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गंगा आखिर क्यों हुई मैली?

स्वर्ग की नदी कही जाने वाली पवित्र नदी गंगा पिछले कई दशकों से बढ़ती जनसंख्या के दबाव के चलते मानवीय गतिविधियों के कारण भयंकर प्रदूषण का शिकार हुई। इस पर बॉलीवुड में प्रतीकात्मक तौर पर हिन्दी फिल्में भी बनी। ‘राम तेरी गंगा मैली’ हो गई पापियों के पाप धोते-धोते’ गाना गंगा की वर्तमान स्थिति पर करारा प्रहार है। बल्कि पिछली 22 फरवरी को हरिद्वार में कुछ परियोजनाओं का उद्घाटन करने आए केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी को भी कहना पड़़ा- हरिद्वार, देहरादून में होटल, रेस्टोरेंट हैं और मुझे काफी शिकायतें आईं हैं कि ये सीधे अपने यहां का गंदा पानी गंगा में छोड़ देते हैं। मैं मुख्यमंत्री से अनुरोध करूंगा कि उनको पहले नोटिस दीजिए, समझाइए कि होटल में रिसाइकलिंग प्लांट लगवाएं। अगर ऐसा नहीं करते तो उन पर कठोर कार्रवाई की जाएगी। थोड़ा सा भी गंदा पानी गंगा में नहीं जाना चाहिए।’

हालांकि वर्तमान सरकार की इच्छा शक्ति और प्रयासों के चलते पिछले कुछ समय से गंगा और इसके घाटों की स्थिति सुधरने लगी है मगर जनता की भागीदारी की इसमें सबसे अहम भूमिका है। गंगा को प्रदूषित करने के लिए बढ़ती जनसंख्या की मांगे, अंध विश्वास, धार्मिक कर्मकांड, औद्योगिक कचरा आदि अधिक जिम्मेदार हैं। ‘नमामि गंगे प्रोग्राम: एट ए ग्लांस’ के अनुसार गंगा में प्रदूषण की स्थिति इस प्रकार है- 97 शहरों से 2953 लाख लीटर मल रोज़ाना पैदा हो रहा है, जबकि 155 गंदे नाले गंगा में गिर रहे हैं। चमड़ा, कागज, चीनी, कपड़ा, डाई जैसे उघोगों से 6690 एमएलडी लीटर कचरा रोज़ाना गंगा में जा रहा है। राम गंगा और काली नदी की स्थिति अति खराब है। इसके अलावा कृषि संबंधित कचरा, अधजले शव, खुले में शौच जाने वाले एवं अन्य कई भौतिक कारणों से गंगा में अधिक प्रदूषण हुआ है।

गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉ. राकेश भुटियानी पिछले 15 सालों से गंगा पर काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि गंगा में प्रदूषण के दूसरे पैरामीटर बढ़ रहे हैं जैसे कि ऑक्सीजन की कमी, सीवेज डिस्चार्ज, गंदे नाले, मैटल आदि का गिरना जो कि जीव-जन्तुओं के लिए खतरनाक है। इनके कारण बायो-डायवर्सिटी पर बुरा प्रभाव पड़ता है। डॉ. भुटियानी ने अपने अनुसंधान के लिए कर्णप्रयाग से रूड़की तक गंगा का स्ट्रेच प्रयोग के तौर पर लिया है। उन्होंने बताया कि अध्ययन के दौरान पाया गया कि हरिद्वार प्रवेश पर गंगा में इतना प्रदूषण नहीं है लेकिन जरवाड़ा पुल से प्रदूषण बहुत बढ़ जाता है। कॉलीफार्म वैक्टीरिया रिपोर्ट होना शुरू हो चुका है। हरकी पौड़ी पर आठ से दस (8-10) तक ई-कोलाई मिलने लगे हैं, जो कि चेताने वाली स्थिति है। डॉ. भुटियानी का कहना है कि सकारात्मक पहले यह है कि हरकी पौड़ी पर नहर में जल का बहाव अधिक है, उससे प्रदूषक तत्व रुक नहीं पाता लेकिन वो हमारी स्टडी में नहीं आ पाता। इसके अलावा गंगा में (टीओ) घुलनशील ऑक्सीजन नीचे आई है। पहले दस तक होती थी जो अब सात से आठ (7-8) तक आ गई है। ये पैरामीटर दिन व दिन नीचे आ रहे हैं। जो कि वनस्पति और जीव-जन्तुओं को संकट में डाल देंगे। डॉ. भुटानी के मुताबिक उन्होंने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सरकार को इसकी जानकारी दे दी है।

देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के चांसलर डॉ. प्रणव पण्डया ने गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रदूषण के स्त्रोतों की जानकारी पुस्तिका निर्मल गंगा जन अभियान में इस प्रकार दी है।

शहरों एवं नगरों का अनुपचारित सीवेज 5528 एमएलडी (2011) या कहें कि एक टैंकर सीवेज प्रत्येक 23 मीटर प्रतिदिन गंगा में डाला जाता है।

औघोगिक खाद   3400 एमएलडी

रासायनिक खाद  4.8 लाख टन प्रतिवर्ष

कीटनाशक      1300 टन प्रतिवर्ष

खतरनाक कचरा  1000 टन

फ्लाय ऐश     4025 लाख टन प्रतिवर्ष

कचरा  80,000 टन

अस्पातालों का रेडियोधर्मी कचरा-

अन्य परंपराएं जैस पर्व स्नान, निर्माला (बासी फूल), वाटर स्पोर्ट, शवों को प्रवाहित करना, कपड़ो की धुलाई, पशुओं-वाहनों की धुलाई, मूर्ति विसर्जन, उत्खनन आदि। z

मज़बूत या मज़बूर सरकार

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज अरुणाचल प्रदेश के आलो और असम के डिब्रूगढ़ और तेजपुर में आयोजित विशाल जन-सभाओं को संबोधित किया और उत्तर-पूर्व को विकास से महरूम रखने के लिए कांग्रेस पार्टी पर जमकर हमला किया। उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते हुए पिछले पांच वर्षों में केंद्र की भाजपा सरकार की उपलब्धियों पर विस्तार से चर्चा की।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस के नामदारों ने अरुणाचल प्रदेश की कभी परवाह नहीं की। दशकों से जानकार कह रहे थे कि अरुणाचल के इंफ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करने की जरूरत है लेकिन कांग्रेस की सरकारों ने इस दिशा में कुछ भी नहीं किया। अरुणाचल को पहली बार रेल मैप पर लाने का काम आपके इस चौकीदार ने किया। बोगीबील पुल की शुरुआत हुई। आजादी के 70 साल बाद आपको हवाई कनेक्टिविटी मिल पाई है। उन्होंने कहा कि पहले नामदार परिवार और यहां पर बैठे उनके रागदरबारी अपनी सल्तनत को मज़बूत कर रहे थे। उन्हें आपकी भलाई से ज्यादा मलाई की जरूरत थी। हम आपकी भलाई के लिए काम करते हैं और वो मलाई के लिए काम करते थे। अब उन्हें दोबारा घुसने मत देना, नहीं तो ये लोग आपकी मलाई चट कर जाएंगे। उन्होंने कहा कि आपके इस चौकीदार ने दिल्ली को आपके दिल से जोडऩे की कोशिश की है। अरुणाचल भारत का राज्य भर नहीं है बल्कि यह भारत की मजबूत ढाल है। कांग्रेस के नामदारों ने न तो इसकी परवाह की और न ही आपकी आशाओं, आकांक्षाओं को सम्मान ही दिया। अरुणाचल को रेल मैप पर लाने का सौभाग्य आज़ादी के सात दशक बाद इस चौकीदार को मिला है।

