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‘सत्यमं शिवं सुंदरम के बहाने झलकी भारतीयता

हैदराबाद में आयोजित साहित्यिक समारोह ‘हिंदी साहित्य एक विहंगम दृष्टिÓ के बहाने एक ही राज्य से अलग दूसरे राज्य की व्यथा, दो बिछड़े हुए दिलों को जोड़ कर भारतीय एकता की एक मिसाल के तौर पर दिखी। प्रस्तुत किया तेलंगाना की ज़मीन से जुड़े रहे आन्ध्र में पदेन वरिष्ठ पुलिस महानिरीक्षक कुमार विश्वजीत उर्फ सपन ने। उन्होंने ‘फेसÓ बुक पर ‘सत्यमं शिवमं सुन्दरमÓ मंच की स्थापना की है और अब हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में पर देश भर के विभिन्न साहित्यकारों के आए विचारों को संग्रहीत करके, पुस्तक का रूप दे दिया है।

जिसका विमोचन हैदराबाद के गैं्रड होटल के सभागार में पिछले दिनों कवि गिरेन्द्र सिंह मदारिया ने किया। इस अवसर पर फेसबुक के रचनाकार साथियों में हरीओम श्रीवास्तव, विनोद सिंह नामदेव, श्रीकृष्ण बाबू, गुरुचरण मेहता, आदित्य कुमार तायल,ज्योत्सना सक्सेना, विश्वजीत सागर शर्मा, ब्रजनाथ श्रीवास्तव आदि थे।

विश्वजीत ‘सपनÓ ने आयोजन को संचालित भी किया। इन अवसर पर मंच से अपना संदेश देते हुए कवियित्री अहिल्या मिश्र ने खुद को विश्वजीत के साथ प्रांतीय संबंधों को जोड़ते बताया कि ‘मैं भी बिहारी हूं।Ó साहित्य संदर्भों को जताते हुए विश्वजीत सपन ने साफ कहा था कि मेरी दृष्टि में हर रचनाकार जब रचना करता है तो वह उसे बांटना नहीं चाहता। दु:ख पाकर दु:ख की आंच को समझना और उस आंच में तपते हृदयों के साथ ‘समवेदनाÓ स्थापित करना अलग बात है।

आन्ध्र से तेलंगाना का बंटवारा जब हुआ तो लगभग लाटरी से अधिकारियों का भी राज्यों में बंटवारा कर दिया गया। मंच पर जहां विश्वजीत सपन थे वहीं तेलंगाना एसआईटी की आईजी अभिलाषा थीं जो अपने नन्हे पुत्र के साथ श्रोताओं में थीं और पुत्र पिता से मिलने को आतुर हो रहा था। क्योंकि महीने में एक बार पिता के साथ बिताए क्षणों का आज वह साहित्य के बहाने आन्ध्र और तेलंगाना के साझा मंच पर साझा कर रहा था। इस दारूण क्षण को एक श्रोता अर्जुन सिंह ने भी महसूस किया। उन्होंने कहा कि बे्रेख्त के अनुसार ऐन फैसले के मौके पर ऐसे दृश्य कारुणिक बहुत हैं जो उदास भी करते हैं फिर भी यह यर्थात पूर्ण रचना और ममता का संगम है।

ब्रजनाथ श्रीवास्तव ने कहा कि जिन्दगी का यही यथार्थ है जो हमें एक डोर से खींचता है। यही भारतीय संवेदना है। हिंदी के महारथी कवि-आलोचक राम विलास शर्मा और आलोचक-कवि नामवर सिंह ने साहित्य में हावी हो रही अस्तित्ववादी चेतना के बरक्स कबीर के जरिए भारतीय परंपरा स्थापित की थी। जिसे काफी कुछ बदलते हुए आज संस्कृत के विद्वान और बरसों हाशिए पर बैठे रहे हिंदी के वरिष्ठ रचनाकार अब ऐतिहासिक साहित्य वारिधि बनाने में जुट गए हैं।

संस्कृत साहित्य के साहित्य मर्मज्ञों ने जहां उद्देश्य को कभी भावों की प्रस्तुति बताया तो कभी कला की अनिवार्यता। विश्वजीत सपन ने कहा, साहित्य का उद्देश्य कभी आदर्शों की स्थापना का रहा तो कभी यथार्थ का। विश्वजीत के इस बयान पर अच्छा-खासा विवाद भी छिड़ा। यह तक कहा गया कि ‘शापÓ शब्द का उदय संस्कृत साहित्य की ही देन है। छंद के बाहर की कविता यानी मुक्त छंद मुक्तिबोध की सौ साल पुरानी विशेषता है। आज के हालातों में बढ़ती कट्टरता तोड़ पाने में यही सक्षम भी है।

मंच पर जहां तेलुगु-हिंदी के रचनाकार, आन्ध्र और तेलंगाना में और देश के विभिन्न साहित्यकार पुस्तक के बहाने आपस में मिले तो उसे देख कर लगा ‘राजनीति जहां हमें तोड़ती है वहीं साहित्य जोड़ता है, बकौल विश्वजीत, इस परिदृश्य में मैं अकेला नहीं हूं, आप सब साथ हैं।

हरियाणा की बेटी ने रचा निशानेबाजी मे इतिहास

मुक्केबाजी के रिंक से निशानेबाजी की रेंज पर पहुंची 16 साल की मन्नू भाकेर ने वह कर दिखाया जिसकी कल्पना भी शायद किसी ने नहीं की होगी। इस युवा निशानेबाज ने मिश्रित टीम मुकाबले में दो स्वर्ण पदक जीत लिए। उसने यह कारनामा आईएसएसएफ विश्व कप मुकाबलों में कर दिखाया जो मैक्सिको में खेले गए।

ओमप्रकाश मित्रावल के साथ जोड़ी बना कर इस युवा निशानेबाज ने 10 मीटर एयर पिस्टल टीम खिताब जीत लिया इससे पूर्व वह 10 मीटर एयर पिस्टल के व्यक्तिगत मुकाबलों में स्वर्ण पदक जीत चुकी थी। सीनियर मुकाबलों मेें यह उसकी पहली प्रतियोगिता थी। हालांकि राष्ट्रीय रायफल एसोसिएशन आफ इंडिया (एनआरएआई) ने इसकी पुष्टि नहीं की है पर मन्नू शायद भारत के लिए निशानेबाजी में स्वर्णपदक जीतने वाली शायद सबसे कम उम्र की खिलाड़ी है।

भारत-2 के नाम से खेल रही दीपक और मेहली घोष की टीम ने 10 मीटर एयर रायफल मुकाबलों की पांच देशों की स्पर्धा में 435.1 अंक हासिल कर मिश्रित मुकाबलों में कांस्य पदक हासिल किया। इस स्पर्धा का रजत पदक रोमानिया के एलिन मोलडोवीनू और लाओरा जियोरगेटा कोमा को मिला। उन्होंने 498.4 अंक हासिल किए। इस स्पर्धा का स्वर्णपदक चीन के हुआ होंग और चेन केंडु ने 502.0 अंको का विश्व रिकार्ड बनाते हुए जीता।

