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बिना सुरक्षा घेरे के चलते हैं केरल के मुख्यमंत्री

क्या मुख्यमंत्री के काफिले में मात्र एक सुरक्षा वाहन होता है, जिसमें चार पाँच सुरक्षाकर्मी सवार हों? क्या मुख्यमंत्री के काफिले में एंबुलैंस और फायर ब्रिग्रेड वाहन नहीं होगा? क्या मुख्यमंत्री का रूट नहीं लगेगा? क्या मुख्यमंत्री की रैली में तैनात सबसे बड़ा पुलिस अधिकारी सहायक सब इंस्पेक्टर हो सकता है? क्या रैली स्थल पर लोगों और स्टेज के बीच सुरक्षा ‘डी’ नहीं होगी? क्या रैली स्थल पर आने वाले लोगों की गहन तलाशी नहीं होगी? क्या रैली स्थल के आस पास मुख्यमंत्री के पहुँचने के बाद भी यातायात नहीं रोका जाएगा? क्या मंत्री बिना किसी सुरक्षा वाहन के चलते हैं?

उत्तर भारत के राज्यों में कम से कम ऐसा असंभव सा लगता हैं, परन्तु हमारे देश में ही अभी भी कुछ राज्य हैं, जहाँ मुख्यमंत्री और सहयोगी मंत्रियों की सुरक्षा के नाम पर लोगों के अरबों रुपए खर्च नहीं किए जाते। जिनमें केरल भी शामिल हैं। केरल की 140 सदस्यीय विधानसभा में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार है। यहाँ मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन हैं, जोकि केरल के 12वें मुख्यमंत्री हैं। गत 23 फरवरी को पलक्कड में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने मजदूरों के लिए ‘अपना घर’ प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया। इस अवसर पर इस प्रोजेक्ट के पास ही मुख्यमंत्री ने एक रैली को संबोधित किया, जिसमें लगभग तीन हजार लोगों ने भाग लिया। मुझे यह रैली कवर करने का अवसर मिला। इस दौरान मैंने नोट किया कि रैली में आने वाले लोगों से न तो पूछताछ की जा रही है और न ही उनकी गहन जाँच की जा रही हैं। दोपहर बाद रखी गई इस रैली में बहुत से लोग अपने साथ लंच बाक्स और बैग लेकर आए थे, परन्तु उनकी भी जाँच नहीं की गई। ऐसा नहीं है कि वहाँ पुलिस कर्मी तैनात नहीं थे, परन्तु उनकी संख्या भी मात्र 50 के आस पास होगी, जिसमें से कुछ बिना वर्दी के थे। इस रैली में सुरक्षा हेतु कोई ‘डी’ नहीं बनाई गई थी। लोगों और स्टेज के बीच की दूरी लगभग 10 से 15 फुट के बीच होगी। रैली स्थल पर वर्दीधारी सबसे ऊँचा रैंक सहायक सब इंस्पेक्टर का था। जिनकी गिनती 5-6 होगी। रैली स्थल पर पुलिस कंट्रोल रूम की जिप्सी जरुर तैनात थी। केरल के श्रम और कौशल मंत्री टी पी रामाकृष्णन ने मुझे तिरुवनंतपुरम स्थित अपनी सरकारी कोठी पर चाय पर बुलाया तो मैंने वहाँ नोट किया कि एक भी सुरक्षा कर्मचारी मंत्री की कोठी पर तैनात नहीं था। इसी प्रकार तिरुवनंतपुरम में स्थित सिविल सचिवालय में भी सुरक्षा के नाम पर नाम मात्र सुरक्षा कर्मचारी तैनात थे।

केरल की जनसंख्या 3.34 करोड़ है, जोकि पंजाब के मुकाबले लगभग 60 लाख, जबकि हरियाणा के मुकाबले लगभग 80 लाख अधिक हैं, परन्तु फिर भी केरल में पुलिस कर्मचारियों की संख्या पंजाब के मुकाबले लगभग 25 हजार और हरियाणा के मुकाबले लगभग दस हजार कम है। पंजाब पुलिस में इस समय 75 से अधिक पुलिस कर्मी तैनात हैं। दूसरी ओर हरियाणा राज्य की जनसंख्या लगभग 2.53 करोड़ है, परन्तु पुलिस कर्मचारियों की संख्या लगभग 60 हजार है। पंजाब में वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री की सुरक्षा में तैनात 1392 पुलिस कर्मचारी की संख्या को कम करके 1016 कर्मचारी किया गया था, परन्तु फरवरी 2019 के पुलवामा अटैक के बाद मुख्यमंत्री की सुरक्षा में एक बार फिर वृद्धि कर दी गई। गौरतलब है कि एक जिले के सभी पुलिस थानों में लगभग इतने ही पुलिस कर्मी तैनात होते हैं। ऐसा भी नहीं है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटने के बाद भी इतने ही पुलिस कर्मी तैनात रहेंगे। मुख्यमंत्री की कुर्सी से हट जाने के बाद पुलिस कर्मचारियों की संख्या कम करके दस बारह पर पहुँच जाती है। यहाँ प्रश्न यह है कि तब खतरा इतना कम हो जाता है कि सुरक्षा कर्मचारियों की संख्या एक प्रतिशत से भी कम कर दी जाती है। पंजाब के स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को ‘जैड प्लस’ सुरक्षा दी गई है। उन्हें बुलेटप्रूफ टोयोटा लैंड कू्रजर के साथ साथ एनएसजी कमांडो द्वारा सुरक्षा प्रदान की जा रही है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल की सुरक्षा में भी पाँच सौ से ज़्यादा पुलिस कर्मचारी तैनात हैं। कैप्टन अमरेन्द्र की सुरक्षा इंचार्ज के तौर पर महानिरीक्षक राकेश अग्रवाल को तैनात किया गया है, वहीं मनोहर लाल की सुरक्षा में भी महानिरीक्षक स्तर का अधिकारी तैनात है।

पंजाब हरियाणा के मुख्यमंत्री के साथ कम से कम 10 गाडिय़ों का काफिला चलता है, जिसमें एंबुलैंस और फायर ब्रिग्रेड भी शामिल होती हंै। इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री के काफिले को निकालने के लिए रूट लगता है। जिसमें जगह जगह पर बड़ी संख्या में अन्य पुलिस कर्मी डयूटी पर तैनात रहते हैं। रास्ते में आने वाली सभी ट्रैफिक लाईटस को बंद कर दिया जाता है और वहाँ तैनात यातायात कर्मी यातायात व्यवस्था अपने हाथ में ले लेते हैं। अन्य वाहन चालकों के लिए रास्ता रोक दिया जाता है। यहाँ यहाँ से मुख्यमंत्री का काफिला निकलता है, वहाँ के संबंधित पुलिस थाने के एसएचओ की यह डयूटी है, कि वह अपनी गाड़ी मुख्यमंत्री के काफिले के आगे लगा कर अपना थाना क्षेत्र पार करवाएगा। अपने राज्य में अगर कंही पर मुख्यमंत्री ने हेलीकाप्टर से जाना है, तो भी मुख्यमंत्री का काफिला संबंधित गंतव्य स्थान के लिए पहले ही रवाना कर दिया जाता है। मज़ेदार बात यह है कि मुख्यमंत्री के बिना जाने वाले काफिले के दौरान भी रास्ते में सुरक्षा संबंधी वहीं प्रक्रिया अपनाई जाती है, जोकि मुख्यमंत्री के साथ होने पर। पंजाब हरियाणा में मुख्यमंत्री की सुरक्षा में महानिरीक्षक स्तर के अधिकारी तैनात हैं। इतना ही नहीं दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की चंडीगढ के सेक्टर दो और तीन स्थित सरकारी कोठियाँ किसी अभेद किले से कम नहीं हैं। इसी प्रकार मुख्यमंत्री की रैली को भी अभेद किले में तब्दील कर दिया जाता है।

दबे पांव आते आतंक से हर पल सजगता ज़रूरी

तकरीबन दस दिन बीते। पूरा श्रीलंका भयंकर शोक में है। अप्रैल में ईस्टर का रविवार एक ऐसी भयानक सुबह थी जब सूरज की तपिश बढ़ रही थी और ज़मीन पर लगभग हर कहीं धमाके हो रहे थे। हर कहीं खून, दहशत, भागदौड़, रोना-बिलखना। तीन गिरजाघरों में लोग आए थे प्रार्थना के लिए तभी हुए धमाके। तीन पांच सितारे होटलों में पहुंचे थे अलग-अलग आत्मघाती विस्फोटक मानव। लोग कतार में नाश्ते के लिए खड़े थे। अचानक ज़ोरदार धमाका। कोई कुछ समझता तब तक सब कुछ राख। हर कहीं खून, गोश्त के लोथड़े और कपड़े। बस।

श्रीलंका सरकार का मानना है कि नए किस्म का यह आतंकवाद है। इससे निपटने के लिए संविधान में हेर फेर भी करना पड़ सकता है। तकरीबन 253 लोग मारे गए। तमिल आतंकवाद से कहीं अलग है यह। प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे बड़े $गमगीन कहते हैं। सूचना आई थी लेकिन उस पर ध्यान नहीं दिया गया। अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन आईएसआईएस ने घटना के 72 घंटों के बाद जिम्मेदारी ली है। दावा किया न्यूजीलैंड मेें हुए हादसे की यह जवाबी र्कावाई है।

गिरजाघरों में लोग अपनी खुशी-$गम बांटने के साथ ही प्रभु को याद करने ही तो गए। माताओं के साथ बच्चे थे, परिवार था। सामूहिक प्रार्थना सभा में मौजूद था आत्मघाती मानव। कितना ताकतवर था वह धमाका। गिरजाघर की ऊँची छतें उखड़ गई। न जाने कहां गिरीं।

राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने पूरे देश में इमरजेंसी घोषित कर दी थी। पूरे देश में आतंकवादी ठिकानों की खोज शुरू हुई। एक फैक्ट्री पर गोलाबारी की गई। पंद्रह मारे गए। इन में पांच बच्चे भी थे। फैक्ट्री से बड़े पैमाने पर हथियार, गोला-बारूद, आईएसआईएस के झंडे बरामद हुए।

