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फुटबाल का बादशाह फिर बना फ्रांस

बीस साल बाद एक बार फिर फीफा फुटबाल विश्व कप फ्रांस पहुंच गया। रूस में 14 जून से चल रहे विश्व कप फुटबाल टूर्नामेंट के फाइनल में फ्रांस ने जुझारू टीम क्रोएशिया को 4-2 से हरा दिया। आज से 60 साल पहले जब ब्राजील ने स्वीडन को फाइनल में 5-2 से परास्त किया था, उसके बाद निर्धारित समय के भीतर यह सबसे बड़ी जीत है। हालांकि 1966 के फाइनल में इंग्लैंड ने जर्मनी को इतने ही अंतर (4-2) से हराया था पर वह मैच अतिरिक्त समय तक चला था।

आधे समय तक विजेता टीम 2-1 से आगे थी। क्रोएशिया की शुरूआत बहुत तेज़ थी, लेकिन फ्रांस को मिली एक फ्री किक जो कि ग्रीज़मैन ने ली थी, पर क्रोएशिया का खिलाड़ी मैंडज़ूकिक गेंद ‘क्लीयरÓ करने के प्रयास में सिर से गेंद अपने ही गोल में डाल बैठा और फ्रांस को 1-0 की बढ़त मिल गई। यह गोल 18वें मिनट में आया। अपने ही गोल में गेंद डालने की इस विश्व कप की यह 12वीं घटना थी। ‘नॉक आउटÓ में यह लगातार चौथा अवसर था जब क्रोएशिया पहला गोल खा कर पिछड़ गया था। प्री क्र्वाटर, क्र्वाटर और सेमीफाइनल इन सभी मैचों में भी उस पर पहला गोल हुआ था। पर सेमीफाइनल में इंग्लैंड के खिलाफ बराबरी का गोल करने वाले प्रीसिस ने यहां भी 10 मिनट के बाद अपनी टीम को बराबरी पर ला दिया। लुका मोड्रिकस की ‘बाक्सÓ के बाहर से ली ‘फ्री किकÓ को साइम वरसालीडकों ने सिर से प्रीसिस की ओर बढ़ा दिया प्रीसिस ने ‘बाक्सÓ में गेंद संभाली और दो फ्रांसिसी रक्षकों को चकमा देते हुए अपने बांए पैर से ज़ोरदार तिरछा शॉट लगा कर गेंद को गोल कीपर के बांए तरफ गोल में डाल दिया (1-1)

लेकिन प्रीसिस उस समय ‘हीराÓ से ‘जीरोÓ बन गए जब फ्रांस को मिली एक फ्लैग किक पर उन्होंने अपनी बाजू लगा दी पर यह रैफरी और सहायक रैफरी को नहीं दिखा। इस पर फ्रांस के खिलाडिय़ों ने रैफरी से अपील की। अर्जेंटीना के रैफरी नेस्टर मिताना ने ‘वीएआरÓ रिव्यू देखा और बेझिझक फ्रांस को पेनाल्टी दे दी। यह इस दूर्नामेंट की 28 वीं पेनाल्टी थी यह भी एक रिकार्ड है। क्रीज़मैन को इसे गोलकीपर के दांए ओर से गोल में डालने में कोई कठिनाई नहीं हुई । इस टूर्नामेंट में उसका यह चौथा गोल था। यह गोल खेल के 38वें मिनट में हुआ। 1974 के बाद किसी भी विश्व कप के फाइनल में आधे समय तक के ये सबसे ज़्यादा गोल थे (2-1)। 1974 में पश्चिमी जर्मनी भी नीदरलैंड्स के खिलाफ आधे समय तक 2-1 से ही आगे था।

आधे समय के बाद क्रोएशिया ने हमले तेज किए। मैदान में और ‘हवाÓ में भी वे फ्रांस के खिलाडिय़ों पर भारी पर रहे थे, पर फ्रांस की रक्षा पंक्ति ने गज़ब का खेल दिखाया। उन्होंने क्रोएशिया की टीम को गोल पर निशाना नहीं लेने दिया। इस बीच एमबैपे और ग्रीज़मैन ने एक हमला बनाया और बॉक्स के कोने पर खड़े पोगवा को गेंद थमा दी। उसका दाएं पांव से लिया गया शॉट गोली ने रोका पर लौटती गेंद कारे उसने आसानी से गोल में पहुंचा दिया (3-1)।

छह मिनट बाद लुकस हरनेड्डज़ ने बाए छोर से ज़ोरदार हमला बनाया ओर 19 वर्षीय एमबैपे को पास थमा दिया इस युवा खिलाडी ने शानदार नीचा शॉट लगा कर अपना खाता खोला और साथ ही टीम को 4-1 की बढ़त दिला दी। पेले (विश्व कप 1958) के बाद विश्व कप फाइनल में गोल करने वाला वह सबसे कम उम्र का खिलाडी बन गया।

पिछले तीन मैचों में पिछडऩे के बाद लगातार वापसी करने वाली क्रोएशिया की टीम कुछ हताश सी हो गई। उसके लिए तीन गोल की बढ़त को खत्म कर पाना नामुमकिन न सही पर कठिन ज़रूर था। मैच खत्म होने से 20 मिनट पहले फ्रांस के गोलकीपर हुगो लौरिस ने एक भयानक भूल कर दी। सैमुयल उमटीटी के बैक पास पर गोलकीपर लौरिस ज़्यादा ही ढीला हो गया और उसने पीछे से आ रहे मंदज़ूकीक पर पूरा ध्यान नहीं दिया । उसने उसे छक्काने की कोशिश की लेकिन उसके पैर से लग कर गेंद गोल में चली गई और स्कोर 4-2 हो गया। विश्व कप के इतिहास में इस तरह का गोल होने का शायद यह पहला अवसर था।

गोल्डन बूट

इंग्लैंड के कप्तान हैरी कैने को टूर्नामेंट में सर्वधिक गोल (6) करने के लिए ‘गोल्डन बूटÓ मिला और क्रोएशिया के लुका मोड्रिकस को ‘प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंटÓ चुना गया और उन्हें ‘गोल्डन बॉलÓ दी गई। बैल्जियम के ‘मिड फील्डरÓ ईडन हैजर्ड को दूसरे नंबर का खिलाडी चुना गया। बैल्ज्यिम के गोल रक्षक थीबाउट कोर्टियस को ‘गोल्डन ग्लव्सÓ दिया गया।

