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दिल्ली बजट 2025: स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं पर जोर, यमुना सफाई के लिए 9000 करोड़ आवंटित

नई दिल्ली: मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने मंगलवार को दिल्ली विधानसभा में वित्त वर्ष 2025-26 का बजट पेश किया। बजट में स्वास्थ्य, शिक्षा, जल प्रबंधन, उद्योग और झुग्गी-झोपड़ी पुनर्वास पर खास ध्यान दिया गया है।

स्वास्थ्य पर बड़ा बजट, 10 लाख का हेल्थ इंश्योरेंस

रेखा गुप्ता ने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 6874 करोड़ रुपये के बजट की घोषणा की। दिल्ली के 10 से 12 अधूरे अस्पतालों को 1000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। आरोग्य आयुष मंदिर के लिए 320 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं। साथ ही, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत केंद्र सरकार द्वारा दिए जाने वाले 5 लाख रुपये के बीमा को दिल्ली सरकार अतिरिक्त 5 लाख रुपये टॉप-अप करके 10 लाख रुपये तक का लाभ देगी। इस योजना के लिए 2144 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

यमुना सफाई और जल प्रबंधन

सरकार ने यमुना की सफाई को अपनी प्राथमिकता बताया है और इस पर 9000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। 500 करोड़ रुपये की लागत से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण होगा। साथ ही, दिल्ली में पानी चोरी रोकने के लिए टैंकरों में जीपीएस सिस्टम लगाने का ऐलान किया गया है।

शिक्षा और उद्योग पर जोर

मुख्यमंत्री ने शिक्षा और उद्योग को सुधारने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि नई उद्योग नीति लाई जाएगी और ट्रेडर्स वेलफेयर बोर्ड की स्थापना होगी। इसके अलावा, हर दो साल में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन किया जाएगा, जिससे दिल्ली में निवेश को बढ़ावा मिलेगा।

गरीबों के लिए अटल कैंटीन और झुग्गीवासियों के लिए बड़ा बजट

गरीबों को सस्ता भोजन उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने 100 जगहों पर ‘अटल कैंटीन’ खोलने की घोषणा की, जिसके लिए 100 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। वहीं, झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्रों के विकास और सुविधाओं के लिए 696 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।

विपक्ष पर तंजबजट भाषण के दौरान रेखा गुप्ता ने पिछली सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “आपने शीशमहल बनवाया, हम गरीबों के घर बनवाएंगे।” उन्होंने आरोप लगाया कि पिछली सरकार के कई प्रोजेक्ट अधूरे रह गए और जनता को बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएं नहीं मिल पाईं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह बजट दिल्ली के विकास और आम जनता की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। उनकी सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं को आधुनिक बनाने, यमुना की सफाई, उद्योगों को बढ़ावा देने और गरीबों को राहत देने के लिए प्रतिबद्ध है।