श्रीलंका की स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक डाक्टर अनिल जयसिंधे कहते हैं कि हमने अपनी छानबीन में पाया कि धमाकों में मारे गए लोगों की तादाद लगभग 253 है। उन्होंने कहा कि शुरू की भगदड़ चीख-पुकार में जो आंकडे आए थे वे 359 लोगों के मरने की तादाद बता रहे थे। लेकिन छानबीन के बाद अब तक 253 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई है। श्रीलंका सरकार ने पूरे देश में मुस्लिम महिलाओं पर बुर्का पहनने पर रोक लगा दी है। मुल्ला-मौलवियों ने इसे अस्थाई मान कर समर्थन दिया है।

राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने बताया कि रक्षा सचिव हेमश्री फरनांदो ने अपना इस्तीफा भेज दिया है। पुलिस प्रमुख पुजिय जय सुंदरा को अपने अपने पद से इस्तीफा देने को कहा है। उन्होंने क्योंकि इस्तीफा देने से इंकार कर दिया है इसलिए वे छुट्टी पर भेजे गए। एक डिप्टी आई जी अब बतौर कमिश्नर नियुक्त हुए हैं। धमाकों का होना और हथियारों की बरामदगी बदस्तूर जारी है। पुलिस के एक प्रवक्ता ने बताया कि राजधानी के पूर्व में एक धमाका हुआ लेकिन उसमें कोई मारा नहीं गया। पुलिस ने जनता को सलाह दी है कि वे अपने कार्यलयों से जल्दी लौट जाए जिससे कभी वे भीड़ का हिस्सा न बनें। सेंट्रल कोलंबों के रेस्टोरेंट भी इसलिए अब जल्दी ही बंद हो जाते हैं।

श्रीलंका सरकार ने 39 देशों के यात्रियों को आने पर वीजा देने की प्रक्रिया फिलहाल रोक दी है। भारत समेत कई देशों ने अपने नागरिकों को श्रीलंका न जाने की सलाह दी है। ईस्टर संडे (21 अप्रैल) का दिन पूरे श्रीलंका के लिए भयावह था। पूरे देश में तकरीबन आठ धमाके हुए। अधिकारियों को अंदेशा है कि दो या तीन धमाके और हो सकते हैं, कहीं भी। गिरफ्तारियां पंद्रह से ज्य़ादा हुई हैं और रात तक सात कथित अभियुक्त गिरफ्तार किए गए हैं।

राष्ट्रपति सचिवालय के सलाहकार और समन्वंय अधिकारी शिराल लक्थिलका ने जानकारी दी कि पुलिस ने संदेहास्पद तरीके से नज़र आ रहे सात लोगों को अपने घेरे में लिया है। ये एक गाड़ी में थे और कोलंबों के सिनॉमॉन ग्रैंड होटल में धमाके से पहले गिरफ्तार किया है। इस तरह एक के बाद दूसरा (सीरियल)धमाका पहले कभी नहीं देखा गया। यहां तक कि जब श्रीलंका में तमिल टाइगर (लिट्टे) से कड़ा युद्ध हो रहा था। अलबत्ता नाईजीरिया में ज़रूर ऐसा ही हमला (2011) में हुआ। उन्होंने बताया कि हमने तत्काल उस गाड़ी को कोलंबों के उत्तरी इलाके में एक अपार्टमेंट के परिसर में बरामद कर लिया। सुरक्षा दस्तों ने पूरे अपार्टमेंट को घेरे मेें ले लिया जब तीसरी मंजिल पर अधिकारी तलाशी के लिए एक फ्लैट में घुसने को थे तभी कहीं से एक सुसाइड बांबर ने धमाका किया। इसमें स्पेशल टास्क फोर्स के एक अधिकारी और दो कांस्टेबल मारे गए। जो इस छानबीन टीम में थे।

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इस घटना के संदर्भ में तमाम तरह की छानबीन की जा रही है। हमारा संदेह उन अंतरराष्ट्रीय तत्वों पर भी है जो हमारे संदेह के घेरे में हैं।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार यह जानकारी मिली थी एक भारतीय और एक श्रीलंका के सूत्र से कि आतंकी हमला होने को है। ऐसा अनुमान है कि 11 अप्रैल को भारतीय हाई कमीशन ने चर्च को सजग किया गया था। इस चेतावनी में एक गुट का नाम भी उभरा। इसका नाम था नेशनल ट्हवीट जमात। जो इस्लाम शुद्धतावादी खुद को बताते थे। पूरे देश में सिंहल-तमिल नववर्ष के चलते 12 अप्रैल से बंदी सी थी। यानी किसी ने तब कोई ध्यान ही नहीं दिया। इस देश में पिछले एक दशक से शांति का माहौल रहा है। चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया जाता।

आतंकवाद पड़ोस में। नया शिकारगाह श्रीलंका। ईस्टर के रविवार की सुबह एक के बाद एक आठ धमाके। निशाना बने तीन ऐतिहासिक गिरजाघर और तीन बड़े होटल। तकरीबन तीन सौ लोग मारे गए। छह सौ से ज़्यादा घायल। होटलों में टिके 45 पर्यटक भी आए धमाके की चपेट में। सरकार को सजग रहने की चेतावनी थी। लेकिन वह सरकारी स्तर पर नजऱअंदाज की गई। फिर देश में जान-माल का भारी नुकसान। कोलंबों में कफ्र्यू। पूरे देश में अब आपातकाल। तीस साल की सिविल वार के दौरान भी पूरे देश में आपातकाल था। अब फिर।

जब लगभग यकीन हो रहा था कि तकरीबन दस साल पहले देश में तीस साल चली सिविल वार में लिट्टे की सैनिक पराजय के बाद अब देश में धीरे-धीरे शांति होगी, प्रगति होगी। अचानक धमाकों से दहल उठा कोलंबों। आत्मघाती दस्ते के लोगों ने रचा यह खेल। कामयाब रहे दहशत भड़काने में। लेकिन इस खूनी खेल के पीछे दस्ता कौन है इसका अभी खुलासा नहीं हुआ है। हालंाकि सरकारी प्रवक्ता ने स्थानीय संस्था का नाम ‘नेशनल तौहीद जमात’ का नाम ज़रूर लिया है। लेकिन वे खुद कहते हैं कि इस नए नाम से लगता नहीं कि आर्थिक तौर पर ये इतने सक्षम हैं कि ऐसी खूनी हरकत को अंजाम दे सकें। यानी यह खोल होगा। पीछे होंगी कई दूसरी बड़ी ताकतें। क्या मकसद है निर्दोषों के ऐसे खून-खराबे से?

श्रीलंका में आज दो करोड़ बीस लाख मुसलमान हैं। वहां सेक्युलर तस्वीर रही है। श्रीलंका के राजनीतिक दल सेक्युलर होने को देशहित में मानते हैं। लेकिन अब ईसाइयों के पीछे जो खूनी रंगत दिखी वह पूरे देश के लिए चेतावनी है।

श्रीलंका के कोलंबों में अलग-अलग स्थानों पर थोड़ी-थोड़ी देर बाद हुए आठ धमाकों से यहां का जनजीवन बहुत अस्त-व्यस्त हो गया। तीन सौ से ज़्यादा लोग मारे गए और 600 से ज़्यादा घायल हुए। इन धमाकों के लक्ष्य में कोलंबों का सेंट एंटोनी गिरजाघार, दक्षिणी समुद्री किनारे पर नेगोम्बो के सेंट सेमेस्टियन और पूर्वी इलाके के बटदीकलोआ का एक चर्च था। इन सब में ईस्टर के रविवार को सामूहिक प्रार्थना हो रही थी। तीन धमाके तो पांच सितारे होटल, शांग्रीला, सिनेमान ग्रेंड और किंग्सबरी पर हुए। इनमें टिके विदेशी पर्यटक और स्थानीय लोग चपेट में आ गए।

ज़्यादातर मौतें श्रीलंका के नागरिकों की हुई। इनमें बड़ी तादाद में ईसाइयों की थी जो ईस्टर पर जुटे थे। श्रीलंका के सिनामान ग्रैंड होटल में पहुंचा आत्मघाती विस्फोटक बड़ी शांति से ईस्टर रविवार को नाश्ते की कतार में खड़ा था। उसकी पीठ पर विस्फोटक बंधे थे। वह पिछली रात ही होटल में आया था। होटल के रजिस्टर में उसने अपना नाम मोहम्मद अज्जाम मोहम्मद लिखा। उसकी प्लेट पर जैसे ही खाना रखा जा रहा था तभी उसने धमाका कर दिया। उस समय वहां भीड़ भी थी।

होटल के एक प्रबंधक ने बताया कि होटल के ताप्रोबेन रेस्टोरेंट में सप्ताह के अंत और ईस्टर की छुट्टियों के चलते खासी भीड़ थी। सुबह के साढ़े आठ बज रहे थे। खासी चहल पहल थी। उनमें ज़्यादातर परिवार थे। कतार से आगे आते ही उसने धमाका कर दिया। हमारा एक प्रबंधक जो सभी के स्वागत में खड़ा था। वह भी मारा गया। धमाका करने वाला भी मरा। उसके शरीर के कुछ हिस्से जो ठीक-ठाक थे उन्हें पुलिस ले गई।

जानकारों के अनुसार धमाका करने वाला वह आदमी श्रीलंका का ही था। वह यहां से एक भले परिवार का नौजवान था। उसने अपना जो पता लिखा वह गलत था। उसने यही बताया था कि उसके आने का मकसद व्यापार था।

दूसरे दो होटल, शांग्री-ला, और किंग्सबरी में तभी उसी समय धमाके होने की खबरें आईं। तीन गिरजाघरों में ईस्टर संडे सर्विस के कारण काफी श्रद्धालु थे। सेंट एंटनी श्राइन तो ऐतिहासिक कैथोलिक गिरजाघर है। यहां हुए धमाके में तो इतनी ताकत थी कि छत का काफी हिस्सा भी उड़ गया। लकड़ी के टुकड़े नीचे गिरे। उस समय 35 विदेशियों की मौत हो गई। हर कहीं शोर था। घायलों को अस्पताल ले जाने की पहल की गई। तकरीबन बीस लोग बेहद गंभीर थे जिन्हें फौरन नेशनल अस्पताल में ‘एडमिट’ किया गया।