मोदी ने कहा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार जब मैं अरुणाचल प्रदेश आया तो यहाँ की जनता ने बताया कि यहां कोई प्रधानमंत्री 30 साल बाद आया है लेकिन आपका ये प्रधान सेवक बीते 5 वर्षों में ही 30 से भी ज़्यादा बार यहां आ चुका है। आपने पहले की सरकारों के तौर-तरीके भी देखे हैं, खुद को भारत का भाग्य विधाता समझने वाले लोग कितनी बार अरुणाचल आए हैं। मैं देश के लिए पिछले 5 वर्षों में जो भी कर पाया हूँ, उसके पीछे आपका साथ, समर्थन और आशीर्वाद ही है। ये मेरा सौभाग्य है कि देश के इस महत्वपूर्ण भाग को मैं पिछले पांच वर्ष से नए भारत का नया ग्रोथ इंजन बनाने का प्रयास कर रहा हूँ। विगत 5 साल के अनुभव के आधार पर अगले 5 साल में, 25 साल तक का विकास करने का इरादा लेकर मैं आपके सामने आया हूँ। साथ ही अपने काम का हिसाब देने की शुरुआत भी अरुणाचल प्रदेश से ही हो रही है। आपकी मान्यताओं और परम्पराओं को बचाए रखना और उन्हें विकसित करना और आपकी इच्छा के अनुसार चलाना – ये मोदी का वादा है आपसे।

प्रधानमंत्री ने जनता को संबोधित करते हुए कहा कि आपको पता है, यहां इनके जो नेता $गरीबों की थाली से निवाला चुराते हैं उन्हें प्रेरणा कहां से मिलती है। इनकी प्रेरणा हैं दिल्ली में बैठे वो नेता जो इनकम टैक्स चुराते हैं, अखबार चलाने के लिए दी गई जमीन से लाखों रुपये किराए के कमाते हैं, $गरीबों के राशन खा जाते हैं, किसानों की ज़मीन चुराते हैं और देश के रक्षा सौदों में दलाली से भी अपनी प्रॉपर्टी बनाते हैं। इनकी सरकार दिल्ली में हो या फिर किसी भी राज्य में, कांग्रेस की हमेशा भ्रष्टाचार से मज़बूत सांठगांठ रही है। कांग्रेस और विपक्ष का महामिलावटी गठबंधन करप्शन के फेविकॉल से आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। नामदार आज खुद जमानत पर बाहर चल रहे हैं। अगर जमानत न मिली होती तो ये नामदार आज कहाँ होते। खुद तो जमानत पर जेल से बाहर हैं और चौकीदार को अपशब्द कह रहे हैं! इन लोगों को टेकन फॉर ग्रांटेड की पुरानी आदत रही है।

कांग्रेस पर करारा प्रहार जारी रखते हुए मोदी ने कहा कि कांग्रेस एंड कंपनी को अपने देश और युवाओं के सामथ्र्य पर भरोसा नहीं है। न ये देश के जवान की चिंता करते हैं और न ही नौजवान की चिंता करते हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत जब भी बड़ी सफलता हासिल करता है तो नामदारों और उनके दरबारियों के चेहरे लटक जाते हैं, बस रोना रह जाता है। सर्जिकल स्ट्राइक और मिशन शक्ति पर ये तिलमिला जाते हैं। आतंकवादियों के आकाओं की भाषा बोलने लगते हैं। देश की जनता ने सर्जिकल स्ट्राइक के समय यह खुद देखा है। जब भारत ने आतंकियों को घर में घुसकर मारा, तो इनका क्या रवैया रहा, यह भी आपने देखा है। आज इन्हें भारत में कोई पूछने वाला नहीं है, लेकिन पाकिस्तान में इनके चेहरे चमक रहे हैं। टीवी पर बयान चल रहे हैं। उन्हें एक पड़ोसी देश पर इतना प्यार आ रहा है कि पूर्वोत्तर ही नहीं, उन्हें भारत भी नहीं भा रहा है। उन्होंने कहा कि हमने जब एयर स्ट्राइक की तो भारत के साथ पूरी दुनिया खड़ी हो गई, लेकिन कांग्रेस की नींद उड़ गई। जब हमारे वैज्ञानिक दुनिया को हैरान कर देते हैं, तो भी ये उसका मजाक उड़ाने के बहाने खोज लेते हैं।

मोदी ने कहा कि विपक्ष के महामिलावटी गठबंधन को चौकीदार से नफरत तो है ही, उन्हें चायवालों से भी परेशानी है। मुझे लगता था कि सिर्फ एक चायवाला उनके निशाने पर हैं, लेकिन जब मैं बंगाल और असम समेत देश के अलग-अलग हिस्सों में गया, तब पता चला कि उन्हें चाय के कारोबार से जुड़े लोग भी अच्छे नहीं लगते हैं। आखिर क्यों चाय किसान 70 साल से परेशानी झेल रहे हैं? आज तक उन्हें मूलभूत सुविधाएं तक नहीं दी गईं। कोई चायवाला ही चायवालों का दर्द समझ सकता है। चाय बागान में काम करने वालों के हमने बैंक अकाउंट खुलवाए। चाय बागान में काम करने वाली प्रसूता माताओं के अकाउंट में 12 हजार रुपये दिए हैं।

मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने हमेशा लटकाने और भटकाने का काम किया है। ढोला सदिया पुल हो या बोगीबील पुल, दशकों से लटके इन पुलों को पूरा करने का काम वर्तमान भारतीय जनता पार्टी सरकार ने किया है। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने असम के 27 लाख परिवारों को 5 लाख तक के मुफ्त इलाज का लाभ दिया। मुद्रा लोन के जरिए लाखों युवाओं को स्वरोजगार का मौका दिया है। यह सब आपके विश्वास के ही कारण संभव हुआ है। असम के 24 लाख किसान परिवारों के खातों में 6 हजार रुपये सालाना की तय राशि डालने का काम भी हमारी सरकार ने किया।

मोदी ने असम में कहा कि पांच साल पहले आपने मुझे अपना आशीर्वाद दिया था, जिससे मैं असम और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए विकास के कई काम कर पाया। 70 सालों में असम के 40 फीसदी घरों तक बिजली पहुंची थी, आज असम के हर घर में बिजली है। पांच साल पहले तक असम के महज 40 फीसदी घरों में ही गैस कनेक्शन पहुंचा था, 5 साल में हमने इसे बढ़ाकर 85 फीसदी तक पहुंचाया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस ने पिछले 70 सालों में भारत की छवि मजबूर देश वाली बना दी। अब देश की जनता को तय करना है कि आपको मजबूत और निर्णायक सरकार चाहिए या मजबूर सरकार। भारत तभी मजबूत होगा, जब असम और नॉर्थ-ईस्ट मजबूत होंगे। केंद्र की भाजपा सरकार इस काम में लगी हुई है।

मोदी ने कहा कि जब दिल्ली पुलिस के दस्ते में अरुणाचल की बेटियां दिखती है, तो हमे गर्व होता है। जब यहां की बेटियां एवरेस्ट फतेह करती है, तो देश को गर्व होता है। आप लोग सूर्य के तेज जैसे ही तेजस्वी हैं, और आपकी शूरवीरता की चर्चा देश भर में होती है। ऐसे शूरवीर और तेजस्वी प्रजा को प्रधानसेवक का नमस्कार।

भारतीय विदेश मंत्रालय ने सुध नहीं ली पाक प्रधानमंत्री के बयान की

भारतीय लोकतंत्र के मेले के रूप में वीरवार (11 अप्रैल) को आम चुनाव 2019 का पहला चरण शुरू हुआ। इतनी भारी आबादी और इतने बड़े देश भारत में इसी साल अप्रैल और मई में सात चरणों में चुनाव पूरे हो सकेंगे। 23 मई को नतीजे आएंगे। इस भव्य आयोजन पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने उम्मीद जताई कि चुनाव में भाजपा की यदि जीत होती है तो वह इस उपमहाद्वीप में शांति के लिए बेहतर होगी। कश्मीर मसले के समाधान के लिए बातचीत हो सकेगी। दक्षिणपंथी भाजपा शायद कोई समाधान निकालने में कामयाब हो जाए। यदि कांग्रेस व दूसरे दल जीतते हैं तो वे पाकिस्तान से कोई सुलह की दिशा में इसलिए नहीं बढ़ेंगे क्योंकि उन्हें भाजपा से प्रतिघात का खतरा हमेशा रहेगा। विपक्षी दलों ने जहां इस बयान की आलोचना की है। वहीं भाजपा और भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस मामले में कोई टीका-टिप्पणी नहीं की है। इससे राजनीतिक हलकों में काफी विस्मय है।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अपने देश में आए विदेशी पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने अपनी टिप्पणी से भारतीय विपक्षी दलों के नेताओं में इस बात पर खलबली मचा दी है कि क्या भाजपा और पाकिस्तान के बीच कोई आपसी सहमति है जिसकी ओर इमरान की टिप्पणी इशारा कर रही है। भारत और पाकिस्तान के बीच इधर तनाव इसलिए बढ़े क्योंकि पाकिस्तान में रह रहे जैश-ए-मोहम्मद ने 14 फरवरी की शाम सीआरपीएफ के एक काफिले में शामिल एक बस को निशाने पर लिया जिसमें 40 जवान मारे गए। इसके बाद पाकिस्तानी सीमा के बालाकोट में भारतीय वायुसेना के विमानों ने बम गिराए। भारत के दो विमान नष्ट हुए।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट करके पूछा कि आखिर पाकिस्तान क्यों चाहता है कि आम चुनावों में भाजपा ही जीते? भारतीय प्रधानमंत्री को पूरे देश को यह जानकारी देनी चाहिए कि आखिर पाकिस्तान से उनके संबंध कितने गहरे हैं। यानी यदि भाजपा की आम चुनावों में जीत होती है तो पाकिस्तान में खुशी मनाई जाएगी।

