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खरीफ की फसलों के लिए न्यूनतम मूल्य घोषित लेकिन किसान नाराज़

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खरीफ की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित कर दिया है। सरकार का कहना है कि इससे किसानों को डेयोढ़े का लाभ बाजार में फसलों पर मिलेगा। यह बढ़ोतरी केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खास तौर पर चावल और दाल पर की है। यह दावा किया गया है कि इससे बजट में किया गया वादा पूरा कर दिया गया है, पर दूसरी ओर फसलों की कीमत पर किसान की चिंता भी काफी हद तक पूरी होने की बजाए और गहरा गई है।

यह बढ़ोतरी एक फसल उपजाने में लगी परिवार के श्रम की लागत और वास्तविक लागत को जोड़ कर निकाली गई है। किसानों में इस बात पर नाराज़गी है कि लागत मूल्य जो तय किया गया है वह गलत है। खेती लागत का कोई फार्मूला तैयार करते हुए दूसरे कई किस्म के खर्च भी जोड़े जाने चाहिए । मसलन फसल उत्पाद में जो पूंजी लगी है और ज़मीन और कुल खर्च पर जो ब्याज बनता है। यह सब उत्पाद की लागत काफी ऊंची कर देता है।

कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने कहा था कि किसानों को उनकी उपज का ज़्यादा डेयोढ़ा मिलना चाहिए। जबकि तब के वित्तमंत्री अरुण जेटली ने फरवरी में कहा था कि खरीफ की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करते हुए यह लागत का डेढ़ गुना होना चाहिए।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक किसान ने मेरठ के पास एक गांव में बताया कि जब फसल उपजाते हैं तो उसमें भूमि, पानी, खाद, बीज, कीटनाशक की लागत और परिवारिक श्रम के लिहाज से न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया जाना चाहिए। सरकार ने जो घोषणा की है उससे ऐसी संभावना नहीं बनी है कि वह इसे देखकर मयूर की तरह नाच उठे।

दरअसल किसानों की बड़ी रैलियों, तमिलनाडु और दूसरे राज्यों के किसानों के गन्ना की बकाया वूसली और फसलों पर सही उत्पाद मूल्य की मांग के साथ राजधानी में प्रदर्शन करने की घटनाओं के लिहाज से केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नया न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया है।

जबकि उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब और महाराष्ट्र के किसानों का कहना है कि यदि सी 2 लागत को जोड़ कर न्यूनतम समर्थन मूल्य निकाला जाता तो वह घोषित समर्थन मूल्य का कम से कम चालीस फीसद ज़्यादा हो जाता।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने धान के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में तकरीबन रुपए. 250 मात्र प्रति क्विंटल से बढ़ाकर रुपए. 1800 मात्र प्रति क्विंटल कर दिया है। इसके पहले इसकी कीमत रुपए.1550 मात्र प्रति क्विंटल थी। यदि इसमें सी 2 लागत भी जोड़ी जाती तो कुल कीमत रुपए. 2250 मात्र हो जाती।

फिलहाल जो पुनर्निधारित न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया गया है। वह केंद्र के रुपए 33,500 करोड़ मात्र पड़ेगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य एक तरह की बाजार में कीमत ऊंची रखने का एक सरकारी प्रयास है। जिससे खरीद के समय बाजार में कीमतें न गिरें। यह सरकार की ओर से नियत मूल्य है जिससे नीचे बाजार में खरीद नहीं होनी चाहिए।

कृषि संगठनों ने केंद्र सरकार की खेती उपज के समर्थन मूल्य पर चिंता जताई है और मांग की है कि राज्य सरकार को खरीद और भंडारण का सुरक्षित उचित प्रबंध करना चाहिए। जिससे व्यापारी तबका किसानों से मनमानी कीमत पर अनाज न ले सके। भारतीय किसान संघ के एक पदाधिकारी ने कहा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून के आखिरी सप्ताह में घोषणा की थी कि केंद्रीय मंत्रिमंडल फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करते हुए यह ध्यान रखेगा कि उत्पाद का न्यूनतम समर्थन मूल्य डेढ़ गुना से कम न हो।

खरीफ की फसलों में धान मुख्य फसल है। इसकी बुवाई दक्षिण पश्चिम मानसून की शुरूआत के साथ ही शुरू भी हो गई है। खरीफ की कुछ फसलों में जहां खरीद की कीमत पहले से ही उत्पाद खर्च में डेढ़ गुना ज़्यादा है वहां यह बढोतरी कोई मायने नहीं रखती ‘खासतौरÓ पर धान, रागी और मूंग । जहां लागत कीमत डेढ़ सौ गुना से कम है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य का असर ज़्यादातर धान और दालों पर और दूसरे पोषक उत्पाद मसलन जौ, आदि पर पड़ता है। ऐसे में सकल उत्पादन का 0.2 फीसद न्यूनतम समर्थन मूल्य में जोड़ा गया।

न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में आने वाली फसलों में सिर्फ चावल और गेंहू ही नहीं है। खरीद की क्या प्रक्रिया सरकारें करेंगी उसकी घोषणा बाद में होगी। उत्पाद की लागत का हिसाब लगाने में 53 फीसद तो श्रम को जाता है। बाकी खर्च मसलन, खाद, कृषि में प्रयुक्त श्रम, कीटनाशक, बीज और सिंचाई का जोड़ घटाव के लिए बाकी 47 फीसद होता है।

सरकार ने इस बार खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करने में देर लगाई जबकि कई राज्यों में तो बुवाई शुरू भी हो चुकी थी । दरअसल सरकार यह हिसाब लगाने में जुटी थी कि समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी का क्या असर बाजार पर पड़ेगा। कृषि विशेषज्ञों का अनुमान है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी से भारत का चावल उत्पाद का फीसद बढ़ सकता है। इस संबंध में चीन में भारतीय प्रधानमंत्री ने बातचीत भी की थी। पिछले साल यानी 2017-18 में लगभग 111 मिलियन टन फसल थी जो घरेलू मांग से कहीं ज़्यादा थी।

धान के उत्पाद में पानी की काफी ज़रूरत पड़ती है। ऐसे में इसकी बजाए धान के उन उत्पादों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जिससे कम पानी में ज़्यादा धान बने और सरकारी खरीद ज़्यादा हो। इस बार न्यूनतम समर्थन मूल्य में हुई बढ़ोतरी का महत्व यह है कि इसके तहत वे फसलें आ जाती हैं जो खरीफ के मौसम में कुल अनाज की 50 फीसद हैं। पिछले वर्षों में हुई खरीद की तुलना में यह बारह हजार करोड़ का अतिरिक्त अनुमानित बोझ है।

मध्यप्रदेश की बाल कल्याण मंत्री के इलाके में सबसे ज़्यादा कुपोषण

भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री और बुजुर्ग नेता बाबू लाल गौर ने अब अपनी ही सरकार के कामकाज़ पर और कुपोषण के मुद्दे पर बंदरबांट पर अपनी बात कही है। राज्य में बढ़ते कुपोषण पर राज्यपाल आनंदीबेन ने जहां मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को शीशा दिखा दिया है, वहीं भाजपा की राज्य में वापसी पर सवालिया निशान लगने लगे हैं

गौर के अनुसार समाज कल्याण और बाल मंत्री अर्चना चिटनिस कुपोषण पर चिंता ज़रूर जता रही हैं लेकिन कर कुछ नहीं रही हैं। वे तो मेरे साथ राज्य के कुपोषण क्षेत्रों के दौरे पर जाने को थीं लेकिन वे इतनी व्यस्त हैं कि अब इस साल तो कुछ करेंगी नहीं लेकिन आने वाले साल में ज़रूर करें। मध्यप्रदेश सरकार अपने आखिरी दिनों में कुछ नहीं करने को है, क्योंकि अब करने का समय ही नहीं बचा है। अपनी कुर्सी बचाने की पड़ी है। विधायक बाबू लाल गौर ने विधानसभा के मानसून सत्र में कुपोषण के आंकड़ों की मांग की थी। जो सूचना दी गई उसके अनुसार प्रदेश में बेहद कम वजन वाले बच्चे 1,26,218 हैं। यह आकलन भी 2015 का है। यानी सरकार इस मामले में न तो सक्रिय है और न ऐसी योजनाएं ही इसने बनाई हैं जिससे समस्या का समाधान युद्ध स्तर पर हो सके।

राज्य में मार्च 2015 में जहां कम वजन वाले बच्चे 1,26,218 थे उनकी गिनती मार्च 2016 में 90,537 और मार्च 2017 में 1,53,842 और मार्च 2018 में 1,03,083 हैं सवाल है कि सरकार ने इतनी बड़ी रकम खर्च कर दी पर कम वजन वाले बच्चों का वजन नही बढ़ा।

उनकी माताओं की स्थिति नहीं सुधरी लेकिन संख्या और बढ़ी। सरकारी धन के खर्च का लाभ जो समाज में दिखना था वह क्यों नहीं दिखा। सरकार ने इस पूरे मामले की ठीक तरह से छानबीन क्यों नहीं की। इस मामले में गंगा में प्रदूषण की तरह बढ़ोतरी क्यों होती रही।

महिला और बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस के अपने जिले बुरहानपुर में 2329 बच्चे बहुत कम वजन के मिले हैं। यानी वे अपने काम में पूरी तौर पर कामयाब नहीं हैं। हालांकि उनका दावा है कि खरगोन जिले में मार्च 2018 में कम वजन वाले बच्चों की संख्या सबसे ज़्यादा है। छिंदवाड़ा जिले में बेहद कम वजन वाले बच्चों की संख्या 2235, बालाघाट जिले में 913, सिवनी में 982 और बैतूल जिले में 1711 है।

