चुप है कश्मीर!

केंद्र सरकार ने भले 10 अक्तूबर से देश के अन्य हिस्सों से लोगों के घाटी आने पर लगाई पाबंदी वापस ले ली है, वहां अभी सामान्य जनजीवन बहाल नहीं हो पाया है। सरकार ने बीडीसी चुनावों का ऐलान भी कर दिया है लिहाजा यह बहुत ज़रूरी हो जाता है कि वहां सामन्य स्थिति बहाल हो। विश्लेषण कर रहे हैं राकेश रॉकी।

श्रीनगर की डल झील शांत है। उस पर विभिन्न रंगों से सजी कश्तियाँ भी हैं लेकिन उनमें डल की सैर करने के लिए पर्यटक नहीं हैं। मु$गल गार्डन भी फूलों से भरा है। लेकिन इन फूलों की खूबसूरती निहारने के लिए वहां कोर्ई नहीं। ऊपर पहाड़ी पर शंकराचार्य मंदिर में सुबह पुजारियों के पूजा करते वक्त घंटियों की प्रतिध्वनि तो गूंजती है लेकिन वहां बाहर से आने वाले श्रद्धालु अभी नहीं हैं। जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और उसे दो हिस्सों में बांटकर केंद्र शासित प्रदेश बना देने के फैसले के बाद कश्मीर में अभी अजीब तरह की चुप्पी पसरी है।

सुरक्षा का मजबूत कवच फूलों की इस घाटी की रंगत को कम कर रहा है। कहीं माहौल में साजिया बशीर के गीत ‘‘चे कमु सोनी मैनी’’ की स्वर लहरी नहीं सुनती। सुरक्षा और बंदूकों के साये में असली कश्मीर कहीं नेपथ्य में है। सरकार ने 10 अक्तूबर से घाटी की यात्रा सैलानियों के लिए खोलने का ऐलान तो कर दिया है लेकिन वहां स्थिति वही अनिश्चित सी है।

सरकार ने श्रीनगर और घाटी के अन्य हिस्सों में स्कूल-कालेज खोलने का ऐलान पिछले महीने ही कर दिया था लेकिन असलियत यह है कि यहाँ स्कूल तो खुले हैं लेकिन छात्र नहीं हैं। उनकी परीक्षाओं का क्या होगा, अभी तो इस पर ही बड़ा सवाल है।

जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा $खत्म होने और उसके दो हिस्सों में बंटकर केंद्र शासित प्रदेश हो जाने की ‘‘घटना’’ दुनिया भर की खबर है। पाकिस्तान में हलचल है, भारत में हलचल है। लेकिन कश्मीर खामोश है।

हयूस्टन के ‘‘हाउडी मोदी’’ कार्यक्रम में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले कश्मीर का राग अलापने के लिए पाकिस्तान को आड़े हाथ लिया लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बार-बार कश्मीर मामले में हस्तक्षेप की बात कहने से बहुत से लोगों के मन में यह सवाल कौंध रहा है कि क्या मोदी और ट्रम्प के बीच कश्मीर को लेकर परदे के पीछे कोर्ई बात हुई है। बेशक भारत ने बार-बार यह कहा है कि कश्मीर मसले पर तीसरे पक्ष की दखलंदाजी का सवाल ही नहीं उठता।

दोनों देशों के बीच तनाव भी इस दौरान बड़ा है। पड़ोसी पाकिस्तान ने भारत के लिए अपने एयर स्पेस पर से भारतीय जहाजों के उडऩे पर पाबंदी लगा रखी है। समझौता एक्सप्रेस पहले ही रद्द हो चुकी है। पाकिस्तान ने भारत से व्यापार बंद कर दिया है। पीएम इमरान खान अपने भाषणों में दोनों देशों के  ‘‘न्यूक्लियर पावर’’ होने और युद्ध की स्थिति में इसके अनजाने खतरों की धमकियां दे रहे हैं। भारत के सेना प्रमुख विपिन रावत देश के सैनिकों को किसी भी खतरे के प्रति आगाह कर रहे हैं।