पर प्रतियोगिता में धमाका तो हरियाणा के झज्जर की मन्नू भाकेर ने दो दिनों में दो स्वर्ण पदक जीत कर कर डाला। एक लड़की जिसने मात्र दो साल पहले निशानेबाजी को अपनाया, के लिए विश्व के शिखर पर पहुंचना करिश्मा नहीं तो क्या है। मन्नू भाकेर का निशानेबाजी में आना मात्र संयोग ही था। पदक जीतना और रिकार्ड बनाने के बारे में पूछे गए सवालों पर वह सादगी से कहती है, ‘बस यह हो जाता है। मैं तो इसके बारे में सोचती तक नहीं। कई बार तो मुझे पता भी नहीं होता कि मौजूदा रिकार्ड क्या है? अपने इस प्रदर्शन के लिए वह अपने प्रशिक्षकों की आभारी है जिन्होंने उसकी तकनीक सुधारने के लिए घंटों खर्च किए हैं।Ó

पिछले साल दिसंबर में उसने 61वीं राष्ट्रीय शूटिंग चैंपियनशिप में, जो केरल के तिरूवअनंतपुरम में हुई थी उसने अपने से कहीं अधिक अनुभवी और रिकार्डधारी हिना संधू के पछाड़ और उसका रिकार्ड तोड़ते हुए स्वर्ण पदक जीता था। इस टूर्नामेंट में उसने नौ स्वर्णपदकों सहित कुल 15 पदक जीते थे।

भाकेर की निशानेबाजी से पहली मुलाकात उस समय हुई जब उसके पिता उसे शूटिग रेंज पर ले गए और वहां उसे एक प्रयास करने को कहा। वहां उसने कुछ ‘शॉटÓ चलाए जो ‘टारगेटÓ के मध्य में लगे। इसके बाद तो इतिहास बन गया। आज वह यूनिवर्सल सीनियर सकेंडरी स्कूल गौरेया की छात्रा है। यह गांव हरियाणा के झज्जर जि़ले मेें पड़ता है। वह रोज़ अपने घर से 22 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग सेंटर जाती है और हर दिन पांच घंटे अभ्यास करती है। निशानेबाजी में आने से पहले वह कई खेलों में नाम कमा चुकी है। उसने स्केटिंग के राज्य स्तरीय मुकाबलों में चैंपियनशिप जीती। उसने एथलेटिक्स में भी पदक जीते और कराटे और तांगला (मणिपुरी मार्शल आर्टस) में भी राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते। निशानेबाजी में आने के बाद वह तीनों वर्गों में राष्ट्रीय चैंपियन बनी।

महाभारत, चुनाव, कांग्रेस और राहुल

congress sessionसम्भवता राहुल गाँधी का यह अब तक का सबसे प्रभावशाली भाषण है। आत्मविश्वास से भरा, जिसमें महाभारत थी, हिन्दू धर्म को परिभाषित करने का राजनीतिक रिस्क था, कांग्रेस के सत्ता में आने पर उनकी नीतियों की हल्की सी झलक थी, पार्टी में पैराशूट की राजनीति के खिलाफ और अनुशासन रखने की छिपी चेतावनी थी, प्रतिद्वंदी भाजपा को अपने डरपोक न होने का सन्देश था और कांग्रेस सदस्यों को बताने की कोशिश थी कि २०१९ का चुनाव कांग्रेस के लिए ऐसी ऊंचाई नहीं, जिसे वह छू न सके। कांग्रेस महाधिवेशन के अंतिम दिन अपने भाषण के जरिये एक ”नया राहुल” और ”नई कांग्रेस” नए कांग्रेस अध्यक्ष ने सामने राखी है। तय है कांग्रेस मैंने वाले दिनों में बड़े परिवर्तन होने वाले हैं।
भाजपा की तरफ से राहुल के भाषण के घंटे भर बाद ही भाजपा की वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री  निर्मला सीतारमण ने पार्टी की प्रतिक्रिया दी और इमरजेंसी और सिख दंगों के जरिये राहुल के भाषण के प्रभाव को धोने की कोशिश की, लेकिन सच यह है कि राहुल अपने भाषण से कम से आम कांग्रेस कार्यकर्ता और एक आम हिन्दुस्तानी को अपना सन्देश देने में सफल रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस में आम कार्यकर्ता के महत्व को उजागर किया और साफ़ सन्देश दिया है कि पार्टी में अब ससम्मान बुजुर्गों की जगह युवा आने वाले हैं।
उन्होंने कांग्रेस को ”पांडव” और ”भाजपा” को कौरव बताकर पार्टी की गांधीवादी छवि उजागर करने की कोशिश की। दो शिव मंदिरों में अपने जाने और पंडितों की बातों के जरिये हिन्दू धर्म में सहिषुणता को उजागर करने की कोशिश की। राहुल का यह राजनीतिक रिस्क था लेकिन उन्होंने लिया। दरअसल उन्होंने हिन्दू धर्म में सहिषुणता और असहिषुणता के बीच लकीर खींचने की कोशिश की। राहुल बताना चाहते हैं कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस एग्रेशन, एरोगेंस की राजनीति नहीं करेगी। प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर राहुल ने सीधा और कड़ा हमला किया। यह बताने की कोशिश कि वे कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए उनसे सीधी टक्कर को तैयार हैं।
राहुल ने बार-बार भाजपा को संघ से जोड़ा। यह सन्देश दिया कि देश में एक ख़ास विचारधारा सत्ता पर काबिज है। यह विचारधारा न्यायपालिका से लेकर हर संबैधानिक संगठन पर काबिज हो रही है और इससे आने वाले दिनों में एक बड़ा खतरा खड़ा होने वाला है। युवाओं, किसानों को अपने भाषण में फोकस किया और यही भी कहा कि कांग्रेस का स्टेज पार्टी ही नहीं पार्टी से बाहर के युवाओं के लिए भी है, वे आएं।
