समाजवादी पार्टी के अचानक इस यू टर्न का कारण?
चार साल से इस सरकार को समर्थन देने के बावजूद हमारा इसके साथ किसी भी तरह का संवाद नहीं था. न औपचारिक और न ही अनौपचारिक. और मैं तो कहूंगा कि इस समर्थन को सरकार ने मान्यता तक नहीं दी थी. मगर डॉ. मनमोहन सिंह से मेरे हमेशा से अच्छे व्यक्तिगत संबंध रहे हैं. ये बात अलग है कि न उन्होंने कभी इसका ढिंढोरा पीटा और न मैंने. यूपीए सरकार को समर्थन देने की वजह से मुझे हर साल होने वाले यूपीए के रात्रिभोज में निमंत्रित किया जाता रहा सिवाय एक बार के–जिस साल चुनाव हुए थे और जब संबंधों में बहुत कड़वाहट थी.
इस साल जब मुझे और बहुजन समाज पार्टी को निमंत्रण मिला तो मैं जानबूझकर जल्दी नहीं पहुंचा, किसी अहं या पूर्वाग्रह की वजह से नहीं बल्कि इसलिए क्योंकि मेरे पास जश्न मनाने की कोई वजह नहीं थी. फिर भी मैंने अपनी पार्टी के स्तर पर फैसला लिया कि हम सभी जाएंगे क्योंकि प्रधानमंत्री न सिर्फ हमारे मित्र हैं बल्कि एक शालीन और आदरणीय व्यक्ति भी हैं. जब मैं पहुंचा तो भोज खत्म हो चुका था और मीठा परोसा जा रहा था. मैंने देखा कि प्रधानमंत्री के बगल में येचुरी के साथ रखी गई मेरी सीट पर डॉ कर्ण सिंह बैठे थे. मैं डरते–डरते दूर एक कोने में बैठ गया कि कहीं राजीव शुक्ला के जैसा कोई व्यक्ति मुझसे जाने के लिए न कह दे. मैं भयभीत, सशंकित और असहज था और एक तरह से देखा जाए तो राहत भी महसूस कर रहा था कि मेरी सीट भरी हुई है और जैसे मैं चुपचाप आया हूं वैसे ही चुपचाप चला भी जाउंगा. मगर फिर अचानक ही मैंने प्रधानमंत्री को अपनी तरफ आते हुए देखा. वे मेरी बगल में बैठ गए और जब तक मैंने खाना नहीं खाया वहां से हिले नहीं. उन्होंने कहा, , “हमारा सम्मान पारस्परिक है.” और ये खबर बन गई. मैंने प्रधानमंत्री को बताया कि उनकी सरकार ने किसी भी मुद्दे पर कभी भी मुझसे सलाह–मशविरा नहीं किया और अगर सरकार को लगता है कि एक राजनीतिक पार्टी होने के नाते वो हमारे साथ कोई बातचीत करना चाहती है तो मैं इसके लिए तैयार हूं.
इसके बाद मैं अपने इलाज के सिलसिले में 20 दिन के लिए अमेरिका चला गया और बात आईगई हो गई. जब मैं लौटा तो मुझे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम के नारायणन का फोन आया जो मुझसे मिलना चाहते थे. समय और तिथि तय की गई और जब नारायणन को आना था तो उससे ठीक पहले ही जसवंत सिंह मुझसे और मुलायम सिंह से मिलने आ पहुंचे. मैं जसवंत सिंह या आडवाणीजी से मिलने से इनकार नहीं कर सकता क्योंकि अगर वे मुझसे मिलने आते हैं तो ये एक सम्मान की बात है. राजनीति में विरोध का मतलब दुश्मनी बन गया है. मगर विरोधी अच्छे दोस्त भी हो सकते हैं. अरुण जेटली मेरे अच्छे दोस्त हैं. जसवंत सिंह दोस्त तो नहीं हैं पर मैं उनकी बहुत इज्जत करता हूं. मैंने नारायणन को सूचित किया कि जसवंत सिंह भी यहां मौजूद हैं और मीडिया के काफी लोग भी जमा हो गए हैं इसलिए उन्हें बैठक मीडिया की नजरों से दूर किसी जगह पर रखनी चाहिए. जसवंत सिंह ने मुझे ध्यान दिलाया कि कभी मुझे उन्होंने एक प्रस्ताव दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि इस इतावली सरकार से मुक्ति पाने के लिए भाजपा और वामदल यूएनपीए सरकार को बाहर से समर्थन दे सकते हैं, ठीक उसी तरह जैसे कभी भाजपा और वामदलों ने वीपी सिंह सरकार को समर्थन दिया था. इसका मतलब था मुलायम सिंह का प्रधानमंत्री बनना क्योंकि हमारे पास सबसे ज्यादा सांसद थे.
