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रेल यात्रियों की सभी समस्याओं का समाधान करेगा रेलवन एप

अंजलि  भाटिया

नई दिल्ली , 1 जुलाई रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मंगलवार को रेलवे सूचना प्रणाली केंद्र (सीआरआईएस)  के 40वें  रेलवन मोबाइल ऐप्लीकेशन की शुरुआत की है। यह ऐप रेल यात्रियों को टिकट बुकिंग से लेकर यात्रा योजना, खानपान, पूछताछ और सुविधाओं की बुकिंग तक सभी सेवाएं एक ही प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराएगा।यह ऐप एंड्रॉइड प्ले स्टोर और आईओएस ऐप स्टोर, दोनों प्लेटफार्म पर उपलब्ध है। रेल बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि रेलवन ऐप पर यात्रियों की सभी जरूरतों का समाधान उपलब्ध होगा।  इस ऐप के माध्यम से यात्रियों को  टिकटिंग आरक्षित, अनारक्षित, प्लेटफॉर्म टिकट, ट्रेन और पीएनआर पूछताछ, यात्रा की योजना, रेल सहायता सेवाएं, ट्रेन में भोजन की बुकिंग, वेटिंग हॉल-ड्रारमेट्री आदि की बुकिंग जैसी सभी सेवाएं एक ही ऐप पर  मिलेंगी।रेलवे बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया  यूजर्स को अब अलग-अलग सेवाओं के लिए अलग-अलग ऐप या पासवर्ड की जरूरत नहीं होगी। रेल कनेक्ट और यूटीएस ऑन मोबाइल की मौजूदा आईडी से लॉगिन किया जा सकता है।ऐप का इंटरफेस सहज और स्पष्ट है, जिससे हर आयु वर्ग का उपयोगकर्ता इसे आसानी से चला सकता है।  डिजिटल भुगतान को सरल बनाने के लिए ऐप में ई-वॉलेट की सुविधा भी जोड़ी गई है।  ऐप में संख्यात्मक एम-पिन और बायोमेट्रिक लॉगिन की सुविधा दी गई है।  केवल पूछताछ करने वाले उपयोगकर्ता मोबाइल नंबर और ओटीपी के ज़रिए भी लॉगिन कर सकते हैं। नए यूजर्स के लिए न्यूनतम जानकारी देकर जल्दी और आसान रजिस्ट्रेशन संभव है।  ऐप में मालगाड़ी और फ्रेट से संबंधित पूछताछ की सुविधा भी जोड़ी गई है। अधिकारियों ने बताया कि रेलवन ऐप भारतीय रेलवे के डिजिटलीकरण के प्रयासों को गति देगा और यात्रियों को अलग-अलग एप्लिकेशन रखने की परेशानी से मुक्ति दिलाएगा। यह ऐप एक समग्र डिजिटल समाधान के रूप में कार्य करेगा, जो न केवल सेवाओं को केंद्रीकृत करता है बल्कि उन्हें आपस में जोड़कर उपयोगकर्ता अनुभव को और भी सरल और सुविधाजनक बनाता है।

भारत का अटल रुख़: आतंक के लिए कोई जगह नहीं

विश्व में नैतिक मूल्यों पर अक्सर भारी पड़ती रणनीतिक सुविधा के दौर में भारत ने दृढ़ और निडर रुख़ अपनाया है कि जो लोग आतंकवाद का समर्थन करते हैं, उन्हें कभी भी पुरस्कृत नहीं किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में जी-7 शिखर सम्मेलन में अमेरिका को एक अप्रत्यक्ष; लेकिन स्पष्ट संदेश दिया कि उसने पाकिस्तान के सेना प्रमुख को सम्मान देकर ठीक नहीं किया और अमेरिका के इस व्यवहार की आलोचना की। उनके शब्दों ने भारत की बढ़ती हताशा को रेखांकित किया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय संतुलन की तलाश में कभी-कभी आतंकवाद के अपराधियों और उनके पीड़ितों के बीच की रेखा को धुँधला करने को तैयार हो जाता है। मोदी का यह कहना कि आतंकवादियों और पीड़ितों को कभी समान नहीं माना जा सकता, केवल बयानबाज़ी नहीं, बल्कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक संकेत था। और भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इस पर कार्रवाई की। चीन की धरती पर आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में राजनाथ सिंह ने संयुक्त विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। अपने चीनी और पाकिस्तानी समकक्षों के सामने बैठे राजनाथ सिंह ने सीमा पार आतंकवाद के बारे में बताने में एससीओ की अनिच्छा की आलोचना की और इस मुद्दे पर दोहरे मानदंड को ख़ारिज कर दिया।

यह क़दम इस वर्ष एससीओ की अध्यक्षता कर रहे चीन द्वारा पहलगाम नरसंहार- भारतीय धरती पर एक क्रूर आतंकवादी हमले को संयुक्त वक्तव्य में शामिल करने पर कथित रूप से रोक लगाने के बाद उठाया गया है। इस मुद्दे से अंतरराष्ट्रीय ध्यान हटाने के लिए ही आतंकवाद की बजाय बीजिंग और इस्लामाबाद ने बलूचिस्तान और जम्मू-कश्मीर की स्थिति जैसे मुद्दों को शामिल करने पर ज़ोर दिया, जिसे भारत ने ध्यान भटकाने के लिए जानबूझकर किया गया प्रयास माना। इस बीच वैश्विक आतंकवाद कूटनीति का दोहरापन एक बार फिर पूरी तरह से सामने आया, इस बार इसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी शामिल थे। भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम समझौते का श्रेय लेने के मात्र छ: सप्ताह बाद ट्रंप ने इजरायल और ईरान के बीच कथित अमेरिकी मध्यस्थता वाले शान्ति समझौते के सम्बन्ध में भी ऐसा ही दावा किया। लेकिन वास्तविकता ने जल्दी ही बयानबाज़ी को पकड़ लिया।

‘तहलका’ की आवरण कथा ‘युद्ध-विराम पर सवाल’ बताती है कि कैसे संदिग्ध ईरानी परमाणु स्थलों पर अमेरिकी हवाई हमलों ने आग में घी डालने का काम किया है। तेहरान ने इस क़दम का पूर्वानुमान लगाया था और संवर्धित यूरेनियम को अज्ञात स्थानों पर स्थानांतरित किया था। जवाबी कार्रवाई में ईरान ने क़तर स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे पर मिसाइल हमला किया। यह एक आक्रामक जवाबी हमला था, जिसने वाशिंगटन को स्तब्ध कर दिया और यह सिद्ध कर दिया कि यह क्षेत्र कितना नाज़ुक और विस्फोटक बना हुआ है। इससे ट्रंप का दाँव उलटा पड़ गया और अमेरिका की कूटनीति और पारस्परिक सम्मान की माँग वाले मामलों में क्रूर बल की निरर्थकता उजागर हो गयी। सबक़ स्पष्ट है कि स्थायी शान्ति ऊपर से तय नहीं की जा सकती। इसके लिए सुसंगत सैद्धांतिक कूटनीति की आवश्यकता है, जिसे भारत अन्य देशों की तुलना में बेहतर समझता है। जबकि अमेरिका एक के बाद एक विदेश नीति सम्बन्धी ग़लतियाँ कर रहा है और भारत चुपचाप; लेकिन दृढ़ता से विश्व मंच पर अपनी नैतिक सत्ता का दावा कर रहा है।

इन वैश्विक तनावों के बीच भारत के लिए भी जश्न मनाने का अवसर है। ग्रुप कैप्टन सुधांशु शुक्ला और तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर स्पेसएक्स ड्रैगन अंतरिक्ष यान सफलतापूर्वक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) से जुड़ गया है। यह मील का पत्थर न केवल अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की गहरी भागीदारी को दर्शाता है, बल्कि नैतिकता, विज्ञान और शान्ति के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता पर आधारित एक वैश्विक नेता के रूप में भारत के बढ़ते क़द का भी प्रतीक है। 

