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‘EARTH’S FIRST INTERSTELLAR VISITOR MIGHT HAVE BEEN AN ALIEN SPACECRAFT’

n 19 October 2017, Robert Weryk, using the Pan-STARRS telescope at Haleakala Observatory, Hawaii discovered a 1,300-foot-long (400 meters) object, zipping through space at 196,000 miles per hour. The object, named Oumuamua, which means ‘scout’ in Hawaiian, didn’t look like anything from the solar system, considering its path and the unusually fast speed, it was thought to be a visitor from the stars. All the ground-based near-earth observation telescopes were immediately instructed to set their eyes on the fast moving object.  

Oumuamua made its closest approach to Earth at 24 million kilometres on 14th October, 2017. By the time earth-based telescopes catch the sight of it, the cigar-shaped object had already zoomed past the sun and was now leaving the solar system at an astronomical speed. The object soon went out of reach for even the most powerful telescopes as it sped away from the solar system.

The observation of this interstellar object has since befuddled the scientists, considering its out-of sync behaviour and the peculiar features. Oumuamua didn’t look anything like the comet, which moves far slower than it was moving and had no discharge of dust and gas from its tail, neither did it behave like an asteroid. All the observations confirmed the fact that the interstellar vagabond was not from anywhere here. And that was truly extraordinary, because nothing of that sort has ever been discovered by our telescopes and observatories. The extraordinarily fast speed of the object deprived the scientists of having a closer look at it.

Considering the peculiarity of the object, different theories are doing the rounds about the origins of this alien object. The Harvard researchers, Abraham Loeb and Shmuel Bialy conducted a study, titled “Could Solar Radiation Pressure Explain ‘Oumuamua’s Peculiar Acceleration?” They suggested that the interstellar object could be have been a light sail — a spacecraft that uses radiation pressure to propel itself. These researchers suggest that this interstellar craft could have natural origins or, alternatively, that it could have been sent out from an extra-terrestrial civilization.

Loeb said in his statement, “Its origin could be either natural (in the interstellar medium or proto-planetary disks) or artificial (as a probe sent for a reconnaissance mission into the inner region of the solar system).” The light sail objects are pushed forward as they reflect light, and so Oumuamua, according to them was being pushed by the radiation from sun.

The objects unexplainable speed shifts and sudden accelerations was mysterious and this increased the speculation of the stargazers of it being an ‘internally driven’ craft. The absence of any outgassing ruled out Oumuamua being from the comet class, or an asteroid, for the bizarre shape and the tumbling motion it was exhibiting.  

“Oumuamua may be a fully operational probe sent intentionally to Earth vicinity by an alien civilization,” observed the paper. “Oumuamua showed unusual features since its discovery. These features make ‘Oumuamua weird, belonging to a class of objects that we had never seen before,” Loeb observed.

The scientists have, however, rejected the explanation, pointing that there was no possibility of it being an artificial probe sent to ‘investigate earth.’ Since its discovery, Oumuamua has become a topic of fascination around the globe. Having been the first of its kind object detected near the earth, it has spawned a gamut of conspiracy theories and explanations.

The interstellar objects, similar to Oumuamua, pass through the inner solar system about once per year, but they are faint and hard to spot and have been missed until now, according to the astronomers. The survey telescopes, such as Pan-STARRS1, are now powerful enough to detect and track them. And the lack of any advanced space transportation so far makes the likelihood of deep observation of such speeding objects extremely difficult.

For now, Oumuamua is out of sight, and on the way to a new star system. And as we will keep our fingers crossed until the next interstellar guest visits us, and hopefully till then, we will be far advanced in our space infrastructure capabilities to have a good look at that one and observe it more closely.

 

letters@tehelka.com

हत्या के जुर्म में सतलोक आश्रम के बाबा रामपाल को हुई उम्रकैद

बरवाला के सतलोक आश्रम में साल 2014 में एक बच्चे और चार महिलाओं की मौत के मामले में रामपाल को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।
ख़बरों के अनुसार बाबा के बेटे विजेंद्र समेत 20 अन्य को भी हुई है उम्रकैद की सजा ।
पेशी वीडियो कान्फ्रेंसिंग के द्वारा की गई थी। कोर्ट ने सभी आरोपियों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
बरवाला के आश्रम में नवंबर 16, 2014, को हुई हिंसा में चार महिलाओं सहित डेढ़ साल की बच्चे की मौत के मामले में रामपाल के खिलाफ कार्रवाई करते हुए केस दर्ज किया गया और 11 अक्तूबर को बाबा को इस केस में आईपीसी की धारा 302, 343 व 120 बी के तहत दोषी करार दिया गया।
एक अन्य महिला की मौत के मामले  में रामपाल को कल (यानी बुधवार को) सजा सुनाई जाएगी।
मंगलवार को रामपाल का सजा सुनाए जाने के मद्देनजर हिसार को छावनी में बदल दिया गया। जिले में 10 अक्तूबर से ही धारा-144 लागू रही। सात जिलों की पुलिस फोर्स सहित 2000 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक़ दो मर्डर केस, 3 साल 10 महीने में 136 बार सुनवाई हुई।

