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प्रधानमंत्री की निकली भव्य शोभायात्रा
वाराणसी की जनता ने देश के प्रधानमंत्री की भव्य शोभायात्रा देखी। इस तीसरी भव्य शोभायात्रा (रोड शो) ने सबका मन मोह लिया। प्रदेश के मुख्यमंत्री और जि़ले के कलेक्टर पंद्रह-बीस दिनों से इस यात्रा की कामयाबी में जुटे हुए थे। शहर वाराणसी की जनता घरों के बरामदों, छतों से प्रधानमंत्री पर पुष्पवर्षा करके गदगद थी।
प्रधानमंत्री अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी से फिर चुनाव के लिए नामांकन दाखिल (26 अप्रैल) करने एक दिन पहले ही शाम को पहुंचे। पहले ही दिन उन्होंने भव्य शोभा यात्रा निकाली। दूसरे उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र की जनता का मन मोह लिया। पूरे देश ने विभिन्न टीवी चैनेल पर यह भव्य शोभा यात्रा देखी। उनके साथ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और दूसरे विभागों के मंत्री थे। भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री थे और भाजपा महागठबंधन के साथी दलों के नेता और कार्यकर्ता थे। इस शोभायात्रा से प्रधानमंत्री ने यह संदेश दिया कि वे ही वाराणसी संसदीय क्षेत्र से फिर जीत रहे हैं।
वाराणसी संसदीय क्षेत्र की जनता प्रधानमंत्री को फिर चुन रही है। इससे आश्वस्त हैं नगर प्रशासन, प्रदेश के मुख्यमंत्री और पार्टी कार्यकर्ता। प्रधानमंत्री की भव्य शोभायात्रा से आसपास के विभिन्न संसदीय क्षेत्रों में भी विजय की हुंकार गूंजी है।
आश्चर्य नहीं पूर्वी उत्तरप्रदेश के तमाम संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के सभी वार्डों और सभी बूथों पर सिर्फ एक ही पार्टी को मत पडें। जब प्रधानमंत्री की शोभायात्रा इतनी भव्य है तो देश के योग्य परिश्रमी और त्यागी मनोवृति के व्यक्तित्व को अपना मत देने से वाराणसी की श्रद्धालु जनता क्यों भला हिचकेगी। आखिर प्रधानमंत्री ने विकास कार्यों के लिए राशि मंजूर की । विकास कार्य तेजी से हो रहे हैं।
प्रधानमंत्री की लोकप्रियता और सात किलोमीटर की उनकी शोभायात्रा ने भाजपा के सहयोगी महागठबंधन में शामिल पार्टियों के नेताओं को भी अभिभूत कर दिया। अब राज्य के मुख्यमंत्री उनके मत्रिमंडल के सहयोगियों, केंद्रीय मंत्रिमंडल से आए मंत्री और सहयोगी दलों के नेताओं की उपस्थिति में आम चुनाव -2019 में फिर विजयश्री के लिए उन्होंने अपना नामांकन पत्र शुक्रवार को भरा। इस मौके पर भी भारी बाजे-गाजे और जनसमूह के साथ प्रधानमंत्री चुनाव मैदान में उतरे।
वाराणसी पहुंचते ही प्रधानमंत्री ने सीधे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक मदन मोहन मालवीय की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। उन्हें नमन करने के बाद उन्होंने अपनी कमर तक झुककर वाराणसी के एकत्रित जनसमूह को चारों तरफ मुड़-मुड़ कर छह-सात बार नमन किया। इसके बाद वे अपनी कार में जाकर खड़े हुए। भवनों की बालकनी, छतों पर खड़ी महिलाओं ने उन पर गुलाब की पंखुडिय़ा बरसाई। फिर प्रधानमंत्री की यह भव्य शोभायात्रा लंका, अस्सी, मदनपुरा, सोनारपुरा, गोदौलिया होती हुई मुख्य दशाश्वमेध घाट पहुंची।
यहां प्रधानमंत्री ने गंगा आरती की। उनके सामने गंगा में अपूर्व रोशनी का प्रबंध था। ढेरों नौकाएं थीं। बड़ा ही स्वप्निल दृश्य था जिसे विभिन्न निजी, सरकारी चैनेलों ने पूरे देश की जनता की पर्यटन रूचि विकसित करने के लिए प्रसारित किया। रात में प्रधानमंत्री ने भाजपा विधायकों, सांसदों से बातचीत की।
