औघट घाट
घाटे पानी सब भरे औघट भरे न कोय।
औघट घाट कबीर का भरे सो निर्मल होय।।
तो कौन जीता साधो! मई दो हजार चार की एक शाम कॉमरेड सुरजीत के साथ यूपीए की बैठक में बिना बुलाए आए अमर सिंह को बाहर करने वाली सोनिया गांधी? या अब अमेरिका से लौटे और सरकार को बचाने के लिए पलक पांवड़े पर लाए गए अमर सिंह? तुम कहते हो कि जो आखिर में जीतता है वही विजेता कहलाता है. अंतिम विजय हमारी होगी इसीलिए गाया जाता है. लेकिन इस सौदेबाजी का तो अंतिम विजेता कोई नहीं होना है साधो. इस में तो सब हारने वाले ही हैं. जैसे महाभारत में सब हारे थे. वह कृष्ण भी जिसने यह भारत करवाई, लड़ी, जीती और फिर हार गए. ऐसी राजनीति के खेल में साधो सब हारते ही हैं, जीतता सिर्फ स्वारथ है. क्योंकि अपना स्वार्थ ही सबसे बड़ी राजनीति है.
सोनिया गांधी ने उन्हीं अमर सिंह और मुलायम सिंह से हाथ मिलाया जिन्हें वे अपने दर पर फटकने भी नहीं देती थीं. तुम कहते हो कि हमें जानकारी है कि अमेरिका ने हाथ मिलवाए. मिलवाए कोई भी मिलाए तो सोनिया गांधी ने ही. उन्हें ही अपनी सरकार बचानी थी. सरकार बच गई तो उनका स्वारथ पूरा होगा. प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर के उनने जो भी पुण्याई कमाई थी वह मनमोहन सिंह और अमेरिका से एक समझौते पर लुटा दी. साधो जैसी कमाई होती है वह वैसे ही कामों में गंवाई जाती है. अमर सिंह जैसे ख्यातनाम दलाल से सौदा कर के समझौता करने वाली सोनिया गांधी पर कौन भरोसा करेगा साधो! तुम करोगे? अगले चुनाव में वोट देने लाइन में खड़े होगे? नहीं ना!
अमर सिंह ने न सिर्फ चार साल बाद अपमान का बदला ले लिया है बल्कि इसका भी इंतजाम कर लिया है कि उनके सभी रुके हुए कामकाज हो जाएंगे. मुलायम सीबीआई के फंदे में फंसे हुए थे. आमदनी से कहीं ज्यादा जायदाद बनाने के मामले में उनकी गरदन फंसी हुई थी. उधर यूपी में मायावती भी जान के पीछे पड़ी हुई थीं. अमर सिंह ने क्या रास्ता निकाला कि लोकहित और राष्ट्रहित में अपने सारे मामले भी निपट गए और लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस पीछे चलने को तैयार रहेगी. अगर अमेरिका से समझौता हो गया तो देश के पैसे वाले चुनाव में सच्चे समाजवाद की अटैची पर अटैचियां चढ़ा देंगे. अपने देश के उद्योग-व्यापार के लाड़ले बरने का शानदार मौका मिला है.ऐसे ही अमर सिंह के भाग से छींका टूटता है. टूटा है तो अब पूरा फायदा उठाओ. लोक बनाओ परलोक भी बनाओ. साधो, कहीं तुम भी तो अब समाजवादी पार्टी में नहीं जा रहे हो!
मुलायम सिंह यादव की भी अच्छी गत हुई साधो. लंगोट बांध के पहलवानी औऱ समाजवाद करने वाले लोहिया के इस पट्ठे ने क्या दांव मारा है. यूपी में मायावती चित्त और देश भर में वामपंथी उलाल. बहुत उपदेश देते थे कि हम कहीं भाजपा के साथ न हो जाएं. देख लो अब कौन किसके साथ खड़ा है. अमेरिका से समझौते पर भाजपा के साथ विरोध में वामपंथी खड़े हैं. अरे भाई कांग्रेस सबसे बड़ी शत्रु है या सांप्रदायिकता? सांप्रदायिकता के खिलाफ तो हम खड़े हैं. भाजपा हमारे सामने है और वामपंथी उसके साथ बगल में खड़े हैं. लोहिया जी सत्ता के लिए गैरकांग्रेसवाद का नारा लगाते थे. सत्ता के लिए अब कांग्रेस के साथ होना जरूरी है. सत्ता मायावती छीन रही है साधो! समाजवाद को मायावती से बचाना है.
प्रभाष जोशी