फिल्मों में पर फिल्मी नहीं

थोड़े ही समय में जिंदगी किस तरह से बदल जाती है इसका अंदाजा फिल्म स्टार आमिर खान के इस भांजे को कुछ दिन पहले तब हुआ जब वो सड़क पर टहल रहे थे. अचानक एक व्यक्ति ने उन्हें पहचान लिया और उनसे ऑटोग्राफ मांगा. देखते ही देखते उनके इर्द-गिर्द लोगों की भारी भीड़ इकट्ठी हो गई. एक लड़की तो उनसे शादी करने की जिद पर अड़ गई. ये तब की बात है जब फिल्म रिलीज भी नहीं हुई थी. अब जब फिल्म सफल हो गई है तो निश्चित रूप से उनकी लोकप्रियता में पहले से कई गुना ज्यादा इजाफा होने की उम्मीद है. 

इमरान के मामा और फिल्म के निर्माता आमिर को पता है कि भारतीय दर्शक फिल्मी परिवारों की जिंदगी के बारे में कितने उत्सुक रहते हैं. जाने तू…के प्रचार के दौरान उन्होंने सुनिश्चित किया कि दर्शक उनके और इमरान के जुड़ाव की झलकियां लगातार देखते रहें. फोटो में छोटे इमरान के बाल बनाते आमिर, सलमान खान के शो दस का दम में बड़े इमरान को चिढ़ाते आमिर और भांजे का इंटरव्यू लेते आमिर बार-बार दिखे. 

इमरान जिस परिवार से आते हैं उसे प्रतिभाओं का खजाना होने के बावजूद कभी भी कपूर खानदान जैसी चर्चा नहीं मिली. तीसरी मंजिल, कारवां और यादों की बारात जैसी कई हिट फिल्में देने वाले इमरान के दादा और आमिर के ताऊ नासिर हुसैन अपनी ही तरह के इंसान थे. नासिर के बेटे मंसूर खान ने कयामत से कयामत तक और जो जीता वही सिकंदर जैसी फिल्मों का निर्देशन किया जिन्हें हिंदी सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर कहा जाता है. मगर फिर कुछ साल पहले उन्होंने अचानक बॉलीवुड से नाता तोड़ लिया और तमिलनाडु के कन्नूर में अपना एक ऑर्गेनिक फॉर्म चलाने लगे. इमरान के मामा आमिर खान की फिल्म इंडस्ट्री में क्या जगह है ये सभी जानते हैं. नुज़हत बताती हैं, “मैं हर सेमेस्टर के दौरान उससे मिलने जाती थी. वो बिल्कुल मोगली की तरह दिखता था…लंबे बाल, नंगे पांव, निकर पहने दौड़ता हुआ."

इमरान को शुरुआत से ही रुपहले पर्दे की दुनिया से लगाव था. बचपन में वो कभी घर में ही किसी नाटक का आयोजन करते तो कभी वीडियो कैमरा थामे शूटिंग में मशगूल होते. इमरान ने अपनी तीनों फिल्में खुद चुनी हैं. जाने तू…तो रिलीज हो ही चुकी है जबकि संजय गढ़वी की ‘किडनेप’ की शूटिंग पूरी हो चुकी है. उनकी तीसरी फिल्म है सोहम शाह की ‘लक’ जिसकी शूटिंग जल्द ही शुरू होने वाली है. 

वैसे तो अभिनय के क्षेत्र में आने की योजना इमरान काफी समय से बना रहे थे मगर उन्होंने शुरुआत करने का फैसला किया अब्बास टायरवाला की स्क्रिप्ट सुनकर. इमरान कहते हैं, “अब्बास की स्क्रिप्ट में आज के नौजवानों से कहीं ज्यादा मासूमियत मौजूद थी पर मैं फिर भी खुद को इससे जोड़ पा रहा था. खासकर जय और उसकी मां के बीच के संबंध की बात करें तो. जाने तू… में सावित्री(रत्ना पाठक शाह) जय को अपने पति के गांव से दूर ले जाती हैं ताकि उसमें अपने राजपूत भाइयों जैसी क्रूर मर्दानगी न आने पाए. गौरतलब है कि इमरान को भी उनकी मां नुज़हत मुंबई की खोखली दुनिया से दूर रखने के लिए कन्नूर ले गईं थीं. 

