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सरकारों को परवाह नहीं किसानों की

आज़ादी के बाद के 70 सालों में देश ने कई मोर्चों पर तरक्की की है। खासतौर पर उद्योग और सेवा क्षेत्र में भारी निवेश आया है। पर दुख की बात यह है कि इन क्षेत्रों में उठाया गया हर कदम किसानों में निराशा ही लेकर आया।

भारत एक विशाल देश है। इसमें सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक तानाबाना भी अलग तरह का है। हर क्षेत्र में अलग तरह की समस्या नजऱ आती है। अलग क्षेत्र में शहरीकरण, औद्योगीकरएा, स्वास्थ्य और शिक्षा की विभिन्न समस्याएं हैं। किसानों की आत्महत्याएं यदि तमिलनाडु में हो रही हैं तो पंजाब भी उनसे अछूता नहीं है।

यहां एक तरफ धरती के नीचे घटते जलस्तर की समस्या है तो दूसरी तरफ किसानों को मिलने वाले न्यूनतम मूल्य में सुधार न होने की। इसी कारण किसानों को शोषण से भी दो चार होना पड़ता है।

इंडियन नेशनल सैम्पल सर्वे (एनएसएसओ) के मुताबिक 2003 में किए अध्ययन के मुताबिक 40 फीसद किसान खेती का काम छोड़ कर कोई और धंधा करना चाहते हैं क्योंकि खेती में अब कोई लाभ का काम नहीं रह गया है।

खाद और बीजों की लगातार बढ़ रही कीमतें और फसलों की कीमतों में बढ़ोतरी न होना, बीजों का समय पर न मिलना, ये मुख्य कारण हंै कि किसान खेती से दूर होने की कोशिश कर रहा है। लेकिन समस्या यह है कि पुश्तों से खेती कर रहे किसान को और कोई काम आता भी नहीं है।

इन सब बातों से परेशान किसान ने अब आंदोलन की राह पकड़ी है। देश के हर भाग मेें आंदोलन चल रहे हैं। छह जून 2017 को मध्यप्रदेश के मंदसौर में पुलिस की गोली से छह किसान मारे गए थे। इस घटना में आठ घायल भी हुए। तमिलनाडु में जबरदस्त सूखे के हालात हैं। पिछले 140 सालों से वहां ऐसा सूखा कभी नहीं पड़ा। यहां भी किसानों का भारी आंदोलन चल रहा है ताकि उन्हें कुछ राहत दी जाए।

पिछले साल नवंबर में तेलंगाना के किसानों ने दिल्ली आकर आंदोलन किया। उनकी समस्या यह थी कि अक्तूबर के महीने में हुई गैर मौसमी बरसात से सारी फसलें बरबाद हो गई थी। सरकारी एजेंसियों ने गीला होने के कारण इसे नहीं खरीदा। दूसरी और निजी अदारे 4,320 रुपए प्रति क्विंटल के न्यूनतम मूल्य की जगह उन्हें 2800 से 3500 रुपए प्रति क्विंटल का भाव दे रहे थे।

किसान चाहे विभिन्न मंचों में लड़ रहे हो पर उन सभी की मांगें समान हंै। इस समय 26 फसलें एमएसपी के तहत आती हैं पर सरकारी खरीद केवल गेंहू और चावल की होती है।

गोदामों की कमी के कारण किसान अपना अनाज संभाल कर नहीं रख सकते। इस कारण उन्हें अपना अनाज औने-पौने भाव में बेचना पड़ता है। इस समस्या के हल के लिए गांवों में अच्छे गोदाम बनाने ज़रूरी है।

मौसम के कारण किसानों को होने वाले नुकसान को रोकना तो मुश्किल है पर बीजों, खाद और भंडारण की व्यवस्था तो किसान के लिए सरकार को करनी चाहिए। पिछले साल भारत सरकार ने सुप्रीमकोर्ट को बताया था 2013 के बाद से देश में हर साल 12,000 किसान आत्महत्या करते हैं। किसानों में आत्महत्या के आंकड़े बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। पंजाब में स्थापित तीन विश्वविद्यालयों ने किसान आत्महत्या के कारणों पर काम किया। इसकी रिपोर्ट के मुताबिक 2000 से 2015 तक के सालों में 16,000 किसानों ने अपनी जान ली।

राज्य सरकारें किसानों के कजऱ् माफ करने की घोषणाएं करती रहती हैं। चुनावों के दौरान उत्तरप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने किसानों के कजऱ् माफी के बड़े-बड़े वादे किए थे। यही बात कर्नाटक में भी हुई। मध्यप्रदेश में राहुल गांधी ऐसी घोषणा कर आए।

खुली बाज़ार अर्थव्यवस्था के बाद कृषि क्षेत्र में निवेश कम होता गया। निजी क्षेत्र कृषि में निवेश नहीं कर रहा। भारत की 70 फीसद आबादी गांवों में रहती है। उनकी समस्याएं अत्यंत गंभीर है। भारत में मांग और आपूर्ति में भारी अंतर है। राजनैतिक दल इसका लाभ उठाते हैं।

इस मामले में मिजोरम, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के चुनाव अति महत्वपूर्ण हैं। असल में किसानों को ऋण माफी के अलावा कुछ और भी चाहिए।

उधर दक्षिण भारत में-

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में बनी भाजपा की एनडीए सरकार के तीसरे और चौथे साल भी व्यापक तौर पर किसान आंदोलन हुए। केंद्रीय कृषि मंत्री ने तो इन आंदोलनों पर यहां तक कहा कि ‘किसान टीवी कैमरे पर प्रचार पाने के लिए सड़कों पर सब्जियां फैंक रहे हैं और दूध उड़ेल रहे हैंÓ। हो सकता है मंत्री महोदय नेता बनने के गुर बता रहे हों। लेकिन पूरे देश में किसानों ने पहली से दस जून तक कई राज्यों में आंदोलन छेड़ दिया है वह अब सड़कों पर है।

किसानों की मांग है कि उन्हें उनकी लागत का ड्योढ़ मिलना ही चाहिए। उन्हें बीज, पानी, जुताई, फसल बीमा बिक्री का बंदोबस्त और कजऱ् में माफी भी दी जानी चाहिए। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने आंदोलनकारी किसानों पर गोलियां चलाई जिसमें छह किसान मारे गए। महाराष्ट्र में नासिक से मुंबई तक दवेंद्र फडणवीस सरकार के खिलाफ किसानों ने लांग मार्च किया। कुछ मांगे मंजूर हुई। कई कालीन के भीतर दबा दी गई। पंजाब सरकार ने कजऱ् माफी पर संिमति गठित की थी जिसने अपनी रिपोर्ट भी पेश कर दी लेकिन केंद्र से मदद न मिलने के कारण वह रिपोर्ट फाइलों तक ही रह गई। उसकी तरह कर्नाटक की जद(एस) सरकार ने कजऱ् माफी घोषित की। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव इन्वेस्टमेंट स्कीम के जरिए खुद ही किसानों के लिए नई योजना शुरू की है।

कर्नाटक में कुमारस्वामी ने फिर कहा है कि किसान उन्हें 15 दिन का समय दें वे किसानों के 73 हजार करोड़ के कजऱ् ज़रूर माफ करा ले जाएंगे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत के किसानों की औसत आय बमुश्किल सौ रुपए रोज भी नहीं है। किसानों की उपज की आय से तीन गुना आमदनी बिचौलिए उठाते रहे है।

कर्नाटक ने 2013 से 2017 के बीच चार साल तक लगातार सूखा झेला और इन सालों में देखी 3,515 किसानों की आत्महत्याएं। किसानों की मंाग है कि उनके सारे कजऱ् माफ कर दिए जाएं क्योंकि वे पिछले चार सालों में सभी कुछ खो चुके हैं। यहां तक कि जब फसलें तबाह नहीं भी हुई थी तब कीमतों की भारी गिरावट ने उन्हें कजऱ् के जाल में उलझा दिया। राज्य में फसल का कुल कजऱ् 53,000 करोड़ है। पर यदि इसमें उनके घरेलू और पारिवारिक कजऱ् को भी जोड़ा जाए तो यह रकम इससे दुगनी भी हो सकती है।