सत्यमं शिवं सुंदरम के बहाने झलकी भारतीयता’सत्यमं शिवं सुंदरम के बहाने झलकी भारतीयता

हैदराबाद में आयोजित साहित्यिक समारोह ‘हिंदी साहित्य एक विहंगम दृष्टिÓ के बहाने एक ही राज्य से अलग दूसरे राज्य की व्यथा, दो बिछड़े हुए दिलों को जोड़ कर भारतीय एकता की एक मिसाल के तौर पर दिखी। प्रस्तुत किया तेलंगाना की ज़मीन से जुड़े रहे आन्ध्र में पदेन वरिष्ठ पुलिस महानिरीक्षक कुमार विश्वजीत उर्फ सपन ने। उन्होंने ‘फेसÓ बुक पर ‘सत्यमं शिवमं सुन्दरमÓ मंच की स्थापना की है और अब हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में पर देश भर के विभिन्न साहित्यकारों के आए विचारों को संग्रहीत करके, पुस्तक का रूप दे दिया है।

जिसका विमोचन हैदराबाद के गैं्रड होटल के सभागार में पिछले दिनों कवि गिरेन्द्र सिंह मदारिया ने किया। इस अवसर पर फेसबुक के रचनाकार साथियों में हरीओम श्रीवास्तव, विनोद सिंह नामदेव, श्रीकृष्ण बाबू, गुरुचरण मेहता, आदित्य कुमार तायल,ज्योत्सना सक्सेना, विश्वजीत सागर शर्मा, ब्रजनाथ श्रीवास्तव आदि थे।

विश्वजीत ‘सपनÓ ने आयोजन को संचालित भी किया। इन अवसर पर मंच से अपना संदेश देते हुए कवियित्री अहिल्या मिश्र ने खुद को विश्वजीत के साथ प्रांतीय संबंधों को जोड़ते बताया कि ‘मैं भी बिहारी हूं।Ó साहित्य संदर्भों को जताते हुए विश्वजीत सपन ने साफ कहा था कि मेरी दृष्टि में हर रचनाकार जब रचना करता है तो वह उसे बांटना नहीं चाहता। दु:ख पाकर दु:ख की आंच को समझना और उस आंच में तपते हृदयों के साथ ‘समवेदनाÓ स्थापित करना अलग बात है।

आन्ध्र से तेलंगाना का बंटवारा जब हुआ तो लगभग लाटरी से अधिकारियों का भी राज्यों में बंटवारा कर दिया गया। मंच पर जहां विश्वजीत सपन थे वहीं तेलंगाना एसआईटी की आईजी अभिलाषा थीं जो अपने नन्हे पुत्र के साथ श्रोताओं में थीं और पुत्र पिता से मिलने को आतुर हो रहा था। क्योंकि महीने में एक बार पिता के साथ बिताए क्षणों का आज वह साहित्य के बहाने आन्ध्र और तेलंगाना के साझा मंच पर साझा कर रहा था। इस दारूण क्षण को एक श्रोता अर्जुन सिंह ने भी महसूस किया। उन्होंने कहा कि बे्रेख्त के अनुसार ऐन फैसले के मौके पर ऐसे दृश्य कारुणिक बहुत हैं जो उदास भी करते हैं फिर भी यह यर्थात पूर्ण रचना और ममता का संगम है।

ब्रजनाथ श्रीवास्तव ने कहा कि जिन्दगी का यही यथार्थ है जो हमें एक डोर से खींचता है। यही भारतीय संवेदना है। हिंदी के महारथी कवि-आलोचक राम विलास शर्मा और आलोचक-कवि नामवर सिंह ने साहित्य में हावी हो रही अस्तित्ववादी चेतना के बरक्स कबीर के जरिए भारतीय परंपरा स्थापित की थी। जिसे काफी कुछ बदलते हुए आज संस्कृत के विद्वान और बरसों हाशिए पर बैठे रहे हिंदी के वरिष्ठ रचनाकार अब ऐतिहासिक साहित्य वारिधि बनाने में जुट गए हैं।