क्या सचमुच कश्मीर मोदी सरकार के फैसले से खफा है? शायद हां। एक उदहारण। ‘‘तहलका’’ संवाददाता ने फोन पर दरख्शां अंद्राबी से बात की। अंद्राबी गहरे से भाजपा से जुड़ी हैं। पिछले करीब चार-पांच साल से। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जबरदस्त समर्थक हैं। सेंट्रल वक्फ कौंसिल की मैंबर हैं। और भाजपा की श्रीनगर की इंचार्ज। उन्होंने कहा – ‘‘मेरा दिल दुखी है। 70 साल से शेख अब्दुल्ला साहब, फारूक अब्दुल्ला, मुफ्ती (सईद) साहब, महबूबा (मुफ्ती) और उमर अब्दुल्ला दम भर  रहे थे कि धारा 370 को कुछ नहीं होगा। इन सभी ने हम कश्मीरियों को धोखा दिया। आज हम महज एक यूटी बनकर रह गए। लद्दाख जैसे छोटे इलाके के बराबर। क्या अब हम और 70 साल तक पूरा सूबा होने की

लड़ाई लड़ेेंगे?’’

अंद्राबी सवाल उठाती हैं कि पाकिस्तान किस मुंह से आज कश्मीरियों का हमदर्द बन रहा है। ‘‘उसने मिलिटेंट्स को भेजकर कश्मीर की यह हालत न की होती तो शायद हालात कुछ और होते। लेकिन आज तो हमारे अपनों (भारत सरकार) ने कश्मीर को कैदखाना बना दिया। हमें मालूम तक नहीं वैली में हमारे अपनों की क्या हालत है। मैं इससे बिलकुल इत्तेफाक नहीं रखती कि जम्मू कश्मीर को यूटी बना दिया जाए। हमारी पहचान (विशेष दर्जा) ही खत्म हो गयी। मैं सच में बहुत दुखी हूँ। यह फैसला सोच समझकर किया जाता तो ज्यादा बेहतर होता।’’ हालांकि वो इस बात पर भी ज़ोर देती हैं कि कश्मीर में शांति रहनी चाहिए और लोगों को किसी के बहकाबे में नहीं आना चाहिए।

लेकिन कश्मीर भाजपा के अध्यक्ष रविंदर रैना इस फैसले से खुश हैं। रैना कश्मीरी पंडित हैं और कहते हैं – ‘सही मायने में हमें तो अब आज़ादी मिली है। इस फैसले से आतंकवादियों की कमर भी टूटेगी और पंडितों का घाटी में अपने घरों में लौटने का सपना भी पूरा होगा।’

तीस साल पहले सात-आठ साल की उम्र में घाटी छोडक़र अपने माता-पिता के साथ जम्मू आने मजबूर हुईं पत्रकार अनुजा खुशु कहती हैं – ‘ठीक फैसला है। हम अब शायद घाटी लौट पाएं। लेकिन यूटी की जगह पूरा सूबा रहने देते तो बेहतर होता।’ हालांकि, ऐसे कश्मीरी पंडित भी हैं जो रैना की तरह नहीं सोचते। अपना नाम न छापने की शर्त पर केपी संगठन के एक नेता ने कहा – ‘यह ठीक है कि हमें अपने घरों से दर-बदर करने को मजबूर किया गया। लेकिन कश्मीर में यदि अब भी शांति नहीं होती तो हम कैसे लौट पाएंगे। कश्मीर को भरोसे में लेना बेहतर होता। कुछ लोग आज इस फैसले से खुश हो सकते हैं लेकिन सच यह है कि धारा 370 कश्मीरियत की पहचान थी। मेरे ख्याल से आने वाला वक्त अभी मुश्किल भरा हो सकता है।’