कांग्रेस के नेता रणदीप सुरजेवाल ने कहा,’ इमरान की मोदी को आई शुभकामना से जाहिर है कि मोदी को वोट देना यानी इमरान खान को वोट देना है। मोदी का पहले नवाज शरीफ से प्यार था अब वे इमरान खान के सबसे बच्छे दोस्त हैं। लेकिन इमरान खान को एक बात यह भी समझनी चाहिए कि वे पाकिस्तान में पटाखे नहीं बजा पाएंगे क्योंकि भाजपा 2019 के चुनाव में जीतने नही जा रही है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता डी राजा ने कहा, मोदी को यह बताना चाहिए खान साहब क्यों भारतीय आम चुनाव में उनके लिए ‘बैटिंग’’ कर रहे हैं। क्या उनसे इस बात के लिए अनुरोध किया गया था।

हमारी चिंता यह है कि भारतीय लोकतंत्र में आम चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। ऐसे में विदेशी सरकारें इसमें क्यों दिलचस्पी ले रही हंै। वे हमारी चुनावी प्रक्रिया को क्यों प्रभावित करने की कोशिश कर रही हैं। पिछले दिनों यह जानकारी मीडिया से ही मिली थी कि आईएसआई चाहती है कि मोदी ही प्रधानमंत्री बने। अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने ही यह राज खोल दिया है । आईएसआई के सैनिक अड्डे पर भारतीय प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया गया था। वे अकेले ऐसे व्यक्ति है जो बिना किसी न्यौते के भी पाकिस्तान चले गए थे।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने विदेशी पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा था कि यदि 2019 के आम चुनावों में भाजपा फिर सत्ता में लौटती है तो कश्मीर के मसले के समाधान के लिए भारत और पाकिस्तान से एक तरह की शांतिवार्ता हो सकती है। ‘रायटर’ संवाददाता के अनुसार उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस के नेतृत्व वाले धड़े की जीत होती है तो वे इतने डरे होंगे कि पाकिस्तान से इसलिए कोई समझौता नहीं करेंगी क्योंकि उन्हें हर पल इस बात का खतरा सताएगा कि कहीं दक्षिणपंथी यानी शायद भाजपा जो दक्षिण पंथी पार्टी है कहीं विरोध का मोर्चा न खोल बैठे।

अब यह बात साफ हो गई है कि पाकिस्तान अधिकारिक तौर पर मोदी के साथ सहयोग कर रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी शायद यही बात स्पष्ट कर रहे हैं। अब मोदी को एक भी वोट देने का मतलब इमरान खान को वोट देना है। यह कहना है कांग्रेस के मीडिय प्रभारी सुरजेवाला का। एक विदेशी ताकत का भारतीय चुनाव में संभावित हालातों पर अपनी संभावना जताना बताता है कि उसके हित देश के अंदर कितने ज़्यादा हैं। अभी अमेरिका में हुए चुनावों में सोवियत संघ की दखलांदाजी के आरोप पर वहां मुबाहिस चल ही रही है। इस बीच भारतीय उपमहाद्वीप में 2019 के आम चुनाव पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की टिप्पणी से संदेह के बगूले उडऩे सहज स्वाभाविक हैं। इस पर भारतीय विदेश मंत्री की खामोशी भी चिंता बढाती है।

अभी हाल तक यह माना जा रहा था कि आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का प्रमुख अज़हर मसूद पाकिस्तान की ज़मीन पर आतंकवादी संगठन चलाता रहा है। पाकिस्तान पर दवाब बनाने का क्रम चल रहा है। अज़हर भूमिगत है और बीमार है। लेकिन महत्वपूर्ण है कि उस देश में जहां बडा़ सेटप घर था अब तितर-बितर किया जा रहा है। पाकिस्तान में आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई का जि़क्र करते हुए इमरान पत्रकारों से कहते हैं जो आज यहां हो रहा है वह कभी पहले नहीं हुआ। हम कभी इस बात की अनुमति नहीं देंगे कि यहां हथियार बंद आतंकवादी घूमें। आतंकवाद के खिलाफ जो मुहिम पाकिस्तान में चल रही है वह पाकिस्तान के अपने लिए काफी ज़रूरी है।

पछतावा तो है पर माफी नहीं मांगेगा ब्रिटेन

ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीज़ा मे ने जलियांवाला बाग नरसंहार को ब्रिटिश इतिहास की शर्मनाक घटना और धब्बा बताया। ब्रिटिश संसद में उन्होंने अफसोस जताया कि 100 साल पहले जो हुआ उसके कारण लोगों को एक त्रासदी झेलनी पड़ी। पर औपचारिक माफी की मांग पर ब्रिटिश सरकार वित्तीय कठिनाइयों का हवाला दे रही है।

टेरीज़ा ने कहा कि 1997 में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने जलियांवाला बाग जाने से पहले कहा था कि यह भारत के साथ हमारे अतीत के इतिहास की एक दुखद मिसाल है। इसके उत्तर में विपक्षी लेबर पार्टी के नेता जरमी कारबन ने मंाग की कि जिन्होंने इस नरसंहार में जान गंवाई उनसे माफी मांगी जानी चाहिए। पर विदेश मंत्री मार्क फील्ड ने हाउस ऑफ कॉमंस में बहस में हिस्सा लेते हुए कहा- हमें एक सीमा रेखा खींचनी चाहिए जो इतिहास का शर्मनाक हिस्सा है। उन्होंने कहा कि वह ब्रिटेन के औपनिवेशिक काल को लेकर थोड़े पुरातनपंथी हैं और किसी भी सरकार के लिए यह चिंता की बात हो सकती है कि वह माफी मांगे। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि माफी मांगने से वित्तीय मुश्किलें पेश आ सकती हैं।

फरवरी 2013 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड केमरून अमृतसर आए। उन्होंने जलियांवाला बाग में जाकर कहा था -‘ब्रिटेन साम्राज्य के इतिहास की यह सबसे शर्मनाक घटना है।’ उन्होंने यह भी कहा -‘जो कुछ हुआ हमें उसे भूलना नहीं चाहिए।’ लेकिन फिर भी उन्होंने 13 अप्रैल 1919 को हुए जघन्य नरसंहार के लिए ब्रिटिश सरकार की तरफ से माफी नहीं मांगी।

लेेकिन अब आ रही सूचनाओं के अनुसार इस हत्याकांड के 100 साल बाद अब ब्रिटिश सरकार ‘गहरा अफसोस’ व्यक्त करने वाली है। 100 साल के बाद अफसोस करने से क्या घाव भर पाएगा जो उस समय देश के शरीर पर हुआ, यह अभी स्पष्ट नहीं है। ब्रिटेन के एक मंत्री ने 19 फरवरी 2019 को हाउस ऑफ लार्डस में हुई बहस में कहा था कि ब्रिटिश सरकार औपचारिक माफी की मांग पर विचार कर रही है।