और आपने इसे ठुकरा दिया? जसवंत सिंह का कहना है कि यूएनपीए ये तय नहीं कर सका कि प्रधानमंत्री का उम्मीदवार कौन हो?
यद्यपि कांग्रेस के साथ हमारे रिश्ते अच्छे नहीं थे इसके बावजूद हमने ये प्रस्ताव ठुकरा दिया. हमने जयललिताजी से कहा कि वो आडवाणीजी और जसवंत सिंहजी को बतायें कि हम राष्ट्रपति पद के लिए भैरों सिंह शेखावत का समर्थन नहीं कर सकते क्योंकि हमारी विचारधारा अलग है. हमने कहा कि हम एक धर्मनिरपेक्ष सरकार को अस्थिर नहीं करेंगे और इसलिए हमने आडवाणीजी और जसवंत सिंहजी से मुलाकात नहीं की.
मगर जसवंत सिंह ने साफ कहा कि यूएनपीए में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार को लेकर सहमति नहीं बन पाई?
उन्होंने हमसे कहा कि अगर हम ये सोच रहे हैं कि भाजपा और वामदल साथ नहीं आएंगे तो हम गलत हैं. उनका कहना था कि इतालवी सरकार को हटाने के लिए भाजपा, वामदल और बसपा साथ आ चुके हैं. मैंने उनकी बात सुनी और कहा कि ये मुमकिन नहीं है, हम इसमें शामिल नहीं होंगे. हमारी कड़वाहट और नाराजगी अलग बात है मगर राजनीति में इस तरह की अस्थिरता पैदा करना ठीक नहीं है. हमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से मिलना था तो मैंने जसवंत सिंह से परमाणु समझौते पर उनके रुख के बारे में पूछा. मैंने कहा कि उन्हें इसका समर्थन करना चाहिए क्योंकि भाजपा के बारे में माना जाता है कि वो अमेरिका की तरफ झुकाव रखती है.
नारायणन ने हमें एक–एक बात की जानकारी दी. समाजवादी पार्टी की बुनियादी चिंता ईरान के साथ संबंधों को लेकर थी. नारायणन ने हमें बताया कि वे उसी दिन ईरान से होकर आए हैं और ईरान–पाकिस्तान–भारत गैस पाइपलाइन योजना रुकी नहीं है. उन्होंने ये भी बताया कि अमेरिका चाहे कुछ भी कहे हम उस पर ध्यान नहीं देने वाले और हमारी विदेश और परमाणु नीति एक संप्रभु राष्ट्र की तरह रहेंगी. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं इससे संतुष्ट हूं. मैंने उन्हें बताया कि ये सवाल मेरे संतुष्ट होने का नहीं है. मैंने उनसे कहा कि मैं मीडिया को इस बैठक के बारे में बताना चाहूंगा. सामान्य परिस्थितियों में मैं ऐसा नहीं करता क्योंकि राजीव शुक्ला और सुब्बारामी रेड्डी जैसे मित्रों की तरह मैं दूसरों की सफलता का श्रेय बटोरने में विश्वास नहीं रखता. मेरा काम करने का तरीका ऐसा नहीं है. मगर मेरे जुनून के पीछे एक कारण था. मैं सारी दुनिया, समाज और देश को बताना चाहता था कि पहली बार हमसे औपचारिक तौर पर सलाह–मशविरा किया गया है. ये दो जुलाई यानी यूएनपीए की तीसरी बैठक से सिर्फ एक दिन पहले की बात है. मैंने नारायणन से कहा कि मैं मीडिया के जरिये प्रधानमंत्री के सामने सवाल रखूंगा और उम्मीद करूंगा कि वे मीडिया के माध्यम से ही मुझे और राष्ट्र को जवाब दें. ईमानदारी से कहूं तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि जवाब मिलेगा. इस सरकार ने चार साल से मुझसे कुछ नहीं पूछा. एक बार मैं अपने मित्र दिग्विजय सिंह के घर गया था क्योंकि उन्हें मुझसे कुछ काम था. बाद में मैंने सुना कि मुझसे मिलने के लिए उनकी खिंचाई हुई थी. लोग मुझे बताया करते थे कि अगर कोई कांग्रेसी अमर सिंह की संगति में दिख जाए तो उसे झाड़ पड़ जाती है. इसलिए मुझे कोई उम्मीद नहीं थी. मगर दो घंटे के भीतर ही मेरे हर सवाल पर प्रधानमंत्री कार्यालय से बिंदुवार सफाई हाजिर हो गई. ये इस बात को दर्शाने के लिए पर्याप्त था कि प्रधानमंत्री किसी पार्टी या गुट का नहीं होता, वह सारे देश का प्रधानमंत्री होता है और खासकर जब वो मनमोहन सिंह जैसे कद का व्यक्ति हो.