यह भी बहुत दिलचस्प बात है कि घाटी की मुस्लिम आबादी का एक बड़ा वर्ग भाजपा से ज्यादा परहेज़ नहीं करता। तहलका संवाददाता ने घाटी के अपने दौरों में पाया है कि यहाँ लोग वर्तमान भाजपा नेतृत्व के ज्य़ादा मुरीद नहीं। शायद इक्का-दुक्का ही होंगे जिन्हें मोदी-शाह के समर्थकों की श्रेणी में रखा जा सके। या शायद एक भी न हो। लेकिन ऐसे बहुत हैं जो पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी के जबरदस्त मुरीद हैं। उन्हें लगता कि वाजपेयी होते तो बेहतर फैसला होता और कश्मीर को यूं ‘कैदखाना’ नहीं बनाया जाता।

श्रीनगर के एम, लिंक रोड पर रेडीमेड कपड़ों और आट्र्स-क्राफ्ट की दुकान करने वाले बशीर अहमद (बदला नाम) ने कहा -‘वाजपेयी साहब लाजवाब शख्सियत थे। उनके वक्त में हमें उम्मीद थी कि पाकिस्तान के साथ मसले सुलट जायेंगे। लेकिन अब हालत बदल गए हैं। हमारे सूबे का खास दर्जा खत्म हो गया है जो हमें हिन्दोस्तान से जोड़ता था। इसे कश्मीर के लोग अच्छे में नहीं लेंगे और इसे धोखा मानेंगे।’

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल धरा 370 खत्म करने के फैसले (संसद में इससे जुड़े बिल के पास होने और राष्ट्रपति की मंजूरी) के बाद 10 दिन तक कश्मीर में रहे। श्रीनगर और शोपियां में उनके चंद लोगों से मिलने की वीडियो क्लिपिंग भी टीवी चैनलों पर आईं जिससे सा$फ लगा कि केंद्र सरकार यह सन्देश दुनिया में भेजना चाहती है कि घाटी में सब कुछ ‘शांत’ है। लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे शायद अलग है।

कांग्रेस ही एनसी और पीडीपी के अलावा ऐसी पार्टी है जिसे कश्मीर घाटी में लोग पसंद करते हैं। कांग्रेस का हमेशा यहाँ वजूद रहा है। राज्य सभा में कांग्रेस दल के नेता गुलाम नबी आज़ाद दो बार श्रीनगर गए लेकिन उन्हें हवाई अड्डे से ही लौटा दिया गया। बाद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दलों के नेताओं के एक दल को भी श्रीनगर के हवाई अड्डे से बाहर नहीं निकलने दिया गया। कश्मीर में सचमुच सब कुछ शांत और माहौल ठीक है तो ऐसी रोक क्यों? यह एक बड़ा सवाल है।

जम्मू के उन हिस्सों में मोदी सरकार के फैसले से खुशी है जहाँ हिन्दू आबादी है। लेकिन मुस्लिम आबादी वाले डोडा, किश्तवार, राजौरी और पुंछ की मुस्लिम आबादी में कश्मीर जैसी ही खामोशी है। कश्मीर में बहुत से लोग यह मानते हैं कि धारा 370 को खत्म करना आरएसएस-मोदी-शाह की भाजपा का ‘हिंदू राष्ट्र’ की तरफ बढऩे की तरफ पहला कदम है।

पूर्व उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह, जो जम्मू रीजन से हैं, से इस संवाददाता ने बात की। निर्मल ने कहा – ‘जम्मू कश्मीर को सही मायने में अब आज़ादी मिली है। इस फैसले से लोगों में खुशी है कहीं कोर्ई तनाव वाली हालत नहीं है। कांग्रेस नेता आज़ाद (गुलाम  नबी) कश्मीर जाकर लोगों को भडक़ाना चाहते थे इसलिए उन्हें रोका गया। अब आतंकवाद भी खत्म होगा और लोगों को न्याय भी मिलेगा।’

ईस्ट पाकिस्तान के रिफ्यूजी संगठन एसओएस के चेयरमैन राजीव चुन्नी ने इस संवाददाता को बताया – ‘हमें इस फैसले से 70 साल बाद देश का नागरिक होने और वोट का अधिकार मिलेगा। मोदी सरकार का यह फैसला हमारे लिए नए सूरज का उदय है।’

