Home Blog Page 1005

चुप है कश्मीर!

केंद्र सरकार ने भले 10 अक्तूबर से देश के अन्य हिस्सों से लोगों के घाटी आने पर लगाई पाबंदी वापस ले ली है, वहां अभी सामान्य जनजीवन बहाल नहीं हो पाया है। सरकार ने बीडीसी चुनावों का ऐलान भी कर दिया है लिहाजा यह बहुत ज़रूरी हो जाता है कि वहां सामन्य स्थिति बहाल हो। विश्लेषण कर रहे हैं राकेश रॉकी।

श्रीनगर की डल झील शांत है। उस पर विभिन्न रंगों से सजी कश्तियाँ भी हैं लेकिन उनमें डल की सैर करने के लिए पर्यटक नहीं हैं। मु$गल गार्डन भी फूलों से भरा है। लेकिन इन फूलों की खूबसूरती निहारने के लिए वहां कोर्ई नहीं। ऊपर पहाड़ी पर शंकराचार्य मंदिर में सुबह पुजारियों के पूजा करते वक्त घंटियों की प्रतिध्वनि तो गूंजती है लेकिन वहां बाहर से आने वाले श्रद्धालु अभी नहीं हैं। जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और उसे दो हिस्सों में बांटकर केंद्र शासित प्रदेश बना देने के फैसले के बाद कश्मीर में अभी अजीब तरह की चुप्पी पसरी है।

सुरक्षा का मजबूत कवच फूलों की इस घाटी की रंगत को कम कर रहा है। कहीं माहौल में साजिया बशीर के गीत ‘‘चे कमु सोनी मैनी’’ की स्वर लहरी नहीं सुनती। सुरक्षा और बंदूकों के साये में असली कश्मीर कहीं नेपथ्य में है। सरकार ने 10 अक्तूबर से घाटी की यात्रा सैलानियों के लिए खोलने का ऐलान तो कर दिया है लेकिन वहां स्थिति वही अनिश्चित सी है।

सरकार ने श्रीनगर और घाटी के अन्य हिस्सों में स्कूल-कालेज खोलने का ऐलान पिछले महीने ही कर दिया था लेकिन असलियत यह है कि यहाँ स्कूल तो खुले हैं लेकिन छात्र नहीं हैं। उनकी परीक्षाओं का क्या होगा, अभी तो इस पर ही बड़ा सवाल है।

जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा $खत्म होने और उसके दो हिस्सों में बंटकर केंद्र शासित प्रदेश हो जाने की ‘‘घटना’’ दुनिया भर की खबर है। पाकिस्तान में हलचल है, भारत में हलचल है। लेकिन कश्मीर खामोश है।

हयूस्टन के ‘‘हाउडी मोदी’’ कार्यक्रम में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले कश्मीर का राग अलापने के लिए पाकिस्तान को आड़े हाथ लिया लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बार-बार कश्मीर मामले में हस्तक्षेप की बात कहने से बहुत से लोगों के मन में यह सवाल कौंध रहा है कि क्या मोदी और ट्रम्प के बीच कश्मीर को लेकर परदे के पीछे कोर्ई बात हुई है। बेशक भारत ने बार-बार यह कहा है कि कश्मीर मसले पर तीसरे पक्ष की दखलंदाजी का सवाल ही नहीं उठता।

दोनों देशों के बीच तनाव भी इस दौरान बड़ा है। पड़ोसी पाकिस्तान ने भारत के लिए अपने एयर स्पेस पर से भारतीय जहाजों के उडऩे पर पाबंदी लगा रखी है। समझौता एक्सप्रेस पहले ही रद्द हो चुकी है। पाकिस्तान ने भारत से व्यापार बंद कर दिया है। पीएम इमरान खान अपने भाषणों में दोनों देशों के  ‘‘न्यूक्लियर पावर’’ होने और युद्ध की स्थिति में इसके अनजाने खतरों की धमकियां दे रहे हैं। भारत के सेना प्रमुख विपिन रावत देश के सैनिकों को किसी भी खतरे के प्रति आगाह कर रहे हैं।

क्या सचमुच कश्मीर मोदी सरकार के फैसले से खफा है? शायद हां। एक उदहारण। ‘‘तहलका’’ संवाददाता ने फोन पर दरख्शां अंद्राबी से बात की। अंद्राबी गहरे से भाजपा से जुड़ी हैं। पिछले करीब चार-पांच साल से। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जबरदस्त समर्थक हैं। सेंट्रल वक्फ कौंसिल की मैंबर हैं। और भाजपा की श्रीनगर की इंचार्ज। उन्होंने कहा – ‘‘मेरा दिल दुखी है। 70 साल से शेख अब्दुल्ला साहब, फारूक अब्दुल्ला, मुफ्ती (सईद) साहब, महबूबा (मुफ्ती) और उमर अब्दुल्ला दम भर  रहे थे कि धारा 370 को कुछ नहीं होगा। इन सभी ने हम कश्मीरियों को धोखा दिया। आज हम महज एक यूटी बनकर रह गए। लद्दाख जैसे छोटे इलाके के बराबर। क्या अब हम और 70 साल तक पूरा सूबा होने की

लड़ाई लड़ेेंगे?’’

अंद्राबी सवाल उठाती हैं कि पाकिस्तान किस मुंह से आज कश्मीरियों का हमदर्द बन रहा है। ‘‘उसने मिलिटेंट्स को भेजकर कश्मीर की यह हालत न की होती तो शायद हालात कुछ और होते। लेकिन आज तो हमारे अपनों (भारत सरकार) ने कश्मीर को कैदखाना बना दिया। हमें मालूम तक नहीं वैली में हमारे अपनों की क्या हालत है। मैं इससे बिलकुल इत्तेफाक नहीं रखती कि जम्मू कश्मीर को यूटी बना दिया जाए। हमारी पहचान (विशेष दर्जा) ही खत्म हो गयी। मैं सच में बहुत दुखी हूँ। यह फैसला सोच समझकर किया जाता तो ज्यादा बेहतर होता।’’ हालांकि वो इस बात पर भी ज़ोर देती हैं कि कश्मीर में शांति रहनी चाहिए और लोगों को किसी के बहकाबे में नहीं आना चाहिए।

लेकिन कश्मीर भाजपा के अध्यक्ष रविंदर रैना इस फैसले से खुश हैं। रैना कश्मीरी पंडित हैं और कहते हैं – ‘सही मायने में हमें तो अब आज़ादी मिली है। इस फैसले से आतंकवादियों की कमर भी टूटेगी और पंडितों का घाटी में अपने घरों में लौटने का सपना भी पूरा होगा।’

तीस साल पहले सात-आठ साल की उम्र में घाटी छोडक़र अपने माता-पिता के साथ जम्मू आने मजबूर हुईं पत्रकार अनुजा खुशु कहती हैं – ‘ठीक फैसला है। हम अब शायद घाटी लौट पाएं। लेकिन यूटी की जगह पूरा सूबा रहने देते तो बेहतर होता।’ हालांकि, ऐसे कश्मीरी पंडित भी हैं जो रैना की तरह नहीं सोचते। अपना नाम न छापने की शर्त पर केपी संगठन के एक नेता ने कहा – ‘यह ठीक है कि हमें अपने घरों से दर-बदर करने को मजबूर किया गया। लेकिन कश्मीर में यदि अब भी शांति नहीं होती तो हम कैसे लौट पाएंगे। कश्मीर को भरोसे में लेना बेहतर होता। कुछ लोग आज इस फैसले से खुश हो सकते हैं लेकिन सच यह है कि धारा 370 कश्मीरियत की पहचान थी। मेरे ख्याल से आने वाला वक्त अभी मुश्किल भरा हो सकता है।’