यह होटन श्रीलंका के प्रधानमंत्री के आधिकारी आवास के पास था। स्पेशल टास्क के कमांडों फौरन सक्रिय हुए। चश्मदीदों के अनुसार शांग्री-ला से दो ज़ोरदार धमाकों की आवाज़ सुनाई दी। कुछ लोगों के मारे जाने की खबर भी मिली। होटल से जारी बयान के अनुसार सुबह नौ बजे इसके टेबल वन रेस्टोरेंट में धमाके हुए। इस हादसे से हम बेहद दुखी हैं। जिन परिवारों पर इन हादसों का असर पड़ा है। उनके प्रति हमारी सहानुभूति है।

कोलंबों के महंगे और बेहतर पांच सितारा होटल में है किंग्सबरी। यह वल्र्ड ट्रेड सेंटर के एक दम पास है।

श्रीलंका सरकार ने नेशनल तौहीद जमात इस्लामी समूह को रविवार को हुए इन धमाकों के लिए जिम्मेदार बताया है। सरकार के प्रवक्ता और मंत्री राजिता सेनारत्ने ने सोमवार (22 अप्रैल) को जानकारी दी। वे श्रीलंका सरकार में मंत्री भी हैं। उन्होंने कहा कि सरकार यह पता लगा रही है कि इस समूह को अंतरराष्ट्रीय समर्थन कहां से हासिल हो रहा है। इस संगठन को आर्थिक मदद कैसे मिलती है। इसकी भी छानबीन की जा रही है।

उन्होंने कहा, सहसा यह भरोसा नहीं होता कि एक छोटी सी संस्था इतने बड़े पैमाने पर ऐसा कर सकती है। यह भी पता कर रहे हैं कि ऐसे आधुनिक विस्फोटक कहां के हैं और कैसे इन तक पहुंचे। इन्होंने आत्मघाती मानव दस्ते कैसे और कहां तैयार किए। इनके प्रबंधक कौन हैं? उन्होंने कहा कि किसी भी समूह ने अब तक धमाकों की जिम्मेदारी नहीं ली है।

सेनारत्ने ने बताया कि विदेश से उनकी सरकार को किसी खुफिया एजेंसी से चार अप्रैल को यह जानकारी मिली थी कि आतंकी हमले का अंदेशा हैं। लेकिन प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे और राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना श्रीसेना के बीच उचित संपर्क न होने के कारण उस सूचना के संबंध में कोई ध्यान नहीं दिया जा सका। एक तरह से प्रधानमंत्री को इस मामले से बिलकुल अनजान रखा गया। सेनारत्ने ने माना कि इन धमाकों से जाहिर है कि श्रीलंका सरकार ने खुफिया सूचनाओं पर कोई सावधानी नहीं बरती।

राष्ट्रपति सचिवालय के परामर्शदाता और समन्वय अधिकारी शीरल लख्तिलाका ने कहा, जांच एजेंसियां इन हमलों के पीछे के छिपे मकसद का पता लगा रही हैं। यदि आप पिछला इतिहास देखेंगे तो दक्षिण एशिया में सक्रिय उग्रवादी संगठनों में लश्कर-ए-तोएबा और आईएसआईएस हैं। इन्होंने पहले कभी श्रीलंका को निशाने पर नहीं लिया। यह तय है कि विदेशी लोगों के उकसावे में स्थानीय तत्वों ने इस घटना को अंजाम दिया हो।

उधर श्रीलंका पुलिस ने कोलंबों के शांग्री-ला के विस्फोटक मानवों में से एक की पहचान कर ली है। इस धमाकों के सिलसिले में पकड़े गए 24 लोगों में से नौ लोगों को पुलिस ने चीफ मेजिस्ट्रेट कोर्ट में पेश किया। ये लोग उस फैक्टरी में काम करते थे जिसका मालिक वह मानव विस्फोटक था। जो मारा गया और जिसकी पहचान इन लोगों ने की थी। आठ धमाकों में से सात को मानव विस्फोटक दस्ते ने अंजाम दिया था। इस दस्ते के छह लोगों का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। एक मानव विस्फोटक का कुछ आपराधिक इतिहास है। उसे शक के चलते एक क्रिमिनल कोर्ट में पेश किया गया। लेकिन बाद में उसे छोड़ दिया गया। यह धार्मिक उग्रवादी अपराध का मामला है। ये सभी लोग श्रीलंका से अलग-अलग जि़लों से लाए गए थे। इस साल के शुरू में विस्फोटकों और डिटोनेटर का एक बड़ा जखीरा पुट्टलाम में मिला था। उस समय पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार किया और कहा कि वे किसी स्थानीय उग्रवादी समूह के लोग हैं। इनमें से एक को बाद में छोड़ दिया गया।

सोमवार की आधी रात से पूरे देश में आपातकाल लगा दिया गया है। इससे पुलिस, सेना, नौसेना और वायुसेना को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार करने के अधिकार हैं। ये किसी को भी अदालत में बिना पेश किए रख सकते हैं। से सारी व्यवस्थाएं तब भी देश में लागू थीं जब देश में तीस साल गृहयुद्ध छिडा रहा। इस कदम की मंजूरी श्रीलंका सरकार की ससंद से मंगलवार को मिलेगी। सारी जांच पडताल में इंटर पोल भी सहयोग कर रहा है।

बारह भारतीय मारे गए

कोलंबों में ईस्टर रविवार को हुए धमाकों में 12 भारतीय भी मारे गए। इनमें सबसे ज्य़ादा जनता दल (एस) के सात कार्यकर्ता नेता थे। इनमें से एक कर्नाटक के मुख्यमंत्री के करीबी सहयोगी थे। ये अपने सहयोगियों के साथ पंच सितारा होटल शांग्रीला में टिके थे। जिसे एक आत्मघाती मानव विस्फोटक ने निशाना बनाया था।

अधिकारियों के अनुसार कर्नाटक में 18 अप्रैल को हुए चुनावों के बाद ये कोलंबों आ गए थे। मारे गए लोगों में व्यापारी भी थे। बंगलुरू के ग्रामीण जिला नेलामांगला और तुमकुर क्षेत्र के ये लोग जनता दल (एस) के नेता और पूर्व विधायक ईकृष्णप्पा के सहयोगी थे। जो लोग मारे गए उनमें लक्ष्मण गौंडा रमेश, केएम लक्ष्मी नारायण, एम रंगप्पा, के जी हनुमंतरियप्पा, एच शिवकुमार और ए मारेगौडा थे। इनमें हनुमंतरियप्पा की उम्र 50 साल की थी और वे रियल एस्टेट में थे। उनकी फर्म मातुश्री डेवलपर्स है। वे मुख्यमंत्री कुमार स्वामी के काफी करीब बताए जाते हैं। वे दक्षिण कर्नाटक के वोक्कलिगा समुदाय के एक बड़े नेता थे।

पारिवारिक लोगों के अनुसार मारे गौडा, हनुमंतरियप्पा और मुदृराजू प्राय: एक साथ विदेश यात्रा करते। जनवरी में ये लोग वियतनाम भी गए थे। ये सभी शादीशुदा और परिवार वाले हैं।

रोहित शेखर-छोटी सी आशा का अंत

अमिताभ बच्चन स्टाइल में अपने पिता से हक की जंग झटकने वाला रोहित शेखर आसानी से जिंदगी की जंग हार गया। उम्र महज 40 साल। और जब घर बसाने के बाद कुछ नया करने की जुगत में था उसी समय नियति ने रोहित को खामोश कर दिया।

होश संभालते ही दिग्गज तिवारी की अवैध संतान रोहित कोर्ट व कचहरी के चक्कर लगाने लगा। देश के ऐसे बड़े राजनेता जिनका किसी भी दल में कोई विरोधी नहीं था। सत्ता व विपक्ष के गलियारों में तिवारी की तूती बरसों बरस बोलती रही। ऐसे में एक अनजान लड़के रोहित ने तिवारी के खिलाफ मोर्चा ही नहीं खोला बल्कि लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद नारायण दत्त तिवारी से कहलवा ही दिया कि वो ही रोहित के बाप हैं। भारतीय राजनीति के इतिहास में यह पहली व इकलौती नजीर होगी कि जब 90 साल के बुजुर्ग नेता ने दुबारा दूल्हे का सेहरा पहन अपनी अवैध संतान का माथा चूमा। तिवारी ने रोहित की मां उज्ज्वला शर्मा की मांग में सिंदूर भरा। मानसिक संत्रास झेल रहे युवा रोहित की जिंदगी के इस अध्याय का सुखद अंत हुआ। कानूनन रोहित जैविक पुत्र कहलाये। इससे बेहतर फि़ल्म की मजबूत व कसी गयी पटकथा नहीं हो सकती थी। जिसमें राजनीति, प्रेम, कानून, दुख, पीड़ा के अलावा एक युवा का अपने अवैध बाप के प्रति निर्णायक व सफल जंग लड़ी गयी।

लेकिन पिक्चर अभी बाकी थी। पिता को भी अपना फर्ज निभाना था। तिवारी को अपना राजनीतिक वारिस जो मिल गया था। कभी कांग्रेस के मजबूत स्तम्भ रहे तिवारी ने बेटे रोहित की खातिर सोनिया गांधी से गुहार लगाई लेकिन अनसुना कर दिया गया। तिवारी के साथ रोहित के लिए यह किसी बड़े झटके से कम नहीं था। दरअसल रोहित को यह उम्मीद थी कि तिवारी को कांग्रेस हाईकमान इग्नोर नहीं करेगी। आंध्रप्रदेश की घटना के बाद कांग्रेस पार्टी ने भी तिवारी से दूरी बना ली थी। प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर के नेता तिवारी की छाया से भी बचने लगे थे।

रोहित शेखर के मन में पल रही छोटी सी आशा अब धूमिल होने लगी थी। महारथी तिवारी से जुड़े इस नए सच को स्वीकार करना रोहित के लिए किसी मानसिक आघात से कम नहीं था। तिवारी नाम की सीढ़ी से राजनीति की ऊंचाइयां नाप चुके नेता रोहित की पैरवी में आगे नहीं आये।

