‘ हमारा लोकपाल अलग-अलग मसौदों की खिचड़ी नहीं है ’

अतुल चौरसिया और रेवती लॉल के साथ बातचीत में लोकपाल मसौदा तैयार करने वाली स्थायी संसदीय समिति के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी उन तमाम मसलों पर अपना पक्ष स्पष्ट कर रहे हैं जिन्हें लेकर टीम अन्ना को आपत्ति है

आपने लोकपाल का मसौदा बनाते वक्त किन चीजों का ध्यान रखा?

दो-तीन मुख्य बिंदु हैं जिन्हें समझने की जरूरत है. पहला तो है इसका समयांतराल- महज ढाई महीने. इस दौरान 15-16 बैठकें हुईं, लगभग 40 घंटों की बैठक में 10 घंटे सिर्फ टीम अन्ना के साथ बीते. 25 से ज्यादा मुद्दों पर विचार करना था. यह राजनीति, कानून, तकनीक और 14 राजनीतिक पार्टियों के 31 प्रतिनिधियों का एक जटिल मिश्रण था. इस लिहाज से यह ड्राफ्ट एक बड़ी उपलब्धि है. हमारा मानना है कि यह अब तक की सबसे मजबूत रिपोर्ट है. यह सरकारी, जनलोकपाल और एनसीपीआरआई के मसौदे की मिली-जुली खिचड़ी नहीं है.
लोकतंत्र में किसी प्रक्रिया को रबरस्टैंप की तरह इस्तेमाल करने की सोच बहुत गलत है. आप हर दूसरे दिन धमकी दे रहे हैं, हर तीसरे दिन कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं. संसद का सत्र अभी दो हफ्ते चलना है. आप 22 तक इंतजार क्यों नहीं करते. अगर आप फिर से अनशन शुरू करते हैं तो फिर संसदीय समिति के होने न होने का क्या मतलब है? अपनी बात रखने के दूसरे तरीके हो सकते हैं. जिन मुद्दों पर हमारे विचार आपस में नहीं मिलते उन पर आम सहमति की प्रक्रिया अपनानी चाहिए.

आपकी बातों में विरोधाभास है. एक तरफ आप कह रहे हैं कि अन्ना को संसद सत्र खत्म होने का इंतजार करना चाहिए, दूसरी तरफ आप यह भी कह रहे हैं कि आप उनकी बातों को मानने के लिए मजबूर नहीं हैं.

विरोधाभास नहीं है. हम यहां किसी को खुश करने के लिए नहीं हैं. हम सिर्फ संसद, देश की जनता और खुद के प्रति उत्तरदायी हैं.

टीम अन्ना के साथ आपकी बैठक कैसी रही?

बेहद आत्मीय माहौल में उनके साथ गहन और व्यापक बैठकें हुईं. सभी मुद्दों पर उनके साथ विस्तार से चर्चा हुई. टीम के सभी सदस्यों ने इसमें हिस्सा लिया. अन्ना भी आए थे, अरविंद भी थे, दोनों भूषण भी थे.

टीम अन्ना की दलील है कि अगस्त में संसद ने सदन की जिस भावना की बात कही थी अब उससे मुकरने का काम हो रहा है.

संसद में जो बहस हुई थी उसे प्रणब मुखर्जी ने पांच लाइनों में समेट कर बताया था. उनके मुताबिक ‘सेंस ऑफ हाउस को उपयुक्त प्रावधानों के साथ ही लागू किया जा सकता है.’ हम उस बात पर कायम हैं. हमने ऐसा कोई ड्राफ्ट नहीं बनाया है जो सेंस ऑफ हाउस को प्रतिध्वनित नहीं करता. संसद की संसदीय समिति का काम जनलोकपाल टीम की इच्छाओं और अनिच्छाओं को पूरा करना नहीं है.

सदन की जिस भावना के बाद अन्ना ने अपना अनशन खत्म किया था उसमें लोअर ब्यूरोक्रेसी और सिटिजन चार्टर को लोकपाल में शामिल करने की बात कही गई थी. लेकिन आपके ड्राफ्ट में उन्हें सीवीसी के तहत रखने का सुझाव है.

नोट में साफ कहा गया है कि इसके लिए उपयुक्त प्रावधान किए जाएंगे. आप बताइए, सदन की भावना में कहां कहा गया है कि लोअर ब्यूरोक्रेसी को हर हाल में लोकपाल के दायरे में शामिल करना है? लोगों को  इस मामले में गलतफहमी है.

सीबीआई को लोकपाल के दायरे में लाने के प्रति कई गलतफहमियां हैं. न तो इसे पूरी तरह लोकपाल के तहत रखा गया है न ही पूरी तरह बाहर रखा गया है.

ड्राफ्ट में इस मुद्दे पर आपको एक नई किस्म की रचनात्मकता देखने को मिलेगी. ड्राफ्ट में सीबीआई को स्वतंत्र बनाने के लिए एक स्पष्ट धारा का प्रावधान है. ऐसा देश के इतिहास में पहली बार हुआ है. इसके अलावा हमने एक ऐसा तंत्र बनाया है जिसके जरिए लोकपाल की जांच और अभियोजन प्रक्रिया बेहद प्रभावशाली हो जाएगी.

जनता के बीच ऐसा संदेश है कि लोकपाल को लेकर पार्टी के भीतर ही कई विचार हैं. मसलन प्रधानमंत्री को शामिल करने का मुद्दा ही ले लें.

प्रधानमंत्री तो एक व्यक्ति मात्र हैं जबकि यह एक सांस्थानिक मुद्दा है. भविष्य में क्या चीज अस्थिरता पैदा कर सकती है, इस बारे में सांस्थानिक नजरिये से ही सोचना पड़ेगा. जहां तक प्रधानमंत्री जी का सवाल है तो उन्होंने एक बार हल्के-फुल्के अंदाज में कह दिया था कि मेरी कैबिनेट फैसला लेने के लिए मुक्त है.

आपके पिता एलएम सिंघवी ने 1963 में सबसे पहले लोकपाल शब्द ईजाद किया था. इस लिहाज से यह बिल आपके लिए क्या मायने रखता है?

यह एक दिलचस्प संयोग है. सालों पहले किसी व्यक्ति ने एक शब्द ईजाद किया था बाद में उसके बेटे को उसका मसौदा तैयार करने का मौका मिला है. यह एक दैवी संयोग है और स्वाभाविक रूप से इसका कुछ भार मेरे मन पर है.