यह भी बहुत दिलचस्प बात है कि घाटी की मुस्लिम आबादी का एक बड़ा वर्ग भाजपा से ज्यादा परहेज़ नहीं करता। तहलका संवाददाता ने घाटी के अपने दौरों में पाया है कि यहाँ लोग वर्तमान भाजपा नेतृत्व के ज्य़ादा मुरीद नहीं। शायद इक्का-दुक्का ही होंगे जिन्हें मोदी-शाह के समर्थकों की श्रेणी में रखा जा सके। या शायद एक भी न हो। लेकिन ऐसे बहुत हैं जो पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी के जबरदस्त मुरीद हैं। उन्हें लगता कि वाजपेयी होते तो बेहतर फैसला होता और कश्मीर को यूं ‘कैदखाना’ नहीं बनाया जाता।

श्रीनगर के एम, लिंक रोड पर रेडीमेड कपड़ों और आट्र्स-क्राफ्ट की दुकान करने वाले बशीर अहमद (बदला नाम) ने कहा -‘वाजपेयी साहब लाजवाब शख्सियत थे। उनके वक्त में हमें उम्मीद थी कि पाकिस्तान के साथ मसले सुलट जायेंगे। लेकिन अब हालत बदल गए हैं। हमारे सूबे का खास दर्जा खत्म हो गया है जो हमें हिन्दोस्तान से जोड़ता था। इसे कश्मीर के लोग अच्छे में नहीं लेंगे और इसे धोखा मानेंगे।’

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल धरा 370 खत्म करने के फैसले (संसद में इससे जुड़े बिल के पास होने और राष्ट्रपति की मंजूरी) के बाद 10 दिन तक कश्मीर में रहे। श्रीनगर और शोपियां में उनके चंद लोगों से मिलने की वीडियो क्लिपिंग भी टीवी चैनलों पर आईं जिससे सा$फ लगा कि केंद्र सरकार यह सन्देश दुनिया में भेजना चाहती है कि घाटी में सब कुछ ‘शांत’ है। लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे शायद अलग है।

कांग्रेस ही एनसी और पीडीपी के अलावा ऐसी पार्टी है जिसे कश्मीर घाटी में लोग पसंद करते हैं। कांग्रेस का हमेशा यहाँ वजूद रहा है। राज्य सभा में कांग्रेस दल के नेता गुलाम नबी आज़ाद दो बार श्रीनगर गए लेकिन उन्हें हवाई अड्डे से ही लौटा दिया गया। बाद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दलों के नेताओं के एक दल को भी श्रीनगर के हवाई अड्डे से बाहर नहीं निकलने दिया गया। कश्मीर में सचमुच सब कुछ शांत और माहौल ठीक है तो ऐसी रोक क्यों? यह एक बड़ा सवाल है।

जम्मू के उन हिस्सों में मोदी सरकार के फैसले से खुशी है जहाँ हिन्दू आबादी है। लेकिन मुस्लिम आबादी वाले डोडा, किश्तवार, राजौरी और पुंछ की मुस्लिम आबादी में कश्मीर जैसी ही खामोशी है। कश्मीर में बहुत से लोग यह मानते हैं कि धारा 370 को खत्म करना आरएसएस-मोदी-शाह की भाजपा का ‘हिंदू राष्ट्र’ की तरफ बढऩे की तरफ पहला कदम है।

पूर्व उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह, जो जम्मू रीजन से हैं, से इस संवाददाता ने बात की। निर्मल ने कहा – ‘जम्मू कश्मीर को सही मायने में अब आज़ादी मिली है। इस फैसले से लोगों में खुशी है कहीं कोर्ई तनाव वाली हालत नहीं है। कांग्रेस नेता आज़ाद (गुलाम  नबी) कश्मीर जाकर लोगों को भडक़ाना चाहते थे इसलिए उन्हें रोका गया। अब आतंकवाद भी खत्म होगा और लोगों को न्याय भी मिलेगा।’

ईस्ट पाकिस्तान के रिफ्यूजी संगठन एसओएस के चेयरमैन राजीव चुन्नी ने इस संवाददाता को बताया – ‘हमें इस फैसले से 70 साल बाद देश का नागरिक होने और वोट का अधिकार मिलेगा। मोदी सरकार का यह फैसला हमारे लिए नए सूरज का उदय है।’

लेकिन इन सब अच्छी बातों के बावजूद कश्मीर में खामोशी है। कश्मीर की इस चुप्पी को अभी समझना मुश्किल है। हालात देखकर लगता है कि अभी वहां सुरक्षा के यह बंदोबस्त लम्बे समय तक चलेंगे। घाटी में इंटरनेट बार-बार बंद होता है। ज्यादातर कश्मीरियों ने खुद को घरों में बंद कर रखा है। ज़रूरत का सामान लेने ही बाहर निकलते हैं। जिस तरह का सुरक्षा तामझाम इस समय कश्मीर में है उसे देखकर नहीं लगता कि वहां जल्दी ही इसे हटाया जाएगा। अजित डोवल ने भले शोपियां जैसे सीमा क्षेत्र और  ‘‘आतंकवाद के गेटवे’’ में कुछ कश्मीरियों के साथ खाना खाकर दुनिया को ‘घाटी में सब कुछ अच्छा’ होने का सन्देश देने की कोशिश की, डोवल भी जानते हैं कि उनके सामने अभी बड़ी चुनौतियां हैं।

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद घाटी की स्थिति का जायजा लेने के लिए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ विपक्षी दलों के प्रतिनिधिमंडल के साथ सितम्बर में गए लेकिन श्रीनगर एयरपोर्ट पर ही उन्हें रोक लिया गया था। बाद में राहुल गांधी ने श्रीनगर एयरपोर्ट पर रोके जाने का एक वीडियो ट्वीट किया जिसमें वे (राहुल गांधी) कह रहे हैं कि मुझे राज्यपाल ने आमंत्रित किया था। अब मैं आया हूं तो बाहर जाने की इजाजत नहीं दी गई और मुझे रोका जा रहा है। राहुल गांधी ने कहा कि मीडियाकर्मियों के साथ बदसलूकी की गई और मीडिया को गुमराह किया गया।

राहुल गांधी का कहना है – ‘सरकार कह रही है कि प्रदेश में सब कुछ ठीक है फिर नेताओं को वहां जाने और आम जनता से मिलने की इजाजत क्यों नहीं दी जा रही।  इन सब बातों से साफ है कि जम्मू-कश्मीर में स्थिति अभी सामान्य नहीं है।’

प्रतिनिधिमंडल में राहुल गांधी के अलावा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के नेता डी राजा, माक्र्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता सीताराम येचुरी, कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा और केसी वेणुगोपाल, लोके क्रांति जनता दल (लोजद) प्रमुख शरद यादव, तृणमूल कांग्रेस नेता दिनेश त्रिवेदी, द्रमुक के त्रिचि शिवा, राकांपा नेता मजीद मेमन, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता मनोज झा और जनता दल (सेकुलर) के डीण्कुपेंद्रा रेड्डी शामिल थे।