हाउस ऑफ लार्डस में ‘अमृतसर नरसंहार शताब्दी’ के नाम से चल रही चर्चा के दौरान वहां के एक मंत्री एनाबेल गोल्डी ने यह भी कहा था कि सरकार ने इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के 100 साल पूरे होने के मौके को यथोचित व सम्मानित तरीके से याद किए जाने की योजना बनाई है।

उन्होंने कहा कि जहां तक हम सब जानते हैं कि तत्कालीन सरकार ने लगातार इस नृशंसता की निंदा की थी, लेकिन किसी भी सरकार ने माफी नहीं मांगी। यही कारण है कि माफी मांगने के लिए इस साल 13 अप्रैल का दिन चुना गया। हालांकि सरकारी सूत्रों ने अभी इसकी पुष्टि तो नहीं की है पर कहा जा रहा है कि विदेश सचिव जेरेमी हंट इस दौरान भारत आ सकते हैं।

हंट ने सरकार को और इससे संबंधित समिति को इस सारी घटना का ब्योरा दिया और बताया कि माफी मांगने के लिए शताब्दी वर्ष सही समय है। गोल्डी ने भी हंट की तरफ से पिछले साल अक्तूबर में संसद की विदेश मामलों की समिति के सामने जलियांवाला बाग कांड को लेकर दिए गए मौखिक साक्ष्य का भी हवाला दिया था।

जलियांवाला बाग नरसंहार को लेकर ब्रिटेन के निचले सदन में हुई चर्चा भारतीय मूल के सांसदों राज लूंबा और मेघनाद देसाई ने शुरू की थी । इन दोनों ने कहा कि इस साल 13 अप्रैल को इस नरसंहार की शताब्दी पर अपनी गलतियों को सुधारने और औपचारिक माफी मांगने का सही समय है। इन दोनों सांसदों ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री को भी माफी मांगने के लिए पत्र लिखा। ये दोनों जलियांवाला बाग शताब्दी सालगिरह समिति के सदस्य हैं।

इस के बारे में लूंबा का कहना था कि सरकार के माफी मांगने से ब्रिटेन में रहने वाले लाखों दक्षिण एशियाई मूल के लोगों के साथ ही भारतीयों के बीच अच्छा असर जाएगा। बहस के दौरान देसाई ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि किस तरह नरसंहार के समय की ब्रिटिश संसद जनरल डायर के अमृतसर में उठाए गए कदम की निंदा करने से चूक गई थी।

सदन में एक और सांसद लार्ड बिलिमोरिया ने भी ‘हत्या’ के लिए सरकार से औपचारिक माफी मांगने की अपील की। एक महिला जो कि अमृतसर में जन्मी है उन्होंने इस घटना को ब्रिटिश इतिहास पर काला धब्बा बताया।

दूसरी ओर ब्रिटेन के विदेश मंत्री मार्क फील्ड अभी भी माफी मांगने के लिए सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि ऐसे करने से कुछ वित्तीय कठिनाइयां पैदा हो सकती हैं।

एक और नरसंहार

यह बात बहुत कम लोगों को पता होगी कि 13 अप्रैल 1919 की घटना से तीन दिन पूर्व एक और हत्याकांड अमृतसर में ही हुआ था। इस हत्याकांड का जि़क्र इतिहास की ज़्यादातर किताबों में नहीं मिलता। इस घटना में 25 नागरिकों को गोलियों से उड़ा दिया गया था। 10 अप्रैल 1919 को यह घटना जिस स्थान पर हुई उसे आज भंडारी का ब्रिज कहा जाता है।

इतने लोगों की हत्या करने के बाद अंग्रेज़ अफसर आर पलूमर ने कहा था,’मैंने उन्हें सबक सिखा दिया है।’ इस घटना के 100 साल बाद आज हम इसे भुला चुके हैं। इन 25 लोगों की याद में कोई स्मारक नहीं है। ये सभी लोग अपने नेताओं डाक्टर सतपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए एक रैली में शामिल होने जा रहे थे। जैसे ही इन्होंने यह पुल पार करने की कोशिश की उसी समय अंग्रेज़ अफसर के आदेश पर पुलिस ने इन पर गोलियों की बरसात कर दी।

2009 तक इन लोगों का कही जि़क्र तक नही था। इसका पता तब चला जब अमृतसर में स्वतंत्रता सेनानियों का रिकॉर्ड खंगाला गया। नगरपालिका के रिकॉर्ड से तब 11 नाम निकले। 1996 में डाक्टर बलराज सागर और डाक्टर गुरशरण सिंह की एक किताब छपी। यह किताब पंजाब राज्य विश्वविद्यालय टेक्सट बुक बोर्ड चंडीगढ़ ने छापी थी। इस किताब में उन 25 लोगों का जि़क्र है। ये 25 और दूसरे लोग अपने नेताओं की गिरफ्तारी के मुद्दे पर उपायुक्त अमृतसर से मिलने जा रहे थे। तत्कालीन उपायुक्त माइल्स इरविंन उस पुल पर आ गया जो उस समय ‘हाल ब्रिज’, लोहे वाला पुल, या उच्चा पुल के नाम से जाना जाता था। उपायुक्त ने भीड़ से तितर-बितर होने को कहा। भीड़ को अंग्रेज़ सैनिकों और अमृतसर पुलिस ने रोक रखा था। भीड़ जब नहंी डरी तो पुलिस ने गोली चला कर 25 लोगों को मार डाला।

किताब में दर्ज प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार पलूमर ने घायलों को अस्पताल भी नहीं ले जाने दिया। कई घायलों का इलाज डाक्टर मोहम्मद बशीर और सहायक सर्जन ईश्वरदास भाटिया ने घर पर किया। नगरपालिका के रजिस्ट्रर में केवल 11 नाम मिले। इनमें तीन मुस्लिम और बाकी हिंदू और सिख थे। एक पूर्व मंत्री दरबारी का कहना था कि पुलिस की गोलियों से 25 लोगों का मारा जाना मामूली बात नहीं है। पर ज़्यादातर लोग केवल जलियांवाला बाग के नरसंहारको जानते हैं। इन 25 लोगों का कहीं जि़क्र नहीं।

पंजाब में असंतोष

10 अप्रैल 1919 को पुल पर मारे गए 25 लोगों के बाद पंजाव के विभिन्न हिस्सों में असंतोष की एक लहर आ गई। जहां यह असंतोष सबसे ज़्यादा फैला था वे हिस्से अब पाकिस्तान में हैं। लाहौर में लोगों ने लाहौर गेट से लेकर अनारकली बाज़ार तक जुलूस निकाला और नारेबाजी की। पुलिस ने यहां भी गोली चलाई और नौ लोगों को हिरासत में लिया। उन पर उपद्रव फैलाने का आरोप लगाया गया। 12 अप्रैल को भी लोग इक_े हुए और हिंदू नेताओं ने बाबरी मस्जिद में भीड़ को संबोधित किया।

जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद तो लोगों का गुस्सा और भड़का, खासतौर पर गुजरांवाला में। इसके साथ ही विरोध की चिंगारी रावलपिंडी, गुजरात और लाहौर में फैल गई। डाक्टर गुरशरण सिंह और डाक्टर बलराज सागर की किताब के अनुसार पंजाब के विभिन्न जि़लों में हिंसक वारदातों की 13 घटनाएं हुई। एक महिला स्कालर के अनुसार गुजरांवाला में तो पुलिस ने बमों का इस्तेमाल भी किया। उन्होंने कहा कि यह कहना गलत होगा कि सभी लोग ‘रोलेट एक्ट’ के खिलाफ थे। ज़्यादातर लोगों को तो इस एक्ट की जानकारी तक नहीं थी। लोग तो पहले विश्व युद्ध के परिणामों से जूझ रहे थे। मुद्रास्फीति बहुत थी और लोगों के पास राशन खरीदने के लिए भी पैसे नहीं थे। बहुत नागरिकों के रिश्तेदार युद्ध पर गए पर लौटे नहीं। लोगों में असंतोष के कई कारण थे।

पाकिस्तान के एक लेखक व पत्रकार फैज़न नकवी का कहना है कि जलियांवाला बाग वहां स्कूल के पाठ्यक्रम का हिस्सा है। पर वहां भी बच्चों को उन घटनाओं के बारे में नहीं पता जो लाहौर, गुजरांवाला और दूसरे जि़लों में घटी। अब जो लोग गुजरांवाला, लाहौर, रावलपिंडी और गुजरात में रह रहे हैं उन्हें नहीं पता कि उनके बुजुर्गों ने आज़ादी के लिए कितने बलिदान दिए हैं।