गैरी लिंकर (1986) के बाद जिन्होंने विश्व कप में सर्वाधिक छह गोल किए थे , कैने सबसे ज़्यादा गोल करने वाले दूसरे अंग्रेज खिलाड़ी बन गए। कैने ने तीन गोल पेनाल्टी किक से किए हैं। कैने ने छह में से दो गोल टुनीशिया के खिलाफ, तीन पानामा के खिलाफ और एक कोलंबिया के खिलाफ किया। इनमें से तीन गोल पेनाल्टी से, दो बॉक्स के अंदर मिली गेंद से और एक सिर से किया। कैने ने गोल पर कुल 14 शॉट मारे इनमें से छह पर गोल हुए।

मारियो जगालो (ब्राज़ील) और फ्रांज बेकेनबॉट (जर्मनी) के बाद दिदिए तीसरे ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने पहले खिलाडी और फिर कोच के रूप में विश्व कप जीता है।

बैल्जियम को तीसरा स्थान , इंग्लैंड को 2-0 से हराया

डेढ़ हफ्ता पहले तक फीफा वर्ल्ड कप 2018 में विजेता पद की दावेदार मानी जा रही बैल्जियम और इंग्लैंड क्रमश: तीसरे और चौथे स्थान पर रहे हैं। शनिवार शाम को बैल्जियम ने सेंट पीटर्सबर्ग स्टेडियम में खेले गए फीफा वर्ल्ड कप के तीसरे स्थान के मैच में इंग्लैंड को 2-0 से हरा दिया। सेमीफाइनल में दोनों टीमें अपने प्रतिद्वंदियों से हार गईं थीं।

बैल्जियम ने एक पखवाड़े के भीतर दूसरी बार इंग्लैंड को हराया। ग्रुप चरण में भी बैल्जियम ने 82 साल के लंबे अंतराल के बाद इंग्लैंड हो हराया था। ये फीफा वर्ल्ड कप में बैल्जियम का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन है। गेरेथ साउथगेट ने क्रोएशिया से सेमीफाइनल में हारी इंग्लैंड टीम में चार बदलाव किये थे। इंग्लैंड ने विश्व कप में अपनी सबसे युवा टीम उतारी जिसमें खिलाडिय़ों की औसत आयु 25 वर्ष 174 दिन थी।

बैल्जियम शुरू से ही आक्रामक थी और उसने इंग्लैंड के डिफेंस और अटैक को पूरे मैच में पंगु सा करके रखा। बैल्जियम ने चौथे मिनट में ही गोल कर इंग्लैंड को जबरदस्त झटका दे दिया जिससे इंग्लैंड कभी भी बाहर नहीं निकल पाया। टीम में वापसी करने वाले थॉमस म्यूनिएर ने यह गोल किया। थॉमस पहले सेमीफाइनल मैच में निलंबन के चलते नहीं खिलाये गए थे। नासेर चाडली के बाई तरफ से दिए क्रास पास पर म्यूनिएर ने गोल किया।

इस विश्व कप में बैल्जियम की टीम ”रेड डेविल्स” के नाम से मशहूर हुई। हॉफ टाइम तक बैल्जियम 1-0 से आगे रही थी। दूसरे हाफ में 1-0 की बढ़त के मनोविज्ञानिक लाभ के साथ बैल्जियम के खिलाडिय़ों ने एक के बाद इंग्लैंड पर हमलों की बौछार की। हालांकि गोल का अवसर बैल्जियम को 82वें मिनट में मिला जब ब्रुइने से मिले पास पर हैजार्ड ने गेंद गोलपोस्ट के भीतर नेट में मार दी। इस तरह बेल्जियम फीफा वर्ल्ड कप में तीसरा स्थान हासिल करने में पहली बार सफल हुआ। हैजार्ड को ”मैन ऑफ द मैच” चुना गया।

दर्शकों की शोर के बावजूद इंग्लैंड टीम को इस विश्व कप में जीत की जगह हार की निराशा के साथ देश वापस लौटना पड़ा। बेल्जियम का विश्व कप में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन इससे पहले 1986 में था जब वह चौथे स्थान पर रहा था। भले ही बैल्जियम कप नहीं जीत पाया लेकिन उसने तीसरा स्थान पहली बार हासिल कर अपने समर्थकों को निराश नहीं होने दिया।

सेमी फाइनल मैच

इससे पूर्व खेले गए सेमीफाइनल मैचों में भी एक कड़ी चुनौती थी। यहां पर क्रोएशिया की टक्कर 1966 के विजेता इंग्लैंड से थी। यहां हालांकि पहला गोल इंग्लैंड ने किया पर क्रोएशिया ने बराबरी की और फिर विजयी गोल दाग कर 2-1 से जीत दर्ज कर ली। इस मैच में क्रोएशिया ने 22 शॉट गोल पर ट्राई किए जबकि इंग्लैंड केवल 11 बार ही कर पाया। गेंद पर भी 56 फीसद नियंत्रण क्रोएशिया का रहा और 44 फीसद गेंद इंग्लैंड के पास रही। क्रोएशिया को आठ और इंग्लैंड को चार कार्नर मिले।

फ्रांस और बैल्जियम के बीच खेला गया दूसरा सेमीफाइनल भी अत्याधिक रोमांचक रहा। इस मैच में फ्रांस ने बैल्जियम पर 1-0 से जीत दर्ज की। हालांकि इस मुकाबले में गेंद 64 फीसद बैल्जियम के कब्जे में रही और पासों की सटीकता भी बैल्जियम की 91 फीसद और फ्रांस की 83 फीसद थी फिर भी एक मात्र गोल फ्रांस ने कर जीत दर्ज की और फाइनल में स्थान बनाया।?