उधर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद माकपा महासचिव सीताराम येचुरी पार्टी सहयोगी मोहम्मद यूसुफ तारीगामी से मिलने कश्मीर गए। एक दिन बाद दिल्ली लौट आये। सर्वोच्च अदालत का उनके लिए निर्देश था कि अपने साथी नेता से मिलने के अलावा और कोर्ई गतिविधि की उन्हें इजाजत नहीं है। अब तारीगामी का इलाज चल रहा है।

जम्मू के मशहूर अखबार ‘कश्मीर टाइम्स’ की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन ने  पांबदियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर की हुई है। यह मामला अभी विचाराधीन है। याचिका में भसीन ने मोबाइल इंटरनेट और लैंडलाइन सेवाओं समेत संचार के सभी माध्यमों को राज्य में बहाल करने के वास्ते निर्देश देने की मांग की थी  ताकि मीडिया के लिए काम करने का सही वातावरण बन सके।

अक्तूबर के पहले हफ्ते नेशनल कांफ््रेंस का एक प्रतिनिधिमंडल श्रीनगर में नजरबन्द अपने नेता फारूख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला से मिला है हालांकि यह नेता श्रीनगर में आम लोगों से नहीं मिल पाए। बीच-बीच में यह अपुष्ट रिपोट्र्स भी आई हैं कि इन दो महीनों में घाटी में स्थानीय लोगों और सुरक्षा बलों के बीच पथरबाजी की कमसे काम 300 घटनाएं हुई हैं। विदेशी मीडिया में भी कश्मीर को लेकर जो रिपोट्र्स आईं हैं वो बहुत सुकून देने वाली नहीं लगती भले केंद्र सरकार का दावा है की कुछ जगहों को छोडक़र बाकी जगह स्थिति सामान्य हो चुकी है।

कश्मीर पर आईएएस का इस्तीफा

जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर एक आईएएस अधिकारी ने नौकरी ही छोड़ दी। जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर अपने बोलने की आजादी का हवाला देकर इस्तीफा देने वाले आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने कहा कि घाटी में लगी पाबंदियां वहां के लोगों को देश से और दूर करेंगी। उन्होंने कहा – ‘कश्मीर के लोगों को अनुच्छेद 370 को लेकर मनाया जाना चाहिये, लेकिन उन्हें विचार प्रकट करने का मौका न दिए जाने से ऐसा नहीं हो पा रहा।’ गोपीनाथन 2012 के बैच के आईएएस अधिकारी हैं। इस्तीफा देने से पहले वे संघ शासित प्रदेशों दमन और दीव और दादरा, नागर हवेली के ऊर्जा विभाग में सचिव रहे। कन्नन का कहना है कि उन्होंने कश्मीर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन के खिलाफ अपने विचार प्रकट करने के लिए नौकरी छोड़ी है। कन्नन ने कहा- ‘मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहता हूं। लेकिन सेवा में रहते मेरे लिए ऐसा करना नामुमकिन था। इसमें कई नियम-कायदे होते हैं।’

छोड़े जायेंगे नेता!

क्या मोदी सरकार जम्मू कश्मीर में मुख्यधारा की पार्टियों के नेताओं को धीरे-धीरे छोडऩे की तैयारी में है? राजधानी दिल्ली में इसकी बहुत ज्यादा चर्चा है। गृह मंत्रालय कश्मीर से मिल रहे हरेक इनपुट पर गहरी नजर रखे हैं। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक अभी तक की रिपोट्र्स तो यही जाहिर करती हैं कि स्थिति उतनी सामान्य नहीं है। लोग खामोश हैं और इस खामोशी के पीछे उनकी सोच क्या है, अभी कहना मुश्किल है। कश्मीर को बहुत ज्यादा दिन तक बंद रखना भी मुमकिन नहीं है। वहां अभी भी करीब पांच से छह लाख सैनिक हैं। आने वाले दिनों में देखना होगा, स्थिति क्या करवट लेती है। वैसे सरकार मुख्या धरा के दलों के नेताओं $फारू$ख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती से बातचीत कर लोगों से शांति की अपील कर सकती है। हालांकि यह देखने वाली बात होगी कि क्या यह नेता इसके लिए तैयार होते हैं !

संवैधानिक बेंच कर रही धारा 370 हटाए जाने से जुड़ी सभी याचिकाओं पर सुनवाई

धारा 370 के दो क्लॉज हटाकर जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के फैसले के खिलाफ मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अक्तूबर के पहले हफ्ते में पांच जजों की संवैधानिक बेंच अनुच्छेद 370 के हटाए जाने से जुड़ी सभी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त करने के खिलाफ और इससे संबंधित दाखिल तमाम याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कर कई बड़े फैसले दिए। कोर्ट ने केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी किया और कहा है कि पांच जजों की संवैधानिक पीठ अक्तूबर के पहले सप्ताह में इस मामले से संंबंधित सभी याचिकाओं की सुनवाई करेगी।

सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ केंद्र की उस दलील से सहमत नहीं दिखी कि अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल के अदालत में मौजूद होने के कारण नोटिस जारी करने की जरूरत नहीं है। पीठ ने नोटिस को लेकर सीमा पार प्रतिक्रिया होने की दलील को ठुकराते हुए कहा कि हम इस मामले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजते हैं। इस पीठ में न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एसए नजीर भी शामिल हैं।

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इस अदालत द्वारा कही हर बात को संयुक्त राष्ट्र के समक्ष पेश किया जाता है। दोनों पक्ष के वकीलों के वाद-विवाद में उलझने पर पीठ ने कहा कि हमें पता है कि क्या करना है, हमने आदेश पारित कर दिया है और हम इसे बदलने नहीं वाले।

मोदी सरकार के साथ मायावती 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष के नेता श्रीनगर जा रहे थे बसपा रमुख मायावती मोदी सरकार का अपरोक्ष समर्थन करते हुए कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेताओं के जम्मू-कश्मीर जाने पर सवाल उठाया? बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 हटाए जाने के केंद्र सरकार के फैसले का समर्थन करती है।  कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए मायावती ने कहा – ‘जैसा कि विदित है कि बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर हमेशा ही देश की समानता, एकता और अखंडता के पक्षधर रहे हैं, इसलिए वे जम्मू-कश्मीर राज्य में अलग से धारा 370 का प्रावधान करने के कतई भी पक्ष में नहीं थे। इसी खास वजह से बीएसपी ने संसद में इस धारा को हटाए जाने का समर्थन किया। देश में संविधान लागू होने के लगभग 69 वर्षों के उपरान्त धारा 370 की समाप्ति के बाद अब वहां (जम्मू-कश्मीर) हालात सामान्य होने में थोड़ा समय अवश्य ही लगेगा। इसका थोड़ा इंतजार किया जाए तो बेहतर हैए जिसको माननीय कोर्ट ने भी माना है।’

370 के पक्षधरों को जूते मारेंगे लोग : राज्यपाल मालिक

जम्मू कश्मीर में धरा 370 हटाए जाने के बाद सूबे के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के कई बयान विवादित रहे हैं। यही नहीं वे राजनीतिक टिप्णियां भी खुल कर करते रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी के नेतृत्व में विपक्षी नेताओं के दल को श्रीनगर एयरपोर्ट पर ही रोक लिए जाने के बाद राहुल गांधी पर दिया मालिक का बयान गौर करने लायक है। मलिक ने कहा – आज तक उन्होंने (राहुल गांधी) कश्मीर पर अपना स्टैंड क्लीयर नहीं किया है। चुनाव के वक्त उनके विरोधियों को कुछ कहने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। वो बस ये कह देंगे कि ये 370 के हिमायती हैं, तो लोग उन्हें जूतों से मारेंगे।’