राहुल गांधी ने भाजपा, आरएसएस और पीएम नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला बोला। गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कहा कि 2019 का चुनाव उन्हें मिलजुलकर लड़ना है और इसके लिए वह नहीं चाहते कि पार्टी के अंदर कोई मनमुटाव हो। कहा कि कौरवों की तरह भाजपा और आरएसएस सत्ता के लिए लड़ रही है और कांग्रेस पांडवों की तरह सत्य के लिए लड़ रही है। कांग्रेस पार्टी पांडवों की तरह है। कहा कि जब यह जरूरी होता है कि किसी मुद्दे पर प्रधानमंत्री बोलें तो वह चुप हो जाते हैं। हम कांग्रेसी जनता के सेवक हैं। बेरोजगारी है, किसान मर रहे हैं और पीएम हमें इंडिया गेट पर योग करने को कहते हैं।
राहुल ने कहा कि भाजपा एक संगठन (आरएसएस) की आवाज है जबकि कांग्रेस देश की आवाज है।  राहुल ने कहा कि महात्मा गांधी ने 15 साल जेल में बिताए और देश के लिए अपनी जान दे दी। भारत को यह नहीं भूलना चाहिए कि जब गांधी जेल में फर्श पर सो रहे थे तब सावरकर अंग्रेजों को खत लिखकर दया की भीख मांग रहे थे।
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि हम दुनिया की सबसे तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था थे लेकिन आज युवा बेरोजगार हैं। नोटबांडी की  निंदा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने (मोदी) नोटबंदी लागू कर दी।   दुनिया ने कहा कि यह एक बड़ी गलती है। उन्होंने कभी अपनी गलती नहीं मानी। कांग्रेस होती तो मान लेती कि हां ये हमारी गलती थी और उसे ठीक करने के लिए काम करती। गलती इंसान से ही होती है लेकिन मोदी को लगता है कि वह भगवान के अवतार हैं उनसे गलती नहीं हो सकती है।
राहुल ने कांग्रेस में दो दीवारें गिराने की प्रतिज्ञा ली। कहा कांग्रेस पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच की दीवार तब नजर आती है जब कड़ी मेहनत करने वाले कार्यकर्ताओं को यह बोलकर टिकट देने से इनकार कर दिया जाता है कि उनके पास पार्टी टिकट के लिए पैसे नहीं हैं और उसकी जगह किसी और को टिकट दे दिया जाता है। यहां बैठे कई लोगों को मेरी यह बात बुरी लग सकती है लेकिन हमें यह दीवारें गिरानी हैं।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर सीधा हमला किया। कहा – वह (भाजपा) हत्या के आरोपी एक नेता को अपने अध्यक्ष के तौर पर स्वीकार कर सकती है लेकिन कांग्रेस पार्टी कभी स्वीकार नहीं करेगी क्योंकि जनता को पता है कि कांग्रेस का स्तर अच्छा है।
राहुल से पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने केंद्र की मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए देश की इकॉनमी को बर्बाद करने का आरोप लगाया। मनमोहन ने कहा कि कश्मीर के हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं। यही नहीं सीमा पार आतंकवाद से निपटने में भी लचर रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए मनमोहन ने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर में परिस्थितियां बिगड़ती जा रही हैं। सीमा पार आतंकवाद भी बढ़ा है और आंतरिक आतंकवाद में भी इजाफा हुआ है। यह हम सभी नागरिकों के लिए चिंता की बात है। मोदी सरकार इन समस्याओं से निपटने का कोई समाधान नहीं तलाश पाई।’ जम्मू-कश्मीर से संबंधित पक्षों से संवाद की वकालत करते हुए पूर्व पीएम ने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। लेकिन हमें वहां की कुछ समस्याओं को भी समझना होगा और उनसे गंभीरता के साथ निपटना होगा। विदेश नीति को लेकर भी मोदी सरकार हमलवार मनमोहन सिंह ने कहा, ‘पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, चीन या नेपाल के साथ हमारी समस्याएं हो सकती हैं, लेकिन इन्हें बातचीत से ही हल किया जा सकता है। पाकिस्तान की बात करें तो हमें मानना होगा कि वह हमारा पड़ोसी देश है। इसके साथ ही हमें उसे यह समझाना होगा कि आतंकवाद का रास्ता उसके लिए ठीक नहीं है।’
कांग्रेस के प्लेनरी सेशन में पीसीसी डेलिगेट और एआईसीसी के सदस्य मौजूदगी में कार्यसमिति के सदस्यों के चुनने के अधिकार पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को दिए जाने वाले प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास कर दिया गया है। अब जल्द ही कांग्रेस कार्यसमिति  के सदस्यों की नाम पर मुहर लगा सकते हैं।  इसका मतलब साफ है कि राहुल अब अपनी टीम के सदस्यों के नाम खुद तय करेंगे। कांग्रेस कार्यसमिति पार्टी में अहम फैसले लेने वाली शीर्ष संस्था है। कांग्रेस की नई कार्यसमिति के सदस्यों के नाम चयन करने का अधिकार राहुल को सर्वसम्मति से सौंप दिया गया है। कार्यसमिति में कांग्रेस अध्यक्ष समेत कुल 25 सदस्य होते हैं जिनमें १२ मनोनीत होते हैं।