कांग्रेस और भाजपा की तरह जनता दल (एस) ने भी चुनावों के दौरान कजऱ् माफी का वादा किया था। असल में पिछले साल तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्दारामैया ने उन किसानों में कजऱ् माफ किए थे जिन्होंने सरकार द्वारा चलाए जाने वाले सहकारी बैंकों से 50,000 रुपए तक का कजऱ् लिया था लेकिन इसमें वे किसान कवर नही हो पाए थे, जिन्होंने राष्ट्रकृत बैंकों से कजऱ् ले रखा था।

स्वभाविक तौर से अब किसान कर्नाटक सरकार से पूर्ण कजऱ् माफी की आस कर रहे हैं। इसके साथ ही वे वित्तीय संस्थाओं से भी इसी आधार पर कजऱ् माफी की मांग करते हैं। मुख्यमंत्री को अभी अपना वादा पूरा करना है। हालांकि उन्होंने कहा है कि वे अपने वादे मुताबिक कजऱ् माफ करने के इच्छुक हैं।

इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने मांग की है कि मुख्यमंत्री एक दम कजऱ् माफ करें या फिर अपने खिलाफ कार्रवाई के लिए तैयार रहें। 28 मई को भाजपा ने राज्य में बंद का आह्वान किया था पर कुछ हिस्सों को छोड़ बंद विफल ही रहा।

सवाल यह है कि क्या कुमारस्वामी कजऱ् माफ कर सकते हैं, और फिर इस बोझ को कौन ढोएगा? कांग्रेस शासित पंजाब में मुख्यमंत्री के उम्मीदवार कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी किसानों से कजऱ् माफ करने का वादा किया पर केंद्र ने हाथ पीछे खीच लिए। उधर भाजपा ने भी कजऱ् माफी की घोषणा की थी। जैसा कि उत्तरप्रदेश में। योगी आदित्यनाथ ने बहुत तामझाम के साथ किसानों के कजऱ् माफी की योजना की शुरूआत की थी, पर धरातल पर यह एक मज़ाक ही बन गया क्योंकि किसानों को चंद रुपयों के चेक ही मिले। यहां एक किसान ऐसा भी है जिसे मात्र 19 पैसे का चेक मिला। इससे योगी सरकार की कजऱ् माफी योजना की असलीयत पता चलती है।

बाकी दलों की सरकारों की भी स्थिति ऐसी ही है। हर राज्य में यह एक ही तरह से चल रहा है। असल में नौकरशाही ने इसे सिस्टम में इस तरह डाल दिया है कि राजनेताओं की घोषणाएं केवल हवा में ही लगती हैं। पर फिर भी किसानों पर राजनीति लगातार जारी है क्योंकि ये लोग एक बहुत बड़ा वोट बैंक हैं, और हर राजनैतिक दल इसका लाभ उठाना चाहता है।

तो यदि भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार येदियुरप्पा किसानों की कजऱ् माफी की बात करते हैं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। इसका लाभ असल में कुमारस्वामी ने उठाया और वह कांग्रेस की सहायता से मुख्यमंत्री बन गया।

ग्रामीण कर्नाटक में सूखा और किसानों की आत्महत्या मुख्य मुद्दे हैं इसी कारण कजऱ् माफी का मुद्दा चुनावों में उठा और उसके बाद भी उठ रहा है। पर किसानों के लिए कहीं राहत नहीं चाहे वह कर्नाटक हो या भाजपा शासित प्रदेश। किसानों की मुसीबतें बढ़ती जा रही हैं और वे लोग आत्महात्यायें करते जा रहे हैं। हर राजनैतिक दल उनसे वादे करता है केवल तोडऩे के लिए।

किसान उस समय बहुत प्रसन्न हुए थे। जब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने किसानों को न्यूनतम कीमत स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर देने की घोषणा की थी। पर चार साल बीत जाने के बाद आज तक नरेंद्र मोदी के वादे पूरे नहीं हुए। इक्का-दुक्का स्थानों पर इन वादों पर कुछ काम हुआ लेकिन ज़्यादातर स्थानों पर नहीं। इससे देश भर के किसानों में आक्रोश व्याप्त हो गया है।

तमिलनाडु के किसान कई महीनों तक दिल्ली में आंदोलन चलाते रहे लेकिन एक मिनट के लिए भी प्रधानमंत्री का ध्यान अपनी ओर नहीं खींच पाए। यह राजनेताओं की गद्दी पर आसीन होने के बाद किसानों की अनदेखी की जि़ंदा मिसाल है। राहुल गांधी की तरह जब सत्ता से बाहर होते हंै तो वही भाषा बोलते है जो किसानों के हक की हो लेकिन सत्ता पर काबिज होते ही उनकी बोली बदल जाती है।

ऐसा नहीं कि अपने सलाहकारों से सलाह लेने वाले ये नेता किसानों के सवालों के जवाब नहीं दे सकते पर ये लोग किसानों की परवाह नहीं करते। उनके लिए किसानों का गुस्सा भी दूसरी समस्याओं में से एक है।

एक बात समझ में नहीं आ रही कि किसानों के लिए भली-भांति तैयार एमएस स्वामीनाथन की रिपोर्ट देश की दो प्रमुख राजनैतिक दलों के शासन काल में धूल क्यों चाटती रही है। उस पर न तो कांगे्रस सरकार ने अमल किया और न ही अब भाजपा की सरकार कर रही है। इस बीच हरित क्रांति के जन्मदाता इस रिपोर्ट के लिखने वाले स्वामीनाथन का कहना है कि विवेकपूर्ण तरीेके से किसान की उपज की कीमत तय करके ही उसकी आय को बढ़ाया जा सकता है। उन्हें अभी भी उम्मीद है कि सरकार किसानों के लिए कीमत निर्धारण की नई नीति लाएगी जिससे उनकी आय दुगनी हो जाए। स्वामीनाथन के पास 2022 तक किसानों की आय दुगनी करने की खास योजना है, जिस का खुलासा वे कई बार कर चुके हैं, लेकिन उस पर अभी तक अमल नहीं हुआ है।

देश के सभी किसानों ने शायद स्वामीनाथन से न तो मुलाकात की होगी और न ही उन्हें सुना होगा लेकिन 2014 के चुनावों में भाजपा ने उनका नाम घर-घर तक पहुंचा दिया। सरकार ने स्वामीनाथन की सिफारिशों को लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया। सिफारिशों में मोटे तौर पर कहा गया है कि फसल पर आई किसान की कुल लागत में 50 फीसद जोड़ कर फसल का न्यूनतम मूल्य तय किया जाए। सबसे पहले 2007 में ‘नेशनल कमीशन फॉर फारमर्सÓ के तहत बने ‘पैनलÓ के प्रमुख स्वामीनाथन ही थे। उन्होंने उस समय इस तरह फसल की कीमत तय करने की सिफारिश की थी।

सत्ताधारी भाजपा ने 2014 के चुनावों में अपने घोषणापत्र में स्वामीनाथन फार्मूले को लागू करने की बात कही थी, पर आज तक इस पर कोई काम नहीं हुआ। 2017-19 की रबी की फसल के लिए जो न्यूनतम मूल्य तय किया गया है वह किसान के औसत खर्च के 40 फीसद से भी कम है। इसके अलावा स्वामीनाथन की और भीे कई सिफारिशे नहीं मानी गई हैं। स्वामीनाथन ने कृषि भूमि को उद्योपतियों के हाथ में जाने से रोकने के लिए विशेष कृषि ज़ोन की सिफारिश की थी, जो आज ठंडे बस्ते में पड़ी है। उद्योगपतियों को इस बारे में कोई पूछता नहीं क्योंकि वे एक संगठित क्षेत्र के लोग हैं, जबकि किसान एक संगठन में नहीं हैं। यही कारण है कि बैंक के अधिकारी जो कजऱ् वसूली के लिए उद्योगपतियों से बात तक करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते वे कजऱ् की एक किश्त टूटने पर ही किसाल का ट्रेक्टर अपने कब्जे में ले लेते हैं। यह सही है कि कई किसानों की तरफ कजऱ् की राशि बकाया है। पर प्रश्न यह है कि उद्योग और कृषि को लेकर बैंकों की दोहरी नीति क्यों है?