2017 में रोहित को राजनीति में स्थापित करने के लिए जिंदगी भर भाजपा के विरोध रहे तिवारी ने अमित शाह का दरवाजा भी खटखटाया। लेकिन बात नहीं बन पायी। एक समय तिवारी के नाम पर चुनाव जीतने वाले धीरे-धीरे किनारा कर गए। कुल मिलाकर रोहित की राजनीति में प्रवेश की हसरत अधूरी रह गयी। इस बीच, तिवारी बहुत बीमार पड़े। रोहित पिता के सिरहाने खड़ा रहा। पिता की सेवा की। मई 2018 में रोहित ने शादी के बंधन में बंधे। और 18 अक्टूबर 2018 को नारायण दत्त तिवारी ने भी अंतिम सांस ली।

यहां यह भी रोहित का दुर्भाग्य रहा कि तिवारी ने बरसों तक रोहित को अपनी संतान नहीं माना। लंबी कानूनी जंग जीतने के बाद ही रोहित को न्याय मिला। तब तक तिवारी का राजनीतिक सूरज ढल चुका था। अगर तिवारी शुरुआत में ही रोहित को स्वीकार कर लेते तो आज रोहित की जिंदगी अनजाने मोड़ पर आकर खत्म नहीं होती। न ही वो अवसाद से ग्रस्त होता और न ही जानलेवा बेमेल शादी के बंधन में फंसता।

राजनेता तिवारी पिता  के तौर पर पहले ही मिल जाते तो रोहित उनके स्वाभाविक राजनीतिक वारिस भी कहलाता। और प्रदेश की राजनीति में एक मुकाम बना चुका होता। लेकिन नियति ने किंतु-परन्तु का यह खेल भी नहीं खेला। और जिंदगी भर पिता को पाने की जंग में जुटा रहा नारायण दत्त तिवारी की अवैध संतान रोहित अपनी सेहत और मानसिक मजबूती भी खो बैठा। बावजूद इसके रोहित उठने की प्रबल चाह में नया रास्ता भी तलाश रहा था। लेकिन अपूर्वा से शादी की खुशियां बहुत दिन तक कायम नहीं रही। और अप्रैल की एक काली रात पत्नी के साथ हुई हाथापाई में रोहित जिंदगी की जंग हार गया। एक छोटी सी आशा का समय से पहले अंत हो गया। बेशक एक अनजान रोहित का सफर समय से पहले ही खत्म हो गया। लेकिन 21वीं सदी में नामचीन राजनेता से पिता का हक पाने के लिए लड़ी गई रोहित की जंग इतिहास के पन्नों में एक बेहद रोचक व सनसनी बन कर जिंदा अवश्य रहेगी। रोहित तुम्हें सलाम।

रोहित शेखर तिवारी हत्याकांड का रहस्य

रोहित शेखर तिवारी की पत्नी अपूर्वा शुक्ला को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है और उसने अपना गुनाह कबूल भी कर लिया है, यह कहना है वरिष्ठ पुलिस अधिकारी राजीव रंजन का। उनका कहना है कि उन्होंने अपूर्वा को वैज्ञानिक आधार पर प्राप्त सबूतों के कारण पकड़ा है। ये सबूत उन्हें एफएसएल (फोरेंसिक) की रिपोर्ट से मिले हैं। पुलिस के मुताबिक अपूर्वा ने माना की खराब वैवाहिक जीवन के कारण उसने अपने पति को मारा। उसने बताया कि वह 16 अप्रैल को रोहित के कमरे में गई और उसने रोहित की हत्या कर दी। उसके बाद उसने सारे सबूत भी मिटा दिए। यह सब 90 मिनट में हो गया। पहले तो उसने क्राइम ब्रांच को गुमराह करने का प्रयास किया। शुरू में दिल्ली क्राइम ब्रांच ने ही उससे पूछताछ की थी। असल में क्राइम ब्रांच ने रोहित शेखर के सभी परिवार वालों से पूछताछ की। दावा है कि पुलिस को अपूर्वा के खिलाफ पुख्ता सबूत मिल गए। उनके घर पर काम करने वाली एक नौकरानी ने बताया कि हत्या से कुछ घंटे पहले अपूर्वा का अपने पति से ‘विडियो कालिंग’ पर भारी झगड़ा हुआ। पुलिस के विशेष जांच दल ने अपूर्वा से लगभग 10 घंटे तक पूछताछ की। वे घर की नौकरानी को भी अपने साथ अपने दफ्तर प्रशांत विहार ले गए जहां उनसे लंबी पूछताछ हुई। विशेष जांच दल को पता चला कि अपूर्वा ने 15 अप्रैल को सांय 7.30 बजे रोहित को ‘विडियो काल’ की। उस समय वह उत्तराखंड से लौट रहा था। रोहित शेखर अपनी मां, एनडी तिवारी के एक पूर्व अफसर और उसकी पत्नी के साथ लौट रहा था। ये लोग कुछ दिन के लिए उत्तराखंड गए थे और 15 अप्रैल को रात 10.30 बजे दिल्ली लौटे। रोहित 12 अप्रैल को उत्तराखंड वोट डालने गया था।

शुरू में यह मामला स्वभाविक मौत का लग रहा था पर एम्स के डाक्टरों को शक हुआ और हत्या का मामला दर्ज किया गया। पुलिस के लोगों को एक सिरहाना मिला जिससे उन्हें लगा कि इसी सिरहाने से रोहित की हत्या की गई है। पुलिस शुरू से ही इस कहानी को नाकार रही थी कि रोहित की मौत दिल की धड़कन रुक जाने की वजह से हुई। रोहित को बेहोशी की हालत में पाया गया था और उसकी नाक से खून बह रहा था। ‘पोस्टमार्टम’ की रिपोट में स्पष्ट हो गया कि रोहित की मौत दम घुटने से हुई है। यह ‘पोस्टमार्टम’ ‘एम्स’ के पांच सीनियर डाक्टरों के दल ने किया। वे सभी मौत की ‘वजह’ पर एक मत थे। ‘पोस्टमार्टम’ रिपोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मौत स्वभाविक नहीं थी। इस के बाद धारा 302 (हत्या की सज़ा) के तहत डिफेंस कालोनी थाने में मामला दर्ज किया गया। बाद में जांच के लिए मामला क्राइम ब्रांच को सौंपा गया। पुलिस के एसीपी राजीव रंजन और डीसीपी डाक्टर जॉय टिर्की ने सभी परिवार वालों, से पूछताछ की, इनमें मृतक की पत्नी अपूर्वा, मां उज्जवला, ‘कजिऩ’ राजीव और ‘आधा भाई’ सिद्धार्थ शामिल थे। पूछताछ के दौरान अपूर्वा से उसके अपने पति के साथ संबंधों के बारे में पूछा गया। यह देखा गया कि दोनों पति-पत्नी दोनों अक्सर अलग-अलग कमरों में सोते थे।

रोहित की मां उज्जवला ने बताया पति-पत्नी के संबंध 2018 में शादी से कुछ ही दिनों बाद खराब हो गए थे। जबकि अपूर्वा के पिता पदमाजा शुक्ला ने इस बात का खंडन किया और कहा कि दोनों के बीच कोई वैवाहिक झगड़ा नहीं था। उज्जवला ने बताया कि रोहित अपने राजनैतिक जीवन को लेकर परेशान था। उसकी मां के अनुसार इस हत्या का एक कारण संपत्ति भी हो सकती है क्योंकि अपूर्वा पूरी संपत्ति पर अपना अधिकार चाहती थी। पर पुलिस अभी हत्या का कारण नहीं जान पाई है और इसकी जांच में लगी है।

शंकरानंद की कविताएँ

थोड़ी सी नींद

गुल्लक में जितने सिक्के बच गए हैं

बस उतनी ही तसल्ली की पूंजी है

बाकी की खाली जगह बेचैनियों से भर गई है

यह तय करना मुश्किल है कि

गुल्लक ज़रूरी है या सिक्का

नींद ज़रूरी है या उसमें एक स्वप्न

दूसरी तमाम आवाज़ों के बीच

सिक्के की गूंज सहसा ही कौंधती है

रोज काले पानी जैसी अँधेरी रात में

या सूखी रोटी जैसी दोपहर में

या कोंपल जैसी सुबह में कभी

मुश्किल यह है कि जो देखा हुआ स्वप्न है

वह गुल्लक नहीं है

उसमें सिक्कों जैसी चमक नहीं है

वह धुंधला दिखता है मिट्टी के रंग सा धूसर गऱीब

इन दिनों अकेला और निसहाय है वह स्वप्न

उसके लिए नींद भी अपना दरवाजा बंद कर लेती है।

एक घर

इसके शुरू होने से बनने तक

यातना की एक लंबी श्रृंखला है

कोई इसे कहानी की तरह सुुनाता है

कोई खीझ की तरह

किसी को विजेता की मुद्रा में देखता हूँ

जैसे सब कुछ हार कर जीता गया यह घर

अब बस एक सुकून है उनके चेहरे पर

बस एक शांति

इतने के बाद भी खाली समय में

उन्हें रोना आता है यह सोचकर कि

जिसके लिए बनाया इतना सुंंदर घर

वह यहाँ कभी रहने नहीं आएगा!