पूरे राज्य में अति कम वजन वाले बच्चों की संख्या तेजी से डेढ़ लाख होने की ओर है। खरगोन और सतना जिले में सबसे कम वजन वाले बच्चे हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री मे मांग की है कि वे आंगन बाड़ी केंद्रों में पोषण आहार के लिए दी जाने वाली राशि को और बढ़ाए । सरकार अभी तक कम वजन के प्रति बच्चे पर आठ रुपए और अति कम वजन के बच्चों पर बारह रुपए खर्च करती है। आज जब आठ रुपए में चाय नही ंआती, दूध और दलिया कहां से आएगा। इसे हाल-फिलहाल बीस रुपए प्रति बच्चे के मान से सरकार को तय करना चाहिए।

चुनावी शोर में मध्यप्रदेश में पक्ष और विपक्ष आरोप-प्रत्यारोप की रोटियां से केंगा और कम वजन वाले शिशु व बच्चे और अति कम वजन वाले शिशुओं को ब्रेड की स्लाइस पकड़ा कर सरकार पोषण के आंकड़े कीर्तिमान में बदल लेगें लेकिन समस्या बरकरार रहेगी अगले दशकों तक। क्योंकि पक्ष और विपक्ष या दल सिर्फ सपनों में ही राज्य की जनता को उलझाए हुए है।

ग्रामीण योजनाएं क्यों नहीं आती अमल में

केंद्र के भारी भरकम दावों के बावजूद महत्वपूर्ण योजनाएं जो 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद अमल में आनी शुरू तो हुई पर वे इसलिए बेहतर नहीं हुई क्योंकि ग्रामीण भारत को आसानी से कजऱ् नहीं मिला। ऐसी योजनाएं मसलन प्रधानमंत्री मुद्रार योजना (पीएमएमवाइ) जनधन और प्रधानमंत्री जनधन योजना (पीएमजेडीवाई) का पूरा ध्यान फाइनेंशियल इन्क्लूजन और क्रेडिट अवेलिबिलिटी पर था जिससे देश की ग्रामीण जनता को छुटकार दिलाना था।

दूसरी और छोटा कजऱ् लेने वाले उपभोक्ताओं की तादाद जो बढ़ी रहती थीं वह 2014 और 2017 के दौरान बेहद कम हुई है। यह तादाद वापस उन क्रूर महाजनों के पास लौट गई है जो खून की आखिरी बूंद तक चूस लेने के लिए मशहूर हैं।

यह जानकारी उस अध्धयन से मिली है जिसका शीर्षक है ‘एन्स्नेर्ड इन पावर्टी : ए स्टडी ऑन रूरल इन्डेटनेस इन इंडियाÓ। यह अध्ययन एसोचेम ने थॉट आरबिटरेज के साथ मिल कर किया है। इस में सरकार की बेहद इनोवेटिव योजनाएं जो बैंक के बाहर के लोगों को बैंक से जोडऩे के लिए बनाई गई थीं मसलन मुद्रा योजना, जनधन योजना और बीमा पेंशन योजना इनका इशारा था कि इन्फार्मल सेक्टर में क्रेडिट को किस हद तक कम किया जाए।

मई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाहर करोड़ लोगों के लाभान्वित होने के लिए मुद्रा योजना के तहत सरकार के जरिए कजऱ् देने की योजना शुरू की थी। इससे गरीबों की जिंदगी में बदलाव की रोशनी और रोजगार की संभावनाओं को बढ़ाने का इरादा था।

शिड्यूल बैंकों की ग्रामीण कजऱ् उपलब्ध कराने की योजनाएं तो लगभग नौ फीसद ही मार्च 2014 से जून 2017 के दौरान रहीं। छोटे कजऱ्दारों की तादाद ज़रूर मार्च 2014 मे 36.5 फीसद से जून 2017 में 33 फीसद हो गई।

अध्ययन के अनुसार 2014 में जो योजनाएं अमल में आई थीं वे आसानी से ग्रामीण इलाकों में कजऱ् चुकाने में लाभकारी नहीं थी। और इन्होंने ग्रामीण इन्डेटेडडनेस में सहजता से न तो कजऱ् दिलाया और न ग्रामीण कजऱ् बढ़ोतरी में कोई सुधार ही किया बल्कि इससे नुकसान ही हुआ।

निजी कजऱ्ों (पर्सनल लोन) की हिस्सेदारी – जिसे कहते हैं गैर उत्पादी मामलों के लिए कजऱ् कुल ग्रामीण कजोंऱ् के लिए शिड्यूल बैंकों से 2014 से ज़रूर बढ़ता रहा। यह 2017 में लगभग 20 फीसद हो गया। सरकार की अपनी क्रेडिट स्कीमें भी इस झुकाव को कतई रोक नहीं पाई। इसके मायने हुए कि गैर संस्थानिक कजऱ्दाता जिनमें गांव का महाजन भी है वह कजऱ् देने वाला महत्वपूर्ण स्त्रोत है। भले कितना ही बदनाम वह रहा हो।

अध्ययन के अनुसार ग्रामीण कजऱ् ठीक ठाक दिया ज़रूर गया लेकिन गरीबों को नहीं बल्कि धंधा कमाने वाले धनपिपासुओं को ही।

तार-तार हुइ्र्र गंगा-जमुनी तहजीब

एक समय पूरी दुनिया में धर्मनिरपेक्ष गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए पहचान बनाने वाले शहर लखनऊ से आज धर्मांधता और धार्मिक असहिष्णुता की खबरें अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं। इन बातों ने शहर के आपसी भाई-चारे को शर्मिंदा कर दिया है। पिछले दिनों एक के बाद एक घटी घटनाओं ने पूरी दुनियां को हिला कर रख दिया है। दुनिया को यहां से तंगदिली, असहिष्णुता और पक्षपात की बदबू आने लगी है। सबसे ताज़ी घटना नोयडा के एक विवाहित जोड़े की है। दो अलग-अलग मज़हब के लोगों की शादी होने के कारण पासपोर्ट अधिकारी ने उन्हें पूरी तरह ज़लील किया। कारण सिर्फ इतना था कि लड़की अपना हिंदू नाम बदलना नहीं चाहती थी। इससे कुछ दिन पहले लखनऊ की ही एक लड़की ने मुस्लिम मकैनिक से अपना एयरटेल डिजीटल टीवी नेटवर्क में आई खराबी को ठीक करवाने से साफ इंकार कर दिया था। इसकी भारी प्रतिक्रिया देखने को मिली थी। इसके बाद विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यकर्ता ने उस ‘ओला कैबÓ में सफर करने से इंकार कर दिया था जिसका ड्राईवर एक मुसलमान था।

पासपोर्ट वाले मामले में अधिकारी एकदम हरकत में आए और उन्होंने उस अफ सर का तबादला कर दिया। विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता की भी जमकर आलोचना हुई। ‘ओलाÓ ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी। एयरटेल ने तो उस महिला की बात मान कर उसे एक सिख टेकनीसियन दे दिया।

पर बात है पासपोर्ट के दफ्तर की। मोहम्मद अनास सिद्धीकी और तानवी सेठ की शादी को 12 साल हो गए हैं। उनकी छह साल की एक बेटी भी है। दोनों लखनऊ के रहने वाले हैं और दोनों ने पढ़ाई भी वहीं की है। यह जोड़ा अनास के परिवार के साथ ईद मनाने लखनऊ आया। ये दोनों छुट्टियां मनाने के मूड में थे। इस कारण तानवी अपना पासपोर्ट बनाने गई थी और अनास को अपने पासपोर्ट का नवीनीकरण करवाना था। दोनों ने रत्न एक्वेयर स्थित पासपोर्ट कार्यलय से ‘ऑनलाइनÓ समय ले लिया था। पर जब 20 जून 2018 को वे पासपोर्ट के दफ्तर पहुंचे तो उन्हें जीवन का सबसे बड़ा झड़का लगा। वहां मौजूद विकास मिश्रा नामक अधिकारी ने तानवी के साथ दुव्र्यवहार किया। उसे अपमानित किया। उसकी शादी के लिए उसे शर्मिदा किया गया और उससे पूछा गया कि शादी के बाद उसने अपना नाम मुसलमानों वाला क्यों नहीं रखा? फिर अधिकारी ने उसके पति से कहा कि वह हिंदू बन जाए और ‘फेरेÓ ले कर विवाह करे।

जब दोनों ने कहा कि धर्म उनका व्यक्तिगत मामला है और उन्हें अपना जीवनसाथी चुनने का पूरा अधिकार है तो अफसर उनके कागज़ एक तरफ फेंक दिए। उसका लहजा सख्त हो गया, उसकी आवाज़ ऊंची हो गई और वह इस जोड़े को डराने-धमकाने लगा। तानवी ने बताया कि वह हमें हर तरफ से शर्मिदा कर रहा था।

उसके इस तरह के व्यवहार से ये लोग डरे सही पर इन्होंने साहस नहीं छोड़ा। उन्होंने सोशल मीडिया का सहारा लिया और सारी कहानी उस पर डाल दी। तावनी ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भी ट्वीट किया। यह बात पूरे मीडिया में आग की तरह फैल गई। एक जोड़े को परेशान करने का मामला देखते ही देखते ‘बे्रकिंग न्यूज़Ó बन गया।

विकास मिश्रा ने अपनी सफाई में कहा कि उन्होंने सिर्फ यह कहा था कि वह अपना ‘निकाहनामÓ वाला नाम ‘सादिया अनासÓ पासपोर्ट पर लिया ले। जिसे उसने इंकार कर दिया। पर, कुछ ही घंटों में उस अफसर का तबादला कर दिया गया और एक जांच समिति भी गठित कर दी गई। इस बीच गोमती नगर क्षेत्रीय पासपोर्स दफ्तर में इस जोड़े को बुलाया गया और पत्रकारों के कैमरों की चमक के बीच उन दोनों को पासपोर्ट सौंप दिए गए। इससे उनके चेहरे पर एक मुस्कान फैल गई।