पांच साल से बंद हैं लाईट एंड साउंड कार्यक्रम

यह कैसी विडंबना है कि एक मूर्ति पर 3000 करोड़ से ज़्यादा खर्च करने वाली सरकार ने जलियांवाला बाग पर एक रुपया भी खर्च नहीं किया। पैसे के न होने के कारण बाग में हर रोज़ चलने वाला 52 मिनट का ‘लाईट एंड सांउड ‘ कार्यक्रम रुका पड़ा है। इस  विषय पर माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के एक सदस्य एमबी राजेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भी लिखा है। राजेश पिछले दिनों अपने परिवार के साथ बाग में आए थे, उन्हें बताया गया कि ‘लाईट एंड सांउड’ कार्यक्रम पैसे की कमी के कारण फिलहाल रोक दिया गा है। यह सब कार्य जलियांवाला बाग नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट करता है जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। राजेश ने लिखा कि जब जलियांवाला बाग नरसंहार को 100 साल हो रहे हैं तब भी सरकार ने इसकी सुध नहीं ली । अब उसे इसके लिए धन देना चाहिए।

सरकार ने अप्रैल 2010 से ‘लाईट एंड सांउड’ कार्यक्रम शुरू किया था, लेकिन 2014 से यह बंद पड़ा है। इस कार्यक्रम का उद्घाटन 14 अप्रैल 2010 को तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटोनी ने किया था। इसके बारे में पंजाब के पूर्व संस्कृति मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने बताया कि उन्होंने इस  कार्यक्रम को फिर से शुरू करने लिए केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय से आठ करोड़ रुपए स्वदेश दर्शन योजना के तहत मंजूर करवाए थे पर उनका क्या हुआ कुछ पता नहीं।

उधर राज्यसभा के पूर्व सदस्य वीरेंद्र कटारिया जो कि जलियांवाला बाग ट्रस्ट के सदस्य भी थे ने कहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में ट्रस्ट की एक भी बैठक नहीं हुई है और न ही एक पैसे का अनुदान मिला है। उन्होंने कहा कि एनडीए की सरकार बनने के बाद जलियांवाला बाग के किसी भी सरकारी समारोह में हमें नहीं बुलाया गया।

ट्रस्ट के नव मनोनित सदस्यों में राज्यसभा सदस्य श्वेत मलिक, पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिहं बादल, पूर्व सांसद त्रिलोचन सिंह हैं। मलिक ने कहा है कि सिद्धू और कटारिया को चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं। अब हम लोग आ गए हैं और सब देख लेंगे। उन्होंने कहा कि जलियांवाला बाग जाने के लिए प्रधानमंत्री की इज़ाजत लेने की कोई ज़रूरत नहीं है। इनमें से किसी ने यह यकीन नहीं दिलाया कि जलियांवाला बाग का इतिहास बताने वाला ‘लाईट एंड सांउड’ कार्यक्रम कब शुरू होगा।

नानक सिंह ने अपनी आंखों से देखा था वह मंजर

पंजाबी के मशहूर उपन्यासकार नानक सिंह जलियांवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। उस समय उनकी उम्र 22 साल की थी। 22 साल के इस युवक ने अपने दोस्त को गोलियों से मरते देखा। बैसाखी का यह दिन मातम में बदल गया। लोग अपने नेताओं सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलु की रिहाई की मांग को लेकर वहां इक_ा हुए थे। वहां से बच आने के बाद नानक सिंह ने 900 पंक्तियों की एक कविता लिखी जिसका उनवान था -”खूनी वसाखी’’। पंजाबी भाषा में लिखी गई यह कविता मई 1920 में प्रकाश्ति हुई। पर प्रकाशित होते ही अंग्रेज़ सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया।

 एक सौ साल के बाद ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीजा में ने इस घटना को अंग्रेज़ी  हकूमत के इतिहास का काला धब्बा बताया। नानक सिंह के पौत्र नवदीप सूरी जो कि सयुंक्त अरब अमीरात में भारत के राजदूत रहे ने अपने दादा की इस कविता का अनुवाद अंग्रेज़ी में किया। सूरी मिस्र व आस्ट्रेलिया में भी देश के राजनयिक रहे। उनका जन्म अमृतसर में उस स्थान पर हुआ जो जलियांवाला बाग से सटा हुआ  था। वहां सूरी ने अपने बचपन के आठ साल गुज़ारे।  सूरी का कहना है कि जब बाग में गोली चली तो मेरे दादा जी वहां मौजूद थे। वे वहां दोस्तों के साथ रॉलेट एक्ट के खिलाफ आयोजित रैली में भाग लेने गए थे। हमें पता चला कि जैसे ही गोलियां चलीं तो उस में मची भगदड़ में मेरे दादा जी ज़मीन पर गिर गए। फिर उनके ऊपर लाशों का ढेर लग गया। उनके दोनों दोस्त गोलीबारी में मारे गए। कुछ घंटे बाद जब उन्हें होश आया तो वे लाशों के ढेर से निकले। पर इस घटना का उन पर इतना असर हुआ कि वे कभी भी उस विषय पर बात नहीं करना चाहते थे।

बाद में नानक सिंह पंजाबी साहित्य में एक बड़ा नाम  बन गए। उन्हें 1962 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। ”खूनी वसाखी’’ में उन्होंने उस समय का पूरा इतिहास उकेर दिया। यह भी लिखा कि किस तरह जनरल डायर ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाई।

सूरी जब इस नरसंहार पर अनुसंधान कर रहे थे और किताब का अनुवाद कर रहे थे तो वे बीबीसी के पत्रकार जस्टिन रॉलेट के संपर्क में आए। रॉलेट के दादा सर सिडनी रॉलेट ने ही ”रॉलेट एक्ट’’ तैयार किया था। इसी कानून के खिलाफ नानक सिंह और दूसरे लोग इक_ा हुए थे। इस कानून का अर्थ था – ‘न दलील, न वकील, न अपील।’ 2015 से  2018 तक दिल्ली में बीबीसी  के दक्षिण एशिया संवाददाता रॉलेट ने अपनी किताब में जलियांवाला बाग की घटना का बड़ा भावुक चित्रण किया है। उसने लिखा-”मैं जब जलियांवाला बाग गया तो मैं एक कड़ी प्रतिक्रिया देना चाहता था। मैं रो तो नहीं रहा था पर मेरे पास शर्मिदा होने के कई और भी कारण थे। यहां जो लोग इक_ा हुए थे वे उस दमनकारी कानून का विरोध कर रहे थे जो मेरे दादा ने तैयार किया था। रॉलेट ने इसे एक कठोर कानून की संज्ञा दी। उसने कहा कि जब उसने दिल्ली में बीबीसी के संवाददाता के रूप में काम शुरू किया तो इस कानून के परिणाम उसके दिमाग में थे। उसे लगता था कि उसके दादा ने जो किया  उसके लिए भारत के लोग उससे खफ़ा होंगे। पर उसका यह डर निर्मूल साबित हुआ । कभी-कभी कुछ लोग उसे इस बात के लिए छेड़ते ज़रूर थे, पर कोई गुस्सा नहीं था।

नानक सिंह जिनकी कविता पर रोक लगा कर उसे खत्म कर दिया था, ने अपने जीवन में कभी उस कविता का जि़क्र नहीं किया। 1971 में उनके देहांत के बाद 1980 में यह कविता सामने आई। नानक सिंह ने लिखा था-”हमें अपनी यादों में बसाए रखना।’’