भारत में दुनिया का सबसे भ्रामक और जटिल जीएसटी ढांचा है-शशि थरूर

नई दिल्ली , 24 मार्च- कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने सोमवार को लोकसभा में वित्त विधेयक की आलोचना करते हुए कहा केरल के साथ भेदभाव की बात की और कहा कि देश में केवल दो प्रतिशत लोग ही आयकर देते हैं। उन्होंने इसका कारण बेरोजगारी बताया।
यह वित्त विधेयक केवल पैबंद लगाने का उदाहरण है। भारत का जीएसटी दुनिया का सबसे जटिल कर है, भाजपा सरकार का आर्थिक प्रबंधन संरचनात्मक चुनौतियों का सामना कर रहा है।आज देश में हर चीज पर टैक्स लगाया जा रहा है
यह सरकार पेट्रोल, शर्ट, जूतों, मोबाइल, फोन कॉल, वेतन, यात्रा, मिठाई पर और सुख और दुख पर भी टैक्स लगाती है और टैक्स को ही देश का भविष्य कहती है.इस जीएसटी के ऊंची द रो के कारण देश से हजारों लोग पलायन कर रहे हैं।
थरूर ने कहा कि भारत में दुनिया का सबसे भ्रामक और जटिल जीएसटी ढांचा है। उन्होंने कहा, “हम सभी जिस अच्छे और सरल कर की उम्मीद कर रहे थे, उसके बजाय भारत में कई और भ्रामक जीएसटी दरें हैं, जिसमें दुनिया में सबसे ज्यादा जीएसटी दर, 28 प्रतिशत शामिल है, लेकिन कर राजस्व अभी भी जीडीपी का 18 प्रतिशत है।” उन्होंने कहा कि चीन में 13 प्रतिशत जीएसटी कैप है, लेकिन वे जीडीपी का 20 प्रतिशत संग्रह करते हैं। वियतनाम में और भी कम 8 प्रतिशत कैप है और वह जीडीपी का 19 प्रतिशत संग्रह करता है। थाईलैंड में जीएसटी केवल 7 प्रतिशत है, और उन्हें जीडीपी का शुद्ध 17 प्रतिशत मिलता है। अब, अत्यधिक दरों से परे, हमारी प्रणाली एक संदिग्ध कर वहन करती है, दुनिया में सबसे जटिल कर होने का संदिग्ध बोझ। 77 देशों में जीएसटी है,और वे केवल एक या दो कर लगाते हैं।
इस सदन में वित्त मंत्री के बजट भाषण ने मुझे उस गैराज मैकेनिक की याद दिला दी, जिसने कहा था कि मैं आपके ब्रेक ठीक नहीं कर सकता, इसलिए मैंने हॉर्न तेज कर दिया, लेकिन वित्त विधेयक को देखकर, वह अब करदाताओं से कह रही है, मैं छत की मरम्मत नहीं कर सका, लेकिन मैं आपके लिए एक छाता लेकर आया हूं।
तमिलनाडु के चेन्नई उत्तर लोकसभा सीट से डीएमके सांसद डॉक्टर कलानिधि वीरास्वामी ने तीन भाषा नीति का विरोध करते हुए कहा कि जब उत्तर के लोग हिंदी छोड़ दूसरी भाषा नहीं बोलते, आप हमसे कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि हम तीन भाषा नीति को लागू करें. उन्होंने सदन में स्पष्ट कहा कि हमारे मुख्यमंत्री साफ कह चुके हैं कि हम तीन भाषा पॉलिसी लागू नहीं करेंगे. डीएमके सांसद ने जीएसटी को टैक्स टेररिज्म बताया,
भाजपा के निशिकांत दुबे ने वित्त विधेयक पर बोलते कहा, यह एक ज्ञात तथ्य है कि देश की अर्थव्यवस्था जो 2 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर की थी, पिछले दस वर्षों में बढ़कर 4.5 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर हो गई है। यह देखते हुए कि बजट सभी समस्याओं का जादुई समाधान प्रदान नहीं करता है.सकारात्मक पहलुओं को देखे बिना हर चीज का विरोध करना कांग्रेस का एजेंडा है। निशिकांत दुबे ने कहा कि कांग्रेस भी जब सत्ता में होती थी, हम भी कहते थे कि ये टाटा की सरकार है. ये बिरला की सरकार है. रिलायंस इंडस्ट्री 1966 में आई और 1987 तक रिलायंस इंडस्ट्री एक रुपये टैक्स नहीं देती थी. राजीव गांधी उसे परेशान करने के लिए बेनामी संपत्ति एक्ट लेकर आए.

सांसदों की सैलरी 24% बढ़ी, हर सांसद को अब 1.24 लाख मिलेंगे

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने संसद के सदस्यों और पूर्व सदस्यों के वेतन, दैनिक भत्ता, पेंशन और अतिरिक्त पेंशन में बढ़ोतरी की है। केंद्र सरकार ने एक अप्रैल 2023 से प्रभावी संसद सदस्यों और पूर्व सदस्यों के वेतन, दैनिक भत्ता, पेंशन और अतिरिक्त पेंशन में वृद्धि को आधिकारिक रूप से अधिसूचित किया है।

यह परिवर्तन संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते और पेंशन अधिनियम 1954 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत किया गया है और यह आयकर अधिनियम, 1961 में उल्लिखित कोस्ट इंफ्लेशन इंडेक्स पर आधारित है। यह कदम कर्नाटक सरकार द्वारा मुख्यमंत्री, मंत्रियों और विधायकों के वेतन में 100 प्रतिशत वृद्धि को मंजूरी देने के कुछ दिनों बाद उठाया गया है।

कितनी बढ़ी सैलरी ? – सरकार द्वारा जारी किए गए नोटुफिकेशन के मुताबिक संसद के सदस्यों का मासिक वेतन 1 लाख से बढ़ाकर 1 लाख 24 हजार रुपये कर दिया गया है। वहीं, दैनिक भत्ता 2000 रुपये से बढ़ाकर 2500 रुपये कर दिया गया है, जबकि मासिक पेंशन 25000 रुपये से बढ़ाकर

31000 रुपये कर दी गई है। इसके अलावा पूर्व सदस्यों के लिए अतिरिक्त पेंशन भी 2000 रुपये से बढ़कर 2500 रुपये की गई है।

कर्नाटक सरकार ने विधायकों की सैलरी बढ़ाई बता दें कि हाल ही में कर्नाटक सरकार ने मुख्यमंत्री, मंत्रियों और विधायकों के वेतन में 100 प्रतिशत की बढ़ोतरी की थी। वेतन वृद्धि के बारे में निर्णय दो संशोधन विधेयकों के माध्यम से दिया गया था कर्नाटक मंत्रियों के वेतन और भत्ते (संशोधन) विधेयक 2025 और कर्नाटक विधानमंडल सदस्यों के वेतन, पेंशन और भत्ते (संशोधन) विधेयक 20251 इस निर्णय का बचाव करते हुए कर्नाटक के गृह मंत्री जी परमेश्वर ने बढ़ते खर्चों को एक प्रमुख फैक्टर बताया।उन्होंने कहा कि इसका औचित्य यह है कि अन्य लोगों के साथ-साथ उनका खर्च भी बढ़ रहा है। एक आम आदमी भी पीड़ित है, और विधायक भी पीड़ित हैं।