लेकिन इन सब अच्छी बातों के बावजूद कश्मीर में खामोशी है। कश्मीर की इस चुप्पी को अभी समझना मुश्किल है। हालात देखकर लगता है कि अभी वहां सुरक्षा के यह बंदोबस्त लम्बे समय तक चलेंगे। घाटी में इंटरनेट बार-बार बंद होता है। ज्यादातर कश्मीरियों ने खुद को घरों में बंद कर रखा है। ज़रूरत का सामान लेने ही बाहर निकलते हैं। जिस तरह का सुरक्षा तामझाम इस समय कश्मीर में है उसे देखकर नहीं लगता कि वहां जल्दी ही इसे हटाया जाएगा। अजित डोवल ने भले शोपियां जैसे सीमा क्षेत्र और  ‘‘आतंकवाद के गेटवे’’ में कुछ कश्मीरियों के साथ खाना खाकर दुनिया को ‘घाटी में सब कुछ अच्छा’ होने का सन्देश देने की कोशिश की, डोवल भी जानते हैं कि उनके सामने अभी बड़ी चुनौतियां हैं।

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद घाटी की स्थिति का जायजा लेने के लिए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ विपक्षी दलों के प्रतिनिधिमंडल के साथ सितम्बर में गए लेकिन श्रीनगर एयरपोर्ट पर ही उन्हें रोक लिया गया था। बाद में राहुल गांधी ने श्रीनगर एयरपोर्ट पर रोके जाने का एक वीडियो ट्वीट किया जिसमें वे (राहुल गांधी) कह रहे हैं कि मुझे राज्यपाल ने आमंत्रित किया था। अब मैं आया हूं तो बाहर जाने की इजाजत नहीं दी गई और मुझे रोका जा रहा है। राहुल गांधी ने कहा कि मीडियाकर्मियों के साथ बदसलूकी की गई और मीडिया को गुमराह किया गया।

राहुल गांधी का कहना है – ‘सरकार कह रही है कि प्रदेश में सब कुछ ठीक है फिर नेताओं को वहां जाने और आम जनता से मिलने की इजाजत क्यों नहीं दी जा रही।  इन सब बातों से साफ है कि जम्मू-कश्मीर में स्थिति अभी सामान्य नहीं है।’

प्रतिनिधिमंडल में राहुल गांधी के अलावा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के नेता डी राजा, माक्र्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता सीताराम येचुरी, कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा और केसी वेणुगोपाल, लोके क्रांति जनता दल (लोजद) प्रमुख शरद यादव, तृणमूल कांग्रेस नेता दिनेश त्रिवेदी, द्रमुक के त्रिचि शिवा, राकांपा नेता मजीद मेमन, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता मनोज झा और जनता दल (सेकुलर) के डीण्कुपेंद्रा रेड्डी शामिल थे।

उधर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद माकपा महासचिव सीताराम येचुरी पार्टी सहयोगी मोहम्मद यूसुफ तारीगामी से मिलने कश्मीर गए। एक दिन बाद दिल्ली लौट आये। सर्वोच्च अदालत का उनके लिए निर्देश था कि अपने साथी नेता से मिलने के अलावा और कोर्ई गतिविधि की उन्हें इजाजत नहीं है। अब तारीगामी का इलाज चल रहा है।

जम्मू के मशहूर अखबार ‘कश्मीर टाइम्स’ की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन ने  पांबदियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर की हुई है। यह मामला अभी विचाराधीन है। याचिका में भसीन ने मोबाइल इंटरनेट और लैंडलाइन सेवाओं समेत संचार के सभी माध्यमों को राज्य में बहाल करने के वास्ते निर्देश देने की मांग की थी  ताकि मीडिया के लिए काम करने का सही वातावरण बन सके।

अक्तूबर के पहले हफ्ते नेशनल कांफ््रेंस का एक प्रतिनिधिमंडल श्रीनगर में नजरबन्द अपने नेता फारूख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला से मिला है हालांकि यह नेता श्रीनगर में आम लोगों से नहीं मिल पाए। बीच-बीच में यह अपुष्ट रिपोट्र्स भी आई हैं कि इन दो महीनों में घाटी में स्थानीय लोगों और सुरक्षा बलों के बीच पथरबाजी की कमसे काम 300 घटनाएं हुई हैं। विदेशी मीडिया में भी कश्मीर को लेकर जो रिपोट्र्स आईं हैं वो बहुत सुकून देने वाली नहीं लगती भले केंद्र सरकार का दावा है की कुछ जगहों को छोडक़र बाकी जगह स्थिति सामान्य हो चुकी है।