लेकिन एयरटेल कंपनी के पीडि़त के साथ ऐसा नहीं हुआ। शोयब को बिना किसी कसूर के एक ग्राहक के हाथों धार्मिक असहिष्णुता का शिकार होना पड़ा। केवल इसलिए कि उसका नाम शोयब था और वह मुस्लिम था। यह मामला तथ्यों की सारी मान्यनाओं के पार है और लोगों की कट्टपंथी सोच को दर्शाता है।

कुछ महीने पहनले नवाबों की नगरी में धार्मिक असहिष्णुता का एक और मामला सामने आया। हुआ यह कि प्रबंधकीय पद पर काम कर रही पूजा सिंह नामक महिला को अपने एयरटेल डीजीटल का नेटवर्क ठीक करवाना था। उसने कंपनी में फोन किया। वहां शोयब नामक टेकनीश्यिन से बात हुई जो एक मुसलमान था। पर पूजा ने यह कह कर उससे काम करने से इंकार कर दिया कि वह एक मुस्लिम है और उसे मुसलमानों पर विश्वास नहीं है। उसने कंपनी से किसी हिंदू को भेजने को कहा। निजी कंपनी के उसकी मांग को मानते हुए गगनजोत सिंह, जो कि एक सिख है को काम करने भेज दिया।

पूजा ने कृत्य की लोगों ने जम कर निंदा की। उसके ट्वीट से सोशल मीडिया में भारी हलचल मच गई। उसकी सोच की लोगों ने खूब आलोचना की। लोगों ने कहा कि यदि वह हिंदुत्व की ठेकेदार भाजपा जैसी पार्टी की सदस्य या समर्थक है या आरएसएस की नीतियों पर चलने वाली है, तो भी उसे किसी को धार्मिक आधार पर किसी का अपमान करने का हक नहीं है।

शाहरूख खान जैसे अंदाज में किसी ने ट्वीट किया – ‘मैं भी हिंदू हूं। कृपया शोयब को भविष्य में मेरे हर काम के लिए भेजें। और, पूजा को किसी अच्छे मनोचिकित्सक को दिखाया जाए। उसे अलग टैक्नीशियन की नहीं अपितु अलग दिमाग की ज़रूरत है।Ó

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंंत्री उमर अब्बदुला ने कहा कि वे एयरटेल की जगह कोई और ब्रॉडबैंड लेंगे।  अब धार्मिक असहिष्णुता बढ़ रही है। बहुत से युवा आज कट्टर बाद की भाषा बोलने लगे है। कम से कम पहले लखनऊ में ऐसा नहीं होता था।

भारत में शरणार्थियों की त्रासदी

अभी हाल में बीते शरणार्थी दिवस (20 जून) पर ही नही बल्कि लगभग हर दिन मैं एक अफगान परिवार के बारे में सोचती हूं जिसे मैं कुछ साल पहले नई दिल्ली में एक क्रॉसिंग पर मिली थी। उन्होंने पर्याप्त कपड़े पहने हुए थे लेकिन वे बेहद भूखे थे और मदद के लिए अनुरोध कर रहे थे। मैं उनसे बात करने के लिए रुकी तो एक दर्दनाक कहानी सामने आई। वे अपने देश में अच्छी तरह रह रहे थे जब तक परिस्थितियों ने उन्हें भारत आने के लिए मज़बूर नही कर दिया। वे यहां आकर शरणार्थी बन गए और उनका जीवन बर्बाद हो गया।

मैंने उनके एक कमरे के शरण स्थल का दौरा किया जो कि जंगपुरा इलाके की बाहरी बस्तियों में था। जहां उनके बच्चे बिना स्कूल और बढ़ते बच्चों की दैनिक ज़रूरतों के बिना जीवित रहने की कोशिश कर रहे थे। उनके अगले दरवाजे का पड़ोसी एक शरणार्थी अफगान परिवार था जो अपने सीमित साधनों और भारतीय समाज के बहिष्कार के साथ जीवित रहने की कोशिश में लगा था। यहां उनके जीवन की एक कठिन त्रासदी दिखी जैसा उन्होंने बताया कि वे इस धारणा के तहत भारत आए थे कि ”अच्छे लोगों के साथ भारत एक बड़ा विशाल देश है। लेकिन हमें यहां शक की नज़र से देखा जाता है। हम अफगानों के प्रति फैली अनेक कहानियों के कारण। हमें दूर रखा जाता है। हम नही जानते कि हमारे बच्चों का भविष्य क्या होगा। हमने कभी कल्पना नही की थी कि हम ऐसे दिन भी देखेगें और विदेशी धरती पर हमारा जीवन भिखारियों से भी बदत्तर होगा। हमारे घरों में सब कुछ था पर अब घर कहां है। हमारे लिए कहीं भी कोई घर नहीं है।

इस शरणार्थी परिवार की त्रासदी या शरण के लिए भटक रहे किसी भी शरणार्थी के मामले को शब्दों में लिखना मुश्किल है। वे जीवित हैं बल्कि ज़रूरी बंदोबस्त के बिना छोटी बस्तियों में जीवन जीने के लिए उन्हें मज़बूर किया जाता है। उनके लिए यह मुश्किल ही नही बल्कि असंभव भी है कि वे मदद के लिए याचना, अनुरोध करें या गिड़गिड़ाएं यदि स्थानीय आबादी उनके साथ कुछ मदद करना ही नहीं चाहती हो। विडंबना यह है कि नई दिल्ली के आधे से अधिक निवासियों के माता-पिता या दादा-दादी ने विभाजन के भय और इसके परिणाम को देखा है। परन्तु जब आज के शरणार्थियों की बात आती है तो वे घबरा जाते हैं।

यह लिखना ज़रूरी नहीं कि हर समय हमारे देश में पाखंड का स्तर ऊंचा रहा है। कोई भी इस प्रकार का तमाशा और खोखले भाषण ‘वर्ल्ड रिफ्यूजी डेÓ पर सुन सकता है लेकिन जैसे ही यह दिन खत्म होता है तब सब खत्म हो जाता है। हम असहाय शरणार्थियों को परेशान करने, उनकी खिल्ली उड़ाने के लिए वापस आ जाते हैं।

यह सब मुझे यह लिखने के लिए मज़बूर कर रहा है कि दक्षिणपंथी भाजपा की सरकार केंद्र में है इस कारण शरणार्थी समस्या और गंभीर हो जाती है खास तौर पर यदि शरणार्थी मुसलमान हों। असल में जब पिछले साल भाजपा सरकार ने रोहिग्यां शरणार्थियों के साथ आतंकी होने का ‘टैगÓ लगा कर उसे खूब उछाला तो एनडीटीवी के श्रीनिवासन जैन और उसके सहयोगियों ने ऐसे तथ्य पेश किए जिनसे साफ हो गया कि उन शरणार्थियों की तरफ से देश की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है। एनडीटीवी के पत्रकारों ने चार स्थानों से रिर्पोटिंग की, ये स्थान थे- जम्मू, फरीदाबाद, राजस्थान और नई दिल्ली। उन्होंने वहां विभिन्न पुलिस अफसरों से बात की और पुलिस ने कैमरे पर बताया कि किसी भी शरणार्थी का आईएसआईएस, अलकायदा, इंडियन मुजाहिदीन और जिहादियों से कोई संबंध नहीं है।

एनडीटीवी की वेबसाइट से पता चलता है कि भारत में जहां भी रोहिंग्या लोग रह रहे हैं, वहां उनके किसी आतंकवादी संगठन या अपराधी गैंग के साथ होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं। ज़्यादातर रोहिंग्या जम्मू, दिल्ली, राजस्थान और हरियाणा में बसे हैं। सबसे अधिक रोहिंग्या जिनकी संख्या 5,743 है, जम्मू में बसे हैं। इस साल 20 जनवरी को तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने विधानसभा में बताया था कि जम्मू-कश्मीर में रहने वाला कोई भी रोहिंग्या किसी प्रकार की आतंकी कार्रवाई में शामिल नहीं है। उन्होंने बताया कि रोहिंग्या के खिलाफ गैर कानूनी तौर पर सीमा पार करने जैसे आरोपां के साथ 17 एफआरआई दर्ज हैं।

एनडीटीवी को पता चला कि इनमें 17 एफआईआर में से दो बांग्लादेशियों के खिलाफ, और एक पाकिस्तानी के खिलाफ। इसलिए 5,743 रोहिंग्या शरणार्थियों के खिलाफ मात्र 14 एफआईआर हैं। रिपोटरों ने इन एफआईआर को खंगाला तो पाया कि इनमें आठ मामले वीज़ा के, दो मामले बलात्कार के, एक मामला गाए काटने का, एक मामला मारपीट का, एक ब्लैक मार्केट में सामान बेचने का और एक रेलवे संपत्ति को बेचे जाने का था। ये आंकडे उससे मेल खाते हैं जो जम्मू में वरिष्ठ पुलिस अफसरों ने एनडीटीवी को दिए थे। जम्मू के आईजी डा. एसडी सिंह ने कहा, ”हमें इन के खिलाफ कोई भी गंभीर आपराधिक मामला नहीं मिला है। न ही इनकी कोई संगठनात्मक आपराधिक गतिविधियां सामने आई हैं।ÓÓ

दिल्ली में लगभग 1,000 रोहिंग्या शरणार्थी रह रहे हैं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि उनके पास इस बात को कोई आंकडा नहीं है कि शरणर्थियां के खिलाफ कितने मामले दर्ज हुए हैं। पुलिस को इन लोगों के किसी आतंकी गुट से संबंधित होने की संभावना नज़र नही आ रही। उनके खिलाफ केवल एक एफआईआर है वह भी बलात्कार की जो कि एक रोहिंग्या महिला ने हरियाणा में दर्ज कराई है। रोहिंग्या मुसलमान फरीदाबाद और मेवात में रह रहे हैं। फरीदाबाद और चंडीगढ़ दोनों ही स्थानों की पुलिस ने इन रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ किसी आपराधिक मामला दर्ज होने से इंकार किया है।

मुझे हैरानी है कि हम कभी बैठ कर इस तरह की घटनाओं पर चर्चा क्यों नहीं करते। आज आप एक आलीशान बंगले में रह रहे हैं पर कल आपको वहां से निकाल दिया जाता है आप उजड़ जाते हैं। आप अपने ही देश में शरणार्थी बने लोगों को अनदेखा नहीं कर सकते। यह कोई परीकथा नहीं अपितु कड़वी सच्चाई है। आज सैकड़ों पंडित कश्मीर घाटी से उजड़ कर देश में भटक रहे हैं। आज सैंकड़ों मुस्लिम घरों से उखड़ कर पश्चिम उत्तरप्रदेश में तंबू लगाकर रह रहे हैं। इसी तरह हज़ारों आज असाम में खौफ के साए में जी रहे हैं।

इन हालात में भरोसा नहीं कल आप भी शरणार्थी का ‘टैगÓ लगाने पर मज़बूर कर दिए जाएं।

जेल के अंदर चलीं गोलियां बेटे ने लिया पिता की हत्या का बदला!