वीएआर का सफल प्रयोग

पहली बार वीडियो असिस्टेंट रैफरी का प्रयोग हुआ। इसका 440 बार इस्तेमाल हुआ। 62 मैचों में 19 फैसले रिव्यू हुए और 16 निर्णय बदले गए।

फेयर प्ले से नॉकआएट राउंड

पहली बाद फेयर प्ले से कोई टीम (जापान) नॉक आउट राउंड में पहुंची। स्नेगल को ज़्यादा येलो कार्ड (6) के कारण टूर्नामेंट से बाहर जाना पड़ा।

दबदबा टूटा, दायरा बढ़ा

88 साल पुराने टूर्नामेंट में चुनिंदा देशों का दबदबा टूटा। पहली बार क्रोएशिया फाइनल में तो रूस क्र्वाटर में पहुंचा। इंग्लैंड भी 28 साल बाद सेमी फाइनल खेला।

प्रेम के रूप

असमय प्रेम कविताएं

तुम्हारी छुअन से खिली पंखुड़ी

मेरा प्यार है

—-

प्यार का कोई न समय है, न उम्र

न देश, न धाम और न नगर

ओह! मुझे हर बार लगा

मेरा प्यार है-

नुकीले कांटों के बीच

फूलों का खिलना

जैसे पैने दुर्दान्त दांतों से घिरी

मेरी जीभ

—-

खालीपन बराबर बढ़ रहा है

हर दिन, हर ऋतु, हर सूर्यास्त

कहां से लाऊं ऐसा भरापन

जो मुझे नीचे गिरने से बचा सके

—–

तुम्हारी आंखों का नीलापन

मेरा प्यार हैं

कितनी बहुरंगीय धारियां है इसमें

और कितनी अनजानी शक्लें

स्फाटिक के रंबों में जैसे झिलमिलाती

एक उज्जवल रेख

मेरे अच्छे भविष्य की भी है

ये वस्तुएं तुम्हारे

विश्व बाज़ार से गायब हैं

हल्की धूप की परतों में

सुहाता गुनगुनापन जैसे

तुम्हारी सौम्य घनी पलकें

———-

गेहूं के दानों का दूधियाना।

मेरा प्यार है

जो धूप में पक रहा है

अन्न बनने को

अभी समय है

जब तक चैत आये

मैं जीवन की हरीतिमा को

सुनहरा होते देखूं

बदलते रंगों की

रोएंदार छाया में

मैंने तुम्हारे होने की लहरें सुनीं

पतझड़ के गिरने की

खाकी खडख़ड़ाहट मैंने सुनी

नदियां चाहे किसी पर्वत शिखर से फूटे

बहती हंै सागर की तरफ

जीवन ही वह धार है जल की

जो काली चट्टान को तोड़ कर

निर्झरित होगी

ओह! तेज़ हवा ने जब मुझे

मंजरित आम की तरह झकझोरा

मेरी फलवान नयी टहनियां हिलीं

भूरी नसों-दार पतियां विचलित हुई

पर जड़ों ने भरोसा नहीं खोया

जिस तरह उजाले से मैं जिया हूं

आज तक… वह मेरा प्यार है।

पारदर्शी जल में

जैसे मछलियों की बिछलन

कहां है अभी वसंत का आगमन

उसे मैं बीहड़ों में छोड़ कर आया हूं

उसकी जगह देखता हूं धुंधलके में

पथराई तुम्हारी सूनी आंखें

खोखले दिल का विस्तृत होता आयतन

—-

सुनो, सुनो अभी और भी सुनो

यदि मृत्यु अटल है इस तमस की तरह

तो जीवन भी अविनाशी है

वह अक्षय स्रोत कहां है

जहां से निरंतर फूटते हैं

मार्ग-वाहीं निर्झर

खिलते हैं अनचय बन फूल

और बिना कहे मुरझा कर गिर जाते हैं

कोई नहीं सुनता उनका त्रासद रूदन

इन्हीं में होता है प्रस्फुटित युग बीज

—-

तुम न बोलो चाहे

अपने ताजा घावों से रिसी भाषा

पर मुझे बोलने दो कवि की तरह

यह कर्म चुना है मैंने

मैं बोलूंगा

उनकी धूर्तता और

लफ्फाजी के विरूद्ध

हमारे मुंह सी दिए गए हैं

सुनहरे तारों से

जिसे तुम सौभाग्य समझ रहे हो

यह जादुई दुनिया मेरी नहीं है

मेरी धरती वह है

जो असंख्य खुरों से खुदी है

वे कौन हैं जो मुझे

रंगीन विज्ञापनों से चकित किए हैं

क्या कहूं… कितना त्रासद है

तुमने मुझे अपना कर मुट्ठी भर

रजत सिक्कों के लिए त्यागा है

दिल्ली दरबार तुम्हारे लिए खुला है

राजपथ पर चलने वाले कवियों की आत्मा

अंदर-अंदर मर चुकी है

भले ही वे पंच सितारों में जश्न मना रहे हों।

—–

धरती की अनंत गति से ही बदलती है ऋतुएं

आने वाले बेहतर दिनों का भरोसा करो

जिन्होंने भय और आतंक के सिवा

और कुछ जाना ही नहीं

वे अब लहलहाती दुनिया के

स्वप्न देख रहे है

ऐसा कभी नहीं हुआ

पतझड़ की गंधहीन सरसराहट से

पेड़ निपात हों

और वसंत न फूटे

अंत तक चाहूंगा

आदमी का सिर ऊंचा रहे

हिमालय शिखर की तरह

मैं अपने हृदय को खंगालता रहूं

जो गहरा है समुद्र से भी।

अलविदा! चैंपियन ट्राफी