जलियांवाले बाग़ विच इकठ

पंच वजे अप्रैल दी तेहरवीं नूं,

लोकीं बाग़ वल होए रवान चले।

दिलां विच इनसाफ़ दी आस रख के,

सारे सिख हिन्दू मुसलमान चले।

विरले आदमी शाहिर विच रहे बाकी,

सब बाल ते बिरध जवान चले।

अज दिलां दे दुख सुणान चले,

सगों आपने गले कटवाण चले।

छड़ दिउ हुण आसरा जीवने दा,

क्योंकि तुसीं हुण छड जहान चले।

किस ने आवणा परत के घरां अंदर,

दिल दा दिलां विच छोड़ अरमान चले।

जलिआं वालड़े उजड़े बाग़ ताईं,

खून डोल के सबज़ बणान चले।

अज होएके सब पतंग कटठे,

उपर शमा सरीर जलाण चले।

हां हां जीवने तों ड़ाढे तंग आ के,

रुठी मौत नूं आप मनाण चले।

अनल-हक मनसूर दे वांग यारो,

सूली आपनी आप गड़ाण चले।

वांग शमस तबरेज़ दे खुशी हो के,

खलां पुठीआं अज लुहाण चले।

पंछी बना दे होएके सब कटठे,

भुखे बाज़ नूं अज रजाण चले।

ज़ालम इाईर दी तिर्खा मिटवाणे नूं,

अज खून दी नदी वहाण चले।

अज शहर विच पैणगे वैण डूंघे,

वसदे घरां नूं थेह बणाण चले।

सीस आपने रख के तली उत्ते,

भारत माता दी भेंट चढ़ाण चले।

कोई मोड़ लो रब दे बंदिआं नूं,

यारो! मौत नूं आप बुलाण नूं,

मवां लाड़ले बचिआं वालिओ नी!

लाल तुसां दे जान गवाण चले।

भैणो पिआरीओ! वीर ना जाण देणे,

विछड़ तुसां तों अज नादान चले।

पत्ती रोक लौ पिआरेओं नारीओ नी!

अज तुसां नूं करन वैराण चले।

पिआरे बचिओं! जफीआं घत मिल लौ,

पिता तुसां नूं अज रुलाण चले।

जा के रोक लौ, जाण ना मूल देणे,

मतां उके ही तुसां तों जाण ले।

नानक सिंह पर उन्हां नूं कौण रोके,

जिहड़े मुलक पर होण कुरबान चले।

जनरल डाईर न आउणा

ते गोली चलणी

ठीक वक्त साढ़े पंच वजे दा सी,

लोक जमां होए कई हज़ार पिआरे,

लीडर देश दा दुख फरोलणे नूं,

लैक्चर देंवदे सन वारो वार पिआरे।

कहंदे जीवणा असां दा होएआं औखा,

किथे जाइके करीऐ पुकार पिआरे।

कोई सुझदी नहीं तदबीर सानूं,

डाढ़े होए हां असीं लाचार पिआरे।

अजे लफज़़ तदबीर मूंह विच हैसी,

उधर फ़ौज ने धूड धुमा दिती।

थोड़ी देर पिछे फ़ौज गोरखे दी,

जनरल डाइर ने अगांह वधा दिती।

देे के हुक्म नहक निमाणिआं ते,

काड़ काड़ बंधूक चला दिती।

मिंटां विच ही कई हज़ार गोली,

उहनां ज़ालमां ख़तम करा दिती।

गोली की एह गड़ा सी कहर वाला,

वांग छोलिआं भुंने जवान उथे।

कई छातीआं छानणी वांग होईआं,

अैसे जुलमां मारे निशन उथे।

इक पलक दे विच कुरलाट मचिआ,

धूंआ धार हो गिया असमान उथे।

कई सूरमे पाणी ना मंग सके,

रही कईआं दी तड़पदी जान उथे।

भीड़े राह हैसन इस बाग़ दे जी,

एह रोकिया उहनां ने आण उथे।

कोई राह ना जाण नूं रिहा बाकी,

किदां बच करके निकल जाण उथे।

कोई बचिया होए नसीब वाला,

नहीं तां सारिआं ने दिते प्राण उथे।

कई गोलीआं खाईके नठ भजे,

रसते विच ही डिग मर जाण उथे।

कईआं नसदिआं नूं गोली काड़ वजी,

झट पट ही दिते प्रराण उथे।

पल विच ही लोथा दे ढेर लग गए,

कोई सके ना मूल पछाण उथे।

गिणती सिखां दी बहुत ही नजऱ आवे,

भावें बहुत हिंदू मुसलमान उथे।

सोहणे सूरमे छैल छबीलडे जी,

हाए तडफ़दे शेर जवान उथे।

सोहणे केस खुले मिट्टी विच रुलण,

सुते लंमीआं चादरां ताण उथे।

नानक सिंह ना पुछदा बात कोई,

राखा उहनां दा इक भगवान उथे।

हिंदुस्तानी वह भी था जिसने आवाज़ उठाई

ब्रिटिश सरकार ने भारत की आज़ादी के सिपाहियों या कहें तब के आंदोलनकारियों पर जो दमनकारी नीति अपनाई थी उसका सबूत 13 अप्रैल 1919 में जलियांवाला बाग में दिखा था जहां निहत्थे लोगों पर गोलियां चला कर हज़ार से ऊपर लोगों को मार दिया गया।

उस समय वायसराय एक्जक्यूटिव कौंसिल (इसकी महत्ता आज के केंद्रीय मंत्रिमंडल जितनी थी) में तब भारतीय प्रतिनिधि चेत्तूर संकरन नैयर (1857-1934) ने इस सामूहिक नरसंहार के खिलाफ अपना इस्तीफा दे दिया। उन्होंने आत्मकथा में लिखा है। ‘लगभग हर दिन मुझे शिकायतें मिलतीं, निजी और पत्रों से अमृतसर के जालियांवाला बाग में हुए नरसंहार और मार्शल ला प्रशासन की। उसी समय मैंने देखा कि लॉर्ड चेम्सफोर्ड (वायसरॉय) जो कुछ पंजाब में हो रहा था उसकी हिमायत में लगे थे। इससे मुझे धक्का लगा। मैंने इस्तीफा दे दिया।

इस इस्तीफे का तत्काल असर पड़ा। प्रेस पर लगी सेंसरशिप तुरंत हटा ली गई और पंजाब से मार्शल लॉ उठा लिया गया। राष्ट्रवादी सोच को बढ़ावा दिया गया। रॉयल कमीशन गठित किया गया। जिसकी अध्यक्षता लार्ड हंटर ने की। इस आयोग में भारतीय और अंग्रेज़ दोनों ने पंजाब में हुई उन घटनाओं की जांच पड़ताल शुरू की जो वहां हुई थीं।

संकरन नैयर के जीवनीकार केपीएस मेनन ने लिखा है, वह समय शायद संकरन नैयर का जि़ंदगी का सबसे शानदार ज्य़ादा और सुनहरा समय था। उनके सितारे चमक रहे थे। वे मद्रास से इस्तीफा देकर लौट रहे थे। हर कहीं भोज और मनोरंजन का माहौल था। जब भी ट्रेन रूकती तो रेल की पटरियों पर पटाखे बजाए जाते। यह जताने के लिए वह गोलीबारी कैसी रही होगी जो निहत्थे लोगों पर की गई।

उस ज़माने में वाइसराय एक्जक्यूटिव कौंसिल में संकरन नैयर का पहुंचना एक बड़ी उपलब्धि थी। उन्होंने 1880 में वकालत शुरू की थी। वे मद्रास बार के एक योग्य सदस्य थे। उन्हें 1890 में मद्रास लेजिस्लेटिव कौंसिल में नियुक्त किया गया। उन्होंने 1896 में मलाबार मैरिज एक्ट पर अमल कराया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन में भी भाग लिया। उन्होंने 1897 में भारतीय राष्ट्रीय कांगे्रस के अमरावती सत्र में भाग लिया। वे पहले भारतीय थे जो 1907 में मद्रास सरकार के एडवोकेट जनरल नियुक्त हुए। उसी साल बाद में मद्रास हाईकोर्ट के जज भी बने।

संकरन नैयर के शब्दों में न्यायालय में उनकी छुट्टी एक तरह से नखालिस्तान सा ही था जब तक कि वे 1916 में वाइसराय की एक्टक्यूटिव कौंसिल में शिक्षा के कार्यालय  में नियुक्त नहीं हुए। यह पद भारत सरकार में तब काफी ऊंचा और सम्मानजनक थी। जिस पर पहुंचने की अभिलाषा तब की पीढ़ी के लोगों में खूब थी। संकरन के जिम्मे  30 से ज्य़ादा महकमे थे। जिनके बॉस अंग्रेज अफसर थे।