कश्मीर पर आईएएस का इस्तीफा

जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर एक आईएएस अधिकारी ने नौकरी ही छोड़ दी। जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर अपने बोलने की आजादी का हवाला देकर इस्तीफा देने वाले आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने कहा कि घाटी में लगी पाबंदियां वहां के लोगों को देश से और दूर करेंगी। उन्होंने कहा – ‘कश्मीर के लोगों को अनुच्छेद 370 को लेकर मनाया जाना चाहिये, लेकिन उन्हें विचार प्रकट करने का मौका न दिए जाने से ऐसा नहीं हो पा रहा।’ गोपीनाथन 2012 के बैच के आईएएस अधिकारी हैं। इस्तीफा देने से पहले वे संघ शासित प्रदेशों दमन और दीव और दादरा, नागर हवेली के ऊर्जा विभाग में सचिव रहे। कन्नन का कहना है कि उन्होंने कश्मीर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन के खिलाफ अपने विचार प्रकट करने के लिए नौकरी छोड़ी है। कन्नन ने कहा- ‘मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहता हूं। लेकिन सेवा में रहते मेरे लिए ऐसा करना नामुमकिन था। इसमें कई नियम-कायदे होते हैं।’

छोड़े जायेंगे नेता!

क्या मोदी सरकार जम्मू कश्मीर में मुख्यधारा की पार्टियों के नेताओं को धीरे-धीरे छोडऩे की तैयारी में है? राजधानी दिल्ली में इसकी बहुत ज्यादा चर्चा है। गृह मंत्रालय कश्मीर से मिल रहे हरेक इनपुट पर गहरी नजर रखे हैं। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक अभी तक की रिपोट्र्स तो यही जाहिर करती हैं कि स्थिति उतनी सामान्य नहीं है। लोग खामोश हैं और इस खामोशी के पीछे उनकी सोच क्या है, अभी कहना मुश्किल है। कश्मीर को बहुत ज्यादा दिन तक बंद रखना भी मुमकिन नहीं है। वहां अभी भी करीब पांच से छह लाख सैनिक हैं। आने वाले दिनों में देखना होगा, स्थिति क्या करवट लेती है। वैसे सरकार मुख्या धरा के दलों के नेताओं $फारू$ख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती से बातचीत कर लोगों से शांति की अपील कर सकती है। हालांकि यह देखने वाली बात होगी कि क्या यह नेता इसके लिए तैयार होते हैं !

संवैधानिक बेंच कर रही धारा 370 हटाए जाने से जुड़ी सभी याचिकाओं पर सुनवाई

धारा 370 के दो क्लॉज हटाकर जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के फैसले के खिलाफ मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अक्तूबर के पहले हफ्ते में पांच जजों की संवैधानिक बेंच अनुच्छेद 370 के हटाए जाने से जुड़ी सभी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त करने के खिलाफ और इससे संबंधित दाखिल तमाम याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कर कई बड़े फैसले दिए। कोर्ट ने केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी किया और कहा है कि पांच जजों की संवैधानिक पीठ अक्तूबर के पहले सप्ताह में इस मामले से संंबंधित सभी याचिकाओं की सुनवाई करेगी।

सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ केंद्र की उस दलील से सहमत नहीं दिखी कि अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल के अदालत में मौजूद होने के कारण नोटिस जारी करने की जरूरत नहीं है। पीठ ने नोटिस को लेकर सीमा पार प्रतिक्रिया होने की दलील को ठुकराते हुए कहा कि हम इस मामले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजते हैं। इस पीठ में न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एसए नजीर भी शामिल हैं।

