नीतीश को भारी पड़ सकता है मुजफ्फरपुर कांड

मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की जांच सीबीआई ने शुरू कर दी है। उसकी यह जांच पटना हाईकोर्ट की निगरानी में हो रही है। विधिवत रूप से जांच का काम 11 अगस्त से शुरू हो गया है लेकिन इसकी तैयारी उसी दिन से कर ली गई थी जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कांड की जांच सीबीआई से कराने का ऐलान किया था। राज्य पुलिस की ओर से कांड के उन सभी अभियुक्तों को पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया है जिनका एफआईआर में नाम था । राज्य पुलिस अब सीबीआई की मदद करेगी लेकिन कार्रवाई सीबीआई की ओर से होगी। जांच कार्य कब तक चलेगा यह निश्चित नहीं है।

मिली जानकारी के मुताबिक सीबीआई के डीआईजी अभय सिंह की अगुवाई में उनकी टीम 11 अगस्त को सुबह ही बालिका गृह पहुंच गई और उसने वहां पूरी तरह से छानबीन की। उसने गृह की तमाम फाइलें और कागजात अपने कब्जे में कर लिए। राज्य पुलिस ने गृह और उसके कमरों को सील कर रखा था और पहरेदारी का पुख्ता इंतजाम किया था। सीबीआई ने सील को तुडवाया और पूरी छानबीन की। मौके पर दिल्ली से सेंट्रल फारेंसिक साइंस लेबोरटरी के अधिकारी भी पहुंचे थे। उसकी अलग से जांच-पड़ताल शुरू हुई। बालिका गृह से ही सटा कांड के मुख्य अभियुक्त ब्रजेश ठाकुर का भव्य मकान है और उसी में उनके अखबार का कार्यालय और छापाखाना भी है। सीबीआई ने उनके पुत्र राहुल आनंद से भी पूछताछ की। सीबीआई ने अखबार, उसके कार्यालय व छापाखाना का मुआयना किया। मेजिस्ट्रेट शीला रानी गुप्त की मौजूदगी में सीबीआई ने अपनी कार्रवाई शुरू की। मिली जानकारी के अनुसार बृजेश ठाकुर को बिना किसी खास बीमारी के अस्पताल में भर्ती करा दिया गया और किन्हीं अस्पष्ट कारणों के उसे ‘हाई स्क्योरिटी वार्डÓ में भेज दिया गया।

मिल जानकारी के मुताबिक सीबीआई गिरफ्तार अभियुक्तों से पूछताछ पूरी होने के बाद बालिकाओं के यौन शोषण के मामले से जुड़े और लोगों की गिरफ्तारी की जाएगी। गृह की पदाधिकारी फरार थी लेकिन उनकी गिरफ्तारी हो चुकी है। उनसे पूछताछ से अहम जानकारी मिल सकती है। कांड के प्रकाश में आने के बाद राज्य पुलिस और समाज कल्याण विभाग की ओर से की गई कार्रवाई के तहत मुजफ्फरपुर बालिका गृह की बालिकाओं को पटना समेत दो जगहों के बालिका गृहों में स्थानांतरण कर दिया गया है। सीबीआई उनसे तमाम जानकारी लेगी। मुजफ्फरपुर आने से पहले सीबीआई के अधिकारी पटना में समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों से मुलाकात कर चुके हैं।

पटना हाईकोर्ट की निगरानी में सीबीआई की जांच से कांड को लेकर आंदोलन कर रहे विभिन्न संगठनों, खासकर मुजफ्फरपुर के महिला संगठनों को यह उम्मीद जगी है कि इन बालिकाओं के साथ अन्याय करने वाले वाले सभी धरे जा सकेंगे और उन्हें सज़ा मिल कर रहेगी। जब तक हाई कोर्ट की निगरानी में सीबीआई की जांच का फैसला नहीं हुआ था, तब तक महिला संगठनों को सीबीआई पर ज़्यादा भरोसा नहीं था लेकिन अब भरोसा जगा है। उनके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की वजह से सांसत में हैं। उनकी साख पर बट्टा लगा ही है, आधी आबादी यानी महिलाओं में उनकी विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लग गया है। उनके कामकाज की पारदर्शिता पर उंगली उठने लगी है। उनके खिलाफ आंदोलन का सिलसिला भी मंद पड़ता नहीं दिखता। उनके इस्तीफे की मांग भी होने लगी है। वे अपने अनुकूल स्थिति बनाने की हर कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उसका कोई असर नजर नहीं आ रहा है। हाल यह है कि उनके उठाए गए कदमों का श्रेय भी दूसरों को चला गया। कुछ पत्रकार भी कम परेशान नहीं है। उन पर भी उंगली उठने लगी है।