युद्ध-विराम पर सवाल

हथियारों की होड़ में भविष्य के विकराल ख़तरों के बीच अस्थायी शान्ति

इंट्रो- इजरायल और ईरान के बीच शुरू हुआ युद्ध ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिका के हमले और उसके बाद क़तर स्थित अमेरिकी एयरबेस पर ईरानी हमले के कुछ ही घंटे बाद युद्धविराम में बदल गया। लगभग यही कुछ मई में भारत और पाकिस्तान के बीच तीन दिन के मिसाइल हमलों के बाद हुआ था। युद्धविराम से इतना तो तय हो गया कि मासूम लोग मरने से बच गये। यह जंग इतनी तेज़ी से फैली कि एक समय ऐसा लगा कि अब शायद तीसरा विश्व युद्ध होने ही वाला है। लेकिन युद्धों के घटनाक्रम यह सवाल खड़े कर रहे हैं कि इनका वास्तविक उद्देश्य क्या था? बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार राकेश रॉकी :

क्या अमेरिका की एजेंसियों ने यह बात स्वीकार कर ली है कि 23 जून की आधी रात को जब उनके देश ने ईरान के फोर्दो, नतांज़ और इस्फ़हान स्थित परमाणु ठिकानों पर अपने ख़तरनाक बी-2 स्टील्थ बॉम्बर्स से हमला किया, उससे पहले ही ईरान ने अपना 400 किलो संवर्धित यूरेनियम वहाँ से हटा लिया था? बहुत चर्चा है कि सीआईए ने माना है कि अमेरिकी हमले में नुक़सान हुआ; लेकिन इतना नहीं कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम ही रुक जाए। हमले के बाद राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि हमले में सब कुछ तबाह कर दिया गया है। लेकिन अमेरिका के उप राष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने ही नहीं अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के प्रमुख राफेल मारियानो ग्रॉसी ने भी कमोबेश यह स्वीकार कर लिया है कि कुछ महत्त्वपूर्ण चीज़ ग़ायब है। उनका इशारा ईरान के यूरेनियम को लेकर है। नयी ख़बर यह है कि अमेरिकी के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कुछ दिन के भीतर ईरान के साथ बातचीत करने वाले हैं और ख़ुद उन्होंने हेग में नाटो शिखर सम्मेलन में यह बात कही है।


ईरान-इजरायल युद्ध पर भले विराम लग गया है; लेकिन यह स्थायी महसूस नहीं होता। इस युद्ध-विराम का यह लाभ ज़रूर हुआ है कि मिसाइलों की मार से बेक़सूर लोगों की मौतों का सिलसिला थम गया है। लेकिन इजरायल की कसक अधूरी रह गयी है, जिसका युद्ध के पीछे असल मक़सद ईरान के धार्मिक नेता अयातुल्लाह ख़ामेनेई की हत्या करना था। ईरान ने इजरायल पर इस युद्ध में जैसे वार किये उसने एक मौक़े पर इजरायल के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया। बहुत से जानकार मानते हैं कि छोटे युद्धों के अभ्यासी इजरायल के साथ यदि अमेरिका की ताक़त न होती, तो उसके लिए स्थिति गंभीर हो जाती। वह किसी भी सूरत में ईरान के साथ लम्बी जंग नहीं लड़ पाता। ऐसे में ताक़त जुटाकर इजरायल भविष्य में ईरान के साथ फिर तनाव पैदा करेगा, इसकी बहुत ज़्यादा आशंका है। बेशक अमेरिका नहीं चाहता कि इजरायल कुछ भी उसकी मर्ज़ी से बाहर जाकर करे, जानकारों का मानना है कि इजरायल के नेता बेंजामिन नेतन्याहू जिस ज़िद्दी प्रकृति के नेता हैं, संभवत: वह लम्बे समय तक चुप नहीं बैठेंगे। अमेरिका ने हाल के युद्ध के बाद इजरायल को भी फटकार लगायी थी।
बहुत से स्रोतों से अब यह साफ़ हो गया है कि अमेरिका का फोर्दो में हमले से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नुक़सान तो पहुँचा; लेकिन इतना नहीं कि उसका परमाणु कार्यक्रम ही ठप्प पड़ जाए। बहुत दिलचस्प बात है कि फोर्दो सहित तीन परमाणु ठिकानों पर हमले से पहले अमेरिका ने ईरान को इसकी जानकारी दे दी थी। सेटेलाइट तस्वीरों से यह सामने आया है कि इस हमले से चार दिन पहले ईरान के परमाणु ठिकानों पर ट्रकों की लम्बी क़तार लगी थी। यह माना गया है कि हमले से पहले ही ईरान अपना 400 किलो संवर्धित यूरेनियम सुरक्षित जगह ले गया था।


एक और दिलचस्प बात यह है कि इस हमले के बाद जब ईरान ने क़तर स्थित अमेरिका के एयरबेस पर हमला किया, तो उसने भी अमेरिका को इसकी पूर्व जानकारी दे दी थी। सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या अमेरिका और ईरान के बीच किसी तरह का कोइ समझौता था, जिसकी जानकारी इजरायल और बाक़ी दुनिया को नहीं है? और समझौता थास तो यह क्या था?
अब यह जानकारी सामने आ रही है कि अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए को भी आशंका है कि ईरान ने अपना 400 किलोग्राम यूरेनियम सुरक्षित बचा लिया है। ईरान की अभी की ताक़त को लेकर विशेषज्ञों की राय है कि उसके पास आठ से नौ परमाणु बम बनाने की क्षमता है। हालाँकि हाल के युद्ध से उसकी योजना को झटका लगा है और इसमें अब समय लग सकता है। ईरान ने बार-बार दावा किया है कि युद्ध में उसकी परमाणु संरचना को कुछ नुक़सान तो हुआ है; लेकिन ज़्यादा नहीं और वह अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखेगा। अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि उन्हें नहीं पता कि ईरान के बम-ग्रेड यूरेनियम के भंडार का क्या हुआ? इससे साफ़ ज़ाहिर हो जाता है कि ईरान का दावा सही है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, युद्ध में ईरान के परमाणु उपकरणों को ज़रूर ज़्यादा नुक़सान हुआ है साथ ही उसके कई बड़े वैज्ञानिक मरे गये हैं। इसका दावा इजरायल ने कई बार किया है। बेशक स्थिति अभी अस्पष्ट है; लेकिन इजरायल की जासूसी एजेंसी मोसाद को लेकर कहा जाता है कि उसने ईरान के परमाणु वैज्ञानिकों को लेकर काफ़ी जानकारियाँ जुटा ली थीं। ईरान ने युद्ध के बीच और बाद में भी कहा है कि इस दौरान उसने इजरायल के क़रीब दो दज़र्न जासूसों को फाँसी पर लटकाया है। इजराइल के ईरान के ख़िलाफ़ ऑपरेशन राइजिंग सन को लेकर उसकी महिला जासूस फ्रांस मूल की कैथरीन पेरेज शेकेड का नाम भी बहुत चर्चा में रहा, जिसने ईरान की जानकारियाँ जुटाने में बड़ी अहम भूमिका निभायी।
ईरान-इजरायल के बीच युद्ध-विराम के एक हफ़्ते बाद नाटो के हेग शिखर सम्मलेन में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह अगले हफ़्ते ईरान से बातचीत करने वाले हैं। यह बातचीत किन मुद्दों पर होगी, इसे लेकर कोई ख़ुलासा अभी नहीं हुआ है। यह भी साफ़ नहीं है कि यह किस स्तर पर होगी अर्थात् क्या मंत्री इसमें हिस्सा लेंगे? लेकिन ट्रंप का यह ख़ुलासा बहुत महत्त्वपूर्ण है। देखना बहुत दिलचस्प होगा कि दोनों में क्या बातचीत होती है। हालाँकि यह साफ़ है कि दोनों पक्षों के बीच शान्ति वार्ता में तेहरान के बम-ग्रेड यूरेनियम पर अवश्य चर्चा होगी और इसे लेकर अमेरिका कुछ ठोस जवाब ईरान से चाहेगा। उपराष्ट्रपति जे.डी. वेन्स यह इशारा कर चुके हैं कि आने वाले दिनों में हम यह सुनिश्चित करने के लिए काम करने जा रहे हैं कि हम उस ईंधन के साथ कुछ करें और ईरान से इसे लेकर बात करें।
कैसे हुआ युद्ध विराम?