संस्कृत साहित्य के साहित्य मर्मज्ञों ने जहां उद्देश्य को कभी भावों की प्रस्तुति बताया तो कभी कला की अनिवार्यता। विश्वजीत सपन ने कहा, साहित्य का उद्देश्य कभी आदर्शों की स्थापना का रहा तो कभी यथार्थ का। विश्वजीत के इस बयान पर अच्छा-खासा विवाद भी छिड़ा। यह तक कहा गया कि ‘शापÓ शब्द का उदय संस्कृत साहित्य की ही देन है। छंद के बाहर की कविता यानी मुक्त छंद मुक्तिबोध की सौ साल पुरानी विशेषता है। आज के हालातों में बढ़ती कट्टरता तोड़ पाने में यही सक्षम भी है।

मंच पर जहां तेलुगु-हिंदी के रचनाकार, आन्ध्र और तेलंगाना में और देश के विभिन्न साहित्यकार पुस्तक के बहाने आपस में मिले तो उसे देख कर लगा ‘राजनीति जहां हमें तोड़ती है वहीं साहित्य जोड़ता है, बकौल विश्वजीत, इस परिदृश्य में मैं अकेला नहीं हूं, आप सब साथ हैं।

जयराम ठाकुर ने हिमाचल में सरकार बनाने की ली शपथ

जयराम के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही हिमाचल की राजनीति में नए युग का सूत्रपात हो गया। राज्यपाल देव व्रत ने जय राम को प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। रिज मैदान पर मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के अलावा कई वरिष्ठ नेता जिनमें जगत प्रकाश नड्ढा, प्रेम कुमार धूमल, शांता कुमार शामिल है, मंच पर उपस्थित थे। दिलचस्प यह है कि केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा के बिलासपुर और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कमर धूमल के हमीरपुर जिले से किसी को मंत्री नहीं बनाया गया है। मुख्यमंत्री के अलावा ११ मंत्रियों ने शपथ ली। हिमाचल में ६८ सदस्यों की विधानसभा है और इतने ही मंत्री बनाये जा सकते हैं।
धूमल के भविष्य को लेकर अभी कयास हैं। उन्हें या तो केंद्र में मंत्री या राज्यपाल बनाया जा सकता है। वे इस चुनाव में भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे लेकिन आशचर्यजनक रूप से चुनाव हार गए थे। नवनिर्वाचित मुख्‍यमंत्री जयराम ठाकुर को बुधवार राज्यपाल देवव्रत ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री इस शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद हैं। जयराम ठाकुर के साथ महेन्‍द्र सिंह, किशन कपूर, सुरेश भारद्वाज, अनिल शर्मा, सरवीन चौधरी, राम लाल मार्कण्डेय, विपिन सिंह परमार, वीरेंद्र कंवर, विक्रम सिंह, गोविंद सिंह और राजीव सहजल ने भी मंत्री पद की शपथ ली। भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को हराकर सत्ता हासिल की है। भाजपा ने 68 सदस्यीय विधानसभा में दो-तिहाई बहुमत के करीब 44 सीटें हासिल की है। कांग्रेस ने 21 सीटों पर जीत हासिल की है।
जयराम ठाकुर के शपथ लेते ही वहां जय श्रीराम के नारे लगने लगे। रिज पर बड़ी संख्या में भाजपा समर्थक उपस्थित थे और मोदी मोदी के अलावा जय श्री राम के नारे लगा रहे थे।
मुख्यमंत्री के बाद मोहिंदर सिंह ठाकुर ने मंत्री पद की शपथ ली। मंडी की धरमपुर सीट से विधायक बने. साल 1990 से लगातार सातवीं बार विधायक बने हैं। इनका पांच अलग-अलग दलों से जीतने का रिकॉर्ड है. साथ ही ये सीएम जयराम ठाकुर के भी बेहद करीबी हैं। किशन कपूर ने मंत्री पद की शपथ ली. वो दो बार हिमाचल सरकार में मंत्री रह चुके हैं। सुरेश भारद्वाज ने मंत्री पद की शपथ ली. वो शिमला शहरी सीट से विधायक बने। इससे पहले वो राज्यसभा सांसद थे। जबकि 1997, 2007 और 2012 में भी विधायक रह चुके हैं।
अनिल शर्मा ने मंत्री पद की शपथ ली। शर्मा मंडी सीट से विधायक हैं. वो 2017 के हिमाचल चुनाव से पहले ही बीजेपी में शामिल हुए थे. ये तीन बार विधायक और एक बार राज्यसभा सांसद रह चुके हैं।
सरवीन चौधरी ने मंत्री पद की शपथ ली. वो शाहपुर सीट से चुनाव जीतीं हैं. सरवीन शाहपुर से 2007 से लगातार विधायक हैं. धूमल सरकार में सामाजिक न्याय मंत्री भी रह चुकी है।
रामलाल मार्कण्डेय ने मंत्री पद की शपथ ली. वो लाहौल स्पीति सीट से विधायक बने हैं. 1998 और 2007 में भी विधायक बन चुके हैं. 1998 में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं।
विपिन परमार ने मंत्री पद की शपथ ली. वो सुल्लाह विधानसभा सीट से चुनाव जीते हैं। दो बार हिमाचल बीजेपी के महासचिव रहे हैं। कांगड़ा-चंबा बीजेपी युवा मोर्चा के अध्यक्ष हैं। वीरेंद्र कंवर ने मंत्री पद की शपथ ली. वो ऊना की कुटलेहड़ सीट से चुनाव जीते हैं। २००३ से लगातार विधायक चुने गए हैं। साथ ही धूमल के लिए सीट छोड़ने को तैयार थे।
विक्रम सिंह ने मंत्री पद की शपथ ली. वो जसवां प्रागपुर सीट से विधायक हैं. 2003-2012 में विधायक चुने जा चुके हैं। गोविंद ठाकुर ने संस्कृत में मंत्री पद की शपथ ली। वो कुल्लू की मनाली सीट से चुनाव जीते हैं. लगातार तीसरी बार विधायक बने हैं. गोविंद ठाकुर पूर्व मंत्री कुंज लाल ठाकुर के बेटे हैं। राजीव सैजल ने मंत्री पद की शपथ ली। वो सोलन की कसौली सीट से चुनाव जीते हैं. कसौली सीट से लगातार तीसरी बार विधायक बने हैं. सैजल अनुसूचित जाति से हैं।