बागपत जेल में इसी महीने एक कैदी मुन्ना बजरंगी को दूसरे कैदी सुनील राठी ने गोलियों से भून डाला। एक सप्ताह पहले उसकी पत्नी ने कहा था कि मुन्ना बजरंगी की जान को खतरा है। पुलिस ने अपराधी को तत्काल पुलिस हिरासत में ले लिया है। जेल में हुई इस हत्या को राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गंभीर बताया और उन्होंने जांच के आदेश भी जारी कर दिए। जेल के चार अधिकारी भी मुअतल किए गए हैं।

कहते हैं कथित हत्यारे ने अपने पिता की हत्या का बदला छह महीनों में ले लिया। उसके पिता नरेश राठी तब बागपत जिले की टीकरी नगर पंचायत  के अध्यक्ष थे जब दिसंबर 1999 में उसकी हत्या हुई। सुनील तब 21 साल का था। राठी पिछले साल की जुलाई 31 से बागपत जेल में था। गोलियों की आवाज़ पर मौका-मुआयने से .762 बोर के दस खाली खोखे और कुछ गोलियां मिलीं। इस पूरे मामले की तितरफा जांच हुई। एक तो जेल अधिकारियों द्वारा, एक मजिस्ट्रेट छानबीन और एक न्यायिक जांच। जेल के जिन अधिकारियों को सस्पेंड किया गया उनमें हैं – जेलर उदय प्रताप सिंह, उप जेलर शिवाजी यादव, हेड वार्डेन अरजिंदर सिंह और वार्डेन माधव कुमार।

मुन्ना बजरंगी की बागपत जेल में हत्या करने वाला सुनील राठी हत्या के दो मामलों में उम्रकैद की सज़ा काट रहा है। बागपत में एक हत्या उसने और दूसरी रूड़की में एक व्यापारी की थी। क्योंकि ये उसकी मांग पर रकम नहीं दे पा रहे थे। इनके अलावा दो और हत्याओं के आरोप उस पर है। उस पर गैंगस्टर एक्ट के तहत तीन मामले और चार एक्स्टारशन के मामले भी हैं। राठी को अब फर्रूखाबाद की सेंट्रल जेल में भेज दिया गया।

पुराने राग-द्वेष, हत्याओं के मामलों के चलते सुनील राठी ने बहुत करीब से गोलियां चला कर मुन्ना बजरंगी की हत्या की। एक जेल में हुई इस हत्या पर ढेरों सवाल उठ रहे हैं। यह हत्या जेल के अंदर एक दूसरे कैदी द्वारा की गई।

पूर्वाचल यानी उत्तरप्रदेश व बिहार के इलाकों में गरीबी, अविकास और बाहुबलियों के लिए ख्यात रहा है। जो लोग बाहुबली और धनपति होने के नाते राजनीति में अपनी आकांक्षाएं आजमाते हैं। उनकी छवि पहले तो अपने समुदाय के लोगों में उनके अपने सेवक के रूप में बनती है फिर यही उभरती है उन्हें अपने कंधों पर हमेशा रखने में। राजनेता बनने के पीछे इनका मूल मकसद होता है अपनी छवि सुधार कर समाज की मुख्यधारा में आना। वे चाहते हैं जो वर्दीधारी उन्हें गिरफ्तार करने या मार देने के लिए तैयार थे। वे ही अब उन्हें सेल्यूट करते भी दिखें।

जौनपुर पूर्वी उत्तरप्रदेश में बहुत ही पिछड़े, गरीबों और पुराने रईसों का मशहूर केंद्र रहा है। इसी जिले के पूरदयाल गांव का था प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी। उसमें बारूद को दागने की गजब पहचान थी। बचपन से ही उसे पिस्तौल और बंदूकों  का खेल भाता था। उम्र के साथ ही उसने निशाने पर गोली चलाना सीख लिया। इसके बाद या तो वह राजनेता बनता या पुलिस के हाथों मारा जाता। मुन्ना बजरंगी पुलिसिया तैनातगी के बावजूद जेल के अंदर मारा जाता। अपराध पैंतीस साल ही अपराध में उसकी सक्रियता के रहे। उस पर हत्या के दो दर्जन मामले और वसूली के ढेरों मामले थे।

एक गरीब किसान के घर में 1964 में जन्मे प्रेम सिंह का पढ़ाई-लिखाई में कभी मन नहीं लगा। वह बमुश्किल पांचवीं कक्षा तक पढ़ा फिर उसने पढऩा छोड़ दिया। उसकी दिलचस्पी कुश्ती लडऩे और दोस्तों के साथ घूमने में थी। बाद में  उसने कालीन के एक व्यापारी के यहां नौकरी कर ली। उसका अपराधी बनना 1982 से शुरू होता है। हाथा-पाई, मारपीट, लूट पाट और धमकी देने का सिलसिला पहले चला। इसी दौरान उसने अपना बकाया न पाने पर कालीन के व्यापारी की हत्या एक दिन कर दी। उसके बाद तो उसका अपराधी जीवन ही शुरू हो गया।

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उसे मुंबई से गिरफ्तार किया। तब वह एक खूंखार अपराधी बन चुका था। उत्तरप्रदेश पुलिस के अनुसार 90 के दशक में वाराणसी पहुंचा। उसका परिचय एक छात्र नेता अनिल ङ्क्षसह से हुआ जिस पर अनेक आपराधिक मामले थे। वह आगे चल कर वाराणसी में डिप्टी मेयर बना और मुन्ना बजरंगी उसका शैडो। धीरे-धीरे उसका परिचय कृपा चौधरी से हुआ। उन दिनों यह एक बड़ा नाम था और मुख्तार अंसारी उसी की देखरेख में अपराधी और राजनेता बन रहे थे। करीब दस साल ये सहयोगी रहे। एक दशक में वाराणसी-जौनपुर में इन्होंने न जाने कितनी हत्याएं की। अंसारी ने बजरंगी का इस्तेमाल अपने प्रतिद्वंद्वियों की हत्या कराने में कभी किया। अंसारी को रेलवे और सरकारी महकमों से कांट्रैक्ट दिलाने में भी बजरंगी ने खासी मदद की। स्थानीय व्यापारियों और कोयला बाज़ार से वसूली भी जारी रही।

बजरंगी ने 1995 में स्थानीय बाहुबली छोटे सिंह और बड़े सिंह को वाराणसी में मारा। अंसारी के साथ उसकी खटपट तब बढ़ी जब उसने सुपारी लेकर हत्या का काम शुरू किया। कथित तौर पर उसने भाजपा के राजनीतिक रामचंद्र सिंह को उनके बाडीगार्ड के साथ 1996 में मारा। उसकी खासियत थी वह दिन दिहाड़े भीड़ भरे बाज़ार में गोली चलाता था। वह घर में घुस कर भी लोगों की हत्या करता था।

उत्तरप्रदेश एसटीएफ और दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के एक अभियान में 1998 में समयपुर बादली के पास हुई मुठभेड़ में बजरंगी को 17 गोलियां लगी थीं। जिनमें से ज्य़ादातर शरीर में जख्म बनाती बाहर निकल गई थीं। उसे पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया। जैसे ही डॉक्टर ने उसकी जांच की तो शरीर में जि़ंदगी थी। वह सांस ले रहा था। वह जेल गया । वहां से ही अपना धंधा चलाता था। बाद में उसे जमानत मिली। वह इसलिए भी रिहा हो जाता था क्योंकि गवाह उससे दहशत खाते थे।

इसी दौरान अपने बचपन के एक साथी की साली सीमा से उसका प्रेम प्रसंग चला और उसने शादी की। साल भर बाद उसका बच्चा जन्मा। उस समय वह भी दिल्ली के हिंदू राव अस्पताल में भर्ती था। वह एक मुठभेड़ में घायल होकर अस्पताल पहुंचा था। यहां से ठीक होने पर उसने फिर कई हत्याएं कीं।

उसने व्यापार में भी हाथ आजमाया। गंगा किनारे पुराने मकानों को खरीदने और उन्हें बाज़ार की कीमत पर बेचता। वह डाक्टरों से फिरौती भी लेता। कथित तौर पर उसने अंसारी के कहने पर मोहम्मदाबाद से कृष्णानंद राय की हत्या की। अंसारी और बजरंगी दोनों का नाम एफआईआर में था। अंसारी गिरफ्तार हुए। वे अभी भी बांदा जेल में हैं।