यह एक रहस्य है कि अचानक अमेरिका-इजरायल और ईरान युद्ध-विराम के लिए तैयार हुए। इसकी पहल आख़िर किसकी तरफ़ से हुई। भयंकर मिसाइल हमलों के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो इन दिनों इस चर्चा के केंद्र में हैं कि वह शान्ति के लिए नोबेल पुरुस्कार की कोशिश में हैं; से युद्ध-विराम की पहल किसने की। या इजरायल की ख़राब होती स्थिति से उसे बचाने के लिए ख़ुद ट्रंप को यह करना पड़ा? जानकारी बताती है कि क़तर ने युद्ध-विराम की बातचीत में अहम भूमिका निभायी। ट्रंप ने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से बात की।
उधर ईरान से बातचीत का ज़िम्मा उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के अलावा विदेश मंत्री मार्को रुबियो और मध्य पूर्व में अमेरिका का राजनयिक स्टीवन विटकॉफ ने टॉप ईरानी अधिकारियों से बातचीत की। विभिन्न रिपोर्ट्स से ज़ाहिर होता है कि ईरान की युद्ध विराम पर सहमति क़तर के प्रधानमंत्री शेख़ मोहम्मद बिन अब्दुल रहमान अल थानी ने सुनिश्चित की, जबकि उससे पहले ही इजरायल ट्रंप को अपनी सहमति दे चुका था। अमेरिका की तरफ़ से युद्ध-विराम का प्रस्ताव तब आया, जब ईरान ने क़तर में अमेरिका के एयरबेस पर हमला कर दिया।
अमेरिका को इजरायल के टॉप अधिकारियों से संकेत मिल चुका था कि तल अवीव (इजरायल) ईरान में अपना अभियान ख़त्म करने का इच्छुक है।
इस तरह कहा जा सकता है कि इजरायल ने युद्ध-विराम के लिए पहले सहमति दी, जबकि ईरान को इस पर तैयार करने के लिए अमेरिका को खासी मशक़्क़त करनी पड़ी और क़तर की मदद से ही यह संभव हुआ। यही कारण था कि युद्ध-विराम को ईरान ने अपनी जीत के रूप में प्रचारित किया। ट्रंप ने जब पूर्ण युद्ध विराम का आधिकारिक ऐलान किया, तब भी ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली ख़ामेनेई ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा- ‘तेहरान वह नहीं है, जो आत्मसमर्पण करता है।’ ज़ाहिर है इजरायल के लिए यह टिप्पणी थी।
युद्ध की शुरुआत और असर
ईरान और इजरायल के बीच संघर्ष ने न सिर्फ़ मध्य पूर्व, बल्कि पूरे विश्व को प्रभावित किया है। इस तनाव ने अशान्ति और अस्थिरता को और ताक़त दी है। इस टकराव का असर पूरी दुनिया के ऊर्जा बाज़ारों, व्यापारिक मार्गों और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति तक प्रभाव दाल रहा है। अब 13 जून को इजरायल ने ऑपरेशन राइज़िंग लायन के नाम से ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले कर दिये। हाल के वर्षों में इजरायल ने फिलिस्तीन-गाज़ा पर हमले करके हज़ारों लोगों को मौत के घात उतारा है। बेशक उसने यह काम आतंकी ठिकानों के नाम पर किया है; लेकिन दुनिया में शान्ति चाहने वाले लोग इजरायल से इसके लिए नाराज़ हैं। यह जंग इतनी तेज़ी से फैली कि एक समय ऐसा लगा कि अब शायद तीसरा विश्व युद्ध होने ही वाला है।


इजरायल ने ईरान पर हमला करते हुए दावा किया कि उसकी कार्रवाई ईरान की परमाणु हथियार प्राप्त करने की महत्त्वाकांक्षा को रोकने के लिए ज़रूरी है। यह आश्चर्य के बात है कि ख़ुद परमाणु शक्ति सम्पन्न इजरायल ईरान को परमाणु शक्ति बनने से रोकना चाहता है। उसका तर्क है कि ईरान के परमाणुओं ताक़त हासिल करने से न सिर्फ़ उसके लिए गंभीर ख़तरा उत्पन्न हो जाएगा, बल्कि यह दुनिया भर के लिए चिंता की बात होगी। इसके बाद जवाबी कार्रवाई में ईरान ने तेल अवीव पर मिसाइल हमले किये। जानकार मानते हैं कि यह संघर्ष महज़ इजरायल और ईरान नाम के दो देशों की अपनी लड़ाई भर नहीं थी, बल्कि इसके पीछे बड़े कारण थी। और इसके नतीजे पूरी दुनिया पर रणनीतिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव डालने वाले साबित हो सकते थे।
इस युद्ध में रूस और चीन भी सक्रिय भूमिका निभाने में जुट गये। युद्ध के आख़िरी दिनों में ईरान के विदेश मंत्री रूस गये और वहाँ के राष्ट्रपति पुतिन से मिले। चीन और रूस की कोशिश क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को चुनौती देने पर ज़्यादा केंद्रित रही है। यदि युद्ध में तनाव बढ़ता और ईरान दुनिया की सबसे अहम तेल सप्लाई लाइन हॉर्मुज़ की खाड़ी के जलमार्ग को बंद कर देता तो इसका वैश्विक असर होता। भारत को तो अपनी ज़रूरतों की तेल की 40 फ़ीसदी सप्लाई ईरान से ही होती है।


एक समय पक्का लग रहा था कि ईरान यह बड़ा फ़ैसला लेने वाला है। ईरान की संसद ने इस जलमार्ग को बंद करने की अनुमति दे दी थी। अंतिम फ़ैसला ईरान की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल को लेना था। हालाँकि इस बीच स्थिति सँभली और आख़िर युद्ध विराम हो गया। यह तनाव तब बना, जब अमेरिका ने 22 जून को ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर एस2 बॉम्बर से हमला कर दिया। माना जाने लगा कि ईरान अब इसका जवाब समुद्री रास्ते को रोककर देगा। अमेरिका ने इस बीच चीन से अपील की कि वह ईरान को यह क़दम उठाने से रोके। हॉर्मुज़ खाड़ी पर्शियन खाड़ी को ओमान की खाड़ी से जोड़ती है, जो आगे अरब सागर में खुलती है। यह रास्ता ईरान और ओमान की सीमा के भीतर है और दुनिया के सबसे अहम समुद्री व्यापार मार्गों में एक है। जलमार्ग की कुल 33 किलोमीटर चौड़ाई में से जहाज़ों के आने-जाने का रास्ता महज़ तीन किलोमीटर ही चौड़ा है।
इस युद्ध को लेकर ट्रंप पर भी अपने ही देश के लोगों का दबाव था और इसके लिए प्रदर्शन भी हुए। अमेरिकी जनता नहीं चाहती थी कि इजरायल के लिए अमेरिका युद्ध में कूदे। इजरायल की आक्रामक नीति का अमेरिका में भी ख़ासा विरोध है और लोग उसे सही नहीं मानते हैं। इजरायल के ग़ाज़ा में बेक़सूर लोगों को मारे जाने पर अमेरिका के बड़े वर्ग में गहरा रोष है। उन्हें लगता है कि इजरायल का यह नरसंहार गलत है। यहाँ तक कि इजरायल के लोग भी नेतन्याहू की ग़ाज़ा नीति के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे थे; लेकिन ईरान के मामले में वह अपने नेता के साथ खड़े दिखे। उधर ईरान के साथ युद्ध में ट्रंप लगातार इजरायल के साथ खड़े रहे और उन्होंने इस मुद्दे पर अपने देश में अपने ख़िलाफ़ हो रहे प्रदर्शनों की परवाह नहीं की।
उत्तर कोरिया भी ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमले के बाद चौकन्ना हो गया है। अमेरिका के बी-2 स्टील्थ बॉम्बर्स से ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले ने उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन की चिंता बढ़ा दी है। यह माना जाता है कि उत्तर कोरिया के पास ख़तरनाक हथियार हैं। किम की असली ताक़त और सत्ता पर पकड़ इन हथियारों की बजह से ही है। किम रूस से गहरी दोस्ती बनाने में सफल रहे हैं। यूइकरेन से युद्ध के दौरान किम रूस को प्योंगयांग से हथियार और सैनिक भेजते रहे हैं। दोनों का रिश्ता सिर्फ़ व्यापारिक ही नहीं रहा है, बल्कि दोनों रणनीतिक साझेदारी में भी काफ़ी आगे बढ़ चुके हैं। एक अनुमान के मुताबिक, उत्तर कोरिया के पास 40 से 50 परमाणु हथियार हैं। साथ ही आईसीबीएम जैसी मिसाइलें भी हैं, जो सीधे अमेरिका तक मार कर सकती हैं। ज़ाहिर है अमेरिका के लिए उत्तर कोरिया के ख़िलाफ़ सैन्य कार्रवाई करना बहुत मुश्किल कार्य है।
कुल 12 दिन के युद्ध में ईरान ने इजरायल पर हज़ारों घातक हमले किये। इजरायल में काफ़ी नुक़सान हुआ। 25 से अधिक लोगों की मौत और 200 से ज़्यादा घायल हुए। अस्पताल (सोरोका), आवासीय इमारतें, रक्षा मंत्रालय, इन्फ्रास्ट्रक्चर को बड़ा नुक़सान हुआ है और हज़ारों लोग अस्थायी रूप से बेघर हुए हैं। उधर एक मानवाधिकार समूह के मुताबिक, ईरान पर इजरायली हमलों में कम-से-कम 950 लोग मारे गये हैं और 3,450 अन्य घायल हुए हैं। मृतकों में 380 नागरिक और 253 सुरक्षा बल के जवान शामिल हैं।