मगर चूंकि हमारा गठबंधन इस राष्ट्रीय मुद्दे पर कांग्रेस के विरोध में था इसलिए मैंने अगले दिन यूएनपीए की बैठक बुलाने का फैसला किया. मेरे ज्यादातर साथियों—जिनका मैं नाम नहीं लेना चाहता क्योंकि वे सभी मित्र हैं और मुझे नहीं पता कि राजनीति में कल क्या हो जाए—का कहना था कि मैं क्यूं असमंजस की इस स्थिति को सुलझाना चाह रहा हूं, ये कांग्रेस की समस्या है. मैंने कहा कि मैं इसे दूसरी तरह से देखता हूं. समझौता भारत और अमेरिका के बीच हुआ है और मुझे इस बारे में आश्वस्त होने की जरूरत है कि ये देश के हित में है या इसके खिलाफ. अगर ये हित में है तो हमें इसका समर्थन करना चाहिए और अगर हित के खिलाफ है तो और भी आक्रामक होकर इसका विरोध करना चाहिए.
ओमप्रकाश चौटाला ने प्रस्ताव दिया कि हम सबको इस सिलसिले में एपीजे अब्दुल कलाम से मिलना चाहिए. सबने इस पर सहमति जताई क्योंकि उन्हें भारत रत्न मिल चुका है और कोई नहीं कह सकता कि वे यूपीए के आदमी हैं. कलाम ने हमें बताया कि ये समझौता देश के लिए अच्छा है. मैं दुविधा में था क्योंकि हमने समझौते का विरोध किया था, मगर अहं की लड़ाई में उलझे रहने का कोई मतलब नहीं था. मैंने कलाम से पूछा कि क्या मैं उन्हें उद्धृत कर सकता हूं और वे उदारता दिखाते हुए इस बात के लिए मान गए.
आप ने समर्थन तो दे दिया है मगर ये तो बताइये कि इस डील के पीछे कौन सी डील है?
समस्या ये है कि छोटे लोगों को बड़ी जगहों पर बैठा दिया गया है और हर चीज को भौतिकतावाद की नजर से देखा जा रहा है. कोई यकीन करने को तैयार ही नहीं कि हमने ऐसा किसी लालच या सत्तालोभ की वजह से नहीं किया है. ये जानकर कि हम अनजाने में ही खुल्लमखुल्ला गलत रास्ते पर चल रहे थे, हम खुद को काफी क्षुद्र महसूस कर रहे थे. मुलायम सिंह एक बहुत सीधे इंसान हैं. उन्होंने कहा कि तीसरा मोर्चा हो या कोई अन्य मोर्चा, तभी बनेगा जब देश रहेगा. अगर हम देश के हित के साथ ही समझौता करने लगेंगे तो राजनीति और राजनेता कहां जाएंगे? ये हमारे लिए एक ऐतिहासिक भूमिका निभाने का मौका है.
पर कलाम तो ये पहले भी कह चुके थे. उन्होंने आपको कोई नयी बात नहीं बताई.
बतौर राजनेता हमारी प्राथमिकताएं और फोकस इस पर नहीं था. यहां तक कि यूपीए तक ने इसका इस्तेमाल नहीं किया. मनमोहन सिंह ने जो कहा उसमें भी कोई नयी बात नहीं थी. मगर मेरी कोशिशों से ये सारा मुद्दा केंद्र में आया.
इसीलिये तो लोगों के लिए इस बात पर यकीन करना मुश्किल है कि समाजवादी पार्टी अचानक ही देशहित में कांग्रेस को समर्थन देने लगी है.
लोग जो चाहे सोचें मगर मुद्दे को इतने उचित तरीके से केंद्र में कभी नहीं रखा गया. कलाम के प्रमाणपत्र के बाद ये देखना काफी पीड़ादायक था कि समझौते को हिंदू बनाम मुसलमान का रंग दिया जा रहा है. सीपीएम पोलित ब्यूरो के एक सदस्य और मायावती ऐसी बातें कर रहे थे. ये बड़ी खराब बात थी. इसलिए हमने अपना फैसला लिया और मनमोहन सिंह और सोनिया जी को सूचित किया कि हम देशहित में इस समझौते का समर्थन करेंगे. जाइये और कांग्रेस से पूछिए, सोनिया गांधी और उनके प्रतिनिधियों से पूछिए.