पाकिस्तान हाकी फेडरेशन और उनके प्रमुख एयर मार्शल नूर खान के प्रयासों से जिस चैंपियन हाकी ट्राफी का जन्म 17नवंबर 1978 को लाहौर में हुआ वह 40 साल बाद पहली जुलाई 2018 को नीदरलैंड्स के ब्रेडा में इतिहास बन गई। इन 40 सालों में इसके 37 संस्करण खेले गए। पहले टूर्नामेंट में कुल पांच टीमों ने भाग लिया था । ये टीमें थी – मेजबान पाकिस्तान, आस्ट्रेलिया, ग्रेट ब्रिटेन, न्यूजीलैंड और स्पेन। यह वह वक्त था जब हाकी के कृत्रिम मैदान नए-नए आए थे और खेल की तकनीक और उसके कई नियम बदले गए थे। ध्यान रहे कि इन कृत्रिम मैदानों का इस्तेमाल पहली बार 1976 के माँट्रियल (कैनेडा) के ओलंपिक खेलों में हुआ था। इसका इतना असर पड़ा कि कुछ ही समय पहले 1975 में विश्व कप जीतने वाली भारत की टीम एक लीग मैच में आस्ट्रेलिया से छह गोल खा गई। वह समय भारतीय हाकी के पतन की शुरूआत के तौर पर याद किया जाता है। उस ओलंपिक के स्वर्ण पदक का फाइनल आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैड़ के बीच खेला गया । उस समय पाकिस्तान की टीम काफी मज़बूत थी, पर वह भी सेमीफाइनल में आस्ट्रेलिया से 1-2 से हार कर बाहर हो गई थी। पर तीसरे स्थान के लिए खेले गए मुकाबले में उसने नीदरलैंड्स को 3-2 से हरा कर कांस्य पदक जीत लिया। लेकिन भारत अपने पूल ‘एÓ में तीसरे स्थान पर रह का पदकों की दौड़ से पहले ही बाहर हो गया था। यहां उसे सातवां स्थान मिला।

इन हालात में चैंपियन ट्राफी का शुरू किया जाना सभी देशों को पसंद आया। पहले टूर्नामेंट में भारत नही था। इसका खिताब मेजबान पाकिस्तान ने जीता। उस समय की पाकिस्तानी टीम में सलीम उल्ला, हनीफ खान, अख्तर रसूल और कप्तान असलाहूद्दीन सिद्ीकी जैसे धुरंधर खिलाडी थे।

इस टूर्नामेंट का दूसरा संस्करण 1980 में खेला गया। मेजबानी फिर से पाकिस्तान ने की, पर तीन से 11 नवंबर तक चली इस प्रतियोगिता को इस बार कराची में आयोजित किया गया। इसमें कुल सात टीमों ने हिस्सा लिया। इस बार भारत भी इसमें था। पर वह छह में से केवल एक ही मैच जीत पाया और उसके दो मैच ‘ड्राÓ रहे और तीन मैच वह हार गया। भारत को एकमात्र जीत ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ मिली जिसे उसने 6-3 से परास्त किया। यहां पाकिस्तान विजेता बना जबकि भारत को पांचवा स्थान मिला। 1981 में भी इसकी मेजबानी कराची को मिली। इस बार भारत इसमें नहीं था। पाकिस्तान का प्रदर्शन इस बार फीका रहा और वह छह टीमों में से चौथा स्थान ही पा सका। पहले तीन स्थान नीदरलैंड्स, आस्ट्रेलिया और जर्मनी को मिले।

1982 में भारत इन मुकाबलों में खेला और नीदरलैंड्स और आस्ट्रेलिया के बाद तीसरा स्थान लेने में सफल रहा। भारत ने खेले पांच मैचों में से तीन में जीत दर्ज की। दो में उसे हार का मुंह देखना पड़ा। पाकिस्तान चौथे, जर्मनी पांचवे और सोवियत यूनियन की टीम छठे स्थान पर रहे।

यदि चैंपियसं टा्रफी के रिकार्ड पर नज़र डालें तो पता चलता है कि इसमें यूरोपीय देशों और आस्ट्रेलिया का दबदबा रहा है। एशियायी देशों में केवल पाकिस्तान ही इसे तीन बार जीत सका है। आस्ट्रेलिया ने यह खिताब 15 बार, जर्मनी ने 10 बार, नीदरलैंड्स ने आठ बार और स्पेन ने एक बार इस पर अपनी मुहर लगाई है। भारत केवल दो बार इसके फाइनल में खेला है।

भारत का प्रदर्शन

चैंपियंस ट्राफी उस समय शुरू हुई जब अंतरराष्ट्रीय हाकी में कृत्रिम टर्फ आ चुकी थी। 1976 में माँट्रियल ओलंपिक से इस टर्फ की शुरूआत हुई। इस कृत्रिम टर्फ का आना भारत के लिए नुकसान देह रहा। 1975 में प्राकृतिक मैदान पर विश्व कप जीतने वाली भारत की टीम 15 महीने बाद माँट्रियल ओलंपिक खेलों में एक नौसिखिया टीम नज़र आने लगी। हालांकि यहां उसने पूल ए के पहले मैच में अर्जेंटीना को 4-0 से हराया। पर अगले मैच में वह नीदरलैंडस से 1-3 से और आस्ट्रेलिया से 1-6 से हार गई। उस समय तक भारत की यह सबसे बड़ी हार थी। 1928 के बाद यह पहली बार था कि भारत ओलंपिक के सेमी फाइनल में नहीं पहुंच पाया था। अंत में उसे सातवां स्थान मिला। 1964 का ओलंपिक विजेता और 1975 के विश्व कप जीतने वाला देश मैदान के हालात बदलते ही सातवें स्थान पर आ गया। हालांकि पाकिस्तान यहां सेमीफाइनल में था।

1978 में जब चैंपियनस ट्राफी की शुरूआत हुई तो भारत की हाकी बिखर चुकी थी। इसी कारण पहली चैंपियनस ट्राफी में हिस्सा नहीं लिया था। बाद में भी वह कुछ अधिक नहीं कर पाया। चैंपियनस ट्राफी में भारत ने कुल दो रजत और एक कांस्य पदक जीता है। भारत को तीन बार इस प्रतियोगिता की मेजबानी का अवसर मिला सबसे पहले 1996 में यह मद्रास में आयोजित की गई इसमें भारत चौथे स्थान पर रहा। 2005 में चेन्नई में आयोजित प्रतियोगिता में भारत पांचवें स्थान पर रहा और 2014 में जब यह भुवनेश्वर में खेली गई तो भारत फिर चौथे स्थान पर ही रहा।

अब यह प्रतियोगिता कभी नहीं खेली जाएगी और भारत के खाते में केवल दो रजत और एक कांस्य ही रहेगा।