भारत की स्थिति
इस युद्ध के दौरान भले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईरान के अपने समकक्ष से बात की, भारत को इजरायल के साथ ही खड़ा माना गया। उधर भारत में बड़ी पार्टी कांग्रेस ने खुलकर ईरान का साथ दिया। कांग्रेस की सबसे लम्बे समय तक अध्यक्ष रहीं सोनिया गाँधी का बाक़ायदा अख़बारों में लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें ईरान के समर्थन की बात कही गयी थी; जबकि इजरायल के आक्रामक रवैये की निंदा।
यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि भारत के लिए यह युद्ध स्थिति बहुत जटिल मामला था; क्योंकि मोदी-काल में भारत सरकार ने इजरायल के साथ रक्षा साझेदारियों को बहुत तरजीह दी है। उधर ईरान के साथ भारत के पुराने सम्बन्ध रहे हैं और कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी ने इन्हीं सम्बन्धों का हवाला अपने लेख में दिया। ईरान के साथ भारत के गहरे रणनीतिक और आर्थिक हित जुड़े रहे हैं। जानकार मानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी का इजरायल के प्रति झुकाव बहुत कुछ राष्ट्रपति ट्रंप के भी कारण है।

मीडिया में ट्रंप की किरकिरी
डोनाल्ड ट्रंप को युद्ध में अपने ही मीडिया की तरफ़ से किरकिरी झेलनी पड़ी है। इसके बाद ट्रंप ने मीडिया किया और उसे धमकाते हुए कहा कि इस तरह का झूठ बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
दरअसल, इजरायल के पहले हमले के बाद सीएनएन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों ने आकलन किया है कि ईरान सक्रिय रूप से परमाणु बम नहीं बना रहा है और ऐसा करने में उसे तीन साल और लगेंगे। सीएनएन ने लिखा कि वर्तमान हमले ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को महज़ कुछ महीनों के लिए पीछे धकेला है।
ट्रंप की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रंप की सीएनएन की पत्रकार नताशा के साथ कहासुनी भी हुई। आरोप है कि ट्रंप के शब्द राष्ट्रपति के स्तर के लिहाज़ से बहुत निम्न स्तरीय थे। मीडिया ही नहीं, अमेरिका की राष्ट्रीय ख़ुफ़िया निदेशक तुलसी गबार्ड भी ट्रंप की फटकार का शिकार हुए, जिन्होंने अमेरिकी संसद से कहा कि ईरान परमाणु हथियार नहीं बना रहा है। बाद में उन्हें बयान बदलना पड़ा।

कैसे बचे ख़ामेनेई
ईरान-इजरायल युद्ध में ईरान के कई टॉप कमांडर्स और वैज्ञानिक मरने का दावा इजरायल ने किया। इजरायल के नेता नेतन्याहू लगातार कह रहे थे कि ख़ामेनेई को मारना उनका लक्ष्य है लेकिन ख़ामेनेई का बाल भी बांका नहीं हुआ। आख़िर वे कहाँ छिपे थे, यह बड़ा सवाल है। यह माना जाता है कि वे भूमिगत हो गये थे और किसी गुप्त स्थान पर चले गये।
दरअसल ईरान की एक ख़ुफ़िया यूनिट ख़ामेनेई की सुरक्षा करती है। उसके फैसलों की जानकारी ईरान की सबसे ताकतवर यूनिट आईआरजीसी को भी नहीं होती जो आमतौर पर ख़ामेनेई की सुरक्षा भी संभालती है। चूंकि यह ख़तरा था कि इजरायल की एजेंसी मोसाद की पहुँच आईआरजीसी तक हो सकती है, ख़ामेनेई की सुरक्षा का ज़िम्मा ख़ुफ़िया यूनिट के पास रहा। यह एक ऐसी यूनिट है जिसकी जानकारी किसी के पास नहीं।

कहाँ गया ईरान का 400 किलो यूरेनियम
इजरायली अधिकारियों के न्यूयॉर्क टाइम्स को यह बताने कि ईरान हमले से पहले यूरेनियम भंडार और उपकरणों को एक गुप्त स्थान पर ले गया होगा; के बाद सवाल उठ रहा है कि आख़िर ईरान इसे कहाँ ले गया? सैटेलाइट तस्वीरों से ज़ाहिर हुआ कि अमेरिकी हमलों से पहले फोर्दो परमाणु केंद्र के बाहर 16 ट्रकों का क़ाफ़िला खड़ा है। माना जाता है कि इन्हें ट्रकों में ईरान इसे सुरक्षित जगह ले गया। सैटेलाइट तस्वीरों से ज़ाहिर होता है कि ईरान के फोर्दो, नतांज और इस्फ़हान में मौज़ूद इन परमाणु स्थलों को काफ़ी नुक़सान पहुँचा; लेकिन कितना इसकी कोई पुष्टि नहीं हुई। इजरायल और अमेरिका के ख़ुफ़िया तंत्र का मानना है कि ईरान ने यूरेनियम और प्रमुख रिसर्च सामग्री और कंपोनेंट को इस्फ़हान के आसपास कहीं गुप्त भूमिगत जगह पर लाया है।

ट्रंप का अब्राहम अकॉर्ड कार्ड
डॉनल्ड ट्रंप जब पहली बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे, तभी से वह मुस्लिम देशों के एक हिस्से को अपने साथ जोड़ने की योजना बना रहे हैं। ट्रंप की योजना मध्य पूर्व के कई मुस्लिम देशों को साथ लाने की है और इसके लिए उन्होंने अब्राहम अकॉर्ड की रूपरेखा पिछले कार्यकाल में ही बना ली थी।
इस अकॉर्ड (समझौता) का मक़सद कुछ मुस्लिम राष्ट्रों की मुस्लिम एकता की माँग को हक़ीक़त बनने से पहले ही ध्वस्त करना है। ट्रंप की इस योजना का मुख्य चेहरा मध्य पूर्व के लिए अमेरिका के राजनयिक स्टीव विटकॉफ हैं, जो विदेश मंत्री मार्को रुबियो के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। उन्हें भरोसा है कि मध्य पूर्व के कई इस्लामिक देश इस अकॉर्ड का हिस्सा बन सकते हैं। यदि यह समझौता अमल में आया, तो ईरान, तुर्की, पाकिस्तान जैसे देश अलग-थलग पड़ जाएँगे, जो इस्लामिक एकता के सबसे बड़े पक्षधर माने जाते हैं। हाल के दिनों में ट्रंप यूएई के साथ रिश्ते प्रगाढ़ करते दिखे हैं। उन्होंने आबू धाबी में 15 मई को यूएई के साथ 200 बिलियन डॉलर का समझौता किया था। यात्रा के दौरान यूएई नेतृत्व ने ट्रंप का ख़ूब स्वागत किया।
यूएई के अलावा बहरीन, मोरक्को और सूडान जैसे देश इजराइल के साथ रिश्ते सामान्य करना चाहते हैं, जो ईरान के लिए बड़ा झटका होगा। माना जाता है कि ट्रंप की टीम ने अब्राहम अकॉर्ड नाम बहुत सोच समझकर चुना है क्योंकि अब्राहम तीन धर्मों- यहूदी, इस्लाम और ईसाई धर्मों में समान रूप से स्वीकार्यता रखते हैं। वैसे यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप अपनी योजना में फिलिस्तीन समस्या के हल के लिए क्या योजना लाते हैं।