लेकिन उस हत्या के बाद बजरंगी भूमिगत हो गया। चार साल उसने अपराध नहीं किया। उसकी गिरफ्तारी 2009 में मुंबई में मलाड से हुई। उधर अंसारी जेल से चुनाव लड़ते और लगातार जीतते रहे। इस दौरान उनकी बजरंगी में रु चि भी कम हो गई। बजरंगी ने जौनपुर में मरीयाहू से अपना दल के टिकट पर 2012 में चुनाव लड़ा। वहां वह तीसरे नंबर पर रहा। उसकी पत्नी सीमा ने 2017 में चुनाव लड़ा। लेकिन वह भी हार गई। राजनीति में मुन्ना बजरंगी के कामयाब न होने की सबसे बड़ी वजह यह रही कि एक तो वह पढ़ा-लिखा नहीं था, दूसरे उसका दिमाग उतना तेज़ नहीं था जितना अंसारी का है और तीसरे उसका अपना कोई गॉडफादर नहीं था। उसे लगता था कि पैसा फेंकेंगे तो लोग वोट देंगे।

आखिर पकड़ा गया गैंगस्टर दिलप्रीत

अपने आप में यह एक अलग ही मामला है। जिसमें कुख्यात गैंगस्टर दिलप्रीत सिंह उर्फ़ बाबा पुलिस की हिरासत में होने के वाबजूद भी चंडीगढ पुलिस ने चार दिन तक गिरफ़्तारी नहीं दिखाई और न ही अदालत में पेश किया। यह स्थिति तब है, जबकि दिलप्रीत पुलिस हिरासत से फऱार अपराधी है और उसके विरुद्ध लगभग दो दर्जन छोटे बडे मामले दर्ज हैं। पंजाब हरियाणा और चंडीगढ पुलिस ने उसे वांछित अपराधियों की श्रेणी में रखा हुआ है। उसके विरुद्ध हत्या, हत्या के प्रयास और फिरौती वसूल करने जैसे संगीन आपराधिक मामले भी शामिल हैं। वर्ष 2016 में दिलप्रीत पुलिस को चकमा देकर हिरासत से भाग निकला था।

चंडीगढ के सेक्टर 38 स्थित गुरुद्वारे के बाहर दिन दिहाडे भीड़ भाड़ वाली सड़क पर सरपंच सतनाम सिंह की गोलियाँ मार कर हत्या करने और  पंजाबी  सिंगर परमीश वर्मा पर फिरौती के लिए जानलेवा हमला करने और उसके बाद पुलिस को धमकाने के कारण सुर्खियों में आया कुख्यात गैंगस्टर दिलप्रीत उर्फ बाबा आखिरकार कई दिनों की आंख मिचौली के बाद सोमवार नौ जुलाई को पुलिस की गिरफ्त में आ ही गया। उसे 9 जुलाई की दोपहर को सेक्टर 43 के बस अड्डे के पास एक गुप्त सूचना पर पंजाब और चंडीगढ़ पुलिस ने मुकाबले के बाद पकड़ लिया। वह कार से बस अड्डे की तरफ किसी से मिलने आया था लेकिन पुलिस से खुद को घिरा देख उसने फायरिंग की, इसी दौरान जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने उसके पट्ट में एक गोली मार दी। जोकि उसके पट्ट की हड्डी तोडकर निकल गई। दिलप्रीत को भारी सुरक्षा के बीच पीजीआई में भर्ती करवाया गया। उसे पीजीआई में आप्रेशन के बाद प्राईवेट रुम में रखा गया है। यहाँ पर उसकी सुरक्षा में लगभग दो दर्जन कमांडो रात-दिन पहरा दे रहे थे। मौका-ए-वारदात से पुलिस ने एक पिस्तौल, जिंदा कारतूस, चले कारतूस और एक स्विफ्ट डिजायर गाड़ी को कब्ज़े में लेकर दिलप्रीत पर एक और मामला चंडीगढ सेक्टर 36 पुलिस थाने में दर्ज कर दिया।

चंडीगढ सेक्टर 36 पुलिस थाना कर्मियों ने चार दिन बाद दिलप्रीत को पीजीआई से डिस्चार्ज करवा कर गिरफ्तारी डाल कर शुक्रवार को सेक्टर 43 की जिला अदालत में पेश कर दो दिन का पुलिस रिमांड प्राप्त किया।

दिलप्रीत अपनी गर्लफ्रेंड के साथ चंडीगढ़ सेक्टर 38 में पिछले एक साल से रह रहा था। वह बिना किसी रोक टोक के चंडीगढ़ से हेरोइन तस्करी का धंधा चला रहा था। मौके पर दिलप्रीत की जो गाड़ी बरामद हुई है उसमें नकली दाढ़ी और मूछें मिली हैं। केशधारी दिलप्रीत ने अपने बाल और दाढ़ी छोटी करवा ली थी और पगड़ी की जगह टोपी का इस्तेमाल कर रहा था। वो अपना वेश बदलकर चंडीगढ में रह रहा था।

वह रुपिंदर कौर के साथ उसके मकान में ठहरता था। यहां तक कि दिन-रात हर समय खुलेआम घूमता रहा। उसने लोगों को बता रखा था कि वह रुपिंदर का पति है। चंडीगढ़ के सभी पर्यटन स्थल सहित सिनेमा हॉल व अन्य मार्केट्स में दिलप्रीत घूमता रहा, परन्तु यूटी पुलिस विभाग के इंटेलीजेंस विंग, सीआईडी, क्राइम ब्रांच पुलिस और ऑपरेशन सेल सहित संबंधित थाने की बीट पार्टी के पुलिसकर्मियों को भी यह पता नहीं लग सका।

गैंगस्टर दिलप्रीत अपने एक दोस्त के जरिए वर्ष 2014 में पहली बार गर्लफ्रेंड हरप्रीत कौर के संपर्क में आया था। इसके बाद उनकी नजदीकियां बढ़ी और दिलप्रीत ने हरप्रीत कौर के घर आना-जाना व रहना तक शुरू कर दिया। उनके बीच नजदीकी संबंध बने और इसके बाद दिलप्रीत ने हरप्रीत कौर की छोटी बहन रुपिंदर कौर से नजदीकियां बढ़ाईं। बीते वर्ष रुपिंदर कौर चंडीगढ़ में शिफ्ट हो गई। उसके बाद से गैंगस्टर दिलप्रीत उर्फ बाबा भी उसके सेक्टर-38 स्थित मकान में उसका पति बनकर रहने लगा। दिलप्रीत के विरुद्ध सेक्टर 39 पुलिस थाने में ही सरेआम सरपंच सतनाम सिंह की गोलियाँ मार कर हत्या करने का मामला दर्ज हैं, लेकिन सेक्टर 39 पुलिस को फिर भी यह जानकारी नहीं मिल पाई कि जिस गैंगस्टर को पकडऩे के लिए वह जगह जगह छापेमारी कर रही है, वह उनकी नाक के नीचे आज़ाद घूम रहा है।

दिलप्रीत,रुपिंदर कौर के साथ सेक्टर-38 के उक्त मकान नंबर में बतौर किराएदार लंबे समय से रह रहा था। लेकिन मकान मालिक ने उनकी पुलिस वेरिफिकेशन ही नहीं कराई, जबकि इसी मकान से वह नशा सामग्री सहित अन्य गैर-कानूनी गतिविधियां जारी रखे हुए था। सैक्टर-38 में जिस जगह रुपिन्द्र कौर ने किराए पर मकान लिया हुआ है, उसकी पिछली साइड पर ड्रंकन ड्राइविंग का नाका भी लगता है और जब्त की गई गाडिय़ों भी वहां खड़ी की जाती थी। ऐसे में लोगों ने कहा कि जब वहां लाइट चली जाती थी तो दिलप्रीत के पास जो पहले लांसर होती थी, वह उस गाड़ी में एसी ऑन करके बैठा रहता, जबकि उसके बिलकुल सामने पुलिस ने ड्रंकन ड्राइविंग का नाका लगाया होता था।

स्टेट स्पेशल ऑपरेशन सेल, मोहाली पुलिस को गैंगस्टर दिलप्रीत सिंह उर्फ बाबा की गर्लफ्रेंड रु पिंदर कौर के सेक्टर 38 स्थित घर से दिलप्रीत का एक बैग मिला है। बैग से पुलिस को सेक्सवर्धक 16 गोलियां, कंडोम, मूसली, हुक्का और खसका मिला। पुलिस दिलप्रीत सिंह की दोनों महिला मित्रों हरप्रीत कौर और रु पिंदर कौर से पूछताछ में जुटी है। दिलप्रीत की गर्लफ्रे ड और उसकी बहन को कोर्ट ने पांच दिन के रिमांड पर भेजा है। उसकी गर्लफ्रेड के घर से गन, पिस्टल, गोलियां और 13 गाडिय़ों की नंबर प्लेट मिली हैं। गर्लफ्रेड हरप्रीत नवांशहर से पकड़ी गई थी।

सेक्टर 38 गुरूद्वारे के बाहर हुई सरपंच सतनाम सिंह की हत्या के बारे में दिलप्रीत ने कहा कि उन्हें मंजीत सिंह उर्फ बॉबी लेकर आया था। पहले से ही तय कर रखा था उसका पैरों पर ही गोली मारनी थी। कत्ल नहीं करना था। लेकिन वह मर गया। मंजी के दादा का सरपंच सतनाम से ट्रासपोर्ट को लेकर झगड़ा हुआ था।

चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और पश्चिम बंगाल पुलिस का मोस्टवांटेड इनामी गैंगस्टर हरविंदर सिंह उर्फ रिदा दिलप्रीत के संपर्क में था। चंडीगढ़ में ही दोनों मुलाकात करते रहे। रिदा चंडीगढ़ में अपनी गर्लफ्रेड मनप्रीत कौर के साथ होटल माउंटव्यू में आता रहा है। तीन बार वह होटल माउंटव्यू में दो-दो दिन के लिए रूका। पीयू का एक स्टूडेंट रिदा के लिए ऑनलाइन कमरे बुक करता था। यहीं स्टूडेंट रिंदा को होटल में आकर पैसों का बैग देता था। पुलिस को शक है कि स्टूडेंट ङ्क्षरदा के लिए फिरौती का काम करता है। उसकी तलाश अब पुलिस ने शुरू कर दी है। होटल की सीसीटीवी रिकार्डिग भी हासिल कर ली है। दिलप्रीत ने बताया कि उसकी तरह रिंदा ने भी अपना पूरा लुक बदल लिया है। पुलिस को दिलप्रीत के मोबाइल से रिंदा की अब की तस्वीरें मिली हैं। इसके साथ ही खुलासा हुआ है कि रिंदा उत्तराखंड में जगह बदल-बदलकर रह रहा है।