मुजफ्फरपुर बालिका कांड के मद्देनजर नीतीश कुमार के खिलाफ महिलाओं का विरोध, जुलूस और सभा से यह छिपा नहीं रह गया कि वे उनसे घोर नाराज हुई हैं। नीतीश कुमार के लिए उनकी नाराजगी को दूर करना आसान भी नहीं है। दूरदर्शी माने जाने वाले नीतीश कुमार ने सूुबे में सत्ता में आने के बाद से ही आधी आबादी को अपने पक्ष में करने की रणनीति अख्तियार की। वे यह मान कर चले कि आधी आवादी के उनके पक्ष में होने से उनकी स्थिति मजबूत रहेगी और चुनाव जैसे मौके पर उनका पलड़ा भी भारी रहेगा। महिलाओं के सशक्तिकरण के दौर मेें उन्हें जो श्रेय मिलेगा, वह अलग राजनीतिक फायदा होगा। आधी आबादी को अपने पक्ष में करने के लिए उन्होंने सबसे पहले पंचायतों और निकाओं के चुनाव में पचास फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया। एकल पदों पर भी आरक्षण का प्रावधान किया। केवल बिहार में ही नहीं, देश में ऐसा कदम पहली बार उठाया गया था। नीतीश कुमार को आधी आबादी के बीच लोकप्रिय होने में बड़ी कामयाबी मिली। चुनावों में इसका असर भी दिखा। नीतीश कुमार ने आधी आबादी का समर्थन पाने व उन्हें अपने पक्ष में करने के लिए सूबे में पूर्ण शराबबंदी करने का कदम उठाया। इससे भी उन्हें महिलाओं का मन जीतने में कामयाबी मिली। शिक्षा के क्षेत्र में छात्राओं को साइकिल, मुफ्त पढाई, आर्थिक मदद जैसे कई योजनाओं से ही नहीं, रोजगार मुहैया कराने की विभिन्न योजनाओं से भी आधी आबादी उनकी पक्षधर हुई। नीतीश कुमार आधी आबादी का समर्थन प्राप्त करने के मामले में निश्चित थे। लेकिन अब बदली स्थिति से वे निश्चिंत नहीं रह सकते। आधी आबादी सुरक्षित है, नीतीश कुमार उसे कैसे भरोसा दिला सकेंगे, इस बारे में अनिश्चयता ही है।

नीतीश कुमार की सरकार को कांड का पता काफी पहले चल गया था लेकिन कार्रवाई करने में देर की गई। जब कांड का खुलासा हुआ तो भी उसको गंभीरता से नहीं लिया गया। नीतीश कुमार ने कांड की जांच सीबीआई से कराने का ऐलान तो किया लेकिन इसका श्रेय भी उनको नहीं है। संसद में विरोधी पक्ष की ओर से मामला उठाने व सीबीआई से जांच कराने की मांग उठाने पर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने ऐसा बयान दिया जिससे विरोधी संतुष्ट हो गए और नीतीश कुमार पर दबाव बना। भाजपा के दबाव की वजह से नीतीश सरकार को कांड की जांच सीबीआई से कराने का फैसला करना पड़ा। आखिर नीतीश कुमार के सामने विषम परिस्थिति क्यों पैदा हुई। दबाव की राजनीति में भाजपा कैसे आगे हो गई। नीतीश कुमार क्यों नहीं खुद ब खुद शुरू में ही कांड की जांच सीबीआई से कराने का ऐलान नहीं कर पाए। समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा की इस्तीफे की मांग भाजपा के नेताओं ने की। वर्मा जद (एकी) के नेता है। जद (एकी) उन्हें खुद ही हटाती तो उसके कदम को सराहा जाता। इस मामले में भी भाजपा का दबाव था।

मुजफ्फरपुर बालिका गृह से जुड़े जिम्मेदार 13 अधिकारियों का तबादला हुआ। राज्य सरकार ने अपने स्तर पर कई कदम उठाए। नीतीश कुमार का यह भी फैसला है कि राज्य के सभी बालिका, बाल और महिला गृहों को अब खुद राज्य सरकार चलाएगी। गृहों को सरकारी भवन में लाया जाएगा। कुल मिला कर यह कि सरकार यह जताना चाहती है कि वह ऐसा इंतजाम कर रही है जिससे मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड जैसा कांड नहीं हो पाए। नीतीश कुमार इधर जहां जा रहे हैं यह जरूर जता रहे हैं कि अपराधी किसी भी सूरत में बच नहीं पाएंगे। उन्होंने माना भी है कि इस कांड से शर्मीदंगी हो रही है।

नीतीश कुमार के निर्देश पर सूचना एवं जन संपर्क विभाग अधिकारियों की बैठक हुई और उसमें फैसला यह लिया गया कि जिन पत्रकारों को सरकारी मान्यता कार्ड मुहैया कराया गया है, उनकी फिर से जांच होगी। तकरीबन 200 पत्रकारों के कार्ड को रद्द किया जाएगा। कार्ड किन पत्रकारों को दिया जाए, किन्हें नहीं, इस बारे में नए नियम-कायदे बनेंगे। कुल मिला कर यह कि सरकार पाक साफ पत्रकारों को ही कार्ड मुहैया कराएंगी। ऐसी सख्ती बरतेगी जिससे ब्रजेश पांडे जैसा पत्रकार फायदा नहीं उठा पाए। सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार पक्षपात की वजह से सारे वह काम हो जाते हैं, जो गैरकानूनी और अनैतिक होते हैं। सरकारी अधिकारियों पर नियंत्रण के लिए क्या कदम हो, इस पर अभी नजर ही नहीं है।