केंद्रीय कर्मचारियों 8वें वेतन का इंतजार– बता दें कि केंद्र सरकार ने केंद्रीय कमार्चारियों के वेतन में बढ़ोतरी के लिए इस साल की शुरूआत में 8वां वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दी थी। हालांकि, अभी तक इसके पैनल के लिए अध्यक्ष और दो अन्य सदस्यों की नाम की घोषणा बाकी है। फिलहाल कर्मचारी पैनल के गठन का इंतजार कर रहे हैं।

कठुआ में सेना का एनकाउंटर दूसरे दिन भी जारी, सुरक्षाबलों का सर्च ऑपरेशन आज भी

जम्मू: जम्मू के कठुआ में LoC के पास हीरानगर सेक्टर में आज सुबह भी सुरक्षाबलों का सर्च ऑपरेशन जारी हैै। इससे पहले रविवार शाम 6:30 बजे आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ हुई थी। करीब तीन घंटा चली इस मुठभेड़ को विजिबिलिटी कम होने की वजह से रोक दिया गया। जानकारी के मुताबिक अब सुबह होते ही ऑपरेशन दोबारा शुरू कर दिया गया है।

इलाके में सुरक्षाबलों की बड़ी संख्या में तैनाती बढ़ा दी गई है। सेना ड्रोन से इलाके को सर्च कर रही है। साथ ही इलाके से सटे पंजाब के जिलों को भी हाई अलर्ट पर रखा गया है। अधिकारियों ने बताया LoC से करीब 5 किमी दूर सान्याल गांव में 4-5 आतंकी छिपे होने की खबर थी। इसके बाद इलाके में सर्च ऑपरेशन चलाया गया था। तभी आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी।

जानकारी के मुताबिक आतंकियों ने बच्ची और उसके माता-पिता को पकड़ लिया था। मौका मिलने पर महिला ने बच्ची समेत भागना शुरू कर दिया। आतंकियों ने उसे गोली मारने की धमकी दी, लेकिन वो दोनों भागती रहीं। इसके बाद महिला का पति भी आतंकियों के चंगुल से भाग निकला था। इस दौरान बच्ची की मामूली चोटें आईं हैं।

दिल्ली विधानसभा का बजट सत्र आज से शुरू

नई दिल्ली: नवनिर्वाचित भारतीय जनता पार्टी सरकार का पांच दिवसीय बजट सत्र सोमवार को सुबह 11 बजे खीर समारोह के साथ शुरू होगा। उन्होंने बताया कि सत्र के पहले दिन 2024 के लिए दिल्ली परिवहन निगम पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट पेश किए जाने की संभावना है।

हालांकि, इस बात की पुष्टि नहीं हुई कि पहले दिन सदन में आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाएगा या नहीं।

सोमवार को सरकार ने किसानों और व्यापारियों के प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित किया है, जिनसे बजट में शामिल करने के लिए सुझाव मांगे गए हैं।

कार्यसूची के अनुसार, सदन की कार्यवाही प्रश्नकाल से शुरू होगी और उसके बाद विशेष उल्लेख (नियम-280) होगा, जिसके तहत विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्रों से संबंधित और सामान्य रूप से दिल्ली के लोगों को प्रभावित करने वाले मामलों को अध्यक्ष की अनुमति से उठाएंगे।

सत्र के दूसरे दिन मंगलवार को मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, जिनके पास वित्त विभाग भी है, भाजपा सरकार का पहला बजट पेश करेंगी, जिसका शीर्षक “विकसित दिल्ली” होने की संभावना है।

मामले से अवगत लोगों के अनुसार, नाम के अनुरूप, दिल्ली बजट 2025-26 में बुनियादी ढांचे के विकास, यमुना की सफाई और वायु प्रदूषण से निपटने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, जिसमें स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों के लिए प्रावधान शामिल होंगे। इसमें 2,500 रुपये मासिक भत्ते के लिए वित्तीय प्रावधान भी शामिल होने की उम्मीद है, जिसका वादा भाजपा ने विधानसभा चुनाव से पहले महिलाओं के लिए किया था।

