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अगले भाजपा अध्यक्ष के लिए आर एस एस ने सजा दियामंच

27 राज्य इकाइयों में अध्यक्षों की नियुक्ति के साथ भाजपा ने अपने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्वाचन के लिए प्रमुख आवश्यकता पूरी कर ली है। लेकिन संख्या से अधिक महत्वपूर्ण है यह संकेत – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अब पुनः संगठनात्मक निर्णयों में प्रमुख भूमिका में लौट आया है। अधिकांश नए राज्य अध्यक्ष या तो लंबे समय से संघ प्रचारक रहे हैं या अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जैसे संघ संगठनों से राजनीति में आए हैं। महाराष्ट्र में रविंद्र चव्हाण, मध्य प्रदेश में हेमंत खंडेलवाल और बंगाल में सामिक भट्टाचार्य निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं, जो सभी कम चर्चित और संघ के प्रति निष्ठावान हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पीवीएन माधव और एन. रामचंदर राव जैसे पूर्व विधान परिषद सदस्य भी चुने गए, जहां जातीय समीकरणों की परवाह किए बिना वैचारिक दृढ़ता को प्राथमिकता दी गई।

यह रुझान स्पष्ट है। हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में गुटबाजी को नियंत्रित करने के लिए भाजपा ने संघ का सहारा लिया है। संघ की पसंद ने फिलहाल आंतरिक खेमों को शांत कर दिया है क्योंकि आरएसएस की मुहर वाली नियुक्तियों पर कोई सवाल नहीं उठाता। राज्यों में संघ की यह सक्रियता अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति की भूमिका के रूप में देखी जा रही है। पार्टी सूत्रों का मानना है कि अंतिम निर्णय में प्रधानमंत्री मोदी की सहमति निर्णायक होगी, लेकिन नया अध्यक्ष लगभग निश्चित रूप से संघ की पृष्ठभूमि से होगा।

जेपी नड्डा का कार्यकाल समाप्त हो रहा है और पार्टी ऐसा अध्यक्ष नियुक्त करना चाहती है जिसमें वैचारिक प्रतिबद्धता एवं संगठनात्मक अनुशासन दोनों हों। राज्यों में आरएसएस द्वारा की गई नियुक्तियों से स्पष्ट है कि राष्ट्रीय नेतृत्व भी इसी सोच का अनुसरण करने वाला होगा – अनुशासित, निष्ठावान और संघ-संस्कारित। औपचारिक घोषणा शीघ्र होने की संभावना है, लेकिन दिशा तय हो चुकी है, भाजपा का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष संघ का आदमी होगा।

पश्चिम बंगाल बीजेपी में बदलाव की बयार, दिलीप घोष की फिर होगी सशक्त वापसी?