प्रधानमंत्री की भव्य शोभायात्रा से भी विपक्ष में कहीं कोई घबड़ाहट नहीं दिखी। उत्तरप्रदेश की पूर्वी इलाकों में कांग्रेस की सचिव प्रियंका गांधी की भाजपा नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले चुनाव मैदान में उतरने की संभावना थी। लेकिन वे शुरू से यह कह रही थीं कि यदि पार्टी कहे तो ही वे चुनाव मैदान में उतरेंगी। हालांकि वे तैयार हैं। उन्हें पार्टी की अनुमति नहीं मिली। जब वाराणसी में शोभायात्रा हो रही थी तो वे झांसी और आसपास प्रचार में व्यस्त थी। भाजपा नेताओं के शिविरों में प्रियंका के न होने से काफी खुशी छाई। जबकि वे मैदान में ही नहीं थी।
वाराणसी संसदीय क्षेत्र से सपा-बसपा की ओर से भी अभी किसी मज़बूत उम्मीदवार का नाम नहीं है। कांग्रेस से अलबत्ता वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अजय राय उम्मीदवार है। इस बार चुनाव मैदान में उनके पास समय कम है लेकिन उनका अपना एक आधार है जिसका निरंतर प्रसार है। पिछली बार संसदीय चुनाव में वे तीसरे स्थान पर थे। हो सकता है इस बार अजय राय सभी दलों के समर्थन से प्रधानमंत्री को अच्छी टक्कर दे सकें। वाराणसी की जनता भी अपने ही बीच के अपने उम्मीदवार पर भरोसा कर सके।
बिल्किस बानो ने जीती न्याय, इज्ज़त और समानता की जंग
एक हिंदुस्तानी महिला है बिल्किस बानो। ज्य़ादातर हिंदुस्तानियों ने उसका नाम पहली बार इस सदी की शुरूआत में सुना। जब तीन मार्च 2002 को उसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ। शुरू में उसकी कहानी सुनने को भी लोग तैयार नहीं थे। क्योंकि वह आदिम जन समुदाय की थी। लेकिन वह 19 साल की एक हिंदुस्तानी थी। उसने लडऩा जारी रखा। उसके परिवार के 14 लोग मार दिए गए। दो साल का बच्चा मारा गया।
उसकी आवाज़ इंदौर, मुंबई, वडोदरा, लखनऊ, दिल्ली आदि में न केवल सुनी गई बल्कि उसे जन समर्थन भी मिला। दंगा, बलात्कार और हत्याओं में वह न्याय के लिए वह दर-दर भटकती रही। उसकेपरिवार ने उसे सहारा दिया। गुजरात सरकार ने उसे सहारा देने का आश्वासन दिया। उसके लिए वह राजी नहीं हुई। लोकतंत्र में राज्य के नागरिकों की रक्षा की जिम्मेदारी सरकार की होती है।
लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में क्या ऐसा हो रहा है? गुजरात सरकार ने उसे रु पए पांच लाख मात्र 2017 में बतौर मुआवजा देने चाहे। उसने नहीं लिया। राज्य अपने नागरिकों की चिंता और देख-रेख में भी नाकाम रहा। सुप्रीमकोर्ट ने इस आधार पर एक सरकार को पकड़ा। गुजरात सरकार से कहा कि वे बिल्किस को रु पए 50 लाख दे। उसे उसकी सुरक्षा की पूरी व्यवस्था करने को कहा। रहने के लिए मकान और नौकरी के लिए भी व्यवस्था करने को कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को निर्देश दिया है कि उसे 50 लाख रु पए दिए जाएं। उसे नौकरी दी जाए। क्योंकि उसकी रक्षा में उसने कोताही बरती, उसे सुरक्षित जगह रहने के लिए नहीं दी। उसे न्याय की लड़ाई लडऩे में सहयोग नहीं किया। उसे राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग ने सहयोग दिया। उसकी तकलीफ सुनी। एपेक्स कोर्ट ओर देश के ढेरों नागरिकों का समर्थक उसकी मदद में आगे आया।
अपनी जि़ंदगी में पहली बार उसने गुजरात के एक कस्बे देवगढ़ बरिया में मतदान (23 अप्रैल को) किया। उसने कहा, देश की लोकतांत्रिक प्रणाली में मेरी आस्था है। मतदान प्रक्रिया में मेरा भरोसा है। मैं सुप्रीम कोर्ट की ऋणी हूं। बिल्किस बानो की जीत आम नागरिक की जीत है।
उफ! बुरे फंसे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश
दिल्ली हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ लगे यौन उत्पीडऩ (सेक्सुअल हेरासमेंट) के आरोपों के तहत चल रही सुनवाई की रिर्पोटिंग पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है। एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ने इस संबंध मे एक जनहित याचिका दाखिल की थी।
सुप्रीमकोर्ट की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ ‘सेक्सुअल हेरासमेंट’ का आरोप लगाया था। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष बेंच कर रही है। सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच में जस्टिस अरूण मिश्र, रोहिंटन फाली नैरिमन और दीपक गुप्त हैं। ऐसे आरोप पर पूरा देश सन्न रह गया।
ये आरोप गंभीर इसलिए है क्योंकि इससे मुख्य न्यायाधीश की साख प्रभावित होती है। संवैधानिक तौर पर वे एक ऊंचे ओहदे पर हैं और देश की एपेक्स कोर्ट के प्रमुख हैं। चूंकि इस आरोप से घिन सी आती है और मुख्य न्यायाधीश का नाम इससे जुड़ता है इसलिए पूरे मामले की समुचित जांच होनी चाहिए। जिससे बात साफ हो।
मुख्य न्यायाधीश को बरसों औरों के लिए आदर्श काम करके यह इज्ज़त मिलती है। उसे सिर्फ आरोपों का शिकार नहीं बनने देना चाहिए। बल्कि इसमें जांच परख के ऊंचे सिद्धांतों का ध्यान रखा जाना चाहिए। साथ ही कानूनी तौर पर यह पता लगाना चाहिए कि क्या इन आरोपों के पीछे कोई साजिश थी और एक गठजोड़ करके मुख्य न्यायाधीश को बदनाम करना था। मुख्य न्यायाधीश के अपने बैंक के खाते में थोड़ी सी राशि बतौर ऐसे जस्टिस है जो निर्दोष कामकाज का हवाला देते हुए काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि न्यायालय की आज़ादी आज गंभीर खतरे के दौर से गुजर रही है। कुछ ताकतें मुख्य न्यायाधीश के आफिस को निष्क्रिय करना चाहती हैं।
इस बेंच के एक वकील उत्सव सिंह बैंस ने यह आरोप लगाया कि मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ आरोप एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। इस कांड में अदालत के हताश कर्मचारी हैं और दूसरे दलाल हैं। शिकायत करने वाले ने तो यह तक भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की जो इन हाउस कमेटी मामले की पड़ताल में जुटी है उनमें एक जस्टिस के तो अच्छे ताल्लुकात हैं, न्यायाधीश गोगोई से। इन हाउस कमेटी से जुड़े जस्टिस ने फिर खुद को ही उस कमेटी से अलग कर लिया। उनकी जगह फिर एक महिला जज को मौका मिला।
इस पूरे मामले में कई खामियां लगती हैं। पहली, ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि यदि मुख्य न्यायाधीश से ही शिकायत है तो इन हाउस जांच ‘सेक्सुअल हेरासमेंट ऑफ वीमेन एट वर्क प्लेस’ एक्ट 2013 के तहत क्यों नहीं हो रही है। फिर सुप्रीम कोर्ट में बनी यह कमेटी क्या सिर्फ अदालत के कर्मचारियों की जांच करेगी? जज की नहीं? मुख्य न्यायाधीश की जांच में कई पहलू हैं। पहले भी मुख्य न्यायाधीश गोगाई की कड़ी आलोचना हो चुकी है जब वे एक विशिष्ट मामले में न्यायिक सुनवाई कर रहे थे। इससे ऐसा लगता है मानो ऐसे मामले वे हल नहीं कर पाते।
ऐसा मामला पहला नहीं है जो मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के साथ कहा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एके गांगुली को इस्तीफा तब देना पड़ा जब अदालत में ‘इन्टर्न’ कर रही एक महिला ने उनके खिलाफ ‘सेक्सुअल हेरासमेंट’ का आरोप लगाया। मध्यप्रदेश की एक न्यायिक अधिकारी ने हाईकोर्ट के जज एसके नंगीले पर ‘सेक्सुअल हेरासमेंट’ के आरोप लगाए थे। राज्यसभा के तीन सदस्यों की जांच कमेटी ने सारी जांच की लेकिन आरोपों की पुष्टि नहीं हुई।