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इस अदालत द्वारा कही हर बात को संयुक्त राष्ट्र के समक्ष पेश किया जाता है। दोनों पक्ष के वकीलों के वाद-विवाद में उलझने पर पीठ ने कहा कि हमें पता है कि क्या करना है, हमने आदेश पारित कर दिया है और हम इसे बदलने नहीं वाले।

मोदी सरकार के साथ मायावती 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष के नेता श्रीनगर जा रहे थे बसपा रमुख मायावती मोदी सरकार का अपरोक्ष समर्थन करते हुए कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेताओं के जम्मू-कश्मीर जाने पर सवाल उठाया? बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 हटाए जाने के केंद्र सरकार के फैसले का समर्थन करती है।  कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए मायावती ने कहा – ‘जैसा कि विदित है कि बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर हमेशा ही देश की समानता, एकता और अखंडता के पक्षधर रहे हैं, इसलिए वे जम्मू-कश्मीर राज्य में अलग से धारा 370 का प्रावधान करने के कतई भी पक्ष में नहीं थे। इसी खास वजह से बीएसपी ने संसद में इस धारा को हटाए जाने का समर्थन किया। देश में संविधान लागू होने के लगभग 69 वर्षों के उपरान्त धारा 370 की समाप्ति के बाद अब वहां (जम्मू-कश्मीर) हालात सामान्य होने में थोड़ा समय अवश्य ही लगेगा। इसका थोड़ा इंतजार किया जाए तो बेहतर हैए जिसको माननीय कोर्ट ने भी माना है।’

370 के पक्षधरों को जूते मारेंगे लोग : राज्यपाल मालिक

जम्मू कश्मीर में धरा 370 हटाए जाने के बाद सूबे के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के कई बयान विवादित रहे हैं। यही नहीं वे राजनीतिक टिप्णियां भी खुल कर करते रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी के नेतृत्व में विपक्षी नेताओं के दल को श्रीनगर एयरपोर्ट पर ही रोक लिए जाने के बाद राहुल गांधी पर दिया मालिक का बयान गौर करने लायक है। मलिक ने कहा – आज तक उन्होंने (राहुल गांधी) कश्मीर पर अपना स्टैंड क्लीयर नहीं किया है। चुनाव के वक्त उनके विरोधियों को कुछ कहने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। वो बस ये कह देंगे कि ये 370 के हिमायती हैं, तो लोग उन्हें जूतों से मारेंगे।’

मलिक ने कहा- राहुल गांधी को उस दिन संसद में बोलना था, जब उनका नेता (अधीर रंजन चौधरी) कश्मीर के सवाल को यूएन से जोड़ रहा था। अगर वे लीडर थे तो उसे डांटते और बिठाकर कहते कि कश्मीर पर हमारा यह स्टैंड है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार आनेवाले समय में जम्मू-कश्मीर के लिए एक बड़ी घोषणा करने वाली है। उन्होंने कहा कि हिरासत में रखे गए नेताओं को लेकर चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। यह उनके राजनीतिक करियर में मदद करेगा।

राहुल गांधी को लेकर मलिक ने कहा – ‘मैं कुछ नहीं बोलना चाहता क्योंकि वो देश के प्रतिष्ठित परिवार का लडक़ा है। लेकिन वो एक पॉलिटिकल जुवेनाइल है। उसी का नतीजा है कि यूएन में पाक की चि_ी में उसके बयान का जिक्र है।’ वैसे यहाँ यह जिक्र करना भी सही होगा कि पाक की इसी चि_ी में हरियाणा के मुख्यमंत्री और भाजपा/आरएसएस नेता मनोहर लाल खट्टर का ‘कश्मीर से बहुएं लाने वाला’ बयान भी नत्थी है।

राज्यपाल मालिक का एक और बयान (कश्मीर में हिरासत में रखे गए नेताओं पर) – ‘मैं 30 साल जेल में रहा हूं। जो डिटेंशन में हैं वो कुछ दिन बाद निकल कर कहेंगे कि मैं छह महीने जेल में रहा। चुनाव में यह कह कर खड़े होंगे। जो जेल में रहेंगे वो बाद में बड़े नेता बन जाएंगे।’