हिमा ने रचा इतिहास भारत को पहला स्वर्ण

अंतिम 50 मीटर में ज़ोदार फर्राटे के साथ रोमानिया की आंद्रेया मिकलोस को पीछे छोड़ चौथी लेन में भाग रही भारत की 18 वर्षीय हिमा दास ने आइएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक चैंपियनशिप में 400 मीटर का स्वर्ण पदक जीत कर एक नया इतिहास रच दिया। उन्होंने यह दूरी 51.46 सेकेंड में पूरी की। हालांकि गोल्ड कोस्ट में इस साल हुई राष्ट्रमंडल खेलों में हिमा ने 51.32 सेकेंड का समय निकाला था, लेकिन वहां वह छठे स्थान पर थी। इससे पूर्व पिछली चैंपियनशिप जो 2016 में हुई थी उसमें भारत के नीरज चोपड़ा ने जैवलियन थ्रो में स्वर्ण पदक जीत कर एथेलिटिक्स में पहला स्वर्ण पदक जीतने का श्रेय पाया था।

जहां तक ट्रैक की बात है तो उसमें किसी भी अंतरराष्ट्रीय मुकाबले में मिल्खा सिंह के 1958 के राष्ट्रमंडल खेलों की 400 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीतने के बाद आज तक कोई पदक नहीं आया है। देखा जाए तो भारत की झोली में ट्रैक का यह स्वर्ण पदक 60 साल बाद आया है। उस समय था मिल्खा सिंह, समय निकाला था 46.6 सेकेंड, अब है हिमा दास समय 51.46 सेकेंड।

इसके अलावा सीमा पुनिया (2002) ने डिस्कस में कांस्य पदक और नवजोत कौर ढिल्लों (2014) ने डिस्कस में कांस्य पदक जीता था। इस प्रकार विश्व अंडर-20 एथलेटिक चैंपियनशिप में भारत अब तक कुल चार पदक जीते हैं – इन में दो स्वर्ण और दो कांस्य।

फिनलैंड में चल रही इस मौजूदा प्रतियोगिता में हिमा का स्वर्ण पदक उस समय ही पक्का हो गया था, जब उसने सेमीफाइनल ‘हीटÓ में सबसे बेहतर (52.25 सेकेंड) समय निकाला था। फाइनल में हिमा को रोमानिया की आंद्रेया मिकलोस से चुनौती मिलने की उम्मीद थी। शुरू के 350 मीटर तक रोमानिया की धाविका आगे थी, लेकिन अंतिम 50 मीटर में हिमा ने बाजी पलट दी। मिकलोस को 52.07 सेकेंड के समय के साथ रजत और अमेरिका की टेलर मैन्सन (52.28 ) को कांस्य पदक मिले।

श्रीराम सिंह का 42 साल पुराना रिकार्ड टूटा

उधर 58वीं अंतर राज्यीय एथलेटिक चैंपियनशिप में केरल के जिनसन जॉनसन ने 800 मीटर की दौड़ में 1:45.65 मिनट का समय निकाल कर महान धावक श्रीराम सिंह का 42 साल पुराना रिकार्ड तोड़ दिया। श्रीराम ने यह रिकार्ड 1976 के मांट्रियाल ओलंपिक में (1:45.77) बनाया था। इसके साथ वह एशियाई खेलों के योग्यता स्तर पाने में भी सफल हो गया। एशियाई खेलों को 800 मीटर की दौड़ का क्वालीफाईंग समय 1:47.50 मिनट है।

इससे पूर्व जॉनसन ने 2016 में बंगलूर में 1:45.98 का समय निकाला था। ”रिकार्ड तोडऩे के लिए ही बनाए जाते हैं। मुझे खुशी है कि जॉनसन ने मेरा रिकार्ड तोड़ा है।ÓÓ श्रीराम सिंह ने टिप्पणी की। इस मुकाबले का रजत पदक हरियाणा के मनजीत सिंह (1:46.24) और कांस्य मणिपुर के मोहम्मद अफसाल (1:46.79) को मिला। हरियाणा का ही बेअंत सिंह 1:46.92 मिनट का समय लेकर चौथे स्थान पर रहा।

सवारी एसी बस की

गर्मी और पसीना दोनों का चोली दामन का साथ है। समय बदला सरकारें बदली, नेता बदले और सुना की विकास की बायर बहने लगी। पर हम तो सामान ढोते रह गए। फिर एक दिन पता चला कि हमारे अच्छे दिन आ रहे हैं। हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। गर्मी से निजात पाने की एक उम्मीद जगी। यह भी बताया गया कि अब हमारी बिरादरी के लोगों को भी एसी बसों में भी यात्रा करने का अवसर मिलेगा। हमने सरकार का कोटि-कोटि आभार जताया। सोचा इस बार बच्चों से मिलने एसी बस में ही जांएगे। लग गए तैयारी में। अपने मालिक धोबी से बात कर चार दिन की छुट्टी ले ली।

 दूसरे दिन बस अड्डे जा पहुंचे। लोग हमें अजीब नज़रों से देख रहे थे। उन्हें हम खलनायक नज़र आ रहे थे। एसी बस कांऊटर पर जा हमने दिल्ली की टिकट मांग ली। हमने बताया कि अब हम भी उसमें यात्रा के अधिकारी हैं। वहां बैठे बाबू ने झट से कहा- अपना आधार कार्ड लाओ। ”आधार कार्ड”? हम चैंके -” यह क्या होता है।”? हमने पूछा। वह बोला- ”बिना कार्ड के कैसे पता चलेगा कि आप गधे हो भी कि नहीं”। ”हमारी हरकतों से पता नहीं चलता कि हम क्या है”? हमने प्रश्न किया। वह बोला- ”हमें तो तुम्हारे जैसे ही मिलते हैं, क्या पता चले कौन क्या है हो”? हमने बात खत्म करने के लहजे से पूछा-” यह आधार कार्ड कहां मिलेगा”? वह चकराया- ” अरे, मिलेगा नहीं बनेगा”। फिर उस आधार कार्ड को तुम्हारे बैंक के खाते से लिंक करेंगे। उसके बाद तुम्हारा एसी बस में बैठने का सपना पूरा होगा।