कांग्रेस महाधिवेशन: २०१९ पर नजर

२०१९ के चुनाव से पहले दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में पार्टी के महाधिवेशन में शनिवार को कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने कैडर में नई जान फूंकने का काम किया। पार्टी ने दुबारा बैलट पेपर से चुनाव करवाने की मांग कर देश को यह सन्देश देने की कोशिश की कि ईवीएम में गड़बड़ हो रही है और भाजपा इसके पीछे है। साथ ही २०१९ के लोक सभा चुनाव के लिए विपक्ष का बड़ा गठजोड़ बनाने की संभावनाओं का संकेत भी दिया।
इस अधिवेशन से यह भी संकेत मिला कि सोनिया गांधी विपक्ष को एकजुट करने की सबसे बड़ी शक्ति हैं और सम्भवता वही इस रोल को निभाएंगी भले अपने भाषण में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के नाते पूरी तरजीह देकर यही सन्देश देने की कोशिश कि राहुल ही अब पार्टी के सत्ता केंद्र हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पार्टी लगातार तरजीह दे रही है जिससे यह संकेत भी मिलते हैं कि यदि २०१९ में ज़रुरत पड़ी और सेहत ने इजाजत दी तो कांग्रेस एक रणनीति के तहत मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के तौर पर आगे कर सकती है। सोनिया ने अपने भाषण में जिस तरह मोदी सरकार पर हमला किया, विपक्ष को एकजुट होने का इशारों ही इशारों में संकेत किया, अपने शब्दों में पार्टी के अभिभावक होने की गंभीरता दिखाई, उससे जाहिर हो गया कि वे राजनीति में कमसे काम २०१९ के चुनाव तक तो सक्रिय रहेंगी ही।
राहुल गांधी की अध्यक्षता में पार्टी का यह पहला अधिवेशन है और इसमें २० हजार से ज्यादा प्रतिनिधि शामिल हैं। महाधिवेशन इस लिहाज से भी ख़ास है कि यह आठ साल बाद हो रहा है। राहुल गांधी के भाषण के बाद कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी भाषण दिया। भाषण को पूरा करने के बाद सोनिया गांधी ने राहुल गांधी को गले लगाया। इस दौरान वहां मौजूद सभी कांग्रेसियों ने तालियां बजाईं।
राहुल के बाद दोपहर सोनिया गांधी ने अपने भाषण में मोदी सरकार पर हमला किया। सोनिया ने कहा – ”आज मैं निराश और दुख महसूस करती हूं कि मोदी सरकार यूपीए की कल्याणकारी योजनाओं को कमजोर बना रही है। आतंकवाद से लड़ने, समग्र विकास सुनिश्चित करने का प्रधानमंत्री मोदी का वादा सब ड्रामेबाजी था, सत्ता हथियाने की चाल था। सबका साथ, सबका विकास’ और ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ इस सरकार के किए वादे कुछ नहीं बल्कि ‘ड्रामा’ थे। वोट पाने के लिए उनकी रणनीति थी।”
अपने भाषण में सोनिया ने राहुल के नेतृत्व को एस्टब्लिश करने की कोशिश की। कहा – ”सबसे पहले, मैं राहुल गांधी को बधाई देती हूं कि उन्होंने चुनौतीपूर्ण समय में पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली।
पार्टी की जीत राष्ट्र की जीत होगी, यह हम में से हर एक की जीत होगी। कांग्रेस एक राजनीतिक शब्द नहीं है, यह एक आंदोलन है। चिकमगलूर में इंदिराजी की चालीस साल पहले आश्चर्यजनक जीत ने भारतीय राजनीति को बदल दिया। एक बार फिर हमारी पार्टी को इसी तरह का प्रदर्शन करना होगा।”
उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि आप सभी जानते हैं कि मैंने सार्वजनिक क्षेत्र में किस प्रकार परिस्थितियों में प्रवेश किया था, लेकिन जब मुझे एहसास हुआ कि पार्टी कमजोर है, कांग्रेसियों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए, मैंने राजनीति में प्रवेश किया।
उन्होंने दावा किया कि कर्नाटक में कांग्रेस एक बार फिर सरकार बनाएगी। सोनिया गांधी ने कहा कि मोदी सरकार यूपीए की योजनाओं को कमजोर कर रही है। मौजूदा सरकार सभी तरीकों के जरिए कांग्रेस को नीचा दिखाने की कोशिश कर रही है लेकिन कांग्रेस न कभी झुकी है और न झुकेगी। गांधी ने कहा कि कुर्सी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झूठी नारेबाजी की है और इसका कांग्रेस पार्टी उन्हें सबक सिखाएगी। विपक्ष की आवाज को मोदी सरकार दबाने की कोशिश कर रही है लेकिन इसमें सफल नहीं हो पाएगी। ”मोदी सरकार यूपीए की योजनाओं को कमजोर कर रही है. मौजूदा सरकार सभी तरीकों के जरिए कांग्रेस को नीचा दिखाने की कोशिश कर रही है लेकिन कांग्रेस कभी न झुकी है और न झुकेगी।”
गांधी ने कहा कि सत्ता के भय और मनमानी से मुक्त भारत, पक्षपात मुक्त भारत, प्रतिशोध मुक्त भारत, अंहकार मुक्त भारत बनाने के लिए हर कुर्बानी के लिए हमें तैयार रहना होगा। ”हमारा नाता महान पार्टी से है, ऐसी पार्टी जो पूरे देश से जुड़ी है।” सोनिया ने कहा लोगों के दिलों में अब भी कांग्रेस बसी है और ऐसी पार्टी की अध्यक्षता करने पर मुझे गर्व है। कहा कि ”मैं उन राज्यों के कार्यकर्ताओं की सच्चे दिल से तारीफ करना चाहती हूँ, जहां कांग्रेस पार्टी की सरकार नहीं है।” कहा कि तमाम तरह के अत्याचारों का सामना करके भी वे डटे हुए हैं।
उनसे पहले राहुल ने कहा कि आज देश में गुस्सा फैलाया जा रहा है। देश को बांटने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने अधिवेशन में बदलाव की बात की और कहा कि भाजपा गुस्से की राजनीति करती है हम प्यार की राजनीति करते हैं। राहुल ने कहा कि हमारा काम जोड़ने का है। यह हाथ का निशान (कांग्रेस चुनाव चिन्ह) ही देश को जोड़ सकता है। देश को आगे ले जा सकता है। राहुल ने कहा कि उन्होंने क​हा कि कांग्रेस के इस निशान की शक्ति आप पार्टी प्रतिनिधियों के भीतर है। हम सबको, देश की जनता को मिलकर देश को जोड़ने का काम करना होगा। उन्होंने कहा कि महा​धिवेशन का लक्ष्य कांग्रेस और देश को आगे का रास्ता दिखाने का है। ”आज देश थका है। रास्ता ढूंढ़ने की कोशिश की जा रही है। किसानों युवाओं को रास्ता नहीं दिख रहा है। कांग्रेस देश को रास्ता दिखाने का काम करेगी।  हम बीते हुए वक्त को भुलते नहीं हैं।”
गौरतलब है कि इसी १३ मार्च को दिल्ली में सोनिया गांधी ने विपक्ष के नेताओं को अपने घर डिनर पर बुलाया था जिसमें माकपा, भाकपा, तृणमूल कांग्रेस, बसपा, सपा, जदएस, राजद सहित 20 विपक्षी दलों के नेताओं ने हिस्सा लिया था। बैठक में मौजूदा राजनीतिक हालात सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई थी। इस रात्रिभोज में राकांपा के शरद पवार, तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय, सपा के रामगोपाल यादव, बसपा के सतीशचंद्र मिश्र, राजद से मीसा भारती और तेजस्वी यादव, माकपा से मोहम्मद सलीम, भाकपा से डी राजा, द्रमुक से कनिमोझी, शरद यादव, नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला, एआईयूडीएफ, झामुमो के हेमंत सोरेन, रालोद के अजित सिंह, आईयूएमएल के कुट्टी, जेवीएम के बाबूलाल मरांडी, आरएसएपी के रामचन्द्रन, भारतीय ट्राइबल पार्टी के शरद यादव, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा जीतनराम मांझी, जदएस के कुपेन्द्र रेड्डी के अलावा केरल कांग्रेस के प्रतिनिधि ने हिस्सा लिया था जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल, एके एंटनी मौजूद थे।
सोनिया गांधी के इस रात्रिभोज को २०१९ में होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ मजबूत मोर्चा खड़ा करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। कहा जाता है कि सोनिया ने बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश पर जोर दिया।

केजरीवाल की माफी, मान का इस्तीफा: विधायक कर रहे बैठक, टूट सकती है पंजाब में पार्टी