इस कारण किसान गैर औपचारिक बैंकिंग चैनलों से कजऱ् लेने को मज़बूर हो जाता है। खासतौर पर वह साहूकारों से कजऱ् उठाता है। वहां प्रक्रिया आसान है पर ब्याज बहुत ज़्यादा। इस तरह से किसान कजऱ् के मकड़ जाल में फंसता जाता है और उससे बाहर न निकल पाने की स्थिति में अपनी जान दे देता है।

हमें यह मानना होगा कि सरकारों ने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को उसकी भावना के अनुरूप लागू नहीं किया है। यदि ऐसा हो जाए तो किसान का जीवन सुखद हो जाएगा।

 

कश्मीर में लग सकता है राज्यपाल शासन

बीजेपी-पीडीपी गठबंधन टूटने और महबूबा मुफ्ती सरकार के गिरने के बाद जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लगना लगभग तय हो गया है।

राज्य के प्रमुख विपक्षी दल नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भी सरकार बनाने से इनकार कर दिया है।

इस पर राज्यपाल एनएन वोहरा ने जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन की सिफारिश वाली रिपोर्ट राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेज दी।

राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजने से पहले वोहरा ने महबूबा, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र रैना, नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीए मीर के साथ विचार विमर्श किया।

राजभवन के एक प्रवक्ता के मुताबिक़, ‘‘राज्यपाल को गठबंधन सरकार से भाजपा द्वारा समर्थन वापस लेने के बारे में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और भाजपा विधायक दल के नेता क्रमश: रवींद्र रैना और कवींद्र गुप्ता द्वारा संयुक्त रूप से हस्ताक्षर वाला एक पत्र फैक्स के जरिए प्राप्त हुआ.’’

प्रवक्ता ने कहा कि महबूबा ने इसके बाद इस्तीफा दे दिया लेकिन राज्यपाल ने उनसे वैकल्पिक व्यवस्था होने तक पद पर बने रहने को कहा।

उन्होंने कहा, ‘‘राज्यपाल ने कवींद्र गुप्ता और महबूबा मुफ्ती से बात करके जानना चाहा कि क्या उनकी पार्टियां राज्य में सरकार बनाने के लिए वैकल्पिक गठबंधनों की संभावना तलाशने की इच्छुक हैं, दोनों नेताओं ने इस पर ‘न’ में जवाब दिया। ”

ख़बरों के अनुसार वोहरा ने मीर से भी बात की जिन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के पास खुद या गठबंधन में सरकार बनाने के लिए संख्याबल नहीं है. इसके बाद राज्यपाल ने उमर से मुलाकात की जिन्होंने कहा कि राज्यपाल शासन और चुनावों के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

विपक्ष की एकजुटता की कोशिशें २०१९ में मोदी को उखाड़ फेंकेंगीं: अग्निहोत्री

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक मुखौटा पहने हैं और वे खुद को जो जनता के सामने अपने शब्दजाल से पेश करते हैं, हकीकत में उनकी नीतियां और काम उसके बिलकुल उलट हैं। हिमाचल विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता और वरिष्ठ कांग्रेस नेता मुकेश अग्निहोत्री ने ”तहलका ऑनलाइन” से इंटरव्यू में यह बात कही। उन्होंने कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी की विपक्ष के बड़े नेताओं को इकठा करने की कोशिशों को विपक्ष की एकता की तरफ बड़ा कदम बताया और कहा कि आने वाले विधानसभाओं के कुछ चुनावों और २०१९ के लोक सभा के चुनाव में जनता मोदी के चेहरे पर रखा मुखौटा उतार फेंकेगी।

अग्निहोत्री ने आरोप लगाया कि मोदी खुद तो देश की जनता का सच्चा सिपाही बताकर और चौकीदार बताकर वास्तव में इस जनता से न केवल धोखा कर रहे हैं बल्कि अपनी गलत नीतियों से उसकी कमर तोड़ कर रख दी है। कहा कि जनता को खून के आंसू रुलाना और देशवासियों से घोखा करना ही मोदी सरकार की चार साल की उपलब्धियां हैं।
यह पूछने पर कि भाजपा ने कांग्रेस के आरोपों के बावजूद चुनाव जीते हैं, मुकेश ने कहा कि ज्यादातर चुनाव भाजपा ने अपने बूते नहीं जीते और जो जीते वहां उन्हें पिछले चुनाव के मुकाबले काम समर्थन जनता से मिला। ” आध दर्जन से ज्यादा राज्यों में भाजपा ने दूसरे दलों की मदद से सर्कार बानी है और उसका प्रचार तंत्र इसे अपनी सरकार बताता है। भाजपा के चुनाव जीतने को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। प्रधानमंत्री जैसे पद पर बैठे मोदी भाषणों के जिस निम्न स्तर पर जा रहे हैं उससे उनके अपने भरोसे के टूटने का संकेत मिलता है। ”
कांग्रेस नेता ने कहा कि देश में आज भय, हिंसा और अविश्वास का माहौल है। समाज का हर तबका  परेशान है और आम आदमी खुद को ठगा महसूस कर रहा है। ”क्या किसान, क्या युवा, क्या व्यापारी वर्ग सब कह रहे हैं कि उनके साथ घोखा हुआ है। देश में दलितों पर अत्याचार बढ़े हैं। देश में महिलाएं और बच्चियां खुद को असुरक्षित महसूस कर रही हैं। उनके खिलाफ यौन हिंसा के मामले बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। अपराधी बेखौफ घूमकर कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ा रहे हैं। मोदी सरकार के चार साल में आम आदमी से जमकर खिलवाड़ हुआ।”
अग्निहोत्री ने कहा कि ‘अच्छे दिन’लाने का वादा करके चार साल पहले सत्ता में आई मोदी सरकार के राज में देश की अर्थव्यवस्था चौपट होकर रह गई है।  ”मोदी सरकार की चार साल की उपलब्धियां हैं जनता को खून के आंसू रुलाना और देशवासियों से धोखा करना।” कहा कि मोदी सरकार 2014 में कांग्रेस की तथाकथित नाकामियां गिनाकर और ढेर सारे झूठे वादे और जुमले बोलकर सत्ता में आई थी। लेकिन उन वादों का क्या हुआ यह मोदी सरकार और भाजपा नेता नहीं बता पा रहे हैं। भाजपा के नेता विपक्ष में रहते हुए महंगाई को लेकर रोज-रोज नौटंकी और तमाशा करते थे, लेकिन आज देश में आसमान छूती महंगाई, बेरोजगारी, लचर अर्थव्यवस्था, भय, हिंसा समेत तमाम मसलों को लेकर देश में हाहाकार मचा है और प्रधानमंत्री विदेशों में घूमने और मन की झूठी बातें करने में व्यस्त हैं।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि काले धन के मामले में मोदी सरकार चारों खाने चित हुई है। ”2014 के लोकसभा चुनाव की रैलियों में नरेंद्र मोदी का कोई भाषण कालेधन के जिक्रके बिना पूरा नहीं होता था। मोदी बार-बार कहते थे कि जब उनकी सरकार बनेगी तो विदेशों में जमा भारतीयों का कालाधन लाएगी और प्रत्येक नागरिक के खाते में 15-15 लाख रुपये डालेगी। सरकार ने चार साल पूरे कर लिए मगर लोगों को आज भी इंतजार है कि विदेशों से कालाधन कब आएगा।” कहा कि हैरानी की बात है कि सरकार बन जाने के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कह दिया कि यह बात तो चुनावी जुमला थी। कालेधन के मामले में सरकार लोगों को बरगला रही है। ”उसे पता ही नहीं है कि विदेशों में कितना कालाधन जमा है और वह कब देश में आएगा”।
अग्निहोत्री ने एक सवाल पर कहा कि बेरोजगारी के मोर्चे पर मोदी सरकार बुरी तरह फेल हुई है। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में हर साल दो करोड़ रोजगार देने का वादा किया था, मगर रोजगार पैदा करने के मामले में मोदी सरकार चारों खाने चित हुई है। जब मोदी सरकार बेरोजगारी के मुद्दे पर घिरी तो प्रधानमंत्री ने फरमाया कि पकौड़े बेचना भी तो रोजगार है। ”सच तो यह है कि बेरोजगारी में मसले पर मोदी सरकार और भाजपा बैकफुट पर है”।
प्रधानमंत्री ने कालेधन और भ्रष्टाचार पर प्रहार करने की आड़ में नोटबंदी जैसा तानाशाही भरा फैसला किया था। आज तक इस फैसले के नतीजे शून्य हैं। इस तुगलकी फरमान से जहां आम लोगों को बहुत परेशानी हुई, वहीं कई लोगों को जान से हाथ धोने पड़े। नोटबंदी से उलटे अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। मोदी सरकार ने कालेधन और भ्रष्टाचार मिटाने के नामपर नोटबंदी जैसा काला फैसला किया था, लेकिन न तो कालाधन खत्म हुआ और न ही भ्रष्टाचार कम हुआ। भाजपा आज देश की सबसे अमीर पार्टी है, उसके नेता जरा बताएं कि पार्टी के पास इतना पैसा कहां से आया।लेकिन मोदी के राज में लोग भ्रष्टाचार करके देश से विदेश भाग जाते हैं। चाहे ललित मोदी हो, विजय माल्या हो, मेहुल चौकसी हो या फिर नीरव मोदी, सभी हजारों करोड़ रुपये लूट कर विदेश में जा बैठे हैं और मोदी सरकार जानबूझकर कुछ नहीं कर रही।  देश में  किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं, लेकिन किसानों की हितैषी होने के दमगजे मारने वाली मोदी सरकार आंखें मूंदे बैठी है। सरकार स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू नहीं कर रही है। स्मार्ट सिटी, गंगा सफाई, स्वच्छ भारत, बुलेट ट्रेन चलाने, मेक इन इंडिया जैसी योजनाएं औंधे मुंह गिरी हैं, लेकिन इनकी सफलता को लेकर भाजपाई  मोदी के गुणगान में लगे हुए हैं।
अग्निहोत्री ने दावा किया कि २०१९ के चुनाव में भाजपा को पता चल जाएगा कि बहुमत पाकर भी जनता से देखा करने का क्या नुक्सान है। ”जनता भाजपा को उसकी जगह बता देगी और राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार को सत्ता सौंपेगी।”

