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भारत ‘आतकं’ का ‘मुहतोड़’ जवाब देता है: मोदी

भाजपा के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में आतंक का मुद्दा उठाया। नगर के गणमान्य नागरिकों और पार्टी के नेताओं के बातचीत करते हुए उन्होंने अपनी आक्रामक रणनीति को सही ठहराया। उन्होंने  कहा आंतकवाद को बढ़ावा देने वाले अब अलग-थलग हो गए हैं। पाकिस्तान को अब दुनिया तवज्जुह नहीं देती।

दशाश्वमेध घाट पर रोशनी में अंग्रेज़ी में लिखा था ”मैं भी चौकीदार हंू’’। प्रधानमंत्री ने अपनों से बातचीत करते हुए कहा, उन्होंने पुलवामा में हमारे 40 जवानों को शहीद किया। हमने उसी इलाके में मुहिम छेड़ कर 42 लोगों को मार दिया। काम करने का यह हमारा तरीका है।’

दस साल के यूपीए राज में खूब आतंकी धमाके हुए। अयोध्या में, वाराणसी के संकट मोचन मंदिर में, दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में। लेकिन पिछले पांच साल में सरकार के प्रयास से किसी भी शहर, धार्मिक स्थल में कोई हमला नहीं हुआ क्योंकि पिछली सरकार हर हमले के बाद बातचीत की मेज पर चली जाती थी। लेकिन हमने उन्हें मजा चखाया।

हमने उन्हें बता दिया कि नया भारत सहता है और कहता नहीं। और वह न सहता ही है वह तो मुंह तोड़ जवाब देता है। जम्मू-कश्मीर में आज आतंकवाद बहुत ही छोटे इलाके में सिमट गया है।

श्रीलंका में हुए आतंकवादी हमले पर उन्होंने कहा कि ,’देश में सभ्यता के साथ सुरक्षा भी बहुत ज़रूरी है। ‘ उन्होंने कहा अभी कुछ दिन पहले, श्रीलंका में सीरियल बम धमाके हुए। उस दिन ईस्टर था। लोग बड़ी-बड़ी गाडियों में खुशी-खुशी अपने परिवार के साथ चर्च आए थे। बाइबिल का पाठ पढ़ रहे थे। सपने और संकल्प लेकर आए थे। लेकिन वे घर जिंदा नहीं लौट पाए। उनका घंघा-कारोबार था। बंगला था। गाड़ी थी। सब कुछ था। सब एक झटके में चला गया। आतंक सब कुछ तबाह कर गया।’’

वाराणसी में दो दिन के कार्यक्रम में पहले दिन ढाई तीन घंटे के रोड़ शो के बाद दशाश्वमेध घाट पर उन्होंने आरती की और लौट कर पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं को संबोधित किया।

‘आप भी, आपके पास गाड़ी हो, बंगला हो। सब कुछ हो। लेकिन शाम को जिंदा घर लौट कर नहीं आए तो यह सब किस काम का?’’

भव्य शोभायात्रा  में प्रधानमंत्री गेरूआ कुर्ता और गले में स्कार्फ, सीने पर कमल लटकाए हुए थे। उनके साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उत्तरप्रदेश भाजपा अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडे, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा, भाजपा शासित और भाजपा  महागठबंधन के राज्यों के मुख्यमंत्री और कार्यकर्ताओं का बड़ा जमावड़ा साथ चल रहा था। वाराणसी नगर के वासियों ने पुष्पवर्षा करके इस भव्य शोभायात्रा को अविस्मरणीय बना दिया।

विपक्ष ने फिर भी हौसला नहीं खोया

कांग्रेस आला कमान ने उत्तरप्रदेश की सचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को वाराणसी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लडऩे की अनुमति नहीं दी। नौका से पिछली बार जब प्रिंयका वाराणसी पहुंची थी तो उन्होंने कहा था यदि पार्टी कहेगी, पार्टी अध्यक्ष कहेंगे तो चुनाव वाराणसी से लडंूगी। लेकिन पूरे शहर और आसपास के इलाकों में हवा बंध गई कि प्रियंका वाराणसी से चुनाव लड़ेंगी। लेकिन आला कमान के राजी न होने से पूरे संसदीय क्षेत्र, विपक्षी दलों और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में उदासी छा गई।

वाराणसी से अपने पुराने कार्यकर्ता अजय राय को कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के मुकाबले फिर उतारा। हालांकि अजय राय इस बार कतई तैयार नहीं थे। लहुराबीर में अपने कार्यालय में बैठे हुए अजय राय अब कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को फिर सक्रिय कर रहे हैं। इन्हें हताशा पर काबू पाकर फिर घर-घर जाकर सक्रिय होने और मतदाताओं को मत देने के लिए प्रेरित करने में जुट गए। प्रिंयका गांधी वाड्रा ने भी उन्हें वाराणसी में लगातार सक्रिय रहने और खुद प्रचार में आने का भरोसा दिया ।

अपने कार्यकताओं के बीच अजय राय कह रहे थे, घर-घर जाइए। समझाइए, अब की उन्हें बाबा ने नहीं बुलाया।  मंा गंगा ने नहीं बुलाया। वे आए, गंगा आरती की। नामांकन पत्र दाखिल किया और लौट गए। यहां की समस्याएं क्या निपटीं। बाबा के दरबार में जाने के लिए पुरानी ऐतिहासिक गालियों को ध्वस्त कर मैदान बना दिया। क्या बाबा खुश हैं? क्या उनकी महत्ता बढ़ी। क्या फिर बाबा ने उन्हें विकास के लिए बुलाया है? मां गंगा क्या भव्य आरती से खुश  हो गई? पांच साल बीते आज भी वैसी ही गंदगी? क्या गंगा अब आधुनिक छोटे जहाज़ों के आने के बाद यहां के मल्लाहों पर रोजी-रोटी का संकट नहीं गहराया? क्या बनारस और आस-पास के लघु हस्तशिल्प उद्योग का विनाश पिछले पांच साल में नहीं हो गया। क्या उसे और भी बर्बाद होने में काशी की जनता साथ देगी।

एक अच्छी बात हुई कि अब अजय राय के साथ दूसरी पार्टियां मसलन बसपा और सपा के कार्यकर्ता भी कांग्रेस से जुड़ रहे हैं। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की सचिव प्रियंका गांधी वाड्रा पार्टी प्रत्याशी अजय राय के साथ यहां के चुनाव प्रचार में नए सिरे से जुट रही हैं। वाराणसी की जनता और शहर कोतवाल बाबा भैरव नाथ भी शिव की नगरी में बढ़े खंडहरों की तादाद से काफी दुखी हैं। वे चाहते हैं कि वाराणसी की जनता अपना अच्छा बुरा खुद तय करे। जहां मुसीबत आएगी वे रक्षा करेंगे।

वाराणसी  मेंं छोटे उद्योग धंधे, हस्तशिल्प के विकास में ठहराव से बेचैन लोग आज विपक्ष के साथ हैं। वे चाहते हैं कि विपक्ष मिल कर कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन दे। विपक्षी दलों के बड़े नेताओं की सहमति का उन्हें अब इंतजार नहीं है। वे खुद अब अजय राय के पक्ष में आ चुके हैं। गांवों और शहर के भूमिहर ठाुकर और ब्राहमण और दलित प्रिंयका के कारण अब फिर एकजुट हो रहे हैं।

मोदी की भव्य शोभायात्रा के बाद प्रदेश और देश के विपक्षी नेताओं को एक बार मिल-बैठ कर अपनी रणनीति पर सोचने का मौका मिला है। वाराणसी हमेशा आंदोलनकारियों का केंद्र रहा है। एक नई चेतना का अब विकास हो रहा है। कैसे बचाएं वाराणसी।

प्रियंका-मोदी टकराव नहीं वाराणसी में

जब प्रियंका ने वाराणसी से चुनाव लडऩे की अपनी संभावना के बारे में यह कहा कि वह तैयार है पर अंतिम आदेश पार्टी का होगा, तो चारों ओर एक उत्सुकता सी फैल गई थी। सभी लोग प्रियंका और मोदी की टक्कर देखने के लिए आतुर थे। पर अंत में पार्टी ने यह बयान देकर सारी बात को खत्म कर दिया कि प्रियंका वाराणसी से चुनाव नहीं लड़ेगी।