भारत राज्य के सचिव एडविन पांटेगू ने पहले सोचा कि संकरन नैयर थोड़े असहज से व्यक्ति हैं लेकिन बाद में वे उनकी सत्यनिष्ठा और मेधा से खासे प्रभावित हुए। उन्होंने माना कि उसका खासा प्रभाव है। पहले विश्वयुद्ध ब्रिटेन को सहयोग देने की बात को संकरन नैयर ने उचित मांग के रूप में माना और भारत से सहयोग की बात भी उचित मानी।

लेकिन संकरन नैयर ने मांटेगू-चेम्सफोर्ड की उस रपट पर अपनी नाराजगी जताई थी। उनका पत्र ब्रिटिश संसद में पढ़ा गया। उसे प्रभावशाली माना गया अैर 1919 में ब्रिटिश संसद ने भारत सरकार के  1919 में कानून को अमल में लिया। इसके साथ ही देश में अपनी सरकार की बुनियाद पड़ी। भारत की आज़ादी के लिहाज से यह एक महत्वपूर्ण कदम था।

वाइसराय की एक्जक्यूटिव कौंसिल से अपना इस्तीफा देने के बाद संकरन नैयर लंदन चले गए वहां उन्होंने अंग्रेजी प्रशासन और जनता में उन अत्याचारों की कहानी बतानी शुरू की जो ब्रिटिश अधिकारी-कर्मचारी पंजाब में कर रहे थे।

मैंने तय कर लिया था कि मैं ऐसी व्यवस्था कर सकूं कि भारत में फिर जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार जैसी घटना फिर न हो। उनके प्रयासों के चलते नागरिक असंतोष को शांत करने की जबरन कार्रवाई को नरसंहार माना गया। हाउस ऑफ कामन्स में जब जलियांवाला बाग नरसंहार पर बहस हो रही थी तो चर्चिल ने उनके लिखे को पढ़ा भी।

साभार: द हिंदू

क्या सबक लिया हमने जलियांवाला बाग नरसंहार से?

कहा जाता है कि इतिहास खुद को दोहराता है। पहले एक त्रासदी बनके और फिर एक स्वांग या तमाशा। जलियांवाला बाग शताब्दी समारोह भी कुछ ऐसा ही है। भारतीय मूल के सांसदों ने जब यह मुद्दा उठाया तो ब्रिटिश संसद में इस पर चर्चा हुई। प्रधानमंत्री टेरीज़ा मे ने  इस पर गहरा दुख व्यक्त किया पर माफी मांगने जैसी कोई बात नहीं हुई। हालांकि अंग्रेज़ी राज की यह एक ऐसी घटना है जो मानवता पर हुए किसी भी अत्याचार का पर्याय बन गई। इस प्रकार की किसी भी घटना के लिए आज उसे ‘एक और जलियांवाला बाग’ का नाम दे दिया जाता है।  हालांकि इस कहावत से जलियांवाला कांड की त्रासदी थोड़ी कम नजऱ आती है।

जलियांवाला बाग घटना की पृष्ठभूमि 1918 से है। उस समय लार्ड चेम्सफोर्ड ने एक समिति का गठन किया था। इस समिति का काम देश, खासतौर से पंजाब और बंगाल में लगातार बढ़ रही क्रांतिकारियों की गतिविधियों पर नकेल कसना था। इस समिति के अध्यक्ष लार्ड सिडने रॉलेट थे। उन दिनों 1915 में बनी गदर पार्टी, काफी तेजी से बढ़ रही थी। अंग्रेज सरकार के लिए यह एक बड़ा खतरा था। इस समिति ने अपनी रपट  अप्रैल 1918 को सरकार को सौंप दी। इस के आधार पर एक नया दमनकारी कानून रॉलेट एक्ट के रूप में सामने आया। यह कानून 10 मार्च 1919 को दिल्ली में पारित किया गया। भारतीय समाज ने इसका खुला विरोध किया। जगह-जगह प्रदर्शन और जनसभाएं होने लगी। तब महात्मा गांधी राष्ट्रीय परिदृश्य पर उभर रहे थे। उन्होंने 30 मार्च 1919 को देशव्यापी हड़ताल की घोषणा की। पर हड़ताल के इस नोटिस की अवधि कम थी। इस कारण हड़ताल के लिए छह अप्रैल 1919 का दिन तय किया गय। पर फिर भी दिल्ली समेत कई स्थानों पर 30 मार्च को हड़ताल रखी गई। हड़ताल के दौरान कई स्थानों पर हिंसा हुई और पुलिस ने भी काफी क्रूर रूख अपनाया।

उस समय कांग्रेस पार्टी का अधिवेशन अमृतसर में करने की योजना बना रही थी। महात्मा गांधी उससे पहले कभी पंजाब नहीं आए थे। इस कारण उन्होंने छह अप्रैल से पहले अमृतसर पहुंचने की योजना बनाई। पर दिल्ली में प्रदर्शनकारियों ने उन्हें दिल्ली में घुसने भी नहीं दिया और वे वापिस जा कर पलवल में रुक गए।

अमृतसर और पंजाब में घटनाएं तेजी से घटने लगीं। नौ अप्रैल 1919 को रामनवमी थी। डाक्टर सत्यपाल और  सैफुद्दीन  किचलू का इस क्षेत्र में भारी असर था। इस कारण उस समय हिंदुओं और मुसलमानों ने मिल कर रामनवमी मनाई। इस एकता से अंग्रेज़ घबरा गए। हिंदू-मुस्लिम एकता का परिणाम वे 1857 और 1915 में गदर आंदोलन के दौरान देख चुके थें सरकार ने 10 अप्रैल को किचलू और डाक्टर सत्यपाल को उपायुक्त ने बातचीत के लिए बुलाया और गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद उन्हें ऐसी  जगह भेजा गया जिसका किसी को पता नहीं था। इससे लोगों में क्रोध भड़क गया। इसी वातावरण में 11 अप्रैल 1919 को कुछ लोगों ने एक अंग्रेज़ महिला शेरवुड और उसके पुरूष साथियों पर हमला कर दिया। शेरवुड को तो बचा लिया गया पर उसके कुछ पुरुष साथी मारे गए। इसके बाद एक बैठक हुई और विरोध करते हुए 25 लोग भादरी पुल पर अंग्रेज़ पुलिस के हाथों मारे गए। 13  अप्रैल 4.30 बजे नेताओं  ने एक आम बैठक जलियांवाला बाग में बुलाई। इससे पहले भी जनसभाएं इसी स्थान पर होती थीं, इससे एक दिन पूर्व यानी 12 अप्रैल को जनरल डायर को जलंधर से अमृतसर भेजा गया ताकि वह पंजाब के उपराज्यपाल माइकल ओ डायर की सहायता कर सके। जनरल डायर अपनी पूरी फौज को जलियांवाला बाग ले गया और उसने निहत्थे लोगों पर गोलियों की बरसात कर दी। 10 मिनट में 1650 गोलियां चली और सैकड़ों  लोग कुछ ही मिनटों में मारे गए। वहां घायलों के लिए चिकित्सा की भी कोई सुविधा नहीं थी। यदि डाक्टरी सेवा उपलब्ध होती तो कई जानें बचाई जा सकती थीं। पर पुलिस का आतंक इतना था कि 13 अप्रैल 1919 की पूरी रात लोग पानी और दवाइयों की कमी के कारण मरते रहे। केवल अगले ही दिन आम लोग बाग में पहुंच सके और घायलों की सहायता कर पाए। उसी समय मृतकों को भी निकाला गया। भगत सिंह भी 14 अप्रैल को वहां गए और खून से सनी मिट्टी का एक ‘जार’ भरकर ले गए। यह ‘जार’ आज भी उनके पुश्तैनी घर खड़करकलां के अजाबघर में रखा हुआ है। 15 अप्रैल 1919 को पूरे पंजाब में मार्शल लॉ लगा दिया गया। जनरल डायर ने लोगों को उस स्थान पर घुटनों के बल चलवाया जहां अंग्रेज़ महिला शेरवुड पर हमला हुआ था। इसके अलावा गुजरांवाला , लाहौर और दूसरे शहरों में भी लोगों पर भारी अत्याचार किए गए।