अंजलि भाटिया
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल बीजेपी के नए अध्यक्ष शमिक भट्टाचार्य के कार्यभार संभालने के बाद से पूर्व अध्यक्ष दिलीप घोष के साथ पार्टी के रिश्ते अब पहले की तुलना में काफी सहज और सामान्य हो गए हैं.सूत्रों की मानें तो इस सकारात्मक बदलाव के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
इतना ही नहीं, संघ के सक्रिय हस्तक्षेप से दिलीप घोष को पार्टी में एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपने की तैयारी भी शुरू हो गई है।
दिल्ली के एक वरिष्ठ भाजपा सांसद ने इस बारे में कहा की
“संघ इस पूरे विषय को गंभीरता से देख रहा है और बातचीत जारी है
शुभेंदु अधिकारी और सुकांत मजूमदार के दौर में जब दिलीप घोष संगठन में हाशिए पर चले गए थे, तब पार्टी में अंदरूनी असंतोष साफ झलकने लगा था। लेकिन अब शमिक भट्टाचार्य के अध्यक्ष बनने के बाद दिलीप घोष के साथ पार्टी की दूरी कम हुई है। सूत्र बताते हैं कि संघ के दबाव में घोष को फिर से दोबारा पार्टी में प्रभावशाली भूमिका मिलने जा रही है।
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने इस पूरे घटनाक्रम पर खुलकर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा,जिस बंगाल बीजेपी को मैंने अपनी मेहनत से खड़ा किया, उसे कुछ बाहरी लोगों के कहने पर क्यों छोड़ूं?
सूत्रों के मुताबिक, दिलीप घोष ने बंगाल बीजेपी प्रभारी शिव प्रकाश से मुलाकात कर अपनी नाराज़गी भी जाहिर की है। और कुछ नेताओं पर उन्हें जानबूझकर हाशिए पर धकेलने का भी सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया है।
वहीं, नए प्रदेश अध्यक्ष शमिक भट्टाचार्य ने इस विषय पर संकेत देते हुए कहा,
“जो लोग पहले दूर चले गए थे, वे फिर से लौटकर आएंगे। मेरा और दलीप दा का संबध बहुत पुराना है।
दायित्व संभालने के बाद शमिक भट्टाचार्य ने दिल्ली में संसदीय समिति की बैठक में भाग लिया, और गुरुवार रात उन्होंने संगठन के अहम नेता सुनील बंसल और विनोद तावड़े से मुलाकात की।
शमिक भट्टाचार्य ने पहले ही साफ कर दिया है कि वह पार्टी की परंपरा के अनुसार एक नई राज्य कमेटी बनाएंगे, जिसमें 50% नए चेहरे और 50% पुराने नेताओं को जगह दी जाएगी।
राज्य बीजेपी ने 2026 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। शमिक भट्टाचार्य ने कहा, पिछले छह महीने से केंद्र के निर्देशानुसार बंगाल में योजनाबद्ध तरीके से काम हो रहा है और हम उसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।”
उन्होंने यह भी दावा किया, बिना अल्पसंख्यक वोट के भी बीजेपी बंगाल में सत्ता में आ सकती है। हमारा मकसद किसी धर्म के बीच विभाजन करना नहीं है। कई मुस्लिम समुदाय के प्रगतिशील और खुले विचारों वाले मुस्लिम समुदाय के लोग भी हमारे साथ हैं।

अहमदाबाद-मुंबई हाई स्पीड कॉरिडोर पर चलेगी स्वदेशी वंदे भारत, रफ्तार होगी 250 किमी प्रति घंटा

देश की पहली अति-आवश्यक और महत्वाकांक्षी परियोजना अहमदाबाद-मुंबई हाई स्पीड रेल कॉरिडोर पर अब जापानी बुलेट ट्रेन की जगह स्वदेशी तकनीक से विकसित सेमी हाई स्पीड वंदे भारत ट्रेन दौड़ेगी। यह भारतीय रेलवे की पहली ऐसी वंदे भारत ट्रेन होगी, जिसकी अधिकतम रफ्तार 250 किलोमीटर प्रति घंटा होगी।
रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, सूरत से बलसाड़ (बलिमोरा) तक के 50 किलोमीटर सेक्शन का कार्य लगभग पूर्णता के चरण में है, और इस पर साल के अंत तक ट्रायल रन शुरू कर दिया जाएगा। उम्मीद है कि 2027 तक इस रूट पर आम जनता वंदे भारत (सिटिंग) ट्रेन से यात्रा कर सकेगी।
इस सेक्शन पर आठ-आठ कोच की दो वंदे भारत ट्रेनें संचालित की जाएंगी, जिनकी अधिकतम तकनीकी रफ्तार 280 किलोमीटर प्रति घंटा होगी, लेकिन व्यावसायिक गति 250 किमी/घंटा तय की गई है।
इन उन्नत ट्रेनों के निर्माण का कार्य भारत सरकार की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बीईएमएल (भारत अर्थ मूवर लिमिटेड) को सौंपा गया है। डिजाइन प्रक्रिया अंतिम चरण में है। दो ट्रेनें (कुल 16 कोच) तैयार करने में कुल लागत लगभग 768 करोड़ रुपये (प्रति कोच 48 करोड़ रुपये) आएगी। इन ट्रेनों में कैब सिग्नलिंग सिस्टम होगा, जिससे ये जापानी तकनीक वाले हाई स्पीड ट्रैक पर भी दौड़ने में सक्षम होंगी।
भारत सरकार द्वारा स्वदेशी विकल्प को प्राथमिकता देने के रुख को देखते हुए, जापान सरकार ने भारतीय रेलवे को दो पुरानी बुलेट ट्रेनें निःशुल्क देने का प्रस्ताव रखा है। इस पर फिलहाल दोनों देशों के बीच बातचीत जारी है।
सूत्रों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर यह सहमति बन चुकी है कि 250 किमी/घंटा की रफ्तार हाई स्पीड ट्रेनों के लिए उपयुक्त और व्यावहारिक है। इसी आधार पर स्वदेशी बुलेट ट्रेन का डिजाइन वंदे भारत के प्लेटफॉर्म पर तैयार किया जा रहा है। इस गति के अनुकूल रेलवे द्वारा नई टक्कर-रोधी तकनीक ‘कवच 5.0’ भी विकसित की जा रही है।