खैर, एक दो हफ्ते की जदोजहद और क्षेत्र के विधायक व मंत्री की सिफारिश के बाद हमारा आधार कार्ड बन गया। खुशी थी कि ‘एसी’ बस में सफर करेंगे। पहुंच गए बस अड्डे। वही सज्जन बैठे थे जो पहले मिले थे। हमने अपनी छाती फुलाकर कहा-” बन गया आधार कार्ड। अब टिकट दो एसी बस का”। वह मुस्कुराया और बोला,” दिखाओ कार्ड।” हमने उसे कार्ड थमा दिया। वह बोला,” तुम्हारे फिंगर प्रिंट इस से मैच होने पर टिकट मिलेगा।” हमने कहा हमारा फोटो तो लगा है इस पर, फिर फिंगर प्रिंटस क्यों? वह बोला,” तुम्हारी सब की शक्लें तो एक जैसी ही होती हैं, पहचान कैसे होगी”? हमने अपना ‘खुर’ आगे बढ़ाया और कहा,” ले लो फिंगर प्रिंट”। ” अरे पैर नही हाथ दिखाओं” वह बोला। ”हमारे तो हाथ भी यही है और पैर भी यही”। हमने सफाई दी। वह बोला फिर तो ‘खुर’ के प्रिंट लेने होंगे। हमने कहा,” साहब हमारे सबके खुर एक जैसे होते हैं”।

 काफी बहस के बाद वह हमें टिकट देने पर सहमत हो गया। पैसे ले कर हमें टिकट दिया। सीट नंबर दिया ‘दो’। नंबर देख कर हमारी हंसी निकल पड़ी। वह बोला,’क्यों हंस रहा है’? कुछ खास नहीं बस ‘नंबर दो’ की याद आ गई। हमारे देश में कुछ नंबर खास हंै। जिन्हें कोई लेना नहीं चाहता। जैसे 420, या नंबर 10 और नंबर दो। खैर हम दो नंबरी बन कर सीट पर बैठने का प्रयास करने लगे। वहां कही हमारी टांगे न फंसे न खुर। असल में यह सीट चालक महोदय के कैबिन के बिल्कुल पीछे थी। आगे कैबिन पीछे सीट की बैक। जांए तो जांए कहां। इस पर तुर्रा यह कि वहां ‘एसी’ का कोई असर दिख ही नहीं रहा था। पिछली सीटों पर एसी की हवा थी पर हमें पीछे खाली पड़ी सीटों पर बैठने की मनाही थी। हमारी हालत कुछ ऐसी ही थी जैसे आरक्षण मिले किसी भी बुजुर्ग या दलित की होती है। सुविधा मिलती है, पर देने वाले के तेवर ऐसे होते हैं- जैसे उसका बस चले तो गोली मार दे।

 लोग एसी का आनंद ले रहे थे और हम पसीने से तर बतर हो कर सोच रहे थे , काश साधारण बस में बैठते कम से कम खिड़की का शीशा तो खोल लेते। पर यहां तो संास लेने के भी लाले थे। कंडक्टर हमें ऐसे देख रहा था जैसे कह रहा हो- ‘बेटा आज तो बैठ गया फिर कभी बैठने की हिम्मत न करना”। दो घंटे तक भ_ी में जलने के बाद जब बाहर निकले तो वहां की ‘लू’ भी हमें बर्फानी हवा लगने लगी। सांस भी ठीक से चलने लगी। कुछ होश सा आया।कसम खा ली, किसी भी बस में सफर कर लें पर एसी बस में नहीं करेंगे।

अमित शाह और नीतीश कुमार ने एक दूसरे को किया प्रसन्न

बिहार में महागठबंधन की सरकार के पतन और राजग की सरकार बनने के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पहली बार दो दिन के (12-13 जुलाई) पटना दौरे पर आए। वे अपनी पार्टी और जद (एकी) अध्यक्ष व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पक्ष में राजनीतिक माहौल बना गए। दोनों नेताओं ने बंद कमरे में बैठक की और प्रसन्न बाहर आए। ऐसे समय में अमित शाह पटना आए और नीतीश कुमार से बातचीत की जब लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर शक शुबहा का दौर चल रहा है। दोनों नेताओं की ओर से यही जताया गया कि उनके लिए यह कोई समस्या नहीं है और समय पर मिल बैठ सीटों का बंटवारा कर लेंगे। उनका इस बार भी जोर था कि राजग के सभी घटकों की एकता मजबूत है। सूबे में लोकसभा की सभी 40 सीटों पर राजग की ही जीत होगी।