बजट प्रस्तुति के बाद, वित्तीय आवंटन और नीतिगत पहलों का विश्लेषण करने के लिए 26 मार्च (बुधवार) को एक सामान्य चर्चा होगी। विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि विधानसभा 27 मार्च (गुरुवार) को प्रस्तावित बजट पर विचार-विमर्श करेगी और मतदान करेगी। विधानसभा 27 मार्च (गुरुवार) को बजट पर विचार-विमर्श करेगी और मतदान करेगी। सत्र 28 मार्च तक चलेगा, जिसके दौरान सदन विभिन्न विधायी कार्य करेगा।

स्पीकर गुप्ता ने कहा, “बजट सत्र विधायी कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण अवधि है, जिसके दौरान प्रमुख वित्तीय और नीतिगत मामलों पर चर्चा की जाएगी और उन पर निर्णय लिया जाएगा। सत्र को 24 मार्च से 28 मार्च, 2025 तक चलने की संभावना है, जिसमें आवश्यकता पड़ने पर विस्तार का प्रावधान है।”

पांच दिनों में से प्रत्येक दिन प्रश्नकाल शामिल होगा। अंतिम दिन, विधायकों को शासन और लोक कल्याण पर अपने प्रस्ताव पेश करने और उन पर बहस करने की अनुमति होगी।

स्पीकर गुप्ता ने सत्र को सफल बनाने के लिए शिष्टाचार बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया। भाजपा नेताओं के अनुसार, बजट 2025-26 दिल्ली के लोगों से प्राप्त सुझावों के आधार पर बनाया गया है।

सीएम रेखा गुप्ता ने कहा, “हमें ईमेल पर 3,303 सुझाव और व्हाट्सएप पर 6,982 संदेश मिले। हमने उन सभी सुझावों पर ध्यानपूर्वक विचार किया है। हमने आम आदमी की सभी जरूरतों जैसे पानी और बिजली के साथ-साथ महिला सशक्तिकरण पर ध्यान दिया है। यह बजट जलभराव की समस्याओं के समाधान, यमुना नदी की सफाई, वायु प्रदूषण से निपटने, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी ढांचे के विकास पर भी ध्यान केंद्रित करेगा। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकसित दिल्ली के सपने को पूरा करता है।”

बजट के अलावा, विधानसभा डीटीसी पर सीएजी रिपोर्ट पर भी ध्यान केंद्रित करेगी – जिसका शीर्षक “दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) का कामकाज” है – दिल्ली विधानसभा ने पिछले महीने स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और आबकारी नीतियों पर दो अन्य सीएजी रिपोर्ट पेश की हैं। 2017-2018 से लंबित ऐसी 14 रिपोर्टों को पेश करना 8 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा द्वारा किया गया चुनावी वादा था।

भाजपा ने लगातार पूर्व आप सरकार पर इन रिपोर्टों को पेश न करने का आरोप लगाया है, उनका दावा है कि पार्टी “दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों में अपने शासन के दौरान की गई अनियमितताओं” को छिपाने की कोशिश कर रही है।

दिल्ली का पिछला बजट आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने पिछले साल मार्च में 76,000 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ पेश किया था। तत्कालीन वित्त मंत्री आतिशी ने दिल्ली का बजट 2024 “राम राज्य” थीम पर पेश किया था।

नागपुर हिंसा के मास्टरमाइंड फहीम खान के घर चला बुलडोजर

नागपुर: नागपुर में बीते सप्ताह दंगे भड़क गए थे। इसमें एक दर्जन पुलिसकर्मी घायल हुए और करीब इतने ही नागरिक जख्मी हो गए थे। इस घटना में बड़ी संख्या में गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया था, जबकि दुकानों में भी आग लगाई गई और तोड़फोड़ की गई थी। पुलिस का कहना है कि इस हिंसा का मास्टरमाइंड फहीम खान नाम का शख्स था, जिसके घर पर आज बुलडोजर चला है। नागपुर महानगरपालिका की टीम आज सुबह ही बुलडोजर लेकर फहीम खान के घर पर पहुंच गई। इस दौरान बड़े पैमाने पर सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया था। बता दें फहीम खान पेशे से बुर्का विक्रेता है। माना जा रहा है कि उसने कुछ वीडियो जारी किए थे और उत्तेजक बयान दिए थे, जिससे लोग भड़के और उन्होंने नागपुर शहर में उपद्रव काट दिया। फहीम खान को पुलिस ने बीते मंगलवार को ही अरेस्ट कर लिया था और उसे अदालत में पेश किया गया था।

नागपुर हिंसा को लेकर फहीम खान समेत कुल 6 लोगों के खिलाफ पुलिस ने देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया था। फहीम खान माइनॉरिटी डेमोक्रेटिक पार्टी नाम के दल का शहर प्रमुख रहा है। वह कई बार पुलिस को लेकर भी आपत्तिजनक टिप्पणी करता रहा है। वह हिंदू पुलिस जैसी टिप्पणी करता रहा है। प्रशासन ने फहीम खान के घर के उस हिस्से को ढहाया है, जो अतिक्रमण करके बना था और अवैध पाया गया। इसके अलावा अन्य हिस्से के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। नागपुर के महल इलाके में यह हिंसा हुई थी, जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय भी स्थित है। आरएसएस का दफ्तर हिंसा वाले इलाके से थोड़ी ही दूर पर स्थित है।