कतार में

तमाम जगहें कतारों से भरी हुई हैं

कोई कोना खाली नहीं

हर चेहरा दूसरे से पूछता है कि

और कितनी देर खड़ा रहना पड़ेगा

दिक्कत यह है कि

जो सुबह पर जहां खड़ा था

शाम को भी वह वहीं पर खड़ा मिलता है

चुपचाप अपनी बारी के लिए जगह बनाता हुआ

यह रोज़ की बात है

जिसमें नया कुछ नही है

सामान लुट चुका है आपस में

बंट चुका है भीतर ही भीतर

बाहर बोर्ड टंगा हुआ है खिड़की पर

जिसमें लिखा हुआ है कृपया शांति बनाए रखें

थोड़ी देर में घोषणा होगी कि

आज खत्म हो गया

अब कल मिलेगा सबको उनका हिस्सा

कोई आश्चर्य नहीं कि

कल भी ये कतारें ऐसेे ही खड़ी मिलेंगी।

 

आसानी से

पोस्टरों में रंग भरे हैं

खाली हो रहे हैं जीवन सेे

रोज परास्त होकर गिरते पत्तों और

नागरिकों में कोई फर्क नहीं है

जो उदासी है जाल की तरह बुनी गई

वह टहनी पर अब भी लगी हुई है

अब भी एक भरोसा उगना चाहता है

जीना चाहता है धूल सेे उठने के बाद

कोई उसे आसानी न दे तो मुश्किल भी न दे

यह कहाँ संभव है संास भी  ले ले

हाथ भी ले ले

भाषा ले और आवाज़ भी ले ले

सादे कागज़ पर लगवा ले अूंगठा

और कह दे कि अपना खयाल रखना

लेकिन यही हो रहा है इन दिनों

इस तरह धोखा मिला है

इसी तरह अन्याय

कोई भी गले मिलता है सहानुभूति के लिए

और एक फंदा डाल देता है।

 

विस्थापन

वे खुशी खुशी नहीं गए छोड़कर

बहुत पहले सेे

उन्हें इसका आभास हो गया था कि

अब वे नहीं रह पाएंगे इस जगह

जहाँ उनके प्राण बसते हैं

जैसे वृक्ष को एक जगह सेे हटाकर

दूसरी जगह रौंपा जाए तो

सूख जाता है वह

जैसे  एक नदी का रास्ता मोड़ दिया जाए तो

वह पतली रेखाओं में बदल जाती है

जैसे पंख छीन लिए जाए तो

पक्षी पत्थर में बदल जाते हैं

जैये  तारे टूट कर गिरते हैं शोक में

जैसे बिखर जाता है एक बनता हुआ इन्द्रधनुष

ठीक उसी तरह वे पूरा होते होते रह गए

वे कोशिश करते रहे कि जाना टल जाए

पर एक मौका नहीं दिया गया

उन्हें इतना मज़बूर किया गया कि

हँस कर हो या रोकर

उन्हें जाना पड़ा यहाँ से चुपचाप

वे सब कुछ छोड़कर चले गए

तबाह हो गए फल से लदे एक वृक्ष की तरह।

पुकार

अक्सर  यही लगता है जैसेे कोई पुकार रहा हो

गूंजती है एक मद्धिम आवाज़

भाप की तरह उठती है और

धुएँ की तरह गुम हो जाती है

इस पृथ्वी पर

वह एक लापता उम्मीद है

बारिश की एक बूंद भर भरोसा

किसी फूल की पंखुडी भर कोमल

कोई बंजारा मन

कोई हारा हुआ बेघर

या कोई स्त्री जो  मरना नहीं

जीना चाहती है एक बार

कौंधती है

उसकी वह एक पुकार

बिजली की तरह

अगले पल बुझ जाती है।

सीढिय़ां

जिसने बनाया उसे यही लगा था कि

वह भी ऊपर चढ़ेगा

पर नहीं यह उसके लिए वर्जित था

अब सारी बंदिशें उसी के लिए

सारी रुकावटों और खेद के बीच

वह नींव में पत्थर की तरह

गाड़ दिया गया अंतत:

इतिहास में शीर्ष पर बैठे शासकों के नाम हैं

उनकी सीढिय़ों के बारे में एक शब्द तक नहीं।

बलिदान

गाड़ी जा रही है। हम पांच आदमी गुमसुम बैठे हुए हैं। सभी के मन में एक जैसी सोच का कोहराम मचा हुआ है मगर जैसे सभी की ज़बान काठ की बनी हुई हो। चुप्पी का प्रेत मंडरा रहा है। किसी के हिलने की आवाज़ भी नहीं आती।

इस रास्ते से हम पहले भी कई बार गुजऱे हैं। मगर पहले कभी ऐसा नहीं हुआ। हम सभी पैंतीस-चालीस की उम्र वाले दो-दो, तीन-तीन बच्चों के बाप हैं। अगर कोई बंद कमरे में इक_े बैठ हमारी बातें सुने तो हमारी उम्र तथा गृहस्थी की किसी जिम्मेवारी के बोझ का एहसास  तक न कर पाए। छोटी-छोटी बेमकसद सी बातें। हंसी-ठहाके। शायद हमारी खुशी का राज़ ही इस बात में हो कि हमारी महफि़लें निरूद्देश्य ही लगती हैं, फिर बातों में से बातों का सिरा आगे बढ़ता जाता है। न आदि याद रहता है न अंत की चिंता।

पिछली बार छह महीने पहले इस कार में हम भाई के गांव गए थे। स्टेयरिंग पर बैठे रमन के मुंह से अनायास ही एक फिज़ूल से गीत की भौंडी सी पंक्ति निकल गई,”गंगाराम की समझ में न आए।’’ फिर क्या था, सभी के कान खड़े हो गए। जबानें चलने लगी। इस पंक्ति को फिर अनेक सुरों में सामूहिक गायन किया गया। अंतरा किसी को आता नहीं था। बगल में बैठे चरन ने कई ऊल-ज़लूल पंक्तियां गढ़ ली। जिनमें अपनी ही मूर्खता का मज़ाक उड़ाया गया था। वह कवि-दरबार इतना कामयाब रहा कि सौ मील का रास्ता पलक झपकते ही ख़त्म हो गया।

…मगर आज जैसे हमारी ज़बान के साथ पत्थर और गाड़ी के पहियों के साथ पर्वत बंधे हुए थे। सफऱ है कि राम-राम कर, भाई के गांव शाम ढले पहुंचे। आंगन लोगों से भरा हुआ था। तिल रखने की जगह नहीं थी। इतने ग़मगीन चेहरे। एक घिसी हुई खेस लपेटे भाई दीवार से टेक लगाए बैठा है। शिथिल और निढ़ाल। क्षण भर के लिए उसकी लाल-सुर्ख आँखें हमारी और उठती हैं और बाढ़ की तरह बहने लगती है। हम चुपचाप उसके पास बैठ जाते हैं। कृपाल ने भाई के कंधे पर हाथ रखा। वह उसकी गोद में लुढ़क गया। हिचकियाँ तेज़ हो जाती हैं। सभी दहाडें़ मारने लगते हैं। हमें शायद कोई ढाढ़स बँधाने की बात करनी चाहिए। मगर अंदर से स्त्रोत ही ख़त्म हो गए लगते हैं। इतनी हिम्मत कहां से लाएं।

अंदर से रोने-धोने की आवाज़ें आ रही हैं। हृदय छलनी हुआ जा रहा है। कई आदमी आ-जा रहे हैं।

शाम हो गई है। कृपाल को कोई बात सूझी है। उसने उठकर दरी का एक किनारा मोड़ दिया है। गाँव के सयाने लोग समझ गए हैं। सूरज डूबने के बाद अफसोस करने का वक़्त ख़त्म हो जाता है। सभी लोग धीरे-धीरे जाने लगे हैं। आँगन में भाई और हम कुछ गऱीब लोग ही रह गए हैं।

थोड़ा अँधेरा होने पर मैं और रमन गाँव के पिछवाड़े में जाते हैं। कार की डिग्गी में से तीन टिफिन निकाल लाते हैं। दो टिफिन औरतों के दालान में रख आते हैं और एक अपने कमरे में लाकर खोलते हैं। कोई भी खाने की तरफ देखता नहीं हैं मिन्नत कर भाई को कुछ निवाले खाने के लिए मज़बूर करते हैं, मगर निवाला उसके गले से नीचे उतरता नहीं है।

कृपाल कोई न कोई बात करने का यत्न करता है।

”भाई जी, यह हादसा हुआ कैसे?’’

भाई को खुद भी विस्तार से कुछ भी मालूम नहीं। वह जेब से तह की हुई टेलीग्राम निकालता है। तार पर सिर्फ यह शब्द लिखे हैं,”फ़्लाइट लेफ़्िटनेंट निर्मल सिंह जम्मू कश्मीर क्षेत्र में दुश्मनों के विरूद्ध लड़ते हुए वीरगति प्राप्त कर गए हैं।’’ तार कृपाल के हाथ में ही रह जाती है।

मैं उससे टेलीग्राम लेकर पढ़ता हँू। आँखों पर यकीन नहीं आता। निर्मल का बांका चेहरा मेरी आँखों के सामने उभर आता है। लंबा-ऊँचा, छैल-छबीला नौजवान। देखते हुए आँख नहीं भरती थी। एक साल पहले मैं और भाई उसे जीता के लिए देखने गए थे और उसे देखते ही मोहित हो गए थे। क़द-काठ व रंग-रूप से एकदम जीता के लायक। वापस आते समय हम प्रसन्न थे। भाई के सिर से मानों बोझ उतर गया हो।

जीता परिवार में सबसे छोटी थी और शरारती भी थी। भाई से पूरे पंद्रह बरस छोटी थी। रिश्ते में वह बेशक़ भाई की बहन थी, मगर उसने उसे बेटी की तरह पाला-पोसा और पढ़ाया-लिखाया था।

तब भाई को अपने पुश्तैनी गाँव से इस दूर-दराज़ इलाके में आए अभी तीन ही वर्ष हुए थे। उसने अपनी पुश्तैनी ज़मीन महँगे दाम में बेचकर यहाँ काफ़ी बड़ा फार्म हाउस खरीद लिया था। इन तीन वर्षों में वह मिट्टी संग मिट्टी  होता रहा था। दिन का अधिकतर हिस्सा उसका ट्रैक्टर पर बैठे ही बीतता था। उसने अपने खेतों को समतल किया। दो टयूबवैल लगवाए। पिछले वर्ष उसके लहराते खेतों की ओर देखकर इस इलाके के किसानों ने दाँतों तले उँगली दबा ली थी। फसल अच्छी हुई थी और भाव भी अच्छा मिल गया था।

ये तीन वर्ष भाई ने अपने बाल-बच्चों के साथ कच्चे कमरों में संन्यासियों की तरह गुज़ारे थे। इस बार उसका हाथ थोड़ा खुला था। इस साल उसका इरादा सुंदर मकान बनवाने का था। इस संबंध में सलाह-मशविरे के लिए उसने मुझे बुला भेजा था और अचानक ही किसी दोस्त ने निर्मल के लिए बताया था। लड़का देखकर भाई ने मकान बनवाने की योजना फि़लहाल के लिए स्थगित कर दी थी। अच्छे लड़के वैसे भी मुश्किल से ही मिलते हैं। इसलिए उसने फ़ैसला किया कि वह पहले जीता का विवाह करेगा। मकान का क्या है, फिर बन जाएगा। जहाँ तीन वर्ष बीते वहां कुछ साल और सही।

निर्मल साधारण किसान-परिवार से था। वह अपनी मेहनत तथा लियाकत के बलबूते पर अपनी मौजूदा पदवी पर पहुंचा था। भाई का विचार था कि एक बार जीता का घर सारी ज़रूरत भरी चीज़ों से बना दिया जाए। आराम से दिन बिताने लायक तनख्वाह उसे मिल ही जाती थीं।