गैंगस्टरों के सफाए में जुटी पंजाब पुलिस की इस बड़ी कामयाबी पर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह संतुष्ट हैं और उन्होंने ऑपरेशन को अंजाम देने वाली टीम की पीठ थपथपाई। उन्होंने ट्रवीट कर कहा कि कानून को अपने हाथ में लेने वालों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा।

अदालतों ने फूंकी दिल्ली के पेड़ों में प्राण वायु

दिल्ली फिर बच गई, तकरीबन सत्तरह हज़ार अच्छे मजबूत और लगभग तीस-चालीस साल पुराने हरे पेड़ों से मरहूम होने से। मेट्रो ट्रेन की विकास योजनाओं में हजारों हजार पेड़ दिल्ली और आसपास काट दिए। प्रेरणा प्रसाद और प्रदीप कृष्ण की तरह दिल्ली के सक्रिय नागरिकों के जनमुहिम छेडऩे और एनजीटी और दिल्ली हाईकोर्ट की बदौलत दिल्ली में सांस लेने के लिए हरे फेफड़े हाल-फिलहाल बच सके हैं। अन्यथा अफसर शाही और मंत्री अपनी सुविधाओं के लिए इन्हें कटवाते और दिल्ली में और तबाही ला ही देते। इस मुहिम में सक्रिय प्रेरणा प्रसाद से ‘तहलकाÓ संवाददाता परी सैकिया की बातचीत के कुछ अंश।

              क्या आप पेड़ों को काटे जाने की मुहिम को दिल्ली का ‘चिपको आंदोलनÓ कहना चाहेंगी?

              दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार की यह योजना थी कि पुनर्विकास के बहाने सेंट्रल दिल्ली के पेड़ काट डाले जाएं। यह एक बड़ा फैसला था। हमने तय किया कि पानी, वायु और गंदगी से प्रदुषित इस दिल्ली को इसके हरे पेड़ों को न काटने दिया जाए। हमने सिटिजेन फार ट्रीज और ईको प्लोर डॉट.काम के जरिए अपनी बात दिल्ली के तमाम विद्यालयों और नागरिकों के सामने रखी। देखते-देखते हमने देखा कि हमारा आंदोलन इस शहर के नागरिकों का यहां के बच्चों और छात्रों का अपना आंदोलन बन गया है। नगर की हरियाली बनी रहे, जितनी भी है वह बची रहे कम से कम अगली पीढ़ी के लिए यह हमारा मकसद था। यह हम सब की नैतिक जि़म्मेदारी है इसलिए हर नागरिक पेड़ों को काटने से बचाने के लिए हमसे जुड़ा। सब इस बात से सहमत थे कि हम यदि हरियाली की चिंता आज नहीं करेंगे तो फिर कौन करेगा?

              और हम सबने 17 जून (रविवार) से अपना आंदोलन शुरू किया। हमारे साथ लोग जुड़ते रहे और कारवां बनता गया। हम सब पेड़ों के काटे जाने से रोकने की मांग पर अड़े रहे। इस आंदोलन को चलाए रखने के लिए दिल्ली के नागरिकों ने हर तरह का सहयोग किया। पहले दिन हमने डीएमएस बूथ सरोजिनी नगर पुलिस स्टेशन पर प्रदर्शन किया। लोगों में खासा उत्साह दिखा और पूरे आंदोलन में साथ देने के लिए एकजुट भी रहे। आज भी वे हमारे साथ हैं। पर्यावरण की रक्षा के लिए इतनी बड़ी तादाद में लोगों का जुटना एक बड़ी बात थी।

              आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय तो यह दावा कर रहे हैं कि वे कालोनी के पुनर्विकास की प्रक्रिया में जुटे हैं और उनकी कोई योजना नहीं है कि एक भी पेड़ न काटने पड़े। दिल्ली हाईकोर्ट ने 26 जुलाई तक पेड़ों के काटे जाने पर रोक लगा दी। लेकिन ठेकेदार तो तैयारी में ही नज़र आ रहे हैं।

              दरअसल सरकार कहती कुछ है और करती कुछ है। सरकार और उसके लोग पूरी कोशिश पहले दिन से करते रहे हैं कि कैसे प्रर्दशनकारियों में फूट डाली जाए। ये अपने घरों को जाएं और इस बात सोचें कि अब पेड़ नहीं कटेंगे। लेकिन हमने देखा, हाईकोर्ट की और एनजीटी की रोक के बावजूद पेड़ों का कटना जारी रहा। हमने संघर्ष जारी रखा कि जब तक हाईकोर्ट, एनजीटी और सरकार साफ-साफ यह नहीं कहती कि हम अपना फैसला लेेते हैं। हम यहीं डटे रहे।

              यह आंदोलन जो 17 जून से शुरू हुआ इसमें बाद में राजनीतिक दलों के लोग भी शामिल हो गए। आपका क्या कहना है?

              कुछ राजनीतिक दलों ने ज़रूर इस आंदोलन को अपनी राजनीति का मोहरा बनाया है। उन्हें इस आंदोलन से लाभ ही है वे हमारे प्रति हमदर्दी दिखाते हैं। हम वह तो नहीं चाहते कि वे सिर्फ इस आंदोलन में इसलिए आएं कि वे दिखा सकें कि हमारे बीच वे भी हैं और टीवी चैनेल को अपनी वाइट देकर लौट जाएं। लेकिन हमारी यह इच्छा ज़रूर है कि पेड़ों को कटने से रोकने के लिए ये लोग एक ज़रूरी हल ढूंढें। यह सिर्फ दिल्ली नहीं बल्कि तमाम गांवों और शहरों  के लिए यह एक ज़रूरी मामला है। इस पर रोक की मांग हर कहीं होगी लेकिन वे ऐसा समाधान निकालें कि उनकी विकास परियोजना की अवधि के भीतर ही मजबूत, हरे और उपयोगी पेड़ भी तैयार हुए।

              आपने सिटिजन आंदोलन से कैसे सोशल आरगेनाइजेशन को जोड़ लिया?

              इसके लिए मुझे क्रेडिट नहीं मिलना चाहिए। मैंने सुना कि सत्ररह हज़ार से भी ज्य़ादा मजबूत और हरे-भरे पेड़ काट दिए जाएंगे तो कई  सामाजिक संगठन इसका पहले से विरोध कर भी रहे थे। मैंने एवाट्सएप ग्रुप बनाया और हर किसी से इस आंंदोलन से जुडऩे का अनुरोध किया। हमने एकता जताई और हम सभी लड़े और जीते भी।

              यह मुद्दा महत्वपूर्ण क्यों था?

              हर किसी को साफ शुद्ध हवा सांस लेने के लिए चाहिए। हम बिना साफ शुद्ध हवा के कैसे जीवित रह सकेंगे। इस साफ शुद्ध हवा की ज़रूरत राजनीतिक, नौकरशाह और मजदूर को भी है। पेड़ हवा की शुद्धता और सफाई में सहयोग करते हैं।

              आप देश के किसी भी गांव- शहर में भीषण गर्मी, बेहद बारिश, और बेहद सर्दी पर किसी से भी बात करें तो वह यही कहता है कि पूरे देश से पेड़ों को अंधाधुंध काट डालने से ऐसा हुआ है। पूरे देश का पर्यावरण चौपट हो गया है इसके लिए हम कम लेकिन मंत्री, नौकरशाह और नेता ज्य़ादा जिम्मेदार हैं। पूरे देश में पेड़ बचाने का आंदोलन होना चाहिए।

              क्या आप इस आंदोलन को पूरे देश में तेज़ करेगी?

              हां, ज़रूर। हाई वे बनाया जाना है चारधाम को आपस में जोडऩे के लिए। कमज़ोर पहाडिय़ों क्या हाईवे का वज़न सह सकेंगी। जब पेड़ कट जाएंगे तो पहाडिय़ों को कौन संभालेगा जब धंसने लगेंगी।

क्या था एनजीटी का आदेश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने शुरू में ही अपने आदेश में कहा था कि दक्षिण दिल्ली की सात कालोनियों में जो पेड़ हैं वे कतई न काटे जाएं। यह आदेश नेशनल बिल्डिंग्स कांस्ट्रक्शन कारपोरेशन (एनवीसीसी) और सेंट्रल पब्लिक वक्र्स डिपार्टमेंट को दिए गए हैं। साथ ही यह ताकीद की गई हैकि अगले आदेश तक यथा स्थिति रहे।

एनजीटी की बेंच की अध्यक्षता जस्टिस जावेद रहीम कर रहे थे। वे एनजीटी के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने गृह और शहरी मामलों के मंत्रालय को इस संबंध में नोटिस भी जारी किए हैं। ये नोटिस सेंट्रल पाल्युशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) और दक्षिण दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन को भी जारी किए गए हैं। उनसे 19 जुलाई तक अपनी बात रखने को कहा गया है।

चूंकि यह मामला हाईकोर्ट में भी है इसलिए यदि प्रस्तावित तौर पर 17 हजार पेड़ काटे जाते हैं तो इसका पर्यावरण पर गहरा असर पड़ेगा। एनजीटी ने सभी संबंधित महकमों से मांग की वे बताएं कि कितने पेड़ काटने की उनकी योजना है।