‘हम छू गुजरात, हम छू विकास!’

देश के चुनाव आयोग ने 16 अक्तूबर को हिमाचल प्रदेश के मतदान की घोषणा की लेकिन गुजरात के चुनावों की घोषणा अर्से बाद की। इस दौरान भाजपा ने पंद्रह दिन की गौरव यात्रा निकाली इसमें राज्य के 182 निर्वाचन क्षेत्रों में 149 निर्वाचन क्षेत्रों में यह यात्रा गई। इन गौरव यात्राओं में हल्ला-हंगामा काफी रहा। अगस्त महीने में कांग्रेस के अहमद पटेल ने जीत हासिल की। यह गुजरात के लोगों को याद है। सूरत के व्यापारियों को जीएसटी के कारण खासी मुसीबतें झेलनी पड़ी, इसलिए वे सड़क पर उतरे। उधर पार्टी अध्यक्ष के पुत्र की कमाई से भी विपक्ष को अपनी बात जनता के बीच रखने का मौका मिला।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने 150 से 180 सीट हासिल करने का लक्ष्य रखा है। नरेंद्र मोदी राज्य में मुख्यमंत्री नहीं है अब भाजपा के नेताओं व कार्यकर्ताओं के सामने खासी बड़ी चुनौती है। पूरी ताकत से अमित शाह पार्टी कार्यकर्ताओं में जान फूंक रहे हैं। राज्य में 1985 में जब माधव सिंह सोलंकी मुख्यमंत्री थे तब कांग्रेस को 149 सीट मिली थी। इस बार अमित का ध्यान राज्य में डेढ़ सौ सीट जीत लेने का है।
भाजपा गुजरात में 1995 से बिना रुके जीतती ज़रूर रही लेकिन कभी 127 सीट से ज्य़ादा नहीं पा सकी। जब 2002 में दंगे हुए तो गुजरात में 127 सीट मिली। पिछली बार 2012 में जब मोदी ने आखिरी बार बतौर मुख्यमंत्री चुनाव लड़ा तो पार्टी को 115 सीटें हासिल हुई। हार के बाद भी कांग्रेस ने कभी अपना 38 फीसद का वोट बैंक नहीं छोड़ा भले ही नरेंद्र मोदी सत्ता प्रमुख रहे हों।
गुजरात के वर्तमान मुख्यमंत्री विजय रूपानी औसतन हर महीने एक परियोजना घोषित करते रहे हैं। अपनी दो दिनों की वडनगर और भड़ौच की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने भी 10,800 करोड़ की योजनाओं की घोषणा की। जनवरी में औसतन हर महीने राज्य में बड़े और भाजपा के नेता लगातार यात्राएं करते रहें हैं। इनमें केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी, उमा भारती और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, योगी आदित्यनाथ शामिल हैं।
गुजरात को जीतना भाजपा के लिए गौरव की बात है। इस मकसद को कामयाब करने के लिए 2010 में केंद्रीय नेता सुषमा स्वराज, अरूण जेटली, नीतिन गडकरी ने भी नरेंद्र मोदी का साथ दिया और इन सबने म्यूनिसपल कॉरपोरेशन के लिए प्रचार किया। इन लोगों ने 2012 में विधानसभा चुनाव में जीत के लिए भी खासा प्रचार किया।
इधर अमित शाह के विश्वस्त सहयोगी भूपेंद्र यादव, प्रदीप सिंह जडेजा और जीतू वघानी (राज्य भाजपा प्रमुख) मोदी ने केंद्रीय मंत्री अरूण जेटली और निर्मला सीतारमण के नेतृत्व में वार रूम बनाया है।
भाजपा ने राज्य में बुलेट ट्रेन की घोषणा करके और जापान के प्रधानमंत्री शिंजोआबे के साथ गुजरात की धरती पर सारे समझौते और घोषणाएं करके राज्य की जनता को रिझाया। तब भाजपा को यह यकीन हुआ कि गुजरात निवासियों के लिए यह खास उपयोगी होगा। जनता में खासी व्यग्रता भी नज़र आई।
तभी विकास गाडो थायो छे का प्रचार भी शुरू हुआ। युवाओं की ओर से आए इस नारे पर अमित शाह खासे नाराज भी दिखे। उन्होंने एक बैठक में कहा कि नौजवानों को अपने दिमाग से भी सोचना चाहिए। सब कुछ वाट्स एप से नहीं सीखना चाहिए। पहली बार पार्टी को भी लगा कि राज्य में बुलेट ट्रेन लाने का फैसला चुनाव प्रचार में मुफीद नहीं जान पड़ रहा है।
पाटीदार आंदोलन समिति (पीएएस) के मीडिया संयोजक वरूण पटेल ने कहा विकास गाडो थायो छे की बात सागर सांवलिया (एक पाटीदार युवा) की थी। इसे आंदोलनकारी पाटीदारों ने उठा लिया। बाद में यह कांग्रेस को भी उचित जान पड़ा। वीडियो और फोटो से जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स)और विमुद्रीकरण पर नाराज़गी दिखाई देने लगी। वस्त्र व्यवसायियों ने पूरे एक महीने तक हड़ताल की। लगभग डेढ़ हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। इसमें बड़ी तादाद में उत्तर भारतीय भी थे। इस हड़ताल से यह भ्रम भी टूटा कि पारंपरिक तौर पर व्यापारी भाजपा समर्थक रहता है। नरेंद्र मोदी ने इस नाराजगी को दूर करने के लिए सूरत से बिहार तक के लिए एक साप्ताहिक ट्रेन भी चलवाई। इसके बाद भी व्यापारियों का गुस्सा थमा नहीं। उन्होंने मांग की, जीएसटी का फिर संशोधन किया जाए। केंद्र सरकार ने वह भी किया लेकिन मसला ज्य़ादा शांत नहीं हुआ।