विवाह के पूरे तीन दिन पहले हम सभी भाई के गाँव पहँुच गए थे। शहर से दस मील दूर इस गाँव के माहौल को देखकर सचमुच में जंगल में मंगल का एहसास होता था। खुले से आँगन में शामियाना, छौलपरियाँ और दंग-बिरंगी दरियां बिछी हुई। देसी दारू पी कर हम जल्दी-जल्दी काम भी ख़त्म कर रहे थे और साथ में छेड़छाड़ भी करते रहे थे।

घर शादी के सामान से ठँुसा हुआ लग रहा था। एक ओर शामियाना लगाकर भ_ी लगाई गई थी। कमरा मीट, मुर्गे, तितर-बटेर और खाने-पीने की अनेक चीज़ों से भरा हुआ था। निर्मल की बारात में, उसके अफसर आने वाले थे, इसलिए भी उनकी ख़ातिरदारी में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहते थे। विभिन्न पकवान अपनी सुगंध बिखेर रहे थे। रसद-पानी सँभालने के लिए कोई बंद कमरा नहीं था, बाहर कुत्तों की भीड़ घूम-फिर रही थी। हमारे सो जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता था। दारू का आलम था। नशा खिला हुआ था। मैं लाठी लेकर बाहर आया। ज़ोर से दहाड़ा। कुत्ते सारे भाग गए।

सामने खूँटी पर ढोलकी लटकी देख मेरे पैर नाचने के लिए बेताब होने लगे। सीने में गीत भी मचलने लगे। ढोलकी गले में डाल, मैंने ननिहाल वालों को ललकारा। सभी औरतें अनमने भाव से लेटी हुई थीं। पल में सभी इक_े हो गए। औरतों ने गिद्दा डाला। शहर से आई जीता की सहेलियाँ भी खूब नाची। कुछ की तो आवाज़ ही बैठ गई, मगर कोई भी नाचना नहीं छोड़ रही थी। लड़के-लड़कियों की टोली के बीच मुकाबला था। सभी ने ख़ूब गाया-बजाया। चढ़ती जवानी के समय मवेशी चराते समय और लुक-छिप कर गाँव में सुने गीत व बोलियाँ मेरे खू़ब काम आई। ननिहाल वाले हैरान थे कि गंजे सिर वाले बाबू को इतने गीत कैसे याद थे।

सुबह आठ बजे बारात आई। अपने मित्रों के साथ झूलते हुए निर्मल कार से उतरा। उसका व्यक्तित्व देखकर लड़कियों के मुँह खुले ही रह गए। … आज वही निर्मल भरी जवानी में ही सबसे बिछुड़कर, सभी को अलविदा कह, मालूम नहीं कहाँं छुप गया था।

पिछले दस-पंद्रह दिनों के दौरान छंभ-जौरियां सेक्टर से अनगिनत आदमियों की मौत की खबरें आ रही थीं। माडल टाउन में रोज़ ही किसी न किसी घर में ग़मगीन तार आ जाती थी। मगर हम और उनमें अजनबीपन था। निर्मल की मौत ने एकदम उस अजनबीपन की दूरी को ख़त्म कर दिया था। मुझे आज पहली बार इस बात का एहसास हुआ कि मौत के विशेष तथा निर्विशेष होने के बीच कितना भयानक फ़र्क होता है।

कमरे में हम सिफऱ् सात-आठ आदमी ही रह गए थे। भाई भी कुछ सँभल गया था। वह बातचीत करने लगा था। लड़ाई शुरू होने से पहले निर्मल यहाँ छुट्टी बिताने आया था। अचानक उसे ड्यूटी पर हाजिऱ हाने की तार आ गई थी। हम सभी अंदर से दहल गए थे। सभी के चेहरे अनजाने भय से धुँधला गए थे। मगर निर्मल सचमुच ही प्रसन्न था। उसके अदंर जुनून था, कहने लगा, ”जंग में ही तो असली जौहर दिखाने का मौका मिलता है।’’

”जिस दिन से वह गया, मेरा किसी भी काम मे मन नहीं लग रहा था।’’ जीता मुँह से कुछ नहीं कर रही थी, मगर उसका उदास चेहरा मुझ से देखा नहीं जा रहा था। कुछ दिन पहले एक जहाज जब दहाड़ते हुए काफी नज़दीक से गुजऱा तो वह गश खाकर आँगन में गिर पड़ी थी। सारा परिवार परेशान हो गया था। परसों ही तार आ गई। क्षण भर के लिए वह आँखें खोल कर इधर-उधर देखती है, फिर बेहोश हो जाती है। यह कहते हुए भाई का गला रूँध गया । कुछ पल के बाद,सँभलने के बाद, उसने अपनी बात जारी रखी,” मुझे इस बात का पूरा विश्वास है कि वह साधारण ढंग से नहीं मरा होगा। ज़रूर अनहोनी मौत के मुँह आया होगा। उसे खुद पर बेहद आत्मविश्वास था। एक दिन मेथी की रोटी खा रहे थे। कहने लगा,” भाई, शहर में कई बार मेथी की रोटी खाने का बहुत मन करता है।’’ मैंने कहा,’ फिर? कहने लगा,”तुम बसीमा वाले इलाके में ऊँचे से डंडे से रोटी लटका देना। मैं जहाज़ में आकर उठा लूँगा।’’

”जिस दिन वह यहाँ से गया, मैंने कहा,”जऱा सँभल कर रहना।’’ उसने मेरी ओर विश्वास भरी नजऱों से देख कर कहा,”भाई साहब, आप कोई फि़क्र न करें। मैं दस-पंद्रह दिन में काम खत्म करके आया, समझिए मेरे कंधे पर नया तमगा होगा। वह तमगा मैं आपको भेंट करूँगा। पल-छिन में ही रायल-इन-फील्ड से नजऱों से ओझल हो गया।’’

बातें करते, गहरी रात हो गई। हमारी आँख लग गई। सुबह हुई। हम में से दो ने डयूटी पर पहँुचना था। रमन के अलावा अन्य किसी को गाड़ी चलानी नहीं आती थी। इसलिए वह तीनों ही वापस लौट गए। मैं इवनिंग कॉलेज में पढ़ाता था। ब्लैक आऊट के कारण कॉलेज बंद था। कृपाल का अपना ही काम था, इसीलिए हम दोनों ने भाई के पास ठहरना ही मुनासिब समझा।

अगले कुछ दिनों में मुझे इस बात का गहरा एहसास हुआ कि ऐसे ग़मगीन हालात में किसी जिगरी दोस्त का नज़दीक होना कितना ज़रूरी होता है।

जीता की हालत दिनोदिन बिगड़ती जा रही थी। आँखें सूजी हुई थीं। दिन में कई बार गश पडऩे लगी थी। हमारे समझाने का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था। भाई हौसला कर, उसे धीरज देने जाता, मगर उसकी हालत देखकर वह स्वंय ही रोने लगता।

ऐसी हालत में डॉक्टरों के दवा-दारू का क्या-क्या असर होता। फिर मैं एक क्षीण आस लेकर डॉक्टर की सलाह लेने शहर गया।

अख़बार पढ़े कई दिन हो गए थे। मैंने अख़बार खरीदा। पहले पेज़ पर सरसरी नजऱ मारता हूँ और एक जगह पर मेरी नजऱ अटक जाती है। हँसते हुए निर्मल की वर्दी में तस्वीर। शाीर्षक पड़ता हूँ,”फ़्लाइट लेफ़्िटनेंट निर्मल जीत सिंह मुत्यु उपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित-बेमिसाल वीरता के कारण एक भारतीय हवाबाज को पहली बार वीरता के लिए सर्वोत्तम पुरस्कार।’’ आगे उसकी बहादुरी की लंबी-चैडी दास्तान दजऱ् थी। श्रीनगर के हवाई अड्डे जहाँ हमारे पूर्वोत्तर चेतावनी देने वाले यंत्र ठीक तरह से काम नहीं कर रहे थे, ऊपर के पाकिस्तानियों द्वारा अचानक हमले की सूचना मिली और छह पाकिस्तानी सैबर जैट बहुत नीचे आकर हवाई अड्डे पर धड़ाधड बमबारी कर रहे थे। हवाई अड्डा धुआँधार धूल में लपेटा गया था ।  ऐसे समय में उड़ान लेने का हौसला किसी जांनिसार हवाबाज का काम ही हो सकता था। इस खतरे भरे समय में निर्मल जीत तथा भारतीय वायुसेना के एक और नेट-चालाक अपने जहाज़ लेकर आसमान में चले गए। निर्मलजीत ने दो सैबर जैट जहाज़ों को कमाल की निशानेबाजी से मार गिराया। बाद में और भी कई पाकिस्तानी जहाज़ बाज़ की तरह आसमान में मँडराने लगे। ग्राउंड कंट्रोल के भयानक खतरे को मद्देनजऱ रखते हुए अपने सैनिकों से मुकाबला छोड़कर तुरंत इधर-उधर हो जाने का आदेश दिया। साथ वाले नैट-पायलट ने एकदम फुर्ती से अपना जहाज़ पठानकोट हवाई अड्डे पर उतार लिया, मगर निर्मलजीत जी-जान से इस मुठभेड़ में जुटा रहा। ग्राउंड- कंट्रोल को उसका आखिरी संदेश यह था- ‘डोंट वरी। दा बास्टर्डज़ आर टू मैनी वट आई एम ट्राईंग टू हिट देम हार्ड।’’ इस मुठभेड़ में उसने एक और जहाज़ ज़ख्मी कर दिया। मगर बहुत सारे जहाज़ों के सामने उसकी पेश ने गई। एक गोली अचानक उसके सिर में आकर लगी और उसका जहाज़ श्रीनगर की पहाडिय़ों में टुकड़े-टुकडे होकर बिखर गया। इसके बाद मैं खबर का बाकी हिस्सा न पढ़ पाया और न ही मुझे डाक्टर से मिलने

का होश रहा। अख़बार तह कर, मैं शाम ढले गाँव पहँुचा।

भाई तथा कृपाल दोनों कमरे में बैठे थे। अख़बार खोलकर मैंने कृपाल को पकड़ाया और खुद चारपाई के एक कोने पर बैठ गया। उसने सारी खबर पढ़कर सुनाई। सभी की आँखों में बुझी सी चमक थी।