भाजपा के नेताओं-कार्यकताओं ने अपने अध्यक्ष का स्वागत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। असल में उन्हें अपना उत्साह और ताकत, दोनों दिखाना था। अमित शाह ने बंद हाल (गांधी सभागार) में राज्य भर के तकरीबन दस हजार नेताओं-कार्यकर्ताओं को पार्टी, संगठन, सरकार, चुनाव संबंधी तमाम महत्वपूर्ण बातें बताई। उनका संकेत था कि लोकसभा चुनाव में ऐसी तैयारी हो कि सभी सीट पर जीत हो। केंंद्र सरकार सूबे के विकास के लिए बहुत कुछ कर रही है। इसका श्रेय लेना चाहिए और प्रचार करना चाहिए। आम लोगों तक अपनी बात पहुंचे। घूमा फिरा कर लोकसभा चुनाव की तैयारी और जीत पर ही उनका जोर था। उन्होंने अपने नेताओं-कार्यकताओं को गौरवान्वित करने के मकसद से यह जिक्र किया कि भाजपा हर परिस्थतियों का मुकाबला कर सकती है। विरोधियों से निपट सकती है। राजग के घटकों को साथ लेकर बखूबी आगे चल सकती है। उन्होंने अपने नेताओं-कार्यकताओं को यह कह कर भी आश्वस्त किया कि अपने साथियों को संभालना आता है। मतलब यह कि लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर किसी घटक की मांग न मानने लायक होगी तो उसे मना लिया जाएगा। यह कोई संकट नहीं है। राजग की स्थिति सबसे अधिक मजबूत है। अमित शाह ने अपने नेताओं और कार्यकताओं को यह एहसास करा दिया कि अध्यक्ष हो तो ऐसा ही हो। वे अतिथिशाला में अपनी पार्टी के नेताओं से भी मिलेजुले। पटना से रवाना होने के पहले जयप्रकाश निवास के दर्शन करने भी गए। अमित शाह के दौरे के मौके पर भाजपा की ओर से पूरी तरह यह दर्शाया गया कि वह सत्ता में है और सत्ता का उपयोग कर सकती है। गांधी सभागार का उपयोग और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के निवास के दर्शन के पीछे खास रणनीति ही है।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने नीतीश कुमार की ऐसी प्रशंसा की कि उसका खास अर्थ निकलता है। शाह ने कहा कि नीतीश कुमार भ्रष्टाचार के साथ नहीं रह सकते। एक तरह से यह लालू प्रसाद या उनके परिवार या राजग पर हमला था। दूसरे यह भी नीतीश कुमार फिर भाजपा के साथी बन गए यानी भाजपा भी भ्रष्टाचार के खिलाफ है। कहने के लिए तो शाह का पटना दौरा था लेकिन एक तरह से यह नीतीश कुमार आमंत्रण को साकार करना था। उन्होंने पटना आने के बाद नीतीश कुमार के साथ नाश्ता किया और फिर रात में भोजन। राजनीतिकों को यह याद है कि नीतीश कुमार ने कभी नरेंद्र मोदी को भोजन पर न्यौता था और ऐन मौके पर भोजन का कार्यक्रम रद्द कर दिया। उस समय भी नीतीश कुमार राजग में थे और उनकी सरकार थी। नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। जिस दिन नीतीश कुमार ने मोदी को न्यौता था उस दिन भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की पटना में बैठक थी। उसके बाद तो नीतीश कुमार और भाजपा में इतना मनमुटाव बढ़ा कि भाजपा से संबंध ही टूट गया। अब जुड़ गया है और नीतीश कुमार व भाजपा साथ-साथ हैं। कहते तो है कि नीतीश कुमार ने अमित शाह को खुश करने में कोई कमी नहीं रहने दी है। फिर अमित शाह भी नीतीश कुमार की मंशा का पूरा-पूरा ख्याल रखेंगे, यह भी साफ हो गया है। वे सूबे में नीतीश कुमार की लोकप्रियता और महत्ता, दोनों समझते हैं।

राजनीतिकों के मुताबिक अमित शाह सूबे में नीतीश कुमार की अगुवाई में राजग की स्थिति मजबूत करना चाहते हैं और केंद्र में भाजपा की अगुवाई में राजग की स्थिति मजबूत करने में नीतीश कुमार को मददगार बनाना चाहते हैं।  यों कहें केंद्र में भाजपा और सूबे में नीतीश कुमार का राज कायम रहे। बीच का यह रास्ता फलदायक हो सकता है।

सलीम को मारने वाले ३ आतंकवादी मौत के घाट उतारे

प्रशिक्षु कांस्टेबल मोहम्मद सलीम शाह को अगवा कर उसकी जान लेने वाले ३ आतंकवादियों को सुरक्षा बालों ने २४ घंटे के भीतर खोज कर मौत के घाट उतार दिया।

रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले में पुलिस कांस्टेबल का अपहरण कर उसकी हत्या करने वाले तीनों आतंकवादी रविवार सुबह सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए। जम्मू कश्मीर के पुलिस प्रमुख एसपी वैद ने बताया कि दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले के मुतलहामा इलाके से शुक्रवार को कांस्टेबल सलीम शाह का अपहरण किया गया था। उनका शव कल बरामद किया गया था। उनके शरीर पर प्रताड़ना के निशान थे।

एक वीडिओ भी सामने आया है जिसमें आतंकवादी सलीम को टॉर्चर करते दिख रहे हैं। इसमें सलीम से आतंकवादी कुछ सवाल पूछ रहे हैं। इसमें सलीम बहुत बहादुरी से जवाब देते दिख रहे हैं।खुफिया जानकारी मिलने के बाद सुरक्षा बलों ने दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले के खुदवानी इलाके में घेराबंदी और तलाशी अभियान शुरू किया था। आतंकवादियों के सुरक्षा बलों पर गोलियां चलाने के बाद तलाशी अभियान मुठभेड़ में बदल गया , जिसमें तीन आतंकवादी ढेर हो गए हैं।
इस बीच डीजीपी वैद वैद ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा – ‘‘मुठभेड़ की जगह से अभी तक तीन हथियारों के साथ तीन शव बरामद किए गए हैं। हमारे कलीग मोहम्मद सलीम को प्रताड़ित कर उसकी क्रूरता से हत्या करने वाले आतंकवादियों को मार गिराया गया है। इस आपरेशन में सीआरपीएफ, सेना और पुलिस ने साझी कार्रवाई की।” वैद के मुताबिक मारे गए आतंकवादियों में एक पाकिस्तानी है।

जौनपुर में ट्रक ने ६ लोगों को कुचल डाला

उत्तर प्रदेश के जौनपुर में रविवार को ६ लोगों को की एक ट्रक से कुचल कर मौत हो गयी। इस हादसे में ४ लोग घायल हो गए हैं। हादसे में लोगों की मौत से गुस्साए लोगों ने हंगामा कर दिया और ट्रक को आग लगाकर जला डाला। घायलों को जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक घटना जौनपुर के जलालपुर बाजार में बयालसी कॉलेज के पास की है जब एक बेकाबू ट्रक इन लोगों पर जा चढ़ा। घटना से गुस्साए गांव वालों ने ट्रक को आग के हवाले कर दिया। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक गाँव के लोग शव साथ सड़क पर रखकर प्रदर्शन कर रहे हैं। पुलिस मौके पर पहुँच गयी और लोगों को समझाने-बुझाने का प्रयास कर रही थी। पुलिस फिलहाल भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश में लगी हुई थी। पुलिस ने ही ट्रक में लगी आग को बुझाया।

जानकारी के मुताबिक ट्रक चालक पहले तो वहां से गुजर रही बाइक पर बैठे लोगों को रौंदा और खुद को बचाने के लिए भागने की कोशिश में सड़क पर गुजर् रही एक साईकिल पर बैठे लोगों को भी कुचल डाला। हादसे में ६ लोगों की मौत हो गयी और ४ घायल हो गए।