पार्टी ने उन जिलों में जीत की संभावना की तलाश की जहां नर्मदा का पानी जाता है। नरेंद्र मोदी ने सरदार सरोवर बांध का बहुप्रचारित उद्घाटन कर दिया। लेकिन इतने साल बाद भी नर्मदा का पानी जि़ले-जि़ले में पहुंचाने के लिए नहरों का जाल ही नहीं बन सका है। इसके चलते गुजरात के किसान भी बहुत उत्साहित नहीं दिखे।
अभी पिछले महीनों से सरकार ने घोषित किया कि स्थायी कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग के तहत भत्ते, सुविधाएं दी जाएंगी। भाजपा के राज्य सचिव भूपेंद्र यादव ने कहा कि राज्य में कांग्रेसी और भाजपाई राज का तुलनात्मक अध्ययन करके यह जानकारी जनता को दी जाएगी कि कृषि, उद्योग, शिक्षा और कानून व्यवस्था में कितनी उपलब्धि हुई।
हालांकि जीएसटी से व्यापारियों के हाथ निराशा लगी है जो भाजपा का समर्थक तबका रहा है। फिर भी पार्टी नेतृत्व का मानना है कि इसका कोई खास असर नहीं पड़ेगा। जल्दी ही कुछ नई योजनाएं जारी की जाएंगी। पार्टी नेता यह बताते हैं कि अमित शाह को पूरा भरोसा है कि पार्टी को लाभ ही होगा। हालांकि भाजपा कार्यकर्त्ताओं और नेताओं में बेचैनी ज़रूर है। उन्हें यकीन है कि भाजपा कार्यकर्ताओं की तैयारी अच्छी है और इसका असर भी ठीक ही पड़ेगा।
गुजरात भाजपा प्रमुख जीतू वघानी यह नहीं मानते कि भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं पर मोदी की यात्राओं से निराशा बढ़ी है। वे कहते हैं नरेंद्र मोदी गुजरात के ही बेटे हैं वे जब भी राज्य में आते हैं तो लाभ लाते हैं। पूरे राज्य के लिए कल्याण की बात करते हैं। इसलिए हम हमेशा उनकी यात्राओं के पक्ष में रहते हैं।
विकास पर भाजपा की खासी खिंचाई होती रहती है। जाति समीकरणों का जो हाल है उसे लेकर भी भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय बड़े नेता खासे चिंतित हैं। गुजरात में तकरीबन बारह फीसद मताधिकार की वोट हिस्सेदारी पाटीदारों की है जो आरक्षण में हिस्सेदारी चाहते हैं और सामाजिक हिस्सेदारी के अनुरूप भागीदारी के पक्ष में है।
जब 1980 के दशक में पाटीदारों ने कांग्रेस की बजाए भाजपा से संबंध बनाने शुरू किए, तो माधव सिंह सोलंकी के राज को ग्रहण लगना शुरू हो गया था। सोलंकी ने तब ओबीसी को आरक्षण और बाद में केएचएएम (क्षत्रिय-हरिजन-आदिवासी- मुसलिम) का खाम नामक वोट बैंक तैयार किया।
युवा नेता हार्दिक पटेल ने जुलाई 2015 में राजनीतिक शुरूआत की और पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग की। भाजपा ने काफी समय तक अनसुनी की फिर बातचीत में उलझाया जिसके चलते हुए दंगा फसाद में दस लोग मारे गए। हार्दिक गिरफ्तार किए गए। अदालत ने हार्दिक पर छह माह की निषेधाज्ञा लगा दी लेकिन मामला सुलझा नहीं। पार्टी के प्रति पाटीदारों में सहयोग घट रहा है। यह समुदाय मोदी के पुराने प्रतिद्वदी केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी (जीपीपी) की 2012 में समर्थक था। हालांकि इसे सिर्फ दो सीटें ही मिली। उसके बाद जीपीपी का विलय भाजपा में ही हो गया।
हार्दिक अभी पच्चीस साल के भी नहीं हैं। इसलिए वे चुनाव नहीं लड़ सकते लेकिन सौराष्ट्र, सूरत, और उत्तर गुजरात के मेहसाणा और पाटण में उनका पाटीदारों में खासा प्रभाव है। वे पूरे राज्य का दौरा करते हैं। उन्हें सुनने के लिए खासा बड़ा समुदाय एकजुट होता है।
अब भाजपा ने पीएएएस के खिलाफ लगे मुकदमे उठाने शुरू कर दिए हैं। गृह राज्यमंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने अभी हाल में यह कहा भी कि इस समुदाय के प्रति उनकी यह एक राजनीति है। राज्य सरकार ने एक निगम बना दिया है जो अनारक्षित श्रेणियों के मामलों की छानबीन करेगा। एक आयोग भी बना है जो पीएएएस पर हुई पुलिस ज्य़ादातियों की पड़ताल करेगा। अभी हाल में मोदी ने हरिद्वार में एक आश्रम का उद्घाटन किया जहां कडवा पाटीदार समुदाय के तीर्थयात्री जाकर रह सकेंगे।