 ”मुझे तो पहले से ही मालूम था, यह आम मौत मरने वाला आदमी था ही नहीं। अच्छा भाई, तुमने तो अपना वचन पूरा कर दिखाया, मगर हमें सारी उम्र का दर्द दे गया।’’ भाई ने गहरी साँस ली।

”अगर कहीं वह इस ख़बर को सुनने के लिए जीवित होता-मगर ख़ैर।’’ ..बात और बढ़ा कर कृपाल, भाई का मन और खराब नहीं करना चाहता था।

इस ख़बर के छपते ही अगले दिन उच्च सरकारी अधिकारियों तथा सैनिक अफसरों के आगमन का अटूट सिलसिला शुरू हो गया। कभी डीसी साहब, दस हजार का चैक भेंट करने के लिए आ रहे हैं। कभी कोई प्रेस पार्टी ‘स्टोरी’ तैयार करने के लिए आई हुई है। कभी वायुसेना के अच्च अधिकारी और कभी कोई राजकीय नेता।

आज सुबह सात बजे हाथ -मँुह धोकर हटे ही हैं। एक सरकारी वैन आँगन में आकर रूकी। वैन में से बड़ा सा कैमरा व अन्य साजो-सामान उतारा जा रहा है। फिल्मसाजों की टोली है। यह लोग सारे देश में दिखाने के लिए निर्मलजीत की जि़ंदगी पर आधारित एक दस्तावेज़ी फि़ल्म तैयार कर रहे हैं। काफ़ी सारी सामग्री उसकी यूनिट में से मिल चुकी है, मगर जीता  की मौजूदगी के बग़ैर उनकी फिल्म अधूरी रहेगी।

भाई जीता से बात करने अंदर गया है। मगर वह मायूस सी बैठी है। उसे किसी भी काम में दिलचस्पी लेना गवारा नहीं। भाई बाहर आकर फिल्मकार को यही सूचना देता है। उसका चेहरा निराश है। अचानक भाई को एक तरकीब सूझती है। वह जीता की शादी का एलबम फिल्मकारों को दे देता है। उसमें निर्मलजीत की और भी कई महत्वूपर्ण तस्वीरें भी हैं।

एलबम को देखकर डायरेक्टर की आँखें चमक उठी हैं। वह कई तस्वीरों को अपने अंदाज में पेश कर सकता है। एक-दो घंटों में उनका काफ़ी काम हो जाता है।

 ”अच्छा सरदार जी, बीबी जी से एक काम ज़रूर करवा दीजिए वह यह माला सरदार जी की फोटो को अवश्य डाल दे।’’

जीता इस काम के लिए मान जाती है।

कैमरामैन बिजली की फ़ुर्ती से सजग हो जाते हंै। जीता लडख़ड़ाते कदमों से निर्मलजीत की तस्वीर की ओर बढ़ती है, और माला डाल देती है। कैमरे क्लिक होते हैं।

मगर डायरेक्टर को अभी भी तसल्ली नहीं होती,”बीबीजी बस कुछ बोल दीजिए।’’ वह मिन्नत करता है।

अपना पीछा छुड़ाने के अंदाज में जीता मान जाती है। डायरेक्टर के चेहरे पर रौनक आ जाती है। वह जीता से संबोधित होकर कहता है,” बस, आप इतना कह दें, ”मेरा पति दुश्मन के खि़लाफ बड़ी बहादुरी से जूझते हुए, देश के लिए कुर्बान हुआ है। मरा नही, बल्कि अमर हुआ है। मैं विधवा नहीं, सुहागन हँूं।’’

किसी आस मेें टेपरिकार्डर का बटन दबाया जाता है। जीता का चेहरा मुरझा जाता है। बेजी उसे सहारा दिए खड़े हैं। जीता मूच्र्छित होकर बेजी के पैरों में गिर जाती है। उनके हाथ-पैर फूल जाते हैं। मैं चुपचाप कैमरामैन से कैमरा, ले सरकारी वैन में रख आता हूँ।

साभार: बीसवीं सदी की पंजाबी कहानी

कहानी: बलिदान

लेखक: साधु सिंह (कनाडा वासी पंजाबी कहानीकार)

अनुवाद: जसविंदर कौर बिंद्रा

प्रकाशक: साहित्य अकादमी, नई दिल्ली

टाइगर वुड्स का जवाब नहीं

गोल्फ के खेल में जो उपलब्धियां एक अश्वेत खिलाड़ी एल्ट्रिक टोंट टाइगर वुड्स जिन्हें टाइगर वुड्स के नाम से जाना जाता है ने प्राप्त की हैं, उसकी दूसरी मिसाल मिलना कठिन हैं। पूर्व विश्व नंबर एक खिलाड़ी टाइगर वुड्स ने 2010 में विभिन्न टूर्नामेंट जीत कर और विज्ञापनों के जरिए 9.05 करोड़ डालर कमाए थे। अपने खेल जीवन में वुड्स ने 14 प्रमुख पेशेवर गोल्फ प्रतियोगिताएं जीतीं। इनते टूर्नामेंट जीतने वाले वे दुनिया के दूसरे खिलाड़ी है। इनसे ज्य़ादा 18 खिताब जीतने वाले खिलाड़ी हैं जैक निकलॉस। इतना ही नहीं टाइगर वुडस पीजीए टूर के 71 खिताब भी जीत चुके हैं। इस मामले में दुनियां के तीसरे नंबर के खिलाड़ी हैं।  उनके नाम किसी भी दूसरे खिलाड़ी से अधिक खिताब हैं। वे ग्रैंड स्लैम प्राप्त करने वाले सबसे युवा खिलाड़ी हैं। इतना ही नहीं 50 टूर प्रतियोगिताएं जीतने वाले वे सबसे युवा और सबसे तेज़ खिलाड़ी हैं। जैक निकलॅास के बाद वे दूसरे खिलाड़ी हैं जिन्होंने तीन बार ग्रैंड स्लैम हासिल किया है। वुड्स ने 18 विश्व गोल्फ प्रतियोगिताएं जीतीं और 1999 से ले कर लगातार 11 साल यह जीत हासिल की।

टाइगर वुड्स को 10 बार पीजीए प्लेयर ऑफ द ईयर पुरस्कार मिला। उन्होंने 11 दिसंबर 2009 को अपनी घरेलू समस्या के चलते गोल्फ की दुनिया से अवकाश ले लिया था। उनके खिलाफ दुनिया की एक दर्जन महिलाओं ने शोषण का आरोप लगाया। 20 हफ्तों तक अवकाश में रहने के बाद वुड्स आठ अप्रैल 2010 को मास्टर्स के लिए आयोजित प्रतियोगिता में लौट आए।

जुलाई 2010 में फोब्र्स ने वुड्स को दुनिया का सबसे  अमीर खिलाड़ी घोषित किया। उनके अनुसार वुड्स की आय 10.5 करोड़ डालर थी।

इस महान खिलाड़ी का जन्म कैलिफोर्निया में हुआ था। उनके दो सौतले भाई है। पिता का नाम अर्ल और माता कुल्टिग वुड्स था। वुड्स ऑरेंज कांउटी कैलिफोर्निया में बड़े हुए। उनके पिता एक अच्छे शौकिया गोल्फ खिलाड़ी थे। वे बेसवाल भी अच्छा खेलते थे। यही वजह थी कि टाइगर वुड्स का गोल्फ से परिचय पैदा होते ही हो गया था। 1984 में आठ साल की उम्र में उन्होंने जूनियर विश्व कप गोल्फ चैंपियनशिप में उपलब्ध सबसे कम आयु वर्ग (9-10 साल) की लड़कों की प्रतियोगिता जीत ली। सबसे पहले उन्होंने आठ साल की उम्र में 80 का स्कोर  पार किया था। 1988 से 1991 तक लगातार चार खिताबों के साथ उन्होंने छह बार जूनियर विश्व चैंपियनशिप जीती थी।

वुड्स की पहली बड़ी जूनियर राष्ट्रीय प्रतियोगिता 1989 में थी जब वे 13 साल के थे। अंतिम राउंड में वुड्स का मुकाबला उस समय अपेक्षाकृत से अनजान पेशेवर जॉन डैली के साथ था। यहां वुड्स मात्र एक स्ट्रोक से हारा था।

अगस्त 1996 स्पोर्टस मैन ऑफ द ईयर चुना गया। जून 1999 में वुड्स ने मैमोरियल टूर्नामेंट जीत कर एक बड़े युग की शुरूआत की। उन्होंने अपना यह सब आठ जीतों के साथ किया। यह एक ऐसी उपलब्धि थी जो 1974 के बाद और कोई हासिल नहीं कर पाया था। इसके बाद उनके जीवन का स्वर्णकाल भी चला और उसमें गिरावट भी आई। पर इसके बाद भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

आज भी वुड्स का कोई सानी नहीं।

दान-दक्षिणा का पर्व अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया पर इस बार ग्रह गोचरों का बना है दुर्लभ संयोग सोलह वर्ष बाद पांच ग्रह एक साथ उच्च राशियों में करेंगे निवास। गुरू-मंगल केंद्र में होंगे। यानी बन रहा है पारिजात योग।

 हिंदू धर्म में वैशाख  मास पुण्य मास माना जाता है। वैशाख शुक्ल तृतीया यानी अक्षय तृतीया मंगलवार सात मई को ग्रह-गोचरों के दुर्लभ संयोग से मनाई जाएगी।

यह मान्यता है कि अक्षय तृतीया अचूक मुहूर्त है। इस तिथि पर व्रत दान की मान्यता है। इस दिन सोना, चांदी धातु और दूसरी शुभ वस्तुओं की खरीदरी का खास महत्व माना जाता है। इस खरीदारी को शुभ माना जाता है। इसी दिन ऋषि परशुराम की जयंती भी मनाई जाती है।