इमरान की पहली पाठशाला मुंबई का बॉंम्बे स्काटिश स्कूल था- नुज़हत भी इसी स्कूल में पढ़ी थीं. एक दिन नुज़हत को पता चला कि टीचर्स इमरान की पिटाई करते हैं. उन्होंने स्कूल प्रशासन से शिकायत कर अपना विरोध जताया. मगर इसका कोई फायदा नहीं हुआ. उधर, कड़े शारीरिक दंड का इमरान पर काफी नकारात्मक असर पड़ रहा था. जैसा कि इमरान बताते हैं, “चौथी कक्षा में पहुंचते-पहुंचते मैं हकलाने लगा था. मैं बहुत नर्वस हो जाता था और लगता था कि मैं फेल हो जाउंगा.” 

जब काफी विरोध के बाद भी स्कूल प्रशासन के कान पर जूं नहीं रेंगी तो नुज़हत ने फैसला किया कि उनका बेटा अब इस स्कूल में नहीं पढ़ेगा. एक अच्छे स्कूल की उनकी तलाश उन्हें कन्नूर ले गई जहां उन्होंने इमरान का दाखिला ब्लू माउंटेन स्कूल में करवा दिया. इसका असर भी देखने को मिला और कुछ ही महीनों के भीतर इमरान क्लास में प्रथम आने लगा. गणित में तो उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा हो गया था. कुछ समय बाद जब स्कूल के करिश्माई प्रिंसिपल ने एक अपनी तरह का एक अलग और सुधारवादी स्कूल खोलने के लिए नौकरी छोड़ने का फैसला किया तो नुज़हत उन चंद अभिभावकों में से थी जिन्होंने उन पर भरोसा किया. अगले पांच साल तक इमरान और दूसरे बच्चे ऊटी के पास स्थित गेद्दाई नामक गांव के नजदीक एक जंगल में रहे जहां न बिजली थी और न नल का पानी. नुज़हत बताती हैं, “मैं हर सेमेस्टर के दौरान उससे मिलने जाती थी. वो बिल्कुल मोगली की तरह दिखता था…लंबे बाल, नंगे पांव, निकर पहने दौड़ता हुआ." मंसूर हंसते हुए कहते हैं, “मेरे वालिद ने सोचा कि नुज़हत पागल हो गई है. फिर उन्होंने देखा कि इमरान एक बहादुर बच्चे के रूप में बड़ा हो रहा था. वह हमारी तरह अंधेरे से डरता नहीं था. वहां बच्चे अपना स्विमिंग पूल खुद खुदाई कर बनाया करते थे. वे इसमें तैरते थे और उन्हें पता होता था कि इसमें सांप भी हैं. वे तो उन्हें पकड़ भी लिया करते थे.” इस तरह के लालन-पालन ने इमरान को आत्मनिर्भर और दूसरों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील बना दिया. 16 साल की उम्र में इमरान अमेरिका के कैलीफोर्निया में अपने पिता अनिल पाल के पास चले गए. कंप्यूटर साइंस में पीएचडी पाल हाल तक याहू में एक वरिष्ठ पद पर थे. इमरान के माता-पिता का जब तलाक हुआ तो इमरान उस वक्त महज दो साल के थे. मगर वो अच्छे दोस्त बने रहे. पाल और उनकी 85 वर्षीय ब्रिटिश मां भी जाने तू…का लांच देखने आई थीं. अमेरिका में इमरान के शिक्षकों को विश्वास था कि अपनी तीव्र बुद्धि के कारण वो बर्कले या स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में जाएंगे. मगर इमरान कहते हैं कि भारत में स्कूली दिनों के उतार-चढ़ाव भरे अनुभवों के चलते उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने का इरादा छोड़ दिया.