गुजरात की राजनीति में अकेले हार्दिक ही युवा, नेता नहीं है। इनके अलावा दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और ओबीसी के युवा नेता अल्पेश ठाकोर भी हैं। मेवाणी ने जबसे दलितों के लिए आत्म सम्मान आंदोलन छेड़ा तब से वे चर्चा के केंद्र में हैं। पिछले साल ऊना में दलितों की पिटाई के खिलाफ उन्होंने यह आंदोलन छेड़ा था। ठाकोर ओएसएस (ओ बीसी, एससी और एसटी) के संस्थापक भी हैं। उन्होंने खुद को दबे-कुचले समुदायों की आवाज बनाया जब राज्य में पाटीदारों के आरक्षण की मांग ने जोर पकड़ा।
हार्दिक से जिस तरह राज्य सरकार डरती दिखती हैं उतना उसे मेवाणी से डर नहीं लगता। क्योंकि राज्य की जनसंख्या में दलित सिर्फ सात या आठ फीसद ही है और इन्होंने कभी संगठित तौर पर बतौर ब्लाक या एकजुट होकर एक नेता का साथ नहीं दिया।
राज्य में ओबीसी ज़रूर महत्वपूर्ण है वे तकरीबन चालीस फीसद हैं। भाजपा की इन पर नज़र है। पिछले महीने शाह ने ओबीसी के साथ अपनी बैठक रद्द कर दी थी क्योंकि जब वह बैठक होनी थी तभी उन्हें बतौर गवाह पूर्व- मंत्री माया कोडनानी के एक अदालती मामले में पेश होना था। माया 2002 के नरोदा गाम मामले में फंसी थी। पार्टी ने तब राज्य में भारी बारिश होने के तर्क को आधार बनाकर बैठक के न हो पाने का तर्क दिया। सरकार को अभी किसानों के बीच अपनी पैठ जमानी है।
उधर कांग्रेस की नज़र राज्य को राजनीतिक गुणा भाग पर है। एक सूत्र के अनुसार हार्दिक के साथ कांग्रेस की रजामंदी हो गई है। यह कराने में दूसरे बड़े पाटीदार नेताओं ने भूमिका निभाई। वैसे भी इस आंदोलन को चलाए रखने वाली समिति में छह लोग युवा कांग्रेसी हैं और अन्य कांग्रेस के ही हैं। वरूण पटेल और रेशमा पटेल जैसे लोग भाजपा में जरूर चले गए पर वह रणनीती भी हो सकती है। ये भी आने वाले चुनावों में दस सीटों पर चुनाव भी लड़ते दिखेंगे। एक कांग्रेसी नेता ने नाम न देते हुए बताया।
मेवाणी से भी बातचीत हो रही है जो खुद को ठाकुर-ब्राहमण विरोधी बताते हैं। हालांकि ठाकोर में मेल-मिलाप की संभावना मेवाणी की तुलना में ज्य़ादा है। ठाकोर ने अपनी ओर से एक मांगपत्र भी दे रखा है।
भाजपा हार्दिक, मेवाणी और ठाकोर को अवसरवादी कहती है साथ इनके पीछे कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराती है। मेवाणी और ठाकोर को वह अवसरवादी कहती है। इसे ओबीसी का भरोसा है। गुजरात में कोली- तकरीबन सोलह फीसद हैं। ओबीसी में सबसे बड़ी उपजाति यह मानी जाती है। इन्ही कोली ने रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति होने पर उल्लास जताया था।
इसके अलावा भाजपा आदिवासियों को साथ लेने की कोशिश में है जिनकी 14 फीसद तादाद है। ‘आदिवासी विकास गौरव यात्रा में उनके गौरव और विकास पर फोकस भी था। भूपेंद्र यादव का कहना था कि उप चुनाव में भाजपा को छह में कामयाबी मिली। स्थानीय निकायों में भी यह कामयाब नही। कांग्रेस ने जन विरोध किया है। कांग्रेस ने ही नेशनल कमीशन फार बैकबर्ड क्लासेज विधेयक रोका। अन्यथा इसका लाभ गुजरात के लोगों को मिलता।
राहुल की नवसृजन यात्रा का पहला दौर गुजरात के त्यौहार नवरात्रि के दौरान हुआ। जिसमें युवक और युवतियां आपस में मिलते हैं। राहुल ने अपने व्यवहार, मिलनसारिता से यह जता दिया है कि वे आलोचना, असंतोष पर भी काफी सहज हैं। हालांकि भाजपा उन्हें नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं गंवाती। राहुल का यह कहना है कि उन्होंने किसी महिला को आरएसएस की शाखा में जाते नहीं देखा। उनकी इस आलोचना पर मतदाताओं में निराशा जनक प्रतिक्रिया नहीं हुई।
गुजरात के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अर्जुन मोधवाडिया ने कहा कि राहुल की शैली बहुत बदली हुई है। भाजपा को धु्रवीकरण का मौका नहीं मिल रहा है। राहुल जमीनी मुद्दों मसलन रोज़गार, भ्रष्टाचार ही उठा रहे हैं। यदि कांग्रेस अपना चुनाव प्रचार ऐसे ही सतर्कता से करती रही और किसान, युवाओं और महिलाओं पर केंद्रित रही तो नतीजा अच्छा होगा। कांग्रेस ने किसानों का मांग पत्र अभियान भी छेड़ रखा है। बेरोज़गारी भत्ते की बात कही है।
पर कांग्रेस में आंतरिक कलह बहुत है। स्थानीय नेता मीडिया की ही तरह भाजपा सरकार और उसके मंत्रियों के खिलाफ बोलने से बचते हैं।