फ्लोर टेस्ट से पहले ही येदियुरप्पा ने दिया इस्तीफा

कर्नाटक के इस चुनाव ने देश में लोकतंत्र की नई परिभाषा लिख दी। भाजपा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर जिस स्थान पर पहुँची थी वो उसने नतीजे के बाद की घटनाओं से खो दिया। येद्दियुरप्पा के इस्तीफे ने सिर्फ उनके ही कद्द को चोट नहीं पहुंचाई है, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह शामिल हैं, की छवि को भी बड़ा धक्का लगाया है। लोगों में यही सन्देश गया है कि भाजपा सरकार बनाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। तय मानिये कर्नाटक के इस चुनाव ने देश में २०१९ के लोकसभा चुनाव के लिए एकजुट विपक्ष की सम्भावना के द्वार खोल दिए हैं।

इस चुनाव के नतीजों के बाद की स्थिति ने देश में राज्यपालों की भूमिका पर भी बड़ा सवाल लगा दिया है। राजनीतिक रूप से यह उन अमित शाह की क्षमता को भी बड़ा धक्का है जिनके बारे में भाजपा के आम कार्यकर्ताओं को भरोसा था कि वे ”कुछ भी” कर सकने की कूबत वाले नेता हैं। हो सकता है आने वाले दिनों में शाह के अध्यक्ष पद को पार्टी के बीच से अब चुनौती मिले। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को कर्नाटक में बड़ा जख्म मिला है।
कांग्रेस भले कर्नाटक में अपनी सरकार नहीं बना पाई, उसने भाजपा की भी सरकार नहीं बनने दी जबकि वह १०४ सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी थी। निश्चित ही यह भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी रणनीतिक हार है। सरकार बनने की इस विफलता ने येद्दियुरप्पा के राजनीतिक करियर पर ग्रहण लगा दिया है, जो पहले ही ७५ साल के हो चुके हैं। पिछले चार साल में कांग्रेस ने राहुल गांधी के नेतृत्व में पहली बार रणनीतिक मोर्चे पर बड़ी जीत हासिल की है और इसमें सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी  वाड्रा ने भी परदे के पीछे से  बड़ी भूमिका अदा की।
कर्नाटक के नतीजे से पहले ही राहुल गांधी ने वरिष्ठ नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद को बेंगलुरु भेज दिया था और ”तहलका” की जानकारी के मुतबिक उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा से बात शुरू कर दी थी। जब राज्यपाल ने भाजपा को कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की ११८ सीटों के बावजूद सरकार बनाने के लिए बुला लिया तो कांग्रेस ने उसी सुप्रीम कोर्ट का सहारा भाजपा पर मनोविज्ञानिक दवाब के लिए, जिसके प्रमुख (मुख्या न्यायाधीश ) के खिलाफ प्रस्ताव लाया था, लिया। कांग्रेस रणनीति का उसे (कांग्रेस-जेडीएस) को फायदा मिला।
भले कर्नाटक में जेडीएस के नेतृत्व की सरकार बनी है, राष्ट्रीय स्तर पर इसका राजनीतिक मनोविज्ञानिक लाभ कांग्रेस को मिला है। पिछले चार साल में भाजपा के प्रचार तंत्र ने देश में माहौल ही ऐसा बना दिया है कि भाजपा की हर जीत कांग्रेस की हार है। ऐसे में कर्नाटक में भाजपा की सरकार न बना पाने की हार कांग्रेस की जीत के रूप में ही देखी जाएगी।
येदयुरप्पा के इस्तीफे के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली में प्रेस कान्फेरेन्स में कहा कि कर्नाटक में अपनी हार मानने के तुरंत बाद विधानसभा अध्यक्ष और भाजपा के सदस्य बिना राष्ट्रीय गान के बिना ही सदन से उठकर चल दिए। उन्होंने कहा कि कर्नाटक में पिछले चार दिन की घटनाओं ने जाहिर कर दिया कि भाजपा ने दिल्ली के अपने नेतृत्व के इशारे पर विधायकों को खरीदने की कोशिश की। ”देश और कर्नाटक की जनता ने बता दिया कि उनकी ताकत भाजपा के पैसे से बड़ी है।” राहुल ने कहा भाजपा को रोकने के लिए सब (विपक्ष) मिलकर काम करेगा।
कर्नाटक के नतीजे आने के बाद जो घटनाक्रम हुआ उससे यदि राजनीतिक रूप से किसी पार्टी की फजीहत हुई तो वह भाजपा है। उसने राज्यपाल की मार्फ़त सरकार में आकर पैसे और ताकत के बूते जो करने की कोशिश की उससे लोगों में भाजपा और मोदी की छवि को बहुत धक्का लगा है। इससे विपक्ष को एकजुट होने का अवसर मिला है। कर्नाटक के नाटक में जिस तरह ममता बनर्जी, मायावती, बिहार में लालू के बेटे तेजस्वी यादव और हैदराबाद में चंद्र बाबू नायुडु ने कांग्रेस – जेडीएस का साथ दिया निश्चित ही भाजपा की चिंता बढ़ेगी। माकपा भी कांग्रेस के साथ दिखी।
इस सारे घटनाक्रम से एक और सन्देश मिला कि कांग्रेस यदि ठान ले तो भाजपा को झटका दे सकती है। गुजरात के राज्य सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ ऐसी ही रणनीति बनाकर भाजपा को झटका दिया था।
इस सारे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला तथ्य इस सारे घटनाक्रम के दौरान सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा की गहरी सक्रियता रही। दिल्ली में कांग्रेस के १० जनपथ के नजदीक सूत्रों ने ”तहलका” को बताया कि  राहुल गांधी ने ”आपरेशन कर्नाटक” की रणनीति का नेतृत्व किया और सोनिया और प्रियंका वाड्रा ने इसमें सक्रिय भूमिका निभाई। गुलाम नबी आज़ाद, अशोक गहलोत आदि को साफ़ सन्देश दिया गया था की भाजपा की सरकार किसी सूरत में नहीं बननी चाहिए क्योंकि कांग्रेस जेडीएस के पास पर्याप्त नंबर है।