नेतन्याहू की चिन्ता
जब 28 जून को यह जानकारी सामने आयी कि ईरान ने अपने परमाणु स्थलों से राष्ट्रसंघ की तरफ से स्थापित सभी सर्विलांस कैमरे हटा लिये हैं, तो इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की चिंता बढ़ गयी, जो ईरान के परमाणु कार्यक्रम से पहले ही परेशान हैं। ईरान पहले ही अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) से अपने परमाणु स्थलों का निरीक्षण करवाने से मना कर चुका है; क्योंकि उसे शक है कि आईएईए से यह सारी जानकारी अमेरिका को लीक हो जाएगी।
यह भी जानकारी है कि 23 जून को फोर्दो स्थित ईरान के परमाणु ठिकाने पर अमेरिका के हमलों में जो नुक़सान हुआ था; उसकी मरम्मत का काम ईरान ने शुरू कर दिया है। नेतन्याहू कह चुके हैं कि यदि ईरान अपना परमाणु कार्यक्रम आगे बढ़ाता है, तो इजराइल युद्धविराम तोड़कर फिर उसपर हमला करेगा।
उधर ईरान ने अपने परमाणु स्थलों के आसपास सुरक्षा और मज़बूत करनी शुरू कर दी है। साथ ही वह अपने देश में इजराइल की एजेंसी मोसाद के गुप्तचरों को पकड़ने और फाँसी पर लटका देने की मुहिम में भी जुट गया है। बीच में यह जानकारी भी सामने आयी है कि ईरान और इजरायल के बीच युद्ध-विराम होने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ईरान के सिविल एनर्जी न्यूक्लियर प्रोग्राम के लिए 20 से 30 बिलियन डॉलर देने का मन बना चुके हैं और यह पैसा सीधे ईरान को न देकर ट्रंप अपने दोस्त अरब देशों के ज़रिये देंगे। साथ ही दशकों पहले ईरान पर लगाये आर्थिक प्रतिबंध में भी ढील दे सकते हैं। इजरायली रक्षा मंत्री इजरायल काट्ज कह चुके हैं कि इजरायल को नहीं पता कि ईरान का यूरेनियम भंडार कहाँ है। ज़ाहिर है यह सभी जानकारियाँ नेतन्याहू और इजराइल को परेशान करने वाली हैं। वैसे ट्रंप के बारे में कुछ भी सटीक कह पाना मुश्किल होता है, लिहाज़ा पता नहीं है कि वह वास्तव में क्या करेंगे? इजराइल और नेतन्याहू इस बात से बहुत ज़्यादा परेशान हैं कि वह तमाम कोशिशों के बावजूद ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अल ख़ामेनेई की हत्या नहीं कर पाये।
उधर ट्रंप ने 17 जून को कहा था कि हमें ठीक से पता है कि सुप्रीम लीडर कहाँ छिपे हैं; लेकिन हम उन्हें ख़त्म नहीं करेंगे। कम-से-कम अभी तो नहीं।
ट्रंप अब भारत पर भी डील का दबाव बना रहे हैं और लगातार भारत विरोधी बयान देने में लगे हैं। निश्चित ही इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की किरकिरी हो रही है और यह संदेश जा रहा है कि भारत ट्रंप के दबाव में है। इसी दबाव का नतीजा है कि जुलाई के पहले हफ़्ते ब्राजील में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मलेन में भारत डॉलर के मुक़ाबले ब्रिक्स देशों की अपनी करेंसी शुरू करने पर चुप्पी साधे बैठा है; क्योंकि ट्रंप ऐसा होने की स्थिति में भारत और अन्य ब्रिक्स देशों को इसके नतीजे भुगतने की चेतावनी दे चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी तो इस बैठक में हिस्सा ले रहे हैं; लेकिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के इसमें हिस्सा लेने की संभावना नहीं है, जो ब्रिक्स समूह के लिए बड़ा झटका है।



तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव आयोग से की शिकायत, मतदाता सूची में गड़बड़ियों पर जताई चिंता

अंजलि भाटिया
नई दिल्ली, 1 जुलाई
तृणमूल कांग्रेस (AITC) ने मंगलवार को दिल्ली स्थित निर्वाचन सदन के बाहर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग (ECI) के साथ हुई बैठक की जानकारी दी। पार्टी सांसद कल्याण बनर्जी और मंत्री फिरहाद हाकिम ने कई अहम मुद्दों पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई।
कल्याण बनर्जी ने कहा कि आयोग का दावा है कि “कोई मतदाता पीछे न छूटे”, लेकिन हाल के सर्कुलर ‘पात्रता पहले, समावेश बाद में’ की नीति को दर्शाते हैं। उन्होंने मांग की कि 2024 तक जिनका नाम मतदाता सूची में था, उन्हें बिना शर्त बनाए रखा जाए। आयोग ने इसे गंभीरता से लेने की बात कही।
उन्होंने 1987 से 2003 तक के जन्म प्रमाणपत्र, फर्जी वोटरों की अचानक एंट्री, और चुनाव से पहले 50–60 वर्षीय नए मतदाताओं के बल्क में जोड़ने पर सवाल उठाया। पार्टी ने प्रस्ताव रखा कि नामांकन से 3–4 महीने पहले तक कोई नया नाम जोड़ा जाए तो राजनीतिक दलों को इसकी सूचना मिले और जांच का अधिकार भी दिया जाए।
आधार कार्ड अनिवार्यता के मुद्दे पर ECI ने स्पष्ट किया कि यह बाध्यकारी नहीं है और इसे लेकर पुनः समीक्षा की जाएगी। दक्षिण 24 परगना के चंपाहाटी में 4,500 फर्जी वोटरों की शिकायत पर भी जांच का आश्वासन मिला।
फिरहाद हाकिम ने कहा कि केंद्रीय बलों की भूमिका को सीमित किया जाए और राज्य पुलिस को भी बूथ के भीतर तैनात किया जाए। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्यपाल और केंद्रीय मंत्री चुनावों के दौरान पक्षपातपूर्ण तरीके से यात्रा करते हैं। आयोग ने आश्वासन दिया कि इस पर भी कार्रवाई होगी।
पार्टी ने मांग की कि 2024 को मतदाता सूची का आधार वर्ष बनाया जाए और सभी नए नाम जोड़ने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए। AITC ने आयोग और न्यायपालिका में आस्था जताई और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया की उम्मीद जाहिर की।