भारतीय एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला 14 जुलाई को धरती पर लौटेंगे

भारतीय एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला 14 जुलाई को धरती पर लौटेंगे। अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA ने इसके बारे में अपडेट दी है। एक्सियम-4 मिशन के तहत शुभांशु सहित चार क्रू सदस्य इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पहुंचे थे।

एक्सियम मिशन को 25 जून को फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया था। ड्रैगन अंतरिक्ष यान 28 घंटे की यात्रा के बाद 26 जून को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर डॉक किया गया था। हालांकि यह मिशन 14 दिनों का था। अब एस्ट्रोनॉट की वापसी चार दिन देरी से होगी।

इससे पहले 6 जुलाई को शुभांशु के ISS स्टेशन से कुछ तस्वीरें सामने आईं थीं। जिसमें शुभांशु कपोला मॉड्यूल के विंडो से पृथ्वी देखते नजर आ रहे थे। कपोला मॉड्यूल एक गुंबदनुमा ऑब्जर्वेशन विंडो है, जिसमें 7 खिड़कियां होती हैं।

अच्छा काम करने वालों को मिलेगा मौका, लापरवाही पर लगेगी रोक

अंजलि भाटिया
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने अब राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं की डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) बनाने वाली कंसल्टेंट कंपनियों की रेटिंग कराने का फैसला किया है। इसका मकसद है,जो कंपनियां बेहतर काम करें, उन्हें आगे बढ़ाया जाए, और जिनका काम कमजोर हो, उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाए।
सरकार को अक्सर ये शिकायत मिलती रही है कि डीपीआर में गलतियां होती हैं, जिससे हाईवे प्रोजेक्ट्स पर्यावरण मंजूरी, वन विभाग की अनुमति और भूमि अधिग्रहण जैसे मामलों में फंस जाते हैं। इससे प्रोजेक्ट की लागत भी बढ़ जाती है और समय भी खराब होता है।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने 7 जुलाई को इस रेटिंग सिस्टम का ड्राफ्ट तैयार कर हितधारकों से सुझाव मांगे हैं। सुझाव मिलने के बाद इस व्यवस्था को लागू कर दिया जाएगा। डीपीआर तैयार करने वाली कंपनियों को 1 से 5 तक की रेटिंग दी जाएगी। ये रेटिंग कई बातों को ध्यान में रखकर तय की जाएगी, हाईवे का सही एलाइनमेंट, समय पर पर्यावरण और वन मंजूरी और जमीन अधिग्रहण की स्थिति और बिजली के पोल, तार, ट्रांसफॉर्मर जैसी जनसुविधाएं। अगर कंपनी की बनाई डीपीआर में प्रोजेक्ट की लागत टेंडर के मुकाबले 0.5% के भीतर रहती है, तो उसे पूरे अंक मिलेंगे। लेकिन अगर लागत का अंतर ज्यादा हुआ, या मंजूरी में देर लगी, तो कंपनी की रेटिंग घटती जाएगी।
जिन कंपनियों की रेटिंग लगातार खराब रहेगी, उन्हें भविष्य में नए डीपीआर प्रोजेक्ट्स मिलने में दिक्कत आएगी। वहीं, अच्छा काम करने वाली कंपनियों को प्राथमिकता दी जाएगी।
रेटिंग की प्रक्रिया हर साल दो बार 30 मार्च और 30 सितंबर तक की जाएगी।
डीपीआर किसी भी राजमार्ग प्रोजेक्ट की रीढ़ होती है। इसमें छोटी-छोटी चूक से पूरा प्रोजेक्ट अटक सकता है। सरकार की यह पहल प्रोजेक्ट्स को समय पर और तय बजट में पूरा करने की दिशा में बड़ा कदम मानी जा रही है।