शादी के बिना भी साथ रह सकते हैं बालिग़ जोड़े: अदालत

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि अगर लड़का बालिग है तो वह बालिग लड़की के साथ बिना शादी के लिव इन रिलेशन में रह सकता है।

अदालत ने यह व्यवस्था केरल की एक दंपत्ति की याचिका पर दी।

जस्टिस एके सिकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा, याचिकाकर्ता नंदकुमार के विवाह को शादी के समय 21 साल से कम उम्र होने के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है।

पीठ ने फैसला देते हुए कहा कि नंदकुमार और उससे विवाह करने वाली लड़की तुषारा हिंदू है। ऐसे में हिंदू विवाह अधिनियम 1995 के तहत ऐसी शादियां अमान्य नहीं हो सकती। जैसा कि अधिनियम की धारा 12 में प्रावधान में है।

शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि शादी के लिए निर्धारित उम्र नहीं होने के बावजूद यह पर्याप्त है कि याचिकाकर्ता बालिग हैं और बिना शादी के साथ रहने का अधिकार रखते हैं। पीठ ने कहा, यहां तक कि अब विधायिका में भी लिव इन रिलेशन को मान्यता मिली है। ऐसे संबंध में रह रही महिलाओं को भी घरेलू हिंसा कानून 2005 में संरक्षण दिया गया है।

इसके साथ ही अदालत ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें तुषारा की कस्टडी उसके पिता को दी गई थी। पीठ ने कहा, हस स्पष्ट करते हैं कि तुषारा को यह पूरी स्वतंत्रता है कि वह किसके साथ रहना चाहती है।

अवैध निर्माण गिरवाने गईं महिला अधिकारी की हत्या

एक बहुत ही चौंकाने वाली घटना में हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के कसौली के मंडोधार में पहली मई को सुप्रीम कोर्ट का आदेश का पालन करवाने गयी एक महिला टाउन प्लानर की होटल मालिक ने हत्या कर दी। हरित प्राधिकरण और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद होटल की अवैध मंजिल गिरवाने गयी इस अधिकारी शैल बाला शर्मा को पुलिस और अन्य अधिकारियों की मौजूदगी में जान से मार दिया गया।  अब सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना का कडा संज्ञान लेते हुए सरकार से जवाबतलबी की है।
”तहलका” की जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने १७ अप्रैल को सोलन जिले के कसौली में होटलों में किए अवैध निर्माण दो हफ्ते में गिराने के निर्देश दिए थे। इसी आदेश का पालन करवाने टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की उप अधिकारी  शैल बाला शर्मा अन्य अधिकारियों और पुलिस दल के साथ एक गेस्ट हाउस (होटल) में अवैध निर्माण के हिस्से को गिरवी गयी थीं। घटना के समय का वीडियो देखने ज़ाहिर होता है कि जब महिला अधिकारी अवैध निर्माण गिरवाने का आदेश दे रही थीं होटल मालिक वहां मौजूद अपनी बुजुर्ग मां के साथ कागज़ उन्हें दिखाकर इस करवाई को रोकने की बात कह रहा है हालांकि अधिकारी कह रही हैं की अवैध हिस्सा गिराने के आदेश सुप्रीम कोर्ट के हैं लिहाजा वह ऐसा करने दें। एक मौके पर होटल मालिक अधिकारी से यह कहता भी सुनाई देता है – ”मैडम आप मुझे हैंग ही कर दें”. इस पर अधिकारी  कहती हैं कि वैसा क्यों करेंगी, वे तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने आई हैं।
विभाग की टीम ने कसौली में नारायणी होटल के हिस्से में अवैध निर्माण पाया था महिला अधिकारी शैल बाला और उनकी टीम अवैध निर्माण हटाने पहुंचीं तो वहां होटल के स्टाफ और मालिक से उनकी बहस होने लगी। कहा जाता है कि कुछ देर बाद होटल के  मालिक विजय ठाकुर अपना आपा खो बैठा और उसने महिला अधिकारी पर गोली चला दी। बताया जाता है कि आरोपी बिजली बोर्ड में काम करता है। घटना को अंजाम देने के बाद बह फरार हो गया। इस गोलीबारी में एक मजदूर को भी गोली लगी, जिसका पीजीआई में उपचार चल रहा है। जिला प्रशासन के अधिकारी कसौली इलाके में 13 होटलों एवं रिसॉर्ट्स में अवैध निर्माण ढहा रहे थे, और इसी दौरान यह घटना घटी। इस दौरान बिजली विभाग के एक अधिकारी, संजय नेगी बाल-बाल बच गए।
जानकारी के मुताबिक महिला अधिकारी को दो गोलियां लगीं। शैल बाला की मौके पर ही मौत हो गई  जबकि वहां मौजूद एक मजदूर भी गोली लगने से घायल हो गया उसे इलाज के लिए पीजीआई, चंडीगढ़ रेफर किया गया है।
सोलन के एसपी मोहित चावला के मुताबिक हत्यारोपी होटल मालिक विजय ठाकुर वारदात के बाद से फरार है। ”पुलिस उसे जल्द गिरफ्तार कर लेगी”। पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर आगे की कार्रवाई शुरू कर दी है और महिला अधिकारी का शव पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है। पुलिस अधिकारी ने कहा कि एक गोली जाकर शैल बाला को लग गई और घटनास्थल पर ही उनकी मौत हो गई। मजदूर गुलाब सिंह के पेट में एक गोली लगी और वह घायल हो गया।
इस बीच महिला अधिकारी की होटल मालिक के गोली मारकर हत्या करने की घटना पर शीर्ष अदालत ने स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगायी है। बुधवार को कोर्ट ने अफसर को सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराने पर राज्य सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की हिमाकत बर्दाश्त नहीं की जाएगी, राज्य सरकार इस मामले की पूरी रिपोर्ट अदालत को सौंपे। इस मामले की अगली सुनवाई अब गुरुवार (३ मई) को होगी।
इस बीच मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अधिकारी के निधन पर शोक जताया है और कहा कि आरोपी को जल्द गिरफ्तार किया जाएगा और कानून के अनुसार, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उनहोंने कहा – ”प्रदेश में किसी भी कीमत पर कानून-व्यवस्था को बरकरार रखा जाएगा।”

अवैध खनन का बड़ा घोटाला

यह एक घोटला है, कोयला ब्लाक घोटाले से भी कहीं ज़्यादा बड़ा और खतरनाक। इससे देश की खनिज संपदा की सीधी लूट हो रही है। इनमें ‘लियोनिट’, ‘टाइटेनियम आकऑक्साइड’ (रंजारिज) तुरसावस (जि़रकोन) और मोनाज़ाइट जैसे खनिज शामिल हैं। मोनाजाइट एक ऐसा खनिज है जिस पर चीन समेत कई देशों में प्रतिबंध है। इसके बावजूद यहां यह पिछले काफी लंबे समय से चल रहा है। ‘तहलका’ के पास मौजूद दस्तावेजों से पता चलता है कि परमाणु ताकत में काम आने वाले खनिज भी न केवल गैर कानूनी तरीके से निकाले जा रहे हैं अपितु चीन जैसे देशों को बिना किसी रुकावट के बेचे भी जा रहे हैं।