उधर दिल्ली में सरकार चला रही आप के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने केंद्र पर आरोप लगाया है कि इसने एनजीटी को यह जानकारी नहीं दी है कि नए सिरे से परियोजना पर कार्य किया जा रहा है। उन्होंने शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी के बयान का हवाला दिया कि उन्होंने वादा किया था कि एक भी पेड़ नहीं काटा जाएगा। उन्होंने कहा कि अदालत में एनबीसीसी के वकीलों का कहना था कि वे अपनी परियोजना को रि-डिजाइन कर रहे हैं। लेकिन वे तो याचिका का ही विरोध करते रहे और रि-डिजाइन की बात ही नहीं की। केंद्र से आप का यही अनुरोध भी रहा है।

दिल्ली में यों भी मेट्रो और अन्य हाउसिंग कार्यक्रमों के चलते पेड़ों की तादाद बेहद कम हो गई है। अच्छे मजबूत पेड़ों को इतनी बड़ी तादाद (1700 से ऊपर) काटने पर अमल रूकवाने के लिए गैर सरकारी संस्था सोसाइटी फार प्रोटेक्शन ऑफ कल्चरल हैरिटेज, पर्यावरण, ट्रैडीशनस एंड प्रमोशन ऑफ नेशनल अवेयरनेस, ग्रीन सर्किल और शहर के सक्रिय कार्यकर्ता उत्कर्ष बंसल ने प्रस्तावित 17000 पेड़ों को गिराने और दक्षिण दिल्ली की कालोनी का परिदृश्य बदलने की योजना पर अमल का विरोध किया। इसमें तर्क दिया गया था कि जनरल पूल की सात रेजिडेंशियल कालोनीज से बिना पर्यावरण पर संभावित असर पर बात किए बगैर ही काम शुरू कर दिया गया।

याचिका दायर करने वालों को कहना था कि किसी और जगह पौधे लगा देने से वनीकरण की संभावना नहीं बनती। यों भी बड़े पैमाने पर दिल्ली शहर के फेफड़ों की तरह काम कर रहे हरे और मजबूत पेड़ जो बीस -तीस साल के होंगे उनके न रहने पर पर्यावरण विनाश ही होगा।

डालर की तुलना में लुढ़कता रुपया

एक ज़माना वह भी था जब देश के रुपए की कीमत काफी ज्य़ादा थीं। आज एक डालर की कीमत लगभग 69 रुपए मात्र है। अब एक डालर के बदले तकरीबन 69 रुपए मात्र देने होते हैं। इसका मतलब है कि अमेरिकी डालर के मुकाबले रुपया लगातार लुढ़कता गया है। इसका व्यापक असर दिखता है जब हम तेल-गैस का कोई उत्पाद खरीदते हैं। इसका मतलब हुआ कि कंप्यूटर मोबाइल वगैरह और भी ज्य़ादा महंगे हो गए। रुपए की गिरती हालत पर खुद प्रधानमंत्री खासे बेचैन रहे हंै। उन्होंने कहा कि रु पया यदि इसी तरह लुढ़कता रहा तो मजबूत आर्थिक हालात वाले देश इसका बेजा लाभ उठा सकते हैं।

प्रधानमंत्री रुपए के लुढ़कने के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं दिल्ली सरकार को। वे कहते है कि यदि ये सजग होते तो ऐसा नहीं होता।

दरअसल रुपए की कीमत जो लगातार गिरती जा रही है उस पर देश के वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को लगातार नज़र रखनी चाहिए थी। इस साल की पहली जनवरी से रुपया एशिया में दूसरी करंसी की तुलना में सबसे खराब तरीके से लुढ़कता दिखने लगा था लेकिन इसे नजरअंदाज़ कर दिया गया। उन सबके पास रटारटाया यही जवाब था कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल महंगा हो रहा है। जबकि तेल भी महंगा उतना नहीं था।

रुपए के लुढ़कने से प्रधानमंत्री भले चिंतित हैं। लेकिन आर्थिक जगत के लोग इसे सामान्य प्रक्रिया मानते है। केंद्रीय वित्त मंत्री का कहना है कि देश में मैक्रो-इकॉनॉमिक इंडिकेटर बहुत मजबूत हैं इसलिए रुपए की गिरावट भी संभाल ली जाएगी।

वित्तमंत्री ने सही कहा। 28 जून को रु पया जो लुढ़क कर रुपए 68.46 मात्र से पैसे पर आ गया था। उसने 29 जून को तैंतीस पैसे की उछाल ली। तब सेंसेक्स भी 386 पवाइंट पर था। रुपए में कुछ सुधार दिखा।

वित्त मंत्री ने हर समस्या की जड़ कांग्रेस को ठहराते हुए जानकारी दी कि जब 2013 में रुपया 68.8 मात्र प्रति डालर हो गया तो आरबीआई (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) के गवर्नर रघुराम राजन ने फारेन करेंसी नान रेसिडेट बैंक(एफसीएनआरबी) शुरू की। इसके तहत डिपाजिट लिए। भारत में तीन साल के लिए 32 बिलियन डालर आए। इनके बल पर भारतीय करंसी कुछ साल टिकी रही। वित्त मंत्री ने बताया कि हमने 32 बिलियन डालर वापस कर दिए। आप देख सकते है पांच साल में रुपए की कीमत नहीं घटी।

भारत में विदेशी मुद्रा रिजर्व 304 बिलियन डालर 2013-14 में थी। आज यह 2017-18 के अंत में 425 बिलियन डालर है। इसके चलते एकाउंट डेफिसिट और फिस्कल डेफिसिट गिरा ही है।

आस्ट्रेलिया ने जीती ट्रॉफी और भारत ने दिल

चैंपियन ट्राफी की शुरूआत 1978 में हुई थी। इस टूर्नामेंट के 37 संस्करण हो चुके हैं। जिनमें से 15 बार आस्ट्रेलिया ने यह खिताब जीता। भारत लगातार दूसरी बार इस टूर्नामेंट के फाइनल में पहुंचा। लेकिन चार में से तीन क्र्वाटर तक अपना प्रभुत्व बनाने और दोनों छोरों और मिडफील्ड में अपना दबदबा कायम रखने के बावजूद भारत चैंपियन ट्राफी का फाइनल विश्व चैपियन आस्ट्रेलिया से हार गया। निर्धारित समय तक 1-1 से बराबर रहने के बाद शूट आऊट में 1-3 का स्कोर मैच की सही तस्वीर पेश नहीं करता। यह नहीं दर्शाता कि भारत जीत के कितने करीब पहुंच कर हार गया। उसने कितने मौके गंवाए उसकी पकड़ कितनी मज़बूत थी। यही वजह है कि मैच हारने के बाद भारत के मध्य पंक्ति के खिलाडी मनप्रीत सिंह रो पड़े और 18 साल के विवेक प्रसाद जिसने भारत का एकमात्र गोल किया ने मैच के बाद कहा, ‘यह जख्म हमेशा ताजा रहेगा’। भारतीय कप्तान का कहना था कि, ‘हमने आस्ट्रेलिया को ट्राफी तोहफे में दे दी’। खेल के पंडित कुछ भी कहें पर भारत का प्रदर्शन चारों क्र्वाटर में बिलकुल परिपक्व और तकनीकी तौर पर मज़बूत रहा बस फर्क इधर-उधर का रह गया। अगर यह अंतर न रहता तो शायद ब्रेडा का स्टेडियम पूरी रात जश्न में डूबा रहता।

अंत में जब आस्ट्रेलियाई खिलाडी जीत का जश्न मना रहे थे तब भारतीय खिलाडियों के चेहरे पर निराशा और उदासी थी और वे होटल जाने के लिए बेताव थे। कोच हरेंद्र सिंह ने कहा कि, ‘आज की रात नींद मुश्किल से ही आएगी। यह दर्द कई सप्ताह तक रहेगा’।

हालांकि टीम की सुबह की बैठक में निर्देश स्पष्ट थे कि गलतियां कम की जाएं और रक्षा पंक्ति को बिखरने नहीं देना। लेकिन पहले क्र्वाटर के मध्य में कोच हरेंद्र ने आस्ट्रलियाई खिलाडिय़ों को रक्षात्मक होते हुए देखा। उस समय उन्होंने खिलाडिय़ों से अपना स्वभाविक खेल खेलने के लिए कहा पर यह भी कि गेंद का ‘पोजेशन’ आसानी से विपक्षी टीम के हाथ में नहीं आने देना”।

इसके बाद मैच का मिजाज ही बदल गया। मिडफील्ड ने पूरा मैदान घेर रखा था। डिफेंस उनके और मिडफील्ड के मध्य के अंतर को कम करने के लिए आगे आया। उन्होंने आस्ट्रेलियाई खिलाडिय़ों के लिए कोई खाली स्थान नही छोड़ा था जब भी वे कोई आक्रमण करते तो लगातार सुरेंद्र कुमार, वरूण कुमार, और जर्मनप्रीत सिंह उन्हें रोकने के लिए सामने होते। वीरेंद्र लकड़ा ऐसे खेल रहा था जैसे वे कोच को यह दिखाने की कोशिश कर रहा हो कि वह एक डिफेंडर से बेहतर फारवर्ड हैं। वह बार-बार झुक कर और अपना सिर नीचे करके इस तरह से ड्रिविल कर रहा था कि आस्ट्रेनिया के खिलाडी भौचक्के रह जाते और वह आस्ट्रेलिया की रक्षा पंक्ति को इस तरह काट कर निकलता जैसे गर्म चाकू मक्खन में से निकल जाता है। उसने बार-बार गेंद को विपक्षी खिलाडिय़ों से दूर रखते हुए और गेंद को सिमरनजीत की तरफ धकेल दिया, वह खिलाड़ी जिसका खेल हर मैच के बाद निखरता चला गया।

शुरूआती मिनट में ही अमित रोहिदास ‘रेफरल’ के लिए गए और उन्हें पहला पेनल्टी कार्नर मिला था। फिर दूसरा भी मिला आस्ट्रेलिया हैरान था कि उसने कहां पकड़ ढीली छोड़ी। श्रीजेश के सामने उन्होंने कई बार गेंद मारने का प्रयास किया लेकिन गेंद श्रीजेश के पैड पर सीधी लगी।