फिर वह क्यों नहीं लड़ रही? गांधी परिवार के दोनों बच्चों में से ज़्यादा करिश्माई और कार्यकर्ताओं और आम लोगों के साथ स्वाभाविक तौर पर संपर्क बनाने वाली प्रियंका के प्रशंसक और आलोचक दोनों ही इस फैसले का विश्लेषण करने में लग गए।

इसका सबसे ज़्यादा विरोध प्रियंका की माता सोनिया गांधी ने किया। उन्हें यह सही नहीं लगा कि प्रिंयका अपना पहला ही चुनाव इतनी कठिन सीट से लड़े। वैसे भी उन्हें लगा कि जिस राज्य में पार्टी का पूरा काम ही न हो और तैयारी भी पूरी न हो वहां चुनाव लडऩा सही नही होगा।

कांग्रेस सदस्यों ने यह प्रश्न उठाया कि जब प्रियंका कहीं और से आसानी से चुनाव जीत सकती है तो वाराणसी से चुनाव क्यों लडऩा। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि प्रियंका के लिए संसद में जाने का सबसे आसान रास्ता है अमेठी में होने वाले उप चुनाव द्वारा। यदि राहुल गांधी अमेठी और वायनाड (केरल) दोनों स्थानों से चुनाव जीत जाते हैं तो वे अमेठी की सीट छोड़ सकते हैं। प्रियंका 2022 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव से भी अपनी शुरूआत कर सकती है।

जब समाजवादी पार्टी ने शालिनी यादव (अब शलिनी की जगह तेज बहादुर को टिकट दिया गया) को बसपा-सपा और आरएलडी का वाराणसी से उम्मीदवार घोषित कर दिया तो यह साफ हो गया था कि इस गठबंधन का साथ प्रियंका को नहीं मिलेगा। इसका भरपूर लाभ मोदी को होगा। पार्टी के सदस्यों का यह भी मानना है कि यदि प्रियंका चुनाव लड़ती है तो वह केवल उसी क्षेत्र तक बंध जाती जबकि उन्हें पूर्वी उत्तरप्रदेश का कार्यभार सौपा गया है। वह पार्टी की ‘स्टार कंपेनर’ हैं। विश्लेषकों का  मानना है कि प्रियंका को न लड़ा कर कांग्रेस ने एक तरह से मोदी को ‘वाकओवर’ दे दिया है। मोदी अपनी जीत के प्रति इतने अश्वस्त हैं कि उन्होंने जनसभा में लोगों से कहा कि वे अब केवल जीत के बाद ही वाराणसी आएंगे।

उधर कांग्रेस के प्रत्याशी राय ने कहा  कि वह अपने चुनाव प्रचार के दौरान स्थानीय मुद्दे उठाते रहेंगे। ध्यान रहे कि राय ने 2017 में भी वाराणसी जि़ले के पिंदारा से विधानसभा चुनाव लड़ा और हारा था। उन्होंने कहा कि उनका मुख्य मुद्दा होगा मोदी के वे वादे जो उन्होंने वाराणसी के लोगों के साथ किए पर उन्हें पूरा नहीं किया। इसके साथ ही नगर को तोडऩे का मामला भी जनता तक जाएगा। गंगा अभी भी साफ नहीं हुई है। लोग सब जानते हैं। उन्होंने कहा कि मैंने प्रियंका से अपील की थी कि वे यहां से चुनाव लड़े। मैं आभारी हूं पार्टी का जिसने मेरे जैसे कार्यकर्ता पर फिर से भरोसा जताया है। पूर्वी उत्तरप्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी का समर्थन और उत्साहवर्द्धन मेरे साथ है। मैं उनकी उम्मीदों पर पूरा उतरने का प्रयास करूंगा।

राय ने यह सारी बातें प्रियंका के दौरे से पहले कहीं जब पार्टी अपनी नेता के दौरे की पूरी योजना बना रही थी। जैसे ही पार्टी ने राय के नाम की घोषणा की  उसके साथ ही पार्टी की इस बात के लिए आलोचना भी हुई कि उसने पहले प्रियंका का नाम हटा दिया। यह सब 28 मार्च को शुरू हुआ जब पार्टी समर्थकों ने प्रियंका से उनके परिवार की पक्की सीट रायबरेली से चुनाव लडऩे को कहा। इस पर प्रियंका ने कह दिया-”वाराणसी से क्यों नहीं?’’ कांग्रेस को इस मुद्दे पर काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा। प्रियंका को इस तरह की बातों से बचना चाहिए। प्रियंका की यह आलोचना भी होगी कि उनमें बड़ी लड़ाई का मादा नहीं है। पता नही प्रियंका ने क्यों इसे लंबे समय तक चलने दिया और राहुल गांधी ने भी क्यों इस मुद्दे पर बात स्पष्ट नहीं की। उन्होंने बल्कि यह कहा कि वे अभी यह ‘संस्पैंस’ जारी रखेंगे। पर यह चलना नहीं और लोगों में काफी निराशा फैली।

सवाल यह है आखिर इस तरह बात को अंधकार में रखने के पीछे मंशा क्या थी? क्या कांग्रेस में इसे लेकर झिझक आ गई थी? क्या राहुल गांधी ने इस आधार पर प्रियंका को मना किया कि वह मोदी का सामना नहीं कर पाएगी और उसकी हार प्रियंका और  पार्टी दोनों के लिए हानिकारक होगी। अंत में कांग्रेस को यह जानने में एक महीना लग गया कि मोदी को वाराणसी में हराया नहीं जा सकता? क्या यह बात शुरू से ही स्पष्ट नहीं थी? क्या असल में मोदी की हार की कोई संभावना नहीं थी?

चाहे कारण कुछ भी हो पर वह मीडिया को पता नहीं। इस कारण प्रियंका का चुनाव न लडऩा भाजपा को एक मुद्दा दे गया है। भाजपा अब यह शोर मचा सकती है कि प्रियंका चुनाव से भाग गई है। अब बात करिश्माई व्यक्तित्व से उलट उनकी चुनौती को स्वीकार न कर पाने पर आ जाएगी। इसका यह असर भी जाएगा कि गांधी परिवार अपने लिए सुरक्षित सीटें ही तलाशते हैं। इसके बाद अब प्रियंका को भी लोग गंभीरता से लेना छोड़ सकते हैं। उन्होंने 2012 में एक बार कहा था-”मैं आऊं क्या’’, पर जब अवसर आया तो वह नहीं आई।

तेज पर लगी रोक

उत्तर प्रदेश लोक सभा चुनावों में सपा-बसपा गठबंधन के साझा तेज बहादुर का नामांकन पत्र चुनाव अधिकारी ने रद़द कर दिया। उन्हें शालिनी यादव की जगह अंतिम समय में गठबंधन का वाराणसी से उम्मीदवार बनाया गया था। अब शालिनी यादव ही गठबंधन की उम्मीदवार होंगी।

उन्हें सपा का टिकट देने की जानकारी पार्टी के प्रवक्ता मनोज राय धूपचंडी ने दी थी। सैनिकों को मिलने वाले भोजन पर सवाल उठाते हुए वीडियो वायरल करने के कारण तेज बहादुर को बल से बाहर कर दिया गया था। तेज बहादुर आज़ाद उम्मीदवार के रूप में अपना पर्चा भर चुके थे। कुछ दिन पहले से ही यह चर्चा शुरू हो गई थी कि शालिनी की जगह तेज बहादुर को सपा अपना उम्मीदवार घोषित कर सकती है। पर इस मुद्दे पर कोई अधिकारिक घोषणा नहीं हुई थी।

शालिनी ने कुछ समय पहले ही कांगे्रस को छोड़ कर सपा का दामन थामा था। सपा में आने के कुछ घंटे बाद ही सपा ने उसे अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था।

तेज बहादुर उस समय चर्चा में आए जब उन्होंने जनवरी 2017 में जवानों के मिलने वाले खाने को लेकर सोशल मीडिया पर वीडियो डाला था। इसके बाद अप्रैल में सीमा सुरक्षा बल ने उनको अनुशासनहीनता का दोषी मानते हुए बर्खास्त कर दिया था। अफसरों ने बताया था कि जांच में कांस्टेबल दर्जे के जवान द्वारा लगाए गए आरोप सही नहीं पाए गए थे।

यादव ने वीडियो में कहा था – देशवासियों मैं आप से अपील करता हूं। हम लोग सुबह छह बजे से शाम पांच बजे तक लगातार 11 घंटे बर्फ में खड़े हो कर ड्यूटी करते हैं। कैसा भी मौसम हो हम ड्यूटी पर तैनात रहते हैं। मगर हमारी हालत यह कि हमारी न तो सरकार सुनती है और न ही कोई मंत्री, यहां तक कि इसे मीडिया भी नहीं दिखाता। तेज़ बहादुर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी अपील की थी। उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री इसकी जांच कराएं। उसने लिखा था, ‘वीडियो डालने के बाद शायद मैं रहूँ या न रहूँ। अफसरों के बहुत बड़े हाथ हैं, वे मेरे साथ कुछ भी कर सकते हैं, कुछ भी हो सकता है।’ यादव जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर तैनात बीएसएफ की 29वीं बटालियन का सिपाही था। जांच के दौरान उसे जम्मू बदल दिया गया था। उसने नौ जनवरी को सोशल मीडिया पर वीडियो डाल कर खराब खाना दिए जाने की शिकायत की थी। इस मामले ने काफी तूल पकड़ा। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी बीएसएफ में इस मामले की जांच करने को कहा था इसके बाद कई जवानों के ऐसे वीडियो सामने आए। तेज़ बहादुर के 22 साल के बेटे ने 17 जनवरी 2019 को खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी।

‘मोदी न हों तो पार्टी का नामलेवा न हो’

आम चुनाव में वाराणसी संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बन गए नरेंद्र मोदी। वे दूसरी बार वाराणसी की जनता- जर्नादन के दरबार में वोट मांगने पहुंचे। गुरूवार (25अप्रैल) की शाम उन्होंने अपनी जबरदस्त शोभायात्रा (रोड़ शो) निकाली। शोभायात्रा में शामिल गाडिय़ों के गुजऱ जाने के बाद भी सड़कें गेंदे और गुलाब की पंखुडिय़ों की महक से महकते रहे।

अपनी इस शोभायात्रा के बाद से तो प्रधानमंत्री और ज़्यादा प्रसन्न हैं। वाराणसी और देश की जनता उन्हें मोदी यानी कमल वाले चौकीदार के रूप में जानती मानती रही हंैं। देश का मध्यम वर्ग उन्हें एक ऐसे अवतारी के रूप में जानता मानता है जिसने उन्हें देश विदेश में विभिन्न उद्योगों में अपनी मेहनत को आजमाने का मौका दिलाया। गांवों की चौपालों में यही चर्चा होती है कि डीज़ल महंगा हो गया। पेट्रोल महंगा हो गया। बेटुआ आज एक निज़ी कंपनी में फसल बीमा का एजेंट है। हर महीने बिना धूल-माटी एक ठंडा घर में मेज पर बैठ कर कंप्यूटर चला कर महीना में बीस-बाइस हज़ार तो कमा ही रहा है मोदी जी के कारण। पहिले के जमाना में तो ऐसा नहीं था। मोदी ठीक हैं। लेकिन उनके साथ के दूसरे नेता बस अपने खाए-पिए के जुगाड़ में रहते हैं। मोदी न रहें तो पार्टी का कोई नाम भी न ले। यह प्रतिक्रिया है वाराणसी संसदीय क्षेत्र के बशिंदों की।

यह सच्चाई पार्टी भी जानती है। संघ परिवार भी जानता है और खुद मोदी भी। अपनी चुनावी सभाओं में वे यह कहना नहीं भूलते कि आप कमल को वोट देंगे तो वह सीधे नरेंद्र मोदी को मिलेगा। यानी आपका यह चौकीदार फिर आपकी सेवा में हाजिर। लेकिन इससे पार्टी में ही एक द्वंद्व है। यानी कल की चिंता आज और अभी से।

तमाम सावधानियों को बरतने और उनका ध्यान रखने वाले आज भी दो चीज़ों का ध्यान ज़रूर रखते हैं। एक तो हर बूथ पर भाजपा के कार्यकर्ताओं की आपसी बैठक होती है और कार्यकर्ता बूथ तक मतदाता लाता है। शोभायात्रा के लिए आस-पास के जि़लों से लाई गई भीड़, शहर के स्थानीय लोग भाजपा के महागठबंधन के सभी मुख्य नेताओं की मौजूदगी, शिरोमाणि अकाली दल के 93 वर्षीय नेता प्रकाश सिंह बादल के चरण छूने के बाद नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को (26 अप्रैल) जि़लाधिकारी के कमरे में जाकर अपना नामांकन दाखिल किया। उन्हें अब अपने ही नहीं, पार्टी गठबंधन में शामिल सभी पार्टियों के नेताओं के जीतने का पूरा भरोसा है।

अपने इसी भरोसे के कारण वे कहते हैं कि राजनीति के पंडितों को, चुनावी नतीजों को आकलन करने वाले सभी महा गुरूओं को आपस में मिल बैठ कर इंकबैंसी की पारंपरिक थ्योरी में बदलाव लाना चाहिए। उन्हें पूरी उम्मीद है कि इस बार वे उनकी पार्टी और गठबंधन के सभी दल साधारण से भी ज़्यादा बहुमत से जीतेंगे।

खुद के पार्टी और संघ परिवार के सदस्यों की मेहनत, लगन और दूरदृष्टि से प्रभावित नरेंद्र मोदी दिल खोलकर ठठाकर हंसते हैं। उनकी हंसी से सकपका जाते हैं भाजपा के दूसरे नेता। फिर सभी हंसते दिखते हैं। फिर माला पहनाने का सिलसिला। हर बार जब उनके ऊपर माला आती है तो नरेंद्र मोदी मुस्कराते हैं। फिर कहते हैं- ‘ हर मतदाता को वोट देना चाहिए। कल के रोड शो के बाद तो सबने मन बना लिया है। उन्हें पता है कि वोट किसे देना हैं और कौन जीतेगा।’

वाराणसी में भाजपा नेताओं ने इस भीषण गर्मी में एक बहुरूपिया लाल रंग में एक हनुमान खड़ा कर रखा था। उसके बाजे और करबत पर कोई नेता ध्यान नहीं दे रहा था। कितना अमानवीय और भद्दा मजाक था नाम पर धर्म के।

प्रधानमंत्री के नामांकन समारोह में भी उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मेंहद्र नाथ पांडेय, केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह आदि मौजूद थे।

अभूतपूर्व शोभायात्रा, अभूतपूर्व गंगा आरती, अभूतपूर्व बैठक गणमान्य लोगों के साथ, बेहद अभूतपूर्व।

काशी की गलियां अब बदल रही हैं मैदान में

काशी में कुछ गलियां अब विशाल मैदान में बदलती जा रही हैं। मलबा अब भी है। धूल की गंध है। टूटे मकानों की दीवारें और टूटी आलमारियां हैं। केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में राज कर रही एनडीए सरकार के मुखिया का संसदीय क्षेत्र बनारस है। उनके ड्रीम प्रोजेक्ट विश्वनाथ कारिडोर और गंगा व्यू को साकार करने के बहाने काशी की गलियां मैदान में बदली गई हैं।

ड्रीम प्राजेक्ट का एक चरण पूरा हो गया है। इसे बताने पिछले दिनों वे खुद आए थे। उन्होंने खुशी से कहा था,’अब बाबा विश्वनाथ मुक्त हवा में सांस ले सकते हैं।’ बिखरे मलबे और खंडहरों पर प्रशासन ने तब हरा या सफेद पर्दा डाल दिया था। जब भी वे आते हैं। यही करना पड़ता है।

बनारस ही नहीं पूरे देश में को भी छोडें तो दुनिया भर में मुखिया की चर्चा है। उन्होंने सदियों से शहर की पहचान रही गलियों को ही मटियामेट कर दिया। अपने ड्रीम प्रोजेक्ट पर अमल कराने के लिए उन्होंने धरोहर का नाश कर दिया। अब मई में बनारस में भी चुनाव होने हैं। इनके मुकाबले में कौन है? अफवाह तो नहीं लेकिन चर्चा जबरदस्त है शायद कांग्रेस की महासचिव प्रियंका को परिवार, पार्टी और देश की खातिर मुकाबले में उतारा जाए। तब शायद विपक्षी दल उन्हें हर तरह से सहयोग भी दें। यदि यह दुर्गावतार सचमुच हो जाए तो शायद कहीं अहंकार कुछ कम हो।

आज मोदीमय है काशी। गोदौलिया पर कुलीन वाणिक समुदाय ने भव्य स्क्रीम पर नमों टीवी का प्रसारण चलवा रखा है। हालांकि भारत सरकार का सूचना प्रसारण मंत्रालय भी नहीं बता पाता कि नमो टीवी का रजिस्ट्रेशन कब हुआ और इसके मालिक कौन हैं। जब विपक्ष ने बहुत हल्ला मचाया तो चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव 2019 की अधिसूचना जारी होने के बाद नमो टीवी पर सिर्फ प्रधानमंत्री के भाषणों और उनके सार्वजनिक कार्यक्रमों को नमो टीवी पर लाइव प्रसारण की अनुमति दी। सोचिए कितना आसान है देश में टीवी चैनेल शुरू करना। शर्त यही है कि आप अधिकारों की कुर्सी के आसपास हों। रसूख रखते हों, फिर देखें जलवा।

बहरहाल, नमो टीवी के कार्यक्रमों को रिले कर रहे हैं सभी टीवी प्रसारण प्लेटफार्म, भले वह हो टाटा स्काई, एअरटेल, वीडियोकोन या फिर कोई और अब भारत निर्वाचन आयोग के फरमान और कानून की स्थिति का आकलन करें। काशी में व्यावसायिक केंद्र के रूप में मशहूर चौक-गोदौलिया मार्ग पर बांस फाटक के अपने भव्य शो रूम के बाहर की दीवार पर नमो टीवी का प्रसारण जालान समूह की पूरी भव्यता के साथ कर रखा है। इससेे काशी के लोगों और तीर्थयात्रियों का मन लगा रहता है। अपने नेता में। ट्रैफिक नियमों की भी यदि अनदेखी हो रही है तो क्या। अपनी है सरकार, सबका रखती है ख्याल।

जैसे ही सांझ होती है। नमो टीवी पर छा जाते हंै, देश के चौकीदार। काशी की जनता में अपने नेता का इससे अच्छा, मुफ्त प्रचार और कैसे संभव है? कितना रोचक है कि प्रधानमंत्री का यह संसदीय क्षेत्र। कानून -व्यवस्था भी यहां लाजवाब है और निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता, ईवीएम-वीवीपीएटी भी जबरदस्त! बशर्ते बिजली हो।

इन तमाम सवालों पर स्थानीय मीडिया वैसे ही चुप है जैसे प्राचीन धरोहरें मंदिर-गलियां – दुकानें टूटती गई लेकिन मीडिया की चुप्पी बरकरार रहीं जो दो चार लोग विरोध में आए। उनके बारे में क्या ही कहना और क्या सुनना। जब लोकप्रिय सरकार जनहित में कर रही है कर काम। पुराने भाजपा कार्यकर्ता और बंगाली नेता श्याम बिहारी चौधरी ने तो कहीं कभी कुछ न देखां, न सुना फिर बोलते कैसे? हालांकि रहते वे काशी में हैं।

काशी में अब न पुराना रंग है और न वह मस्ती, जिसके लिए काशी कभी जानी जाती थी। फिर भी काशी के मरघट की अपनी अलग ख्याति है। गंगा सूख रही है। प्रदूषण बढ़ रहा है। ‘नमामि गंगे’ सिर्फ सुंदर तस्वीरों में ही है।

अभी बीती हनुमान जयंती (19 अप्रैल) किसी ने सुध तक नहीं ली। ध्वस्त ललिता गली के किनारे गोयनका पुस्तकालय के पास ही बने प्राचीन हनुमान मंदिर में कभी खूब पूजा अर्चना होती थी। संगमरमर की जिस पट्टिका पर हनुमान चालीसा लिखी थी वह टूट गई। मंदिर की बगल में वह रखी है धूल-धक्क्ड़ में। उसे साफ रखने की भी अब कोई जतन नहीं। कभी कभार ही आते हैं भक्त। हां, एक पंडित है जो अपनी रूचि से पूजा-पाठ और आरती करते दिखते हैं।

जर्मनी के किसी शहर से काशी में आई और बसी एक महिला हैं गीता। वे खुद को हनुमान भक्त कहती हैं। मंदिर सुरक्षित रहे इसके लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया। लेकिन तब लोभ था धन का। यह इन ध्वस्त गलियों के उन मकान मालिकों में तब खूब था। कोई भी उस विदेशी महिला के साथ आंदोलन में खड़ा तक नहीं हुआ। यहां रहने वाले लोग प्रशासन और पुलिस के अफसरों को तब बताते थे कि वह तो विक्षिप्त हो गई है। खुद की मानसिक स्थिति के दुरूस्त होने का तब प्रमाण दे रहे थे ये वाराणसी की गलियों के नए राजा। जो तब पैसा पाकर अपनी मानसिक स्थिति दुरूस्त होने की दुहाई दे रहे थे।

ललिता गली में मकानों-दुकानों के मालिक और दुकानदार तब खुद को बहुत समझदार, सुलझा हुआ बताते और अपने हितों के लिए बेहद व्यग्र रहते थे। एक दोपहर इन लोगों ने गुपचुप प्रशासन के अधिकारियों से मकानों, दुकानों का सौदा कर लिया। वे छोड़ गए इन हनुमान को । उन्हें मलबे के ढेर में फेंक दिया प्रशासन ने। लेकिन कुछ समझदार, सुलझे लोग आए आगे।

कुछ लोगों ने तब आवाज़ लगाई। हालांकि जब लड़ाई हो रही थी तब ज़्यादातर अपने-अपने घरों में दुबके हुए थे। अब गलियों के खंडहरों के बीच ‘मुक्तिधाम’ पसरा हुआ है। हनुमान जी छोटे कमरे में मुक्त हैं। उनके मंदिर के कमरे पर ताला है। जब यहां रहने वाले ही चले गए तो हनुमान जयंती फिर कौन मनाए?

हनुमान मंदिर के बाहर एक शिलापट्ट लगा है। उस पर लिखा है,’हमें आपसे आशीर्वाद की आकांक्षा है। कहते हैं आवासीय और व्यवसायिक अतिक्रमण हटाने के बाद से हनुमान का दर्शन सर्वसुलभ हुआ है। लेकिन अब श्रद्धालु कहां हैं?

हकीकत यही है कि हनुमान जयंती पर भी इस हनुमान मंदिर और ललिता गली की सुध न प्रशासन ने ली और न यहां पहले बसे लोगों ने।

मोदी की गोद में खुश है एक गांव

पिछले सप्ताह में जयापुर (वाराणसी संसदीय क्षेत्र) गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिन गांवों को विकसित करने के लिए गोद लिया। उसमें यह एक है। जब तीन साल पहले मैं गई थी तो यह किसी भी दूसरे छोटे गांव सा था। तब इस गांव को आने वाली मुख्य सड़क बन रही थी। एक बैंक भी एटीएम के साथ खुल गया था।

मैं अब की बार जब गई जयापुर तो मैंने देखा कि वह सड़क पक्की हो गई है और एक और बैंक खुल गया है। रास्ते में आते हुए मैंने महसूस किया कि दूसरे गांवों की तुलना में यह बेहतर है। वाराणसी से आते हुए मैंने रास्तें में ‘स्वच्छ भारत’ के कई संकेत देखे जिससे लगा कि इसका भी असर रहा है। नालियां भी थीं लेकिन उनमें पॉलिथिन नहीं थी। सड़ांध नहीं थी।

जयपुर के प्रधान श्री नारायण पटेल एक बड़े दो मंजि़ले मकान में रहते हैं। मैंने उनसे पूछा कि जब से मोदी ने इस गांव को गोद में लिया। क्या बदलाव गांव में हुए। उन्होंने कहा, अरे पूरा गांव एकदम बदल गया है। यहां अब दो बैंक हैं। एक पोस्ट ऑफिस है। घर-घर पीने का पानी नल की टोंटी से हमेशा आता है। 22 घंटे बिजली है। हर घर में शौचालय है। विकास यहां थमा नहीं है वह दिन दूना-रात चौगुना हो रहा है। गांव में और भी पक्की सड़कें बन रही हैं।

मैंने गांव के दूसरे लोगों से भी बातचीत की। लेकिन मैंने कभी हिंदुत्व शब्द नहीं सुना। जबकि ट्विटर पर हिंदुत्व कहीं ज्य़ादा है बनिस्वत ग्रामीण भारत के जिन्होंने मोदी को फिर जिताने का मन बनाया भी है वह विकास के ही लिए।

शहरों में मुझे ज्य़ादा ऐसे लोग मिलते हैं जो मोदी का इसलिए विरोध करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें उन्होंने नीचा दिखाया है। मैं उन व्यापारियों, छोटे व्यापारियों से मिलीं जिन्होंने नोटबंदी और जीएसटी के कारण मोदी के प्रति अपनी नाराज़गी जताई। एक जौहरी ने तो कहा, इस बार तो मैं उन्हें वोट देने को नहीं हूं क्योंकि पिछले पांच महीने में मैंने काफी घाटा कमाया है। यदि ये या इनके सहयोगी दल सत्ता में फिर आ गए तो मैं देश छोड़ दूंगा।

कई ऐसे भी हैं जिनमें मोदी के प्रति एक उत्साह जगा था। लेकिन अब उनकी निराशा ज्य़ादा आर्थिक की है। विश्व बैंक भारत की रैंकिंग कुछ भी करें क्योंकि उसे तो ऐसे देश की ज़रूरत है जहां व्यापार किया जा सकता है। लेकिन असलियत यह है कि सब कुछ खत्म हो गया है। हालांकि मोदी को यह सुनना अच्छा लगता है कि वे मोदी के काम से संतुष्ट नहीं हैं। फिर ऐसे लोग है जो रोज मोदी मंत्रपाठ समूह में करते हैं और कहते है कि वे मोदी को इसलिए नापसंद करते हैं क्योंकि उनकी जि़ंदगी में पिछले पांच साल में कोई बदलाव नहीं आया।

मुस्लिमों में ज़रूर अपवाद है। अपनी यात्राओं में मैंने उसे समझने की कोशिश ज़रूर की एक आदमी ने कहा कि यदि मोदी फिर जीतते हैं तो जल्दी ही वे हिंदू राष्ट्र बना देंगे। इसमें वे ऐसे नागरिक बन जाएंगे जिन्हें कोई खास सुविधा नहीं होगी। पिछले सप्ताह भाजपा अध्यक्ष ने इस बात की तस्दीक करते हुए कहा भी था कि ‘घुसपैठियों’ में मुसलमानों को मत आने दो सिर्फ हिंदुओं को ही लो, सिखों और बौद्धों को लो। मैंने जब इस बात ट्वीट किया और जानना चाहा कि इसका मतलब क्या है उन्हें यह बताना चाहिए। तो मेरा विरोध मोदी समर्थकों और विरोधियों दोनों ने ही किया।

ट्विटर आज कल हिंदुत्व के योद्धाओं और हिंदुत्व के विरोधियों का रणक्षेत्र बना हुआ है। किसी भी जाति या वर्ग के वे हों। जबकि असली भारत में ज्य़ादा महत्वपूर्ण हैं आर्थिक मुद्दे। भारतीय मतदाता की इच्छा आर्थिक प्रगति की है। हो सकता है एक दिन ऐसा भी आए जब चुनाव में जाति और वर्ग की बात न हो। अपनी यात्राओं में मेरी भेंट किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं हुई जो यह कहे कि मोदी की लोकप्रियता की वजह हिंदुत्व है।

तवलीन सिंह

साभार: इंडियन एक्सप्रेस

महात्मा गांधी ने तब क्या कहा था

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संयुक्त सचिव मनमोहन वैद्य दिल्ली में 1947 में महात्मा गांधी और एमएस गोलवलकर के बीच हुई बैठक का जि़क्र करते ही हैं। तब गोलवलकर आरएसएस प्रमुख थे। वैद्य गोलवलकर के संपूर्ण कृतित्व से इस बैठक का हवाला देते हैं। इस बैठक के बारे में तकरीबन 22 साल बाद 1969 में गोलवलकर टिप्पणी करते हैं। वैद्य जिसका उल्लेख करते हैं।

महात्मा गांधी जन्मशती के मौके पर गांधी की एक मूर्ति का अनावरण गोलवलकर ने किया। अपने भाषण में उन्होंने कहा कि, महात्मा से मेरी अंतिम मुलाकात 1947 में हुई। उस समय दिल्ली में दंगे हो रहे थे। जो लोग परंपरा से अहिसंक होने की बात कर रहे थे वे अचानक क्रूर और बेदिल हो उठे थे। महात्मा ने मुझसे कह, देखो, क्या हो रहा है? मैंने कहा, यह हमारा दुर्भाग्य है। ब्रिटिश कहा करते थे जब हम जाएगे तो आप लोग एक-दूसरे का गला काट दोगे। वही आज हो रहा है। सारी दुनिया में हमारी थुक्का-फजीहत हो रही है। उस दिन प्रार्थना बैठक में गांधी जी ने गर्व से मेरा नाम लिया और मेरे विचार सुनाए।

पटेल की जीवनी (पहली बार 1990 में छपी) और गांधी की जीवनी (जो 2006 में) आई। मेरा साबका गांधी गोलवलकर की बैठक (12 दिसंबर 1947) से पड़ा। महात्मा गांधी के ‘हरिजन’ प्रार्थना सभा में प्रार्थना बैठक का ब्यौरा छपा जो महात्मा गांधी के ‘क्लेक्टेड वक्र्स ऑफ महात्मा गांधी’ में छपा। मैंने बैठक के संबंध में पाया कि दो स्थानों पर इस बैठक का संदर्भ मिलता है। एक तो बृजकृष्ण चांदी वाला की ‘गांधी जी की दिल्ली डायरी और एक पत्र में जिसे नेहरू ने पटेल को अक्तूबर 1948 में लिखा था। यह सरदार पटेल का पत्राचार (संपादित दुर्गादास) खंड सात, पृ 672) में है।

सितंबर 21, 1947 के हरिजन में गांधी जी का पूरा वृतांत है जो सितंबर 12 को प्रार्थना बैठक खत्म होने पर हुआ था। उसी दिन सुबह गोलवलकर के साथ उनकी बात होती है। उन्होंने उनसे कहा (यानी गांधी जी ने गोलवलकर से कहा) कि उनके हाथ (आरएसएसके) के खून से से हुए हैं। गुरूजी ने उन्हें भरोसा दिया कि यह असत्य है। उस संगठन का मुसलमानों की हत्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। यह कुल मिला कर पूरी सामथ्र्य से हिंदुस्तान की रक्षा करना चाहता है। यह शांति का इच्छुक है और गांधी से चाहता है कि वे अपना नज़रीया सार्वजनिक करें।

दिल्ली में 1947 में कृष्ण चांदीवाला गांधी के लगातार साथी थे। वे गांधी के सहयोगी और सहायक 1920 से बन गए थे। जब उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए सेंट स्टीफेंस कॉलेज छोड़ दिया था। वृजकृष्ण के अनुसार जब गोलवलकर ने उन्हें भरोसा दिया कि आरएसएस मुसलमानों की हत्या के पक्ष में नहीं है। गांधी ने तब उनसे कहा कि यह बात वे सार्वजनिक तौर पर कहें। गोलवलकर ने कहा कि अपनी प्रार्थना सभा में वे उस शाम सार्वजनिक तौर पर भी कहें। गोलवलकर ने कहा कि गांधी को उनके नाम से हवाले के साथ यह कहा गांधी ने यही किया। प्रार्थना के बाद सभा में किया और फिर गोलवलकर से कहा कि बयान तो गोलवलकर की ओर से आना चाहिए था। इसके बाद नेहरू ने 27 अक्तूबर 1948 को एक पत्र पटेल को लिखा। गांधी ने नेहरू से कहा उन्हें गोलवलकर के कथन पर भरोसा नहीं हुआ।

गांधी गोलवलकर बैठक के चार दिन बाद गांधी जी ने (16 सितंबर को) नई दिल्ली की वाल्मीकि कालोनी में की। इसका उल्लेख हरिजन में महात्मा गाधी आखिरी दौरा में है। इसे उनके सहायक (1919 से) प्यारे लाल नैय्यर ने लिखा है और यह बृजकृष्ण से कहा कि हालांकि पहले वे आरएसएस के एक शिविर में अनुशासन, सरलता और छूआछूत के अभाव से खासे प्रभावित हुए थे। लेकिन सही इरादे के बिना त्याग और सही ज्ञान समाज के लिए बर्बादी की वजह होता है। यह समाज को नष्ट भी कर सकता है। इसकी ताकत का इस्तेमाल भारत के हितों के लिए होना चाहिए न कि इसे बर्बाद करने के लिए।

जब आरएसएस के एक कार्यकर्ता ने गांधी जी से पूछा, क्या हिंदू धर्म इस बात की अनुमति नहीं है कि बुरा करने वाले किसी एक की जान ले ली जाए? उन्होंने जवाब दिया, कैसे एक पापी सही फैसला लेने का दावा कर सकता था कि उसका दूसरे पापी को मारने का आम फैसला सही है। सही तौर पर बनी एक सरकार ही एक पापी को सज़ा दे सकती है। पटेल और नेहरू का जि़क्र करते हुए गांधी जी ने कहा (वे दोनों) वर्षों के साथी हैं। और उनका एक ही मकसद है। उन्होंने जोड़ा। दोनों ही सरदार और नेहरू शक्तिहीन हो जाएंगे। यदि आप जज होंगे और जल्लाद भी। आप उनके प्रयासों को अपने हाथ में कानून लेकर नष्ट मत करो।

फिर गांधी जी ने वह कहा जो आज भी भारत में प्रासंगिक हैं और उसमें आवश्यक जोड़-घटाव किया जा सकता है, ‘यदि हिंदुओं का बहुत बड़ा समूह किसी एक दिशा में जाने का इच्छुक है और यदि यह गलत हो तो भी कोई उसे ऐसा करने से रोक नहीं सकता।’ लेकिन एक अकेले व्यक्ति में यह ताकत होती है कि वह इसके खिलाफ आवाज उठाए। उन्हें चेतावनी दें। यही मैं करता रहा हूं।

लेखक सेंटर फार साउथ एशियन

एंड मिडिल ईस्टर्न स्टडीज,

यूनिवर्सटी ऑफ इलिनॉइए में प्रोफेसर है

बेमेल मुकाबले में छिपी राजनीति

कांगे्रस के दिग्गज और लोकप्रिय नेता दिग्विजय सिंह पर भोपाल में मुकाबला खासा दिलचस्प है। एक राजघराने से जुड़े होने के कारण उन्हें प्यार से दिग्गी राजा भी भी कहा जाता है। संस्कृति, समाज, साहित्य और हिंदू धर्म की बारीकी से जानने वाले इस राजनीतिक का देश भर में काफी सम्मान है। मध्यप्रदेश में वे लगातार दो अवधि मुख्यमंत्री रहे। पराजय के बाद तय किया कि वे अब दस साल तक चुनाव नहीं लड़ेंगे। दस साल तक वे किसी अज्ञातवास में नहीं गए। वे पार्टी के संगठन को मजबूत करने और घर-परिवार को ठीक करने में व्यस्त रहे। देश में बढ़ते उग्र हिंदुत्व का विरोध उन्होंने हमेशा किया। अपनी हिंदू चेतना को वेद -शास्त्रों के साथ विकसित करने, नर्मदा के किनारों के प्राकृतिक सौंदर्य, भाषा और गांवों की संस्कृति और समस्याओं को अध्ययन के लिए उन्होंने अपनी पत्नी के साथ 1100 किलोमीटर पदयात्राा की। इस दौरान युवाओं से, बुजुगों से उनका खासा जनसंपर्क बढ़ा।

आम चुनाव 2019 में कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को भोपाल से टिकट दिया। उनके मुकाबले में भाजपा ने आतंकवादी होने के आरोप में जेल से ज़मानत पर छूटी प्रज्ञा ठाकुर को खड़ा किया है। यह सिफारिश पूरे प्रदेश में माना कहलाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की रही है। जिस पर भाजपा आलाकमान ने अपनी मुहर लगा दी।

खुद प्रधानमंत्री जेल में मिली अपनी भावनाओं की तुलना प्रज्ञा ठाकुर को मिली यातनाओं और सजा से करते हैं। केंद्र में भाजपा गठबंधन में शामिल रिपल्किन पार्टी के अध्यक्ष और केंद्र सरकार में मंत्री रामदास अठावले प्रज्ञा ठाकुर को टिकट देने का विरोध करते हैं। उन्होंने शनिवार को भोपाल में कहा कि माले गांव धमाके में प्रज्ञा ठाकुर को एटीएस ने बतौर आरोपी गिरफ्तार किया था। एटीएस के पास काफी साक्ष्य हैं। उन्होंने प्रज्ञा के उस बयान की भी निंदा की जिसमें एटीएस प्रमुख को अपने ‘श्राप’ से करने की बात कही थी। अठावले ने कहा, देश को आतंकवादियों से बचाने की कोशिश में हेमंत करकरे की मौत हुई थी।

करकरे पर प्रज्ञा के दावे से कतई सहमत नहीं हूं। उसके ऐसे बयान की हम निंदा करते हैं। अगर हमारी पार्टी में उसे उम्मीदवार बनाने की बात उठती तो हम कतई उसे टिकट नहीं देते।

भाजपा की नेता और पूर्व केंद्रीय जल संसाधन मंत्री साध्वी उमा भारती ने कहा कि प्रज्ञा ठाकुर की तुलना उनसे नहीं करनी चाहिए। वे महान संत हैं। उनसे मेरी क्या तुलना? मैं तो एक साधारण और मूर्ख किस्म की प्राणी हूं। ठाकुर को टिकट देकर पार्टी ने गलत नहीं किया। राहुल भी जमानत पर ही हैं।

प्रज्ञा ठाकुर ने अपने एक प्रचार में कहा कि एक संत (उमा भारती) ने ही दिग्विजय को 16 साल के लिए गुमनामी में भेज दिया था। उसे अब यह जिम्मेदारी मिली है कि उन्हें ‘नष्ट’ कर दूं।

कांग्रस उम्मीदवार दिग्विजय सिंह ने अपने मुकाबले में प्रज्ञा ठाकुर के आने का स्वागत किया। उसकी किसी भी टिप्पणी पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता जताई कि जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार और उनके साथियों ने भाजपा -आरएसएस की साजिशों का जोरदार तरीके से सामना किया। कन्हैया और उसके साथियों ने कभी यह नहीं कहा कि भारत तेरे टुकड़े होंगे। यह सब सिर्फ भाजपा-आरएसएस से जुड़े लोगों का प्रचार था।

अपने पिछले पांच साल के राज में भाजपा के नेता कभी बेरोज़गारी, नोटबंदी, जीएसटी के चलते जनता हुई परेशानी पर नहीं बोलते। वे प्राय: सेना के कीर्तिमानों को अपनी उपलब्धि बता देते हैं। खुद चुनाव आयोग में इसका विरोध किया है हालांकि कोई कार्रवाई नहीं की।

दिग्विजय सिंह ने कहा कि, सीपीआई के बेगुसराय में उम्मीदवार कन्हैया कुमार और उनके साथी मई की आठ और नौ तारीख को भोपाल में उनके समर्थन में प्रचार करेंगे और अपनी बात रखेंगे। उन्होंने सीपीआई को धन्यवाद दिया कि वे उन्हें समर्थन दे रहे हैं। दिग्विजय सिंह ने कहा कि मैं कन्हैया का समर्थक हूं और खुले दिल से उन्हेें समर्थन देता हूँ। भाजपा प्रवक्ता रजनीश ने कहा, कन्हैया को समर्थन से जाहिर है कि कांगे्रस टुकड़े-टुकड़े गिरोह की समर्थन रही है। इसलिए वह उसके कन्हैया कुमार को चुनाव प्रचार के लिए आंमत्रित कर रही है।

भोपाल में कांगे्रस का अच्छा जनसंपर्क रहा है। लेकिन पिछले 15 साल से यहां भाजपा-आरएसएस का भी खासा विकास हुआ है। दिग्विजय सिंह ने इस शहर को जहां विकास किया। वहीं भाजपा शासनकाल में यहां लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को सिमटाया गया और उग्र हिंदू कट्टरवाद को बढ़ावा दिया गया। भोपाल में कभी इस तरह की कट्टर चिंतन शैली नहीं थी। जिसे शासन का संरक्षण मिला। भोपाल शहर के निर्माता और राज्य के मुख्यमंत्री रहे शंकर दयाल शर्मा इस शहर को सिर्फ यहां के तब विशाल और संकर ताल के कारण नहीं, बल्कि पुराने और नए भोपाल में बढ़ते सांस्कृतिक तालमेल के कारण प्रशासक थे।

दिग्विजय सिंह जानते हैं कि उनके ऊपर आई जिम्मेदारी कितनी चुनौतीपूर्ण है। लगभग 40 दिनों में उन्होंने न जाने कितनी बार भोपाल के लोगों से मुलाकातें की हैं। इंडियन कॉफी हाउस में बैठे हैं। शहर के पुराने पत्रकारों से नोक-झोंक की है। कांग्रेस के पुराने और नए कार्यकर्ता दिनों-दिन तीखी धूप की परवाह किए बिना घर-घर जा रहे हैं और न्याय के लिए हाथ को मजबूत करने की बात कर रहे हैं। भोपाल ग्रामीण में कांग्रेस के प्रति ज्य़ादा उत्साह है। प्रोफेसर्स कालोनीवगैरह में भोपाल के कालेजों मेें युवा दिग्विजय सिंह का नाम सुनते ही सड़क पर ज़रूर आते हैं और मिलते हैं।

दिग्गी राजा के मुकाबले साध्वी

साध्वी प्रजा ठाकुर भाजपा की उम्मीदवार हैं भोपाल से। उनके मुकाबल में हैं कांगे्रस के दिग्विजय सिंह। वे मध्यप्रदेश के बहुुत सुलझे हुए राजनेता हैं। वे काफी पढ़े लिखे हैं और हिंदू धर्म के बारीक अध्येता रहे हैं। उन्होंने राज्य में दो बार मुख्यमंत्री पद संभाला। उनके पिता होल्लकर स्टेट में राघोगढ़ के राजा थे। इसलिए राज्य की जनता उन्हें दिग्गी राजा भी कहती है। उनके मुकाबले में भाजपा ने अपने उम्मीदवार के तौर पर प्रज्ञा सिंह ठाकुर को उतारा है। उन पर आतंकवादी होने का आरोप रहा है। अभी भी वे ज़मानत पर हैं। प्रज्ञा ठाकुर को अपने भाषणों में आग उगलने पर जिला चुनाव अधिकारी दो बार नोटिस दे चुके हैं। उन्हें पहली नोटिस तब मिली जब उन्होंने 26/11 की आतंकी घटना से अपनी जान पर खेलने वाले हेमंत करकरे के बारे में कहा था कि मेरे ‘श्राप’ से उनकी मौत हुई। दूसरी बार उन्होंने एक टीवी चैनेल से कहा कि मुझे गर्व है कि मैं (अयोध्या में) ढांचे पर चढ़ी और उसे गिराया। मुझे इसका गर्व है। इस पर एफआईआर भी है और जिला चुनाव अधिकारी सुधम खाडे ने नोटिस भी दी। उन्होंने भु-आचारसंहिता के चौथे अध्याय के तहत इस ध्यान पर उन्हें दोषी भी माना। विवादित ढांचे पर अपनी बात पर साध्वी का कहना, मैंने तो अपने राम और धर्म की बात की। मैं नोटिस  का जवाब दूंगी।

आतंकवादी होने के आरोप में गिरफ्तार साध्वी प्रज्ञा ठाकुर मध्यप्रदेश के भोपाल से भाजपा की लोकसभा उम्मीदवार हैं। आतंकवाद से देश को बचाने की संकल्प करने वाली भाजपा के इस कदम से पूरे देश में तगड़ा विवाद छिड़ा है। भोपाल में अपने पहले भाषण प्रज्ञा ने यह कहा उनके श्राप के कारण मुंबई के पुलिस कमिश्नर हेमंत करकरे मारे गए। साध्वी प्रज्ञा के इस कथन से न केवल पूरे देश में पुलिस के बड़े अधिकारी और कर्मचारी आहत हुए बल्कि देशवासी भी। हेमन्त करकरे 24/11 के मुंबई कांड में आतंकवादी हमले का मुकाबला करते मारे गए थे।

हालांकि भाजपा की ओर से राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने साध्वी प्रज्ञा के विचारों से भाजपा को अलग कर लिया। लेकिन देश के लिए सोचने और करने वालों को भाजपा की कथनी करनी से अब खासा आघात हुआ है। देश के मध्यम वर्ग में भाजपा के राष्ट्रवादी सोच का जो प्रभाव था वह प्रज्ञा को भोपाल से संसदीय चुनाव लड़ाने की घोषणा के साथ ही कमज़ोर पड़ गया। भाजपा के अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं में खासी निराशा है।

मध्यप्रदेश में दो बार कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह के मुकाबले में भाजपा ने प्रज्ञा ठाकुर को उतार कर समुदायों के धु्रवीकरण की अपनी पुरानी रणनीति लागू की थी। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह परंपरावादी लेकिन सहज-सरल हिंदू हैं और उन्होंने पत्नी अमृता सिंह के साथ पिछले साल नर्मदा नदी की 1100 किलोमीटर पैदल परिक्रमा की थी। इस दौरान उन्होंने नदी किनारे के गांवों की समस्याओं को खासा जाना समझा था। भोपाल शहर की संसदीय सीट अर्से से भाजपा की ही ‘सेफ सीट’ कही जाती है। इसलिए भाजपा ने प्रज्ञा ठाकुर को यहां से मौका दिया। भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रांतीय अध्यक्ष ने कांग्रेस के उम्मीदवार दिग्विजय सिंह से मुकाबले प्रज्ञा ठाकुर को ही उम्मीदवर बनाने पर ज़ोर लगाया था। जिस पर भाजपा हाईकमान ने अपनी मुहर लगाई। भाजपा के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस चयन को ठीक कहते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा ने लोकसभा आम चुनाव 2019 में विकास की वजाए मुख्य मुद्दा अब हिंदुत्व रखा है। देश में आम चुनाव के चार चरण हो चुके हैं। इनमें देशभक्ति, आतंक से मुकाबला और अब हिंदुत्व मुद्दों को प्राथमिकता दे रही है। भाजपा खास कर गलियों-घर-घर वोटों के लिए प्रचार और भाषण में।

मतदाता अब यह पूछते हैं कि सबका साथ-सबका विकास मंदिर, स्मार्ट सिटी, देश के  बेरोज़गारों को रोज़गार भ्रष्टाचार खत्म करना आदि मुद्दों का क्या हुआ जिन्हें हल करने के लिए केंद्र में भाजपा की सरकार सत्ता में तीन चौथाई बहुमत से राज करती रही। लेकिन इस चुनाव में इसका बदलता फोकस मतदाताओं को अचंभित कर रहा है।

भोपाल में भाजपा की ओर से संसदीय चुनाव में नामजद प्रज्ञा पर मालेगांव (महाराष्ट्र) में धमाके में भूमिका निभाने का आरोप है। इस धमाके में छह लोग मारे गए और एक सौ एक से भी ज्य़ादा लोग घायल हुए। प्रज्ञा फिलहाल जमानत (बेल पर) पर जेल से बाहर हैं। उनके ऊपर अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट के तहत मामला चल रहा है। यानी उन पर आरोप हैं आतंकवादी कानून के तहत गैरकानूनी काम करने का। उन पर हत्या से साजिश रचने तक के आरोप हैं। अब जनता पर है कि वह चुनती है आतंकी को या अनुभवी राजनेता को।

पंाच साल में भी नहीं हो सका भारतीय पुनर्जागरण

चूंकि मुझे भरोसा है इसलिए थोड़ी निराशा के बाद भी मैं इन दिनों सोचती हैं कि एक दिन आएगा भारतीय पुनर्जागरण का। लेकिन मैं उम्मीद खो बैठती हूं जब साध्वी प्रज्ञा जैसी हिंदू मेरे सामने कौंधती है। उनकी तरह के लोग और योगी आदित्य नाथ सनातन धर्म जैसी अभूतपूर्व विचारधारा के नितांत विरोधी है। धर्मों में सनातन धर्म ऐसा विचार है जिसमें कभी इस बात का दबाव नहीं होता कि हर समस्या का निदान इसके पास है और अकेला यह इतना सक्षम है जिसका ईश्वर से सीधा संपर्क है। धर्म का यह एक ऐसा नाजुक विचार है जिसका हमेशा गलत अर्थ धार्मिक और संस्कारी हिंदू निकालते हैं। खासकर ऐसे हिंदू जिनकी आस्था ही घृणा से उपजती है।

यदि अच्छे हालात होते तो प्रज्ञा को तो धर्म का प्रचारक होने का भी मौका नहीं मिलता। लोकसभा का सदस्य होना तो दूर की बात है। उसे सार्वजनिक जीवन में लाने के लिए पार्टी का टिकट देना एक अजब  जि़द्द है। ऐसा नहीं है कि मैं दिग्विजय सिंह की प्रशंसक हूं। लेकिन मैं उम्मीद करती हूं कि वे जीते। प्रज्ञा वापस जेल में जाए या फिर वे किसी भी जहरीले आश्रम में लौटें जहां से वे कभी आईं। जब दिग्विजय सिंह के बारे में बात करते हैं तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि उनकी ‘धर्मनिरपेक्षता ‘ से ऐसे हिंदुत्व का उदय हुआ है जिसे हम आजकल देखते हैं। कांग्रेस की उटपटांग धर्मनिरपेक्षता के विचार से ही शायद वह किताब आई कि 26/11 तो आरआरएस की साजिश थी।

नरेंद्र मोदी को कतई बख्शा नहीं जा सकता कि उन्होंने लोकसभा में ऐसे लोगों को मौका दिया जिन पर आतंकवाद का आरोप है। प्रज्ञा उस जहरीले घृणा से भरे हुए हिंदुत्व का एक उदाहरण है।

हालांकि अकेली वही नहीं हैं। उसकी तरह के ढेरों  लोग आज राजनीति में और संसद में हैं। पिछले पांच साल में इन लोगों ने घृणा और ज़हर ही उगला है मुसलमानों के खिलाफ। लेकिन प्रधानमंत्री के पास इनकी निंदा के लिए शब्द ही नहीं थे। सामूहिक तौर पर जो हत्याएं की गईं उन पर वे सिर्फ दो बार बोले। वह भी तब जब दलित मारे गए। मुसलमानों के मारे जाने पर तो कतई नहीं।

इन दिनों मेरा मोदी को समर्थन न देना सही है। मुझे लगता है कि मुझे इसकी सफाई देनी चाहिए। इसकी मुख्य वजह यह है कि मैं इंपीरियल डायनेस्टी राजधराने के वंशवाद और सामंतवादी लोकतंत्र से अजिज़ आ चुकी हूं जो अपनी मूलभूत विचारधारा प्रचारित करते हैं। खास तरह का ऐसा लोकतंत्र भारत के लिए बहुत बुरा रहा है। इससे भारत की संसद उस डिनर्स क्लब की तरह है जिसके दरवाजे उनके लिए बंद रहते हैं। जिनके पास जन्म से ही इसकी सदस्यता नहीं है। जब मोदी यहां नए आए थे तो लगा था कि लोकतंत्र की ताजी हवा का झोंका उनके साथ आएगा लेकिन वैसा हो नहीं सका। ताजी हवा का वह झोंका भी लुटियनस दिल्ली की घृणा में कहीं बदल गया।

मैं पहले उन्हें समर्थन देती थी, उसकी दो वजहें थीं। मुझे भरोस था कि वे भारत को उस आर्थिक दिशा में ले जा सकेंगे जहां राज्य धीरे-धीरे वाणिज्य में प्रगति करेगा। पिछले चुनाव प्रचार में उन्होंने कहा भी था कि वाणिज्य में सरकार का क्या काम। मैंने इसपर भरोसा किया।

और वह वजह जिसके चलते मैंने उन्हें अपना समर्थन दिया क्योंकि मैं सोचती थी कि भारतीय पुनर्जागरण न केवल संभव है बल्कि ज़रूरी भी है। यानी अपनी प्राचीन परंपरा से अच्छी बातों को लेना और उन्हें आधुनिक विचारों में ढालना एक ऐसी आधुनिकता में ले जाने की कोशिश करना जैसी जापान ने बड़ी ही खूबसूरती से की।

भारत में हम उपनिवेशवादी शिक्षा व्यवस्था भी ठीक से नहीं कर पाए। जिससे जो भारतीय प्रशिक्षित होकर आ रहे हैं उन्हें इस बात की भी कोई जानकारी नहीं होती कि भारतीय होने का मतलब क्या है। इसलिए वे आक्रामक राष्ट्रवाद का इस्तेमाल करने लगते हैं बिना यह जाने समझे कि भारत का मायना सिर्फ राष्ट्रगीत पर सिनेमा हाल में खड़े हो जाना नहीं होता और न सार्वजनिक स्थान पर योग के सत्रों में जाना या फिर वंदेमातरम कहना भर नहीं होता।

पुनर्जागरण की बजाए हमने देखा कि पिछले पांच साल में गंदी धार्मिकता का ज़रूर विकास हुआ। इसकी सीधी वजह यह थी कि प्रज्ञा और योगी आदित्यनाथ जैसे लोगों का उभार हुआ। ऐसे लोग आज हैं जिन्हें धर्म की कोई जानकारी नहीं है लेकिन वे गेरूआ वस्त्र पहले रहते हैं। सबसे खराब तो यह है कि उन्हें उस भारतीय सभ्यता तक की भी जानकारी नहीं है जिसके चलते दुनिया के पहले विश्वविद्यालय इस देश में कभी बने थे। इन्ही में धर्म की आधुनिक रूपरेखा का जन्म और विकास हुआ। इन विश्वविद्यालयों में सिर्फ धर्म ही नहीं पढ़ाया जाता था।

भारतीय सभ्यता की प्राचीन पद्धति को सही तरीेके से जाना-समझा दलाई लामा ने। वे दुनिया को इसे तिब्बती बौद्ध शिक्षा कहते हैं। साथ ही यह भी कहते हैं कि उनकी जानकारी का स्त्रोत भारत की प्राचीन शैक्षणिक संपदा है। हिंदू धर्म की बहुत ही गलत जानकारी उन अनपढ़ साधु-साध्वियों को है जो आज प्राय दिखाते हैं। ये भारतीय पुनर्जागरण कभी कामयाब नहीं होने देंगे।

तवलीन सिंह

साभार: इंडियन एक्सप्रेस