किसानों पर बढ़ता कर्ज का बोझ, 12.19 लाख करोड़ रुपये सबसे ज़्यादा कर्ज महाराष्ट्र के किसानों पर

नई दिल्ली:  म्यूचुअल फंड सिस्टेमेटिक इंवेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के तहत जून महीने में निवेश 27,269 करोड़ रुपए के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया, जो मई के 26,688 करोड़ रुपए से 2 प्रतिशत अधिक है। यह जानकारी बुधवार को जारी एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एएमएफआई) के आंकड़ों से मिली।

यह पहली बार है जब एसआईपी निवेश 27,000 करोड़ रुपए के आंकड़े को पार कर गया है।

एएमएफआई के आंकड़ों के अनुसार, म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री की कुल एसेट्स अंडर मैनेजमेंट (एयूएम) बढ़कर 74.41 लाख करोड़ रुपए के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई, जबकि मई में यह 72.20 लाख करोड़ रुपए और अप्रैल में 69.99 लाख करोड़ रुपए थी।

मई में 29,572 करोड़ रुपए के निवेश की तुलना में जून में कुल म्यूचुअल फंड निवेश मासिक आधार पर 67 प्रतिशत बढ़कर 49,301 करोड़ रुपए हो गया।

जून में इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश 24 प्रतिशत बढ़कर 23,587 करोड़ रुपए हो गया। ईएलएसएस फंड को छोड़कर सभी इक्विटी कैटेगरी में निवेश हुआ।

इक्विटी कैटेगरी में, लार्ज कैप फंड ने जून में 1,694 करोड़ रुपए के निवेश के साथ बढ़त हासिल की, जो पिछले महीने के 1,250.5 करोड़ रुपए से 35 प्रतिशत अधिक है।

स्मॉल कैप फंड में 4,024.5 करोड़ रुपए का निवेश हुआ, जो मई के 3,214 करोड़ रुपए से 25 प्रतिशत अधिक है।

मिड कैप फंडों में भी 3,754 करोड़ रुपए का निवेश हुआ, जो मासिक आधार पर 2,808.7 करोड़ रुपए से 34 प्रतिशत अधिक है।

गोल्ड ईटीएफ में निवेश मई के 292 करोड़ रुपए से छह गुना बढ़कर 2,080.9 करोड़ रुपए हो गया, जो 613 प्रतिशत की वृद्धि है।

हाइब्रिड फंड में निवेश मई के 20,765 करोड़ रुपए से बढ़कर जून में 23,223 करोड़ रुपए हो गया।

एएमएफआई के आंकड़ों के अनुसार, मल्टी एसेट एलोकेशन में 3,209 करोड़ रुपए का निवेश हुआ, इसके बाद डायनेमिक एसेट एलोकेशन/बैलेंस्ड एडवांटेज फंड में 1,885 करोड़ रुपए का निवेश हुआ।

यह वृद्धि काफी हद तक बाजार के प्रदर्शन के कारण है, क्योंकि निफ्टी और सेंसेक्स ने जून में मजबूत रिटर्न दिया है।