आ बैल मुझे मार ! दिल्ली के मुख़्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का पंजाब शिरोमणि अकाली दल के नेता और पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया पर लगाए ड्रग्स धंधे में लिप्त होने के आरोपों पर माफी माँगना न सिर्फ केजरीवाल को भारी पड़ा है इससे की पार्टी में बगावत की स्थिति पैदा हो गयी है। शुक्रवार को आप के पंजाब प्रदेश अध्यक्ष भगवंत मान ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।  इस्तीफा देते हुए मान ने लिखा – ‘मैं आप पंजाब के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे रहा हूं। लेकिन ड्रग माफिया और पंजाब में सभी किस्म के भ्रष्टाचार के खिलाफ मेरी लड़ाई पंजाब के आम आदमी के रूप में जारी रहेगी।”
यही नहीं पंजाब के उपाध्यक्ष अमन अरोरा ने भी इस्तीफा दे दिया है। पंजाब के आप विधायक इस समय बैठक कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक पार्टी टूट सकती है। कुछ विधायक कांग्रेस के साथ जाना चाहते हैं।
maafinama1इस बीच आप पार्टी के बीच चल रही खींचतान के बीच पंजाब लोक इंसाफ पार्टी ने आम आदमी पार्टी से अपना गठबंधन तोड़ने का ऐलान किया है।
केजरीवाल की तरफ से ड्रग्स कारोबार के आरोपी विक्रम मजीठिया से माफी मांगने के एक दिन बाद ही आम आदमी पार्टी में बगावत शुरू हो गई । पार्टी सांसद और भगवंत मान केजरीवाल के इस फैसले के खिलाफ ‘आप’ की पंजाब ईकाई के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया तो वहीं दूसरी तरफ पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने केजरीवाल के माफी के इस ऐलान पर हैरानी जताई है। इसी मसले पर लोगों ने दिल्ली के सीएम को निशाने पर लेते हुए ट्रोल किया। गुरुवार को यह माफीनामा अदालत में भी दाखिल किया गया।
उधर कुमार विश्वास ने इसी बाबत गुरुवार को एक ट्वीट किया जिसमें लिखा – “एकता बांटने में माहिर है। खुद की जड़ काटने में माहिर है। हम क्या उस शख्स पर थूकें जो खुद, थूक कर चाटने में माहिर है।”
केजरीवाल ने १५ मार्च को ही पंजाब शिरोमणि अकाली दल के नेता और पूर्व कबीना मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया पर लगाए ड्रग्स धंधे में लिप्त होने के आरोपों पर माफी मांगी थी।  सीएम ने इस बाबत चिट्ठी लिखी और कहा, “मजीठिया के खिलाफ बीते दिनों मैंने कुछ आरोप लगाए थे। वे बयान राजनीतिक मुद्दा बनाए गए। अब मुझे पता लगा है कि वे सब आरोप बेबुनियाद हैं।”
आप के विधायक और नामी पत्रकार विधायक कंवर संधू ने कहा, “केजरीवाल की मजीठिया से मानहानि के मामले में माफी लोगों को निराश करती है। खासकर पंजाब की जनता को। अगर आप सच के साथ खड़े हैं तो मानहानि के मामले झेलना जीवन का हिस्सा है। मैं भी मानहानि का मामला झेल रहा हूं। अंत तक इससे लड़ेंगे।”
पार्टी के भीतर बवाल मचता नजर आ रहा है। शिरोमणि अकाली दल के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ लगाए ड्रग रैकेट के आरोपों को वापस लेने के मसले पर भगवंत मान ने शुक्रवार (16 मार्च) सुबह पंजाब आम आदमी पार्टी (आप) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
आप नेता और पंजाब में विपक्ष के नेता सुखपाल सिंह खैरा का इस संबंध में कहना है कि केजरीवाल के इस फैसले ने उन लोगों को निराश किया है। ”दिल्ली के सीएम की ओर से मांगी गई लिखित माफी के बाद हम हैरान हैं। समझ नहीं पा रहे कि आखिर केजरीवाल ने ऐसा क्यों किया।” सुखपाल बोले, “मैं केजरीवाल के माफी मांगने की टाइमिंग को समझ नहीं पा रहा हूं। वह भी ऐसे वक्त में जब एसटीएफ और हाईकोर्ट से कह चुके हैं कि मजीठिया के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए ठोस सबूत हैं। हम उनके इस कदम से हैरान और निराश हैं।”
केजरीवाल के माफी मांगने की कई पार्टी नेताओं और पंजाब के विधायकों ने आलोचना की है । उन्होंने कहा कि केजरीवाल ने उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी। मान ने अपने पद से इस्तीफा देने की घोषणा ट्विटर पर की। गौरतलब है कि अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के पूर्व मंत्री मजीठिया पर ड्रग के धंधे में शामिल होने का आरोप लगाया था। अब उन्होंने गुरूवार को माफी मांग ली। केजरीवाल ने माफी मांगते हुए कहा कि उन्हें यह पता चला कि उनके लगाए आरोप बेबुनियाद हैं।

कबूतरबाजी में दलेर मेहँदी को दो साल सजा, जमानत मिली

पंजाब में पटियाला के एक न्यायालय ने मशहूर गायक दलेर मेहँदी को उनके बड़े भाई शमशेर सिंह के साथ कबूतरबाजी (मानव तस्करी) के आरोप का दोषी पाया है  दोनों को दो साल की सजा सुनाई गयी है। यह मामला २००३ का है जब पंजाब के ही एक व्यक्ति के इसे लेकर मामला दर्ज दिया था। कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया है। हालाँकि कुछ ही देर में उन्हें जमानत मिल गयी। दलेर ने कई फिल्मों में गाने गाये हैं. जब यह मामला सामने आया था दलेर अपने करियर की पूरी ऊंचाई पर थे।
गौरतलब है कि दलेर और भाई शमशेर पर आरोप था कि उन्‍होंने कुछ लोगों को अपनी म्यूजिकल   टीम का हिस्‍सा बताते हुए गैरकानूनी तरीके से विदेश भेजा। आरोप था कि इस काम के लिए उन्‍होंने बड़ी रकम वसूल की थी। दलेर ने 1998 और 1999 में अमेरिका में शो किए थे। आरोप था कि अपने क्रू के 10 सदस्यों को उन्होंने अमेरिका में ही छोड़ दिया था। बताया जा रहा है कि इसके लिए उन लोगों से पैसे भी लिए गए थे। इसी दौरान एक ऐक्ट्रेस के साथ अमेरिका की यात्रा पर गए दिलेर ने क्रू मेंबर्स की तीन लड़कियों को सैन फ्रांसिस्को में छोड़ दिया था।
आरोप है कि एक अभिनेत्री के साथ अमेरिकी यात्रा पर गए दलेर ने कथित तौर पर तीन लड़कियों को सैन फ्रांसिस्को छोड़ दिया था। आरोप के मुताबिक अक्तूबर 1999 में भी दोनों भाई एक बार फिर कुछ अभिनेताओं के साथ अमेरिका गए थे और इस दौरान तीन लड़कों को न्यू जर्सी में छोड़ दिया गया था।
रिपोर्ट्स के मुताबिक दलेर और उनके भाई को अवैध रूप से लोगों को विदेश भेजने का दोषी पाया गया। ये दोनों लोगों को अपना क्रू मेंबर बताकर विदेश लेकर चले जाते थे।
विदेश में छोड़ने के लिए लोगों से पैसे लिए जाते थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक 1998 और 1999 के दौरान इन दोनों भाइयों ने 10 लोगों को अवैध रूप से अमेरिका पहुंचाया था। बख्शीश सिंह नाम के एक याचिकाकर्ता ने २००३ में दलेर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। इसके बाद ही पुलिस ने मामले में एफआईआर दर्ज की थी। दलेर मेहंदी और अन्य के खिलाफ 2003 में मानव तस्करी का केस दर्ज हुआ था। रिपोर्ट्स के मुताबिक इनके खिलाफ कुल 31 मामले पाए गए थे। साल २००३ में जब दलेर के भाई शमशेर मेहंदी को पुलिस ने गिरफ्तार किया था तब गिरफ्तारी करने वाली पुलिस की पूरी टीम का तबादला कर दिया गया था। इस मामले में पांच लोग नामजद थे जिनमें दो की पहले ही मौत हो चुकी है। एक बुल बुल मेहता को आज कोर्ट ने बरी कर दिया जबकि दलेर और उनके भाई को सजा मिली है।
दलेर को सजा की खबर से बॉलीवुड में सन्नाटा पसर गया है। इस बीच याचिकाकर्ता ने अदालत के फैसले पर ख़ुशी जताते हुए कहा कि उन्हें न्याय मिला है।

आध्यात्म में राजनीति के संकेत!