मलिक ने कहा- राहुल गांधी को उस दिन संसद में बोलना था, जब उनका नेता (अधीर रंजन चौधरी) कश्मीर के सवाल को यूएन से जोड़ रहा था। अगर वे लीडर थे तो उसे डांटते और बिठाकर कहते कि कश्मीर पर हमारा यह स्टैंड है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार आनेवाले समय में जम्मू-कश्मीर के लिए एक बड़ी घोषणा करने वाली है। उन्होंने कहा कि हिरासत में रखे गए नेताओं को लेकर चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। यह उनके राजनीतिक करियर में मदद करेगा।

राहुल गांधी को लेकर मलिक ने कहा – ‘मैं कुछ नहीं बोलना चाहता क्योंकि वो देश के प्रतिष्ठित परिवार का लडक़ा है। लेकिन वो एक पॉलिटिकल जुवेनाइल है। उसी का नतीजा है कि यूएन में पाक की चि_ी में उसके बयान का जिक्र है।’ वैसे यहाँ यह जिक्र करना भी सही होगा कि पाक की इसी चि_ी में हरियाणा के मुख्यमंत्री और भाजपा/आरएसएस नेता मनोहर लाल खट्टर का ‘कश्मीर से बहुएं लाने वाला’ बयान भी नत्थी है।

राज्यपाल मालिक का एक और बयान (कश्मीर में हिरासत में रखे गए नेताओं पर) – ‘मैं 30 साल जेल में रहा हूं। जो डिटेंशन में हैं वो कुछ दिन बाद निकल कर कहेंगे कि मैं छह महीने जेल में रहा। चुनाव में यह कह कर खड़े होंगे। जो जेल में रहेंगे वो बाद में बड़े नेता बन जाएंगे।’

अयोध्या फैसले पर सबकी नज़र

अयोध्या पर आखिर फैसला आने वाला है। 16 अक्टूबर को इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गयी और इसका फैसला कोर्ट ने सुरक्षित रख लिया है। सम्भावना है कि अगले 23 दिन के भीतर (नवम्बर मध्य तक) यह फैसला आ जाएगा।

करीब 21 साल के बाद देश के इस सबसे बड़े मुद्दे पर फैसला आने के बाद क्या राजनीतिक-धार्मिक माहौल बनेगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि फैसला क्या आता है। देश की राजनीति के लिहाज से भी यह मसला बहुत अहम है और भाजपा तो बिना इस मामले में एक पक्षकार होते हुए भी इसे लम्बे समय से भुनाती रही है। हालांकि देश के अधिकतर राजनीतिक दल यह कहते रहे हैं कि कोर्ट से जो भी फैसला आएगा, वो सभी को मंजूर होगा।

अदालत ने कहा कि अगले तीन दिन तक इस मामले में दस्तावेज जमा कराए जा सकते हैं। अदालत में 16 अक्टूबर को राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद मामले की लगतार 40वें दिन सुनवाई हुई। पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई की। सुनवाई शुरू होते ही मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई ने साफ कर दिया कि शाम पांच बजे मामले में अंतिम सुनवाई होगी। हालांकि सुनवाई एक घंटे पहले चार बजे ही खत्म हो गई।

मुस्लिम और हिंदू पक्ष ने अपनी-अपनी दलीलें अदालत के सामने रखीं। दोनों पक्षों के वकीलों के बीच तेज तरार बहस देखने को मिली। एक मौक़ा ऐसी भी आया जब मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने हिंदू महासभा के वकील की तरफ से पेश किए गए नक्शे को फाड़ दिया।

सुनवाई के दौरान सभी पक्षकारों ने अपनी ओर से लिखित बयान अदालत में पेश किए। सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई से पहले सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि इस मामले में मध्यस्थता का कोई सवाल नहीं है और न ही उन्होंने ऐसा कोई प्रस्ताव रखा है। मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में जो भी फैसला सुनाएगा वह मानने के लिए तैयार हैं।

निर्मोही अखाड़ा की तरफ से सुशील जैन ने कहा कि हमारा दावा मंदिर की भूमि, स्थाई संपत्ति पर मालिकाना अधिकार को अधिकार है। मुस्लिम पक्षकारों के इस दावे में भी दम नहीं है कि 22/23 दिसंबर 1949 की रात बैरागी साधु जबरन इमारत में घुसकर देवता को रख गए थे। उन्होंने कहा कि ये मुमकिन ही नहीं कि मुसलमानों के रहते इतनी आसानी से वो घुस गए जबकि 23 दिसंबर को शुक्रवार था। इसी के साथ निर्मोही अखाड़ा की दलील पूरी हुई।

फिर शिया वक्फ बोर्ड की ओर से दलील शुरू हुई। शिया बोर्ड की ओर से कहा गया कि हमारा विवाद शिया बनाम सुन्नी बोर्ड को लेकर है, इस पर सुन्नियों का दावा नहीं बनता है। शिया वक्फ बोर्ड की ओर से एमसी धींगड़ा ने कहा कि वहां पर शिया मस्जिद थी, 1966 में आए फैसले से हमें बेदखल किया गया था। साल 1946 में दो जजमेंट आए थे एक हमारे पक्ष में और दूसरा सुन्नी के पक्ष में। बीस साल बाद 1966 में कोर्ट ने हमारा दावा खारिज कर दिया।

निर्मोही अखाड़ा की ओर से सुशील जैन ने कहा कि उन्होंने 1961 का एक नक्शा दिखाया, जो गलत था। उन्होंने बिना किसी सबूत के सूट फाइल कर दिया। वहां की इमारत हमेशा से ही मंदिर थी। ऐसा कोई सबूत नहीं है कि मस्जिद बाबर ने बनाई थी।

निर्मोही अखाड़ा ने रामजन्मभूमि न्यास की दलील का विरोध किया और कहा कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा कि बाबर ने मंदिर गिराया और मस्जिद बनाई। हमने हमेशा कहा है कि वो मंदिर ही था। हमने कभी मुस्लिमों को जमीन का हक ही नहीं दिया। इसपर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि जो सूट दायर किया गया है वह टाइटल का है, इसमें एक्सेस की कोई बात नहीं है।

ऑल इंडिया हिन्दू महासभा की ओर से विकास सिंह ने एडिशनल डॉक्यूमेंट के तौर पर पूर्व आईपीएस किशोर कुणाल की किताब बेंच को दी गई। इस पर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने ज़ोरदार आपत्ति जताई। राजीव धवन ने कहा कि इसे ऑन रेकॉर्ड न लिया जाए, ये बिल्कुल नई चीज है। कोर्ट इसे वापस कर दें, इसपर अदालत की ओर से कहा गया कि ये किताब वो बाद में पढ़ेंगे।

पंजाबी सिनेमा में नया एहसास

पंजाबी सिनेमा के इतिहास में 50 करोड़ के आँकड़े को छूने वाली, आज के मल्टीप्लेक्स के ज़माने में पचास दिन पूरे करने व हर वर्ग के दर्शक द्वारा सराही जाने वाली वाली पहली फिल्म बन चुकी है पंजाबी फिल्म ‘अरदास करां’। फिल्म का निर्माण हम्बल मोशन पिक्चर्स ने किया है।  गिप्पी ग्रेवाल ने इसका निर्देशन किया है। फिल्म के लेखक हैं राणा रणबीर, और सिनमटोग्रफऱ हैं बलजीत देओ।