चार बड़ी योजनाओं को मोदी कैबिनेट की मंजूरी

अंजलि भाटिया

नई दिल्ली, 1 जुलाई
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंगलवार को 99,446 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन (ईएलआई) योजना को मंजूरी दे दी, ताकि अगले दो वर्षों में देश भर में 3.5 करोड़ से अधिक नौकरियों के सृजन का समर्थन किया जा सके। मीडिया को जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि यह योजना मुख्य रूप से विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित करेगी, जबकि नए श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेगी। उन्होंने कहा, “योजना के दो भाग हैं – एक पहली बार काम करने वाले कर्मचारियों के लिए और दूसरा उन नियोक्ताओं के लिए जो अतिरिक्त निरंतर नौकरियां पैदा करते हैं।
मंत्रिमंडल का यह निर्णय केंद्रीय बजट 2020 में इस योजना की पहली बार घोषणा किए जाने के कुछ महीनों बाद आया है।
योजना का भाग ए औपचारिक कार्यबल में पहली बार प्रवेश करने वालों को लक्षित करता है। लगभग 1.92 करोड़ ऐसे श्रमिकों को लाभ मिलने की उम्मीद है। 1 लाख रुपये तक के मासिक वेतन वाले प्रत्येक पात्र कर्मचारी को छह और बारह महीने की निरंतर सेवा के बाद दो किस्तों में एक महीने का वेतन (15,000 रुपये तक) मिलेगा। दूसरी किस्त के लिए वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा करना होगा। लाभ का एक हिस्सा बचत साधन में रखा जाएगा, जिससे दीर्घकालिक बचत की आदतों को बढ़ावा मिलेगा।
भाग बी उन नियोक्ताओं को प्रोत्साहित करने पर केंद्रित है जो अतिरिक्त श्रमिकों को काम पर रखते हैं। ईपीएफओ के साथ पंजीकृत प्रतिष्ठानों को निरंतर काम पर रखना होगा – कम से कम दो नए कर्मचारी (यदि उनके पास 50 से कम कर्मचारी हैं) या पांच नए कर्मचारी (यदि 50 से अधिक कर्मचारी हैं) – प्रत्येक कर्मचारी को कम से कम छह महीने तक बनाए रखना होगा।
नियोक्ताओं को वेतन के स्तर के आधार पर प्रति अतिरिक्त कर्मचारी प्रति माह 1,000 रुपये से लेकर 3,000 रुपये तक का भुगतान किया जाएगा। विनिर्माण क्षेत्र के लिए, प्रोत्साहन विंडो दो के बजाय चार साल तक बढ़ाई जाएगी। लाभ 1 अगस्त, 2025 और 31 जुलाई, 2027 के बीच बनाई गई नौकरियों पर लागू होंगे। कर्मचारियों को भुगतान आधार-आधारित प्रणालियों का उपयोग करके प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से किया जाएगा, जबकि नियोक्ताओं को प्रोत्साहन उनके पैन-लिंक्ड खातों के माध्यम से दिया जाएगा। वैष्णव ने कहा कि इस योजना से ईपीएफओ कवरेज का विस्तार करके भारत के कार्यबल के औपचारिकीकरण में भी सुधार होने की उम्मीद है, खासकर युवाओं के बीच। सरकार को उम्मीद है कि इससे नौकरी की सुरक्षा बढ़ेगी, स्थिर आय होगी और सामाजिक सुरक्षा मजबूत होगी। यह योजना महामारी के बाद से रोजगार को बढ़ावा देने के लिए केंद्र के सबसे महत्वाकांक्षी कदमों में से एक है, जिसमें पहली बार काम करने वाले कर्मचारियों और विनिर्माण-आधारित विकास पर स्पष्ट ध्यान दिया गया है।

बॉक्स- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने  तमिलनाडु में एनएच-87 के परमाकुडी-रामनाथपुरम खंड के चार लेन के निर्माण को मंजूरी दे दी, जिसकी लागत 1,853 करोड़ रुपये होगी। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मंत्रिमंडल की बैठक में लिए गए निर्णयों की जानकारी देते हुए कहा कि इस परियोजना को 1,853 करोड़ रुपये की पूंजीगत लागत पर हाइब्रिड एन्युटी मोड (एचएएम) पर विकसित किया जाएगा। वर्तमान में, मदुरै, परमाकुडी, रामनाथपुरम, मंडपम, रामेश्वरम और धनुषकोडी के बीच संपर्क मौजूदा 2-लेन राष्ट्रीय राजमार्ग 87 (एनएच-87) और संबंधित राज्य राजमार्गों पर निर्भर है, जो विशेष रूप से घनी आबादी वाले हिस्सों और गलियारे के साथ प्रमुख शहरों में उच्च यातायात मात्रा के कारण काफी भीड़भाड़ का अनुभव करते हैं।

 इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, परियोजना परमाकुडी से रामनाथपुरम तक एनएच-87 के लगभग 46.7 किलोमीटर हिस्से को 4-लेन में अपग्रेड करेगी। इससे मौजूदा कॉरिडोर पर भीड़भाड़ कम होगी, सुरक्षा में सुधार होगा और परमाकुडी, सथिराकुडी, अचुंदनवयाल और रामनाथपुरम जैसे तेजी से बढ़ते शहरों की गतिशीलता की जरूरतें पूरी होंगी।
इस परियोजना से लगभग 8.4 लाख व्यक्ति-दिन प्रत्यक्ष और 10.45 लाख व्यक्ति-दिन अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा होगा। 

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने  व्यापक खेलो भारत नीति, 2025 को मंजूरी  दी है जिसका लक्ष्य 2047 तक भारत को शीर्ष पांच खेल राष्ट्रों में से एक बनाना है।अश्वनी वैष्णव ने बतया  नई खेल नीति मौजूदा राष्ट्रीय खेल नीति 2001 का स्थान लेगी। ये भारत को एक वैश्विक खेल महाशक्ति के रूप में स्थापित करने तथा 2036 ओलंपिक खेलों सहित अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में उत्कृष्टता के लिए एक मजबूत दावेदार के रूप में स्थापित करने के लिए एक दूरदर्शी और रणनीतिक रोडमैप प्रस्तुत करेगी।

छह साल बाद रेल किराए में इजाफा, एक जुलाई से लागू होंगी नई दरें

अंजलि भाटिया
नई दिल्ली: भारतीय रेलवे ने लगभग छह वर्षों के बाद मेल-एक्सप्रेस सहित प्रीमियम ट्रेनों के किरायों में वृद्धि का निर्णय लिया है। यह नई दरें एक जुलाई 2025 से प्रभाव में आएंगी और एक जुलाई अथवा इसके बाद बुक किए गए टिकटों पर लागू होंगी। हालांकि, एक जुलाई से पहले की गई एडवांस बुकिंग पर यह नियम लागू नहीं होगा।उपनगरी सेवा (लोकल-पैसेंजर टे्रनें) और मासिक-त्रैमासिक सीजन टिकट के यात्रियों के किराये में बढ़ोत्तरी नहीं की गई है।
रेलवे बोर्ड ने सोमवार को इस संबंध में अधिसूचना जारी की। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों में अनारक्षित द्वितीय श्रेणी, स्लीपर श्रेणी और गैर-वातानुकूलित प्रथम श्रेणी के किरायों में प्रति किलोमीटर एक पैसे की वृद्धि की गई है, जबकि सभी वातानुकूलित श्रेणियों में यह वृद्धि प्रति किलोमीटर दो पैसे की होगी।
साधारण पैसेंजर श्रेणी की ट्रेनों में अनारक्षित श्रेणी के टिकट की दरों में 500 किलोमीटर तक की दूरी की यात्रा के लिए कोई वृद्धि नहीं की गयी है, जबकि 501 किलोमीटर से 1500 किलोमीटर तक दूरी के टिकट पर पांच रुपये, 1501 से 2500 किलोमीटर के टिकट के लिए 10 रुपये तथा 2501 से 3000 किलोमीटर तक किराये पर 15 रुपये बढ़ाये गये हैं।
अधिकारी ने बताया कि उक्त ट्रेनों के स्लीपर श्रेणी और प्रथम श्रेणी के किरायों में आधा पैसा प्रति किलोमीटर बढ़ाया गया है। उपनगरीय और मासिक या त्रैमासिक सीज़न टिकट की दरों में कोई वृद्धि नहीं की गयी है।
उन्होंने बताया कि तेजस राजधानी, राजधानी, शताब्दी, दूरंतो, वंदे भारत, हमसफर, अमृत भारत, तेजस, महामना, गतिमान, अंत्योदय, गरीब रथ, जन शताब्दी, युवा एक्सप्रेस, गैर उपनगरीय पैसेंजर ट्रेनों, अनुभूति कोच एवं विस्टाडोम कोच आदि के मूल किराये नयी दरों के हिसाब से होंगे। आरक्षण शुल्क, सुपरफास्ट आदि शुल्क पूर्व की तरह लागू रहेंगे। इसी प्रकार माल एवं सेवा कर (जीएसटी) भी पहले की तरह लागू रहेगा।