त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में सरकार पर काबिज होने के बाद क्या भाजपा की नजर अब सत्ता से महरूम तमिलनाडु पर है ? कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव इसी साल होने हैं और अगले फिर अगले साल तमिलनाडु की भी बारी है जहाँ फिल्म स्टार राजनीति के भी स्टार रहे हैं। तमिलनाडु में भाजपा का अपना कोइ आधार नहीं है लिहाजा राजनितिक हलकों में यही चर्चा रही है कि क्या उत्तर पूर्व के राज्यों की तरह क्या वह क्षेत्रीय क्षत्रपों पर डोरे डालकर उन्हें अपने पाले में लाकर अपना आधार बनाएगी ? तमिलनाडु में दिसंबर में मेगा स्टार रजनीकांत ने राजनीति में उतरने की घोषणा की थी हालाँकि कमल हासन के अपनी पार्टी के नाम के घोषणा के बावजूद रजनीकांत ने अपनी पार्टी के नाम का ऐलान नहीं किया है। हाल ही में रजनीकांत जब अपनी आध्यात्मिक यात्रा के दौरान हिमाचल के पालमपुर आये तो भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल भी उनके साथ थे।  बस, यहीं से यह कयास लगने शुरू हो गए हैं रजनीकांत के धूमल के साथ आने के क्या कोइ राजनितिक मायने हैं।
यह बात तो गले उतरती नहीं कि धूमल और रजनीकांत संयोग से मिल गए। क्या भाजपा आलाकमान  के इशारे पर धूमल रजनीकांत से मिले, इसकी कोइ पुख्ता जानकारी नहीं। लेकिन इतना तो है कि रजनीकांत की लोकप्रियता की किस्ती पर सवार होकर भाजपा तमिलनाडु में बड़ा सपना बुन सकती है।
खुद रजनीकांत ने इसमें किसी तरह के राजनितिक मायने निकलने के इंकार किया, भाजपा के एक बहुत वरिष्ठ नेता का उनके साथ आना उच्च संकेत तो करता ही है। ”तहलका” ने धूमल से फ़ोन पर बात कर पूछा कि क्या उनकी कोइ राजनितिक चर्चा रजनीकांत से हुई तो उन्होंने इससे मना किया।  सिर्फ इतना कहा – ”रजनीकांत लोकप्रिय कलाकार हैं और उन्होंने तमिलनाडु की राजनीति में भी उतरने का ऐलान किया है। लेकिन हमारी उनसे यहाँ भेंट को राजनीति से न जोड़ें।”
पत्रकारों के सवाल पर रजनीकांत ने कहा, ‘मैं यहां तीर्थ यात्रा पर हूं। यह दौरा अनोखा, आध्यात्मिक और रूटीन से अलग है। मैं यहां राजनीति पर बात नहीं करना चाहता हूं।’ आध्यात्मिक राजनीति का वादा करने वाले सुपरस्टार रजनीकांत आध्यात्मिक गुरुओं से मुलाकात करेंगे और राजनीति के लिए सलाह मांगेंगे। रजनीकांत ने कहा की वे १९९५ से ऐसी आध्यात्मिक यात्रायें करते रहे हैं। उन्होंने बैजनाथ के ऐतिहासिक शिव मंदिर में माथा टेका और इस दौरान धूमल उनके साथ थे।
तमिल राजनीति में फिल्मी सितारों का प्रवेश पुराणी रिवायत रही है। वहां जनता का फिल्मी सितारों से भावनात्मक जुड़ाव रहा है। एमजी रामचंद्रन और जे. जयललिता जैसेभी सफल राजनितिक नेता  सिल्वर स्क्रीन पर धमाल मचाने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने भी अपने करियर की शुरुआत तमिल फिल्म उद्योग में पटकथा लेखक के रूप में ही की थी।
रजनीकांत ने खुद बताया कि वे अक्सर आध्यात्मिक यात्रा पर जाते रहते हैं। रजनी ने पिछले साल 31 दिसंबर को राजनीति में कदम रखने की घोषणा करते हुए कहा था कि वह अपनी पार्टी बनाएंगे और तमिलनाडु की सभी 234 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।
कमल हासन और सुपरस्टार रजनीकांत द्वारा अपनी पार्टियों के गठन के ऐलान के बाद १५ मार्च को दिनाकरन ने भी अपनी पार्टी का ऐलान कर दिया। पार्टी का नाम अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़कम (एएमएमके)  रखा है। एएमएमके पार्टी के झंडे पर जयललिता की तस्वीर बनाई गई है। चुनाव चिन्ह कुक्कर रखा गया है हालांकि दिनाकरन का कहना है उनकी जंग दो पत्ती चुनाव चिन्ह दोबारा पाने के लिए जारी रहेगी।  अपनी पार्टी बारे में कहा कि कुछ महीने पहले तक पार्टी का झंडा और चुनाव चिन्ह न होने की वजह से काम करने में थोड़ी मुश्किलें आ रही थीं। ”पार्टी को झंडा और चुनाव चिन्ह मिलने से अब काम में तेजी आएगी।” उन्होंने उन्हें समर्थन देने वाले 18 विधायकों का धन्यवाद किया।  दिनाकरन ने दावा किया कि तमिलनाडु में उनकी पार्टी ही विधानसभा का अगला चुनाव जीतेगी।
रजनीकांत काँगड़ा जिले के पालमपुर में कंडबाड़ी में स्थित मेडिटेशन सेंटर ट्रस्ट में जिन योगीराज अमर ज्योति महाराज के आश्रम में पहुंचे वे धूमल के भी गुरु रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि धूमल की उनसे भेंट सिर्फ संयोग था।  रजनीकांत के आने की खबर के बाद आम लोग भी भारी संख्या में मंदिर पहुँच गए। उनमें रजनीकांत की एक झलक पाने की होड़ लगी रही। रजनीकांत को सम्मानित भी किया गया। वह काफी देर यहां पर रुके और इसके बाद महाकाल मंदिर में गए। रजनीकांत ने कहा कि उन्हें शिव मंदिर बैजनाथ में आकर अच्छा लगा। उन्होंने यहां पर माथा टेका।
सुपरस्टार रजनीकांत की राजनीति में एंट्री से तमिलनाडु की राजनीति ने नई करवट ले ली है। जयललिता की मौत के बाद ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (ऐआईडीएमके) दोफाड़ हो चुकी है। पार्टी में एक धड़ा मुख्यमंत्री पलनिसामी और उनसे पहले मुख्यमंत्री रहे ओ. पन्नीरसेल्वम के नेतृत्व वाला है, जबकि दूसरा धड़ा शशिकला के नेतृत्व वाला है। शशिकला भले जेल में हैं, उनका समर्थक धड़ा पूरी ताकत से मैदान में डटा है।
माना जाता है कि पलनिसामी और पन्नीर धड़े को एक करने में भाजपा की बड़ी भूमिका रही थी। लेकिन इसी साल जनवरी में हुए आरकेनगर उपचुनाव में शशिकला के भतीजे और निर्दलीय उम्मीदवार टीटीवी दिनकरन की जीत ने तमिल राजनीति में नया मोड़ लाया है। भाजपा को भी इससे बड़ा झटका लगा है और वह विधानसभा चुनाव या २०१९ के लोकसभा चुनाव से पहले रणनीति में बदलाव कर अपने पांव सूबे में जमाना चाहती है।
दो महीने पहले ए. राजा और कनिमोझी को 2जी घोटाले में क्लीनचिट मिलने से करुणनिधी के डीएमके में उत्साह भर दिया है। तो क्या रजनीकांत तमिलनाडु में भाजपा का चेहरा हो सकते हैं ? रजनीकांत के राजनीति में आने से पहले ही तमिलनाडु में सत्ता की लड़ाई दिलचस्प हो चुकी है। राज्य  विधानसभा चुनाव में काफी समय है लिहाजा अभी कुछ कयास लगाना मुश्किल है। लेकिन यह तो तब है कि भाजपा अपने खुद के शुजानधार के चलते किसी बड़ी शख्शियत को अपने साथ मिलकर चुनाव में उतरेगी।
अम्मा जे. जयललिता के निधन के बाद प्रदेश की राजनीति में ‘मेगास्टार नेता’ की जगह खाली पड़ी है। रजनीकांत ने इसपर अपना दावा ठोका ज़रूर है लेकिन वहां फिलहाल राजनीति के कई तरीकों बने हुए हैं। रजनीकांत जब अपनी पार्टी के नाम का ऐलान करेंगे तभी कुछ साफ़ होगा।
अभिनेता से राजनेता की भूमिका में उतरने वाले कमल हासन की फिल्मी दुनिया में रजनीकांत से प्रतिद्वन्तता रही है। कमल हासन ने हाल में कहा था, ‘तमिलनाडु राज्य को आगे बढ़ाने के लिए मैं आपको (छात्रों को) राजनीति में देखना चाहता हूं। मक्कल निधि मय्यम (एमएनएम) आप जैसे लोगों की तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देख रही है।’ हासन ने कहा, ‘हम जैसे बहुत से लोग पोलिंग बूथ तक नहीं जाते हैं। केवल इसी वजह से आज हमारी इतनी बुरी हालत है। हम तक अपने विचार पहुंचाइए। हम आपको सुनेंगे और उससे सीखने की कोशिश करेंगे।’ तमिल सियासत में छात्र आंदोलन काफी अहमियत रखता है। कॉलेज के शिक्षक से राजनेता बने सीएन अन्नादुरै के अलावा एमजी रामचंद्रन और एम करुणानिधि जैसे बड़े नेताओं ने हिंदी को थोपने जैसे मुद्दे पर लोगों की भावनाओं के अलावा छात्र आंदोलनों को सत्ता की सीढ़ी बनाया। यही नहीं 1967 में कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने में छात्र शक्ति का बड़ा योगदान था। रजनीकांत को लेकर छात्रों में काफी उत्साह देखने को मिलता रहा है।  पिछले हफ्ते अपने एक संबोधन के दौरान रजनी ने कहा था कि वह एमजीआर तो नहीं बन सकते लेकिन तमिलनाडु में उनके जैसा शासन दोबारा ला सकते हैं।