कहानी तीन बुज़ुर्ग दोस्तों (सिख, हिंदू व मुस्लिम) के गिर्द घूमती है जिनके किरदार निभाए हैं मल्कीत रौनी, सरदार सोही व राणा जंग बहादुर ने। जि़ंदगी की समस्याओं से दुखी हो वह सिख दोस्त आत्महत्या करना चाहता है। लेकिन एक नौजवान (गिप्पी ग्रेवाल) के समझाने पर तीनों दोस्त एक लम्बे सफर पर घूमने जाने के लिए मान जाते हैं। गाड़ी का ड्राइवर जादू (मैजिक सिंह) जो खुद कैन्सर का मरीज़ है। जिसकी अपनी जि़ंदगी कुछ ही दिनों की है, लेकिन वह जि़ंदगी को जी भर के जीना चाहता है, उन्हें जि़ंदगी के अर्थ समझाता है। इस किरदार को बहुत ही खूबसूरती से निभाया है कलाकार गुरप्रीत घुग्गी ने। आखिर में उसकी मौत हो जाती है लेकिन वो गुरु ग्रंथ साहिब से लिए गए शब्दों और वाक्यों का इस्तेमाल करके सफलतापूर्वक सभी को जीने और अपने परिवारों को समझने की कला सीखा जाता है।

फिल्म के संवाद बहुत ही बढिय़ा व भावपूर्ण हैं। यही वजह है कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो कर फिल्म देखते हैं ताकि कुछ सुनने से रह न जाए।

गिप्पी ग्रेवाल ने निर्देशक होते हुए भी अपनी हीरो वाली इमेज को दिखाने की बिलकुल कोशिश नहीं की और कहानी व दूसरे किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है। बलजीत देयो ने कनाडा के खूबसूरत स्थानों का बहुत निपुणता से छायांकन किया है। सभी कलाकारों ने अपने अपने किरदारों से न्याय किया है। संगीत मधुर है और गाने माहौल के मुताबिक डाले गए हैं। बड़ी बात ये कि यह फिल्म पंजाबी सिनेमा में एक नया विषय ले कर आती है। पुराने पंजाबी गाँव की कहानी, विदेश जाने के लिए जद्दोजहद और वहाँ जा कर पंजाब को याद करना, कॉलेज में पढ़ रहे लडक़े लड़कियों की प्रेम कहानी, एक पुरानी घटना को ले कर या एक लडक़ी के लिए झगड़े वग़ैरा वग़ैरा से दूर यह फिल्म जिंदगी की बात करती है। इंसानी रिश्तों की बात करती है। भावनाओं की बात करती है। छोटी-छोटी बातों को दिल पर ले कर जिंदगी को नरक बनाने से बचने की बात करती है। जिससे दर्शक को नयापन व ताज़गी का एहसास होता है।

बाकी हर दर्शक का नज़रिया अलग होना स्वाभाविक है। कुछ लोगों को बाकी सब अच्छा लगा पर किरदारों पर बारीकी से काम नहीं किया गया, इस बात की निराशा है। सरदार बहादुर माने जाते हैं, सरदार के किरदार को ऐसा कौन सा बड़ा दु:ख था कि वो खुदकुशी के लिए ही आमदा रहता है? फिल्म में जो समस्याएं जो दिखायी गयी हैं वो तो आम मसले हैं जो तकरीबन हर घर में होती हैं। इसके लिए कौन जान देने जाता है?

कार ड्राइवर (राणा रणबीर) जिस से हादसा हुआ दिखाया गया है, का किरदार फिल्म को सिर्फ बेवजह लम्बा करता है। पता नहीं किस मजबूरी में इसे फिल्म में डाला गया है। मैजिक सिंह की मौत के बाद फिल्म में पेड़ लगाने, अंग दान करने वग़ैरा का उपदेश देने की कोशिश खटकती है और फिल्म के असर को कम करती है। अंतिम सीन को इतना लम्बा खींचना ज़रूरी नहीं था। छोटे बच्चे झण्डे का अपने दादा के साथ रिश्ता बहुत भावुक व स्वाभाविक है और अच्छा लगता है। बच्चे का अभिनय भी क़ाबिले तारीफ़  व क़ाबिले जिक्र है।

कुल मिला के बहुत देर बाद एक अच्छी फिल्म देखने को मिली है। नए सबजेक्ट पर इतना बड़ा खतरा मोल लेने व पंजाबी सिनेमा को एक बेहतरीन फिल्म देने के लिए निर्माता व सारी टीम को बधाई।

‘पकौड़ा उद्योग’ पर पुलिस की मार

हम चाहते नहीं थे पर बदकिस्मती से बीए पास हो गई। ये अच्छा हुआ एमए नहीं की, नहीं तो और मुसीबत हो जाती। हालांकि बीए न हो पाए इसके लिए हमने कई प्रयास किये, कलासें बंक की लेक्चर शार्ट किए, एक-एक कक्षा में कई बार फेल हुए, पर जब किस्मत साथ न दे तो कोई क्या कर सकता है। भाग्य के आगे किसका बस? आ गए बेरोजग़ारों की लाइन में। पूरी दुनिया की नजऱ हम पर ऐसे पड़ती थी जैसे बेरोजग़ारी बढ़ाने के जिम्मेदार केवल हम ही हैं। उन दिनों सरकारें भी दूरदर्शी नहीं थी। ‘पकौड़े तलने’, ‘बूट पालिश करने’ या ‘रेहड़ी लगाने’ जैसे महान धंधों पर हमारा ध्यान ही नहीं गया। पर कहते हैं, ‘देर आए दुरूस्त’ आए। आधी उम्र निकलने के बाद ध्यान आया कि, अब क्या बुरा है, बेसन, प्याज, घी, वगैरा ही तो चाहिए। इसके अलावा कढ़ाही, खोंचा, झरना, मिट्टी का तेल, स्टोव, नमक, मिर्च ही तो दरकरार थे।

