधानिक, कानून और व्यवस्था का संकट बता रही है। लेकिन चाहते हुए भी वह दिल्ली राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने से हिचक रही है। पंजाब नेशनल बैंक, रोटोमैक पेन और इंडियन ओवरसीज बैंक में घोटाले की खबरों को थोड़ा दबाने के लिए दिल्ली में आप सरकार और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर एक दबाव राज्य की अफसरशाही के जरिए ज़रूर छेडा़ गया लेकिन अपने खेल में ही भाजपा फंस गई सी लगती है।

दिल्ली में रहने वाले किसी भी साधारण आदमी की तरह दिल्ली पुलिस (जो काम तो दिल्ली में करती है लेकिन होती हैकेंद्र सरकार के अधीन) ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर की तलाशी ली। वहां लगे कैमरों को खंगाला। आरोप भी लगाया कि कैमरों के समय को पीछे कर दिया गया। मिले सबूतों को फारेंसिंक टीम ने अपने कब्जे में ले लिया। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा,’ एक निजी कंपनी की तरह अरविंद केजरीवाल शासन चला रहे हैं। वे आधी रात को मुख्य सचिव को बैठक में बुलाते हैं। वह भी अपने प्रचार के लिए और फिर जो कुछ हुआ वह शर्मनाक रहा।Ó उन्होंने (केजरीवाल, ने अपने अपरिपक्व नेतृत्व का प्रदर्शन) कियाÓ बताते हैं केंद्रीय भाजपा के प्रभारी श्याम जाजू।

केंद्र में तीन चौथाई बहुमत पाकर सत्ता चला रही भाजपा कानून और व्यववस्था खराब होने के बावजूद अपनी ही नाक के नीचे क्यों देश की राजधानी दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने से परहेज कर रही है। इस पर भाजपा के नेता बहुत साफ संकेत नहीं दे पा रहे हैं। वे आप के खिलाफ अब घर-घर जाकर आप की अलोकतांत्रिक कार्रवाई के खिलाफ आंदोलन छेडऩा चाहते हैं जिससे जनता की सहानुभूति भाजपा को मिले और वे कह सकें कि राज्य में आखिर राष्ट्रपति शासन क्यों नही लगाया गया।

भाजपा के एक नेता ने कहा कि दो-तीन साल पहले अरविंद केजरीवाल उम्मीद की लौ बन कर दिल्ली राज्य में उभरे थे। लेकिन अब जनता में उनके प्रति वह भावना लुप्त हो गई हैं। क्योंकि आप के 14 विधायक विभिन्न आरोपों में गिरफ्तार हैं। इन पर छेड़छाड से लेकर धोखाधड़ी तक के आरोप हैं। दिल्ली में कानून और व्यवस्था बहुत खराब है। यह राजधानी दिल्ली के लिए उचित स्थिति नहीं है। पात्रा का कहना है कि ‘अराजक सोच दिल्ली के लिए उपयोगी नहीं है।

उधर दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने भी कहा, ‘हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। यह उन्होंने तब कहा जब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उनसे मिलने गए थे। आप के कार्यकर्ता का कहना है कि दिल्ली संबंधी ज़्यादातर ज़रूरी फाइलें उपराज्यपाल के दफ्तर में ही जाकर रूक जाती है। दिल्ली का विकास कैसे हो। जब आप की सरकार दिल्ली में आती है तो उपराज्यपाल जो भी हो यही करते हैं। जनता यह जानती समझती है। राज्य की तमाम एमसीडी पर भाजपा जीती है। राजधानी में साफ-सफाई और कर्मचारियों का वेतन देने की जिम्मेदारी उसकी है। जनता आखिर यह भी तो जानती- समझती है।