वह 2024 के लोकसभा चुनाव में अल्पसंख्यक डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) के टिकट पर नागपुर सीट से चुनाव लड़ा था, जिसमें उसे करारी हार का सामना करना पड़ा था। चुनावी मैदान में उतरने के बाद से ही वह राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गया था और शहर में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा था। पुलिस की जांच में सामने आया है कि नागपुर हिंसा की साजिश पहले से ही रची गई थी। फहीम खान ने कुछ कट्टरपंथी लोगों को इकट्ठा कर एक सुनियोजित तरीके से दंगा भड़काने का काम किया। बता दें कि औरंगजेब की कब्र को लेकर हुए विवाद ने सोमवार को हिंसक रूप ले लिया था। महाराष्ट्र के नागपुर के महाल में सोमवार रात दो गुटों के बीच विवाद के बाद हिंसा भड़क गई थी।

आगरा की धरोहर पर संकट: सरकारी लापरवाही से अतिक्रमण का बढ़ता खतरा

बृज खंडेलवाल द्वारा

आगरा, ताजमहल का शहर, भारत के इतिहास और संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। यह शहर न केवल अपनी ऐतिहासिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह भारतीय मुग़ल कला और स्थापत्य का एक जीवंत उदाहरण भी है। लेकिन आज आगरा की धरोहर संकट में है। अवैध निर्माण और अतिक्रमण की समस्या तेजी से बढ़ रही है, और सरकार की निष्क्रियता इस स्थिति को और भी गंभीर बना रही है। इससे ना केवल आगरा की पहचान को नुकसान पहुँच रहा है, बल्कि इसका प्रभाव पर्यटन उद्योग पर भी पड़ रहा है, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण पार्ट है। 

ताज गंज का बफर ज़ोन, जो ताजमहल के चारों ओर सुरक्षा प्रदान करने के लिए था, अब अव्यवस्थित दुकानों और अवैध निर्माणों से भर चुका है। ये निर्माण न केवल ताजमहल के आसपास के दृश्य को विकृत कर रहे हैं, बल्कि स्मारक की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्ता को भी प्रभावित कर रहे हैं। इसके कारण, ताजमहल के दर्शन करने वाले पर्यटकों को एक अव्यवस्थित और अस्वस्थ वातावरण का सामना करना पड़ता है, जो इसके पवित्र और ऐतिहासिक महत्व को नष्ट कर रहा है।

ताजमहल के अलावा, आगरा के अन्य ऐतिहासिक स्थल भी संकट में हैं। सिकंदरा, जहाँ सम्राट अकबर की समाधि स्थित है, अवैध संरचनाओं और अतिक्रमणों से घिर चुका है। यह स्थल अपनी ऐतिहासिक महत्ता और वास्तुकला के कारण हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहा है, लेकिन अब इसके आसपास के अवैध निर्माण इस स्थल की सुंदरता और ऐतिहासिकता को नष्ट कर रहे हैं। सुरक्षित पैदल यात्रा, यमुना के किनारे, इस पार या उस पार, कष्टदायक सौदा है।

इसके अलावा, फतेहपुर सीकरी, जो एक और प्रमुख मुग़ल स्थल है, भी इसी समस्या से जूझ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने यहां अवैध खनन पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन इसके बावजूद खनन कार्य जारी हैं, जो इस स्थल की संरचना को नुकसान पहुँचा रहे हैं।

यमुना नदी के किनारे स्थित ऐतिहासिक स्थल, दिल्ली गेट, जोधाबाई की छतरी, और हुमायूँ की मस्जिद, आज उपेक्षित हैं। अतिक्रमण और असुरक्षित रास्तों के कारण पर्यटक इन स्थलों तक नहीं पहुँच पाते। विभाग दारा शिकोह की लाइब्रेरी का भी कायदे से प्रमोशन नहीं कर पा रहा है। इन स्थलों का ऐतिहासिक महत्व बहुत बड़ा है, और अगर इन्हें संरक्षित किया जाए तो ये आगरा को एक और प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित कर सकते हैं। लेकिन वर्तमान स्थिति में, इन स्थलों की उपेक्षा और उनके आसपास का अव्यवस्थित माहौल, पर्यटन की संभावनाओं को नष्ट कर रहा है।