हमने किसी तरह इन सब चीजों का बंदोबस्त कर लिया। सडक़ के किनारे अपनी दुकान सजा कर अभी स्टोव में हवा भरी ही थी कि देश की कत्र्तव्यप्रायण पुलिस ने हमें उसे घेरा जैसे किसी आतंकवादी पर धावा बोला गया हो। ओए ये क्या कर रहा है सरकारी ज़मीन पर? हवलदार ने यह पहला सवाल दागा। ‘बस साहिब पकौड़े तलने की तैयारी कर रहा हूँ। हमने जवाब दिया। ‘तेरे पास डिग्री है? अब पकौड़े तलने का यह उद्योग केवल बीए पास ही लगा सकते हैं, उसका दूसरा सवाल था। ‘हां हजूर बिल्कुल है, बीए पास हँू। हमारा यह जवाब सुन कर हवालदार थोड़ा गंभीर हुआ, ‘ठीक है इस ‘इंडस्ट्री’ को लगाने का लाइसेंस और प्लाट की अलॉटमैंट का लेटर दिखा, साथ फायर बिग्रेड, प्लयूशन विभाग, बिजली विभाग, जल निगम की एनओसी भी पेश कर’। हमने कहा जनाब मैं तो बिजली का इस्तेमाल ही नहीं करूंगा, पानी की दो बल्टियां भर के मैंने साथ रखी हैं। आग लगने जैसे कोई बात नहीं है, यहां कोई इमारत थोड़ी है।’ ओए तू इतनी बड़ी इंडस्ट्री लगा रहा है, ये सभी लाइसेंस और एनओसी तो लेने ही पड़ेंगे। हवलदार पर हमारी बात का कोई असर नहीं था। इतने में एक सिपाही बीच में कूदा,‘‘जनाब इसका जीएसटी नंबर कहां है? इसके पास पकौड़े तलने की डिग्री या टे्रनिंग नहीं है’। हमने हैरानी से पूछा,‘‘हजूर इसके लिए जीएसटी नंबर की क्या ज़रूरत है? मैंने कोई बिल थोड़ा काटना है। और पकौड़े तलने की भी कोई टे्रनिंग होती है। हमने तो कभी नहीं सुनी। तूने नहीं सुनी तो क्या टे्रनिंग नहीं होती? चल उठा अपना सामान और रफूचक्कर हो जा। नही ंतो देशद्रोह के मामले में अंदर कर दूंगा’’ हवलदार दहाड़ा। इससे पहले हम कुछ बोलते एक और सिपाही बोला,‘‘जनाब मुझे तो ये कोई भू-माफिया का बदमाश लगता है। इसे तो हिरासत में लेकर इनकी पूरी योजना जाननी होगी’’। नहीं माई-बाप मैं किसी माफिया वाफिया को नहीं जानता, मैं तो बेरोजग़ार हूं, अपना पेट पालने के लिए यह धंधा चलाना चाहता हूं।’’ जनाब आज तक जितने आतंकवादी पकड़े गए हैं वे सभी बेरोजग़ार ही थे। इन बेरोजग़ारों को आतंकी आसानी से पटा लेते हैं। उसी सिपाही ने कहा। हमने कहा, ‘‘मालिक हम कोई आतंकी नहीं हैं।’’ ‘‘यह तो अब छानबीन के बाद ही पता चलेगा’’ हवलदार ने कहा। तो जनाब इसे उठा ले चलते हैं। आतंकवाद की कोई धारा लगा देते हैं, जमानत भी नहीं होगी।’’ सिपाही ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा। ‘‘अरे छोड़ आतंकवाद की धारा को, आजकल तो बड़े-बड़े नेताओं को छोटे-छोटे आरोपों में ज़मानत नहीं मिलती तो इसे कौन पूछेगा’’ हवलदार ने मुस्कुराते हुए कहा। चल डाल इसे गाड़ी में। वहीं बनाएगा अब यह पकौडे।

दूसरे दिन गोदी अखबारों में खबर थी- ‘‘पुलिस के हत्थे चढ़ा एक खूंखार आतंकवादी’’। दूसरे ने लिखा-‘‘ सरकारी ज़मीन पर कब्जा करने आया भू-माफिया का एजेंट हिरासत में’’। साथ ही सब हैडिंग था-‘‘जान हथेली पर रख आतंकी को गिरतार करने वाले पुलिस कर्मी गणतंत्र दिवस पर होंगे सम्मानित। हमें पहले हवालात और फिर जेल भेज दिया गया। पर हम बहुत प्रसन्न थे। कम से कम वहां रोटी-रोजी का मसला तो नहीं था। दो वक्त पेट भर जाता था और कई साधु संतों का सानिध्य भी मिल रहा था। शायद बाहर आने तक ज्ञान में कुछ बढ़ोतरी हो जाए।

घाटी में जाकिर मूसा ग्रुप के तीन आतंकी ढेर

जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों ने तीन आतंकियों को ढेर कर दिया है। यह घटना कश्मीर संभाग के अवंतीपोरा की है। दावा किया गया है कि जो तीन आतंकी मारे गए हैं वे कुख्यात जाकिर मूसा ग्रुप के थे। उनकी पहचान ग्रुप के सरगना अब्दुल हमीद ललहारी, नवीद टाक और जुनैद बट्ट के रूप में हुई है। उधर जम्मू संभाग के नौशेरा में एक जेसीओ आतंकियों से मुठभेड़ में शहीद हो गए हैं।

रिपोर्ट्स के मुताबिक मंगलवार देर रात पुलवामा ज़िले के अवंतीपोरा में सुरक्षाबलों के विशेष अभियान दल जिसमें सेना, सीआरपीएफ और पुलिस शामिल है, ने एक मुठभेड़ में तीन आतंकियों को ढेर कर दिया। मारे गए आतंकियों के पास से हथियार भी बरामद हुए हैं। जानकारी मिलने के बाद सेना ने दोनों इलाके की घेराबंदी कर तलाशी अभियान शुरू किया जो बाद में मुठभेड़ में बदल गया।

सेना ने जानकारों के मुताबिक तीन आतंकियों की मौत के बाद घाटी में जाकिर मूसा ग्रुप का खात्‍मा हो गया है। अब्दुल हमीद ललहारी को जाकिर मूसा ग्रुप का अंतिम सरगना बताया गया है। याद रहे जाकिर मूसा अंसार गजवात-उल-हिंद आतंकी संगठन का मुखिया था और कहा जाता है कि उसकी मौत के बाद ही अब्दुल ललहारी ने कमान संभाली थी।

सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ स्थल से भारी मात्रा में हथियार और गोलाबारूद बरामद किया है। ये आतंकी दक्षिण कश्मीर में सुरक्षाबलों ने ग्रामीणों और पंच-सरपंचों को डरा-धमका रहे थे। ये आतंकी अगस्त में त्राल के ऊपरी क्षेत्र में गुज्जर समुदाय के दो लोगों को अगवा करके मौत के घाट उतारने में भी शामिल थे।

रिपोर्ट्स के मुताबिक मंगलवार देर रात पुलवामा ज़िले के अवंतीपोरा में सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में तीन आतंकियों को ढेर कर दिया। मारे गए आतंकियों के पास से हथियार भी बरामद हुए हैं। जानकारी मिलने के बाद सेना ने दोनों इलाके की घेराबंदी कर तलाशी अभियान शुरू किया।

जानकारी के मुताबिक पुलवामा के राजपुरा में दो आतंकियों के छिपे होने की जानकारी सुरक्षा बलों को मिली थी। इसके बाद उन्होंने इलाके में सर्च ऑपरेशन चलाया। इस दौरान भारतीय सुरक्षाबल को घेराबंदी करते हुए देख आतंकियों ने  फायरिंग शुरू कर दी।

इस पर सेना ने जवाबी कार्रवाई की जिसमें तीनों आतंकी मारे गए। इससे पहले अनंतनाग जिले में पिछले बुधवार को सुरक्षाबलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ में तीन आतंकवादी मारे गए थे।

उधर जम्मू के नौशेरा में आतंकियों ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) के करीब ५०० मीटर भीतर आतंकियों से मुठभेड़ में एक जूनियर कमीशंड अफसर  (जेसीओ) शहीद हो गए।

महाराष्ट्र चुनाव के 12 हॉट सीट

महाराष्ट्र के 288 विधानसभा सीटों के नतीजे 24 अक्टूबर को मतगणना के साथ आएंगे। महाराष्ट्र में लड़ाई मुख्य तौर पर बीजेपी-शिवसेना महायुति और कांग्रेस-एनसीपी महाआघाड़ी के बीच है।एक नजर उन एक दर्जन कैंडिडेट्स पर जो महाराष्ट्र के हॉट सीटों के दावेदार हैं।