भारत बंद- 25 करोड़ से अधिक कामगार करेंगे राष्ट्रव्यापी हड़ताल

बैंकिंग से लेकर बिजली सेवाएं प्रभावित होंगी

देशभर की 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने आज, 9 जुलाई 2025 को ‘भारत बंद’ का आह्वान किया है। इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल में 25 करोड़ से अधिक कामगारों के शामिल होने का अनुमान है। आंदोलन में बैंकिंग, बीमा, डाक, कोयला खनन, बिजली और निर्माण क्षेत्र के कर्मचारियों के साथ-साथ किसान और ग्रामीण मजदूर भी हिस्सा ले रहे हैं।

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की महासचिव अमरजीत कौर ने बताया कि यह हड़ताल केंद्र सरकार की श्रम-विरोधी और किसान-विरोधी नीतियों के खिलाफ है। यूनियन का आरोप है कि सरकार की आर्थिक और नीतिगत दिशा मजदूरों और किसानों के अधिकारों को लगातार खत्म कर रही है।

कंपन से परेशान मरीजों को अब सर्जरी की ज़रूरत नहीं, बिना चीरे होगा इलाज

अंजलि भाटिया
नई दिल्ली: कंपन (ट्रेमर) से जूझ रहे मरीजों के लिए राहत भरी खबर है।
दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में एक नई और अत्याधुनिक तकनीक एमआर-गाइडेड फोकस्ड अल्ट्रासाउंड (MRgFUS) की शुरुआत की गई है, जिससे बिना सर्जरी के ही कंपन का इलाज संभव हो गया है।
यह तकनीक अब तक देश में सिर्फ तीन स्थानों पर उपलब्ध है, जिनमें से दो दक्षिण भारत में हैं। उत्तरी भारत में यह सुविधा देने वाला पहला अस्पताल सर गंगा राम बना है। यह एक बिल्कुल गैर-सर्जिकल तकनीक है, जिसमें मरीज के सिर में कोई चीरा नहीं लगाया जाता। एमआरआई (MRI} की मदद से मस्तिष्क के उस हिस्से को पहचान लिया जाता है, जो कंपन का कारण बनता है, और फिर अल्ट्रासाउंड तरंगों से उसे गर्म कर निष्क्रिय कर दिया जाता है। इससे हाथों की अनियंत्रित कंपन में तुरंत राहत मिलती है।
फिलहाल यह तकनीक दो बीमारियों के लिए मंजूर की गई है —
एसेंशियल ट्रेमर (ET) जिसमें मुख्य रूप से हाथों में लगातार कंपन होता है। दूसरा
ट्रेमर-डॉमिनेंट पार्किंसन डिज़ीज़ (TD-PD) पार्किंसन का वह रूप जिसमें कंपन प्रमुख लक्षण होता है। इन बीमारियों से पीड़ित लोग लिखने, खाना खाने या पानी का गिलास पकड़ने जैसे आसान काम भी नहीं कर पाते।
अब तक इन रोगों में दवाएँ दी जाती थीं, लेकिन उनका असर सीमित रहता था और लंबे समय में साइड इफेक्ट्स हो जाते थे। इसके बाद एकमात्र विकल्प होता था डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (DBS) जिसमें मस्तिष्क में सर्जरी करके इलेक्ट्रोड लगाए जाते हैं।
एमआरजीएफयूएस (MRgFUS) इन दोनों के मुकाबले कहीं अधिक सुरक्षित, सरल और कारगर विकल्प बनकर सामने आया है। बिना किसी डिवाइस या बैटरी के सिर्फ एक सत्र में इलाज
और महज 1या 2 दिन में मरीज फिर से सामान्य जीवन जी सकता है।
सर गंगा राम अस्पताल के वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सीएस अग्रवाल ने बताया, “यह तकनीक उन मरीजों के लिए वरदान साबित हो रही है, जिन पर दवाओं का असर नहीं हो रहा था और जो सर्जरी से डरते थे। एमआरजीएफयूएस के ज़रिए हम बिना चीरफाड़ के इलाज कर पा रहे हैं।