आगरा की धरोहर की रक्षा के लिए जिम्मेदार संस्थाएँ, जैसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और आगरा विकास प्राधिकरण (एडीए), अपनी जिम्मेदारियों को सही तरीके से निभाने में विफल रही हैं। एएसआई ने कई बार अवैध निर्माणों और प्राचीन स्मारकों के उल्लंघनों के बारे में चेतावनी दी है, लेकिन इन चेतावनियों पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। आगरा विकास प्राधिकरण, जो अवैध निर्माणों पर अंकुश लगाने का जिम्मेदार है, राजनीतिक दबाव और प्रशासनिक लापरवाही के कारण अपने कर्तव्यों को पूरा करने में असमर्थ है। इसी तरह, राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए), जो धरोहर स्थलों की रक्षा के लिए स्थापित किया गया था, भी अपने उद्देश्य में सफल नहीं रहा है। इसके कारण आगरा के ऐतिहासिक स्थलों की हालत बिगड़ रही है और उनका भविष्य अंधकारमय हो रहा है।

ब्रज मंडल हेरिटेज कंजर्वेशन सोसाइटी और पर्यावरणविद इस स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते रहे हैं। उनका कहना है कि ऐतिहासिक स्थलों के आसपास घर, गैरेज, और नर्सिंग होम जैसे संरचनाएँ बिना किसी रोक-टोक के उग आए हैं। यह न केवल इन स्थलों के ऐतिहासिक महत्व को नष्ट कर रहा है, बल्कि यह यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र और पारिस्थितिकीय तंत्र को भी खतरे में डाल रहा है। यमुना के बाढ़ क्षेत्र, जो आगरा की पारिस्थितिक और ऐतिहासिक पहचान के लिए महत्वपूर्ण हैं, अब लालच और अतिक्रमण की चपेट में हैं। यह पर्यावरणीय और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक हानिकारक है और अगर इसे रोका नहीं गया, तो आगरा की धरोहर का नुकसान असाधारण होगा।

आगरा की धरोहर केवल इस शहर या देश की संपत्ति नहीं, बल्कि यह पूरी मानवता का खजाना है। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह अनमोल धरोहर हमेशा के लिए नष्ट हो सकती है। सरकार और प्रशासन को इस संकट को गंभीरता से लेना चाहिए। यह केवल एक स्थानीय समस्या नहीं है, बल्कि एक वैश्विक धरोहर का संकट है। आगरा की धरोहर को बचाने के लिए सख्त प्रवर्तन, राजनीतिक साहस, और पूरी प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। सरकारी अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी, और सिर्फ बयानबाजी से काम नहीं चलेगा। आगरा के ऐतिहासिक स्थलों को संरक्षित करना और इस शहर की पहचान को बचाना आज के समय की सबसे बड़ी प्राथमिकता बन गई है।

बात बात पे जंग: व्यंग्य और हास्य के बदलते रंग

बृज खंडेलवाल द्वारा

पिछले दो दशकों में हमने एक पूरी जमात को गुम होते देखा है। वो जमात जो हमें हंसाती थी, गुदगुदाती थी, और सोचने पर मजबूर करती थी। व्यंग्यकार, कार्टूनिस्ट, और हास्य के बादशाह अब धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं।

उनकी जगह यूट्यूबर्स और स्टैंड-अप कॉमेडियन ने ले ली है, जिनके चुटकुलों में गालियों और अश्लीलता का बोलबाला है। ये वो दौर है जब हंसी की जगह चीखने-चिल्लाने, मार-पीट, और नफरत भरे संवादों ने ले ली है। क्या यही है आज की लोकतांत्रिक हकीकत?

एक जमाना था जब अखबारों की पहचान लक्ष्मण, रंगा, सुधीर धर, विजयन और शंकर जैसे कार्टूनिस्टों के उम्दा कार्टूनों से होती थी। उनके कार्टून सिर्फ हंसाते ही नहीं थे, बल्कि समाज और राजनीति पर गहरी चोट करते थे। आर.के. लक्ष्मण के “कॉमन मैन” ने हर भारतीय को अपनी छवि दिखाई, और शंकर के कार्टून ने नेताओं की पोल खोल दी।

मगर आज? अखबारों में कार्टून गायब हैं, और राजनीति से हास्य गायब हो गया है। ऐसा लगता है कि अखबार डरते हैं, कार्टूनिस्ट डरते हैं, और हम सब डरते हैं। क्या यही है आजादी का मतलब? चो रामास्वामी की तमिल में तुगलक पत्रिका, शरद जोशी के व्यंग, खुशवंत सिंह के कटाक्ष, काका हाथरसी की कविताएं, अब कहां गायब हो गए इस परंपरा के वारिस! फिल्मों से जॉनी वॉकर, महमूद, देवेन वर्मा, जौहर, ॐ प्रकाश टाइप कॉमेडियंस गायब हुए, टीवी से कॉमेडी के सीरियल्स।

राजनीति और हास्य का रिश्ता हमेशा से जटिल रहा है। एक जमाने में संसद में मजाक, शेर-ओ-शायरी, और हंसी-मजाक का दौर था। पीलू मोदी और राज नारायण जैसे नेता खूब हंसाते थे। मगर आज? संसद हो या विधानसभा, सभी जगह मान्यवर गंभीर मुद्रा में बैठे रहते हैं। हंसी-मजाक की जगह गंभीरता ने ले ली है। क्या यही है लोकतंत्र की परिभाषा?