पुलिस के ने मुताबिक लखनऊ-वाराणसी नेशनल हाईवे पर रविवार की सुबह नौ-सवा नौ बजे यह हादसा एक ट्रक के असंतुलन खो जाने से हुआ। पुलिस ने बताया कि जलालपुर बाजार में लोग खड़े थे। इस बीच एक ट्रक ने असन्तुलित होकर सड़क के किनारे खड़े कई लोगों को अपने चपेट में ले लिया। ट्रक के पीछे से मोटरसाइकिल सवार तीन युवक भी टकरा गए। कुल 6 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई जिनमें से दो अजय सिंह (४०) नेवादा, जलालपुर और अनवर (५१) बीभनमउ, जलालपुर के निवासी हैं। अन्य की शिनाख्त अभी नहीं हुई है।

सैनिटरी नैपकिन हुआ टैक्स फ्री; कुछ चीज़ें हुईं सस्ती

वित्त मंत्री पीयूष गोयल की अगुवाई में हुई जीएसटी काउंसिल की 28वीं बैठक के दौरान पूरा जोर महिलाओं और घरेलू इस्तेमाल वाली चीजों को सस्ता करने पर रहा।

पहले 30-40 सामानों पर ही जीएसटी की दरों को कम करने पर विचार हो रहा था, लेकिन बैठक के दौरान अचानक 80 से भी अधिक वस्तुओं पर कर की दरें घटा दी गईं।

एसटी काउंसिल ने फ़ैसला लिया है कि सैनिटरी नैपकिन को जीएसटी से बाहर कर दिया जाए यानी सैनिटरी नैपकिन पर जीएसटी की दर को शून्य कर दिया गया है।  अब तक सैनिटरी नैपकिन पर 12 फ़ीसदी जीएसटी लगाया जा रहा था.

जीएसटी के दायरे से बाहर होने वाली चीजों में शामिल हैं राखियां (बहुमूल्यों रत्नों से न बनी हो); संगमरमर से बनी मूर्तियां; झाड़ू बनाने में इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल; साल के पत्ते।

जिन चीज़ों पर जीएसटी 12% से घटाकर 5% कर दी गयी वो  हैं हैंडलूम दरी; फास्फोरिक एसिड युक्त उर्वरक और  बुनी हुई टोपियां (1000 रुपये से कम कीमत की) ।

जीएसटी 28% से घटाकर 18% कर दिया गया इन वस्तुओँ पर लिथियम आयन बैटरी; वैक्यूम क्लीनर; फूड ग्राइंडर, मिक्सर; शेवर्स, हेयर क्लिपर्स; हैंड ड्रायर्स;

वाटर कूलर्स; आइसक्रीम फ्रीज़र; रेफ्रिज़रेटर; कॉस्मेटिक्स; परफ्यूम और सेंट; पेंट और वार्निश।

इसके अलावा तेल मार्केटिंग कंपनियों को पेट्रोल और डीज़ल में मिलाने के लिए दिया जाने वाले इथेनॉल पर जीएसटी की दर 18 फ़ीसदी से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है।

बैठक के बाद जब वित्त मंत्री से पूछा गया कि इस कदम से सरकार को आमदनी में कितना घाटा होगा तो उन्होंने साफ कहा कि सरकार को उम्मीद है कि दरें घटने से जो बिक्री बढ़ेगी, उससे होने वाले घाटे की भरपाई की जा सकेगी। इसके बाद भी अगर घाटा होता है तो वो बेहद मामूली या न के बराबर होगा।

जीएसटी परिषद ने इससे पहले भी दो बार कर की दरों में बड़ा बदलाव किया था। परिषद ने नवंबर 2017 को हुई बैठक में 213 सामानों पर जीएसटी स्लैब में संशोधन का फैसला किया था, जबकि जनवरी 2018 में 54 सेवाओं और 29 वस्तुओं पर टैक्स घटाते हुए उसे सस्ता किया था।

120 महिलाओं से दुष्कर्म करने वाला ढोंगी बाबा गिरफ्तार

हरियाणा के फतेहाबाद जिले में बाबा बालकनाथ मंदिर के शातिर तांत्र‍िक बाबा अमरपुरी नागा उर्फ बिल्लू की 100 से अधिक महिलाओं से संबंध बनाने के वीडियो सामने आने के बाद पर क़ानूनी शिकंजा कसता नज़र आ रहा है।

पुलिस ने बिल्लू को 120 महिलाओं के साथ जबरन संबंध बनाने का आरोप में गिरफ्तार कर लिया है।

बाबा पर दुष्कर्म का आरोप लगाने वाली महिला भी खुलकर सामने आई है और सरकार से मांग की है कि उसे न्याय दिलवाया जाए तथा बाबा के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।

महिला ने बताया कि उसने 13 अक्तूबर 2017 को बाबा पर दुष्कर्म का आरोप लगाया था। बाबा पर केस भी दर्ज हो गया, लेकिन बाद में उसे धमकियां दी जाने लगी।

उसने बताया कि बाबा ने उसके पति को जान से मारने की धमकी दी थी और धोखे से उसे रुपये देकर ब्लैकमेलिंग के केस में फंसा दिया। इसके बाद बाबा की दबंगई से डरकर वह सामने नहीं आई।

पुलिस के अनुसार आरोपी अमरपुरी उर्फ बिल्लू बाबा प्रेतबाधा के नाम पर महिलाओं को फंसाता था और तंत्र विद्या के दौरान उन्हें नशीली दवा देकर उनके साथ रेप करता था।

यह ढोंगी तांत्रिक महिलाओं का अश्लील वीडियो भी बना लेता था और उनको ब्लैकमेल कर उनका शारीरिक और आर्थ‍िक रूप से शोषण करता था ।

कुछ महीने पहले इस तांत्र‍िक का महिलाओं से शारीरिक संबंध बनाने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। जो पुलिस के हरकत में आने का कारण बना।

पुलिस ने उसके खिलाफ बलात्कार, आईटी एक्ट और ब्लैकमेलिंग की धाराओं समेत कई आरोपों में केस दर्ज किया गया।

जब पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर उसके ठिकानों की छानबीन की तो उसके कब्जे से 120 वीडियो बरामद हुए  जिनमें फर्जी बाबा महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध बनाते हुए दिख रहा है।

पुलिस को उसके पूजा पाठ वाले कमरे से नशीली गोलियां और तंत्र-मंत्र का सामान भी मिला है।