“एक भी ट्रेन नहीं चलेगी”: बीसी आरक्षण बिल पर केंद्र को के. कविता की चेतावनी

अंजलि भाटिया 

नई दिल्ली: तेलंगाना जागृति की अध्यक्ष, पूर्व सांसद और बीआरएस एमएलसी के. कविता ने मंगलवार को केंद्र सरकार को कड़ी चेतावनी दी कि अगर तेलंगाना विधानसभा से पारित 42% पिछड़ा वर्ग (BC) आरक्षण बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं दी गई, तो “एक भी ट्रेन चलने नहीं दी जाएगी”। उन्होंने 17 जुलाई को “रेल रोको आंदोलन” की घोषणा की है, जिसके माध्यम से बिल को तत्काल स्वीकृति देने की मांग की जाएगी।

के. कविता ने तेलंगाना सरकार से यह मांग की कि जब तक राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिलती, तब तक संविधान के अनुच्छेद 243(D) के तहत आरक्षण लागू करने के लिए तत्काल एक सरकारी आदेश (GO) जारी किया जाए। उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर तंज कसते हुए कहा कि जो व्यक्ति संविधान की प्रति लेकर देशभर में घूमते हैं, वे रेवंत रेड्डी को इस संबंध में कोई सलाह क्यों नहीं दे रहे?

दिल्ली में  कॉन्स्टिट्यूशन  क्लब में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान के. कविता ने कहा, “हम एक भी ट्रेन चलने नहीं देंगे। हैदराबाद से दिल्ली जाने वाली सभी ट्रेनों को रोका जाएगा। यह तो सिर्फ ट्रेलर है। अगर बिल को मंजूरी नहीं मिली तो हम अनिश्चितकालीन रेल रोको आंदोलन करेंगे। तेलंगाना के 2.5 करोड़ बीसी लोग भाजपा को सबक सिखाएंगे।”

उन्होंने भाजपा और कांग्रेस दोनों पर बीसी समुदाय के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाया। साथ ही बताया कि वह सभी राजनीतिक दलों को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर समर्थन मांगेंगी।

कविता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो स्वयं ओबीसी वर्ग से आते हैं, से अपील की कि वे बीसी आरक्षण बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी दिलाएं और इसे संविधान की नवम अनुसूची (Ninth Schedule) में शामिल किया जाए, जैसा कि तमिलनाडु के 69% आरक्षण मॉडल में किया गया है।

तेलंगाना के भाजपा सांसदों पर भी साधा निशाना

उन्होंने तेलंगाना से चुने गए आठ भाजपा सांसदों की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कहा कि वे इस मुद्दे पर पूरी तरह से मौन हैं। कविता ने यह भी कहा कि EWS (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) आरक्षण लागू होने के बाद कई राज्यों में आरक्षण सीमा 50% से ऊपर जा चुकी है, और 16 राज्यों में यह पहले से लागू है, इसलिए तेलंगाना में 42% बीसी आरक्षण पर कोई कानूनी अड़चन नहीं होनी चाहिए।

क्षेत्रीय दलों को बताया जनता का सच्चा हितैषी

कविता ने कहा कि क्षेत्रीय दल ही जनता की असली चिंता करते हैं। उन्होंने अखिलेश यादव (उत्तर प्रदेश), नवीन पटनायक (ओडिशा), और दिवंगत जयललिता (तमिलनाडु) जैसे नेताओं को उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत किया, जिन्होंने जनकल्याण और सामाजिक न्याय की दिशा में प्रभावी कार्य किए।