देवेंद्र फडणवीस (बीजेपी) – नागपुर दक्षिण-पश्चिम

इस दफा महाराष्ट्र के मुखिया देवेंद्र फडणवीस का मुकाबला कांग्रेस के आशीष देशमुख से है। फडणवीस पिछले दो चुनावों से इस सीट को जीतते रहे हैं और हैट्रिक का दावा कर रहे हैं। देशमुख बीजेपी के पूर्व विधायक हैं और पृथक विदर्भ राज्य की मांग करते रहे हैं। ‘ग्राम विकास का पासवर्ड’ नामक किताब लिख चुके देशमुख एमबीए फाइनेंस, पी एच डी हैं।

आदित्य ठाकरे (शिवसेना) – वरली

यह पहली दफा है जब ठाकरे परिवार का कोई सदस्य चुनावी लड़ाई में शामिल हुआ है। युवा सेना के चीफ आदित्य ठाकरे, ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। 29 साल के आदित्य शिव सेना की छवि बदलने के पक्षधर हैं और युवाओं में काफी लोकप्रिय भी। सिनेस्टार दिशा पटानी से अपनी फ्रेंडशिप को लेकर भी वह चर्चा में रहते हैं।

अजीत पवार (एनसीपी)- बारामती

महाराष्ट्र की राजनीति के क्षत्रप शरद पवार के भतीजे अजीत पवार अपने गढ़ बारामती से चुनावी समर में हैं। कभी महाराष्ट्र के चीफ मिनिस्टरी के प्रबल दावेदार माने जाने वाले अजित पवार इस वक्त ईडी और अन्य मामलों में फंसे हुए हैं।

चंद्रकांत पाटिल (बीजेपी)- कोथरूड

महाराष्ट्र की राजनीति में दबदबा रखने वाले मराठों का एक चेहरा है चंद्रकांत पाटील और राज्य के मराठों को खुश रखने की कवायद भी। पाटिल महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष हैं। राज्य सरकार के कई मामलों को सुलझाने में माहिर माने जाते हैं।

पृथ्वीराज चव्हाण (कांग्रेस) सतारा कराड दक्षिण

अपनी साफ-सुथरी छवि के चलते महाराष्ट्र के मराठा चेहरा पृथ्वीराज चव्हाण 2001 में महाराष्ट्र के चीफ मिनिस्टर बने। राजनीतिक विरासत रखने वाले चव्हाण, गांधी परिवार के काफी करीबी माने जाते हैं ।

धनंजय मुंडे( एनसीपी) ,पंकजा मुंडे (बीजेपी)
परली

बीजेपी के दिवंगत कद्दावर नेता गोपीनाथ मुंडे के भतीजे धनंजय मुंडे जहां एक ओर एनसीपी की ओर से परली विधानसभा सीट पर नजर लगाये हैं वहीं गोपीनाथ मुंडे की पुत्री पंकजा मुंडे भी बीजेपी की ओर से इस सीट को अपने हाथ से नहीं जाने देने की जिद्द में हैं। परली विधानसभा सीट में दोनों चचेरे भाई -बहन आमने-सामने हैं।

एकनाथ शिंदे (शिवसेना) – कोपरी-पाचपखापड़ी

एक सीधे-साधे ऑटो ड्राइवर से कैबिनेट मिनिस्टर तक का सफर तय करने वाले एकनाथ शिंदे 2004 2009 और 2014 में जीत का हैट्रिक बनाने वाले शिंदे की किस्मत का फैसला एक बार फिर 24 अक्टूबर को होगा ।

अशोक चव्हाण (कांग्रेस) – भोकर

महाराष्ट्र के चीफ मिनिस्टर रह चुके अशोक चौहान को राजनीति विरासत में मिली है। चर्चित आदर्श घोटाले के चलते उन्हें नुकसान झेलना पड़ा था एक बार फिर वह मैदान में हैं।अशोक चव्हाण की पत्नी अमिता चव्हाण यहां से विधायक हैं। यहां से आज तक बीजेपी कभी चुनाव नहीं जीती है जबकि कांग्रेस 8 बार जीत चुकी है।

नवाब मलिक (एनसीपी) – अणुशक्तिनगर

समाजवादी पार्टी से जुड़ कर अपना राजनीतिक कैरियर शुरू करने वाले नवाब मलिक अब एनसीपी के वरिष्ठ नेता हैं और प्रवक्ता भी। खासकर उत्तर भारतीयों में उनकी अच्छी पकड़ है।

प्रदीप शर्मा( शिवसेना)- नालासोपारा

एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के नाम से फेमस मुंबई पुलिस के रिटायर्ड अफसर प्रदीप शर्मा ने नालासोपारा के विधायक क्षितिज ठाकुर को चुनौती दी है। क्षितिज बहुजन विकास आघाडी चीफ हितेंद्र ठाकुर के बेटे हैं। हितेंद्र ठाकुर बाहुबली भाई ठाकुर के भाई हैंं। एक तरह से प्रदीप शर्मा ने भाई ठाकुर के साम्राज्य को चुनौती दी है।भाई ठाकुर के दाऊद के साथ गहरे संबंध रहे हैं।

नितेश राणे (बीजेपी) – कणकवली

# नितेश राणे महाराष्ट्र के पूर्व चीफ मिनिस्टर नारायण राणे के छोटे बेटे हैं।सीनियर राणे ने शिवसेना से बगावतकर पहले कॉन्ग्रेस और अभी-अभी बीजेपी ज्वाइन की है।नितेश आज बीजेपी कंडिडेट हैं,पिछली बार कांग्रेसी कंडिडेट के तौर उन्होंने बीजेपी कंडिडेट को हरा दिया था।

वारिस पठान (एआईएमआईएम)- भायखला

अभिनेता एजाज खान ने भायखला सीट से इंडिपेंडेंट कंडिडेट के तौर एआईएमआईएम के एमएलए वारिस पठान को चुनौती दी है। एजाज सोशल मीडिया में अपने बड़बोले पन से चर्चा में रहते हैं। वारिस पठान एक अच्छे प्रवक्ता के रूप में जाने जाते हैं और स्थानीय मुस्लिमों पर उनका बढ़िया प्रभाव है।

शरीफ के दामाद गिरफ्तार

सेना और न्‍यायिक तंत्र के खिलाफ बयानबाजी करने पर पाकिस्‍तान के पूर्व प्रधानमंत्री  नवाज शरीफ के दामाद मोहम्‍मद सफदर को गिरफ्तार कर लिया गया है। उनके खिलाफ इस आरोप पर नया मामला दर्ज किया गया है।

सफ़दर खुद सेना से सेवानिवृत्त कैप्‍टन हैं। गौरतलब है कि पूर्व पीएम नवाज शरीफ ही नहीं उनकी बेटी मरियम नवाज भी जेल में हैं। मरियम सफ़दर की पत्नी हैं।

सफ़दर पर आरोप है कि उन्होंने न सिर्फ सेना बल्कि न्‍यायिक तंत्र के खिलाफ भी विपरीत बयानबाजी की है। इसी आरोप के आधार पर सफ़दर को मंगलवार को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।

सफदर ने इसी महीने १३ तारीख को पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष के अलावा पाक की सर्वोच्च अदालत के जजों के खिलाफ बयानबाजी की थी। लाहौर पुलिस ने देर रात  सफदर को हिरासत में ले लिया और उनके खिलाफ मामला दर्ज किया अहइ।