सरकारें आती जाती रही पर यह लूट लगातार चलती रही है। ‘तहलका’ की जांच में पता चला है कि सरकारी अनदेखी और लापरवाही के कारण गैरकानूनी खनन जारी है। इसमें केंद्र व आंध्र प्रदेश के सरकारी विभागों की मिलीभगत भी सामने आती है। इसके अलावा परमाणु ऊर्जा विभाग और केंंद्रीय खनन मंत्रालय भी इसमें शामिल हैं। असल में खनन का यह घोटाला बाकी कई घोटालों से बड़ा है जिसमें नौकरशाही और राजनीति का तालमेल है। लेकिन आज तक यह लोगों की नज़रों से इसलिए छुपा रहा है क्योंकि इसके साथ बड़े-बड़े लोगों के नामों को जोडऩा आसान नहीं था। केंद्र की राय है कि पर्यावरण की इज़ाजत देने की ताकत राज्य सरकारों को दी जाए। पर क्या राज्य सरकारों के पास इतना सब कुछ करने के लिए पूरा साजो-समान है? यह एक बड़ा सवाल है। हम सब जानते हैं कि खनन हमारे पूरे पर्यावरण को तबाह करता है। पर इस मामले में सज़ा का अनुपात बहुत ही कम है। मिसाल के तौर पर 2015-17 में गैर कानूनी खनन के 1,07,609 मामले पूरे देश में दर्ज किए गए लेकिन असली एफआईआर 6,033 मामलों में ही दर्ज हुई। देश की सर्वोच्च अदालत ने अगस्त 2017 में केंद्र सरकार को राष्ट्रीय खनिज नीति में संशोधन करने का निर्देश दिया था। अदालत का कहना था कि मौजूदा नीति केवल कागज़ी है और उसका क्रियान्वयन नहीं होता क्योंकि इसमें कई ताकतवर लोग शामिल होते हैं।

जांच में उन सभी जांच एजेंसियों द्वारा दिया गया ‘डाटाÓ शामिल किया गया है जो उन्होंने उनके बारे में दिया है जो समुद्र तल से रेत और परमाणु खनिज गैर कानूनी तरीके से निकालते हैं पर बिना किसी सज़ा के खौफ से।

इस घोटाले के बारे में एक व्यक्ति ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है। इसकी पूरी जानकारी ‘तहलकाÓ के पास है। उसके अनुसार अवैध खनन और निर्यात का काम खुले रूप से सरकारी कानूनों और नियमों को धता बताते हुए चलता रहा है। भारतीय खनन ब्यूरो (आईबीएम) और परमाणु खनिज निदेशालय (एएमडी) खनन की योजनाओं को मंजूरी देते हैं। आईबीएस केंद्रीय खनन मंत्रालय के तहत आता है और एएमडी परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत और ये दोनों ही विभाग सीधे प्रधानमंत्री के तहत हैं। राज्य सरकारों के यातायात के परमिटों को इक_ा कर उनकी भी जांच की गई। इन दस्तावेजों के बिना खनन और निर्यात नहीं किया जा सकता। कस्टम विभाग के पास उपलब्ध आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि अवैध खनन किस हद तक हो रहा है।

श्रीकाकुलम (आंध्र प्रदेश) का समुद्र तटीय रेत परमाणु खनिजों के साथ ‘इल्मेनाइटÓ, ‘रूटीलÓ, ल्यूकॉक्सीन, जिरकोन और ‘मोनाज़ाइटÓ जैसे खनिजों का मिश्रण है। इनमें ‘मोनाज़ाइटÓ एक ऐसा खनिज है जो परमाणु ईधन ‘थोरियमÓ बनाने के काम आता है। ‘मोनाज़ाइटÓ के निर्यात और निजी संस्थानों को बेचने पर पूरी रोक है पर हमारी राष्ट्रीय संपदा कुछ अनैतिक कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा निर्यात की जा रही है।

राज्यसभा सदस्य रेणुका चौधरी जो ‘पब्लिक अकाउंटस कमेटी (पीएसी)Ó की सदस्य भी थीं उन्होंने यह मुद्दा 14 मार्च 2016 को सदन में उठाया था। असल में पीएसी के सदस्य भाजपा के सांसद राजू ने पाया था कि ‘ट्राइमेक्सÓ ग्रुप न केवल अवैध खनन में लगा है बल्कि ‘मोनाज़ाइटÓ का अवैध निर्यात भी कर रहा है।

प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई, केंद्रीय खान मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय और आंध्रप्रदेश के सतर्कता व प्रवर्तन विभाग ने इस मामले में कुछ लोगों के नाम उजागर किए थे। इनमें आंध्रप्रदेश का एक राजनेता राजेंद्र प्रसाद कोनेरू और उसके दो बेटों मधु कोनेरू और प्रदीप कोनेरू और ‘ट्राइमेक्स सेंडस के नाम प्रमुख थे। इन्हें अवैध खनन में अभियुक्त भी बनाया गया। ‘तहलकाÓ ने ट्राइमेक्स ग्रुप के चेन्नई और दुबई के पतों पर प्रश्नों की सूची दो अप्रैल 2018 को भेजी और फिर 13 अप्रैल 2018 को उन्हें स्मरण पत्र भी भेजे।

अंत में कंपनी ने 22 अप्रैल 2018 को ग्रे मैटर कम्युनिकेशनस एंड कंस्लटिंग प्राईवेट लिमिटेड के द्वारा अपना जवाब भेजा। उन्होंने सभी आरोपों का खंडन किया उनका कहना है कि उन्होंने कभी भी मोनाजाइट को न तो निर्यात किया है और न ही किसी निजी कंपनी, व्यक्ति या चीन को बेचा है। उनके अनुसार परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (एइआरबी) एक वैधानिक संस्था है जो सभी तरह की रेडियो एक्टिव सामग्री के बारे में दिशा निर्देश जारी करती रहती है और उस पर पूरा नियंत्रण रखती है। कंपनी ने परमाणु ऊर्जा (रेडिएशन प्रोटेकशन) नियम 2004 के तहत एइआरबी से लाइसेंस लिया है। कंपनी इस नियामक संस्था के सभी निर्देशों का पालन करती है और समय-समय पर काम का निरीक्षण भी किया जाता है लेकिन आज तक किसी भी निरीक्षण में कंपनी द्वारा कोई उल्लंघन किए जाने की बात नहीं आई है। ट्राईमैक्स जिसके दफ्तर दुबई और चैन्नई में हैं, ने तहलका को चेताया कि उनके स्पष्टीकरण के विरुद्ध प्रत्यक्ष  या परोक्ष कोई खबर न छापें। यदि  ऐसा होता है तो यह मानहानि और अदालत  के आदेश के खिलाफ  होगा।

यहां यह जानना भी उचित होगा कि परमाणु ऊर्जा विभाग ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि ‘बीचÓ खनिजों में जो मात्रा ‘मोनाज़ाइटÓ की मिलती है वह कम है और उसे निकालना काफी मंहगा पड़ता है। कंपनी का कहना है कि परमाणु ऊर्जा विभाग ने यह भी स्पष्ट किया है कि ‘मोनाज़ाइटÓ ऐसा पदार्थ नहीं है जिसे कहीं भी बेचा जा सकता है और आज की परमाणु तकनालोजी में यह इस्तेमाल भी नहीं किया जा सकता।