लेखकों और कवियों ने अपनी रचनाओं द्वारा लोगों का गुस्सा उभारा। उनमें से कई रचनाओं और पुस्तकों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। सुभद्रा कुमारी चौहान, नानक सिंह, फिरोज़दीन शराफ और कई और लेखकों ने भी अपना गुस्सा जाहिर किया। जब सैनिकों ने गोलियां बरसाई थी उस समय युवा नानक सिंह बाग में मौजूद थे । वे तो लाशों के ढेर के नीचे दब कर बच गए।

महात्मा गांधी ने 19 अप्रैल को अपना सत्यग्रह वापिस ले लिया। राविंद्रनाथ टैगोर ने अंग्रेज़ी सरकार द्वारा दिया गया ‘नाइट हुड’  का खिताब लौटा दिया। लोग महीनों तक इस नरसंहार को भूल नहीं पाए।

आज जब इस घटना की शताब्दी मनाई जा रही है तो कई सवाल सामने आते  हैं। इस तरह की घटनाएं उपनिवेशीय शासकों के दौर में कोई हैरान करने वाली बात नहीं है। इससे भी भयंकर हालात 1952 से 1959 के बीच केन्या में रहे। इस दौरान सरकारी आंकड़ों के अनुसार 11,000 लोग मारे गए जब अपुष्टि खबरों में यह आंकड़ा 30 लाख तक जाता है, पर लोग मानते है। कि 25,000 लोग मारे गए थे। जलियांवाला बाग में अधिकारिक आंकड़ा 370 का पर कांग्रेस की रिपोर्ट इसे लगभग 1000 बताती है। उधर राम सिंह मजीठिया की दो खंडों की पंजाबी में लिखी किताब जो 60 के दशक में छपी थी, मरने वालों की संख्या 460 बताती है। उन्होंने यह भी बताया कि मरने वालों में कितने सिख, हिंदू, मुस्लिम और ईसाई थे। बाद में अमृतसर प्रशासन ने 500 से ज़्यादा की गिनती बताई। अंग्रेज़ सरकार ने भी 50 रुपए से 100 रुपए तक की सहायता मृतकों को दी थी।

अब जब माफी की बात आई है तो अंग्रेज़ों को भय है कि उन्हें मुआवजे के रूप में भारी धन देना पड़ेगा। यह बात भी सही है कि मुआवजे की मांग क्यों नहीं की जानी चाहिए? कुछ साल पहले ब्रिटिश की एक अदालत ने सरकार को आदेश दिया था कि वह केन्या के ‘माऊ-माऊ’ आंदोलन में मारे गए लोगों के आश्रितों को लाखों पाउंड का मुआवजा दे। तब जलियांवाला बाग की घटना इससे अलग कैसे देखी जा सकती है। यह मुआवजा ब्रिटेन की सरकार ने अपनी जेब से नहीं देना है। यह तो वह पैसा है जो अंग्रेज़ों ने भारत और दूसरे देशों से अपनी सत्ता के दौरान लूटा था।

पर भारत की सरकार में इतना हौसला है कि वह अंग्रेज़ सरकार से मुआवज़ा मांग सके। भारत की सत्ताधारी पार्टी, जलियांवाला बाग नरसंहार को महत्व ही नहीं देती। नही ंतो यह कैसे हो सकता है कि 100 साला समारोह में देश का प्रमुख हिस्सा ही न ले। वहां देश के उपराष्ट्रपति को भेजा जा रहा है। इतना ही नहीं भारत की सत्ताधारी पार्टी भी अंग्रेज़ों की राह पर चल रही है। उसने अमृतसर और जलियांवाला बाग में पूरी रोक लगा रखी है ताकि श्रद्धांजलि देने वाले लोग खुले तौर पर न घूम सकें। बहुत से किसान, छात्र, मज़दूर और नौजवान जलियांवाला बाग तक मार्च करना चाहते हैं। पर उन पर कई रूकावटें लगा दी गई हैं।

आम लोगों की त्रासदी को महत्वपूर्ण लोगों के समारोह में बदल दिया गया है। इतना ही नहीं बल्कि सरकार ने रॉलेट एक्ट जैसे कई कानून बना दिए हैं। अंग्रेज़ों को तो तीन साल बाद 1922 में यह कानून वापिस लेना पड़ा था यहां डीआईआर, मीसा, यूएपीए और एएफपीएसए (अफसा) जैसे कानून दशकों से लागू हैं। इस लिहाज़ से क्या भगत सिंह सही नहीं थे, जब वे कहते थे कि क्या फर्क पड़ता  है यदि पुरूषोत्तम दास थक्कर या सर तेजबहादुर सप्रू को लाई इरविन की जगह देश का वायसराय बना दिया जाए।

आज भी देश के हालात लगभग उसी तरह के बनते जा रहे हैं। देश को धर्म और संप्रदाय के नाम पर बांटा जा रहा है। देखने की बात यह है कि क्या हमने जलियांवाला बाग नरसंहार से कुछ सीख ली है?

(लेखक: जेएनयू के सेवानिवृत प्रोफेसर हैं।)

।। चौकीदार।।

तंग-संकरी गलियों से गुज़रते

धीमे और सधे कदमों से

चौकीदार ने लहरायी थी अपनी लालटेन

और कहा था – सब कुछ ठीक है

बंद जाली के पीछे बैठी थी एक औरत

जिसके पास अब बचा कुछ भी न था बेचने के लिए

चौकीदार ठिठका था उसके दरवाजे पर

और चीखा था ऊंची आवाज में – सब कुछ ठीक है

घुप्प अंधेरे में ठिठुर रहा था एक बूढ़ा

जिसके पास नहीं था खाने को एक भी दाना

चौकीदार की चीख पर

वह होंठों ही होंठों में बुदबुदाया – सब कुछ ठीक है

सुनसान सड़क नापते हुए गुज़र रहा था चौकीदार

मौन में डूबे एक घर के सामने से

जहां एक बच्चे की मौत हुई थी

खिड़की के कांच के पीछे झिलमिला रही थी एक पिघलती मोमबत्ती

और चौकीदार ने चीख कर कहा था – सब कुछ ठीक है

चौकीदार ने बितायी अपनी रात

इसी तरह

धीमे और सधे कदमों से चलते हुए

तंग-संकरी गलियों को सुनाते हुए

सब कुछ ठीक है!

सब कुछ ठीक है!!

प्रस्तुति: अविनाश दास

स्वयं चौर्यं कदादचिन्नाचरन्त्येते।

अनिर्बाधं तु चोरेभ्योऽवकाशं वै ददत्येते।।ं

              चौकीदार कदाचित् स्वयं चोरी नहीं करते।

              वे तो बेरोक चोरों को मौका देते हैं।

न चास्त्येक: प्रतीहारो न वै चोरस्तथैको वा।

समं चोरैश्च रथ्यासु प्रतीहारा: सरन्त्येते।।

              कोई एक चौकीदार नहीं हैं, न चोर ही एक है।

              चोरों के साथ गली गली में चौकीदार घूम रहे हैं।

अभिज्ञानं न शक्येत क्वचित् काले करालेऽस्मिन्।

प्रतीहारा भवन्त्येते तथा चौरा भवन्त्येते।

              इस विकराल समय में कभी कभी पहचान करना

              संभव नहीं होता कि ये चौकीदार हैं, और ये चोर।

रतस्त्वाश्यन्त्येते जनान् सर्वान् प्रतीहारा:।

ततो दत्वाऽथ सङ्केतं तु चोरेभ्यो लयन्त्ये।

              चौकीदार इधर तो लोगों को भरोसा दिलाते रहते हैं

              और उधर चोरों को इशारा कर के खिसक लेते हैं।

कियन्त: सन्ति चोरास्ते कियन्तो वा प्रतीहारा:।

न चायं वल्लभो वेत्तिन विद्वांसो विदन्त्येते।।

              कितने तो चोर हैं, और कितने चौकीदार

              इस बात को न तो यह वल्लभ जानता है, न ये विद्वज्जन।

आचार्य राधा वल्लभ त्रिपाठी की संस्कृत गज़़ल।

प्रस्तुति: विजय राय