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फोटोः  तहलका आर्काइव
फोटोः तहलका आर्काइव

क्या है मामला?
दिल्ली विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत से आम आदमी पार्टी (आप) 24 फरवरी, 2015 को सत्ता में आई. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 15 मार्च, 2015 को अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था. इसके बाद राष्ट्रपति और चुनाव आयोग के पास एक शिकायत आई जिसमें कहा गया था कि यह पद ‘लाभ का पद’ है इसलिए आप विधायकों की सदस्यता रद्द की जानी चाहिए. हालांकि संसदीय सचिव बनाए जाने का यह पहला मौका नहीं था. परेशानी पद के नाम के साथ जुड़ी एक तकनीकी बाधा मात्र है. बाद में सरकार ने दिल्ली विधानसभा सदस्यता अयोग्यता निवारण संशोधन अधिनियम, 2015 विधानसभा से पारित कर दिया. इसमें संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान था. जिसे 13 जून, 2016 को राष्ट्रपति ने मंजूरी देने से इनकार कर दिया. अब इस मामले का फैसला चुनाव आयोग को करना है. मौजूदा विवाद यहीं से शुरू हुआ जिसमें केजरीवाल पर विपक्ष ने आरोप लगाया कि विधायकों को सत्ता सुख मुहैया कराने की जल्दी में उन्होंने कानूनी प्रक्रिया का पालन करना भी मुनासिब नहीं समझा.

