‘सुर-मारग को दिशा दिखाता संगीत’

यूं तो आदरणीय लता जी के गाए न जाने कितने गीत मेरे बरसों के साथी रहे हैं, लेकिन इनमें सबसे प्रिय गीत को चुनकर बताना कि आखिर ये ही सबसे प्रिय क्यों हैं, बड़ा मुश्किल काम है. इस लिहाज से बहुत सोचा, बड़ी माथापच्ची की, मगर मात्र एक गीत नहीं चुन पाई और इसीलिए उन गीतों की फेहरिस्त भेज रही हूं, जो जीवन की अड़-बड़ गलियों में न जाने कितनी बार मुझे सहारा दे चुके हैं, मेरा हाथ थाम मुझे सुर-मारग की दिशा दिखा चुके हैं.

‘पहली बार इन दोनों गजलों को सुना तो ये इस प्रकार दिल-दिमाग पर चढ़ गईं कि फिर-फिर सुनने को जी मचल जाता’

बरसों पहले विविध भारती पर दोपहर में गैरफिल्मी गीतों के कार्यक्रम में लता जी की गाई दो गजलें आए दिन प्रसारित होती थीं. एक, ‘आंख से आंख मिलाता है कोई…’ (गीतकार : शकील बदायूंनी) और दूसरी, ‘अहद-ए-गम में भी मुस्कुराते हैं…’ (गीतकार : खलिश देहलवी). यह उन दिनों की बात है जब मैं कॉलेज में पढ़ रही थी और इलाहाबाद में गाने की तालीम ले रही थी. पहली बार इन दोनों गजलों को सुना तो इस प्रकार दिल-दिमाग पर चढ़ गईं कि फिर-फिर सुनने को जी मचल जाता. कभी-कभी तो इन्हें सुनने की ताक में रेडियो के पास कान लगाए बैठे-बैठे क्लास भी जाना भूल जाती. दोनों ही गजलों को महावीर जी ने अत्यंत कठिन और जटिल धुनों से सजाया है. यानी किसी गायक-गायिका की परीक्षा लेनी हो, तो ये दोनों रचनाएं रख दें उनके सामने, और फिर देखिए अच्छे-अच्छों के छक्के छूटते. लेकिन लता जी ने इन्हें ऐसे सहज अंदाज में गाया है कि यदि कोई नादान ये समझ बैठे कि अरे, ये तो हम भी गा लेंगें, तो कोई आश्चर्य नहीं. तो साहब हम भी ये नादानी कर बैठे. वो दिन और आज का दिन, इस बीच कई दशक सरकते हुए निकल गए, पर अब भी बात नहीं बनी.

इसी के साथ उतना ही सुंदर पंडित नरेंद्र शर्मा जी का लिखा हुआ वह गीत भी कभी भूलता नहीं जिसे जयदेव जी ने संगीतबद्ध किया था. लता जी ने इस गीत ‘जो समर में हो गए अमर, मैं उनकी याद में, गा रही हूं आज श्रद्धा गीत धन्यवाद में’ को गाकर देशप्रेम के जज्बे का एक अलग ही संसार रच दिया है. देश पर मरने वाले बहादुर जवानों के प्रति श्रद्धा-निवेदन का यह गीत निश्चय ही पूरी गरिमा के साथ लता जी की आवाज में एक सच्ची श्रद्धांजलि बन सका है. यह गीत भी मेरे हिसाब से उनके गाए हुए अमर गीतों में एक क्लासिक का दरजा रखता है, जिसकी गूंज आज भी मेरे कानों में उसी तरह समाई हुई है, जैसी दशकों पहले सुनने के वक्त महसूस हुई थी.

इसके अलावा श्रीनिवास खाले जी के संगीत निर्देशन में तुकाराम जी का एक अभंग पद ‘अगा करुणाकरा’ की चर्चा के सम्मोहन से भी खुद को रोक नहीं पा रही हूं. इस अद्भुत ढंग के भजन को लता जी ने इतनी भक्ति और आत्मीयता से गाया है कि उसके बारे में तारीफ करते हुए शब्द कम पड़ जाते हैं. अगर किसी को भक्ति का नमूना उतने ही श्रद्धा-भाव से गीत-संगीत के माध्यम से सुनना है, तो उसे इस गीत को जरूर सुनना चाहिए. लता जी ने जैसे इसमें आत्मा का संगीत उड़ेल दिया है.

आज के तकनीकी युग में, इंटरनेट की मैं आभारी हूं कि उनके कुछ ऐसे अमर गैरफिल्मी भजन, अभंग पद, गजल और देशभक्ति के गीत हमें सुनने के लिए उपलब्ध हो सके हैं, जिनके पुराने रिकॉर्ड और कैसेट अब सामान्यता म्यूजिक स्टोर पर उपलब्ध नहीं हो पाते. आज भी संगीत की यह अमूल्य थाती भले कैसेट में उपलब्ध हो, या सीडी में या फिर आई पॉड पर, लता जी की आवाज में ये कुछ रचनाएं मेरे सुख-दुख में हमेशा साथ रही हैं.