इस बीच सुरेन्द्र ने खुद को आस्ट्रेलियाई रक्षकों से बचाया और दिलप्रीत के लिए पास फैंका जिसने गेंद एसवी सुनील के लिए बढ़ा दी। उसके सामने सिर्फ आस्ट्रेलियाई गोलकीपर था लेकिन गेंद रोकते समय सुनील उसे अपने ही पांव पर लगा बैठा।

उधर आस्ट्रेलियाई खिलाडी ब्लैक गोवरस, अरन जलेवेस्की, टॉम क्रेग, डेनियल बेले, भारतीय स्ट्राइकिंग घेरे के आसपास ही मंडराते रहे। जबकि रक्षकों ने गेंद को सावधानी से बचा लिया। श्रीजेश भी जोश में था वह हर शॉट को गोल से दूर करता रहा। दोनों टीमों ने असाधारण खेल का प्रदर्शन किया और फाइनल में श्रीजेश और आस्ट्रलियाई गोलकीपर लवेल टायलर ने अपना सर्वोतम प्रदर्शन किया।

दूसरे क्र्वाटर में सिमरनजीत ने आस्ट्रेलिया के आधे हिस्से में प्रवेश किया, अधिकांश डिफेंस को तोड़कर शानदार ढंग से गेंद सुनील को थमा दी। जो इसे नियंत्रित नही कर सका। इस बीच आस्ट्रेलिया ने दबाव बनाया और 24 वें मिनट में पहला पेनल्टी कार्नर अर्जित किया। एक डमी ‘पुश’ के कारण भारतीय रक्षक पंक्ति थोड़ा विचलित हुई और गोवरस ने फ्लिक से गेंद गोल में पहुंचा दी। यह गेंद श्रीजेश के हाथ से लग कर गई थी। सामान्य स्थिति में यह गेंद रुकनी चाहिए थी। यह एक साधारण आसान गोल था जो श्रीजेश को मैच के बाद भी परेशान करता रहेगा।

अब भारत ने लक्ष्य का पीछा किया। भारत ने तीसरे पेनल्टी कार्नर को भी गंवा दिया था। यहां तक की लकड़ा जो कि गेंद को आस्ट्रेलिया की ‘डी’ में ले गए थे और उनके पास गोल करने का मौका था पर वे चूक गए। मध्यांतर समय तक आस्ट्रेलिया एक गोल की बढ़त के साथ आगे था।

मनप्रीत और दिलप्रीत ने भारत को अपना चौथा पनेल्टी कार्नर दिया। वरूण ने इसे मनप्रीत की तरफ पास किया जोकि शूट के समय अपना संतुलन खो बैठे। दोनों टीमें एक दूसरे के आगे पीछे दौड़ रही थी। तीसरे क्र्वाटर के 8वें मिनट के बाद सुरेंद्र ने गेंद को मनदीप तक भेजा जो आस्ट्रेलियाई खिलाडिय़ों को धोखा देकर गेंद को लक्ष्य तक ले गए और गेंद को गोल की तरफ उछाल दिया। लेकिन गेंद गोल पोस्ट से टकरा कर खेल में वापिस आ गई। दर्शकों की भीड़ चिल्लाई। भारतीय खेमे में बैंच पर बैठे कोच हरेंद्र आश्चर्यचकित थे कि बराबरी कैसे हो। यह मौका चिंगलिंगसाना के छोर से आया जब उसने एक क्रास फैंका और विवेक प्रसाद ने सर्तकता के साथ गेंद को गोल में पहुंचा दिया। 18 साल के इस नवोदित खिलाड़ी का यह शानदार गोल था जो अपना पहला बड़ा फाइनल खेल रहा था। विवेक ने टायलर के दाई तरफ खाली जगह देखी और गेंद को उस तरफ से गोल पोस्ट के अंदर डाल दिया।

अचानक मैंच में दोबारा रोमांच आ गया और भारत के हमले तेज़ होने लगे। तीसरे क्र्वाटर के अन्तिम दो मिनट में तो गेंद भारत के पास ही रही। इस क्र्वाटर में भारत ने 53 फीसद गेंद अपने नियंत्रण में रखी और बार-बार आस्ट्रेलिया की ‘डीÓ में प्रवेश किया और चार शाट्स गोल पर जमाए।

फाइनल क्र्वाटर अत्याधिक उत्तेजित रूप से शुरू हुआ। मनप्रीत आस्ट्रेलियाई स्ट्राइकिंग सर्किल में पूरी तेज़ी से बढ़ा। उसने गेंद दिलप्रीत के लिए बढ़ाई पर टायलर ने दिलप्रीत का शाट बचा लिया इससे पहले एक शाट बाहर भी चला गया था। भारत के जवाबी हमले बहुत तेज थे इसको देखते हुए आस्ट्रेलिया ने अपने ज़्यादा खिलाडिय़ों को आगे नहीं भेजा।

मैच के आखिरी पांच मिनट में सुनील दाहिनी तरफ से आगे आया और उसने एक क्रास फैंका जो आस्ट्रेलियाई खिलाडियों को छकता हुआ मनप्रीत के पास पहुंच गया। मनप्रीत ने उसे सिर्फ रोक कर गोल में डालना था। परन्तु मनप्रीत गलत तरफ चला गया था क्योंकि आस्ट्रेलियाई डिफेंडर ने उसे कवर कर लिया था। मैच को जीतने का अवसर आया और चला गया।

आखिरी मिनट में भारत ने गेंद पर कब्जा कर लिया और आस्ट्रेलिया की टीम को दूर रखा जो शायद अधिक राहत प्राप्त कर रहे थे।

श्रीजेश की आश्चर्यजनक फार्म को देखकर कर सबको यह लग रहा था कि भारत शूट आउट में जीत सकता है। आस्ट्रेलिया ने कप्तान अरन जेलवेस्की के साथ अच्छी शुरूआत की। सरदार ने गोलकीपर के पैड के बीच से बॉल को निकालने की कोशिश की पर गेंद फ्लैप से टकरा कर रुक गई। दूसरी ओर डेनियल बेले ने साफ गोल कर 2-0 की बढ़त बना ली। भारत के हरमनप्रीत सिंह फिर चूक गए और मैथ्यू स्वान और टॉम क्रेग स्कोर नहीं कर पाए और जब मनप्रीत ने गोल किया तो भारत को एक उम्मीद बन गई थी लेकिन जर्मनी एडवर्ड ने गोल कर ट्राफी अपने नाम करवा ली। 36 प्रतियोगिताओं में आस्ट्रेलिया की यह 15वीं जीत थी।

भारत का लगातार यह दूसरा रजत पदक था। राष्ट्रमंडल खेलों में मिली बड़ी हार के बाद वे इस टूर्नामेंट में अपनी खोई हुइ अस्मिता पाने के लिए आए थे। हार के बाद और आस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ क्या हो सकता था उस के बारे में टीम की बैठक हुई। ब्रेडा में जो भी हुआ उस पर वे गर्व से देखेंगे। कोच हरेंद्र ने कहा, ‘मैच खत्म होने के बाद मैंने टीम को गर्व महसूस करने के लिए कहा। उन्होंने विश्व चैंपियन के खिलाफ फाइनल खेला और वे आसानी से मैच को बदल सकते थे। खैर कोई बात नहीं हमारे पास और अवसर आएंगे और आने वाले समय मं कुछ ब्ड़ा हो सकता है।’

सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर का पुरस्कार श्रीजेश के जख्मों को भर नहीं सकता। उन्होंने कहा, ‘व्यक्तिगत पुरस्कार ठीक है यह थोड़े समय के लिए रहता है।’ ”जादू चैंपियन ट्राफी जीतने में था तब व्यक्तिगत पुरस्कार का महत्व था। तब इसका महत्व समझ में आता जब टीम जीतती। यह मेरे लिए ठीक है। यह एक उपलब्धि बनता अगर टीम जीतती”।

आस्ट्रेलियाई पेनल्टी कार्नर पर बात करना श्रीजेश को बेहद परेशान कर रहा था। उन्होंने खुद को कोसा, ‘मैंने उस तरह के गोल खाकर टीम को मुसीबत में डाल दिया। एक गोलकीपर के रूप में आप इस तरह गोल नही खा सकते। मुझे पता है कि मैंने टीम का नुकसान किया’।

अभी तक यह श्रीजेश का शानदार प्रदर्शन था जिसने मुश्किल परिस्थितियों में टीम को बचाया। विवेक उत्साहित था कि उसने इतने बड़े फाइनल में स्कोर किया परन्तु बिल्कुल निराशा था कि भारत हार गया। ‘हम यहां जीतने के लिए आए थे और टीम की बैठक में यही हमारी मनोदशा थी’ उन्होंने कहा। ‘हम जानते थे कि वास्तव में क्या करना है और हमने जीत के लिए सब कुछ किया। शायद थोड़ा करना और ज़रूरी था”।

मनप्रीत के आंखों में आसूं थे और उसे दूसरी बार रजत जीतने का उत्साह नही था। ”सब कुछ हमारे पक्ष में था और हम पिच पर सब कुछ सही तरीके से कर रहे थे। हां हमें मौके का लाभ उठाना चाहिए था”। लंबे समय तक उसने अपने सिर को पकडे रखा। उसने अपने आसुंओं को पोंछा। आखिकार उसने देखा और कहा, ”इसमें कुछ समय लगेगा, लेकिन हम आगे आने वाली एशियाई खेलों और विश्व कप की चुनौतियों को देखेंगे”।

कई बाद कौशल भ्रमित हो सकता है। बॉल पर कब्जा और तेज काऊटर हमलों ने भारत को एक नई पहचान दी। इस पल में थोडे समय के लिए भावना से रहित चैंपियनल ट्राफी रजत पदक एक तरफ चिकित्सकीय हो सकता है। जिसे आसपास कुछ बड़ी चुनौतियां हैं।