DRDO की बड़ी उपलब्धि, 45 किमी तक सटीक वार; सिर्फ 85 सेकंड में फायरिंग को तैयार

अंजलि भाटिया
नई दिल्ली: भारत की रक्षा तैयारी में एक और बड़ी छलांग लगाते हुए डीआरडीओ {DRDO} ने पूरी तरह स्वदेशी ‘Mounted Gun System’ एमजीएस(MGS) तैयार कर ली है। यह गन सिस्टम अब सेना के ट्रायल के लिए तैयार है और इसे देश के अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों जैसे रेगिस्तान, ऊंचे पहाड़ और मैदान में परखा जाएगा। रक्षा विश्लेषकों के अनुसार, यह तोप प्रणाली आने वाले समय में युद्ध की दिशा बदल सकती है।
यह गन सिस्टम एक हाई मोबिलिटी वाहन पर 155 मिमी / 52 कैलिबर की एडवांस्ड तोप एटीएजीएस(ATAGS) को माउंट कर तैयार किया गया है। इस परियोजना को डीआरडी के वाहन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान वीआरडीई(VRDE) ने सिर्फ ढाई साल में तैयार किया है। इसकी खासियत यह है कि
एमजीएस की सबसे बड़ी ताकत इसकी ‘शूट एंड स्कूट’ तकनीक है। यानी यह दुश्मन पर फायर करने के तुरंत बाद अपनी स्थिति बदल सकती है, जिससे दुश्मन की जवाबी गोलीबारी बेअसर हो जाती है। इसे कहीं भी तेजी से तैनात किया जा सकता है और फायरिंग के बाद तत्काल स्थान बदला जा सकता है।
इस तोप की अधिकतम रेंज 45 किलोमीटर है और यह महज 85 सेकंड में फायरिंग के लिए तैयार हो जाती है। एक मिनट में 6 राउंड फायर कर सकती है और लगभग 50 वर्गमीटर क्षेत्र को पूरी तरह कवर कर सकती है। इसकी सटीकता और निरंतरता इसे दुश्मन के ठिकानों पर घातक बनाती है।
कहीं भी ले जाने में यह सक्षम है चाहे सियाचिन की बर्फीली ऊंचाइयां हों या पूर्वोत्तर के घने पहाड़ी जंगल, यह सिस्टम हर इलाके में प्रभावी ढंग से काम कर सकता है। 30 टन वजनी इस सिस्टम को रेल या C-17 विमान से भी कहीं भी आसानी से ले जाया जा सकता है।
यह गन सिस्टम कठिन इलाकों में 60 किमी प्रति घंटे और समतल क्षेत्रों में 90 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकता है। इसका कुल वजन लगभग 30 टन है। जिसमें वाहन और गन दोनों का वजन शामिल है (15-15 टन)। इसमें सात सदस्यीय चालक दल के लिए बुलेटप्रूफ केबिन की व्यवस्था की गई है, जिससे युद्ध के हालात में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
इस गन सिस्टम में प्रयुक्त 80 प्रतिशत उपकरण पूरी तरह भारत में बने हैं। यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में एक और ठोस कदम है। सात सदस्यीय चालक दल के लिए बुलेटप्रूफ केबिन की व्यवस्था की गई है, जिससे युद्ध के हालात में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
एमजीएस सिस्टम, एटीएजीएस पर आधारित है। मार्च में ही सरकार ने टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स और भारत फोर्ज से ₹6,900 करोड़ की डील की है, जिसमें 307 एटीएजीएस और उनके ट्रांसपोर्ट व्हीकल्स खरीदे जाएंगे। भारत अब उन गिने-चुने देशों की सूची में आ गया है जो माउंटेड गन सिस्टम बनाते हैं।
रूस-यूक्रेन संघर्ष में माउंटेड गन सिस्टम की अहम भूमिका देखी गई है। भारत न केवल इनसे सबक ले रहा है, बल्कि भविष्य की लड़ाइयों के लिए खुद को तैयार भी कर रहा है। यह गन सिस्टम इसी तैयारी का अहम हिस्सा है।
सेना सूत्रों के अनुसार, ट्रायल सफल रहने पर आने वाले महीनों में इस सिस्टम को बड़े पैमाने पर सेना में शामिल किया जा सकता है। यह भारत की युद्ध क्षमता को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाला कदम होगा।