 कहा जाता है कि मतस्य पुराण में उल्लेख है कि अक्षय तृतीया के ही दिन सतयुग और त्रेता युग का आरंभ और महाभारत का अंत हुआ था। कर्मकांडी पंडित राकेश झा शास्त्री के अनुसार इस दिन महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए विष्णु, लक्ष्मी की आराधना में सफेद कमल, सफेद फूल अैर कमलगट्टा अर्पित करती हैं। इस दिन दान, तप-जप करने से अक्षय पुण्य मिलता है। कई संपन्न लोग इसी दिन नया काम व्यवसाय वगैरह शुरू करते हैं। हिंदू पंचाग के अनुसार इस बार पांच बड़े ग्रहों का अद्भूत दुर्लभ संयोग है। पांच बड़े ग्रह सूर्य, शुक्र, चंद्र, राहु और केतु अपनी उच्च राशि में होंगे। इसके साथ ही गुरू मंगल के केंद्र में रहने से पारिजात योग भी बन रहा है। यह संयोग पुण्य फलदायी है। इस तिथि पर चंद्र और मंगल के अपने नक्षत्र में रहने से महालक्ष्मी योग भी बन रहा है। जहां चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में है वहीं मंगल मृगशिख नक्षत्र में रहेंगे।

शुभ योग होने से भक्तों पर लक्ष्मी की कृपा होगी। इस दिन गऱीबों और ज़रूरत मंदों को दान-दक्षिणा देने को कहा जाता हैं।

ओमप्रकाश ‘अश्क’

संपादक, सार्थक समय।

जौहरियों के कटरों में जुड़े नहीं रहे लोग

सोने-चांदी की दुकानों पर इस बार खरीददारों की वह भीड़ नहीं दिख रही है जो पहले दिखती थीं मंहगाई बढऩे के बावजूद अमूमन तीस-चालीस फीसद लोग इस दिल सोने-चंादी के आभूषण, संपत्ति खरीदते ही हैं। कई शहरों की बड़ी दुकानों में तो कुछ पेशगी देने का भी रिवाज है। बाद में त्योहार पर वे ले जाते हैं। उम्मीद है कि लोग इस ओर अपनी जेबों के अनुसार रुख करेंगे। एक अनुमान है कि सोने की कीमतों में लगभग छह फीसद की गिरावट आई है। अभी दस ग्राम सोना 20 फरवरी के बाद से लगभग रुपए 31,818 मात्र में मिल रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी सोने की कीमत कुछ गिरी है। लेकिन भारत में अनुमान है कि इसमें कुछ तेज़ी आए।

प्लैटिनम साल भर से सोने की कीमत से कम से कम तीस फीसद कम है। इसलिए काफी लोग उसे लेते हैं। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में प्लेटिनम की कीमत अमेरिकी डालर में नौ सौ प्रति औंस है । इस अक्षय तृतीय में यह उम्मीद  है कि भीड़ आएगी और क्षमता के अनुसार खरीद करेगी।

देशप्रेम सिखाने का नायाब फार्मूला

हम लोग बोल नहंी पाते पर समझते सब कुछ हैं। आप हमें कुछ भी मानते हों पर आज से कई दशक पूर्व जो ‘नया दौर’ फिल्म में गाना आया था -”यह देश है वीर जवानों का’’, उसके दर्द, मर्म और गौरव से हम तब भी वाकिफ थे और आज भी वाकिफ हैं। चाहे धोबी का सामान ढो-ढो कर हमारी हालत पतली हो गई है पर यह गाना सुनकर हम में भी एक उम्मीद और आस का संचार होता है। ऐसा ही हमें होता है जब हमारे कानों में गूंजते हैं अमर शहीद भगत सिंह के ये शब्द- ”मेरा रंग दे बंसती चोला, मां मेरा रंग दे बंसती चोला।’’ या इकबाल के कलम से निकला ”सारे जहां से अच्छा हिंदुस्ता हमारा’’ इस तरह के बहुत से तराने हमारे जहन में आज भी अंगडाइयां ले रहे हैं। हम कभी स्कूल नहीं गए पर स्कूल के पीछे से पीठ पर भारी बोझा डाले कई बार निकले। उस समय स्कूल की प्रार्थना  में जो भी गाया जाता वह देशप्रेम और धार्मिक सौहार्दय से ओतप्रोत होता। यही नगमें युवाओं में देशप्रेम की भावना भरते थे।

पर आज जब हम एक कॉलेज की बगल से निकले तो वहां खड़ा एक विजयंत टैंक देखकर चकित रह गए। शिक्षा के मंदिर में टैंक का क्या काम? पता चला कि नौजवानों में देशप्रेम जगाने के लिए वह टैंक खड़ा किया गया था। हमारी बुद्धि में देशप्रेम की शिक्षा का यह तरीका कुछ जमा नहीं। एक उपकुलपति महोदय तो इसकी तरफदारी बढ़े ऊंचे सुर में कर रहे थे। उनका मानना था कि टैंक देख कर छात्रों में सेना के प्रति आकर्षण ओर देश के प्रति प्यार जागेगा। उन उपकुलपति साहब को यह भी स्पष्ट करना चाहिए था कि यदि देशप्रेम जगाने के लिए एक फौजी टैंक ज़रूरी है तो अपने मां-बाप के प्रति और अपने परिवार के प्रति प्यार जगाने के लिए कौन सी ‘मिसाइल’ घर के दरवाजे पर खड़ी की जाए। युवाओं को भयभीत करके देशप्रेम जगाया जा सकता है यह सोचना हमारे यहां ही ‘मुमकिन ‘ है। शुक्र है अभी देश भक्ति सिखाने का यह नयाब फार्मूला केवल कुछ बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में ही लागू किया जा रहा है पता कब इसे प्राइमरी स्कूलों पर भी थोप दिया जााए, ताकि बचपन से ही देशभक्ति की खुराक बच्चों के भीतर आ जाए। रोचक बात यह है कि जिस देश की सेनाओं में आज भी हजारों अफसरों की कमी हो वहां उच्चतर शिक्षा प्राप्त युवाओं को सेना में भर्ती होने के लिए प्रोत्साहित करने की जगह उनमें ‘पकौड़े तलने’’ जैसा ‘बड़ा’ व्यापार  करने की सलाह दी जाती है। इससे तो यही बेहतर होता कि पढ़े-लिखे बेरोजग़ार युवाओं को राजनैतिक दल अपने दलों में शामिल करने का सोचते ताकि कम से कम राजनीति तो पढ़ी-लिखी बनती।

एक ज़माना था जब देश के स्कूलों और कॉलेजों में एनसीसी अनिवार्य हुआ करती थी। हमने छात्रों को खाकी वर्दी पहने कई बार मार्च करते देखा है। उस समय देश का हर युवा आईएसएस या निजी क्षेत्र में नौकरी करने की बजाए सेना में अफसर  बनना चाहता था। किसी भी युवा के लिए सेना में अफसरी करना गौरव की बात थी। इसके अलावा ‘स्काउटस’ और ‘गर्लगइड्स’ जैसे कार्यक्रम भी स्कूलों में पूरे उत्साह के साथ चलाए जाते थे। पर आज यह सब खत्म होता जा रहा है। एनसीसी की अनिवार्यता कब की खत्म कर दी गई। युवाओं को सेना में जाने के लिए प्रेरित करने की जगह उन्हें टैंक दिखाए जा रहे हैं। देश की विदेश नीति में ज़ोरदार बदलाव से जिन मुल्कों से हमारे संबंध बेहतर हुए उन देशों में सभी नागरिकों के लिए सेना का प्रशिक्षण अनिवार्य है। हर नागरिक को एक निर्धारित अवधि के लिए सेना में अपनी सेवाएं देनी पड़ती हैं। पर हमने तो बेरोजग़ारों की एक बड़ी फौज खड़ी करके बेरोजग़ारी के पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। बेरोजग़ारी का अर्थ है सस्ती ‘लेबर’ किस के लिए, उद्योगपतियों के लिए।

सेना में खाली पड़े हज़ारों पदों को नहीं भरा जाएगा। जिस ‘पोस्ट’  से कोई रिटायर हुआ वह पोस्ट खाली रखी जाएगी। युवाओं से ‘पकौड़े तलने’ का आह्वान किया जाएगा।  सामान खरीदने के लिए ‘ऑन लाइन’ या ‘मॉल’ को तरजीह दी जाएगी। लघु और कुटीर उघोगों का कोई काम नहीं है। हमने तो अपने चारों ओर ऐसा ही होते देखा है। अब नारे भी बदल गए हैं। यह नारा- ‘भारत मां के चार सिपाही, हिंदू, मूस्लिम, सिख, इसाई’ कहीं  पीछे छूट गया है।

खैर, हमने युग बदलते देखे हैं। यहां कुछ भी स्थाई नहीं हैं। बदलाव आते रहते हैं। न जाने क्यों आज अचानक ये लाइनें जहन में आ रही हैं-

”हो जाता है जिनमें अंदाज़-ए-खुदाई पैदा,

हमने देखा है, वे बुत अक्सर तोड़ दिए जाते हंै।’’

पीएम, शाह मामले में ६ तक फैसला करे चुनाव आयोग: सुप्रीम कोर्ट

पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर आचार संहिता उल्लंघन के आरोपों को लेकर कांग्रेस नेता सुष्मिता देव की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय में गुरूवार  सुनवाई हुई। न्यायालय ने चुनाव आयोग को कहा है कि ६ मई तक पीएम मोदी और अमित शाह के मामलों का निपटारा करे।
गुरूवार को सुनवाई के दौरान सुष्मिता देव की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि ३१ दिन में दो का निपटारा किया है। इस रफ्तार से २५० दिनों से ज्यादा का समय लगेगा। निपटारा भी किया तो वजह सही नहीं बताई। उन्होंने कहा  कि ४० शिकायतें की थी, २० के ऑर्डर पास हुए जो दूसरे लोगों के खिलाफ थे। लेकिन पीएम मोदी और अमित शाह के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। छह मई को ४६२  सीटों के लिए चुनाव हो चुके होंगे।
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने मंगलवार और बुधवार को आदेश दिया था, लेकिन हमें आदेश नहीं मिला। हमे मीडिया से ऑर्डर मिला। इसपर चीफ जस्टिस ने कहा कि आपको मीडिया से ऑर्डर से मिला या मीडिया के लिए ऑर्डर मिला।
याद रहे मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुष्मिता देव की याचिका पर चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया था। नोटिस में कहा गया कि चुनाव आयोग आचार संहिता मामले में पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि इस मसले पर पहले चुनाव आयोग का फैसला सामने आने दें। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि इस मसले पर अभी उनकी बैठक चल रही है, वह जल्द ही कोई एक्शन लेंगे।