गौरतलब है कि रेलवे ने पिछली बार व्यापक रूप से किरायों में वृद्धि वर्ष 2014 में की थी. सभी श्रेणियों के किराये में 14.2 प्रतिशत और माल भाड़े में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि की गयी थी। वर्ष 2019 में मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों में अनारक्षित श्रेणी में यात्रियों को प्रति किलोमीटर दो पैसे बढ़ाये गये थे। स्लीपर श्रेणी के किराये में दो पैसे और प्रथम श्रेणी के किराये में भी दो पैसे की बढ़ोतरी की गयी है। साधारण ट्रेनों के द्वितीय श्रेणी के किराये में प्रति किलोमीटर एक पैसे और स्लीपर श्रेणी के लिए भी किराये में एक पैसे की बढ़ोतरी की गयी थी। प्रथम श्रेणी के किराये में एक पैसे की बढ़ोतरी की गयी थी। सभी वातानुकूलित श्रेणियों में एक समान चार पैसे प्रति किलोमीटर की बढ़ोतरी की गयी थी। यह वृद्धि जनवरी 2020 से लागू हुई थी।

UPI से लेकर पैन तक…एक जुलाई से बदल जाएंगे यह नियम

नई दिल्ली:  जुलाई, 2025 से कई नए वित्तीय नियम लागू होने जा रहे हैं, जिसका आपकी जेब पर सीधा असर हो सकता है। इनमें यूपीआई चार्जबैक, नए तत्काल ट्रेन टिकट बुकिंग और पैन कार्ड के नियमों में बदलाव शामिल हैं।

नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) की ओर से हाल ही में सिस्टम को आसान बढ़ाने के उद्देश्य से यूपीआई चार्जबैक नियमों में बदलाव किया गया है।

मौजूदा समय में बहुत अधिक दावों के कारण सभी चार्जबैक रिक्वेस्ट को खारिज कर दिया जाता है। ऐसे में सही चार्जबैक रिक्वेस्ट को प्रोसेस करने के लिए बैंक को यूपीआई रेफरेंस कंप्लेंट सिस्टम (यूआरसीएस) के जरिए एनपीसीआई के पास जाकर केस को व्हाइटलिस्ट करना पड़ता है।

15 जुलाई के बाद एनपीसीआई की इसमें कोई भूमिका नहीं रहेगी। अगर बैंक को कोई चार्जबैक रिक्वेस्ट सही लगती है तो उसे वह एनपीसीआई से व्हाइटलिस्ट किए बिना प्रोसेस कर सकती है।

यूपीआई चार्जबैक एक औपचारिक विवाद है जिसे यूजर तब उठाता है जब कोई लेनदेन विफल हो जाता है या जब भुगतान की गई सेवा या उत्पाद वितरित नहीं किया जाता है। यह यूजर को बैंक या भुगतान सेवा प्रदाता से धन वापसी की मांग करने की अनुमति देता है।

नए पैन कार्ड का आवेदन करने के लिए एक जुलाई से आपके पास आधार कार्ड होना जरूरी है। इससे पहले आप किसी भी वैध दस्तावेज या जन्म प्रमाणपत्र के जरिए पैन कार्ड के लिए आवेदन कर सकते थे।

जुलाई 2025 से तत्काल टिकट बुकिंग के कई नए नियम लागू हो जाएंगे। 1 जुलाई 2025 से आईआरसीटीसी की वेबसाइट या इसके मोबाइल ऐप के जरिए तत्काल ट्रेन टिकट के लिए आधार सत्यापन अनिवार्य हो जाएगा।

गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स नेटवर्क (जीएसटीएन) ने 7 जून, 2025 को घोषणा की थी कि मासिक जीएसटी भुगतान फॉर्म जीएसटीआर-3बी को जुलाई 2025 से एडिट नहीं किया जा सकेगा।

इसके अतिरिक्त, जीएसटीएन ने कहा था कि करदाताओं को देय तिथि से तीन वर्ष की अवधि समाप्त होने के बाद जीएसटी रिटर्न दाखिल करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

त्रिपुरा भाजपा अध्यक्ष पद पर पेच, केंद्र-राज्य नेतृत्व में सहमति न बनने से चुनाव टला

अंजलि भाटिया 

नई दिल्ली ,28 जून- त्रिपुरा में भाजपा के नए राज्य अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर पार्टी के भीतर असहमति गहराती जा रही है। शुक्रवार को केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण द्वारा 29 जून 2025 को अध्यक्ष पद के चुनाव की अधिसूचना जारी की गई थी, जिससे संगठनात्मक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की उम्मीद बनी थी। लेकिन चंद घंटों में ही यह अधिसूचना वापस ले ली गई और चुनाव को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया।

भाजपा सूत्रों के मुताबिक, यह निर्णय राज्य नेतृत्व और केंद्रीय नेतृत्व के बीच संभावित उम्मीदवार को लेकर सहमति नहीं बन पाने के कारण लिया गया है। मुख्यमंत्री माणिक साहा और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के बीच इस मुद्दे पर मतभेद साफ नजर आ रहे हैं

केंद्र की ओर से भगवान दास का नाम प्रस्तावित किया गया था, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे हैं और पार्टी व सरकार में कई अहम जिम्मेदारियां निभा चुके हैं। लेकिन मुख्यमंत्री साहा ने उनके नाम का विरोध करते हुए उन्हें स्वीकारने से इनकार कर दिया है। राज्य सरकार के सूत्रों के अनुसार, भगवान दास के एक करीबी रिश्तेदार पर गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं, जिससे उनकी छवि पर असर पड़ा है।

मुख्यमंत्री माणिक साहा की ओर से टिंकू रॉय और नबेंदु भट्टाचार्य के नाम आगे बढ़ाए गए हैं, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व को ये नाम संगठनात्मक दृष्टि से उपयुक्त नहीं लग रहे हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, मुख्यमंत्री इस पद को व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का विषय बना चुके हैं और अन्य विकल्पों को खारिज कर रहे हैं। उनके सुझाए गए नाम पार्टी की राज्य इकाई की मुख्यधारा से दूर माने जा रहे हैं।

सूत्रों की मानें तो माणिक साहा किसी तीसरे, समझौता उम्मीदवार के पक्ष में अंततः राजी हो सकते हैं। हालांकि, अब तक इस पर कोई औपचारिक सहमति नहीं बन पाई है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री और त्रिपुरा भाजपा की पूर्व अध्यक्ष प्रतिमा भौमिक का नाम भी चर्चा में आया था, लेकिन पार्टी सूत्रों के अनुसार, उनके कुछ पारिवारिक विवादों के चलते उन्हें गंभीर दावेदार नहीं माना जा रहा है।

पूर्व अध्यक्ष राजीब भट्टाचार्य के राज्यसभा भेजे जाने के बाद भाजपा के सामने नए अध्यक्ष की तलाश एक जटिल चुनौती बन गई है। 2018 में 25 वर्षों के वाम शासन को खत्म कर सत्ता में आई भाजपा के लिए त्रिपुरा पूर्वोत्तर में एक अहम रणनीतिक राज्य रहा है। लेकिन मौजूदा गतिरोध यह संकेत देता है कि राज्यों में नेतृत्व चयन को लेकर पार्टी के भीतर सामंजस्य बनाना अब पहले जितना आसान नहीं रह गया है।

गरीबी रेखा का पुनर्मूल्यांकन हो

ग्रामीण परिदृश्य बदलने में मनरेगा का योगदान, डेली वेज बढ़ाए जाने की मांग।

बृज खंडेलवाल द्वारा

गरीबी के खिलाफ जंग में मनरेगा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अगर 25 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से ऊपर उठे हैं, तो ग्रामीण रोजगार स्कीम्स ने इस क्रांति को सफल अंजाम दिया है, बेशक क्रियान्वयन बेहतर और भ्रष्टाचार मुक्त हो सकता था।

इस तथ्य को भी स्वीकारा जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में मुद्रा प्रवाह बढ़ा है, जिससे जीवन स्तर में हल्के बदलाव दिखने लगे हैं। सरकार की दो दर्जन से ज्यादा योजनाएं बदलाव का इंजन बन रहीं हैं।