आज के दौर में राजनीतिक या धार्मिक हस्तियों पर व्यंग्य करना जानलेवा हो सकता है। कार्टूनिस्ट और कॉमेडियन धमकियों, ऑनलाइन उत्पीड़न, और कानूनी कार्रवाई का शिकार हो रहे हैं। उदाहरण के लिए, विवादास्पद धार्मिक हस्तियों को चित्रित करने वाले कार्टूनिस्टों को व्यापक विरोध और धमकियों का सामना करना पड़ा है। भारत में भी, राजनीतिक नेताओं या धार्मिक हस्तियों की आलोचना करने वाले कार्टूनिस्ट अक्सर ऑनलाइन ट्रोलिंग और कानूनी कार्रवाई का शिकार होते हैं।

मगर, यह सब इतना भी निराशाजनक नहीं है। भारत में कुछ बहुत ही मज़ेदार लोग हैं जो हंसी की मशाल जलाए रखते हैं। वीर दास, बस्सी,  उपमन्यु, केनी , और कल्याण रथ जैसे कॉमेडियन ने हास्य को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। यूट्यूब पर कैरी, डॉली, भुवन, आशीष  जैसे क्रिएटर्स ने हंसी को नया रंग दिया है। मगर, इनमें से ज्यादातर राजनीति से दूर भागते हैं।

कपिल शर्मा के शो में नेता नहीं आते, और वह खुद भी राजनीति से दूर रहते हैं। क्या यही है हास्य की आजादी? कुछ श्रोता और दर्शक टीवी न्यूज चैनल को मनोरंजन के लिए देखते हैं, जब एंकर चिल्लाता है या लड़वाता है तो बहुत मजा आता है।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स अक्सर आपत्तिजनक समझे जाने वाले कंटेंट को हटा देते हैं, कभी-कभी स्पष्ट दिशा-निर्देशों के बिना। इससे सेल्फ-सेंसरशिप की स्थिति पैदा हो जाती है। कॉमेडियन और क्रिएटर्स को अपने कंटेंट को लेकर सतर्क रहना पड़ता है। हिंसा की धमकियों के कारण कई कॉमेडियन के शो रद्द हुए हैं। इंटरनेट शटडाउन और सेंसरशिप का इस्तेमाल असहमति की आवाज़ों को दबाने के लिए किया जाता है, जिसमें हास्य कलाकार और ऑनलाइन क्रिएटर भी शामिल हैं।

मगर, यह सब इतना भी निराशाजनक नहीं है। भारत में कुछ बहुत ही मज़ेदार लोग हैं जो हंसी की मशाल जलाए रखते हैं। स्टैंड-अप कॉमेडियन, यूट्यूबर्स, और ब्लॉगर्स का उदय लचीलापन और रचनात्मकता की स्थायी मानवीय भावना को प्रदर्शित करता है। ये नई आवाज़ें राजनेताओं और सामाजिक मुद्दों का मज़ाक उड़ाती रहती हैं, यह साबित करते हुए कि हास्य को आसानी से चुप नहीं कराया जा सकता।

ह्यूमर टाइम्स की प्रकाशक मुक्ता गुप्ता कहती हैं, “राजनीतिक कार्टूनिंग का पतन एक बड़े सामाजिक बदलाव का प्रतीक है। ग्राफिक डिज़ाइन और एनिमेटेड पात्रों का उदय, तकनीकी रूप से उन्नत होते हुए भी, अक्सर पारंपरिक रेखाचित्रों की वैचारिक गहराई और सरलता नहीं रखता है।”

हास्य और व्यंग्य सिर्फ मनोरंजन के साधन नहीं हैं, बल्कि सत्ता को जवाबदेह ठहराने, सामाजिक मानदंडों को चुनौती देने, और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक तंत्र हैं। खुले समाजों में, हास्य और व्यंग्य स्वतंत्रता, सहिष्णुता, और उदार मूल्यों के महत्वपूर्ण बैरोमीटर के रूप में काम करते हैं। मगर, आज के दौर में हास्य और राजनीतिक व्यंग्य के लिए जगह कम होती जा रही है, जो बढ़ती असहिष्णुता, धार्मिक कट्टरता, और राजनीतिक शुद्धता से प्रभावित है।

फिर भी, इन चुनौतियों के बीच, आशा की किरणें हैं। हंसी की जंग जारी है, क्योंकि, जब तक हंसी है, तब तक जिंदगी है। और जब तक जिंदगी है, तब तक हंसी है। शायद इंसान के अलावा कोई जीव हंसने की काबिलियत नहीं रखता है।