क्या है संवैधानिक प्रावधान?
संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (अ) और 191 (1) (अ) के अनुसार संसद या फिर विधानसभा का कोई भी सदस्य अगर लाभ के किसी भी पद पर होता है उसकी सदस्यता जा सकती है. दिल्ली एमएलए (रिमूवल आॅफ डिसक्वालिफिकेशन) एेक्ट, 1997 के मुताबिक, संसदीय सचिव को भी इस लिस्ट से बाहर नहीं रखा गया है. यानी इस पद पर होना ‘लाभ का पद’ माना जाता है. दिल्ली सरकार ने 1997 में इसमें पहला संशोधन करके खादी ग्रामोद्योग बोर्ड और दिल्ली महिला आयोग के अध्यक्ष को लाभ के पद से बाहर कर दिया. 2006 में दूसरा संशोधन करके पहली बार मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव सहित दस अन्य पदों को लाभ के पद के दायरे से बाहर किया गया. इसके बाद साल 2015 में केजरीवाल सरकार ने संशोधन प्रस्ताव के मार्फत मुख्यमंत्री और मंत्रियों के संसदीय सचिव शब्द जोड़ने की कोशिश की थी जिसे राष्ट्रपति ने अस्वीकार कर दिया.

विधायकों के सामने क्या विकल्प?
विधेयक पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से इनकार के बाद आप के 21 विधायकों की सदस्यता पर सवाल खड़े हो गए हैं. ऐसे में सभी विधायकों की सदस्यता रद्द हो जाएगी, जिसके बाद इन 21 सीटों पर दोबारा चुनाव कराया जा सकता है. जानकारों का कहना है कि अभी आप के पास समय है कि अपनी बात रखने के लिए वह अदालत का दरवाजा खटखटाए. वहीं लाभ के पद के मामले में चुनाव आयोग से शिकायत करने वाले वकील प्रशांत पटेल का कहना है कि लाभ के पद का मतलब केवल यह नहीं है कि आप सैलरी ले रहे हैं या नहीं. आप ऑफिस ले रहे हैं, तो यह भी उस परिभाषा में आता है. उन्होंने भाजपा से अपने किसी भी तरह के संबंध होने के आरोपों से इनकार किया है.

एस्सार पर मंत्रियों व ब्यूरोक्रेटों के फोन टेप करने का आरोप

स्टील, ऊर्जा समेत कई बड़े प्रोजेक्टों में निवेश करने वाले एस्सार ग्रुप पर 2001 से 2006 के बीच कई बड़े नेताओं समेत जानी-मानी हस्तियों के फोन टेप करने का आरोप लगा है. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक जिन लोगों के फोन टेप होने की शिकायत पीएमओ से की गई है उसमें कई कैबिनेट मंत्रियों समेत मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी और कई बड़े ब्यूरोक्रेटों के नाम शामिल हैं. रिकॉर्ड हुई बातचीत में सरकार और उद्योग घरानों के बीच की सांठगांठ भी उजागर होने का दावा किया जा रहा है. इस रिकॉर्डिंग के बारे में शिकायत करने वाले शख्स सुरेन उप्पल हैं जो सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं. एक जून, 2016 को इसकी शिकायत की गई. शिकायत के अनुसार जिन लोगों का फोन टेप किया गया उसमें रेल मंत्री सुरेश प्रभु, पूर्व मंत्री प्रफुल्ल पटेल, राम नाइक, मुकेश अंबानी, उनकी पत्नी टीना अंबानी, प्रमोद महाजन और अमर सिंह भी शामिल हैं. इसमें गृह सचिव राजीव महर्षि, आईडीबीआई के चेयरमैन पीपी वोहरा, आईसीआईसीआई के पूर्व एमडी और सीईओ कीवी कामथ का भी नाम है.