हालीवुड की गिनी चुनी फिल्मों को मिले पुरस्कार

लास एंजिलिस में चार मार्च को शानदार ऑस्कर फिल्म पुरस्कार समारोह हुआ। इसमें जबरदस्त फिल्म ‘द शेप ऑफ वाटरÓ को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला। इस आयोजन में श्रीदेवी और शशि कपूर को श्रद्धांजलि भी दी गई।

फॉक्स सर्चलाइट की फिल्म के मैक्सिकन फिल्म निर्माता गिलेरमो डेल टोरो को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का ऑस्कर मिला। इस घोषणा से एक महिला या एक अश्वेत फिल्म निर्माता को ऑस्कर पाने की गुंजायश भी खत्म हो गई। यह फिल्म एक गूंगी सफाई करने वाली महिला की है जो नदी के ही एक विचित्र प्राणी से प्रेम कर बैठती है। उसे 13 मनोनयन मिले हैं और चार एकेडमी पुरस्कार।

ब्रिटेन के गैरी ओल्डमैन को दूसरे विश्वयुद्ध के नेताओं में प्रधानमंत्री विन्स्टन चर्चिल की भूमिका फिल्म ‘डार्केस्ट ऑवरÓ में निभाने पर मिला। फ्रांसिस मैक्डोरमांड्स की ‘फ्यूरीÓ में महिला की भूमिका निभाने के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार फाक्स सर्च लाइट की डार्क कामेडी थ्री बिलबोर्ड्स आउटसाइड एबिंग, मिसूरी पर मिला।

ऑस्कर के होस्ट जिमी किमेल ने हालीवुड के सेक्सुअल मिस्कंडक्ट स्कैंडल पर काफी मज़ाक किए। साथ ही एलजीबीटी मुद्दों को भी उठाया और स्कूल में गोली चलाने की घटनाओं और रंगभेद पर भी अपनी बात रखी।

‘गे रोमांसÓ फिल्म काल मी ‘यूअर नेमÓ को स्क्रीन प्ले और रंगभेदी सेटायर गेट आउट को स्क्रीन प्ले पुरस्कार दिया गया।

ए फैंटास्टिक वुमेन, चिली की एक ट्रांस जेंडर महिला है जिसमें अभिनय भी ट्रांसजेंडर अभिनेत्री डेनिएल बेगा ने किया है। उसे विदेशी भाषा की फिल्म के तौर पर पुरस्कृत किया गया। मैक्सिको से प्रेरित होकर बनी कोको फिल्म को सर्वश्रेष्ठ एनिमेटेड फीचर फिल्म का पुरस्कार मिला।

सैम रॉकवेल और एलिस जाने को पहला ऑस्कर स्पोर्टिंग भूमिकाओं के लिए फिल्म थ्री बिलबोर्ड और एक आइस-स्केटिंग फिल्म आई टोन्या पर दिया गया।

किस्सा खिसियानी बिल्ली का

खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे। मुहावरा आप सबने सुना होगा। पर यहां तो खंबे की जगह बुत ही गिरा दिए गए। नोचना-कचोटना तो आदमी का काम है। हमारे यहां ऐसा कुछ नहीं होता। हमारे बुत कहीं-कहीं लगते हैं। पर वह मसखरी के लिए, उन्हें कोई नहीं तोड़ता।

इंसान भी बड़े अजीब प्राणी हैं, जिस पर ज़ोर नहीं चलता उस पर चोरी-चोरी पत्थर फेंकते हैं। यदि व्यक्ति अपने ज़माने में ताकतवर हुआ तो उसका बुत बनता है फिर उसे तोड़ दिया जाता है। यह तब होता है जब पता हो कि उसे तोडऩे पर कुछ होने वाला भी नहीं। सरकार तो साथ है ही और प्रशासन भी। इन लोगों पर हमने पुलिस के डंंडे बरसते नहीं देखे। लेकिन पुलिसिया वर्दी देखते ही अंगे्रज़ों के ज़माने से इनकी बहादुरी पता नहीं कहां चपत हो जाती। कहते हैं कमज़ोर आदमी का गुस्सा ऐसे ही निकलता है।

लेकिन यह भी देखा गया है कि मानव की सारी प्रजातियां ऐसा नहीं करती। जानवरों में जैसे सारे नरभक्षी नहीं होते और सांपों में भी सभी विषधारी नहीं होते, वैसे ही इंसानों में सभी ऐसे नहीं होते। इनमें भी खास प्रजाति है जो तोडफ़ोड़, आगजनी,मारपीट और हिंसा के काम करती है।

मज़ेदार बात यह है कि बुत तोडऩे वालों को यह भी पता नहीं होता कि वह मूर्ति किसकी है जो उन्होंने तोड़ी? वे यह भी नहीं जानते कि वह भारतीय है या विदेशी? कई तो उस व्यक्ति का नाम तक उच्चारित नहीं कर पाते। इनमें कुछ तो बिचारे दिहाड़ीदार होते हैं जो फावड़ा-कुदालें लेकर आते हैं।

इस तरह की हरकतें करके भी मानव खुद को सभ्य, सहनशील और पढ़ा लिखा जागरूक इंसान बताता है, और हमें जानवर। बात उनकी सही भी है क्योंकि कौन इंसान है और कौन जानवर इसका सर्टीफिकेट भी तो वही बांटता है। वह जिसे चाहे जो मर्जी कहे। सवाल यह है कि इस तरह का सर्टीफिकेट बांटने का अधिकार उसे किसने दिया? मानव की ऐसी ही कुछ प्रजातियों को देखकर हमें अपने जानवर होनें पर गर्व होता है।

इन प्रजातियों का अपना-अपना दर्शन है। यह किसी का बुत को तोड़ें वह न्यायसंगत पर जब दूसरा इनकी आस्था के बुतों पर हमला करे तो असहिष्णु। कुछ लोग अपनी हार से व्यथित होते हैं तो कुछ अपनी जीत भी नहीं पचा पाते। हर कार्य मेें किसी रूढि़वादी का नाम जोड़ देते हैं। बुत गिराने पर उन्हें धन-दारू, कपड़े मिलते हैं। कहते हैं बुत तोड़ कर या किताबें फूंक देने से किसी विचारधारा को नहीं मारा जा सकता आप देख लीजिए नालंदा, तक्षशिला और काशी का हाल क्या रहा। विचारकों की हत्या कर दी जाती है पर विचार कभी नहीं मरते। महात्मा गांधी इसकी सबसे बड़ी मिसाल हैं। उनकी विचारधारा आज भी पूरी दुनिया में पढ़ी जाती है। लोग उस पर अमल भी करते हैं।

खैर इस मामले में हम ‘गधेÓ बस यही दुआ करते हैं कि इंसान को सद्बुद्धि दे ताकि वह धरोहरों को मिटाने की बजाए उनकी रक्षा करे। जिससे लोग यह न कहें कि जीत भले हुई लेकिन उनकी हरकत से लगता है कि यह जीत से खुश नहीं हुए इसलिए खिसियाकर अपना गुस्सा बुतों पर उतार रहे हैं।

विधानसभा चुनावी नतीजों के आते ही त्रिपुरा में व्यापक हिंसा, माकपा चुनाव से हटी

त्रिपुरा में भाजपा की अभूतपूर्व जीत के बाद प्रदेश में भारी हिंसा, लेनिन की दो मूर्तियों को तोडऩे और माकपा के दफ्तरों और कार्यकर्ताओं के घरों-दफ्तरों में आगजनी का दौर- दौरा रहा। खुद राज्यपाल ने इन घटनाओं के निहायत सामान्य माना। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने अपनी टीम के साथ हिंसाग्रस्त इलाकोंं का दौरा किया और हालात का जायजा लेने के बाद तय हुई पार्टी बैठक में फैसला किया कि त्रिपुरा चुनावों के पहले ही चारिलाम विधानसभा क्षेत्र के विधायक रामेेंद्र नारायण देव वर्मा के निधन के बाद खाली हुई सीट पर माकपा अपने उम्मीदवार पलाश देव वर्मा को नहीं उतारेगी। भाजपा ने इस सीट पर त्रिपुरा राजपरिवार के सदस्य और नए बने राज्य मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री जिश्नू देव बर्मन को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। माकपा के राज्यसचिव बिजॉन धर ने दस मार्च को ही अपनी पार्टी के उम्मीदवार को चुनाव मैदान में हटाने के फैसले की सूचना मुख्य चुनाव आयुक्त को भेजी थी। त्रिपुरा वाम मोर्चे की बैठक में इस बात पर चर्चा भी हुई कि पार्टी ने चुनाव आयोग से अनुरोध किया था कि राज्य में हिंसा के हालात हैं। हालात सामान्य होने पर ही चुनाव कराए जाएं। आयोग के राजी न होने पर एकमत हो कर यह फैसला लिया गया। पार्टी ने अपने पत्र में यह जानकारी भी दी कि माकपा और आरएसपी पार्टियों के ग्यारह दफ्तरों केा तोड़ा गया, लूटपाट की गई और उनमें आग लगा दी गई। वाममोर्चे के उन्नीस नेताओं के साथ मारपीट की गई और कई सौ समर्थकों और कार्यकर्ताओं पर दूरदराज के इलाकों में अत्याचार और जुल्म ढाने का सिलसिला अब भी जारी है। राज्य में कानून-व्यवस्था सामान्य अब तक न हो सकी है। इसलिए जहां वामपंथी उम्मीदवार को सुरक्षा में भी प्रचार करने नहीं दिया जा रहा है वहां शांतिपूर्ण मतदान तो संभव ही नहीं है।

त्रिपुरा में हिंसा का दौर-दौरा!

मैं खोवाई, त्रिपुरा की हूं। मेरे चाचा खोवाई उप्र संभाग में माकपा के सदस्य हैं। अब चंूकि हम वामपंथ और वामपंथी पार्टियों के समर्थक हैं तो हमें परेशान किया जा रहा है। मेरे चाचा तो अपने घर के कमरे से बाहर भी नहीं निकल सकते। यही हाल मेरा और मां-बाप का है।

हर कहीं हिंसा का बोलबाला है। मेरे अपने गांव में और पड़ोस में। हमारे स्थानीय पार्टी कार्यालय बंद कर दिए गए हैं। वे मजदूरों और किसानों (जो वामपंथी दलों के समर्थक हैं) को पीट रहे हैं। मैं दैनिक जरूरियात का सामान खरीदना चाहती हूं। लेकिन हमें डराया-धमकाया जा रहा है। साधारण लोग भी बिना बात के पीटे जा रहे हैं। पार्टी नेताओं की खोजबीन की जा रही है। पार्टी के कई दफ्तरों में आग लगा दी गई।

मैं उन्नीस साल की लड़की हूं। अपनी छोटी सी जिंदगी में मैंने कल रात (चार मार्च) जो कुछ भी देखा सुना उसके बाद वे सो नहीं सकीं। मैं अपनी जिंदगी के सामने आ खड़े हुए खतरों के बारे में ही सोचती रही। अपने मां-बाप की सुरक्षा, अपने गांव और पड़ोस के गांव के बारे में सोचती रही। क्या अब ऐसे ही चलेगा? कृपया हमारी रक्षा करें।

कल्याणी दत्ता

वामपंथ भारत के लिए ज़रूरी

‘हम वाम मोर्चे से लडऩे की तैयारी भी करते हैं। क्योंकि हम राजनीतिक प्रतिद्वंदी हैं लेकिन मेरा मानना है कि भारत से वामपंथ का खत्म होना देश के लिए नुकसानदेह होगा।

भारत में वामपंथ को मजबूत होना ही होगा। देश से वामपंथ की समाप्ति बहुत ही नुकसानदेह है। वामपंथ को जमीनी स्तर से ऊपरी स्तर तक बेहद बदलाव लाना होगा। इसे सीखना होगा कि जनता की आज क्या ज़रूरतें हैं। इच्छाएं हैं।

डॉ. जयराम रमेश