इन गैरकानूनी कृत्यों का पता उस समय लगा जब 2004 में खान और भूगोल विभाग के सहायक निदेशक ने ट्राइमेक्स की ‘लीजÓ को राजस्व व वन विभाग की मंजूरी के बिना लागू कर दिया। जीओ एमएस नंबर31 तिथि 06 फरवरी 2004 के मुताबिक इन दोनों विभागों की मंजूरी इस ‘लीजÓ को लागू करने में अनिवार्य थी। यह पता चला कि ट्राइमेक्स ने 1.3 और 2.0 घन मीटर के ‘लोडरÓ इस्तेमाल किए और खुदाई के लिए0.9 और 1.5 घन मीटर के उपकरण प्रयोग किए और साथ ही दिन-रात खुदाई की। उसने इसके लिए फ्लड लाइट्स का भी इस्तेमाल किया जो अवैध है और सीआरज़ेड के आदेश जे-19011/11/2003-1। -111 का उल्लंघन है। हालांकि यह पर्यावरण और वन विभाग के निर्देशों का भी उललंघन था पर सरकार ने इस मामले में आज तक कोई कार्रवाई नहीं की है।

दुबई स्थित इस कंपनी ने इन आरोपों का भी खंडन किया है। उन्होंने कहा सीआरजेड की मंजूरी के मामले में कोई किसी तरह का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है। कंपनी का कहना है कि यह आरोप मानहानि की श्रेणी में आता है और अदालत ने मीडिया को मानहानि वाले वक्तव्य दिखाने से रोक दिया है।

इस मामले में राज्य सरकार के अधिकारियों ने भी ऐसा ही किया और सालों तक अवैध खनन चलने दिया। छह मार्च 2013 को भारतीय ब्यूरो ऑफ माइंस, वन, राजस्व और निदेशक खनन और भूगर्भशास्त्र ने एक विस्तृत रिपोर्ट सरकार के प्रधान सचिव (उद्योग व वाणिज्य) को भेजी जिसमें बताया गया कि ‘ट्राइमेक्स इंडस्ट्रीज ने 387.72 एकड़ ज़मीन पर अवैध खनन किया है। 20 सितंबर 2013 की अपनी रिपोर्ट में आंध्र प्रदेश सरकार के खनन व भूगर्भशास्त्र के निदेशक ने कंपनी के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा था, पर आज तक इस पर कोई आदेश पारित नहीं किया गया।

‘रेडियो एक्टिवÓ और परमाणु खनिजों का अवैध निर्यात खतरनाक है जबकि इसमें गाढ़ा ‘मोनाज़ाइटÓ भी था जिसमें ‘थोरियमÓ होता है जो परमाणु उद्योग में इस्तेमाल किया जाता है। यह देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा के लिए गहरी चिंता का विषय है। आंध्र प्रदेश के सतर्कता और प्रवर्तन विभाग और खनन और भूगर्भशास्त्र के अधिकारियों ने ‘ईस्ट-वेस्ट मिनिरल सैंड्स प्राइवेट लिमिटेड (ट्राइमेक्स इंडस्ट्रीस लिमिटेड) के जून, सितंबर और नवंबर 2015 के मामलों की जांच की। ईस्ट वेस्ट मिनिरल सैंड प्राइवेट लिमिटेड (यह लीज़ ट्राइमेक्स इंडस्ट्रीस लिमिटेड से ईस्ट-वेस्ट मिनीरल सेंड प्राइवेट लिमिटेड के नाम बदली गई थी) और आज यह ट्राइमेक्स सैंडस (पी) के नाम पर काम कर रही है। जांच कर्ताओं को पता चला कि ट्राईमेक्स इंडस्ट्रीस ने 304.40 एकड़ विवादित ज़मीन पर खनन किया और 1295.63 करोड़ के अवैध खनिज निकाले। रिपोर्ट में कहा गया कि ट्राईमेक्स इंडस्ट्रीस ने अपने प्लांट के नीचे 9750 मीट्रिक टन ‘मोनाजाइट़Ó जमा कर रखा है। पर ऐसा लगता है कि परमाणु ऊर्जा विभाग ने इसे अपने कब्जे में लेने का कोई प्रयास नहीं किया है।

सभी ट्राइमेक्स इंडस्ट्रीस ने अवैध तरीके से 17,58,112 मीट्रिक टन ‘बीच सैंडÓ परमाणु खनिज को निकाला और उसे विभिन्न स्थानों पर भेजा। इसकी कीमत 1295.63 करोड़ बनती है।

इस बारे में ट्राइमेक्स ग्रुप ने कहा कि यह कहना गलत और झूठ है कि कंपनी ने अवैध खनन कर 17,58,112 मीट्रिक टन सामग्री बाहर निकाली जिसकी कीमत 1295.63 करोड़ बनती है और इसमें ‘मोनाजाइटÓशामिल है। सतर्कता विभाग बिना किसी आधार के इन आंकड़ों तक पहुंचा है। ध्यान देने की बात यह है कि सतर्कता विभाग की रिपोर्ट स्वयं अपनी ही बातों का खंडन करती है, और यह आधारहीन, निरर्थक और काल्पनिक आधार पर तैयार की गई है। जब 2005 में हमने आरटीआई के तहत रिपोर्ट की प्रतिलिपि मांगी तो सतर्कता और प्रवर्तन विभाग के आधिकारियों ने हमें रिपोर्ट की प्रतिलिपि नहीं दी थी।

सतर्कता और प्रवर्तन विभाग की महा निदेशक एआर अनुराधा ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि खनन और भूगर्भशास्त्र के अधिकारियों ने खनन को जारी रखवाया और खनिजों को 387.72 एकड़ विवादित क्षेत्र से बाहर ले जाने के लिए पर्चियां जारी की। जबकि यह निर्धारित मानकों का उल्लंघन था। श्रीकाकुलम जि़ले के गाड़ा मंडल के गांव वातसावालसा में अधिकारी खनन को रोकने में विफल रहे।

ट्राइमेक्स ने इन आरोपों का खंडन किया। उनका कहना है कि बीच सैंड खनिजों के खनन और परमाणु खनिजों के निर्यात के बारे में दी गई रिपोर्ट झूठी और गलत हैं। उनका कहना है कि खनन से संबंधित कंपनी की सारी कार्रवाईयां कानून और नियमों के तहत हैं। उनका कहना है कि कुछ लोग जिनकी अपनी रुचियां इसमें हैं वे हमारे खिलाफ सरकार और दूसरी एजेंसियों के पास शिकायतें करते रहते हैं।

महानिदेशक ने राजस्व विभाग के प्रधान सचिव को 1295.63 करोड़ रुपए वसूलने की सिफारिश की थी क्योंकि कंपनी ने राजस्व विभाग से खनन के लिए कोई मंजूरी नहीं ली थी। साथ ही गाड़ा मंडल के तहसीलदारों के खिलाफ कार्रवाई करने की भी सिफारिश की थी जिन्होंने विवादित स्थल पर खनन नहीं रोका। इसी रिपोर्ट में आंध्र प्रदेश के प्रधानसचिव से कहा गया था कि वहां खनन बंद कर दें क्योंकि वह नियमों के अनुसार नहीं हो रहा था। इस रिपोर्ट की प्रतिलिपियां प्रधानसचिव राजस्व, प्रधानसचिव उद्योग व वाणिज्य और मुख्य सचिव आंध्र प्रदेश सरकार को भी भेजी गई लेकिन अवैध खनन और ‘मोनाजाइटÓ का निर्यात बदस्तूर जारी रहा। हैरानी की बात है कि आज तक परमाणु ऊर्जा विभाग ने भारी मात्रा में ‘मोनाजाइटÓ के निर्यात के बावजूद आज तक इस विषय में कोई कार्रवाई नही की है। इस खनन से न केवल सरकार को राजस्च का भारी नुकसान हो रहा है बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा बन रहा है।

आंध्र प्रदेश सरकार के सतर्कता व प्रवर्तन विभाग की जांच से खुलासा हुआ है कि ट्राईमेक्स इंडस्ट्रीस ने खनन के लिए निर्धारित योजना के अनुरूप काम नहीं किया और नियमों का उल्लंघन किया है। जो वृक्षारोपण उस क्षेत्र में होना चाहिए था वह भी नहीं किया गया है।