दक्षिण के प्रांतों में, मध्य प्रदेश और गुजरात में ग्रामीण योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन से गरीबी उन्मूलन की दिशा में खासी प्रगति हुई है। बिहार, पश्चिम बंगाल, यूपी, झारखंड आदि राज्य प्रयासरत हैं दौड़ का हिस्सा बनकर आगे निकलने के लिए। फ्री राशन स्कीम जो कोविड काल में मजबूरी में शुरू हुई, अभी भी चल रही है। ये  एक बहुत जबरदस्त बफर या shock absorber बनके उभरी है। आने वाले समय में गरीबी की परिभाषा बदलनी होगी। क्योंकि सत्यजीत राय की फिल्मों के जैसे गरीबी अब नहीं दिखती, बल्कि शहरों के स्लम्स, झुग्गी झोंपड़ियों में रहने वाले मोबाइल, टीवी, मोबाइक, ऐसी, आदि सुविधाएं उपयोग करने की हैसियत रखते हैं।

बीस साल पहले, कभी जनता पार्टी द्वारा शुरू किए गए “अंत्योदय” और “रोज़गार के बदले अनाज” जैसी योजनाओं से शुरू हुआ भारत का सामाजिक सुरक्षा अभियान, 2005 में मनरेगा के ज़रिए एक क़ानूनी हक़ बन गया था।

लेकिन अब यह सवाल उठ रहा है: क्या केंद्र सरकार की हालिया नीतियों ने इस योजना की आत्मा को  घायल तो नहीं कर दिया है?

मनरेगा—जिसे अब महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) कहा जाता है—एक समय गांव के गरीबों के लिए राहत की सांस था। यह योजना इस वादे पर टिकी थी कि हर ग्रामीण परिवार को साल में 100 दिन का रोज़गार मिलेगा, वो भी मांगने पर सिर्फ़ 15 दिन के भीतर। लेकिन अब सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2025-26 की पहली छमाही में खर्च पर 60% की सीमा लगाने का फ़ैसला इस योजना को गंभीर संकट में डाल सकता है।

यह योजना सिर्फ़ मज़दूरी देने तक सीमित नहीं थी। गांवों में जल संरक्षण, सिंचाई, सड़क और अन्य ज़रूरी ढांचे तैयार कर कृषि को सहारा भी दिया गया। फिर भी, पिछले कुछ वर्षों में इस योजना की हालत कुछ बिगड़ती जा रही है। कुल बजट का हिस्सा GDP का महज़ 0.26% रह गया है, जबकि विशेषज्ञ इसे 1.7% तक बढ़ाने की सलाह दे रहे हैं।

सबसे बड़ा संकट मज़दूरी के भुगतान में देरी है। मार्च 2025 तक ₹21,000 करोड़ सिर्फ़ पुराने बकायों को चुकाने में खर्च हो चुके थे। नई मज़दूरी के लिए पैसे ही नहीं बचे। मज़दूरों को महीने–दो महीने तक मज़दूरी नहीं मिलती, जिससे वे क़र्ज़ में डूब जाते हैं।

ऊपर से मज़दूरी दरें भी शर्मनाक रूप से कम हैं—₹202 से ₹357 प्रतिदिन—जो 2009 की महंगाई दर के आधार पर तय की गई थीं। विशेषज्ञों ने बार-बार नए आधार वर्ष 2014 को लागू करने की माँग की, लेकिन सरकार ने कान नहीं दिए। मजदूरी न्यूनतम वेज एक्ट के तहत तय की जानी चाहिए। कम मजदूरी की वजह से गांव से शहर की तरफ पलायन रुक नहीं पा रहा है।

औसतन हर परिवार को साल में केवल 50 दिन का काम ही मिल पा रहा है। 100 दिनों का वादा पूरा होने की दर महज़ 7% है। ज़ाहिर है, नीति और हक़ीक़त के बीच बहुत बड़ा फ़ासला है।

भ्रष्टाचार रोकने के नाम पर आधार लिंक भुगतान और मोबाइल ऐप से हाज़िरी जैसे तकनीकी उपाय लागू किए गए हैं। लेकिन इससे असली ज़रूरतमंद—बूढ़े, अनपढ़, स्मार्टफोन या इंटरनेट से वंचित लोग—योजना से बाहर हो रहे हैं। ग्राम पंचायतों की भूमिका भी कमज़ोर हो गई है। सामाजिक ऑडिट, जो एक समय निगरानी का असरदार ज़रिया था, अब सिर्फ़ दिखावा बनकर रह गया है। पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में केंद्र और राज्य की सियासी खींचतान का खामियाज़ा आम मज़दूर भुगत रहा है—उसे रोज़गार भी नहीं और जवाब भी नहीं।

कई राज्यों में मनरेगा में भारी घोटालों की ख़बरें भी सामने आई हैं। लेकिन जांच का रवैया भी राजनीतिक मंशा पर निर्भर दिखता है—कहीं कार्रवाई, तो कहीं चुप्पी।

बिहार के पब्लिक कॉमेंटेटर प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी कहते हैं कि अगर यही हाल रहा, तो जलवायु परिवर्तन और अनियमित मानसून की मार झेल रहे किसान और मज़दूर और ज़्यादा परेशान होंगे। नोटबंदी और कोरोना जैसे संकटों में भी यही योजना ग्रामीण भारत का सहारा बनी थी।”

अगर सरकार वाक़ई ग्रामीण कल्याण को लेकर संजीदा है, तो उसे चाहिए कि 60% खर्च की सीमा हटाकर योजना को उसकी मूल भावना—मांग पर आधारित रोज़गार—की ओर लौटाए। बजट को कम से कम GDP के 1.7% तक बढ़ाया जाए, मज़दूरी दरें समयानुसार सुधारी जाएं और भुगतान में देरी खत्म की जाए।

नितीन गडकरी की वार्षिक टोल पास योजना से निजी वाहन चालकों को बड़ी राहत

दिल्ली से मुंबई का सफर सिर्फ ₹30 में संभव! हालांकि दिल्ली–मुंबई एक्सप्रेसवे पर योजना लागू होगी या नहीं, इस पर अब भी संशय

अंजलि भाटिया
नई दिल्ली- केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितीन गडकरी द्वारा हाल ही में घोषित की गई वार्षिक टोल पास योजना निजी वाहन चालकों के लिए बेहद फायदेमंद साबित हो सकती है। इस योजना के तहत यात्री सिर्फ ₹30 के टोल में दिल्ली से मुंबई तक का 1386 किलोमीटर लंबा सफर तय कर पाएंगे।
गडकरी के अनुसार, ₹3,000 में मिलने वाले वार्षिक पास से वाहन चालक 200 टोल प्लाज़ा पार कर सकते हैं, जिससे एक टोल की औसत लागत सिर्फ ₹15 पड़ेगी। चूंकि दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे पर सिर्फ दो टोल बिंदु होंगे। एक दिल्ली में और दूसरा मुंबई में इसलिए पूरा सफर केवल ₹30 टोल टैक्स में संभव होगा।
वर्तमान में दिल्ली से मुंबई के बीच सफर करने पर लगभग ₹2,100 तक का टोल शुल्क लगता है। ऐसे में वार्षिक पास योजना लागू होने पर वाहन चालकों को हजारों रुपये की बचत हो सकती है।
दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे का लगभग 80% काम पूरा हो चुका है।1386 किलोमीटर लंबा यह मार्ग पूर्णतः एक्सेस कंट्रोल्ड (प्रवेश-नियंत्रित) होगा, जिससे सफर केवल 12 घंटे में पूरा हो सकेगा।
यहां कुल 15 टोल प्लाज़ा प्रस्तावित हैं, लेकिन शुल्क केवल एक्जिट पॉइंट पर वसूला जाएगा। उदाहरण के तौर पर, यदि कोई यात्री दिल्ली से मुंबई जाता है, तो उसे केवल मुंबई के टोल प्लाज़ा पर टोल भरना होगा।
हालांकि इस योजना ने वाहन चालकों में उत्साह पैदा किया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वार्षिक टोल पास योजना दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे पर लागू होगी या नहीं।
राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के अधिकारियों का कहना है कि यह हाईवे एक प्रीमियम इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना है, और इस पर वार्षिक पास लागू करना आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं होगा।
हालांकि, एक्सप्रेसवे का बाकी बचा हुआ 20% कार्य पूरा होने के बाद ही इस पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा।