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सरकारी अस्पताल में महिला ने की खुद की डिलीवरी!

महाराष्ट्र में सत्ता का केंद्र बने नागपुर के एक सरकारी अस्पताल में महिला द्वारा अपने हाथों प्रसव किए जाने की खबर खबर ने महाराष्ट्र के सरकारी अस्पतालों की पोल खोलकर रख दी है।

मिली जानकारी के अनुसार रविवार के दिन अस्पताल में डिलिवरी के लिए आई महिला प्रसव वेदना से मदद के लिए चिल्लाने लगी। लेकिन उसे अस्पताल के डॉक्टरों की मदद नहीं मिली। महिला की आवाज सुनकर उसकी मां उसके पास पहुंची और नवजात शिशु ने जन्म लिया।

सुकेशनी तारे नामक 23 वर्षीय महिला को शनिवार के दिन अस्पताल में भरती किया गया था। रात 2 के करीब उसे प्रसव पीड़ा शुरू हुई ।सुकेशिनी को डिलीवरी रूम में ले जाया गया लेकिन डिलीवरी नहीं हुई। डॉक्टर चले गए इसके बाद रात 3 बजे से सुबह 5 बजे तक वह अकेली थी। 5.10 के करीब फिर उसे डिलीवरी पेन शुरू होने लगा। वह पीड़ा से बिलबिलाती चिल्लाने लगी। आसपास आसपास डॉक्टर ना होने की और नर्स न होने की वजह से उसे खुद ही अपनी डिलीवरी करनी पड़ी। खबरों के अनुसार उसने एक हाथ से अपने बच्चे को पकड़ा और दूसरे हाथ से अपनी मां को फोन किया। उसकी आवाज सुनकर उसकी मां भीतर पहूंची। उनकी पुकार सुनकर नर्स आई और उसने बच्चे को गर्भ नाल से अलग किया।

डिलीवरी के बाद उस और उसके नवजात शिशु को फर्श पर ही लेटा दिया गया। अस्पताल के सूत्रों के अनुसार वहां पर पेशेंस की संख्या ज्यादा और बेड कम होने की वजह से ऐसा हुआ है। इस बीच नागपुर के पालक मंत्री चंद्रकांत बावनकुले इस मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं।

वाड्रा मामले में जांच अधिकारी बदले गए

धनशोधन के जिस मामले में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के व्यवसायी पति राबर्ट वाड्रा की जांच ईडी के अधिकारी राजीव शर्मा कर रहे हैं, उसमें उन्हें हटाकर नया जांच अधिकारी (आईओ) नियुक्त कर दिया गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक आज से ही इस जांच का जिम्मा महेश गुप्ता को सौंपा गया है। उन्होंने ही आज वाड्रा से पूछताछ की है।

वाड्रा सुबह प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के मुख्यालय पहुंचे जहां उनसे पूछताछ चल रही है। सोमवार को ही सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें इलाज के लिए विदेश जाने की अनुमति दे दी थी। स्पेशल जज अरविंद कुमार ने उन्हें छह हफ्ते के लिए अमेरिका और नीदरलैंड जाने की अनुमति दी है। साथ ही उन्हें अपना ट्रैवल शिड्यूल सौंपने को कहा है। हालांकि अदालत ने वाड्रा को लंदन जाने की अनुमति नहीं दी, जहाँ जाने की इजाजत वाड्रा ने माँगी थी।

इससे पहले पिछले गुरुवार को भी ईडी ने वाड्रा को पूछताछ के लिए अपने दफ्तर तलब किया था। गुरुवार के बाद उन्हें सोमवार को दोबारा पूछताछ के लिए ईडी दफ्तर बुलाया गया हालांकि उन्होंने बीमारी के कारण सोमवार को आने में असमर्थता जताई और मंगलवार को आने की बात कही और आज वो ईडी दफ्तर पहुंचे हुए हैं।

उधर वाड्रा ने ट्ववीट किया है – ”जैसे कि मैं ईडी ऑफिस १३वीं बार जा रहा हूं, लगभग ८० घंटे उनके किसी भी प्रश्न का उत्तर दिया है, बीच में ही अनावश्यक ड्रामा किया जाता है। मेरी स्वास्थ्य संबधी जानकारियां सार्वजनिक की जाती है जो की मेरे प्रति एक बहुत ही गलत कार्य है। मेरा जीवन अलग है और मैंने लगभग एक दशक तक बेबुनियाद आरोपों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है, अपने स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों के प्रति लापरवाही की है, लेकिन मैं अपना समय उन लोगों के साथ बिताता हूं जिन्हे जरूरत है, जो बीमार हैं, जो देख नहीं सकते हैं। और अनाथ बच्चों के चेहरे पर जो हंसी आती है उससे मुझे आगे बढ़ने की ताकत मिलती है। शारीरिक स्थितियां बदल सकती हैं, लेकिन दिमाग नहीं बदल सकता। मैं सत्य पर दृढ़ हूं और यह मेरी तरफ से आनेवाले समय में एक किताब की तरह होगी जो दुनिया को मेरा दृष्टिकोण स्पष्ट और साफ कर सकेगी।”

हम भी अकेले लड़ेंगे उपचुनाव : अखिलेश

पता नहीं सपा-बसपा अपना हनीमून टूटने का कोइ औपचारिक ऐलान करेंगे या नहीं, लेकिन दोनों दलों के दो बड़े नेताओं मायावती और अखिलेश ने साफ़ कर दिया है कि आने वाले ११ सीटों के उपचुनाव वे अलग-अलग लड़ेंगे। मायावती के गठबंधन तोड़ने के ऐलान के बाद अब अखिलेश ने भी गठबंधन से बाहर जाकर अकेले उपचुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है।

एक सपा कार्यकर्ता की हत्या पर अफ़सोस और प्रोटेस्ट करने पहुंचे अखिलेश से पत्रकारों ने जब पूछा कि मायावती ने अलग होने की बात कही है तो अखिलेश ने असल में यह कहा – ”रस्ते अलग हुए तो उसका भी स्वागत। अलग रास्ते पर कार्यकर्ताओं को बधाई। हम भी अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी करेंगे। सोच समझकर विचार करेंगे।”

दोनों नेताओं के इन बयानों के बाद लग यही रहा है कि इन दलों का गठबंधन अब खत्म हो चुका है और सिर्फ इसका औपचारिक ऐलान बाकी है। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश लोकसभा चुनाव में अपनी जीत के लिए आजमगढ़ के वोटरों का शुक्रिया अदा करने अपने संसदीय क्षेत्र गए थे।

सोमवार को तो अखिलेश ने कहा था कि एसपी और बीएसपी के साथी मिलकर सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ेंगे, लेकिन मंगलवार को मायावती का अलग होने वाला ब्यान आते ही अखिलेश ने कहा – ”हमारी पार्टी अकेले भी लड़ने के लिए तैयार है और २०२२ में समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी।  समाजवादी उपचुनावों में भी सभी ११ सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी।” लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से नौ भाजपा विधायकों और सपा, बसपा के एक एक विधायक के सांसद बनने के बाद खाली हुई ११ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है।

अगले 48 घंटों मुंबई में बरसात की बौछारें!

स्कायमेट, मौसम की जानकारी देने वाली निजी संस्था की खबर के अनुसार अगले 48घंटों मुंबई में बरसात की बौछारें हो सकती हैं। मुंबई से सटे और आसपास के क्षेत्रों में भी बादल छाए र ेंगे और बारिश की बौछार होगी। लेकिन बौछारों के बाद फिर वातावरण पहले ही की तरह हो जाएगा। फिलहाल कई इलाकों में बादल छाए हुए हैं।

मौसम विज्ञानियों के अनुसार इस बार पूर्वोत्तर अरब सागर में गुजरात और महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्रों में अनूकूल मौसम ने बन पाने की वजह से मुंबई में वर्षा होने में हमेशा की अपेक्षा देरी हो सकती है।

स्कायमेट के अनुसार श्री लंका में मानसून ने दस्तक दे दी है। और श्री लंका के बाद आने वाले 6 दिनों में भारत में भी मानसून का आगमन हो जाएगा।

सपा से नाता तोड़ा मायावती ने, अकेले लड़ेंगी उपचुनाव

चुनाव नतीजे पक्ष में न आने से परेशान बसपा प्रमुख मायावती ने मंगलवार को सपा से गठबंधन तोड़ते हुए यह तो कहा कि यह स्थाई ब्रेक नहीं है, लेकिन यह भी कहा सपा से गठबंधन का बसपा को कोइ फायदा नहीं हुआ। अब सम्भावना यही है कि भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में शायद  गठबंधन हो, क्योंकि पार्टी और अपने अस्तित्व के लिए मायावती की नजर अब मुख्यमंत्री पद पर रहेगी। अगले विधानसभा चुनाव में गैर भाजपा दलों का तिकोन बनने की सम्भावना है क्योंकि कांग्रेस भी उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी का चेहरा आगे कर अपने बूते चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है।
बसपा प्रमुख मायावती ने मंगलवार को एक प्रेस कांफ्रेंस करके समाजवादी पार्टी से गठबंधन तोड़ने का ऐलान किया। उन्होंने कहा – ”अखिलेश यादव अपनी पार्टी के हालात सुधारें, अभी गठबंधन पर यह स्थाई ब्रेक नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में ११ सीटों पर बसपा अकेले लड़ेगी।”
इससे पहले सोमवार को दिल्ली में लोक सभा चुनाव की चर्चा बैठक में मायावती ने  उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, राजस्थान, गुजरात और ओडिशा के पार्टी प्रभारियों को हटा दिया था यही नहीं दिल्ली और मध्यप्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष भी बदल दिए थे और  उप्र में बसपा प्रदेश अध्यक्ष आरएस कुशवाहा से उत्तराखंड के प्रभारी का जिम्मा वापस ले लिया गया था।
उधर मायावती ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि लोकसभा चुनाव में तो सपा को उसका बेस यानी यादवों के ही वोट नहीं मिले। ”खुद डिंपल यादव और उनके बड़े नेता चुनाव हार गए। यह चिंता का विषय है।” सोमवार को दिल्ली में मायावती ने लोकसभा चुनाव के नतीजों की समीक्षा की थी। मायावती ने पदाधिकारियों और सांसदों के साथ हुई बैठक में कहा था कि सपा से गठबंधन का फायदा नहीं हुआ तभी से यह लग रहा था कि यह गठबंधन अब कभी भी टूट सकता है।
आज प्रेस कांफ्रेंस में में मायावती ने कहा कि जब से सपा-बसपा गठबंधन हुआ, तब से अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल ने उन्हें काफी सम्मान दिया। मायावती ने कहा – ”मैंने भी राष्ट्रहित के लिए सारे मतभेद भुलाकर उन्हें सम्मान दिया था। हमारे रिश्ते केवल राजनीतिक नहीं थे। मैंने उन्हें परिवार की तरह पूरा आदर दिया और यह सम्मान हर सुख-दुख की घड़ी में बना रहेगा। लेकिन राजनीतिक हालात को दरकिनार नहीं किया जा सकता। लोकसभा के जो नतीजे सामने आए, इससे बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि लोकसभा चुनाव में सपा का बेस वोट पूरी तरह गठबंधन के साथ खड़ा नहीं रहा। कन्नौज से डिंपल यादव, बदायूं से धर्मेंद्र यादव और रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय का फिरोजाबाद से हारना चिंताजनक है। बसपा और सपा का बेस वोट जुड़ने से इन उम्मीदवारों को कभी नहीं हारना चाहिए था। सपा का बेस वोट खुद उनसे छिटक गया है तो बसपा को उनका वोट कैसे मिला होगा।”
मायावती ने कहा कि उन्होंने दिल्ली बैठक में गठबंधन और लोकसभा के नतीजों पर चर्चा की है। ”बसपा को गठबंधन करने से कुछ खास सफलता नहीं मिली है। सपा को बसपा की तरह सुधार लाने की जरूरत है। सपा के लोगों ने एकजुटता का मौका इस चुनाव में मौका गंवा दिया। मुझे लगता है कि यह स्थाई ब्रेक नहीं है। आगे अखिलेश यादव बेहतर कर पाए तो हम साथ काम करेंगे। अगर उन्होंने ठीक से काम नहीं किया है तो अच्छा होगा कि हम अलग हो जाएं।”

भाजपा की ऐतिहासिक जीत के क्या रहे कारण? जानना-समझना आसान नहीं!

ब्रांड मोदी की यह बड़ी कामयाबी है। अपने दम पर भाजपा ने इस बार फिर बहुमत से भी कहीं ज्य़ादा जनादेश हासिल किया। उधर पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की हालत कुछ बेहतर ज़रूर जान पड़ती है। लेकिन भाजपा को मिली है अभूतपूर्व जीत। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और तृणमूल कांग्रेस की ओर से शासित पश्चिम बंगाल में अब कांग्र्रेस के खिलाफ हो रहे हैं कार्यकर्ता और नेता। ये उस पार्टी को छोडऩे के लिए बेताब हैं। ‘लापता है सांसद प्रचार तंत्र छेड़ा था स्मृति ईरानी ने और अमेठी की जनता ने उनकी आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाई और वहां से सांसद रहे राहुल गांधी हार गए।

‘टाइम’ मैगज़ीन ने अपने मुखपृष्ठ पर मोदी को मुख्य विभाजनकर्ता (‘डिवाइडर इन चीफ’ ) कहा था। उसका कांग्रेस ने प्रचार किया। लेकिन वह असरदायक नहीं रहा। भाजपा का चुनाव आख्यान मुख्य तौर पर देश की सुरक्षा पर ही केंद्रित था। जनता को यही भाया भी दूसरी ओर विपक्ष बेरोज़गारी, महंगाई, राफेल विमान अािद मुद्दे उठा रहा था। उस पर जनता ने ध्यान नहीं दिया। ‘चौकीदार चोर है’ नारा जनता को रास नहीं आया।

वामपंथियों और कांग्रेसियों के बीच तालमेल का न हो पाना भाजपा के लिए बेहद मुफीद रहा। पश्चिम बंगाल में भाजपा ने खूब लाभ कमाया। उधर केरल मेें सबरीमाला प्रकरण से कांग्रेस को लाभ हुआ। वाडनाड से राहुल गांधी जीत गए। कांग्रेस विजयी रही। लोकसभा की 542 सीट पर सात चरणों के चुनाव हुए। आठ हजार उम्मीदवारों ने अपना भाग्य आजमाया। पहली बार ईवीएम मशीनों से मिले मतों की पड़ताल वीवीपीएटी मशीनों से की गई। महीनों चले इस चुनाव प्रचार में राजनीतिक विरोधियों ने परस्पर खूब आरोप-प्रत्यारोप लगाए। भाजपा ने आक्रामक तरीके से राष्ट्रवाद की भावनाएं जनमानस में तेज कीं और पाकिस्तान के खिलाफ बालाकोट हवाई हमले का जम कर प्रचार प्रसार किया गया। उधर विपक्ष में राहुल गांधी जनता की निजी ज़रूरतें मसलन नौकरियों, कृषि मौतों, अर्थव्यवस्था पर मतदाता का ध्यान खींचते रहे। लेकिन ज्य़ादा लाभ नहीं हुआ।

पिछले दिसंबर में भाजपा के कब्जे से तीन राज्यों को कांग्रेस के छीन लेने पर भाजपा ने भरपूर तैयारी कर कांगे्रेस की मुश्किलें बढ़ा दीं। अब तो राहुल गांधी के राजनीतिक भविष्य पर सवालिया निशान लग गया हैं। जबकि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमितशाह उन गलतियो से सीख लेते हुए अपनी चुनावी रणनीति बनाने में जुटे रहे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में जो भूलें हुई थीं उन्होंने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विजय को देख कर 2004 में लोकसभा चुनाव ही समय से पहले करा लिए थे। वह बड़ी भूल थी। इस बार मोदी ने तीनों राज्यों में हुई भाजपा की पराजय का बदला सूद समेत ले लिया।

भाजपा में बैठे विचारकों ने ढेरों उपाय सुझाए मसलन किसानों को आमदनी पर समर्थन, आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों को करों में राहत और जहां भी गड़बडिय़ां हैं उन्हें ठीक करने या ढांपे रखने की कवायद खूब प्रचार किया गया क्योंकि सरकार अपनी थी। किसानों के खाते में पैसे पहुंच गए। इसका खासा असर दिखा। किसानों में खुशी आई।

मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में जीत का कांग्रेस प्रमुख और शायद उनके संगठन में दूसरों ने गलत संदेश लिया कि उनकी लोकप्रियता बढ़ी है और वे कामयाब होते रहेंगे। हालांकि राहुल ने अपने राजनीतिक दौर में ज्य़ादातर समय कांग्रेस के धुंधले होते गए पदचिन्ह ही देखे हैं। आप भले इसके लिए उसके परिवार वंशवाद की नीतियों और उसके इर्द-गिर्द मौजूद लोगों को जिम्मेदार ठहराएं जो उसके कंधों पर नाकामी का ठीकरा फूटने नहीं देते। लेकिन उनकी राजनीतिक समझ पर हमेशा सवालिया निशान लगते रहे हैं। हालांकि जब नतीजे आने लगे तो पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा कि राहुल गांधी को पार्टी की हार का जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए। बतौर नेता राहुल गांधी कितने राजनीतिक हैं इस पर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुल कर बोलती रही हैं। उनकी छवि तीन राज्यों में जीत और गुजरात में थोड़ा बेहतर स्थिति बनने पर कुछ बनी। उन्हें लेकर बने भ्रम भी टूटे। लेकिन बाद में राहुल को यह भरोसा हो गया था कि वे मोदी को प्रधानमंत्री पद से मुक्त करा ले जाएगे। यही सोच कांग्रेस का नुकसान करा गई।

अपने पांच साल के कार्यकाल में मोदी ने कुछ खास क्षेत्रों में अपनी जबर्दस्त काबिलियत दिखाई है। उपभोक्ताओं को राहत दी। फसल के वाजिब दाम दिलवाने की घोषणा की। ग्रामीणों में जो खासा असंतोष था उसे कम किया। बेरोज़गारी के मुद्दे को विपक्ष उठाता ज़रूर रहा लेकिन इस पर कांग्रेस को वोट नहीं मिले। लड़ाकू राफेल जेट विमानों की खरीद में घपलों का मुद्दा दबाए रखने में पूरी भाजपा पार्टी, उसके सारे नेता और सरकार कामयाब रही। राहुल गांधी ने तो सुप्रीम कोर्ट में ही साबित किया कि वे पूरे मामले को नहीं समझ पाए हैं। एपेक्स कोर्ट में तो उन्होंने ‘चौकीदार चोर है’ पर माफी भी मांगी।

तुरूप के पत्ते बतौर कांग्रेस अध्यक्ष ने काफी देर में प्रियंका गांधी को चुनावी प्रचार में महासचिव बना कर उतारा। लेकन यह भी काम न आया। अपनी चुनावी रणनीति में कांगे्रस ने दो मूलभूत गड़बडिय़ां की। इसने मोदी की ताकत का आंकलन गलत किया। जिसका असर मतदाताओं पर नकारात्मक पड़ा। इसने जितनी ज्य़ादा मोदी की रणनीति की आलोचना की उतना ही भाजपा को लाभ हुआ।

कांगे्रस अपने मतदाताओं को लुभाने के लिए जो विचार बांट रही थी वह महज एक सपना था न्यूनतम आमदनी की गारंटी का। एक तो यह सपना लोगों तक देर में पहुंचा और फिर इसका तौर-तरीका ठीक से समझाया नहीं गया। ‘न्याय’ नाम से जो प्रचार किया वह भी लोगों तक नहीं पहुंचा। इसकी तुलना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता मैदान से शिखर तक पहुंचती रही।

राहुल गांधी के सलाहकार या उनके इर्दगिर्द के लोगों ने शायद यह समझाया कि भ्रष्ट मोदी नहीं है। राहुल को लगा कि यही बात उछाली जाए कि ‘चौकीदार चोर है।’ इसके बाद तो पूरी भाजपा ही चौकीदार बन गई। राहुल का प्रयोग इसलिए कामयाब नहीं हुआ क्योंकि राजनीति में जो ब्रांड मोदी गढ़ा गया था उसमें इस आरोप के ठहरने की गुंजाइश नहीं थी। मतदाता ब्रांड मोदी को 2014 से अपने सिर माथे लिए हुए हैं और यह कामयाब रहा। राहुल राफेल सौदे पर हुए घपले पर लगातार बोलते रहे लेकिन सुनने वालों नेकान नहीं दिया।

इतना ही नहीं, कांग्रेस और उसके नेताओं ने लोकतंत्र के विभिन्न स्तंभों को भाजपा द्वारा ध्वस्त करने की बात तो कही लेकिन उसे भी मतदाताओं तक ठीक से समझा नहीं पाए। जनता ने उन्हें इस पर अपना समर्थन नहीं दिया। इसके बाद राहुल की यह नसमझी ही थी कि वे मानते रहे कि गांधी के नाम का जनता में आज कोई महत्व है। मोदी ने लगातार इसे खत्म किया। उन्होंने उसकी जगह ‘नामदार’ कहा। राहुल शायद यह नहीं समझे कि साढ़े चालीस करोड़ मतदाता जो पहली बार इस लोकसभा चुनाव में मतदान कर रहे हैं उन्हें उस वंश की शायद जानकारी भी नहीं है जिसने आज़ादी की कभी लड़ाई लड़ी और देश को दूसरे देशों के मुकाबले विभिन्न क्षेत्रों में खड़ा किया। खैर, वंश के चलते जीत की परंपरा इस बार टूटती दिखी हैं। इसमें अमेठी में राहुल की हार, मुलायम सिंह परिवार, पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा, अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल और हरियाणा के चौटाला। इससे यह ज़रूर साफ हुआ कि कठिन परिश्रम और सोच और सपनों से ही राजनीति में कामयाबी संभव है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव प्रचार में राजीव गांधी को ‘भ्रष्टाचारी नंबर वन’ कहा। कांग्रेस ने इसका विरोध किया। राहुल और प्रियंका ने राजीव गांधी के आत्मबलिदान की याद जनता को कराई। लेकिन यह सब मतदाताओं तक नहीं पहुंचा। भाजपा के विचारकों ने गांधी परिवार को भ्रष्ट करार देने में कामयाबी पाई। कांग्रेस ज़मीनी सच्चाई, जमींदारी सोच और लापरवाही से उबर नहीं पाई। जबकि भाजपा ने जता दिया कि वह जमीनी पार्टी है। इसका और संघ परिवार का देश में जन-जन के घर में पहुंच है। इसका विशाल कार्यकर्ता गठन है। इस सारी बात को कांग्रेस और सहयोगी विपक्ष को जानना समझना होगा। अब लफ्फाजी नहीं।

चुनौतियों और सुशासन का दूसरा दौर

देश में सुशासन का दूसरा दौर अब चल रहा है। इसकी रजामंदी देश की जनता ने दी। भाजपा को और ज्य़ादा वोट देकर। एक अकेली पार्टी को विशाल बहुमत। इसके बाद 39 राजनीतिक दलों के साथ तालमेल। विभिन्न दलों के नेता नरेंद्र मोदी यानी पूरे देश की जनता का प्रतिनिधित्व। उम्मीदें ही उम्मीदें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिर पर ताज। इस ताज में कांंटे भी कम नहीं। काम को संभालने के लिए 57 मंत्रियों का सहयोग। देश की आंतरिक समस्याओं के साथ ही क्षेत्रीय और वैश्विक भागीदारी की जिम्मेदारी। केंद्रीय मंत्रिमंडल में एक कैरियर डिप्लोमेट एस जयशंकर और कोई भी सीट न जीत पाने वाले रामदास अठावले भी साथ। पुराने मंत्रिमंडल से 22 लोगों की छुट्टी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह केंद्रीय मंत्रिमंडल में।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति में जो संभावित बदलाव है उसका पता आमंत्रित विदेशी अतिथियों को देख कर लगता है। इस बार सार्क पर नहीं बल्कि वे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फार मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन (बिमस्टेक) पर ज्य़ादा जोर। दक्षिण एशिया में पड़ोसी देशों से ताल्लुकात और घने करने की नीति। यानी सोवियत संघ और चीन के प्रभाव वाले दक्षिण एशियाई देशों में अब भारत भी खास। यानी देश में और विदेश में कई नए आयाम गढऩे का इस बार इरादा है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का। दृढ़ संकल्प, इरादे के साथ वे चुनौतियों का करते रहे हैं मुकाबला। देश में छोटे किसान, दलित और आदिवासी भी उनके प्रति टकटकी लगाए हैं। देश के व्यापारी और बाजार को खासी उम्मीदें हैं। भारत के सभी क्षेत्रों में विकास और समुद्धि आएगी।

नरेंद्र दमोदर दास मोदी ने गुरूवार (30 मई) को एक बार फिर से देश के प्रधानमंत्री पद को संभाल लिया। राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में हुए इस भव्य शपथ ग्रहण समारोह में विदेशी मेहमानों सहित 8,000 के करीब लोग मौजूद थे। प्रधानमंत्री की इस मंत्रिपरिषद में 25 कैबिनेट, नौ राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार और 24 राज्यमंत्री लिए गए हंै। मंत्रिमंडल में 21 नए चेहरेे हैं जबकि पिछले मंत्रिमंडल में रहे 22 मंत्रियों को बाहर कर दिया गया है।

इस मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा जो प्रमुख चेहरे हैं उनमें दूसरे नंबर पर हैं राजनाथ सिंह । राजनाथ लखनऊ से जीत कर आए हैं। वह सरकार के पहले कार्यकाल में गृहमंत्री थे। तीसरे नंबर पर शपथ लेने वाले थे पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह। अमित शाह गांधीनगर से जीते हैं। इनके बाद नितिन गड़करी ने शपथ ली। पिछली सरकार में वे केंद्रीय सड़क परिवहन एंव राजमार्ग मंत्री थे। वरिष्ठ मंत्रियों में बंगलूरू उत्तर से जीत कर आए डीवी सदानंद गौड़ा है। पिछली सरकार में वे सांख्यिकी और कार्यक्रम मंत्री थे। पिछली सरकार में रक्षामंत्री रही निर्मला सीतारमण को एक बार फिर से मंत्रिमंडल में लिया गया है।  वह राज्यसभा की सांसद हैं। लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के प्रमुख रामविलास पासवान पिछली सरकार में उपभोक्ता मामलों के मंत्री थे। हालांकि इस बार उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा लेकिन फिर भी उन्हें मंत्रिमंडल में ले लिया गया है। उन्हें राज्यसभा में भेजा जाएगा।

पिछली सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री रहे राज्य सभा के सांसद प्रकाश जावड़ेकर को इस बार भी मंत्रिमंडल में ले लिया गया है। पिछले कानून मंत्री रवि शंकरप्रसाद फिर से मंत्रिमंडल  में पहुंचे हैं। पिछले रेल मंत्री व राज्यसभा सदस्य पीयूष गोयल को फिर से मंत्रिमंडल में लिया गया है। 2014 से 2017 तक वे बिजली, कोयला और नवीकरणीय ऊर्जा विभाग में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) थे। पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर को कैबिनेट में शामिल करने पर सभी को हैरानी है।

पिछले मंत्रिमंडल में कपड़ा मंत्री रही और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को हराने वाली स्मृति ईरानी को फिर से मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया है।

मंत्रिमंडल में कुछ चेहरे ऐसे हैं जिन्हें इस बार मंत्रिमंडल में शामिल नहंी किया गया है। इनमें सुषमा स्वराज, अरूण जेटली और मेनका गांधी हैं। इसके अलावा पांच और मंत्री हैं जिन्हें इस बार मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। जो पूर्व मंत्री बाहर रखे गए हैं उनमें शामिल हैं – सुरेश प्रभु, मेनका गांधी, अरूण जेटली, जुआल ओराम, राधा मोहन सिंह। इनके अलावा पिछली मंत्रिपरिषद में शामिल रहे राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) महेश शर्मा, मनोज सिन्हा, राज्यवर्धन सिंह राठौर और अल्फोंस कनंनथम को भी इस बार शपथ नहीं दिलाई गई।

अरूण जेटली ने तो खुद अपनी सेहत का हवाला देकर उन्हें कोई पद न देने की पेशकश की थी। ऐसा ही पिछली विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने किया। उन्होंने तो चुनाव भी नहीं लड़ा। हालांकि उन्हें मनाने की काफी कोशिश की गई पर उन्होंने अपनी सेहत का हवाला देकर अपनी असमर्थता जता दी।

मेनका गांधी की छुट्टी किया जाना सभी को चौंकाता है। असल में गांधी परिवार के दूसरे पक्ष की काट के लिए मेनका गांधी भाजपा के लिए बहुत अहम थी। अब उन्हें मेनका की ज़रूरत नहीं लगती इसलिए उन्हें दरकिनार  कर दिया गया।

इनके अलावा डाक्टर रीता बहुगुणा जोशी को मंत्रिमंडल में दाखिला न मिलने पर सभी को हैरानी है। लगता है कि उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश में भाजपा ने अपने फायदे के लिए उनका जो इस्तेमाल करना था वह कर लिया और अब उनकी जडं़े उत्तराखंड में जम चुकी हैं, इस कारण  रीता  का भी अब वह महत्व नहीं रह गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास ये मंत्रालय हैं-

            कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय,

           लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली

           परमाणु ऊर्जा

         अंतरिक्ष एवं महत्वपूर्ण नीतियों के अलावा वे सभी मंत्रालय और विभाग जो किसी मंत्री को आवंटित नहीं किए गए हैं।

कैबिनेट मंत्री

1            राजनाथ सिंह   रक्षा मंत्रालय

2            अमित शाह     गृह मंत्रालय

3            नितिन गडकरी   सड़क परिवहन, राजमार्ग एवं सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय

4            डीवी सदानंद गौड़ा      रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय

5            निर्मला सीतारमण वित्त मंत्रालय तथा कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय

6            रामविलास पासवान     उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति

7            नरेंद्र सिंह तोमर कृषि एवं कृषक कल्याण, ग्रामीण विकास, पंचायती राज मंत्रालय

8            रविशंकर प्रसाद  कानून एवं न्याय, संचार, इलेक्ट्रोनिक्स एवं सूचना तकनीकी

9            हरसिमरत कौर बादल    खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय

10          थावरचंद गहलोत सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय

11          एस जयशंकर    विदेश मंत्रालय

12          रमेश पोखरियाल निशंक   मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय

13          अर्जुन मुंडा     आदिवासी मामलों का मंत्रालय

14          स्मृति ईरानी    महिला एवं बाल विकास तथा कपड़ा मंत्रालय

15          हर्षवर्धन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, विज्ञान एवं तकनीक, पृथ्वी विज्ञान

16          प्रकाश जावड़ेकर  पर्यावरण, जलवायु, वन, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय

17          पीयूष गोयल    रेलवे तथा वाणिज्य उद्योग

18          धर्मेंद्र प्रधान    पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस, इस्पात

19          मुख्तार अब्बास नकवी    अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय

20          प्रहलाद जोशी   संसदीय कार्य, कोयला तथा खदान मामले

21          महेंद्रनाथ पांडेय  कौशल विकास एवं उद्यमिता

22          अरविंद सावंत   भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उपक्रम मंत्रालय

23          गिरिराज सिंह   पशु संवर्धन, डेयरी एवं मत्स्य विभाग मंत्रालय

24          गजेंद्र सिंह शेखावत      जल शक्ति मंत्रालय

राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)

1            संतोष गंगवार   श्रम एवं रोजगार मंत्रालय

2            राव इंद्रजीत सिंह सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन, योजना मंत्रालय

3            श्रीपद नाइक    आयुष एवं रक्षा राज्य मंत्रालय

4            जीतेंद्र सिंह     पूर्वोत्तर विकास, प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन, लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली परमाणु ऊर्जा,  अंतरिक्ष मंत्रालय

5            किरेन रिजिजू   खेल एवं युवा कल्याण, अल्पसंख्यक मामले

6            प्रहलाद पटेल    संस्कृति तथा पर्यटन मंत्रालय

7            राजकुमार सिंह   ऊर्जा, अक्षय ऊर्जा, कौशल विकास एवं उद्यमिता

8            हरदीप पुरी     आवास एवं शहरी विकास, नागरिक उद्यन, वाणिज्य एवं उद्योग

9            मनसुख मांडविया जहाजरानी, रसायन एवं उवर्रक

राज्य मंत्री

1            फग्गन सिंह कुलस्ते      इस्पात मंत्रालय

2            अश्विनी चौबे    स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय

3            अर्जुन राम मेघवाल     संसदीय कार्य, भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उपक्रम मंत्रालय

4            वीके सिंह      सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय

5            कृष्णपाल गुर्जर   सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय

6            रावसाहेब दानवे  उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली

7            जी किशनरेड्डी   गृह राज्य मंत्रालय

8            पुरुषोत्तम रुपाला कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय

9            रामदास आठवले  सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय

10          साध्वी निरंजन ज्योति    ग्रामीण विकास मंत्रालय

11          बाबुल सुप्रियो   पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय

12          संजीव बालियान  पशु संवर्धन, डेयरी एवं मत्स्य मंत्रालय

13          संजय धोत्रे     मानव संसाधन विकास, संचार, इलेक्ट्रोनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय

14          अनुराग ठाकुर   वित्त, कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय

15          सुरेश अंगड़ी    रेल मंत्रालय

16          नित्यानंद राय   गृह मंत्रालय

17          रतन लाल कटारिया     जल शक्ति, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय

18          वी मुरलीधरन   विदेश मामले, संसदीय कार्य मंत्रालय

19          रेणुका सिंह सरुता आदिवासी मामलों का मंत्रालय

20          सोम प्रकाश     वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय

21          रामेश्वर तेली    खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय

22          प्रताप चंद्र सारंगी एमएसएमई, पशु संवर्धन डेयरी एवं मत्स्य मंत्रालय

23          कैलाश चौधरी   कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय

24          देबश्री चौधरी   महिला एवं बाल विकास मंत्रालय

‘धर्मनिरपेक्षता एक ड्रामेबाजी’

प्रधानमंत्री ने देश में अपनी दूसरी जीत पर आयोजित समारोह में धर्मनिरपेक्षता को ड्रामेबाजी बताया। आपने पिछले तीस साल से देखा होगा कि यह ड्रामेबाजी एक अर्से से चलती रही। यह फैशन ही बन गया था पवित्र गंगा में डुबकी लगाने सा यह हो गया था। भाजपा की अभूतपूर्व जीत पर उनके पहले उद्गार थे। वह टैग भी जाली ही था। इसे सेक्यूलिरिज्म कहते हैं। भाजपा के दीनदयाल मार्ग कार्यालय में मौजूद भीड़ ने उनकी बात पर तालियां बजाईं। इससे लगा कि बहुमत जो हासिल हुआ है उससे भारत की पहचान बदल देने का अधिकार भी है। भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भोपाल से चुनाव लड़ाया उसने नाथू राम गोडसे को ‘देशभक्त’ बताया। उसे भोपाल की जनता ने बहुमत दिया। अपने चुनाव प्रचार में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भारत में आए मुस्लिम घुसपैठियों को ‘दीमक’ बताया था। प्रधानमंत्री ने कहा कि अपने 2014 से 2019 तक इस पूरे समुदाय (धर्मनिरपेक्ष लोग) को कुछ भी कहने से बचते हुए देखा होगा। अब एक भी राजनीतिक पार्टी में वह हिम्मत  नहीं है कि वह देश को ‘धर्मनिरपेक्षता’ का बिल्ला लगा कर भ्रमित करे। उन्होंने कहा हर चुनाव में भ्रष्टाचार का बोलबाला होता है उस पर चुनाव लड़े जाते हैं। लेकिन यह पहला चुनाव था जब कोई राजनीतिक दल इस सरकार के पांच साल पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं लगा सका।

मंत्रिमंडल में अगड़ों के 32 मंत्री केवल एक मुस्लिम चेहरा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना मंत्रिमंडल बनाते समय जातीय समीकरणों को पूरी तरह ध्यान में रखा है। उनकी कोशिश रही  है कि समाज के सभी तबकों को पूर प्रतिनिधित्व मिल जाए। इसमें सभी जातियों को शामिल करने का प्रयास किया गया है। देखा जाए तो मंत्रिमंडल में अगड़ी जाति के लोगों का वर्चस्व है। मंत्रिमंडल में 32 मंत्री ऊंची जाति से हैं। इसमें नौ ब्राहमण हैं। नितिन गडकरी भी इसी श्रेणी में आते हैं। इसके अलावा मंत्रियों में तीन ठाकुर हैं। इसमें राजनाथ सिंह (लखनऊ), गजेंद्र सिंह शेखावत (जोधपुर) और नरेंद्र सिंह तोमर (मुरैना) शामिल हैं।

मंत्रिमंडल में अति पिछड़ा वर्ग को भी जगह दी गई है। इन में खुद प्रधानमंत्री मोदी भी आते हैं। इनके अलावा इसी वर्ग से धर्मेंद्र प्रधान को भी लिया गया है। दलित समुदाय से छह नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। जबकि चार आदिवासी चेहरे में मंत्रिमंडल में नजऱ आते हैं। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा भी इनमें शामिल है। सिखों में से अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल और भाजपा के हरदीप पुरी  को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। मंत्रिमंडल में एकमात्र मुस्लिम चेहरा है मुख्तार अब्बास नकवी।

इन चुनावों में भाजपा की जीत में कई क्षेत्रीय पार्टियों के जातिगत समीकरण ध्वस्त हो गए थे और विभिन्न वर्गों के लोगों ने भाजपा का समर्थन किया था। यही कारण है कि भाजपा ने भी मंत्रिमंडल में लगभग सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है। भाजपा को ऊंची जाति की पार्टी माना जाता है। यह बात मंत्रिमंडल की बनावट से भी सत्य झलकती है। ऐसा करके उन्होंने अपने वोट बैंक को यह संदेश भी दिया है कि चाहे मंत्रिमंडल में दलितों को भी प्रतिनिधित्व दिया गया है पर दबदबा तो स्वर्ण जाति के लोगों का ही रहेगा। पिछले कार्यकाल के दौरान भाजपा ने आर्थिक रूप से पिछढ़े स्वर्णों को भी 10 फीसद आरक्षण देने का फैसला किया था।

मोदी का विपक्ष को करारा झटका परन्तु सभी का विश्वास जीतना ज़रूरी!

महागठबंधन समेत देश के विपक्षी दल एनडीए का पुख्ता विकल्प नहीं दे पाए। इस कारण 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को भारी बहुमत प्राप्त हो गया। विपक्ष को भारी झटका लगा और ऐसा ही हुआ राहुल गांधी, ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडु और मायावती के साथ जो खुद को  प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल समझ रहे थे। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में ध्वस्त हो गई जहां वह मात्र छह महीने पहले सत्ता में आई थी। उसकी साख केवल पंजाब, केरल और तमिलनाडु में बची। मोदी की सुनामी इतनी तीव्र थी कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी की वह सीट भी हार गए जहां उनके परिवार का वर्चस्व रहा था। 2019 के परिणामों में राष्ट्रवाद का बड़ा मुद्दा रहा इसके साथ उनकी समाज कल्याण की योजनाओं से भी इन्हें बड़ा लाभ मिला। भाजपा  पश्चिम बंगाल और ओडिसा में बड़ी घुसपैठ करने में सफल हो गई। तेलंगाना के नतीजे बताते हैं कि भाजपा अब केवल हिंदी क्षेत्र की पार्टी नहीं है।

मोदी सरकार को एक बड़ा जनसमर्थन मिला है, पर अब उसे अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभानी है, जबकि हार गई पार्टियों में आत्ममंथन होना चाहिए कि 2014 और 2019 में वे कहां गलत हो गए। अभी 2024 में काफी समय है और इस बीच विपक्ष को अपनी गलतियां सुधारने का पूरा अवसर मिलेगा। भाजपा ने अकेले 300 से ज़्यादा सीटें जीती हैं, इस कारण उसे अपने सहयोगियों की भी ज़रूरत नहीं है, पर सत्य यह कि ज़्यादा ताकत अपने साथ ज़्यादा जिम्मेदारियां भी ले कर आती है। एक बार जब यह चुनावी बुखार उतर जाएगा तो मोदी को ज़रूरत है सीमा पार के आतंकवाद और किसानों की समस्याओं को हल करने की। भाजपा को अपने 2014 और 2019 के चुनाव घोषणा पत्रों  पर अमल करते हुए 2022 तक किसानों की आय को दुगना करना होगा। इस के अलावा बेरोजग़ारी, अर्थव्यवस्था की धीमी गति और असहिष्णुता जैसे गंभीर मुद्दों को भी देखना होगा। लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद एनडीए के सांसदों के बीच मोदी ने जो भाषण दिया वह बहुत महत्वपूर्ण था। इसमें उन्होंने क्षेत्रीय महत्वाकांक्षा, संवैधानिक मूल्यों  के साथ-साथ अल्प संख्यक समुदायों की बात की जो डर के साए में जी रहे हैं। एक विश्वास बनाए रखने के लिए मोदी ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा दिया और कहा कि हम सब के लिए काम करेंगे न कि सिर्फ उनके लिए जिन्होंने हमें वोट दिया है।   इससे सभी के मन में मोदी के प्रति श्रद्धा जागी है। इस संदेश ने उन्हें एक राजनीतिज्ञ से ‘स्टेटसमैन’ बना दिया। इसके साथ उन्होंने जो आदर भाव वरिष्ठ राजनेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और प्रकाश सिंह बादल के प्रति प्रगट किए उससे संकेत मिलता है कि प्रधानमंत्री  अपनी दूसरी पारी में एकीकरणीय व्यक्तित्व बनने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी का सबसे बड़ा कार्य है सभी का विश्वास जीतना। प्रधानमंत्री को जीत की बधाई देते हुए ‘तहलका’ उम्मीद करता है कि मोदी की दूसरी पारी अधिक समावेशी और बहुवादी होगी।

सूरत में आग ने छीन लिए 20 युवा जीवन

सूरत के तक्षशिला आर्केड में हुए भंयकर अग्निकांड में 20 बच्चों की जान चली गई। यह गिनती और अधिक होती यदि एक डिज़ाइन संस्थान के युवा निदेशक ने अपनी जान की परवाह किए बगैर सात बच्चों का न बचा लिया होता। इसी आदमी ने कोचिंग सेंटर के स्टाफ की भी जान बचाई। इस प्रयास में वह खुद घायल हो गया। उसके सिर पर गहरी चोट आई है और एक निजी अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है।

सूरत पुलिस ने इस परिसर को बनाने वालों हर्षल वकेरिया और जिग्नेश और कोचिंग सेंटर के मालिक भार्गव भूटानी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है। गुजरात के मुख्य सचिव डाक्टर जेएन सिंह के मुताबिक इस अग्निकांड मामले मेें कोचिंग सेंटर चलाने वाले को गिरफ्तार कर लिया है। इसके साथ ही लापरवाही बरतने के आरोप में ‘फायर विभाग’ के दो अधिकारी भी निलंबित कर दिए गए हैं। सिंह ने बताया कि घटना के बाद पूरे गुजरात में 9395 भवनों को प्रारंभिक निरीक्षण के बाद कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं। उन्हें तीन दिन में जवाब देना है।

मुख्य सुरक्षा अधिकारी के मुताबिक सूरत में 1123 कोचिंग सेंटरों को नोटिय दिए गए है। उन्हें अग्नि सुरक्षा मानकों का पालन करने के लिए तीन दिन का समय दिया गया है। इस बीच यह बात सामने आई है कि कोचिंग सेंटर में पढऩे वाले छात्र टायर की सीटों पर बैठते थे। इस कारण आग फैलने में आसानी हुई और वह तेजी से फैली। इसी वजह से छात्रों को बाहर निकलने का मौका नहीं मिला। इसके अलावा वहां और भी कई ऐसी चीज़ें थी जो जल्दी आग पकड़ती हैं।

हादसों का इतिहास

देश में हादसों के मामलों में आग लगने के मामले तीसरे नंबर पर आते हैं। जब कोई बड़ा हादसा होता है तो कुछ दिनों तक हो-हल्ला होने के बाद सभी कुछ सामान्य सा हो जाता है। तीन साल पूर्व आपदा प्रबंधन में एमए कर रहे पंजाब विश्वविद्यालय के एक छात्र ने चंडीगढ़ सेक्टर-22 की मार्किट पर एक रिपोर्ट तैयार की थी। उसके अनुसार यदि वहां आग लग जाए तो सैकड़ों इंसानों की जि़ंदगी जा सकती है। उसकी रिपोर्ट के मुताबिक सेक्टर-22 के जो शोरूम सेक्टर-17 के सामने है उनकी ‘बेसमेंटस’ में हज़ारों की संख्या में छोटे-छोटे बूथ खुले हुए हैं। इनमें ज़्यादातर दुकानें मोबाइल फोन या फोटोग्राफी सामग्री की हैं। हर बेसमेंट में 35 से 40 बूथ हैं। अंदर जाने और बाहर आने का एक ही रास्ता है आपातकाल की स्थिति में वहां से निकलना संभव नहीं। इसके साथ ही पूरी मार्किट में जो स्थान आपातकाल में काम आने वाली गाडिय़ों के लिए आरक्षित हैं वहां पार्किंग वाले और दुकानदार अपनी गाडिय़ां फंसा कर रखते हैं।

इसी प्रकार देश के विभिन्न शहरों में यह आम देखने को मिलता है। यही कारण है कि जब भी कहीं कोई बड़ी घटना होती है तो उसमें जान-माल का भारी नुकसान होता है।

राहुल परिवारवाद के खिलाफ कार्यसमिति में उनका इस्तीफा खारिज!

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी में बढ़ते परिवारवाद से बहुत नाराज़ हैं। कांग्रेस पर परिवारवाद के आरोप भी लगते रहे हैं। राहुल खुद नेहरू-गांधी परिवार की विरासत  हैं। आम चुनाव-2019 में आए जनादेश का सम्मान करते हुए उन्होंने खुद को नतीजों के लिए जिम्मेदार माना था। शनिवार (25 मई) को हुई कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में उन्होंने अपने इस्तीफे की पेशकश की। हालांकि कार्यसमिति ने एक सुर से उनके इस्तीफे को खारिज कर दिया। उन्हें पार्टी में पूर्ण बदलाव और पार्टी में हर स्तर की समीक्षा करने और बदलाव का फैसला लेने का अधिकार भी सौंपा गया। हालांकि अभी उन्होंने अपना रुख जाहिर नहीं किया है।

सोनिया गांधी ने कांग्रेस कार्यसमिति के नजरिए से अपनी सहमति तो जताई लेकिन उन्होंने राहुल के फैसले पर भी ज़ोर दिया। जानकारों के अनुसार जब एक मुख्यमंत्री और एक वरिष्ठ सदस्य ने बैठक में यह कहा कि राज्य के नेताओं को ज्य़ादा अधिकार मिलने चाहिए तो राहुल ने कहा, उन्होंने राज्य स्तरीय नेताओं को हमेशा ज्य़ादा अधिकार दिए हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि एक मुख्यमंत्री और दूसरे राज्य के एक वरिष्ठ नेता दिल्ली में तब तक जमे रहे जब तक उनके बच्चों को टिकट नहीं मिल गया। जबकि उन्हें तब अपने राज्य में चुनाव प्रचार करना चाहिए था। लेकिन मुख्यमंत्री महोदय अड़े ही नहीं रहे बल्कि उन्होंने तो इस्तीफा देने की धमकी भी दी।

आम चुनाव-2019 के चुनावी नतीजों का जायजा लेने के लिए हुईं कार्यसमिति की इस बैठक में ही एक वरिष्ठ नेता को अपने आंसू पोंछते हुए भी देखा गया। राहुल ने कहा कि कांग्रेस में गांधी परिवार से अलग लोगों को भी अध्यक्ष होने का मौका मिला है। खास तौर पर आज़ादी की लड़ाई के दौरान भी और बाद में भी।

जानकारों के अनुसार यदि राहुल इस्तीफे पर अड़े रहते हैं तो पंजाब के मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता अमरिंदर सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद सौंपा जा सकता है।

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक तकरीबन चार घंटे चली। इसमें हार की प्रमुख वजहों का जायजा लिया गया। चंूकि जल्दी ही तीन प्रदेशों में चुनाव होने हैं इसलिए पार्टी अध्यक्ष को ही संगठन को प्रभावी, चुस्त और कामयाब बनाने के लिए तैयारी करने की जिम्मेदारी भी सौंपी। कार्य समिति ने उनसे अनुरोध किया कि वैचारिक लड़ाई में देश के युवाओं को साथ लेते हुए वे समाज की अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, गरीबों और अल्पसंख्यकों को पार्टी में सक्रिय करें और उनके लिए संघर्ष करें।

पार्टी अध्यक्ष पद से हटने पर ज़ोर दे रहे राहुल गांधी ने कहा कि पहले भी पार्टी के अध्यक्ष वे लोग होते रहे हैं जो कभी गांधी परिवार से जुड़े हुए नहीं थे। लेकिन उनके तर्क को कांगे्रस कार्यसमिति ने स्वीकार नहीं किया। पार्टी अध्यक्ष बनने से सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी इंकार कर दिया था।

कांग्रेस कार्यसमिति में बोलते हुए प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि आज इस्तीफे देने का समय नहीं है। हार की वजहों का पता लगाया जाना चाहिए और पार्टी में संगठनात्मक बदलाव और फेरबदल का अधिकार पार्टी अध्यक्ष को दिया जाना चाहिए जिससे भाजपा जैसी समर्थ पार्टी का समुचित मुकाबला किया जा सके।

कार्य समिति की बैठक में तकरीबन सभी लोगों ने अपनी बात कही। कुछ ने ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़, देश की सीमाओं की रक्षा, बालाकोट जैसे मुद्दों पर जनता में भाजपा के हावी होने की बात कही। हालांकि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, आनंद शर्मा, आरपीएम सिंह और रणदीप सुरजेवाला ने कहा भाजपा ने राष्ट्रवाद और हिंदुत्व पर चुनाव लड़ा। जबकि कांग्रेस ने आर्थिक मुद्दों, बेरोज़गारी, महंगाई आदि पर चुनाव लड़ा। हो सकता है कि हम न्याय की अवधारणा जन-जन तक न पहुंचा पाए हों और एएफएस पीए और देश विरोधी कानूनों को हल्का करने की जो बात चुनावी मैनीफेस्टों में कही गई है उसे समझा पाने में विपक्षी दल कामयाब रहे हों। कुछ बूथ स्तर पर बनी कमेटियों के सदस्यों की गैरहाजि़री बता रहे थे जिसके कारण देश की विशालता के अनुरूप पार्टी के कार्यकर्ताओं की सक्रियता नहीं दिखी।

जानकारों के अनुसार राहुल गांधी ने कहा कि तीन राज्यों में जीत के बाद कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं में सुस्ती का दौर-दौरा छाया जिसका असर चुनावी प्रचार पर साफ दिखा।

राहुल गांधी ने यह भी कहा कि यह चुनावी जंग सिर्फ वैचारिक नहीं बल्कि धार्मिक भी थी। मल्लिकार्जुन खडग़े ने जो प्रस्ताव पेश किया उसमें यह कहा गया कि कांगे्रस कार्यसमिति एक सुर से राहुल गांधी के त्यागपत्र की पेशकश को खारिज करती है और उनसे अनुरोध करती है कि पार्टी उनके नेतृत्व और मार्गदर्शन में चुनौतीपूर्ण तरीके से मुकाबला कर सकेगी।

कांगे्रस कार्य समिति पूरी तौर पर चुनौतियों, नाकामियों और अपनी कमियों को अच्छी तरह जानती-समझती है। जो कुछ भी गड़बडिय़ां पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं से हुई हैं उनकी निजी तौर पर अच्छी तरह से छानबीन की जाए और कांगे्रस अध्यक्ष को यह पूरा अधिकार है कि वे पार्टी में पूरी तौर पर जहां भी ज़रूरी समझें, बदलाव करें। वे पार्टी में हर स्तर पर आमूल चूक बदलाव करें और इसे नई सदी की युवा पार्टी के तौर पर भी बदलें।

रायबरेली सीट से उत्तरप्रदेश में अकेली जीतीं सोनिया गांधी ने कहा कि वे कार्यसमिति के नज़रिए से सहमत है। लेकिन राहुल यदि अध्यक्ष पद पर नहीं रहना चाहते तो यह उनका फैसला है। प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि राहुल को अध्यक्ष पद पर बने रहना चाहिए। अभी आगे और भी चुनौतियां हैं जिनका अच्छा मुकाबला किया जाना चाहिए।

राहुल जब से कांग्रेस के अध्यक्ष बने तब से लगातार वे चुनावों की विभिन्न चुनौतियों का सामना करते रहे। कांग्रेस के अध्यक्ष बनते ही गुजरात में जो कामयाबी रही। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जिस तरह उन्होंने कांगे्रस के लोगों के साथ संगठन के काम को देखा-संभाला उसे उनके धुर विरोधी भी सराहते हैं। उनके नेतृत्व में लोकसभा में कांगे्रस पार्टी को जो सीटें मिली हैं वे पिछली लोकसभा में हासिल 44 सीटों से कुछ बढ़ कर 51 तो तो हुई ही हैं। यह सही है कि पार्टी का संगठन बहुत निराशाजनक अवस्था में था। कम से कम इस लोकसभा चुनाव में इस कमी को दूर किया जा सकेगा।

यह सही है कि कांगे्रस इस बार लोकसभा में दस फीसद सीट न पाने के चलते विपक्ष की नेता के रूप में नही आएगी। लेकिन आने वाले दिनों में भी ऐसी ही स्थिति होगी यह संभावना निश्चय ही कम है। प्रियंका गांधी वाड्रा आखिरी समय में काफी देर में सक्रिय हुईं। लेकिन अब वे भी पार्टी में सक्रिय हैं। इससे संभावनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

कांग्रेस से भी ज्य़ादा खराब हालत उन छोटी पार्टियों की हुई जिनके बारे में यह सोचा नहीं जा सकता था कि वे इस तरह मुंह की खाएगी। उत्तरप्रदेश बिहार, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र में विपक्ष की जो स्थिति है उस पर पुनर्विचार और नई योजना बनाने और संगठन मज़बूत करना बेहद ज़रूरी है। मजबूत विपक्ष होने से ही मजबूत लोकतंत्र पनप सकता है।