निष्क्रियता

आंध्रप्रदेश के सतर्कता व प्रवर्तन विभाग ने अपनी 11 मार्च 2.016 के रिपोर्ट में ट्राईमेक्स ग्रुप से 1295.63 करोड़ रुपए वापिस लेने की सिफारिश की थी जो उन्होंने 17,58,112 मीट्रिक टन अवैध खनन करके कमाए थे। विभाग ने विभिन्न विभागों के अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई करने की सिफारिश की थी। खनिज ‘कनसेशनÓ के नियम 22ए का उल्लंघन करने के लिए भी इनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की थी। आंध्रप्रदेश सरकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि फर्म ने राजस्व विभाग की मंजूरी के बिना श्रीकाकुलम जि़ले के वातसावालसा और गाड़ा गावों मे खनन किया।

अब कंपनी की विदेशों में चल रही कंपनियों की जांच भी ज़रूरी है जहां पर इन खनिजों का निर्यात किया गया। इस कारण इसमें सीबीआई जैसी किसी संस्था से जांच कराने की ज़रूरत है।

ट्राइमेक्स का कहना है कि हाईकोर्ट ने वन विभाग को वतसावालासा गांव के सर्वेक्षण नंबर 216 और 217 में कंपनी की चल रही खनन प्रक्रिया में दखल देने से रोक दिया है। इसके बावजूद 2012 में वन विभाग ने यह कहते हुए कि हाईकोर्ट का आदेश ने उन्हें केवल सर्वेक्षण नंबर 216 और 217 में ही हस्तक्षेप करने से रोका है। इससे परेशान हो कर कंपनी ने हाईकोर्ट में एक और याचिका दाखिल की कि वन विभाग को सभी सर्वेक्षण नंबरों में भी हस्तक्षेप करने से रोका जाए जो कि जीओ के तहत आते हैं। यह क्षेत्र 7.2 वर्ग किलोमीटर बनता है। ये दोनों आदेश आज तक लागू हैं।

इतने सारे सबूत होने के बावजूद इस मामले में सरकारी अफसरों की निष्क्रियता यह संकेत देती है कि ट्राईमेक्स ग्रुप ने कितना दबाव इस्तेमाल किया होगा और इस ग्रुप की सांठगांठ नौकरशाही और राजनीति में शिखर तक होगी। देखना है कि अब राज्य या केंद्र सरकार खुद इसमें कार्रवाई करती है या इसे अदालतों पर छोड़ दिया जाता है।

भगोड़ा आर्थिक अपराधी अध्यादेश को मिली राष्ट्रपति की मंजूरी

भगोड़े आर्थिक अपराधी अध्यादेश- 2018 को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने मंजूरी दे दी है। अब अधिकारियों को बैंकों के साथ धोखाधड़ी और जानबूझ कर ऋण न चुकाने जैसे आर्थिक अपराध कर देश से भागने वाले लोगों की संपत्तियां जब्त करने की कार्रवाई करने में आसानी होगी।

सूत्रों के मुताबिक़ यह अध्यादेश उन आर्थिक अपराधियों के लिए लाया गया जो देश की अदालतों के न्यायाधिकार क्षेत्र से बाहर भाग कर कानूनी प्रक्रिया बच रहे हैं।

‘‘इस अध्यादेश की जरूरत थी क्योंकि अपराध के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू होने की संभावना या कानूनी प्रक्रिया के बीच में ही देश की अदालतों के न्यायाधिकार क्षेत्र से बाहर भागने वालों की संख्या बढ़ी है,’’ एक आधिकारिक बयान में बिना किसी का नाम लिये कहा गया है।

रिपोर्ट्स में कहा गया है क़ी इस अध्यादेश का उद्देश्य भगोडे़ आभूषण कारोबारी नीरव मोदी जैसे व्यक्तियों की धोखाधड़ी से सरकारी खजाने या सकारी बैंकों को हुए नुकसान की त्वरित वसूली की कार्रवाई की कानूनी व्यवस्था करना है। नीरव मोदी और उसके साहयोगियों पर पंजाब नेशनल बैंक के साथ करीब 14000 करोड़ रुपये के कर्ज की धोखाधड़ी करने का आरोप है।

इसकी जरूरत बताते हुए बयान में कहा गया कि इस तरह के अपराधियों के भारतीय अदालतों के सामने हाजिर नहीं होने से जांच में बाधाएं आती हैं तथा अदालत का समय बर्बाद होता है। इससे कानून का शासन भी कमजोर होता है।

बयान में कहा गया , ‘‘ कानून में मौजूद दिवानी एवं फौजदारी प्रावधान इस तरह की समस्या से निपटने के लिए पूरी तरह सक्षम नहीं हैं। ’’

आंधी पानी से 16 की मौत; ताजमहल को नुकसान पहुंचा

जहां ब्रज में बुधवार को आए बवंडर ने चंद मिनटों में ऐसी तबाही मचाई कि 16 लोगों की मृत्यु हो गयी, वहीं दुनिया भर में सातवें अजूबे के तौर पर मशहूर ताजमहल को लगातार आंधी-पानी से नुकसान पहुंचा है.

रिपोर्ट्स के मुताबिक़ भारी बारिश और आंधी की वजह से ताजमहल परिसर में स्थित एक पिलर का हिस्सा टूट कर गिर गया है.

एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, ताजमहल के एंट्री गेट के एक पिलर का हिस्सा गिर गया.

बता दें कि उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में बीते कुछ दिनों से आंधी और बारिश की खबरें हैं.

बुधवार के भयंकर तूफान से शहर से देहात तक सैकड़ों पेड़, होर्डिंग, टीनशेड, खंभे उखड़ गए। कई जगह मकान और दीवार ढह गईं।

आगरा के अछनेरा और डौकी में तीन-तीन जबकि ताजगंज में दो लोगों की मौत हो गई। मथुरा और फिरोजाबाद में चार-चार लोगों की मौत हो गई।

भारत बंद के मद्देनज़र देश के विभिन्न हिस्सों में धारा 144 लागू

जाति आधारित आरक्षण के विरोध में बुलाये गए भारत बंद के मद्देनज़र देश के विभिन्न हिस्सों में निषेधाज्ञा आदेश लगाई गयी है।

भारतीय दंड संहिता की 144 धारा, जो किसी जगह पांच या अधिक लोगों को एकत्र होने से प्रतिबंधित करती है, राजस्थान के जयपुर और भरतपुर, मध्य प्रदेश के भोपाल और उत्तराखंड की नैनीताल में लगाया गया है।

भरतपुर में धारा 144 को 15 अप्रैल तक लगाया गया है और इंटरनेट सेवा भी आज सुबह 9 बजे तक निलंबित रहेगी।

जिला प्रशासन ने जुलूस और धरने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है और चेतावनी दी है कि कानून तोड़ने वालों के खिलाफ “कड़ी कार्रवाई” की जाएगी।

नौकरी और शिक्षा में जाति आधारित आरक्षण के खिलाफ ये राष्ट्रव्यापी बंद कुछ संगठनों द्वारा बुलाया गया है।

गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों के लिए एक सलाह जारी की है कि यदि आवश्यक हो, तो उन्हें आवश्यक व्यवस्था करने और निषेध आदेश जारी करने के लिए कहें।

2 अप्रैल को हुई राष्ट्रव्यापी हड़ताल के दौरान उत्तर प्रदेश, ओडिशा, बिहार, गुजरात और पंजाब सहित विभिन्न राज्यों में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए जिसमें 10 से अधिक लोगों की मौत हो गई।

2 अप्रैल को भारत बंद को एससी / एसटी अत्याचार अधिनियम की रोकथाम पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ विरोध करने के लिए बुलाया गया था।

दलित निकायों का दावा है कि मार्च 20 के आदेश ने अधिनियम को कमज़ोर किया, जो कि भेदभाव और अत्याचारों के खिलाफ हाशिए समुदायों की रक्षा करता है।