जानकारों के मुताबिक इस मामले में सफ़दर को उम्रकैद तक की सजा भी हो सकती है। उनकी पत्‍नी मरियम नवाज पहले से ही धनशोधन मामले में राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो की हिरासत में हैं। पूर्व पीएम शरीफ भी धन शोधन मामले में ही जेल में हैं।

नोबेल विजेता बनर्जी की उपलब्धियों से भारत गौरवान्वित : मोदी

नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी मंगलवार को पीएम नरेंद्र मोदी से मिले। खुद पीएम मोदी ने ट्वीट करके इसकी जानकारी दी। बनर्जी ने पीएम से मुलाकात बाद एक दिलचस्प जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पीएम ने उन्हें ”सचेत” किया है कि ”मीडिया आपसे मोदी विरोधी ब्यान दिलवाने की कोशिश करेगा”।

अर्थशास्त्र में हाल में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किये गए भारतीय मूल के बनर्जी  को लेकर मोदी सरकार में मंत्री पीयूष गोयल ने बहुत अटपटी टिप्पणी की थी जिसके बाद उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल होना पड़ा था। लोगों ने उन्हें इसके लिए जमकर कोसा था। हालांकि पीएम मोदी ने आज बनर्जी से मुलाकात के बाद फोटो के साथ जो ट्वीट किया उसमें लिखा – ”नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी के साथ शानदार मुलाकात।”

उधर अभिजीत बनर्जी ने पीएम से मुलाकात के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा – ”प्रधानमंत्री ने मुझे सचेत किया है कि मीडिया आपसे मोदी विरोधी बयान दिलवाने की कोशिश करेगा। वे टीवी देखते हैं और न्यूज पढ़ते हैं। वे आपसब पर नजर रखते हैं इसलिए कृपया यह कोशिश बंद करें।”

पीएम ने ट्‌वीट में कहा कि मानव उत्थान के लिए काम करना उनका (बनर्जी) पैशन है जो स्पष्ट दिखता है। पीएम ने लिखा – ”हमने कई मुद्दों पर स्वस्थ और बेहतरीन बातचीत की। उनकी उपलब्धियों से भारत गौरवान्वित है। हम उन्हें उनके बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनाएं देते हैं।”

मोदी से मुलाकात के बाद अभिजीत बनर्जी ने कहा कि उनसे मिलकर काफी अच्छा लगा। ”उन्होंने मुझे काफी वक्त दिया। मुलाकात के दौरान उन्होंने बताया कि वह किस तरह से गवर्नेंस को समझते हैं और कैसे ब्यूरोक्रेसी को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। मैं प्रधानमंत्री को इस मुलाकात के लिए थैंक्यू कहना चाहता हूं।”

पहले बनर्जी ने मोदी की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाये थे। रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया था कि बनर्जी की मां ने उन्हें सचेत किया था कि जब वो पीएम से मिलें, बहुत विचार कर ही अपनी बात कहें। यहाँ यह भी गौरतलब है कि मई में लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के ”न्याय” योजना की रूपरेखा बनाने वालों में

पीएम मोदी का बनर्जी से मुलाकात को लेकर ट्वीट –
@narendramodi
Excellent meeting with Nobel Laureate Abhijit Banerjee. His passion towards human empowerment is clearly visible. We had a healthy and extensive interaction on various subjects. India is proud of his accomplishments. Wishing him the very best for his future endeavours.

भारत के वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप में २४० अंक हुए

भारत ने तीसरे टेस्ट में भी दक्षिण अफ्रीका को हराकर तीन मैचों की सीरीज ३०- से जीत कर व्हाइट वाश कर लिया है। रांची में तीसरे और अंतिम टेस्ट में भारत ने अफ्रीका को पारी और २०२ रन से हरा दिया। रोहित शर्मा ”मैन आफ द मैच” और ”मैन आफ द सीरीज” चुने गए हैं।  पिछले मैच में भी भारत ने पारी और १३७ रन से जीत हासिल की थी।

विराट कोहली की कप्तानी में भारत ने अफ्रीका को तीसरे मैच में भी बुरी तरह रौदते हुए जिस तरह हराया है उससे कोहली की उपलब्‍धियों में एक और रेकॉर्ड जुड़ गया है। पहले जितने भी खिलाड़ियों ने भारत की कप्‍तानी की है, वे दक्षिण अफ्रीका को सीरीज में हरा तो सके हैं, लेकिन क्‍लीन स्‍वीप कभी नहीं हुआ था।

रेकॉर्ड की बात करें तो टीम इंडिया का पिछले २७ साल में पहली बार दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ ”क्लीन स्वीप” हुआ है। टेस्‍ट क्रिकेट के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब भारत ने दक्षिण अफ्रीका को सीरीज में एक भी मैच न जीतने दिया हो और उसका पूरी तरह से सफाया हो गया हो। अब भारत के कप्‍तान विराट कोहली की उपलब्‍धियों में एक और नगीना जुड़ गया है।

इससे पहले जितने भी खिलाड़ियों ने भारत की कप्‍तानी की है, वे दक्षिण अफ्रीका को सीरीज में हरा तो सके हैं, लेकिन क्‍लीन स्‍वीप अभी तक नहीं हुआ था। भारत ने अफ्रीका को सीरीज में हराकर ”फ्रीडम ट्रॉफी” भी जीत ली है। रोहित शर्मा को उनके शानदार प्रदर्शन के लिए ”मैन ऑफ द सीरीज” और ”मैन ऑफ द मैच” चुना गया है। इस जीत से भारत को ४० अंक मिले हैं और वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप के अपने सभी पांचों मैच जीतकर २४० अंक के साथ शीर्ष पर बना हुआ है।

एग्जिट पोल: महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा के वापसी के संकेत, मिल सकती है प्रचंड जीत

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) महाराष्ट्र और हरियाणा में अपनी जीत का सिलसिला बरकरार रखने के लिए तैयार है, दोनों राज्यों के विधानसभा चुनावों में पार्टी को भारी जीत मिलने का अनुमान है।

महाराष्ट्र में भाजपा और उसकी सहयोगी शिवसेना को भारी बहुमत से जीत मिल सकती है।

दोनों राज्यों में मतदान समाप्त होने के तुरंत बाद एग्जिट पोल का प्रसारण हुआ।

कई एग्जिट पोल के नतीजों से पता चलता है कि बीजेपी-शिवसेना गठबंधन महाराष्ट्र की 288 सीटों में से 211 सीटें जीत सकता है और कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) गठबंधन 64 सीटें ही जीत सकता है। हरियाणा में भाजपा 90 में से 66 सीटें जीत रही है, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 14 सीटें मिलने की संभावना है।

एग्जिट पोल महाराष्ट्र :

भाजपा+ कांग्रेस+ अन्य
टाइम्स नाउ 230 48 10
इंडिया न्यूज-पोल स्ट्रेट 194-203 79-84 6-10
न्यूज़ एक्स-पोल स्ट्रेट 188-200 74-89 6-10
ऐ.बी.पी न्यूज-सी वोटर 204 69 15
सी.एन.एन न्यूज 18- इप्सोस 243 41 4

 

एग्जिट पोल हरियाणा :

भाजपा कांग्रेस इनेलो+अकाली दल अन्य
पोल ऑफ एग्जिट पोल 66 14 2 8
टाइम्स नाउ 71 11 0 8
इंडिया न्यूज-पोल स्ट्रेट 75-80 9-12 0-1 1-3
ऐ.बी.पी न्यूज-सी वोटर 72 8 0 10
सी.एन.एन न्यूज 18- इप्सोस 75 10 0 5