शौचालय नहीं तो कैसे रहे सफाई?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुले में शौच से देश को मुक्त होने का जो दावा किया है उसमें मोदी की नीति और सोच में किसी प्रकार का कोई भेद नहीं है। सन् 2014 से ही जब प्रधानमंत्री बने थे तब वे लगातार स्वच्छता पर बल देते रहे और स्वच्छता आंदोलन को धार देते रहे है। उसी कड़ी के तहत उन्होंने दो अक्तूबर को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर स्वच्छ भारत मिशन आरंभ करने के साथ सरकार के संकल्प की घोषणा की जिसे राजघाट से प्रधानमंत्री ने पूरे देश में लांच किया है। दिल्ली सहित पूरे देश में सरकार के साथ साथ विपक्ष ने स्वच्छता अभियान पर बल दिया और देशवासियों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। जिसका असर अब धीरे-धीरे दिख रहा है। सरकार के आदेश का पालन क्रियान्वित होने में जहां नागरिकों को जिम्मेदारी समझनी चाहिये वहीं सरकारी पदों पर बैठे अधिकारियों और स्थानीय नेताओं जैसे पार्षदों और विधायकों को भी इस अभियान को संकल्प के तौर अपनाना चाहिये पर ऐसा व्यवहारिक तौर पर होता नहीं दिख रहा है।

दिल्ली के पॉश इलाकों बस अड्डों अस्पतालों रेलवे स्टेशनों और दिल्ली के पार्को में जब तहलका ने गहन पड़ताल की तो स्वच्छता अभियान में ज़मीनी स्तर पर काफी भेद देखा गया और जागरूकता की कमी भी नज़र आयी है। ज्य़ादात्तर लोगों ने कहा कि सफाई अच्छी बात है पर मेरी एक दिन की गंदगी की वजह से थोड़ा गंदगी है। ऐसे में नागरिकों के साथ सफाई कर्मचारियों को पैनी नजर रखनी होगी। दिल्ली के सराय काले के बाहर निकलते की सामने पुल पार करते ही यमुना तट पर आज भी खुले में शौच आम बात है। इसमें दिल्ली में दूर दराज इलाकों से आये यात्री जिसमें पुरूष, महिलायें और बच्चे शामिल हैं। बस वाले ऑटो वाले तो अपना अधिकार समझ कर काले खॉ के पास दांये -वाये खुले पड़े मैदान में शौच करते है। ऑटो चालक से बात की कि खुले में शौच नहीं करना तो उसने जवाब दिया सुबह सुबह कौन देखता है जो एकाध शौचालय दिल्ली नगर निगम के बने हैं उसमें हज़ारों की तदाद में यात्रियों और ऑटो चालकों व बस चालकों का प्रयोग मुश्किल है। आनंद बिहार से काले खॉ के बस चालक रतन ने बताया कि हम लोग बस चालक हैं, बस चलाते हैं अनपढ़ आदमी हैं और खुले को शौच का तो हम बचपन से करते आ रहे है। यही हाल बस अड्डा कश्मीरी गेट मोरी गेट का है जहां पुलों के नीचे और सामने यमुना तट पर खुले में शौच यात्रियों के साथ साथ ऑटो चालक और बस चालक कर रहे हैं।

दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर और लोटस टैम्पल में तो ये आम बात है। अक्षरधाम मंदिर में दक्षिण भारत और गांव देहात के जो गांवों से बसों में हजारों की संख्या में दर्शनार्थी आते है वे सुबह से दर्शन करने पूर्व स्वयं तो स्वच्छ हो कर स्नान करके जाते है। पर वे कॉमनवेल्थ विलेज के पास जो मैदान है बरसाती घास और वहीं से निकली रेलवे लाइन के पास खुले में शौच करते हैं। ऐसा नहीं यहां के पांडव नगर निवासी मनोरंजन ने स्वस्च्छता बल देते हुये दर्शनार्थियों को रोका तो किसी ने कोई बात न मानी बल्कि कहा कि अपने घर ले चलो मैं कहां करूं। अब बात करते हैं दिल्ली के बड़े अस्पतालों का यहीं हाल है जहां पर प्राइवेट गार्ड भी अस्पतालों में तैनात हैं फिर भी हाल बे हाल है। केन्द्र सरकार के सफदरजंग अस्पताल जो दिल्ली रिंग रोड़ पर है यहां पर सुबह सुबह मरीजों के परिजनों द्वारा मजबूरी में की गई शौच और पेशाब करने से आने जाने वाले मरीजों को ही नहीं बल्कि आम लोगों को भयंकर बदबू का सामना करना पड़ता है। ऐसा नहीं की यहां की गंदगी से अस्पताल प्रशासन और दिल्ली के नेता वाकिफ नहीं है। पर कुछ भी नहीं हो रहा है। यही हाल दिल्ली के लोकनायक अस्पताल का है जहां पर हज़ारों की संख्या में मरीज इलाज कराने को आते हैं। जो अस्पताल का फुटपाथ बना है वह पूरी तरह शौच और गंदगी से भरा है।

दिल्ली का शायद कोई भी ऐसा पार्क नहीं है जो जनता द्वारा की गंदगी की मार न झेल रहा हो। सामाजिक व सभ्य लोग पार्को के सजाने संवारने में लगे रहते पर कुछ लोग है जो गंदगी फैलाने लगे है।

ये बात हुई आम नागरिकों की जो अपनी घटिया सोच को अच्छी सोच में बदलने में तौहीन समझते है पर कई ऐसे लोग है जो अपनी पावर और शान के चलते कुत्तों को तो पालते हैं पर कुत्तों को दिल्ली की सूनी पड़ी सडक़ों में ही नहीं जहां मौका मिलता है वहां कराने बाज नहीं आते है। दिल्ली के पॉश इलाकों में रहने वाले तो अपनी कोठी में शान से रहते है पर वे अपने कुत्तों को नौकरों के हवाले कर घरों के बाहर शौच के लिये भेजते न ये देखते हैं कि धार्मिक स्थल है स्कूल है और बाजार है कि स्थानीय इलाका है। इसमें दिल्ली के राजनेताओं और अफसरों के कुत्तों को भी नौकर सुबह शाम शौच करवाने ले जाते है। कई बार कुत्तों के शौच को लेकर दिल्ली में मारधाड़ और झगड़े भी हुये है। लेकिन इस ओर सरकार का काई ध्यान नहीं होने लोगों को काफी नाराज़गी है। सामाजिक कार्यकर्ता सचिन कुमार ने बताया कि सरकार के खासकर प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान का वो दिल से स्वागत करते हैं। पर वो सत्ता से जुड़े लोगों से अपील करते है कि नागरिकों को सुधरने में समय लगेगा एक दिन नागरिक सुधर भी जायेगा पर वे नागरिक कब सुधरेगे जो अपने घरों में साफ -सफाई से रहते है लेकिन अपने पालतू कुत्तें जो लाखों में खरीद कर उनकी गंदगी को दिल्ली की सडक़ों में फैलाते हैं। इस पर सरकार को कोई कठोर कानून बनाने की ज़रूर है तब जाकर सही मायने सफाई दिल्ली दिखेगी और शौच मुक्त भारत दिखेगा।