बन गई सहमति, नया भाजपा अध्यक्ष 20 अप्रैल से पहले

15 महीने की लंबी देरी के बाद नए भाजपा प्रमुख को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा के बीच आम सहमति बनती दिख रही है। हालांकि भाजपा प्रमुख जे.पी. नड्डा की जगह आने वाले नए अध्यक्ष को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर काम करना होगा, लेकिन यह भी साफ है कि उनकी जड़ें मूल संगठन आरएसएस में भी गहरी होंगी। संघ परिवार से आ रही खबरों की मानें तो यह साफ है कि नए प्रमुख का चुनाव 20 अप्रैल तक हो जाएगा। हालांकि जेपी नड्डा का कार्यकाल जनवरी, 2024 में खत्म हो गया था, उनकी जगह नए पार्टी प्रमुख के मुद्दे पर भाजपा में पूरी तरह से चुप्पी है। लेकिन अब यह सामने आ रहा है कि संघ परिवार के घटकों के बीच पर्दे के पीछे लंबी बातचीत के बाद अच्छे नतीजे सामने आए हैं। पिछले साल जनवरी में जब नड्डा का कार्यकाल खत्म हुआ तो आम चुनाव से पहले पार्टी के संविधान में बदलाव किया गया, ताकि संसदीय बोर्ड, सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था को ‘आपातकालीन स्थितियों’ में पार्टी अध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ाने की अनुमति मिल सके, जिसका इस्तेमाल बाद में नड्डा के कार्यकाल को बढ़ाने के लिए किया गया। इस महीने के अंत में प्रधानमंत्री के रूप में मोदी का महाराष्ट्र के नागपुर में आरएसएस मुख्यालय जाना तय हो गया है, जो इस बात का संकेत है कि कई पेचीदा मुद्दों का समाधान हो गया है। मोदी आरएसएस मुख्यालय जाने वाले पहले प्रधानमंत्री होंगे, जबकि दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐसा करने से परहेज किया था।

आरएसएस भाजपा और मोदी का वैचारिक मार्गदर्शक है। मोदी हाल ही में अपने जीवन पर आरएसएस के प्रभाव के बारे में बार-बार बोलते रहे हैं, ताकि मातृ संगठन का सुचारु संचालन और निरंतर समर्थन सुनिश्चित हो सके। मोदी का आरएसएस से परिचय 8 साल की उम्र में हुआ था और 1971 में 21 साल की उम्र में वे गुजरात में आरएसएस के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए थे।

ऐसा कहा जा रहा है कि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री मनोहरलाल खट्टर पर आखिरकार दांव चल सकता है। खट्टर पूर्णकालिक आरएसएस प्रचारक, अविवाहित और मोदी के करीबी विश्वासपात्र हैं। अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि दक्षिण भारत से केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी अभी भी चर्चा में हैं। लेकिन खट्टर के पक्ष में आम सहमति बनती दिख रही है।

बिहार में नीतीश को लेकर अनिश्चितता, भाजपा हुई महत्वाकांक्षी

भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के एक प्रमुख सहयोगी लोजपा के केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने बिहार एनडीए में यह कहकर हलचल मचा दी है कि बिहार का अगला मुख्यमंत्री वह व्यक्ति होगा जिसके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजन है। इससे राजनीतिक परिदृश्य और भी अनिश्चित हो गया है। वरिष्ठ भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने यह कहकर आग में घी डालने का काम किया कि भाजपा का यह सोचना गलत नहीं है कि मुख्यमंत्री इसी पार्टी से होना चाहिए। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़े जाएंगे। ये बयान ऐसे समय में आए हैं, जब एनडीए में पूरी तरह से असमंजस की स्थिति है, क्योंकि भाजपा नेता राज्य में नेतृत्व के मुद्दे पर अलग-अलग सुर में बोल रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कुछ सप्ताह पहले कहा था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नवंबर में होने वाले चुनावों में बिहार में एनडीए के अभियान का नेतृत्व करेंगे। लेकिन अगले मुख्यमंत्री के सवाल पर उन्होंने कहा कि पार्टी का संसदीय बोर्ड चुनावों के बाद इस मुद्दे पर फैसला करेगा। भाजपा में कुछ कट्टरपंथी लोग हैं जो मानते हैं कि चुनाव के बाद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाए रखने के बजाय पार्टी को अपना खुद का मुख्यमंत्री बनाना चाहिए।

2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 243 सदस्यीय सदन में 74 सीटें जीती थीं, जबकि जनता दल (यू) ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद केवल 43 सीटें जीती थीं। भाजपा ने केवल 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इन कट्टरपंथियों का मानना है कि भाजपा अब अपने दम पर सरकार बनाने में सक्षम है और उसे बहुमत हासिल करने के लिए नीतीश कुमार की जरूरत नहीं है और वह 2025 में अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहेगी। ये बयान आने वाली चीजों का संकेत हैं।