अमेरिका में इमरान के शिक्षकों को विश्वास था कि अपनी तीव्र बुद्धि के कारण वो बर्कले या स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में जाएंगे. मगर इमरान कहते हैं कि भारत में स्कूली दिनों के उतार-चढ़ाव भरे अनुभवों के चलते उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने का इरादा छोड़ दिया. 

इमरान के करीबी लोग बताते हैं कि उन्हें पढ़ने का बहुत शौक है और उनके बेडसाइड टेबल पर आपको किताबों का एक ढेर नजर आएगा जिसमें उपन्यास से लेकर इतिहास और सिनेमा तक हर तरह की किताबें होंगी. इमरान ने अमेरिका में फिल्म निर्देशन की भी पढ़ाई की है.  

जब इमरान मुंबई लौटे तो अब्बास टायरवाला और उनके बीच अच्छी दोस्ती हो गई. जब उन्होंने ऐलान किया कि वो टायरवाला की जाने तू… में जय की भूमिका निभा रहे हैं तो परिवार में हर कोई चौंक गया. पहले इसका निर्माण झामू सुगंध कर रहे थे मगर फिर उन्होंने अपना हाथ पीछे खींच लिया. आमिर को जब ये पता चला तो वो फिल्म के निर्माता बन गए. 

दूसरे भाई-बहनों के मुकाबले इमरान की मां नुज़हत और आमिर कहीं ज्यादा करीब हैं. नुजहत ने ‘कयामत से कयामत तक’ के बाद आमिर को लोकप्रियता की ऊंचाइयां छूते देखा था और उन्हें चिंता थी कि क्या इमरान इस कड़े सफर के लिए वाकई तैयार हैं. इमरान के बारे में कहा जाता है कि उनमें मंसूर जैसी ईमानदारी और आमिर जैसा आत्मनियंत्रण है. गुणों का ये मेल उन्हें अपनी दुनिया में मगन रहने वाला एक शख्स बनाता है. उनकी सबसे करीबी विश्वासपात्र छह साल से उनकी महिला मित्र अवंतिका मलिक हैं. अवंतिका, नुज़हत और इमरान एक दूसरे के काफी करीब हैं. 

जब आमिर ने पहली बार इमरान के इरादों के बारे में सुना तो भांजे के लिए उनकी पहली सलाह थी कि उसे जमकर देशाटन करना चाहिए. आमिर के शब्द थे, “बस की सवारी करो, घूमो-फिरो और अपनी गुमनामियत के चंद आखिरी दिनों का आनंद लो.”  मगर ऐसी यात्रा हो नहीं पाई और अब तो शायद ही कभी हो पाए. 

परिवार की एक बड़ी चिंता ये भी है कि इमरान जिस परिवेश में पले-बढ़े हैं वो फिल्म इंडस्ट्री से काफी जुदा है. ऐसे में क्या वो इस अंतर को पाट पाएंगे. मंसूर कहते हैं, “हिंदी फिल्मों में कई घिसी-पिटी स्थितियां होती हैं और मुझे वास्तव में हैरत है कि क्या इमरान ऐसी स्थितियों को संभाल सकेगा. उसे तो डांस की भी समझ नहीं है.”  

हालांकि अपने परिवार के दिग्गजों की पैनी नजर के तले इमरान ने खुद में काफी सुधार किया है और उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही वो सिनेमा की अच्छी समझ विकसित कर लेंगे जिसके लिए उनका परिवार मशहूर रहा है. इसके बाद बॉलीवुड में शायद ही कोई फिल्मकार ऐसा होगा जो अपनी कल्पनाओं को परदे पर उतारने के लिए उनके नाम पर गौर न करे. 

निशा सूज़न